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फिल्म ‘‘कोरागज्जा‘‘ में 12 वीं शताब्दी के राजा का रोल करेंगे 77 साल के कबीर बेदी

1971 में प्रदर्षित ओ पी रल्हन निर्देषित फिल्म ‘‘हलचल’’ से बौलीवुड में कदम रखने वाले अभिनेता कबीर बेदी सतहत्तर साल की उम्र में भी उसी जोष के साथ अभिनय में रमे हुए हैं.कबीर बेदी ऐसे अंतरराष् ट्ीय कलाकार हैं,जिनके अभिनय का डंका तीन महाद्वीपों यानी कि भारतसंयुक्त राज्य अमेरिका और विशेष रूप से इटली सहित अन्य यूरोपीय देशों में बज चुका है.वह थिएटर,फिल्म और टीवी तीनों माध्यमों में अपना वर्चस्व बनाए हुए हैं. उन्हें अकबर खान की फिल्म ताजमहलः एन इटरनल लव स्टोरी’ और 1980 के दशक की ब्लॉकबस्टर खून भरी मांगके लिए भी याद किया जाता है.

कबीर बेदी इटली और यूरोप में लोकप्रिय इतालवी टीवी लघु-श्रृंखला में समुद्री डाकू संडोकन की भूमिका निभाने के लिए और 1983 की जेम्स बॉन्ड फिल्म ऑक्टोपसी में खलनायक गोबिंदा के रूप में अभिनय का जलवा विखेर .चुके हैं. कुछ समय पहले वह फिल्म ‘‘षाकंुतलम’’ में रिषि कष्यप के किरदार में नजर आ चुके हैं.अब वह पहली बार फिल्मकार सुधीर अत्तावर निर्देषित और त्रिविक्रम सापल्या निर्मित कन्नड़ फिल्म में अभिनय करते हुए नजर आएंगेजिसका नाम-‘‘कन्नड़ फिल्म ‘‘करी हैदाकोरागज्जा‘‘ है.

इस पीरियड फिल्म में कबीर बेदी के अलावा संदीप सोपारकरसाउथ स्टार्स श्रुतिभव्या और नवीन पडील इत्यादि ने काम किया हैभरत सूर्या और रितिका की यह पहली फिल्म है.फिल्म के संगीतकार सुधीर-कृष्णा हैं.फिल्म के एडिटर सुरेश उर्स (बॉम्बे और दिल से ) और विद्याधर शेट्टी हैं.फिल्म की कहानी 12 षताब्दी के उस युवा आदिवासी की है,जिसे ईष्वर के रूप में पूजा जाता था.इस फिल्म को देखकर कुछ लोगों को कंतारा’ की भी याद आएगी.

इस कन्नड़ फिल्म में कबीर बेदी एक राजा के किरदार में नजर आएंगे.खुद कबीर बेदी ने कहा- ‘‘हालांकि मैने पहले भी कई बार विभिन्न राजा के किरदार निभाए हैं.लेकिन दक्षिण के राजा का किरदार पहली बार निभाया है.यह मेरे लिए एक खूबसूरत अनुभव है.कन्नड़ भाषी फिल्म में काम करना मेरे लिए बहुत अच्छा और खास अनुभव रहा.फिल्म की कहानी 800 साल पूर्व के एक आदिवासी लड़के की कहानी है,जिसे लोग आज पूजते हैंउसके नाम का मंदिर बनाते हैं. इस कहानी की बहुत गहरी जड़ें हैं.मुझे खुशी है कि इस कहानी पर फिल्म बनी है.फिल्म के निर्देषक सुधीर अत्तावर कमाल के हैं.मुझे लगता है कि यह दर्शकों के दिलों को छुएगी.यह फिल्म भी कनतारा के ट्रेडिशन में आती है और हमें उम्मीद है कि ये फिल्म भी कनतारा जैसी सफलता हासिल करेगी.

फिल्म के निर्देशक सुधीर अत्तावर बताते हैं-कबीर बेदी जैसे दिग्गज अभिनेता के साथ काम करना मेरे लिए बड़े गर्व की बात रहीकाफी अच्छा अनुभव रहा.जब मैंने उन्हें डर डर कर फिल्म की स्क्रिप्ट भेजी थतो मुझे अंदाजा नहीं था कि वह यह भूमिका स्वीकार करेंगे या नहीं.लेकिन उन्होंने मेरे साथ काम करना मंजूर कियामुझे बहुत सपोर्ट कियाउनसे मैंने बहुत कुछ सीखा. उनके लिए कन्नड़ भाषा के संवादउच्चारण करना बिल्कुल नया था. लेकिन उन्होंने बेहतरीन संवाद अदायगी की हैडबिंग में भी जिस तरह अदायगी कीवह कमाल है. मैं यह कहूंगा कि मैंने इन्हें इस फिल्म में डायरेक्ट नहीं किया बल्कि कबीर सर से मुझे काफी सीखने का मौका मिला और यह मेरे लिए जीवन भर का लर्निंग एक्सपीरियंस रहा.‘‘

फिल्म के निर्देशक ने आगे कहा-‘‘मैंने इस विषय पर काफी रिसर्च किया. फिल्म लिखने से पहले संबंधित आदिवासी समुदाय से बातचीत कीजिससे कई नई जानकारी मिली.दर्जनों निर्माता निर्देशक ने इस सब्जेक्ट पर फिल्म बनाने का प्रयास किया.मगर भगवान के आशीर्वाद से मुझे इस विषय पर सिनेमा बनाने और कबीर बेदी जैसे दिग्गज अभिनेता संग काम करने का अवसर मिला.‘‘ कबीर बेदी ने आगे कहा-‘‘ यह बहुत अनूठी फिल्म है.इसकी कहानी इतनी प्यारी है कि फिल्म दिलों को छू लेगी. कन्नड़ संवाद अदायगी और डबिंग में भी मेरा सौ प्रतिशत प्रयास रहा है कि मैं परफेक्ट लाइन्स बोलूं क्योंकि काम के प्रति परफेक्शन में मैं यकीन रखता हूँ.

मोदी की हार

कनार्टक में विधानसभा चुनावों में वोटों को कटने से बचाने के साथ व पार्टीजनों
की एकता के बल पर कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी को भारी
शिकस्त दी है. अरविंद केजरीवाल पंजाब व दिल्ली में, ममता बनर्जी बंगाल में,
कम्यूनिस्टों ने केरल में व नवीन पटनायक ओडिशा में नरेंद्र मोदी को शिकस्त देते
रहे हैं.

असल में नरेंद्र मोदी का गुणगान जितना होता रहा, उस में ढोल पीटना ज्यादा रहा है और ढोलनुमा इसी सर्कस के बल पर जमा हुई भीड़ के बलबूते भाजपा एकछत्र राज्य कर पा रही थी. नरेंद्र मोदी की भाषाकला और भाजपा सरकार की विरोधियों को कुचलने के लिए केंद्रीय जांच एजेंसियों को इस्तेमाल करने ने एक माहौल पैदा कर दिया था कि मोदी का कोई पर्याय नहीं है.

इस पर ऊपर से भगवा लपेटा लगाया गया है जिस में मंदिर, पूजापाठ, धर्म, आयुर्वेद, वस्तु, प्रवचनों, शादियों आदि के व्यापार से जुड़े लोग शामिल हैं जिन्हें पाखंड और भेदभाव में ही अपना वर्तमान व भविष्य दिखता है. कर्नाटक में 224 में से 137 सीटें जीत कर सत्ता में बैठी भारतीय जनता पार्टी को
65 पर धकेल कर कांग्रेस ने साबित कर दिया है कि 150-200 साल की जाति व्यवस्था का लपेटा अभी भी देश की जान नहीं बन पाया और 2004 को दोहराया जा सकता है.

