कर्नाटक में चुनावी महाभारत पर विजय हासिल करने के बावजूद कांग्रेस इस बात से परेशान है कि उस के चुनावी घोषणापत्र में मुसलिम समर्थक प्रोग्रैसिव फ्रंट औफ इंडिया व हिंदू समर्थक बजरंग दल पर कंट्रोल करने का वादा उसे कट्टर हिंदू वोटों का नुकसान न करा दे. ऐसा वादा करना अपनेआप में बहुत साहसी बात है. कांग्रेस, हालांकि, पिछले कुछ वर्षों से हिंदूहिंदू हवा में बहने लगी थी और उस के ब्राह्मण पूजापाठी नेता (जिन की कांग्रेस में कमी नहीं है) मंदिरों, मठों, स्वामियों, मूर्तियों, घाटों पर अपनी श्रद्धा दर्शाने लगे थे.

इस कांग्रेसी रुख को नरम हिंदुत्व कहा जा रहा था जबकि इस से कांग्रेस को कोई फायदा नहीं मिल रहा था. भारतीय जनता पार्टी इस का फायदा उठा रही थी क्योंकि वह नरम को नहीं बल्कि कट्टर हिंदुत्व को देश के हित में कहती रहती है. कांग्रेसी मतदाता इस नकली हिंदुत्व से असल में खिन्न हो रहे थे.

इस देश में पूजापाठ चाहे फैक्ट्री, दुकान, खेत, दफ्तर में काम करने से ज्यादा प्राथमिकता पाता हो, यह पक्का है कि हर आम आदमी की तार्किक बुद्धि यही कहती है कि पूजापाठ से न अनाज उगेगा, न कपड़ा बनेगा, न दवा तैयार होगी, न स्कूल खुलेंगे, न मकान बनेंगे आदि.

आम हिंदू को यह भी मालूम रहता है कि वह कुछ खास मंदिरों में ही जा सकता है क्योंकि पंडितों ने हर हिंदू को अपना अलग देवी, देवता, मंदिर जाति या उपजाति के हिसाब से दे रखा है. बजरंगी अगर खुद को हनुमान कहते हैं तो यह जानना जरूरी है कि हर जाति का मुख्य देवता हनुमान नहीं है. दलितों और पिछड़ों की बहुत सी जातियों को परेशान करने में बजरंग दल के लोग ही आगे आते हैं. बजरंग दल वालों ने सत्ता में बैठे लोगों से सीधे संबंध जोड़ रखे हैं क्योंकि ये ही चुनाव में बूथ मैनेजमैंट करते हैं और ये ही राजनेता के शहर में आने पर भीड़ जुटाते हैं. कमाई के लिए ये मुसलमानों को अगर धमकाते हैं तो हिंदुओं, चाहे वे किसी जाति के हों, से चंदा वसूलते हैं.

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