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पति पत्नी के रिश्ते को मजबूत बनाती है आर्थिक साझेदारी

वह जमाना गया, जिस में बेटे श्रवण कुमार की तरह पूरी पगार मांबाप के हाथों या पांवों में रख देते थे और फिर अपने जेबखर्च के लिए मांबाप का मुंह ताकते थे यानी उन्हें अपनी कमाई अपनी मरजी से खर्च करने का हक नहीं था.

परिवार सीमित होने लगे तो बच्चों के अधिकार बढ़तेबढ़ते इतने हो गए हैं कि उन्हें पूरी तरह आर्थिक स्वतंत्रता कुछ अघोषित शर्तों पर ही सही मगर मिल गई है. इन एकल परिवारों में पत्नी का रोल और दखल आमदनी और खर्च दोनों में बढ़ा है, साथ ही उस की पूछपरख भी बढ़ी है.

भोपाल के जयंत एक संपन्न जैन परिवार से हैं और पुणे की एक सौफ्टवेयर कंपनी में 18 लाख सालाना सैलरी पर काम कर रहे हैं. जयंत की शादी जलगांव की श्वेता से तय हुई तो शादी के भारीभरकम खर्च लगभग 20 लाख में से उन्होंने 10 लाख अपनी बचत से दिए. श्वेता खुद भी नौकरीपेशा है. जयंत से कुछ कम सैलरी पर एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करती है.

शादी तय होने से पहले दोनों मिले तो ट्यूनिंग अच्छी बैठी. उन के शौक और आदतें दोनों मैच कर चुके थे. दोनों ने 4 दिन साथ एकदूसरे को समझने की गरज से गुजारे और फिर अपनी सहमति परिवार को दे दी. जयंत श्वेता के सादगी भरे सौंदर्य पर रीझा तो श्वेता अपने भावी पति के सरल स्वभाव और काबिलीयत से प्रभावित हुई. इन 4 दिनों का घूमनेफिरने और होटलिंग का खर्च पुरुष होने के नाते स्वाभाविक रूप से जयंत ने उठाया. दोनों ने एकदूसरे की सैलरी के बारे में कोई बात नहीं की.

अकेले सैलरी ही नहीं, बल्कि इन्होंने भविष्य की कोई आर्थिक योजना भी तैयार नहीं की और न ही एकदूसरे की खर्च करने की आदतों को समझा. घर वालों से मिली जानकारी के आधार पर दोनों ने एकदूसरे के बारे में अंदाजा भर लगाया कि अच्छी पगार है, इसलिए सेविंग अकाउंट में पैसा भी खासा होगा.

झिझक क्यों

शादी के बाद हनीमून मनाने दोनों ने पूर्वोत्तर राज्यों का रुख किया. हनीमून को यादगार बनाने के लिए दिल खोल कर खर्च किया. प्यार में डूबे इस नवदंपती ने फिर यह गलती दोहराई कि एकदूसरे की खर्च करने की आदतों के अलावा बचत और भविष्य की कोई बात नहीं की. हनीमून के दौरान अधिकांश बड़े खर्च जयंत ने किए और फिर दोनों पूना वापस आ गए जहां जयंत किराए के फ्लैट में रहता था. श्वेता ने भी अपनी ट्रांसफर पूना करवा ली, वहां उस की कंपनी की ब्रांच थी.

10 लाख शादी में देने के बाद और करीब 4 लाख हनीमून पर खर्च करने के बाद जयंत के पास पैसे कम बचे थे. महंगे होटलों का बिल उस ने अपने क्रैडिट कार्ड से अदा किया था.

खुद को आधुनिक कहने और समझने वाले ये दोनों उस पूर्वाग्रही भारतीय मानसिकता के शिकार थे, जिस में पैसों की बाबत खुल कर बात नहीं की जाती. हो यह रहा था कि अभी भी परंपरागत भारतीय पति की तरह घर खर्च जयंत ही कर रहा था. श्वेता बस अपने खर्चे उठा रही थी. उस का ध्यान इस तरफ गया ही नहीं कि जयंत काफी पैसे खर्च कर चुका है. शादी के खर्चे में अपनी भागीदारी की बात जयंत उसे यह सोच कर बता चुका था कि बात समझ कर वह खुद मदद की पहल करेगी, लेकिन यह अंदाजा महज अंदाज ही रहा.

क्रैडिट कार्ड के भारीभरकम बिलों और 40 हजार के किराए वाले लक्जरी फ्लैट का किराया जब भारी पड़ने लगा तो जयंत परेशान हो उठा. घर से पैसे मंगाता तो फजीहत होती. लिहाजा, हार मान कर उस ने श्वेता को तंगी की बात बताई तो वह हैरान तो हुई, लेकिन समझदारी दिखाते हुए अपने खाते से पैसे निकाल कर जयंत को दे दिए.

इस मोड़ पर आ कर शादी के 5 महीने बाद दोनों का ध्यान अपनीअपनी गलतियों पर गया और फिर उन्होंने न केवल पैसों पर खुल कर बात की, बल्कि भविष्य की योजनाओं का भी खाका खींच डाला कि अब आगे क्या करना है.

श्वेता ने जयंत से कहा भी कि पहले बता देते तो लगभग डेढ़ लाख रुपए बच जाते. दरअसल, हुआ यह था कि श्वेता यह समझती रही कि जयंत के पास पर्याप्त पैसे होंगे तभी तो वह खुले हाथ से खर्च कर रहा है. उधर शादी और हनीमून को यादगार बनाने के उत्साह में डूबा जयंत यह मान बैठा था कि श्वेता समझ रही होगी कि वह एक तरह से संयुक्त रूप से खर्च कर रहा है जबकि ऐसा कुछ था नहीं.

अब इन दोनों की माली रेलगाड़ी पटरी पर है और दोनों ने तय किया है कि अगले 3 साल तक जितना हो सकेगा पैसा बचाएंगे. दोनों तमाम नए कपल्स की तरह बच्चा भी प्लान कर रहे हैं कि उस का घर और दुनिया में आना कब ठीक होगा.

बाहर रह कर अपनी गृहस्थी की गाड़ी चला रहे बेटेबेटियों की जिंदगी में मांबाप अब कोई दखल नहीं देते. यह एक अच्छी बात है, लेकिन बात जब पैसों की आती है तो उन का चिंतित होना स्वाभाविक है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बहू के चुनाव में कोई चूक हो गई हो. उलट लड़की के मांबाप भी यह सोच सकते हैं कि कहीं गलत दामाद तो पल्ले नहीं पड़ गया.

ऐसे बनाएं आर्थिक साझेदारी

खुशहाल दांपत्य जीवन के लिए बेहद जरूरी है कि पतिपत्नी के बीच आमदनी को ले कर पारदर्शिता हो, इसलिए शादी तय होते ही या शादी के तुरंत बाद जीवनसाथी से इस मसले पर खुल कर बात लेना काफी कारगर साबित होता है.

