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समर स्पेशल: रोज की चाय से हो गए हैं बोर तो ट्राय कीजिए ये 8 टेस्टी TEA

सुबह उठते ही हर घर में रोज चाय का सेवन किया जाता है. कई लोग तो दिन में न जाने कितने कप चाय पी जाते हैं, जिस से चीनी व कैफीन की मात्रा शरीर में बढ़ने से छोटीछोटी व्याधियों से ग्रस्त होने लगते हैं. मगर थोड़ा सा फेरबदल कर के इस चाय की प्याली को सेहत वाली प्याली बना सकते हैं और कितनी ही छोटीछोटी व्याधियों से अपने को दूर रख सकते हैं बशर्ते इस सेहत वाली चाय का सेवन कम से कम 2-3 महीनों तक लगातार किया जाए.

  1. रिफ्रैशिंग मिंट टी :

2 कप पानी उबाल कर उस में 1/2 कप ताजा पुदीनापत्ती डालें. आंच बंद करें. 3-4 मिनट ढक कर रखें. फिर छान कर पीएं.

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लाभ : इस का सेवन बुखार को कम करता है, पाचनतंत्र में सुधार लाता है, उलटियां या जी मिचलाने जैसी परेशानियों को रोकता है. इम्यून सिस्टम बूस्ट करता है, स्वास्थ्य में सुधार लाता है, भूख को कम कर के वजन कम करता है, सांस की दुर्गंध रोकता है, स्ट्रैस लैवल को कम करता है.

2. कैमोमाइल टी :

1 कप पानी उबाल कर उस में कैमोमाइल की सूखी पत्तियां डाल कर ढक दें. 5 मिनट बाद छान कर इच्छानुसार शहद डाल कर सेवन करें.

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लाभ :

इस चाय का सेवन नर्व सिस्टम को रिलीफ देता है, जिस से नींद अच्छी आती है. डायबिटीज में इस का सेवन बहुत लाभकारी है. शरीर में कहीं घाव या कट हो तो इस चाय के सेवन से जल्दी ठीक हो जाता है. इस का सेवन शरीर से कैंसर सैल्स को घटाता है. अत: कैंसर रोकने में भी यह सहायक है. त्वचा के लिए भी इस का सेवन लाभदायक है. इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में भी सहयोगी है.

3. हिबिस्कस (गुड़हल के फूल) टी :

4 कप पानी, 1/4 कप सूखे गुड़हल के फूल की पत्तियां. थोड़ी सी पुदीनापत्ती. सौस पैन में पानी गरम कर फूल की पत्तियां डालें और आंच बंद कर दें.

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2 मिनट ढक कर रखें. फिर छान कर स्वादानुसार शहद मिला कर सेवन करें.

लाभ :

इस का सेवन कोलैस्ट्रौल को कम करता है. डायबिटीज में लाभदायक है. हाई ब्लडप्रैशर को कम करता है. ऐंटीऔक्सीडैंट से भरपूर होने के कारण ऐंटी कैंसर है. इस का सेवन डिप्रैशन दूर करता है, वजन नियंत्रित करता है, इम्यून सिस्टम को मजबूती देता है. यह चाय विटामिन ए व सी से भरपूर होने के कारण त्वचा संबंधी समस्याओं जैसे ऐक्ने, सनबर्न, ऐक्जिमा और स्किन ऐलर्जी से बचाव करती है.

4. लीफ टी :

1 कप पानी में 1 छोटा चम्मच तेजपत्ते की सूखी पत्तियों का दरदरा चूर्ण डालें. जब पानी की मात्रा आधी रह जाए तो इस में स्वादानुसार चीनी व दूध मिलाएं. छान कर गरम ही सेवन करें.

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इस चाय का सेवन करने के बाद खुली हवा में न जाएं. जुकाम की शिकायत होने पर इस चाय का सेवन बहुत लाभदायक है.

5. लैमन जिंजर टी:

6 कप पानी, 2 इंच का टुकड़ा अदरक का, 8 नीबू की स्ट्रिप्स, चीनी या शहद इच्छानुसार.

विधि :

एक सौस पैन में पानी उबलने रखें. अदरक के टुकड़े व नीबू की स्ट्रिप्स डालें. धीमी आंच पर 10 मिनट उबालें. फिर छान कर तुरंत सर्व करें.

लाभ : इस चाय का सेवन डायबिटीज से छुटकारा दिलाता है. फ्लू व कोल्ड को रोकता है. बालों को मजबूती व सौंदर्य देता है. त्वचा में निखार लाता है. अपच की समस्या दूर करता है. सिर दर्द और सूजन से छुटकारा दिलाता है.

6. क्यूमिन सीड (जीरा) टी :

1 कप पानी में 1 छोटा चम्मच जीरा डाल कर धीमी आंच पर 10 सैकंड उबालें. फिर 5 मिनट ढक कर रखें. छान कर गरमगरम ही सेवन करें.

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लाभ : सुबह खाली पेट इस जीरा चाय का सेवन करने से वजन नियंत्रित करने में मदद मिलती है. कोलैस्ट्रौल लैवल को इंप्रूव करता है, मैटाबोलिज्म को बढ़ाता है. पाचनतंत्र की प्रक्रिया को सुचारु रूप से संचालित करता है.

7. रोज पैटल टी :

1 ताजे गुलाब की पत्तियां, 2 कप पानी, शहद इच्छानुसार.

सौस पैन में पानी उबलने रखें. ताजे गुलाब की पत्तियां डाल कर 5 मिनट उबालें. छान कर इच्छानुसार शहद मिला कर सेवन करें.

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लाभ : इस चाय के सेवन से इम्यून सिस्टम को मजबूती मिलती है. डाइजैस्ट सिस्टम में सुधार होता है. वजन नियंत्रित रहता है. त्वचा व बालों के लिए भी लाभदायक है.

8. मेथी की चाय :

1 चम्मच भुनी दरदरी मेथी, 2 कप पानी डाल कर धीमी आंच पर पकाएं. जब पानी की मात्रा आधी रह जाए तो उतार कर छान कर 1/2 नीबू का रस डालें. इच्छानुसार शहद डाल कर सेवन करें.

लाभ : सर्दियों में होने वाले जोड़ों के दर्द में इस का सेवन लाभदायक है. 1-2 महीने तक नियमित सेवन करने से गठिया व जोड़ों के दर्द से छुटकारा मिलता है. जोड़ों की जकड़न में भी लाभदायक है. कमर दर्द में भी इस का सेवन लाभकारी है.

अधेड़ उम्र का इश्क : बांदा गांव में क्या हुआ था?

बांदा जिले के बुधेड़ा गांव के रहने वाले शिवनारायण निषाद 18 जून, 2021 की रात को गांव
में रामसेवक के घर एक शादी के कार्यक्रम में शामिल होने गए थे. जब वह देर रात तक वापस नहीं लौटे तो घर पर मौजूद पत्नी दुलारी की चिंता बढ़ने लगी. उस समय दुलारी घर पर अकेली थी. उस का 20 वर्षीय बेटा और 17 वर्षीय बेटी राधा गांव अलमोर में स्थित एक रिश्तेदारी में गए हुए थे. दुलारी ने पति की चिंता में जैसेतैसे कर के रात काटी.

सुबह होने पर दुलारी ने अपने बेटे को फोन कर के रोते हुए कहा, ‘‘बेटा, तुम्हारे पिताजी गांव में ही रामसेवक चाचा के घर मंडप पूजन के कार्यक्रम में शामिल होने गए थे, लेकिन अभी तक वह घर वापस नहीं लौटे हैं.’’ बेटे दीपक ने जब अपने पिता के गायब होने ही बात सुनी तो वह भी घबरा गया. फिर वह मां को समझाते हुए बोला, ‘‘घबराओ मत मां, मैं घर आ रहा हूं. हो सकता है पिताजी रात होने पर वहीं रुक गए हों. फिर भी आप उन के घर जा कर पूछ आओ.’’ ‘‘ठीक है बेटा, मैं रामसेवक चाचा के घर पता करने जा रही हूं.’’ दुलारी ने दीपक से कहा.

दुलारी जब रामसेवक के घर पहुंची तो रामसेवक ने बताया कि शिवनारायण गांव के ही 2 लोगों सूबेदार और चौथैया के साथ रात 10 बजे ही वहां से लौट गए थे. यह बात दुलारी ने दीपक को फोन कर के बताई तो दीपक के मन में तमाम तरह की आशंकाओं ने जन्म लेना शुरू कर दिया. उसी दिन दीपक अपनी बहन के साथ गांव अलमोर से घर वापस लौट आया. दुलारी और घर के लोग सोचने लगे कि जब रामसेवक चाचा के यहां से वह लौट आए तो कहां चले गए. अभी तक वह घर क्यों नहीं आए? उस दिन दीपक अपने ताऊ पिता रामआसरे, मां दुलारी और परिजनों के साथ पिता को आसपास खोजने में लगा रहा.

इस के बाद परिजनों ने सूबेदार और चौथैया से शिवनारायण के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि हम लोग रात में 10 बजे साथ ही लौटे थे और गांव के शिवलाखन की पान परचून की दुकान पर गए, लेकिन उस समय उस की दुकान बंद थी. तब हम लोग अलगअलग हो कर अपनेअपने घरों को वापस लौट गए थे. इस के बाद शिवनारायण कहां गया, हमें नहीं पता. शिवनारायण की 2 बेटियां, जो अपनी ससुराल में थीं, वह भी पिता के लापता होने की सूचना मिलने पर मायके आ चुकी थीं.

अब शिवनारायण के घर वालों के मन में तमाम तरह की आशंकाएं जन्म लेने लगी थीं. बेटे दीपक और बेटियों का रोरो कर बुरा हाल था. इस दौरान बेटे ने अपने सभी रिश्तेदारियों में फोन कर उन के बारे में जानना चाहा. लेकिन सभी जगह निराशा ही हाथ लग रही थी. शिवनारायण को गायब हुए 2 दिन होने वाले थे, फिर भी घर वाले पुलिस के पास न जा कर इधरउधर खोजने में ही लगे हुए थे. इसी दौरान 20 जून, 2021 की सुबह गांव के सूबेदार और अन्य लोग जब यमुना नदी किनारे से जा रहे थे. तो उन्होंने हाथपैर बंधे घुटनों के बीच डंडा फंसे एक लाश पड़ी देखी. यह बात उन्होंने गांव के अन्य लोगों को बताई. इस के बाद वह लाश देखने के लिए यमुना किनारे गए. वहां ग्रामीणों की भीड़ इकट्ठा होने लगी थी.

गांव वालों ने वह लाश पहचान ली. मृतक और कोई नहीं 2 दिन से गायब हुआ शिवनारायण ही था.
इधर ग्रामीणों ने नदी के किनारे लाश मिलने की सूचना स्थानीय थाने जसपुरा के थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह को भी दे दी. थानाप्रभारी सुनील इस घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को देने के बाद अपने मातहतों के साथ घटनास्थल पर रवाना हो गए. नदी के किनारे लाश मिलने की सूचना पा कर शिवनारायण निषाद के परिजन भी रोतेबिलखते वहां पहुंच चुके थे. पति की लाश देख कर दुलारी दहाड़ें मार कर रोने लगी. सूचना पा कर बांदा के एसपी अभिनंदन के अलावा एएसपी महेंद्र प्रताप सिंह चौहान, सीओ (सदर) सत्यप्रकाश शर्मा के साथ मौके पर पहुंच गए.

पुलिस नें अपनी जांच में पाया कि लाश पानी में फूल कर उतरा कर नदी के किनारे आई है. ऐसे में अनुमान लगाया कि शिवनारायण की हत्या 18 जून की रात में कर दी गई थी. क्योंकि पानी में पड़ा शव करीब 24 घंटे बाद ही उतरा कर ऊपर आता है. थानाप्रभारी ने मौके पर फोरैंसिक टीम को भी बुलवा लिया. फोरैंसिक टीम ने वहां से कुछ सबूत भी जुटाए.पुलिस ने लाश को देख कर यह कयास लगाया कि हत्या में एक से ज्यादा लोग शामिल रहे होंगे. क्योंकि पुलिस को घटनास्थल पर ऐसा कोई निशान और न ही दोपहिया व चार पहिया वाहनों के टायरों के निशान मिले, जिस से यह कहा जा सके कि हत्या इसी जगह पर की गई थी.

