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राघव चड्ढा की दुल्हन बनेंगी परिणिती, शादी के सवाल पर मुस्कुरा कर दिया जवाब

बॉलीवुड एक्ट्रेस परिणिती चोपड़ा इन दिनों अपनी अफेयर की खबरों को लेकर चर्चा में बनी हुईं है, हाल ही में परिणिती और राघव चड्ढा को एयरपोर्ट पर एक साथ देखा गया था, इससे पहले भी दोनों कई बार साथ में स्पॉट हो चुके हैं.

यहां तक की आप नेता संजीव अरोड़ा ने भी राघव और परिणिती को बधाई दी है, परिणिती के फैंस कह रहे हैं कि हम इस खबर से काफी ज्यादा खुश हैं कि परिणिती शादी कर रही हैं.  वहीं हांडी सिंधू ने भी परिणिती और राघव चड्ढा को शादी को लेकर बधाई दी है. जिसके बाद से उन्होंने बताया की मैं परिणिती से भी शादी को लेकर बात की थी. उसने शादी को लेकर अपनी सहमति भी जताई थी.

एक वक्त ऐसा था कि जब परिणिती से शादी को लेकर बात की जाती थी तो वह कहती थी कि जब मुझे सही लड़का मिलेगा तब मैं शादी करुंगी. अब लगता है कि परिणिति को उसका सही पार्टनर मिल गया है. वह अपनी शादी की तैयारी में वह लगी हुई है.

कुछ वक्त पहले ही राघव चड्ढा और परिणिति को एक साथ दिल्ली एयरपोर्ट पर देखा गया था. जिसे देखकर साफ समझ आ रहा है कि दोनों शादी करने वाले हैं.

अंगदान: जिंदगियां बचाने का रास्ता

किसी को नया जीवन देने से ज्यादा नेक काम और क्या हो सकता है. अंगदान करने से उन हजारों लोग और उन के परिवारों को आशा की नई किरण मिल सकती है जो मुख्य अंगों के खराब होने के कारण मृत्यु से संघर्ष कर रहे हैं. अंगदान के माध्यम से आप अपनी मृत्यु के बाद भी इस दुनिया में जीवित बने रह सकते हैं.

एक मृत व्यक्ति के दिल, फेफड़े, लिवर, किडनी, छोटी आंत और पैन्क्रियाज का दान कर के 8 लोगों का जीवन बचाया जा सकता है. अंगदान हर जाति, रंग, लिंग और समुदाय का व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के कर सकता है. भारत में 18 साल से अधिक उम्र का कोई भी व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद अंगदान करने का संकल्प दर्ज करा सकता है. व्यक्ति की इस इच्छा के बारे में परिवार को सूचित किया जाना जरूरी होता है.

अंगदान की जरूरत क्यों

चिकित्सा जगत में हुई उन्नति के बाद भी हर साल 4 लाख से ज्यादा लोग अंग खराब होने के कारण मौत का शिकार हो जाते हैं. अंगों की उपलब्धता और प्रत्यारोपण के लिए जरूरतमंद मरीजों के बीच का अंतर पूरी दुनिया में लगातार बढ़ रहा है. भारत में यह अंतर और भी ज्यादा विशाल है.

एक अनुमान से भारत में लगभग

1.8 लाख लोगों को किडनी प्रत्यारोपण की जरूरत है लेकिन एक साल में केवल 10 हजार लोगों को ही किडनी मिल पाती है. लिवर और हृदय के प्रत्यारोपण की स्थिति भी ऐसी ही है और केवल

15 प्रतिशत लोगों को ही प्रत्यारोपण के लिए हृदय मिल पाता है.

साल 2019 में भारत में 12,666 अंगों का प्रत्यारोपण किया गया जो अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरा सब से बड़ा आंकड़ा है. हालांकि इन में से 80 प्रतिशत मामलों में जीवित व्यक्तियों ने अपनी किडनी और लिवर का दान किया था. जीवित व्यक्ति के अंगदान से न केवल डोनर को जोखिम होता है बल्कि व्यक्ति के जीवित होने पर केवल एक किडनी या लिवर का छोटा हिस्सा ही दान किया जा सकता है. इसलिए मृत व्यक्तियों के अंगदान की एक मजबूत अंग प्रत्यारोपण व्यवस्था की जरूरत है जिस में सभी अंग शामिल रहें.

क्या है ब्रेन डैथ

देश में ब्रेन डैथ के बाद अंगदान को बढ़ावा दिए जाने की जरूरत है. ब्रेन डैथ आमतौर से सिर में चोट लगने, स्ट्रोक, मस्तिष्क में ट्यूमर या इस्केमिक ब्रेन इंजरी (मस्तिष्क की गहरी चोट जिस में मस्तिष्क में खून की आपूर्ति रुक जाती है) के कारण होती है. यह एक क्लिनिकल स्थिति है जिस में मरीज की सांसें वैंटिलेटर पर कृत्रिम रूप से चलाई जाती हैं जिस की वजह से उस का दिल धड़कता रहता है. मरीज की मौत पहले ही हो चुकी होती है.

जिन लोगों की ब्रेन डैथ होती है, उन के मस्तिष्क में गहरी चोट लगने के कारण मस्तिष्क की मृत्यु तो हो जाती है पर दिल कुछ घंटों या दिनों तक धड़कता रहता है तथा अंगों में खून की आपूर्ति बनी रहती है. ब्रेन डैथ एक वास्तविक मृत्यु है जिस से व्यक्ति उभर नहीं सकता.

भारत में ब्रेन डैथ का निदान डाक्टर्स की एक टीम द्वारा बैडसाइड परीक्षणों द्वारा किया जाता है और ये परीक्षण कम से कम 6 घंटों के बाद दोहराए जाते हैं. ब्रेन डैथ का विषय दुख में डूबे परिवार के लिए सम?ाना मुश्किल होता है क्योंकि मौनिटर पर मरीज का दिल धड़कता हुआ दिखाई देता है. इसलिए मरीज का इलाज करने वाली टीम को परिवार और अन्य परिजनों को मरीज की मौत का विश्वास दिलाने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है जिस के बाद परिवार को प्रशिक्षित प्रत्यारोपण समन्वयकों द्वारा परामर्श दिए जाने की प्रक्रिया शुरू होती है.

इस में समय सब से महत्त्वपूर्ण होता है. धीरेधीरे महत्त्वपूर्ण अंग और टिश्यू खराब होने लगते हैं क्योंकि क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को ठीक करने की शरीर की क्षमता खत्म हो चुकी होती है और दिल कुछ घंटों से ले कर कुछ दिनों में धड़कना बंद कर देता है.

कैसे किया जाता है अंगों का आवंटन

अंग एक राष्ट्रीय संसाधन है और सभी लोगों द्वारा अंगों को राष्ट्रीय संसाधन माना जाना चाहिए. अंगदान के पश्चात उन अंगों का सर्वश्रेष्ठ उपयोग सुनिश्चित करने के लिए व्यवस्था बनाए जाने की जरूरत है.

यह सम?ाना जरूरी है कि अंगों को स्टोर कर के नहीं रखा जा सकता, लेकिन किसी उपयुक्त मरीज के शरीर में लगाए जाने के लिए एक स्टेराइल बर्फ में विशेष सौल्यूशन में रख कर उन का परिवहन किया जा सकता है. अधिकांश सर्जन अंगों को शरीर में से निकालने के बाद हृदय का 4 से 5 घंटों में, फेफड़ों का

8 घंटों में, लिवर और छोटी आंत का

12 घंटों के अंदर, पैन्क्रियाज का 18 घंटों में और किडनी का 24 घंटों में प्रत्यारोपण कर देते हैं. इसलिए विभिन्न अस्पतालों के बीच अंगों का अत्यधिक तीव्र परिवहन मनुष्यों का जीवन बचाने की प्रक्रिया में सब से महत्त्वपूर्ण पहलू है. अंगों का आवंटन स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय उपयोगिता के सिद्धांत पर आधारित है.

