Download App

भाजपा कर्नाटक से सबक क्यों नहीं सीखना चाहती?

दक्षिण भारत में सत्ता में काबिज रही कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहासिक हार हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी सारे सिद्धांतों को छोड़ कर पूरी ताकत के साथ कर्नाटक में चुनावी अभियान चला रहे थे. एक ऐसा अभियान, जिस में कानून, नैतिकता, धर्म सब की बलि चढ़ा दी गई. चुनाव में बजरंगबली हिंदुओं के इष्टदेव को बीच में ले आना, बजरंगबली के नाम पर मतदाताओं को वोट देने की अपील करना, ऐतिहासिक बता कर के 10 किलोमीटर की रैलियों में जाना और चुनाव आयोग का मुंह बंद हो जाना वगैरह यह सब कर्नाटक में देश ने देखा है. इस सब के बावजूद भारतीय जनता पार्टी चारों खाने चित हो गई.

आप को याद होगा कि बड़े गर्व के साथ यह कहना कि देश को कांग्रेस से मुक्त कर देंगे. कहने वालों को मुंह की खानी पड़ी और स्थिति यह है कि दक्षिण भारत से भाजपा का सफाया हो गया. बड़ीबड़ी, ऊंचीऊंची बातें करने वालों के लिए यह एक सबक हो सकता है कि कभी भी अपनी जमीन को नहीं छोड़ना चाहिए. मगर सब से बड़ी बात यह है कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्नाटक की करारी हार के बावजूद अपने रीतिनीति को बदलने के लिए तैयार नहीं हैं. अभी भी देश की आम जनता को बांटने और भ्रमित करने की अपनी चाल चलने से बाज नहीं आ रहे हैं.

नफरत की दुकान या प्रेम की दुकान

कांग्रेस ने एक बार फिर तथ्यों के साथ आरोप लगाया है, “भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा कर्नाटक में उस के खिलाफ आए निर्णायक फैसले को पचा नहीं पा रही है और वह ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है.”

कांग्रेस ने 13 मई, 2023 को कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों में 136 विधानसभा सीटों में परचम लहरा कर पूर्ण बहुमत हासिल कर जबरदस्त वापसी की. मगर इस के बाद भारतीय जनता पार्टी को मानो यह सब सहा नहीं जा रहा है और अपने चालचरित्र को उजागर कर रही है, जिस का खुलासा कांग्रेस महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने एक ट्वीट में किया, ‘कर्नाटक में समाज के सभी वर्गों से कांग्रेस के पक्ष में निर्णायक फैसले को भाजपा हजम नहीं कर पा रही है और भाजपा की नफरत फैलाने की ‘औनलाइन फैक्टरी’ झूठ पर झूठ फैलाने के लिए ‘दिनरात’ लगी हुई है.’

उन्होंने यह भी कहा, ‘निस्संदेह यह प्रधानमंत्री की नफरत और ध्रुवीकरण की राजनीति से प्रेरित है.’

कांग्रेस का यह पलटवार भाजपा के आईटी विभाग के प्रमुख अमित मालवीय की ओर से जारी उस ट्वीट पर किया गया है, जिस में कथिततौर पर कर्नाटक के भटकल में एक व्यक्ति को अर्धचंद्र और तारे वाला हरा झंडा लहराते हुए देखा जा सकता है.

अमित मालवीय ने वीडियो के साथ ट्वीट किया, ‘भटकल कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के तुरंत बाद.’ भाजपा नेता ने एक अन्य ट्वीट में कथिततौर पर बेलगावी का एक वीडियो पोस्ट किया और कहा, ‘बेलगावी में भड़काऊ नारे लगाए गए… पुलिस देखती रही, क्योंकि कांग्रेस कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए तैयार है… भटकल से बेलगावी तक, ‘मोहब्बत की दुकान’ कुछ ऐसे खुल गई है.’

दरअसल, भाजपा नेता अमित मालवीय ने आरोप लगाया, ‘कांग्रेस की तुष्टीकरण की राजनीति कर्नाटक के सामाजिक तानेबाने को तहसनहस कर देगी.’

राज्य में 224 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल करते हुए 136 सीट जीतीं, जबकि सत्तारूढ़ भाजपा और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा नीत जनता दल (सैकुलर) को क्रमशः 66 और 19 सीटें ही मिल पाईं.

कुलमिला कर भाजपा को यह समझना और मानना होगा कि भारत देश की तासीर प्रेम और सद्भाव है. यहां नफरत फैलाने वाले कभी भी सफल नहीं हो पाते हैं. यही कारण है कि हजारों साल से भारत हिंदुस्तान है, भारत है.

पुरुषों में भी बेबी ब्लूज

आमतौर पर यही माना जाता है कि बच्चे को जन्म देने के बाद महिलाओं में अजीब सी चिंता, अवसाद, झुंझलाहट और तनाव की अनुभूति होती है, जिसे पोस्टपार्टम डिप्रैशन कहते हैं. लेकिन समाजशास्त्रियों, मनोविज्ञानियों और व्यवहार विशेषज्ञों का मानना है कि पिता बनने के बाद बहुत सारे पुरुष भी पैनिक अटैक और डिप्रैशन के शिकार हो जाते हैं.

