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हिंदू मुस्लिम, हिंदू मुस्लिम

महाराष्ट्र के कई शहरों में काफी तनावपूर्ण दंगे हुए हैं और उत्तराखंड में मुसलिमों के घर व दुकान छोड़ कर जाने के इश्तिहार लगाए गए हैं. जैसा कि होता है, पुलिस दोनों राज्यों में अगर किसी को गिरफ्तार करेगी तो उन मुसलिमों को करेगी जो भाजपाइयों की अलगाव की बातों को फैलाने का विरोध कर रहे हैं.

हिंदू मुस्लिम कार्ड देश में अच्छा काम कर रहा है और सरकार ओडिशा के बालासार की रेल दुर्घटना हो, महंगाई हो, बेरोजारी हो, मणिपुर के हिंसक दंगे हो, साफ हिंदूहिंदूहिंदू कवच से बच निकलती है. इस साल होने वाले कुछ राज्य के चुनावों और 2024 के आम चुनावों में हिंदू कवच भाजपा को बचा ले जाएगा, इस का नरेंद्र मोदी को पूरा भरोसा है.

हिंदू मुस्लिम विवाद अपनेआप नहीं हो रहा है. यह खड़ा किया जा रहा है. पिछले 30 सालों से भारत का मुसलिम चुप रह कर जीना सीख गया है जैसे आम हिंदू ब्रिटिशकाल में जीना सीख गया था. गांधी जैसे सिरफिरों ने छिटपुट की थी पर वह इतनी गंभीर नहीं थी कि अंगरेजों को भारत छोड़ कर भागना पड़े. अंगरेजों ने भारत को छोड़ा, इस के बहुत से कारण थे, जिन में एक अमेरिकी दबाव था तो दूसरा, नई तकनीक व विज्ञान, जिस की वजह से भारतीय को गुलाम रखना निरर्थक हो रहा था.

हिंदू मुस्लिम विवाद खड़े कर के मुसलमानों को अगर भयभीत किया भी जा सकता है तो भी हिंदुओं को कोई लाभ नहीं होगा, इस में कोई संदेह नहीं है. मुसलमान आमतौर पर गरीब हैं और छोटेछोटे काम करते हैं. वे जमीनें कब की बेच चुके हैं और दड़बेनुमा मकानों की कालोनियों में दुबके रहते हैं. वे दलितों और पिछड़ों की तरह न नौकरियों में हिस्सा मांग रहे हैं और न ही शिक्षा संस्थानों में. वे तो नई मसजिदों को भी नहीं मांग रहे. इस के उलट, हिंदू मुस्लिम विवाद हिंदुओं को महंगा पड़ रहा है. हिंदू ट्रोल आर्मी हिंदुओं में यह फैला रही है कि एक हिंदू डरता है कि मुसलिम महल्ले में वह काम करे या न करे. मुसलिम दोस्त नहीं बन सकते. हिंदूमुस्लिम प्रेम को लवजिहाद का नाम दे दिया जाता है.

यही नहीं, हिंदू मुस्लिम विवाद को भडक़ाने की तैयारी में हिंदू गुट जम कर हिंदुओं से चंदा जमा कराते हैं. सडक़ों पर बैरियर लगा कर चंदा जमा करना आम है. हिंदुओं को मुसलमानों का भय दिखा कर कामकाज से ध्यान बंटाया जा रहा है. उन्हें और जोरशोर से कीर्तन, भजन गाने को कहा जा रहा है, हिंदू जुलूस निकाले जा रहे हैं और जानबूझ कर मसजिदों के सामने से गुजारे जाते हैं ताकि कुछ पथराव हो और चंदा बरसे.

हिंदू मुस्लिम विवाद में नोट व वोट का चंदा है. हिंदू मंदिर भी शानदार बन रहे हैं और हिंदू धर्म के ठेकेदारों के भवन भी एयरकंडीशंड बन रहे हैं. नई संसद हो या पार्टी का नया कार्यालय सब स्टेट औफ आर्ट हैं जिन में ऊंची जातियों के हिंदुओं के युवा मौजमस्ती करते नजर आ जाएंगे. आम जीवन को डिस्टर्ब करने वाले उत्तराखंड, महाराष्ट्र, मणिपुर के दंगे हिंदूहिंदू की देन हैं और इन की कीमत दूसरे धर्म वाले कम हिंदू ज्यादा दे रहे है. कर्मठ, योग्यता, जनसंख्या में बहुत ज्यादा पूरी हिंदू कौम मुसलमानों और ईसाइयों से भयभीत रहे, यह असल में शर्म की बात है. इस पर गर्व न करें कि हम ने पिछले 1,000 साल का बदला ले लिया. 1,000 साल जिन्होंने राज किया वे बहुत गर्व से जिए और मरे. हिंदू मरमर कर जी रहे हैं, अपनी मेहनत की कमाई नकली मौत के संदेशवाहकों को दे रहे हैं.

देश छोड़ते युवा

जहां भारत के समृद्ध होने और विश्वगुरु बन जाने के गुणगान रोज टीवी और इंटरनैट पर गाए जा रहे हैं वहीं भारत से भाग जाने वालों की गिनती बढ़ भी रही है. अमेरिका अपने देश में काम करने वाले इच्छुकों के एच-1वी वीजा देता है जिसे पाने वाला अमेरिका में नौकरी कर सकता है. जब अपने देश में अंधकार हो और बेरोजगारी बढ़ रही हो तो ही लोग अपने देश से दूसरे देश में चाकरी के लिए भागते हैं जैसे बिहारी या उडिय़ा अपने राज्यों से भाग कर दिल्ली, मुंबई आते हैं.

अमेरिका केवल पढ़ेलिखे, योग्य युवाओं को अपने देश में आने का नयोता देता है जो आम अमेरिकी से कम वेतन पर काम कर सकें. अमेरिकी जानते हैं कि चाहे कल को ये लोग अमेरिकी नागरिक बन जाएं पर तब तक इन की दूसरी पीढ़ी पैदा हो चुकी होगी और ये अपने मूल जन्मस्थली को भूल चुके होंगे. विविधता में विश्वास रखने वाला अमेरिका भारतीयों को पूरा अवसर भी देता है और धर्म व व्यवहार की आजादी भी देता है.

वर्ष 2022 में अमेरिका में आने के इच्छुक आवेदकों को छांट कर जब एप्रूव किया गया तो पता चला कि 72.6 फीसदी आवेदक भारत के हैं. चीनी, जो पहले कभी नंबर-1 पर हुआ करते थे, केवल 17.5 फीसदी रह गए हैं.

भारत का मीडिया इसे अपनी सफलता मान रहा है पर यह भारत की राजनीति की पोलपट्टी खोलता है. हमारे 3,20,791 उच्चशिक्षित मेधावी युवा भारत छोड़ कर जा रहे हैं और हम खुशी के गीत गा रहे हैं! हर उस घर में जहां से एक युवा एच-1 वी वीजा पा चुका है, उल्लास का वातावरण है, अपने घर की मेधावी संतान की सफलता का गुणगान किया जा रहा है. आईएएस में सफलता से भी ज्यादा खुशी एच-1 वी पाने की देखी जा रही है, आखिर ऐसा क्यों?

दरअसल, ये युवा भारत में न कोई वर्तमान देख रहे है, न भविष्य. इन्हें मालूम है कि यह देश फिलहाल रसातल में जाने वाला है, पौराणिक युग में लौट रहा है. युवाओं की छठी इंद्रिय कह रही है कि भारत में वे चाहे कितना परिश्रम कर लें, सफल होंगे, इस में संदेह है. उन्हें अमेरिका पर विश्वास है.

चीनी जो पहले भरभर कर जाते थे, अब कम होते जा रहे है क्योंकि उन्हें चीन पर ज्यादा विश्वास है. लेकिन अमेरिका से आने वाले मजदूरी करने वाले अधिक हैं क्योंकि वहां भारत से भी बुरा हाल है और कितने ही देशों में तानाशाही व धार्मिक अंधविश्वासों ने समाज को खोखला बना डाला है. वहां के निवासी मैक्सिको-अमेरिका बौर्डर पार कर के किसी तरह अमेरिका पहुंच जाते हैं और अनडौक्यूमैंटेड मजदूरों की शक्ल में छोटेमोटे काम करते हैं. फिर भी, अपने देश में रह कर वे जितना कमा लेते, उस से ज्यादा कमा लेते हैं.
लैटिनो अगर अनपढ़, मजदूर हैं तो ये भारतीय युवा 2-3 दशक तक पढ़ेलिखे मजदूर बने रहेंगे. इन में से कुछ ही चमकेंगे जो पोस्टर बौय बन कर बाकी भारतीयों को उकसाएंगे कि गोबर और गाय का देश छोड़ो.
एच-1 वी का आंकड़ा भाजपा सरकार की सफलता पर बड़ा सा काला निशान है, उस की कही जानी वाली ममता सिल्क की कमीज के कितने ही हिस्से फट कर जा चुके हैं. यह विनाशकाल का संकेत हैं. सरकार और समाज ऐसे ही चलते रहे तो कल क्या होगा, इस का अनुमान लगाना कठिन है.

सब को साथ चाहिए

पति की मौत के बाद माधुरी क्षतविक्षत हो चुकी थी लेकिन उस के जीवन में एक ऐसा व्यक्ति आया कि न सिर्फ वह अपने गमों को भुला सकी बल्कि उसे एक ऐसा खुशहाल परिवार मिला कि वह निहाल हो गई. आखिर यह सब हुआ कैसे?

