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पड़ोसियों व परिचितों से कैसे डील करें?

पड़ोसी हो या फिर कोई अपनी जानपहचान वाला, यदि हम से कभी रूठ जाए या फिर गलत बोल दे तो दिल तो दुखेगा ही, क्योंकि जिन से हमारा वास्ता आएदिन पड़ता है उन का नाराज होना व उन के व्यवहार में परिवर्तन हम पर प्रभाव डालता है. ऐसे में आप भी उन जैसा व्यवहार करने लगेंगे तो बात और बिगड़ेगी ही, इसलिए उस समय संयम से काम लेते हुए स्थिति को संभालें व आगे उन से डील करने में हमारे द्वारा बताए टिप्स अपनाएं :

अगर पड़ोसी जल्दी नाराज हो जाए

कुछ लोगों की हैबिट होती है कि वे चाहे दूसरों के साथ कितना भी मजाक कर लें, लेकिन जब कोई उन के साथ मजाक करता है तो उन्हें बरदाश्त नहीं होता और वे चिढ़ कर बात करना ही छोड़ देते हैं. ऐसे में आप भी उन से मजाक करना छोड़ दें, सिर्फ काम की बात ही करें और जब वे आप से मजाक करें तो उन्हें स्पष्ट शब्दों में कह दें कि हमारे रिलेशन में मिठास बनी रहे इसलिए थोड़ा डिस्टैंस जरूरी है.

आप का यूज करें

अपनी चीज देने से झट से मना कर देना और आप की चीज पूरे हक से मांग कर ले जाना मतलबीपन कहलाता है. यदि एकदो बार आप का परिचित आप के साथ ऐसा करे तो कोई बात नहीं, लेकिन जब आप को इस बात का एहसास हो जाए कि वह सिर्फ आप को यूज कर रहा है तो आप भी उसे मना करना सीखें.

पैसों का लेनदेन न करें

पैसों के लेनदेन में रिश्ते बहुत जल्दी खराब होते हैं. अगर आप का पड़ोसी भी आप से आएदिन पैसे उधार ले कर चला जाता है और आप उस से पैसे मांगने में शर्म या झिझक महसूस करते हैं व अंदर ही अंदर आप घुटते रहते हैं तो इस से अच्छा है कि साफ मना कर दें. कह दें कि इस तरह की चीजें हमारे घर में पसंद नहीं की जातीं. इस के बाद आगे से वह कभी आप से पैसे मांगने की हिम्मत नहीं जुटा पाएगा.

हर जगह आप की बुराई करता हो

आप के मुंह पर इतना मीठा बोले जैसे आप से करीबी कोई हो ही न, लेकिन जब वही इंसान पीठ पीछे आप की बुराई करे तो दिल को चोट पहुंचती ही है. जब आप को दूसरे लोगों से पता चले कि वह व्यक्ति आप की बुराई करता फिरता है तो आप उन के सामने कोई प्रतिक्रिया न दें बल्कि अपने उस करीबी से डायरैक्ट बात करें. इस से उसे समझ आ जाएगा कि अगर उस ने अपना व्यवहार नहीं बदला तो बात बिगड़ सकती है.

फैंस ने की मां श्रीदेवी से Janhvi Kapoor की तुलना, एक्ट्रेस ने शेयर किया इमोशनल पोस्ट

Janhvi Kapoor : बॉलीवुड एक्ट्रेस जान्हवी कपूर और एक्टर वरुण धवन अपनी फिल्म ‘बवाल’ को लेकर खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं. नितेश तिवारी द्वारा निर्देशित इस फिल्म में लोगों को दोनों स्टार्स की एक्टिंग बहुत पसंद आई है. इसी कारण सोशल मीडिया पर भी लोग जान्हवी और वरुण की जमकर तारीफ कर रहे हैं. इतना ही नहीं, एक्ट्रेस जान्हवी कपूर (Janhvi Kapoor) के फैंस तो उनकी एक्टिंग की तुलना उनकी मां श्रीदेवी (sridevi) की फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ में उनकी एक्टिंग से भी कर रहे हैं.

फैंस ने की निशा-शशि की तुलना

हाल ही में एक्ट्रेस जान्हवी कपूर ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपने फैन क्लब में शेयर एक वीडियो साझा की है. इस वीडियो में फिल्म ‘बवाल’ से जान्हवी (Janhvi Kapoor) के किरदार निशा और फिल्म ‘इंग्लिश विंग्लिश’ से श्रीदेवी (sridevi) के किरदार शशि की झलकियां दिखाई गई हैं. दोनों की ज्यादातर झलकियां एक-दूसरे से बिल्कुल मैच हो रही हैं. इस वीडियो को देख एक्ट्रेस इमोशनल हो गई और उन्होंने इसके कमेंट में दिल को छू देने वाली बात लिखी.

वीडियो देख इमोशनल हो गई एक्ट्रेस

अभिनेत्री जान्हवी (Janhvi Kapoor) ने इस पोस्ट पर कमेंट करते हुए लिखा, ‘मैं झूठ नहीं बोल रही, इसने मुझे रुला दिया. आप सभी को ढेर सारा प्यार, मेरा बैक बनने के लिए. मुझे सपोर्ट और प्यार देने के लिए और इस कोशिश के लिए कि मेरी मां (sridevi) मुझ पर प्राउड करें.’ आपको बता दें कि सोशल मीडिया पर अब ये वीडियो वायरल हो रहा है और लोग जान्हवी की जमकर तारीफ कर रहे हैं.

Tamannaah Bhatia के फैन ने बैरिकेड तोड़ पकड़ा उनका हाथ, वायरल हुआ वीडियो

Tamannaah Bhatia Viral Video : एक्ट्रेस तमन्ना भाटिया इन दिनों अपनी पर्सनल लाइफ के साथ-साथ प्रोफेशनल लाइफ को लेकर भी सुर्खियों में बनी हुई हैं. वह लस्ट स्टोरीज 2 के अपने को-एक्टर विजय वर्मा को डेट कर रही है. वहीं हाल ही में उनका आइटम सॉन्ग कावाला भी रिलीज हुआ है जो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. उनके फैंस को उनका ये गाना काफी पसंद आया है.

इस बीच सोमवार को तमन्ना एक इवेंट में पहुंची, जहां उनके एक फैन (Tamannaah Bhatia Viral Video) ने उनसे मिलने के लिए सिक्योरिटी बैरिकेड को ही तोड़ दिया.

तमन्ना ने मामले को किया शांत

दरअसल, बीते दिन एक्ट्रेस केरल में आयोजित एक इवेंट में गई थी, जिसका एक वीडियो (Tamannaah Bhatia Viral Video) सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है. वीडियो में देखा जा सकता है कि जब तमन्ना इवेंट से जा रही होती है तो तभी एकदम से उनका एक फैन सिक्योरिटी का बैरिकेड तोड़कर एक्ट्रेस की तरफ भागकर आता है और झट से उनका हाथ पकड़ लेता है.

इस बीच सिक्योरिटी गार्ड उस लड़के को पीछे करने की कोशिश करते हैं, लेकिन वो तमन्ना से मिलने की जिद करता है. मामले को बढ़ते देख तमन्ना सिक्योरिटी गार्ड से कहती हैं कि उस लड़के को मिलने दो. फिर एक्ट्रेस उस फैन से हाथ मिलाती है और उसके साथ सेल्फी भी लेती हैं.

ट्रेडिशनल अवतार में नजर आई एक्ट्रेस

इस इवेंट (Tamannaah Bhatia Viral Video) में तमन्ना ट्रेडिशनल अवतार में नजर आई. उन्होंने पिंक और ग्रीन कलर की साड़ी पहन रखी थी, जिसमें वह बहुत सुंदर लग रही थी. इसके अलावा उन्होंने अपने लुक को टेंपल ज्वैलरी और लाइट मेकअप के साथ कंप्लीट किया था.

हिंदुत्व के निशाने पर मणिपुर

सत्ता में बने रहने के लिए हिंदू बनाम ईसाई खाई को युद्धक्षेत्र में बदल कर न केवल मणिपुर के ट्राइबल कुकी और नागाओं को एक गलत संदेश दिया गया है बल्कि मैतेई हिंदुओं ने आग जलाजला कर गरीब मणिपुर की रहीसही अर्थव्यवस्था को भी चौपट कर दिया है. अब स्थिति कंट्रोल से बाहर निकल गई है. यह कहना कि यहां तो चीनी, म्यांमारी, देशद्रोही, अलगाववादी सक्रिय हैं, बेमानी बात है और सच को छिपाने की साजिश है.