‘पीडिएट्रिक्स जर्नल’ में एक अध्ययन के मुताबिक 25 वर्ष की उम्र के आसपास पिता बनने वाले पुरुषों में शिशु के जन्म के बाद डिप्रैशन बढ़ने के चांस 68 फीसदी ज्यादा होते हैं. अध्ययन के मुखिया डा. क्रैग गारफील्ड कहते हैं, ‘‘बच्चे के जन्म के बाद महिलाओं की तरह पुरुषों को भी भावनात्मक सहारे की जरूरत होती है, लेकिन उन की जरूरत को कोई महसूस नहीं करता.’’

उदासी और ऊर्जाहीनता

2 बच्चों के पिता रिकी शेट्टी पिता बनने के बाद अपने जीवन में आए बदलावों से बहुत परेशान हो गए. उन्हें बेहद बुरी भावनात्मक उथलपुथल का सामना करना पड़ा. इस बुरे दौर से उबरने के बाद उन्होंने अपने अनुभवों को उजागर किया और इन पर आधारित एक किताब ही लिख डाली, ‘विजडम फ्रौम डैडीज.’ शेट्टी कहते हैं, ‘‘बहुत सारे युवक पिता बनने के बाद डिप्रैशन और ऐंग्जाइटी की चपेट में आ जाते हैं. उन्हें कई तरह की चिंताएं सताती हैं जैसे बढ़ी हुई आर्थिक जिम्मेदारियां, उन के वैवाहिक जीवन पर पड़ने वाला प्रभाव, सैक्स का कम या बिलकुल भी मौका न मिलना, कई प्रकार की अतिरिक्त जिम्मेदारियां और रात को बच्चे की चिल्लपों के कारण ठीक से सो न पाना.’’

‘जर्नल औफ द अमेरिकन मैडिकल ऐसोसिएशन’ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक सब से ज्यादा डिप्रैशन 3 से 6 महीने के नवजात शिशु के पिताओं में पाया जाता है. बच्चे के आगमन के बाद इन्हें अपना महत्त्व कम होता लगता है, क्योंकि पत्नी की दिलचस्पी इन में घट जाती है. इस दौर में वे हर वक्त रात को नींद पूरी न होने, थकान, उदासी और ऊर्जाहीनता की शिकायत करते हैं.

लाइफस्टाइल में बदलाव

फोर्टिस अस्पताल, कोलकाता के मनोविज्ञानी संजय गर्ग कहते हैं, ‘‘आजकल एकल परिवारों का जमाना है. इसलिए बच्चे को संभालने के लिए दादी, बूआ, ताई या चाची तो होती नहीं, न ही जरूरत पड़ने पर डाक्टर वगैरह के पास जाने के लिए घर में कोई दूसरा पुरुष होता है. ऐसे में सारी जिम्मेदारी पतिपत्नी को ही निभानी पड़ती है और इस से उन की आजादी और मस्ती पूरी तरह छिन जाती है. युवा दंपती अचानक आए इस दबाव से घबरा जाते हैं और भावनात्मक रूप से परेशान हो जाते हैं.’’

डा. संजय गर्ग बताते हैं कि जब भी कोई पुरुष पहली बार पिता बनता है, तो उस की जिंदगी पूरी तरह बदलने लगती है. इस की वजह यह है कि एक तो साल 2 साल पूर्व ही पत्नी के रूप में उस पर निर्भर रहने वाला एक व्यक्ति उस की जिंदगी में आ चुका होता है, फिर जल्द ही ऐसा दूसरा इनसान भी संतान के रूप में आ जाता है. इस से पति का खुद पर बढ़ती जिम्मेदारियों और खर्चों से चिंतित होना स्वाभाविक बात है. 3 महीने पहले ही पिता बने नीतेश अग्रवाल कहते हैं, ‘‘बच्चे के आने से पहले मन में बड़ा रोमांच था. पहली बार मुझे कोई पापा और मेरी पत्नी को मम्मी बोलने वाला होगा, यह सोच कर ही मन खुशी के 7वें आसमान पर था. हम दोनों रोज होने वाले बच्चे के नामकरण पर चर्चा करते, उस के बारे में तरहतरह की प्लानिंग करते. लेकिन जैसे ही मेरे बेटे का जन्म हुआ, मेरा लाइफस्टाइल ही बदल गया. पत्नी को मेरे होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. दिन भर बेटे की केयर करती है. कभी चाइल्ड स्पैशलिस्ट के पास ले कर जाते हैं, तो 2-3 घंटे इसी में खत्म हो जाते हैं. कभी ये लाओ, कभी वह लाओ, सचमुच दिमाग भन्ना जाता है.’’ व्यवहार विशेषज्ञ और काउंसलर रेखा श्रीवास्तव कहती हैं, ‘‘अगर किसी पुरुष की जिंदगी में विवाह एक महत्त्वपूर्ण घटना है तो पिता बनना उस से भी बड़ी घटना है. पिता बनने के बाद वे स्ट्रैस के उस दौर से गुजरते हैं, जिस के लिए वे मानसिक रूप से तैयार नहीं होते. पिता बनने के बाद जब परिस्थितियां तेजी से बदलती हैं, तो पुरुषों को सब कुछ अपने हाथ से निकलता नजर आता है और वे तेजी से डिप्रैशन की स्थिति में चले जाते हैं.’’

