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जब जान पर आ बने

इंसान के जीवन में कई बार ऐसी ‘आपात स्थितियां’ आ जाती हैं जब तुरंत चिकित्सा सुविधा मिल जाए तो निसंदेह व्यक्ति का जीवन बच जाए और ठीक इस के विपरीत यदि पर्याप्त चिकित्सा सुविधा का अभाव हो तो जान के लाले पड़ सकते हैं. स्थिति तब और वीभत्स हो जाती है जब बीमार व्यक्ति के घर से अस्पताल बहुत दूरी पर होता है व आसपास भी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं होती.

इस प्रकार के मौकों की अहमियत को ध्यान में रखते हुए यह आवश्यक हो जाता है कि व्यक्ति को कुछ ऐसी चिकित्सकीय बातों का ज्ञान हो जिन से इस विषम परिस्थिति से उबर कर जीवन बच सके.

आज की मैडिकल विज्ञान एवं टैक्नोलौजी के युग में ‘आपात स्थितियों’ को जानें.

यदि घर में आधीरात के वक्त सीने व पेट के मिलन स्थल पर तीव्र जलन और असहनीय दर्द हो.

रोगी के पेट में ‘घाव’ पेष्टिक अल्सर हो सकता है या पेट की मुलायम दीवारें जगहजगह से नष्ट हो सकती हैं. गैस्ट्राइटिस रोगी को ठंडा दूध पीने को दें तथा तीनचार बिस्कुट या डबलरोटी खाने को दें. यदि घर में ‘एंटी एसिड औषधि’ हो तो वह भी दें. इसे फर्स्ट एड बौक्स में रखें. ठंडे पानी से काम चलाया जा सकता है.

यह बीमारी विशेष रूप से इसलिए उत्पन्न होती है क्योंकि इस वक्त शरीर की जो रक्षक प्रतिक्रियाएं है वो लगभग क्षीण या सुस्त रहती हैं. इस रोग में ‘मानसिक तनाव’ से जितना अधिक बचेंगे,उतना ही अधिक फायदा होगा.

डायबीटीज के रोगी को अचानक कंपकंपी व पसीना आने लगे

यह, दरअसल, अधिक ‘इंसुलिन’ या मधुमेह की अन्य दवाएं खाने का साइड इफैक्ट है जिससे रक्त में शक्कर का स्तर गिरता है. इस समय रोगी को मीठी चीजें, जैसे टौफी, चौकलेट, फलों के रस दिए जाने चाहिए ताकि रक्त में शक्कर का स्तर बढ़े. भूल कर भी ऐसे वक्त इंसुलिनन दें. यह स्थिति ‘हाइपोग्लाइसीमिया’ कहलाती है.

जान लें, सामान्य तथा रक्त में शक्कर का स्तर 80 से 100 मि.ग्रा. प्रति सौ सीसी होता है. जब यह स्तर 70 या 50 से नीचे आ जाए तो ये लक्षण उभर कर सामने आते हैं तथा ऐसे में नर्व सैल सर्वप्रथम प्रभावित होती है जिस की वजह से रोगी तनावग्रस्त, बेहद चिड़चिड़ा, जल्द थकान, पसीना व हाथपैरों में कंपन जैसे लक्षणों से दोचार होता है. इस में रोगी ऊलजलूल बातें भी कर सकता है तथा अधिकतर रोगी बेहोश भी हा जाते हैं.

दम घुटाघुटा महसूस हो या सांस में इतनी तकलीफ हो मानो दम निकल जाएगा

इस वक्त आपात इलाज कृत्रिम श्वसन से संभव होता है. इस के लिए मरीज का सिर थोड़ा पीछे की ओर झुकाएं व जबड़ा ऊपर की ओर उठाएं. अपने अंगूठे व तर्जनी से रोगी की नाक बंद कर दें. उस के बाद रोगी के मुंह से अपना मुंह सटा कर अपनी सांसें तेजतेज फुला कर उसे दें. ऐसी क्रिया एक मिनट में 12 से 15 बार की जानी चाहिए जब तक कि रोगी की छाती फूलने न लगे. यदि एक बार में उचित रिजल्ट न मिले तो ऐसा करने वाले को हरगिज निराश न हो कर दोगुने उत्साह से फिर से दोहराना चाहिए यानी कि कोशिश जारी रखनी चाहिए.

जब स्थिति सामान्य हो तो निकट के अस्पताल की शरण ले कर जो भी रोग हो उस का निदान अवश्य करवाना चाहिए.कृत्रिम श्वसन उस वक्त अत्यधिक आवश्यक समझा गया है जब सांस धीमी हो गई हो मगर दिल बराबर धड़क रहा हो.

पानी की कमी (डिहाइड्रेशन)

उलटी, दस्त, जबान सूख जाए, टांगों में भयंकर कमजोरी व पीड़ा, हलका बुखार व आंखें अंदर धंसी प्रतीत होना.ऐसे में रोगी को ओढ़ा कर लिटा दीजिए. उसे खूब पानी, नमक व शक्कर का घोल, जिसे इलैक्ट्राल घोल कहते हैं, दीजिए. पर्याप्त मात्रा में ये चीजें शरीर में पहुंचते ही सभी लक्षण अपनेआप ही गायब हो जाएंगे.

यदि इलैक्ट्राल घोलघर में न हो तो एक गिलास में साफ पानी लें तथा उस में एक चम्मच नमक व एक चम्मच चीनी डाल लें तथा जायके के लिए नीबू भी निचोड़ लें, लीजिए आवश्यक घोल तैयार है. आधे से एक घंटे के अंतराल पर ऐसा घोल रोगी को बराबर पिलाते रहें. घर में बनाए गए इस तरह के घोल को रिहाइड्रेशन घोल कहते हैं.

इस तरह के लक्षण तब उत्पन्न होते हैं जब गरमी का मौसम अपने पूर्ण यौवन पर होता है, यानी, मई से जुलाई तक.मगर भरी सर्दी में भी इस की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता.

कुत्ते के काटने पर

आवश्यक बात यह है कि यह जाना जाए कि कुत्ता पागल है या नहीं. इस के लिए उस की कई दिनों तक निगरानी रखना जरूरी है. एक कुत्ते को जब तक पागल ही समझना चाहिए जब तक यह सिद्ध न हो जाए कि अमुक कुत्ता पागल नहीं है.

कुत्ते ने कहां काटा है, वहां घाव को साफ पानी से धो कर एटीलाइज स्ट्रिप इस स्थान पर रखी जानी चाहिए तथा जहां कुत्ते ने काटा है उस स्थान पर लार साफ करने हेतु उसे साबुन से भी धोया जा सकता है.

सीने का दर्द

चलते या दौड़ते वक्त सीने में तेज दर्द से छटपटाने लगें, तो यह दर्द तीव्र असहनीय होता है तथा सीने के अतिरिक्त कंधों, बांहों व हाथों की उंगलियों तक फैल रहा है, एवं एकएक सांस के लिए उसे इतना संघर्ष करना पड़ रहा हो जिस से उस का बदन पसीने से लथपथ हो गया हो तो यह दिल का दौरा है. फौरन एम्बुलैंस बुलाएं या जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचने की कोशिश करें.

मरीज को जहां हवा सब से अच्छी हो वहां लिटाएं क्योंकि इस में प्राणवायु का बड़ा महत्त्व है. शरीर पर कपड़ों का बंधन सख्त हो तो उसे ढ़ीला कर दें. आर्टीफिशियल ब्रीथिंग की आवश्यकता हो तो वह भी दी जानी चाहिए. छाती पर तेज पंपकरें मगर फिर भी जल्द अस्पताल की शरण लेने में ही लाभ है. दिल के पुराने रोगी अपने पास नाइट्रोग्लिसरीन औषधि हमेशा रखते हैं, फौरन एक गोली जबान के नीचे रखें.

ठंड से कांपता या अकड़ा हुआ घर पहुंचे

मरीज की सांस व नब्ज का निरीक्षण करें. आवश्यकता हो तो ‘कृत्रिम श्वसन’ पहुंचाएं. गीले, नम कपड़े उतार कर उसे गरम पानी के टब में बैठाएं. मगर पानी बहुत ज्यादा गरम न हो. चाय, कौफी जैसे गरम पेय पदार्थ दे कर शरीर का तापमान बढ़ाने का हरचंद प्रयास किया जाना चाहिए.

वाहन दुर्घटना

अचानक सामने से किसी अन्य वाहन से टक्कर के कारण कोई बुरी तरह घायल हो गया हो तो ऐसे में मदद पहुंचाने वाले को कई बातों का विशेष रूप से ध्यान रखना चाहिए. सर्वप्रथम दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की ‘ब्रीथिंग’ का ध्यान दें. उस के मुंह में रेत, गंदगी या अन्य कोई वस्तु फंस गई हो तो उसे हटाएं, यानी किसी भौतिक अवरोध से सांस न रुकी हो.

उस के सीने का निरीक्षण करें कि चोट से वहां कोई रिसता हुआ घाव न हो क्योंकि इस की वजह से भी सांस में रुकावट आ सकती है. यदि ऐसा है तो कपड़े या समाचारपत्र के कागज को ही मोड़ कर जोर से उस स्थान पर रख दें ताकि दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति नाकमुंह से अच्छी तरह से सांस ले सके. यदि फिर भी सांसों में अवरोध हो तो आर्टीफिशियल ब्रीथिंग देकर सांस क्रिया को सामान्य/यथावत किया जाना चाहिए.

फिर ध्यान दीजिए रक्तस्राव की ओर. रक्तस्राव जारी हो तो व्यर्थ समय न गंवाए बल्कि उसे जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाएं. कोई गहरा जख्म हो व वहां से रक्तस्राव हो तो उसे बंद करना अत्यंत आवश्यक है. साधारण तथा वहां कस कर दबाव डालने से रक्तस्राव बंद हो सकता है. उस जगह व हृदय के बीच कस कर गोल या बेल्टनुमा पट्टी बांध दें.

दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति के मुंह व नाक में कोई अवरोध न हो, इस बात को फिर एक बार देख लें क्योंकि एक या दो उलटी भी साधारणतया ऐसे में हो सकती हैं. यदि मुंह में अवरोध हुआ तो उलटी के सभी पदार्थों को बाहर निकलने में कठिनाई हो सकती है जिस से रोगी का दम अंदर ही अंदर घुट सकता है. व्यक्ति के चेहरे को एक तरफ कर दें ताकि उलटियों के पदार्थ चेहरे से दूर गिर सकें.

व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने में संभव हो तो अन्य तीनचार व्यक्ति की मदद और ले लें क्योंकि अधिक हिलानेडुलाने से उस वक्त हो सकता है स्नायुतंत्र पर बुरा असर पड़े या पूरी मेरुरज्जू (स्पाइनल कोर्ड) क्षतिग्रस्त हो जाए. एक व्यक्ति का दायित्व तो महज इतना ही होना चाहिए कि वह व्यक्ति के सिर व गरदन को थामे रहे ताकि वह हिलडुल न सके.

यात्रा प्रवास की तकलीफ

यात्रा के दौरान जी मिचला कर लगातार उलटियां हो रही हों. दरअसल, यह आम शिकायत है व चिकित्सा जगत में इसे मोशन सिकनैस के नाम से ख्याति प्राप्त है. ऐसे में परेशान व्यक्ति को शुद्ध वायु ग्रहण करनी चाहिए, यानी, जिन लोगों को ऐसी शिकायत है उन्हें रेल या बसों में हमेशा खिड़की के पास बैठना चाहिए ताकि बराबर शुद्ध वायु उपलब्ध हो सके.

दृष्टि बारबार इधरउधर न घुमाएं, ठीक सामने किसी स्थान पर दृष्टि केंद्रित रखें.