सरकार इन अंगों को नैशनल और्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट और्गेनाइजेशन, रीजनल और्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट और्गेनाइजेशन और स्टेट और्गन एंड

टिश्यू ट्रांसप्लांट और्गेनाइजेशन द्वारा आवंटित करती है. आवंटन की प्रक्रिया पारदर्शी है और हर अंग के लिए मानक एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सत्यापित लिस्ंिटग के मापदंड पर आधारित है.

आप कैसे ले सकते हैं अंगदान करने का संकल्प

18 वर्ष से अधिक उम्र का कोई व्यक्ति अपने अंगों व टिश्यू का दान करने का संकल्प दर्ज करा सकता है. अंगदान मुख्यतया ब्रेन डैथ की स्थिति में किया जा सकता है लेकिन कोर्निया, स्किन और हड्डियां जैसे टिश्यूज किसी भी तरह से मृत्यु होने पर दिल का धड़कना बंद होने के 6 से 10 घंटों में दान किए जा सकते हैं.

डोनर कार्ड का कोई कानूनी मूल्य नहीं होता. ब्रेन डैथ के दौरान व्यक्ति वैंटिलेटर पर होता है, इसलिए अंगदान करने का निर्णय परिवार को लेना होता है. संकल्प लिए जाने से परिवार को निर्णय लेने में मदद मिलती है. इसलिए यह बहुत जरूरी है कि अंगदान करने का संकल्प लेते वक्त व्यक्ति अपने परिवार को भी इस की सूचना दे.   द्य

(लेखक मणिपाल हौस्पिटल, द्वारका, दिल्ली में मैडिकल गैस्ट्रोएंट्रोलौजी विभाग के प्रमुख हैं.)

पालक पनीर से बनाएं ये शानदार ब्रेकफास्ट

नाश्ता प्रत्येक घर में प्रतिदिन खाया जाता है परन्तु हर दिन नाश्ते में क्या बनाया जाए यह भी हर रोज का ही यक्ष प्रश्न होता है. आहार विशेषज्ञों के अनुसार नाश्ता हमारे भोजन का सबसे अहम भाग होता है क्योंकि रात्रि भोजन के लंबे अंतराल के बाद नाश्ता पहला मील होता है जिससे हमारे शरीर को पोषण प्राप्त होता है. इन दिनों बाजार में पालक, मैथी और बथुआ जैसी हरी सब्जियों की भरमार है तो क्यों न इन सब्जियों का प्रयोग करके कुछ हैल्दी सा बनाया जाए, आज हम आपको ऐसे ही 2 नाश्ते बनाना बता रहे हैं जो बहुत हैल्दी भी हैं और जिन्हें आप बहुत आसानी से घर में उपलब्ध चीजों से ही बना भी सकते हैं तो आइए देखते हैं कि इन्हें कैसे बनाया जाता है-
पालक पनीर सर्कल्स
कितने लोगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री (सर्कल्स के लिए)
बेसन 1 कप
पालक 1/2 कप
ताजा दही 1 टेबलस्पून
तेल 1 टीस्पून
हरी मिर्च 2
अदरक 1 छोटी गांठ
नमक स्वादानुसार
अजवायन 1/8 टीस्पून
चिली फ्लैक्स 1/8 टीस्पून
सामग्री(फिलिंग के लिए)
पनीर 100 ग्राम
काली मिर्च 1/4 टीस्पून
चाट मसाला 1/2 टीस्पून
बारीक कटा हरा धनिया 1 टेबलस्पून
टोमेटो सॉस 1बड़ा चम्मच
विधि
पालक को दही, हरी मिर्च, अदरक, के साथ मिक्सी में पीस लें. अब इसमें बेसन, अजवाइन, नमक और 1/4 कप पानी मिलाकर अच्छी तरह फेंट लें. पनीर को किस कर सभी सामग्री मिलाएं. अब तैयार बेसन के मिश्रण में से 1 बड़ा चम्मच मिश्रण लेकर चिकनाई लगे नॉनस्टिक तवे पर छोटे छोटे गोलाकार में फैलाएं जैसे ही हल्का सा रंग बदले पलटकर दूसरी तरफ सेंक लें. इसी प्रकार सारे सर्कल्स तैयार कर लें.
अब एक सर्कल पर चम्मच से टोमेटो सॉस की पतली सी लेयर लगाकर पनीर के मिश्रण को अच्छी तरह फैलाकर दूसरे सर्कल से कवर कर दें. अब इसे घी लगाकर धीमी आंच पर तवे पर दोनों तरफ से सुनहरा होने तक सेंक कर सर्व करें.
-चिली गार्लिक रोल
कितने लोगों के लिए 6
बनने में लगने वाला समय 30 मिनट
मील टाइप वेज
सामग्री
प्लेन ओट्स 1 कप
सूजी 1/2 कप
बथुआ प्यूरी 1/4 कप
ताजा दही 1 कप
पानी 1/2 कप
हरी मिर्च 3-4
अदरक 1 छोटी गांठ
पिघला बटर 2 टीस्पून
बारीक कटा लहसुन 6 कली
बारीक कटी हरी मिर्च 6
बारीक कटा हरा धनिया 1 टेबल्स
चिली फ्लैक्स 1/4 टीस्पून
नमक 1/4 टीस्पून
चाट मसाला 1 टीस्पून
विधि
ओट्स को मिक्सी में दही, बथुआ, लहसुन और हरी मिर्च के साथ पीस लें. अब इसमें पानी, नमक, सूजी मिलाकर 30 मिनट के लिए ढककर रख दें. दूसरे बाउल में बटर, हरी धनिया, लहसुन, हरी मिर्च और चिली फ्लैक्स अच्छी तरह मिलाएं. 30 मिनट बाद बटर को ओट्स में भली भांति मिला दें. अब एक नॉनस्टिक पैन पर तैयार मिश्रण से एक बड़ा चम्मच मिश्रण फैलाएं. धीमी आंच पर दोनों तरफ से चिकनाई लगाकर सेंकें. इसी प्रकार सारे रोल्स सेंक लें. अब इन पर चाट मसाला बुरकेँ आए गर्मागर्म रोल करके सर्व करें.

GHKKPM: पाखी से तलाक कराएगी भवानी, सई कि जिंदगी में आएगी खुशियां

सीरियल गुम है किसी के प्यार में लगातार टीआरपी लिस्ट में बना हुआ है , इस सीरियल की टीआरपी लगातार बढ़ती हुई दिख रही है, सीरियल में इन दिनों ट्विस्ट आ गया है.

सीरियल में डॉक्टर सत्या साबित कर देते हैं कि पाखी के केस में जलन के लिए सर्जरी हुई है, जिसके बाद से कोर्ट में पत्रलेखा केस हार जाती है, जिसके बाद से सई का कैरियर बर्बाद होते-होते बच जाता है, हालांकि इस सीरियल की कहानी यहीं खत्म नहीं होती है.

