लंच टाइम में पुनीता के लंच का डब्बा खुलते ही औफिस में सभी खुश हो जाते. उस का लंचबौक्स सारी महिलाओं के लिए आकर्षण का केंद्र बिंदु हुआ करता था क्यों कि में हमेशा तरहतरह की स्वाददार चीज़ें होती. सब चकित रह जाते कि वह सुबह सुबह इतना सब कुछ कैसे बना लेती है.
तब एक दिन पुनीता ने इस का राज खोलते हुए कहा कि यह सब वह नहीं बनाती बल्कि उस की बहन बनाती है. औरतों में सुगबुगाहट शुरू हो गई. विभा ने तो सीधा सवाल ही दाग दिया," क्या बहन तेरे साथ ससुराल में रहती है?"
मुस्कुराते हुए पुनीता ने जवाब दिया; "अरे नहीं वह मेरी असली बहन नहीं बल्कि देवरानी है जो बहन से भी बढ़ कर है. वही बनाती है रोज मेरे और बच्चों के लिए टिफ़िन. "
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सुन कर सब चकित रह गए. " उस के पास इतना समय होता है? क्या वह जौब नहीं करती? "
"हां जी वह जौब नहीं करती मगर पूरा घर संभालती है. हम सब की दुलारी है. वह नहीं होती तो शायद इतनी आसानी से जौब नहीं कर पाती मैं. "
"वाह, यह तो बड़ी अच्छी बात है. आज के समय में कौन करता है किसी दूसरे के लिए इतना."विभा ने कहा.
"दूसरा या अपना क्या होता है? जिसे अपना मान लो वही सब कुछ है.एक बहन मायके में है तो एक ससुराल में भी तो होगी न " कह कर पुनीता मुस्कुराई.
वस्तुतः पुनीता सयुंक्त परिवार में रहती थी और अपनी देवरानी के साथ उस के अच्छे सम्बन्ध थे. पुनीता के पति की मौत हो चुकी थी मगर इस घर में कभी उसे अकेला रह जाने का अहसास भी नहीं हुआ. पूरा परिवार उस का साथ देता था.
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