इस बात का विशेष खयाल रखें कि पेट को ठूसठूस कर भोजन से भरकर यात्रा प्रवास पर निकलना इस किस्म की तकलीफों को निमंत्रण देता है.सो, यात्रा से 2 घंटे पूर्व ही हलका भोजन लें तो उचित होगा.

यदि आप इस तरह की शिकायत के पुराने रोगी हैं तो यात्रा से पहले चिकित्सक से परामर्श उचित रहेगा.

पेट पत्थर की तरह सख्त हो गया हो व भयंकर दर्द से छटपटा रहा होतो-

कब्ज कई रोगों का मूल कारण है तो कईयों के लिए निमंत्रणपत्र है. रोगी की नाड़ी (नब्ज) व श्वसन का बराबर ध्यान रखें. ‘एनिमा’ देकर फौरन पेट साफ किया जाना चाहिए. यदि रोगी का पूर्व में पेट का कोई औपरेशन हुआ हो तो एनिमा भी चिकित्सक की देखरेख में दिया जाना चाहिए. चिकित्सक से परामर्श कर कब्ज का निवारण करें.

सैक्स में कुछ और नयापन देना चाहती हूं, पति औफिशियल टूर के लिए बाहर जाते रहते हैं, इस बार स्पैशल प्लान करना चाहती हूं?

सवाल

मैं पति को सैक्स में कुछ और नयापन देना चाहती हूं. पति औफिशियल टूर के लिए बाहर जाते रहते हैं. इस बार जब वे वापस घर आएं तो मैं उन के लिए स्पैशल प्लान करना चाहती हूं. खासकरमेरा साथ पा कर उन्हें बहुत स्पैशल फील हो और जब भी टूर पर जाएं तो घर आने के लिए बेताब रहें तो इस के लिए क्या करूं?

जवाब

पति पत्नी में प्यार के साथसाथ सैक्स की कंटीन्यूटी बनी रहे तो रिश्ता मजबूत बना रहता है. आप सम झदार वाइफ हैं जो पति को सैक्सुअली सैटिस्फाइड रखना चाहती हैं ताकि घर से बाहर टूर पर रहते हुए भी पति घर आने के लिए बेताब रहें. आप सैक्स में नयापन लाना चाहती हैं तो कई चीजें आप की मदद कर सकती हैं.

आप सैक्स से पहले वार्मअप के लिए समय ले सकती हैं. यह पति को अधिक आसानी से उत्तेजित कर सकता है और उन के लिए सैक्स अधिक संतुष्टिजनक बना सकता है. पति की फैंटेसी के बारे में जानने की कोशिश करें और उन्हें उस नए और रोमांटिक तरीके से संतुष्ट करने की कोशिश करें. घर में बैडरूम के अलावा किसी और जगह सैक्स कर के कुछ नयापन लाया जा सकता है. पति के साथ नई सैक्स पोजीशन आजमा सकती हैं. यह अनुभव नया और मजेदार हो सकता है.

सैक्स टौयज उपयोग कर के सैक्स लाइफ में नए रंग ला सकती हैं. पति के साथ सैक्स संबंधित वीडियो देख कर नए और मजेदार तरीके आजमा सकती हैं. पति के साथ सैक्स संबंधित गेम्स खेल कर सैक्स एक्साइटमैंट बढ़ा सकती हैं. आप शारीरिक रूप से सैक्सी रह कर भी अपने पति को हर वक्त खुश रख सकती हैं. इस के लिए आप अपने स्वस्थ खानपान और ऐक्सरसाइज पर ध्यान दीजिए.

धोखे की नाव पर मौत का सफर

गंगाराम अपनी मां दुलारीबाई से किसी भटियारिन की तरह हाथ नचाता हुआ गुस्से से बोला, ‘‘मैंने तुम्हें कितनी बार बोला है कि मुझे निकासी के लिए रास्ता दो. मुझे लंबा चक्कर काट कर घर तक पहुंचना पड़ता है. उस समय तो और परेशानी बढ़ जाती है जब खेतों से फसल बैलगाड़ी में लाद कर लाते हैं.

‘‘आखिर मेरी बात तुम कब समझोगी. हर साल इसी बात का रोना होता है. सवा महीने बाकी हैं, फसल तैयार हो चुकी है. मुझे निकासी के लिए रास्ता चाहिए. और उस 2 एकड़ खेत में से हिस्सा भी चाहिए. मैं भी परिवार वाला हूं.’’

‘‘अच्छा…अभी तो मांबाप को पूछता नहीं है और जिस दिन जमीन से हिस्सा मिल गया, मांबाप मानने से भी इनकार कर देगा. गंगाराम, मैं ने दुनिया देखी है. बंटवारा हुआ नहीं कि मांबाप के हाथ में कटोरा थमा दोगे. बुढ़ौती में भीख मांगनी पड़ जाएगी.

दोनों मांबेटे में इसी तरह काफी देर तक झगड़ा चलता रहा. उसी समय गंगाराम के पिता बालाराम खेत से घर लौटे. दुलारी ने बेटे की शिकायत अपने पति से की, ‘‘लो, संभालो अपने बेटे को, जो जी में आता है बोलता ही चला जाता है.’’

गंगाराम अपने पिता से बोला, ‘‘बाबूजी, मां को समझाओ और संभालो नहीं तो किसी दिन मेरा मूड खराब हो गया तो इसे गंडासे से काट कर नदी में…’’

बालाराम ने बीच में हस्तक्षेप किया, ‘‘बहुत बोल चुका,’’ उन्होंने अपनी पत्नी दुलारी का पक्ष लिया, ‘‘अब अगर तू अपनी मां को एक भी शब्द बोला तो मुझ से बुरा कोई नहीं होगा.’’

इस झगड़े के बीच गंगाराम की पत्नी निर्मला पति का हाथ पकड़ कर बाहर लाने लगी. गंगाराम ने निर्मला का हाथ झटक दिया, ‘‘आज मैं बुड्ढे बुढि़या को छोड़ूंगा नहीं.’’

कहता हुआ गंगाराम अपने पिता बालाराम से जा भिड़ा. बापबेटे को एकदूसरे से हाथपाई करते देख गांव के लोग जमा हो गए.

गांव वालों ने बापबेटे को बड़ी मुश्किल से एकदूसरे से अलग किया. गंगाराम लोगों की बांहों में जकड़ा हुआ कसमसा रहा था. साथ ही गुस्से से चीखता रहा.

दोनों एकदूसरे के कट्टर विरोधी हो गए. कोढ़ में खाज यह हुआ कि इसी बीच निर्मला बीमार रहने लगी. इस के लिए निर्मला अपनी सास दुलारीबाई को जिम्मेदार ठहराने लगी. वह सास पर यह आरोप लगाती कि उस ने उस के ऊपर कोई टोनाटोटका करा दिया है.

गंगाराम ने कई ओझागुनिया को पत्नी को दिखाया. मर्ज यह था कि निर्मला के सिर में दर्द बना रहता था और शाम को बुखार चढ़ने लगता था.

झाड़फूंक से कोई सुधार न हुआ तो वह डाक्टर के पास गया. टेस्ट करवाने पर पता चला कि निर्मला को टायफायड है. एलोपैथी दवा भी चली और झाड़फूंक भी. पता नहीं किस ने असर दिखाया, निर्मला धीरेधीरे ठीक होने लगी.

गंगाराम और उस की पत्नी निर्मला के दिमाग में यह बात घर कर गई थी कि उस की सास दुलारीबाई किसी तांत्रिक ओझा से मिल कर उन्हें बरबाद करने पर तुली है.

इस बात पर गंगाराम की सोच भी निर्मला की सोच से अलग नहीं थी. निर्मला जब पूरी तरह से ठीक हो गई और उस के शरीर में जान आ गई तब वह अपनी सास पर इलजाम लगाने लगी.

एक बार फिर दोनों पक्षों में तकरार और झिकझिक होने लगी. वह एकदूसरे के लिए गलत भावनाएं रखने लगे. फिर वही समय आया, नवंबर दिसंबर का. फसल तैयार हो कर खेत से कोठरी में जाने को तैयार थी.

मुद्दा फिर वही उठा कि बैलगाड़ी में रखे अनाज को दूसरे रास्ते से लाना होगा. बालाराम और दुलारी किसी भी तरह से इस बात के लिए तैयार नहीं थे कि निकासी के लिए बाड़ी से जगह दी जाए. हर साल फसल तैयार होने के बाद यही सवाल खड़ा हो जाया करता था.

कई सालों से यह निकासी का मसला न तो सुलझ रहा था और न ही दूरदूर तक कोई समाधान ही दिखाई दे रहा था.

आज भी इसी विवाद को ले कर गंगाराम और निर्मला दोनों का मन खिन्न था. खाना खाने के बाद दोनों पतिपत्नी टीवी देखने लगे.

टीवी पर वह क्राइम स्टोरी पर आधारित सीरियल देख रहे थे. उस सीरियल की कहानी उन की जिंदगी से जुड़ी जैसी थी. दोनों ने बड़े ध्यान से खामोशी के साथ वह सीरियल देखा. सीरियल खत्म होने के बाद दोनों ने उस पर चर्चा की.

गंगाराम और उस की पत्नी को इस बात की चिंता हो रही थी कि कहीं ऐसा न हो कि मांबाप पूरी जमीन छोटे भाई रोहित के नाम कर जाएं. वैसे भी छोटा होने के नाते वह मांबाप का चहेता था.

इस सोच ने निर्मला और गंगाराम को परेशान कर डाला. जब इंसान को कोई चीज मिलने की संभावना दिखाई न देती है, तब वह उसे किसी दूसरे ही तरीके से हासिल करने की कोशिश में लग जाता है. इन दोनों ने भी एक योजना बना ली.

गंगाराम और निर्मला ने एक योजना के तहत अपने व्यवहार में थोड़ाबहुत बदलाव किया. अपने पिता बालाराम और मां दुलारीबाई से सहजता से पेश आने लगे. बालाराम और दुलारी को आश्चर्य हुआ कि हमेशा कड़वे बोल बोलने वालों की जुबान में शहद कैसे घुल गया.

इस के बाद उन दोनों ने विचारविमर्श किया कि अपनी योजना में किसे शामिल किया जाए, जिस से उन की योजना सफल हो जाए. नजर और दिमाग के घोड़े दौड़ाने के बाद गंगाराम ने धुधवा गांव के ही नरेश सोनकर, योगेश सोनकर और कोपेडीह निवासी रोहित सोनकर से जिक्र किया.

पैसों के लालच में तीनों ही उन की योजना में शामिल हो गए. तीनों ने योजना बना कर वारदात को अंजाम देने के लिए 21 दिसंबर, 2020 का दिन तय किया.

योजना के अनुसार, चारों लोग खेत पर पहुंच गए. वहां बालाराम और उस का छोटा बेटा रोहित तड़के में खेतों पर पानी लगा रहे थे. उन्होंने उन दोनों को दबोच लिया और सीमेंट की बनी पानी की हौदी में डुबो कर दोनों को मार दिया.

अगला निशाना अब दुलारीबाई और उस की बहू कीर्तिनबाई रही. चारों दबेपांव वहां पहुंचे, जहां वे सब्जियों का गट्ठर तैयार करने में व्यस्त थीं. शिकारी की तरह दबेपांव वे उन के करीब पहुंचे और कुल्हाड़ी से ताबड़तोड़ वार कर उन दोनों की जिंदगी भी खत्म कर दी.

इतना सब कुछ करने के बाद उन लोगों ने चैन की सांस ली. यहां यह बताते चलें कि निर्मला उन चारों को ऐसा करते हुए दरवाजे की ओट से देख रही थी. काम को अंजाम देने के बाद गंगाराम ने तीनों साथियों को वहां से रवाना कर दिया.

निर्मला और गंगाराम दोनों ने मिल कर कुल्हाड़ी को बाड़ी में ही दबा दिया. सुबह के 5 बजतेबजते पूरे खुरमुड़ा गांव में इस दहला देने वाली हत्या की चर्चा होने लगी.