इसी को आधार बना कर पुलिस यह मान रही थी कि हत्या कहीं और की गई है. लाश को नदी में ठिकाने लगाने के उद्देश्य से यहां ला कर फेंका गया था. जिस समय बुधेड़ा गांव में पुलिस अधिकारी व थाने की पुलिस घटनास्थल का मौकामुआयना कर रही थी, पुलिस को वहां जमीन पर खून पड़ा भी दिखा. साथ ही कुछ दूरी पर चूडि़यों के टुकड़े भी बरामद हुए थे. जिन्हें फोरैंसिक टीम ने अपने कब्जे में ले लिया.
मौके पर मौजूद गांव वालों ने बताया कि टूटी चूडि़यां मृतक की पत्नी दुलारी की हैं. उन का कहना था कि मामले की जानकारी होने पर दुलारी वहां बैठ कर रो रही थी. हो सकता है उस दौरान चूडि़यां टूट कर बिखर गई हों.

लेकिन पुलिस किसी भी साक्ष्य को हलके में नहीं ले रही थी, इसलिए वहां मौजूद हर संदिग्ध वस्तु को अपने कब्जे में ले रही थी. इस दौरान हत्या से जुड़े साक्ष्यों को इकट्ठा करने के लिए पुलिस ने शव मिलने वाले स्थान से पैदल ही नदी किनारे करीब डेढ़ किलोमीटर तक छानबीन की, लेकिन वहां से पुलिस को कोई अन्य और खास सबूत नहीं मिला. पुलिस ने जरूरी साक्ष्यों को इकट्ठा करने के बाद लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. इस दौरान पुलिस ने परिजनों से शिवनारायण के घर वालों से किसी से रंजिश होने की बात पूछी तो उन्होंने बताया कि उन की किसी से कोई रंजिश नहीं थी.

दोपहर तक पुलिस को पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी मिल गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में गला घोंट कर हत्या करने और फेफड़ों में पानी न होने की पुष्टि हुई. इस के बाद पुलिस ने शिवनारायण के बेटे दीपक की तहरीर पर हत्या का मुकदमा भादंवि की धारा 302 व 201 के तहत दर्ज कर लिया. रिपोर्ट दर्ज करने के बाद थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह ने एसपी के निर्देश पर जांच के लिए एक टीम गठित की, जिस में कांस्टेबल शुभम सिंह, सौरभ यादव, अमित त्रिपाठी, महिला कांस्टेबल अमरावती व संगीता वर्मा को शामिल कर जांच शुरू की. थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह को शुरुआती पूछताछ में मृतक शिवनारायण के बड़े भाई रामआसरे और बेटे दीपक ने बताया कि 6 महीने पहले गांव के ही एक दुकानदार ने शिवनारायण से विवाद किया था और धमकी दी थी.

इस के बाद पुलिस दुकानदार और रात में दावत में साथ रहे व लाश मिलने की सूचना देने वाले सूबेदार सहित 4 लोगों को पूछताछ के लिए थाने ले गई. लेकिन पुलिस को उन लोगों से पूछताछ में ऐसी कोई बात नहीं मिली, जिस से उन पर हत्या का शक किया जा सके. जसपुरा थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह शिवनारायण निषाद के हत्या की हर एंगल से जांच कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने मृतक के घर के हर सदस्य का बयान दर्ज किया था. उन्हें जांच में पता चला कि शिवनारायण रात के 9 बजे ही दावत से अपने घर के लिए वापस लौट लिए थे. चूंकि उस समय हलकी बारिश हो रही थी, ऐसे में 45 साल की उम्र में उन के कहीं जाने का सवाल ही नहीं उठता था. ऐसे में पुलिस यह मान कर चल रही थी कि शिवनारायण घर लौटे थे और उन के साथ घर पर ही कोई घटना हुई थी.

उस दिन घर पर मृतक शिवनारायण की पत्नी ही मौजूद थी. क्योंकि उस के बच्चे रिश्तेदारी में पैलानी थानांतर्गत अमलोर गांव गए हुए थे. मौके पर मिली चूडि़यों के टुकड़ों के आधार पर पुलिस का शक पत्नी दुलारी पर और भी पुख्ता होता जा रहा था. उधर पुलिस को मृतक के हाथपांव के बांधने और घुटनों के बीच डंडा बांधने की बात समझ आ चुकी थी. यह हत्या के बाद लाश को उठा कर ले जाने में उपयोग किया गया होगा. इसी दौरान पुलिस को जांच में यह भी पता चला कि उसी गांव के रहने वाले जगभान सिंह उर्फ पुतुवा का अकसर शिवनारायण निषाद के घर आनाजाना था. चूंकि शिवनारायण जगभान के खेतों में बंटाई पर खेती करता था. इसी दौरान जगभान का शिवनारायण की पत्नी दुलारी से अवैध संबंध हो गए थे. जिस की जानकारी होने पर शिवनारायण और जगभान के बीच खटास पैदा हो गई थी.

अब पुलिस शिवनारायण की पत्नी दुलारी और जगभान पर अपनी जांच केंद्रित कर आगे बढ़ रही थी. इसी सिलसिले में थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह ने जगभान के घर जा कर पता करना चाहा तो वह घर पर नहीं मिला. लेकिन उस की पत्नी दुलारी ने पुलिस को बताया कि वह शाम को 6 बजे पास के एक गांव में शादी में गए थे. वहां से वह साढ़े 11 बजे रात में लौट कर आए थे. दुलारी ने यह भी बताया कि उन के साथ ही गांव के भोला निषाद की 4 बेटियां भी शादी में गई थीं. जहां भोला की 3 लड़कियां वहीं रुक गई थीं, जबकि एक उन के साथ वापस आई थी. इस के बाद थानाप्रभारी सुनील कुमार सिंह ने जहां शादी थी, वहां पता किया तो लोगों ने बताया कि जगभान वहां से साढ़े 8 बजे ही निकल गया था. फिर पुलिस ने भोला निषाद के घर जा कर पूछताछ की तो लड़कियों ने बताया कि जगभान उन के घर 9 बजे आए थे, उस के बाद तुरंत वह वापस चले गए.

अब पुलिस के सामने सवाल यह था कि जगभान जब भोला के घर से साढ़े 8 बजे चला आया तो वह अपने घर साढ़े 11 बजे रात में पहुंचा था. तो इन ढाई घंटों के दौरान वह कहां रहा. इस आशंका के आधार पर पुलिस ने जगभान सिंह से ढाई घंटे गायब रहने का कारण पूछा तो वह उस का सही जबाब नहीं दे पाया. पुलिस ने जब कड़ाई से मृतक की पत्नी दुलारी और जगभान सिंह से पूछताछ की गई तो उन दोनों ने शिवनारायण की हत्या किए जाने की बात स्वीकारते हुए हत्या का राज उगल दिया. उन दोनों ने शिवनारायण की हत्या की जो कहानी बताई, वह इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के बांदा जिले के जसपुरा थाना क्षेत्र के बुधेड़ा गांव के निवासी शिवनारायण गांव में रह कर खेती करता था. वह दूसरों के खेत बंटाई पर ले कर भी खेती करता था. शिवनारायण ने गांव के ही जगभान सिंह का खेत भी बंटाई पर ले रखा था. खेत बंटाई में लेने के कारण खेत मालिक जगभान शिवनारायण के घर आनेजाने लगा था. इस बीच जगभान और शिवनारायण की पत्नी दुलारी के बीच नजदीकियां बढ़ाने लगी थीं. दोनों की ये नजदीकियां कब शारीरिक संबंधों में बदल गईं, उन्हें पता ही नहीं चला. लेकिन एक दिन शिवनारायण ने जगभान और दुलारी को साथ में देख लिया तो वह आगबबूला हो गया और जगभान सिंह को घर न आने कि कड़ी हिदायत दे डाली. इस के बावजूद भी जगभान सिंह शिवनारायण के घर आता रहा.

लेकिन बारबार शिवनारायण द्वारा जगभान को घर आने से मना करने की वजह से बीते साल जगभान ने शिवनाराण को अपना खेत बंटाई पर नहीं दिया, तभी से दोनों के बीच मनमुटाव हो गया था. इसी बात से जगभान और दुलारी शिवनारायण से खार खाए बैठे थे. वह इसी उधेड़बुन में थे कि किसी तरह शिवनारायण को ठिकाने लगाया जाए. हत्यारोपी दुलारी ने बताया कि घटना वाले दिन उन के अविवाहित बेटाबेटी गांव अलमोर में अपने एक दिश्तेदार के घर गए हुए थे. उस दिन घर में कोई नहीं था. उसी दिन दोनों ने शिवनरायण को ठिकाने लगाने के लिए तानाबाना बुन लिया था.

जगभान दावत से लौटने के बाद रात के 9 बजे दुलारी के घर पहुंच गया. इधर मंडप कार्यक्रम से घर लौटे शिवनरायण ने दुलारी को जगभान के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देखा तो गुस्से में उस का खून खौल गया और वह पत्नी को मारनेपीटने लगा और जगभान से गालीगलौज करने लगा. तभी दुलारी ने प्रेमी जगभान के साथ मिल कर अपने पति को चारपाई पर पटक दिया और गला दबा कर उस की हत्या कर दी. उसी दौरान उन लोगों नें लाश को ठिकाने लगाने का प्रयास किया, लेकिन गांव के लोग उस समय जाग रहे थे. ऐसे में उन्होंने शिवनारायण की लाश चारपाई के नीचे छिपा दी. इस के बाद जगभान रात के 11 बजे अपने घर चला आया.

जगभान ने बताया कि रात करीब 2 बजे जब मोहल्ले के लोग गहरी नींद में सो रहे थे, तब वह रात के सन्नाटे में फिर से शिवनारायण के घर पहुंचा. जहां उस ने और दुलारी ने शिवनारायण की लाश के हाथपांव बांध कर दोनों पैरों के बीच डंडा डाल कर लाश को यमुना नदी में फेंक आए. इतना सब करने के बाद दुलारी और जगभान अपनेअपने घर चले गए. घर आने के बाद दुलारी ने पति के गायब होने की खबर पूरे गांव में फैला दी और जानबूझ कर पति को खोजने का नाटक करती रही. लेकिन पुलिसिया जांच में उन का जुर्म छिप नहीं सका.

पुलिस ने शिवनारायण की पत्नी दुलारी और उस के आशिक जगभान से पूछताछ करने के बाद दोनों को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से दोनों को जेल भेज दिया. वहीं एसपी अभिनंदन ने इस सनसनीखेज हत्याकांड का खुलासा करने वाली पुलिस टीम को ईनाम देने की घोषणा की है.

पलाश के फूल : सुमेर और सरोज के रिश्ते में किस वजह से दरार आ गई थी

ट्रेन की खिडक़ी से बाहर देखतेदेखते मन विभोर सा हो रहा था. पूरा जंगल पलाश के फूलों से लदालदा चंपई रंग में रंगा हुआ लग रहा था. बचपन में जब भी होली नजदीक आती थी तो सब बड़ों को कहते सुनते थे कि जंगल से पलाश के फूल लाएंगे और उन से होली के रंग तैयार करेंगे. सच में ये रंग हैं ही इतने रंगीले, देख कर मन को खूब लुभाते हैं और सारी फिजा को रंगीन कर देते हैं.

मेरे जीवन में भी यही रंग समाया है जब से सुमेर की प्रीत मन में जगी है. मन तो नहीं था उन्हें छोड क़र आने को और वे भी तो कैसे तड़प कर बोले थे- ‘मत जाओ सरोज, मैं इतने दिन तुम्हारे बिना कैसे रहूंगा.’

पर पगफेरी के लिए भी न आती तो लोग क्या कहते और मम्मीपापा का भी तो मन करता होगा बिटिया से मिलने का. ये रिश्ते भी कैसे पल में बदल जाते हैं कि जिस से कभी जानपहचान भी न थी, आज वही मन का मीत है, सब से प्यारा है, दिल का सहारा है. मुझे तो पहली ही नजर में सुमेर भा गए थे. देखनेदिखाने की रस्मों के बीच कब दिल मेरे पहलू से निकल कर उन का बन बैठा, पता ही नहीं चला. प्रीत ने अनछुए मन को ऐसा छुआ कि अब कुछ नहीं भाता था. सारे वक्त खोईखाई सी रहने लगी थी. मन उन्हीं की यादों में खोया रहता.

पिछले साल यही तो दिन थे जब होली नजदीक आ रही थी. सगाई के बंधन में बंधे हम दोनों पूरी तरह एकदूसरे की प्रीत के रंग से सराबोर थे. सुमेर रोज शाम को औफिस से लौटते ही मुझे फोन करते और लगभग एकडेढ़ घंटे तक हम दोनों एकदूसरे की बातों में खो जाते. उस रोज शाम होते ही मुझे उन की याद सताने लगी पर उन का फोन नहीं आया और जब मैं ने फोन किया तो कवरेज क्षेत्र से बाहर बता रहा था. मन की बेचैनी और अधीरता बढ़ती जा रही थी और कुछ आशंकाएं भी होने लगीं. जो हमें सब से प्यारा होता है उस के बारे में अकसर हम डरने लगते हैं, अपनी जान से ज्यादा उस की फिक्र करने लगते हैं. मन घबरा कर उलटासीधा सोच रहा था.

