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मध्य प्रदेश के 2 डैस्टीनेशन हैं खास

मौजूदा दौर में लोग पर्यटन के लिए धार्मिक स्थानों की सैर पर जाते हैं पर धार्मिक स्थलों पर अपनी दुकान लगाए बैठे मठाधीश और धर्म के ठेकेदार भक्तों को लूटने का कोई मौका नहीं छोड़ते. इन धर्मस्थलों पर वैसे भी भीड़भाड़, गंदगी और धक्कामुक्की के चलते पर्यटन का मजा ही किरकिरा हो जाता है. ऐसे में पर्यटन के लिए धार्मिक स्थलों पर जाने के बजाय किसी प्राकृतिक स्थल या ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्त्व के स्थलों पर जा कर पर्यटन का सही आनंद लिया जा सकता है.

पिछले दोतीन सालों में कोविड की वजह से लोगों को पर्यटन स्थलों पर जाने का मौका कम ही मिला है. ऐसे में आने वाले सीजन में बच्चों के साथ गरमी की छुट्टियां बिताने का प्लान आप बना रहे हों तो मध्य प्रदेश के 2 डैस्टीनेशन ऐसे हैं जो खुशियां दोगुनी कर देंगे. मध्य प्रदेश के महाकौशल क्षेत्र में भेड़ाघाट और पचमढ़ी इस लिहाज से घूमनेफिरने के लिए बढ़िया स्थल हैं.

मध्य प्रदेश में इटारसी-कटनी रेलखंड पर जबलपुर स्टेशन से महज 15 किलोमीटर दूर एक छोटा सा खूबसूरत नगर है भेड़ाघाट, जिसे मारवल सिटी के नाम से भी जाना जाता है. यहां के सफेद संगमरमर पत्थर से बनी मूर्तियां और उन पर की जाने वाली नक्काशी बरबस ही सब का ध्यान अपनी ओर खींच लेती है. यह जगह तब और खूबसूरत लगती है जब इन संगमरमर की सफेद चट्टानों पर सूर्य की किरणें और पानी पर छाया पड़ती है. तब, काले और गहरे रंग के ज्वालामुखीय समुद्रों के साथ इन सफेद चट्टानों को देखना सुखद अनुभव होता है.

इतना ही नहीं, चांदनी रात में यह और भी ज्यादा जादुई प्रभाव पैदा करती हैं. चांदनी रात में संगमरमर के रौक पहाड़ों के बीच होने वाली नाव की यात्रा पर्यटकों को आकर्षित करती है. अगर आप मनमोहक प्राकृतिक सुंदरता और झरनों का आनंद लेना चाहते हैं तो छुट्टियों में भेड़ाघाट जरूर जाएं.

भेड़ाघाट की खूबसूरती फिल्म निर्माताओं और कलाकारों को अपनी ओर खींचती रही है. यही कारण है कि बौलीबुड की कई हिट फिल्मों की शूटिंग यहां पर हुई है. फिल्म ‘अशोका’ में शाहरूख खान और करीना कपूर पर लोकप्रय गीत ‘रात का नशा अभी…’ नर्मदा नदी की संगमरमर की चट्टानों के बीच फिल्माया गया था.

2016 में हिंदी फिल्म ‘मोहन जोदारो’ में रितिक रोशन के मगरमच्छ से लड़ने के दृश्य भेड़ाघाट में फिल्माए गए हैं. इस से पहले वर्ष 1961 में राजकूपर और पद्मिनी द्वारा प्रदर्शित फिल्म ‘जिस देश में गंगा बहती है’ का सब से हिट गाना भी यहीं शूट किया गया था. हिंदी फिल्म ‘प्राण जाए पर वचन न जाए’ की शूटिंग भी भेड़ाघाट में हुई थी.

 

आंखों को सुकून देता ‘धुआंधार जलप्रपात’

गरमी की तपन में आंखों पर पड़ते पानी के छींटे अंतर्मन को भी शीतल कर देते हैं. कुछ ऐसा ही नजारा भेड़ाघाट के धुआंधार जलप्रपात को देखने पर महसूस होता है. 30-40 फुट की ऊंचाई से नर्मदा नदी जब पूरे वेग से चट्टानों से टकरा कर नीचे गिरती है तो जल की महीन बूंदों की धुंध पूरे वातावरण को नमी से भर देती है. प्रकृति के इस अनुपम दृश्य को सैलानी देखते रह जाते हैं.

भेड़ाघाट पर्यटन के प्रमुख आकर्षण संगममर की चट्टानें, धुआंधार जलप्रपात वाटर पार्क, एलेजर शो, एबोट राइडिंग, बैलेंसिंग रौक और चौंसठ योगिनी मंदिर हैं. धुआंधार जलप्रपात का सुंदर दृश्य भेड़ाघाट के सब से अच्छे पर्यटक आकर्षणों में से एक है. धुएं की तरह प्रतीत होता यह जलप्रपात, इंद्रधनुष के साथ भेड़ाघाट में एक अद्भुत नजारे के रूप में विख्यात है.

पूरे साल देशभर से पर्यटक यहां की खूबसूरती देखने आते रहते हैं. भेड़ाघाट की सैर के साथ जबलपुर का सी वर्ल्ड वाटर पार्क दोस्तों और परिवार के साथ समय बिताने के लिए अच्छा स्थल है. यहां बड़ों के अलावा बच्चों के लिए अलग से एक पूल है. यहां एडवैंचर वाटर राइड और रोलर कोस्टर की सवारी आप की ट्रिप में जान डाल देगी. यह वाटर पार्क सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे तक खुलता है. यहां एंट्री फीस दे कर वाटर पार्क में मौजमस्ती कर पूरा दिन बिताया जा सकता है.

बैलेंसिंग रौक जबलपुर सिटी से मात्र 2 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां एक दीर्घगोलाकार शिला आश्चर्यजनक ढंग से एक विशाल चट्टान पर अपने गुरुत्व केंद्र पर टिका हुआ है. यह भूतात्विक कारणों से अस्तित्व में आया. इस में मानव का कोई योगदान नहीं है. इस शिला की खासीयत यह है कि इस की विशालता, भार, कठोरता और सटीक गुरुत्व केंद्र होने के कारण आज भी यह अपनी मूल अवस्था में बना हुआ है. प्रकृतिप्रेमियों के लिए यह अच्छी जगह है. यहां आप 15-20 मिनट का समय बिता कर फोटो भी क्लिक कर सकते हैं.

भेड़ाघाट को विश्व के नक्शे में लाने की पहल के चलते यहां भेड़ाघाट के पंचवटी में लेजर शो शुरू किया गया है. इस लेजर शो के जरिए नर्मदा की गौरव गाथा से दुनिया का परिचय कराया जाता है. विश्व पटल पर संगमरमर की खूबसूरत वादियों की नई खूबियों से लोग परिचित होते हैं. भेड़ाघाट का चैासठ योगिनी मंदिर प्राचीन स्थापत्य कला का अद्भुत नमूना है. कलचूरी और गोंडवाना काल में बने इस प्राचीन मंदिर के कालम और ऊपर की छत विशालकाय पत्थरों से बनाई गई है.

 

बंदर कूदनी और रोपवे का मजा

शरद पूर्णिमा की रात में चंद्रमा की दूधिया रोशनी में नर्मदा नदी में नौका विहार कर यहां की खूबसूरती को निहारने का आनंद पर्यटन के मजे को दोगुना कर देता है. शांत और शीतल रात में चंद्रमा की शीतलता के नीचे नौका की सवारी करना बहुत सुकून देता है. नदी में नाव की सवारी के मजे लेते हुए इन चट्टानों के अद्भुत गठन को निहारने का मजा ही कुछ अलग है. दिलचस्प बात यह है कि ये चट्टानें हमें अलगअलग आकार में विभिन्न कलाकृतियों के रूप में नजर आती हैं.

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफैसर के के सेठ बताते हैं कि भेड़ाघाट में बंदर कूदनी नर्मदा की सब से गहरी घाटी है. लगभग 600 फुट गहराई वाले जलस्तर के बीच दोनों ओर चट्टानों की उंचाई 48 फुट है. दोनों तरफ की चट्टानों की आपस की दूरी 29 फुट है.

बंदर कूदनी के बारे में तो कहा जाता है कि बरसों पहले ये दोनों पहाड़ियां इतनी पास थीं कि एक ओर से दूसरी ओर बंदर कूद जाते थे, इसीलिए इसे बंदर कूदनी नाम दिया गया था, पर बाद में पानी के कटाव ने इन दोनों पहाड़ियों में काफी फासला कर दिया. बंदर कूदनी के ऊपर से रोप-वे के माध्यम से सैरसपाटे का सही आनंद मिलता है.

नीली, गुलाबी और सफेद संगमरमर की चट्टानों के बीच से बहने वाली नर्मदा घाटी का प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत है. सैकड़ों फुट ऊंची संगमरमरी पहाड़ियों के बीच बहने वाली नर्मदा की गहराई 100 फुट तक है. नौका विहार में लगने वाले एक घंटे के अंतराल में भूलभुलैया, बंदर कूदनी जैसे दर्शनीय स्थल हैं. भेड़ाघाट में पंचवटी घाट से नगर पंचायत द्वारा नौका विहार की व्यवस्था की गई है.

भेड़ाघाट पहुंचने के लिए आप को जबलपुर रेलवे स्टेशन से टैंपो, बस, औटोरिकशा तथा टैक्सियां आसानी से मिल जाती हैं. भेड़ाघाट में ठहरने के लिए मध्य प्रदेश पर्यटन निगम के होटल के साथ जबलपुर थ्रीस्टार होटल उपलब्ध है. यात्रा का आनंद लेने मध्य प्रदेश पर्यटन निगम के नंबरों (0761) 2830424, 2903854 या वैबसाइट mptourism.com पर संपर्क कर होटल में कमरे बुक किए जा सकते हैं.

 

सतपुड़ा की रानी है पचमढ़ी

गरमी की छुट्टियां घूमने के लिए सही समय होता है. कुछ लोग धार्मिक स्थलों की यात्रा कर अपना संचित धन पंडापुजारियों को लुटाते हैं तो कुछ लोग भीषण गरमी से नजात पाने के लिए प्रकृति की गोद में बसे हिल स्टेशनों पर जाने की प्लानिंग करते हैं.

मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम जिले के प्रसिद्ध हिल स्टेशन पचमढ़ी जाते समय इटारसी से रेलमार्ग द्वारा पिपरिया तक का सफर यात्रियों के रोमांच को दोगुना कर देता है. जब नर्मदा की सहायक तवा नदी की अथाह जलराशि पर बने पुल और सतपुड़ा पर्वतमाला के पहाड़ों की सुरंग से रेल गुजरती है तो एक अद्भुत रोमांच से मन प्रफुल्लित हो जाता है.

पिपरिया स्टेशन से सटे हुए बसअड्ढे पर पचमढ़ी जाने वाले यात्रियों को देखते ही बसों और टैक्सियों के एजेंट टूट सा पड़ते हैं. लक्जरी टू बाय टू की बस में सवार हो कर पिपरिया से पचमढ़ी की सड़कों पर बस के दौड़ने के साथ ऊंचेऊंचे अमलतास के पेड़ पीछे दौड़ते नजर आते हैं. पचमढ़ी तक की घुमावदार सड़कों और हरेभरे वनों से आच्छादित 55 किलोमीटर की दूरी तय करने में लगे डेढ घंटे का वक्त प्रकृति का सौंदर्य निहारते ही गुजर जाता है.

पचमढ़ी में रहने के लिए विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण के अलावा अन्य होटल भी हैं, जहां रुकने व खाने की उत्तम व्यवस्था है. यहां घूमने के लिए प्रतिदिन जिप्सी सफारी मिलती है. सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान के स्थलों के भ्रमण के लिए फौरेस्ट विभाग द्वारा गाइड की सुविधा भी उपलब्ध रहती है. 3 दिन यहां ठहर कर सभी दर्शनीय स्थलों को आसानी से देखा जा सकता है. यहां के दर्शनीय स्थल देखने के लिए पर्याप्त संख्या में जीप व टैक्सियां तो उपलब्ध होती ही हैं, पर्यटक चाहें तो स्कूटर या मोटरसाइकिल किराए पर ले कर भी सैरसपाटे का मजा ले सकते हैं.

पचमढ़ी दर्शन की शुरुआत उन स्थानों से करें जहां घूमने के लिए फौरेस्ट विभाग की एंट्री नहीं लगती. पचमढ़ी कसबे से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर जटाशंकर गुफा है. यहां तक पहुंचने के लिए कुछ दूर तक पैदल चलना पड़ता है. विशालकाय चट्टानें और उन का अजब का संतुलन यहां देखने मिलता है. जटाशंकर से लौटने पर सीढ़ियां चढ़ते थकान हो जाती है. ऐसे में रास्ते में नीबू पानी की छोटीछोटी दुकानें हमारे गले को तर करती हैं जो इन लोगों की रोजीरोटी का साधन जुटाती हैं.

पचमढ़ी के घुमावदार रास्तों से गुजरते सतपुड़ा पर्वत श्रेणियों से घिरे सुरम्य और घने जंगलों के बीच कलकल करते झरनों और ऊंचीऊंची पहाड़ियों ने पचमढ़ी का अलौलिक श्रंगार किया है, जिस के कारण ही इसे सतपुड़ा की रानी कहा जाता है.

समुद्र तल से 1,067 मीटर की उंचाई पर सतपुड़ा राष्ट्रीय उद्यान की गोद में होने के कारण  यहां के जंगलों में सदाबहार हरियाली घास और हर्रा, जामुन, साज, साल, चीड़, देवदार, सफेद ओक, यूकेलिप्टस, गुलमोहर, जेकेरेंडा और अन्य छोटेबड़े सघन वृक्षों से आच्छादित वन नजर आते हैं. गलियारों तथा घाटियों के कारण इस की प्राकृतिक सुंदरता को देखने पर स्कूली पाठ्यक्रम में पढ़ी कवि भवानी प्रसाद मिश्र की कविता सतपुड़ा के घने जंगल जेहन में उतर आती है-

झाड़ ऊंचे और नीचे

चुप खड़े हैं आंख मींचे

घास चुप है, काश चुप है

मूक साल, पलाश चुप है

बन सके तो धंसों इन में

धंस न पाती हवा जिन में

सतपुड़ा के घने जंगल

नींद में डूबे हुए से

डूबते अनमने जंगल

प्रकृति के अलगअलग अजूबे.