अम्लेश्वर थाने में संजू सोनकर निवासी खुरमुड़ा की रिपोर्ट पर अमलेश्वर थानाप्रभारी वीरेंद्र श्रीवास्तव ने इस नृशंस हत्याकांड की सूचना वरिष्ठ अधिकारियों को दी.

जांचपड़ताल के लिए फोरैंसिक टीम घटनास्थल पर पहुंच गई. आईजी विवेकानंद सिन्हा के सुपरविजन में जांच होती रही. पुलिस को किसी तरह का कोई सूत्र नहीं मिल रहा था जिस से जांच आगे बढ़ती.

डौग स्क्वायड टीम घटनास्थल पर पहुंच चुकी थी. मृतकों के शव के समीप ले जा कर कुत्ते को छोड़ दिया गया. खोजी कुत्ता गोलगोल चक्कर लगाता हुआ मृतकों को सूंघ कर खेत की ओर कुछ दूर तक गया.

मौके की जांच से इतना तो स्पष्ट था कि हत्यारे 2-3 से कम नहीं थे. खेत में रासायनिक छिड़काव कर दिया गया था, जिस के कारण खोजी कुत्ते को सही दिशा नहीं मिल पा रही थी.

बहरहाल, पुलिस ने लाश पोस्टमार्टम के लिए भेज दी. जब पुलिस को किसी तरह का सूत्र नहीं मिला तो पुलिस ने गंगाराम के साढ़ू नरेश सोनकर को विश्वास में ले कर मुखबिरी का जिम्मा सौंपा.

नरेश मंझा हुआ खिलाड़ी था. उस ने पुलिस को मुखबिरी करने के बहाने उलझाए रखा. जांच के लिए आईजी विवेकानंद सिन्हा ने कुछ बिंदु तय किए.

उन बिंदुओं को आधार बना कर पुलिस जांच में जुटी रही. इस सामूहिक हत्याकांड को हुए 3 महीने बीत चुके थे. लेकिन अपराधियों का कोई अतापता नहीं था.

थानाप्रभारी वीरेंद्र श्रीवास्तव ने अपने एक मुखबिर को नरेश के पीछे लगा दिया. नरेश की एक्टिविटी पुलिस को शुरू से ही संदेहास्पद लगी थी.

फोरैंसिक विशेषज्ञों की टीम के सहयोग से भौतिक साक्ष्य जुटाया गया. टीम ने वैज्ञानिक एवं तकनीकी साक्ष्य को आधार बना कर बारीकी से पूछताछ कर जानकारी इकट्ठी की.

पुलिस ने संदेहियों को हिरासत में ले कर सघन पूछताछ की. इस घटना का मास्टरमाइंड बालाराम का अपना सगा बड़ा बेटा गंगाराम निकला.

गंगाराम की स्वीकारोक्ति के बाद योगेश सोनकर, नरेश सोनकर, रोहित सोनकर उर्फ रोहित मौसा को गिरफ्तार कर लिया गया. सभी को घटनास्थल पर ले जा सीन रीक्रिएशन कराया गया.

आरोपियों की निशानदेही पर हत्या में प्रयुक्त कुल्हाड़ी पुलिस ने बालाराम की बाड़ी से बरामद कर ली.

घटना के वक्त पहने गए कपड़ों को इन चारों ने ठिकाने लगा दिया था. 18 मार्च, 2021 को आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिस में निर्मला भी शामिल थी. इन चारों आरोपियों का नारको टेस्ट भी कराया गया.

आईजी विवेकानंद सिन्हा ने अमलेश्वर थाना स्टाफ की पीठ थपथपाई. पुलिस ने सभी आरोपियों गंगाराम, उस की पत्नी निर्मला, योगेश सोनकर, नरेश सोनकर और रोहित सोनकर को गिरफ्तार कर कोर्ट में पेश किया, जहां से उन्हें जेल भेज दिया गया.

न आप कैदी, न ससुराल जेल

लव मैरिज हो या अरेंज्ड, हर लड़की के मन में ससुराल को ले कर थोड़ाबहुत भय जरूर होता है. कई बार तो यह भय चिंता का रूप धारण कर लेता है. मगर समस्या तब आती है जब लड़की के मन में ससुराल वालों की नकारात्मक छवि बनने लगती है. इस स्थिति में बिना किसी आधार के लड़की भावी ससुराल वालों में खामियां ढूंढ़ने लगती है. मैरिज काउंसलर डा. वीरजी शर्मा कहते हैं, ‘‘लड़कियों में ससुराल को ले कर भय एक स्वाभाविक प्रकिया है. मगर कई बार डर इतना अधिक बढ़ जाता है कि लड़की खुद को मनगढंत स्थिति में सोच कर यह तय करने लगती है कि ससुराल वाले इस स्थिति में उस के साथ क्या सुलूक कर सकते हैं. अधिकतर लड़कियां नकारात्मक ही सोचती हैं. इस की 2 वजहें हो सकती हैं. पहली यह कि लड़की ससुराल के सभी सदस्यों के स्वभाव से भलीभांति परिचित हो और दूसरी यह कि वह अपने भावी ससुराल वालों के बारे में कुछ भी न जानती हो.’’

दोनों ही स्थितियों में विभिन्न प्रकार की चिंताएं उसे घेर लेती हैं. ऐसी ही कुछ चिंताओं से निबटने के तरीके पेश हैं:

खुद को व्यक्त न कर पाने का डर

जाहिर है, ससुराल में जगह और लोग दोनों ही लड़की के लिए अनजान होते हैं. ऐसे में हर लड़की को ससुराल के किसी भी सदस्य से अपनी ख्वाहिश, तकलीफ और भावना को व्यक्त करने में संकोच होता है. उदाहरण के तौर पर, एक नईनवेली दुलहन की मुंहदिखाई की रस्म की बात की जा सकती है. इस रस्म की कुछ खामियां भी हैं और कुछ लाभ भी. लाभ यह है कि घर की नई सदस्या बन चुकी दुलहन को सभी नए रिश्तेदारों से मिलने का मौका मिलता है, वहीं खामी यह है कि थकीथकाई दुलहन लोगों की भीड़ में खुद को असहज महसूस करती है. अब इस स्थिति में लड़की किस से अपनी तकलीफ बयां करे

इस रस्म के अलावा भी कई ऐसे मौके आते हैं जब लड़की अपनी मन की बात को ससुराल वालों के आगे व्यक्त नहीं कर पाती और मायूसी के साथ उन की हां में हां मिला देती है. डा. वीरजी इस बाबत कहते हैं, ‘‘शादी के शुरुआती दिनों में यह दिक्कत हर लड़की को आती है, मगर यह स्थाई नहीं होती. पहली बात की अपनी बात को व्यक्त करना अपराध नहीं है. यदि स्वस्थ तरीके से अपनी बात रखी जाए तो लोग उसे तवज्जो देते हैं. ससुराल वालों के आगे धीरेधीरे खुलने का प्रयास लड़की को खुद करना पड़ता है. इस में उस की कोई सहायता नहीं कर सकता. अब अपनी बात कहे बगैर ही यह मान लिया जाए कि कोई भी इसे नहीं मानेगा, यह बेवकूफी है.’’

आजादी छिन जाने का भय

शादी से पूर्व हर लड़की के मन में यह खयाल जरूर आता है कि क्या शादी के बाद भी मायके जैसी आजादी मिल सकेगी  डा. वीरजी कहते हैं, ‘‘शादी नए रिश्तों का बंधन है, बंदिशों का नहीं. नए रिश्तों की नई डिमांड्स होती हैं और उन्हें पूरा करना जरूरी भी है, क्योंकि नए रिश्तों की डोर एकदूसरे को समझने और एकदूसरे की ख्वाहिशों को पूरा करने पर मजबूत होती है. यह जिम्मेदारी केवल लड़कियों पर ही नहीं होती वरन ससुराल वाले भी नई दुलहन की पसंदनापसंद का खयाल रखते हैं. इसलिए खुद को ससुराल में कैदी न समझें.’’

कई बार लड़कियों को इस बात का डर सताता है कि ससुराल में पसंद के कपड़े, खाना, घूमनाफिरना सब पर पाबंदी लगा दी जाएगी. यहां तक कि कुछ करने से पहले सासससुर की अनुमति लेने पड़ेगी. तो बड़ों की अनुमति लेने में हरज क्या है  मायके में भी तो लड़कियां अपने मातापिता से कुछ करने से पूर्व उन का परामर्श लेती हैं और फिर बात सिर्फ लड़कियों की नहीं, बल्कि ज्यादा तजरबे और कम तजरबे की है. जाहिर है सासससुर को बहू से अधिक तजरबा होता है. अपने तजरबे के तहत यदि वे किसी काम को करने से या न करने की बात कहते भी हैं, तो इस में भलाई खुद की है. फिर इस बात का भी ध्यान रखें कि अपने फैसलों में जब बहू ससुराल वालों को शामिल करेगी, तो वे भी हर काम में उस की राय को अहमियत देंगे.

हर घर के कुछ नियम ते हैं उन्हें बंदिशें कहना गलत होगा. नियमों का पालन करने से जीवनशैली अनुशासित होती है. यह नियम घर के हर सदस्य के लिए एक से होते हैं. इसलिए इन्हें व्यक्तिगत तौर पर न लें. इसी तरह ससुराल को जेल समझ कर हर वक्त कैद से छूटने की बात न सोचें, क्योंकि यह सोच कभी भी ससुराल में अपनी जगह बना पाने में बहू को कामयाब नहीं होने देगी.

परिवार वालों के दखल की चिंता

‘4 बरतनों का आपस में टकराना’ कहावत गृहस्थ जीवन पर एकदम सटीक बैठती है. परिवार 1 व्यक्ति से नहीं बनता, बल्कि बहुत सारे सदस्य मिल कर एक परिवार बनाते हैं. जिस घर में 4-5 लोग होते हैं, वहां आपसी सलाह से ही हर काम किया जाता है. इसे दखल समझने की भूल न करें. हो सकता है कि कभी आप की सलाह के विपरीत कुछ फैसले लिए जाएं, मगर उस में घर के बाकी सदस्यों की सहमति होगी. इसे परिवार के सदस्यों की दखलंदाजी नहीं कहा जाएगा. जब लड़कियां मायके में होती हैं, तो मातापिता की रोकटोक उन्हें दखल नहीं लगती, क्योंकि उन से भावनात्मक रिश्ता होता. ससुराल वालों से भावनात्मक जुड़ाव में समय लगता है. इसलिए उन की हर बात दखल ही लगती है.

मगर कई बार सच में ससुराल में कुछ लोग नई बहू पर अपनी धाक जमाने के लिए उस के हर काम में अपना दखल देने से पीछे नहीं हटते. ऐसे लोगों से शुरू से ही थोड़ी दूरी बना कर चलना चाहिए. यदि बात सासससुर की है, तो अपने और उन के बीच एक सीमा रेखा खींच लें. उन की जो बातें आसानी से मानी जा सकती हैं उन्हें जरूर मान लें, मगर जो स्वीकार करने योग्य न हों उन्हें सम्मान के साथ स्वीकारने से इनकार कर दें.

अनचाही जिम्मेदारियों को निभाने का बोझ

नए रिश्तों के साथ नई जिम्मेदारियां भी निभानी पड़ती हैं, इस बात को स्वीकार कर लें. मगर कुछ रिश्तों को दिल से स्वीकार कर पाने में थोड़ी मुश्किलें भी आती हैं. ऐसे में उन रिश्तों से जुड़ी जिम्मेदारियों को निभाना बोझ लगता है खासतौर पर ननद और जेठानी के साथ खट्टेमीठे रिश्ते की कई कहानियों से लड़कियां पहले ही अवगत होती हैं. रहीसही कसर टीवी धारावाहिकों में सासबहू के झगड़े और घरेलू लड़ाई दिखा पूरी हो जाती है खासतौर पर लड़कियों के दिमाग में ननद, जेठानी और सास की छवि वैंप जैसी बन जाती है.