नवदंपतियों को चाहिए कि वे अपनी फाइनैंशियल प्लानिंग जल्दी कर लें और इस के लिए जरूरी है:

– एकदूसरे से अपनी आमदनी व बचत छिपाएं नहीं, बल्कि उसे साझा करें.

– अगर शादी के पहले कोई बड़ा कर्ज ले रखा है तो उसे भावी जीवनसाथी को बता दें.

– एकदूसरे से छिपा कर उधारी का लेनदेन और अपने रिश्तेदारों की मदद न करें.

– शादी के बाद शुरुआती दौर में अपने जीवनसाथी की आमदनी और खर्च के मामलों पर आंख मूंद कर भरोसा न करें और उस की आदतों को समझें.

– क्रैडिट कार्ड के बजाय डैबिट कार्ड का इस्तेमाल करें.

– कम वेतन वाला खुद को हीन और ज्यादा वेतन वाला खुद को श्रेष्ठ या बुद्धिमान समझते हुए खुद को दूसरे पर थोपे नहीं.

– निजी कंपनियों की नौकरी भले ही अच्छी सैलरी वाली होती है, लेकिन उस के कभी भी जाने या किसी वजह से छोड़ने का जोखिम बना रहता है, इसलिए यह मान कर न चलें कि आज जो आमदनी है वह हमेशा बनी रहेगी. अत: दोनों बचत की आदत डालें.

– बचत के लिए कहां निवेश करें इस में मतभेद हों, तो उन्हें किसी अच्छे वित्तीय सलाहकार की मदद से दूर करें. आमतौर पर पत्नियां ज्वैलरी में तो पति म्यूचुअल फंड वगैरह में नियमित निवेश को प्राथमिकता देता है. पैसा ऐसी जगह लगाएं जहां से रिटर्न ज्यादा से ज्यादा मिलने की संभावना हो.

– घर खर्च में किस की कितनी हिस्सेदारी होगी यह तय करना कोई हरज या शर्म की बात नहीं. इस के लिए जरूरी है कि एकदूसरे के पैसे को अपना समझा जाए.

याद रखें पतिपत्नी का रिश्ता बेहद संवेदनशील होता है और बात जब पैसों की आती है, तो एकदूसरे से कुछ भी छिपाना या चोरीछिपे खर्च अथवा बचत करना और भी घातक साबित होता है. वैचारिक मतभेद एक दफा वक्त रहते सुलझ जाते हैं, लेकिन आर्थिक अविश्वास आ जाए तो वह आसानी से दूर नहीं होता.

बचत में रखें प्रतिस्पर्धा

यह कहावत गलत नहीं है कि बचाया गया पैसा ही असली आमदनी है, इसलिए नियमित बचत की आदत डालें. इस के लिए एक दिलचस्प तरीका यह अपना सकते हैं कि पतिपत्नी दोनों अपनी आमदनी से ज्यादा से ज्यादा बचत करने की प्रतिस्पर्धा करें.

जाहिर है ऐसा करेंगे तो दोनों अपनी व्यक्तिगत फुजूलखर्ची से छुटकारा पाने की और कोशिश करेंगे. होटलिंग, पैट्रोल, इलैक्ट्रौनिक्स आइटम, मोबाइल आदि पर खर्च करने पर लगाम लगाएं यानी इन पर जरूरत के मुताबिक ही खर्च करें. छोटी बचत लगातार की जाए तो वह देखते ही देखते बड़ी हो जाती है.

बचत प्रतिस्पर्धा के लिए 1 साल की मियाद तय करें कि कौन कितना पैसा बचा सकता है. अगर ईमानदारी से बचत करेंगे तो जान कर हैरान रह जाएंगे कि आप ने साल भर में एक बड़ा अमाउंट इकट्ठा कर लिया है, जिसे किसी बड़े काम या निवेश में लगाया जा सकता है.

यह भी याद रखें कि आजकल पैसा कमाने से दुष्कर काम पैसा बचाना हो चला है, इस के लिए अपने मातापिता का जीवन याद करें कि वे कैसेकैसे बचत करते थे. कुछ पैसा बचत खाते में डाला हो और कुछ निवेश भी किया हो, तो तय है दांपत्य की गाड़ी सरपट दौड़ेगी और दोनों के बीच कोई अविश्वास और मनमुटाव नहीं रहेगा.

पथरी से हैं परेशान तो, करें इन चीज़ो का परहेज़

अगर हम स्टोन की बात करें तो आज के ज़माने में किडनी में स्टोन एक आम बीमारी बन गई हैं। किडनी का काम है हमारे शरीर के अंदर ब्लड को फ़िल्टर करना और हानिकारक टॉक्सिन्स को यूरिन के साथ हमारे शरीर से बहार निकलना । जब हमारे ब्लड में इन तत्वों की मात्रा बढ़ जाती है तो किडनी में पत्थर का आकर बन जाता है जिसके कारण किडनी में पथरी की समस्या जन्म ले लेती है।इस बीमारी में खानपान को लेकर परहेज की सख्त जरूरत होती है.

क्या न खाएं

-कर दें कोल्ड ड्रिंक और चाय को ना
-चाय,कॉफी में कैफीन व कोल्ड ड्रिंक में कैफीन,फास्फोरिक एसिड की मात्रा अधिक होती है इस एसिड के बढ़ने से हमारे शरीर में स्टोन का खतरा और ज़्यादा बढ़ जाता है।

-ऑक्सलेट वाले चीज़ो से बना लें दूरी

-पालक , साबुत अनाज , चॉक्लेट , टमाटर आदि ऑक्सलेट से भरपूर होते हैं। ऐसे खाद्य पर्दार्थ कैल्शियम को इकट्ठा कर लेते हैं और यूरिन में नहीं पहुंचने देते । जिससे स्टोन का खतरा बढ़ जाता है।
-इनका सेवन करने से बचे
-बैंगन , अमरुद , कद्दू , चीकू , कच्चा चावल , उरद दाल, मांस, मछली, आदि का सेवन न करें. फलों में स्ट्रॉबेरी बेर ,अंजीर और किशमिश जैसे ड्राई फ्रूट्स का एवं समस्या बड़ा सकता है

-स्वाद में कम कर दें नमक
-हमें कम नमक या अनसाल्टेड पदार्थो को खाना चाहिए। अधिक नमक ,जंक फूड, डिब्बा बंद खाना भी पथरी का एक महत्वपूर्ण कारण है

-क्या खाएं
-बढ़ा दे लिक्विड डाइट
-स्टोन की परेशानी में पानी राम बाण का कम करता है। हमें दिन में 12 से 13 गिलास पानी पीना चाहिए। क्योंकि पानी से ही स्टोन बनाने वाले केमिकल गल पाते हैं ।
-कैल्शियम युक्त आहार का करें सेवन
-पथरी से खुद को बचाने के लिए कैल्शियम युक्त आहार लें जो वसा में कम हो जैसे पनीर, कम वसा वाला दूध व दही।

YRKKH: आरोही को अक्षरा के खिलाफ भड़काएगी सुलेखा, कहानी में आएगा नया मोड़

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में आए दिन नए-नए ट्विस्ट आते रहता है जिसे देखकर दर्शक काफी ज्यादा हैरान हो जाते हैं. इस सीरियल की कहानी अबीर की ईर्द -गिर्द घूम रही है, इन दिनों अबीर की हालत काफी ज्यादा खराब है और इसका इलाज अभिमन्यु कर रहा है.

दूसरी तरफ आरोही भी अक्षरा का सपोर्ट कर रही है, लेकिन अब कहानी में ट्विस्ट आने वाली है, सीरियल में अबीर की सच्चाई का पता चलेगा अभिमन्यु. अभिमन्यु बताता है कि डरने की बात नहीं है सब ठीक है . अभिमन्यु अभिनव को बतात है कि अभी अबीर की सर्जरी नहीं कर सकता है. बाद में होगा.

 

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यह बात सुनकर सबको तस्लली हो जाती है, अभिमन्यु अबीर से मिलने जाता है, अबीर अभि से बात करता है कि तुम प्लीज बचा लो. यह बात सुनकर अबीर तुरंत कमरे से बाहर जाता है और अपने इमोशन को कंट्रोल करने की कोशिश करता है.

दूसरी तरफ घर पर मंजरी भी अबीर की तबीयत को लेकर काफी ज्यादा परेशान है, तभी उसे अभिमन्यु से पता चलता है कि उसकी हालत काफी ठीक है पहले से ज्यादा. उसे थोड़ी राहत मिलती है.

वहीं घर पर आरोही काफी ज्यादा खुश नजर आती है तो उसे देखकर सुलेखा चाची कहती हैं कि कहीं ये खुशी उसपर भारी न पड़ जाए, अक्षरा मुश्किल में है और अभि उसके साथ हैं कहीं दोनों को एक-दूसरे से करीब आने का मौका न मिल जाए.

अनुपमा की नई जिंदगी की होगी शुरुआत तो कहानी से गायब होगा अनुज!

अनुपमा सीरियल में नए कहानी की शुरुआत हो चुकी है, हालांकि करैंट में हो रही कहानी की चीजे लोगों को परेशान कर रही है, अनुपमा में दिखाया जा रहा है कि अनुज और अनुपमा एक-दूसरे से अलग हो चुके हैं.

अनुपमा अपनी नई जिंदगी की शुरुआत करने की कोशिश कर रही है, वहीं अनुज अपनी बेटी के साथ मुंबई में हैं. वहीं खबर है कि कहानी में नया ट्रेक आते ही अनुज का पत्ता साफ हो जाएगा कहानी से. वहीं अब कहानी में पूरा फोकस अनुपमा पर किया जाएगा.

 

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वहींं सीरियल में दिखाया जाएगा कि अनुपमा अपनी जिंदगी की शुरुआत नए अंदाज में करने वाली हैं, जहां पर वह अपनी पुरानी बातों को भूला देंगी. बता दें कि अनुपमा के इस ट्रैक ने दर्शकों को हिलाकर रख दिया है.

दर्शक भी अनुपमा की कहानी देखने के लिए बेताब रहते हैं, इस सीरियल में अनुज यानि गौरव खन्ना ने जिस तरह से अपनी बेटी के लिए प्यार दर्शाया है वह हिलाकर रख दिया है. बता दें कि छोटी अनु के जाने के बाद से अनुज और अनुपा में दूरियां आ गई थी.

माया ने अनुज और अनुपमा को एक-दूसरे से दूर करने की कोशिश की है, जिसमें वह सफल रही है.

कॉम्प्रिहेंसिव हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी के साथ अपने हेल्थ और फाइनेंस को ऐसे करें सुरक्षित

कोरोना महामारी ने यह साबित कर दिया है कि मेडिकल इमरजेंसी किसी के भी साथ कभी भी आ सकती है, जो व्यक्ति की जेब पर भारी असर डाल सकती है। इसलिए मेडिकल इमरजेंसी का बिना किसी वित्तीय परेशानी के सामना करने के लिए एक पर्याप्त हेल्थ इंश्योरेंस होना बेहद ही जरूरी है।

सिद्धार्थ सिंघल, बिजनेस हेड-हेल्थ इंश्योरेंस, पॉलिसीबाजार डॉट कॉम का कहना है-
कोविड-19 के आने के बाद से इंश्योरेंस इंडस्ट्री में भी काफी बदलाव आया है, साथ ही लोगों में हेल्थ इंश्योरेंस के प्रति जागरूकता भी काफी बढ़ी है। वहीं इंश्योरेंस इकोसिस्टम भी हेल्थ इंश्योरेंस प्रोडक्ट्स को ग्राहकों की जरूरतों के अनुसार तैयार करने और कंज्यूमर सेंट्रिक बनाने के लिए लगातार कार्य कर रहा है।

ओपीडी कवरेज-
आमतौर पर हेल्‍थ इंश्‍योरेंस एक ट्रेडिशनल हेल्‍थ करवरेज प्‍लान होता है, जिसमें पॉलिसीधारक केवल तभी क्लेम कर सकता है, जब उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया हो और उसने अस्पताल में 24 घंटे से ज्यादा समय बिताया हो। लेकिन ओपीडी कवरेज अस्पताल में भर्ती हुए बिना इलाज के दौरान अस्पताल में होने वाले खर्चों के लिए कवरेज प्रदान करता है। इसमें चिकित्सा परामर्श, डायग्नोस्टिक टेस्ट, दवाइयों का खर्च आदि शामिल है। किसी भी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी में ओपीडी कवरजे शामिल होना बहुत ही फायदेमंद है क्योंकि यह समय-समय पर होने वाले रेगुलर मेडिकल खर्चों के वित्तीय बोझ को कम करता है।

क्यूमलेटिव बोनस-
क्यूमलेटिव बोनस को नो-क्लेम बोनस या NCB का एक और अधिक व्यापक रूप माना जाता है। क्यूमलेटिव बोनस पॉलिसीधारकों को पॉलिसी वर्ष के दौरान कोई क्लेम नहीं करने के लिए पुरस्कृत करता है।
यह पॉलिसीधारकों को एक स्वस्थ जीवन शैली बनाए रखने और अनावश्यक मेडिकल खर्चों से बचने के लिए प्रोत्साहित करता है, जिससे समय के साथ प्रीमियम कम हो सकता है। साथ यह बिना किसी अतिरिक्त प्रीमियम लागत के बीमित राशि को बढ़ाकर सुरक्षा की एक अतिरिक्त लेयर प्रदान करता है। यह लंबे समय में विशेष रूप से फायदेमंद हो सकता है, क्योंकि उम्र के साथ मेडिकल खर्चों में भी वृद्धि होती है।
इसके अलावा, हेल्थ इंश्योरेंस में क्यूमलेटिव बोनस पॉलिसीधारकों को अधिक व्यापक कवरेज और बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंचने में भी मदद कर सकता है।
मेटरनिटी प्लान्स-
गर्भावस्था के दौरान किसी भी तरह की परेशानी न हो इसके लिए, होने वाली मां को शुरू से ही चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है। यहीं पर मैटरनिटी बेनिफिट वाली हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी सामने आती है। जिसमें गर्भावस्था से पहले और गर्भावस्था के बाद दोनों समय का खर्च शामिल होता है। वास्तव में, अब ऐसी योजनाएं हैं जो गर्भ धारण करने की कोशिश कर रहे लोगों के लिए आईवीएफ लागत को भी कवर करती हैं। आम तौर पर मैटरनिटी बेनिफिट प्राप्त करने से पहले पॉलिसी के आधार पर दो से चार साल का वेटिंग पीरियड होता है। हालांकि, अब ऐसी पॉलिसी भी उपलब्ध हैं जिन्होंने इस वेटिंग पीरियड को घटाकर एक साल कर दिया है। इसलिए, मैटरनिटी बेनिफिट के साथ हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी जल्दी ही लेनी चाहिए क्योंकि मौजूदा गर्भावस्था को मैटरनिटी बेनिफिट के तहत कवर नहीं किया जाएगा।

मेंटल हेल्थ कवरेज-
मेंटल हेल्थ से जुड़ी परेशानियों को हमेशा से नजरअंदाज किया गया है। कोरोना महामारी के दौरान लोगों द्वारा एकांत में समय बिताने, प्रियजनों की मृत्यु के दुख, सामाजिक मेलजोल की कमी आदि ऐसे कई कारण है जिन्होने लोगों के मेंटल हेल्थ पर काफी नेगेटिव प्रभाव डाला है। लेकिन कोरोना महामारी के आने के बाद से लोगों ने फिजिकल हेल्थ के साथ-साथ मेंटल हेल्थ पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया है। इसे ध्यान में रखते हुए, IRDAI ने हेल्थ इंश्योरेंस के दायरे में मेंटल हेल्थ के कवरेज को भी अनिवार्य कर दिया है। मेंटल हेल्थ कवरेज किसी भी हेल्थ इंश्योरेंस प्लान का एक बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू है जो साइकेट्रिक ट्रीटमेंट, काउंसलिंग, और थेरेपी आदि के लिए कवरेज प्रदान करता है। मेंटल हेल्थ को व्यापक रूप से कवर करने के लिए ओपीडी कवरेज का विकल्प चुनना चाहिए।

वेलनेस बेनिफिट्स-
कोरोना महामारी ने प्रत्येक व्यक्ति को अपने स्वास्थ्य को लेकर और अधिक जागरूक कर दिया है। अब, हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी भी आपको स्वस्थ रहने के लिए पुरस्कृत करती हैं। यह प्रीमियम पर छूट या अधिक बीमित राशि या वाउचर हो सकता है जिससे ग्राहक को पुरस्कृत किया जाएगा। यह न केवल पॉलिसीधारक को स्वस्थ रहने के लिए प्रोत्साहित करता है बल्कि क्यूमलेटिव बोनस को कम रखने में भी मदद करता है। साथ ही यह पॉलिसीधारक को अपने हेल्थ इंश्योरेंस को भी रिन्यू करने के लिए प्रोत्साहित करता है।
हेल्थ इंश्योरेंस के लिए क्लेम प्रक्रिया
हेल्थ इंश्योरेसं पॉलिसी बीमाकर्ता द्वारा कैशलेस उपचार और मेडिकल खर्चों को कवर करने जैसे अतिरिक्त लाभों के साथ आती है। हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी की सम इंश्योर्ड लिमिट के अनुसार किए गए खर्चों के लिए क्लेम फाइल कर सकता है।
क्लेम फाइल करने के लिए दो प्रक्रियाएं है:

1. कैशलेस क्लेम अगर किसी नेटवर्क अस्पताल या कैशलेस अस्पताल में इलाज कराया जाता है, तो पॉलिसीधारक कैशलेस उपचार सेवाओं का लाभ उठाने के लिए पात्र होगा। साथ ही पॉलिसीधारक को अस्पताल में भर्ती होने के 24 घंटे पहले ही हेल्थ इंश्योरेंस कम्पनी को जानकारी देने की आवश्यकता होती है। जिसमें की इलाज पूरा हो जाने के बाद इंश्योरेंस कंपनी सीधे अस्पताल को बिल का भुगतान करती है।

2. पॉलिसीधारक किसी भी नॉन-नेटवर्क अस्पतालों में हुए इलाज के रिम्बर्समेंट के लिए, क्लेम फाइल कर सकता है। एक बार इलाज पूरा हो जाने के बाद, बीमाधारक को बिल का निपटान करने, सभी दस्तावेजों को इकट्ठा करने और फिर रिमबर्समेंट के लिए बीमाकर्ता या टीपीए के साथ क्लेम फाइल करने की आवश्यकता होती है।

‘मेयर को पूरे अधिकार देने की जरूरत है’: संयुक्ता भाटिया, मेयर, लखनऊ

लखनऊ की मेयर संयुक्ता भाटिया सुबह 8 बजे से 11 बजे तक अपने आवास पर लखनऊ की जनता से मिलती हैं. लोगों की जो भी परेशानियां होती हैं उन के संबंध में संबंधित अधिकारियों को फोन या पत्र लिख कर बताती हैं. ज्यादातर परेशानी जलभराव, सीवर, सफाई, कोई पशु सड़क पर मर जाए आदि की शिकायतें रहती हैं. इस के अलावा घर का किराया, नाम का बदलना, महल्ले की सड़क, नाली और खडंजा ठीक कराने की भी शिकायतें रहती हैं.

लखनऊ में 110 वार्ड हैं. 10 नगर पंचायत हैं. इन की परेशानियों को ले कर जनता मेयर से मिलती है. इस की सब से बड़ी वजह यह है कि मेयर आसानी से मिल जाती हैं. लखनऊ मेयर के रूप में संयुक्ता भाटिया का कार्यकाल पूरा हो चुका है. अभी नए चुनाव नहीं हुए हैं.

संयुक्ता भाटिया ने ग्रेजुएट तक अपनी पढ़ाई की है. इन के पति सतीश भाटिया विधायक रहे. उन की असमय मृत्यु के बाद संयुक्ता भाटिया ने उन के दवा के बिजनैस को संभाला. इस के साथ ही साथ वे राजनीति में सक्रिय भी रहीं. राजनीति के साथ बिजनैस और घरपरिवार संभालते हुए वे जनता की सेवा कर रही थीं. 2017 के निकाय चुनाव में वे लखनऊ नगर निगम के लिए मेयर का चुनाव लड़ीं. उत्तर प्रदेश में मेयर का चुनाव सीधे जनता करती है.

संयुक्ता भाटिया पहली महिला मेयर के रूप में चुनाव जीतीं. उन के घर में बेटाबहू और पोतापोतिया हैं. 65 साल की उम्र में जब वे मेयर बनीं तो भी बेहद सक्रिय रहती थीं. वे कार्यक्रम में ठीक समय पर पहुंच जाती थीं. उन का हेयरकट स्टाइलिश है. वे साड़ी पहनती हैं. उन की कौटन की साड़ी के रंगों का चुनाव बेहद आकर्षक होता है. इस में उन की बहू मदद करती है. वे मधुर स्वभाव की हैं. 65 साल की उम्र में उन की इतनी सक्रियता लोगों के लिए मिसाल है.

5 साल मेयर के रूप में काम करने का अनुभव कैसा रहा, इस सवाल के जवाब में संयुक्ता भाटिया कहती हैं, “5 साल का अनुभव बहुत अच्छा रहा. मैं लखनऊ की पहली महिला मेयर बनी थी, तो बहुत उत्साह था. सुबह से ले कर रात तक मैं लखनऊ के लोगों के बीच रहती थी. सुबह घर पर मिलना. इस के बाद अलगअलग इलाकों में काम करना. नगर निगम औफिस में बैठना. फोन पर लोगों की परेशानियों को सुनना, उन का निदान करना होता था. मंगलवार का दिन जनसुनवाई के लिए रखा था. पूरे कार्यकाल में लखनऊ के लिए काम किया. लखनऊ का नाम अच्छे और साफसुथरे शहरों की श्रेणी में आ गया.””

अपने सामने आई दिक्कतों के बारे में वे कहती हैं, ““केवल हमें ही नहीं, सभी मेयरों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. उस की वजह यह है कि मेयर से जनता को जितनी उम्मीदें हैं उस के मुकाबले मेयर को बेहद कम अधिकार मिले हैं. नगर निगम नगर विकास विभाग के आधीन काम करता है. लंबे समय से संविधान संशोधन कर मेयर को पूरे अधिकार देने की मांग हो रही है. इस के बाद भी केंद्र सरकार यह अधिकार देने की पहल नहीं कर रही. अब जरूरत इस बात की है कि मेयर को पूरे अधिकार दिए जाएं, जिस से वह केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार की तरह ही नगर निगम को चला सके. नगर निगम को सरकार जैसे अधिकार दिए जाएं जिस से वह अपने काम आसानी से करा सके. उस को किसी विभाग के धीन काम न करना पड़े.”

महिला मेयर के रूप में अपने अनुभव के बारे में वे बताती हैं, ““मुझे लखनऊ की जनता का बहुत सहयोग मिला. लखनऊ का हर घर, हर महल्ला मुझे जानतासमझता है. सब के पास हमारा नंबर है. मेरे लिए लखनऊ एक परिवार जैसा है. मेरा कार्यकाल पूरा हो गया है. अभी नए मेयर का चुनाव नहीं हुआ है. अब भी मेरे पास लोगों के फोन आते रहते हैं. मैं अपने स्तर से जितना काम कर सकती हूं, जरूर करती हूं. महिला मेयर होने के नाते महिलाएं खुल कर अपनी बात कहती थीं. कई बार वे अपने घर की परेशानियां भी शेयर करती थीं और मुझ से उस को हल करने के उपाय पूछती थीं.””

मैं 43 वर्षीया गृहिणी हूं, मेरे शरीर में हमेशा कुछ न कुछ लगा ही रहता है, मुझे डॉक्टर ने पौजिटिव मिलेट्स खाने को कहा है, इसका क्या फायदा है??

सवाल

मैं 43 वर्षीया गृहिणी हूं. सेहत को ले कर कुछ न कुछ लगा ही रहता है. कोशिश रहती है कि पौष्टिक आहार ही खाऊं लेकिन जब भी डाक्टर के पास जाती हूं वे मेरी डाइट सुन कर यही कहते हैं कि गेहूंचावल की जगह पौजिटिव मिलेट्स का प्रयोग करें. मिलेट्स तो जानती हूं लेकिन ये पौजिटिव मिलेट्स क्या हैंक्या ये ज्यादा फायदेमंद हैं?

जवाब

पौजिटिव मिलेट्स को मिरेकेल ग्रेन्स यानी चमत्कारी अनाज माना जाता है. इसलिए हम इन्हें सिरी घान्य मिलेट्स कहते हैं. ये हैं-

– कंगनी मिलेट (फोक्सटेल मिलेट) जो डाइटरी फाइबर आयरन और कौपर से भरपूर होते हैं. ये खराब कोलैस्ट्रौल को कम करता है और इम्यूनिटी को मजबूत करता है.

– मुरात मिलेट (ब्राउन टौप) पचने में आसान होता है और शरीर को हाइट्रेट करता है. यह प्रीबायोटिक फीडिंग माइक्रोफ्लोरा के रूप में काम करता है. इस में मौजूद मैग्नीशियम हार्टअटैक के असर को कम करता है. यह म्यूटेन फ्री और नौन एलर्जेनिक है.

– सांवा (बर्नयार्ड मिलेट) वजन घटाने के लिए अच्छा है. इस में भरपूर मात्रा में फाइबर होता है. यह कैल्शियम और फास्फोरस का समृद्ध स्रोत है.

– कोदो मिलेट पचने में आसान है और फाइये केमिकल्सएटीऔक्सीडेंट से भरपूर है. घुटने और जोड़ों में दर्द को कम करता है.

– कुटकी (लिटिल मिलेट) भी विटामिनकैल्शियम आयरनजिंक और पोटैशियम जैसे खनिजों का समृद्ध स्रोत है. यह वजन घटाने में मदद करता है और फिटनैस के लिए बहुत अच्छा है.

डाक्टर आप को ये पौजिटिव मिलेट खाने के लिए इसलिए कहते हैं क्योंकि आप कह रही हैं कि आप की सेहत के साथ कुछ न कुछ लगा रहता है. ये मिलेट शरीर को डिटौक्सीफाई करते हैं, स्तन कैंसर की शुरुआत को रोकते हैं और टाइप-2 मधुमेह को रोकने में भी मदद करते हैं. ये गैस्ट्रिक अल्सर या कोलन कैंसर जैसी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल परेशानियों के रिस्क को कम करते हैं. कब्जअधिक गैससूजन और ऐंठन जैसी समस्याओं को दूर करते हैं.

