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ट्रेड वाइफ बनना मज़बूरी तो नहीं

आज कल ट्रेड वाइफ बनने का चलन बड़ा सुर्ख़ियों में है। ट्रेड वाइफ यानि वह ट्रेडिशनल या पारम्परिक बीवी जिसे घर की ज़िम्मेदारी संभालना पसंद हो। यह चलन पश्चमी देशों से शुरू हुआ है जिस तरह 50 के दशक की महिलांए घर में रहकर अपने किचन के काम ,बच्चे संभालना , पति को खुश रखने में अपनी ख़ुशी समझती थी अब वही दौर फिर से दोहराने लगा है.

लेकिन यदि कोई महिला अपना करियर भी साथ में संभालना चाहती है मगर दोहरी ज़िंदगी का तनाव सहते सहते थक जाती है तो मजबूरन उसे अपने करियर के साथ समझौता करना पड़ता है जो कतई सही नहीं है क्योंकि 21 वीं सदी के इस दौर में आज भी जब हम बात करते हैं महिलाओं के कामकाजी होने या गृहणी होने के बारे में तो अधिकतर पुरुषों का रुझान गृहणी होने पर अधिक होता है और यदि कामकाजी होना भी बेहतर माना जाता है तो उसके लिए अच्छी गृहणी होने का गुण सर्वप्रथम माना जाता है. तभी उसे एक बहतर स्त्री होने के ख़िताब में शामिल किया जाता है वरना समाज की नजरों में उसे वो सम्मान मिल पाना उसका सपना ही रह जाता है। कई बार महिलाएं ऐसी सोच के चलते अपना अच्छा खासा करियर छोड़ कर घर में रहना ही पसंद करती हैं क्योंकि वो दोहरी ज़िंदगी जीते जीते ऊब जाती हैं .

एक पढ़ी लिखी महिला होने के बावजूद अधिकतर महिलाओं को अपने पति या ससुराल वालों के हाथों की कठपुतली बनते आसानी से देखा जा सकता है क्योंकि शादी के बाद उसे कई चीज़ों के साथ समझौता करना पड़ जाता है और शादी के बाद उस लड़की का ध्यान खुद से हट कर अपनी गृहस्थी को सवारने में लग जाता है। शादी से पहले जैसे खिलखिलाती चिरैया की तरह चहकते रहना उसे पसंद हुआ करता था वहीं अब वह हसीं सिर्फ मस्कुराहट में बदल जाती है .

शादी के बाद कहीं भी आने जाने से पहले सास-ससुर और पति की इज़्ज़ाज़त लेना उसकी मज़बूरी बन जाती है । छोटी से छोटी बात में भी उनकी मर्जी जाननी पड़ती है वो जैसे हर एक छोटे बड़े निर्णय लेने के लिए उन सभी पर डिपेन्ड होने लगती है। एक महिला अपना जैसे अस्तित्व ही भूलने लगती है। यदि कोई महिला कामकाजी हो तो उससे उम्मीद की जाती है कि वह अपने काम के साथ साथ एक सफल गृहणी का भी पूरा फ़र्ज़ अदा करे। यदि ऐसा करने में वो असफल हो जाये या वह पूरा समय अपने परिवार को न दे पाए तो उसे कई बार मानसिक तनाव से भी गुजरना पड़ता है.

शादी के बाद लड़की की पहली प्राथमिकता उसके पति, सास, ससुर और बच्चों की ख़ुशी बनने लगती है उनकी पसंद का ख्याल रखती है। वह खुद से पहले परिवार की चिंता करती है। यहां तक की ऑफिस और घर के कामकाज में सारा दिन गुजारने के बाद भी वह कई बार घर वालो की आलोचनाओं का सामना करते करते थक जाती है और अंत में अपने करियर के साथ समझौता कर परिवार की खुशी को अपनी खुशी मानने लगती है और खुद को ट्रेड वाइफ के टैग से नवाजने लगती है.

असल में यह एक महिला की खुद की पसंद है कि उसे घर के कामों मे व्यस्त रह कर खुश रहना है या वह अपने करियर को संवारते हुए अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करती है लेकिन कई बार ट्रेड वाइफ बनना उसकी मजबूरी बन जाता है मजबूरी अपने ग्रहस्थ जीवन को बेहतर बनाने की। इसीलिए वह भी एक ज़िम्मेदारी निभाकर सुकून में रहना पसंद करने लगती हैं. और उसे इस बात का कोई पछतावा भी नहीं होता क्योंकि वह इसी में खुश होती है पहले जहाँ कैरियर को लेकर उत्सुकता बनी रहती थी अब वही किटी पार्टी या भजन कीर्तन को समय देना उसे रास आने लगता है। आपके घर की महिला के हालात क्या हैं हमें नहीं पता…हो सकता है कि उनकी जिंदगी इससे बेहतर हो मगर अधिकतर घरों में आज भी लड़कियों की शादी के बाद यही हाल हैं. आज भी हमारे समाज मे ल़डकियों के लिए शादी समझोते का दूसरा नाम है.

छोटी छोटी बातें : इनसान कभी अपना बचपन छोड़ना नहीं चाहता

मेरी एक पोती है. कुछ दिन हुए उस का जन्मदिन मनाया गया था. इस तरह वह अब 6 वर्ष से ज्यादा उम्र की हो गई है. उस की और मेरी बहुत छनती है. मेरे भीतर जो एक छोटा सा लड़का छिपा हुआ है वह उस के साथ बहुत खेलती है. उस के भीतर जो एक प्रौढ़ दिमाग है उस के साथ मैं वादविवाद कर सकता हूं. जब वह हमारे पास होती है तो उस का सारा संसार इस घर तक ही सीमित हो कर रह जाता है. जब वह चली जाती है तो फिर फोन पर बड़ी संक्षिप्त बात करती है. खुद कभी फोन नहीं करती. हम करें तो छोटी सी बात और फिर ‘बाय’ कह कर फोन रख देती है.

आज अचानक उस का फोन आ गया. मैं ने पूछा तो बोली, ‘‘बस, यूं ही फोन कर दिया.’’

‘‘क्या तुम स्कूल नहीं गईं?’’

‘‘नहीं, आज छुट्टी थी.’’

‘‘तो फिर हमारे पास आ जाओ. लेने आ जाऊं?’’

‘‘नहीं. मम्मी घर पर नहीं हैं. उन की छुट्टी नहीं.’’

‘‘तो उन को फोन पर बता दो या मैं उन को फोन कर देता हूं.’’

‘‘नहीं, मैं आना नहीं चाहती.’’

‘‘तो क्या कर रही हो?’’

‘‘वह जो कापी आप ने दी थी ना, उस पर लिख रही हूं.’’

‘‘कौन सी कापी?’’

‘‘वही स्क्रैप बुक जिस में हर सफे पर एक जैसे आदमी का नाम लिखना होता है, जो मुझे सब से ज्यादा अच्छा लगता हो.’’