मगर वास्तव में इन रिश्तों को निभाना उतना जटिल भी नहीं होता. जाहिर है, अपने पति से जुड़ी जिम्मेदारियों को पूरा करने का जो उत्साह लड़कियों में होता है वह ससुराल के अन्य सदस्यों के लिए नहीं होता. मगर नकारात्मक सोच अच्छे को भी बुरा बना सकती है. ननद, जेठानी और सास ससुराल में नई बहू के लिए सब से अधिक मददगार साबित हो सकती हैं. ये रिश्ते नोकझोंक वाले जरूर हैं, मगर इन की गैरमौजूदगी में गृहस्थ जीवन फीका है.

जीवनशैली बदल जाने का खौफ

जीवन के हर पड़ाव पर एक नए बदलाव का सामना करना पड़ता है. शादी के बाद महिला और पुरुष दोनों के ही जीवन में बहुत सारे बदलाव आते हैं. मगर लड़कियों को शादी से पूर्व इस का अधिक खौफ होता है. इस की सब से बड़ी वजह पिता का घर छोड़ पति के घर जाना होती है. सभी घर के नियमकायदे अलग होते हैं, रहनसहन का तरीका भी अलग होता है. इन सब के बीच खुद को समयोजित कर पाना हर लड़की के लिए थोड़ा मुश्किल होता है, मगर नामुमकिन नहीं.घर में एक दूसरे माहौल से आई नई बहू से तालमेल बैठा पाना ससुराल वालों के लिए भी आसान नहीं होता. अपने घर के वातावरण में बहू को ढालना ससुराल वालों के लिए भी एक चुनौती होती है. मगर दोनों ही पक्ष आपसी समझ से कदम आगे बढ़ाएं तो ये बदलाव अच्छे लगने लगते हैं.

इसी तरह ससुराल और ससुराल वालों से जुड़ी बहुत सी बातें होती हैं, जो विवाह से पूर्व लड़कियों को मन ही मन नकारात्मक सोचने पर मजबूर कर देती हैं. मगर इस सोच के साथ नए रिश्तों की शुरुआत हमेशा बुरे परिणाम ही दिखाती है. इसलिए सकारात्मक सोचें. इस से विपरीत हालात में मसलों को सुलझाने का रास्ता मिलेगा और ससुराल के हर सदस्य के साथ सही तालमेल बैठाना आसान हो जाएगा.

लड़की- भाग 2 : क्यों डर रही थी वो बेटी को खो देने से?

सुधाकर पहले ही ज्योतिषी से मिल चुके थे और उस की मुट्ठी गरम कर दी थी. ‘महाराज, कन्या एक गलत सोहबत में पड़ गई है और उस से शादी करने का हठ कर रही है. कुछ ऐसा कीजिए कि उस का मन उस लड़के की ओर से फिर जाए.

‘आप चिंता न करें यजमान,’ ज्योतिषाचार्य ने कहा.

ज्योतिषी ने वीणा की जन्मपत्री देख कर बताया कि उस का विदेश जाना अवश्यंभावी है. ‘तुम्हारी कुंडली अति उत्तम है. तुम पढ़लिख कर अच्छा नाम कमाओगी. रही तुम्हारी शादी की बात, सो, कुंडली के अनुसार तुम मांगलिक हो और यह तुम्हारे भावी पति के लिए घातक सिद्ध हो सकता है. तुम्हारी शादी एक मांगलिक लड़के से ही होनी चाहिए वरना जोड़ी फलेगीफूलेगी नहीं. एक  बात और, तुम्हारे ग्रह बताते हैं कि तुम्हारी एक शादी ऐनवक्त पर टूट गई थी?’

‘जी, हां.’

‘भविष्य में इस तरह की बाधा को टालने के लिए एक अनुष्ठान कराना होगा, ग्रहशांति करानी होगी, तभी कुछ बात बनेगी.’ ज्योतिषी ने अपनी गोलमोल बातों से वीणा के मन में ऐसी दुविधा पैदा कर दी कि वह भारी असमंजस में पड़ गई. वह अपनी शादी के बारे में कोई निर्णय न ले सकी.

शीघ्र ही उसे अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी से वजीफे के साथ वहां दाखिला मिल गया. उसे अमेरिका के लिए रवाना कर के उस के मातापिता ने सुकून की सांस ली.

‘अब सब ठीक हो जाएगा,’ सुधाकर ने कहा, ‘लड़की का पढ़ाई में मन लगेगा और उस की प्रवीण से भी दूरी बन जाएगी. बाद की बाद में देखी जाएगी.’

इत्तफाक से वीणा के दोनों भाई भी अपनेअपने परिवार समेत अमेरिका जा बसे थे और वहीं के हो कर रह गए थे. उन का अपने मातापिता के साथ नाममात्र का संपर्क रह गया था. शुरूशुरू में वे हर हफ्ते फोन कर के मांबाप की खोजखबर लेते रहते थे, लेकिन धीरेधीरे उन का फोन आना कम होता गया. वे दोनों अपने कामकाज और घरसंसार में इतने व्यस्त हो गए कि महीनों बीत जाते, उन का फोन न आता. मांबाप ने उन से जो आस लगाई थी वह धूलधूसरित होती जा रही थी.

समय बीतता रहा. वीणा ने पढ़ाई पूरी कर अमेरिका में ही नौकरी कर ली थी. पूरे 8 वर्षों बाद वह भारत लौट कर आई. उस में भारी परिवर्तन हो गया था. उस का बदन भर गया था. आंखों पर चश्मा लग गया था. बालों में दोचार रुपहले तार झांकने लगे थे. उसे देख कर सुधाकर व अहल्या धक से रह गए. पर कुछ बोल न सके.

‘अब तुम्हारा क्या करने का इरादा है, बेटी?’ उन्होंने पूछा.

‘मेरा नौकरी कर के जी भर गया है. मैं अब शादी करना चाहती हूं. यदि मेरे लायक कोई लड़का है तो आप लोग बात चलाइए,’ उस ने कहा.

अहल्या और सुधाकर फिर से वर खोजने के काम में लग गए. पर अब स्थिति बदल चुकी थी. वीणा अब उतनी आकर्षक नहीं थी. समय ने उस पर अपनी अमिट छाप छोड़ दी थी. उस ने समय से पहले ही प्रौढ़ता का जामा ओढ़ लिया था. वह अब नटखट, चुलबुली नहीं, धीरगंभीर हो गई थी.

उस के मातापिता जहां भी बात चलाते, उन्हें मायूसी ही हासिल होती थी. तभी एक दिन एक मित्र ने उन्हें भास्कर के बारे में बताया, ‘है तो वह विधुर. उस की पहली पत्नी की अचानक असमय मृत्यु हो गई. भास्कर नाम है उस का. वह इंजीनियर है. अच्छा कमाता है. खातेपीते घर का है.’

मांबाप ने वीणा पर दबाव डाल कर उसे शादी के लिए मना लिया. नवविवाहिता वीणा की सुप्त भावनाएं जाग उठीं. उस के दिल में हिलोरें उठने लगीं. वह दिवास्वप्नों में खो गई. वह अपने हिस्से की खुशियां बटोरने के लिए लालायित हो गई.

लेकिन भास्कर से उस का जरा भी तालमेल नहीं बैठा. उन में शुरू से ही पटती नहीं थी. दोनों के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर था. भास्कर बहुत ही मितभाषी लेकिन हमेशा गुमसुम रहता. अपने में सीमित रहता.

वीणा ने बहुत कोशिश की कि उन में नजदीकियां बढ़ें पर यह इकतरफा प्रयास था. भास्कर का हृदय मानो एक दुर्भेध्य किला था. वह उस के मन की थाह न पा सकी थी. उसे समझ पाना मुश्किल था. पति और पत्नी में जो अंतरंगता व आत्मीयता होनी चाहिए, वह उन दोनों में नहीं थी. दोनों में दैहिक संबंध भी नाममात्र का था. दोनों एक ही घर में रहते पर अजनबियों की तरह. दोनों अपनीअपनी दुनिया में मस्त रहते, अपनीअपनी राह चलते.

दिनोंदिन वीणा और उस के बीच खाई बढ़ती गई. कभीकभी वीणा भविष्य के बारे में सोच कर चिंतित हो उठती. इस शुष्क स्वभाव वाले मनुष्य के साथ सारी जिंदगी कैसे कटेगी. इस ऊबभरे जीवन से वह कैसे नजात पाएगी, यह सोच निरंतर उस के मन को मथते रहती.

एक दिन वह अपने मातापिता के पास जा पहुंची. ‘मांपिताजी, मुझे इस आदमी से छुटकारा चाहिए,’ उस ने दोटूक कहा. अहल्या और सुधाकर स्तंभित रह गए, ‘यह क्या कह रही है तू? अचानक यह कैसा फैसला ले लिया तू ने? आखिर भास्कर में क्या बुराई है. अच्छे चालचलन का है. अच्छा कमाताधमाता है. तुझ से अच्छी तरह पेश आता है. कोई दहेजवहेज का लफड़ा तो नहीं है न?’

‘नहीं. सौ बात की एक बात है, मेरी उन से नहीं पटती. हमारे विचार नहीं मिलते. मैं अब एक दिन भी उन के साथ नहीं बिताना चाहती. हमारा अलग हो जाना ही बेहतर है.’

‘पागल न बन, बेटी. जराजरा सी बातों के लिए क्या शादी के बंधन को तोड़ना उचित है? बेटी शादी में समझौता करना पड़ता है. तालमेल बिठाना पड़ता है. अपने अहं को त्यागना पड़ता है.’

‘वह सब मैं जानती हूं. मैं ने अपनी तरफ से पूरा प्रयत्न कर के देख लिया पर हमेशा नाकाम रही. बस, मैं ने फैसला कर लिया है. आप लोगों को बताना जरूरी समझा, सो बता दिया.’

‘जल्दबाजी में कोई निर्णय न ले, वीणा. मैं तो सोचती हूं कि एक बच्चा हो जाएगा तो तेरी मुश्किलें दूर हो जाएंगी,’ मां अहल्या ने कहा.

वीणा विद्रूपता से हंसी. ‘जहां परस्पर चाहत और आकर्षण न हो, जहां मन न मिले वहां एक बच्चा कैसे पतिपत्नी के बीच की कड़ी बन सकता है? वह कैसे उन दोनों को एकदूसरे के करीब ला सकता है?’

अहल्या और सुधाकर गहरी सोच में पड़ गए. ‘इस लड़की ने तो एक भारी समस्या खड़ी कर दी,’ अहल्या बोली, ‘जरा सोचो, इतनी कोशिश से तो लड़की को पार लगाया. अब यह पति को छोड़छाड़ कर वापस घर आ बैठी, तो हम इसे सारा जीवन कैसे संभाल पाएंगे? हमारी भी तो उम्र हो रही है. इस लड़की ने तो बैठेबिठाए एक मुसीबत खड़ी कर दी.’

‘उसे किसी तरह समझाबुझा कर ऐसा पागलपन करने से रोको. हमारे परिवार में कभी किसी का तलाक नहीं हुआ. यह हमारे लिए डूब मरने की बात होगी. शादीब्याह कोई हंसीखेल है क्या. और फिर इसे यह भी तो सोचना चाहिए कि इस उम्र में एक तलाकशुदा लड़की की दोबारा शादी कैसे हो पाएगी. लड़के क्या सड़कों पर पड़े मिलते हैं? और इस में कौन से सुरखाब के पर लगे हैं जो इसे कोई मांग कर ले जाएगा,’ सुधाकर बोले.

‘देखो, मैं कोशिश कर के देखती हूं. पर मुझे नहीं लगता कि वीणा मानेगी. वह बड़ी जिद्दी होती जा रही है,’ अहल्या ने कहा.

‘‘तभी तो भुगत रही है. हमारा बस चलता तो इस की शादी कभी की हो गई होती. हमारे बेटों ने हमारी पसंद की लड़कियों से शादी की और अपनेअपने घर में खुश हैं, पर इस लड़की के ढंग ही निराले हैं. पहले प्रेमविवाह का खुमार सिर पर सवार हुआ, फिर विदेश जा कर पढ़ने का शौक चर्राया. खैर छोड़ो, जो होना है सो हो कर रहेगा.’’ बूढ़े दंपती ने बेटी को समझाबुझा कर वापस उस के घर भेज दिया.

एक दिन अचानक हृदयगति रुक जाने से सुधाकर की मौत हो गई. दोनों बेटे विदेश से आए और औपचारिक दुख प्रकट कर वापस चले गए. वे मां को साथ ले जाना चाहते थे पर अहल्या इस के लिए तैयार नहीं हुई.

अहल्या किसी तरह अकेली अपने दिन काट रही थी कि सहसा बेटी के हादसे के बारे में सुन कर उस के हाथों के तोते उड़ गए. वह अपना सिर धुनने लगी. इस लड़की को यह क्या सूझी? अरे, शादी से खुश नहीं थी तो पति को तलाक दे देती और अकेले चैन से रहती. भला अपनी जान देने की क्या जरूरत थी? अब देखो, जिंदगी और मौत के बीच झूल रही है. अपनी मां को इस बुढ़ापे में ऐसा गम दे दिया.

प्रिया अहूजा ने तारक मेहता शो पर वापसी को लेकर दिया ये बड़ा बयान

सीरियल तारक मेहता से रीटा रिपोर्टर काफी लंबे समय से गायब है, जिसे लेकर एक फैंस ने उनसे सवाल किया है कि आप काफी लंबे समय से शो से क्यों गायब है तो उन्होंने जवाब देते हुए बहुत कुछ कहा है.

उनसे सवाल किया गया है कि आप काफी लंबे समय से गायब क्यों है और आपके सेट पर गलत तरह से बर्ताव किया जाता है उसे लेकर आप क्या कहेंगी. जिसपर रीटा रिपोर्टर ने जवाब दिया है. रीटा ने जवाब देते हुए कहा है कि असित कुमार मोदी और जतिन भाई मेरे छोटे भाई जैसे हैं.

प्रिया ने आगे कहा कि जब मालवा ने शो छोड़ा तो आसित भाई को मैसेज किया, कई बार ये पूछने के लिए कि मेरा ट्रैक क्या है , आगे उसने बताया कि असित मोदी ने शो छोड़ने वाले व्यक्ति को कई बार फोन किया है कि आगे क्या करना है,

रीटा ने बताया कि मैंने सोहिल को फोन करके बताया कि असित जी ने मुझे ट्रैक करने की कोशिश किया है, हालांकि मैं अभी उन्हें कोई रिप्लाई नहीं दी हूं.

साथ ही प्रिया ने जेनिफर मिस्त्री की भी तारीफ की की वह सेट पर सबका ध्यान रखती थीं, कैसे वह सबके लिए खड़ी रहती थीं.

Cannes 2023 : ऐश्वर्या की फोटो पर कमेंट कर फसें विवेक अग्निहोत्री, उर्फी ने दिया ये जवाब

विवेक अग्निहोत्री आएं दिन अपने बयान पर फंस जाते हैं, जिसे लेकर कंट्रोवर्सी का शिकार हो जाते हैं. विवेक हाल ही में ऐश्वर्या राय को लेकर बयान दिए हैं. दरअसल, ऐश्वर्या राय के हुडी वाले ड्रेस को संभालने वाले व्यक्ति को लेकर कुछ ऐसा बयान दे दिया है जिससे वह चर्चा में आ गए है.

विवेक अग्निहोत्री के इन बातों का जवाब उर्फी जावेद ने सोशल मीडिया पर दिया है, जिसे लेकर फैशन इंडस्ट्री के लोग भी कुछ न कुछ कहते नजर आ रहे हैं. द कश्मीर फाइल्स मेकर्स अक्सर अपने बयान को लेकर चर्चा में बने रहते हैं.

विवेक अग्निहोत्री ने लिखा कि क्या आपने कऊी कॉस्टयूम सेलेव्स शब्द का नाम सुना है, अब लगभग भारत में भी अब लगभग हर फिमेल सेलेब्स के साथ देखा जा सकता है. हम अनकंफर्टेबल फैशन के लिए इतने लाचार क्यों बन जाते हैं.

बताते चले की ऐश्वर्या ने रेड कारपेट पर सोफी टंडन का डिजाइन किया हुआ गॉउन पहना हुआ है. बता दें कि बड़ी सी हुड़ी को लेकर काफी ज्यादा चर्चा हुआ है.  इस पोस्ट के बाद से उर्फी जावेद ने जमकर सोशल मीडिया पर विवेक को जवाब दिया है. उर्फी ने लिखा है कि मैं जानना चाहती हूं कि आपने कौन से फैशन स्कूल से डिग्री ली है. आपको देखकर लगता है कि आपको फैशन का काफी समझ है आपको फैशन मूवी डायरेक्ट करनी चाहिए.

आकाश से भी ऊंचा : भाग 4

‘‘रानोजी, अब कैसी हैं आप. उंगलियां तो नहीं जलीं. रात में तो मैं ठीक से देख नहीं पाया था,” शलभ बोला.

अब तो रानो का चेहरा और भी दम उठा. झुके चेहरे से ही ‘नहीं’ कह कर चेहरा और भी नीचे झुका लिया.

‘‘और कहिए बन्नी रानी, आप के क्या हाल हैं.’’ संजय बोला.

‘‘बस जीजाजी, कृपा है हम सालियों पर आप की. रानो को आग की लपटों से बचा कर पुरस्कार देने योग्य काम कर दिया है आप लोगों ने,’’ उमा भी संजय की तरह विनोदी स्वभाव की थी, सो बोल पड़ी.

‘‘अरे भई, दिलाइए न पुरस्कार. क्या दे रही हैं?’’

‘‘जो आप चाहें,’’ कहती हुई उमा रानो की ओर देख कर मुसकरा दी. रानो की उठी हुई पलकें फिर झुक गईं. एकबारगी तो शलभ का कंठ कुछ कहतेकहते अटक गया. फिर हिम्मत कर के बोल ही पड़ा, ‘‘तो फिर मेरी फरमाइश पूरी करा दीजिए. समझ लूंगा पुरस्कार पा लिया. एक गजल सुनवा दीजिए.’’

रानो अभी भी छुईमुई सी चुपचाप बैठी थी.

‘‘अच्छा तो रानोजी, अपनी जान बचाने वाले को पुरस्कार दीजिए.’’

‘‘दीदी, जिसे गाना या गजल सुनने का शौक होता है वह खुद भी अच्छा गायक होता है. पहले शलभजी कुछ सुनाएंगे, फिर मैं.’’

‘‘ये रही न बात. तो शलभजी, पहले हमारी फरमाइश पूरी करिए,’’ उमा चहकी.

‘‘अब एक नहीं सुनी जाएगी छोटे जीजाजी. बस, शुरू हो जाइए चुपचाप. देख रहे हैं न सालेसालियों का जमघट.’’

शलभ को बहुत के आगे झुकना पड़ा. उस ने फिल्मी गीत गाया. सुनते ही चारों ओर तालियां बजीं.

अब बारी थी रानो की. उस ने गजल गाई तो जैसे समां बंध गया. फिर तो जैसे होड़ लग गई. बारीबारी से सब ने कुछ न कुछ सुनाया. शलभ और रानो ने तो जैसे रिकौर्ड ही तोड़ दिए. अब तो खाने के समय को छोड़ कर दिनभर महफिल जमी रहती. बरात आने तक बराबर दिनरात जैसे गीतों के खजाने खुल गए.

अकेले में जब भी कभी रानो दिख जाती तो शलभ उस की तारीफ किए बिना न रहता. हर क्षण हासपरिहास तथा मस्तीभरा बीत रहा था. कब उस की शादी हो गई और 8 दिन बीत गए, वह जान ही न सका.

उमा के विदा होने के बाद घर उदास अवश्य हो गया पर शादी सकुशल संपन्न हो गई थी, इस से सब संतुष्ट थे.

उस दिन दोपहर के खाने के बाद शलभ उसी कमरे में लेटा था जहां उमा रहती थी. संजय भी थकाहारा पड़ा था और भी नन्हेमुन्ने बच्चे फर्श पर खर्राटे ले रहे थे.

तभी रानो किसी काम से आई और उसे बैठा देख कर झेंप कर लौटने लगी तो शलभ ने पुकार कर रोक लिया. ‘‘आओ रानो, बैठो न थोड़ी देर. अब मैं गजल की फारमाइश नहीं करूंगा. वह माहौल तो उमा के विदा होते ही चला गया. अब मैं भी कल जाने की सोच रहा हूं. तुम से कुछ बातें करना चाहता हूं, बैठो न,’’ यह कहते हुए उस ने हाथ पकड़ कर रानो को पास में बैठा लिया. फिर कुछ क्षण हाथ वैसे पकड़े रह कर बोला, ‘‘आप तो रहेंगी अभी?’’

रानो का चेहरा सुर्ख हो उठा. मुट्ठी पसीने से तर हो गई.

‘‘परसों जाएंगे हम,’’ वह किसी तरह बोली.

‘‘अरे, इतनी जल्दी?’’

‘‘हां, वहां घर सूना है.’’

‘‘ठीक है, मैं एक बात कहना चाह रहा हूं, आप इस साल बीए जरूर कर डालें.’’

‘‘यह अब संभव नहीं है. किताबें, फीस, समय कुछ भी तो नहीं है मेरे पास,’’ रानो का स्वर भर्रा सा गया.

‘‘किताबों और फीस की चिंता मत करो. मैं जाते ही रुपए भेज दूंगा, पर समय तो आप को निकालना ही पड़ेगा,’’ शलभ बोला.

अब रानो की हथेली और भी ज्यादा तर हो गई. यही हाल शलभ का भी था.

‘‘हमीरपुर के पास एक गांव के स्कूल में अध्यापक हैं जीजाजी. कौन परीक्षा दिलाने शहर ले जाएगा. तमाम समस्याएं हैं. घर में इतना काम रहता है कि थक कर चूर हो जाती हूं. पता नहीं पढ़ पाऊंगी या नहीं.’’

‘‘वह सब हो जाएगा. मैं ने संजय से बात कर ली है. वह आ कर फौर्म भरवा देगा और फीस भी मैं उसी से भरवा दूंगा. मैं सोचता हूं कि आप सैंटर हमारे यहां का भरें. इलाहाबाद में कोई परेशानी नहीं आएगी. वहां आप की बहन यानी मेरी भाभी और मां हैं.’’

रानो ने सिर झुका लिया जैसे एहसान के बोझ से दबी जा रही हो. संजय, जो वहीं लेटा हुआ था, उन की ओर करवट ले कर बोला, ‘‘अब सोचो मत, रानो. जैसा शलभ कहते हैं, मान लो. किताबें अभी आ जाएंगी. मैं अपनी ओर से तुम्हारी दीदी से बात कर लूंगा. मैं ही फौर्म भरवा आऊंगा और अपनी परीक्षा के बाद तुम्हें ले भी जाऊंगा.’’

रानो चुप बैठी रही. संजय और शलभ उस का चेहरा देखते जा रहे थे.

‘‘अरे, क्या होंठ सिल गए हैं?’’

संजय ने उस का हाथ पकड़ कर झटका तो वह खुद को न रोक सकी. बहुत रोकने पर भी उस की आंखें बरस पड़ीं. यह देख कर दोनों अचकचा गए.

‘‘अरे, क्या बात हुई, क्या मेरी मदद स्वीकार नहीं है?’’ शलभ चिंतित स्वर में बोला.

‘‘अरे भई, तुम्हारे यहां सुविधा नहीं है तो शलभ ने सोचा कि बीए की उन की कुछ किताबें पड़ी हैं और शेष कुछ लेना इन के लिए मुश्किल थोड़े ही है. किताबें किसी भी विद्यार्थी से ले कर भेज देंगे जो बीए कर चुका है.’’

‘‘नहीं, संजय, मैं इसलिए नहीं रो रही हूं. ये आंसू तो इसलिए आ गए कि मेरा यह सपना पूरा होने जा रहा है कि मैं आगे पढ़ सकूं. मैं तो सोचती थी कि यह सपना कभी पूरा ही नहीं होगा.’’

‘‘अरे पगली, हम तो वैसे ही डर गए.’’

‘‘पर, शलभजी के इतने एहसानों का बोझ क्या मैं कभी चुका पाऊंगी.’’

‘‘यह एहसान कैसा. यह तो कर्तव्य है. यही समझ कर अपने मन से सारी हीनभावना निकाल दीजिए और जीवन पथ पर बढ़ चलिए.’’

बिहार में नरेंद्र नहीं धीरेंद्र, निकल रही है कर्नाटक की खीझ

कर्नाटक की करारी हार से भगवा गैंग ने क्या सबक सीखा, इस सवाल का जबाब बीते दिनों  बिहार से मिला कि कुछ खास नहीं सीखा. उलटे, उसकी कट्टरता और बढ़ गई है. सोशल मीडिया की पोस्ट पानी पीपी कर हिंदुओं को कोस रही हैं कि तुमने अपने हाथों से अपने पांवों पर कुल्हाड़ी मार ली, अब अंजाम भुगतने को तैयार रहना.

मोदी बारबार पैदा नहीं होता. ऐसी कई भड़काऊ बातों से भक्त अपनी खीझ, बौखलाहट और भड़ास अभी भी निकाल रहे हैं. डीके शिवकुमार और सीएम घोषित कर दिए गए सिद्धारमैया के टोपी पहने फोटो वायरल किए. वे 12 फीसदी थे और तुम 85, फिर भी सत्ता उस पार्टी को दे दी जो मुसलिम आरक्षण की हिमायती है और हिंदुत्व की दुश्मन है जैसी उत्तेजक बातों के जरिए भी खंभा नोचा गया.

पटना से यही आवाजें आधा दर्जन बड़े भाजपा नेता (वहां हैं ही इतने) भी निकालते दिखे जिन में वे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से पूछ रहे हैं कि तुम लोग बागेश्वर बाबा की कथा में क्यों नहीं आए जबकि मुसलमानों की रोजा इफ्तार पार्टियों में तो खूब टोपी पहनकर, मटकमटक कर जाते हो.

बागेश्वर बाबा के तमाशे में न जाने मात्र से आप किस तरह हिंदू और सनातन धर्म के दुश्मन और पापी तक हो जाते हैं, यहकेंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह समेत भाजपा के तमाम छोटेबड़े नेता बिहार से तरहतरह से चिल्लाचिल्ला कर बताते रहे.यह और बात है कि इन दोनों पर शादी के नाराज फूफा की तरह कोई असर होता नहीं दिखा.

फर्जी चमत्कार

पटना के नौबतपुर में इन दिनों के हिट और ब्रैंडेड बाबा आचार्य धीरेंद्र शास्त्री की 5-दिवसीय बजरंग कथा 17 मई तक चली जिस में भक्त लोग पागलों की तरह टूट पड़े थे. रोजाना कोई 4 लाख लोग इस भव्य और खर्चीले आयोजन में पहुंचे थे. उमसभरी भीषण गरमी में सैकड़ों लोग चक्कर आने से बेहोश से होकर गिर पड़े लेकिन यह चमत्कारी बाबा कुछ न कर पाया जिसके मंच पर एकदो नहीं, बल्कि 8-8 एसी लगे थे.

जो बाबा जिंदा लोगों को राहत नहीं दे सकता वह क्या खाकर भूतप्रेत और पिशाचों से मुक्ति दिलाएगा, यह तो भगवान, कहीं हो तो वही, जाने. हां, यह जरूर सच है कि ये अज्ञात शैतानी ताकतें काल्पनिक और पंडों के खुराफाती दिमाग की उपज हैं, इसलिए इन्हें भगाने की जरूरत ही नहीं पड़ती. वे तो चुटकीभर राख, जिसे भभूत कहा जाता है, से सिर झुकाकर छू हो जाती हैं.

गौरतलब है कि इस बाबा के चमत्कारों की पोल कई मर्तबा खुल चुकी है और उन्हें चुनौतियां भी मिलती रही हैं लेकिन अभी उनका जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोल रहा है ठीक वैसे ही जैसे कभी आसाराम और राम रहीम जैसों का बोलता था. इसलिए, उनकी हकीकत पर कोई ध्यान नहीं दे पा रहा.

 गिरिराज क्यों इफ्तार में नहीं जाते

बाबाओं और राजनेताओं की दुकानें परस्पर सहयोग से यानी सहकारिता के सिद्धांत पर चलती हैं. बाबा चमत्कारों के नाम पर भीड़ इकट्ठा कर दक्षिणा बटोरने के कारोबार में व्यस्त रहते हैं तो नेता लाखों की भीड़ में वोट टटोलते रहते हैं.

गिरिराज सिंह जैसे घिसे नेता नीतीश और तेजस्वी को कोस कर अपील असल में यह कर रहे हैं कि कर्नाटक जैसी गलती मत करना नहीं तो पछताओगे. अब भक्त बेचारा, परेशानी का मारा, इस गोरखधंधे को समझ ही नहीं पाता कि सूदखोर साहूकार और बनिए दोनों एक छत के नीचे छतरी लगाए अपनेअपने हिस्से का मुनाफा मेला लगाकर वसूल रहे हैं जबकि कर्ज या उधारी उसे किसी की नहीं देना.

उधर गिरराज सिंह के हमले से खासतौर से लड़खड़ाए नीतीश कुमार संविधान की दुहाई देते रहे  लेकिन यह पलटवार नहीं कर पाए कि गिरिराजजी, आप क्यों इफ्तार में नहीं जाते लेकिन कथाओं में कूदकूद कर जा रहे हो.

अब शायद नीतीश को समझ आ रहा होगा कि भगवा धोती का छोर पकड़ कर 2020 में चुनावी वैतरणी तो पार कर ली थी लेकिन बीच नदी में धोती छोड़ देने से मोक्ष भी आधाअधूरा मिला, पतवार अब लालूपुत्रों के हाथों में है.

 शिव और कृष्ण बनते हैं तेजप्रताप

भीड़ देख गदगद हुए जा रहे धीरेंद्र शास्त्री नेभगवा गैंग केमन की बात कह ही दी कि हिंदू राष्ट्र बनना चाहिए.इसी पुनीत काम के लिए तो वे छतरपुर से 682.2 किलोमीटर दूर पटना गए थे वरना तो भक्तों और पैसों की कमी एमपी में भी नहीं है.

बाबा ने हिंदुओं को आगाह करते बड़े ज्ञान की बात यह कही कि हिंदुओं में 33 करोड़ देवीदेवता हैं, फिर भी कुछ हिंदू चादर चढ़ाने मजारों पर जाते हैं.

इस सनातनी धिक्कार से लगता नहीं कि अंधविश्वासियों ने कुछ सीखा होगा जो हर उस जगह पैसा चढ़ा आते हैं जहां चमत्कारों के जरिए उनकी परेशानी दूर करने की बेमियादी गारंटी दी जा रही हो.

बिहार में5 दिन माहौल ऐसा रहा मानो नीतीश सहित तेजस्वी और तेजप्रताप दोनों मुसलमान हों. इस पर लालू यादव ने धीरेंद्र शास्त्री का मजाक सा उड़ाते कहा था, ‘हट… वह कोई बाबा है क्या.’

असल में वे एक देहाती कहावत की तरफ इशारा कर रहे थे जिसके तहत रातोंरात चमत्कारी बन गए बाबाओं के बारे में मुंह बिदकाकर कहा जाता है कि ‘हुंह .. कल के जोगी और फलां अंग तक जटा.’

लालू परिवार, खासतौर से उनके बड़े बेटे तेजप्रताप तो इतने बड़े सनातनी हैं कि हर कभी शिव और कृष्ण का रूप धरकर सार्वजनिक स्थलों पर शरीर पर भभूत लपेटे, बांसुरी बजाते घूमा करते हैं. फिर वे कैसे चादर और फादर वालेया टोपी वाले हिंदू हुए, यह भी राम जाने.

 नरेंद्र से ज्यादा धीरेंद्र पर भरोसा

भगवा गैंग कर्नाटक का जला है, लिहाजा, बिहार अभी से फूंकफूंक कर पी रहा है. कर्नाटक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जय बजरंगबली करते रह गए और अली वाले बाजी मार ले गए. इस बात को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सभाओं में कई बार कह भी चुके हैं कि उनके पास अली है तो हमारे पास बजरंगबली है.

कर्नाटक में तो महज 12 फीसदी मुसलमान थे लेकिन बिहार में 18 फीसदी के लगभग हैं. इसलिए वहां किसी जीतेजागते देवता सरीखे आदमी की जरूरत पड़ी तो बागेश्वर बाबा को अभी से शिफ्ट और लिफ्ट कर दिया गया. बाबा ने भी निराश नहीं किया और भूखप्यास से बेहाल होती भीड़ का बुंदेलखंडी से, जितना हो सकता था, मनोरंजन किया.

लेकिन बिहार की छाछ भगवा गैंग को अभी और फूंकनी पड़ेगी क्योंकि वहां भी ब्राह्मणों के वोट महज 6 फीसदी हैं और अगर सभी अगड़ों व भूमिहारों को भी अपने खेमे में गिन लें तो भी उसके गारंटेड वोटों की तादाद 15 फीसदी तक ही पहुंचती है. दलित, महादलित, पिछड़े, आदिवासी और ईसाई वगैरह अगर कर्नाटक की तरह हिंदू राष्ट्र से बिदक गए तो सीटों की हाफ सैंचुरी लगाना भी उसके लिए मुश्किल हो जाएगा. पिछले चुनाव में जनता दल यूनाइटेड के गठबंधन के तहत 78 सीट मिल भी गईं थीं.

जो भक्त हिंदीभाषी राज्यों को लेकर चिंतित और व्यथित हैं, उन्हें कर्नाटक के हिंदू राष्ट्र के मौडल पर एक बार और गौर करते यह समझ लेना चाहिए कि बिहार में पिछड़ों और दलितों को सत्ता ब्राह्मणवाद के खात्मे के बाद ही मिली है. बिहार की नई पीढ़ी तो जगन्नाथ मिश्र को जानती भी नहीं ठीक वैसे ही जैसे उत्तरप्रदेश की नई पीढ़ी नारायणदत्त तिवारी और मध्यप्रदेश की नई पीढ़ी पंडित श्यामाचरण शुक्ल को नहीं जानती.

जाहिर है ये और ऐसे तमाम समीकरण भगवा गैंग को समझ आ रहे हैं, इसीलिए उसने धीरेंद्र पर भरोसा किया जो एक तरह का नया प्रयोग है कि किसी लोकप्रिय संत को अघोषित प्रचारक घोषित कर उससे हिंदू राष्ट्र का शंख बजवाया जाए तो आम लोगों पर क्या असर पड़ेगा. अगर वाजिब असर पड़ता दिखा तो बाबा घोषित तौर पर भाजपा भी जौइन कर सकते हैं.

अब यह और बात है कि नतीजे तो कर्नाटक जैसे ही आने हैं क्योंकि बाबाओं, धर्म, हिंदुत्व और 33 करोड़ देवीदेवताओं के होहल्ले में फायदा विपक्ष को ज्यादा होता है और बिहार में तो जीतनराम मांझी जैसे तेजतर्रार दलित नेता पहले से ही तैयार बैठे हैं जो खुलेआम ब्राह्मणवाद, मनुवाद, रामायण और रामचरितमानस जैसे धर्मग्रंथों की बखिया उधेड़ रहे हैं जिससे दलित वोट खिसके नहीं.

 इन्हें कभी कुछ नहीं मिलता

पटना के तमाशे से किसे क्या मिला, यह हिसाबकिताब अब कई दिनों तक लगता रहेगा, लेकिन तरस उन भक्तों की अक्ल पर आता है जो चिलचिलाती, झुलसती गरमी में बेहाल बैठे रहे फिर भी उन्हें कुछ नहीं मिला. ये लोग सदियों से यों ही उम्मीदें और आस लेकर दरबारों में आते हैं और खुद को ठगा कर चले जाते हैं.

सदियों से ही यह वर्ग वहीं खड़ा है जहां से धर्म ने उसे छलना शुरू किया था.बाबा आशीर्वाद और झूठा आश्वासन देकर चलते बनते हैं लेकिन करोड़ों अरबों की नकदी बटोर ले जाते हैं. यही आम आदमी की जिंदगी का कड़वा सत्य है जिसका कोई इलाज नहीं.

बाबाओं के चमत्कारों और देश के हिंदू राष्ट्र बन जाने से अगर बेरोजगारों को रोजगार, बेऔलादों को औलाद मिलती हो,कैंसर जैसी बीमारी ठीक होती हो तो फिर जरूर बात हर्ज की नहीं बशर्ते आम लोग तर्क की कसौटी पर इन्हें कस कर देखें तो.

 

पत्थर- भाग 4 : भाग्यजननी अध्ययन के बाद क्यों परेशान थी?

भाग्यजननी ने सारी रात जागते हुए ही बिताई. वह चाहती तो भी उसे नींद नहीं आती. आज तक जो कुछ भी उस के लिए सैद्धांतिक था, अब व्यावहारिक बन कर सामने आ चुका था. रातभर न तो नासा की ओर से कोई मैसेज आया, न ही कहीं से ऐसा कुछ ज्ञात हुआ कि किसी को कुछ मालूम है.

भाग्यजननी को यह संदेह अवश्य जागा कि कहीं सिस्टम में कुछ गड़बड़ी तो नहीं पैदा हो गई है, जिस के कारण एक सौमंप धरती से टकराता हुआ प्रतीत हो रहा है. हो सकता है कि वास्तविकता कुछ और हो और शायद यह सौमंप भी अन्य सौमंपों की तरह धरती के हजारों किलोमीटर ऊपर से बाहर से ही गुजर जा रहा हो और प्रोग्राम में त्रुटि होने से प्रोग्राम गलत अंदेशा दे रहा हो.

विक्रम लैब, हिमालय की एक पहाड़ी शिखर पर मौजूद टैलीस्कोप से फाइबर औप्टिक केबल से जुडी हुई थी. इस टैलीस्कोप का यही काम था कि सौमंपों पर नजर रखे. टैलीस्कोप के रियल टाइम पर्यवेक्षण का डेटा सीधे विक्रम लैब में आता था, जहां पर उस की प्रोसैसिंग होती थी. डेटा प्रोसैसिंग से सौमंप के वक्र मापदंडों का पता चलता था और उस के वक्र की गणना होती थी. यह काम टर्मिनल पर होते दिखता था, लेकिन दरअसल यह काम पीठ पीछे ‘इंद्रांचल’ द्वारा किया जा रहा था. सौमंप सैकड़ों या हजारों की संख्या में नहीं, अपितु लाखों की संख्या में मापे जा रहे थे. प्रतिक्षण उन का रियल टाइम डेटा ‘इंद्रांचल’ को फीड किया जा रहा था. ‘इंद्रांचल’ पर इतना लोड होते हुए भी कभी उस ने चूं तक नहीं की.

स्वदेशी तकनीक से भारत में ही बनाया गया ‘इंद्रांचल’ एक सफल स्वदेशी टैक्नोलौजी की मिसाल थी.
टैलीस्कोप के कंट्रोल रूम में कोई न कोई जरूर मौजूद रहता था. रात में तो और भी कहीं न कहीं से आए हुए वैज्ञानिक और उन की टीम के सदस्य रहते थे, जो टैलीस्कोप से प्राप्त हो रहे डेटा पर रिसर्च कर रहे होते थे. कुछ डाक्टरैट करने वाले छात्रछात्राएं भी इन में होते थे. कभी रातभर उन के गाइड उन के साथ रहते थे जो खुद भी टैलीस्कोप से आते हुए डेटा को देखने के उत्सुक होते थे.

अपने जमाने में उन्होंने इस गति से आते हुए डेटा की कभी कल्पना भी नहीं की थी. आज बिजली की गति से डेटा उन्हें प्राप्त हो रहा था. छात्रों के लिए यह आम बात थी. सैकड़ों गीगाबाइट का डेटा एक ही मिनट के भीतर डाउनलोड करने की उन की आदत बन गई थी, इसीलिए टैलीस्कोप से आते हुए टैराबाइट डेटा से उन्हें कुछ नायाब नहीं लगा. आने वाले कुछ वर्षों में अपने बुजुर्गों की तरह ही वे भी हैरान हो सकते थे.

टैलीस्कोप तक पहुंचने के लिए भाग्यजननी ने ट्रांसपोर्ट डिपार्टमैंट को फोन लगाया. टैलीस्कोप फैसिलिटी में देर रात और असमय कोई भी जाते रहता था, इसीलिए चौबीसों घंटे दिनरात ड्राइवर अपनी गाड़ी के साथ मौजूद रहते थे. तुरंत एक ड्राइवर अपनी गाड़ी ले कर विक्रम लैब तक आ गया. उस में बैठ कर भाग्यजननी टैलीस्कोप फैसिलिटी पहुंची और उस के कंट्रोल रूम में प्रवेश किया.

कंट्रोल रूम में काम कर रहे अभियंताओं ने कई बार मैस में भोजन के समय भाग्यजननी को देखा था, इसीलिए उन्होंने भाग्यजननी की पूछताछ पर कोई एतराज प्रकट नहीं किया. ख़ुशी से टैलीस्कोप की प्रणालियों को चैक किया. कहीं कोई गड़बड़ नहीं थी. सबकुछ वैसे ही काम कर रहा था जैसे आज से पहले. कहीं से भी ऐसा नहीं लगा कि टैलीस्कोप में कोई दोष आ गया है.

तत्पश्चात भाग्यजननी ने केबल वाले को फोन लगाया. आधे घंटे बाद केबल वाला आंखें मींचता, भुनभुनाता हुआ टैलीस्कोप फैसिलिटी तक पहुंचा.

भाग्यजननी ने उसे टैलीस्कोप से विक्रम लैब जाते हुए औप्टिकल फाइबर को पूरी तरह से चैक करने को कहा. केबल वाले ने अस्पष्ट रूप से कुछ बुदबुदाते हुए अपने मीटर लगाए और दोनों सिरों पर सिग्नल ड्राप नापा.

विक्रम लैब तक आतेआते सिग्नल उतना ही तगड़ा था, जितना टैलीस्कोप पर. कहीं भी सिग्नल कमजोर होता नहीं दिखाई दिया.

नासा के मैसेज का इंतजार करतेकरते और टैलीस्कोप और केबल को चेक करतेकरते सुबह के 6 बज गए थे. रातभर के वाक्यों के बावजूद भाग्यजननी को थकान महसूस नहीं हो रही थी. उलटे, आज तो तूफान का दिन था. पता नहीं, किसकिस को क्याक्या समझाना पड़ सकता था. लेकिन उस के पहले अभी बहुत काम बाकी थे.

भाग्यजननी ने हंड्रेड डेज लैब की ओर प्रस्थान किया. यह लैब विश्व के सौमंप डेटा को संरक्षित रखती थी. सब से पहले यह देखना था कि क्या कल रात उस ने जिस सौमंप को पृथ्वी तक आते पाया था, वह पहले से सौमंप डेटाबेस में मौजूद था या यह एक बिलकुल नया सौमंप था? हंड्रेड डेज लैब, फाइबर औप्टिक केबल और 5जी टैक्नोलौजी से लैस थी. डेटा सर्वर के लिए इस में अत्याधुनिक माइक्रोप्रोसैसर कंट्रोलर बोर्ड लगे हुए थे.

इस लैब के एक टर्मिनल पर भाग्यजननी ने लाग इन किया और ‘इंद्रांचल’ से कनैक्ट किया. कुछ ही पलों में लाल लकीर बनाने वाले सौमंप का डेटा उस ने हंड्रेड डेज के सर्वर पर पोर्ट कर दिया. फिर उसे सर्वर के मौजूदा डेटाबेस से मिलान के लिए डाल दिया. नतीजा सामने आ गया. इस सौमंप की ऐंट्री किसी भी सौमंप डेटाबेस से मेल नहीं खा रही थी. शायद नासा वाले भी इसी मेलमिलाप की प्रक्रिया में लगे हों और उन्हें इत्तला करने में इसी वजह से देरी हो रही हो, यह सोच कर भाग्यजननी ने इस नए सौमंप के नामकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी.

चूंकि यह अप्रैल, 2023 के पहले पखवारे में खोजा गया था, इसीलिए इस का नाम 2023 जी से शुरू होना था. सौमंपों के नामकरण की प्रक्रिया इस प्रकार से थी कि खोज वर्ष पहले आता था, फिर साल का पखवारा, यानी अगर उस वर्ष जनवरी के पहले पखवारे में इस की खोज होती थी, तो इस का नाम 2023 ए हो जाता, दूसरे पखवाड़े में 2023 बी हो जाता इत्यादि.

अब भाग्यजननी के सामने यह प्रश्न उठा कि अप्रैल, 2023 के पहले पखवारे में कितने नए सौमंपों की खोज की जा चुकी थी. हंड्रेड डेज के डेटाबेस से ज्ञात हुआ कि यह इस पखवारे की पहली नई खोज थी. इसीलिए इस सौमंप का पूरा नाम अंतर्राष्ट्रीय नाम पद्धति के अनुसार हो गया 2023 जीए. ऐसा बिलकुल नहीं था कि चूंकि भाग्यजननी ने इस सौमंप की खोज की थी, इसीलिए इस का नाम उस के खोजकर्ता के नाम पर भाग्य या भाग्या रख दिया जाए. नामकरण के सख्त प्रोटोकाल थे.

सुबह के 7 बज रहे थे, जब डायरैक्टर सतेंद्र गिल ने भाग्यजननी को फोन कर के पूछा, “इस सौमंप के पृथ्वी पर किस स्थान पर टकराने की सब से ज्यादा संभावना है?”

भाग्यजननी ने डायरैक्टर से कहा कि वह सिमुलेशन रन कर के ही इस बात का जवाब दे सकेगी. तुरंत उस ने विक्रम लैब की ओर तेजी से कदम बढाए. डायरैक्टर के प्रश्न का उत्तर देना इतना आसान नहीं था. उस के लिए सब से पहले यह गुत्थी हल करनी होगी कि क्या इस घातक आगंतुक का वक्र पूरी तरह से निर्धारित हो चुका है? एक रात के, वह भी महज 8 घंटे के डेटा के बल पर तो इस सौमंप का वक्र निश्चित तौर पर नहीं निर्धारित किया जा सकता है. ‘इंद्रांचल’ के लिए यह बताना, कि 2023 जीए धरती से टकराएगा,आसान था, क्योंकि इस के लिए सौमंप के वक्र को पूरी तरह परिभाषित करना जरूरी नहीं था. लेकिन वह कहां जा कर पृथ्वी से टकराएगा, इस के लिए धरती के वर्तन और परिक्रमण ही नहीं, अपितु सौमंप के भी सटीक वक्र मापदंडों की आवश्यकता थी. इस प्रकार के सिमुलेशन को ‘इंपैक्ट सिमुलेशन’ कहा जाता था, और इस के लिए 8 ‘इंद्रांचल’ पर प्रोग्राम पहले से ही था, जिसे अब भाग्यजननी ने ओपन किया. प्रोग्राम की इनपुट फाइल के रूप में 2023 जीए की डेटाफाइल भरी और उसे रन करने के लिए छोड़ दिया.

भाग्यजननी ने अपनी औन कैंपस हाउसिंग की तरफ प्रस्थान किया. डायरैक्टर से ले कर हर वैज्ञानिक को वहीं केंद्र की फैसिलिटी में ही रहने की सुविधा थी. वह नहाई, फ्रैश कपड़े पहने और मैस में चायनाश्ता किया. जो थोड़ेबहुत लोग सुबह 8 बजे मैस में आ गए थे, उन्हें इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि भाग्यजननी के दिमाग में कैसी उथलपुथल चल रही है. उस का पूरा ध्यान अपने चलते हुए सिमुलेशन में था. कुछ घंटे तक उस सिमुलेशन को रन होना था, और जब वह पूरा हो जाता, तो उसे ईमेल पर मैसेज आ जाता. उस ने ‘इंद्रांचल’ के हर मैसेज को प्रायोरिटी मैसेज बना कर रखा था, जिस से ‘इंद्रांचल’ की ओर से किसी भी प्रकार के मैसेज आने पर उस का मोबाइल एक अलग ही प्रकार की बीप देता था और वाइब्रेट करता था. सुबह 10 बजे तक ‘इंद्रांचल’ का कोई भी मैसेज नहीं था. सिमुलेशन अब भी रन हो ही रहा था.

सुबह 10 बजे खूब सोचविचार कर डायरैक्टर ने 2023 जीए को केंद्र की प्राथमिकता बना दी और ‘अखअ’ के टैलीस्कोप को पूरे समय उस की ट्रैकिंग के लिए निर्धारित कर दिया. केंद्र में मौजूद सभी वैज्ञानिक भौंचक्का हो गए.

जो लोग पुणे, बेंगलुरु, मुंबई से टैलीस्कोप डेटा के बल पर अपनी रिसर्च के लिए आए थे, उन्हें धक्का लगा. उन की समयसारणी में खलल पड़ गया. कोई दूरदराज की मंदाकिनी पर रिसर्च कर रहा था, कोई एक नए पल्सर पर और पुणे का ग्रुप अपने रेडियो एस्ट्रोनौमी का प्रोजैक्ट ले कर आया था. सभी की रिसर्च में अवरोध पड़ गया. लेकिन चूंकि केंद्र की प्राथमिकता ही सौमंपों पर नजर रखना थी और सौमंप रिसर्च ही टैलीस्कोप की प्रमुखता थी, अत: किसी ने कुछ नहीं कहा. सौमंपों से बने खतरे के सामने उन की मंदाकिनियों और पल्सरों से जुड़ी रिसर्च गौण थी. सभी जानने के लिए उत्सुक हो गए कि ऐसी क्या बात हो गई. कुछ ही समय में 2023 जीए की खबर वैज्ञानिक समुदाय के बीच आग की तरह फैल गई.

जब इन वैज्ञानिकों के माध्यम से केंद्रीय विज्ञान सलाहकारों तक यह बात पहुंची, तो उन के अहं को चोट लगी कि केंद्र के डायरैक्टर ने सीधे उन्हें क्यों नहीं सूचित किया. प्रधानमंत्री को सिचुएशन से अवगत करा दिया गया. सभी ने इस प्रकरण को नोवेल्टी के तौर पर ले लिया. दुनिया में कुछ नया होने जा रहा है, इस बात से सभी विस्मित हो गए.

विज्ञान मंत्रालय द्वारा विदेशों के विज्ञान संस्थाओं के अधिकारियों को संपर्क किया गया और पुष्टि करने के लिए कहा गया. दूसरी ओर से जवाब आया कि अभी इस वाकिए की जांचपड़ताल जारी है और निश्चित तौर पर जवाब नहीं दिया जा सकता है.

दोपहर के बाद ‘ब्रेकिंग न्यूज’ के रूप में यह समाचार टीवी पर हावी हो गया. प्रलय के दृश्य अंग्रेजी पिक्चरों और यूट्यूब की डौक्यूमैंट्रियों से काटकाट कर दिखाए जाने लगे. शाम होने तक पूरे हिंदुस्तान को इस बात की खबर हो गई. टीवी पर डिबेट के लिए नामी लोगों को बुलाया गया और चर्चा सत्र रखे गए. कई प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों ने आगाह किया कि ऐसे समाचार पहले भी कई बार आ चुके हैं कि फलां सौमंप आने वाले कुछ सालों में धरती से टकराने वाला है, लेकिन ऐसे समाचार बाद में निरर्थक साबित हुए.

नामी पंडितों को टीवी पर पूजापाठ करते दिखाया गया. सब ने आती हुई मुसीबत से बचने के अपनेअपने उपाय बताए. पूजा के पंडाल देशभर में बिठा दिए गए. यज्ञ शुरू हो गए. विष्णु की इस पृथ्वी के संरक्षक के रूप में पूजा होने लगी और उन से आह्वान किया जाने लगा कि आई हुई मुसीबत से इस धरती को बचाने के लिए वे अवतार लें. 2023 जीए से लोगों की रक्षा करने और इस पृथ्वी के संतुलन को बनाए रखने के लिए पूजा की जाने लगी. आने वाली दुर्घटना से बचने और किसी प्रकार से सौमंप को पृथ्वी से दूर करने के लिए भक्तों द्वारा अपनेअपने ऊपर वाले को पूजा जाने लगा. कृष्ण को और शिव को 2023 जीए की विपदा को मिटा कर मानव जाति की रक्षा करने के लिए कहा गया और महाप्रसाद आयोजित किए गए.

जब ‘इंद्रद्रांचल’ द्वारा किए जा रहे ‘इंपैक्ट सिमुलेशन’ का नतीजा भाग्यजननी के समक्ष आया, तो उस की आंखें फट गईं. सौमंप धरती पर किस जगह आ कर टकराएगा, इस का नतीजा उस के सामने था. उस ने तुरंत अपने रिजल्ट को पैनड्राइव में लिया और डायरैक्टर के कक्ष में पहुंची. डायरैक्टर ने वहां मौजूद लोगों को यकायक बरखास्त किया और अपने डैस्कटौप में यूएसबी डाली. इंपैक्ट लोकेशन देख कर डायरैक्टर हैरान हो गया. ‘इंद्रांचल’ के इंपैक्ट प्रोग्राम के अनुसार, सौमंप के धरती से टकराने का इंपैक्ट लोकेशन हिंदुस्तान के पश्चिमी तट से थोड़ी दूरी पर अरब महासागर में था.

साफ जाहिर था कि इंपैक्ट की वजह से जो सुनामी उठेगी, उस से न केवल भारत का पश्चिमी तट, बल्कि पूरा हिंदुस्तान ही डूब जाएगा. मेडागास्कर, मारिशस और श्रीलंका पर कैसा प्रभाव पड़ेगा, यह तो बाद में विस्तृत सिमुलेशन से ही पता चलेगा, लेकिन अरब महासागर की 12-15 फुट ऊंची लहरों से और धूलधुएं के बादलों की वजह से सूरज के छिप जाने से हिंदुस्तान का संपूर्ण विध्वंस प्रत्याभूत था. ऐसी किसी त्रासदी की तो कल्पना भी किसी ने नहीं की थी.

काफी देर तक दोनों यों ही बैठे सोचविचार करते रहे. डायरैक्टर के कमरे में अजीब सी चुप्पी छा गई थी. तनावग्रस्त वातावरण था. आखिरकार डायरैक्टर ने चुप्पी तोड़ी, “इंपैक्ट लोकेशन की तो खबर किसी को नहीं है न?”

भाग्यजननी ने धीरे से ‘न’ में सिर हिला दिया.

कुछ सोच कर डायरैक्टर ने उस से कहा, “इस को ऐसे ही रहने देते हैं. किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है.”

भाग्यजननी भी इस बात से सहमत थी. इस खबर से पूरे देश में हाहाकार मच जाने की आशंका थी. यहांवहां दंगेफसाद हो जाते. पता नहीं, किस प्रकार का वातावरण सारे देश में फैल जाता. इमर्जेंसी लागू कर दी जाती. पूरे समय के लिए कर्फ्यू लगा दिया जाता.
अगले कुछ दिनों में सतेंद्र ने इंपैक्ट लोकेशन किसी से भी शेयर न करने की दुनिया की अन्य खगोलशास्त्रीय संस्थाओं से बेजोड़ लौबी की. भारत के प्रमुख ‘अखअ’ केंद्र के डायरैक्टर से आ रहे अनुरोध से लगभग सभी समर्थन में थे. उन्होंने यहां तक सुझाया कि इंपैक्ट लोकेशन को आर्कटिक या अंटार्टिका के किसी दूरस्थ इलाके में बता देते हैं.

लेकिन सतेंद्र ने सुझाया कि इस बात को फिलहाल यही कहते हैं कि इंपैक्ट लोकेशन स्पष्ट रूप से नहीं बताई जा सकती है और इस में काफी अनिश्चितता है. सभी इस से सहमत हो गए. नापाक इरादे रखने वाली संस्थाओं तक यह बात न पहुंचे, इसीलिए इस बात को सिर्फ अंतरिक्षीय खतरों से संबंधित केंद्रों के डायरैक्टरों तक ही सीमित रखने का विचार किया गया.

पता नहीं कैसे, ‘अखअ’ और दुनिया में उस के जैसे केंद्रों का यह प्लान कामयाब हो गया और किसी ने इस बात की तह में जाने की कोशिश नहीं की कि इंपैक्ट लोकेशन धरती के ध्रुवीय इलाके में वाकई है या नहीं. मानव जाति की सुरक्षा के लिए यह कदम अनिवार्य था.

वह दिन भी आ गया, जब सौमंप अरब महासागर में गिरने वाला था. सब कामकाज छोड़ कर हिंदुस्तानी आकाश की ओर दृष्टि लगाए बैठे थे. पता नहीं, वे क्या उम्मीद कर रहे थे. कुछ टीवी चैनल वाले पृथ्वी के ध्रुवीय इलाके तक जाना चाहते थे, लेकिन उन्हें सचेत कर दिया गया था कि सौमंप के टकराने से संपूर्ण बर्फीला क्षेत्र अस्थाई हो जाएगा, इसीलिए किसी का भी बच पाना नामुमकिन है. यही कारण था कि टीवी पर कुछ भी इस बारे में लाइव नहीं प्रसारित किया जा रहा था.

परंतु वैज्ञानिक जो काम धरती पर नहीं कर सकते थे, वह था 2023 जीए की आतंरिक संरचना का पूरी तरह से पता लगाना. किसी भी खगोलीय वस्तु की आतंरिक संरचना में बहुत अनिश्तितता होती है.

वैज्ञानिकों को यह पता नहीं चल पाया कि 2023 जीए अंदर से खोखला है. खोखली वस्तुओं की भीषण तापमान सहन करने की शक्ति नहीं होती है. इसी वजह से, 2023 जीए जब पृथ्वी के भीतर प्रवेश कर रहा था, तो पृथ्वी के वायुमंडल में भीषण घर्षण से उस का पत्थर तत्त्व जलने लगा और उस के टुकड़ेटुकड़े हो गए, क्योंकि उस के अंदर कुछ था ही नहीं. ये हजारों टुकड़े आग की लपटों में राख हो गए और आकाश में महज एक आतिशबाजी के कुछ भी न रहा. समूचे विश्व को जैसे ही यह समाचार ज्ञात हुआ, तो खुशी की लहर दौड़ उठी.

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