नरेंद्र मोदी की केंद्र की सरकार हो या उन की पार्टी की राज्य सरकारें, अपना ज्यादा समय, शक्ति और बहुत पैसा पूजापाठ के कार्यक्रमों में लगाती हैं. देश उन्नति कर रहा है तो इसलिए कि पहले मुगलों ने और बाद में अंगरेजों ने देश को एक कर के एक बड़ा देश बना दिया जहां राज कानून का चलता था, शास्त्रों का
नहीं. कांग्रेस के राज में 30-40 साल संविधान के आदर व सम्मान से बीते पर वह पाखंड की ताकतों से लडऩे में कमजोर रहने लगी.

शिवाजी के तार्किक शासन की जगह पेशवाओं ने पूजापाठी राज थोपा था और उसी के बल पर बड़ा साम्राज्य बना दिया था पर वह ज्यादा साल चल नहीं पाया. अंगरेजों ने उस राज से पैदा हुई भयंकर लूटपाट, अराजकता व फूट का पूरा लाभ उठाया. उन्होंने कुछेक राजाओं को दूसरे से भिड़ा कर और कुछ अपनी नई तोपों, बंदूकों की तकनीक व अनुशासित सेना के बल पर कुछ हजार होते हुए भी पूरे देश
पर कब्जा कर लिया. वे गए तो इसलिए कि भारत से आर्थिक लाभ मिलना बंद हो गया था.

अब कर्नाटक में वोटों को बंटने से बचाने के साथ और कांग्रेस में राहुल गांधी व प्रियंका गांधी की जोड़ी की दमदार एंट्री ने भगवा दल के हौसले पस्त कर दिए जो सिर्फ मोदी की छवि पर निर्भर है, अपने राजकाज पर नहीं. केंद्र व राज्य सरकार ने पुलिस व जांच एजेंसियों का अंत तक इस्तेमाल किया पर जैसे पश्चिम बंगाल में व पंजाब में उन की नहीं चली, कर्नाटक में भी नहीं चली. कर्नाटक में भाजपा की हार के पीछे उस की वोटों की घटत उतनी नहीं है जितनी कांग्रेस का भाजपाविरोधी सारे वोटों को बटोर लेना है.

देश की आम जनता आज भी सामान्य पूजापाठी होते हुए भी धर्म के नाम पर रातदिन सिर फोडऩे, मंदिरों की कतारें बनवाने, अपने पसंदीदा नेता का ढोल बजाते रहने में रुचि नहीं रखती है. वह अपना काम बिना रुकावट के करते रहना चाहती है.  उसे जितना मरजी चाहे लूट लो लेकिन परेशान न करो.

वह गरीबी व गुरबत में रहने को तैयार है पर हर कोने पर लाठियां लिए दूसरे धर्म या जाति वालों का सिर
फोडऩे को तैयार नहीं. कांग्रेस ने शायद ऐसे वादे हमेशा किए और तभी 1947 से 1917 फिर 1980 से 1981, 1891 से 1986 और आखिर में 2004 से 2014 तक राज किया.

भाजपा इस हार से सबक लेगी, ऐसा लगता नहीं. पौराणिक कहानियां बताती हैं कि इस पुण्यभूमि पर हर दैविक राजा पीढ़ीदरपीढ़ी अदैविक राजाओं को नष्ट करने में लगा रहा चाहे राजा महाबलि का समय हो या रावण का. उन के राज में लोग सोने के महलों में रहते थे और दैविक राजाओं के यहां सिर्फ यज्ञ, हवन और दान होता था. पौराणिक राजाओं ने कुछ पिछली पीढ़ी से नहीं सीखा तो अब क्या

घरेलू नुस्खे हैं कितने कारगर

किसी भी समाचारपत्र या पत्रिका को उठा कर देख लीजिए, उस में विभिन्न बीमारियों के उपचार हेतु नुस्खे अवश्य छपे होते हैं. ये नुस्खे साधारण स्वास्थ्य समस्याओं से ले कर गंभीर बीमारियों तक में आजमाए जाते हैं. क्या ये घरेलू नुस्खे वाकई दवा का काम कर सकते हैं?

घरेलू नुस्खे पूरी तरह बकवास नहीं होते. उन में दम अवश्य होता है. वे बीमारी का निदान नहीं कर पाते, लेकिन उन में थोड़ाबहुत लाभ अवश्य पहुंचा सकते हैं. लेकिन घरेलू नुस्खों की पुस्तक पढ़ कर अपने स्तर पर इलाज करना उचित नहीं है. डाक्टर, वैद्य का काम उन्हें ही करने दें. खुद अपने डाक्टर बनने की कोशिश न करें.

कुछ लोग दोचार किताबों में घरेलू नुस्खे पढ़ कर अपनेआप को डाक्टर या वैद्य मानने लगते हैं और फिर दूसरों को नुस्खे सुझाते रहते हैं. हर व्यक्ति की तासीर या प्रकृति अलगअलग होती है, इसलिए कोई एक नुस्खा हर व्यक्ति पर फिट नहीं बैठ सकता या कारगर नहीं हो सकता.

घरेलू नुस्खों का आधार पेड़पौधे, फूल, उन की जड़, बीज, गुठली होता है या फिर घरेलू मसाले जैसे हलदी, सौंफ, जीरा, इलायची, लौंग, अजवाइन आदि. फल, सब्जियों और वनस्पति से जुड़े घरेलू नुस्खे भी कुछ कम नहीं हैं.

जड़ीबूटियों, भस्म, रसायन, चूर्ण, मिट्टी आदि से जुडे़ नुस्खे भी बहुत हैं. लेकिन कोई भी नुस्खा बिना विशेषज्ञ की सलाह के आजमाना ठीक नहीं है.

घरेलू नुस्खे किसी भी शोधपरीक्षण का नतीजा नहीं होते. दादादादी से सुनी बातें या अखबारों में छपे नुस्खे आजमा कर क्या कोई बीमार व्यक्ति पूरी तरह स्वस्थ हो सकता है? कभी नहीं. घरेलू नुस्खे भले ही तात्कालिक राहत प्रदान करते हों लेकिन बीमारी का उपचार पूरा करने में समर्थ नहीं होते.

किसी भी बीमारी का इलाज अकेले घरेलू नुस्खों से होना संभव नहीं है. बीमारी है तो उस की जड़ में जाना होगा. जब तक उस के मूल कारण का पता नहीं लगाया जाता, उपचार कैसे संभव है? चिकित्सा विज्ञान के अंतर्गत आज बीमारी के उपचार से पूर्व गहन जांच और परीक्षण किए जाते हैं ताकि बीमारी किस स्टेज पर है, इस का पता लगाया जा सके. खूनपेशाब की जांच, एक्सरे, सोनोग्राफी, सीटी स्कैन, एमआरआई और अन्य जांचों के जरिए बीमारी की जड़ तक पहुंचा जाता है.

कुछ बीमारियां ऐसी हैं जिन में घरेलू नुस्खों पर निर्भर रहने से उन की गंभीरता या जटिलता बढ़ जाती है. कुछ बीमारियों में तो ताउम्र दवा लेनी ही पड़ती है. यदि इन दवाओं को त्याग कर घरेलू नुस्खों से उपचार करने की कोशिश करेंगे, तो व्यक्ति की जान ही चली जाएगी.

डायबिटीज में घरेलू नुस्खे मन समझाने की चीज हैं. इन नुस्खों के दम पर डायबिटीज ठीक नहीं हो सकती. यदि कोई व्यक्ति दवाओं को छोड़ कर इन नुस्खों पर निर्भर रहता है, तो उस की ब्लडशुगर खतरनाक स्तर पर पहुंच सकती है. डायबिटीज की दवा आमतौर पर नियत समय पर ताउम्र लेनी पड़ती है.

कुछ घरेलू नुस्खे ब्लडप्रैशर नियंत्रित करने के लिए भी होते हैं. लेकिन क्या ये नुस्खे किसी भी व्यक्ति के ब्लडप्रैशर को सामान्य बनाए रखने में कारगर हो सकते हैं? कभी नहीं. यदि हाई ब्लडप्रैशर की समस्या है, तो बुद्धिमानी इसी में है कि घरेलू नुस्खों के चक्कर में न पड़ते हुए डाक्टर की सलाह पर नियमित रूप से दवाएं लें और समयसमय पर अपना ब्लडप्रैशर चैक कराते रहें.

आमतौर पर हाई ब्लडप्रैशर की दवाएं ताउम्र चलती हैं. यदि दवाओं को नजरअंदाज कर किसी घरेलू नुस्खे को अपनाया तो हार्टअटैक आ सकता है, ब्रेन हेमरेज हो सकता है या लकवा मार सकता है. सो, ब्लडप्रैशर का घरेलू नुस्खों से उपचार न करें.

हृदय रोग यानी हार्ट डिजीज में घरेलू नुस्खों का कोई रोल नहीं होता. यदि हृदय में कोई खराबी है, कोई नलिका बंद है या धड़कन असामान्य है, या हार्ट वाल्व में छेद है, तो घरेलू नुस्खों से ये समस्याएं कभी दूर नहीं हो सकतीं. बेहतर होगा कि हृदय रोग विशेषज्ञ को दिखा कर अपना इलाज कराएं.

कोई भी घरेलू नुस्खा थायराइड का सफलतापूर्वक उपचार नहीं कर सकता. यह हार्मोन से जुड़ी बीमारी है. यदि जरूरी हुआ तो ताउम्र दवाएं लेनी पड़ सकती हैं. दवाओं से ही वह नियंत्रित रहती है.

हाई कोलैस्ट्रौल कई समस्याओं को जन्म दे सकता है. कोई भी घरेलू नुस्खा इस का रामबाण इलाज नहीं है. यदि आप को मालूम है कि आप को हाई कोलैस्ट्रौल की शिकायत है, तो घरेलू नुस्खे से उस के उपचार करने की भूल न करें.

कुछ नुस्खे कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के उपचार के भी मिलते हैं. दुनिया में कोई भी घरेलू नुस्खा ऐसा नहीं है जिस से कैंसर ठीक हो या उस के बढ़ने, फैलने को रोका जा सके. यदि ऐसा संभव होता, तो दुनियाभर के कैंसर हौस्पिटल में ताला लग गया होता. बेहतर होगा कि कैंसर की शुरुआत में ही विशेषज्ञ से इलाज कराएं, न कि घरेलू नुस्खे के चक्कर में पड़ें, वरना जान से हाथ धोना पड़ सकता है.

महिलाओं की माहवारी की समस्या के लिए भी लोग घरेलू नुस्खे लिए हाजिर रहते हैं. यही नहीं, बारबार गर्भपात होने से रोकने हेतु भी घरेलू नुस्खे बताए जाते हैं. लेकिन, जब तक उचित उपचार नहीं कराएंगे तो माहवारी नियमित कैसे होगी या गर्भ कैसे रुकेगा.

कब्ज, एसिडिटी, बवासीर आदि पेट से जुड़ी समस्याओं के लिए ढेरों घरेलू नुस्खे पढ़ने में आते हैं. यही बात पुरुषों की यौन संबंधी समस्याओं जैसे नपुंसकता, शीघ्रपतन, स्वप्नदोष आदि के बारे में लागू होती है. महिलाओं में श्वेत प्रदर या अन्य यौनरोग हेतु भी घरेलू नुस्खे देखे जा सकते हैं. लेकिन इन में से कितनों का रोग दूर हुआ? शायद एक का भी नहीं.

आमतौर पर ये घरेलू नुस्खे आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धिति की आड़ में बताए या सुझाए जाते हैं.

कोई भी डाक्टर या वैद्य सिर्फ घरेलू नुस्खों से उपचार नहीं करता. आयुर्वेद में भी कई छोटीमोटी बीमारियों का इलाज है, लेकिन घरेलू नुस्खों में नहीं.

प्राकृतिक चिकित्सा भी चिकित्सा की एक पद्धति है. लोग सुनेसुनाए या पढ़े हुए घरेलू नुस्खे बता कर स्वयं को चिकित्सक बताने पर तुले रहते हैं. लेकिन कोई भी अकेला नुस्खा बीमारी का उपचार नहीं कर सकता.

कुछ लोगों को किसी खाद्यपदार्थ विशेष से एलर्जी होती है या रिऐक्शन हो सकता है. ऐसे में यदि सुझाए गए नुस्खे में प्रयुक्त किसी चीज से उसे एलर्जी या रिऐक्शन हुआ तो लेने के देने पड़ सकते हैं. तब, ऐसे व्यक्ति को संभालना मुश्किल होता है.

मैं कॉलेज फ्रेंड से 8 साल बाद मिला, मेरा दिल आ गया है उसपें क्या करूं?

सवाल

कालेजटाइम में मैं अपने फ्रैंड्स ग्रुप में एक लड़की को बहुत पसंद करता था जबकि मुझे पता था कि वह किसी और से प्यार करती है. मैं ने थोड़ीबहुत कोशिश भी की कि उस का दिल जीत सकूं. लेकिन बात नहीं बनी और कालेज खत्म होने के बाद उस ने अपने बौयफ्रैंड से शादी कर ली. मैं ने भी कुछ साल सैटल होने के बाद शादी कर ली. अब 8 साल के बाद हमारी कालेज रियूनियन पार्टी हुई तो उस में वह लड़की भी आई.

उसे देख कर मेरा दिल बेकाबू हो गया. वह पहले से भी ज्यादा खूबसूरत दिख रही थी. हैरानी की बात यह हुई कि वह मुझसे बड़े अच्छे तरीके से मिली. हम ने कंफर्टेबल हो कर बातें कीं. बातोंबातों में पता चला कि वह अब अपने पति से ज्यादा खुश नहीं है. हम ने अपने मोबाइल नंबर शेयर किए.

अगले दिन ही उस का फोन आ गया. उस ने मुसे मिलने की बात कही. हम मिले और एकदूसरे से खूब बातें कीं. उस ने कहा कि हम अच्छे फ्रैंड्स की तरह एकदूसरे से यों ही मिलते रहेंगे. मैं भी उस से बातें कर के बहुत खुश रहने लगा हूं.

मेरी वाइफ ने मुझे इस बात के लिए एक दिन टोक भी दिया कि आप बहुत खुश रहते हैं आजकल और पहले से ज्यादा रोमांटिक भी हो गए हैं. मैं ने बात हंसी में टाल दी लेकिन अंदर ही अंदर डर गया. मैं क्या कुछ गलत कर रहा हूंक्या मैं अपनी वाइफ के साथ चीट कर रहा हूंलेकिन मैं उस लड़की को अपना सिर्फ एक अच्छा दोस्त मानता हूं.

हम सिर्फ एकदूसरे के साथ अपनी फीलिंग्स शेयर करते हैं. मैं अपनी वाइफ से भी बहुत प्यार करता हूंउस के प्यार में भी मेरे प्रति कोई कमी नहीं है. क्या मैं उस लड़की से मिल कर अपनी गृहस्थी खतरे में डाल रहा हूंआप की क्या राय है?

जवाब

आप जिसे दोस्ती का नाम दे रहे हैं वह दोस्ती से बढ़ कर है. आप के मन में अभी भी उस लड़की के लिए फीलिंग्स हैंइस बात को आप ?ाठला नहीं सकते. वह लड़की अपने पति से खुश नहीं है और जानती है कि आप उसे कालेजटाइम से पसंद करते थेइसलिए आप अभी भी उस की केयर करेंगेइसलिए उस ने आप से मेलजोल बढ़ाया है. वह कभी भी अपनी जरूरतों के लिए आप का इस्तेमाल कर सकती है.

वह अपने सुखदुख आप से शेयर करती है. लेकिन दोस्ती की यह मर्यादा कभी भी टूट सकती है क्योंकि आप के मन में उस लड़की के लिए प्यार है और वह लड़की अपने पति से नाखुश.

बेशकआप अपनी पत्नी से चीट कर रहे हैं. आप की पत्नी ऐसा करे जैसा आप कर रहे हैं तो क्या आप से बरदाश्त होगा. फिर पत्नी से क्यों उम्मीद रखी जाए कि वह मर्यादा में रहे और पति कहीं और अपनी खुशियां तलाशता फिरे.

आप दोनों हाथ में लड्डू चाहते हैं जो पौसिबल नहीं. दो कश्ती का सवार डूबता ही है. इसलिए वक्त रहते संभल जाइए. इस दोस्ती के चक्कर में आप की अच्छीखासी गृहस्थी बरबाद हो सकती है. इसलिए हमारी मानें तो इस दोस्ती पर यहीं ब्रेक लगा दें. अपनी वाइफ के साथ खुश रहिए.

बेरोजगार बौयफ्रैंड

लोग कहते तो हैं कि प्यार सभी बंधनों व दीवारों को तोड़ कर हो जाता है. चलो मान लिया पर जैसे बच्चे को पालने के लिए पैसों की जरूरत होती है वैसे ही प्यार को पालने के लिए भी पैसों की जरूरत होती है. ऐसे में क्या हो जब बौयफ्रैंड बेरोजगार हो. कहावत है ‘न बाप बड़ा न भैया, सब से बड़ा रुपैया’. यह बिलकुल सही है क्योंकि पैसे के बिना कुछ नहीं हो सकता और पैसा हर रिश्ते में अहम रोल अदा करता है.

ऐसे में अगर किसी लड़की का बौयफ्रैंड बेरोजगार हो तो उन का रिलेशन न सिर्फ उतारचढ़ाव से भरा होगा बल्कि यह तनाव से भरा भी होगा. सांवली सूरत वाली 20 वर्षीया काव्या 22 वर्षीय निखिल को पिछले 4 महीने से डेट कर रही है. वे दोनों कालेज में एकसाथ पढ़ते थे. जहां काव्या एक बीपीओ कंपनी में जौब करती है वहीं निखिल पिछले कई महीनों से जौब ढूंढ़ रहा है. निखिल कहता है, ‘‘उस का जौबलैस होना काव्या को अखरता है क्योंकि वह उस के मनमुताबिक खर्च नहीं कर पाता. वह कहता है कि जौब न होने की वजह से उसे खुद शर्मिंदगी महसूस होती है. काव्या का कहना है, ‘‘अगर कोई रिलेशनशिप है तो खर्चा तो होगा ही.

हां, यह कमज्यादा जरूर हो सकता है लेकिन खर्चा होगा, यह तय है.’’ 23 साल का वेद जो दिखने में काफी स्मार्ट है. वह कहता है, ‘‘एक दिन उस की गर्लफ्रैंड श्रुति, जो 21 साल की है, ने मूवी का प्लान बनाया. जिस में उस के दोस्त अपनेअपने गर्लफ्रैंडबौयफ्रैंड के साथ आए थे. सभी लड़कियों के बौयफ्रैंड ने टिकट और पौपकोर्न लिए लेकिन मैं सिर्फ मूवी टिकट ही ले पाया क्योंकि मेरे पास पौपकोर्न लेने लायक बजट नहीं था.’’ वह आगे कहता है, ‘‘यह देख कर श्रुति की सहेलियां हंसते हुए बोलीं, ‘श्रुति, क्या तुम्हारे बौयफ्रैंड के पास पौपकोर्न के भी पैसे नहीं हैं.’ यह सुन कर मैं शर्मिंदा हो गया.

वेद के अनुसार अगर वह जौब कर रहा होता तो उसे ऐसी नौबत न देखनी पड़ती और न ही कोई उन का मजाक उड़ाता. हमारे आसपास ऐसी बहुत सी लड़कियां हैं जिन के बौयफ्रैंड के पास कोई जौब नहीं है और अगर देश की बात की जाए तो देश में ऐसे लाखोंहजारों युवा हैं जो बेरोजगार हैं. सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनौमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार, 28 मार्च, 2023 तक भारत में बेरोजगारी दर 7.9 रही. सीएमआईई का कहना है कि भारत में रोजगार मिलने की दर बहुत कम है और यह सब से बड़ी समस्या है. देश में इतनी बेरोजगारी होने के कई कारण हैं जिन में सरकार सब से अहम है. युवाओं का कहना है कि सरकारें आती हैं,

अपना उल्लू सीधा करती हैं और चली जाती हैं. हमारी सरकारें हमें रोजगार देने में नाकामयाब रही हैं और फिर भी वे अपने मुंह मियां मिट्ठू बनी रहती हैं. जो लड़का कमाता नहीं है, अगर उस की गर्लफ्रैंड अपने दोस्तों को बौयफ्रैंड से मिलाने अपने साथ ले आए तो उस का बौयफ्रैंड प्रौब्लम में पड़ जाता है क्योंकि उस के पास इतने पैसे नहीं होते कि वह उन्हें किसी रैस्तरां में कौफी तक पिला सके या अच्छी जगह घुमा सके. वहीं अगर कमाऊ बौयफ्रैंड हो तो वह आसानी से उन्हें एक अच्छे रैस्टोरैंट में खाना तक खिला सकता है. 19 साल की अदिति और 21 साल के मयंक के रिलेशन को एक साल होने वाला है.

अदिति चाहती है कि वह अपनी एनिवर्सरी किसी अच्छी और महंगी जगह पर सैलिब्रेट करे. अदिति ने जब यह बात मयंक से शेयर की तो मयंक परेशान हो गया, क्योंकि उस के पास कोई जौब नहीं है. ऐसे में वह महंगी जगह कैसे अफोर्ड कर सकता है. बड़ी मुश्किल से वह डेट के खर्चे को उठा पा रहा था और फिर अदिति की यह फरमाइश. न चाहते हुए भी उस ने अदिति को यह प्लान कैंसिल करने को कहा तो वह नाराज हो कर वहां से चली गई. मयंक कहता है कि उस के पास कोई जौब नहीं है,

इसलिए अदिति ने ऐसा बिहेव किया. अगर वह भी जौब करता तो अदिति की सारी फरमाइशें पूरी कर देता और अदिति उस से नाराज न होती. वह कहता है, ‘‘बेरोजगार बौयफ्रैंड किसी को नहीं चाहिए. सब लड़कियों को अमीर और सक्सैसफुल बौयफ्रैंड ही चाहिए.’’ जागृति (बदला हुआ नाम) बताती है कि जब कभी भी वह आउट औफ स्टेशन का प्लान बनाती है तो हमेशा उस का बौयफ्रैंड प्लान को कैंसिल कर देता है. इस का कारण यह है कि उस का बौयफ्रैंड अभी जौब नहीं करता, ऐसे में वह ट्रैवल का खर्चा नहीं उठा सकता. वह कहती है, ‘‘बारबार प्लान कैंसिल होने से उस का मूड खराब हो जाता है.

सो, कभी भी बेरोजगार लड़के के साथ रिलेशन में मत आओ क्योंकि वहां आप को अपनी कई इच्छाओं को मारना पड़ेगा.’’ यह कड़वा सच है कि कोई भी लड़की ऐसा बौयफ्रैंड नहीं चाहती जो कमाता न हो क्योंकि ऐसे लड़के के साथ रहना आसान नहीं है. उसे यह सम झना पड़ेगा कि उस का बौयफ्रैंड उस पर ज्यादा खर्चा नहीं कर पाएगा क्योंकि उस के बौयफ्रैंड के पास पैसों का कोई सोर्स नहीं है. अंश बताता है कि 4 साल पुराने रिश्ते को उस की स्कूलटाइम गर्लफ्रैंड ने यह कहते हुए तोड़ दिया कि वह एक ऐसे लड़के के साथ नहीं रह सकती जो उस का खर्चा नहीं उठा सकता. वह कहता है कि देश में इतनी बेरोजगारी है कि उसे अपनी योग्यता के मुताबिक जौब ही नहीं मिल रहा.

वह अपना पक्ष रखते हुए कहता है, ‘‘एमबीए की पढ़ाई करने के बाद कोई 8-10 हजार वाला जौब वह नहीं करना चाहता. यह देखा गया है कि जिस लड़की का बौयफ्रैंड बेरोजगार होता है वह लड़की छोटीछोटी बातों पर गुस्सा करने लग जाती हैं. कई बार वह अपने बेरोजगार बौयफ्रैंड को उस की बेरोजगारी के लिए ताने भी देती है. कई मामलों में लड़कियां ऐसे लड़कों से रिश्ता भी तोड़ लेती हैं. सरकारी जौब की तैयारी कर रहे 22 साल के नवीन का मानना है कि सरकारी जौब पाना आसान नहीं है. वह कहता है, ‘‘उम्मीदवारों की संख्या लाखों में है जबकि सीटें सीमित हैं.’’ नवीन खुद भी सरकारी जौब की रेस का एक हिस्सा है, इसलिए वह अपनी पढ़ाई पर पूरा ध्यान देना चाहता है.

यही कारण है कि वह फिलहाल कोई जौब नहीं कर रहा. शायद इसलिए कोई भी लड़की उस का प्रपोजल ऐक्सैप्ट नहीं करती है. वह कहता है, ‘‘सभी को कमाऊ बौयफ्रैंड चाहिए, बेरोजगार बौयफ्रैंड नहीं.’’ भारत एक युवा प्रधान देश है, जिस में 15 साल से 29 साल के लोगों को युवा माना गया है. सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने ‘यूथ इन इंडिया 2022’ रिपोर्ट पेश की जिस में 15 से 29 साल के युवाओं की संख्या 27.3 करोड़ है. लेकिन सोचने वाली बात यह है कि इस युवा प्रधान देश में ही सब से ज्यादा युवा बेरोजगार हैं. इस का कारण है कि सरकार अपने विजन को ले कर क्लीयर नहीं है. रोजगार न मिलने की वजह से यूथ डिप्रैस्ड हैं.

बेरोजगार युवा किसी से कौन्फिडैंस से बात नहीं कर पाता. वह सब से कटाकटा रहता है. बेरोजगार युवा रिश्तेदारों के घर आनेजाने से कतराता है. मनन बताता है कि जब कभी भी वह रिश्तेदारों और पड़ोसी के घर जाता है तो बारबार उस से एक ही सवाल पूछा जाता है कि कोई जौब मिली. वह कहता है, ‘ऐसे सवाल का जवाब देदे कर मैं थक गया हूं, इसलिए अब मैं किसी के घर नहीं जाता.’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि पकौड़ा तलना भी एक रोजगार है. गृहमंत्री अमित शाह ने भी उन का समर्थन किया. वहीं पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम ने इस का कड़ा विरोध किया.

प्रधानमंत्री के दिए इस बयान ने देश के युवाओं के भविष्य को अंधकार में डाल दिया है. क्या वे पढ़ाईलिखाई करने के बाद पकौड़े की दुकान लगाएंगे. अगर यही करना है तो वे पढ़ेलिखे ही क्यों? क्यों वे इतनी मेहनत करें, क्यों वे अपने दिनरात खराब करें, आखिर में तो उन्हें पकौड़े का स्टौल ही लगाना है. विकास कहता है, ‘‘अगर ग्रेजुएशन करने के बाद भी पकौड़े का स्टौल लगाना पड़े तो हमारी पढ़ाई का क्या फायदा? क्या हम ने पकौड़ा तलने के लिए दिनरात मेहनत कर के पढ़ाई की है.’’ वहीं, अगर कालेज स्टूडैंट की बात करें तो डीयू के एसओएल डिपार्टमैंट में पढ़ने वाला विवेक कहता है, ‘‘नेताओं को ऐसे बयान न दे कर के रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने पर फोकस करना चाहिए.

यह सरकार अपनी रणनीति में पूरी तरह फेल रही है, लीपापोती करने के लिए कुछ भी कह रही है.’’ 2022 में अपनी ग्रेजुएशन कंपलीट करने वाली आनंदी कहती है, ‘‘मोदी सरकार का ऐसा बयान देना उस की नाकामी को दर्शाता है. हम अपनी योग्यता के अनुसार काम करना चाहते हैं न कि कोई भी काम मिले और हम उसे कर लें.’’ सुधीर मिश्रा का मानना है, इतनी पढ़ाईलिखाई करने के बाद ऐसा काम करना सैल्फ कौन्फिडैंस को चोट पहुंचाता है. सुधीर मिश्रा कहता है कि वह पिछले 9 साल से नोएडा की एक जानीमानी कंपनी में जौब करता आ रहा था लेकिन बेरोजगारी की मार इस तरह गिरी कि कंपनी में कर्मचारियों की छंटाई होने लगी और इस में से एक कर्मचारी वह भी था.

वह बताता है, ‘‘पिछले 3 महीने से हमें सैलरी भी नहीं दी गई है. आम आदमी किस तरह अपना गुजारा करे?’’ अगर यह बात की जाए कि शहर या गांव, कहां ज्यादा बेरोजगारी है तो गांव के मुकाबले शहरों में बेरोजगारी दर ज्यादा है. गांव में जहां 7. 75 प्रतिशत बेरोजगारी दर है वही शहरों में यह दर 8.96 प्रतिशत है. भारत में ग्रेजुएट करीब 86.11 फीसदी, पोस्टग्रेजुएट 12.07, डिप्लोमा या सर्टिफिकेट वाले 1.01 फीसदी युवा रिसर्च वर्क से जुड़े हैं. इन्हें इन की योग्यता के अनुसार जौब नहीं मिली. अगर ये सभी सड़क पर रेहड़ी लगा कर पकौड़े बेचते दिखें तो यह सरकार के लिए हैरान करने वाली बात नहीं होगी क्योंकि उस के हिसाब से तो यह भी जौब ही है.

ऐसे युवा जिन के पास जौब नहीं है और वे रिलेशनशिप में हैं तो उन के मन में अपने रिलेशन को ले कर हमेशा इनसिक्योरिटी बनी रहती है. उन के मन में हमेशा यह डर रहता है कि कहीं उन की गर्लफ्रैंड उन्हें छोड़ कर न चली जाए क्योंकि वह उन्हें अच्छी और महंगी जगह नहीं ले जा पाते क्योंकि उन के पास इस के खर्च के पैसे नहीं होते. ऐसे लोगों की लाइफ में रोमांस की भी थोड़ी कमी होती है. यही कारण है कि वे हमेशा इस डर में रहते हैं कि कहीं बेरोजगारी उन्हें उन के प्यार से दूर न कर दे. युवकों का मानना है कि बहुत से ऐसे कपल हैं जिन्हें अपनी गर्लफ्रैंड से सिर्फ इसलिए दूर कर दिया जाता है क्योंकि वे बेरोजगार होते हैं. बिहार के रहने वाले पंकज ने अपना एक ट्वीट नीतीश कुमार के नाम लिखते हुए कहा,

‘कुछ ऐसा कीजिए कि कोई भी युवा बेरोजगार न रहे और उस की गर्लफ्रैड उस से दूर न हों.’ पंकज ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि सरकारी नौकरी न होने की वजह से उस की गर्लफ्रैंड के पिता ने अपनी बेटी की शादी उस से नहीं कराई. आएदिन ऐसे बहुत से केस आते हैं जिन में पत्नी अपने पति को छोड़ देती है. इस की एक बड़ी वजह पति का बेरोजगार या कंगला होना भी है. लड़की शादी कर के जब अपने पति के घर आती है तो वह यह सोच कर आती है कि उस का पति खर्च उठाएगा, क्योंकि उसे बचपन से यही सिखाया जाता है. लेकिन जब उसे यह पता चले कि उस के पति की जौब चली गई है और अब वह बेरोजगार हो गया है, वह खर्च उठाने में अब असमर्थ है तो कई बार कुछ समय तक हैंडल करने के बाद वह अपना संयम खो देती है और अलग होने का फैसला ले लेती है. कोई भी रिलेशन खर्चा जरूर मांगता है.

ऐसे में यह उम्मीद करना कि एक बेरोजगार बौयफ्रैंड के साथ रिश्ता अच्छे से निभाया जा सकता है, यह पूरी तरह से सही नहीं होगा क्योंकि कोई भी लड़की बेरोजगार बौयफ्रैंड नहीं चाहती. वह चाहती है एक ऐसा पार्टनर जिस के साथ उस की यादें जुड़ी हों और ये यादें उन के अलगअलग जगह जाने, वहां मजा करने से बनती हैं. लेकिन समस्या यह कि उन जगहों पर जाने के लिए उन्हें पैसों की जरूरत होगी और यह पैसा कुछ कमाधमा कर ही आ सकता है. इसलिए लड़के का जौब करना बेहद जरूरी है.

लेखिका- प्रियंका यादव

जो बोलूं मुंह पर बोलूं : नेता जी गुस्से में क्यों थें?

यों तो पीठ पीछे बोलने वालों से ज्यादा अच्छे मुंह पर बात कहने वाले होते हैं पर यह साफगोई हरदम अच्छी नहीं. कभीकभी शुगर कोटेड पिल्स की भी जरूरत पड़ती है. ज्यादातर लोग उन्हें ही पसंद करते हैं जो जब भी बोलते हैं मुंह पर बोलते हैं. मु?ो भी मुंह पर बोलने वाले लोग अच्छे लगते हैं. मुंह पर बोलने के लिए साहस चाहिए. पीठ पीछे बोलने वालों में कायरता की दुर्गंध आती है. वे अपनी बात घुमाफिरा कर कहते हैं और बात जब पकड़ में आ जाती है तब सकपकाते हुए कहते हैं,

‘‘मेरा कहने का मतलब यह नहीं था. मेरी बात को तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है.’’ अपने देश के नेता इस के बेहतरीन उदाहरण हैं क्योंकि उन की बात जब भी पकड़ में आती है तो वे यही कहते हैं कि मेरी बात को तोड़मरोड़ कर पेश किया गया है. मेरे कहने का आशय यह नहीं था. वे असंतुलित हो कर अपना आपा खो बैठते हैं तथा अनापशनाप बातेंकरते रहते हैं जिन का कोई अर्थ नहीं होता. अर्थ का अनर्थ हो जाता है और वे ‘जो भी बोलूं मुंह पर बोलूं’ कथन के शिकार हो जाते हैं. ‘‘मैं किसी से नहीं डरता. मैं जो भी बोलता हूं मुंह पर बोलता हूं. खेल के नाम पर करोड़ों की बोगस खरीदारी हुई.

लाखों की हेराफेरी हुई. लोगों के पेट का पानी हिला भी नहीं, न किसी ने डकार ही ली. सब एक ही थैली के चट्टेबट्टे हैं, वे किस मुंह से बोलेंगे, उन के मुंह में तो स्वार्थ के नोट ठुंसे पड़े हैं.’’ ‘‘तुम्हें अपनी हिस्सेदारी नहीं मिली क्या? तुम भी तो समिति में थे,’’ मैं ने उन्हें छेड़ते हुए कहा. वे नाराज हो गए. ‘‘भैया, कीचड़ में पत्थर फेंकने से अपने ही कपड़े दागदार होते हैं. मैं जो भी कहता हूं मुंह पर कहता हूं. मैं ने पहले ही आयोजकों को आगाह किया था कि खेल का आयोजन मत कराओ. मगर मेरी सुनता कौन है. अब आग से हाथ जलने लगे तो कराहने लगे,’’ नेताजी गुस्से में बोलने लगे. मैं उन के कहने का अर्थ सम?ा गया. जब जांच आयोग का फंदा कसा जाने लगता है तब मुंह पर बोलने वाले लोग पतली गली ढूंढ़ने लगते हैं.

गंदगी से अटी सड़क पर चीखेंगे तो लोग उन पर लट्ठ ले कर टूट नहीं पड़ेंगे. उन का मानना है सड़क और गली में यही तो अंतर है. गली निवासियों को अपनी रोजीरोटी के जुगाड़ से फुरसत नहीं है तो अरबों रुपए के खेल आयोजन में किस मुंह से रुचि लेंगे? उन की निगाह में तो भ्रष्टाचार एक राष्ट्रीय खेल है. खेल खेलने की चीज है. इधर खेला उधर भूल गए. मुंह पर बोलने वालों की सूची में मेरी अर्धांगिनी विजया का नाम भी जुड़ने लगा है. मेरी छुईमुई सी विज्जू अब सिर पर पल्ला नहीं डालती, पड़ोसियों पर अपनी प्रगति की शेखी बघारती है, ‘‘नहीं मिसेज शर्मा, मैं न, जो भी बोलती हूं मुंह पर बोलती हूं.

मेरा मुंह पर बोलना उन्हें भी अच्छा लगता है. पहले मैं भी आम घरेलू औरतों की तरह उन की पीठ पीछे बोलती थी. मगर मु?ो जब यह महसूस हुआ कि यह तो अपने परिवार का मामला है, आम लोगों के बीच उजागर करने से क्या फायदा है. अपनी ही हंसी उड़ेगी, इज्जत जाएगी. आपस में गलतफहमी भी बढ़ती है. ‘‘बहनजी, तब से हम ने प्रण कर लिया है कि जो भी शिकवाशिकायत रहेगी मुंह पर बोल कर समाप्त कर लेंगे. 2 मिनट जरूर बुरा लगेगा मगर घरपरिवार में तो शांति बनी रहेगी. गर्व होगा कि हमें भी मुंह पर बोलना आता है.’’ विवाह के कुछ वर्ष बाद तक पतिपत्नी एकदूसरे के मुंह पर बोलने से परहेज रखते हैं कि कोई बुरा न मान जाए. पति दफ्तर की बातें छिपाता है तो पत्नी गृहस्थी के हित में घर की बात पचा जाती है और घर की दीवार को हिलने से बचाती है.

हकीकत जब सामने आती है तब अविश्वास की जड़ें अपनी पकड़ मजबूत करती हैं. अनबन व मतभेद के कड़वे फल फलने लगते हैं. जो बोलूं, मुंह पर बोलूं का रंग विजया के ऊपर इस कदर चढ़ने लगा कि वह परिवार की मर्यादा को भूलने लगी. तब मु?ो लगा कि मुंह पर बोलने वाले अति उत्साही प्रवृत्ति के होते हैं. अपने को दूसरे लोगों से सुपर सम?ाते हैं. वे अपनी बात कहने में किसी का लिहाज नहीं करते. वे भूल जाते हैं कि वे कहां पर बोल रहे हैं? क्या बोल रहे हैं? कैसे बोल रहे हैं? उन के कहने के क्या दुष्परिणाम सामने आएंगे? स्कूल से बेटे बंटी की परीक्षा का नतीजा आया. मार्कशीट देख कर विजया गुस्से से बम हो गई. हत्थे से बुरी तरह उखड़ गई थी. उस ने बंटी को गुस्से में आवाज दी तो वह थरथर कांपता अपनी मम्मी से पूछने लगा, ‘‘क्या हुआ, मम्मी?’’ ‘‘तू मेरे साथ अभी स्कूल चल.

वह टीचर अपने को क्या सम?ाती है…उस के मुंह पर उस के सारे कामों का भंडाफोड़ न किया तो मैं भी विजया नहीं. मेरा जन्म विजय प्राप्ति के लिए ही हुआ है,’’ बेटे का हाथ पकड़ कर वह स्कूल की ओर बढ़ गई. मैं ने उस से कहा, ‘‘विज्जू, मैं भी तुम्हारे साथ चलूं?’’ मेरी ज्वालामुखी विजया फूट पड़ी और बोली, ‘‘मैं जो भी बोलूं, मुंह पर बोलूं. सुन सकते हो तो सुनो, तुम से कुछ होताजाता तो है नहीं, तुम स्कूल जा कर टीचर की शिकायत इसलिए नहीं करते कि कहीं टीचर बुरा न मान जाए व बंटी को कम नंबर न दे दे. आप तो घर पर ही रह कर कलम घिसते रहो जी,’’ कहती वह घर की चौखट लांघ गई. मैं ने महसूस किया कि तेज आंधी को तो एकबारगी रोका जा सकता है मगर मुंह पर बोलने वाली विजया को कतई रोका नहीं जा सकता. विजया ने आ कर मु?ो बताया कि टीचर के मुंह पर उस ने क्याक्या नहीं कहा,

‘‘आप अपने को सम?ाती क्या हैं. शासन से पूरी पगार लेती हो और पढ़ाई के नाम पर जीरो. ‘‘बच्चों पर ट्यूशन पढ़ने के लिए दबाव डालती हो. जब बच्चों को हम घर पर पढ़ा रहे हैं तो स्कूल में मोटीतगड़ी फीस देने का क्या लाभ है? आप लोग स्कूल में मोबाइल पर घंटों गप्पें लड़ाती हो. स्वेटर के फंदे डालती फिरती हो. मैं आप के मुंह पर बोलती हूं कि मैं आप की लिखित शिकायत उच्च अधिकारी से करूंगी.’’ विजया की तरह मुंह पर बोलने वालों की व्यक्तिगत धारणा यही रहती है कि वे क्रांति का शंखनाद कर रहे हैं मगर वे नादान नहीं जानते कि वे वाकई में क्या कर रहे हैं. मुंह पर बोलने का अर्थ है मन की भड़ास निकालना. मुंह पर बोलने मात्र से क्रांति नहीं आती. मुंह पर बोलने वालों से लोग रास्ता काटने लगते हैं.

पता नहीं मुंह पर बोलने के पत्थर कब उन के सिर फोड़ दें. मुंह पर बोलने वालों की जबान पर आलोचना अपने बोरियाबिस्तर के साथ विराजमान रहती है. वे कमजोर लोगों को अपनी जबान का शिकार बनाते हैं. मुंह पर बोलने वालों ने कभी भी किसी दबंग के सामने अपना मुंह नहीं खोला. कई बार मेरे मन में विचार आए कि विजया से कहूं, ‘‘विज्जू बेगम, हरदम मुंह पर बोलना अच्छा नहीं होता. मुंह पर बोलने की टौफी को शिष्टता के रैपर में लपेट कर भी तो दिया जा सकता है. किसकिस के मुंह पर बोलती फिरोगी. तुम्हारी तरह हर कोई कबीर नहीं बन सकता. विवेक, संतुलन, धैर्य की जरूरत पड़ती है मुंह पर बोलने वालों को.

कबीर ने ऐसे ही नहीं लिख दिया, ‘बुरा जो खोजन मैं चला बुरा न मिलयो कोय, जो दिल ढूंढ़ा आप ना मु?ा सा बुरा न कोय.’ मगर मैं शांत ही रहा. विजया के मुंह पर बोलने का साहस तो मु?ा में न था इसलिए सोचा, ‘जो भी बोलूं मुंह पर बोलूं’ विषय पर व्यंग्य लिख डालूं व पत्नी को समर्पित कर दूं कि अपनी आलोचना सहते समय कैसा लगता है. द्य सूक्तियां असफलता जानबूझ कर ऐसा काम न करें जिस से झुकना पड़े और असफलता पर असफलता मिलती जाए.

समझ थोड़े में समझना चाहिए और देर तक सुनना चाहिए. कार्य हर कार्य उचित माध्यम से करना चाहिए. छलांग मार कर ऊपर जाने की प्रवृत्ति नुकसानदेह रहती है. दुश्मनी दुश्मनी जम कर करो लेकिन यह गुंजाइश रहे कि जब कभी फिर दोस्त बन जाएं तो आप शर्मिंदा न हों. बातें अकसर छोटीछोटी बातें गले में अटक जाती हैं, जिन का परिणाम बड़ा गंभीर निकलता है. जिंदगी शांत और तनावरहित जिंदगी के लिए यह आवश्यक है कि छोटीमोटी अड़चनों को महसूस ही न किया जाए. अनुभव अनुभव के बराबर कोई और शिक्षा नहीं. कार्य और उत्तरदायित्व से ही आदमी सीखता है. गलतियों और कमियों का सामूहिक नाम ही अनुभव है. बिना घुटने छिले साइकिल चलाना भी नहीं आता.

फेसबुक फ्रैंडशिप : जब सच्चाई से वास्ता पड़ता है तो ये होता है

Yrkkh: अबीर की कस्टडी छोड़ेगा अभिमन्यु, मां को देगा जवाब

सीरियल ये रिश्ता में आए दिन ड्रामा होते रहता है, लेकिन इन दिनों सीरियल में काफी ज्यादा इमोशनल माहौल बना हुआ है , फैंस इस सीरियल को देखने के लिए इसलिए परेशान हैं क्योंकि वह चाहते हैं कि अभि औऱ अक्षरा एक हो जाए.

हालांकि सीरियल में कुछ मोड़ ऐसे आते नजर आ रहे हैं कि दोनों जल्द अपने बेटे की खुशी के लिए एक होने वाले हैं, अभिमन्यु अक्षरा से इन दिनों सबकुछ अच्छे से डिल कर रहा है. अबीर के ऑपरेशन के बाद से अक्षरा और अभिनव दोनों का धन्यवाद करते नजर आ रहे हैं.

 

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सीरियल में दिखाया गया है कि अभिनव चार्ट पेपर देते हुए अभिनव और अक्षरा को बताता है कि इसे क्या खिला सकते हैं और क्या नहीं खिला सकते हैं. इसके बाद अक्षरा अपने बेटे को लेकर कॉलेज पहुंच जाती है, वहीं अबीर कसौली जाने की जिद्द कर बैठता है.

वह कहता है कि एक बार कसौली जाना चाहता है, हांलाकि अबीर की वजह जल्द अभि और अक्षरा एक होने वाले हैं. इऩ दोनों को एक करके मानेगा. अक्षरा और अभिनव का क्या होगा फैंस के लिए ये बड़ा सवाल है.

Shahrukh Khan ने पूरी की कैंसर मरीज की इच्छा, ऐसे दिया सरप्राइज

बॉलीवुड किंग शाहरुख खान अपनी दरियादिली के लिए काफी ज्यादा मशहूर हैं, हाल ही में उन्होंने कछ ऐसा का किया है जिससे फिर से वो चर्चा में आ गए हैं, दरअसल, 60 वर्षीय चक्रवर्ती बंगाल की रहने वाली हैं और वह कैंसर से जूझ रही हैं .

उन्होंने एक टीवी शो के जरिए इच्छा जताया कि वह शाहरुख खान से मिलना चाहती हैं, जिसके बाद से शाहरुख खान के कान तक यह बात पहुंची और उन्होंंने शिवानी की इस इच्छा को पूरा करने के लिए शाहरुख खान ने वीडियो कॉल पर उनसे बात कि और उन्होंने 30 मिनट तक शिवानी से बात किया.

 

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साथ ही उन्होंने शिवानी की मदद करने की इच्छा जताई, शाहरुख खान का यह वीडियो खूब वायरल हो रहा है. पठान के बाद से शाहरुख खान जल्द जवान फिल्म के जरिए धमाल मचाने वाले हैं. यह फिल्म यसराज बैनर के जरिए बन रही है .

इस फिल्म में किंंग खान स्पेशल अवतार में नजर आएंंगे.फैंस को इस फि्ल्म का काफी ज्यादा इंतजार हैं. बता दें कि शाहरुख खान की फिल्म पठान को लेकर बहुत बाते हुई थी लेकिन फिर भी फिल्म बॉक्स ऑफिस पर हिट हो गई थी.

आकाश से भी ऊंचा : भाग 5

शलभ ने जैसे सांत्वना से रानो का मन भर दिया. उस के चेहरे पर चमक आ गई.

इलाहाबाद पहुंच कर शलभ ने किताबें भेज दीं. संजय उन्हें ले कर दे आया और समय पर फौर्म भरवा कर फीस भी जमा कर दी.

शलभ निश्चिंत था कि समय पर रानो परीक्षा देने उस के घर आ कर जरूर ठहरेगी. इस की चर्चा उस ने भाभी से भी कर दी थी, पर यह नहीं बता सका था कि यह सब उसी के प्रयास से हो रहा था. संजय के पत्र का जिक्र किया था कि उस ने ऐसा लिखा है.

समय गुजरता गया. परीक्षाएं शुरू हो कर समाप्त भी हो गईं. न संजय का कोई पत्र आया न रानो ही आई. गुस्से से शलभ का कलेजा जल उठा. सोचने लगा बहुत ही लापरवाह हैं ये लोग. हद कर दी. किसी के रुपए क्या फालतू हैं. क्या जाने रानो के बहनबहनोई ने न आने दिया हो.

शलभ ने कई पत्र संजय के पते से डाले पर सब गोल. उस का मन रातदिन गुस्से से उबलता रहा.

 

गरमी की छुट्टियां फिर आ गई थीं. भाभी बच्चों को ले कर पीहर जाने वाली थीं. संजय लेने आ रहा था. पत्र आया था उस के पिता का. शलभ सोच बैठा था कि हजरत को आड़े हाथों लूंगा. कम से कम पत्रों के उत्तर तो दे देता कि रानो इस कारण परीक्षा में बैठने नहीं आ रही है.

निश्चित समय पर संजय आ धमका. एकांत पाते ही शलभ ने सब से पहले अपनी भड़ास निकाली, ‘‘मैं तुम्हें एक जिम्मेदार लडक़ा समझता था परंतु तुम ने तो हद ही कर दी. एक भी पत्र का जवाब नहीं दिया. आखिर, तुम रानो को ले कर आए क्यों नहीं.’’

‘‘मैं क्या जानता था कि आप रानो की प्रतीक्षा में पलकें बिछाए बैठे हैं, नहीं तो परीक्षा देती या न देती उसे ले ही आता,’’ संजय हंस कर बोला.

‘‘यह क्या बकवास है. जब एक काम का बोझ उठाने का वचन दिया तो उसे पूरा क्यों नहीं किया, पहले यह बतलाओ?’’

‘‘अरे छोटे जीजाजी, वहां की हालत भी तो सुनो पहले. पहली बात तो यह है कि मैं ने एक पत्र डाला था.’’

‘‘बिलकुल गलत. मुझे कोई पत्र नहीं मिला,’’ शलभ चिढ़ कर बोला.

‘‘मैं अपनी परीक्षा देने जाने से पहले हमीरपुर गया था. वहीं से रानो के कहने पर उसी के सामने लिख कर पत्र डाला था. न मिले तो क्या करूं.’’

‘‘भई, मुझे तो आज तक कोई पत्र नहीं मिला, तभी तो खीझ रहा हूं. अब कारण बको, क्यों नहीं आई वह.’’

‘‘कोई 5 महीने पहले रानो के जीजाजी का ऐक्सिडैंट हो गया. जांघ की हड्डी टूट गई थी उन की. 2 माह अस्पताल में पड़े रहे. शहर का खर्च नहीं उठा सके तो वैसी ही हालत में गांव लौट आए. पैसा मिला तो दवाइलाज चालू, नहीं तो इलाज बंद. आप की दी हुई किताबें तक बिक गईं. बच्चों की पढ़ाई छूट गई. खानेपीने के लाले पड़ रहे हैं. ऐसे में कैसी पढ़ाई, कैसी परीक्षा. थोड़ीबहुत मदद मैं कर आया था. घर का मालिक जब मरणासन्न हो, तब और क्या सोचा जा सकता है.’’

यह सुन कर तो शलभ का चेहरा एकदम पीला पड़ गया. उसे अपार वेदना होने लगी.

‘‘बस, एक ही पत्र डाल कर तुम ने छुट्टी पा ली. दूसरा पत्र डाल देते तो क्या तुम्हारा कुछ बिगड़ जाता.’’

‘‘जब एक ही पत्र का उत्तर नहीं आया तब मैं दूसरा कैसे डालता. क्या जानता था कि आप को पत्र नहीं मिला. मैं तो सोचता था कि आप जानबूझ कर उत्तर डकार गए.’’

‘‘बेवकूफ हो तुम. अरे, कम से कम अपनी दीदी को ही कुछ लिख दिया होता, उन्हीं से पता चल जाता,’’ शलभ बोला.

‘‘मैं अपनी परीक्षाओं की तैयारी में जुटा रहा. फिर परीक्षाएं होते ही घूमने निकल गया उमा दीदी के पास. उन्हें ले कर 8 दिन हुए तब लौटा. फिर यहां दीदी को लेने आ गया. खत लिखने की मेरी आदत ही नहीं,’’ संजय ने बताया.

‘‘जब रानो के जीजाजी की टांग टूटी, तुम दोबारा गए थे.’’

‘‘नहीं, बाबूजी गए थे. वही रुपएपैसे दे आए थे.’’

 

शलभ कुछ क्षण चुपचाप बैठा रहा. संजय देख रहा था कि वह किसी गहरी सोच में डूबा है.

‘‘आजकल वे लोग कहां हैं?’’ शलभ ने पूछा.

‘‘उसी गांव में.’’

‘‘मैं भी देखने जाना चाहता हूं. अभी तो तुम 8-10 दिन रुक कर जाओगे भाभी को ले कर.’’

‘‘हां, 6-7 दिन इलाहाबाद घूमने का इरादा है.’’

‘‘नहीं, तुम्हें लखनऊ घूमने के बहाने हमीरपुर चलना होगा. बोलो, मानोगे मेरी बात?’’

‘‘हां, मानूंगा, पर लखनऊ जाने का बहाना क्यों, सीधे चलिए न.’’

‘‘तुम हो बड़े बुद्धू. सब पूछेंगे नहीं कि क्यों जा रहे हो. मिस्टर, यही तो मैं नहीं चाहता. सच तो यह है कि मैं किसी को यह राज पता नहीं होने देना चाहता कि मैं उन की मदद करना चाहता हूं.’’

‘‘क्यों? वही तो पूछ रहा हूं,’’ संजय ने मुसकरा कर उस की ओर देखा तो क्षणभर को शलभ का चेहरा चमक उठा. वह बोला, ‘‘अब तुम उडऩा सीख गए हो. जो कारण है वह तुम जान तो गए ही हो और अगर नहीं जाने तो कुछ दिनों बाद जान जाओगे. पहले यह बताओ, मेरा साथ दोगे या नहीं?’’

‘‘जरूर दूंगा पर इस राज को छिपाने के लिए मुझे कमीशन देना पड़ेगा.’’

‘‘मुझे मंजूर है, बताओ कितना कमीशन दूं?’’

‘‘मुझे लखनऊ की सैर करा देना, बस.’’

‘‘हम हमीरपुर से लौटते हुए सीधे लखनऊ ही चलेंगे, तब आएंगे यहां.’’

‘‘तब मैं एकदम तैयार हूं.’’

दूसरे दिन वे अपनी योजना के अनुसार रवाना हो गए.

 

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