जहां मणिपुर के निवासी सारे देश में काम करने निकले हुए हैं और अब अपने परिवारों व अपनी सुरक्षा के प्रति भयभीत हैं वहीं दूसरों राज्यों से गए मणिपुर में काम कर रहे या पढ़ रहे लोग भी परेशान हैं. मणिपुर के विश्वविद्यालयों में बहुत से छात्र दूसरे राज्यों से हैं और अब वे या तो वहां फंसे हुए हैं या निकल आए तो गुजरते बुरे दिनों की वजह से कैरियर पर पड़ते असर से वे सब चिंतित हैं.

दिक्कत यह है कि सरकार की चेष्टा इस समस्या को हल करने की नहीं, बल्कि उस की वीभत्स खबरें छिपाने की है. यूरोपियन यूनियन की पार्लियामैंट और ब्रिटिश पार्लियामैंट में आरोप लगाया गया है कि 60 हजार लोगों के घर और 100 से ज्यादा चर्च जला दिए गए हैं. मणिपुरी जहां भी हैं, अब अपने परिवारों के प्रति चिंतित हैं और देशभर के लोगों के संबंधी जो मणिपुर में हैं वे भी चिंतित हैं.

अखंड भारत का सपना दिखाने वाले, जो भारत आज हाथ में है, उसे ही हाथों से फिसलने देने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे. धर्म की सत्ता के नाम यानी हिंदुत्व के नाम पर वहां भी किसी भी तरह का विवाद शुरू किया जा सकता है. गोवा के भारतीय जनता पार्टी के मुख्यमंत्री खुलेआम कह रहे हैं कि वे पुर्तगाली राज का नामोनिशान मिटा देना चाहते हैं, जिस का असली अर्थ है कि वे गोवा के ईसाई समुदाय को खदेड़ देना चाहते हैं या उन की पहचान मिटा देना चाहते है. गोवा में तेजी से मंदिर निर्माण किया जा रहा है. यही मणिपुर में करने का प्रयास है कि जो पूजापाठी नहीं वह डर कर रहे.

देशभर के मुसलमानों को तो कभी लव जिहाद, कभी गौरक्षा, कभी धर्मांतरण, कभी यूनिफौर्म सिविल कोड के नाम पर डराया जाता रहा है, अब छोटेछोटे गोवा, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड, अरुणाचल प्रदेश जैसे पौकेटों में भी दीवारें खड़ी की जा रही हैं ताकि दीवार के उस पार जो मारा जाए, जलाया जाए वह कहीं किसी को दिखे नहीं.

हमारे समाज में हमेशा दलितों, अछूतों, पिछड़ों के अलग टोले बने रहते थे जिन में वे जानवरों की तरह रहते थे. मणिपुर के पहाड़ी इलाकों में कोई फैल कर रहता रहे और वह ऊंची हिंदू जाति का न हो, यह आज बहुतों को स्वीकार नहीं है.

छोटी उम्र का पति, हर्ज क्या है?

महिलाओं को पीछे और नीचे रखे जाने की मानसिकता या साजिश अब घर, परिवार और समाज से विस्तार लेते कौर्पोरेट जगत में भी किस तरह आ गई है, इस का ब्योरा 17 मई को एक दिलचस्प सर्वे रिपोर्ट में उजागर  हुआ. औनलाइन कैरियर और नियुक्ति सलाहकार फर्म ‘मौन्स्टर’ के इस सर्वे में बताया गया है कि देश में महिलाओं को पुरुषों के मुकाबले 27 फीसदी कम तनख्वाह मिलती है. आईटी सैक्टर, जिस में तेजी से युवतियां शिक्षित हो कर आ रही हैं, में तो यह अंतर 34 फीसदी का है. इस रिपोर्ट में सिर्फ आंकड़े ही नहीं दिए गए हैं, बल्कि इस की वजहें भी बताई गई हैं.

नौकरियों में पुरुषों को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि नियोक्ता मानते और जानते हैं कि महिलाएं नौकरी के दौरान बच्चों की परवरिश के लिए छुट्टियां लेती हैं और दूसरे सामाजिक, सांस्कृति कारण भी उन्हें प्रभावित करते हैं. रिपोर्ट का संदेश साफ है कि महिलाएं तमाम दावों के बाद भी दोयम दरजे की हैं और यह लैंगिक भेदभाव हर जगह और हर क्षेत्र में है. ऐसे में महिला सशक्तीकरण और बराबरी के राग के माने क्या हैं, यह समझना मुश्किल नहीं रह गया है. इस की इकलौती वजह पुरुष प्रधान समाज और पुरुषोचित्त अहं है जो प्रदर्शित होने में कोई लिहाज नहीं करता.

रिपोर्ट जारी होने के ठीक दूसरे दिन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में परिवार परामर्श केंद्र के 2 अनुभवी सलाहकार आफताब अहमद और रीता तुली चुनिंदा मीडियाकर्मियों को अनौपचारिक बातचीत में उदाहरणों सहित बता रहे थे कि आजकल के युवा कम पढ़ीलिखी, घरेलू टाइप की पत्नी चाहने लगे हैं. इन में डाक्टर, इंजीनियर और पायलट भी शामिल हैं. ऐसा क्यों, इस की वजह भले ही ये दोनों यह बताएं कि एकल परिवार के बजाय संयुक्त परिवारों का रिवाज बनाए रखने के लिए शादी के इच्छुक उम्मीदवार ऐसा कर रहे हैं लेकिन बात की तह में जाएं तो एक पहलू यह भी समझ आता है कि ये युवा, बराबरी की या किसी भी लिहाज से बड़ी, पत्नी से थर्राने लगे हैं, बात फिर चाहे शिक्षा की हो, आमदनी की हो या उम्र या कद की हो. वे अपने से किसी भी लिहाज से बड़ी पत्नी नहीं चाहते क्योंकि वह उन से न दबती है और न ही ज्यादतियां बरदाश्त करती है.

क्या युवतियां या पत्नियां इस की परवा कर रही हैं, तो इस सवाल का जवाब भी बेहद साफ है कि नहीं कर रहीं क्योंकि वे अपनी अहमियत समझने लगी हैं और आत्मनिर्भर होने का आत्मविश्वास उन में नजर आने लगा है. इस के बाद भी सुखद बात यह है कि वे अपनी स्त्रियोचित जिम्मेदारियों से नहीं भागतीं पर स्वतंत्र निर्णय लेने लगी हैं. यही बदलते परिवारों व समाज का वह पहलू है जिसे ले कर पति व पुरुष खासे चिंतित और परेशान हैं कि अब पहले की तरह महिलाओं को कठपुतली की तरह नचाया नहीं जा सकता. उलटे, वे कई दफा ऐसे हैरतअंगेज फैसले ले कर सनसनी मचा देती हैं जिन से सारे षड्यंत्र कोने में रखे नजर आते हैं.

इस तरफ लोगों का ध्यान उस वक्त गया था जब हिंदी फिल्मों की 2 नायिकाओं ने अपने से कम उम्र युवकों से शादी की थी. बौलीवुड की 41 वर्षीया अभिनेत्री प्रीति जिंटा ने लास एंजलिस में वहीं के  निवासी व पेशे से फाइनैंशियल एनालिस्ट जौन गुडइनफ से 28 फरवरी को शादी कर ली. इस खबर में चौंका देने वाली इकलौती बात यह थी कि जौन प्रीति से उम्र में 10 साल छोटा है. इस शादी पर चर्चा, जो उम्र के अंतर को ले कर रही, खत्म हो पाती, इस के हफ्तेभर बाद ही दूसरी अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर ने भी प्रीति के नक्शेकदम पर चलते हुए, अपने से 9 साल छोटे युवक से शादी कर सब को हैरानी में डाल दिया. उर्मिला का पति मोहसिन अख्तर कश्मीरी व्यवसायी और शौकिया मौडल है.

फिल्म इंडस्ट्री और उद्योग जगत में ऐसी बेमेल शादियां होना हैरत की बात नहीं है लेकिन प्रीति और उर्मिला की शादियों से इस बात की चर्चा आम लोगों में हुई कि पति का उम्र में बड़ा होना अनिवार्यता या बाध्यता क्यों है. इस सवाल का तार्किक जवाब किसी के पास नहीं है, सिवा इस के कि ऐसा तो सदियों से होता चला रहा है जो हमारी संस्कृति और समाज की बनावट का हिस्सा व रिवाज या परंपरा है. हां, आम लोग यानी मध्यवर्गीयों में से ऐसे उदाहरण अपवादस्वरूप ही मिलते हैं जिन में पत्नी उम्र में पति से बड़ी हो. आमतौर पर पति की उम्र पत्नी से 4-5 साल या इस से कुछ ज्यादा होती है. इस परंपरा के पीछे कोई स्पष्ट धार्मिक कारण नहीं है, न ही कोई वैज्ञानिक तर्क है. ‘चूंकि ऐसा होता आ रहा है इसलिए हम ऐसा करते हैं या करेंगे’ की मानसिकता इस के पीछे है जिस के कई नुकसान भी हैं.

