देशभर के तमाम विश्वविद्यालयों में शुरू किए जा रहे ज्योतिष, कर्मकांड व वास्तुशास्त्र की पढ़ाई कराने वालों में एक नया नाम हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का भी जुड़ने जा रहा है. एक तरफ दुनियाभर में नईनई वैज्ञानिक तकनीकी विकसित हो, इस के लिए वहां की सरकारें शिक्षा में पैसा खर्च कर रही हैं, दूसरी तरफ भारत अंधविश्वास का नैरेटिव गढ़ने में पैसे, ताकत और समय खर्च कर रहा है.

बाकी विश्वविद्यालयों की तरह ही हिमाचल प्रदेश विश्विद्यालय का संस्कृत विभाग भी इस कोर्स के माध्यम से छात्रों को नित्यकर्म पूजा पद्धति (संध्या प्रयोग, स्वारित वाचन, पंचदेव पूजन), रुद्राष्ट्रध्यायी से शिव संकल्प सूक्त, पुरुष सूक्त, रुद्र सूक्त, वास्तु का परिचय, काल निर्णय, षोड्स संस्कार की पढ़ाई कराएगा. जाहिर है यह पढ़ाई करने के बाद कोई छात्र इंजीनियर, डाक्टर या मजदूर ही बन कर समाज, या यों कहें कि देश की उन्नति, में अपना प्रोडक्टिव योगदान देने जाएगा, ऐसा बिलकुल नहीं. हां, इस से दानदक्षिणा पर पलने वालों व अंधविश्वास की गठरी लिए बटुक कुमारों की लंबी फौज जरूर खड़ी हो जानी है.

कुछ दिनों पहले की खबर है, मध्य प्रदेश के केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के छात्र कमाई के तौर पर कर्मकांडी पढ़ाई करने के साथसाथ पूजाहवन करने लगे हैं. उन के मुताबिक, वे कर्मकांड से कर्मपथ की प्रगति पर अग्रसर हैं. यह प्रगति अंतगत्व कहती है कि कैसे धर्मकर्म के कामों में लोगों को उलझा जा कर उन से दानदक्षिणा ऐंठी जाए.

यह कोई इक्कादुक्का विश्वविद्यालय नहीं जो दूसरे की मेहनत पर लूट की दुकान चलाने की ट्रेनिंग देने जा रहे हैं. भगवा सरकार में इस तरह के डिप्लोमा, डिग्री कोर्स के अलावा भूत विद्या, हिंदू स्टडीज को शुरू कराए जाने का हल्ला भी खूब मचा है. बात यहां आती है इन कोर्सों को पढ़ कर देश के युवा करेंगे क्या? सवाल यह भी कि इस से देश का क्या भला होने जा रहा है, सिवा ऐसे बटुक कुमार के बनने के जो लोगों को बताएंगे कि सुबह की पूजा कैसे करनी है, किस भगवान के लिए कौन सा वृत्त रखना है और किस जाति में शादी या प्यार करना है.

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