Download App

राज्यपालों का दुरुपयोग

केंद्र सरकार या यों कहिए नरेंद्र मोदी के कहने पर भाजपाई राज्यपालों ने देशभर में विपक्षी दलों की सरकारों को तंग करने की मुहिम चला रखी थी. मई में मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ व 4 अन्य जजों की सर्वसहमति से हुए 2 निर्णयों ने राज्यपालों को फटकारा है और उन की खुले शब्दों में भर्त्सना की है.

असल में तो यह लताड़ नरेंद्र मोदी को है क्योंकि उन के द्वारा तैनात किए गए दिल्ली के बैजल से ले कर सक्सेना तक सभी उपराज्यपाल अरविंद केजरीवाल की सरकार को तंग करने में लगे थे. दरअसल, भारतीय जनता पार्टी को 3 बार विधानसभा चुनावों में और अब नगर निगम चुनाव में आम आदमी पार्टी ने बुरी तरह हराया है जबकि हर बार भाजपा ने नरेंद्र मोदी के नाम पर ही चुनाव लड़ा था. मोदी भाजपा को जिता नहीं सके तो उपराज्यपाल को विघ्न डालने के लिए लगा दिया जैसे विष्णु वामन अवतार बन कर राजा बलि के यहां पहुंचे थे. राज्यपाल वामन अवतार की तरह बेमतलब की मांगें कर रहे थे.

दूसरे मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र में सत्ता पलट में तब के राज्यपाल कोशियारी की जम कर खिंचाई की है. आशा तो थी कि सुप्रीम कोर्ट शिंदे सरकार को हटा देगी लेकिन चुनावों से एक साल पहले बेकार में उथलपुथल करने की जगह फैसला ऐसा दिया है कि शिंदे सरकार अब सूली पर अटकी रहेगी. सुप्रीम कोर्ट ने पार्टी की कमान शिंदे से छीन कर उद्धव ठाकरे को पकड़ा दी है जो चुनाव आयोग ने एकनाथ शिंदे को दे दी थी.

राज्यपालों का गलत इस्तेमाल करना संविधान की हत्या करना है पर भारतीय जनता पार्टी तो शायद विश्वास करती है कि जैसे दुवासा ऋषि जब चाहें जो मांग कर सकते थे, वैसे ही भाजपा भी संविधान को तोड़मरोड़ सकती है. इंदिरा गांधी ने भी यह खूब किया था. कांग्रेस आमतौर पर राज्यपालों की अति पर चुप रहती है क्योंकि 40-50 साल जब पूरा राज कांग्रेसी प्रधानमंत्री के हाथों में था, राज्यपालों को विपक्षी सरकारों को हडक़ाने का काम दिया जाता है. अब डिग्री का फर्क है और राज्यपाल गैरभाजपा सरकारों में बंदूकधारी शिकारी की तरह शेर के शिकार में लगे रहते हैं. किसी भी भाजपा राज्य सरकार का राज्यपाल से कोई मतभेद नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपालों के अधिकारों को दायरे में तो बांधा है पर आने वाली विपक्षी सरकारें हर मामले में सुप्रीम कोर्ट ही जाएं, यह रास्ता खुला रखा है. उस ने दिल्ली और महाराष्ट्र के राज्यपालों पर संविधानविरोधी काम करने पर कोई दंड नहीं दिया है. यह भी हो जाता तो फालतू के राज्य सरकार और राज्यपाल के विवाद कम हो जाते.

धुंधलाने लगी है धर्म की राजनीति

जो लोग कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और पूर्व मुख्यमंत्रियों येदियुरप्पा और बसवराज बोम्मई के नामों का उच्चारण भी सही से नहीं कर पाते, 13 मई को टीवी पर आंखें और कान लगाए बैठे थे. उस दिन कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजे घोषित हो रहे थे. हिंदीभाषी राज्यों के लोग भी बड़ी उत्सुकता से जानना चाह रहे थे कि कर्नाटक में भाजपा का धर्म और हिंदुत्व का कार्ड चला या नहीं.

शाम तक पूरे नतीजे आ गए कि पिछले चुनाव में 104 सीटें जीतने वाली भाजपा महज 66 पर सिमट कर रह गई है और कर्नाटक के लोगों ने उत्साहपूर्वक 224 में से 135 सीटें कांग्रेस को दे दी हैं. 2018 के मुकाबले कांग्रेस को जबरदस्त फायदा हुआ.

नतीजों के विश्लेष्ण से साफ हुआ कि किसी भी जाति या धर्म के लोगों ने भाजपा पर भरोसा नहीं किया, उलट इस के, कांग्रेस पर लिंगायतों, वोक्कालिंगाओ और कुरुबा सहित दलित आदिवासियों ने भी बराबर से भरोसा जताया.

जिन लिंगायतों के दम पर भाजपा परचम लहराने का ख्वाब देख रही थी उसी समुदाय के दबदबे वाले मुंबई कर्नाटक इलाके की 50 में से 33 सीटें कांग्रेस ने जीतीं. 2018 के चुनाव में भाजपा को लिंगायत बेल्ट से 31 सीटें मिलीथीं.सालों बाद कांग्रेस अपने उस सुनहरे दौर में पहुंच रही है जब सभी तबकों के वोट उसे मिलते थे.

भाजपा का आईटी सैल सोशल मीडिया पर इस आशय की पोस्टें वायरल करने लगा कि उन लोगों यानी मुसलमानों ने तो एकजुट हो कर मतदान कांग्रेस के पक्ष में किया लेकिन हिंदू चूक गए जिन्हें खमियाजा भुगतने को तैयार रहना चाहिए. तरहतरह से मुसलमानों का डर दिखाया गया था.

ऐसे उतरा रंग

भाजपा को चिंता अब 6 महीने बाद होने जा रहे मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों की सताने लगी है. इन तीनों ही राज्यों में 2018 में कांग्रेस ने उसे अप्रत्याशित पटखनी दे कर सत्ता छीनी थी.

कर्नाटक को हिंदुत्व की प्रयोगशाला भी कहा जाता है और इस चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम, शिव और कृष्ण की अपेक्षा एक छोटे से भगवान बजरंगबली के भरोसे दिखे. लेकिन जितने बड़े पैमाने पर उन्हें खारिज किया गया,वह जरूर चौंका देने वाली बात रही. मई के पहले हफ्ते में ही भगवा खेमे के हाथपांव माहौल देख फूलने लगे थे और चुनाव नीरस व एकतरफा होता जा रहा था.

5 से 8 मई तक नरेंद्र मोदी ने ताबड़तोड़ रैलियां और रोड शो कर्नाटक में किए. मोदी को एक मुद्दा बजरंगदल पर प्रतिबंध लगाए जाने का मिल गया था. असल में कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में कट्टर इसलामिक संगठन पीएफआई और कट्टर हिंदूवादी संगठन बजरंगदल को बैन करने की बात कही थी. इस के बाद तो जोश से लबरेज नरेंद्र मोदी ने जय बजरंगबली का नारा लगवाना और लगाना शुरू कर दिया.

यह कहने की मुकम्मल वजह है कि कर्नाटक के शैव मत को मानने वाले लोगों के दिलोदिमाग में वैष्णवों का डर बैठ गया था जिस के फूलपत्ते अब भले ही न दिखते हों पर जड़ें बहुत गहरी हैं. लिंगायतों ने तो भाजपा से किनारा किया ही,वहीं वोक्कालिंगा समुदाय के रुख ने यह बिलकुल साफ कर दिया कि जो भी हो सत्ता भाजपा के हाथ नहीं जानी चाहिए.

जब नरेंद्र मोदी को यह इल्म हो आया कि यहां राम, कृष्ण और काशी व केदारनाथ वाले शिव भी नहीं चलेंगे तो उन्होंने बजरंग बली को थाम लिया, लेकिन वजह बहुत गलत बजरंगदल पर प्रतिबंध की चुनी. इस का न तो मौका था न मौसम और न ही दस्तूर. यह, बस, एक आखिरी प्रयोग था.

अपने भाषणों में नरेंद्र मोदी ने हनुमान का नाम ले कर लोगों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने में कोई कोरकसर न छोड़ी. 3 मई को मूडबिद्री में उन्होंने एकदो नहीं, बल्कि 6 बार जय बजरंगबली का नारा लगाया और भीड़ को यह कहते उकसाने की भी कोशिश की कि, ‘जब पोलिंग बूथ में बटन दबाओ तो जय बजरंगबली बोल कर इन्हें यानी कांग्रेसियों को सजा देना. जब रावण ने हनुमानजी को बंदी बनाना चाहा, लंका स्वाहा हो गई. समझिए, ताले में बंद करने वालों का क्या हाल होगा.’

इस के पहले विजयनगर की रैली में नरेंद्र मोदी ने दहाड़ते हुए कहा था कि कांग्रेस ने पहले श्रीराम को ताले में बंद किया और अब बजरंगबली बोलने वालों को ताले में बंद करने की बात कह रही है. पहले ही दिन बजरंगबली का नाम लेने से मीडिया रिस्पौंस अच्छा मिला तो मोदी ने बारबार बजरंग का नाम लिया.

दरअसल, ऐसा कर वे खुद का भी मनोबल बढ़ा रहे थे जो भाजपा की हालत देख गिरता जा रहा था. एक और भाषण में उन्होंने जोर दे कर कहा कि,‘मैं हनुमान की भूमि पर आया हूं, मैं सौभाग्यशाली हूं कि मुझे हनुमान की भूमि पर मत्था टेकने का अवसर मिला. लेकिन दुर्भाग्य देखिए कि जब मैं यहां अपनी श्रद्धा प्रकट कर रहा हूं तभी कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में भगवान हनुमान को बंद करने का फैसला लिया है.’