इमोशनल स्विंग

गाइनोकोलौजिस्ट डा. स्मिता गुटगुटिया बताती हैं, ‘‘पुरुषों में पोस्टपार्टम डिप्रैशन की मूल वजह है उन के हारमोंस में परिवर्तन. उन में दबाव के कारण टेस्टोस्टेरौन लैवल गिर जाता है, जबकि ऐस्ट्रोजन, प्रोलैक्टिन और कोर्टिसोल का लैवल बढ़ जाता है. इस से उन में स्ट्रैस की समस्या हो जाती है.’’ ‘कमांडो डैड रौ रिक्रुइट्स’ के लेखक नील सिंक्लेयर कहते हैं, ‘‘कमांडो के रूप में मैं ने खाड़ी युद्घ में जांबाजी के साथ मोरचा संभाला, लेकिन पिता बनना मेरे जीवन का सब से तनाव देने वाला वक्त रहा. माना कि मैं अपने बच्चे से बेइंतहा प्यार करता था, लेकिन पता नहीं क्यों एकक अनजानी चिंता मुझे सताती थी. मुझे लगता था कि नई सिचुएशन को ठीक से हैंडल नहीं कर पा रहा और इस स्थिति में खुद को सैटल नहीं कर पा रहा. मुश्किल यह है कि पुरुषों को हर कोई स्ट्रौंग समझता है, इसलिए न तो उन की मनोस्थिति को महसूस करता है, न ही उन्हें किसी प्रकार की सपोर्ट देता है.’’

मनोविज्ञानी, अमरनाथ मलिक कहते हैं कि पुरुषों में यह डिप्रैशन लगातार उदासी या ऐंग्जाइटी के रूप में नहीं होता, बल्कि एक प्रकार का इमोशनल स्विंग होता है, जो अचानक बहुत खुशी की स्थिति से बहुत उदासी की स्थिति में बदल जाता है. समाजशास्त्री, रेखा श्रीवास्तव बताती हैं कि पुरुषों में पोस्टपार्टम स्ट्रैस की एक बड़ी वजह यह भी है कि हर कोई उन से एक अच्छा पति और पिता होने की उम्मीद रखता है. आजकल के पापा ऐसा काम भी करते हैं, जिन्हें करने की पहले सिर्फ मम्मियों से उम्मीद की जाती थी. जैसे नैपी बदलना, बच्चे को बोतल से दूध पिलाना, टीका लगवा कर लाना आदि.

‘न्यू डैड्स सर्वाइवल गाइड’ के लेखक रोब कैंप कहते हैं, ‘‘हम औफिस वर्क और पापा बनने के बाद घरेलू कामों की डिमांड के बीच संतुलन बनाना सीख रहे हैं. ज्यादातर युवा घर में पत्नी के सहायक और एक अच्छे पिता बनने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं, फिर भी वे जब वांछित उत्साहवर्द्धन नहीं पाते या आत्मसंतुष्टि महसूस नहीं करते तो डिप्रैशन स्वाभाविक है.’’

क्या करें नए डैडी

भले ही प्रैगनैंसी को महिलाओं का मामला माना जाता हो, लेकिन यह पुरुष और महिला की सम्मिलित जिम्मेदारी होती है. इसलिए जैसे महिलाएं एक सफल और जिम्मेदार मां बनने के लिए तत्पर रहती हैं ठीक उसी प्रकार पुरुषों को भी एक सफल, समझदार और जिम्मेदार डैडी बनने के लिए निम्न बातों पर अमल करना चाहिए: – परिवार के सदस्यों, मित्रों और सहयोगियों से बातचीत करें. उन से भावनात्मक सहयोग लें व कुछ कार्यों में भी हाथ बंटाने की मदद मांगें.

– स्ट्रैस महसूस हो, तो मनोविज्ञानी की मदद लेने में न हिचकें.

– मन में किसी प्रकार का अपराधबोध महसूस न करें. धीरेधीरे खुद को नई भूमिका में ऐडजस्ट करने की कोशिश करें.

– पलायन करने के बजाय अपने कर्तव्य का पालन करें.

लक्षण पोस्टपार्टम डिप्रैशन के

आप बहुत जल्दी गुस्सा हो जाते हैं या किसी भी बात से चिढ़ जाते हैं.

अपनी पत्नी और बच्चे से दूर जाने के बहाने ढूंढ़ते हैं.

पहले से ज्यादा स्मोकिंग और ड्रिंकिंग करने लगे हैं.

कभी अपने बच्चे को देख कर खूब इमोशनल हो जाते हैं और उसे चूमतेदुलारते हैं और कभी अचानक चिढ़ कर उस से दूर हो जाते हैं.

जानबूझ कर औफिस से लेट आते हैं या दूसरे शहर में जाने का असाइनमैंट खोजते हैं ताकि घर पर न रहना पड़े.

मजबूत दरख़्त : उमा अपनी संतान को लेकर क्या सोचती थी?

राहुल का असली रूप देख कर उमा आज बुरी तरह टूट गई थी. उस ने सपने में भी ऐसे सच की कल्पना नहीं की थी. ‘यारो, असली चांदी तो मेरी है, घर में एक कमाऊ व ख़िलाऊ बीवी है और बाहर तो तमाम अप्सराएं हैं.’ अपने 4 दोस्तों के साथ ड्रिंक करता राहुल आज सारे सच ऐसे उगल रहा था जैसे किसी ने उसे सच बोलने वाली मशीन में फिट कर दिया हो.

‘मेरा शुरू से यही सपना था कि एक बेहद ख़ूबसूरत, पैसे वाली कमाऊ लड़की को अपनी बीवी बनाऊं. बीवी तो ख़ूबसूरत नहीं मिल सकी पर कमाऊ तो मिल ही गई, ऊपर से बढ़िया से सेवा भी करती है. अब रही बात ख़ूबसूरती की, तो वह तो बाहर मिल ही जाती है.’ राहुल की यह बात सुन कर उस के सभी दोस्त ताली मार कर हंस पड़े.

ऐसी तमाम बातों को सुनने के बाद लड़खड़ाती उमा ख़ुद को संभालते हुए मां के कमरे में गई. वह इस वक्त मां की गोद में सिर रख कर फूटफूट कर रोना चाहती थी. वह चाहती थी कि मां को राहुल का सारा सच बता दे पर वह ऐसा नही कर सकी. मां कमरे में सोई हुईं थीं. आज कई दिनों बाद मां को नींद आई थी. पापा के गुजरने के बाद उमा मां को बहुत मुश्किल से संभाल पाई थी.

मां को सोता देख उमा उसी कमरे में उन के पलंग के पास पड़ी एक कुरसी पर ख़ुद को समेटती हुई बैठ गई और पापा की माला टंगी तसवीर को देख कर फूटफूट कर रो पड़ी, फिर फुसफुसाती रही, ‘पापा, आप ने सच कहा था कि राहुल अच्छा लड़का नहीं हैं, उस ने मीठीमीठी, प्यारभरी बातें कर के मुझे अपने जाल में फंसा लिया है.

‘वह मुझ से नहीं, आप की दौलत और मेरी कमाई से प्यार करता है, पापा. आप को पता है, उस ने मुझे बदसूरत कहा, आप की परी को उस ने बदसूरत कहा, पापा.’

सारी रात उमा ऐसे ही रोतीरोती पापा की तसवीर से बातें करती रही, बीचबीच में कभी वह मां को देखती तो कभी अपने 7 साल के बेटे विभु को देखती. नशे में धुंध राहुल कब सोया और कब उस के दोस्त गए, उमा ने किसी बात का कोई ध्यान न दिया.

रोज़ की तरह सुबह उठ कर उनींदी सी आंखों को मलती उमा रोज़मर्रा के कामों में लग गई. विभु का और खुद का टिफिन बना कर, मां और राहुल का नाश्ता तैयार कर के उमा विभु को स्कूल छोड़ती हुई अपने औफिस चली गई.

हैरानपरेशान और रातभर जागने वाली शक़्ल देख कर जब उस की बेहद अच्छी सहेली प्रिया, जोकि उस के साथ काम करती थी, ने उमा से पूछा, “उमा, आर यू ओके?”

“हम्म… मैं ठीक हूं,” लैपटौप पर काम करती, जम्हाई लेती उमा बोली तो प्रिया ने कहा, “लग तो नहीं रहा कि तुम ठीक हो?”

दोनों के बीच कुछ देर तक ख़ामोशी ठहरी रही. कुछ देर बाद शब्दों में बंध कर उमा के संवाद बोले, “धोखा दिया उस ने.”

“किस ने?” प्रिया ने गंभीरता से पूछा.

“राहुल ने, और किस ने, उसे पता था कि हम 2 बहनें हैं और हमारे पापा के पास ठीकठाक पैसा है. बड़ी बहन पहले से अच्छे घर में ब्याही है तो राहुल के हिसाब से वह तो पापा का हिस्सा नहीं लेगी. सारा हिस्सा छोटी बहन यानी मेरा होगा. यही सोच कर राहुल ने छोटीमोटी नौकरी कर के, खुद को स्वावलंबी बता कर मुझ जैसी कमाऊ लड़की से शादी की.” यह कहती हुई उमा रोंआसी हो गई.

“क्या कह रही हो, तुम? तुम्हें कोई गलतफ़हमी हुई होगी, वरना राहुल तो उस दिन अंकल की डैथ के बाद आंटी को और तुझे कितने अच्छे से संभाल रहा था. वह तो आंटी और तेरे लिए अपना घरपरिवार सब छोड़ कर यहां चला आया ताकि आंटी अकेली न रहें.”