‘‘तो लिख लिया?’’

‘‘सिर्फ 3 नाम लिखे हैं. सब से पहले सफे पर आप का. दूसरे  सफे पर मम्मी का, तीसरे पर नानी का…बस.’’

मैं ने सोचा, बाप के नाम का क्या हुआ, दादी के नाम का क्या हुआ? वह उसे इतना प्यार करती है. बेचारी को बहुत बुरा लगेगा. किंतु यह तो दिल की बात है. मेरी पोती की सूची, स्वयं उस के द्वारा तैयार की गई थी. किसी ने उसे कुछ बताया व सिखाया नहीं था. फिर मैं ने कहा, ‘‘उस के साथ उन लोगों की तसवीरें भी लगा देना.’’

‘‘आप के पास अपनी लेटेस्ट तसवीर है?’’

मैं ने कल ही तसवीर खिंचवाई थी. अच्छी नहीं आई थी. अब मेरी तसवीरें उतनी अच्छी नहीं आतीं जितनी जवानी के दिनों में आती थीं. न जाने आजकल के कैमरों को क्या हो गया है.

‘‘हां, है,’’ मैं ने उत्तर दिया. फिर मैं ने सलाह दी, ‘‘उन लोगों के जन्म की तारीख भी लिखना.’’

‘‘उन को अपने जन्म की तारीख कैसे याद होगी?’’

‘‘सब को याद होती है.’’

‘‘नहीं, जब वह पैदा हुए थे तो बहुत छोटे थे न, छोटे बच्चों को तो अपने जन्म की तारीख का पता नहीं होता.’’

‘‘बाद में लोग बता देते हैं.’’

‘‘आप कब पैदा हुए?’’

‘‘23 मार्च 1933’’

‘‘अरे, इतना पहले? तब तो आप पुराने जमाने के हुए ना?’’

‘‘हां,’’ मैं ने कहा.

मुझे एक धक्का सा लगा. वह मुझे बूढ़ा कह रही थी बल्कि उस से भी ज्यादा प्राचीन काल का मानस, मानो मुझे किसी पुरातत्त्ववेत्ता ने कहीं से खोज निकाला हो.

‘‘तो फिर आप को नए जमाने की बातें कैसे मालूम हैं?’’

‘‘तुम्हारे द्वारा. तुम जो नए जमाने की हो. मुझे तुम से सब कुछ मालूम हो जाता है.’’

‘‘इसीलिए आप मेरे मित्र बनते हो?’’ उस ने बड़े गर्व से कहा.

‘‘हां, इसीलिए.’’

उसे मैं ने यह नहीं बताया कि वह मुझे हर मुलाकात में नया जीवन देती है. मुझे जीवित रखती है. यह बातें शायद उस के लिए ज्यादा गाढ़ी, ज्यादा दार्शनिक हो जातीं. तत्त्व ज्ञान और दर्शन भी आयु के अनुसार उचित शब्दों में समझाना चाहिए.

इस के पश्चात मैं चाहता था कि उस से कहूं कि वह जिन लोगों को प्यार करती है और जिन के नाम उस ने अपनी स्क्रैप बुक में लिखे हैं उन की उन खूबियों के बारे में लिखे जिन के कारण वह उसे अच्छे लगते हैं ताकि वह उस के मनोरंजन का विषय बन सके और बाद में फिर जब उस के अपने बच्चे हों तो उन की मानसिक वृद्धि और विस्तार का साधन बन सके.

इतने में उस ने सवाल किया, ‘‘आप के मरने की तारीख क्या होगी?’’

‘‘वह तो मुझे मालूम नहीं. मौत तो किसी समय भी हो सकती है. इसी समय और देर से भी. वह तो बाद में लिखी जा सकती है.’’

‘‘आप में से पहले कौन जाएगा, आप या दादी?’’

‘‘शायद मैं. परंतु कुछ कहा नहीं जा सकता.’’

‘‘आप क्यों?’’

‘‘क्योंकि साधारण- तया मर्द लोग पहले मरते हैं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि वह उम्र में बड़े होते हैं.’’

‘‘परंतु अनिश से तो मैं बड़ी हूं.’’

मैं हंस पड़ा. अनिश उस का चचेरा भाई है. उस से 2 वर्ष छोटा और आजकल दोनों की बड़ी गहरी दोस्ती है.

‘‘तो क्या तुम अनिश से शादी करोगी?’’

मैं ने पूछा. ‘‘हां,’’ उस ने ऐसे अंदाज में कहा मानो फैसला हो चुका है और हमें मालूम होना चाहिए था.

‘‘परंतु अभी तो तुम बहुत छोटी हो. शादी तो बड़े हो कर होती है. हो सकता है कि तुम्हें बाद में कोई और लड़का अच्छा लगने लगे.’’

‘‘अच्छा,’’ उस ने हठ नहीं किया. वह कभी हठ नहीं करती. उचित तर्क हो तो उसे मान लेती है.

‘‘अच्छा, तो लोग मरते क्यों हैं?’’

इस प्रश्न का उत्तर तो अभी तक कोई नहीं दे सका है, बल्कि अनगिनत लोगों ने जरूरत से ज्यादा उत्तर देने की कोशिश की है और वह भी मरने से पहले. जिस बात का निजी अनुभव न हो उस के बारे में मुझे कुछ कहना पसंद नहीं. वह तो ‘सिद्धांत’ बन जाता है और मैं ‘सिद्धांतों’ से बच कर रहता हूं. लेकिन यह भी तो एक ‘सिद्धांत’ है.

बहरहाल, इस समय सवाल मेरी पोती के सवाल के जवाब का था और उस का कोई संतोषजनक उत्तर मेरे पास नहीं था, फिर भी मैं उसे निराश नहीं कर सकता था. मुझे एक आसान सा उत्तर सूझा. मैं ने कहा, ‘‘क्योंकि लोग बीमार हो जाते हैं.’’

‘‘बीमार तो मैं भी हुई थी, पिछले महीने.’’

‘‘नहीं, ऐसीवैसी बीमारी नहीं. बहुत गंभीर किस्म की बीमारी.’’

‘‘इस का मतलब कि बीमार नहीं होना चाहिए.’’

‘‘हां.’’

‘‘तो आप भी बीमार न होना.’’

‘‘कोशिश तो यही करता हूं.’’

‘‘आप भी बीमार न होना और मैं भी बीमार नहीं होऊंगी.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘तो फिर अगले इतवार को आप से मिलूंगी. आप की तसवीर भी ले लूंगी. हां, दादी से भी कहना कि वह भी बीमार न हों, नहीं तो खाना कौन खिलाएगा.’’

‘‘अच्छा, तो मैं दादी तक तुम्हारा संदेश पहुंचा दूंगा.’’

‘‘अच्छा, बाय.’’