मीडिया ने भी बजरंगबली को हाथोंहाथ लपका. कोई बजरंग की जन्मभूमि कर्नाटक में कहां है, यह दिखाने लगा तो किसी ने हनुमान के दर्जनों नाम गिना डाले.

धर्म की राजनीति कैसे हिट और कैसे फ्लौप हुई, इसे आंकड़ों के जरिए भी सहज समझा जा सकता है. इस के लिए पहले चुनावी आंकड़े देखें- कांग्रेस को 136 सीटें 43 फीसदी वोटों के साथ मिलीं जबकि भाजपा को 65 सीटें 36फीसदी वोटों के साथ मिलीं. साफ दिख रहा है कि भाजपा को सीटों का ज्यादा नुकसान हुआ, वोट और सीटें दोनों गंवांने भी पड़े.

भगवा गैंग के लिए चिंता की एक बड़ी बात नरेंद्र मोदी की घटती और राहुल गांधी की बढ़ती स्वीकार्यता व लोकप्रियता है जिसे आंकड़ों के आईने में देखें तो पता चलता है कि राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ कर्नाटक के7जिलों की 51 विधानसभाई सीटों के इलाकों से हो कर गुजरी उन में से कांग्रेस को 37 सीटें मिलीं, यानी, स्ट्राइक रेट 72फीसदी रहा. उलट इस के,नरेंद्र मोदी का स्ट्राइक रेट महज 33 फीसदी रहा. उन्होंने 20 जिलों की164 सीटों पर प्रचार किया था जिन में से भाजपा केवल 55 ही जीत पाई.

हिंदी बेल्ट के लिए अलार्म

यह दूसरे राज्यों के क्षेत्रीय दलों के लिए एक खतरे की घंटी है कि न केवल मुसलमान बल्कि दलित, आदिवासी व पिछड़ा वोट भी कांग्रेस के पाले में जा सकता है क्योंकि इन तबकों को भाजपा की धर्मकर्म की देवीदेवताओं की राजनीति में अपना नुकसान फिर से नजर आने लगा है. उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती को तो खासतौर से चिंता होनी चाहिए कि जो वोटबैंक उन्होंने कांग्रेस से छीना था उस की घरवापसी हो सकती है.

बिहार में जेडीयू प्रमुख मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद के तेजस्वी यादव भी अब बेफिक्र नहीं रह सकते हालांकि उन्हें पहले से यह ज्ञान प्राप्त हो रहा है कि अगर जनता दल (एस) की सी हालत से बचना है तो कांग्रेस का दामन थाम लो नहीं तो लोकसभा और एक साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस आगे भी निकल सकती है.

भाजपा की असल चिंता मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ हैं जहां धर्म का कार्ड अब पहले जैसा असरदार नहीं रहा.ऐसे में जितना मुमकिन हो धर्म की राजनीति से वह बचने की कोशिश तो करेगी लेकिन इस में कामयाब नहीं हो पा रही है. इस की वजह साफ है कि इस के अलावा उसे कुछ और आता ही नहीं.

हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण इन राज्यों में आसानी से हो जाता है लेकिन छत्तीसगढ़ में ऐसा होता नहीं दिख रहा क्योंकि वहां 35 फीसदी आदिवासी हैं जो हिंदुत्व और देवीदेवताओं की राजनीति से बिदकते हैं. कर्नाटक में आदिवासियों के लिए 15 सीटें रिजर्व हैं जिन में से 14 पर कांग्रेस और एक पर जनता दल (एस) जीती.

यही हाल दलित बाहुल्य सीटों का रहा. कांग्रेस ने आरक्षित 36 में से 21 सीटें जीतीं जबकि भाजपा को 13 से तसल्ली करनी पड़ी. दलित समुदाय के मल्लिकार्जुन खड्गे को अध्यक्ष बनाने का कांग्रेस का दांव कामयाब रहा.

मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी भाजपा की चिंता आदिवासियों के साथसाथ पिछड़े, मुसलमान और दलित हैं. कर्नाटक की तरह इन राज्यों में भी मुसलिम समुदाय बेहद असुरक्षा में जी रहा है, लिहाजा, उस ने सिर्फ कांग्रेस को ही वोट देने का मन अभी से बना लिया है. मध्य प्रदेश में तो अब सवर्ण भी भाजपा से नाराज हो चले हैं जिन्हें18 साल के भाजपा और शिवराज सिंह चौहान के राज में कुछ नहीं मिला. उन के बच्चे बेरोजगार घूम रहे हैं और महंगाई की मार के अलावा बढ़ते भ्रष्टाचार ने भी उन का जीना मुहाल कर दिया है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह अभी से मीडिया पर झल्लाने लगे हैं कि यह क्या कर्नाटकफर्नाटक लगा रखा है. यह मध्य प्रदेश है और मेरे तरकश में अभी बहुत तीर बाकी हैं. दरअसल, इन तीनों राज्यों में कर्नाटक का असर दिखने लगा है क्योंकि लोगों को यह भी समझ आ रहा है कि भाजपा कोई अजेय पार्टी नहीं है. अब यह कांग्रेस पर निर्भर है कि वह कैसे इस मानसिकता को भुना पाती है.

नेहरू से मोदी तक का धर्म

धर्म की राजनीति कोई नई या अजूबी बात नहीं है जिस का इस्तेमाल नेता अपनी इमेज चमकाने और नाकामियां ढकने को करते रहे हैं. नरेंद्र मोदी न केवल इस के विशेषज्ञ हो गए हैं बल्कि आदी भी हो गए हैं. अपने पहले कार्यकाल में वे ऐसा कम करते थे लेकिन बाद में धर्म का मतलब उन के लिए सिर्फ हिंदुत्व रह गया और वे हर कभी सार्वजनिक रूप से पूजापाठ, आरती, यज्ञ, हवन वगैरह करते धार्मिक किस्सेकहानियां भी सुनाने लगे. इस दौरान उन की बौडी लैंग्वेज और ड्रैस भी धार्मिक हुआ करती है. वे पौराणिक काल के ऋषिमुनियों जैसी वेशभूषा धारण करते हैं.

सब से पहले बड़े स्तर पर 31 अक्तूबर, 2017 को केदारनाथ मंदिर से उन्होंने यह सिलसिला शुरू किया था. इस दिन वे माथे पर त्रिपुंड लगाए हुए थे. अपने भाषण में ‘जयजय केदार जयजय भोले’ का नारा बुलंद करने के बाद उन्होंने कहा था कि वे बाबा भोले नाथ के बेटे हैं. बाबा ने ही उन्हें बुलाया है. कहने की जरूरत नहीं कि कभी बनारस में गंगा मां ने भी उन्हें इसी तरह बुलाया था. इस बार कर्नाटक में बजरंगबली नेबुला लिया तो यह कोई हैरत की बात नहीं थी.

धार्मिक टोटकों से इंदिरा गांधी भी परहेज नहीं करती थीं. उन्होंने भी 70 के दशक में खासतौर से धर्म का सहारा लिया था. हिंदू दिखने के लिए इंदिरा गांधी भी गले में रुद्राक्ष की बड़ी माला लटकाए रखती थीं, योग और ध्यान भी वे करने लगीं थीं और हर कभी मंदिरों में जा कर मूर्तियों के सामने माथा टेकती नजर आती थीं.

ओडिशा के प्रसिद्ध जगन्नाथ पुरी के मंदिर में 1984 में प्रधानमंत्री रहते पंडों ने उन्हें पारसी महिला कहते प्रवेश देने से मना कर दिया था तो वे तिलमिला उठी थीं. लेकिन बजाय धर्म की राजनीति से सबक सीखने या किनारा करने के वे उस में और डूबती गईं. ऐसे में उन का साथ एक शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने दिया था जो अपनी जिंदगी के आखिरी दिन तक नेहरूगांधी परिवार के फैमिली पंडित रहे. सोनिया और राहुल गांधी दोनों उन के आगे नतमस्तक रहते थे. धर्म के मामले में तब के कई सवर्ण सनातनी कांग्रेसियों ने इंदिरा गांधी की हिम्मत ही बढ़ाई थी जो मन से सनातनी थे लेकिन मारे मैडम के डर के, अपने जनेऊ टाई के नीचे छिपा कर रखते थे.

असल में यह वह दौर था जब कांग्रेस में टूटफूट शुरू हो गई थी और जनसंघ व हिंदू महासभा आरएसएस के सहारे एक नया खेल हिंदू राष्ट्र का खुल कर खेलने लगे थे. इंदिरा गांधी हिंदू दिखना तो चाहती थीं लेकिन हिंदू राष्ट्र नहीं चाहती थीं. जब वे हिंदूवादी दलों और संगठनों के दबाब में आ गईं तो ब्रैंडेड संत-शंकराचार्यों के चरण छूने लगीं और जम कर धरमकरम करने लगीं.

पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू बेहद सधे नेता था. उन्हें समझ आ गया था कि अगर देश को जातपांत,शोषण, आडंबर और जकड़न से आजाद कराना है तो विकास और आधुनिकता पर ही फोकस करना पड़ेगा. लिहाजा, उन्होंने बिजली, रेललाइनों, कारखानों, बांधों और सड़कों सहित शिक्षा पर जोर दिया जो उस दौर की बड़ी चुनौतियांथीं.