 

पचमढ़ी में प्रकृति का ही बनाया हुआ एक ऐसा अजूबा भी है जिसे देख पर्यटकों को अचरज होता है. इस का नाम है हांडी खोह अर्थात अंधी खोह. यह लगभग 300 फुट गहरी कगार है जिस के दोनों ओर की चट्टानें किसी दीवार के समान सीधी खड़ी हैं. इन दीवारों पर हरीतिमा का साम्राज्य है. रेलिंग के सहारे खड़े सैलानी अपनी आंखों से तो खोह की गहराई का अनुमान नहीं लगा पाते लेकिन यदि वे उस में कोई पत्थर आदि फेंकते हैं तो उस के तलहटी तक पहुंचने की आवाज काफी देर बाद सुनाई पड़ती है.

हांड़ी खोह से आगे बढ़ो तो महादेव गुफा पहुंचते हैं. गुफा में एक लंबा सा कुंड है, गुफा के ऊपरी भाग की चट्टानों से गिरने वाला शीतल खनिज जल गरमी के मौसम में सैलानियों को शांति प्रदान करता है. यहां जाते समय सैलानियों को सावधानी रखनी चाहिए क्योंकि यहां रहने वाले लंगूर सैलानियों के हाथ से खानेपीने की वस्तुओं के साथ बैग, पर्स, स्कार्फ भी छीन कर ले जाते हैं. इस से कुछ दूर गगुप्त महादेव नाम से संकरी गुफा है जो लगभग 40 फुट लंबी है. इस गुफा में एक बार में एक ही व्यक्ति प्रवेश कर सकता है. अंदर कुछ खुला सा स्थान है जहां शिवलिंग व गणेश प्रतिमा स्थित हैं. वहां सूर्य का प्रकाश तनिक भी नहीं पहुंचता. अंदर बैटरी इनवर्टर द्वारा लाइट की व्यवस्था की गई है.

 

पचमढ़ी की 5 मढ़ियां

पचमढ़ी में 5 गुफाएं एक ऊंची पहाड़ी पर बनी हुई हैं, जिन्हें महाभारतकालीन माना जाता है. उन में द्रौपदी कोठरी और भीम कोठरी में पत्थरों पर की गई नक्काशी देखते ही बनती है. महाभारत काल में पांडवों द्वारा अज्ञातवास के लिए बनाई गई 5 गुफाओं के कारण ही इस का नाम पचमढ़ी पड़ा है. कहा जाता है कि पांडवों ने इन्हीं गुफाओं में अपना बसेरा बनाया था. ऊंचाई पर स्थित इन गुफाओं तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं.

प्राचीन काल में रेतीली चट्टान में अपनेआप बन गईं इन गुफाओं को आज बाहर से ही देखा जा सकता है. आम पर्यटकों द्वारा ऐतिहासिक स्थलों पर नाम लिखने या दीवारों का सौंदर्य बिगाड़ने की प्रवृत्ति के चलते और इन्हें गंदगी से बचाने के लिए प्रशासन द्वारा इन गुफाओं को संरक्षित स्मारक मान कर लोहे की जालियों से बंद कर दिया गया है.

गुफाओं के सामने एक पार्क है. पांडव गुफाओं के ऊपर से नीचे देखने पर पचमढ़ी के प्राकृतिक सौंदर्य का मनोहारी रूप देखने को मिलता है. गुफाओं के ऊपर पाए गए स्तूप के अवशेषों से पता चलता है कि चौथीपांचवीं शताब्दी में बौद्ध भिक्षुओं ने इन का प्रयोग बौद्ध मठ के रूप में भी किया था.

 

क्रीड़ाएं जल की

पचमढ़ी में सतपुड़ा पर्वत की पहाड़ियों से निकले झरने और तालाब भी खूबसूरत लगते हैं. यहां के अप्सरा विहार का नजारा देखने लायक रहता है. पक्की सड़क से करीब डेढ़ किलोमीटर पैदल कच्चे मार्ग पर चल कर अप्सरा विहार तक पहुंचना पड़ता है. हरेभरे जंगल के पेड़ों के मध्य से सरसराती शीतल हवा पूरे वातावरण में एक अजीब सी सनसनाहट उत्पन्न कर देती है.

यह एक आदर्श पिकनिक स्पौट लगता है जहां पर एक आकर्षक झरना है जिस के आगे छोटा सा तालाब भी है. यह झरना लगभग 15 फुट ऊंचाई से गिरता है. अप्सरा विहार से करीब 15 मिनट का मार्ग तय कर सैलानी रजत प्रपात तक पहुंचते हैं. वही धारा आगे पहुंच कर रजत प्रपात का रूप ले कर 350 फुट नीचे गिरती है. चांदी सी चमकती जलधारा के कारण इसे सिल्वर फौल भी कहते हैं. इस जलप्रपात के नीचे नहाने और फोटोग्राफी का आनंद पर्यटक उठाते हैं.

नगर से 3 किलोमीटर दूरी पर अन्य जलप्रपात भी है जिसे बी फौल कहते हैं. यहां जाने के लिए कुछ पैदल और सीढ़ियां चढ़नीउतरनी पड़ती हैं. बी फौल में 200 फुट ऊंचाई से गिरते जल की ध्वनि कानों को सुकून देती है. पिकनिक आदि के लिए यह सुरक्षित जगह है. यहां झरने में घंटों नहाना गरमी से राहत दिलाने के साथ सफर की थकान भी भगा देता है.

पचमढ़ी के डचेस फौल की खूबसूरती का भी एक अलग ही आलम है. इस प्रपात के सौंदर्य को निहारने के बाद सैलानी जलधारा को पार कर दक्षिणपश्चिम दिशा में बढ़ते हैं, जहां एक पानी का कुंड है जिसे सुंदर कुंड कहते हैं. यह जम्बुद्वीप धारा से बना एक छोटा तालाब है जहां तैराकी का लुत्फ उठाया जा सकता है.

बच्चे जब होस्टल से घर आएं तो उन्हें मेहमान न बनाएं

नुपूर की मां की तबीयत थोड़ी खराब रहती थी तो वे उम्मीदकर रही थीं कि बेटी घर आएगी तो उन्हें कुछ आराम मिलेगा, यानी बेटी उन के काम में हाथ बंटाएगी. लेकिन बेटी कुछ कहने पर भड़क जाती.

वह  कहती कि घर पर भी इंसान थोड़ी आजादी से नहीं रह पाता. हर बात पर टोकाटाकी. नुपूर की मां ने सोचा कि घर में शांति बनी रहे, इसलिए बेटी से कुछ कहना ही छोड़ दिया. उस का मन करे सोए या जागे. लेकिन जल्द इस खातिरदारी से वे थकने लगीं.