 

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जिसके बाद से काकू उसे समझाती है कि वह दो लोगों की जिंदगी खराब कर रहा है, भवानी विराट को सलाह देती है कि तू पाखी को साफ-साफ समझा दे कि तेरे मन में उसके लिए कुछ नहीं है. वहीं दूसरी तरफ सई विनायक से बात कर रही होती है ,

उसी दौरान पाखी आ जाती है. वह विनायक से कहती है कि सई ने उसकी सबसे कीमती चीज छीन ली है. तो विनायक कहता है कि मम्मा ऐसा नहीं कर सकती है.जिसके बाद कुछ देर तक दोनों में बहस होती है हालांकि इसका समाधान कछ नहीं निकलता है.

विनू विराट से कहता है कि आप उनके पति हैं तो आपको उनका ख्याल रखना चाहिए, उनका साथ देना चाहिए.

Summer Special: बेहद काम के हैं ये हेल्थ टिप्स

बीमारियां न सिर्फ शारीरिक स्तर पर चोट करती हैं बल्कि आर्थिक कमर भी तोड़ कर रख देती हैं. अगर स्वस्थ जीवनशैली से शरीर को हैल्दी व मैंटेन रखा जाए तो बीमारियां पास नहीं फटकेंगी. जानिए हैल्दी रहने के कुछ अचूक टिप्स.

उपचार से बेहतर है रोकथाम.

यह कहावत आज के समय में हैल्थ केयर की आसमान छूती लागत को देख कर मुफीद प्रतीत होती है. डायबिटीज और हृदय रोगों जैसी गंभीर बीमारियों का उपचार बहुत महंगा है. इस से बचने के लिए जरूरी है कि स्वस्थ जीवनशैली और स्वस्थ शरीर दोनों को मैंटेन किया जाए. कोविड की महामारी ने यह साफ कर दिया है कि अपने स्वास्थ्य के बारे में हर समय सतर्क रहना जरूरी है.

  • हर व्यक्ति को बहुत अच्छा नाश्ता जरूर करना चाहिए. 8 से 10 घंटे शरीर को आहार न मिलने के बाद उसे ऐसे खाने की जरूरत होती है जो प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और विभिन्न विटामिन व मिनरल्स जैसे सभी पोषण तत्त्वों की जरूरत को पूरा कर सके.
  • हमारे देश जैसे गरम देशों में शरीर को हाइड्रेटेड रखा जाना जरूरी है. इसलिए सांस, पसीने और मूत्र आदि से होने वाली पानी की कमी को दूर करने के लिए पानी और तरल पदार्थ पीते रहने चाहिए.
  • हम अपने खाने के दौरान विभिन्न आहार ले सकते हैं जिन में चावल, रोटी, सब्जी, दालें, फल, दूध, मांस और अंडों के साथ अचार, तली हुई चीजें, मीठा और पेय पदार्थ हो सकते हैं. पूरी डाइट इस तरह बैलेंस होनी चाहिए कि शरीर को सभी आवश्यक पोषक तत्त्व मिल सकें.
  • शरीर में पानी की पूर्ति के लिए दिन में 6 से 8 गिलास पानी या अन्य तरल पदार्थ पीना चाहिए. गरम मौसम के दौरान इस की मात्रा ज्यादा होनी चाहिए. इस के साथ ही यदि कोई व्यक्ति ऐसी शारीरिक गतिविधि कर रहा है जिस से उसे ज्यादा पसीना आता है तो उसे ज्यादा पानी या तरल पदार्थ की जरूरत होगी.
  • किसी को पिज्जा, बर्गर और आइसक्रीम जैसी स्वादिष्ठ चीजों को त्यागने की जरूरत नहीं है. आप को इस की कमी दूसरे ज्यादा प्रोटीन, फाइबर और विटामिन व मिनरल्स वाले आहार से करनी चाहिए. सोया एक ऐसा उपयोगी उत्पाद है जो सही बैलेंस उलब्ध करवा सकता है.
  • आजकल प्रदूषण और सभी तरह के दूषित तत्त्वों के कारण फल, सब्जियां व अन्य चीजों में बहुत सारे माइक्रोब्स और कैमिकल होते हैं. जिन्हें धो कर बहुत हद तक कम किया जा सकता है. धो और उन्हें साफ कर इस्तेमाल करने से शरीर में कीटाणु और विषाक्त कैमिकल जाने के कारण होने वाली बीमारियों के खतरे को कम किया जा सकता है.

बच्चों के सही विकास और बड़ों की सेहत को बनाए रखने के लिए प्रोटीन बहुत आवश्यक है. यह सब से जरूरी पोषक तत्त्व है.

  1. हमें उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा का सेवन करना चाहिए. दूध, अंडे और सोया उच्च गुणवत्ता वाले प्रोटीन का स्रोत हैं और यदि इन्हें दूसरे प्रोटीन वाले स्रोतों के साथ लिया जाए तो प्रोटीन की कुल गुणवत्ता में इजाफा होगा. मांस, अनाज और दालों में भी प्रोटीन होता है.
  2. कार्बोहाइड्रेट से हमें ऊर्जा मिलती है जो सभी स्वस्थ प्रक्रियाओं के साथसाथ शारीरिक व दूसरी गतिविधियों के लिए आवश्यक होती है. स्टार्च और शुगर से हमें कार्बोहाइड्रेट मिलते हैं.
  3. शक्कर से मिठास भी मिलती है, इसलिए इसे चौकलेट, केक, कैंडीज और सोडा जैसे पदार्थों को मीठा बनाने के लिए उन में डाला जाता है.
  4. वसा और तेल ऊर्जा का ज्यादा ठोस रूप उलब्ध करवाते हैं. यदि हम अपने शरीर की जरूरत के मुकाबले में ज्यादा वसा और कार्बोहाइड्रेट लेंगे तो हमारा वजन बढ़ जाएगा और हम मोटे हो जाएंगे.

मोटापा एक अनचाही स्वास्थ्य स्थिति है और इस से हाइपरटैंशन, हृदय रोग व मधुमेह जैसी परेशानियां भी होती हैं.

  • खाने की मात्रा कम करने और शारीरिक गतिविधियों को बढ़ाने, दोनों ही तरीकों से वजन कम किया जा सकता है.
  • लोग मोटे इसलिए हो जाते हैं क्योंकि वे शरीर की आवश्यकता से अधिक खाते हैं. जब खाने में प्रोटीन और फाइबर की मात्रा कम और कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है तो लोग संतुष्ट होने के लिए और अधिक खाते हैं.

मांस, दूध, सोया और दालों से मिलने वाला प्रोटीन संतुष्टि प्रदान करता है.

फाइबर से पेट भर जाता है और हमारी भूख मिट जाती है. सोया, दालों और खड़े अनाजों में फाइबर की मात्रा अधिक होती है, इसलिए ये वजन कम करने में उपयोगी होते हैं.

थोड़ीथोड़ी मात्रा में खाना खाने से भी ओवरईटिंग को कम किया जा सकता है.

सोया फाइबर का संबंध ब्लडशुगर कंट्रोल से भी होता है, इसलिए यह डायबिटीज में लाभकारी होता है.

हाई सैचुरेटेड, ट्रांस फैट और कोलैस्ट्रौल वाली खराब  डाइट मोटापा, उच्च रक्तचाप और आलसीपन के कारण हृदय रोग का खतरा बढ़ता है. इस के लिए धूम्रपान, शराब पीना, तनाव आदि कारण भी जिम्मेदार होते हैं.

फाइबर कोलैस्ट्रौल को कम करने में भी मददगार होता है. सोया और ओट्स जैसे फाइबर कोलैस्ट्रौल को कम करने में मददगार होते हैं, जिस से हृदय रोगों के खतरे को भी कम किया जा सकता है.

रस के मुकाबले साबुत फलों में ज्यादा फाइबर होता है.