हो जाने दो : जलज के जानें के बाद कनिका को किसका साथ मिला?

लेखिका- आशा शर्मा 

ऐसे करें भूकंप का अनुमान एवं बचाव

भूकंप के आएदिन आ रहे  झटके खतरे की चेतावनी हैं. इस से बचने के लिए सू झबू झ से काम लेना होगा और खुद को सुरक्षित रखना होगा.

हालिया महीनों में आ रहे भूकंप के  झटकों से दिल्ली एनसीआर, गुजरात, जम्मूकश्मीर, लद्दाख, पूर्वोत्तर भारत और दक्षिण भारत में एक चिंता उभर कर सामने आई है. इस के अलावा आसपास के अन्य देशों में भी भूकंप के  झटके आए हैं.

उल्लेखनीय है कि हमारी धरती टैक्टोनिक प्लेटों पर टिकी है. जब ये प्लेटें आपस में टकराती हैं तो हमें भूकंप का एहसास होता है. 2 टैक्टोनिक प्लेटों के बीच में दरार की रेखाएं या फौल्टलाइंस होती  हैं. अकसर इन फौल्टलाइंस के एडजस्टमैंट के कारण भूकंप आते हैं. इन फौल्टलाइंस में जब दरार बढ़ती है या 2 प्लेटें आपस में जोर से टकराती हैं तब जोर से भूकंप आता है.

यदि आप नया घर या फ्लैट खरीद रहे हों तो पता कर लें कि वह एरिया किस भूकंपीय जोन में है. क्या वह घर या फ्लैट भूकंप से सुरक्षित है? क्या वहां मिट्टियों की टैस्ंिटग की जा चुकी है? क्या घर या फ्लैट बनाते समय वहां किसी स्ट्रक्चरल इंजीनियर से सलाह ली जा चुकी है? क्या इंजीनियर के सु झावों से रैट्रोफिटिंग द्वारा घर या फ्लैट भूकंपरोधी बनाया गया है?

भूकंप से बचने के लिए

सब से कम खतरे वाला भूकंपीय जोन एक होता है और सब से अधिक खतरे वाला भूकंपीय जोन 5 होता है. जैसे ही आप को भूकंप का  झटका महसूस हो आप सब से पहले घर की बिजली का मेनस्विच औफ कर दें. इस के तुरंत बाद घर से बाहर किसी सुरक्षित जगह में चले जाएं.

घर में घरेलू सामान, जैसे कपड़ों की अलमारी, किताबों की अलमारी, आईना आदि को दीवारों से संतुलन बना कर रखना चाहिए. ऐसा नहीं कि हलके  झटके में ही अलमारी आदि गिर जाए और भागने का रास्ता जाम हो जाए.

पानी की बोतल, टौर्च, बैट्री से चलने वाला रेडियो, मोबाइल, सूखे भोज्य पदार्थ, रोजमर्रा की दवाइयां आदि वस्तुओं को हमेशा आसानी से मिलने वाली जगह पर ही रखें.

घर से नहीं भाग पाने की स्थिति में मजबूत चौकी, पलंग के नीचे, दरवाजों के बीचोंबीच या कोने में खड़े हों या बैठ जाएं. मकान गिरने की स्थिति में यही एक जगह जान बचाने के लिए उचित जगह होती है.

यदि आप किसी प्रेक्षागृह या सभागार यानी औडिटोरियम में फंसे हों तो अंदर ही रुकें. दोनों हाथों से सिर को ढक लें ठीक वैसे ही जैसे आप अपने सिर पर हैलमेट लगाते हैं और भूमि कंपन शांत होने पर कतारबद्ध तरीके से बाहर निकलें.

यदि ऊंची इमारत में फंसे हों तो लिफ्ट का प्रयोग बिलकुल न करें. क्षतिग्रस्त मकान के साइड में प्रवेश न करें, न ही रहें क्योंकि भूकंप के तुरंत बाद भी दूसरे  झटके आ सकते हैं.

घबराहट में इधरउधर न भागें. घर में हों या कैंटीन में, खाना पकाने वाली गैस, बिजली से चलने वाले उपकरणों आदि का प्रयोग न करें.

भूकंप रुक भी जाए तब भी कुछ समय तक माचिस, मोमबत्ती, लालटेन, दीया आदि न जलाएं.

यदि आप घर से बाहर हों या गाड़ी चला रहे हों तो सड़क के किनारे रोक दें. याद रखें गाड़ी किसी खंभे, विज्ञापन होर्डिंग, पेड़ आदि के नीचे खड़ी न करें.

सरकार की ओर से जारी आपदा प्रबंधन विभाग, अग्निशमन सेवा, पुलिस प्रशासन आदि की सूचना पर ध्यान दें और उस का पालन करें. किसी गलत अफवाह पर ध्यान न दें और न ही फैलाएं.

बच्चे, महिलाओं, बुजुर्गों औरलाचार की मदद करें. एक कुशल आपदामित्र बनें. भूकंप की आहट सुनें

ध्यान रखें कि हमारे देश में भूकंप की भविष्यवाणी करने का कोई सक्षम तंत्र उपलब्ध नहीं है. चीन, जापान और अमेरिका के पास टैक्टोनिक प्लेटों की गति पर नजर रखने का तंत्र है. यह काफी खर्चीला तंत्र है. इस स्थिति में मुख्य सवाल है, कैसे सम झें कि भूकंप आने ही वाला है.

चीटियों में सिक्स्थ सैंस पाया जाता है. इस कारण वह अपने केमोरिसेप्टर की मदद से गैसों का पता लगा लेती हैं. वहीं, चुम्बकीय क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों को आंकने में मैग्नेटोरिसेप्टर उन की मदद करता है. इन चीटियों को साधारण सम झने की गलती नहीं करनी चाहिए.

शोधकर्ताओं ने बताया है कि रेडवुड प्रजाति की चीटियां अपना घर या बाम्बी धरती के अंदर पाई जाने वाली टैक्टोनिक प्लेटों की सक्रिय दरारों या फौल्टलाइंस पर बनाती हैं. इन प्लेटों में जरा सी भी हलचल हुई नहीं कि चीटियां अपनी बाम्बी से बाहर निकलने लगती हैं. प्लेटों में हलचल होना और प्लेटों को आपस में टकरा कर कंपन उत्पन्न होने में कुछ वक्त लगता है और उस कंपन के भूतल तक पहुंचने में भी कुछ वक्त लगता है.

इस के पहले ही चीटियां अपने बाम्बी से बाहर निकलने लगती हैं. अगर आप को इस तरह की प्रजाति की चीटियां अपनी बाम्बी से बाहर निकलती नजर आएं तो आप सतर्क हो जाएं और सम झें कि कोई भूकंप आ सकता है. याद रहे कि हर बार ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि हलकी हलचल से चीटियां अपनी बाम्बी  से बाहर निकल तो आती हैं लेकिन वह  हलचल इतनी तेज नहीं होती कि उस का कंपन धरती के अधिकेंद्र तक पहुंच पाए.

बता दें कि अधिकेंद्र वह जगह होती है जहां धरती पर सब से पहले भूकंप की तरंगें पहुंचती हैं और वही जगह सब से अधिक प्रभावित भी होती है. अध्ययन में पाया गया है कि आम दिनों में चीटियां दोपहर के वक्त सारे काम निबटा कर रात को वापस बाम्बियों में चली जाती हैं, लेकिन भूकंप के दिन उन का व्यवहार कुछ बदला हुआ नजर आता है. बाम्बियों के बाहर उन्हें अपने शिकारी प्राणियों की चपेट में आने का खतरा होता है. इस के बावजूद, वे सारी रात बाम्बी के बाहर ही व्यतीत करती हैं.

शायद चीटियां धरती के अंदर से निकलने वाली और पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र में आने वाले परिवर्तनों को भांप चुकी होती हैं. चीटियों की इस हरकत पर हम नजर रख कर आने वाली भूकंप की आपदा का अनुमान लगा सकते हैं और साथ ही, भूकंप से होने वाले जानमाल का नुकसान कम भी कर सकते हैं. पर यह काम वैज्ञानिक ही कर सकते हैं, आम लोगों को तो उन की चेतावनी का इंतजार करना होगा.

 लेखक- कृष्ण कुमार

कलंकित मां का यार

बात 21 अक्तूबर, 2019 की है. मध्य प्रदेश के धार जिले के थाना बगदून के टीआई आनंद तिवारी अपने औफिस में बैठे थे, तभी उन के पास एक महिला आई. उस महिला के साथ 12-13 साल की एक किशोरी भी थी. महिला के साथ आई किशोरी काफी डरी हुई थी. अनीता नाम की महिला ने टीआई को बताया कि इस लड़की के साथ बहुत ही घिनौना कृत्य किया गया है. महिला की बात को समझ कर थानाप्रभारी ने तुरंत एसआई रेखा वर्मा को बुला लिया.

रेखा वर्मा ने उस महिला व उस के साथ आई लड़की से पूछताछ की तो उन की कहानी सुन कर वह आश्चर्यचकित रह गईं. वह सोच में पड़ गईं कि क्या कोई मां ऐसी भी हो सकती है. उन दोनों ने पूछताछ के बाद महिला एसआई रेखा वर्मा ने टीआई आनंद तिवारी को सारी बात बता दी.

सुन कर टीआई भी बुरी तरह चौंके. वही क्या कोई भी इस बात पर भरोसा नहीं कर सकता था कि एक मां अपनी मासूम बेटी के साथ एक अधेड़ व्यक्ति से बलात्कार जैसा घिनौना कृत्य करवाया.प्रारंभिक पूछताछ में थाने आई किशोरी ने बताया था कि वह कक्षा 6 में पढ़ती है. पिता मांगीराम की मौत के बाद मां 4 भाईबहनों के साथ रह कर मेहनतमजदूरी करती थी. लेकिन 4 साल पहले मां ने तब मजदूरी करनी छोड़ दी जब उस की दोस्ती मटन बेचने वाले महमूद से हुई. तब से महमूद अकसर उस के घर आने लगा था.

पीडि़त बच्ची ने आगे बताया कि महमूद के आने पर मां सब भाईबहनों को बाहर के कमरे में बैठा कर खुद उस के साथ कमरे में चली जाती थी. ऐसा बारबार होने लगा तो मैं ने एक दिन चुपचाप झांक कर देखा. मां और महमूद पूरी तरह नंगे हो कर गंदा खेल खेल रहे थे. मैं ने मां को इस बात के लिए मना किया तो उस ने उलटा मुझे डांट दिया और खामोश रहने की हिदायत दी.

उस लड़की ने आगे बताया कि 15 अक्तूबर को महमूद शाम को हमारे घर आया तो मां ने मुझे उस के साथ पीछे के कमरे में भेज दिया. उस कमरे में महमूद मुझ से अश्लील हरकतें करने लगा. मैं ने भागने की कोशिश की तो मां ने मेरे हाथपैर बांध दिए और खुद दरवाजे पर आ कर खड़ी हो गई. तब महमूद ने मेरे साथ गंदा काम किया.

इस के बाद वह मां को 600 रुपए दे कर चला गया. इस बात की जानकारी मैं ने पड़ोस में रहने वाली अनीता आंटी को दी तो उन्होंने मदद करने का वादा किया. आज फिर महमूद हमारे घर आया और मुझे पकड़ कर पीछे के कमरे में ले जाने लगा, जिस पर मैं मां और उस की पकड़ से छूट कर बाहर भाग आई. काफी देर बाद जब घर वापस लौटी तो मेरी मां ने मेरे साथ मारपीट की, जिस के बाद मैं आंटी को ले कर थाने आ गई.
पड़ोस में रहने वाली अनीता के साथ आई मासूम बच्ची के झूठ बोलने की कोई संभावना और कारण नहीं था, इसलिए टीआई आनंद तिवारी ने उसी वक्त मासूम किशोरी का मैडिकल परीक्षण करवाया, जिस में उस के साथ दुष्कर्म किए जाने की पुष्टि हुई.

इस के बाद टीआई ने किशोरी की आरोपी मां ऊषा और उस के आशिक महमूद शाह के खिलाफ बलात्कार एवं पोक्सो एक्ट का मामला दर्ज कर के इस घटना की जानकारी एसपी (धार) आदित्य प्रताप सिंह को दे दी.

जबकि वह स्वयं पुलिस टीम ले कर आरोपियों की गिरफ्तारी के लिए निकल गए. दोनों आरोपी घर पर ही मिल गए. आधे घंटे में पुलिस 30 वर्षीय ऊषा और उस के 42 वर्षीय आशिक महमूद को हिरासत में ले कर थाने लौट आई.

पूछताछ की गई तो पहले तो मां और उस का आशिक दोनों बेटी को झूठा बताने की कोशिश करते रहे. लेकिन थोड़ी सी सख्ती करने पर उन्होंने सच्चाई बता दी. उन से पूछताछ के बाद जो हकीकत सामने आई, उस ने मां शब्द पर ही ग्रहण लगा दिया. कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि मां ऐसी भी हो सकती है.

मध्य प्रदेश के धार जिले के पीतमपुर गांव की रहने वाली ऊषा के पति मांगीराम की अचानक मौत हो गई थी. पति की मौत के बाद ऊषा के सामने बच्चों को पालने की समस्या खड़ी हो गई. उस के 4 बच्चे थे. 30 वर्षीय ऊषा को किसी तरहघर का खर्च तो चलाना ही था, लिहाजा वह मेहनतमजदूरी करने लगी.
जवान औरत के सिर से अगर पति का साया उठ जाए तो कितने ही लोग उसे भूखी नजरों से देखने लगते हैं. ऊषा पर भी तमाम लोगों ने डोरे डालने शुरू कर दिए थे. इसी दौरान खूबसूरत ऊषा पर मटन की सप्लाई करने वाले महमूद शाह की नजर पड़ी.