नेहरू ने कभी किसी मंदिर में शायद ही माथा टेका हो या किसी संतमहंत के पैरों में लोट लगाई हो. वे अगर ऐसा करते और आधुनिक भारत की नींव न रख पाते तो जाहिर है हम आज भी सांपसपेरों वाले ही कहला रहे होते. शायद इसीलिए नेहरू को सख्तमिजाज वाला नेता कह कुछ लोग प्रचारित करने लगे थे.

इंदिरा गांधी भले ही ऊपर से सख्त दिखती और लगती थीं पर वे धर्म के चलते अंदर से काफी भयभीत रहने लगी थीं जो यह तो समझती थीं कि अगर कट्टर हिंदुत्व की गिरफ्त में देश आ गया तो मुसलमानों, दलितों,आदिवासियों और पिछड़ों सहित सवर्ण औरतों का जीना मुहाल हो जाएगा लेकिन धर्म की इतनी शोबाजी वे कर चुकी थीं कि पीछे हटना भी उन के लिए मुमकिन न था. मुमकिन है वे खुद पर झल्लाने लगी हों और इसी झल्लाहट में उन्होंने आपातकाल लगाने जैसा अप्रिय फैसला ले लिया था.

इन पैमानों पर नरेंद्र मोदी और इंदिरा गांधी में कोई खास फर्क नहीं है सिवा हिंदू राष्ट्र के विचार के. लेकिन इस से देश पिछड़ रहा है, चारों तरफ बेचैनी और अफरातफरी मची है जिसे बहुसंख्यवादी जानबूझ कर अनदेखा कर रहे हैं और यही उम्मीद हर किसी, खासतौर से मीडिया, से करते हैं.

कर्नाटक के फैसले को सिर्फ राजनीतक नजरिए से देखना एक किस्म की चालाकी ही कही जाएगी. वहां के वोटर ने किसी जनून या झांसे में आ कर कांग्रेस को नहीं चुना है. इस फैसले का एक सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू भी है जिसे राहुल गांधी अकसर बेहद आसान शब्दों ‘नफरत’ और ‘मोहब्बत’ में लपेट कर बयां करते रहे हैं. कांग्रेस की जीत के बाद पहली प्रैस कौन्फ्रैंस में भी उन्होंने यही कहा था.

लोकतंत्र में रातोंरात बदलाव नहीं आते और न ही घंटों में लोगों की मानसिकता बदलती है. इस में सदियों नहीं तो कुछ दशक तो लग ही जाते हैं. यह कहना कतई जल्दबाजी नहीं होगी कि कर्नाटक से भाजपा के बुरे दिन शुरू हो चुके हैं. अगर वह अपने अच्छे दिन चाहती है तो उसे अपना रूट तो बदलना पड़ेगा जो उत्तर भारत में उस के लिए संभव नहीं. तो क्या भाजपा अब शेर की सवारी कर रही है, यह समझने को राजस्थान, मध्य प्रदेश सहित आदिवासी बाहुल्य राज्यों छत्तीसगढ़ और झारखंड के आगामी चुनावों के परिणामों को बहुत बारीकी से देखना व समझना होगा.

TMKOC: तारक मेहता के प्रौड्यूसर असित मोदी पर लगा सेक्शुल हैरेसमेंट का आरोप, जेनिफर ने किया शिकायत

टीवी शो तारक मेहता का उल्टा चश्मा सीरियल के प्रॉड्यूसर पर हाल ही में गंभीर आरोप लगे हैं, जेनिफर मिस्त्री ने शो के प्रॉड्यूसर असित मोदी पर सेक्शुअल हैरेशमेंट का आरोप लगाया है. इसके आलावा उन्होंने और दो लोगों पर आरोप लगाएं हैं.

बता दें कि जेनिफर ने असित मोदी के प्रॉडक्ट हेड सोहेल रमानी और जतीन बजाज के खिलाफ भी आरोप लगाए हैं. जिसका बयान पवई पुलिस में दर्ज कराया गया है. उन्होंने एक रिपोर्ट में खुलासा किया है. जेनिफर ने बताया है कि मैं रिपोर्ट दर्ज कराके वहां से निकल चुकी हूं. अब पुलिस ने अपना काम करना शुरू कर दिया है.

बता दें कि आरोप लगाने के बाद से जेनिफर के बतमीज और गंवार महिला बोला गया,बता दें कि सीरियल में काम करने वाली प्रिया अहूजा और बाकी सदस्य ने असित मोदी को सपोर्ट किया है, हालांकि जेनिफर ने सेट पर चिल्ला-चिल्ला कर कहा है कि मैं पैसों के लिए काम नहीं कर रही हूं.

जेनिफर ने एक रिपोर्ट में बात करते हुए कहा है कि मैंने सुना है कि कुछ लोग कह रहे हैं कि असित ने मेरे साथ फिजिकल रिलेशन बनाया है तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, मैं बता दूं कि असित मोदी ने मेरा इस्तेमाल किया है जिस वजह से मैं मैंटली डिस्टर्ब भी हुईं हूं.

 

मुझे मेरे बौयफ्रैंड से परेशानी है,वह बहुत शक्की है और व्यवहार भी ठीक नहीं, कृपया बताएं क्या करूं?

सवाल

मैं 20 वर्षीय कालेज की स्टूडैंट हूं. मुझे मेरे बौयफ्रैंड से परेशानी है. वह बहुत शक्की है और व्यवहार भी ठीक नहीं. मैं कालेज में किसी भी लड़के से बात करूं तो उसे जलन होती है. मैं कहां जाती हूं किस के साथ जाती हूं वह सब जानना चाहता है समझता है मैं उसी की बात मानूं जिस से कहे बात करूं. कृपया बताएं मैं क्या करूं?

जवाब

आप का बौयफ्रैंड शक्की है तो शक का कोई इलाज नहीं लेकिन आप समाधान बन सकती हैं उस पर इतना प्यार उढ़ेलिए कि किसी अन्य के पास जाने पर भी उसे न लगे कि उस का प्यार बंट रहा है. साथ ही अपनी सोच को पौजिटिव बनाइए उस के व्यवहार को ऐसे समझिए कि वह कितना केयरिंग है. आप की कितनी परवा है उसे. किसी भी गलत व्यक्ति से बातचीत पसंद नहीं वह आप का बुरा नहीं चाहता.

इस तरह की सोच से आप उस के प्रति समर्पित होंगी फिर जिस से उसे शक लगे उस से मिलवाइए व खुद से ज्यादा उस की तारीफ के पुल बांधिए जब सब से घुलमिल जाएगा तो आप को गलत नहीं समझेगा. हां, गलती से भी इन बातों के कारण उसे डांटिएगा नहीं क्योंकि इस से उसे लगेगा कि आप दूसरे की वजह से उसे डांट रही हैं. इस से दूरी बढ़ेगी और अगर आप उसे प्यार से कहेंगी कि कितने केयरिंग हो तुम. कितना ध्यान रखते हो मेरा. तो उसे लगेगा कि वह भी कुछ है उस की हीनभावना भी समाप्त होगी और शक वाली बातें भी.

स्किन के लिए लाभदायक ह्यालुरोनिक एसिड

गरमी में हमारी स्किन काफी मुरझाई हुई सी रहती है, इसलिए इस मौसम में स्किन की देखभाल करना काफी जरूरी हो जाता है, जैसे बाहर निकलते समय आपको पूरे कपड़े पहनने चाहिए और स्किन को बारबार साफ करते रहना चाहिए और सबसे जरूरी सनस्क्रीन का प्रयोग करना चाहिए. लेकिन इसके बाद भी स्किन में डलनैस दिखने ही लगती है.

अपने चेहरे को गरमी के दौरान ग्लो अप देने के लिए आप ह्यालुरोनिक एसिड का प्रयोग करना शुरू कर सकती हैं. यह स्किन केयर इंग्रीडिएंट इन दिनों काफी चर्चा में है और इसके प्रसिद्ध होने की वजहें भी सटीक हैं क्योंकि यह सही में आपकी स्किन के लिए काफी लाभदायक होता है. आइए जानते हैं इसे प्रयोग करने के लाभ.

सन डैमेज से आपको बचाता है : गरमी में ज्यादा समय तक सूर्य के संपर्क में रहने से आपकी स्किन को सनबर्न और हाइपर पिग्मेंटेशन हो सकता है. इससे बचने के लिए ह्यालुरोनिक एसिड का प्रयोग करें. यह आपकी स्किन के मौइश्चर लैवल को बनाए रखता है और सेल रिजनरेशन में मदद करता है. यह आपकी स्किन से सन सपौट और हाइपर पिग्मेंटेशन को कम करने में मदद करता है. इससे स्किन पहले से काफी ब्राइट हो सकती है.

सभी स्किन टाइप के लिए है सूटेबल : अधिकतर प्रोडक्ट्स को प्रयोग करने से पहले हम यह देखते हैं कि यह हमारी स्किन के टाइप का है या नहीं. लेकिन ह्यालुरोनिक एसिड सभी स्किन टाइप के लिए सूटेबल होता है, इसलिए इसका प्रयोग हर कोई कर सकता है जो काफी अच्छी बात है. यह एक्ने प्रोन स्किन के लिए भी सहायक है. यह स्किन में औयल कंट्रोल करने में भी मदद करता है.

