राहुल का असली रूप देख कर उमा आज बुरी तरह टूट गई थी. उस ने सपने में भी ऐसे सच की कल्पना नहीं की थी. ‘यारो, असली चांदी तो मेरी है, घर में एक कमाऊ व ख़िलाऊ बीवी है और बाहर तो तमाम अप्सराएं हैं.’ अपने 4 दोस्तों के साथ ड्रिंक करता राहुल आज सारे सच ऐसे उगल रहा था जैसे किसी ने उसे सच बोलने वाली मशीन में फिट कर दिया हो.

‘मेरा शुरू से यही सपना था कि एक बेहद ख़ूबसूरत, पैसे वाली कमाऊ लड़की को अपनी बीवी बनाऊं. बीवी तो ख़ूबसूरत नहीं मिल सकी पर कमाऊ तो मिल ही गई, ऊपर से बढ़िया से सेवा भी करती है. अब रही बात ख़ूबसूरती की, तो वह तो बाहर मिल ही जाती है.’ राहुल की यह बात सुन कर उस के सभी दोस्त ताली मार कर हंस पड़े.

ऐसी तमाम बातों को सुनने के बाद लड़खड़ाती उमा ख़ुद को संभालते हुए मां के कमरे में गई. वह इस वक्त मां की गोद में सिर रख कर फूटफूट कर रोना चाहती थी. वह चाहती थी कि मां को राहुल का सारा सच बता दे पर वह ऐसा नही कर सकी. मां कमरे में सोई हुईं थीं. आज कई दिनों बाद मां को नींद आई थी. पापा के गुजरने के बाद उमा मां को बहुत मुश्किल से संभाल पाई थी.

मां को सोता देख उमा उसी कमरे में उन के पलंग के पास पड़ी एक कुरसी पर ख़ुद को समेटती हुई बैठ गई और पापा की माला टंगी तसवीर को देख कर फूटफूट कर रो पड़ी, फिर फुसफुसाती रही, ‘पापा, आप ने सच कहा था कि राहुल अच्छा लड़का नहीं हैं, उस ने मीठीमीठी, प्यारभरी बातें कर के मुझे अपने जाल में फंसा लिया है.

‘वह मुझ से नहीं, आप की दौलत और मेरी कमाई से प्यार करता है, पापा. आप को पता है, उस ने मुझे बदसूरत कहा, आप की परी को उस ने बदसूरत कहा, पापा.’

सारी रात उमा ऐसे ही रोतीरोती पापा की तसवीर से बातें करती रही, बीचबीच में कभी वह मां को देखती तो कभी अपने 7 साल के बेटे विभु को देखती. नशे में धुंध राहुल कब सोया और कब उस के दोस्त गए, उमा ने किसी बात का कोई ध्यान न दिया.

रोज़ की तरह सुबह उठ कर उनींदी सी आंखों को मलती उमा रोज़मर्रा के कामों में लग गई. विभु का और खुद का टिफिन बना कर, मां और राहुल का नाश्ता तैयार कर के उमा विभु को स्कूल छोड़ती हुई अपने औफिस चली गई.

हैरानपरेशान और रातभर जागने वाली शक़्ल देख कर जब उस की बेहद अच्छी सहेली प्रिया, जोकि उस के साथ काम करती थी, ने उमा से पूछा, “उमा, आर यू ओके?”

“हम्म… मैं ठीक हूं,” लैपटौप पर काम करती, जम्हाई लेती उमा बोली तो प्रिया ने कहा, “लग तो नहीं रहा कि तुम ठीक हो?”

दोनों के बीच कुछ देर तक ख़ामोशी ठहरी रही. कुछ देर बाद शब्दों में बंध कर उमा के संवाद बोले, “धोखा दिया उस ने.”

“किस ने?” प्रिया ने गंभीरता से पूछा.

“राहुल ने, और किस ने, उसे पता था कि हम 2 बहनें हैं और हमारे पापा के पास ठीकठाक पैसा है. बड़ी बहन पहले से अच्छे घर में ब्याही है तो राहुल के हिसाब से वह तो पापा का हिस्सा नहीं लेगी. सारा हिस्सा छोटी बहन यानी मेरा होगा. यही सोच कर राहुल ने छोटीमोटी नौकरी कर के, खुद को स्वावलंबी बता कर मुझ जैसी कमाऊ लड़की से शादी की.” यह कहती हुई उमा रोंआसी हो गई.

“क्या कह रही हो, तुम? तुम्हें कोई गलतफ़हमी हुई होगी, वरना राहुल तो उस दिन अंकल की डैथ के बाद आंटी को और तुझे कितने अच्छे से संभाल रहा था. वह तो आंटी और तेरे लिए अपना घरपरिवार सब छोड़ कर यहां चला आया ताकि आंटी अकेली न रहें.”

प्रिया की इस बात पर उमा बोली, “वो सब राहुल का ड्रामा था. उस ने पूरा नाटक पहले से लिख रखा था.” यह कहते हुए उमा ने अपना हाथ माथे पर रख लिया.

“तो अब क्या?” प्रिया ने उसे पानी की बोतल देते हुए पूछा.

“अब क्या, जो जैसा चल रहा है वैसा ही चलता रहेगा. राहुल यही समझेगा कि मुझे उस के नाटक के बारे कुछ भी पता नहीं है,” उमा ने घूंटभर पानी पीते हुए कहा.

“पर यार, तुम सैल्फ डिपेंडैंट लड़की हो. तुम जो चाहे निर्णय ले सकती हो. फिर क्यों ऐसे धोखेबाज़ को झेलना?” प्रिया ने लैपटौप पर अपने काम पर भी जऱा सा ध्यान देते हुए कहा.

“उस को झेलने का कारण हैं मां. पहले ही वे पापा के जाने का सदमा झेल रही हैं. और अब एक और सदमा? नहीं प्रिया, मुझ में अब मां को खोने की हिम्मत नहीं है, यार,” यह कहती हुई उमा ने फिर माथे पर हाथ रख लिया.

बेमन से औफिस का काम करते हुए उसे आज का दिन बहुत भारी लगा. काम ख़त्म कर वह घर गई तो यह क्या? घर के बाहर एक भरा हुआ बैग और उस के ऊपर एक लिफ़ाफा रखा था. उमा ने ज़ल्दी से वह लिफ़ाफा उठाया और उस के अंदर रखा काग़ज़ निकाल कर देखा, जिस पर लिखा था- ‘तुम क्या सोचते हो? तुम एक लड़की और उस के परिवार वालों को आराम से धोखा देते रहोगे? बेटा, उमा के पिता चले गए तो क्या, उस की मां अभी जिंदा हैं. अब तुम एक बात समझ लो, इस बैग में मैं ने तुम्हारे सारा सामान रख दिया है, इसे उठाओ और चुपचाप हमारी दुनिया से दूर हो जाओ, तालाक़ के कागज़ तुम्हें भेज दिए जाएंगे.’

और उस कागज़ के सब से नीचे लिखा था. ‘उमा की मां.’

मैं डोरबेल बजाती, इस के पहले ही मां ने मेरे लिए दरवाज़ा खोल दिया. मैं, ताकतवर दरख़्त जैसी अपनी मां से दरख़्त की बेल की तरह लिपट गई और अपनी आंखों की तरलता से मां का आंचल भिगोने लगी. कुछ देर तक मां ने मुझे रोने दिया, फिर मां मेरी हथेलियों को पकड़ती हुईं मुझ से बोलीं- “तू क्या सोचती थी, तू बस मां को समझती है, मैं भी तुझे समझती हूं, बेटा. उस दिन जब तू आधीरात फुसफुसाती हुई अपने पापा की तसवीर से बातें कर रही थी न, मैं वहीं लेटीलेटी सब सुन रही थी. तेरा नाम उमा हम ने यही सोच कर रखा था कि तू हमेशा शक्ति बन कर जीवन जिएगी. तू, तू कमज़ोर कैसे पड़ गई, बेटा?

“निकाल फेंक उस राक्षस को अपने जीवन से और अपने मन में ख़ुद के लिए कोई पछतावा, कोई शिकवा मत रख.” मां के ये शब्द सुन कर मैं जैसे फिर से जी उठी. मुझे अब समझ आया कि मेरी मां उतनी कमज़ोर नहीं जितना मैं उन्हें समझती थी. मेरी मां तो एक मज़बूत दरख़्त थीं जो बुरे से बुरे तूफानों से लड़ना जानती थीं और अपनी शाखाओं को सुरक्षित रखना भी.

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