महमूद का बगदून में पोल्ट्री फार्म था. अपने फार्म से वह ढाबे और होटलों में मटन सप्लाई करता था. महमूद ऊषा के नजदीक पहुंचने के लिए जाल बुनने लगा. इस से पहले महमूद गरीब घर की ऐसी कई लड़कियों और महिलाओं को अपना शिकार बना चुका था, वह जानता था कि गरीब औरतें जल्दी ही पैसों के लालच में आ जाती हैं.

उस ने काम के बहाने ऊषा से जानपहचान बढ़ाई और उस के बिना मांगे ही उसे मटन देने लगा. ऊषा ने जब उस से कहा कि वह पैसा नहीं चुका पाएगी तो उस ने कहा कि कभी मुझे अपने घर बुला कर मटन खिला देना. मैं समझ लूंगा कि सारे पैसे वसूल हो गए. जवाब में ऊषा ने कह दिया कि आज ही आ जाना, खिला दूंगी. इस पर महमूद ने मिर्चमसाले आदि के लिए उसे 200 रुपए भी दे दिए.

ऊषा खुश हुई. उस ने उस के लिए मटन बना कर रखा लेकिन महमूद नहीं आया. अगले दिन ऊषा ने महमूद से शिकायत की तो उस ने कोई बहाना बना दिया और फिर किसी दिन आने को कहा. उस के बाद अकसर ऐसा होने लगा. ऊषा मटन बना कर उस का इंतजार करती. अब वह मटन के साथ उसे खर्च के पैसे भी देने लगा. इस तरह ऊषा का उस की तरफ झुकाव होने लगा.

महमूद ऊषा की बातों और मुसकराहट से समझ गया था कि वह उस के जाल में फंस चुकी है, लिहाजा एक दिन वह दोपहर के समय ऊषा के घर चला गया. उस समय ऊषा के बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने गए हुए थे. महमूद को घर आया देख ऊषा खुश हुई. महमूद उस से प्यार भरी बातें करने लगा. उसी दौरान दोनों ने अपनी हसरतें भी पूरी कर लीं.

हालांकि महमूद शादीशुदा और 2 बच्चों का पिता था. लेकिन ऊषा ने जिस तरह उसे खुश किया, उस से वह बहुत प्रभावित हुआ. इस के बाद उसे जब भी मौका मिलता, ऊषा के घर चला आता.कुछ महीनों बाद उस के कहने पर ऊषा ने मजदूरी करना बंद कर दिया. उस के घर का पूरा खर्च महमूद ही उठाने लगा. वह भी दिन भर महमूद के साथ बिस्तर में पड़ी रहने लगी.

ऊषा की बड़ी बेटी 12-13 साल की थी. मां के साथ महमूद को देख कर वह भी समझ गई थी कि मां किस रास्ते पर चल रही है.बेटी ने मां की इस हरकत का विरोध करने की कोशिश की. लेकिन ऊषा पर बेटी के समझाने का तो कोई फर्क नहीं पड़ा, उलटे महमूद की नजर बेटी पर जरूर खराब हो गई.

कुछ समय बाद महमूद ने ऊषा को 2 हजार रुपए दे कर बड़ी बेटी को उस के साथ सोने के लिए तैयार करने को कहा. 2 हजार रुपए देख कर वह लालच में अंधी हो गई और बेटी को उसे सौंपने को तैयार हो गई. जिस के चलते 15 अक्तूबर की शाम को महमूद ऊषा की बेटी के संग ऐश करने की सोच कर उस के घर पहुंचा.
ऊषा ऐसी निर्लज्ज हो गई थी कि वह अपनी कोमल सी बच्ची को उस के हवाले करने को तैयार हो गई.
महमूद के पहुंचने पर ऊषा ने बेटी को महमूद के साथ बात करने के लिए कमरे में भेज दिया. उसे देखते ही महमूद उस पर टूट पड़ा तो वह रोनेचिल्लाने लगी.

यह देख बेदर्द ऊषा कमरे में आई और बेटी की चीख पर दया दिखाने के बजाए उलटा उसे समझाने लगी, ‘‘कुछ नहीं होगा, थोड़ा प्यार कर लेने दे. तू महमूद को खुश कर देगी तो यह तुम्हें लैपटौप और मोबाइल दिला देंगे.’’बच्ची डर के मारे रो रही थी. वह नहीं मानी तो बेहया ऊषा ने अपनी बेटी के हाथ और पैर बांध कर बिस्तर पर पटक दिया. इस के बाद महमूद को अपनी मन की करने का इशारा कर के वह कमरे के दरवाजे पर बैठ कर चौकीदारी करने लगी.

महमूद वासना का भूखा भेडि़या बन कर उस कोमल बच्ची पर टूट पड़ा. असहाय और मासूम बच्ची दर्द से कराहती रही, लेकिन न तो उस दानव का दिल पसीजा और न ही जन्म देने वाली मां का. उस के नाजुक जिस्म को लहूलुहान करने के बाद महमूद मुसकराते हुए उठा और अपने कपड़े पहनने के बाद ऊषा को 600 रुपए दे कर दूसरे दिन फिर आने को कह कर वहां से चला गया.

बच्ची अपने शरीर से बहता खून देख कर डर गई तो ऊषा ने उसे डांटते हुए कहा, ‘‘नाटक मत कर. हर लड़की के साथ पहली बार यही होता है. तू इस से मरेगी नहीं, 1-2 दिन में सब ठीक हो जाएगा.’’
दूसरे दिन हवस का भेडि़या बन कर महमूद फिर आया पर ऊषा ने उसे समझाया कि बच्ची अभी घायल है. 2-4 दिन उस से मुलाकात नहीं कर सकती. इस पर महमूद ऊषा के संग कमरे में कुछ समय बिता कर चला गया.

इधर डर के मारे बच्ची कांप रही थी. वह सीधे आंटी अनीता के पास पहुंची और उन से मदद की गुहार लगाई.21 अक्तूबर को ऊषा ने फिर अपनी बेटी को महमूद के साथ कमरे में भेजने की कोशिश की, जिस पर वह घर से बाहर भाग गई. लौटने पर ऊषा ने उस की पिटाई की तो उस ने अनीता आंटी को सारी बात बताई. इस के बाद अनीता बच्ची को ले कर थाने पहुंच गईं. पुलिस ने कलयुगी मां ऊषा और उस के प्रेमी महमूद से पूछताछ के बाद कोर्ट में पेश कर जेल भेज दिया.

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