उत्‍तर प्रदेश की प्रस्‍तावित नई टाउनशिप नीति के अनुसार, छोटी जमीनों पर भी कालोनियां बसाई जा सकेंगी. 2 लाख से कम आबादी वाले शहरों में न्यूनतम 12.5 एकड़ और बड़े शहरों में 25 एकड़ में नई कालोनियां बन सकेंगी. वहीं, सुगबुगाहट इस बात की हो रही है कि दलितों और अनुसूचित जनजाति की जमीन खरीदने के लिए अब डीएम की अनुमति की जरूरत नहीं होगी.

पहले के नियम के मुताबिक, अगर दलितों से कोई जमीन खरीदनी हो तो उस के लिए डीएम की अनुमति की अनुमति लेनी जरूरी थी. ऐसा इसलिए ताकि दलितों की जमीनों का किसी प्रकार के कब्जे से संरक्षण हो सके. कहा यह जा रहा है कि नई टाउनशिप नीति के अनुसार इस में बदलाव आएगा और डीएम से विशेष अनुमति की जरूरत नहीं पड़ेगी.

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश जमींदार विनाश एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 और उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता 2006 की धारा 98(1) के तहत गैरदलित को जमीन बेचने के लिए डीएम की मंजूरी चाहिए. इस व्यवस्था से भूमाफिया या जातिवादी आसानी से दलितों की जमीन पर कब्जा नहीं कर पाते थे और दलितों को दिए गए जमीन के पट्टे उन से ऊंची जातियों के लोग छीन नहीं पाते थे. सपा सरकार ने इस में कुछ बदलाव कर दलितों की जमीन केवल दलितों द्वारा खरीदे जाने की शर्त को खत्म किया था, इस के बाद बड़ी संख्या में दलितों की जमीन बिक गई थी.

भारत में जमीन सिर्फ खेती करने के लिए भूमि का एक टुकड़ा नहीं, बल्कि बात जब जातिप्रधान भारत की हो तो जमीन से हैसियत भी तय होती है. इस से तय होता है कौन श्रेष्ट है, किस के क्या जातिगत अधिकार हैं. कालांतर में जमीन नीची जातियों को गुलाम बनाए रखने का जरिया थी. आधिकाधिक जमीन पर अधिकार या कहें कब्जा ऊंची जातियों का था और निचली जातियां उन के यहां भूमिहीन मजदूर सरीखे काम करते थे.

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