इंजीनियरिंग तृतीय वर्ष का छात्र रक्षित 2 महीने की लंबी छुट्टियों में  होस्टल से घर आया था. कई दिनों से उस के मम्मीपापा उस का इंतजार कर रहे थे. लेकिन वह घर आ कर अलगथलग रहने लगा था. दोपहर तक सोता रहता, पापा कब दफ्तर जाते हैं, उसे पता ही नहीं चलता. मम्मी नाश्ता ले कर उस का इंतजार करतीं कि कब वह सो कर उठे और वे सुबह के कामों से फारिग हों, जब खाना खाने बैठता तो काफी नखरे करता.

रात को जब सब सोने चले जाते तो वह देररात तक जागता रहता. पेरैंट्स के साथ कुछ मदद करना तो दूर, वह उलटा उन के रूटीन को बिगाड़ उन से अपेक्षा करता कि उसे कोई कुछ न कहे.

ऐसा व्यवहार एकदो घरों में ही नहीं, बल्कि आजकल सभी घरों में आम हो चला है. बच्चों पर आरोप लगते हैं कि वे तो खुद को नवाब समझते हैं. शुरू में लाड़प्यार में मातापिता को भी अच्छा लगता है कि बच्चा थक कर आया है, कुछ दिन आराम करे. पर बच्चों को यह एहसास ही नहीं होता कि उन का भी कुछ फर्ज बनता है. जिस तरह वे बचपन में हर चीज के लिए मां पर निर्भर रहते थे, वही सोच उन की अब भी बरकरार रहती है.

जिम्मेदारियों का एहसास कराएं

उन के घर से बाहर जाने पर इन वर्षों में मां पर भी उम्र की चादर चढ़ी है, यह उन्हें पता ही नहीं चलता. मां भावनाओं में बहती हुई स्नेहवश अपनी क्षमता से अधिक उसी तरह बच्चों की देखभाल और सेवा करती नहीं अघाती है, जैसे करती आई है.

ऐसा नहीं है कि सभी बच्चे आलसी और स्वार्थी होते हैं. जिन घरों में होस्टल या नौकरी से आए हुए बच्चों के साथ मेहमान की तरह नहीं, बल्कि घर के सदस्य की तरह व्यवहार किया जाता है, वहां बच्चे वक्त के साथ घर के प्रति अपनी जिम्मेदारियों से भी अपडेट होते रहते हैं.

समृद्धि की मां का पेट का औपरेशन हुआ था. उन्हें आराम की सख्त जरूरत थी, उसी दौरान समृद्धि के कालेज की लंबी छुट्टियां हो गईं. समृद्धि हर छुट्टी की तरह इन छुट्टियों में भी देर तक सोने व घर के कामों से दूर रहने की फिराक में थी. दरअसल, उसे एहसास ही नहीं था कि उस की मां इस बार काम करने में असमर्थ हैं. 2-3 दिनों के बाद समृद्धि के पापा ने कड़े शब्दों में उसे उस की जिम्मेदारी का एहसास करवाया.

पापा के खुल कर समझाते ही उस का दिमाग मानो ठिकाने पर आ गया. फिर तो समृद्धि ने घर की सारी जिम्मेदारियां संभाल लीं और अपनी मां को पूरी तरह आराम करने दिया. उस की छुट्टी खत्म होने तक जहां समृद्धि की मां स्वस्थ हो गई थीं, वहीं वह भी इस दौरान रसोई और घर के कई काम सीख चुकी थी, जो जीवन में उसे बहुत काम आए.

हेमंत और हेमा जब भी लंबी छुट्टियों में घर आते तो दोनों भाईबहन अपनी मां को व्यस्त रखते. दोनों मम्मी से नईनई फरमाइशें करते. लेकिन इस बार मम्मी ने अपनी शर्त रख दी कि वे तभी उन की पसंद की डिशेज बनाएंगी जब वे दोनों उन की मदद करेंगे. दोनों ने काफी नानुकुर की क्योंकि ज्यादातर समय वे या तो सोते रहते या फिर अपने मोबाइल पर व्यस्त रहते और मां उन की फरमाइशों में व्यस्त रहतीं. नतीजा उन के जाने के बाद वे अकसर बीमार पड़ जातीं.

लेकिन इस बार उन्होंने ठान रखी थी कि उन्हें घर के रूटीन वर्क में शामिल करना है. आखिर उन्होंने सहयोग करना शुरू किया. पहले तो बेमन से, लेकिन फिर दोनों भाईबहन पूरी तत्परता से मां के साथ हाथ बंटाने लगे.

सब्जी लाने से ले कर रसोईघर में स्पैशल डिश बनाने के दौरान वे साथ रहते. एक तरफ जहां मां को आराम मिला वहीं दूसरी ओर उन के दिलों के राज और ख्वाइशों से भी वे परिचित हो गईं.

आनंदमोहन तो बेटे के आते ही उसे कई काम सौंप देते हैं, जैसे बिल पेमैंट्स, कार सर्विसिंग या फिर घर की मरम्मत करना आदि.

कहने का मतलब है कि होस्टल या नौकरी से आने वाले ग्रोनअप बच्चों को यह एहसास होना चाहिए कि वे होटल में नहीं, बल्कि घर आए हैं और भविष्य की जिम्मेदारियों की ट्रेनिंग लेनी भी जरूरी है. संयुक्त परिवारों के इतर एकल परिवारों में जब बच्चे आते हैं तो खुशी के मारे पेरैंट्स कुछ सनक सा जाते हैं. खुशी के अतिरेक में वे बच्चों की बिलकुल मेहमानवाजी ही करने लगते हैं.

बच्चों का प्यार से घर में स्वागत सही है पर यही वह समय होता है जब एक बच्चा घरसंसार की बातें सीखता है. बच्चों को अपने बदलते स्वास्थ्य और आर्थिक स्थिति से भी रूबरू कराते रहें. वे घर के सदस्य हैं, उन्हें किसी भ्रम में नहीं रखना चाहिए. दरअसल, बच्चों से बातें छिपा कर हम भी उन्हें बेगाना बनाते हैं.

जिम्मेदारियों का बोध कराना जरूरी है. वरना बेटा हो या बेटी, वे मेहमानों की ही तरह आतेजाते रहेंगे और धीरेधीरे अपनी ही दुनिया में रमते जाएंगे.

YRKKH: अबीर को बचाने के लिए हर हद पार करेगी अक्षरा ,देखें वीडियोज

स्टार प्लस का लोकप्रिय सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है सबसे लंबा चलने वाला सीरियल है, इस सीरियल में लगातार नए-नए ट्विस्ट आते रहते हैं. इस सीरियल को देखने वाले दर्शकों की भी कमी नहीं हैं.

इन दिनों सीरियल में दिखाया जा रहा है कि समय के साथ अक्षरा अपने पति अभिनव और बेटे के साथ आगे बढ़ती है. वहीं अभिमन्यु को ये पता नहीं है कि अभीर उसका बच्चा है, उसे लगता है कि अभिनव का बच्चा है यह.