पर प्रीति जिंटा और उर्मिला मातोंडकर ने इस मानसिकता का पालन नहीं किया और ‘प्यार किया तो डरना क्या’ की तर्ज पर अपने से कम उम्र युवकों से शादी कर डाली. इन शादियों से ताल्लुक रखता एक सच यह भी है कि प्रचलित मान्यताओं और धारणाओं में बदलाव इन्हीं सैलिब्रिटीज के जरिए, भले ही धीरेधीरे आएं लेकिन आते जरूर हैं. बात चाहे फैशन की हो, खानपान की हो या फिर व्यक्तिगत व सामाजिक मामलों की, लोग अपने रोलमौडल्स का अनुसरण जरूर करते हैं.

उम्र की साजिश

पुरुष प्रधान समाज में नियम, कायदे, कानून भी पुरुष ही तय करते आए हैं. इस में हमेशा पुरुषों ने अपनी सहूलियत देखी है और दबदबा बनाए रखा है. महिलाओं को हर स्तर पर पीछे व नीचे रखा जाना, इस साजिश का ही हिस्सा है.

पति उम्र में बड़ा हो, इस रिवाज के पीछे एक सीधा सा मनोवैज्ञानिक कारण यह है कि पत्नी उम्र में छोटी होगी तो बगैर किसी चूंचपड़ के पति का सम्मान करती रहेगी. वैसे, महिलाओं को तरहतरह से पति की इज्जत करने को मजबूर किया जाता ही रहा है. समाज में बहुतकुछ आधुनिकता आ जाने के बाद भी पति को ही पत्नी का सहारा माना जाता है, पत्नी कभी पति का सहारा नहीं मानी गई. रिश्ता कोई भी हो, उस में छोटी उम्र वाले बड़ों का आदर करने को मजबूर किए जाते रहे हैं. यह हर्ज की बात नहीं लेकिन पति व पत्नी के मामले में साफ समझ आता है कि छोटी उम्र की पत्नी हमेशा पति का लिहाज करती रहे, इसलिए यह नियम बनाया गया.

जब भी किसी वैवाहिक रिश्ते की बात चलती है तो जाति के बाद जो चीज सब से पहले देखी जाती है वह उम्र है. अगर लड़की एक दिन भी बड़ी है तो बात आगे नहीं बढ़ पाती. जबकि लड़की अगर एकाध या 2 साल बड़ी हो तो कोई पहाड़ नहीं टूट पड़ता है लेकिन यह पुरुषोचित अहम ही है जो बराबरी की या बड़ी लड़की को पत्नी के रूप में स्वीकार करने में हिचकिचाता है.

हर लिहाज से हो छोटी

पति को देवता या भगवान का दरजा दिलाने के पीछे पुरुषों की मंशा यही रही है कि न केवल उम्र में बल्कि पत्नी हर बात में छोटी हो जिस से वह हीनता महसूस करते हुए उस की ज्यादतियां, मनमानी और अत्याचार सहन करती रहे. उम्र के बाद शिक्षा पर गौर किया जाता है कि कहीं पत्नी, पति से ज्यादा पढ़ीलिखी तो नहीं, अगर है तो रिश्ता नकारने की एक बड़ी वजह आज भी यह है. अब हालांकि मानसिकता थोड़ी बदली है लेकिन वह बजाय शिक्षा के आमदनी के इर्दगिर्द लिपटी नजर आती है. ज्यादा शिक्षित लड़की रोब झाड़ेगी, इस डर के चलते

90 के दशक तक लोग ज्यादा पढ़ीलिखी पत्नी या बहू लाने से कतराते थे. यह एक अहम वजह है जिस के चलते महिलाएं सदियों तक पारिवारिक और सामाजिक तौर पर पिछड़ी रहीं. पहले लोग लड़कियों को हाईस्कूल और उस के बाद मुश्किल से ग्रेजुएशन तक पढ़ाते थे लेकिन जब जागरूकता आई तो कुछ इस तरह आई कि अब तमाम लोग लड़कियों को ज्यादा से ज्यादा पढ़ाना चाहते हैं जिस से वे आत्मनिर्भर बनी रहें और दांपत्य में दरार आए तो जीवनयापन के लिए पति या दूसरे किसी पुरुष की मुहताज न रहें.

इस बदलाव के बाद भी रिश्ता तय करते वक्त यह बात प्रमुखता से देखी जाती है कि पत्नी, पति से बहुत ज्यादा शिक्षित न हो. अब अधिकांश युवा प्राइवेट जौब में हैं, लिहाजा सरकारी नौकरियों का वर्गीकरण खत्म सा हो चला है, पर उस की जगह पगार ने ले ली है. हालांकि यह भी आजकल दांपत्य विवादों की बड़ी वजह है जब पत्नी यह कहती नजर आती है कि मैं भी कमाती हूं. यहां तक तो पति एक बार बरदाश्त कर जाता है लेकिन जब पत्नी यह धौंस दे कि मैं तुम से ज्यादा कमाती हूं तो बात बिगड़ने लगती है. पतिपत्नी विवाद की वजह कुछ भी हो, पत्नी ही क्यों गुनहगार ठहराई जाती है, इस का जवाब ढूंढ़ने के लिए कहीं जाने या किसी से पूछने की जरूरत नहीं क्योंकि उस की हैसियत दोयम दरजे की पहले से ही तय है.

उम्र और शिक्षा के बाद तीसरी बड़ी चीज कद है जो पत्नियों का कम ही होता है. रिश्ते की तीसरी शर्त यह है कि पत्नी कद में छोटी हो यानी छोटे होने और हीनता का चौतरफा एहसास उसे कराने का कोई मौका नहीं छोड़ा गया है. जब एक परफैक्ट कपल की कल्पना की जाती है तो पत्नी की लंबाई पति के कंधों पर आ कर थम जाती है.

खुद से लंबी पत्नी शायद ही कोई पति चाहे क्योंकि वह नहीं चाहता कि पत्नी किसी भी लिहाज से उस से ऊंची दिखे. इस चलन के पीछे भी कोई सटीक तर्क या धार्मिक मान्यता नहीं है जिन से समाज संचालित होता है. यानी ज्यादा उम्र वाली, ज्यादा शिक्षित और बड़े कद वाली पत्नी अपवादस्वरूप ही मिलती है. इन में से भी अधिकांश ने प्रेमविवाह किया होता है. लेकिन समाज उन्हें आसानी से स्वीकार नहीं करता. उलटे, उन का मजाक बना कर इतना उपेक्षित और परेशान कर देता है कि वे लगभग अलगथलग पड़ जाते हैं.

भोपाल की एक 45 वर्षीया प्रौफेसर ने 3 साल पहले अपने से उम्र में 11 साल छोटे पुरुष से विवाह किया था तो घरपरिवार और समाज में उन का काफी विरोध हुआ था लेकिन उन्होंने भी प्रीति जिंटा और उर्मिला मातोंडकर की तरह किन्हीं बातों या आलोचना की परवा नहीं की थी. उन का दांपत्य हालांकि ठीकठाक चल रहा है लेकिन उन की मानें तो वे सोसाइटी से कट सी गई हैं लेकिन संतुष्ट और सुखी हैं और अब धीरेधीरे सामाजिक सक्रियता बढ़ रही है. उम्र में छोटे पति के साथ कहीं आनेजाने में शुरू में हिचक होती थी जो अब खत्म हो रही है. इन प्रोफैसर के मुताबिक, इस में कोई असमान्यता या असहजता उन्हें महसूस नहीं होती. पति को भी शिकायत नहीं क्योंकि वे उन का पूरा सम्मान करती हैं.

संभ्रांत परिवार की ये प्रोफैसर मानती हैं कि उन्होंने एक अलग फैसला लिया था जिस पर हर कोई चौंका था लेकिन प्यार तो प्यार है. जातपांत, ऊंचनीच कुछ नहीं देखता, हो गया तो हो गया.