एंटी औक्सीडैंट्स से भरपूर : ह्यालुरोनिक एसिड में एंटी औक्सीडैंट काफी ज्यादा होते हैं. इसलिए यह आपकी स्किन को वातावरण में मौजूद पौल्यूटैंट्स, जैसे प्रदूषण, धूलमिट्टी और फ्री रैडिकल्स आदि से बचा सकता है. फ्री रैडिकल्स आपकी स्किन को डैमेज कर सकते हैं और आपको एजिंग के लक्षण कम उम्र में ही देखने को मिल सकते हैं.

ह्यालुरोनिक एसिड को अपने स्किन केयर रूटीन में शामिल करके आप इन सभी चीजों से स्किन को बचा सकते हैं. इसके अलावा आप इसका प्रयोग करके सूर्य की यूवी किरणों का प्रभाव भी कम कर सकते हैं.

एजिंग के लक्षणों से बचाता है : जैसेजैसे आपकी उम्र बढ़ती जाती है वैसेवैसे आपकी स्किन ड्राई होती जाती है और झुर्रियों जैसे एजिंग के लक्षण आपको देखने को मिलते हैं. ह्यालुरोनिक एसिड का प्रयोग करने से आप इन लक्षणों से बच सकते हैं. समय से पहले होने वाली एजिंग से आप स्किन को बचा सकती हैं और स्किन को मौइश्चराइज भी रख सकती हैं.

डार्क सर्कल कम करने में सहायक : ह्यालुरोनिक एसिड का प्रयोग अगर आप आंखों के नीचे करती हैं तो इससे आपको डार्क सर्कल्स कम होने में भी मदद मिल सकती है. यह आपकी स्किन में कोलेजन के उत्पादन में मदद करता है जिस कारण आपकी स्किन से इस तरह की डार्कनैस कम हो सकती है. इसका प्रयोग आपको आंखों के नीचे थोड़ीथोड़ी मात्रा में ही करना चाहिए. अगर आपकी स्किन काफी पतली है तो उससे डील करने में भी यह लाभदायक रहने वाला है.

ये सारे लाभ आपको इस एक इंग्रीडिएंट का प्रयोग करके मिल सकते हैं, इसलिए आपको अपने स्किन केयर प्रोडक्ट्स में इस इंग्रीडिएंट से बनने वाले प्रोडक्ट्स का प्रयोग जरूर करना चाहिए ताकि गरमी में भी आपके चेहरे का निखार कहीं जाए न.

क्या है डबल बर्डन सिंड्रोम

प्रसव के डेढ़ महीने ही बीते थे कि मोनिका ने औफिस जाना शुरू कर दिया. अगले 6 महीनों तक घर पर बच्चे की देखभाल मोनिका की गैरमौजूदगी में कभी उस की सास तो कभी उस की मां करती रहीं. मगर बच्चे के साल भर के होते ही दोनों ने ही अपनीअपनी मजबूरी के चलते बच्चे को संभालने में आनाकानी शुरू कर दी.

अब बच्चे को क्रेच में डालने के अलावा मोनिका के पास और कोई रास्ता नहीं बचा था. वह जौब नहीं छोड़ना चाहती थी. मगर बच्चे को भी क्रेच में डाल कर खुश नहीं थी. औफिस में काम के दौरान कई बार उस का मन बच्चे की ओर चला जाता तो वहीं घर में बच्चे के साथ रहने पर उसे औफिस में अपनी खराब होती परफौर्मैंस का एहसास होता.

दोनों जिम्मेदारियों के बीच मोनिका पिसती जा रही थी. चिड़चिड़ाहट और घबराहट के कारण काम करने में उस से गलतियां होने लगी थीं. घर वालों के ताने और बौस की डांट धीरेधीरे मोनिका को डबल बर्डन सिंड्रोम जैसी मानसिक बीमारी का शिकार बना रही थी. एक समय ऐसा भी आया जब मोनिका खुद को बच्चे और अपने बौस का अपराधी समझने लगी. आखिरकार उस ने जौब छोड़ दी और गृहिणी बन कर बच्चे की परवरिश में जुट गई.

क्या कहता है सर्वे

मोनिका जैसी हजारों महिलाएं हैं, जो अच्छे पद, अच्छी आमदनी होने के बावजूद प्रसव के बाद या तो बच्चे और औफिस की दोहरी जिम्मेदारी निभाते हुए डबल बर्डन सिंड्रोम की शिकार हो जाती हैं या फिर अपने कैरियर से समझौता कर के घर और बच्चे तक खुद को सीमित कर लेती हैं.

केली ग्लोबल वर्कफोर्स इनसाइट सर्वे के अनुसार, शादी के बाद लगभग 40% भारतीय महिलाएं नौकरी छोड़ देती हैं वहीं 60% महिलाएं मां बनने के बाद बच्चे की परवरिश को अधिक महत्त्व देती हैं और नौकरी छोड़ देती हैं. इस के अतिरिक्त 20% महिलाएं जो घर और नौकरी दोनों जिम्मेदारियां निभा रही होती हैं, वे कभी न कभी जिम्मेदारियों के बोझ तले दब कर डबल बर्डन सिंड्रोम की शिकार हो जाती हैं.

इस बाबत एशियन इंस्टिट्यूट औफ मैडिकल साइंस की मनोचिकित्सक डाक्टर मीनाक्षी मनचंदा का कहना है, ‘‘भारतीय समाज है ही ऐसा. यहां महिला सशक्तीकरण की बड़ीबड़ी बातें की जाती हैं, मगर महिलाएं जब सशक्त  होने का प्रयास करती हैं, तो यही समाज उन्हें परिवार की जिम्मेदारी की बेडि़यों में जकड़ देता है.’’

पुष्पावती सिंघानियां रिसर्च इंस्टिट्यूट की मनोचिकित्सक डाक्टर कौस्तुबि शुक्ल का मानना है, ‘‘यह सिंड्रोम महिला और पुरुष दोनों को होता है. मगर भारत में इस सिंड्रोम की शिकार अधिकतर महिलाएं ही होती हैं. इस की बड़ी वजह यहां की संस्कृति है, जो कहती है कि महिलाएं अपने पेशेवर जीवन में कितनी भी उन्नति कर लें, मगर घर के प्रमुख कार्यों की जिम्मेदारी उन्हें ही संभालनी होगी. हालांकि नौकरों और आधुनिक तकनीकों की मदद से जिम्मेदारियों का बोझ कुछ हद तक हलका हो जाता है, मगर बच्चा होने के बाद इन जिम्मेदारियों का स्वरूप बदल जाता है. आधुनिक तकनीक और नौकरों के साथ मातापिता को खुद भी बच्चे की देखभाल में समय देना पड़ता है. इस स्थिति में भी बच्चे की जिम्मेदारी मां पर डाल दी जाती है और पिता खुद को आर्थिक मददगार बनने की बात कह कर बचा लेता है.’’

मगर सवाल यह उठता है कि इस से फायदा क्या है? देखा जाए तो घर के किसी सदस्य के नौकरी छोड़ने पर परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत होने के स्थान पर कमजोर ही होती है. वहीं जिम्मेदारियों का सही बंटवारा परिवार की आर्थिक जरूरतों में रुकावट भी पैदा नहीं होने देता और महिलाओं को इस सिंड्रोम का शिकार होने से भी बचा लेता है. मगर अब दूसरा सवाल यह उठता है कि जिम्मेदारियों का बंटवारा हो कैसे?

सास के साथ सही साझेदारी

मनोचिकित्सक मीनाक्षी कहती हैं, ‘‘आर्थिक मददगार तो महिलाएं भी बन सकती हैं. वर्तमान समय में ऐसा कोई क्षेत्र नहीं है, जहां महिलाओं ने पुरुषों के वर्चस्व को न तोड़ा हो.  मगर घरेलू काम में पतियों से सहायता लेना आज भी महिलाओं के लिए एक चुनौती बना हुआ है.  खासतौर पर उन घरों में जहां रिश्तेदारों का दखल ज्यादा होता है.’’

रिश्तेदारों की इस सूची में सब से पहले लड़के की मां का नाम आता है. घर के कामकाज में बेटे और बहू की हिस्सेदारी का वर्गीकरण भी यही मुहतरमा करती हैं, जिस में बच्चे के कामकाज से बेटे का कोई लेनादेना नहीं होता. बहू नौकरीपेशा है तब भी बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी उसी की है. भले ही बहू की घर पर गैरमौजूदगी में सास बच्चे की देखरेख कर भी लें, मगर इस बात को सुनहरे शब्दों में बहू पर जताने से भी वे पीछे नहीं हटतीं.

मीनाक्षी का मानना है कि इन स्थितियों में महिलाओं को थोड़ी सूझबूझ दिखानी चाहिए. सब का अपनाअपना स्वभाव होता है, मगर सास के साथ बहू की सही साझेदारी ऐसे मौकों पर बहुत काम आ सकती है. यह बात तो पक्की है कि रूढिवादी सोच वाली सास बेटे को भले ही घर के काम न करने दें, मगर बहू से सही तालमेल बैठा कर घर की कुछ जिम्मेदारियां वे खुद संभाल लेती हैं. यहां जरूरत है कि महिलाएं सास पर थोड़ा विश्वास करें. उन की दिल को चुभने वाली बातों को अनसुना कर दें. रिश्तों में थोड़ा तालमेल बैठा कर चलें ताकि घर और कार्यस्थल दोनों ही स्थानों पर अच्छी परफौर्मैंस दे सकें.