 

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हालांकि जल्द ही इस रहस्य का खुलासा होने वाला है, क्योंकि अभीर उदयपुर लौटने वाला है, अभीर के दिल में छेद है, उसकी दिल की सर्जरी की जा रही है, डॉक्टर कहता है कि उसे सिर्फ अभिमन्यु ही बचा सकता है. जिसके बाद से अभिमन्यु उसकी सर्जरी के लिए आता है. अभिनव अपने बेटे की सर्जरी के लिए तुरंत फैसला लेता है कि बेटे की सर्जरी में देर नहीं करनी है.

वहीं अक्षरा को जैसे ही इस बात का पता चलेगा वह अपने बेटे के लिए अभिमन्यु से मदद मागेंगी, इस दौरान सीरियल में पुराने राज खुल जाएंगे, अभिमन्यु अपने अतीत को याद करेगा .उसे पता चल जाएगा कि वहीं अभीर का पिता है.जिसके बाद से वह अपने बेटे और पत्नी को देखकर खूब रोएगा.

राइजोबियम कल्चर का दलहन उत्पादन में महत्व

मृदा में विभिन्न प्रकार के सूक्ष्म जीवों की असंख्य मात्रा पाई जाती है. इन में से कुछ सूक्ष्म जीव फसल उत्पादन में लाभप्रद तथा अन्य हानिकारक पाए गए हैं. पादप वृद्धि एवं पैदावार बढ़ाने वाले अनेक सूक्ष्म जीव जैसे राइजोबियम, ब्रेडी राइजोबियम, एजोटोबैक्टर, फास्फेट विलेंयीकारक सूक्ष्म जीव प्रमुख रूप से किसानों द्वारा प्रयोग में लाए जा रहे हैं. ये सूक्ष्म जीव अनेक प्रकार से फसल उत्पादन में सहायता करते हैं. सब से प्रमुख सूक्ष्म जीव राइजोबियम है जिस का प्रयोग सर्वाधिक रूप में प्रचलित है और इस को राइजोबियम कल्चर अथवा राइजोबियम निवेश द्रव्य के नाम से बाजार में बेचा किया जाता है. इस में राइजोबियम जीवाणु दलहनी फसलों की जड़ों में सहजीवी के रूप में रह कर वायुमंडलीय नाइट्रोजन के स्थिरीकरण का काम करते हैं.

कल्चर या जीवाणु खाद में उपस्थित राइजोबिया दलहनी फसलों की जड़ों में गांठें बनाते हैं, जो हलके गुलाबी रंग की होती हैं. इन्हीं गांठों के अंदर वायुमंडल की नाइट्रोजन स्थिरीकरण क्रिया द्वारा एकत्र होती रहती है, जो पौधों को उपलब्ध होती रहती है. राइजोबियम की विशेष प्रजाति ही किसी विशेष दलहनी फसलों की जड़ों पर ग्रंथिकरण करने की क्षमता रखती है. लिहाजा, हर दलहनी फसल के लिए एक अलग प्रकार का राइजोबियम कल्चर होता है. दलहनी फसलों पर गांठें बोने की क्षमता के आधार पर राइजोबियम प्रजातियों को 7 मुख्य भागों में बांटा गया है. सामान्यत: मिट्टी में प्राकृतिक रूप से ये बैक्टीरिया पाए जाते हैं, लेकिन इन राइजोबियम से अच्छे परिणाम नहीं मिलते हैं.

यदि किसी खेत में कोई दलहनी फसल पहली बार बोई जा रही हो या काफी समय से नहीं बोई गई हो, तो इस स्थिति में बीज को राइजोबियम कल्चर से अवश्य उपचारित करें, तभी बोआई करें. कभीकभी यह निश्चित नहीं रहता कि मृदा में उपस्थित जीवाणु प्रभावशाली हैं या नहीं हैं, इसलिए इस अनिश्चितता को दूर करने के लिए एवं अधिक पैदावार लेने के लिए यह आवश्यक है कि बीज को प्रत्येक वर्ष राइजोबियम कल्चर से उपचारित करें. इस कल्चर के प्रयोग करने से अधिक पैदावार होने के साथसाथ फसल उत्तम गुणवत्ता वाली होती है. कल्चर के प्रयोग से लगभग 50-100 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर जमीन में बढ़ाई जा सकती है एवं 10-30 प्रतिशत तक पैदावार बढ़ती है राइजोबियम जैव उर्वरक के प्रयोग से निम्नलिखित लाभ होते हैं :

* एक वर्ष में औसतन 50-100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण होता हैं जो अगली फसल के द्वारा भी उपयोग में लाई जाती है.

* दलहनी फसलों की नाइट्रोजन की मांग को प्राकृतिक रूप से पूरा करने में सहायता मिलती है.

* राइजोबियम जैव उर्वरकों के प्रयोग से भूमि की उर्वराशक्ति में वृद्धि होती है.

* राइजोबियम जैव उर्वरकों के प्रयोग से न केवल नाइट्रोजन की उपलब्धता में वृद्धि होती है, बल्कि अन्य विकासवर्द्धक रसायन जैसे इंडोल एसिटिक एसिड, जिब्रेलिक एसिड तथा साइटोकाइनिन की भी उपलब्धता बढ़ती है.

* राइजोबियम जैव उर्वरक का प्रयोग अन्य कार्बनिक एवं अकार्बनिक उर्वरकों की अपेक्षा सुविधजनक एवं सस्ता होता है.

* राइजोबियम जैव उर्वरकों के प्रयोग से मृदा अथवा फसल पर कोई कुप्रभाव नहीं पड़ता है. * राइजोबियम जैव उर्वरकों के प्रयोग से फसलोत्पादन के 15-25 प्रतिशत की वृद्धि होती है.

* राइजोबियम जैव उर्वरकों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना बहुत आसान है. उर्वरकों का प्रयोग दलहनों के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट या दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है. इन की खेती के लिए लगभग उदासीन (पीएच मान 6.5 से 7.5 तक) मिट्टी उपयुक्त होती है. मृदा में वायु का पर्याप्त संचार होना भी आवश्यक है, इसलिए मिट्टी का भुरभुरी होना उत्तम रहता है. भूमि की इस दशा को प्राप्त करने के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करनी चाहिए. इस के पश्चात 2 जुताई के बाद पाटा लगा कर खेत को भलीभांति समतल बना लेना चाहिए, जिस से किसी स्थान पर पानी का ठहराव न हो. दलहनी फसलों में नाइट्रोजन यौगिकीकरण की अद्भुत क्षमता होती है.

नाइट्रोजन यौगिकीकरण का कार्य इन की जड़ों पर पाई जाने वाली ग्रंथियों में राइजोबियम नामक जीवाणु द्वारा किया जाता है. राइजोबियम जीवाणुओं द्वारा जड़ों पर ग्रंथियों के निमार्ण एवं कार्य करने में कुछ समय लगता है, इसलिए फसल की आरंभिक दिनों की आवश्यकता की पूर्ति के लिए 15-20 किलोग्राम नाइट्रोजन उर्वरक द्वारा बोआई के समय प्रयोग किया जाना चाहिए. जैव उर्वरक की 200 ग्राम मात्रा 10 किलोग्राम बीजों को उपचारित करने के लिए पर्याप्त होती है. राइजोबियम से बीजोपचार करने के लिए जैव उर्वरक की आवश्यक मात्रा का 300 मिलीलिटर साफ व ठंडे पानी में गाढ़ा घोल बना कर उसे 10 किलोग्राम बीज के ऊपर फैला कर हाथों की सहायता से भलीभांति मिलाते हैं, जिस से सभी बीजों के ऊपर जैव उर्वरक की एक समान परत चढ़ जाए.

उपचारित बीजों को कुछ देर छाया में सुखा कर बोआई कर देनी चाहिए. जैव उर्वरक उपचार संबंधी विधि एवं सावधानियां पैकेट पर लिखी गई होती हैं. उन का पालन अवश्य करना चाहिए. दलहनों के लिए फास्फोरस तत्त्व की अपेक्षाकृत अधिक आवश्यकता होती है. फास्फोरस जड़ों के विकास, राइजोबियम जीवाणुओं द्वारा जड़ों पर ग्रंथियों के निमाण एवं नाइट्रोजन यौगिकीकरण क्रिया के लिए आवश्यक है. इस की पूर्ति के लिए भूमि जांच के परिणाम अनुसार बोआई के समय फास्फोरस उर्वरकों का प्रयोग किया जाना चाहिए. यदि किसी कारण भूमि जांच संभव न हो तो 40 किलोग्राम फास्फोरस तत्त्व का प्रयोग सिंगल सुपर फास्फेट उर्वरक के द्वारा किया जाना चाहिए.

इस उर्वरक में लगभग 12 प्रतिशत गंधक भी होती है. दलहनों को गंधक तत्व की भी आवश्यकता होती है, जो सिंगल सुपर फास्फेट उर्वरक द्वारा बिना किसी अतिरिक्त लागत के प्राप्त हो जाती है. प्रयोग करने में सावधानियां

* जीवाणु कल्चर किसी मान्यताप्राप्त संस्थान से ही खरीदें तथा पैकेट पर लिखी अंतिम तिथि व फसल का नाम अवश्य देख लें.

* कल्चर का भंडारण ठंडे स्थान पर ही करें.

* पैकेट पर लिखे दिशानिर्देशों का पालन करें.

* घोल बनाने के लिए पानी को निर्जीवीकृत किया जाना आवश्यक होता है. ऐसा न करने से पानी में स्थित जीवाणु कल्चर के जीवाणुओं को हानि पहुंचा सकते हैं.

* कल्चर को रासायनिक खादों तथा कृषि रसायनों के साथ न मिलाएं.

* यदि बीज को किसी पारायुक्त रसायन से उपचारित करना हो तो पहले रसायन का प्रयोग कर लें, उस के बाद कल्चर से उपचारित करें. इस के लिए कल्चर की दोगुनी मात्रा का प्रयोग करना चाहिए.

* यदि मिट्टटी अम्लीय हो तो कल्चर से उपचारित बीजों पर पहले चूने की और यदि भूमि क्षारीय है तो जिप्सम की परत चढ़ा कर ही बोआई करें.

* पैकेट को उपचारित करते समय ही खोलना चाहिए तथा उपचारित बीजों को तुरंत बो दें धूप में न रखें, क्योंकि धूप में जीवाणुओं के मरने की संभावना अधिक रहती है.

* उपचारित बीज तथा मृदा रासायनिक उर्वरक सीधे संपर्क में न आने पाएं, इसलिए रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बोआई के समय न किया जाए.

* बोआई के उपरांत बचे हुए बीजों को खाने के उपयोग में नहीं लाना चाहिए. कहां से प्राप्त करें आजकल इस प्रकार के कल्चर का उत्पादन बहुत सी सरकारी तथा अर्धसरकारी संस्थानों एवं निजी कंपनियों द्वारा किया जा रहा है.

कल्चर को खरीदते समय उस की गुणवत्ता तथा उस का विश्वसनीय होना अति आवश्यक है, इसलिए यदि किसी निजी कंपनियों से कल्चर खरीदें तो उस पैकेट पर भारतीय मानक ब्यूरो का आईएसआई मोनोग्राम जरूर देख लें. साथ ही उस की अंतिम तिथि एवं किस फसल में प्रयोग करना है, इत्यादि को सावधानीपूर्वक पढ़ लेना चाहिए.

लेखक-डा. आरएस सेंगर, डा. रेषू चौधरी 

तुनीषा शर्मा को यादकर 99 दिन बाद शीजान खान ने लिखा इमोशनल नोट

तुनीषा शर्मा सुसाइड केस में एक नया मोड़ आया है, टीवी एक्टर शीजान जेल से जमानत पर बाहर आ गए हैं. शीजान के बाहर आ गए हैं. बता दें कि 4 मार्च को वसई कोर्ट ने उन्हें जमानत दे दिया है. अब एक्टर ने महीने भर बाद अपनी एक्स गर्लफ्रेंड को यादकरके उनकी कुछ पुरानी तस्वीरों के साथ में फोटो शेयर किया है.

बता दें कि 10 दिसंबर को तुनीषा ने सुसाइड कर लिया था, उनकी मौत के इल्जाम में वह पिछले 10 हफ्तों तक सलाखों के पीछे गुजारे हैं. जिसके बाद से एक्टर को एक बार फिर से अपनी गर्लफ्रेंड कि याद आ गई है. शीजान ने तुनीषा के साथ बिताए पुराने पलों को याद किया है. साथ ही भावुक होकर लंबा पोस्ट लिखा है.

 

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शीजान खान ने इंस्टाग्राम पर एक रील शेयर किया है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि एक खूबसूरत परी उसकी लाइफ में आई और उसे बीच रास्ते में छोड़कर चली गई. शेयर किए हुए वीडियो में साफ देखा जा सकता है कि शीजान और तुनीषा एक-दूसरे के साथ काफी ज्यादा मस्ती करते नजर आ रहे हैं.

हालांकि तुनीषा की मां ने शीजान पर आरोप लगाए थें कि उनकी बेटी ने शीजान की वजह से सुसाइड किया है.

अपनी सुरक्षा खुद करें , कैरी करें ये सेफ्टी टूल्स

बात जब लड़कियों या महिलाओं की सुरक्षा की आती है तो हर कोई चिंतित हो जाता है क्योंकि आए दिन बढ़ते छेड़ छाड़ ,दुष्कर्म ,मर्डर जैसे हादसों ने सभी के दिलों में उनकी सुरक्षा को लेकर दहशत फैला दी है घर से बाहर जाते समय उनके मन में भय बना रहता है कि कही वो किसी हादसे की शिकार न हो जाएं। चाहे स्कूल जाने वाली लड़की हो,ऑफिस जाने वाली या घर से बाहर ट्रेवेल करने वाली महिला हर किसी के जहन में अपनी सेफ्टी को लेकर चिंता रहती है ऐसे में जरूरी है कि हर महिला को आत्मनिर्भर होना चाहिए। खुद को इतना काबिल बनाना चाहिए कि हम मुसीबत के समय में डटकर सामना कर सकें और यह तभी संभव है जब आपको खुद पर भरोसा होगा। आज हम आपको कुछ ऐसे सेफ्टी टूल्स के बारे में बताने जा रहें हैं जिन्हें आप आसानी से अपने साथ हैंड बेग में केरी कर सकती है और जरूरत पड़ने पर आसानी से इनका हथियार के रूप इस्तेमाल भी कर सकती हैं। लेकिन इनका प्रयोग आप तभी कर पाएंगी जब मुसीबत के समय मे आप अपनी समझदारी और आत्मविश्वास को डगमगाने नहीं देंगी। इसलिए हमेशा हिम्मत के साथ इन सेफ्टी टूल्स का इस्तेमाल कर आप अपनी या किसी जरूरतमंद की रक्षा कर सकती हैं।

स्विस नाइफ/नैल कटर

महिलाएं घर में सब्जी काटते समय बड़ी ही होशियारी से चाकू चलाती है लेकिन यही चाकू घरेलु काम कि जगह आप अपनी सुरक्षा के लिए भी इस्तेमाल कर सकती है। आप स्विस नाइफ या नैल कटर के जरिए हमलावर पर तुरंत पलटवार कर सकती हैं। यह साइज में छोटा होता है जो कि आसानी से आपके पर्स में आ सकता है। लेकिन इसके ब्लेड काफी तेज़ धार के होते हैं जो किसी के भी शरीर में तुरंत चुभ सकते हैं और आप खुद कि रक्षा कर सकती हैं ।

कैंची

कैंची का इस्तेमाल यूँ तो कपड़े या काग़ज़ काटने के रूप मे आपने किया ही होगा लेकिन यदि आप इसे अपनी सुरक्षा के रूप मे प्रयोग करती हैं तो यह किसी अपराधी के गलत मंसूबों को काटने का भी दम रखती है। यह अपनी सुरक्षा करने के लिए एक बेहतर हथियार है। इसे आसानी से अपने पर्स मे रख सकती हैं।

स्प्रे

पेपर स्प्रे या मिर्ची स्प्रे के बारे में आपने सुना होगा। जिस तरह रसोई मे काम krte समय यदि गलती से मिर्च आंख मे लग जाए तो हमें जलन होने लगती है उस तरह इस स्प्रे का उपयोग सीधे हमलावर पर कर सकती हैं, जिससे उसकी त्वचा में जलन होगी और तकरीबन 30 मिनट तक अपनी आंखें खोल नहीं पाएगा। इसे आप पॉकेट या पर्स में आसानी से रख सकती हैं।

एंजल विंग अलार्म

एंजल विंग अलार्म एक तेज ध्वनि वाला डिवाइस है यह उपयोग करने में बहुत सुविधाजनक है इस तरह के अलार्म को 400 मीटर तक सुना जा सकता है।मुसीबत के समय में आप सिर्फ इसका बटन दबा देती है तो इसकी आवाज सुनकर भी कोई आपकी मदद के लिए आ सकता है। साथ ही इसकी तेज़ आवाज़ से कान के पर्दे भी फट सकते हैं क्योंकि हर कोई इसकी आवाज़ नहीं सहन कर सकता।

कालगर्ल : आखिर उस लड़की में क्या था कि मैं उसका दीवाना हो गया?

देवरानी और जेठानी : बदल रहे हैं रिश्तों के माने

आज सुबह से ही मेरी पड़ोसन शोभा के यहां उठापटक हो रही थी. जब सुबह दूध लेते वक्त मेरी उन से मुलाकात हुई तो मैं ने इस उठापटक की वजह पूछी.

वे जोश से भर कर बोलीं, ‘‘आज दोपहर को मेरे जेठजेठानी अपने परिवार समेत आ रहे हैं. बस, हम उन्हीं के स्वागत की तैयारी में बिजी थे.’’

बातों ही बातों में उन्होंने बताया कि कैसे पिछले हफ्ते से ही वे जेठानी के परिवार के हर सदस्य का मनपसंद खाना बनाने और उपहार लाने में मसरूफ थीं.

पड़ोसन की बातें सुन कर मुझे अपनी मां की याद आ गई कि जब ताईजी और ताऊजी आने वाले होते थे तो कैसे मां थरथर कांपने लगती थीं और ताईजी के आने के बाद अपने ही घर में मम्मी की जगह जीरो हो जाती थी, पर आज शोभा की बातें सुन कर नए जमाने की देवरानीजेठानी के रिश्ते की यह नई बहार मेरे मन को बड़ा सुकून दे गई.

हकीकत में आज के इस नए जमाने की बहुएं देवरानीजेठानी के बजाय सहेली और बहनें बन कर रहना ज्यादा पसंद कर रही हैं. पुरानी दकियानूसी सोच को छोड़ कर वे आज एकदूसरे की साथी बन कर समाज में इस रिश्ते को नया रूप दे रही हैं.

आज तकनीक का जमाना है. इस में एकदूसरे से जुड़े रहने के अनेक साधन हैं. इन का इस्तेमाल भी आज की औरतें अपने रिश्तों को मजबूत करने में बखूबी कर रही हैं.

मुंबई की रहने वाली अणिमा की बेंगलुरु में रहने वाली जेठानी खाना बनाने में माहिर हैं. अणिमा अकसर वीडियो कौलिंग कर के अपनी जेठानी से नईनई रैसिपी पूछती रहती है. साथ ही, उस ने कोशिश कर के अपनी जेठानी का कुकिंग का यूट्यूब चैनल भी बनवा दिया है, जिस से जेठानी भी घर बैठे अच्छीखासी कमाई कर लेती हैं. दोनों दूर रह कर भी एकदूसरे की साथी बन गई हैं.

विविधा की ससुराल में 2 जेठानियां और सास थीं. दोनों जेठानियां कम पढ़ीलिखी थीं, जबकि विविधा शादी से पहले ही एक स्कूल में पढ़ाती थी और पीएचडी भी कर रही थी.

कुछ ही दिनों के बाद विविधा ने महसूस किया कि घर का काम खत्म करने के बाद उस की जेठानियां शाम को जेठजी के औफिस से आने तक फ्री रहती हैं इसीलिए सुबहसुबह उस का तैयार हो कर घर से स्कूल चले जाना भी उन्हें रास नहीं आ रहा था.

एक दिन मौका देख कर विविधा ने जेठानियों को बिजी रहने के लिए कुछ करने की सलाह दी. उन की रुचि देख कर उस ने एक को सिलाई और दूसरी को ब्यूटीशियन का कोर्स करवा दिया.

कुछ ही दिनों में विविधा ने खुद कोशिश कर के घर के ही 2 कमरों में दोनों जेठानियों को ब्यूटीपार्लर और बुटीक खुलवा दिया.

अब जेठानियां बिजी रहने के साथसाथ कमाई भी करने लगी हैं. वे इस के लिए विविधा का गुणगान करते नहीं थकतीं. अब वे तीनों मिल कर घरबाहर का सारा काम चुटकियों में कर लेती हैं.

अपनी तीनों बहुओं का तालमेल देख सास व परिवार के मर्द भी चैन की सांस लेते हैं.

मंजू और उस की देवरानी अंजू ने अपनी समझदारी का परिचय देते हुए भाइयों की आपसी दुश्मनी को दरकिनार कर अपने संबंधों को जब सामान्य कर लिया तो दोनों भाइयों का मनमुटाव भी खुद ही खत्म हो गया.

हुआ यों कि मंजू के देवर शादी से पहले बड़े भाई के साथ ही रहते थे. सो, शादी के बाद देवरानी भी उसी घर में आ गई. शुरुआत में तो सब ठीकठाक रहा, पर कुछ दिनों के बाद ही दोनों में छोटीछोटी बातों को ले कर तनातनी होने लगी.

देवरानीजेठानी से शुरू हुई बात भाइयों तक पहुंचतेपहुंचते बतंगड़ बन गई और एक दिन गरम स्वभाव के दोनों भाइयों ने अलग होना ठीक समझा. नतीजतन, दोनों भाई एक ही महल्ले में अलगअलग रहने लगे.

कुछ समय बाद पढ़ीलिखी और समझदार मंजू को जब एक सामाजिक कार्यक्रम में देवरानी अंजू मिली तो वह बोली, ‘‘एक ही शहर में रह कर भी अगर हम जरूरत पड़ने पर एकदूसरे

के काम न आएं तो हमारी पढ़ाईलिखाई किस काम की. अपने ही सगे भाई से अहंकार पाल कर क्यों दूसरों को बातें बनाने का मौका दें.

‘‘अच्छा है कि हम पिछला सब भुला कर एक नई शुरुआत करें और मिलजुल कर रहें.’’

समझदार देवरानी को भी जेठानी की बात जंच गई और अगली दीवाली सब ने एकसाथ मनाने का तय किया. दोनों बहुओं की थोड़ी सी कोशिश से पिछले 3 सालों से बनी दिलों की दूरियों को मिटा कर आज अलग रहने के बाद भी दोनों भाई बड़े ही प्यार से रहते हैं और जरूरत पड़ने पर एकदूसरे का भरपूर साथ भी देते हैं.

आजकल इस हाथ दे उस हाथ ले का जमाना है. गरिमा और उस की देवरानी रीना का परिवार भी साल में एक बार जरूर साथ घूमने का प्रोग्राम बनाते हैं.

वह कहती है, ‘‘हम दोनों पैसों के मामले में पूरी साफगोई रखते हैं क्योंकि पैसा ही संबंध बिगड़ने की बहुत बड़ी वजह बन जाता है.

‘‘ऐसे प्रोग्राम में न कोई छोटा है और न कोई बड़ा. हम दोनों पूरे खर्च को

2 बराबर हिस्सों में बांट लेते हैं ताकि किसी भी तरह का मनमुटाव न हो और हमारे द्वारा चलाया गया यह सिलसिला हमारे बाद हमारे बच्चे भी चलाते रहें.

‘‘एकसाथ घूमने जाने से हम बच्चों और दूसरे मामलों में बेफिक्र तो रहते ही हैं, साथ ही हमारे बच्चों के संबंध भी मजबूत होते हैं जो उन के भविष्य के लिए बहुत जरूरी है.’’

आज की देवरानीजेठानी ज्यादा समझदार हैं और प्रैक्टिकल भी. वैसे तो तनाव, तकरार और मनमुटाव के मुद्दे आज भी वही हैं, पर पढ़ाईलिखाई का असर और सोच के बड़े नजरिए के चलते वर्तमान समय की देवरानीजेठानी इन सब से अपने पारस्परिक संबंधों को कम से कम प्रभावित होने देती हैं.

कुछ साल पहले जहां आपसी मनमुटाव के चलते सालोंसाल तक भाइयों के परिवार आपस में बातचीत तक नहीं करते थे, वहीं आज की बहुएं अच्छी तरह समझती हैं कि वर्तमान समय में परिवार छोटे हैं जिस में सदस्यों के नाम पर महज 3 या 4 लोग ही होते हैं. ऐसे में सभी को कभी न कभी एकदूसरे की जरूरत पड़ती ही है, तो क्यों न अपने ही भाई के परिवार से तालमेल बिठा कर रखा जाए. इस से अपनेपन के साथसाथ रिश्ते की मजबूती बढ़ती है.

वक्तबेवक्त जरूरत पड़ने पर दूसरों से मदद ले कर अहसानमंद होने के बजाय अपने ही भाई के परिवार से मदद ली जाए. पहले जहां मान और पद की गरिमा को बहुत ज्यादा अहमियत दी जाती थी वहीं आज की बहुएं मानती हैं कि न कोई छोटा है और न बड़ा.

एक मल्टीनैशनल कंपनी में मैनेजर गरिमा के देवर की जब शादी हुई तो सभी उसे जेठानी बनने की बधाई दे रहे थे.

इस पर वह बोली, ‘‘आंटी, न कोई देवरानी है, न जेठानी. बस, सब एक परिवार के सदस्य हैं और मैं खुश हूं कि हमारे परिवार में एक सदस्य आ रही है.’’

गरिमा की यह सोच आज की नई पीढ़ी की सोच को बखूबी बयान करती है.

मेरे बौयफ्रैंड से मेरे शारीरिक संबंध हैं, अब मेरी सगाई एक अन्य युवक से कर दी गई है, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं 20 वर्षीय युवती एक युवक से प्यार करती हूं, लेकिन पिछले महीने मेरे घर वालों ने मेरी सगाई एक अन्य युवक से कर दी जो अच्छाखासा सैटल है. मैं ने मां से कहा भी पर वे नहीं मानीं, कारण था मेरे बौयफ्रैंड का सैटल न होना. बौयफ्रैंड से मेरे शारीरिक संबंध भी हैं. मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं?

जवाब

जब आप किसी से प्यार करती हैं तो उस से शादी के लिए भी पहले से घर में बता कर रखना चाहिए था, साथ ही आप के बौयफ्रैंड को भी चाहिए था कि वह जल्दी से अपने पैरों पर खड़ा हो ताकि आप का हाथ मांग सके, तिस पर आप इतनी आगे बढ़ गईं कि शारीरिक संबंध भी बना लिए.

‘खैर, जब प्यार किया तो डरना क्या.’ आप के सामने लक्ष्य है उसे भेदिए. सब से पहले अपने बौयफ्रैंड से सैट होने को कहिए, हो सके तो उस की मदद कीजिए. आप भी अपनी कोशिश कर  कोई जौब इत्यादि कीजिए, इस से आप घर में बता सकती हैं कि हम दोनों मिल कर अपनी गृहस्थी चला लेंगे. मातापिता लड़की के सुरक्षित भविष्य को ले कर आश्वस्त होंगे तो अवश्य मान जाएंगे आप के रिश्ते को.

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