इन्हें है परेशानी

प्रेम विवाह कैसे भी हों, पंडों की दुकानदारी खराब करते हैं जिन का कारोबार जन्मपत्री मिलाना और शादी से जुड़ी दूसरी रस्मों से चलता है. इसलिए वे अपने यजमानों यानी ग्राहकों को मशवरा देते रहते हैं कि शादी अपनी जातिबिरादरी और बराबरी वालों मे करना ही ठीक रहता है.

जाहिर है जो प्रेमविवाह करेगा या करता है उसे इन पंडोंपुजारियों की जरूरत नहीं रहती. इस कारोबार में एक ग्राहक के गिरफ्त या हाथ से जाने का मतलब होता है आने वाले कल में कइयों का जाना और ऐसा हो भी रहा है. नई पीढ़ी धड़ल्ले से लवमैरिज कर रही हैं जिस से घाटा इन पंडोंपुरोहितों का हो रहा है. लिहाजा, ये प्रेमविवाह करने वालों को हतोत्साहित करने का कोई मौका नहीं चूकते.

दूसरी परेशानी कट्टरवादियों और परंपरावादियों को होती है जो शादियों के नियमों को ले कर धार्मिक पूर्वाग्रह के शिकार हैं और बेमेल शादियों पर कटाक्ष करते रहते हैं. ये लोग चाहते हैं कि सामाजिक माहौल धर्ममय बना रहे, इस में स्वार्थ इन के भी होते हैं. जहां भी जब भी कोई धार्मिक परंपरा टूटती है तो ये खीझ उठते हैं कि देखो, धर्म का हृस हो रहा है जो परिवार, समाज और देश के लिए ठीक नहीं और पनप रही संस्कारहीनता हमें गर्त की ओर ढकेल रही है.

लेकिन बदलाव अशुभ कैसे हैं, इस बाबत इन के पास कोई दलील नहीं होती. ये लकीर के फकीर चाहते हैं कि जो धर्म ने तय कर रखा है उस का पालन होते रहना चाहिए. यही वे लोग हैं जो पुरुष प्रधान समाज की अवधारणा के हिमायती हैं और मानते हैं कि पति पत्नी से श्रेष्ठ है क्योंकि धर्म ने उसे देवता और भगवान का दरजा दिया है.

औरतों को शोषक और लगभग गुलाम बनाए रखने के नियम अब आम लोगों के गले की हड्डी बनते जा रहे हैं जिन्हें वे न निगल पा रहे हैं न ही उगल पा रहे हैं. ऐसे में उर्मिला और प्रीति की कम उम्र पति से शादियां सुखद बदलाव की आहट हैं. ये कइयों की रोलमौडल हैं.

सशक्तीकरण और स्वतंत्रता के हर एक के अपने माने हैं. कुछ लोग मानते हैं कि औरत को अब बराबरी का दरजा मिल चुका है क्योंकि उसे अब गाउन और नाइटी पहनने से नहीं रोका जा रहा. वह कार चला रही है और अपनी मरजी से घूमफिर रही है वगैरावगैरा.

दरअसल, ये वे लोग हैं जो नारी स्वतंत्रता और अधिकारों का और ज्यादा विस्तार नहीं चाहते, इसलिए पतिपत्नी की उम्र, कदकाठी, आमदनी और शिक्षा के कमज्यादा होने के मुद्दे पर खामोश रहते हैं जिस से इस से हो रहे नुकसानों पर किसी का ध्यान न जाए.

ये हैं नुकसान

भोपाल की एक गृहिणी वंदना दवे की मानें तो नुकसान यह है कि अब विवाहयोग्य लड़कियों को आसानी से लड़के नहीं मिल रहे. वजह, उन का ज्यादा शिक्षित होना और शादी के पहले कैरियर बनाने की चाहत है. लड़कियां अब पुरुषों पर विश्वास न करते हुए आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं. 25 साल की होतेहोते पढ़ाई पूरी करने के बाद वे जौब करती हैं और एक बार नौकरी में आ जाएं तो उसे छोड़ पाना उन के लिए मुश्किल हो जाता है. ऐसे में जब लड़कियों की उम्र 30 साल के लगभग होने को आती है तो बात बिगड़ने लगती है. अगर बाकी सब बातें ठीकठाक हों और मैच कर रही हों पर लड़का उम्र में लड़की से एक महीना भी छोटा हो तो अभिभावक रिश्ता करने में हिचकिचाते हैं क्योंकि उन में परंपराओं का विरोध करने की हिम्मत नहीं होती, हालांकि वे जानते हैं कि इस से कोई अनिष्ट नहीं होने वाला और न ही भावी युगल का कोई अहित होगा.

लेकिन बात वही है, वंदना कहती हैं कि चूंकि नियम चला आ रहा है इसलिए चलने दिया जाए, हम ही क्यों किसी रस्म को तोड़ें. इस से लड़कियों की उम्र और बढ़ती जाती है, फिर मन मार कर ऐरेगैरे लड़के से शादी करना पड़ती है जिस की कीमत लड़की को शादी के बाद चुकानी पड़ती है.

पत्नी अगर 1-2 साल बड़ी होगी तो कौन सी आफत आ जाएगी, इस सवाल का जवाब किसी के पास नहीं, फिर भले ही उस की उम्र 35-40 की होने के बाद उस का हाथ किसी तलाकशुदा या विधुर के हाथ में देना पड़े. यह उस की भावनाओं के साथ ज्यादती नहीं तो क्या है?

अच्छी बात यह है कि आजकल की युवतियों की पैनी नजर इन हालात पर है. भोपाल के एक बैंक में कार्यरत 28 वर्षीय रिया कहती हैं कि इन झंझटों से नजात पाने का इकलौता तरीका लवमैरिज है. और अब वे पहले से ज्यादा हो भी रही हैं इन का ज्यादा विरोध अभिभावक भी नहीं कर पा रहे क्योंकि लड़कियां आत्मनिर्भर हो रही हैं और अपने फैसले खुद लेने लगी हैं. शादी एक नाजुक और संवेदनशील मुद्दा है, इसलिए उन्हें इस की इजाजत मिलने लगी है पर सलाह यह मिलती है कि छोटी जाति में मत करना और भावी पति अगर हर लिहाज से बड़ा हो तो हम मंजूरी दे देंगे. इस के बाद भी न मानो तो आगे निभाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है. यानी आ रहे बदलाव भी शर्तों से लदे हैं इसलिए बहुत ज्यादा सुखद या युवाओं का पक्ष लेते नहीं हैं जिस में उन्हें नसीहतें अपने जोखिम पर शादी करने की दी जाती है.

इन बदलावों के बाद भी तकरीबन 70 फीसदी शादियां अरैंज्ड ही हो रही हैं यानी मांबाप तय कर रहे हैं जिन की बड़ी परेशानी लड़की की बढ़ती उम्र है. क्योंकि लड़की पहले की तरह 18-20 की उम्र में शादी करने को तैयार नहीं और अब मांबाप भी ऐसा नहीं चाहते पर यह जरूर चाहते हैं कि लड़का उम्र, शिक्षा और कद में बड़ा हो.

जाहिर है यह पुरुषों के बुने सामाजिक जाल में फंसे रहने जैसी बात है जिस में पत्नी छोटेपन के एहसास तले दबी, छटपटाती रहती है और ज्यादतियों का विरोध नहीं कर पाती. ऐसे में प्रीति जिंटा और उर्मिला मातोंडकर ने एक रास्ता दिखा दिया है जिस में न उम्र की सीमा है न धर्म, जाति का बंधन है. उलटे, हिम्मत है और मियां बीवी दोनों राजी हैं तो जिंदगी अपनी मरजी से जीने का मैसेज भी है.

बाद की स्थिति

भोपाल की ही एक व्यववसायी रितु कालरा का मानना है कि औरत जल्द बूढ़ी होती है लेकिन यह  कल की बात है जब उस पर 4-6 बच्चे पैदा करने की अनिवार्यता और जिम्मेदारी लाद दी जाती थी. अब स्थिति विपरीत है, औरतें स्वस्थ और सौंदर्य के प्रति सजग हैं, इसलिए मर्दों की बराबरी से बूढ़ी होती हैं और जो पति से पहले बूढ़ी दिखती हैं, इस की जिम्मेदार वे खुद हैं जो फिटनैस पर ध्यान नहीं देतीं.

40 पार की उर्मिला मातोंडकर और प्रीति जिंटा 20-25 साल बाद अपने पतियों के सामने कैसे दिखेंगी, यह सवाल भी कम दिलचस्प नहीं. इन की तुलना अगर थोड़े पुराने फिल्मी जोड़ों से की जाए तो अंदाजा यह लगाया जा सकता है कि ये पतियों के बराबर ही बूढ़ी दिखेंगी.

धर्मेंद्र, जितेंद्र और अमिताभ बच्चन जैसे अभिनेता अपनी पत्नियों के मुकाबले ज्यादा बूढ़े और झुर्रियों भरे चेहरे वाले दिखने लगे हैं. इन के बाद की पीढ़ी के अभिनेता अभिषेक बच्चन, शाहरुख खान, अक्षय कुमार और सन्नी देओल भी अपनी पत्नियों के मुकाबले, चाहे वे एक्ट्रैस हों या न हों, उम्रदराज दिखते हैं तो उर्मिला और प्रीति का फैसला सटीक है जिस से लगता है कि कम उम्र का पति हर्ज की बात किसी भी लिहाज से नहीं.

साफ दिख रहा है कि एक उम्र के बाद महिलाओं को सामाजिक सुरक्षा के लिए पति की जरूरत महसूस होने लगती है और बड़ी उम्र के चलते मां बनने की इच्छा भी कम होने लगती है. ऐसे में वे ऐसा पति चाहती हैं जो उन की इच्छाओं का सम्मान करे और लगता ऐसा है कि उम्र और दूसरे मामलों में छोटा पति जल्द समझौता कर लेता है.

महावर की लीला

पुराने समय से भारतीय ललनाओं के सौंदर्य उपादानों में जो सोलह शृंगार प्रचलित हैं उन में महावर का खास महत्त्व है. कहावत है कि महावर लगे कोमल चरणों से सुंदरियां जब अशोक के वृक्ष पर चरणप्रहार करती थीं तब उस पर कलियां खिलने से वसंत का आगमन होता था. सौंदर्य उपादानों में महत्त्वपूर्ण ‘महावर’ नई पीढ़ी के लिए सिंधु घाटी की सभ्यता के समान अजायबघर की वस्तु बन गई है.

सादा जीवन और उच्च विचार भारतीय संस्कृति की परंपरा समझी जाती थी परंतु आधुनिकता की अंधी दौड़ एवं पाश्चात्य संस्कृति के प्रति अगाध प्रेम में वह परिभाषा कब बदल गई, मैं नहीं जानती.

आज ब्यूटीपार्लर में किया गया सौंदर्योपचार, नुची हुई तराशी भौंहें, वस्त्रों से मेल खाती अधरों की लिपिस्टिक व नेलपालिश, कटे लहराते बाल, जीन्सटौप या अन्य आधुनिक वस्त्राभूषण, नाभिकटिदर्शना साड़ी एवं पीठप्रदर्शना या सर्वांग प्रदर्शना ब्लाउज, वस्त्रों से मेल खाते पर्स एवं ऊंची एड़ी की चप्पलें, फर्राटे से अंगरेजी में वार्त्तालाप या बन कर बोलते हुए मातृभाषा हिंदी का टांगतोड़ प्रदर्शन अब सुशिक्षित, संभ्रांत स्त्री की परिभाषा बन गया है.

भारतीय वेशभूषा बिंदी, चूड़ी, लंबी चोटी, जूड़ा, महावर, बिछुआ एवं सलीके से साड़ी पहनना आदि, जिन्हें कभी संभ्रांत घर की गृहिणी की गरिमा माना जाता था, अब अपनी ऊंचाई से गिर कर अशिक्षा एवं निम्न वर्ग तथा निम्न स्तर का पर्याय समझे जाने लगे हैं. ऐसी भारतीय वेशभूषा में सज्जित युवतियां ‘बहिनजी’ कहला कर उपहास की पात्र बन जाती हैं. उस पर हिंदी में बातचीत करना, यह तो आधुनिक समाज में ठेठ देहातीपन की निशानी है.

मुझे इस बदलाव का प्रत्यक्ष अनुभव तब हुआ जब नवंबर में दिल्ली में ‘एस्कोर्ट्स हार्ट सेंटर’ में एंजियोग्राफी के लिए भरती होना पड़ा. उस के पहले ही मैं दीवाली मनाने अपनी सास के पास गांव मानीकोठी गई थी. गांव की परंपरा के अनुसार त्योहार पर जब सब सुहागिनें महावर लगवा रही थीं तो मुझे भी बुलाया गया. मन ही मन मैं आशंकित थी कि अस्पताल जाने के पहले महावर लगवाऊं या नहीं.

अपनी सास की इच्छा का आदर करने के लिए मैं ने महावर लगवा लिया. एंजियोग्राफी से पहले अस्पताल का ही पायजामा एवं गाउन पहनना पड़ा. मैं ने बाल खोल कर केवल चोटी बना ली एवं मेकअप करने की आवश्यकता नहीं समझी. जब मैं मेज पर लेटी थी तो वहां का डाक्टर मेरे पैरों में लगे महावर को देख कर चौंक पड़ा. पैरों के समीप पहुंच कर उस ने रंग को छू कर देखा. उंगलियों से कुरेद कर बोला, ‘‘यह क्या लगा है?’’

‘‘महावर है,’’ मैं ने कहा.

‘‘क्यों लगाया है?’’ उस ने प्रश्न किया.

‘‘मेरी सास गांव में रहती हैं. दीवाली पर उन के आग्रह पर मैं ने लगवाया था.’’

पैरों में लगा महावर, सर में चोटी, मेकअपविहीन चेहरा और हिंदी में मेरा बातचीत करना…अब क्या कहूं, उक्त डाक्टर को मैं नितांत अशिक्षित गंवार महिला प्रतीत हुई. क्षणभर में ही उस का मेरे प्रति व्यवहार बदल गया.

‘‘माई, कहां से आई हो?’’

मैं ने चौंक कर इधरउधर देखा… यह संबोधन मेरे लिए ही था.

‘‘माई, सीधी लेटी रहो. तुम कहां से आई हो?’’ मेरे पैरों को उंगली से कुरेदते हुए उस ने दोबारा प्रश्न किया.

अनमने स्वर से मैं ने उत्तर दिया, ‘‘लखनऊ से.’’

‘‘माई, लखनऊ तो गांव नहीं है,’’ वह पुन: बोला.

‘‘जी हां, लखनऊ गांव नहीं है, पर मेरी सास गांव में रहती हैं,’’ मैं ने डाक्टर को बताया.

कहना न होगा कि पैरों में महावर लगाना, बाल कटे न रखना, मेकअप न करना और मातृभाषा के प्रति प्रेम के कारण हिंदी में वार्त्तालाप करना उस दिन उस अंगरेजीपसंद डाक्टर के सामने मुझे अशिक्षित एवं ठेठ गंवार महिला की श्रेणी में पेश कर गया, जिस का दुष्परिणाम यह हुआ कि डाक्टर ने मुझे इतना जाहिल, गंवार मान लिया कि मुझे मेरी रिपोर्ट बताने के योग्य भी नहीं समझा.

कुछ साल पहले भी मुझे एक बार एस्कोर्ट्स में ही एंजियोग्राफी करानी पड़ी थी पर तब के वातावरण एवं व्यवहार में आज से धरतीआकाश का अंतर था.

अगले दिन जब मैं अपनी रिपोर्ट लेने गई तो कायदे से साड़ी पहने और लिपिस्टिक आदि से सजी हुई थी. डाक्टर साहब व्यस्त थे, अत: मैं पास की मेज पर रखा अंगरेजी का अखबार पढ़ने लगी. जब डाक्टर ने मुझे बुलाने के लिए मेरी ओर दृष्टि उठाई तो मेरे हाथ में अखबार देख कर उन का चौंकना मेरी नजरों से छिपा नहीं रहा. उन्होंने ध्यान से मेरी ओर देखा और बोले, ‘‘यस, प्लीज.’’

‘‘मेरी एंजियोग्राफी कल हुई थी, मेरी रिपोर्ट अभी तक नहीं मिली है,’’ मैं ने भी अंगरेजी में उन से प्रश्न किया.

आश्वस्त होने के लिए मेरे पेपर्स को डाक्टर ने एक बार फिर ध्यान से देखा और प्रश्न किया, ‘‘क्या नाम है आप का?’’

‘‘नीरजा द्विवेदी,’’ उत्तर देने पर उन्होंने पुन: प्रश्न किया, ‘‘आप कहां से आई हैं?’’

डाक्टर ने इस बार ‘माई’ का संबोधन इस्तेमाल न करते हुए मुझे ‘मैडम’ कहते हुए न सिर्फ रिपोर्ट मुझे सौंप दी बल्कि निकटता बढ़ाते हुए रिपोर्ट की बारीकियां बड़े मनोयोग से समझाईं.

अब मैं इसी ऊहापोह में हूं कि ‘महावर’ से ‘माई’ कहलाने में भलाई है या लिपिस्टिक और नेलपालिश से ‘मैडम’ कहलाने में.

मेरी आंखों के इर्दगिर्द गहरे और काले घेरे हैं, इनसे छुटकारा पाने के उपायों के बारे में बताइएं?

सवाल

मैं 32 वर्षीय महिला हूं. मेरी आंखों के इर्दगिर्द गहरे काले घेरे हैं. मेरी बड़ी बहन और मां को भी यह परेशानी है. ये घेरे किस कारण बनते हैं और इन से कैसे छुटकारा पाया जा सकता है?

जवाब

आंखों के आसपास की त्वचा का रंग मूलरूप से त्वचा को रंग प्रदान करने वाली मिलेनोसाइट्स कोशिकाओं के ऊपर निर्भर करता है. मिलेनोसाइट के कम रंगद्रव्य बनाने पर त्वचा का रंग साफ रहता है और अधिक सक्रिय होने पर गहरा हो जाता है. यह गुण कुछ हद तक आनुवंशिक होता है, जिस पर किसी का वश नहीं चलता.

लेकिन शरीर में खून की कमी हो जाए या कोई पूरी नींद न ले पाए तब भी आंखों के इर्दगिर्द काले घेरे बन जाते हैं. इस के अलावा जिन लोगों में नेत्र कोठर की गहराई अधिक होती है, उन में भी यह दोष दिखाई दे सकता है.

इन घेरों को हलका करने के लिए आप कुछ छोटे छोटे उपाय आजमा सकती हैं. पहली बात तो धूप में कम से कम निकलें ताकि मिलेनोसाइट्स कम से कम सक्रिय हों. दूसरी यह कि चेहरे पर हाईड्रोक्वीनोन क्रीम और विटामिन ई युक्त क्रीम लगाएं. इन से भी त्वचा के रंग में सुधार दिखेगा. तीसरी, यह कि रोजाना 7-8 घंटे की नींद जरूर लें. धीरेधीरे त्वचा का रंग निखरता जाएगा.

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नार्मल डिलीवरी चाहती हैं तो अपनाएं ये 5 टिप्स

एक लड़की का जीवन सीढ़ियों जैसा होता है वो एक ही जिंदगी में कई जिंदगियां जीती है पहले वो लड़की होती है अपने माता पिता की दुलारी. फिर शादी कर के ससुराल में जाती है तो वह बहु और बीवी कहलाती है लेकिन एक और पड़ाव आता है और वो है मां बनने का. इसमें वो औरत से मां तक का सफर तय करती है. यह उसके सामने सबसे बड़ा ख़ुशी का पल होता है. हालाकि यह 9  महीने का समय उसके लिये काफी कष्टदायी होता है लेकिन इसके बाद की खुशी के लिये वो शुक्रियाआदा करती है .और अगर उसका बच्चा नार्मल डिलीवरी से हो जाये तो यह उसके लिये और भी खुशी की बात होती है क्योंकि नार्मल डिलीवरी से वो खुद का और अपने बच्चे का ध्यान भी अच्छे से रख पाती है और न ही डिलीवरी के बाद कोई शारारिक कष्ट होता है.

लेकिन आज कल की हमारी दिनचर्या काफी भागदौड़ भरी होती है. ऐसे  बिजी वक्त में खुद को स्वस्थ्य रख पाना महिलाओं के लिए मुश्किल हो गया है और पहले की तरह नौर्मल डिलीवरी करना नामुमकिन… क्योंकि पूरी प्रेग्नेंसी में महिलाओं को सभी काम करने पड़ते हैं, जिस वजह से वो फिजिकली और मेंटली नौर्मल डिलीवरी नहीं कर पाती. जानते हैं कुछ ऐसे टिप्स जिनको अपना कर नार्मल डिलीवरी की उम्मीद की जा सकती है.

तनाव से रहे दूर

सबसे पहले आप को अपनी लाइफ से तनाव को बिल्कुल दूर करना होगा. क्योंकि तनाव की वजह से प्रेगनेंसी में जटिलताएं आ सकती हैं. जिसका सबसे अधिक प्रभाव आप पर और   अंदर पल रहे बच्चे पर पड़ेगा. तो कोशिश करें कि आप परेशानी में भी खुश रहें. ऐसे में आप किताबें पढ़ें, दूसरों से बात करें और हमेशा अच्छा सोचें और जो काम आपको करना पसंद है उस काम में लगे.

व्यायाम करें

प्रेग्नेंसी के दौरान व्यायाम बहुत ज़रूरी है. क्योंकि इस दौरान शरीर के भारी वजन से आपको जौइंट्स में दर्द, अकड़न जैसी तकलीफ हो सकती है. इससे बचने के लिए किसी एक्सपर्ट के साथ व्यायाम करें. इनसे आपकी पेल्विक मसल्स और थाइज स्ट्रौंग बनेंगी, जिससे आपको लेबर पेन में दर्द कम होगा. ध्यान रहे बिना एक्सपर्ट के कोई भी एक्सरसाइज ना करें.

खान पान का रखें ध्यान

प्रेगनेंसी के वक्त खानपान का ध्यान अवश्य रखें क्योंकि आप ही का खाया हुआ बच्चे तक पहुंचता है यदि आप ज्यादा खाते हैं तो वो भी बच्चे के लिये समस्या बन सकता है और भूखा रहना भी.

पानी अधिक पिए

पानी हर किसी के लिए ज़रूरी है, लेकिन प्रेग्नेंसी के दौरान ये और भी ज़रूरी हो जाता है. इससे आपको लेबर के दौरान होने वाले दर्द को सहने की शक्ति मिलेगी. इसीलिए सिर्फ पानी ही नहीं बल्कि ताजे फलों का जूस और एनर्जी ड्रिंक्स भी लेती रहें.

ज्यादा देर खड़े न रहे

अगर आप काम कर रहे हैं तो ज्यादा देर तक खड़े न रहे इससे आपके पैरो में दर्द होगा और बच्चे का प्रेशर भी नीचे की तरफ बढ़ेगा इसलिए थोड़ी थोड़ी देर में आराम करती रहें.

बलिदान: जसवीर ने अपनी मां के लिए खत क्यों लिखा ?

कंट्रोल रूम में छाई खामोशी वातावरण को अधिक गंभीर बना रही थी. सामने की दीवार पर एक नक्शा टंगा था. नक्शे के पास ही विंग कमांडर पंकज गंभीर मुद्रा में खड़े थे. सामने कुरसियों पर स्क्वैड्रन लीडर जसवीर, राजेश, दीपक और अमर बैठे थे. सभी की नजरें नक्शे पर टिकी थीं.

विंग कमांडर ने बड़ी सावधानी से धीरे से कहा, ‘‘तुम लोगों के पिछले रिकौर्ड से प्रभावित हो कर ही मैं ने आज तुम्हें बुलाया है. आज एक ऐसा कार्य तुम्हें सौंप रहा हूं जो हर हाल में पूरा होना चाहिए. इस काम को तुम में से कौन करेगा, यह निर्णय तुम्हें खुद लेना होगा. गुप्तचर विभाग के अनुसार, आज शाम 7 बजे सरगोधा एयरफील्ड पर एक गुप्त मीटिंग है, जिस में दुश्मन के कई सीनियर अफसर भाग ले रहे हैं. यदि उन की यह मंत्रणा सफलतापूर्वक पूरी हो गई तो हमें एक भयानक संकट का सामना करना पड़ेगा. इस से बचने का एक ही उपाय है, उस स्थान को मीटिंग शुरू होते ही ध्वस्त कर दिया जाए. 7 बजे मीटिंग शुरू होनी है इसलिए सवा 7 बजे वहां पर बमबार्डमैंट हो जानी चाहिए.’’

इस काम के लिए जसवीर तैयार हुआ. सभी औपचारिकताएं पूरी करने के बाद और्डर मिलते ही उसे फ्लाइट लेनी थी. फिर सरगोधा हवाईअड्डे पर पहुंच कर उसे उस स्थान का पता लगाना था जहां मीटिंग थी. फिर बमबार्डमैंट.

उस के मस्तिष्क में कई सवाल कौंध रहे थे. वह देख रहा था, लगातार चलती हुई ऐंटी एयरक्राफ्ट तोपें और उड़ते हुए सेबर जैट. हां, इन्हीं के बीच तो उसे वह स्थान ढूंढ़ना है. ध्यान करते ही वह रोमांचित हो उठता और एक विशेष प्रकार की चमक उस की आंखों में आ जाती. उस ने दृढ़ संकल्प कर लिया था. वह अपने कार्य को पूरा कर के ही रहेगा.

एक बार फिर उस ने अपने प्लेन की जांच की. तत्पश्चात वह कैंटीन में एक कोने में जा कर बैठ गया और अपनी मां को खत लिखने लगा.

‘मां, जब तक यह पत्र तुम्हारे हाथों में पहुंचेगा, तुम्हारा बेटा उस सफर को तय कर चुका होगा जिस की तुम वर्षों से बाट जोह रही थी. जब से मैं एयरफोर्स में चुना गया, तुम मेरे विवाह के लिए लालायित थीं. तुम्हें आश्चर्य होगा, तुम्हारा बेटा आज खुद ही विवाह के लिए राजी हो गया है. मां, तुम्हारी होने वाली बहू के बारे में कई लोगों से सुना था पर विश्वास नहीं होता था कि वह इतनी गुणवान व रूपवती होगी. आज जब विश्वास हुआ है तो मैं उस के प्यार में इतना दीवाना हो गया हूं कि तुम से आज्ञा लिए बिना ही उस से विवाह कर रहा हूं. लेकिन मुझे आशा है, तुम्हें अपने पुत्र की पसंद पर पूर्ण विश्वास होगा. मैं तुम्हारी बहू को पाने के लिए इतना लालायित हो उठा हूं कि एक मिनट भी नहीं गंवाना चाहता. कहीं ऐसा न हो कि मौके का लाभ उठा कर उसे कोई और ब्याह कर ले जाए और मैं तरसती निगाहों से देखता रह जाऊं.

‘तुम्हारा बेटा,

‘जसवीर.’

लिफाफे में पत्र बंद करतेकरते एक बार जसवीर की उंगलियां कांप गईं. उस की आंखों के सामने पुरानी स्मृतियां उभरउभर कर आती और लुप्त हो जाती थीं. मां की सौम्य मूर्ति उभर रही थी. घर का खिलखिलाता वातावरण मस्तिष्क में कहीं कचोट रहा था. गली के कोने वाली पम्मी याद आ रही थी. जब वह दौड़ती हुई सीधी उस के कमरे में चली आती तो उसे कितना अच्छा लगता था. न मालूम क्यों, वह चाहता था कि पम्मी उस के पास बैठी रहे, ढेर सारी बातें करती रहे. छुट्टियों में वह जब भी घर जाता, पम्मी पहले से ही उस की प्रतीक्षा कर रही होती. जब वह अपनी फ्लाइट की कहानी सुनाता तो वह सहम जाती. तब पम्मी उसे बहुत अच्छी लगती और उस का दिल चाहता कि वह एक बार, सिर्फ एक बार पम्मी को… तभी कहीं दूर से टनटन की ध्वनि गूंज पड़ी. उसे लगा, जैसे उस के कर्तव्य की हुंकार कहीं दूर घाटियों में गूंज रही है. उस का मस्तिष्क शिथिल हो गया, वह सबकुछ भूल गया था. बस, याद रह गया था सरगोधा एयरफील्ड.

फिर उस के होंठों पर अजब मुसकान उभर आई. सहसा मुंह से निकला, ‘‘कमीनो… दिल्ली हड़पने के ख्वाब देखते हो…’’

अंधेरा घिरने लगा था. निशा शायद अकेले आने में घबराती थी इसलिए साथ सितारे ले कर आई थी. जसवीर प्लेन पर कदम रखतेरखते निशा के इस भय पर मुसकरा पड़ा. वह रहम खा कर रह गया उस पर. माइक्रोफोन कानों पर घरघराने लगा और पहिए हवाई पट्टी पर फिसलने लगे. प्लेन अपनी रफ्तार से अपनी मंजिल की ओर उड़ चला.

जसवीर के मन में विचार कौंध रहे थे. वह अर्जुन नहीं है जो अपनी सारी शक्ति एक पक्षी की आंख पर केंद्रित कर सकेगा. एक क्षण को भी वह अपनी संपूर्ण दृष्टि और सारी शक्ति उस स्थान को लोकेट करने में केंद्रित कर दे तो उड़ते सेबर और चलती गनें उस के अस्तित्व को ही शून्य में मिला देंगी. तो क्या उस का तीर आंख फोड़ने में असमर्थ रहेगा? एक क्षण के लिए घबराहट उस के चेहरे पर उभर आई और पसीने की बूदें माथे पर चमकने लगीं. नहीं, वह अर्जुन नहीं है.

उस ने एक डाइव मारी और उड़ान नीचेनीचे करने लगा. पीछे छूट रही भारतीय सीमा को उस ने ललचाई नजरों से देखा. उस की आंखें भर आईं. सहसा उसे याद आया, किसी जमाने में अंगरेजों से लोहा लेने वाले भारतीय क्रांतिकारी गाया करते थे, ‘शहीदों की चिताओं पर…’

पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश करते ही वह पूरी तरह से चौकन्ना हो गया. फ्लाइट करते समय पायलट के लिए स्वयं को दुश्मन के राडार की पकड़ से बचाए रखना एक बहुत कठिन परीक्षा होती है. राडार से बचने का एक ही उपाय है, फ्लाइट जितनी संभव हो सके उतनी नीचे की जाए. सामने पहाड़ी है, जरा सी असावधानी हुई नहीं कि प्लेन टुकड़ेटुकड़े हो कर दुश्मन को मारने के बजाय पायलट की ही जिंदगी ले बैठेगा… जसवीर यही सब अपने मन में समेटे उड़ान भर रहा था.

सरगोधा आने वाला था. कहींकहीं जानीपहचानी वस्तुएं दिखाई पड़ रही थीं. उस ने नक्शे का बहुत गहरा अध्ययन किया था. एकाएक आकाश में लाल गोले उभरने लगे. वह चौकन्ना हो गया. उस ने घड़ी देखी, वह सरगोधा एयरफील्ड पर था. गोले लगातार बरस रहे थे, नीचे से ऊपर की ओर दाएंबाएं, ऊपरनीचे.

किसी तरह जसवीर अपना प्लेन बचा रहा था और प्लेन को बचाने के साथसाथ वह अपने लक्ष्य को भी ढूंढ़ रहा था. उस की नजरें मीटिंग वाले स्थान को लोकेट करने में व्यस्त थीं, लेकिन अभी तक ऐसा कोई चिह्न दिखाई नहीं पड़ा था, जिस से उसे कुछ सहारा मिल सकता. अचानक गोलों की रफ्तार तेज हो गई. वे वृत्ताकार समूह में प्लेन को घेर कर तबाह करने की कोशिश में थे.

फिर गोलों की गति धीमी पड़ने लगी और एकाएक खामोशी छा गई. गोले बरसने बंद हो गए. शायद प्लेन उन की परिधि से बाहर था. अभी वह कुछ समझ पाता कि गोलों की खामोशी का कारण उसे तुरंत पता चल गया. कई सेबर उस के चारों ओर मक्खियों के समान भिनभिना रहे थे. सभी उस की ओर झपट्टा मारने की तैयारी में थे.

अभी तक मीटिंग वाले स्थान का पता नहीं चल सका था और वह बुरी तरह घिर चुका था. ऐसी हालत में बमबार्डमैंट करना उचित रहेगा? एक के बाद एक कई प्रश्न उस की आंखों में तैर रहे थे. तभी प्लेन को बचाने के लिए उस ने एक डाइव मारी और फिर एकदम मोड़ कर प्लेन को ऊपर को ले गया. बहुत खूबी से वह सेबरों की मार से बच रहा था.

अचानक उसे उस ऊंची इमारत का बुर्ज नजर आ गया जिस के ठीक पीछे मीटिंग चल रही थी. इतने सेबरों से घिरा होने के बावजूद उस के चेहरे पर खुशी झलक आई.

तभी उसे सुनाई पड़ा, ‘‘तुम चारों ओर से घेर लिए गए हो, बच नहीं सकते. बेहतरी इसी में है कि तुम समर्पण कर दो और यहीं उतर जाओ.’’

उस ने कुछ सोचा और फिर दृढ़प्रतिज्ञा करते हुए उत्तर दिया, ‘‘मैं स्वयं को समर्पित करता हूं. उतरने का रास्ता दिखाइए.’’

उसे संकेत प्राप्त होने लगे. 2 जैट उस के आगे, 2 पीछे, 2 दाएं, 2 बाएं चल रहे थे. वे बहुत धीमी गति से उतर रहे थे. जसवीर का मस्तिष्क बहुत तेजी से कुछ सोच रहा था. तभी उस के प्लेन के पिछले भाग से धुआं उठने लगा. जसवीर ने अपने ही प्लेन में आग लगा ली. सेबरचालक निश्चिंत हो गए कि उन का निशाना ठीक बैठा है और दुश्मन चाहे भी तो अब भाग नहीं सकता. उधर जसवीर खुश था कि उस का दांव बहुत ठीक बैठा है.

धुएं की कालिमा बढ़ रही थी. उस का प्लेन एक क्षण को डोला और यह क्या? सामने वाले दोनों सेबरों का संतुलन बिगड़ चुका था. वे तेजी से पृथ्वी की ओर जा रहे थे… जसवीर ने प्लेन घुमाया, दाएं वाले सेबर पर वार किया और तेजी से पीछे वाले सेबर पर निशाना साधा. दोनों जैट शोलों में बदल गए थे.

जसवीर का प्लेन लपटों में खेल रहा था और उस में भयंकर तेजी और फुरती आ गई थी. उस ने प्लेन में रखे सभी बमों के पिन निकाल लिए थे. किसी भी क्षण कोई भी बम फूट सकता था और उसे शून्यता में बिखेर सकता था. पांचों जैट उस पर लगातार वार कर रहे थे और वह बखूबी वार बचा रहा था. इस के बावजूद उस के चेहरे पर गहरी स्थिरता और दृढ़ता थी.

एकाएक उस के प्लेन ने गति पकड़ी और एक भयानक धमाका आकाश में चीत्कार कर गया. सारा आकाश धुएं से भर गया था. दूरदूर तक कहीं कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था. अगर कुछ दिखाई दे रहा था तो बुर्ज वाली उस ऊंची इमारत का वह पिछला भाग, जो आग में जल रहा था.

संपूर्ण सरगोधा गहरी खामोशी के आंचल में सिमट गया. संध्या की कालिमा और गहरी हो गई थी और पराजित दृष्टियां उस पर कुछ ढूंढ़ रही थीं. जहां से वह आया था.

आरएमएस का सार्टर पत्रों को छांटछांट निर्दिष्ट खानों में रखता हुआ गुनगुना रहा था, ‘‘मरते हुए शहीदों ने सबक यह सिखाया, जीना उन्हें क्या आए, मरना जिन्हें न आया.’’

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वृद्धों में एलर्जी की समस्या

एलर्जी होने का खतरा सिर्फ छोटे बच्चों या फिर किशोरावस्था में ही होने का नहीं होता बल्कि वृद्धावस्था, खासकर 70 वर्ष से ऊपर की अवस्था, में भी पहली बार एलर्जी की शिकायत हो सकती है. अमेरिकन कालेज औफ  एलर्जी, अस्थमा ऐंड इम्यूनोलौजी के एक अध्ययन में कहा गया है कि करीब 30 प्रतिशत वयस्कों, विशेषकर वृद्धों, में पहली बार नाक की एलर्जी होने का खतरा रहता है.

ऐसा होने के पीछे कई कारण हैं और एलर्जी वयस्कों में भी उतनी ही सामान्य है जितनी कि शिशुओं और बड़े होते बच्चों में. विशेषज्ञों की राय है कि ऐसा शारीरिक सक्रियता की कमी, कमजोर रोग प्रतिरोधकता, किसी बीमारी, मनोवैज्ञानिक वजह जैसे कि जीवनसाथी या किसी परिजन की मृत्यु, तनाव और चिंता आदि के चलते हो सकता है.

जाहिर है बुजुर्गों को ऐसे शारीरिक व मानसिक लक्षणों का ज्यादा सामना करना पड़ता है. यही वजह है कि वृद्धों को एलर्जी की शिकायत अपेक्षाकृत ज्यादा होती है. कई बार यह भी देखा गया है कि जैसेजैसे आयु बढ़ती है शरीर में भोजन की पहचान करने की क्षमता क्षीण होने लगती है. ऐसे में, शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली सुपाच्य भोजन और विषाक्त भोजन में भेद नहीं कर पाती और अच्छे भोजन के पहुंचते ही खतरे का संकेत दे देती है, जिस में एलर्जी जैसी प्रतिक्रिया भी एक है.

वृद्धों में एलर्जी की पहचान

बच्चों की तरह ही वयस्कों और वृद्धों में भी एलर्जी के सामान्य लक्षण नजर आते हैं जैसे कि नाक से द्रव बहने लगना, आंखों में जलन होना, छींकना और आंखें लाल हो जाना आदि. कुछ लोगों में मलत्याग के समय जलन, पेटदर्द, उलटी की इच्छा, चक्कर आना, सिरदर्द, सांस लेने में दिक्कत और नाक के जाम होने जैसे लक्षण भी हो सकते हैं.

भोजन संबंधी एलर्जी : वृद्धों में सामान्यतया कुछ खास खाद्य पदार्थों, जैसे शैलफिश, पोल्ट्री अंडों और मूंगफली आदि से एलर्जी पाई जाती है. ऐसा इसलिए, क्योंकि वृद्धावस्था में शरीर कुछ विशेष भोज्य पदार्थों में भेद नहीं कर पाता और श्वेत रक्त कणिकाओं को एकत्रित होने का संकेत दे बैठता है जिस से एलर्जी की समस्या उत्पन्न हो जाती है.

नासाशोथ : इस अवस्था में वृद्धों में लगातार नाक बहने लगती है. ऐसा श्वसन प्रणाली के ऊपरी हिस्से में संक्रमण होने, जुकाम होने, साइनस होने, किसी रसायन की मौजूदगी या हवा में तैरते प्रदूषकों के कारण हो सकता है. मौसम बदलने पर यह समस्या बढ़ जाती है.

अस्थमा : अकसर देखा गया है कि अधिक उम्र वाले लोग प्रदूषण, धूल और परागकणों के प्रति थोड़े संवेदनशील होते हैं. इन पदार्थों के संपर्क में आने पर इन में से कई को अस्थमा और सांस की ऐसी कुछ तकलीफें होने लगती हैं.

ताप एलर्जी : कम प्रतिरोधक क्षमता और कमजोर शरीर के चलते वृद्धों में ताप से जुड़ी समस्याएं पैदा हो जाती हैं, जैसे कि हीट स्ट्रोक या आघात. वृद्धों को जल्दी थकान, डिहाइड्रेशन या शरीर में पानी की कमी हो जाती है जो एलर्जी को जन्म दे देती है. उम्र बढ़ने के साथसाथ संवेदनशीलता अत्यधिक बढ़ जाती है और ऐसे लोगों को त्वचा की एलर्जी हो जाती है.

एलर्जी से करें मुकाबला

अकसर ऐसा देखने में आया है कि बच्चों को कोई तकलीफ  होने पर तत्काल चिकित्सा उपलब्ध करा दी जाती है, जबकि वृद्धों के मामले में अकसर मर्ज पकड़ में नहीं आता और उन का गलत इलाज होने लगता है. कभीकभी तो चिकित्सक भी उन की एलर्जी के लक्षणों की अनदेखी कर जाते हैं. इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि वृद्धों को एलर्जी से निबटना सिखाया जाए और उन के लक्षणों को देख कर जल्दी से जल्दी उन्हें चिकित्सा उपलब्ध कराई जाए. उन के चिकित्सा परीक्षण नियमित तौर पर होते रहने चाहिए, खासतौर पर एलर्जी का कोई लक्षण सामने आने पर. उन की एलर्जी को समझने के लिए स्क्रैच टैस्ट या एक रक्त परीक्षण सहायक हो सकता है.

यह भी अत्यावश्यक है कि वातावरण और घर की साफसफाई रखी जाए. घर में परागकणों या प्रदूषकों के प्रवेश के रास्ते बंद किए जाएं. एलर्जी कारक तत्त्वों को घर के वातावरण से पूरी तरह से हटा देना एक अच्छा उपाय हो सकता है. हाइपोएलर्जिक मैटीरियल और फर्नीचर का प्रयोग कर के भी वृद्धजनों की एलर्जी की समस्या को कम किया जा सकता है.

उम्र बढ़ने के साथ किस तरह की एलर्जी परेशान करेगी, यह पता लगाना तो मुश्किल है लेकिन बुजुर्गों को एलर्जी से बचाने के लिए एलर्जीकारक तत्त्वों को काबू में रख ही सकते हैं. एलर्जी पैदा करने वाले तत्त्वों की जैसे ही पहचान होती जाए, उन्हें वृद्धों से दूर रखा जाए. छोटे से छोटे लक्षण पर गौर कर के वृद्धों को एलर्जी की समस्या से बचाया जा सकता है.

(लेखिका पोर्टिया मैडिकल में एसोसिएट डायरैक्टर हैं.)

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