महिलाओं की सुरक्षा के लिए तमाम कानून बन जाने के बावजूद महिला हिंसा कम नहीं हो रही. इस का एक कारण वह मानसिकता है जो सदियों से महिलाओं को नियंत्रण करने की कोशिश में रहती है. 2012 में देश में उस समय की कांग्रेस सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में दिल्ली के निर्भया कांड की प्रमुख भूमिका थी. 2019 में तेलंगाना और उत्तर प्रदेश में बलात्कार की घटनाओं ने सरकार को खलनायक बना दिया था. यह तो कोरोना का प्रकोप था कि बात आईगई हो गई लेकिन देश की हर लड़की खासतौर पर गांवों की जहां एक बार महिलाओं के खिलाफ हिंसा मुख्यधारा में है.

देश में बलात्कार का मुद्दा बहुत पुराना है. इस के लिए इंटरनैट, फिल्में और फैशनेबल ड्रैसेज को जिम्मेदार बताना बेमानी बात है. जिस समय समाज में यह सब नहीं था तब भी बलात्कार की घटनाएं होती थीं. बलात्कार की घटनाओं में वृद्धि का कारण जनसंख्या और ऐसी घटनाओं पर संज्ञान लेना है. अगर बलात्कार के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट समय पर दर्ज हो और समय पर कानून फैसला कर दे तो अपराधियों में डर बैठेगा. बलात्कार के मामलों में दुरुपयोग रोकने के लिए फर्जी शिकायत करने वालों के खिलाफ भी कड़ा कानून बने. देश में महिला हिंसा 2012 की तरह फिर से मुख्य धारा में है. 2012 में दिल्ली में निर्भया कांड हुआ था, जिस में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले की रहने वाली निर्भया के साथ दिल्ली में वीभत्स तरीके से बलात्कार हुआ.

इस के बाद उस की मौत हो गई. निर्भया कांड ने देश के सामाजिक और राजनीतिक माहौल को बदलने का काम किया. 2013 में महिला हिंसा कानून आया, जिस में महिलाओं से हिंसा करने पर कड़ी सजा का प्रावधान किया गया. 2014 में भाजपा की अगुआई वाली एनडीए की सरकार बन गई. नरेंद मोदी देश के नए प्रधानमंत्री बने. महिला हिंसा, खासकर बलात्कार के जुर्म में शामिल नाबालिग आरोपियों की उम्र 18 साल से घटा कर 16 साल कर दी गई. महिला हिंसा के कड़े कानून के बाद भी बलात्कार जैसी घटनाओं में कमी नहीं आई क्योंकि एक वर्ग को यह बारबार पढ़ाया गया है कि कुछ जातियों का काम सेवा करना है और अगर उन की लड़कियों ने इच्छा से सेवा नहीं की तो जबरदस्ती कर लो. 2014 में सत्ता बदलने के बाद भी बलात्कार की घटनाओं में नेताओं की संलिप्तता चौंकाने वाली रही. किसी एक दल के नेता पर ही ऐसे मामले नहीं हैं. हर दल के नेताओं के खिलाफ ऐसे मामले प्रकाश में आए.

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