पार्टनर से बात करें

सास के साथ ही अपने पति को भी अपनी महत्त्वाकांक्षाओं के बारे में बताएं. दरअसल, भारतीय समाज की इस रूढिवादी मानसिकता के चलते ही कई औरतें स्वीकार कर लेती हैं कि सहूलत से यदि बच्चे की देखभाल और नौकरी के बीच संतुलन बैठाया जा सकता है, तो ठीक है नहीं तो मानसिक तौर पर वे खुद को नौकरी छोड़ने और बच्चे को अच्छी परवरिश देने के लिए तैयार कर लेती हैं.

इस बाबत डाक्टर कौस्तुबि कहती हैं,  ‘‘आजकल महिलाएं शादी से पूर्व अपने कैरियर को अधिक महत्त्व देती हैं. फिर अब शादी भी देर से ही होती है. ऐसे में महिलाओं की रीप्रोडक्टिव लाइफ छोटी हो जाती है. उन्हें यह फैसला जल्दी लेना पड़ता है कि वे मां कब बनना चाहती हैं.  अब यदि यह कहा जाए कि कैरियर के लिए मां बनने की ख्वाहिश ही छोड़ दें, तो शायद यह सही नहीं होगा. लेकिन मां बनने के लिए नौकरी छोड़ दें, यह भी कोई हल नहीं है. इसलिए महिलाओं को अपने पार्टनर से पहले ही अपनी महत्त्वाकांक्षाओं का जिक्र कर लेना चाहिए और उस के हिसाब से भविष्य की प्लानिंग करनी चाहिए.’’

आज का दौर पढ़ेलिखों का है. पतिपत्नी इस बात को बखूबी समझते हैं कि महंगाई के इस जमाने में दोनों की कमाई से ही परिवार रूपी गाड़ी खींची जा सकती है. इसलिए आपस में समझौता कर लेना ही सही निर्णय है. इस समझौते में बहुत सारी बातों का जिक्र किया जा सकता है, जो महिलाओं को दोहरी जिम्मेदारी के बोझ और बेरोजगारी दोनों से बचा सकता है.

मनोचिकित्सक कौस्तुबि ऐसे ही कुछ समझौतों के बारे में बताती हैं:

– आज के वर्क कल्चर में शिफ्ट में काम करना चलन में है और यह गलत भी नहीं है.  नौकरीपेशा दंपती अपनी सहूलत के हिसाब से शिफ्ट का चुनाव कर सकते हैं और बारीबारी से अपनी जिम्मेदारियों को निभा सकते हैं.

– यदि कंपनी में वर्क फ्रौम होम की सुविधा है, तो कभीकभी पतिपत्नी इस सुविधा का फायदा भी उठा सकते हैं. इस से घर और कार्यालय दोनों का ही काम बाधित नहीं होता.

– कुछ कार्यक्षेत्रों में फ्रीलांसिंग काम भी किया जा सकता है और इस में भी अच्छी आमदनी की गुंजाइश होती है. पति या पत्नी में से कोई एक अपनी फुलटाइम नौकरी छोड़ कर फ्रीलांसिंग में भी हाथ आजमा सकता है.

दांपत्य जीवन में थोड़ी सूझबूझ से फैसले लिए जाएं, तो आपसी मनमुटाव डबल बर्डन सिंड्रोम से बचा जा सकता है.

गलती : आखिर कविता से क्या गलती हुई

उस ने अपने मोबाइल फोन में ह्वाट्सऐप पर उस तसवीर को देखा. उस के नंगे बदन पर उस का मकान मालिक सवार हो कर बेशर्मों की तरह सामने देख रहा था. साथ में धमकी भी दी गई थी कि इस तरह की अनेक तस्वीरें और वीडियो हैं उस के पास. इज्जत प्यारी है तो रकम दे दो.

यह ह्वाट्सऐप मैसेज आया था उस की मकान मालकिन सारंगा के फोन से. एक औरत हो कर दूसरी औरत को वह कैसे इस तरह परेशान कर सकती है? अभी तक तो कविता यही जानती थी कि उस की मकान मालकिन सारंगा को इस बारे में कुछ भी नहीं पता. बस, मकान मालिक घनश्याम और उस के बीच ही यह बात है. या फिर यह भी हो सकता है कि सारंगा के फोन से घनश्याम ने ही ह्वाट्सऐप पर मैसेज भेजा हो.

कविता अपने 3 साल के बच्चे को गोद में उठा कर मकान मालकिन से मिलने चल दी. वह अपने मकान मालिक के ही घर के अहाते में एक कोने में बने 2 छोटे कमरों के मकान में रहती थी.

मकान मालकिन बरामदे में ही

मिल गईं.

‘‘दीदी, यह क्या है?’’ कविता

ने पूछा.

‘‘तुम्हें नहीं पता? 2 साल से मजे मार रही हो और अब अनजान बन रही हो,’’ मकान मालकिन बोलीं.

‘‘लेकिन, मैं ने क्या किया है? घनश्यामजी ने ही तो मेरे साथ जोरजबरदस्ती की है.’’

‘‘मुझे कहानी नहीं सुननी. साढ़े 5 लाख रुपए दे दो, मैं सारी तसवीरें हटा दूंगी.’’

‘‘दीदी, आप एक औरत हो कर…’’

‘‘फालतू बातें करने का वक्त नहीं है मेरे पास. मैं 2 दिन की मुहलत दे रही हूं.’’

‘‘लेकिन, मेरे पास इतने पैसे कहां से…’’

‘‘बस, अब तू जा. 2 दिन बाद ही अपना मुंह दिखाना… अगर मुंह दिखाने के काबिल रहेगी तब.’’

कविता परेशान सी अपने कमरे में वापस आ गई. उस के दिमाग में पिछले 2 साल की घटनाएं किसी फिल्म की तरह कौंधने लगीं…

कविता 2 साल पहले गांव से ठाणे आई थी. उस का पति रामप्रसाद ठेले पर छोटामोटा सामान बेचता था. घनश्याम के घर में उसे किराए पर 2 छोटेछोटे कमरों का मकान मिल गया था. वहीं वह अपने 6 महीने के बच्चे और पति के साथ रहने लगी थी.

सबकुछ सही चल रहा था. एक दिन जब रामप्रसाद ठेला ले कर सामान बेचने चला गया था तो घनश्याम उस के घर में आया था. थोड़ी देर इधरउधर की बातें करने के बाद उस ने कविता को अपने आगोश में भरने की कोशिश की थी.

जब कविता ने विरोध किया तो घनश्याम ने अपनी जेब से पिस्तौल निकाल कर उस के 6 महीने के बच्चे के सिर पर तान दी थी और कहा था, ‘बोल क्या चाहती है? बच्चे की मौत? और इस के बाद तेरे पति की बारी आएगी.’

कोई चारा न देख रोतीसुबकती कविता घनश्याम की बात मानती रही थी. यह सिलसिला 2 साल तक चलता रहा था. मौका देख कर घनश्याम उस के पास चला आता था. 1-2 बार कविता ने घर बंद कर चुपचाप अंदर ही पड़े रहने की कोशिश की थी, पर कब तक वह घर में बंद रहती. ऊपर से घनश्याम ने उस की बेहूदा तसवीर भी खींच ली थी जिन्हें वह सभी को दिखाने की धमकी देता रहता था.

इन हालात से बचने के लिए कविता ने कई बार अपने पति को घर बदलने के लिए कहा भी था पर रामप्रसाद उसे यह कह कर चुप कर देता था कि ठाणे जैसे शहर में इतना सस्ता और महफूज मकान कहां मिलेगा? वह सबकुछ कहना चाहती थी पर कह नहीं पाती थी.

पर आज की धमकी के बाद चुप रहना मुमकिन नहीं था. कविता की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. इतने पैसे जुटाना उस के बस में नहीं था. यह ठीक है कि रामप्रसाद ने मेहनत कर काफी पैसे कमा लिए हैं, पर इस लालची की मांग वे कब तक पूरी करते रहेंगे. फिर पैसे तो रामप्रसाद के खाते में हैं. वह एक दुकान लेने के जुगाड़ में है. जब रामप्रसाद को यह बात मालूम होगी तो वह उसे ही कुसूरवार ठहराएगा.

रामप्रसाद रोजाना दोपहर 2 बजे ठेला ले कर वापस आ जाता था और खाना खा कर एक घंटा सोता था. मुन्ने के साथ खेलता, फिर दोबारा 4 बजे ठेला ले कर निकलता और रात 9 बजे के बाद लौटता था.

‘‘आज खाना नहीं बनाया क्या?’’ रामप्रसाद की आवाज सुन कर कविता चौंक पड़ी. वह कुछ देर रामप्रसाद को उदास आंखों से देखती रही, फिर फफक कर रो पड़ी.

‘‘क्या हुआ? कोई बुरी खबर मिली है क्या? घर पर तो सब ठीक हैं न?’’ रामप्रसाद ने पूछा.

जवाब में कविता ने ह्वाट्सऐप पर आई तसवीर को दिखा दिया और सारी बात बता दी.

‘‘तुम ने मुझे बताया क्यों नहीं?’’ रामप्रसाद ने पूछा.

कविता हैरान थी कि रामप्रसाद गुस्सा न कर हमदर्दी की बातें कर रहा है. इस बात से उसे काफी राहत भी मिली. उस ने सारी बातें रामप्रसाद को बताईं कि किस तरह घनश्याम ने मुन्ने के सिर पर रिवौल्वर सटा दिया था और उसे भी मारने की बात कर रहा था.