‘न जाने क्या हुआ होगा, फोन क्यों नहीं लग रहा, कहीं कुछ…नहींनहीं, ऐसा नहीं हो सकता. मैं ने अपने इस विचार को झटक दिया और फिर से कोशिश की पर अब भी उन का फोन नहीं लगा. जब बेचैनीहद से ज्यादा बढ़ गई तो मैं ने उस के परिवार की सब से करीबी दोस्त यानी उस की भाभी और मेरी प्यारी जेठानी को फोन करना उचित जाना क्योंकि वही हमारी हमउम्र और राजदार थीं. उन के बारे में सुमेर अकसर बताया करता था. सो, मैं ने उन्हें फोन किया.

मेरी आवाज सुनकर ही वे मेरी परेशानी भांप गईं और हंसती हुई बोलीं, ‘क्या हुआ देवरानी जी, आज देवरजी से बात नहीं हुई क्या जो इतनी बेचैन हो?’

मैं ने सकपकाते हुए कहा, ‘भाभी, सुमेर का फोन नहीं लग रहा, वे ठीक तो हैं न?’

‘वह बिलकुल ठीक हैं, सरोज. असल में सुमेर अपने दोस्तों के साथ पार्टी में गया है. उस ने मुझ से कहा था तुम्हें बता दूं पर मैं भूल गई, सौरी.’

इतना सुनते ही मेरी आंखों से गंगाजमुना बहने लगी. बहुत गुस्सा आ रहा था सुमेर पर. मेरी भावनाओं की कोई कद्र ही नहीं उसे. जब अभी यह हाल है, आगे क्या होगा. दिल के भीतर कुछ टूट कर बिखरता सा लगा. उस शाम मैं ने खुद को कमरे में बंद कर लिया था. रोरो कर सूजी हुई आंखें ले कर मम्मी के पास गई तो मम्मी हैरान रह गईं.

‘क्या हुआ, तेरी आंखें क्यों सूजी हुई हैं, रोर्ई है क्या?’ मम्मी ने बड़े प्यार से मुझे अपने पास बैठाया और सिर पर हाथ फेरती हुई बोलीं, ‘क्या बात है, हमेशा खिलखिलाती रहने वाली हमारी गुडिय़ा रानी आज इतनी उदास कैसे है?’

‘मम्मी, आप यह सगाई तोड़ दो, मैं सुमेर से शादी नहीं करूंगी,’ मैं ने आंसू पोंछते हुए कहा.

‘सगाई तोड़ दो? क्या कह रही है तू, होश में तो है न?’

‘हां मां, मैं पूरे होश में हूं. मैं उस से शादी नहीं करूंगी. उसे मेरी भावनाओं की कद्र नहीं. आज संडे था, मैं ने सारे दिन उस के फोन का इंतजार किया और शाम को खुद फोन किया तो पता चला वह अपने दोस्तों के साथ पार्टी में गया है. यहां मैं इंतजार कर रही हूं और वह है कि… उसे अभी से मेरी परवा नहीं, तो शादी के बाद क्या होगा, बोलो मम्मी?’ यह कह कर मैं ने अपना सिर मम्मी की गोद में रख दिया.

मम्मी मेरे बालों को हौलेहौले सहलाने लगीं, बोलीं, ‘सुन बिटिया, ये रिश्ते बहुत नाजुक होते हैं, बिलकुल रेशम की डोरी की तरह, जरा से खिंचाव से टूट जाते हैं. हम स्त्रियां धैर्य और सहनशीलता की पर्याय मानी जाती हैं. क्या हुआ अगर आज सुमेर दोस्तों के साथ पार्टी में चला गया, रोज तो वह तुझ से बात करता है न. वह तुझ से प्यार करता है पर उस की भी अपनी जिंदगी है. और फिर, अभी शादी नहीं हुई, तो वह आजाद भी है. तू देखना, शादी के बाद वह कैसे अपनी जिम्मेदारी निभाता है.’

मां ने मुझे बहुत समझाया. पर मैं अपनी जिद पर अड़ी रही. किसी के समझाने का मुझ पर असर नहीं हो रहा था. सुमेर पार्टी से देररात घर आया और आते ही सुमन भाभी ने उन्हें मेरे फोन के बारे में बताया. पर उसे मेरी नाराजगी का अंदाजा नहीं था, इसलिए उस ने इस बात को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया और सो गया. फिर सुबह उठते ही औफिस चला गया. औफिस की व्यस्तता में उसे ध्यान नहीं आया. शाम को औफिस से लौटने के बाद उस ने मुझे फोन लगाया. पर मैं ने नहीं उठाया.

उधर फोन बज रहा था और इधर मेरी आंखें बरस रही थीं. जब बहुत देर तक फोन बजता रहा तो मैं ने गुस्से में फोन स्विचऔफ कर दिया. सुबह देखा, तो व्हाट्सऐप पर उस के मैसेज थे.

‘हाय सरोज, कैसी हो? भाभी ने तुम्हारे फोन के बारे में बताया था पर पार्टी से आने में देर हो गई थी, इसलिए सो गया. औफिस में बिजी था, इसलिए शाम को तुम्हें फोन किया. पर तुम ने फोन नहीं उठाया.’

‘क्या हुआ? नाराज हो मुझ से?’

मैं ने मैसेज पढ़ कर फोन पटक दिया. शाम को मम्मी के फोन पर उस का फोन आया तो मम्मी ने अपना फोन मुझे पकड़ा दिया. वह हलोहलो कर रहा था पर मैं ने बात नहीं की. वह कह रहा था- ‘सरोज कैसी हो? मैं जानता हूं तुम फोन पर हो. कुछ तो बोलो, तुम्हारी मीठी आवाज सुने हुए पूरे 2 दिन हो गए. इतने से कुसूर की इतनी बड़ी सजा क्यों दे रही हो मुझे? मुझ से बात करो, प्लीज.’

पर मैं ने बिना कुछ बोले ही मम्मी का फोन उन्हें लौटा दिया और अपनी सहेली के घर चली गई. उस के बाद कुछ दिनों तक उस का फोन नहीं आया और मैं ने भी नहीं किया. मां झुंझला कर कहती रहीं, ‘पता नहीं क्या जिद पकड़ी है इस लडक़ी ने. अरे, इतना अच्छा लडक़ा है, मना रहा था. लेकिन यह मानी नहीं. बस, अकड़ती जा रही है.’

‘मम्मी, मैं आप की बेटी हूं और आप हो कि उसी की तरफदारी करती रहती हो?’ मैं तुनक कर कहा तो मम्मी डांटने लगीं.

‘जो सही है उसी का पक्ष ले रही हूं मैं. इतना भी क्या अकड़ ले कर बैठी है. कल तेरी जेठानी का फोन आया था, कह रही थी, सुमेर आजकल बहुत उदास रहने लगा है.’

यह सुन कर अच्छा महसूस हुआ कि मेरी नाराजगी का असर हो रहा है. पर फिर भी अकड़ी रही.

होली वाले दिन सुबह आंख खुली और बिस्तर से उतरने के लिए पैर नीचे रखे, तो हैरान रह गई. पलाश के ढेर सारे फूल जमीन पर बिछे हुए थे. मैं उन पर पैर रख कर चलने लगी तो देखा ये फूलों की बिछावन गार्डन तक जा रही थी और गार्डन में लगे झूले तक थी और झूला भी फूलों से सजा हुआ था. मैं आश्चर्य से भरी आंखें मलती फूलों पर चलतीचलती झूले पर जा कर बैठी ही थी कि किसी ने पीछे से आ कर मेरे गालों पर गुलाल मल दिया. पीछे मुड़ कर देखा, सुमेर और उस के दोस्त खड़े थे और मुझे देख कर मुसकरा रहे थे.

एक दोस्त बोला, ‘भाभीजी, सुना है आप हम से और हमारे दोस्त से बहुत नाराज हैं?’

मैं ने सकपकाते हुए कहा, ‘नहीं तो.’ और मैं मुसकरा दी.

‘अब नानुकुर मत कीजिए, भाभी. आप को पता भी है, हमारे दोस्त की क्या हालत हो गई है? बेचारा देवदास बन कर रह गया है, देखिए,’ दूसरा दोस्त बोला.

मैं ने सुमेर की ओर देखा तो वह नाटक में मुंह लटका कर खड़ा था. यह देख कर मुझे जोर से हंसी आ गई.

तीसरा दोस्त बोला, ‘अरे भाभीजी, आप को मनाने के लिए हम सब ने मिल कर कितनी मेहनत की है, पता भी है आप को? कल जंगल जा कर जितने भी पलाश के फूल मिले, तोड़ लाए और आज जल्दी उठ कर आप के लिए फूलों की डगर बनाई. अब तो मान जाइए.’

मैं जरा सी मुसकराई तो जैसे उन सब को ग्रीन सिग्नल मिल गया और सब ने मिल कर मुझे रंग डाला. मैं ने भी अपनी पिचकारी से उन सब को खूब भिगोया. हमारे प्रेम की शुरुआत की होली सच में यादगार बन गई.

अभिनेता,निर्देशक व अभिनेता धीरज कुमार की ‘‘डाक्टर 365’’ के साथ मिलकर बौलीवुड के लिए अनूठी पहल

बौलीवुड से जुड़े लोगों और मीडिया के लिए लगाया गया मुफ्त मेडिकल चेकअप कैंप पिछले 40 वर्षों से बौलीवुड में सक्रिय अभिनेता, निर्देशक व अभिनेता धीरज कुमार का अपना एक अलग मुकाम हैं.उन्होने फिल्मों में अभिनय करते हुए अपने कैरियर की शुरूआत की थी.फिर फिल्म व टी सीरियलों का भी निर्माण व निर्देशन किया.

अभिनेता धीरज कुमार का मानना है कि इतने वर्षों में उन्हे समाज व फिल्म इंडस्ट्री से जो कुछ मिला है,उसके एवज में अब उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वह भी समाज व फिल्म इंडस्ट्री को किसी न किसी रूप में कुछ वापस करें.

अपनी इसी सोच के साथ धीरज कुमार ने पूरे देश में उत्नीस हजार से अधिक मेडिकल कैंप लगा चुके ‘‘डाक्टर 365’’ और ‘‘ आरके एचआईवी एड्स एंड रिसर्च’’सेंटर के डाॅक्टर धर्मेंद्र कुमार के संग मिलकर अनूठी पहल करते हुए 26 मार्च, रविवार के दिन को अंधेरी,मुंबई के ‘चित्रकूट ग्राउंड’’ में बौलीवुड से जुड़े सभी वर्करों, तकनीशियनों तथा मीडिया कर्मियों के लिए मुफ्त में स्वास्थ्य जांच के साथ ही चष्में, व्हीलचेअर व दवाओं के वितरण का ‘ भव्य मुफ्त आरोग्य षिविर’ का आयोजन किया.

जहां जरुरतमंद दो सौ लोगों को व्हील चेअर,हजारों लोगों को चष्में व करीबन दो करोड़ रूपए मूल्य की दवाएं,बिटामिन सिरप व कफ सिरप भी वितरित किए गए.सिनेमा के इतिहास में यह पहला अवसर रहा,जब फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े तमाम तकनीशियनों, मीडिया कर्मियों और उनके पारिवारिक सदस्यों के लिए इस तरह का इतना बड़ा मुफ्त मेडिकल कैम्प का आयोजन किया गया.

भारत के लीडिंग होम हेल्थ केयर सर्विस प्रोवाइडर डॉक्टर 365, डॉ धर्मेंद्र कुमार, मनीष कुमार वर्मा, अविनाश राय, जसविंद्र सिंह और अभिनेता,निर्माता निर्देशक धीरज कुमार द्वारा इसका सफल आयोजन हुआ. इस अवसर पर मुख्य अतिथि शिवाजी राव सावंत, गिनीज बुक ऑफ वल्र्ड रिकॉर्ड्स होल्डर आरके एचआईवी एड्स रिसर्च एंड केयर सेंटर के अध्यक्ष डॉ धर्मेंद्र कुमार, मनीष वर्मा और क्रिएटिव आई लिमिटेड के निर्माता निर्देशक धीरज कुमार,मुंबई के वर्सोवा क्षेत्र की एमएलए भारती लव्हेकर,फिल्म फेडरेशन के बीएन तिवारी,हास्य अभिनेता जॉनी लीवर, अभिनेत्री संगीता तिवारी, सुंदरी ठाकुर सहित कई हस्तियां मौजूद रहीं.इस अवसर पर जॉर्जिया के काउंसिल जनरल मिस्टर सतेंद्र पाल सिंह आहूजा सहित कई खास मेहमान भी मौजूद थे जिनका स्वागत धीरज कुमार ने किया.

इस महा आरोग्य षिविर की षुरूआत दीप प्रज्वलन से हुई.उसके बाद अतिथियों को शॉल और पुष्पगुच्छ देकर सम्मानित किया गया. अभिनेता धीरज कुमार ने बताया कहा-‘‘यहां इंडस्ट्री से जुड़े लोगों, मीडिया, पुलिस और सबकी फैमिली के लिए हेल्थ सुविधाएं रखी गई और काफी सारे लोगों ने लाभ लिया.मुम्बई के कई बड़े अस्पताल ने इस कैम्प में अपना योगदान दिया है.

14 जनवरी 2024 को भी हम पुनः इससे बड़ा कैम्प का आयोजन करने वाले हैं.आज यहां पर ‘ई-श्रम कार्ड’ के कैम्प का भी आयोजन किया गया.जिसके तहत लोगों को दो लाख का जीवन बीमा और हर माह तीन हजार रूपए की राषि सरकार द्वारा दी जाती है.’’ मुफ्त महा आरोग्य षिविर के सफल आयोजन के बाद ‘आरके एचआईवी एड्स केअर एंड रिसर्च सेंटर’ के डाॅक्टर धर्मेंद्र कुमार ने कहा-‘‘हमारा मकसद भारत के हर नागरिक को स्वस्थ व तंदरूस्त देखना है.हम हर बार अलग अलग क्षेत्र के ेलोगों के लिए मुफ्त आरोग्य षिविर लगाते रहते हैं.

इस बार हमने बौलीवुड यानी कि फिल्म इंडस्ट्री और मीडिया से जुड़े लोगों के लिए इस महा आरोग्य शिविर के आयोजन का काम किया,जिसके लिए हमारी टीम पिछले तीन माह से लगातार काम कर रही थी.आज उसका नतीजा सबके सामने है.हम हमारे मुख्य अतिथि शिवाजी राव सावंत का मैं आभारी हूँ कि उस्मानाबाद से हमारे इस मेडिकल कैम्प में मौजूद रहने के लिए मंुबई आए.उस्मानाबाद में उनकी निगरानी में हमने लाखों मरीजों को देखकर एक रिकॉर्ड बनाया था. भारत देश के तमाम वासियों को हम स्वस्थ देखना चाहते है, इसी उद्देश्य के अंतर्गत हम मेडिकल कैम्प का आयोजन पिछले कई वर्षों से करते आ रहे हैं.’’

डॉ धर्मेंद्र कुमार ने आगे कहा-‘‘डॉक्टर 365 व आर.के. एचआईवी एड्स रिसर्च एंड केयर सेंटर ने दिसंबर 2022 तक 29,000 से अधिक चिकित्सा शिविरों का आयोजन कर तीन करोड़ पचपन लाख से अधिक मरीजों के स्वास्थ्य की जांचकर उन्हे आवष्यक दवा आदि भी दे चुके हैं.’’ आज हजारों लोगों ने इस निःशुल्क महा आरोग्य चिकित्सा शिविर का लाभ लिया.हमने अभी तक सारे आंकड़े एकत्र नही किए हैं.आप सभी ने देखा कि आज इस कैम्प में मुंबई के शीर्ष अस्पतालों के विशेषज्ञ डॉक्टर सहित सैकड़ो डॉक्टर्स दिनभर मौजूद रहे.

यहां लोगों के लिए हेल्थ चेकअप, हड्डी सम्बंधित रोग, ईसीजी टेस्ट, हार्ट चेकअप, आई चेकअप, चश्मा वितरण, दवा वितरण, डेंटल चेकअप, ट्राइसाइकिल वितरण और ब्लड ग्रुप चेकअप जैसी सुविधाएं प्रदान की गई. यहां हजारों चश्मे और दो सौ व्हीलचेयर मुफ्त में वितरित की गई.अलग अलग विभाग के पास मरीजों के आंकड़े हैं,जिन्हे एकत्र करने के बाद ही हम बता सकेंगे कि आज कितनी संख्या मे लोगो ने इस कैंप का फायदा उठाया.

‘आरोग्य षिविर’ का आयोजन सुबह आठ बजे से षाम छह बजे तक किया गया.इसके बाद आठ बजे से सम्मान समारोह का आयोजन हुआ,जिसमें बिग बॉस फेम शालीन भनोट, ब्राइट आउटडोर मीडिया लिमिटेड के डॉ योगेश लखानी, अभिनेत्री दीपशिखा नागपाल, गायिका भूमि त्रिवेदी, कॉमेडियन नवीन प्रभाकर, संगीतकार दिलीप सेन, अभिनेत्री एकता जैन, ऋचा शुक्ला, हरीश चैकसी, कृष्ण प्रसाद, सुंदरी ठाकुर, गुरुजी कुमारन स्वामी , पी सी सूद , कॉमेडियन राजीव ठाकुर, रमेश गोयल, पंकज वोरा, मानव सोहल (फिल्म मैं राजकपूर हो गया) इत्यादि को सम्मानित किया गया.भूमि त्रिवेदी ने स्टेज पर ‘रामलीला’ का गीत गाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया. राजीव ठाकुर और नवीन प्रभाकर ने अपनी कॉमिक टाइमिंग से सभी को हंसाया.स्टेज पर संगीता तिवारी, उनकी बहन सुनीता तिवारी और अमन कुमार ने रेट्रो स्टाइल और साउथ सिनेमा के अंदाज में डांस परफॉर्मेंस पेश की.

पोषण वाटिका: कुपोषण दूर करने का उपाय

घर में लगी पोषण वाटिका या गृह वाटिका या फिर रसोईघर बाग पौष्टिक आाहार पाने का एक आसान साधन है, जिस में विविध प्रकार के मौसमी फल तथा विविध प्रकार की सब्जियों व फलों को एक सुनियोजित फसलचक्र और प्रबंधन विधि के द्वारा उगाया जाता है. आमतौर पर पोषण वाटिका घर के आसपास बनाई गई एक ऐसी जगह होती है, जहां पारिवारिक श्रम से विविध प्रकार के मौसमी फल तथा विभिन्न सब्जियां उगाई जाती हैं,

जिस से परिवार की वार्षिक पोषण आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके. पोषण वाटिका का आकार अलगअलग हालात, जैसे कि जगह, परिवार में सदस्यों की संख्या, रुचि व समय की उपलब्धता पर निर्भर करता है. लगातार फसलचक्र, सघन बागबानी और अंत:फसल खेती को अपनाते हुए एक औसत परिवार, जिस में कुल 5 सदस्य हों, के लिए औसतन 200 वर्गमीटर जमीन काफी है.

पोषण वाटिका के लिए उचित स्थान

* घर के निकट.

* सूरज की रोशनी अच्छी तरह से मिले.

* दोमट मिट्टी सही.

* पर्याप्त सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता.

पोषण वाटिका की बनावट आदर्श गृह वाटिका के लिए 200 वर्गमीटर क्षेत्र में बहुवर्षीय पौधों को वाटिका के उस तरफ लगाना चाहिए, जिस से उन पौधों की अन्य दूसरे पौधों पर छाया न पड़ सके. इस के साथ ही इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि ये पौधे एकवर्षीय सब्जियों के फसलचक्र और उन के पोषक तत्त्वों की मात्रा में बाधा न डालें. जमीन की तैयारी व क्यारी बनाना

* फावड़ा या कस्सी से मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरा कर 4 से 5 फुट चौड़ी क्यारी बना लें. क्यारी पूरबपश्चिम दिशा में रखें.

* दोनों क्यारियों के बीच 1 फुट की दूरी रखें.

* प्रत्येक क्यारी में गोबर या केचुआं खाद डाल कर मिला लें.

* अतिरिक्त जल निकासी हेतु चारों तरफ से 1 फुट चौड़ी और 1 फुट गहरी नाली बना लें. सब्जियों का चयन सब्जियों का चयन करते समय फसलचक्र अपनाना चाहिए. सब्जियों की किस्मों का चुनाव करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिए कि वे उन्नत, स्वस्थ्य और प्रतिरोधी हों.

किस्में अगर देशी हों तो हमें अगले मौसम में बीज खरीदने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

मौसम के अनुसार सब्जियों को निम्न प्रकार बांटा जा सकता है :

खरीफ : लौकी, तोरई, कद्दू, टिंडा, खीरा, करेला, भिंडी, टमाटर, बैगन, मिर्च, पालक, धनिया आदि. रबी : गोभी, ब्रोकली, पत्तागोभी, टमाटर, बैगन, मिर्च, पालक, मूली, मेथी, सोया, चौलाई, धनिया, सेम, मटर, राजमा, चुकंदर, गाजर, लहसुन, शलजम, प्याज आदि. जायद : लौकी, तोरई, कद्दू, खीरा, ककड़ी, करेला, टिंडा, भिंड़ी, टमाटर, बैगन, मिर्च, पालक, धनिया, चौलाई आदि. सब्जियों के साथ आम, अमरूद, सहजन, किन्नू, संतरा, पपीता, करौंदा, अनार, नीबू, आंवला, चीकू, ड्रैगनफ्रूट आदि फलदार पौधे लगाए जा सकते हैं.

भूमि की तैयारी

* जिस स्थान पर पोषण वाटिका लगानी हो, वहां की मृदा में जल व वायु का प्रवाह अच्छा होना चाहिए.

* मृदा जितनी भुरभुरी, कार्बनिक खाद व जीवाश्म तत्त्वों से भरपूर होगी, पैदावार भी उतनी ही अच्छी मिलेगी.

* गमले तैयार करते समय भी कस्सी या खुरपी से मृदा अच्छी तरह भुरभुरी कर ले गोबर की खाद मिला कर गमले तैयार कर लेने चाहिए.

* जिन लोगों के पास घर पर खुला स्थान नहीं है, वे अपनी छत पर सब्जियां उगा सकते हैं.

* आजकल बाजार में अलगअलग आकार के प्लास्टिक बैग, गमले, ट्रे उपलब्ध हैं जो इस काम में प्रयोग किए जा सकते हैं. सीमेंट व प्लास्टिक के गमले, कबाड़ में अनुपयोगी चीजें जैसे बालटी, प्लास्टिक के कट्टे, ट्रे, मटकियां, बोतल आदि का भी उपयोग कर सकते हैं. इन में बराबर मात्रा में मिट्टी व कंपोस्ट का मिश्रण भर कर सब्जियों का रोपण व बिजाई कर सकते हैं. वाटिका में पौधों की सिंचाई, खरपतवार नियंत्रण एवं खाद और उर्वरक प्रबंधन

* आमतौर सब्जियों की बोआई 2 तरीकों से की जा सकती है, पौधशाला तैयार कर के (टमाटर, बैगन, मिर्च, प्याज, गोभीवर्गीय सब्जियां, सलाद) व सीधी बोआई से (खीरावर्गीय सब्जियां, मूली, मटर, भिंडी, सेम, पालक, इत्यादि).

* कीट एवं रोग प्रबंध पोषण वाटिका से अस्वस्थ पौधों को तुरंत निकाल कर नष्ट कर दें. फसलचक्र अपनाना लाभदायक होता है. बोआई के लिए प्रतिरोधी किस्मों का उपयोग करें. स्वस्थ पौधशाला तैयार करें.

* गार्डन को साफ रखें. खरपतवार निकालते रहें. जब भी पोषण वाटिका या गृह वाटिका में खरपतवार दिखें, तो हाथ से निकाल देना चाहिए. प्लास्टिक पलवार लगाने से भी खरपतवार की रोकथाम होती है और मृदा में नमी बराबर रहती है तथा अतिआवश्यक होने पर पौध संरक्षण रसायनों के स्थान पर जैविक कीटनाशकों जैसे जीवामृत का ही प्रयोग करें.

* खाद व उर्वरक का अच्छी पौदावार प्राप्त करने में अधिक महत्व है. इस के लिए आवश्यक है कि मृदा में कार्बनिक खाद का प्रयोग हो. यह खाद मृदा की दशा सुधारती है व पौधों को आवश्यक पोषक तत्त्वों की पूर्ति भी करती है. इस के लिए गृहवाटिका के एक कोने में कंपोस्ट खाद का भी निर्माण भी किया जा सकता है.

* खाद में पोषक तत्त्वों की वृद्धि के लिए, संभव हो तो, केंचुओं द्वारा तैयार वर्मीकंपोस्ट इकाई की स्थापना कर वर्मीकंपोस्ट का उपयोग कर सकते हैं. सब्जियों कर तुड़ाई तुड़ाई की अवस्था फसल के स्वभाव पर निर्भर करती है. उदाहरण के लिए लौकी, करेला, टिंडा, भिंडी, तोरई आदि को कच्ची अवस्था पर तरबूज, खरबूजा, टमाटर आदि को पकने पर तोड़ा जाता है.

पोषण वाटिका के मुख्य लाभ पोषण वाटिका से परिवार, पड़ोसियों व रिश्तेदारों को तरोताजा हवा, प्रोटीन, खनिज और विटामिन से युक्त फल, फूल व सब्जियां प्राप्त होती हैं. इस के साथ ही परिवार के हर सदस्य द्वारा बगिया में काम करने से शारीरिक व्यायाम भी होता है.

इस से परिवार के सदस्य स्वस्थ्य व प्रसन्न रहते हैं. स्वयं की मेहनत एवं पसीने से उपजी हरीभरी तरोताजा सब्जियों को देख कर सभी का तन मन प्रफुल्लित होगा. इस के अलावा सब्जियां खरीदने के लिए बाजार में जाने का बहुमूल्य समय भी बच जाता है. वास्तव में स्वयं की देखरेख व मेहनत से पैदा की गई सब्जियों का स्वाद और मजा कुछ और ही होता है. इस प्रकार पोषण वाटिका स्थापित करना परिवार के स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए बुद्धिमत्तापूर्ण कदम साबित होगा.

लेखक-डा. अंजलि वर्मा, डा. एसएन सिंह, डा. डीके श्रीवास्तव, डा. वीबी सिंह, डा. प्रेम शंकर, श्री हरिओम मिश्र

आराध्या को देखकर लोग कर रहे हैं ऐश्वर्या की तारीफ, पार्टी में लोगों की नजर टिकी मां बेटी पर

वैसे तो ऐश्वर्या राय और आराध्या बच्चन हमेशा एक साथ नजर आती हैं लेकिन इस बार ऐश्वर्या और आराध्या एक अलग अंदाज में नजर आईं जिसकी चर्चा काफी ज्यादा सोशल मीडिया पर हो रही है. बता दें कि ऐश्वर्या राय जमकर तारीफ हो रही है.

बता दें कि ऐश्वर्या राय अपनी बेटी आराध्या की परवरिश में कोई कमी करती नजर नहीं आती हैं, हमेशा वह अपनी बेटी को सबसे आगे देखना चाहती हैं जैसे कि हर मां कि यह इच्छा होती है.

 

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दरअसल, ऐश्वर्या औऱ आराध्या मुकेश अंबानी और नीता अंबानी के कल्चरल सेंटर के लॉच पर पहुंची जहां पर उन दोनों की लुक की खूब तारीफ हुई. स्टार इवेंट के लिए जहां ऐश्वर्या ने एक हरे रंग का लहंगा चुना तो वहीं आऱाध्या ने पिंक कलर की अऩारकली सूट में नजर आईं. बता दें कि ऐश्वर्या अपनी बेटी आराध्या को प्रोटेक्ट करती नजर आईं.

ऐश्वर्या के सूट के दुपट्टे को हरे रंग के मांस से जुड़ा गया था, दोनों के ड्रेस का डिजाइन बेहद सिंपल था लेकिन दोनों काफी ज्यादा खूबसूरत लग रही थीं, ऐश्वर्या और आऱाध्या को साथ में देखकर फैंस अपनी नजरें नहीं हटा पा रहे हैं.

ऐश्वर्या और आऱाध्या को साथ में देखकर फैंस उनसे नजरें नहीं हटा पा रहे थें, दोनों ने nmcc में शिरकत की जहां लोगों  की नजरें मां बेटी पर टिकी रहीं. आराध्या को देखकर लोग बार-बार तारीफ कर रहे हैं कि मां ने कितने अच्छे संस्कार दिए हैं.

अनुपमा दिखेगी नए अवतार में,अपने परिवार से लेगी बदला!

टीवी सीरियल  अनुपमा में इन दिनों डिंपी और समर की कहानी दिखाई जा रही है, इस सीरियल में दिखाया जा  रहा है कि डिंपी और समर एक -दूसरे के साथ  लिवइन में रहना चाहते हैं.  वहीं दूसरी तरफ दिखाया जाएगा कि अनुज और अनुपमा एक दूसरे से अलग हो रहे हैं.

अनुज अनुपमा को देखते हुए समर और डिंपी पहले लिवइन में रहने का फैसला लेंगे. समर अपने बा के साथ इस बारे में चर्चा करेगा, बताएगा कि हम दोों शादी नहीं बल्कि लिवइऩ में रहने का फैसला लिए हैं.

 

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देखा जाए तो एक समय ऐसा था जब अऩुज और अनुपमा एक-दूसरे को बहुत प्यार करते थें, लेकिन अब वो एक-दूसरे से अलग हो गए हैं. उनके इस फैसले से दर्शक भी काफी ज्यादा नाराज नजर आ रहे हैं.

 

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समर जैसे ही इस बात का चर्चा अपने परिवार में करता है, बा इसका कड़ा विरोध करती हैं, वह कहती हैं कि इस बात का कोई मतलब नहीं है तुम एक घटिया परिवार से तालुकात रखती हो. वह डिंपी को अपमानित करती नजर आएंगी.

इन सभी चीजों को देखते हुए बा अनुपमा से सारी बात कहेंगी और वह अनुपमा से मदद मागेंगी कि प्लीज अब तुम ही इस घर को बचा सकती हो हमारी मदद करो. हालांकि अनुपमा को बा कि इस बात पर भरोसा करना थोड़ा मुश्किल होगा. वहीं वनराज इस मामले मेें अपने आप को दूर रखेगा वह सारा फैसला समर पर छोड़ देगा.

उजाड़ लाइब्रेरी, फंड जेब में

साहित्य को समाज का दर्पण इसलिए कहा जाता है कि समाज की सही तसवीर साहित्य में देखने को मिलती है. एक दौर था जब हर छोटीबड़ी जगह लाइब्रेरी हुआ करती थी. हम अपने स्कूल के दिनों को याद करते हैं जब 10वीं क्लास तक आतेआते हम ने सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’, मुंशी प्रेमचंद और हरिशंकर परसाई की लिखी हुई क‌ई पुस्तकें पढ़ डाली थीं. कसबों के बसस्टैंड और शहरों में रेलवे स्टेशन के बुक स्टौल पर हमें पत्रिकाएं आसानी से मिल जाती थीं.

इंडियन रेलवे ने बुक स्टौल का खात्मा कर दिया है. रेलवे की गलत नीतियों और किराया अधिक वसूलने की वजह से बुक स्टौल चलाने वालों को अब उस में खाद्य सामग्री बेचने को मजबूर होना पड़ रहा है. आज हालात अलग हैं. अब सरकारी खजाने से लाइब्रेरी के लिए फंड तो दिया जा रहा है मगर वह फंड अफसरों की जेबें भर रहा है. सरकारी स्कूल में बनी लाइब्रेरी में किताबें या तो आलमारियों में कैद हैं या फिर किसी कबाड़ की दुकान पर बेची जा रही हैं.

ताजा मामला उत्तर प्रदेश के बबेरू कोतवाली के हरदौली गांव से सामने आया है, जहां 9  फरवरी को पुलिस को पैट्रोल पंप के पास कबाड़ की दुकान में प्राइमरी स्कूल की सरकारी किताबें रखी होने की सूचना मिली. तत्काल पुलिस मौके पर पहुचीं और करीब 10 क्विंटल के आसपास किताबें ले कर कोतवाली आ गई. किताबों की कीमत बाजार में लाखों में है लेकिन ये महज हजारों में रद्दी में बेच दी गईं. पुलिस ने जब कबाड़ी को हिरासत में ले कर पूछताछ की तो जानकारी मिली कि संकुल प्रभारी विवेक यादव द्वारा ये किताबें बेची गई हैं जिस में खंड शिक्षा अधिकारी की मिलीभगत की भी बात सामने आई.

6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए चल रहे सर्व शिक्षा अभियान में धांधली कोई न‌ई बात नहीं है. सरकारी किताबों को छात्रों के बस्ते में होना चाहिए, वे रद्दी में बेची जा रही हैं. अवकाश के दिन स्कूल का ताला खोल कर हजारों किताबें रिकशे पर लाद कर कबाड़ी के यहां पहुंचाई गईं.

सर्व शिक्षा अभियान के तहत हर साल जनपदों में प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्कूलों में किताबों का वितरण कराया जाता है. अमूमन जुलाई और अगस्त के महीने में शासन से किताबें आती हैं और इसी दौरान बच्चों को किताबें दे दी जाती हैं. पिछले कई सालों से जनपद के तमाम बच्चे किताबों से महरूम रह जाते हैं. अधिकारी किताबों की कमी होने की बात कह कर पल्ला झाड़ लेते हैं. लेकिन, हकीकत कुछ और होती है.

6 से 14 साल तक के बच्चों के लिए पूरे देश में चल रहे सर्व शिक्षा अभियान में करोड़ों रुपए की बंदरबांट हर साल होती है. यही कारण है कि सरकारी स्कूलों से अभिभावकों का मोह भंग होने लगा है.

आज से 10 साल पहले उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद में चौंकाने वाला मामला सामने आया था, जहां सरकारी किताबों को मासूम बच्चों को देने के बजाय रद्दी में बेच दिया गया था. दर‌असल, स्कूल की छुट्टी के दिन स्कूल का ताला खोल कर हजारों किताबें रिकशे पर लाद कर कबाड़ी के यहां पहुंचाई जा रही थीं.

संदेह होने पर कुछ लोगों ने रिकशाचालक और एक अन्य आरोपी को पकड़ लिया और जम कर धुनाई कर दी. बाद में पता चला कि इस काम को अंजाम देने वाले स्कूल के टीचर ही थे. शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने इस लापरवाही के आरोप में स्कूल की प्रधान अध्यापिका और एक सहायक अध्यापक को सस्पैंड कर दिया.

शासकीय स्कूलों में बच्चों को पढ़ने के लिए आने वाली किताबें रद्दी के भाव बेचने का एक मामला मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के अंबाह से सितंबर 2022 में सामने आया था. जहां एक हजार से अधिक किताबों को स्कूल प्रबंधन ने रद्दी में बेच दिया.

अंबाह कसबे के बिचौला रोड पर एक ईरिकशा में भर कर किताबों को एक व्यापारी खरीद कर ले जा रहा था. स्थानीय लोगों की सूचना पर शिक्षा विभाग के बीआरसी ने इन किताबों से भरे हुए ईरिकशा को पकड़ लिया. इस ईरिकशा में लगभग एक हजार से अधिक किताबें भरी हुई थीं जो कक्षा 6, 7 व 8 की थीं. ये 2 साल की किताबें थीं.

बीआरसी ने ईरिकशा चालक से किताबों को लाने की जगह पूछी, जिस पर उस ने बताया कि इन किताबों को वह शासकीय मिडिल स्कूल, रूंध का पुरा, से लाया था. बीआरसी ने इन किताबों के संबंध में मिडिल स्कूल के हैडमास्टर रामलाल कतरोलिया से पूछताछ की जिस पर कतरोलिया ने बीआरसी को बताया कि स्कूल की पानी की टंकी खराब हो गई है जिसे ठीक कराने के लिए स्कूल में रखी इन किताबों को बेचा गया था.

सरकारी स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली किताबों को रद्दी में बेचने के ये मामले बताते हैं कि किस तरह सरकारी फंड का जम कर दुरुपयोग किया जा रहा है. सरकार बच्चों को मुफ्त में किताबें देने की योजनाएं तैयार तो करती है मगर जमीनी हकीकत यह है कि बच्चों को सही समय पर पूरी किताबें नहीं मिल पातीं. बुक डिपो से ले कर स्कूलों में भेजने तक के सिस्टम में फर्जीवाड़ा किया जाता है. सरकारी लाइब्रेरी से किताबें बेचने के कितने ही मामले तो सामने ही नहीं आ पाते.

 

सरकारी कोशिश नाकाम

केंद्र सरकार बड़ेबड़े मंदिर और ऊंचीऊंची मूर्तियां स्थापित कर लोगों को हिंदूमुसलिम के नाम पर बांटने में लगी पड़ी है. देश में लंबे समय से राज कर रही भाजपा सरकार का एजेंडा बस यही है कि लोगों का ध्यान जनता की समस्यायों से हटा कर उन्हें धार्मिक पाखंड में उलझाए रखा जाए, क्योंकि यदि लोग पुस्तकें पढ़ कर जागरूक हो ग‌ए तो उन के झूठे जुमले कौन सुनेगा.

यही वजह है कि भाजपा के शासनकाल में रेलवे बुक स्टौल लगभग खत्म हो ग‌ए. सरकार के रेल मंत्रालय ने बुक स्टौल का किराया मनमाने ढंग से बढ़ा दिया, जिस से इन का संचालन करने वालों ने हाथ खड़े कर दिए.

कभी हर छोटेबड़े रेलवे स्टेशन पर एक बुक स्टौल हुआ करता था, जिस में तमाम तरह की पत्रिकाएं आसानी से उपलब्ध रहती थीं. लेकिन आज बुक स्टौल की जगह जंक फूड और तंबाकूगुटखा के पाउच बेचे जा रहे हैं. सरकार की जीहुजूरी करने वाले मीडिया घराने आंखों पर पट्टी बांध कर सरकार का गुणगान कर रहे हैं. सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले अखबार और पत्रिकाओं को सरकारी विज्ञापन देना बंद कर दिया गया, जिस से वे आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं और कुछ पत्रिकाओं का तो प्रकाशन ही बंद हो गया है.

मध्य प्रदेश में शिक्षा विभाग लाइब्रेरी के लिए करोड़ों रुपए का फंड देता है. यहां के सरकारी  हाईस्कूल और हायर सैकंडरी स्कूलों को हर साल राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत 10 से 15 हजार रुपए लाइब्रेरी के लिए पुस्तकें खरीदने के लिए दिए जाते हैं. मगर अधिकतर स्कूलों में पढ़ने के लिए पर्याप्त कमरे ही नहीं हैं.

ऐसे में लाइब्रेरी की पुस्तकें एक अलमारी में कैद हो कर रह गई हैं. लाइब्रेरी के लिए अलग से न तो कोई लाइब्रेरियन है और न ही कोई जानकार शिक्षक. तूमड़ा उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के प्राचार्य कीर्ति वर्धन बताते हैं कि जब स्कूलों में लाइब्रेरी के लिए अलग कमरा, फर्नीचर और लाइब्रेरियन न‌ हो तो इस का संचालन मुश्किल होता है. टीचर दिनभर अपने पीरियड पढ़ाने में व्यस्त रहते हैं. इसी वजह से लाइब्रेरी की पुस्तकों का सही उपयोग नहीं हो पा रहा.

लाइब्रेरी के लिए खरीदी जाने वाली किताबों के चयन में पुस्तकों की उपयोगिता का खयाल रखने के बजाय कमीशन पर ज्यादा फोकस रहता है. लाइब्रेरी के लिए पुस्तकें सप्लाई करने वाले प्रकाशक और दलाल विभाग के अधिकारियों से कमीशन तय कर सरकारी स्कूलों को जो पुस्तकें सप्लाई करते हैं, वो स्कूली बच्चों के किसी काम नहीं आतीं.

साल 2013-14 में मध्य प्रदेश के प्राइमरी और मिडिल स्कूलों के लिए लाइब्रेरी फंड के लिए 5 हजार रुपए दिए गए थे. पुस्तकें खरीदने के लिए हर जिले में पुस्तक मेला का आयोजन किया गया था, जिस में विभाग के अधिकारियों ने मोटी रकम कमीशन के तौर पर पुस्तक विक्रेताओं से वसूल की थी.

 

कला और खेल अकादमियों का भी यही हाल

सरकारी फंड का दुरुपयोग अकेले शिक्षा विभाग में ही नहीं हो रहा. सरकार के दूसरे विभागों में भी कमोबेश यही हालात हैं. मध्य प्रदेश में कला और संस्कृति संरक्षण के लिए राज्य सरकार द्वारा हर साल करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं. बजट का यह आंकड़ा साल 2011-12 के 10.5 करोड़ रुपए के मुकाबले 2022-23 में 191.47 करोड़ रुपए तक पहुंच गया है.

कला और संस्कृति विभाग आयोजनों पर पहले की तुलना में बहुत अधिक खर्च कर रहा है. भोपाल में काम करने वाले संस्कृति संचालनालय के एक कर्मचारी ने बताया, ‘तानसेन समारोह का बजट पहले 25 लाख रुपए हुआ करता था, जो अब बढ़ कर 3.5 करोड़ रुपए हो गया है.’

हालांकि, वेतन और छात्रवृत्ति पर बमुश्किल ही कोई खर्च बढ़ाया गया है. मसलन, कथक को पुनर्जीवित करने के लिए 1981 में स्थापित चक्रधर नृत्य अकादमी का उदाहरण ही लेते हैं. अकादमी से परिचित एक व्यक्ति ने बताया कि इस के गुरु (अकादमिक प्रमुख) का वेतन 35 हजार रुपए प्रतिमाह है.

उन्होंने कहा, ‘छात्रों की मासिक छात्रवृत्ति 3 हजार रुपए है. रियाज़ के दौरान वाद्ययंत्र बजाने वाले संगीतकारों को हर महीने 6 हजार रुपए मिलते हैं. इतनी रकम से कैसे कोई अपना परिवार चला सकता है?

‘कला अकादमी की लाइब्रेरी से शिक्षण की सहायक सामग्री गायब है. लाइब्रेरी भी खत्म हो चली है. अगर कोई शोधार्थी यहां आता है, तो उसे कोई किताब भी नहीं मिलती. सारे साज चले गए. अकादमी का समृद्ध इतिहास था. अलबम, तसवीरें…अब कुछ भी नहीं है. संगीत संबंधी मामलों की बदहाली इतने तक ही सीमित नहीं है. खयाल केंद्र बंद है. सारंगी केंद्र का भी यही हाल है.

‘ऐसे ही हालात संगीत विद्यालय के भी हैं. ध्रुपद केंद्र खुला तो है लेकिन उस में कोई छात्र नहीं है. चक्रधर के पास छात्र हैं लेकिन पिछले 2 सालों से उन की मामूली सी छात्रवृत्ति का भी भुगतान नहीं किया गया है. इन समारोहों में कलाकारों की एक छोटी संख्या को ही ज्यादातर स्लौट्स मिलने के कारण स्थापित संगीतकारों तक को भी अपना गुजारा करने में मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है. भोपाल के एक ध्रुपद गायक का कहना है कि उन के करीबी लोगों को लाखों मिलते हैं जबकि मेरे जैसे लोग चटनीरोटी खा कर गुजारा करते हैं.’

अप्रैल 2021 में भोपाल से प्रकाशित ‘स्वदेश’ अखबार में एक खबर छपी थी- ‘उस्ताद अलाउद्दीन खान संगीत एवं कला अकादमी का कारनामा’. इस खबर में बताया गया था कि मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 1979 में स्थापित इस अकादमी ने डिजिटलीकरण के लिए कई बेशकीमती रिकौर्डिंग्स को बगैर किसी कागजी कार्रवाई या टैंडर प्रक्रिया के भोपाल की एक फर्म को सौंप दिया है. इन में से कुछ साल 1962 तक पुरानी हैं जिन में तानसेन और मैहर समारोह जैसी राज्य के बेहद मशहूर सांस्कृतिक समारोहों की प्रस्तुतियां भी शामिल हैं.

पीपी वर्ल्ड (भोपाल में इसे झावक बंधु के नाम से भी जाना जाता है) नाम की इस फर्म ने साल 2012 से ही ये रिकौर्डिंग्स लेनी शुरू कर दी थीं और तब से ले कर 2021 तक (स्वदेश में यह खबर छपने तक) इस ने एक भी रिकौर्डिंग अकादमी को नहीं लौटाई. कागजी कार्रवाई के अभाव को मद्देनजर रखते हुए अखबार ने अपनी रिपोर्ट में इस बात को जोड़ा कि अकादमी के पास उन रिकौर्डिंग्स की पूरी फेहरिस्त भी नहीं है जो वह पीपी वर्ल्ड को सौंप चुकी है.

अकादमी की इन रिकौर्डिंग्स में पंडित जसराज, रविशंकर, शिवकुमार शर्मा, जितेंद्र अभिषेकी, गिरिजा देवी और किशोरी अमोणकर जैसे दिगज्जों की प्रस्तुतियां हैं. इसलिए ये रिकौर्डिंग्स हिंदुस्तानी संस्कृति और सभ्यता के इतिहास का हिस्सा भी हैं.

 

मिसाल बन ग‌ए पुस्तकालय

तमाम विसंगतियों के बावजूद देश में अभी भी कुछ पुस्तकालय मिसाल बन रहे हैं. मध्य प्रदेश के गाडरवारा का सार्वजनिक पुस्तकालय उन में से एक है. इस पुस्तकालय की स्थापना 1914 में हुई थी, जहां पर वर्षों पुरानी 6 हजार से अधिक पुस्तकों को सहेज कर रखा गया है.

पुस्तकालय के सचिव डा सुनील शर्मा बताते हैं कि यहां हर रोज शाम के वक्त पुस्तकालय 2 घंटे के लिए खुलता है, जहां पर लोग अखबार और पत्रिकाओं को पढ़ने के लिए बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. पुस्तकें घर ले जा कर पढ़ने के लिए पाठकों से 50 रुपए का वार्षिक शुल्क ले कर एक कार्ड बना दिया जाता है. इस कार्ड में पुस्तकों का लेखाजोखा रखा जाता है. आज भी इस पुस्तकालय में दुर्लभ पुस्तकों का अनूठा संग्रह है.

इसी तरह सीएम राइज स्कूल, साईं खेड़ा, में प्राचार्य चंद्रकांत विश्वकर्मा की पहल पर अभी हाल ही में एक अलग कमरे में लाइब्रेरी बनाई गई है, जिस में लाइब्रेरियन रीतेश अवस्थी इस का बेहतर रखरखाव करते हैं. इस लाइब्रेरी में पहली क्लास से 12वीं क्लास तक के बच्चों के उपयोग आने वाली पुस्तकों का कलैक्शन रखा गया है.

खाली समय में यहां बच्चे बैठ कर पुस्तकें पढ़ते हैं. इस पुस्तकालय को साहित्यकार के चित्रों और जीवन परिचय के साथ सजायासंवारा गया है. शिक्षिका पूनम बसेड़िया और भानु प्रताप राजपूत इस लाइब्रेरी में नियमित रूप से बच्चों को पुस्तकें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.

 

मैसूर की निजी लाइब्रेरी

कर्नाटक के मैसूर में रहने वाले सैयद इशहाक ने अपने खर्चे पर लाइब्रेरी की स्थापना की थी.  62 साल के सैयद इशहाक ने मैसूर शहर में अम्मार मसजिद के पास राजीव नगर के दूसरे स्टेज में एक लाइब्रेरी की स्थापना की थी. इस लाइब्रेरी में तकरीबन 11 हजार पुस्तकों का संग्रह था और यहां किसी को भी आनेजाने की इजाजत थी. पुस्तकालय के मालिक अंडर ग्राउंड ड्रेनेज क्लीनर बनने से पहले एक बंधुआ मजदूर के रूप में काम करते थे.

वे बताते हैं, “मैं बचपन में सिर्फ 15 दिनों के लिए स्कूल गया और घर से भाग गया. घर छोड़ने के बाद से मुझे कुछ घरों में काम करने का मौका मिला, जहां किताबों को ले कर मेरा शौक विकसित हुआ. इसी शौक की वजह से धीरेधीरे यह पुस्तकालय शुरू किया.”

उन्होंने आगे कहा, ““मैं ने यह पुस्तकालय इसलिए शुरू किया था कि लोगों में पुस्तकें पढ़ने की रुचि पैदा हो. पुस्तकालय शेड जैसी संरचना के अंदर स्थित था. इस लाइब्रेरी में रोज लगभग 100 से 150 लोग आते थे.” पुस्तकालय के रखरखाव के लिए इशहाक ने 6 हजार रुपए से अधिक खर्च किए थे. इस के अतिरिक्त उन की लाइब्रेरी में हिंदी, इंग्लिश, उर्दू और कन्नड़ सहित विभिन्न भाषाओं में 17 से अधिक समाचारपत्र मौजूद होते थे. वहीं, इस लाइब्रेरी की लगभग 85 प्रतिशत पुस्तकें कन्नड़ में थीं. इन पुस्तकों को डोनरों से प्राप्त किया गया था. हालांकि, इस पुस्तकालय में 9 अप्रैल, 2021 को आग लगने से सारी पुस्तकें खाक हो गईं. बाद में लोगों के सहयोग से मिले लाखों रुपयों की मदद से पुस्तकालय को फिर से शुरू किया गया है.

 

डा. रंगनाथन थे लाइब्रेरी साइंस के जनक

भारत में डा. एस आर रंगनाथन को एक गणितज्ञ और लाइब्रेरी साइंस के जनक के रूप में याद किया जाता है. डा. रंगनाथन का जन्म 12 अगस्त, 1892 को हुआ था. उन के जन्मदिन 12 अगस्त को पूरे भारत में राष्ट्रीय पुस्तकालयाध्यक्ष दिवस के रूप में मनाया जाता है. लाइब्रेरी मुहिम को आगे बढ़ाने के लिए सैद्धांतिक आधार प्रदान करने का श्रेय उन को ही दिया जाता है. उन्होंने अपने अनुभवों, विचारों व सिद्धांतों को एक किताब ‘न्यू एजुकेशन एंड स्कूल लाइब्रेरी’ में बखूबी लिखा है.

इस किताब में एस आर रंगनाथन ने स्कूल लाइब्रेरी की जरूरत क्यों जैसे सवाल का जवाब अलगअलग नजरिए से देने की कोशिश की है. डा रंगनाथन ने स्कूल के पाठ्यक्रम के नजरिए से भी स्कूल लाइब्रेरी की उपयोगिता बताई है. पुस्तक में टैक्नोलौजी औफ एजुकेशन, बदलाव के लिए शिक्षा, विचारों की दुनिया में शीघ्रता के साथ बदलाव के लिए शिक्षा, पाठ्यक्रम का बोझ बढ़ाने वाले फैक्टर, मौखिक संचार से किताबों की संस्कृति व समाजीकरण को भी समझने की कोशिश की गई है.

उन्होंने स्कूल लाइब्रेरी की शुरुआत की संकल्पना को अपनी पुस्तक में शामिल करते हुए लिखा है कि, “जब हम पुस्तकालय शब्द के बेहद शुरुआती इस्तेमाल को समझने के लिए इतिहास की तरफ नजर दौड़ाते हैं तो हमारा सामना सब से पहले एक ऐसे अर्थ से होता है जहां किताबें लिखी जाती हैं. लाइब्रेरी की यह अवधारणा स्कूलों में लागू होने के संदर्भ में कोई आधार प्रदान नहीं करती है. इस के बाद लाइब्रेरी को ऐसे स्थान के रूप में देखने की बात आती है जो किताबों के संग्रह से जुड़ी है. लाइब्रेरी की यह अवधारणा केवल संग्रह को महत्त्व देती है, इस में इस के उपयोगकर्ता यानी पाठक को अनिवार्य हिस्से के रूप में नहीं देखा जाता है.””

साल 1901 में प्रकाशित न्यू इंग्लिश डिक्शनरी के संस्करण में पहली बार उपयोगकर्ता का अप्रत्यक्ष रूप से जिक्र एक परिभाषा में मिलता है. इस परिभाषा के अनुसार, “लाइब्रेरी या पुस्तकालय एक सार्वजनिक संस्था है जिस के ऊपर किताबों के संग्रह की देखभाल की जिम्मेदारी होती है और इस का उपयोग करने वालों तक किताबों की पहुंच सुनिश्चित करना उस का प्रमुख उत्तरदायित्व होता है.””

 

चिंताजनक है पत्रपत्रिकाओं का बंद होना   

जिस तरह नोटबंदी और जीएसटी ने व्यापार, व्यवसाय की कमर तोड़ कर अर्थव्यवस्था को बेपटरी किया है, उसी तरह कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए सरकार द्वारा लगाए गए लौकडाउन ने पत्रपत्रिकाओं के व्यवसाय को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है. आज हालात ये हैं कि समाचारपत्र, पत्रिकाओं से जुड़े लाखों लोगों की आजीविका पर संकट है, लेकिन जुमलों के दम पर चल रही सरकार की आंखों पर जैसे पट्टी बंधी हुई है.

प्रिंट मीडिया को सब से ज्यादा प्रभावित किया है इलैक्ट्रौनिक मीडिया ने. टैलीविजन और मोबाइल की पहुंच घरघर होने से लोगों का बहुत सारा समय इन में ही बीतता है. सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर आती आधीअधूरी सूचनाएं समाज में भ्रम और भय फैलाने का काम भी कर रही हैं.

आज इंटरनैट और औनलाइन रीडिंग के दौर में जब समाचारपत्रों का ही भविष्य संकट में है तो पत्रिकाओं के लिए तो बहुत ही कम स्पेस बचा है. पत्रिकाओं के बंद होने में सरकारी विज्ञापनों की कमी भी एक कारण है. विज्ञापनों के अभाव में लागत बढ़ती है और प्रबंधन घाटे का शिकार होता है.

पत्रिकाओं के बंद होने का एक कारण आम पाठकों के लिए उन के सरोकारों से जुड़ी सामग्री का न होना भी है. अधिकतर पत्रिकाओं में स्थापित लेखकों और कवियों के आर्टिकल, कविताओं, कहानियों को छापा जाता है. मैटर के सेलैक्शन में इस बात का ध्यान नहीं रखा जाता कि पाठकवर्ग को क्या पसंद है. जिस तरह कवि गोष्ठी में श्रोताओं से ज्यादा संख्या कवियों की होती है, ठीक उसी तरह का हाल साहित्यिक पत्रिकाओं का है, जिन के पाठक उन से जुड़े लेखक और रचनाकार ही होते हैं.

तमाम विसंगतियों के बाद भी दिल्ली प्रैस की विभिन्न भाषाओं में प्रकाशित होने वाली 32 पत्रिकाओं का पाठकवर्ग समाज का बड़ा हिस्सा है. ‘सरस सलिल’ निम्नमध्यवर्गीय परिवारों के सरोकारों से जुड़ी पाक्षिक पत्रिका है जो बुक स्टौल पर प्रमुखता से मांगी जाती है. सैक्स और माहवारी से जुड़ी समस्याओं को जहां समाज में टैबू माना‌ जाता है, वहीं सरस सलिल में छपने वाले लेख समाज में बने मिथक को तोड़ कर उस से जुड़ी वास्तविक और तथ्यपरक जानकारी देती है.

इसी तरह ‘सरिता’, ‘मुक्ता’ और ‘गृहशोभा’ उच्च व मध्यवर्गीय परिवारों के पुरुष, महिलाओं और किशोरकिशोरियों की चहेती पत्रिकाएं हैं, जिन के हर अंक में प्रकाशित होने वाली सामग्री का चयन लेखकों के नाम से नहीं, पाठकों की अभिरुचि के लिहाज से किया जाता है. पाठकों को जो पसंद है, वह रिपोर्ट भले ही गुमनाम लेखक ने लिखी हो, उसे प्रमुखता दी जाती है. इन पत्रिकाओं में छपने वाली कहानियां कपोल कल्पित न हो कर समाज में व्याप्त समस्याओं का निदान खोजती नजर आती हैं.

किसानों, सब्जी, फल, फूल उत्पादकों के लिए ‘फार्म एन फूड’ का जवाब नहीं है. कम कीमत में इतनी सारी जानकारियों का खजाना और कहीं मुमकिन नहीं है. बच्चों के लिए निकलने वाली लोकप्रिय पत्रिका ‘चंपक’ काफी लोकप्रिय है, जिस की वजह पत्रिका में भूतप्रेत, परी और राजामहाराजाओं की अंधविश्वास फैलाने वाली कहानियां नहीं होतीं. चंपक में पर्यावरण, शिक्षा, मनोरंजन से जुड़ी वैज्ञानिक सोचसमझ विकसित करने वाली बालोपयोगी कहानियां छपती हैं. देश के अलगअलग इलाकों के स्कूलों में चंपक द्वारा बच्चों की पेंटिंग और लेखन के कंपीटिशन करा कर उन्हें पुरस्कार दिए जाते हैं.

आपराधिक घटनाओं से संबंधित सत्य कथाएं ‘मनोहर कहानियां’ और ‘सत्यकथा’ में प्रकाशित की जाती हैं. इन पत्रिकाओं में छपने वाली कहानियों का चयन भी इसी ढंग से किया जाता है कि इन अपराध कथाओं से पाठकवर्ग को अपराधी बनने के गुण नहीं, बल्कि अपराध से बचने की सीख मिलती है.

कुल मिला कर दिल्ली प्रैस की रीतिनीति पंडेपुजारियों की तरह नहीं है जो अपने फायदे के लिए काम, क्रोध, लोभ, मोह से दूर रहने का प्रवचन तो देते हैं लेकिन खुद उस का अनुसरण नहीं करते. दिल्ली प्रैस की पत्रिकाओं में नशामुक्ति, धार्मिक पाखंडों और दकियानूसी परंपराओं का जम कर विरोध किया जाता है तो वहीं इस प्रकार के विज्ञापन भी नहीं छापे जाते हैं.

ऐसे बनाएं सोया बोटी कबाब कोरमा

कबाब कई तरह के बनाएं जाते हैं कुछ लोगों को वेज कबाव पसंद होता है तो वहीं कुछ लोगों को नॉनवेज कबाब पसंद होता है. आज आपको बताने जा रहे है सोया बोटी कोरमा की विधि.

सामग्री-

– साबुत धनिया  (3 टीस्‍पून)

– लाल मिर्च पाउडर (1 टीस्‍पून)

– खसखस के बीज  (1 टीस्‍पून)

– काली मिर्च पाउडर

– भुना हुआ बेसन

– दालचीनी (4-5)

– हरी इलायची (½)

– जायफल (1)

– सोया चंक्‍स (100 ग्राम)

– लाल मिर्च पाउडर (1 टीस्‍पून)

– अदरक का पेस्ट (25 ग्राम)

– लहसुन का पेस्ट (25 ग्राम)

– प्याज बारीक कटा हुआ (2 मध्यम आकार का)

– जीरा (10 ग्राम)

– जावित्री (200 ग्रा)

– घी (100 ग्राम)

– दही (1 चम्‍मच)

– केवड़ा का पानी

– नमक (स्वादानुसार)

बनाने की विधि

– सबसे पहले सोया चंक्‍स को गरम पानी में 5 मिनट के लिये भिगो कर रख दें.

– और बाद में उसे दबा कर पानी निकाल लें.

– अब मैरीनेड बनाने के लिये आपको एक कटोरे में अदरक, लहसुन पेस्‍ट और नमक मिलाना होगा.

– फिर इस मैरीनेड को सोया चंक्‍स पर अच्‍छी तरह से लगाएं और फिर इन्‍हें 5-6 घंटों के लिये फ्रिज में रख    दें.

– उसके बाद एक गर्म तवे पर खसखस के बीज को हल्‍का भून कर महीने पेस्‍ट बनाएं.

– फिर जायफल और जीरे को भी अलग अलग भून कर उसका भी महीन पेस्‍ट बना लें.

– बाद में प्‍याज की महीन स्‍लाइस काटें और एक पैन गैस पर चढ़ा कर उसमें थोड़ा सा घी गरम करें.

– अब इस गरम घी में प्‍याज को गोल्‍डन ब्राउन होने तक भूनें.

– फिर इस प्‍याज को पेस्‍ट बना लें.

– अब उसी घी में मैरीनेट किये हुए सोया चंक्‍स को डालें और 2 मिनट तक के लिये सौटे करें.

– फिर उसमें मसालों के पेस्‍ट डाल कर कुछ और मिनट सौटे करें.

– ऊपर से प्‍याज का पेस्‍ट, नमक, फेंटी हुई दही और सोया चंक्‍स को मैरीनेड करने के लिये जो पेस्‍ट तैयार   किया था, अगर वह बच गया हो तो उसे भी डाल दें.

– इन सभी चीजों को 4-5 मिनट तक चलाते हुए पकाएं.

– फिर इसमें 1 कप पानी मिलाएं और 5-6 मिनट तक पकाएं.

– भुने बेसन को आधे कप पानी में घोल लें और उसमें पैन में डाल कर 4-5 मिनट तक पकाएं.

– आंच को धीमा रखें और कोरमे को गाढा होने तक पकाएं.

– फिर केवड़े का पानी डालें और पैन को आंच से उतार लें, फिर गरमा गरम सर्व करें

आस पूरी हुई : क्या पूरी हो पाई कजरी की आस

रमेश्वर आज अपनी पहली कमाई से सोमरू के लिए नई धोती और कजरी के लिए  चप्पल लाया था. अपनी मां को उस ने कई बार राजा ठाकुर के घर में नईनई लाललाल चप्पलों को ताकते देखा था. वह चाहता था कि उस के पिता भी बड़े लोगों की तरह घुटनों के नीचे तक साफ सफेद धोती पहन कर निकलें, पर कभी ऐसा हो न सका था.

कजरी ने धोती और चप्पल संभाल कर रख दी और बेटे को समझा दिया कि कभी शहर जाएंगे तो पहनेंगे. गांव में बड़े लोगों के सामने सदियों से हम छोटी जाति की औरतें चप्पल पहन कर नहीं निकलीं तो अब क्या निकलेंगी.

कजरी मन ही मन सोच रही थी कि इन्हीं चप्पलों की खातिर राजा ठाकुर के बेटे ने कैसे उस से भद्दा मजाक किया था और घुटनों से नीचे तक धोती पहनने के चलते भरी महफिल में सोमरू को नंगा किया गया था.

कजरी और सोमरू धौरहरा गांव में रहते थे. सोमरू यानी सोनाराम और कजरी उस की पत्नी.

सोमरू कहार था और अपने पिता के जमाने से राजा ठाकुरों यहां पानी भरना, बाहर से सामान लाना, खेतखलिहानों में काम करना जैसी बेगारी करता था.

राजा ठाकुरों की गालीगलौज, मारपीट  जैसे उस के लिए आम बात थी. कजरी भी उस के साथसाथ राजा ठाकुरों के घरों में काम करती थी.

कजरी थी सलीकेदार, खूबसूरत और फैशनेबल भी. काम ऐसा सलीके से करती थी कि राजा ठाकुरों की बहुएं भी उस के सामने पानी भरती थीं.

एक दिन आंगन लीपते समय कजरी घर की नई बहू की चमचमाती नईनई चप्पलें उठा कर रख रही थी कि राजा ठाकुर के बड़े बेटे की नजर उस पर पड़ गई. उस ने कहा, ‘‘कजरी, चप्पल पहनने का शौक हो रहा है क्या…? बोलो तो तुम्हारे लिए भी ला दें, लेकिन सोमरू को मत बताना. हमारीतुम्हारी आपस की बात रहेगी.

‘‘तुम्हारे नाजुक पैर चप्पल बिना अच्छे नहीं लगते. सब के सामने नहीं पहन सकती तो क्या हुआ… मेरा कमरा है न… रात को मेरे कमरे में पहन कर आ जाना. कोई नहीं देखेगा मेरे अलावा.’’

कजरी का मन हुआ कि चप्पल उस के मुंह पर मार दे, पर क्या करती… एक भद्दी सी गाली दे कर चुप रह गई.

कजरी आंगन लीप कर हाथ धोने बाहर जा रही थी तभी देखा कि राजा साहब सोमरू को बुला रहे थे.

सोमरू घर के बाहर झाड़ू लगा रहा था. राजा ठाकुर भरी महफिल के सामने गरजे, ‘‘अबे सोमरू, बहुत चरबी चढ़ गई है तुझे. कई दिन से देख रहा हूं तेरी धोती घुटनों से नीची होती जा रही है. राजा बनने का इरादा है क्या?

‘‘जो काम तुम्हारे बापदादा ने नहीं किया, तुम करने की जुर्रत कर रहे हो? लगता है, जोरू कुछ ज्यादा ही घी पिला रही है…’’ और राजा साहब ने सब के सामने उस की धोती खोल कर फेंक दी.

भरी सभा में यह सब देख कर लोग जोरजोर से हंसने लगे. एक गरीब आदमी सब के सामने नंगा हो गया था. सोमरू को तो जैसे काठ मार गया. सोमरू इधरउधर देख रहा था कि कहीं कजरी उसे देख तो नहीं रही. दरवाजे के पीछे खड़ी कजरी को उस ने खुद देख लिया. वह जमीन में गड़ गया.

कजरी दरवाजे की ओट से सब देख रही थी. शरीर जैसे जम सा गया था. वह जिंदा लाश की तरह खड़ी थी.

कजरी और सोमरू एकदूसरे से नजरें नहीं मिला पा रहे थे. आखिर क्या कहते? कैसे दिलासा देते? दोनों अंदर ही अंदर छटपटा रहे थे.

कजरी ने सोमरू की थाली जरूर लगाई, पर वह रातभर वैसी ही पड़ी रही. दोनों पानी पी कर लेट गए, पर नींद किस की आंखों में थी? उन का दर्द इतना साझा था कि बांटने की जरूरत न थी.

कजरी का दर्द पिघलपिघल कर उस की आंखों से बह रहा था, पर सोमरू… वह तो पत्थर की मानिंद पड़ा था. कजरी के सामने बारबार अपने पति का भरी सभा में बेइज्जत किया जाना कौंध जाता था और सोमरू को कजरी की डबडबाई आंखें नहीं भूल रही थीं.

कजरी और सोमरू की जिंदगी यों ही बीत रही थी. बेटे रमेश्वर को उन्होंने जीतोड़ मेहनतमजदूरी, कर्ज ले कर पढ़ायालिखाया था.

सोमरू चाहता था कि उस के बेटे को कम से कम ऐसी जलालत भरी जिंदगी न जीनी पड़े. जिंदा हो कर भी मुरदों जैसे दिन न काटने पड़ें.

रमेश्वर पढ़लिख कर एक स्कूल में टीचर हो गया था और शहर में ही रहने लगा था. सोमरू चाहता भी नहीं था कि वह गांव लौटे. उन का बुढ़ापा जैसेतैसे कट ही जाएगा, पर बेटा खुशी और इज्जत से तो रहेगा.

सोमरू की एक आस मन में ही दबी थी कि वह और कजरी साथ घूमने जाएं.  कजरी अपनी मनपसंद चप्पल पहन कर उस के साथ शहर की चिकनी सड़क पर चले, जो रमेश्वर उस के लिए लाया था.

सोमरू अपने मन की आस किसी के सामने कह भी नहीं सकता था और कजरी को तो बिलकुल भी नहीं बता सकता था. कहां खाने के लाले पड़े थे और वह घूमने के बारे में सोच रहा है.

जमुनिया ताल के किनारे कजरी एक दिन बरतन धो रही थी. सोमरू भी वहीं बैठा था. उस दिन सोमरू ने अपने मन की बात कजरी को बताई, ‘‘बुढ़ापा आ गया  कजरी, पर मन की एक हुलस आज तक पूरी न कर पाया. चाहता था कि कसबे में चल रहे मेले में दोनों जन घूम आएं.’’

सोमरू एक बार उसे चप्पल पहने देखना चाहता था, जैसे नई ठकुराइन अपने ब्याह में पहन कर आई थीं.

रमेश्वर कितने प्यार से लाया था अपनी पहली कमाई से, पर इस गांव में यह इच्छा पूरी नहीं हो सकी. जिंदगी बीत गई. अब जाने कितने दिन बचे हैं. एक बार मेला भी देख लें. कितना सुना है उस के बारे में. यह इच्छा पूरी हो जाए, फिर चाहे मौत ही क्यों न आ जाए, शिकायत न होगी.

कजरी को लगा कि सोमरू का दिमाग खिसक गया है. यह कोई उम्र है चप्पल पहन कर घूमने की. सारी जिंदगी नंगे पैर बीत गई. जब उम्र थी तब तो कभी न कहा कि चलो घूम आएं. अब बुढ़ापे में घूमने जाएंगे. उस समय तो कजरी ने कुछ न कहा, पर कहीं न कहीं सोमरू ने उस की दबी इच्छा जगा दी थी.

रात में कजरी सोमरू को खाना खिलाते समय बोली, ‘‘कहते तो तुम ठीक ही हो. जिंदगीभर कमाया और इस पापी पेट के हवाले किया. कुछ पैसा जोड़ कर रखे थे कि बीमारी में काम आएगा, पर लगता है कि अब थोड़ा हम अपने लिए भी जी लें, खानाकमाना तो मरते दम तक चलता ही रहेगा. पेट ने कभी बैठने दिया है इनसान को भला?’’

दोनों ने अगले महीने ही गांव से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर ओरछा के मेले में जाने की योजना बनाई.

पूरे महीने दोनों तैयारी करते रहे. पैसा इकट्ठा किया. कपड़ेलत्ते संभाले. गांव वालों को बताया. बेटों को बताया. नातेरिश्तेदारों को खबर की कि कोई साथ में जाना चाहे तो उन के साथ चले. आखिर कोई संगीसाथी मिल जाएगा तो भला ही होगा. जाने का दिन भी आ गया, पर कोई तैयार न हुआ.

गांव से 4 किलोमीटर पैदल जा कर एक कसबा था, जहां से ओरछा के लिए सीधी ट्रेन जाती थी. दोनों बूढ़ाबूढ़ी भोर में ही गांव से पैदल चल दिए.

स्टेशन तक पहुंचतेपहुंचते सूरज भी सिर पर आ गया था. 11 बजे दोनों ट्रेन में खुशीखुशी बैठ गए. आखिर बरसों की साध पूरी होने जा रही थी.

कजरी घर से ही खाना बना कर लाई थी. दोनों ने खाया और बाहर का नजारा देखतेदेखते जाने कब सफर पूरा हो गया, पता ही न चला.

रात में दोनों एक धर्मशाला के बाहर ही सो गए. अगले दिन सुबह मेले में शामिल हुए. पूरा दिन वहीं गुजारा. कजरी ने एकसाथ इतनी दुकानें कभी न देखी थीं. हर दुकान के सामने खड़ी हो कर वह वहां रखे चमकते सामान को देखती और अपनी गांठ में बंधे रुपयों पर हाथ फेरती. दुकान में घुस कर दाम पूछने की हिम्मत न पड़ती.

एक दुकान में दुकानदार के बहुत बुलाने पर सोमरू और कजरी घुसे. कजरी वहां रखी धानी रंग की चुनरी देख कर पीछे न हट सकी.

सोमरू ने उस के लिए डेढ़ सौ रुपए की वह चुनरी खरीद ली और दुकान से बाहर आ गए. अब सोमरू के पास कुछ ही पैसे बचे थे. वह सोच रहा था कि कजरी के पास भी कुछ रुपए होंगे. उस ने पूछा तो कजरी ने हां में सिर हिला दिया.

कजरी ने जातबिरादरी में बांटने के लिए टिकुली, बिंदी, फीता, चिमटी के अलावा और भी बहुत सा सामान खरीदा. आखिर वह इतने बड़े मेले में आई थी. पासपड़ोसी, नातेरिश्तेदार सब को कुछ न कुछ देना था. खाली हाथ वापस कैसे जाती.

कजरी आज जब चप्पल पहन कर चल रही थी, सोमरू को रानी ठाकुराइन के गोरेगोरे महावर सजे पैर याद आ गए. कजरी के पैर आज भी गोरे थे और सुहागन होने के चलते महावर उस के पैरों में हमेशा लगा रहता था.

कजरी लाललाल चप्पल पहन कर जैसे आसमान में उड़ रही थी. आज उसे किसी के सामने चप्पल उतारने की जरूरत न थी. लोग उसे देख रहे थे और वह लोगों को.

सोमरू ने आज घुटनों तक धोती पहनी थी. वह आज इतना खुश था, जितना अपनी शादी में भी न हुआ था.

आज 70 बरस की कजरी उस के साथसाथ पक्की सड़क पर सब के सामने लाललाल चप्पल पहने, धानी रंग की चुनरी ओढ़े ठाट से चल रही थी, मानो किसी बड़े घर की नईनई बहू ससुराल से मायके आई हो.

सोमरू आज अपनेआप को दुनिया का सब से रईस आदमी समझ रहा था.

दोनों घर वापस जाने के लिए स्टेशन आ गए. रात स्टेशन पर ही बितानी थी. ट्रेन सवेरे 5 बजे की थी. दोनों ने पास में बंधा हुआ खाना खाया और वहीं स्टेशन पर आराम करने लगे.

सोमरू सुबह टिकट लेने के लिए उठा. कजरी से बोला, ‘‘पैसे निकाल. टिकट ले लिया जाए. ट्रेन के आने का समय भी हो रहा है.’’

दोनों ने अपनेअपने पैसे निकाले और गिनने लगे. टिकट के लिए 40 रुपयों की जरूरत थी और दोनों के पास कुलमिला कर 38 रुपए ही हुए. अब वे क्या करें?

दोनों बारबार कपड़े, झोले को झाड़ते, सामान झाड़झाड़ कर देखते, कहीं से 2 रुपए निकल जाएं. पर पैसे होते तब न निकलते.

दोनों ऐसे भंवर में थे कि न डूब रहे थे, न निकल रहे थे. धीरेधीरे लोग उन के आसपास इकट्ठा होने लगे थे. दरअसल, रात को सोमरू ने 2 रुपए का तंबाकू खरीदा था और अब टिकट के लिए पैसे कम पड़ रहे थे.

कजरी की आंखों से आग बरस रही थी. उस ने सोमरू को गुस्से में कहा, ‘‘अब क्या करोगे? टिकट के लिए पैसे कम पड़ गए. अब घर क्या उड़ कर जाएंगे? तुम्हारी तंबाकू की लत ने…’’

बेचारा सोमरू क्या करे. जिस दर्द को वह पूरी जिंदगी ढोता रहा, उस ने आज इतनी दूर आ कर भी उस का पीछा नहीं छोड़ा था. कभी अपने आसपास लगी भीड़ को देखता, तो कभी अपनी बूढ़ी पत्नी को.

सोमरू का मन पछतावे से इस तरह छटपटा रहा था जैसे वह पूरे समाज के सामने चोरी करता पकड़ा गया हो. आज फिर 2 रुपयों ने सब के सामने उसे नंगा कर दिया था.

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