अब मुझे अगले हफ्ते तक जिंदा रहना है ताकि पीढ़ी दर पीढ़ी की यह कड़ी कायम रह सके.

मैं एकलौती बहू हूं, मेरी सास का मुंह बन जाता है जब मैं मायके जाती हूं,क्या करूं कि ससुराल और मायके में तालमेल बैठा सकूं?

सवाल

मेरी उम्र 28 साल है और शादी के 3 महीने हुए हैं. ससुराल अच्छी है. संपन्न है. मैं घर की इकलौती बहू हूं. कोई ननददेवर नहीं है. पति इकलौते पुत्र हैं. मेरी सास वैसे तो अच्छी हैं लेकिन जबजब मैं अपने मायके जाती हूंउन का मुंह बन जाता है. शादी हो गई है तो क्या मैं अपने मायके जाना छोड़ दूं. मैं भी अपने मातापिता की इकलौती बेटी हूं. मैं उन का ध्यान नहीं रखूंगी तो कौन रखेगा. आप ही बताएक्या करूं कि ससुराल और मायके में तालमेल बैठा सकूं?

जवाब

आप के पति इकलौते बेटे हैं तो जाहिर सी बात है कि ससुराल में आप इकलौती बहू हैं. यह एक कारण भी हो सकता है आप की सास की नाराजगी का. क्योंकि आप के जाने से वे अकेलापन महसूस करती होंगी. लेकिन एडजस्ट तो आप की सास को भी करना है और आप को भी.

आप जो कर सकती हैंजो आप के हाथ में हैहम उस की बात करते हैं. अब आप के साससुर घर में अकेले हैं तो कभीकभी अपने मम्मीपापा को अपनी ससुराल में बुला लिया कीजिए. समधियों के बीच बातचीत होगी तो आपसी प्यार बढ़ेगा. वे सब हमउम्र हैं. उन्हें आपस में बात करनाहंसीमजाक करना अच्छा लगेगा. इस दौरान आप को ध्यान देना है कि अपने मम्मीपापा का ध्यान रखते हुए सासससुर को इग्नोर नहीं करना. बल्कि अपने मम्मीपापा को भी समझा दें कि आप की ससुराल में आ कर वे ज्यादा दखलंदाजी न करें बल्कि समधियों की तारीफ करें, जैसे हमारी बेटी बड़ी खुशकिस्मत है कि उसे आप जैसे सासससुर मिले. हमारी बेटी आप दोनों की खूब तारीफ करती हैआप दोनों से मिल कर स्कूलकालेज वाली फीलिंग आ जाती है.

मम्मीपापा के घर जब आप जाती हैं तो कभीकभी अपने सासससुर को साथ ले जाया कीजिए. उन की भी आउटिंग हो जाएगी.

आप चाहें तो अपने मम्मीपापा और अपने सासससुर को साथसाथ कहीं 2 दिनों के वैकेशन का प्रोग्राम पति के साथ बना सकती हैं.

आप की जो सिचुएशन है उस से आप के मम्मीपापा और साससुर के बीच रिश्ता फ्रैंडली होना जरूरी है. इस से आप के लिए बहुत चीजें आसान हो जाएंगी और आप की समस्याओं का हल अपनेआप निकल जाएगा. ये नुस्खे आजमा कर देखेंवर्क जरूर करेंगे.

संयुक्त राष्ट्र निर्देशित खुशी सूचकांक

खुशी के पर्यायवाची शब्द हैं- आनन्द, विनोद, सुख चैन, प्रसन्नता, आमोद, उल्लास, प्रमोद, हर्ष आदि. क्या खुशी नापने की कोई मशीन है, कोई इंचटेप या पैमाना है? आप का उत्तर हां या न हो सकता है लेकिन संयुक्त राष्ट्र संघ निर्देशित खुशी सूचकांक में भारत निचले पायदान पर है. यह खबर भले ही आप को अंदर से अच्छी न लगे.

यह भी कड़वा सच है कि दानेदाने के लिए दंगे करने वाले, आटेदाल के लिए संघर्ष करने वाले हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान की आवाम की खुशी हम से बेहतर है. खुशी के मामले में पाकिस्तान की रैंकिंग हम से बेहतर है. एक ओर पाकिस्तान की जहां विश्व में 108वीं रैंकिंग है वहीं बंगलादेश की 118वीं, म्यांमार की 117वीं रैंकिंग है तथा नेपाल की 78वीं रैंकिंग है. यानी, इन सब से भी खुशी के मामले में हम गैरगुजरे हैं और हमारी रैंकिंग पूरे विश्व में 126वीं है.

आशय है कि विश्व बिरादरी में हम से 125 देश अधिक खुश हैं. कार्यसंतुष्टि उन में अधिक है. हिंदुस्तान से अपेक्षाकृत कम खुश देश केवल गिनती के 11 हैं. यह बेहद जिम्मेदार संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट बताती है.

उधर, दार्शनिक और विचारक यह कहते हैं कि ‘खुशी एक भावना है, जो आप के अंतर्मन को संतुष्टि दे.’ खुशी का बंगला, गाड़ी, बैंक बैलेंस से कोई सीधा संबंध नहीं है. खुशहाली खुशी नहीं लाती है, खुशी तो संतुष्टि से ही मिलती है. किंतु आज खुशी एक प्रोडक्ट है जो पैसा दे कर लोग खरीद रहे हैं और खुश हो रहे हैं. स्टैंडअप कौमेडियनों (हास्य, व्यंग्य कलाकारों) में लोग खुशी तलाशते हैं. 124 लाख करोड़ का आज ‘खुशी उद्योग’ है.

खुशी की उम्मीद में लोग बाबा, मौलवी, पादरी का रुख भी करने लगते हैं. अब व्यक्तिगत भिन्नता के कारण खुशियां भी अलगअलग हो सकती हैं. किसी के लिए धन वैभव तो किसी के लिए अच्छा शारीरिक स्वास्थ्य हो ख़ुशी सकता है. नवीनतम वर्ल्ड हैप्पीनैस रिपोर्ट के अनुसार, यह स्पष्ट है कि खुश रहना विश्वव्यापी प्राथमिकता बन गई है.

वर्ल्ड हैप्पीनैस रिपोर्ट 6 संकेतकों पर खुशी का मूल्यांकन करती है: सकारात्मक भावनाएं, मानसिक स्वास्थ्य, जीवन प्रत्याशा, सामाजिक संबंध, शारीरिक स्वास्थ्य और पेशेवर खुशी.

हैप्पीनैस रिपोर्ट में दुनिया के देशों को विभिन्न मानकों के आधार पर रैंकिंग दी गई है. फिनलैंड एक बार फिर दुनिया के सब से खुशहाल देश के रूप में उभरा है. डेनमार्क, आइसलैंड, इसराईल, नीदरलैंड, स्वीडन, नार्वे, स्विट्जरलैंड, लक्जमबर्ग और न्यूजीलैंड क्रम से दूसरे से 10वें पायदान पर खुशी के मामले में हैं. आस्ट्रेलिया 12, अमेरिका 15, जापान 47, साउथ कोरिया 57, चीन 64 तथा रूस 70वें स्थान पर हैं.

संयुक्त राष्ट्र सस्टेनेबल डैवलपमैंट सौल्यूशंस नैटवर्क द्वारा प्रकाशित ‘द वर्ल्ड हैप्पीनैस रिपोर्ट 2023’ में फिनलैंड लगातार छठे साल टौप स्थान पर है. 20 मार्च को मनाए गए इंटरनैशनल डे औफ हैप्पीनैस (अंतर्राष्ट्रीय खुशहाली दिवस) पर यह रिपोर्ट जारी की गई है, जिस में वैश्विक खुशहाली के मानक के आधार पर सर्वेक्षण डेटा को रैंक किया गया है व गैलप वर्ल्ड पोल जैसे स्रोतों से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की गई है. वर्ल्ड हैप्पीनैस रिपोर्ट 2023 के तहत, 3 साल के औसत (2020-2022) के आधार पर हैप्पीनैस रैंकिंग में भारत 126वें स्थान पर है.

यह रिपोर्ट 1,000 सैंपल साइज के आधार पर बनी है और आंकड़ों से तैयार की गई है और भारत को विश्व में दुखी देश और नागरिकों को नाखुश दिखाया गया है.

भारत की यह रैंकिंग 2020-2022 में जीवन मूल्यांकन पर आधारित है. इस में भारत का औसत जीवन मूल्यांकन स्कोर 4.036 है, जो खुशी सूचकांक में फिसड्डी माना जाता है.

भारत से कम खुशी वाले 11 देशों में सब से निचले पायदान पर अफगानिस्तान है जिस की रैंकिंग 137वीं है और उस को महज स्कोर 1.9 दिया गया है. अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के कारण जो सामाजिक, राजनीतिक अस्थिरता है उस से अफगानिस्तान की निचली रैंकिंग तो समझ में आती है किंतु भारत जैसे विशाल देश में जहां लगातार एक दशक से सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिरता है वहां भारत को इतनी कम रैंकिंग देना कुछ को आपत्तिजनक लग रहा है.

फिनलैंड, जो अपने ख़ूबसूरत भूदृश्यों और उच्च जीवन स्तर के लिए जाना जाता है, जीवन के अपने सरल तरीके, स्थिरता के प्रति समर्पण, प्रकृति से घनिष्ठ संबंध और मौसमी व स्थानीय खाद्य पदार्थों के आनंद के कारण शीर्ष स्थान पर बना हुआ है. इसराईल और नीदरलैंड ने डेनमार्क और आइसलैंड के बाद क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर रहते हुए शीर्ष 5 को पूरा किया.

रूस और यूक्रेन को कैसे स्थान दिया गया है, यह भी अबूझ है. पिछले एक साल से अधिक समय से रूस और यूक्रेन आपस में लड़ रहे हैं लेकिन जब खुशी की बात आती है तो ये देश भारत से ऊपर यानी 70वें स्थान पर रूस और यूक्रेन 92वें पायदान पर हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, दोनों देशों में 2020 और 2021 के दौरान परोपकार में वृद्धि देखी गई है. 2022 के दौरान, यूक्रेन में परोपकार तेजी से बढ़ा लेकिन रूस में परोपकार कम हुआ है. वर्ल्ड हैप्पीनैस रिपोर्ट में उत्तरदाताओं के अपने जीवन के आकलन के आधार पर राष्ट्रीय खुशी के औसत और रैंकिंग शामिल हैं, जिस की तुलना यह अध्ययन कई (जीवन की गुणवत्ता) मानदंडों से भी करता है.

खुशी सूचकांक औफ द रिकौर्ड 2011 में संयुक्त राष्ट्र महासभा (यूएनजीए) के संकल्प 65/309 से प्रारंभ माना जाता है. हैप्पीनैस विकास की समग्र परिभाषा की ओर सदस्य देशों से अपने नागरिकों के खुशी के स्तर का आकलन करने और सार्वजनिक नीति को आकार देने के लिए परिणामों का उपयोग करने का आग्रह किया गया था.

2012 में संयुक्त राष्ट्र की पहली उच्चस्तरीय बैठक ‘वैल-बीइंग एंड हैप्पीनैस: डिफाइनिंग अ न्यू इकोनौमिक पैराडाइम’ नाम से संपन्न हुई थी जिस की सह-अध्यक्षता भूटान के प्रधानमंत्री और संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की मून ने की थी.

भूटान एक ऐसा देश है जो सकल घरेलू उत्पाद के बजाय सकल राष्ट्रीय खुशी को अपने प्राथमिक विकास संकेतक के रूप में उपयोग करता है.

संयुक्त राष्ट्र की उच्च स्तरीय बैठक ‘कल्याण और खुशी: एक नया आर्थिक प्रतिमान बनाना’ शीर्षक से पहली विश्व खुशहाली रिपोर्ट जारी की गई, जो 1 अप्रैल, 2012 को अपने मौलिक दस्तावेज के रूप में प्रकाशित हुई थी.

2016 से यह रिपोर्ट 20 मार्च को वार्षिक आधार पर जारी की गई और 20 मार्च को ही संयुक्त राष्ट्र का अंतर्राष्ट्रीय खुशी दिवस मनाया जाता है.

रैंकिंग निम्न कारकों पर आधारित होती है- प्रतिव्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद, सामाजिक समर्थन, भ्रष्टाचार के निम्न स्तर, एक समुदाय में करुणा जहां लोग एकदूसरे के लिए देखते हैं और जीवन के महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने की स्वतंत्रता.

राष्ट्रीय खुशी की रैंकिंग को संकलित करने के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण का इस्तेमाल किया गया था. देशभर के नमूनों के उत्तरदाताओं को एक सीढ़ी की कल्पना करने के लिए कहा जाता है जिस में 10 द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाने वाला सर्वोत्तम संभव जीवन और 0 द्वारा प्रतिनिधित्व किया जाने वाला सब से खराब संभव जीवन है. 0 से 10 के पैमाने पर फिर उन्हें अपनी वर्तमान जीवनशैली को स्कोर करने के लिए कहा जाता है.

 

वर्ल्ड हैप्पीनैस रिपोर्ट में 6 वैरिएबल्स क्या हैं?

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा खुशी के पैमाने नापने के ये पैरामीटर हैं. इन्हें खुशी के 6 कारक भी कहा जाता है, जो इस प्रकार हैं- जीडीपी के स्तर, जीवन प्रत्याशा, उदारता, सामाजिक समर्थन, स्वतंत्रता और भ्रष्टाचार. इन में से प्रत्येक में जीवन मूल्यांकन को उच्च बनाने में योगदान करने का अनुमान लगाया गया है. लेकिन आदिकाल से भारत में खुशी नापने के ये पैमाने रहे हैं-

कृतज्ञता : आज आप जो कुछ भी हैं उस के लिए मातापिता, शिक्षकों और शुभचिंतकों का आभार व्यक्त करें. बदले में कुछ भी उम्मीद किए बिना अपने आनंद और खुशी को अपने आसपास के लोगों के साथ साझा करें. एक अच्छा दिल न तो असफलताओं के लिए किसी को दोष देता है और न ही सफलता के लिए श्रेय की अपेक्षा करता है.

 

प्रशंसा : जरूरत में किसी की मदद करें, बदले में आप को सच्ची प्रशंसा का एहसास होगा. प्रशंसा की यह भावना ही परम सुख है. दूसरों की मदद करने से जो खुशी मिलती है, उसे कोई नहीं हरा सकता. अगर आप को लोगों की सराहना मिलती है तो आप खुश होते हैं.

 

सुनना : आज की व्यस्त दुनिया में लोगों के पास एकदूसरे के लिए समय नहीं है. बहुतों के जीवन में जो सब से बड़ी कमी है, वह है उन की बात सुनने वाले का न होना. लोगों की समस्याओं, चिंताओं को सुनें. यदि आप के पास कोई है जो आप की बात सुनता है, तो आप खुश हैं.

 

सहानुभूति : यदि कोई ऐसा व्यक्ति मौजूद है जो आप के लिए सहानुभूति रखता है, तो आप खुश हैं क्योंकि इस दुनिया में ऐसे लोगों की कमी है जो आप को, आप की भावनाओं और संकट को समझ सकें. आप के कई दोस्त या शुभचिंतक भाग जाएंगे जब आप को आराम करने के लिए कंधे की जरूरत होगी.

 

त्याग करना : बलिदान किसी के लिए सब से मुश्किल काम नहीं है लेकिन अगर ऐसे लोग मौजूद हैं जो सिर्फ आप को चमकाने के लिए अपने आराम का त्याग कर सकते हैं तो आप इस पूरी दुनिया में सब से खुश इंसान हैं.

असली खुशी इस में नहीं है कि आप के पास क्या है बल्कि इस में है कि आप दूसरों के लिए क्या करते हैं और बदले में आप को क्या प्यार मिलता है. यह आप के सच्चे खजाने हैं. बहरहाल, तेजी से शहरीकरण, शहरों में भीड़भाड़, खाद्य सुरक्षा और जल सुरक्षा के बारे में चिंता, स्वास्थ्य देखभाल की बढ़ती लागत, महिलाओं की सुरक्षा और पर्यावरण प्रदूषण तथा खराब मानसिक स्वास्थ्य के आधार पर भारत की रैंकिंग कम हुई है, यह तो समझ में आता है लेकिन भारत के पड़ोसी देशों जैसे पाकिस्तान, नेपाल,बंगलादेश म्यांमार, जहां राजनीतिक एवं सामाजिक हालात सही नहीं है, गरीबी भी बेतहाशा बढ़ी है, उन को भारत से अधिक रैंकिंग देना समझ से परे है.

ध्यान देने योग्य यह है कि विश्व खुशी सूचकांक में यूरोपीय देश शीर्ष 10 में बड़ी संख्या में हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था उम्मीदों के बाजार में सब से बड़ा खरीदार है और खुशी अंतर्मन की अभिव्यक्ति है, खुशी मन की कोमलता में है, ह्रदय के भाव में है, खुशी चेहरे की मुसकान में है. इसे किसी स्केल से नहीं नापा जा सकता है. हां, यह हो सकता है कि हम खुशी के लिए मंदिरों पर निर्भर हों और दर्शन करने को खुशी मानते हों पर खुशी नापने वाले इंडैक्स में मंदिर में जा कर आनंद मिलने को खुशी मिलना नहीं गिना जाता.

लेखक- रामानुज पाठक

जाति जमीन की : भारत की जमीनों की क्या कीमत है

उत्‍तर प्रदेश की प्रस्‍तावित नई टाउनशिप नीति के अनुसार, छोटी जमीनों पर भी कालोनियां बसाई जा सकेंगी. 2 लाख से कम आबादी वाले शहरों में न्यूनतम 12.5 एकड़ और बड़े शहरों में 25 एकड़ में नई कालोनियां बन सकेंगी. वहीं, सुगबुगाहट इस बात की हो रही है कि दलितों और अनुसूचित जनजाति की जमीन खरीदने के लिए अब डीएम की अनुमति की जरूरत नहीं होगी.

पहले के नियम के मुताबिक, अगर दलितों से कोई जमीन खरीदनी हो तो उस के लिए डीएम की अनुमति की अनुमति लेनी जरूरी थी. ऐसा इसलिए ताकि दलितों की जमीनों का किसी प्रकार के कब्जे से संरक्षण हो सके. कहा यह जा रहा है कि नई टाउनशिप नीति के अनुसार इस में बदलाव आएगा और डीएम से विशेष अनुमति की जरूरत नहीं पड़ेगी.

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश जमींदार विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 और उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 98(1) के तहत गैरदलित को जमीन बेचने के लिए डीएम की मंजूरी चाहिए. इस व्यवस्था से भूमाफिया या जातिवादी आसानी से दलितों की जमीन पर कब्जा नहीं कर पाते थे और दलितों को दिए गए जमीन के पट्टे उन से ऊंची जातियों के लोग छीन नहीं पाते थे. सपा सरकार ने इस में कुछ बदलाव कर दलितों की जमीन केवल दलितों द्वारा खरीदे जाने की शर्त को खत्म किया था, इस के बाद बड़ी संख्या में दलितों की जमीन बिक गई थी.

भारत में जमीन सिर्फ खेती करने के लिए भूमि का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि बात जब जातिप्रधान भारत की हो तो जमीन से हैसियत भी तय होती है. इस से तय होता है कौन श्रेष्ट है, किस के क्या जातिगत अधिकार हैं. कालांतर में जमीन नीची जातियों को गुलाम बनाए रखने का जरिया थी. आधिकाधिक जमीन पर अधिकार या कहें कब्जा ऊंची जातियों का था और निचली जातियां उन के यहां भूमिहीन मजदूर सरीखे काम करते थे.

जातिगत समाज का तथ्य यह कि भारत में उच्च या प्रभावशाली कही जाने वाली जातियों के पास ज्यादातर जमीन है जबकि दलित जातियों के बहुत कम लोगों के पास जमीन है, लेकिन इन चंद दलितों की जमीन को छीनने की कोशिशें हमेशा भूमाफियाओं और कथित उच्च जातियों की ओर से की जाती रही है.

यह काम सवर्ण भूमाफिया और दबंग किया करते थे. अब अगर यह नीति बनती है तो उन्हें हड़पवाने का न्योता खुद सरकार देने जा रही है. ऐसे उदाहरण सामने हैं जहां बड़ी जातियों के लोग अकसर दलितों को डराधमका कर उन की जमीन पर कब्ज़ा कर करते रहे हैं. यूपी की योगी सरकार नई टाउनशिप पौलिसी लाने की तैयारी में है. इस नई पौलिसी के हिसाब से अब यूपी में अगर किसी दलित को अपनी जमीन किसी गैरदलित को बेचनी है तो उस के लिए डीएम की इजाजत नहीं लेनी होगी.

अब अगर यह व्यवस्था बनती है तो फिर दलितों की जमीन उस रामभरोसे होगी जिस का साया कभी दलितों के सिर रहा नहीं. मुमकिन है दलितों को बहलाफुसला या डराधमका कर उन की जमीन सस्ते दामों पर खरीद ली जाए.

अप्रैल माह के खास काम

अप्रैल महीने के दौरान तमाम फसलों की कटाई का सिलसिला शुरू हो जाता है. कुछ जगह फसल उत्पादन किसान ले भी चुके होते हैं. अप्रैल महीने में खेती से जुड़े खास कामों पर बात करते हैं. रोटी यानी गेहूं की फसल अप्रैल तक पक कर तैयार हो जाती है . इस महीने का खास काम गेहूं की फसल की कटाई व गहाई का होता है. गेहूं काटने के बाद उसे अच्छी तरह सुखा कर उस की गहाई करें. अगर उस के भंडारण का इरादा है, तो उस के लिए भंडारण के नए व उन्नत तरीकों को आजमाएं.

अप्रैल माह तक चने की भी फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है. लिहाजा, इस की कटाई का काम भी फौरन निबटा लेना चाहिए. गन्ने के खेत में निराईगुड़ाई करें और किसी तरह के खरपतवार न पनपने दें. बेहतर होगा कि निराईगुड़ाई से पहले खेत में गोबर की अच्छी तरह सड़ी हुई खाद, कंपोस्ट खाद या केंचुआ खाद डालें. इस के बाद निराईगुड़ाई करने से खाद खेत की मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाएगी. इस के खेत की मिट्टी की पानी सोखने की कूवत में भी इजाफा होगा और यकीनन बेहतर गन्ने पैदा होंगे. सूरजमुखी के खेत का मुआयना करें. उन में अप्रैल माह तक फूल आने लगते हैं.

ऐसे में खेत की निराईगुड़ाई करना जरूरी होता है. खेत की नमी का जायजा भी लें. बैसाखी मौसम की मूंग बोने का भी यह सही वक्त होता है. अगर मूंग बोने का इरादा हो, तो 15 अप्रैल तक इस की बोआई का काम निबटा लें. जो मूंग मार्च महीने में बोई गई थी, उस के खेत की जांच भी करें. अमूमन अप्रैल माह में इसे सिंचाई की जरूरत होती है. अगर खेत सूखे नजर आएं, बगैर चूके उन की सिंचाई करें. पशुओं के चारे के लिहाज से अप्रैल माह में मक्का, लोबिया व बाजरे की बोआई करें, ताकि मईजून माह में चारे की दिक्कत न रहे. इस बीच फूलगोभी की बीज वाली फसल आमतौर पर कटाई लायक हो जाती है. लिहाजा, उस की कटाई का काम निबटा लें. कटाई के बाद फसल को सुखा कर बीज निकाल लें.

बीजों को सही तरीके से पैक कर के उन का भंडारण करें. तुरई की नर्सरी अप्रैल के पहले हफ्ते के दौरान जरूर डालें, ताकि समय पर पौध तैयार हो सके. फरवरीमार्च महीनों के दौरान डाली गई नर्सरी के पौधों की रोपाई कर दें. रोपाई 100350 सैंटीमीटर की दूरी पर करें. रोपाई करने के बाद सिंचाई जरूर करें. अरबी की खेती का इरादा हो तो अप्रैल माह में ही इस की अगेती किस्मों की बोआई का काम निबटा लें. करेले व लौकी के पौधों की रोपाई करें. करेले की रोपाई 150360 सैंटीमीटर की दूरी पर करें, जबकि लौकी की रोपाई 231 मीटर की दूरी पर करें. अप्रैल माह में लहसुन की फसल की खुदाई निबटा लें.

खोदने के बाद फसल को 3 दिनों तक खेत में रहने दें. इस के बाद फसल को छाया में ठीक से सुखा कर लहसुन का भंडारण करें. अप्रैल माह तक मूली व गाजर की बीज वाली फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है. उस की कटाई कर के फसल को ढंग से सुखाने के बाद बीज निकालें. बीजों को ठीक से सुखा कर पैक करें और फिर उन का सही तरीके से भंडारण करें. अदरक की बोआई का काम भी अप्रैल माह में निबटाएं. बोआई के लिए तकरीबन 20 ग्राम वाले कंदों का इस्तेमाल करें. इस की बोआई 30-40 सैंटीमीटर की दूरी पर मेंड़ें बना कर करें. कंदों के बीच 20 सैंटीमीटर का फासला रखें.

यदि शिमला मिर्च की फसल लगाई हो, तो उस की निराईगुड़ाई करें व जरूरत के हिसाब से सिंचाई भी करें. यूरिया खाद भी डालें, ताकि नाइट्रोजन की कमी न रहे और फल अच्छी किस्म के आएं. आम के बागों की सिंचाई करें, ताकि नमी कम न होने पाए. पेड़ों पर कीटों या बीमारियों के लक्षण नजर आएं, तो रोग के अनुसार कृषि वैज्ञानिक से राय ले कर सही दवा का इस्तेमाल जरूर करें. पशुओं को जरूरी कीड़ों की दवाएं खिलाने का पूरा खयाल रखें. अगर गाय या भैंस गरमी में आ जाए, तो उसे अस्पताल ले जा कर या डाक्टर बुला कर गाभिन कराने में कतई देरी न करें. दिनोंदिन बढ़ती गरमी से भी पशुओं को बचा कर रखें.

YRKKH: बेटे की जान के लिए मंजरी के सामने रोएगी अक्षरा, कायरव होगा नाराज

टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में आए दिन नए-नए ड्रामे देखने को मिलते रहता है, इस सीरियल में आपको इन दिनों देखने को मिल रहा है कि कहानी अबीर के आस-पास ही घूम रही है. बता दें कि अबीर के दिल में छेद है और वह इन दिनों अस्पताल में भर्ती है.

वहीं जैसे ही अभिमन्यु को पता चलता है कि अबीर को ये बीमारी है तो वह तुरंत उसकी मदद के लिए उदयपुर आ जाता है, वहीं अक्षरा भी उदयपुर आकर मंजरी से अपने बेटे की जान के लिए मदद मांगती है, आइए आपको बताते हैं कि आने वाले एपिसोड के बारे में बताते हैं,

 

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बता दें कि मंजरी अक्षरा से मिलने के लिए गोयनका हाउस पहुंच जाती है, वह कड़ी आवाज में पूछती है कि तु यहां क्या कर रही हो इस पर अक्षरा रोकर कहती है कि मुझे अभिमन्यु की जरुरत है मेरे बेटे के दिल में छेद है, प्लीज हमारी मदद कीजिए.

मंजरी को जैसे ही इस बात का पता चलता है वह परेशान हो जाती है, वह हाथ जोड़कर कहती है कि प्लीज अभि को बोलो की मेरे बेटे की सर्जरी करने दें. इसी बीच कायरव बड़े डॉक्टर से बात करते नजर आता है, लेकिन जब डॉक्टर सर्जरी करने के लिए मना करता है तो वह नाराज हो जाता है.

भारती सिंह ने धूमधाम से मनाया बेटे गोला का पहला बर्थडे, ये सेलेब्स हुए शामिल

स्टैंडअप कमेडियन भारती सिंह का बेटा गोला एक साल हो गया है, इस खास मौके पर भारती सिंह ने गोले की जन्मदिन की पार्टी रखी, इस पार्टी में शामिल होने के लिए बॉलीवुड से लेकर टीवी इंडस्ट्री तक के कई सारे सितारे शामिल हुए.

पार्टी में खास अंदाज में नजर आईं पंजाब की कैटरीना शहनाज गिल जो गोला के साथ मस्ती करती नजर आईं, बता दें कि इससे पहले भी शहनाज गिल गोले के साथ मस्ती करती नजर आ चुकी हैं. हालांकि भारती सिंह ने अपने बेेटे गोले की बर्थ डे पार्टी की तस्वीर शेयर नहीं कि है, लेकिन पार्टी में आएं लोग इस पार्टी की तस्वीर शेयर कर रहे हैं.

 

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भारती सिंह ने गोले के साथ एक तस्वीर शेयर की है जिसमें वह कैजुअल लुक में नजर आईं, गोले की पार्टी में भारती सिंह और पति हर्ष ट्विनिंग करते नजर आ रहे हैं. दोनों ने सफेद रंग की ड्रेस चुज की है. जिसमें वह काफी शानदार लग रहे हैं.

भारती सिंह का बेटा गोला भी काफी ज्यादा क्यूट लग रहा है वह सफेद रंग का ड्रेस पहना हुआ है, गोला को उसके खास लुक के लिए जमकर तारीफ मिल रही है. बता दें कि गोला सबसे ज्यादा पसंद किया जाने वाला बच्चा है.

विश्वगुरु के पथ पर अंधविश्वास की पढ़ाई

देशभर के तमाम विश्वविद्यालयों में शुरू किए जा रहे ज्योतिष, कर्मकांड व वास्तुशास्त्र की पढ़ाई कराने वालों में एक नया नाम हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का भी जुड़ने जा रहा है. एक तरफ दुनियाभर में नईनई वैज्ञानिक तकनीकी विकसित हो, इस के लिए वहां की सरकारें शिक्षा में पैसा खर्च कर रही हैं, दूसरी तरफ भारत अंधविश्वास का नैरेटिव गढ़ने में पैसे, ताकत और समय खर्च कर रहा है.

बाकी विश्वविद्यालयों की तरह ही हिमाचल प्रदेश विश्विद्यालय का संस्कृत विभाग भी इस कोर्स के माध्यम से छात्रों को नित्यकर्म पूजा पद्धति (संध्या प्रयोग, स्वारित वाचन, पंचदेव पूजन), रुद्राष्ट्रध्यायी से शिव संकल्प सूक्त, पुरुष सूक्त, रुद्र सूक्त, वास्तु का परिचय, काल निर्णय, षोड्स संस्कार की पढ़ाई कराएगा. जाहिर है यह पढ़ाई करने के बाद कोई छात्र इंजीनियर, डाक्टर या मजदूर ही बन कर समाज, या यों कहें कि देश की उन्नति, में अपना प्रोडक्टिव योगदान देने जाएगा, ऐसा बिलकुल नहीं. हां, इस से दानदक्षिणा पर पलने वालों व अंधविश्वास की गठरी लिए बटुक कुमारों की लंबी फौज जरूर खड़ी हो जानी है.

कुछ दिनों पहले की खबर है, मध्य प्रदेश के केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्र कमाई के तौर पर कर्मकांडी पढ़ाई करने के साथसाथ पूजाहवन करने लगे हैं. उन के मुताबिक, वे कर्मकांड से कर्मपथ की प्रगति पर अग्रसर हैं. यह प्रगति अंतगत्व कहती है कि कैसे धर्मकर्म के कामों में लोगों को उलझा जा कर उन से दानदक्षिणा ऐंठी जाए.

यह कोई इक्कादुक्का विश्वविद्यालय नहीं जो दूसरे की मेहनत पर लूट की दुकान चलाने की ट्रेनिंग देने जा रहे हैं. भगवा सरकार में इस तरह के डिप्लोमा, डिग्री कोर्स के अलावा भूत विद्या, हिंदू स्टडीज को शुरू कराए जाने का हल्ला भी खूब मचा है. बात यहां आती है इन कोर्सों को पढ़ कर देश के युवा करेंगे क्या? सवाल यह भी कि इस से देश का क्या भला होने जा रहा है, सिवा ऐसे बटुक कुमार के बनने के जो लोगों को बताएंगे कि सुबह की पूजा कैसे करनी है, किस भगवान के लिए कौन सा वृत्त रखना है और किस जाति में शादी या प्यार करना है.

जाहिर है वे ज्योतिष विद्या से यही बताएंगे कि मंगल गुरु शनि जीवन में कैसे उथलपुथल मचाते हैं, मारक ग्रह को अशुभ क्यों कहते हैं, गर्भ में पल रहे बच्चे का भविष्य कैसा होगा ठीक उसी तरह जैसे निर्मल बाबा और धीरेंद्र शास्त्री जैसे बाबाओं की फौज स्लेट पर लिख कर या समोसे के साथ किस रंग की चटनी खा कर भाग्य सुधरता है के प्रवचन बांचते हैं.

यह पढ़ाई लोगों की बुनियादी जरूरतों पर धर्म के घुसपैठ कराने के अलावा और कुछ नहीं.

कहा जाता है, वास्तुशास्त्र के जरिए किसी के घर का अध्ययन कर उस के भूतकाल, वर्तमान और भविष्यकाल के संबंध में जानकारी दी जाती है. माना जाता है कि बिना वास्तुपूजा कराए घर बनाए, तो अनहोनी होती है. यानी, भारत के अलावा दुनियाभर में लोग अनहोनी से गुजर रहे हैं और हमारे देश के विश्वविद्यालय अब दुनियाभर की अनहोनी को रोकने का बीड़ा उठाने जा रहे हैं. यह साबित करने के लिए हमारे पास कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि आकाश में तारे और ग्रह मानव जीवन को प्रभावित करते हैं और जन्म का समय व्यक्ति का भविष्य निर्धारित करता है.