रामप्रसाद कुछ देर सोचता रहा, फिर बोला, ‘‘इस में तुम्हारी गलती सिर्फ इतनी ही है कि तुम ने पहले ही दिन मुझे यह बात नहीं बताई. खैर, बेटे और पति की जान बचाने के लिए तुम ने ऐसा किया, पर इन की मांग के आगे झुकने का मतलब है जिंदगीभर इन की गुलामी करना. मैं अभी थाने में रिपोर्ट लिखवाता हूं.’’

रामप्रसाद उसी वक्त थाने जा कर रिपोर्ट लिखा आया. जैसे ही घनश्याम और उस की पत्नी को इस की भनक लगी वे घर बंद कर फरार हो गए.

कविता ने रात में रामप्रसाद से कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो. मुझ से बहुत बड़ी गलती हो गई.’’

‘‘माफी की कोई बात ही नहीं है. तुम ने जो कुछ किया अपने बच्चे और पति की जान बचाने के लिए किया. गलती बस यही कर दी तुम ने कि सही समय पर मुझे नहीं बताया. अगर पहले ही दिन मुझे बता दिया होता तो 2 साल तक तुम्हें यह दर्द न सहना पड़ता.’’

कविता को बड़ा फख्र हुआ अपने पति पर जो इन हालात में भी इतने सुलझे तरीके से बरताव कर रहा था. साथ ही उसे अपनी गलती का अफसोस भी हुआ कि पहले ही दिन उस ने यह बात अपने पति को क्यों नहीं बता दी. उस ने बेफिक्र हो कर अपने पति के सीने पर सिर रख दिया.

Crime Story: इश्क की पतंग

सौजन्या- मनोहर कहानियां

जनपद हरदोई के अतरौली थाना क्षेत्र के गांव बहोइया के रहने वाले रामसिंह की भरावन चौराहे पर

दरजी की दुकान थी. उस का विवाह गांव मांझगांव की रीता से हुआ था. बाद में उस से एक बेटा हुआ. लेकिन रीता राम सिंह से उम्र में बड़ी थी, इसी बात को ले कर उस का पत्नी से विवाद होता रहता था.

यह विवाद इतना बढ़ गया कि रीता अपने मायके चली गई, तो फिर लौट कर वापस नहीं आई. रामसिंह ने कई सालों तक उस के वापस आने की राह देखी, जब वह वापस नहीं आई तो राम सिंह ने करीब 12 साल पहले गांव बसंतापुर की रीना से विवाह कर लिया.

रीना रामसिंह से 10 साल छोटी थी. कालांतर में रीना 2 बच्चों की मां बनी. उस के बड़े बेटे का नाम सौरभ था और छोटे का गौरव. बाद में रीना आंगनवाड़ी में सहायिका के रूप में काम करने लगी.

जैसेजैसे उम्र बढ़ रही थी, रामसिंह का दमखम जवाब देने लगा था. दिन भर दुकान पर खटने के बाद वह घर आता तो रास्ते में दारू के ठेके से दारू पी कर घर लौटता था. घर आ कर खाना खाते ही सो जाता था. उसे बीवी की जरूरतों को पूरा करने की सुध ही नहीं रहती थी.

रामसिंह के मकान के बराबर में ही उस के चाचा श्रीपाल रहते थे. श्रीपाल के 2 बेटे थे सोनेलाल उर्फ भूरा और कमलेश. कमलेश लखनऊ में बीकौम की पढ़ाई कर रहा था. भूरा भरावन चौराहे पर ही एक दुकान पर सिलाई का काम करता था. वह अविवाहित था.

रामसिंह और भूरा की उम्र में काफी अंतर था, इस के बावजूद भी दोनों भाइयों में अच्छी पटती थी. एक दिन भूरा अपने साथियों के साथ तालाब में मछलियां पकड़ने गया. वह काफी मछलियां पकड़ कर लाया. उस ने सोचा क्यों न थोड़ी मछलियां रामसिंह भैया को दे आए. वह मछलियां ले कर रामसिंह के घर पहुंचा तो रीना सब्जी बनाने के लिए बैंगन काट रही थी.

थैला उस के आगे रखते हुए भूरा बोला, ‘‘छोड़ो भाभी, ये बैंगनसैंगन काटना. ये लो मस्त मछलियां, इन को साफ कर के पकाओ. आज रात मैं भी खाना यहीं खाऊंगा.’’

 

रीना ने एक नजर मछलियों पर डाली, फिर होंठों पर मुसकान सजाते हुए बोली, ‘‘भूरा शिकार फंसाने में तो तुम माहिर हो. गजब की मछलियां फंसाई हैं.’’

भूरा ने भी मजाकिया अंदाज में जवाब दिया, ‘‘ये तो छोटीछोटी मछलियां हैं, कोई बड़ी मछली फंसे तो बात बने.’’

‘‘देवरजी, उस के लिए दमदार कांटा होना चाहिए.’’ रीना ने तिरछी नजरों से कामुक वार किया.

‘‘कांटा तो दमदार है भाभी, पर कोई आजमाए तो.’’ भूरा की इस बात पर रीना लजा गई.

मछलियां दे कर भूरा बाहर निकला तो घर के बाहर बैठे राम सिंह ने पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘आज भाभी मछलियां बनाएंगी और मैं शाम को यहीं आ कर खाना खाऊंगा.’’ भूरा बोला.

‘‘फिर तो दारू मुझे ही मंगानी पड़ेगी. शाम को जल्दी आ जाना.’’ रामसिंह ने कहा.

शाम हुई तो रीना ने मछली और रोटियां तैयार कर के रख दीं. इस बीच रामसिंह और भूरा भी आ गए. रामसिंह और भूरा दारू पीते हुए गपशप करने लगे. कितना समय बीत गया, पता ही नहीं चला.

रामसिंह ने कुछ ज्यादा ही शराब पी ली. जब वह सुधबुध खोने लगा तो रीना ने कलाई पकड़ कर उसे उठाया और कमरे के अंदर ले जा कर पलंग पर लिटा दिया. पलंग पर ढेर होते ही राम सिंह खर्राटे भरने लगा.

भूरा ने माफी मांगते हुए कहा, ‘‘भाभी, भैया कुछ ज्यादा ही पी गए. गलती मेरी भी है, मुझे उन को रोकना चाहिए था. खैर आप भी खाना खा लो. मछलियां बहुत स्वादिष्ट बनाई हैं आप ने, मजा आ गया.’’ भूरा  ने रीना की प्रशंसा की.

रीना ने भरपूर नजरों से भूरा को देखा. भूरा का युवा चेहरा नशे की मस्ती में चमक रहा था. वह बोली, ‘‘तुम्हारे भैया को सचमुच ज्यादा चढ़ गई, पड़ते ही सो गए.’’

‘‘शराब चीज ही ऐसी है, भाभी. कितनी भी थकान हो, गम हो, परेशानी हो, आराम से नींद आ जाती है.’’

रीना ने ठंडी आह भरी, ‘‘हां दारू पी कर लोग थकान उतार लेते हैं. जहां असली नशा हो, वहां नजर भी नहीं डालते.’’

रीना के इन शब्दों में दर्द भी था और आमंत्रण भी. भूरा ने उस की आंखों में आंखें डालीं तो वहां उसे प्यास का समंदर ठाठें मारता दिखा.

वह रोमांटिक अंदाज में बोला, ‘‘सच कहती हो भाभी. अब खुद को ही देख लो. आप के पास क्या नहीं है. अपने आप में पूरा मयखाना हो. जिस के रोमरोम में नशा है और भैया घर के मयखाने न देख कर शराब में डूब जाते हैं.’’

‘‘ओह, तो मैं तुम्हें नशे की बोतल लगती हूं.’’ रीना एकदम से भूरा के करीब आ गई.

भूरा ने दुस्साहस किया. रीना की कलाई पकड़ कर उसे अपने पास खींच लिया और उस का हाथ अपने सीने पर रखते हुए बोला, ‘‘मेरे दिल से पूछ कर देख लो. यह बता देगा कि तुम कैसी हो. तुम हसीन हो, नशीली हो, मस्त हो.’’

 

3 बच्चों की मां, जो शरीर सुख से वंचित हो, कोई कुंवारा जवां मर्द उस के हुस्न की तारीफ करे, उस का हाथ थामे तो उस का बहकना स्वाभाविक है. रीना भी भूरा का अंदाज देख कर गदगद हो गई. भूरा ने उस का चेहरा थाम कर अपनी हथेलियों में लिया और अपनी गर्म सांसों से उस के चेहरे को नहलाना शुरू किया तो वह सुधबुध खोने लगी. धीरेधीरे यह खेल अपनी सीमाएं लांघता गया और उन के बीच अनैतिक संबंध बन गए.

कुंवारे भूरा ने रीना की व्याकुल देह को उस रात जो सुख दिया, उस से रीना उस की दीवानी हो गई. अब वह अकसर पति रामसिंह की नजरों से बच कर वासना का खेल खेलने लगी.

महीनों बीत गए. उन का खेल इसी तरह चलता रहा. भूरा रीना से ऐसे समय मिलने जाता, जब रामसिंह दुकान पर होता. एक दिन भूरा रीना को अपनी बांहों में समेटे पड़ा था. तभी अचानक रीना ने सास की झलक देखी तो उस ने भूरा को धक्का दे कर परे किया और हड़बड़ा कर उठ बैठी. भूरा पकड़े गए चोर की तरह सिर झुका कर वहां से चला गया. रीना भी सिर झुकाए धरती निहारने लगी.

सास राधा देवी का खून खौल रहा था. उस ने आंखें निकाल कर कहा, ‘‘कुलच्छिनी, तू इतनी नीच निकली. अरे, कुछ तो शरम की होती.’’

रीना ने सास के पैर पकड़ लिए, ‘‘अम्मा, इस में मेरा कोई कुसूर नहीं है. भूरा ही न जाने क्यों मेरे पीछे पड़ा रहता है.’’

‘‘पीछे पड़ा रहता है,’’ राधा अपना हाथ नचाते हुए बोली, ‘‘आज मैं ने तेरी चोरी पकड़ ली तो पाकसाफ होने का ढोंग कर रही है. मैं कल ही तेरे बाप को बुला कर तेरी करतूत बताती हूं.’’ सास ने धमकी दी.

रीना सास के पैरों में गिर पड़ी. माफी मांगते हुए गिड़गिड़ाई, ‘‘इस बार माफी दे दो अम्मा. आइंदा उस से बात करते भी देखा तो अपने हाथों से मेरा गला घोंट देना.’’

 

खानदान की इज्जत का सवाल था. इसलिए राधा देवी ने चेतावनी दे कर रीना को माफ कर दिया. बाद में उन्होंने यह बात अपने पति श्यामलाल को जरूर बता दी.

बहू की हरकत से श्यामलाल भी सन्न रह गए. उन्होंने राधा से कहा, ‘‘बात अपनी ही इज्जत की है, इसलिए ज्यादा तूल देंगे तो अपनी ही बदनामी होगी. बहू ने अगर गलती मान ली है और दोबारा गलती न करने का भरोसा दिया है तो एक बार उसे सुधरने का मौका देना ही ठीक है.’’

उस दिन से राधा सतर्क हो गई. सासससुर ने यह बात राम सिंह की जानकारी में नहीं आने दी थी. इस के बाद भूरा ने रीना के घर आनाजाना बंद कर दिया.

कुछ दिन दोनों शांत रहे, पर अंदर ही अंदर दोनों बेचैन थे. उन से यह दूरी बरदाश्त नहीं हो पा रही थी. आखिरकार एक दिन दोनों को मौका मिल ही गया. भूरा अपनी ताई राधा की नजरें बचा कर किसी तरह रीना के पास पहुंच गया और हसरतें पूरी कर लौट आया.

 

इस के बाद दोनों को लंबे समय तक मिलन का मौका नहीं मिला. राधा की नजरें हमेशा बहू की पहरेदारी करती रहतीं.

एक दिन शाम को दुकान से वापस आते समय राम सिंह को भूरा मिल गया. राम सिंह ने उस से पूछा, ‘‘भूरा, क्या बात है आजकल तुम मिलते ही नहीं, घर भी नहीं आते.’’

भूरा चौंका. इस का मतलब राधा ताई ने रामसिंह को कुछ नहीं बताया था. भूरा ने तुरंत बहाना ढूंढ लिया, ‘‘अरे भैया, बस ऐसे ही कुछ काम में फंसा हुआ था.’’

‘‘बहुत दिन हो गए हैं, बैठे हुए. कल शाम को आओ, फिर महफिल जमाते हैं.’’

भूरा ने हां तो कर दी, पर उसे डर था कि रामसिंह के साथ उस के घर में खातेपीते देख कर राधा कहीं तूफान न खड़ा कर दे. उस का साहस जवाब दे गया. उस ने राम सिंह के घर न जाने का निश्चय कर लिया. अगले दिन शाम को भूरा घर नहीं पहुंचा तो रामसिंह उसे खुद जा कर पकड़ लाया. इत्तफाक से राधा और श्यामलाल घर पर ही थे. दोनों को देख कर भूरा की नजरें झुक गईं. वे दोनों भूरा को देख कर कुढ़ रहे थे, पर बेटे का भूरा के प्रति अपनत्व देख कर उन्होंने उस वक्त कुछ कहना ठीक नहीं समझा. भूरा ऐसा जाहिर कर रहा था, जैसे उसे अपनी गलती का बहुत पछतावा हो. उस ने रीना को नजर उठा कर भी नहीं देखा.

 

उस दिन से भूरा के लिए फिर से रीना के घर जाने का रास्ता खुल गया. राधा चाह कर भी रामसिंह को रीना और भूरा के रिश्ते की बात नहीं बता सकी. उस ने इशारोंइशारों में बेटे को समझाना चाहा कि जवान लड़के का यों उस के घर में घुसे रहना ठीक नहीं है.

लेकिन रामसिंह भूरा पर कुछ ज्यादा ही विश्वास करता था. उस के इस विश्वास का फायदा उठाते हुए रीना और भूरा फिर से वासना के खेल में डूब गए. अब उन को राधा की भी परवाह नहीं थी.

लेकिन एक साल पहले राम सिंह ने दोनों को एक दिन खेत पर रंगरलियां मनाते हुए देख लिया. रामसिंह ने दोनों को जम कर मारापीटा. उस दिन के बाद से रीना और भूरा मोबाइल पर बात कर के अपने मन को समझाने लगे. जब मौका होता, रीना उसे बुला लेती. भूरा भी रामसिंह के सामने पड़ने से बचने लगा. इस के बाद तो भूरा अपनी दुकान से हट कर कहीं जाता तो रामसिंह उस का पीछा करता कि कहीं वह घर पर रीना से तो मिलने नहीं जा रहा.

करीब 8 महीने पहले रीना ने एक बेटी को जन्म दिया लेकिन वह अधिक दिन जीवित नहीं रह सकी. भूरा उसे अपनी बेटी मान रहा था. उस के मरने से वह बहुत दुखी हुआ.

 

17 जुलाई, 2020 की शाम 7 बजे रामसिंह अपनी दुकान से लौटा. वह शराब पी कर आया था. उस ने खाना खाया, रीना घर पर नहीं थी. उस की बहन शिल्पी आई हुई थी, पता चला कि रीना सुबह ही उसी के साथ मायके बसंतापुर चली गई थी. इसलिए रामसिंह खाना खा कर घर के बाहर चारपाई डाल कर सो गया. दूसरे दरवाजे पर उस के पिता श्यामलाल और रामसिंह के बच्चे सो रहे थे.

 

18 जुलाई की सुबह साढ़े 5 बजे गांव की महिलाएं बाहर निकलीं तो उन्होंने राम सिंह की चारपाई के नीचे खून पड़ा देखा तो दंग रह गईं. महिलाओं ने शोर मचाया तो रामसिंह के घर वाले व गांव के अन्य लोग वहां एकत्र हो गए. घर वालों ने रीना को खबर करने के बाद अतरौली थाने में घटना की सूचना दे दी.

सूचना पा कर इंसपेक्टर संतोष तिवारी पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए.

रामसिंह की लाश चारपाई पर पड़ी थी. उस के सिर, चेहरे व पेट पर गहरे घाव थे जो किसी तेज धारदार हथियार के मालूम पड़ रहे थे. घटनास्थल के आसपास का निरीक्षण किया गया तो वहां से करीब 70 मीटर की दूरी पर एक सूखे कुएं में खून से सनी एक कुल्हाड़ी पड़ी दिखी. इस पर इंसपेक्टर तिवारी ने फोरैंसिक टीम बुला ली. फोरैंसिक टीम ने कुएं से कुल्हाड़ी निकलवा कर उस के हत्थे से फिंगरप्रिंट उठाए. घटना की खबर पा कर रीना भी तुरंत घर वापस आ गई थी.

इंसपेक्टर संतोष तिवारी ने घटनास्थल का मुआयना करने के बाद रीना, श्यामलाल व घर के अन्य लोगों से पूछताछ की तो उन्हें आभास हो गया कि हत्या के पीछे किसी करीबी का ही हाथ है. घर वाले जानते हैं लेकिन बता नहीं रहे हैं.

आलाकत्ल कुल्हाड़ी का घटनास्थल के पास मिलना दर्शा रहा था कि घटना को अंजाम देने के बाद हत्यारे ने जल्दी में कुल्हाड़ी को कुएं में फेंका और घर जा कर सो गया. फिलहाल इंसपेक्टर तिवारी ने लाश पोस्टमार्टम के लिए मोर्चरी भेज दी.

रीना की तरफ से उन्होंने अज्ञात के खिलाफ भादंवि की धारा 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट आने के बाद इंसपेक्टर तिवारी ने घर वालों से सख्ती से पूछताछ की तो सारी हकीकत सामने आ गई. पूछताछ के बाद उन्होंने 19 जुलाई, 2020 को रीना और सोनेलाल को उन के घर से गिरफ्तार कर लिया और थाने ला कर उन से सख्ती से पूछताछ की तो दोनों ने अपना जुर्म स्वीकार कर लिया.

रामसिंह के बराबर निगरानी रखने से भूरा और रीना का मिलना मुश्किल होता जा रहा था. घटना से एक महीने पहले भूरा अपनी दुकान से कहीं काम से गया और वापस लौट कर आया तो राम सिंह को शक हुआ कि वह रीना से मिल कर आ रहा है. गुस्से से उबल रहे रामसिंह ने भूरा को कैंची से मारा. अपने आप को बचाने के लिए भूरा ने अपना दायां हाथ आगे किया तो से उस के हाथ में घाव हो गया और खून बहने लगा.

 

घर आ कर उस ने मोबाइल पर बात कर के रीना को खेत पर बुलाया और उसे अपना हाथ दिखा कर पूरी बात बताई. इस पर रीना ने कहा, ‘‘अब बहुत ज्यादा हो गया. अगर साथ रहना है तो इसे (रामसिंह को) रास्ते से हटाना ही पड़ेगा.’’