बी कौम्प्लैक्स विटामिंस वृद्धि और विकास में बहुत महत्त्वपूर्ण होते हैं. इन में से अधिकतर भोज्य तत्त्वों के मेटाबौलिज्म में शामिल रहते हैं. ये जन्म के समय दिमाग व मेरूदंड के विकार से बचाते हैं.

स्वस्थ बच्चे के जन्म के लिए माता को सही पोषण की जरूरत होती है.

आहार में फाइबर की मात्रा को तब आसानी से बढ़ाया जा सकता है जब कोई व्यक्ति खड़े अनाजों वाले उत्पाद, जैसे होल व्हीट ब्रैड या बिस्कुट खाता है. साथ ही, डाइट में फल और सब्जियों को शामिल करने से भी यह किया जा सकता है.

अच्छी दृष्टि के लिए विटामिन ए जरूरी होता है और यह गाजर व संतरों में प्रीकर्सर कैरोटिन के रूप में मौजूद होता है.

मसाले खाने में स्वाद के साथसाथ सेहत के लिए भी बेहतर हैं. दालचीनी ब्लडशुगर को नियंत्रित करती है, हल्दी कैंसर और संक्रमणों से लड़ती है, लहसुन दिल के लिए अच्छा होता है और यह एंटीफंगल व एंटीबैक्टीरियल भी होता है.

शरीर में औक्सीजन के प्रवाह के लिए आयरन की जरूरत होती है और यह अन्य मेटाबौलिक क्रियाकलापों के लिए भी आवश्यक होता है. इस की कमी से एनीमिया और कमजोरी की समस्या होती है. मांस और मछली आयरन के अच्छे स्रोत हैं.

शाकाहारी व्यक्ति सोया, बींस, पालक, ओट्स आदि से आयरन प्राप्त कर सकते हैं.

दूध

  1. दूध पोषक तत्त्वों का एक बेहतरीन स्रोत होता है. लेकिन इस के खराब और संक्रमित होने का खतरा अधिक होता है. इसलिए यह पाश्चुरीकृत होना चाहिए. इसे रेफ्रिजरेटेड और स्टरलाइज्ड भी होना चाहिए. इसे बंद परिस्थिति या मिल्क पाउडर के रूप में सुखा कर रखा जाना चाहिए.
  2. सेलमोनेला, ई कोलाई और लिस्टेरिया की उपस्थिति की वजह से कच्चे दूध के सेवन के कारण कई बीमारियां हो सकती है.
  3. दूध को सुरक्षित रखने के लिए उसे दही के रूप में फर्मन्टेड कर के भी रखा जा सकता है. इस के लिए लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया जैसे मिल्कफ्रैंडली बैक्टीरिया का इस्तेमाल करना चाहिए. दही में बहुत सारे विटामिन्स होते हैं.
  4. कुछ लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया डायरिया को कम करने, कोलोन कैंसर से बचाने आदि जैसे सेहत संबंधी फायदे भी पहुंचाते हैं. इन्हें प्रोबायोटिक्स कहा जाता है.

फाइबर कोलोन कैंसर से बचाने में भी मददगार होते हैं. सोया फाइबर से कैंसर के कम होने के प्रमाण मिले हैं.

ओमेगा 3 फैटी एसिड्स

  • ओमेगा 3 फैटी एसिड्स के बहुत सारे फायदे होते हैं. यह कोलैस्ट्रौल को कम करने के साथ ही हृदय रोगों के खतरे को भी कम करता है. इस से आर्थ्रराइटिस और अस्थमा आदि का खतरा कम होने के साथ ही नवजात के मस्तिष्क का विकास भी होता है.
  • मछली ओमेगा 3 का अच्छा स्रोत होती है और इसे रोज खाने की सलाह दी जाती है.
  • शाकाहारी व्यक्ति सोया, सरसों के तेल, अलसी के तेल आदि से ओमेगा 3 फैटी एसिड प्राप्त कर सकते हैं.

बदलती हुई जीवनशैली के कारण हमें पैदल चलने, पार्क में समय बिताने या खेलने आदि के लिए कम समय मिल पाता है. इस के पीछे देर तक काम करना और ट्रैफिक जाम जैसे कारण भी जिम्मेदार होते हैं. इसलिए हमें घर पर ही व्यायाम करने का वक्त निकालना चाहिए.

बुजुर्ग व्यक्तियों को कम ऊर्जा की जरूरत होती है, इसलिए वे वजन को नियंत्रित रखने के लिए कम खाते हैं. इस से उन्हें विटामिंस, मिनरल्स और प्रोटीन जैसे पोषक तत्त्व कम मिल पाते हैं. सोया डाइट में प्रोटीन की मात्रा बढ़ाने का एक अच्छा जरिया हो सकता है.

मांसपेशियों की कमजोरी से बचने के लिए बुजुर्ग व्यक्तियों को व्यायाम करना चाहिए. सोया जैसे प्रोटीनयुक्त पदार्थ खाने के साथ ही उन्हें मांसपेशियों को ठीक रखने के लिए रेजिस्टैंस ट्रेनिंग और व्यायाम करना चाहिए.

जब खाने से पर्याप्त पोषक तत्त्व पाना मुश्किल हो तो सप्लिमैंट्स लेना जरूरी हो जाता है.

बच्चों की मजबूत हड्डियों के लिए कैल्शियम बहुत जरूरी होता है. दूध कैल्शियम का अच्छा स्रोत है. सोया भी एक बेहतरीन स्रोत है.

महिलाओं में मीनोपौज के बाद औस्टियोपोरोसिस का खतरा बढ़ जाता है. सोया उत्पादों के सेवन से औस्टियोपोरोसिस के खतरे को कम किया जा सकता है.

सोया बुजुर्ग महिलाओं में मीनोपौज के लक्षणों से उबरने में लाभकारी होता है.

बहुत ज्यादा नमक के सेवन से हाई ब्लडप्रैशर (हाइपरटैंशन) की समस्या होती है. नमक का सेवन कम करना जरूरी है. हाइपरटैंशन से हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है.

सोया हृदय रोगों के खतरे को कम करने में मददगार होता है.

स्वस्थ जीवन के लिए नींद भी बहुत जरूरी होती है.

रात को गरम दूध पीने से अच्छी नींद आती है. इस से दिमाग को नींद बढ़ाने वाले मेलाटोनिन उत्पन्न करने में मदद मिलती है.

पर्याप्त नींद डायबिटीज, हाइपरटैंशन, हृदय रोगों और तनाव के साथ ही वजन बढ़ने के खतरे को कम करने के लिए जरूरी होती है.

किसी भी व्यक्ति को रात में भारी भोजन नहीं करना चाहिए क्योंकि इस से नींद में परेशानी आती है.

सब से बड़ी बात है कि हर समय भीड़ में या घर से बाहर मास्क पहनें और बारबार हाथ धोते रहें. कोविड आताजाता रहेगा. यह पूरी तरह समाप्त होगा, फिलहाल संभव नहीं लगता.

परिवार: दामाद अब बेदम हुए

भारतीय समाज में कोई 4 दशक पहले की बात करें तो उन दिनों ‘दामाद’ को बड़ा आदरसम्मान प्राप्त होता था. दामादजी ससुराल आएं तो सास से ले कर सालियां तक उन की सेवा में जुट जाती थीं. ससुराल में दामादजी की आवभगत में कोई कमी न रह जाए, दामादजी के मुख से बात निकले नहीं कि पूरी हो जाए, किसी बात पर कहीं वे नाराज न हो जाएं, हर छोटीछोटी बात का ध्यान रखा जाता था.