संविधान के अनुच्छेद 51 ए (एच) में कहा गया है कि वैज्ञानिक सोच, जांचपड़ताल की भावना और मानवतावाद विकसित करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है, लेकिन धन्य हो मोदीजी के विश्वगुरु बनने के संकल्प का कि देश के युवा अब कर्मकांडी बन अंधविश्वास का रायता फैलाएंगे.

दरअसल, पढ़ाई के माध्यम से युवाओं को ज्योतिष व कर्मकांड में विश्वास दिलाना एक ऐसी मानसिकता तैयार करने का राजनीतिक एजेंडा है, जो बतौर नागरिक राज्य पर सवाल उठाने के बजाय नियति को भलाबुरा कहें. कहें कि पुराने कर्म ही इस जन्म का फल हैं. यह और कुछ नहीं, समाज में गरिमा और बराबरी का दर्जा वाले मानव जीवन की मांग से लोगों को दूर करने जैसा है.

इस पढ़ाई से खूब नएनए देवीदेवता सरीखे बाबा आदि आएंगे, जिन का आधार सिर्फ और सिर्फ अंधविश्वास होना है. अब जाहिर है निचली जाति के एकलव्य या कर्ण इस पढ़ाई को कर के सवर्णों के मंदिरों में फिर भी प्रवेश नहीं कर पाएंगे पर दुरदूरिया देवी, चटपटा माई, संकठा माई, तुरंता माई बन कर वे अपनी ही जाति के लोगों को अंधविश्वास में धकेलेंगे.

भारत भूमि युगे युगे: न पढ़े सो पंडित होय

मध्यप्रदेश में 7 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनाव में बहुत बड़ा उलटफेर करने के लिए आम आदमी पार्टी को काफी मशक्कत करनी पड़ेगी. अरविंद केजरीवाल ने इस की शुरुआत मुफ्त की बिजली वगैरह के दाने से कर तो दी है लेकिन भोपाल की पब्लिक मीटिंग में उन्होंने मुद्दत बाद भगवा गैंग और उस के सरदार नरेंद्र मोदी की दुखती रग पर हाथ यह कहते रख दिया कि जो भी हो लेकिन प्रधानमंत्री पढ़ालिखा होना चाहिए. कहने को तो मोदीजी की एम ए की मार्कशीट काफी पहले सार्वजनिक की जा चुकी है लेकिन उस के निर्माण, प्रस्तुतीकरण और विश्वसनीयता पर शक हर किसी को है.

अब भक्त लोग कह रहे हैं कि 4 किताबें पढ़ लेने से कोई विद्वान नहीं हो जाता. फिर मोदीजी तो उपअवतार टाइप कुछ हैं जिन की अगुआई में देश हिंदू राष्ट्र घोषित होने जा रहा है. इस रामायण का सार यह कि विद्वान होने के लिए शिक्षित होना जरूरी नहीं और हर शिक्षित आदमी विद्वान हो, यह किसी वेद, पुराण, संहिता, स्मृति या उपनिषद में नहीं लिखा.

 बाबा साहेब के बेटे और बाबा

कोई पाखंडी अगर हमें आंख दिखाएगा तो इलाज हो जाएगा. यह धौंस बाबा बागेश्वर धाम के गढ़ छतरपुर में घुस कर भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर रावण ने दे दी लेकिन बेहतर उन का यह कहना होता कि अगर दलित समुदाय के लोग इन बाबाओं के झांसे में आना बंद कर दें तो चमत्कार यह होगा कि उन की सामाजिक व आर्थिक स्थिति चमत्कारिक ढंग से सुधर जाएगी.  आखिर कब तक ऊंची जाति वाले इन बाबाओं को दानपुण्य करते लुटते रहेंगे? अब तो धर्म की दुकानें दलित, पिछड़े और आदिवासियों के पैसों से ज्यादा चल रही हैं जिस से ये लोग और पिछड़ते जा रहे हैं.

हुआ सिर्फ इतना था कि हिंदू राष्ट्र की मुहिम को देशभर में फैलाने निकले बाबा बागेश्वर के भाई सालिगराम ने एक दलित लड़की की शादी में पिस्टल लहरा दी थी. इस से दहशत फैली थी लेकिन रावण को राम से यों टकराने के बजाय बाबाओं के बहिष्कार की अपील करना चाहिए नहीं तो बातबात में बाबा साहेब के बेटे होने की दुहाई देना छोड़ देना चाहिए.

 कांग्रेस का काउ सेस

पूंछ पकड़ कर वैतरणी कैसे पार की जाती है, यह आएदिन गौदान के अलावा गौकशी से भी साबित होता रहता है जो पंडों और गौरक्षकों का फुलटाइम जौब है. पहला तरीका हिंसक नहीं है, दूसरा हिंसक है. इन के बीच का रास्ता अब मुख्यमंत्रीगण राज्यों के बजट में एक नया मद काउ सेस जोड़ते निकालने लगे हैं.

इस से करोड़ों की गुप्त आमदनी होती है. उत्तरप्रदेश राजस्थान चंडीगढ़ और पंजाब के काउ सेस के बाद हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्कू ने पियक्कड़ों के पाप धोने की गरज से बजट में प्रति शराब की बोतल बच्चे से ले कर खम्भा तक पर 10 रुपए गाय उपकर लगा दिया है.

अब हिमाचल के शराबियों को गिल्ट फील करने की जरूरत नहीं है. कांग्रेस भी भाजपा की राह पर धर्म के बाद गाय के नाम पर चल पड़ी है, जिस का तात्कालिक अल्पलाभ उसे हो सकता है. शराबियों से उपकर वसूलना ही था तो शराब पी कर बेवक्त, बेमौत मर जाने वाले शराबियों की विधवाओं व अनाथ बच्चों के भले के लिए वसूला जाना चाहिए था.

 पीएम का मीडिया ट्रेनिंग प्रोग्राम

पंजाब में अमृतपाल की भागादौड़ी के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का देश के एक नामी मीडिया हाउस के भव्य इवैंट में खुद जाना इस साल की बड़ी घटनाओं में से एक थी. मीडिया हाउस के मालिक और पीएम ने वही हलकेफुलके हास्य पेश किए जो 70 के दशक में इंदिरा गांधी बीबीसी के मार्क टुली जैसों के साथ जा कर उन्हें ओबलाइज कर देती थीं.

वही इधर भी हुआ. लेकिन और भी बहुतकुछ हुआ जिस में मोदीजी मेजबान मीडिया हाउस के आधा दर्जन एंकरों को असाइनमैंट बांट आए कि रिपोर्टिंग करना है तो इस पर, उस पर करो. यानी, 2024 तक न्यू इंडिया की ब्रैंडिंग करो, एवज में शायद एंकरों को पद्म पुरस्कार मिल जाए.

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