प्रिया की इस बात पर उमा बोली, “वो सब राहुल का ड्रामा था. उस ने पूरा नाटक पहले से लिख रखा था.” यह कहते हुए उमा ने अपना हाथ माथे पर रख लिया.

“तो अब क्या?” प्रिया ने उसे पानी की बोतल देते हुए पूछा.

“अब क्या, जो जैसा चल रहा है वैसा ही चलता रहेगा. राहुल यही समझेगा कि मुझे उस के नाटक के बारे कुछ भी पता नहीं है,” उमा ने घूंटभर पानी पीते हुए कहा.

“पर यार, तुम सैल्फ डिपेंडैंट लड़की हो. तुम जो चाहे निर्णय ले सकती हो. फिर क्यों ऐसे धोखेबाज़ को झेलना?” प्रिया ने लैपटौप पर अपने काम पर भी जऱा सा ध्यान देते हुए कहा.

“उस को झेलने का कारण हैं मां. पहले ही वे पापा के जाने का सदमा झेल रही हैं. और अब एक और सदमा? नहीं प्रिया, मुझ में अब मां को खोने की हिम्मत नहीं है, यार,” यह कहती हुई उमा ने फिर माथे पर हाथ रख लिया.

बेमन से औफिस का काम करते हुए उसे आज का दिन बहुत भारी लगा. काम ख़त्म कर वह घर गई तो यह क्या? घर के बाहर एक भरा हुआ बैग और उस के ऊपर एक लिफ़ाफा रखा था. उमा ने ज़ल्दी से वह लिफ़ाफा उठाया और उस के अंदर रखा काग़ज़ निकाल कर देखा, जिस पर लिखा था- ‘तुम क्या सोचते हो? तुम एक लड़की और उस के परिवार वालों को आराम से धोखा देते रहोगे? बेटा, उमा के पिता चले गए तो क्या, उस की मां अभी जिंदा हैं. अब तुम एक बात समझ लो, इस बैग में मैं ने तुम्हारे सारा सामान रख दिया है, इसे उठाओ और चुपचाप हमारी दुनिया से दूर हो जाओ, तालाक़ के कागज़ तुम्हें भेज दिए जाएंगे.’

और उस कागज़ के सब से नीचे लिखा था. ‘उमा की मां.’

मैं डोरबेल बजाती, इस के पहले ही मां ने मेरे लिए दरवाज़ा खोल दिया. मैं, ताकतवर दरख़्त जैसी अपनी मां से दरख़्त की बेल की तरह लिपट गई और अपनी आंखों की तरलता से मां का आंचल भिगोने लगी. कुछ देर तक मां ने मुझे रोने दिया, फिर मां मेरी हथेलियों को पकड़ती हुईं मुझ से बोलीं- “तू क्या सोचती थी, तू बस मां को समझती है, मैं भी तुझे समझती हूं, बेटा. उस दिन जब तू आधीरात फुसफुसाती हुई अपने पापा की तसवीर से बातें कर रही थी न, मैं वहीं लेटीलेटी सब सुन रही थी. तेरा नाम उमा हम ने यही सोच कर रखा था कि तू हमेशा शक्ति बन कर जीवन जिएगी. तू, तू कमज़ोर कैसे पड़ गई, बेटा?

“निकाल फेंक उस राक्षस को अपने जीवन से और अपने मन में ख़ुद के लिए कोई पछतावा, कोई शिकवा मत रख.” मां के ये शब्द सुन कर मैं जैसे फिर से जी उठी. मुझे अब समझ आया कि मेरी मां उतनी कमज़ोर नहीं जितना मैं उन्हें समझती थी. मेरी मां तो एक मज़बूत दरख़्त थीं जो बुरे से बुरे तूफानों से लड़ना जानती थीं और अपनी शाखाओं को सुरक्षित रखना भी.

मैं 25 वर्षीय लड़की हूं, मेरे ऑफिस का लड़का मुझे अच्छा लगने लगा है, मैं कैसे समझूं , वह मुझे पसंद करता है कि नहीं?

सवाल

मेरी उम्र 25 साल है, प्राइवेट जौब करती हूं,औफिस में एक लड़का है जो मुझे अच्छा लगने लगा है, यहां तक कि मैं अब रातदिन उस के बारे में सोचने लगी हूं. औफिस में मेरी निगाहें उसे ढूंढ़ती रहती हैं. मुझे नहीं पता कि उस के दिल में मेरे लिए कैसी फीलिंग्स हैं, हैं भी या नहीं क्योंकि हमारा आई कौंटैक्ट तो होता है और जब उसे देखती हूं तो उस की आंखों में मेरे लिए प्यार मैं महसूस करती हूं लेकिन इस से ज्यादा कुछ नहीं. उस ने खुद आगे बढ़ कर मुझे से बात करने की कोशिश नहीं की है. मुझे समझ नहीं आता कि उस का काम दूसरे फ्लोर पर है और मेरा फर्स्ट फ्लोर पर, कैसे बात शुरू करूं.

हमारे डिपार्टमैंट का उस के डिपार्टमैंट से कोई लेनादेना भी नहीं है. सोचती हूं मैं ही आगे बढ़ कर उस से बात करने की कोशिश करूं. लेकिन डरती हूं कि उस ने बात करने में दिलचस्पी नहीं दिखाई तो मेरी क्या इज्जत रह जाएगी. मुझे यह भी तो नहीं पता कि उस की औलरेडी कोई गर्लफ्रैंड तो नहीं है. देखने में बहुत स्मार्ट है तो चांसेस बढ़ जाते हैं कि गर्लफ्रैंड होगी. ऐसे में मेरा बात करना कोई माने नहीं रखेगा. बहुत परेशान हूं. मन को समझाती हूं कि शांत रहे. आप ही बताएं क्या करूं?

जवाब

यह प्यार भी बहुत अजीब होता है. हो जाए और सामने वाले को इजहार न कर पाएं तो जीना मुश्किल कर देता है. आप का दिल उस लड़के पर आ गया है और उस की ओर से कोई पहल नहीं हो रही तो अब कोशिश आप को करनी होगी. लड़के ही हर बार पहल करें, यह जरूरी नहीं. अब आप को ही जीजान लगानी पड़ेगी जांचपड़ताल करने में. जी हां, सब से पहले आप को पता करना है कि उस लड़के की कोई गर्लफ्रैंड तो नहीं. अगर है तो आप को आगे कदम उठाने की कोई जरूरत नहीं क्योंकि दो प्यार करने वालों के बीच में पड़ना बेवकूफी होगी. हां, यदि नहीं है तो बात आगे बढ़ाते हैं. आप को कोई न कोई तिकड़म लगा कर उस लड़के से बात करनी होगी. बस, एक बार बात हो जाए तो उसे अपनी तरफ अट्रैक्ट करने की कोशिश करनी होगी. उसे आप में जरा भी इंट्रैस्ट होगा तो वह भी अपना कदम आगे जरूर बढ़ाएगा. अगर आप देखती हैं कि आप की कोशिशों के बावजूद वह आप पर ज्यादा ध्यान नहीं दे रहा तो उस लड़के पर अपना वक्त बरबाद मत कीजिए. सम?ा लीजिए उसे आप में कोई रुचि नहीं. अपनी फीलिंग्स ऐसे लड़के पर खर्च मत कीजिए जिसे आप में रुचि नहीं. ऐसे में उसे इग्नोर करने में ही समझदारी है.

कर्नाटक में बजरंग दल

कर्नाटक में चुनावी महाभारत पर विजय हासिल करने के बावजूद कांग्रेस इस बात से परेशान है कि उस के चुनावी घोषणापत्र में मुसलिम समर्थक प्रोग्रैसिव फ्रंट औफ इंडिया व हिंदू समर्थक बजरंग दल पर कंट्रोल करने का वादा उसे कट्टर हिंदू वोटों का नुकसान न करा दे. ऐसा वादा करना अपनेआप में बहुत साहसी बात है. कांग्रेस, हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से हिंदूहिंदू हवा में बहने लगी थी और उस के ब्राह्मण पूजापाठी नेता (जिन की कांग्रेस में कमी नहीं है) मंदिरों, मठों, स्वामियों, मूर्तियों, घाटों पर अपनी श्रद्धा दर्शाने लगे थे.

इस कांग्रेसी रुख को नरम हिंदुत्व कहा जा रहा था जबकि इस से कांग्रेस को कोई फायदा नहीं मिल रहा था. भारतीय जनता पार्टी इस का फायदा उठा रही थी क्योंकि वह नरम को नहीं बल्कि कट्टर हिंदुत्व को देश के हित में कहती रहती है. कांग्रेसी मतदाता इस नकली हिंदुत्व से असल में खिन्न हो रहे थे.

इस देश में पूजापाठ चाहे फैक्ट्री, दुकान, खेत, दफ्तर में काम करने से ज्यादा प्राथमिकता पाता हो, यह पक्का है कि हर आम आदमी की तार्किक बुद्धि यही कहती है कि पूजापाठ से न अनाज उगेगा, न कपड़ा बनेगा, न दवा तैयार होगी, न स्कूल खुलेंगे, न मकान बनेंगे आदि.

आम हिंदू को यह भी मालूम रहता है कि वह कुछ खास मंदिरों में ही जा सकता है क्योंकि पंडितों ने हर हिंदू को अपना अलग देवी, देवता, मंदिर जाति या उपजाति के हिसाब से दे रखा है. बजरंगी अगर खुद को हनुमान कहते हैं तो यह जानना जरूरी है कि हर जाति का मुख्य देवता हनुमान नहीं है. दलितों और पिछड़ों की बहुत सी जातियों को परेशान करने में बजरंग दल के लोग ही आगे आते हैं. बजरंग दल वालों ने सत्ता में बैठे लोगों से सीधे संबंध जोड़ रखे हैं क्योंकि ये ही चुनाव में बूथ मैनेजमैंट करते हैं और ये ही राजनेता के शहर में आने पर भीड़ जुटाते हैं. कमाई के लिए ये मुसलमानों को अगर धमकाते हैं तो हिंदुओं, चाहे वे किसी जाति के हों, से चंदा वसूलते हैं.