उन की आवभगत में हर छोटाबड़ा सदस्य अपने हाथ बांधे आगेपीछे लगा रहता था. उन के खानेपीने, रहनेघूमने की उच्चकोटि की व्यवस्था घर के मुखिया को करनी होती थी और जब ससुराल में सुखद दिन गुजार कर दामादजी अपने घर को प्रस्थान करते थे, तो भरभर चढ़ावे के साथ उन को विदा दी जाती थी. उन से यह आशा की जाती थी कि इस आदरसत्कार से दामादजी प्रसन्न हुए होंगे और उन के घर में हमारी कन्या को कभी कोई दुख नहीं मिलेगा.

उत्तर भारत में दामाद की खातिरदारी की खातिर कुछ भी करगुजरने की परंपरा रही है. भले ही गैरकानूनी हो, पर दामाद को खुश करने का यह सिलसिला विवाह के समय दहेज से शुरू हो कर आगे तक चलता ही रहता है. फिर आंचलिक परंपरा तो किसी एक घर के दामाद को गांवभर का दामाद मान कर उस की खातिरदारी करने की भी रही है.

भारतीय समाज में दामाद से ज्यादा महत्त्वपूर्ण परिवार का कोई अन्य सदस्य नहीं होता. दामाद सिर्फ आदमी नहीं है. एक परंपरा है. एक उत्सव है. दामाद आता है तो पूरा घर मुसकराने लगता है. गरीब घर का बच्चा भी उछलनेकूदने लगता है. जिस घर में दालरोटी भी मुश्किल से जुटती है, और दालरोटी के साथ भाजी शायद ही कभी बनती है, उस घर में भी दामाद के आने पर पकवान बनते हैं. खीरपूरी बनती है. फलमिठाइयां आती हैं. इस सब के लिए साधन किधर से आता है, इस का खुलासा भी कभी दामाद के सामने नहीं होता.

दामाद बेटे से भी बढ़ कर होता है. आप अपने बेटे के नाम के आगे कभी ‘जी’ लगा कर नहीं बुलाते, मगर झोंपड़ी में रहने वाला ससुर भी अपने दामाद को ‘कुंवरजी’ बोलता है. भीखू, ननकू, छोटेलाल का सीना गर्व से फूल कर

56 इंची हो जाता है जब ससुरजी उन को ‘कुंवरजी’ के संबोधन से पुकारते हैं.

औरत की आर्थिक मजबूरी ने दामाद को हौआ बनाया. बचपन की एक घटना मुझे याद है. उम्र रही होगी यही कोई 8-9 बरस की. पिताजी मुझे और मां को ले कर हमारे ननिहाल गए थे. पिताजी अपनी ससुराल बहुत मुश्किल से ही जाते थे. मां को बड़ी चिरौरी करनी पड़ती थी, तब जा कर कहीं 2-3 साल में एकबार पिताजी का मन बनता था कि चलो, कुछ दिनों के लिए सब को लिए चलते हैं. गोरखपुर जिले के एक गांव में नाना बसते थे. खेतीखलिहानी काफी थी. गांव में दोचार पक्के मकान थे, जिन में से एक नाना का भी था. मेरे 2 मामा थे और उन के बीवीबच्चों से नाना का घर गुलजार रहता था.

मुझे याद है कि जिस वक्त हम वहां पहुंचे, शाम के कोई 5 बजे होंगे. घर की देहरी पर ही खाट बिछी थी. जिस पर मोटे से गद्दे पर रेशमी चादर बिछी थी. पिताजी को नाना ने वहां बड़े सत्कार से बिठाया. मैं भी पिताजी की बगल से सट कर बैठ गई. मां दोनों हाथों में संदूकची उठाए भीतर चली गईं. इतने में नानी बड़ी सी परात में पानी ले कर आईं और पिताजी के सामने जमीन पर बैठ कर उन्होंने उन के जूतेमोजे अपने हाथों से उतारे और उन के पैर ठंडे पानी की परात में डाल कर अपने हाथों से मलमल कर धोने लगीं. नानी घूंघट में रोए जातीं, बारबार पिताजी के पैर चूमें जातीं और धोए जातीं.

मैं हैरान कि ऐसा क्या हो गया कि नानी इतनी जोरजोर से रो रही हैं. मेरे मन में आशंका उठी कि ऐसा तो नहीं कि हमारे आने से नानी खुश नहीं हैं. मैं पिताजी से जरा और सट गई कि कहीं ऐसा न हो कि यहीं से वापसी हो जाए.

मगर पिताजी का नानी के क्रियाकलापों की तरफ कोई खास ध्यान नहीं था. वे आराम से बगल में खड़े नानाजी से बातें कर रहे थे. आने वालों से दुआसलाम कर रहे थे. हालचाल पूछ रहे थे. थोड़ी देर में नानी ने उन के पैरों के नीचे से पानी की परात हटाई और अपने पल्लू से पिताजी के पैर पोंछे.

इस के बाद मेरी बड़ी मामी अपनी पानी की परात ले कर सामने जमीन पर बैठ गईं और उन्होंने भी रोरो कर पिताजी के पैर धोए, फिर छोटी मामी और गांव की कुछ और औरतों ने भी यही क्रम दोहराया. कोई आधेपौने घंटे तक तो पिताजी के पैर धुलते रहे, पानी से भी और आंसुओं से भी, और उस के बाद वे घर के भीतर गए.

इस क्रिय्रा के बारे में बाद में बड़े होने पर मां से पता चला कि यह उन के ही नहीं, बल्कि पूर्वांचल के अनेक गांवों की रीत है कि दामाद के आगमन पर घर की औरतें उन के आने की खुशी को आंसुओं से व्यक्त करती हैं और उन के पैर पानी से ही नहीं, वरन अपने आंसुओं से भी धो कर इस बात की प्रसन्नता प्रकट करती हैं कि उन का दामाद उन की लड़की को सुखी रख रहा है और वह उस को उस के मातापिता से मिलवाने लाया है.

हम करीब 15 दिन वहां रहे. अच्छाअच्छा खाने को मिला. दूधदही, मट्ठा, खीर, मांसाहार क्या नहीं खाया. खूब नईनई पोशाकें मिलीं. मुझे याद है कि जब हम वहां गए थे तो हमारे पास

2 संदूक थे, मगर वापसी में हमारे पास 4 संदूक, एक बड़ा बैग और 2 बड़े फल के टोकरे थे. साथ में, घी का कनस्तर, लड्डुओं और गुड़ का डब्बा, अपने खेत में उगे चावल का बोरा, मोरपंख से बने 4 सुंदर पंखे, मामियों द्वारा हाथ की कढ़ी चादरें और न जाने क्याक्या सामान दिया था नानानानी ने.

मेरे 40 वर्षों के जीवनकाल में मैं 4 चार बार ही अपने ननिहाल गई होऊंगी. हां, बहुत चिरौरी करने पर पिताजी मां को ले कर जरूर 5-6 बार गए होंगे, ज्यादा नहीं. मगर हर बार उन की आवभगत वैसी ही होती रही, जैसी मैं ने अपनी याददाश्त में पहली बार देखी थी. नानी की मृत्यु के बाद भी मेरी दोनों मामियां उस परिपाटी का पालन करती रहीं.

आज यह पीढ़ी अपने उम्र के चौथे पड़ाव पर है, मगर आज भी अगर पिताजी मां को ले कर चले जाएं तो मुझे विश्वास है कि मेरी मामियां उसी तरह उन के पैर पानी के साथसाथ अपने आंसुओं से धोएंगी, उसी तरह उन की आवभगत करेंगी, जैसी नानी के वक्त में होती थी.

मैं कभीकभी मां को उलाहना देती हूं कि तुम तो वैसी आवभगत अपने दामाद की नहीं करतीं, जैसी नानी पापा की किया करती थीं. तो वे हंस देती हैं. उन की हंसी में एक पीड़ा छिपी है. दरअसल, मां आर्थिक रूप से पिताजी पर आश्रित थीं, इसलिए उन की हर इच्छा पिताजी की हां, ना पर ही निर्भर होती थी. वे सालों अपने मायके जाने के लिए तरसती रहती थीं. यहां तक कि नानी की मृत्यु का समाचार मिलने पर भी वे उस वक्त नहीं जा पाईं, 2 माह बाद जब पिताजी को काम से थोड़ी फुरसत हुई, तब गईं. मगर मैं आर्थिक रूप से आजाद हूं. इसलिए अपनी मरजी की मालिक हूं.

आज मुझे अपने मातापिता से मिलना होता है तो उस के लिए मुझे अपने पति की मिन्नतें करने की आवश्यकता नहीं होती. मेरे पति साथ जाना चाहें तो ठीक, वरना मैं अकेले ही सक्षम हूं. जब चाहती हूं, टिकट कटा कर मांपिताजी के पास पहुंच जाती हूं. औरत की आर्थिक आजादी ने बीते दशकों में जहां औरत को मजबूत बनाया है, वहीं ससुराल में दामाद की आवश्यकता से अधिक आवभगत और सत्कार, जो पहले इज्जत से ज्यादा एक डर की वजह से हुआ करता था, को खत्म किया है.

औरत की आर्थिक आजादी ने उस के मायके वालों पर उस बड़े आर्थिक दबाव को भी खत्म कर दिया है, जो उन्हें मजबूरन दामादजी और उन के परिवार को खुश रखने के लिए झेलना पड़ता था.

बेटा बनने को मजबूर दामाद

लड़कियों की आर्थिक आजादी ने लड़कों की मनमरजी पर रोक लगाई है, तो उन को भी ससुराल में अपने मानसम्मान को बचाए रखने के लिए अपनी भूमिका में परिवर्तन के लिए मजबूर होना पड़ा है. पहले जहां दामाद अपनी ससुराल में एक मेहमान की तरह जाता था और मेहमान की तरह उस का सादरसत्कार होता था, वहीं आज वह घर के बेटे की तरह देखा जाता है. इसलिए दिखावे के आदरसत्कार में कमी आई है और प्रेम व विश्वास में बढ़ोतरी हुई है. कहींकहीं तो इकलौता दामाद सासससुर का ऐसा लाड़ला हो गया है कि वह अपनी बेटी से घर की बातें इतनी डिस्कस नहीं करते, जितनी दामाद के साथ कर लेते हैं. कई घरों में तो ससुरजी बिजनैस संबंधी सलाह बेटे से ज्यादा दामाद से करते नजर आते हैं. वहीं, सासें भी बेटे से ज्यादा प्यार दामाद पर लुटाती दिखाई देती हैं.

अब फिल्म ऐक्टर अक्षय कुमार को ही ले लीजिए. उन की पत्नी ट्विंकल खन्ना से ज्यादा उन की सास डिंपल कपाडि़या अक्षय को प्यार करती हैं. अक्षय और उन की सासुमां का रिश्ता बेहद खास है. खुद अक्षय यह बात कई बार कह चुके हैं कि उन की लाइफ में उन की बीवी, बेटी के अलावा उन की सासुमां बहुत अहम स्थान रखती हैं. इन दोनों को अकसर इवैंट्स पर साथ देखा जाता है और दोनों की कैमिस्ट्री देख कर लगता है कि ये असल जिंदगी में सासदामाद नहीं, बल्कि मांबेटे हैं.

वहीं, शर्मिला टैगोर अपने दामाद कुणाल खेमू को अपना दूसरा बेटा मानती हैं. कुणाल की शादी शर्मिला टैगोर की छोटी बेटी सोहा अली खान से हुई है. फैमिली के हर पार्टी फंक्शन में भले शर्मिला का बेटा सैफ मौजूद न हो, मगर दामादजी जरूर मौजूद होते हैं.

साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत और उन के दामाद धनुष की बौडिंग भी जबरदस्त है. धनुष की शादी रजनीकांत की बेटी ऐश्वर्या से हुई है, मगर धनुष और रजनीकांत को साथ देख कर अकसर लोग उन्हें बापबेटा समझ लेते हैं.

वहीं करीना के पापा रणधीर कपूर का अपने छोटे दामादजी यानी सैफ अली खान से रिश्ता काफी करीबी है. इन दोनों की आपस में खूब बनती है. इसीलिए ससुरदामाद की यह जोड़ी भी अकसर फैमिली फंक्शन में साथ पोज देते देखी जाती है.

ये तो हुई बौलीवुड की बातें, छोटे शहरों के मध्यवर्गीय और निम्नवर्गीय परिवारों में भी अब दामाद अपनी ससुराल में बेटे की जगह लेते जा रहे हैं. खासतौर पर वे दामाद जिन की पत्नियां अपने मांबाप की इकलौती हैं, या जिन की सिर्फ बहनें ही हैं, भाई नहीं हैं. इस बदलाव की बड़ी वजहें हैं औरत का पढ़ालिखा होना, नौकरीपेशा होना, अपने पैरों पर खड़ा होना और अपनी मरजी को पूरा करने के लिए पति पर आश्रित  न होना.

इस बदलाव के चलते ही दामाद को ससुराल वालों के प्रति अपना व्यवहार और भूमिका में चेंज लाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. मगर इस मजबूरी ने रिश्तों को नए रंगरूप भी दिए हैं. इस से दिखावा, डर और पराएपन की भावना खत्म हुई है और रिश्तों में निकटता आई है, तो साथ ही, दामाद पर 2 परिवारों की जिम्मेदारी और दोनों परिवारों के बुजुर्गों की देखभाल का बोझ भी आन पड़ा है.

दामाद निभा रहे बेटे का फर्ज

नेहा अपने मांबाप की इकलौती बेटी थी. उस की शादी के बाद उस के मांबाप अकेले हो गए. नेहा की शादी दूसरे शहर में हुई थी. उस का पति विकास भी अपने मातापिता का इकलौता बेटा था. नेहा और विकास दोनों नौकरीपेशा थे.

कई सालों तक तो कोई परेशानी नहीं हुई, मगर जैसेजैसे नेहा और विकास के मातापिता की उम्र बढ़ती गई, अनेक रोगों ने बूढ़े शरीरों में अपनी जड़ें जमानी शुरू कर दीं. ऐसे में नेहा कभी अपनी ससुराल में तो कभी अपने मातापिता की देखभाल के लिए मायके में रहने लगी. उस की 11 साल की बेटी की पढ़ाई बहुत प्रभावित हुई. बारबार लंबी छुट्टियां लेने से नेहा की नौकरी भी जाती रही. मगर मांबाप को बीमारी में अकेले कैसे छोड़ती, लिहाजा बेटी को ले कर वह अपने मायके में ही रहने लगी.

उधर, ससुराल में उस के सासससुर के साथ भी दिक्कतें शुरू हो गईं. ऐसे में विकास ने एक रास्ता निकाला. उस ने नेहा के मातापिता को अपने साथ रहने के लिए किसी तरह मना लिया. नेहा ने अपना घर बेच कर पहले से बड़ा घर खरीदा, जहां दोनों के मातापिता पूरी आजादी के साथ भी रहें और नेहा और विकास की आंखों के सामने भी रहें. अब विकास और नेहा चारों बुजुर्गों की देखभाल ठीक से कर पाते हैं. नेहा ने नई नौकरी भी जौइन कर ली है.

आसिमा का निकाह फैज से हुआ था. आसिमा का कोई भाई नहीं था, मगर उस से छोटी 2 बहनें और थीं, जिन की शादी की जिम्मेदारी उसे निभानी थी. ससुराल आने के बाद वह इसी चिंता में घुली जाती थी कि बहनों के लिए रिश्ता कैसे ढूंढे़. आखिरकार एक दिन उस ने फैज को अपनी परेशानी बताई. फैज को आसिमा की मां अपने बेटे की तरह चाहती थीं, लिहाजा फैज ने भी बेटा होने का फर्ज अदा किया और उस की मेहनत से आसिमा की दोनों बहनों के घर भी बस गए.

आज आसिमा बहुत खुश है क्योंकि उस का पति जितना प्यार अपने परिवार के सदस्यों को देता है, जो जिम्मेदारी उन के प्रति निभाता है, वैसा ही प्यार, सम्मान और जिम्मेदारी वह आसिमा की फैमिली के लिए भी प्रकट करता है. यही वजह है कि आसिमा के मन में भी अपने पति और अपने ससुराल वालों के लिए उतनी ही इज्जत और प्यार है, जितनी अपने परिवार के लिए है. जिन परिवारों में बेटे नहीं होते, वहां दामाद ही ससुर के बाद मुखिया बन जाते हैं और उन्हें ही सारी पारिवारिक जिम्मेदारियां वहन करनी होती हैं.

दोहरी जिम्मेदारी में पिस रहे दामाद

बदलाव के असर अगर अच्छे हैं, तो बुरे भी हैं. मदनलाल की आमदनी बहुत ज्यादा नहीं है. छोटी सी किराने की दुकान है, जिस से उस का 5 जनों का परिवार चलता है. ऐसे में जब उस पर उस के सासससुर की देखभाल और इलाज का बोझ भी पड़ने लगा तो घर में आएदिन पत्नी के साथ लड़ाईझगड़े शुरू हो गए. पत्नी कहती कि अपने बीमार मांबाप की देखभाल और इलाज मैं न करवाऊं तो कौन करवाएगा? वहीं मदनलाल कहता है कि इलाज के लिए मैं तो पैसे नहीं दूंगा. पत्नी कहती, मत दो, मैं अपने गहने बेच दूंगी, मगर तुम ने अगर अपने मांबाप पर भी रुपया खर्च किया तो मैं तुम को थाने तक घसीटूंगी. वह मदनलाल पर चीखती कि मेरे बाप ने इतना दहेज दिया, हर तीजत्योहार पर तुम्हारी जेबें भरीं, तब उन से पैसा लेते तुम्हें कभी झिझक नहीं हुई, अब जब उन को बुढ़ापे में देखभाल की, दवाइलाज की जरूरत है तो तुम पीठ दिखा रहे हो?

मदनलाल जैसे दामादों की भी समाज में कमी नहीं है जो दोहरी जिम्मेदारी की चक्की में पिस रहे हैं. ऐसी स्थिति में वे पुरुष ज्यादा फंसे हैं, जिन की आय कम है और जिन की ससुराल में बुजुर्गों की देखभाल व जिम्मेदारी उठाने के लिए कोई मर्द नहीं है. जब तक सासससुर की सेहत ठीक रहती है, तब तक तो कोई परेशानी नहीं होती, मगर बुढ़ापा और बीमारी उन्हें अपने दामाद पर बोझ बना देते हैं.

ऐसे बनाएं साउथ इंडियन दही बड़ा

त्योहारों और खास मौकों पर बनने वाला दही बड़े का स्वाद शायद ही किसी को पसंद नहीं होता. नार्थ इंडिया में तो ये डिश बहुत ही मशूहर है. लेकिन आज हम बनाएंगे साउथ इंडियन स्टाइल दही बड़ा.

5 लोगों के लिए

सामग्री

– उड़द दाल (आधा कप)

– हरी मिर्च (दो)

– हींग (एक चुटकी)

– अदरक (एक छोटा टुकड़ा)

– हरा धनिया (एक टेबलस्पून)

– नमक (स्वादानुसार)

– औयल  (2 टेबलस्पून)

– दही (डेढ़ कप)

–  दूध (आधा कप)

तड़के के लिए:

– औयल

– एक टीस्पून  राई

– तीन चौथाई टीस्पून हींग

– करी पत्ता- 8-10

गार्निशिंग के लिए

– लाल मिर्च पाउडर (आधा टीस्पून)

– बूंदी (जरूरत के मुताबिक)

– हरा धनिया (दो टेबलस्पून)

विधि :

– दाल को दो घंटों के लिए भिगो दें और फिर एक घंटे के लिए फ्रिज में रख दें.

– इसका पानी निकालें और इसमें अदरक, हरी मिर्च और बहुत थोड़े से बर्फ का पानी डालकर ग्राइंड करके गाढ़ा बैटर बना लें.

– बैटर में हरा धनिया, करी पत्ता और नमक डालकर अच्छे से मिक्स करें और थोड़ा-थोड़ा बैटर लेकर उससे बड़े बना लें.

– कढ़ाई में तेल गर्म करें जब तेल गर्म हो जाए तब इसमें बड़ों को डालकर डीप फ्राई कर लें.

– एक बर्तन में पानी गर्म करें और इसमें फ्राई किए हुए बड़ों को 15 मिनट तक डाल दें जिससे बड़े सौफ्ट हो जाएं.

– दही में दूध और एक चुटकी नमक डालकर अच्छे से फेंट लें.

– हल्के हाथों से निचोड़कर बड़ों को पानी से निकालें और दही में डालकर कुछ देर रख दें.

– तड़के के सभी इंग्रेडिएंट्स से तड़का तैयार करें और दही बड़ों पर डालें.

– दही बड़ों के ऊपर लाल मिर्च, हरा धनिया और बूंदी डालकर सर्व करें.

मैं अपनी गर्लफ्रेंड से दूर होकर ज्यादा खुश नहीं हूं, मैं उससे क्या बात करूं जिससे वह दूर होकर भी मुझे मिस करें?

सवाल

मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर चुका हूं और कालेजटाइम से मेरी गर्लफ्रैंड है. हम दोनों एकदूसरे को बहुत पसंद करते हैं और कैरियर सैट करने के बाद शादी करने का निर्णय कर चुके हैं. मेरी गर्लफ्रैंड एडवांस स्टडी के लिए लंदन गई है पिछले महीने. अब हम दोनों फोन पर ही बातें करते हैं. कालेज में तो रोज मिलते थे. ढेरों बातें करते थे लेकिन फोन पर अब मुझे समझ में नहीं आता कि क्या बात करूं.

मैं सोचता हूं कि उस से ऐसी क्या बातें करूं कि वह मीलों दूर बैठी हुई भी रोमैंटिक हो जाएहमारा प्यार दूर रहते हुए भी बरकरार रहे और हमें ऐसा फील हो जैसे हम साथसाथ बैठ कर बात कर रहे हैं.

जवाब

आप भी कैसी बातें कर रहे हैं. कालेजटाइम से गर्लफ्रैंड बना रखी है और हम से पूछ रहे हैं कि उस से रोमांटिक बातें कैसे करें. फोन पर क्या कालेज में आप दोनों कोई रोमैंटिक बातें नहीं करते थे या मामला टांयटांय फिस्स था.खैरआप फोन पर रोमांस करना चाहते हैं तो उन की तारीफ करें. किसी ऐसी चीज को ले कर गर्लफ्रैंड को कंप्लीमैंट दीजिए जो उस में खास हो. उस के व्यक्तित्वउस के रूपरंग और उस के टैलेंट की प्रशंसा कीजिए.

