दक्षिण भारत में सत्ता में काबिज रही कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहासिक हार हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी सारे सिद्धांतों को छोड़ कर पूरी ताकत के साथ कर्नाटक में चुनावी अभियान चला रहे थे. एक ऐसा अभियान, जिस में कानून, नैतिकता, धर्म सब की बलि चढ़ा दी गई. चुनाव में बजरंगबली हिंदुओं के इष्टदेव को बीच में ले आना, बजरंगबली के नाम पर मतदाताओं को वोट देने की अपील करना, ऐतिहासिक बता कर के 10 किलोमीटर की रैलियों में जाना और चुनाव आयोग का मुंह बंद हो जाना वगैरह यह सब कर्नाटक में देश ने देखा है. इस सब के बावजूद भारतीय जनता पार्टी चारों खाने चित हो गई.

आप को याद होगा कि बड़े गर्व के साथ यह कहना कि देश को कांग्रेस से मुक्त कर देंगे. कहने वालों को मुंह की खानी पड़ी और स्थिति यह है कि दक्षिण भारत से भाजपा का सफाया हो गया. बड़ीबड़ी, ऊंचीऊंची बातें करने वालों के लिए यह एक सबक हो सकता है कि कभी भी अपनी जमीन को नहीं छोड़ना चाहिए. मगर सब से बड़ी बात यह है कि भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर्नाटक की करारी हार के बावजूद अपने रीतिनीति को बदलने के लिए तैयार नहीं हैं. अभी भी देश की आम जनता को बांटने और भ्रमित करने की अपनी चाल चलने से बाज नहीं आ रहे हैं.

नफरत की दुकान या प्रेम की दुकान

कांग्रेस ने एक बार फिर तथ्यों के साथ आरोप लगाया है, "भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा कर्नाटक में उस के खिलाफ आए निर्णायक फैसले को पचा नहीं पा रही है और वह ध्रुवीकरण की राजनीति कर रही है."

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