इस के बाद दोनों घर लौट गए.

अब भूरा राम सिंह से नजदीकियां बढ़ाने की कोशिश करने लगा, जिस से उसे विश्वास में ले कर उस की हत्या कर सके. लेकिन राम सिंह शराब पी कर अकसर भूरा को डांट देता था.

17 जुलाई, 2020 की सुबह रीना भूरा से मिली और कहा, ‘‘मैं आज मायके जा रही हूं, मौका देख कर आज इस का काम तमाम कर देना.’’ कह कर रीना चली गई.

रीना के जाने के बाद रामसिंह दुकान पर चला गया, उस के पीछे से भूरा भी अपनी दुकान चला गया. शाम को रामसिंह दुकान से सीधे शराब के ठेके पर गया और शराब पी कर घर चला गया. उस के जाने के 10 मिनट बाद भूरा भी शराब पी कर घर चला आया.

 

शाम 7 बजे खाना खाने के बाद राम सिंह सो गया. रात 10 बजे भूरा ने राम सिंह के बड़े बेटे बिन्नू से कुल्हाड़ी ले कर अपने पास रख ली. रात साढ़े 12 बजे के आसपास भूरा अपने घर से निकला. बीच रास्ते में गाय बंधी थी. किसी तरह की आवाज न हो, इस के लिए उस ने गाय की रस्सी खूंटे से खोल दी, जिस से गाय वहां से चली गई.

भूरा रामसिंह की चारपाई के पास पहुंचा और रामसिंह के सिर पर साथ लाई कुल्हाड़ी का एक तेज प्रहार कर दिया. रामसिंह के शरीर में कोई हरकत नहीं हुई. इस के बाद भूरा ने उस के ऊपर 4 वार किए. रामसिंह की मौत होने के बाद वह पास के एक सूखे कुएं के पास गया और कुल्हाड़ी कुएं में फेंक दी. फिर घर आ कर सो गया.

लेकिन भूरा और रीना का गुनाह कानून की नजर में आ ही गया. कागजी खानापूर्ति करने के बाद दोनों को सक्षम न्यायालय में पेश किया गया, वहां से दोनों को जेल भेज दिया गया.

समर स्पेशल: सेहत के लिए फायदेमंद है चटनी, ट्राय करें ये 7 रेसिपी

चटनियां हरी पत्तियों व विविध हैल्दी मसालों को मिला कर बनाई जाती हैं. फिर इन्हें पकाया भी नहीं जाता, इसलिए इन में प्रयोग मसाले, फल, सब्जियां, दाल आदि के खनिज व विटामिन पूरी तरह सुरक्षित रहते हैं.

टमाटर, आंवला, अलसी, लहसुन, तिल व इमली जैसी चीजों की चटनी ऐंटीऔक्सीडैंट का काम करती है. जहां धनिया, पुदीना, बैगन व तोरई की चटनी आयरन व क्लोरोफिल से भरपूर होती है, वहीं दालों व दही के साथ बनाई गई चटनी प्रोटीन से भरपूर होती है.

अपने स्वाद व मौसम के अनुसार विविध प्रकार चटनियां बना कर फ्रिज में रखें. किसीकिसी चटनी को साल भर तक भी सुरक्षित रखा जा सकता है जैसे आम, आंवला व मेथी की चटनी. लहसुन, अलसी, तिल व टमाटर की चटनी को भी 10-15 दिन फ्रिज में सुरक्षित रखा जा सकता है. दालों, धनिया, पुदीना, तोरई व बैगन आदि की चटनी को भी 5-6 दिन तक फ्रिज में सुरक्षित रखा जा सकता है.

पेश हैं, विभिन्न प्रकार की चटनियां बनाने की विधियां:

1. मेथीदाना की चटनी

सामग्री: 2 बड़े चम्मच मेथीदाना, 1/4 कप किशमिश, 1/2-1/2 छोटा चम्मच हलदी व लालमिर्च पाउडर, 1 छोटा चम्मच सौंफ पिसी, 1 छोटा चम्मच अमचूर पाउडर, 1/2 कप कद्दूकस किया गुड़, चुटकी भर हींग, 1 छोटा चम्मच तेल, नमक स्वादानुसार.

विधि: मेथी को धो कर साफ पानी में 2 घंटों के लिए भिगो दें. फिर स्टीम कर लें. पैन में तेल गरम कर हींग भून कर हलदी डालें. मैथी डाल कर थोड़ी देर भूनें. अब 1/2 कप पानी डाल शेष सामग्री डाल कर धीमी आंच पर गाढ़ा होने तक पकाएं.

लाभ: यह चटनी पित्त व वायु की वृद्धि रोकती है, वात रोग में भी लाभदायक है, पाचनशक्ति को सुचारु बनाती है. इस चटनी को 5-6 महीने तक रखा जा सकता है.

*

2. अदरक की चटनी

सामग्री: 50 ग्राम अदरक, 1 छोटा चम्मच इमली का पेस्ट, 1 बड़ा चम्मच गुड़, 1 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर, 1 छोटा चम्मच तेल, नमक स्वादानुसार.

विधि: अदरक को धो छील कर कद्दूकस करें. पैन में तेल गरम करें. अदरक लच्छा डाल कर थोड़ी देर भूनें फिर इमली का पेस्ट डाल कर भूनें. ठंडा कर के गुड़ छोड़ कर सारी सामग्री मिला कर पीस लें. अब गुड़ कद्दूकस कर के मिलाएं और थोड़ी देर पकाएं. ठंडा होने पर बोतल में रखें. इसे 3-4 महीने तक रखा जा सकता है.

लाभ: आमवात की शिकायत में लाभदायक है. गैस, जुकाम, दमा व खांसी आदि में भी इस का सेवन लाभदायक है.

3. लहसुन व अलसी की चटनी

सामग्री: 1/2 कप लहसुन की कलियां, 2 बड़े चम्मच अलसी, 8-10 सूखी लालमिर्चें, 1 बड़ा चम्मच नीबू का रस, नमक स्वादानुसार.

विधि: लहसुन छील कर सारी सामग्री मिला कर बारीक पीस लें. ब्रैड स्पै्रड की तरह इसे प्रयोग किया जा सकता है. इसे 10-15 दिन तक रखा जा सकता है.

लाभ: लहसुन ऐंटीऔक्सीडैंट है, अलसी ओमेगा ऐसिड से भरपूर है, जो ब्लडप्रैशर को नियंत्रित करती है. इस से कोलैस्ट्रौल कम होता है.

*

4. तिल व नारियल की चटनी

सामग्री: 1 कप भुने सफेद तिल, 1 कप कद्दूकस किया नारियल, 5-6 कलियां लहसुन, 3-4 हरीमिर्चें, 2 बड़े चम्मच धनियापत्ती कटी, 1 कप इमली का रस, नमक स्वादानुसार.

विधि: तिल, नारियल, लहसुन, हरीमिर्च व धनियापत्ती को मिला कर पीसें. नमक व इमली का रस मिलाएं. इसे 5-6 दिन रखा जा सकता है.

लाभ: तिल कैल्सियम से भरपूर है. नारियल में फास्टोरस, प्रोटीन कैल्सियम व आयरन जैसे खनिज विटामिन होते हैं.

5. दही की चटनी

सामग्री: 1 कप दही, 1 कप धनियापत्ती या पुदीनापत्ती, 5-6 हरीमिर्चें, 1/2 कप कद्दूकस किया नारियल, 2 बड़े चम्मच नीबू का रस, 2 बड़े चम्मच चीनी, नमक स्वादानुसार.

विधि: सारी सामग्री को मिक्सी में डाल कर बारीक पीस लें. फ्रिज में ठंडा कर के सर्व करें. इसे 5-6 दिन फ्रिज में रखा जा सकता है.

लाभ: दही, धनिया, व नारियल सभी विटामिन व खनिज से भरपूर होते हैं. गरमी के मौसम में यह चटनी विशेष ठंडक प्रदान करती है.

*

6. करीपत्ते की चटनी

सामग्री: 1/2-1/2 कप नारियल व करीपत्ता, 6 हरीमिर्चें, 1 बड़ा चम्मच इमली का पेस्ट, 1 बड़ा चम्मच उरद दाल, नमक स्वादानुसार.

विधि: उरद दाल को ड्राई रोस्ट करें. फिर सारी सामग्री मिला कर पीस लें. इसे 7-8 दिन फ्रिज में रखा जा सकता है.

लाभ: करीपत्ता औषधीय गुणों की खान है, यह कब्ज दूर करता है, बाल काले रखता है व पाचनतंत्र ठीक करता है.

*

7. चना दाल चटनी

सामग्री: 1/2 कप चने की दाल, 3 लालमिर्चें, चुटकी भर हींग, 5-6 करीपत्ते, 1 बड़ा चम्मच तेल, 1 बड़ा चम्मच नीबू का रस, 1/2 छोटा चम्मच राई, 2 बड़े चम्मच दही, नमक स्वादानुसार.

विधि: दाल को सूखा रोस्ट करें. फिर धो कर 1/2 घंटे के लिए पानी में भिगो दें. दाल, लालमिर्च को बारीक पीसें. पैन में तेल गरम कर राई, हींग भूनें. फिर कटे करीपत्ते डाल कर भूनें. पिसी दाल में यह तड़का डालें. दही व नमक मिलाएं.

इसे भी 4-5 दिन फ्रिज में रखा जा सकता है.

लाभ: यह प्रोटीन व फाइबर से भरपूर होती है.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें