धार्मिक यात्राएं शहरों पर किस तरह से भारी पड़ रही हैं, जोशीमठ इस की मिसाल है. बद्रीनाथ जाने वालों का यह पहला पड़ाव होता है. अनियोजित विकास की भेंट चढ़ा जोशीमठ पलपल धंसता जा रहा है. यहां के लोग बेहाल हैं. उन का सबकुछ धार्मिक यात्राओं की भेंट चढ़ चुका है. जोशीमठ के 12 मकानों पर खतरा बने 2 होटल ‘मलारी इन’ और ‘माउंट व्यू’ को गिराने का सरकार का फैसला बताता है कि धार्मिक पर्यटन के बढ़ने से किस तरह से खतरा बढ़ा है.
नदियों और सड़कों के किनारे बने इन होटलों के कुछ कमरों का किराया इसलिए ज्यादा होता है क्योंकि कमरे से ही व्यू दिखता है. जिस समय इन के निर्माण हुए थे, इन को जोशीमठ के लिए बेहतर माना गया था. पहाड़ के खतरों से सरकार सीख नहीं ले रही, वह मैदानी इलाकों की नदियों के स्वरूप से खेल रही है. वाराणसी में गंगा नदी में 3,200 किलोमीटर तक चलने वाला निजी कंपनी का ‘गंगा विलास क्रूज’ आज भले ही मोदी सरकार के समर्थकों के लिए गौरव का विषय हो पर आने वाले दिनों में गंगा के स्वरूप में बदलाव भी संकट का कारण हो सकता है.
जोशीमठ का धार्मिक महत्त्व है. इस शहर को पौराणिक ग्रंथों में ज्योर्तिमठ के नाम से भी जाना जाता है. आदिशंकराचार्य ने देश में जिन 4 मठों की स्थापना थी, जोशीमठ उन में से एक है. यहां पर विष्णु का मंदिर है. इस के अलावा नरसिंह, नवदुर्गा और वासुदेव मंदिर भी हैं. बद्रीनाथ, जगन्नाथ, द्वारिका और रामेश्वरम चारधाम के नाम से जाने जाते हैं. मिलने वाले शुभ फल मान्यता है कि चारधाम यात्रा करने से मनुष्य के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. इस यात्रा को करने से मुक्ति मिलती है. कहते हैं कि इस यात्रा में मृत्यु को प्राप्त हो जाना शुभ माना जाता है.
इन धामों की यात्रा करने से व्यक्ति को जीवनमुक्ति प्राप्त हो जाती है. बद्रीनाथ के बारे में प्रचार किया जाता है कि ‘जो जाए बदरी, वो न आए ओदरी’. इस का अर्थ है कि जो एक बार बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है उसे उदर यानी गर्भ में नहीं जाना पड़ता. शिवपुराण इस मुक्ति को आगे बढ़ाता है कि जो व्यक्ति केदारनाथ ज्योतिर्लिंग का पूजन कर वहां का जल पी लेता है उस का दोबारा जन्म नहीं होता है. बदरीनाथ धाम में स्थित ब्रह्मकपाल में पितृ तर्पण का विशेष माहात्म्य है. बारबार कहा जाता है कि यहां पिंडदान करने से अन्य तीर्थों के मुकाबले 8 गुना अधिक पुण्य मिलता है. यहां पर शिव को ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मिली थी. जोशीमठ चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव होता है, जिस की वजह से इस का भौगोलिक महत्त्व बहुत है, जिस का खमियाजा इस शहर को भुगतना पड़ रहा है. जब यह शहर धंसने की तरफ पलपल बढ़ रहा है तो चारों तरफ चीखपुकार मची है.
सम?ाने वाली बात यह है कि जिस भगवान से कुछ पाने की मदद में लोग यहां आते थे, आज वही भगवान अपने ही घर को बचाने में असफल है. आंखों पर धर्म की पट्टी बांधे लोग अब भी कुछ सोचविचार करेंगे, यह दिख नहीं रहा. जब भी जोशीमठ के धार्मिक महत्त्व की चर्चा होगी तबतब उस के विनाश की तसवीर भी सामने दिखेगी. (सरित प्रवाह में टिप्पणी भी देखें.) ग्लेशियर के मलबे पर शहर बद्रीनाथ और हेमकुंड साहिब जाने के लिए यहीं से हो कर जाना होता है. इस के आसपास बर्फीले पहाड़ देखने को मिलते हैं. यह देखने में बेहद सुंदर दिखता है. सुंदर दिखने वाला जोशीमठ दरअसल ग्लेशियर से निकलने वाले मलबे के पहाड़ पर बसा है. पहाड़ी ढलान होने के कारण भू कटाव का खतरा बहुत रहता है. 1505, 1803, 1991 और 1999 में यहां बड़े भूकंप आए. 1505 का भूकंप काफी तेज था.
पर्यटन के बढ़ते दबाव के कारण हुए निर्माण कार्यों का दबाव जोशीमठ पर भारी पड़ रहा है. यह शहर हर साल 6.62 सैंटीमीटर की गति से धंस रहा है. वैसे देखा जाए जो पूरा उत्तराखंड भूकंप की नजर से सब से खतरनाक हालत में है. हिमालय में होने वाली गतिविधियों से इस का पूरा इलाका खतरे में है. जोशीमठ भूकंप के अत्यधिक जोखिम वाले ‘जोन-5’ में आता है. जोशीमठ में हाल के कुछ सालों में यहां बड़े पैमाने पर बदलाव हुए. केदारनाथ हादसे और 7 फरवरी, 2021 में तपोवन क्षेत्र में धौलीगंगा में पानी के उफान के बाद भी गंभीरता से ध्यान नहीं दिया गया. धौलीगंगा में आए उफान ने जोशीमठ की तलहटी अलकनंदा से विष्णुप्रयाग और मारवाड़ी पुल तक को प्रभावित किया था.
इस उफान में नदी का पानी एक दिन में ही 10 से 20 मीटर तक उठ गया था. उस समय भारी भू कटाव हुआ था, जिस का असर आज के जोशीमठ पर दिख रहा है. पानी का रिसाव इस कारण से ही हो रहा है. तेजी से बढ़ा भू धंसाव भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो के नैशनल रिमोट सैंसिंग सैंटर ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि अप्रैल से नवंबर 2022 के बीच जमीन धंसने की गति धीमी थी. 2 जनवरी, 2023 के बाद इस की गति में तेजी आई है. इस दौरान भू धंसाव तेज हुआ, जिस के करण 12 दिनों में ही 5.40 सैंटीमीटर शहर धंस गया.
धंसाव का केंद्र जोशीमठ औली रोड के पास 2,180 मीटर की ऊंचाई पर था. इस की वजह से यहां के रहने वालों को घर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ रहा है. इस के बाद प्रदर्शनकारियों की आवाजें गूंजने लगीं. धार्मिक पर्यटन और प्रकृति के बीच संघर्ष की एक मिसाल के रूप में जोशीमठ पर जिस प्रकार के खतरे महसूस किए जा रहे थे, विकास कार्यों के लिए उन को नजरअंदाज किया गया. उत्तराखंड में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने की नीति को चारधाम परियोजना से उड़ान के पंख लगे और पहाड़ की प्रकृति को तहसनहस कर दिया गया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब से केदारनाथ मंदिर के दर्शन कर उस का बड़े पैमाने पर प्रचार कार्य किया तब से इस क्षेत्र में पर्यटन बढ़ा.
बड़ी संख्या में लोगों का यहां आनाजाना शुरू हुआ. 2016 में बद्रीनाथ जाने वालों की संख्या 6.5 लाख थी जो 2022 में बढ़ कर 17.6 लाख हो गई. चारधाम यात्रा का धार्मिक महत्त्व तो है पर इस का जो भी आर्थिक महत्त्व था, अब भारी पड़ने लगा है. यात्रियों की सुविधाओं के लिए हरिद्वार से ले कर आगे हर शहर में नए निर्माण हुए. नदियों के किनारों पर अतिक्रमण कर के होटल बने. होटल, गेस्ट हाउस, दुकानें, सड़क और मंदिरों तक में नए निर्माण हुए. पेड़ों की कटाई और नदियों से खनन किया गया. जिन खतरों के खिलाफ सालोंसाल पहले जनता सतर्क थी उन्हें भूल गई, जिस का नतीजा अभी तो सिर्फ जोशीमठ के 600 से अधिक परिवार भुगत रहे हैं, आगे और गांवकसबे भी चपेट में आएंगे. खतरों को किया दरकिनार जोशीमठ से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर रैणी गांव है.
मार्च 1974 में यहीं से ‘चिपको आंदोलन’ की शुरुआत हुई जब इसी गांव की रहने वाली गौरा देवी कुछ महिलाओं को ले कर जंगल में पहुंचीं और पेड़ों से चिपक गईं. उन्होंने पेड़ों को काटने वाले लोगों को चेतावनी दी कि अगर इन पेड़ों को काटना ही है तो पहले हम पर गोली चलाओ. इस तरह यहां से चिपको आंदोलन की शुरुआत हुई और सरकार को कदम पीछे खींचने पड़े. 47 साल पहले गढ़वाल कमिश्नर मुकेश मिश्रा ने आयोग बनाया जिसे मिश्रा कमीशन कहा जाता है. उस की रिपोर्ट ने जोशीमठ को बचाने के लिए जिन सु?ावों को पेश किया था उन पर अमल नहीं किया गया. मिश्रा कमीशन ने कहा था कि यहां के आसपास भारी निर्माण न हो.
सड़क बनाने के लिए बड़े पत्थरों, जिन को बोल्डर्स कहा जाता है, को खोदने या विस्फोट कर हटाने को मना किया गया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि जोशीमठ के निचले इलाकों में पेड़पौधे लगाए जाएं और हरियाली बढ़ाने पर काम किया जाए. नालियों की व्यवस्था ऐसी हो कि भू कटाव न हो सके. उस समय उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का हिस्सा था और भारतीय जनता पार्टी की सरकार नहीं थी. काफीकुछ काम किया गया लेकिन बाद के सालों में इस तरफ ध्यान नहीं दिया गया.
जोशीमठ को बचाने के लिए उत्तराखंड की कांग्रेस और भाजपा दोनों ही सरकारों ने ईमानदारी से काम नहीं किया. शहर में भारी निर्माण कार्य होते रहे. जैसेजैसे पर्यटकों की संख्या बढ़ने लगी, उन की सुविधा के लिए अलग इंतजाम होने लगे. 1976 के मुकाबले आबादी कई गुना बढ़ गई. पानी का प्रयोग बढ़ा पर उस की निकासी का सही इंतजाम नहीं किया गया. संकट में चारधाम परियोजना जोशीमठ में लंबे समय से बेतरतीब निर्माण गतिविधियां चल रही हैं. केंद्र और राज्य सरकारें धार्मिक पर्यटन के सहारे राजस्व बढ़ाने की बात करती हैं. इस कारण केवल जोशीमठ ही नहीं, औली भी संकट में है.
वहां कृत्रिम बर्फ बनाने के लिए बाहर से पानी लाया गया, ?ाल बनाई गई. जबकि पानी के निकास का कोई उचित प्रबंध नहीं किया गया. इस वजह से जोशीमठ की तरह औली का भी संकट बढ़ सकता है. जोशीमठ की जनसंख्या 30 हजार के करीब है. पहाड़ी शहरों को देखें तो यह एक अच्छी आबादी वाला शहर है. जोशीमठ के कुल मकानों में से 761 मकानों को ज्यादा खतरनाक माना गया है. 1962 में चीन से युद्ध के बाद भारत में इस जगह के महत्त्व को सम?ा गया. युद्ध की हार की समीक्षा में यह बात उभर कर सामने आई थी कि अगर यहां भारत की सेना के लिए सड़क बन जाए तो बेहतर होगा. इस के बाद से जो निर्माण यहां हुआ उस से भी संकट पैदा हुआ है. केंद्र में मोदी सरकार बनने के बाद से सड़कों के निर्माण में तेजी आई, सेना के लिए भी जोशीमठ के इलाके में तमाम निर्माण हुए जिस वजह से जोशीमठ की परेशानियां और तेजी से बढ़ी हैं.
चारधाम परियोजना के तहत जोशीमठ औल वैदर रोड का हिस्सा है. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्त्वाकांक्षी प्रोजैक्ट्स में से एक है. चारधाम परियोजना औल वैदर रोड परियोजना है. जो उत्तराखंड में चारधामों को जोड़ने के साथसाथ एक धार्मिक महत्त्व का प्रोजैक्ट है. इस के जरिए उत्तराखंड के गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ और बदरीनाथ को जोड़ने का काम किया जा रहा है. इस से तीर्थाटन और पर्यटन को बढ़ावा तो मिलेगा ही, साथ ही, इस से पड़ोसी देश चीन का मुकाबला करने में भी मदद मिलेगी. पहले इस प्रोजैक्ट का नाम औल वैदर रोड प्रोजैक्ट ही था जिसे बाद में नाम बदल कर चारधाम प्रोजैक्ट किया गया. विरोध के बाद रोका गया काम आध्यात्म हो या फिर भौगोलिक महत्त्व, जोशीमठ हर तरह से बेहद खास है. यह करीब 4,677 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है.
यहां के हालात को ले कर स्थानीय लोगों में गुस्सा है. उन्होंने बद्रीनाथ हाइवे पर चक्काजाम किया. सीधेतौर पर इस की वजह को देखें तो पता चलता है कि यह एक मैन-मेड डिजास्टर है. यहां के लोग हेलांग बाईपास के निर्माण कार्यों का भी विरोध करते रहे हैं. लोगों की मांग है कि हेलांग और मारवाड़ी के बीच एनटीपीसी की सुरंग और बाईपास रोड का निर्माण बंद कराया जाए, साथ ही, इस संकट की जवाबदेही एनटीपीसी के तपोवन-विष्णुगढ़ हाईड्रोपावर प्रोजैक्ट पर तय की जाए. ताजा हालात देखते हुए चमोली प्रशासन ने सीमा सड़क संगठन यानी बीआरओ द्वारा हेलांग बाईपास के निर्माण कार्यों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है.
हेलांग बाईपास के निर्माण के अलावा तपोवन-विष्णुगढ़ प्रोजैक्ट और नगरपालिका की ओर से किए जा रहे तमाम निर्माण कार्यों पर भी रोक लगा दी गई है. भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा है कि जोशीमठ में स्थिति पर करीब से नजर रखी जा रही है. भूकंप के अत्यधिक जोखिम वाले ‘जोन-5’ में पड़ने वाले जोशीमठ का सर्वे करने के लिए एक एक्सपर्ट टीम भी गठित की गई है. एनटीपीसी ने स्पष्टीकरण देते कहा है कि पिछले 2 सालों से जोशीमठ पर कोई सक्रिय निर्माण कार्य नहीं किया गया है. तपोवन-विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना से जुड़ी 12 किलोमीटर लंबी सुरंग जोशीमठ से एक किलोमीटर दूर और जमीन के एक किलोमीटर नीचे है. टनल जोशीमठ शहर के नीचे से नहीं गुजर रही है. विकास कामों को करने वाले अब बचाव का रास्ता निकाल रहे हैं. इस के बीच जोशीमठ में रहने वालों के लिए सरकार नए बसेरे की योजना बना रही है. विस्थापन का दर्द सहने को लोग मजबूर हैं.