इस के अलावा आप अपनी गर्लफ्रैंड से मैसेज में चैट कर सकते हैं. आजकल तो वीडियोकौल का जमाना है आप वीडियोकौल पर उत्तेजित करने वाली बातें कर सकते हैं.

आप जिन डेट्स पर जाएंगेउन की योजना बताइए. अगर आप अभी साथ नहीं भी रह सकते हैंतब कम से कम जब आप भविष्य में साथ होंगे तब क्या करेंगेइस की योजना तो बना ही सकते हैं. अपनी कल्पना की छुट्टियों को साथ बिताने की योजना बनाइए और अपनी कल्पना की उड़ान को दूर तक जाने दीजिए. अगर आप कहीं भी जा सकते हो तब आप कहां जाएंगे. सागर तट परक्रूज परपहाड़ों पर एक योजना बना डालिए.

सैक्सुअल तनाव बढ़ाने का एक तरीका यह है कि अपनी प्रेमिका को बताइए कि आज रात आप क्या करने वाले हैं विस्तार से.

साथ बिताए हुए अच्छे समय की बातें करिएटैलीफोन पर क्वालिटी समय साथ बिताने का अच्छा तरीका है कि पुरानी बातों को याद किया जाए. आप पहले जिन शानदार डेट्स पर गए थे या आप ने एकसाथ जो मजेदार बढि़या काम किए थेउन की बातें करिए. जब आप पहली बार मिले थे या अपने पार्टनर की जिस पहली चीज पर आप का ध्यान गया था उस की बातें करिए. एकदूसरे से अपने संबंध के शुरू के दिनों की बातें याद करना हमेशा ही अच्छा होता है.

कभीकभी फोन उन बातों को करने का एक अवसर होता है जिन के बारे में किसी और से बात करने में अजीब लगता है. अगर आप फोन पर गपशप कर रहे होंतब अपने सैक्स जीवन के बारे में कुछ आपत्तिजनक बातें भी आसानी से कर सकते हैं. उन चीजों की बातें करिए जिन्हें आप अपने पार्टनर के साथ एक्स्प्लोर करना चाहते हैंऔर किन चीजों से आप उत्तेजित हो जाते हैं.

फोन डेट बिताने का एक बढि़या तरीका यह है कि फोन पर आपस में बातें करते हुए एक ही गतिविधि करने की योजना बनाई जाए. किसी ऐसी मजेदार और आसान गतिविधि की योजना बनाइए जो आप घर ही में कर सकें और स्पीकर फोन पर बातें भी करते रह सकें. यह बिलकुल ऐसा होगा जैसे कि आप साथसाथ हैंचाहे आप नहीं भी हों.

 

YRKKH: अभिमन्यु को मिलेगी अबीर की खबर, अक्षरा होगी इमोशनल

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है पिछले 14 साल से दर्शकों के दिल पर राज कर रहा है, इस सीरियल में आए दिन नए-नए ट्विस्ट आते रहते हैं, जिससे दर्शकों का मन बना रहता है इस सीरियल को आगे देखने के लिए.

इस सीरियल में आए दिन नए-नए ट्विस्ट आ रहे हैं, खबर है कि इस सीरियल में अबीर की तबीयत को लेकर अभिमन्यु और अक्षरा में एक बार विवाद होने वाला है. दरअसल, अभिमन्यु अक्षरा को अबीर की तबीयत का जिम्मेदार बताएगा.

 

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पिछले एपिसोड में आपने देखा कि अबीर की तबीयत अचानक खराब हो जाती है, जिसे देखते ही अभिनव और अक्षरा उसे लेकर अस्पताल में जाते हैं. उसके बाद से अबीर की तबीयत वहां लगातार बिगड़ती जाती है. जिसके बाद से अक्षरा काफी ज्यादा इमोशनल हो जाती है औऱ अबीर के लिए गाना गाती है.

वहीं दूसरी तरफ अभिमन्यु को अबीर की तबीयत की काफी ज्यादा चिंता हो रही होती है, अभिमन्यु को मुस्कान सड़क पर रो रही मिलती है, जहां पर वह अबीर की हालत के बारे में पूछता है तो वह बता देती है कि अबीर की तबियत नाजुक है. जिसे जानते ही वह बेचैन हो जाता है.

एजुकेशन अब पैसा कमाने को बड़ा जरिया बन गया

सरकार अब स्कूलों में 12 की जगह 13 या 14 साल रहने की पौलिसी बना रही है. नए आर्डस के हिसाब से स्कूलों को नर्सरी, लोअर केजी और केजी के बाद पहली क्लास में जाना होगा.

स्कूलों के लिए यह ङ्क्षवडफाल है क्योंकि इस का मतलब है कि वे 2-3 और साल बच्चों के अपने यहां रख सकेंगे और गलियों में खुल रहे छोटेछोटे स्कूलों की जगह रह नहीं जाएगी. यह पढ़ाई का सैंट्रेलाइजेशन है कि हर बच्चा 13-14 साल एक ही स्कूल में पढ़े, एक ही तरह के दोस्त रहें और अगर कोई बुली है तो वह साल दर साल अपनी दादागीरी चालू रख सकें.

बारबार स्कूल बदलना मांबापों के लिए आफत होती है पर हर नया स्कूल एक नई हवा देता है और नए साथी बनते हैं. डाइबॢसटी का पाठ पढऩा स्कूल बदलने का एक अच्छा पाठ होता और बच्चे इस से बहुत कुछ लिखते हैं पर अपनी धुन में सरकारी आदेश मांबाप पर बच्चों को नया न सीखने देने का आदेश दे रहे हैं.

एजुकेशन अब पैसा कमाने को बड़ा जरिया बन गया है. सरकार ने इस में से हाथ खींच लिया है. सरकार का पहले कर लेने का एक बड़ी जस्टी फिकेशन बराबर की सी एक साथ अलग बैकग्राउंडों से आने वाले बच्चों ने सामाजिक ढांचे का लाभ उठाते हुए अमीरों, क्या अमीरों, साधारण, गरीबों, ङ्क्षहदुओं, मुसलिमों, सिखों, ईसाइयों, जातियों के स्कूल बचना आसान कर दिया है और जो बच्चे एक तरह के माहौल में शुरू के 13-14 साल रहेंगे वे पक्का एक ही सोच वाले हो जाएंगे. वे कुछ भी नया नहीं सोच सकेंगे. वे ठहरेे पानी के जोहड़ की तरह होंगे जिस में गंद ज्यादा रहती है, साफ पानी कम.

सरकार की यह नीति उस की गुरूकुल सिस्टम में विश्वास के कारण नजर आती है जहां बच्चों को बहुत ही छुटपन में डाल दिया गया है और जहां मुक्ति नाम की कोई चीज नहीं होती. हर बच्चा अब स्कूल मैनेजमैंट का स्लेब होगा क्योंकि वह एक स्कूल छोड़ कर दूसरे स्कूल में नहीं जा सकता. अगर वह कहीं किसी तरह से फिट नहीं हो रहा तो मांबाप के पास उसे घर बैठाने के अलावा कोई उपाय न होगा.

पहले प्रीस्कूल, प्राइमरी स्कूल, मीडिल, इंटरमीडिएट स्कूल सब अलग होते थे. हर 2-3-4 साल बाद बच्चों को एक जगह जाने का मौका मिल रहा था. अगर स्कूल जैल जैसे लगते थे तो कम से कम हर कुछ साल बाद जेल तो नई होती थी. अब तो हरेक को अंडमान के काले पानी की सजा कंपल्सरी कर दी गई है. 13-14 साल एक ही जगह सड़ो और मरो.

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