सुधीर के औफिस के एक सहकर्मी रवि के विवाह की 25वीं वर्षगांठ थी. उस ने एक होटल में भव्य पार्टी का आयोजन किया था तथा बड़े आग्रह से सभी को सपरिवार आमंत्रित किया था. सुधीर भी अपनी पत्नी माधुरी और बच्चों के साथ ठीक समय पर पार्टी में पहुंच गए. सुधीर और माधुरी ने मेजबान दंपती को बधाई और उपहार दिया. रविजी ने अपनी पत्नी विमला से माधुरी का और उन के चारों बच्चों का परिचय करवाया, ‘‘विमला, इन से मिलो. ये हैं सुधीरजी, इन की पत्नी माधुरी और चारों बच्चे सुकेश, मधुर, प्रिया और स्नेहा.’’

‘‘नमस्ते,’’ कह कर विमला आश्चर्य से चारों को देखने लगी. आजकल तो हम दो हमारे दो का जमाना है. भला, आज के दौर में 4-4 बच्चे कौन करता है? माधुरी विमला के चेहरे से उन के मन के भावों को सम?ा गई पर क्या कहती.

तभी प्रिया ने सुकेश की बांह पकड़ी और मचल कर बोली, ‘‘भैया, मु?ो पानीपूरी खानी है. भूख लगी है. चलो न.’’

‘‘नहीं भैया, कुछ और खाते हैं, यह चटोरी तो हमेशा पहले पानीपूरी खिलाने ही ले जाती है. वहां दहीबड़े का स्टौल है. पहले उधर चलो,’’ स्नेहा और मधुर ने जिद की.

‘‘भई, पहले तो वहीं चला जाएगा जहां हमारी गुडि़या रानी कह रही है. उस के बाद ही किसी दूसरे स्टौल पर चलेंगे,’’ कह कर सुकेश प्रिया का हाथ थाम कर पानीपूरी के स्टौल की तरफ बढ़ गया. मधुर और स्नेहा भी पीछेपीछे बढ़ गए.

‘‘यह अच्छा है, छोटी होने के कारण हमेशा इसी के हिसाब से चलते हैं भैया,’’ मधुर ने कहा तो स्नेहा मुसकरा दी. चाहे ऊपर से कुछ भी कह लें पर अंदर से सभी प्रिया को बेहद प्यार करते थे और सुकेश की बहुत इज्जत करते थे. क्यों न हो वह चारों में सब से बड़ा जो था. चारों जहां भी जाते एकसाथ जाते. मजाल है कि स्नेहा या मधुर अपनी मरजी से अलग कहीं चले जाएं. थोड़ी ही देर में चारों अलगअलग स्टौल पर जा कर खानेपीने की चीजों का आनंद लेने लगे और मस्ती करने लगे.

सुधीर और माधुरी भी अपनेअपने परिचितों से बात करने लगे. किसी काम से माधुरी महिलाओं के एक समूह के पास से गुजरी तो उस के कानों में विमला की आवाज सुनाई दी. वह किसी से कह रही थी, ‘‘पता है, सुधीरजी और माधुरीजी के 4 बच्चे हैं. मु?ो तो जान कर बड़ा आश्चर्य हुआ. आजकल के जमाने में तो लोग 2 बच्चे बड़ी मुश्किल से पाल सकते हैं तो इन्होंने 4 कैसे कर लिए.’’

‘‘और नहीं तो क्या, मैं भी आज ही उन लोगों से मिली तो मु?ो भी आश्चर्य हुआ. भई, मैं तो 2 बच्चे पालने में ही पस्त हो गई. उन की जरूरतें, पढ़ाई- लिखाई सबकुछ. पता नहीं माधुरीजी 4 बच्चों की परवरिश किस तरह से मैनेज कर पाती होंगी?’’ दूसरी महिला ने जवाब दिया.

माधुरी चुपचाप वहां से आगे बढ़ गई. यह तो उन्हें हर जगह सुनने को मिलता कि उन के 4 बच्चे हैं. यह जान कर हर कोई आश्चर्य प्रकट करता है. अब वह उन्हें क्या बताए? घर आ कर चारों बच्चे सोने चले गए. सुधीर भी जल्दी ही नींद के आगोश में समा गए. मगर माधुरी की आंखों में नींद नहीं थी. वह तो 6 साल पहले के उस दिन को याद कर रही थी जब माधुरी के लिए सुधीर का रिश्ता आया था. हां, 6 साल ही तो हुए हैं माधुरी और सुधीर की शादी को. 6 साल पहले वह दौर कितना कठिन था. माधुरी को बड़ी घबराहट हो रही थी. पिछले कई दिनों से वह अपने निर्णय को ले कर असमंजस की स्थिति में जी रही थी.

माधुरी का निर्णय अर्थात विवाह का निर्णय. अपने विवाह को ले कर ही वह ऊहापोह में पड़ी हुई थी. घबरा रही थी. क्या होगा? नए घर में सब उसे स्वीकारेंगे या नहीं?

विवाह को ले कर हर लड़की के मन में न जाने कितनी तरह की चिंताएं और घबराहट होती है. स्वाभाविक भी है, जन्म के चिरपरिचित परिवेश और लोगों के बीच से अचानक ही वह सर्वथा अपरिचित परिवेश और लोगों के बीच एक नई ही जमीन पर रोप दी जाती है. अब इस नई जमीन की मिट्टी से परिचय बढ़ा कर इस से अपने रिश्ते को प्रगाढ़ कर यहां अपनी जड़ें जमा कर फलनाफूलना मानो नाजुक सी बेल को अचानक ही रेतीली कठोर भूमि पर उगा दिया जाए.

लेकिन माधुरी की घबराहट अन्य लड़कियों से अलग थी. नई जमीन पर रोपे जाने का अनुभव वह पहले भी देख चुकी थी. उस जमीन पर अपनी जड़ें जमा कर खूब पल्लवित हो कर नाजुक बेल से एक परिपक्व लताकुंज में परिवर्तित भी हो चुकी थी, लेकिन अचानक ही एक आंधी ने उसे वहां से उखाड़ दिया और उस की जड़ों को क्षतविक्षत कर के उस की जमीन ही उस से छीन ली.

2 वर्ष पहले मात्र 43 वर्ष की आयु में ही माधुरी के पति की हृदयगति रुक जाने से आकस्मिक मृत्यु हो गई. कौन सोच सकता था कि रात में पत्नी और बच्चों के साथ खुल कर हंसीमजाक कर के सोने वाला व्यक्ति फिर कभी उठ ही नहीं पाएगा. इतना खुशमिजाज, जिंदादिल इंसान था प्रशांत कि सब के दिलों को मोह लेता था, लेकिन क्या पता था कि उस का खुद का ही दिल इतनी कम उम्र में उस का साथ छोड़ देगा.

माधुरी तो बुरी तरह टूट गई थी. 18 सालों का साथ था उन का. 2 प्यारे बच्चे हैं, प्रशांत की निशानी, प्रिया और मधुर. मधुर तो तब मात्र 16 साल का हुआ ही था और प्रिया अपने पिता की अत्यंत लाडली बस 12 साल की ही थी. सब से बुरा हाल तो प्रिया का ही हुआ था.

एक खुशहाल परिवार एक ही ?ाटके में तहसनहस हो गया. महीनों लगे थे माधुरी को इस सदमे से बाहर आ कर संभलने में. उम्र ही क्या थी उस की. मात्र 37 साल. वह तो उस के मातापिता ने अपना कलेजा मजबूत कर के उसे सांत्वना दे कर इतने बड़े दुख से उबरने में उस की मदद की. प्रिया और मधुर के कुम्हलाए चेहरे देख कर माधुरी ने सोचा था कि अब ये दोनों ही उस का जीवन हैं. अब इन के लिए उसे मजबूत छत बनानी है.

साल भर में ही वह काफी कुछ स्थिर हो गई थी. जीवन आगे बढ़ रहा था. मधुर मैडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था. प्रिया भी पढ़ने में तेज थी. स्कूल में अव्वल आती, लेकिन माधुरी की सूनी मांग और माथा देख कर उस की मां के कलेजे में मरोड़ उठती, इतना लंबा जीवन अकेले वह कैसे काट पाएगी?

‘अकेली कहां हूं मां, आप दोनों हो, बच्चे हैं,’ माधुरी जवाब देती.

‘हम कहां सारी उम्र तुम्हारा साथ दे पाएंगे बेटा. बेटी शादी कर के अपने घर चली जाएगी और मधुर पढ़ाई और फिर नौकरी के सिलसिले में न जाने कौन से शहर में रहेगा. फिर उस की भी अपनी दुनिया बस जाएगी. तब तुम्हें किसी के साथ की सब से ज्यादा जरूरत पड़ेगी. यह बात तो मैं अपने अनुभव से कह रही हूं. अपने निजी सुखदुख बांटनेसम?ाने वाला एक हमउम्र साथी तो सब को चाहिए होता है, बेटी,’ मां उदास आवाज में कहतीं.

माधुरी उस से भी गहरी उदास आवाज में कहती, ‘मेरी जिंदगी में वह साथ लिखा ही नहीं है, मां.’

माधुरी का जवाब सुन कर मां सोच में पड़ जातीं. माधुरी को तो पता ही नहीं था कि उस के मातापिता इस उम्र में उस की शादी फिर से करवाने की सोच रहे हैं. 3 महीने पहले ही उन्हें सुधीर के बारे में पता चला था. सुधीर की उम्र 45 वर्ष थी. 2 वर्ष पूर्व ही ब्रेन ट्यूमर की वजह से उन की पत्नी की मृत्यु हो गई थी. 2 बच्चे 19 वर्ष का बेटा और 15 वर्ष की बेटी है. घर में सुधीर की वृद्ध मां भी है. नौकरचाकरों की मदद से पिछले 2 वर्षों से वह 68 साल की उम्र में जैसेतैसे बेटे की गृहस्थी चला रही थीं.

माधुरी की मां ने सुधीर की मां को माधुरी के बारे में बता कर विवाह का प्रस्ताव रखा. सुधीर की मां ने सहर्ष उसे स्वीकार कर लिया. वयस्क होती बेटी को मां की जरूरत का हवाला दे कर और अपने बुढ़ापे का खयाल करने को उन्होंने सुधीर को विवाह के लिए मना लिया.

‘मैं बूढ़ी आखिर कब तक तेरी गृहस्थी की गाड़ी खींच पाऊंगी. और फिर कुछ सालों बाद तेरे बच्चों का ब्याह होगा. कौन करेगा वह सब भागदौड़ और उन के जाने के बाद तेरा ध्यान रखने को और सुखदुख बांटने को भी तो कोई चाहिए न. अपनी मां की इस बात पर सुधीर निरुत्तर हो गए और वही सब बातें दोहरा कर माधुरी की मां ने जैसेतैसे उसे विवाह के लिए तैयार करवा लिया.

‘बेटी अकेलापन बांटने कोई नहीं आता. यह मत सोच कि लोग क्या कहेंगे? लोग तो अच्छेबुरे समय में बस बोलने आते हैं. साथ देने के लिए आगे कोई नहीं आता. अपना बो?ा आदमी को खुद ही ढोना पड़ता है. सुधीर अच्छा इंसान है. वह भी अपने जीवन में एक त्रासदी सह चुका है. मु?ो पूरा विश्वास है कि वह तेरा दुख सम?ा कर तु?ो संभाल लेगा. तुम दोनों एकदूसरे का सहारा बन सकोगे.’

माधुरी ने भी मां के तर्कों के आगे निरुत्तर हो कर पुनर्विवाह के लिए मौन स्वीकृति दे दी. वैसे भी वह अब अपनी वजह से मांपिताजी को और अधिक दुख नहीं देना चाहती थी.

लेकिन तब से वह मन ही मन ऊहापोह में जी रही थी. सवाल उस के या सुधीर के आपस में सामंजस्य निभाने का नहीं था. सवाल उन 4 वयस्क होते बच्चों के आपस में तालमेल बिठाने का है. वे आपस में एकदूसरे को अपने परिवार का अंश मान कर एक घर में मिलजुल कर रह पाएंगे? सुधीर और माधुरी को अपना मान पाएंगे?

यही सारे सवाल कई दिनों से माधुरी के मन में चौबीसों घंटे उमड़तेघुमड़ते रहते. जैसेजैसे विवाह के लिए नियत दिन पास आता जा रहा था ये सवाल उस के मन में विकराल रूप धारण करते जा रहे थे.

माधुरी अभी इन सवालों में उल?ा बैठी थी कि मां ने उस के कमरे में आ कर सुधीर की मां के आने की खबर दी. माधुरी पलंग से उठ कर बाहर जाने के लिए खड़ी ही हुई थी कि सुधीर की मां स्वयं ही उस के कमरे में चली आईं. उन के साथ 14-15 साल की एक प्यारी सी लड़की भी थी. माधुरी को सम?ाते देर नहीं लगी कि यह सुधीर की बेटी स्नेहा है. माधुरी ने उठ कर सुधीर की मां को प्रणाम किया. उन्होंने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरा और कहा, ‘मैं सम?ाती हूं माधुरी बेटा, इस समय तुम्हारी मनोस्थिति कैसी होगी? मन में अनेक सवाल घुमड़ रहे होंगे. स्वाभाविक भी है.

‘मैं बस इतना ही कहना चाहूंगी कि अपने मन से सारे संशय दूर कर के नए विश्वास और पूर्ण सहजता से नए जीवन में प्रवेश करो. हम सब अपनीअपनी जगह परिस्थिति और नियति के हाथों मजबूर हो कर अधूरे रह गए हैं. अब हमें एकदसूरे को पूरा कर के एक संपूर्ण परिवार का गठन करना है. इस के लिए हम सब को ही प्रयत्न करना है. मेरा विश्वास है कि इस में हम सफल जरूर होंगे. आज मैं अपनी ओर से पहली कड़ी जोड़ने आई हूं. एक बेटी को उस की मां से मिलाने लाई हूं. आओ स्नेहा, मिलो अपनी मां से,’ कह कर उन्होंने स्नेहा का हाथ माधुरी के हाथ में दे दिया.

स्नेहा सकुचा कर सहमी हुई सी माधुरी की बगल में बैठ गई तो माधुरी ने खींच कर उसे गले से लगा लिया. मां के स्नेह को तरस रही स्नेहा ने माधुरी के सीने में मुंह छिपा लिया. दोनों के प्रेम की ऊष्मा ने संशय और सवालों को बहुत कुछ धोपोंछ दिया.

‘बस, अब आगे की कडि़यां हम मां- बेटी मिल कर जोड़ लेंगी,’ सुधीर की मां ने कहा तो पहली बार माधुरी को लगा कि उस के मन पर पड़े हुए बो?ा को मांजी ने कितनी आसानी से उतार दिया.

जल्द ही एक सादे समारोह में माधुरी और सुधीर का विवाह हो गया. माधुरी के मन का बचाखुचा भय और संशय तब पूरी तरह से दूर हो गया, जब सुधीर से मिलने वाले पितृवत स्नेह की छत्रछाया में उस ने प्रिया को प्रशांत के जाने के बाद पहली बार खुल कर हंसते देखा. अपने बच्चों को ले कर माधुरी थोड़ी असहज रहती, मगर सुधीर ने पहले दिन से ही मधुर और प्रिया के साथ एकदम सहज पितृवत व स्नेहपूर्ण व्यवहार किया. सुधीर बहुत परिपक्व और सुल?ो हुए इंसान थे और मांजी भी. घर में उन दोनों ने इतना सहज और अनौपचारिक अपनेपन का वातावरण बनाए रखा कि माधुरी को लगा ही नहीं कि वह बाहर से आई है. सुधीर का बेटा सुकेश और मधुर भी जल्दी ही आपस में घुलमिल गए. कुछ ही महीनों में माधुरी को लगने लगा कि जैसे यह उस का जन्मजन्मांतर का परिवार है.

माधुरी के मातापिता भी उसे अपने नए परिवार में खुशी से रचाबसा देख कर संतुष्ट थे. दिन पंख लगा कर उड़ते गए. सुधीर का साथ पा कर माधुरी के मन की मुर?ाई लता फिर हरी हो गई. ऐसा नहीं कि माधुरी को प्रशांत की और सुधीर को अपनी पत्नी की याद नहीं आती थी, लेकिन उन दोनों की याद को वे लोग सुखद रूप में लेते थे. उस दुख को उन्होंने वर्तमान पर कभी हावी नहीं होने दिया. उन की याद में रोने के बजाय वे उन के साथ बिताए सुखद पलों को एकदूसरे के साथ बांटते थे.

सोचतेसोचते माधुरी गहरी नींद में खो गई. इस घटना के 10-12 दिन बाद ही सुधीर ने माधुरी को बताया कि रविजी और उन की पत्नी उन के घर आने के इच्छुक हैं. माधुरी उन के आने के पीछे की मंशा सम?ा गई. उस ने सुधीर से कह दिया कि वे उन्हें रात के खाने पर सपरिवार निमंत्रित कर लें.

2 दिन बाद ही रविजी अपनी पत्नी और दोनों बच्चों को ले कर डिनर के लिए आ गए. विमला माधुरी की हैल्प करवाने के बहाने किचन में आ गई और माधुरी से बातें करने लगी. माधुरी ने स्नेहा से कहा कि प्रिया को बोल दे, डायनिंग टेबल पर प्लेट्स लगा कर रख देगी.

‘‘उसे आज बहुत सारा होमवर्क मिला है मां. उसे पढ़ने दीजिए. मैं आप की हैल्प करवा देती हूं,’’ स्नेहा ने जवाब दिया.

‘‘पर बेटा, तुम्हारे तो टैस्ट चल रहे हैं. तुम जा कर पढ़ाई करो. मैं मैनेज कर लूंगी,’’ माधुरी ने स्नेहा से कहा.

‘‘कोई बात नहीं मां. कल अंगरेजी का टैस्ट है और मु?ो सब आता है,’’ स्नेहा प्लेट पोंछ कर टेबल पर सजाने लगी. तभी सुकेश और मधुर बाजार से आइसक्रीम और सलाद के लिए गाजर और खीरे वगैरह ले आए. सुकेश ने तुरंत आइसक्रीम फ्रीजर में रखी और मां से बोला, ‘‘मां, और कुछ काम है क्या?’’

‘‘नहीं, बेटा. अब तुम आनंद और अमृता को अपने रूम में ले जाओ. वे लोग बाहर अकेले बोर हो रहे हैं,’’ माधुरी ने कहा तो सुकेश बाहर चला गया.

‘‘ठीक है मां, कुछ काम पड़े तो बुला लेना,’’ स्नेहा भी अपना काम खत्म कर के चली गई. अब किचन में सिर्फ माधुरी और विमला ही रह गईं. अब विमला ज्यादा देर तक अपनी उत्सुकता को रोक नहीं पाई और उस ने माधुरी से सवाल किया, ‘‘हम तो 2 ही बच्चों को बड़ी मुश्किल से संभाल पा रहे हैं. आप ने 4-4 बच्चों को कैसे संभाला होगा? चारों में अंतर भी ज्यादा नहीं लगता. स्नेहा और मधुर तो बिलकुल एक ही उम्र के लगते हैं.’’

माधुरी इस सवाल के लिए तैयार ही थी. वह अत्यंत सहज स्वर में बोली, ‘‘हां, स्नेहा और मधुर की उम्र में बस 8 महीनों का ही फर्क है.’’

‘‘क्या?’’ विमला बुरी तरह से चौंक गई, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है?’’

तब माधुरी ने बड़ी सहजता से मुसकराते हुए संक्षेप में अपनी और सुधीर की कहानी सुना दी.

अब तो विमला के आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा.

‘‘तब भी आप के चारों बच्चों में इतना प्यार है जबकि वे आपस में सगे भी नहीं हैं. मेरे तो दोनों बच्चे सगे भाईबहन होने के बाद भी आपस में इतना ?ागड़ते हैं कि बस पूछो मत. एक मिनट भी नहीं पटती है उन में. मैं तो इतनी तंग आ गई हूं कि लगता है इन्हें पैदा ही क्यों किया? लेकिन आप के चारों बच्चों में तो बहुत प्यार और सौहार्द दिखता है. चारों आपस में एकदूसरे पर और आप पर तो मानो जान छिड़कते हैं,’’ विमला बोली.

तभी सुधीर की मां किचन में आईं और विमला से बोलीं, ‘‘बात सगेसौतेले की नहीं, प्यार होता है आपसी सामंजस्य से. दरअसल, हम सब अपने जीवन में कुछ अपनों को खोने का दर्द ?ोल चुके हैं इसलिए हम सभी अपनों की कीमत सम?ाते हैं. इस दर्द और सम?ा ने ही मेरे परिवार को प्यार से एकसाथ बांध कर रखा है. चारों बच्चे अपनी मां या पिता को खोने के बाद अकेलेपन का दंश ?ोल चुके थे, इसलिए जब चारों मिले तो उन्होंने जाना कि घर में जितने ज्यादा भाईबहन हों उतना ही मजा आता है. यही राज है हमारे परिवार की खुशियों का. हम दिल से मानते हैं कि सब को साथ चाहिए.’’

विमला उन की बातें सुन कर मुग्ध हो गई, ‘‘सचमुच मांजी, आप के परिवार के विचार और सौहार्द तो अनुकरणीय हैं.’’

समय बीतता गया. सुकेश पढ़लिख कर इंजीनियर बना तो मधुर डाक्टर बन गया. मधुर ने एमडी किया और सुकेश ने बैंगलुरु से एमटेक. प्रिया और स्नेहा ने भी अपनेअपने पसंदीदा क्षेत्र में कैरियर बना लिया और फिर उन चारों के विवाह, फिर नातीपातों का जन्म, नामकरण मुंडन आदि की भागदौड़ में बरसों बीत गए. फिर एकएक कर सब पखेरू अपनेअपने नीड़ों में बस गए. सुकेश और प्रिया दोनों इंगलैंड चले गए. जहां दोनों भाईबहन पासपास ही रहते थे. मधुर बेंगलुरु में सैटल हो गया और स्नेहा मुंबई में. मांजी और माधुरी के मातापिता का निधन हो गया.

अब इतने बड़े घर में सुधीर और माधुरी अकेले रह गए. जब बच्चे और नातीपोते आते तो घर भर जाता. कभी ये लोग बारीबारी से सारे बच्चों के पास रह आते, लेकिन अधिकांश समय दोनों अपने घर में ही रहते. अपनी दिनचर्या को उन्होंने इस तरह से ढाला कि सुबह की चाय बगीचे की ताजी हवा में साथ बैठ कर पीते, साथ बागबानी करते. साथसाथ घर के सारे काम करने में दिन कब गुजर जाता, पता ही नहीं चलता. दोनों पल भर कभी एकदूसरे से अलग नहीं रह पाते. अब जा कर माधुरी और सुधीर को एहसास होता कि अगर उन्होंने उस समय अपने मातापिता की बात न मान कर विवाह नहीं किया होता तो आज जीवन की इस संध्याबेला में दोनों इतने माधुर्यपूर्ण साथ से वंचित हो कर बिलकुल अकेले रह जाते. जीवन की सुबह मातापिता की छत्रछाया में गुजर जाती है, दोपहर भागदौड़ में बीत जाती है मगर संध्याबेला की इस घड़ी में जब जीवन में अचानक ठहराव आ जाता है तब किसी के साथ की सब से अधिक आवश्यकता होती है. सुधीर के कंधे पर सिर टिकाए हुए माधुरी यही सोच रही थी. सचमुच, बिना साथी के जीवन अत्यंत कठिन और दुखदायक है. साथ सब को चाहिए.

व्यंग्य : साधु बने स्वादु

फीता कटा, फ्लैशगनें चमकीं, तालियां बजीं. मेजबान ने स्वामीजी के चरण छुए और आशीर्वाद प्राप्त किया. बाद में उन्हें ले कर आभूषणों का अपना आलीशान शोरूम दिखाने लगा.आजकल यह दृश्य आम हो गया है.

अब दुकानों, शोरूमों का उद्घाटन करने के लिए ?ाक सफेद कपड़ों वाले नेताजी या मंत्रीजी की जरूरत नहीं रह गई है बल्कि यह काम गेरुए वस्त्रों में लिपटा साधु करता है. दुनिया भर को मोहमाया से दूर रहने के कड़वे उपदेश पिलाने वाले बाबा इन दिनों दुकानों, पार्लरों के फीते काट रहे हैं. हंसहंस कर फोटो खिंचवा रहे हैं. धनिकों को साधु रखने का शौक होता है.

जैसे चौकीदार रखा, रसोइया रखा, माली रखा उसी तर्ज पर एक स्वामी भी रख लिया. बस, उसे डांटते नहीं हैं, उस पर हुक्म नहीं चलाते. उधर दुनियादारी को त्याग चुका साधु भी इन दुनियादारों के यहां पड़ा रहता है. उन के खर्चे से सैरसपाटे करता रहता है. आखिर अनमोल प्रवचनों का पारिश्रमिक तो उसे वसूलना ही है. साधु कभी भी गरीबों के यहां निवास नहीं करते. इस की वजह वे बताते हैं कि गरीबों पर आर्थिक बो?ा न पड़े इसलिए. पर वे तो साधारण आर्थिक स्थिति वालों के यहां भी नहीं रुकते.

दरअसल, साधारण आदमी उन की फाइवस्टार सेवा नहीं कर सकता. साधुओं का यह मायाप्रेम नहीं तो और क्या है?‘‘भक्त का अनुरोध मानना ही पड़ता है,’’ साधुओं का जवाब होता है, ‘‘वह दिनरात हमारी सेवा करता है, हमारी सुखसुविधा का खयाल रखता है. क्या हम उस के लिए एक फीता नहीं काट सकते? हमारा काम ही आशीर्वाद देना है.’’‘‘पर आप तो जनता से मोहमाया से मुक्त होने का आह्वान करते हैं.’’‘‘करते हैं न. तब भी करते हैं जब किसी शोरूम का उद्घाटन करने जाते हैं.’’‘

‘जो भक्त माया इकट्ठी करने में लगा हो उसे आप अपरिग्रह का उपदेश क्यों नहीं देते?’’‘‘देते हैं. जब उस के पास उस की आवश्यकताओं से अधिक धन हो जाए तभी वह अपरिग्रह की ओर मुड़ेगा. हर एक की तृप्ति का स्तर अलगअलग होता है. जब उस की इच्छाएं तृप्त हो जाएंगी तो वह अपनी सारी दौलत रास्ते में लुटा देगा.’’‘‘और आप की तरह दीक्षा ले लेगा. पर संन्यास लेने से पहले इस तरह का वैभव प्रदर्शन करने के बजाय क्या वह इस धन से कोई स्कूल या अस्पताल नहीं बनवा सकता?’’

साधु के पास इस का जवाब कभी नहीं होता है. जो लोग भूखे को रोटी देने के बजाय कुत्ते को देते हैं वे संन्यास लेने से पहले लोगोें को अपने लुटाए हुए हीरेजवाहरातों पर कुत्तों की तरह टूटते देख कर फूले नहीं समाते. यह मानवता का अपमान नहीं तो क्या है?जब चातुर्मास का मौसम आता है तो मोहमाया से मुक्त ये साधु बैंडबाजे सहित मोहमाया की दुनिया में आते हैं और तड़कभड़क भरे हौल में अपने भक्तों से सांसारिक बंधनों से मुक्त होने का आह्वान करते हैं.

क्या इन बैरागियों को इतना भी नहीं मालूम कि जिन भक्तों को उन के प्रवचनों से लाभ उठाना होगा, वे खुद चल कर उन के आश्रम में आएंगे? हां, इन्हें इतना तो मालूम है कि न तो इन के उपदेशों में ताकत है और न ही इन के भक्त इतने बेवकूफ हैं कि अपनी मोटी कमाई छोड़ कर इन के नीरस प्रवचन सुनें, इसलिए कुआं खुद ही सांसारिक सुखों से तर गले वालों के पास चला आता है. भक्त लोग भी इन के भाषण सिनेमा या नाटक देखने की तर्ज पर सुनने चले आते हैं.  ऐसे ही मोहमाया के संसार में घुसने को छटपटा रहे एक साधु से मैं ने बातचीत की. मैं ने उसे सिर्फ नमस्कार किया, चरण नहीं छुए.

मैं ने देखा कि उस के चेहरे पर नाराजगी के भाव थे. उस के चेलेचपाटे भी खुश नहीं दिखे बातचीत के दौरान मैं ने उस से पूछ ही लिया, ‘‘आप मेरे अभिवादन के तरीके से खुश नजर नहीं आए?’’‘‘हां, बडे़ेबड़े उद्योगपति, राजनेता मेरे पैर छूते हैं और तुम ने ऐसे नमस्कार किया जैसे किसी दोस्त को हैलोहाय कर रहे हो. यह तो भारतीय परंपरा नहीं है किसी आदरणीय व्यक्ति का अभिवादन करने की.’’‘‘आप तो संन्यासी हैं. आप ने सांसारिक विकृतियों पर विजय पाई है.

आप को क्रोध क्यों आया?’’ मैं ने तड़ाक से सवाल किया जिसे सुन कर उन के चेलों ने मु?ो बदतमीज, पापी कहा.‘‘आप जब अपने शिष्यों को क्रोध पर विजय प्राप्त करना नहीं सिखा सके तो दुनिया को क्या सिखा पाएंगे?’’‘‘बदतमीज, इतने बड़े स्वामीजी से बोलने का यह कोई तरीका है? जानता नहीं, बड़ेबड़े लोग इन के पैर छूते हैं?’’ एक शिष्य भड़का.‘‘यानी इन्हें घमंड है कि बड़ेबड़े लोग इन के पैर छूते हैं. इसे ही शायद मद कहते हैं.’’

‘‘पापी, जानता नहीं कि ये सांसारिक मोहमाया से परे हैं? हजारों लोग इन के चरणों में चांदी, सोना, हीरे चढ़ाते हैं, देखा नहीं? चलो हटो, दूसरों को आने दो,’’ और भक्तों ने मु?ो चढ़ावे में आया धन बताया.‘‘नहीं, आप के ये स्वामीजी मद, लोभ और क्रोध से मुक्त नहीं हुए हैं. बारबार ये समाज में लौटते हैं. इस का मतलब यह है कि ये मोह से मुक्त नहीं हुए हैं. क्या जरूरत है इन्हें समाज में आने की, जिसे इन्होंने त्याग दिया है?’’

‘‘आप यहां से चले जाइए वरना किसी ने कुछ कर दिया तो हम जिम्मेदार नहीं होंगे,’’ मु?ो चेतावनी दी गई.मैंकहना चाहता था कि जब आप क्रोध, लोभ, मद और मोह से मुक्त नहीं हैं तो काम से भी मुक्त नहीं होंगे. फिर यह साधु का मेकअप क्यों? पर मु?ो धक्के मार कर निकाल दिया गया. मेरा विश्वास है कि सब से ज्यादा सांसारिक सुखों में लीन ये साधुस्वामी ही हैं. बिना कुछ किए, सिर्फ गैरव्यावहारिक भाषण ?ाड़ कर ये ऐशोआराम से रहते हैं. इन के आश्रम सभी सुखसुविधाओं से युक्त रहते हैं.

भोग और संभोग की पूरी व्यवस्था रहती है. इसीलिए तो जिनजिन आश्रमों पर पुलिस के छापे पड़े हैं, आपत्तिजनक सामग्री बरामद हुई है. एक साधु के आश्रम में शराब, ब्लू फिल्में और लड़कियां मिलने का क्या मतलब है? ये पाखंडी लोग दुनिया की कठिनाइयों से नहीं लड़ सकते और समाज से पलायन कर जाते हैं. पर एकांत में सांसारिक सुख और भी याद आते हैं इसलिए किसी न किसी बहाने ये समाज में लौटते हैं. कभी चातुर्मास के बहाने या किसी दुकान का उद्घाटन करने या किसी भक्त के विवाह में आशीर्वाद देने के बहाने. इन के आश्रम अपराधियों के क्लब होते हैं.

राजनेता, तस्कर, मिलावट- बाज, काला बाजारिए, सट्टेबाज इन के यहां आपस में मिलते हैं और अपने भावी कार्यक्रम तय करते हैं. क्या जरूरत है किसी मंत्री को इन के आश्रम में जाने की और इन का आशीर्वाद पाने की? आम आदमी को तो ये साधु कभी आश्रम में बुला कर आशीर्वाद नहीं देते. इन के आश्रम सिर्फ पूंजीपतियों, राजनेताओं के लिए ही खुले होते हैं.

आम आदमी को ये सिर्फ दर्शन देते हैं. इन के आश्रम में सिर्फ पूंजीपतियों की एयरकंडीशंड कारें तैनात रहती हैं. ये पाखंडी स्वामी यों तो समाजसुधार का ढिंढोरा पीटते रहते हैं पर आज तक कोई साधु किसी समस्याग्रस्त ?ोपड़पट्टी में नहीं गया है, बाढ़पीडि़त क्षेत्र में नहीं गया है, महामारी प्रभावित क्षेत्र में कदम तक नहीं रखा है. और तो और इन्होंने कभी किसी मलिन बस्ती में अपना प्रवचन भी नहीं दिया है क्योंकि वहां ग्लैमर नहीं है, प्रसिद्धि नहीं है, माल नहीं है, माया नहीं है जिस के लिए ये मरे जाते हैं.

Devraj Patel Died : ‘बुरा लगता है भाई’ फेम यूट्यूबर देवराज पटेल का 22 की उम्र में निधन

Devraj Patel Accident : छत्तीसगढ़ के मशहूर यूट्यूब और ‘बुरा लगता है भाई…’  वीडियो से फेमस हुए कॉमेडियन देवराज पटेल का निधन हो गया हैं। 26 जून को एक एक्सीडें में उनकी मौत हो गई। 22 साल के देवराज (Devraj Patel Died) महासमुंद जिले के रहने वाले थे। वह अपनी ‘भाई दिल से बुरा लगता है’ वीडियो से फेमस हुए थे। इस वीडियो के वायरल होने के बाद देवराज के चाहने वालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई थी, जिसके बाद वह राज्य के सीएम भूपेश बघेल से भी मिले थे।

जानें कैसे हुआ हादसा

बता दें कि, देवराज (Devraj Patel Accident) रायपुर के पास नेशनल हाइवे पर अपनी बाइक से अपने एक दोस्त के साथ कहीं जा रहे थे। जहां पीछे से आ रहे एक अनियंत्रित ट्रक ने उनकी बाइक में टक्कर मार दी, जिसमें देवराज की मौके पर ही मौत हो गई। वहीं उसका दोस्त गंभीर रूप से घायल हुआ है, जिसे तुरंत अस्पताल में भर्ती कराया गया।

कॉमेडी वीडियो बनाना पंसद करते थे देवराज

देवराज (Devraj Patel Died) सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहते थे। यूट्यूब पर उनके चैनल को लाखों ने सब्सक्राइबर कर रखा हैं। अपने चैनल पर वह ज्यादातर कॉमेडी वीडियो ही बनाया करते थे। हालांकि उनकी मौत की खबर सुनते ही उनके फैंस सदमे में चले गए हैं। सोशल मीडिया पर हर कोई उनकी मौत पर दुख जता रहा है।

Soumya Seth : ‘नव्या’ फेम सौम्या सेठ 33 की उम्र में बनी दूसरी बार दुल्हन, गुपचुप तरीके से की शादी

Soumya Seth Wedding : स्टार प्लस के टीवी शो ‘नव्या: नए धड़कन नए सवाल’ फेम एक्ट्रेस सौम्या सेठ यानी नव्या एक बार फिर शादी के बंधन में बंध गई हैं। 33 की उम्र में सौम्या (Soumya Seth) ने अपने लॉन्ग टाइम बॉयफ्रेंड शुभम चूहाड़िया के साथ सात फेरे लिए हैं। कपल ने अमेरिका में काफी प्राइवेट तरीके से क्रिश्चिन वेडिंग की, जिसमें केवल उनके करीबी दोस्त और परिवार वाले ही शामिल हुए।

सौम्या-शुभम की कब और कहां हुई पहली मुलाकात

बता दें कि, गोविंदा की भांजी सौम्या (Soumya Seth Wedding) की पहली शादी अरुण कपूर से हुई थी, जिससे उनका एक बेटा भी है। बीते 5 सालों से वह अपने बेटे आयडेन के साथ अमेरिका में ही रह रही हैं। अमेरिका में ही उनकी मुलाकात शुभम चित्तौड़गढ़ (Shubham Chuhadia) से हुई, जो यूएस बेस्ड एक आर्किटेक्ट और डिजाइनर हैं। सौम्या शुभम से पहली बार तब मिली, जब उन्होंने उनके अपार्टमेंट में एक कमरा किराए पर लिया और इसके बाद महामारी के दौरान वह दोनों एक दूसरे के करीब आ गए।

22 जून को बॉयफ्रेंड संग लिए सात फेरे

सौम्या ने शुभम (Shubham Chuhadia) के साथ 22 जून को शादी की। अपनी शादी की खुशी शेयर करते हुए सौम्या ने कहा, “हमने अपने पेरेंट्स को एक दिन 21 जून दिया, जिसमें हम दोनों जो भी वे चाहते थे उसे करने के लिए सहमत हुए। इसलिए उन्होंने हल्दी-मेहंदी की और अगले दिन 22 जून को हम इसे अपने तरीके से कर रहे थे। हालांकि शादी में कोई गेस्ट नहीं थे बस हमारी लाइफ के सबसे अहम लोग जैसे कि हमारे फैमिली मेंबर्स और कुछ खास दोस्तों को शादी में इनवाइट किया गया था।”

फिजिकल और मेंटल ट्रॉमा से गुजर रही थी एक्ट्रेस

बता दें कि, साल 2017 में सौम्या (Soumya Seth) अपने टीवी करियर को अलविदा कहकर अपने पहले पति अरुण कपूर के साथ यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका में शिफ्ट हो गईं थी। जहां उन्हें अपनी शादी में फिजिकली ट्रॉमा के साथ-साथ मेंटल ट्रॉमा भी सहना पड़ा था, जिसके कारण वह अरुण से अलग हो गई थी।

मंदिरों में ड्रैस कोड : औरतों को ठगने का नया तरीका

इस तुगलकी फरमान से पाखंडियों की असल मंशा जान आप के भी होश फाख्ता हो जाएंगे. मथुरा मंदिरों का शहर है। यही वहां का प्रमुख धंधा, उद्योग और रोजगार भी है। यह शहर चौबीसों घंटे पूजामय रहता है। सार्वजनिक स्थलों पर स्थानीय और बाहरी लोग तथाकथित भगवान के जयकारे करते नजर आते हैं।

रोजाना हजारों श्रद्धालु यहां आते हैं और करोड़ों रुपए चढ़ा कर चले जाते हैं, एवज में मोक्ष प्राप्ति का झूठा आश्वासन ले कर और फिर अगले साल किसी धार्मिक स्थल और मंदिरों में दक्षिणा चढ़ाने के लिए जीतोङ मेहनत में जुट जाते हैं। इन भक्तों की आस्था मंदिरों में बनाए रखने के लिए पंडेपुजारी कोई कसर नहीं छोड़ते। वे रोज कोई न कोई नया टोटका दुकान बनाए और बढ़ाए रखने के लिए करते रहते हैं, जिस से लोगों का ध्यान मंदिरों की तरफ जाए।

ऐसा ही एक नया टोटका जो इन दिनों देशभर में आजमाया जा रहा है वह है पंडेपुजारियों द्वारा ड्रैस कोड लागू करने का।

बीती 22 जून को बरसाने के मशहूर लाडलीजी महाराज मंदिर के बाहर भी एक चेतावनी की तख्ती लटका दी गई जिस पर लिखा था-

सभी महिलाएं एवं पुरुष मंदिर में मर्यादित कपङे पहन कर ही आएं। छोटे वस्त्र, हाफपैंट, बरमूडा, मिनी स्कर्ट, नाइटसूट, कटीफटी जींस आदि पहन कर आने पर बाहर से ही दर्शन कर सहयोग करें, धन्यवाद।

दान दक्षिणा और सौंदर्य

यहां सहयोग करें का मतलब बाहर से ही दानदक्षिणा दें। इस पर पंडेपुजारियों को कोई एतराज नहीं, रही बात पत्थर की मूर्तियों के दर्शन की तो 6 साल का बच्चा भी जानता है कि कणकण में भगवान है, वहां बिना कपड़ों के भी दर्शन किए जा सकते हैं। लेकिन मंदिरों की अपनी अलग मर्यादा होती है, पवित्रता होती है जो खासतौर से औरतों के छोटे या तंग कपड़ों से भंग हो जाती है। इस से पूजापाठ और दोनों हाथों से दक्षिणा बटोरने के कारोबार में तल्लीन पंडेपुजारियों का ध्यान भी भंग होता है और हो भी क्यों न आखिर वे भी तो सभी की तरह हाङमांस के पुतले हैं.

अब अगर कोई सुंदरी तंग कपङे पहन कर मंदिरों में जाएगी तो कामदेव के बाण तो चलेंगे ही, जिन्होंने भगवान शिव को भी नहीं बख्शा था तो फिर ये पुजारी क्या चीज हैं।

टारगेट सवर्ण औरतें

बरसाने के चंद दिनों पहले ही मथुरा के दूसरे मंदिरों में भी ऐसी ही तख्तियां लटका दी गई थीं लेकिन कहीं से कोई विरोध नहीं हुआ तो यह प्रयोग पूरे देश के मंदिरों में देखने में आया। भोपाल सहित मध्य प्रदेश के छोटे शहरों के मंदिरों में भी सनातनी संविधान का यह अनुच्छेद चस्पा कर दिया गया। लेकिन यह सोचना बेईमानी है कि यह पुरुषों और दलित व पिछड़ी औरतों के लिए भी था।

छोटे तबके की औरतें बहुत ज्यादा पैसे खर्च कर बड़े मंदिरों में नहीं जातीं। उन का काम तो गलीमोहल्ले के हनुमान या काली मंदिर से ही चल जाता है जो अभी तक ड्रैस कोड के कहर से अछूते हैं। लेकिन जल्द ही इस की गिरफ्त में आ जाएं तो हैरानी की बात नहीं होगी।

यह टोटका असल में सवर्ण औरतों को टारगेट करता हुआ है, जो धर्म की सब से बड़ी ग्राहक हैं। जब ये थोङाबहुत ही सही अपनी मरजी से रहने, खानेपीने लगती हैं, पढ़लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाती हैं, अपना अलग वजूद कायम कर लेती हैं तो धर्म के दुकानदारों के पेट में मरोड़ें उठने लगती हैं और दिनरात मर्दों के लातघूंसे खा कर भी उफ नहीं करती थीं। उन की अपनी कोई इच्छाएं नहीं होती थीं। इच्छाएं क्या कोई वजूद ही नहीं होता था। वे इतनी असहाय और दबीकुचली होती थीं कि पति अगर मर जाए तो दुलहन की तरह सजधज कर उस की चिता पर बैठ कर सती हो जाती थीं।

और तो और जीतेजी पति का जी उन से भर जाता था तो वह उन्हें घसीट कर घर के बाहर कर देता था और वे फिर मथुरावृंदावन सरीखे ही किसी धार्मिक शहर के मंदिरों के बाहर भीख मांग कर या फिर किसी कोठे की जीनत बन कर जीवन यापन कर लेती थीं। इस के बाद भी करवाचौथ पर पति की सलामती के लिए व्रतउपवास करती रहती थीं।

इधर पति दूसरीतीसरी या चौथी के साथ जिंदगी के तमाम सुख भोग रहा होता था क्योंकि तब औरतें मानसिक रूप से भी उन की गुलाम हुआ करती थीं। तब न तो कोई घरेलू हिंसा कानून था, न पुलिस थी न अदालतें और न ही किसी तरह का फैमिनिज्म था। कुल जमा मर्दों की मौज थी जो अब खत्म नहीं तो कम तो हो ही रही है। अब इस से बड़ा अधर्म भला क्या होगा कि औरत पांव की जूती नहीं रही।

एक के बाद एक

ड्रैस कोड का सिलसिला आदिम और वैदिक काल का है लेकिन इन दिनों यह ग्राहकी बढ़ाने और दुकानदारी चमकाने का जरीया बन गया है। मथुरावृंदावन के मंदिरों के पहले भी देश के हजारों मंदिरों के दरवाजों पर तंग और छोटे कपड़ों वाली तख्तियां लटकी थीं जिन्हें देख इतना तो हर किसी को समझ आया कि पुरुष शब्द तो यों ही जोड़ दिया गया है।

दरअसल, यह चेतावनी सवर्ण औरतों के लिए है और इस के अपने अलग माने भी हैं. मकसद औरतों को धर्म के नियंत्रण में लाना और रखना है और यह काम बिना बंदिशें लगाए हो ही नहीं सकता। रोज कई मंदिरों पर यह चेतावनी टांगी जा रही है। तय है कि मंशा और इंतजार किसी बवाल के खड़े होने का है जिस से औरतों की मुश्कें और कसी जाएं। उन्हें उन की प्राकृतिक अपवित्रता और पापी होने का एहसास कराया जा सके। इस से होगा यह कि वे जोश और अवसाद दोनों की गिरफ्त में आते दोगुना, चारगुना चढ़ावा चढ़ाएंगी। छिटपुट कोई हल्ला मचेगा तो उसे मैनेज करने मठों में पसरे धर्म गुरुओं सहित भगवा गैंग के नेताओं और भगवा गमछाधारियों की नई पीढ़ी के होनहार युवा हाथ में डंडा लिए तैयार हैं ही।

20 जून को राजस्थान के भीलवाडा के कोटडी कसबे के चारभुजा मंदिर में भी मर्यादित कपड़ों वाली तख्ती टंगी थी। अपनी मनमानी को धार्मिक विस्तार देते इस मंदिर के ट्रस्ट ने नोटिस में यह भी व्याख्या की है कि मंदिर आस्था व मर्यादा का प्रतीक है इसलिए जो भी भगवान चारभुजा के दर्शन करना चाहता है उसे मर्यादित कपङे पहनने होंगे यानी भक्त बाहर से ही हाथ जोड़ कर जा सकते हैं लेकिन मुट्ठी दानपात्र में खोल सकते हैं जो हर मंदिर के बाहर अनिवार्य रूप से रखा रहता है।

एक हिंदू औरत के लिए मर्यादित कपड़ों का मतलब होता है साङी जिस के पल्लू से सिर ढंका हो या सलवारसूट जिस की चुन्नी सिर पर हो।

अब कौन महिला इन ट्रस्टियों और पंडों से बहस करे कि यह अनावश्यक प्रतिबंध क्यों? क्या भगवान तंग और छोटे कपड़ों से डरता है और इस बाबत क्या उपर से कोई मैसेज आया है? वैसे तो एक तरह से अच्छा ही है कि महिलाएं मंदिर जाने के झंझटों से बचें लेकिन मर्यादाओं वाले इस देश की कुछ महिलाएं भी अव्वल दर्जे की ढीठ हैं। हमेशा की तरह वे इन पंडों के इशारों पर नाचना ही धर्म समझेंगी और खुश होंगे वे हिंदूवादी जिन्होंने यह मुहिम बीती 20 मई को मुज्जफरनगर के श्री बालाजी महाराज मंदिर से छेड़ी है। अभी तक तो मंदिर के नियमों में आरती और प्रसादी के अलावा प्रवेश समय ही शामिल रहता था अब कपड़ों वाली धारा भी जुड़ गई है।

अलीगढ़ का गिलाहराज मंदिर हो या इंदौर का तिरुपति बालाजी व्यंकटेश मंदिर, वहां ड्रैस कोड लागू हो चुके हैं। न केवल हिंदू राष्ट्र बल्कि देश का विश्वगुरु बनना भी जरूरी है कि औरतें वैसे रहें जैसे धर्म के ठेकेदार और छुटभैये सैल्स वाले चाहते हैं। मध्य प्रदेश के अशोकनगर और बङबानी जैसी छोटी जगहों के मंदिरों में भी नोटिस लग गए हैं।

जैन मंदिर भी चपेट में

यह महज इत्तफाक की बात नहीं है कि यह नोटिस देशभर के मंदिरों में जून के पहले सप्ताह से लग रहे हैं। जैसेजैसे बात फैलती जा रही है वैसेवैसे यह सिलसिला और बढ़ता जा रहा है। अब तो जैन धर्म भी इस दौड़ में शामिल हो गया है। यही नोटिस इंदौर के दिगंबर जैन मंदिर में लगा तो शिमला के जैन मंदिर में भी उन महिलाओं को प्रवेश नहीं दिया जा रहा जो तथाकथित अमर्यादित कपङे पहन कर आई थीं।

उम्मीद है कि अब महिलाओं को धर्म का असली ज्ञान मिल रहा होगा कि वे दासियों के लिए नहीं बल्कि स्वामियों के लिए हैं जो कई रस्मों में पूजा करने की पात्रता रखते हैं लेकिन महिलाएं अगर टौप पहन कर मंदिरों में जाएं तो धर्म भ्रष्ट होने लगता है।

हिंदू यानी सनातन धर्म में तो फिर भी कुछ शर्तों के महिलाओं को मोक्ष का अधिकारी मान लिया जाता है लेकिन जैन धर्म में यह सहूलत नग्नता के चलते नहीं है जो मोक्ष के लिए नग्नता को अनिवार्य मानता है। शायद इसलिए धर्म के ठेकेदार हिंदुओं के नक्शेकदम पर चलते हुए आधेअधूरे कपड़ों के विरोध के अभियान में शामिल हो गए हैं। वैसे भी यह दिलचस्प है क्योंकि इस से औरतों को दबाए जाने का एहसास और क्रूर सुख जो मिलता है।

विवाद तो होंगे ही

इस नई मुहिम पर विवाद होना तय दिख रहा है क्योंकि कुछ आधुनिकाएं इस ज्यादती का विरोध करेंगी। उन से यह उम्मीद करना बेकार की बात है कि वे यह कहें कि तो हम मंदिर जाएं ही क्यों, जहां हम से भेदभाव और दोयम दरजे का बरताव किया जाता है। ये होनहार महिलाएं बेहतर जानती हैं कि मंदिर मर्दों के लिए हैं और एक खास जाति के पुरुष ही मंदिरों का संचालन और प्रबंधन करते हैं। ये लोग नहीं चाहते कि औरत में आत्मविश्वास आए। वे तो यह जताना चाहते हैं कि दुनिया की नजरों में औरत कुछ भी हो और हो जाए हमारी नजर और धार्मिक संविधान में तो वह शूद्रों के समतुल्य ही रहेगी।

इंदौर की एक बैंककर्मी नेहा की मानें तो क्या ये लोग अब स्क्रीनिंग भी करेंगे कि यह गलत है और यह सही है। फोकस सिर्फ कपड़ों पर ही क्यों विचारों पर क्यों नहीं? कोई महिला बहुत मर्यादित कपङे पहनें और मंदिरों में जा कर अपनी सास, बहू, ननद, भाभी, देवरानीजेठानी या पड़ोसिन का अनिष्ट ईश्वर से मांगे तो क्या उस की बात प्राथमिकता से सुनी जाएगी?

नेहा असल में वही कहना चाह रही है जो संतसाधु सदियों से कहते आ रहे हैं कि भगवान तो भाव का भूखा होता है तो फिर भगवान के दलाल किस चीज के भूखे हैं, यह उन्होंने कभी नहीं बताया क्योंकि इस से धर्म की असलियत सामने आती है।

कपड़ों के तंग और छोटे होने के नोटिसों का बढ़ता दायरा तो यह बताता है कि वे धार्मिक कायदेकानून, नियम और अनुशासन के नाम पर सिर्फ पैसा कमाते हैं और यह मुहिम उसी का एक हिस्सा है जो औरतों को और धार्मिक व आस्थावान बनाएगी।

भोपाल के नूतन गर्ल्स कालेज की बीए फाइनल की एक छात्रा से जब इस बारे में सवाल किया गया तो वह फट से बोली,”शुक्र है कि धर्म के ठेकेदार घरों में देखने नहीं आ रहे कि कहीं कोई महिला अमर्यादित कपङे पहन कर तो भगवान के सामने नहीं आ गई…”

अब कौन इस छात्रा को समझाए कि माहौल यही रहा तो एक दिन ‘वे’ घरों में भी झांकने आएंगे।

सास-बहू की कभी नहीं होगी लड़ाई, इन बातों का रखें ध्यान

सास और बहू के बीच झगड़ों की शुरुआत तब होती है जब वे दोनों यह समझने लगती हैं कि उन का एकदूसरे की सत्ता में अनाधिकृत प्रवेश हो रहा है. इस सोच के चलते उन के मन में प्रतिस्पर्धा का भाव जागता है, एकदूसरे के प्रति कटु आलोचना का जन्म होता है. इस स्थिति में दोनों ही एकदूसरे को अपने से कमतर आंकने की भूल करते हैं.

इस में संदेह नहीं कि एक परिवार में दोनों ही वयस्क होते हैं और उन का अपना स्वतंत्र अस्तित्व होता है, परंतु सास का अनुभव निश्चित तौर पर बहू से ज्यादा होता है और चूंकि परिवार में उस का पहले से प्रभुत्व होता है, वह बहू के आने के बाद भी घर में वैसा ही अधिकार और प्रभुत्व चाहती है. सासबहू के बीच झगड़े का दूसरा कारण मां और पुत्र का संबंध होता है.

वैसा संबंध सास और बहू के बीच कभी नहीं बन पाता है. सास को लगता है कि एक तीसरे शख्स ने उस के घर में आ कर उस के पुत्र के ऊपर उस से अधिक अधिकार जमा लिया है. दूसरी तरफ बहू समझती है कि उस का अपने पति के ऊपर विशेषाधिकार है और वह अपने पति के जीवन में अति विशिष्ट स्त्री का स्थान रखती है. जबकि इन दोनों के बीच पुरुष को एक ही समय पुत्र और पति दोनों की भूमिका निभानी पड़ती है.

कटुता के दूसरे मुख्य कारण  हैं : दहेज की मांग या इच्छा, बहू से पुत्र की कामना, पुत्री पैदा होने से नाराजगी आदि. दहेज का भयावह रूप 7वें-8वें दशक तक बहुत कम था. अगर था भी तो केवल उच्च या उच्चमध्य वर्ग में, परंतु धीरेधीरे इस ने निम्नवर्ग तक अपने पैर पसार लिए और आज इस के कारण अधिकांश परिवार दहेज की ज्वाला में जलने लगे हैं. खैर, दहेज की मांग एक विशेष कारण है और यह सामान्य व्यवहार की श्रेणी में नहीं आता.एक अनुमान के आधार पर भारत में लगभग 60 प्रतिशत परिवार दांपत्य जीवन में सासबहू के झगड़ों से प्रभावित होते हैं. सासबहू के झगड़ों के लिए केवल एक पक्ष को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं होगा. आमतौर पर कहानियों के माध्यम से  सासबहू संबंधों पर रोचक तथ्य देखे जा सकते हैं.

साहित्यिक सासबहुएं

प्रेमचंद के साहित्य में सासबहू के झगड़ों का बहुत क्षीण अस्तित्व दिखता है. उन की एक कहानी ‘तेंतर’ में सास अपनी बहू से तो कम, उस की जायी तीसरी पुत्री से ज्यादा नाराज रहती है, क्योंकि वह 3 पुत्रों के बाद जन्मी है और एक मान्यता के अनुसार, 3 पुत्रों के ऊपर जन्मी पुत्री अभागी होती है. सास मानती है कि वह परिवार के लिए अपशकुन ले कर आई है जिस से कोई न कोई अनहोनी होगी. परंतु जब कई महीनों तक कोई अनहोनी नहीं होती तो सास अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए उदरशूल का झूठा बहाना बना कर घर वालों को परेशान करती है. इस कहानी की पुत्रवधू बहुत सीधी है और वह सास की ज्यादतियां चुपचाप सहती रहती है.

प्रेमचंद की एक दूसरी कहानी ‘बूढ़ी काकी’ की सास एक उपेक्षित सास है. घर में भोज है, लोग दावत उड़ा कर चले जाते हैं, बेटा और बहू भी खापी कर सो जाते हैं, परंतु भूख से बिलबिलाती बूढ़ी काकी के बारे में कोई नहीं सोचता. उसी दौर की कहानीकार सुभद्राकुमारी चौहान की कहानियों में सासबहू के झगड़ों के बजाय उन के बीच प्रेम और सौहार्द्र का बंधन देखने को मिलता है. उन की कहानी ‘सोने की कंठी’ की बिंदो पढ़ीलिखी होने के कारण अपनी 2 जेठानियों और सास के बीच प्रेम और आदर की अधिकारिणी बन जाती है. उन के संयुक्त परिवार में कलह होने पर भी उस को कोई कुछ न कहता, बल्कि उस की जेठानियां अपने पतियों से पिट जातीं.50 से 60 के दशकों का जमाना हिंदी साहित्य में प्रयोगवादी कहानियों का जमाना था. उस दौरान अचेतन कहानी, सचेतन कहानी, नई कहानी, प्रगतिशील कहानी, अ-कहानी आदि के नाम से आंदोलन चले. इन कहानियों से परिवार और समा ज गायब हो गए, बस एक व्यक्ति जीवित रहा, जो पता नहीं कौन सी दुनिया में जीता था. लेकिन इसी बीच कुछ पत्रिकाओं ने परिवार और समाज को जिंदा रखा, जिन में सामाजिक और पारिवारिक कहानियां प्रमुखता के साथ प्रकाशित हो रही थीं.

इस संदर्भ में दामोदर दत्त दीक्षित की एक कहानी ‘बहू बेटी’ का उल्लेख जरूरी है. परिवार के बड़े बेटे की जब शादी की बात उठती है तो सभी चाहते हैं कि बहू संस्कारी आए, परंतु लड़का पढ़ीलिखी शहरी बहू पसंद करता है, जिसे घूंघट करना तो दूर, साड़ी पहनना तक नहीं आता, परंतु बेटे की खुशी के लिए पहले उस की मां मान जाती है, बाद में बाप भी यह कह कर मान जाता है, ‘चलो, मैं समझूंगा, घर में बहू नहीं बेटी आई है.’ यह आधुनिक साहित्य की कहानी है और आज के प्रगतिशील समाज में शिक्षित परिवारों में ऐसा बदलाव आया है. इस तरह आप देख सकते हैं कि 60-70 के दशक में सासबहू की कहानियों में प्रेमसौहार्द्र के साथसाथ एक आदर्शवादी परिवार की परिकल्पना का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखता है. जबकि आधुनिक साहित्य में सासससुर के विचारों में उदारवादी दृष्टिकोण आया है. चित्रा मुद्गल की एक कहानी ‘दुलहिन’ में सासबहू के बीच इस बात को ले कर मनमुटाव रहता है कि सास और बहू दोनों एक ही समय गर्भवती हो जाती हैं. यह एक ऐसी समस्या है जो सार्वभौमिक या शाश्वत नहीं है, इसलिए इसे अपवादस्वरूप मानना ही ज्यादा अच्छा होगा.

बदलते कथानक

हिंदी  कहानियों  में  समय  के साथसाथ कथानक में बदलाव अवश्य आए हैं और कुछ समस्याएं आधुनिक कथा साहित्य में नए सिरे से उभर कर सामने आई हैं, जैसे दहेज की समस्या. इस दानव के कारण कितनी ही नववधुएं अग्नि की ज्वाला में जल कर राख हो गईं और कितने ही परिवार मुकदमों के चक्कर में बरबाद हो गए. ये प्रसंग कहानियों के मुख्य विषय बने. देश के कुछ भागों में अभी भी यह समस्या बनी हुई है, परंतु शिक्षा के प्रसार के साथसाथ इस में कमी आई है. संयुक्त परिवारों के टूटने से भी बहुत सी समस्याओं का समाधान हुआ है. अब बेटे और बहुएं अपने मांबाप या सासससुर से दूर अलगअलग शहरों या विदेशों में रहते हैं. सो, सास और बहू के विवाद अगर समाप्त नहीं तो कम अवश्य हुए हैं. शिक्षा के विस्तार के साथसाथ बहुएं अब नौकरियां करने लगी हैं और वे परिवार में पति के बराबर आर्थिक योगदान दे रही हैं. ऐसी स्थिति में कुछ मनमुटाव होते हुए भी सासें अपनी बहुओं से सामंजस्य बिठा कर चलने में ही अपनी और परिवार की भलाई समझती हैं. बहू भी सास को घर की जिम्मेदारी देने में हिचकती नहीं है क्योंकि वह बेफिक्र हो कर घर से बाहर रह पाती है. यह जरूरी भी है वरना घर में कलह और संबंधों में खटास आनी तय है.

आज ज्यादातर परिवार शिक्षित हैं. शहरों में परिवार का लगभग हर सदस्य नौकरीपेशे वाला है. ऐसे में उन के जीवन में झगडे़ के लिए कोई जगह नहीं है. व्यस्त जीवन में हम इस के लिए समय नहीं निकाल सकते. इसलिए सासबहू अगर अपनी भूमिका जिम्मेदारीपूर्वक निभाएंगी तो पारिवारिक जीवन में खुशियों के फूल महकते रहेंगे.

YRKKH Spoiler : मंजरी के फैसले से अभिमन्यु की जिंदगी में आएगा भूचाल, हैरान रह जाएगी अक्षरा

YRKKH Spoiler alert : हर्षद चोपड़ा और प्रणाली राठौर का शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ टीवी का सबसे चहेता सीरियल हैं। शो में आए दिन नए-नए ट्विस्ट एंड टर्न्स देखने को मिलते रहते हैं। इसी वजह से शो की टीआरपी लगातार बढ़ती जा रही हैं।

हालांकि इस समय में भी सीरियल में जबरदस्त ड्रामा देखने को मिल रहा है। आने वाले एपिसोड में भी दर्शकों को खूब तमाशा देखने को मिलेगा। जहां एक तरफ बड़ें पापा, मंजरी को बुरा भला कहेंगे तो वहीं मंजरी अपने तर्क देगी। इसके अलावा अक्षरा और अभिनव बड़े पापा और मंजरी को समझाने का भी प्रयास करेंगे, लेकिन दोनों अपनी बातों पर अड़े रहेंगे। वहीं मंजरी अभिमन्यु की जिंदगी से जुड़ा एक फैसला भी लेगी, जिसको सुनने के बाद अक्षरा और अभिमन्यु दंग रह जाएंगे।

बड़े पापा का फूटा गुस्सा

आने वाले एपिसोड में देखने को मिलेगा कि बड़े पापा, मंजरी की क्लास लगाएंगे। वह बोलेंगे, ‘हमने मान-सम्मान और पूरे आदर-सत्कार के साथ आपको शादी में इनवाइट किया है। अपको घर में रहने की जगह दी है और आपने क्या किया? लोग जब शादी में आते है तो सौ शिकयतें करते हैं, लेकिन आपने क्या किया? आपने तो जोड़ी पर ही ऐतराज जता दिया कि आपको ये जोड़ी ही पसंद नहीं है। इसलिए इसे तोड़ दो। पर क्यों?’ वहीं बड़े पापा के अलावा बड़ी मां भी मंजरी को सुनाती है, लेकिन वह चुप-चाप खड़े होकर सबकी बाते सुनती रहती है।

मंजरी- तीनों का एक परिवार होगा

इसके आगे देखने को मिलेगा कि जब मंजरी का सब्र टूट जाता है तो वह कहती हैं, ‘मैं सफाई क्यूं दूं जब मैने कुछ गलत कहा ही नहीं।’ इसके आगे मंजरी कहती है, ‘सब मुझे पागल समझ रहे हैं क्योंकि किसी में सच सुनने की ताकत ही नहीं है। मेरा दिल जानता है मेरा कहा सच होगा। आज नहीं तो कल अक्षरा-अभिमन्यु साथ होंगे। तीनों का एक परिवार होगा।’

अक्षरा ने की मंजरी की बोलती बंद 

ये बात सुनते ही अक्षरा भड़क जाएगी और कहती है, ‘आप नहीं जानती मेरा और अभिनव जी का रिश्त कितना खास है। आप नहीं जानती है मैं अभिनव से कितना प्यार करती हूं, जितना प्यार अभिनव ने मुझे और अभीर को दिया उतना प्यार हमें और कोई नहीं दे सकता। और बात रही अभिमन्यु और मेरी परफेक्ट फैमिली की तो वो हो ही नहीं सकता। मेरा आप लोगों पर से भरोसा उस दिन ही टूट गया था, जिस दिन आपने मुझसे रिश्तो तोड़कर मुझे घर से निकाल दिया था। अब तो मैं आप पर भरोसा भी नहीं कर सकती।’ हालांकि इसके बाद भी मंजरी अपनी जिद नहीं छोड़ेगी। इस एपसिड को देखने के बाद अब ऐसा लग रहा है कि अब जल्द ही शो में और ज्यादा धमाका देखने को मिलेगा।

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