बजरंग दल में सिर पर पट्टा बांधे, हाथ में डंडा लिए जो घरों से बेजार, बेकार युवा दिखते हैं, वे समाज के किसी काम के नहीं हैं. वे न सडक़ों की सफाई करते हैं, न ट्रैफिक कंट्रोल करने में सहायता देते हैं, न बाढ़ या आपदा में आगे आ कर सहायता करते हैं, न स्कूल चलाते हैं. वे हिंदू लड़कियों को संस्कार सिखाने के बहाने उन की ड्रैस पर कमैंट करते हैं और उन से मारपीट तक कर डालते हैं. वैलेंटाइन डे पर वे सब से ज्यादा सक्रिय रहते हैं.

दलितों से बजरंग दल वाले काम कराने में आगे रहते हैं पर उन्हें गरीबी के जंजाल से निकालने के लिए कुछ नहीं करते क्योंकि वे खुद गरीब घरों से आते हैं. पार्टी के अमीर नेताओं के बेटे बजरंग दल में रातदिन सडक़ों पर गायों को लाने व ले जाने वालों के पास खड़े नहीं होते. उन का काम तोडफ़ोड़ का है.

कांग्रेस ने उन का नाम ले कर हिम्मत दिखाई है और उस की कर्नाटक ईकाई में जिस ने भी घोषणापत्र लिखा वह काबिलेतारीफ है कि उस ने पूरे माफिया बने त्रिशूलधारी बजरंगियों को साफ़साफ़ हथियारधारी कह दिया है.

पौराणिक बखान से राजकाज नहीं चलते

कनार्टक में विधानसभा चुनावों में वोटों को कटने से बचाने के साथ व पार्टीजनों की एकता के बल पर कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी को भारी शिकस्त दी है. अरविंद केजरीवालपंजाब व दिल्ली में, ममता बनर्जीबंगाल में, कम्यूनिस्टों ने केरल में व नवीन पटनायक ओडिशा में नरेंद्र मोदी को शिकस्त देते रहे हैं. असल में नरेंद्र मोदी का गुणगान जितना होता रहा, उस में ढोल पीटना ज्यादा रहा है और ढोलनुमा इसी सर्कस के बल पर जमा हुई भीड़ के बलबूते भाजपा एकछत्र राज्य कर पा रही थी.

नरेंद्र मोदी की भाषाकला और भाजपा सरकार की विरोधियों को कुचलने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों को इस्तेमाल करने ने एक माहौल पैदा कर दिया था कि मोदी का कोई पर्याय नहीं है. इस पर ऊपर से भगवा लपेटा लगाया गया है जिस में मंदिर, पूजापाठ, धर्म, आयुर्वेद, वस्तु, प्रवचनों, शादियों आदि के व्यापार से जुड़े लोग शामिल हैं जिन्हें पाखंड और भेदभाव में ही अपना वर्तमान व भविष्य दिखता है.

कर्नाटक में 224 में से 137 सीटें जीत कर सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी को 65 पर धकेल कर कांग्रेस ने साबित कर दिया है जरूरत है सही नेताओं की और दृढ नीतियों की. 2004 को दोहराया जा सकता है.

नरेंद्र मोदी की केंद्र की सरकार हो या उन की पार्टी की राज्य सरकारें, अपना ज्यादा समय, शक्ति और बहुत पैसा पूजापाठ के कार्यक्रमों में लगाती हैं. देश उन्नति कर रहा है तो इसलिए कि पहले मुगलों ने और बाद में अंगरेजों ने दक्षिण एशिया को इस बड़े भूभाग को एककर के एक बड़ा देश बना दिया जहां राज कानून का चलता था, शास्त्रों का नहीं. कांग्रेस के राज में 30-40 साल संविधान के आदर व सम्मान से बीते पर वह पाखंड की ताकतों से लडऩे में कमजोर रहने लगी.

शिवाजी नेतार्किक शासन के बल पर बड़ा साम्राज्य बना दिया था पर बाद में पेशवाओं ने पूजापाठी राज थोपा और मराठा साम्राज्य ज्यादा साल नहीं चल पाया. अंगरेजों ने उस राज से पैदा हुई भयंकर लूटपाट, अराजकता व फूट का पूरा लाभ उठाया. उन्होंने कुछेक राजाओं को दूसरे से भिड़ा कर और कुछ अपनी नई तोपों, बंदूकों की तकनीक व अनुशासित सेना के बल पर कुछ हजार गौरे यूरोपी होते हुए भी पूरे देश पर कब्जा कर लिया. वे 1947 गए तो इसलिए कि भारत से आर्थिक लाभ मिलना बंद हो गया था.

अब कर्नाटक में वोटों को बंटने से बचाने के साथ और कांग्रेस में राहुल गांधी व प्रियंका गांधी की जोड़ी की दमदार एंट्री ने भगवा दल के हौसले पस्त कर दिए जो सिर्फ मोदी की छवि पर निर्भर है, अपने राजकाज पर नहीं. केंद्र व राज्य सरकार ने पुलिस व जांच एजेंसियों का अंत तक इस्तेमाल किया पर जैसे पश्चिम बंगाल में व पंजाब में उन की नहीं चली, कर्नाटक में भी नहीं चली.

कर्नाटक में भाजपा की हार के पीछे उस की वोटों की घटत उतनी नहीं है जितनी कांग्रेस का भाजपाविरोधी सारे वोटों को बटोर लेना है.

देश की आम जनता आज भी सामान्य पूजापाठी होते हुए भी धर्म के नाम पर रातदिन सिर फोड़ने,अपने पसंदीदा नेता का ढोल बजाते रहने में रुचि नहीं रखती है. वह अपना काम बिना रुकावट के करते रहना चाहती है. उसे जितना मरजी चाहे लूट लो लेकिन परेशान न करो. वह गरीबी व गुरबत में रहने को तैयार है पर हर कोने पर लाठियां लिए दूसरे धर्म या जाति वालों का सिर फोड़ने को तैयार नहीं. कांग्रेस ने शायद ऐसे वादे हमेशा किए और तभी 1947 से 1977 फिर 1980 से 1991, 1991 से 1996 और आखिर में 2004 से 2014 तक राज किया.

भाजपा इस हार से सबक लेगी, ऐसा लगता नहीं. पौराणिक कहानियां बताती हैं कि इस पुण्यभूमि पर हर दैविक राजा पीढ़ीदरपीढ़ी अदैविक राजाओं को नष्ट करने में लगा रहा चाहे राजा महाबलि का समय हो या रावण का. जिन के राज में लोग सोने के महलों में रहते थे और दैविक राजाओं के यहां सिर्फ राज,हवन और दान होता था. भाजपा का पौराणिक बखानकितना कायम रहेगा यह अगले चुनाव बताएंगे.

Yrkkh : अबीर के लिए एक होगें अक्षरा और अभिमन्यु, गले लगकर रोएंगे

सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है में वो समय आ गया है जिसका इंतजार फैंस को लंबे समय से था, कहानी इन दिनों अक्षरा और अबीर के आसपास रुक गई है, सीरियल में अबीर की तबीयत बिगड़ गई है, जिस वजह से अक्षरा और अबीर काफी ज्यादा परेशान हैं.

वहीं सीरियल में मजेदार ट्विस्ट तब आता है जब अभिमन्यु और अक्षरा बीमार अबीर को देखकर एक -दूसरे से गले लगकर रोने लगते हैं, तबीयत बिगड़ने की वजह से अबीर का ऑपरेशन होता है. अबीर की हालत देखकर दोनो घबरा जाते हैं.

 

View this post on Instagram

 

A post shared by PH❤️ AA (@abhiraa_lifee_)

अभिमन्यु अपने बेटे को देखकर परेशान हो जाएगा और यह बात आरोही को काफी ज्यादा परेशान करेगी की अक्षरा और अभिममन्यु अब एक दूसरे से और भी ज्यादा क्लोज हो रहे हैं. आरोही ऑपरेशन थिएटर में जाकर कहेगी कि तुम्हारा बेटा मर रहा है और उसे तुम्हारी जरुरत है. यह सुनते ही अभिमन्यु को होश आ जाता है और अपने बेटे पर ध्यान देने लगता है.

आगे सीरियल में दिखाया जाएगा कि अभि अबीर की सर्जरी करने में सफल होगा और अबीर ठीक हो जाएगा. अभिमन्यु यह बताते हुए खुशी से रोने लगता है. इसी दौरान अभि अक्षु के पीछे आ जाता है. उससे गले लगकर रोने लगता है.

फिल्म RRR के एक्टर Ray Stevenson का 58 साल के उम्र में निधन

साउथ फिल्म इंडस्ट्री से एक बुरी खबर आ रही है, फिल्म RRR के विलेन का डेथ हो गया है, एक्टर रे स्टीवेन्सन के अचानक डेथ से सभी उनके चाहने वालों का डेथ हो गया है, 58 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया है.

आरआरआर के डायरेक्टर राजामौली ने ट्विट करके दुख प्रकट किया है, राजामौली ने लिखा कि बेहद दुखद भरोसा करना मुश्किल है. वह सेट पर काफी ज्यादा उर्जा लेकर काम करते थें. उनके साथ काम करने का एक अच्छा अनुभव रहा है. भगवान उनकी आत्मा को शांति दें.

बता दें कि स्टीवेन्सन ने गवर्नर स्कॉट बक्सटन का किरदार निभाया था, जिसमें लोगों को इनका किरदार काफी ज्यादा पसंद आया था, बता दें कि इसके अलावा भी वह कई सारी फिल्मों में नजर आ चुके हैं जिसमें इनके किरदार को पसंद किया गया है.

इसके अलावा इन्होंने 90 के दशक में टीवी में काम किया है, सीरियल में जिसमें इनके किरदार को पसंद किया गया था. बता दें कि एक्टर सिर्फ 8 साल की उम्र में अपने परिवार के साथ इंग्लैंड चले गए थें, जहां जाने के बाद से उनका रुझान एक्टिंग में बढ़ गया था.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें