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राहुल गांधी : चित भी मेरी पट भी मेरी

राहुल गांधी की संसद सदस्यता और उन के आवास को ले कर जिस तरह नरेंद्र मोदी की सरकार के समय घटनाक्रम देश ने देखा उसे हमेशा याद किया जाएगा. चाहे मोदी सरकार लाख पल्ला झाड़ते रहे मगर अपना दामन नहीं बचा सकती.

अब जब उच्चतम न्यायालय से राहुल गांधी की दोषसिद्धि का फैसला आ गया है इस निर्णय को स्वीकृति देने में लेटलतीफी की जा रही है. माना जा रहा है कि अदृश्य इशारे पर राहुल गांधी को जल्द संसद में ऐंट्री नहीं मिलने वाली है और इस सत्र को निकालने के फिराक में लोकसभा अध्यक्ष दिखाई दे रहे हैं.

सांसत में सरकार

मगर सच तो यह है कि राहुल गांधी के साथ जो दमन किया जा रहा है उस से देशभर में उन्हें संवेदना मिलने लगी है. हालत यह है कि अगर संसद में राहुल गांधी की ऐंट्री हो जाती है तो भी मोदी सरकार सांसत में है और नहीं होती है तो और भी ज्यादा बड़ा संदेश देश में फैलता चला जा रहा है.

कुल मिलाकर नरेंद्र मोदी के लिए यह मामला गले में फंसी हड्डी के समान है जिसे केंद्र सरकार न निगल पा रही है और न ही उगल पा रही है.

यही कारण है कि हमेशा मुखर रहने वाले शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के नेता संजय राउत ने मोदी सरकार के रुख को देखते हुए दावा किया कि केंद्र सरकार राहुल गांधी से डरी हुई है और इसी वजह से उच्चतम न्यायालय के आदेश के बावजूद कांग्रेस नेता की लोकसभा की सदस्यता अभी तक बहाल नहीं की गई है.

उच्चतम न्यायालय ने ‘मोदी उपनाम’ को ले कर की गई कथित विवादित टिप्पणी के संबंध में 2019 में दायर आपराधिक मानहानि मामले में राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगाते हुए शुक्रवार को उन की लोकसभा की सदस्यता बहाल करने का रास्ता साफ कर दिया है.

संजय राउत ने कहा,”उन्हें संसद की सदस्यता से जिस तत्परता से अयोग्य ठहराया गया था, वह उच्चतम न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि पर रोक के बाद नहीं दिखाई दे रही है. 3 दिन बीत गए हैं, लेकिन लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने अभी तक उन की सदस्यता को बहाल नहीं किया है.”

शिवसेना नेता ने दावा किया,”केंद्र सरकार राहुल गांधी से डरी हुई है जिस के कारण उन्हें अभी तक सांसद के रूप में बहाल नहीं किया गया है.”

लोकसभा अध्यक्ष और संवैधानिक संकट

दरअसल, राहुल गांधी के प्रकरण में नरेंद्र मोदी सरकार यह कह सकती है कि इस में सरकार की कोई भूमिका नहीं है और यह सच भी है. आज सब से बड़ा दांव लगा हुआ है लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की निष्पक्ष छवि पर. उन के निर्णय से राहुल गांधी संसद में आ सकते हैं और देश में यह संदेश पहुंच जाएगा कि न्यायालय का सम्मान किया जा रहा है. मगर जिस तरह राहुल गांधी के मामले में फैसला आने के बाद टालमटोल का रवैया जारी है और आगे भी यह बना रहता है तो इस का खमियाजा लोकसभा अध्यक्ष के रूप में ओम बिरला को ही उठाना पड़ेगा.

एक निष्पक्ष लोकसभा अध्यक्ष के रूप में उन की छवि तारतार होने की संभावना है क्योंकि लोकसभा अध्यक्ष होने के नाते उन का यह कर्तव्य है कि वह राहुल गांधी के प्रकरण में तत्काल फैसला लें.

दुनिया देख और समझ रही है

आज देश और दुनिया की निगाहें लोकसभा सचिवालय पर टिकी हैं, जब वह (सचिवालय) संभवतया, ‘मोदी उपनाम’ मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर उच्चतम न्यायालय की ओर से लगाई गई रोक को स्वीकार करेगा और उन की संसद सदस्यता बहाल करने के संबंध में फैसला करेगा.

वहीं, लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव और राज्यसभा में दिल्ली सेवा विधेयक पर अगले हफ्ते होने वाली चर्चा के मद्देनजर संसद के मौनसून सत्र के आखिरी सप्ताह के हंगामेदार रहने के आसार हैं. इस में अगर राहुल गांधी शामिल हो जाएंगे तो संसद का माहौल ही बदल जाने की संभावना है.

यदि लोकसभा के सदस्य के तौर पर राहुल को अयोग्य ठहराने का फैसला रद्द किया जाता है, तो कांग्रेस की प्राथमिकता होगी कि अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान गांधी विपक्ष की ओर से अहम वक्ता की भूमिका निभाएं.

उच्चतम न्यायालय ने ‘मोदी उपनाम’ को ले कर की गई कथित टिप्पणी के संबंध में 2019 में दायर आपराधिक मानहानि मामले में राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगाते हुए शुक्रवार को उन की लोकसभा की सदस्यता बहाल करने का रास्ता दिखा दिया है.

जानबूझ कर देरी

यहां महत्त्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि ओम बिरला ने कहा कि उन्हें उच्चतम न्यायालय के आदेश का अध्ययन करने की आवश्यकता है. सवाल यह भी है कि जब गुजरात की निचली अदालत से फैसला आया तो आननफानन में फैसला ले लिया गया जबकि कानून के जानकारों के दृष्टिकोण से अगर राहुल गांधी अपील में जा रहे थे तो लोकसभा सचिवालय को यह जल्दबाजी नहीं दिखानी चाहिए थी और अब देश के महाअदालत यानि उच्च न्यायालय के फैसले के बाद जो लेटलतीफी की जा रही है उस से संवैधानिक संकट खड़े होने की पूरी संभावना है.

Sushant Singh Rajput के हमशक्ल को देख हैरान हुई राखी सावंत, कहा- बदला लेने वापस आए

Sushant Singh Rajput lookalike : बॉलीवुड के उभरते सितारे यानी सुशांत सिंह राजपूत की मौत को 2 साल हो चुके हैं लेकिन लोगों के दिलों में वो आज भी जिंदा है. उनके फैंस अक्सर सोशल मीडिया पर उनको याद कर उनकी फोटो और वीडियो शेयर करते रहते हैं. हालांकि इस बार सुशांत सिंह राजपूत नहीं बल्कि उनका हमशक्ल सुर्खियां बटोर रहा है. दिवंगत एक्टर सुशांत के हमशक्ल (Sushant Singh Rajput lookalike) की वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है, जिस पर लोग जमकर कमेंट कर रहे हैं. वही इस वीडियो पर बॉलीवुड की ड्रामा क्वीन राखी सावंत ने भी रियेक्ट किया है.

एक्ट्रेस राखी सावंत (rakhi sawant) हमेशा से ही सुशांत सिंह राजपूत के लिए न्याय की बात करती रही है. उन्हें कई बार सोशल मीडिया पर एक्टर की वकालत कर न्याय की मांग करते देखा गया है.

विरल भयानी ने शेयर की वीडियो

आपको बता दें कि सेलिब्रिटी फोटोग्राफर विरल भयानी ने अपने इंस्टाग्राम हैंडल पर एक्टर सुशांत सिंह राजपूत के हमशक्ल (Sushant Singh Rajput lookalike) का वीडियो शेयर किया है. सुशांत के हमशक्ल का नाम डोनिम अयान है, जिनकी शक्ल एक्टर से काफी मिलती-जुलती है.

जानें क्या कहा राखी सावंत ने ?

इस वीडियो को देखने के बाद सभी लोग दंग हैं क्योंकि वीडियो में जो व्यक्ति दिखाई दे रहा है वह हूबहू सुशांत की तरह दिखता है. एक्ट्रेस राखी सावंत (rakhi sawant) ने भी इस वीडियो पर कमेंट किया है. उन्होंने लिखा ‘वह बदला लेने के लिए वापस आए हैं, कर्म’.

वहीं सुशांत के फैंस भी अपनी खुशी जाहिर कर रहे हैं. एक यूजर ने लिखा, ‘ओ माई गॉड, इतना सिमिलर. अब एक्टर सुशांत सिंह की कमी महसूस नहीं होगी.’ एक और यूजर ने लिखा, ‘इस वीडियो (Sushant Singh Rajput lookalike) को देखने के बाद अब ऐसा लग रहा है कि भगवान जी ने सुशांत को वापस भेज दिया हैं.’

YRKKH: अभिनव को मारने के लिए अभिमन्यु ने बनाया प्लान! अक्षरा को मिला सबूत

Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Spolier alert :  छोटे पर्दे का शो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इन दिनों काफी मजेदार ट्रैक चल रहा है. सीरियल के करंट ट्रैक की बात करें तो आज दिखाया जाएगा कि बिरला और गोयनका परिवार अभिनव का बर्थडे सेलिब्रेट करने के लिए पिकनिक पर गए हुए हैं. बर्थडे सेलिब्रेशन की पूरी प्लानिंग अभिमन्यु (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Spolier) खुद करता है लेकिन इस बीच अभिनव के साथ एक हादसा हो जाएगा जिससे कहानी में नया ट्विस्ट आएगा.

अभिमन्यु करेगा अभिनव की तारीफ

आज दिखाया जाएगा कि अभिनव (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Spolier alert) के बर्थडे पर बिरला और गोयनका परिवार दोनों साथ में लंच करते हैं. इसी बीच बारी-बारी से सभी लोग अभिनव के साथ का अपना स्पेशल मोमेंट शेयर करते हैं. अभिमन्यु भी अभिनव की तारीफ करता है. इसके बाद दिखाया जाएगा कि जब सभी लोग अभिनव की बर्थडे पार्टी की तैयारियां करते हैं तो तब अक्षरा और अभिमन्यु के बीच बहस हो जाती है और अभिनव उनकी सारी बातें सुन लेता है. लेकिन वह दोनों को शांत कराता है, जिससे दोनों की बहस वहीं खत्म हो जाती है.

अक्षरा को महसूस होगी घबराहट

इसके आगे दिखाया जाएगा कि अबीर अभिनव को अपने साथ गेमिंग जोन में ले जाना चाहता है लेकिन अभिमन्यु अभिनव को अपने साथ ले जाता है. जब अभिनव अभिमन्यु के साथ जाता है तो पहले उसकी घड़ी अक्षु की साड़ी में अटक जाती है और फिर अभिनव को जोर से ठोकर लगती है. इससे अक्षरा को घबराहट होती है.

अभिनव के लिए अभिमन्यु  लाएगा शराब

इसके बाद अभिमन्यु (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai Spolier alert) अभिनव को बताता है कि उसने उसके लिए कसौली से एक स्पेशल शराब मंगवाई है जो बात मुस्कान सुन लेती है. फिर अभिनव और अभिमन्यु शराब की बोतल को लेकर पहाड़ी पर जाते हैं. जहां अभिनव तो शराब पीता है लेकिन अभिमन्यु शराब को नीचे गिरा देता है फिर दोनों अपने मन की बात एक दूसरे से करते हैं.

उसके बाद कहानी में नया मोड़ आएगा और दिखाया जाएगा कि अभिनव की मौत हो जाती है जिसके लिए सब अभिमन्यु को जिम्मेदार मानते हैं. लेकिन हकीकत में क्या अभिमन्यु ने ही अभिनव को खाई से धक्का दिया है? इसका सच तो आने वाले एपिसोड में ही पता चलेगा.

अभिनेता अन्नू कपूर की असंवेदनशीलता या बड़बोलापन

इन दिनों पूरे देश में लोग बढ़ती हुई महंगाई की लगातार चर्चा कर रहे हैं. लोग इस बात से परेशान हैं कि टमाटर 200 रुपए किलो से ज्यादा के भाव में बिक रहा है. मगर अन्नू कपूर की नजर में कहीं कोई महंगाई नहीं है.

अभिनेता, निर्देशक, निर्माता व रेडियो जौकी अन्नू कपूर की प्रतिभा का कोई सानी नहीं. अभिनेता अन्नू कपूर ने वर्ष 1994 में फिल्म ‘अभय’ का निर्देशन कर स्वर्ण कमल और राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल किया था.

वर्ष 1979 से फिल्मों में कदम रखने वाले अन्नू कपूर अब तक सौ से भी अधिक फिल्मों में यादगार किरदार निभा कर अपनी अलग पहचान रखते हैं. उन्हें संगीत की भी अच्छी समझ है. वह कई वर्ष तक ‘जीटीवी’ पर संगीत कार्यक्रम ‘अंताक्षरी’ का संचालन कर चुके हैं.

अन्नू कपूर ऐसे कलाकार हैं, जिन्हें फिल्म, साहित्य सहित हर विषय की काफी जानकारी है. लेकिन पिछले कुछ वर्षों से अन्नू कपूर एक खास विचारधारा के साथ जुड़ कर कुछ अजीब सी बातें करने लगे हैं.

इन दिनों वह पंडित दीनदयाल उपाध्याय की बायोपिक फिल्म में पंडित दीनदयाल उपाध्याय का किरदार निभाते हुए काफी शोहरत बटोर रहे हैं, तो वहीं वह निर्माता सुरेश गोंडालिया व निर्देशक इरशाद खान की 18 अगस्त को प्रदर्शित फिल्म ‘नौनस्टौप धमाल’ को ले कर सुर्खियों में हैं. हाल ही में इस फिल्म के ट्रेलर को लौंच किया गया. उसी अवसर पर फिल्म के अपने किरदार के साथ कई मुद्दों पर अन्नू कपूर ने लंबी बात की.

मंहगाई की बात छेड़ते हुए अन्नू कपूर ने खुद कहा, ‘‘जहां तक बात की जा रही है कि इन दिनों महंगाई बहुत बढ़ी है, तो यह बातें बकवास है. हम ने पहले भी चुनाव आने पर महंगाई बढ़ने की बातें बहुत सुनी हैं. हमारे दादा के मुंह से भी मैं ने यही सुना था कि महंगाई बहुत ज्यादा है, जबकि उन दिनों आठ आने किलो घी मिलता था. हमेशा चुनाव के समय लोग महंगाई का रोना रोते हैं. यह सब बकवास बात है. अभी कोरोना की महामारी से पूरा विश्व गुजरा है. भारत भी गुजरा है. 130 करोड़ की आबादी वाले हमारे देश में महामारी में न जाने कितने लोगों को खोया है. पैसे का नुकसान हो गया. काम नहीं है जी… धंधा बंद हो गया. सब यही रो रहे हैं. इस के बावजूद कोरोना के समय कार की बिक्री 35 प्रतिशत ज्यादा हुई है. तो फिर महंगाई कहां है? यह सब चुनाव के स्टंट होते हैं, जो कि चलते रहते हैं. इन पर ध्यान नहीं देना चाहिए. हमारे हिंदुस्तान में बहुत पैसा है. एकएक झोंपड़े से कम से कम आधाआधा किलो सोना निकलेगा.’’

इतना ही नहीं, सपनों की बात करते हुए पिछले दिनों सुबह आत्महत्या करने वाले कला निर्देशक नितिन देसाई को श्रृद्धांजलि देते हुए अन्नू कपूर ने जो कहा, उस से भी लोग सहमत नहीं हैं. अन्नू कपूर ने कहा, ‘‘हमारी फिल्म इंडस्ट्री के बहुत महत्वपूर्ण व्यक्ति आर्ट डायरैक्टर नितिन देसाई चले गए, उन्होंने सपने बहुत बड़ेबड़े देखे थे. ईश्वर उन की आत्मा को शांति दे.’’

फैक्ट्री यूनियन सा ब्रिक्स

यूरोप और अमेरिका जब कुछ कमजोर पड़ रहे थे और भारत, रूस, चीन, ब्राजील, साउथ अफ्रीका चमकने लगे थे, ब्रिक्स संगठन का गठन किया गया था और उम्मीद थी कि ये देश अमेरिका व यूरोप का आर्थिक मुकाबला कर सकेंगे.

अफसोस है कि ये सभी देश अपनीअपनी राजनीति का शिकार होने लगे हैं. चीन की गति कोविड के बाद धीमी पड़ गई है और अमेरिका ने उस का आर्थिक वायकौट शुरू कर दिया है. रूस ने यूक्रेन पर आक्रमण कर के आफत मोल ले ली. भारत में नरेंद्र मोदी की पार्टी की हिंदूमुसलिम भेदभाव नीति से बहुत से देश भयभीत हैं. साउथ अफ्रीका के नेता करप्शन केसों में फंस रहे हैं. ब्राजील में भी राजनीति आर्थिक विकास पर हावी होने लगी है.

इन नेताओं की एक बड़ी भूल यह थी कि उन्होंने सोचा था कि यूरोप और अमेरिका सदा ही इन के खरीदार बने रहेंगे. इन्हें यह एहसास नहीं था कि इन देशों में लोकतंत्र की जड़ें तो गहरी है हीं, मानसिक आजादी का खून भी हर नस में बहता है. इस के मुकाबले ब्रिक्स देशों में एक तरह की तानाशाही ही है. वहां सत्ता में बने रहना ही नेताओं का काम है और इस के लिए वे कुछ भी करने को तैयार हैं. इन सब देशों में नई सोच और नए विचारों पर सरकारी पहरा है. वे मानव विकास के मूलमंत्र, नए प्रयोग करने की क्षमता में विश्वास नहीं रखते. इन देशों के हर नेता को लगता है कि सोचने की आजादी का अर्थ है सरकार के खिलाफ सोचने की आजादी और ये जोड़तोड़ कर के चाहे हवाईजहाज, रौकेट, एटमबंद बना लें पर ये मौलिक शोध नहीं करते. इन सब का समाज बेहद दकियानूसी है.

अब जोहनसबर्ग, साउथ अफ्रीका में हुई शिखर बैठक में सिर्फ शब्दों के, कुछ और नहीं कहा गया. युद्ध क्षेत्र के अस्त्रों की बात हों, इन्फौर्मेशन टैक्नोलौजी की या क्लाइमेंट चेंज की बात हो, इन देशों में कुछ नया नहीं हो रहा. ये मिल कर ब्रिक्स को यूरोप, अमेरिका को कोसने का संगठन बना रहे हैं जिस से यूरोप, अमेरिका की सेहत को कोई असर नहीं पड़ने वाला.

जहां अमेरिका की प्रति व्यक्ति आय 70 हजार डौलर है, जरमनी की 65 हजार डौलर, इंगलैंड की 50 हजार डौलर वहीं ब्रिक्स देशों के आम आदमियों की प्रति व्यक्ति आय 2 हजार डौलर (भारत) 1,500 डौलर (चीन) तक ही सीमित है. हर साल ब्रिक्स देशों का आम आदमी अमीर देशों के आम आदमी से पिछड़ता जा रहा है. ऐसे में ब्रिक्स संगठन की हैसियत एक बड़ी फैक्ट्री की यूनियन से ज्यादा नहीं है.

 

छाती में इन्फेक्शन, बरतें सावधानी

टीबी का इन्फैक्शन, न्यूमोनिया आदि को हम ऐसे भूल रहे हैं कि जैसे हमारे देश से इन सब कलंकित बीमारियों को जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया गया हो. हम शायद यह नहीं जानते कि इन बीमारियों की देश में होने वाली अकाल मौतों में बड़ी भूमिका होती है. खासकर, टीबी का इन्फैक्शन देश में महामारी की तरह फैल रहा है. आश्चर्य की बात यह है कि हम उस के प्रति पूरी तरह से सचेत नहीं है. ऐसा लगता है कि टीबी का इन्फैक्शन हमारी जिंदगी का एक हिस्सा बन चुका है जो हमारे शरीर से मुलाकात करने यदाकदा आता रहता है.

भारत जैसे विकासशील देश में छाती के इन्फैक्शन के कारणों में न्यूमोनिया दूसरे नंबर पर आता है. अगर समय रहते न्यूमोनिया को नियंत्रण में न लाया गया तो मरीज को भयानक परिणाम भुगतने पड़ते हैं. इस के अलावा, छाती में और भी कई तरह के इन्फैक्शन होते हैं जो फेफड़े को तबाह कर के रख देते हैं.

समय रहते छाती के इन्फैक्शन को नियंत्रण में न लाया गया तो भयंकर परिणाम घटित हो सकते हैं. टीबी के इन्फैक्शन का अगर समय पर पूरी तरह से खात्मा न किया गया तो एक तरह से यह इन्फैक्शन स्वयं ही लाइलाज हो जाएगा और टीबी की कोई दवा असर करना बंद कर देगी. दूसरी बात यह है कि टीबी का इन्फैक्शन फेफड़े को धीरेधीरे नष्ट कर देगा. तब एक फेफड़ा खोने के अलावा आप के पास कोई विकल्प न बचेगा. इस तरह से अगर न्यूमोनिया के इन्फैक्शन को नियंत्रित न किया गया तो छाती में मवाद बन जाएगा. यह मवाद आप के फेफडे़ व आप की जान दोनों के लिए घातक सिद्घ होगा. फेफड़े का हिस्सा नष्ट होगा, साथ ही जान से भी हाथ धोना पड़ेगा.

क्यों होता है इन्फैक्शन

छाती में इन्फैक्शन होने के लिए जहां एक ओर कुपोषण यानी स्वस्थ व संतुलित आहार का अभाव होता है वहीं दूसरी तरफ दूषित वातावरण के कारण हवा में कीटाणुओं की भरमार होती है. इस के साथसाथ लोगों की आधुनिक व व्यायाम रहित जीवनशैली, पूर्ण निद्रा का अभाव व तनावग्रस्त मानसिकता भी इन्फैक्शन के कारण बनते हैं. कई और कारण हैं जैसे मादक द्रव्यों व शराब का प्रतिदिन सेवन, बीड़ीसिगरेट का प्रचलन और अनियंत्रित व अनियमित भोजन. इन सब का मिलाजुला असर फेफड़ों को चौपट कर रहा है. लोग यह नहीं समझते कि फेफड़ों को भी औक्सीजनयुक्त शुद्घ हवा की सख्त जरूरत होती है.

इस के अभाव में फेफडे़ कभी स्वस्थ नहीं रह पाते हैं अगर फेफड़ों को हर सांस के साथ औक्सीजन की मात्रा कम मिलेगी तो फेफड़े इन्फैक्शन के चपेट में आ जाएंगे.

छाती के इन्फैक्शन को समय रहते नियंत्रित न किया गया तो फेफड़े के चारों ओर पानी का जमाव होना शुरू हो जाता है. यह छाती में टीबी के इन्फैक्शन की शुरुआत है. अगर इस पानी को छाती से समय रहते न निकाला गया और टीबी के इन्फैक्शन को नियंत्रित न किया गया तो छाती में मवाद बनने की संभावना प्रबल हो जाती है और औपरेशन की जरूरत पड़ती है. आप को चाहिए कि समय रहते किसी थोरेसिक सर्जन यानी चैस्ट स्पैशलिस्ट से तुरंत परामर्श लें और उन की निगरानी में इलाज कराए.

चोट भी इन्फैक्शन का कारण

पसली के फै्रक्चर व छाती की चोट की भी छाती के इन्फैक्शन में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है. देश में अकसर देखा गया है कि छाती में चोट लगने व पसली टूट जाने पर उस का सही इलाज नहीं हो पाता है. ऐसा छाती की चोट से घायल व्यक्ति के परिवार वालों की अज्ञानता तथा अस्पतालों में थोरेसिक सर्जन की अनुलब्धता के चलते होता है. लोग यह नहीं समझते कि पसली टूटने या चटकने पर अकेले हड्डी ही नहीं टूटती बल्कि छाती के अंदर स्थित फेफड़े भी जख्मी हो जाते हैं और इन जख्मी फेफड़ों को अपनी कार्यशीलता को फिर से प्राप्त करने के लिए विशेष इलाज की जरूरत होती है. इस के लिए इस अवस्था में एक अनुभवी थोरेसिक सर्जन व एक अत्याधुनिक आईसीयू, कृत्रिम सांस सयंत्र (वैंटीलेटर) व क्रिटिकल केयर महकमे की आवश्यकता होती है. छाती की चोट से घायल मरीजों के परिवार वालों को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि अस्पताल में घुसने से पहले उस में इन सब सुविधाओं की उपलब्धता है या नहीं.

यह बात अच्छी तरह समझ लें कि छाती की चोट में हुआ इन्फैक्शन जानलेवा हो सकता है. छाती की चोट में फेफड़े के चारों ओर खून जमा होने और फिर उस में मवाद पड़ने का हमेशा खतरा बना रहता है. सही इलाज के अभाव में छाती की चोट के बाद पनपा इन्फैक्शन फेफडे़ को आंशिक रूप से नष्ट कर देता है.

इन्फैक्शन होने पर क्या करें

छाती में इन्फैक्शन की आशंका है और आप के फैमिली डाक्टर उसे हफ्ते या

10 दिनों में कंट्रोल नहीं कर पा रहे हैं, समस्या दिनपरदिन बढ़ती जा रही है तो आप तुरंत अनुभवी सर्जन से परामर्श लें और उन की निगरानी में जरूरी जांचें व प्रभावी इलाज करवाएं. शुरुआती दिनों में छोटे औपरेशन यानी छाती में एक नली डाल कर समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है.

कुछ जरूरी जांचें

छाती के इन्फैक्शन में चैस्ट एक्सरे, छाती का एचआरसीटी स्कैन व कभीकभी एमआरआई स्कैन की भी जरूरत पड़ती हैं. कभीकभी छाती की सीटी एंजियोग्राफी की आवश्यकता भी बन पड़ती है. इसलिए छाती के इन्फैक्शन से पीडि़त मरीज के परिवार वालों को चाहिए कि हमेशा ऐसे अस्पतालों में जाएं जहां इन सब जांचों की सुविधा हो और एक अनुभवी थोरेसिक सर्जन की चौबीसों घंटे उस अस्पताल में उपलब्धता हों.

इलाज के तरीके

फेफड़ों के इन्फैक्शन को सब से पहले दवाओं से नियंत्रित किया जाता है. जब छाती में इन्फैक्शन के कारण पानी या मवाद इकट्ठा हो जाता है तो उसे छाती में नली डाल कर निकाला जाता है. यह बड़ा कारगर उपाय है. इस छोटे से इलाज में अनावश्यक देरी फेफड़े को आंशिक या पूर्ण क्षति पहुंचा देती है. अगर एक तरफ के फेफड़े का एक हिस्सा या पूरा हिस्सा इन्फैक्शन के कारण पूर्णरूप से नष्ट हो चुका है तो तुरंत उसे किसी अनुभवी थोरेसिक सर्जन से निकलवा दें, अन्यथा फेफड़े का स्वस्थ हिस्सा या दूसरी तरफ का स्वस्थ फेफड़ा भी इन्फैक्शन की चपेट में आ जाएगा, और जानलेवा जटिलताएं पैदा हो जाएंगी. निष्कर्ष यह है कि छाती के इन्फैक्शन के मरीज सही समय पर सही अस्पताल व सही डाक्टर से प्रभावी ढंग से इलाज कराएं वरना पैसे व समय की बरबादी तो होगी ही, साथ ही जान से भी हाथ धोना पड़ेगा.

ज्योति से ज्योति जले : उन दोनों की पहचान कैसे हुई?

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दुश्चक्र: क्यों वंदना को बोझ लगने लगा श्याम?

स्कूल छूटने के बाद मैं साथी शिक्षिकाओं के साथ घर लौट रही थी, तभी घर के पास वाले चौराहे पर एक आवाज सुनाई दी, ‘बहनजी, जरा सुनिए तो.’

पहले तो मैं ने आवाज को अनसुना कर दिया यह सोच कर कि शायद किसी और के लिए आवाज हो लेकिन वही आवाज जब मुझे दोबारा सुनाई दी, ‘बहनजी, मैं आप से ही कह रहा हूं, जरा इधर तो आइए,’ तो इस बार मजबूरन मुझे उस दिशा में देखना ही पड़ा.

मैं ने देखा, चौराहे पर स्थित एकमात्र पान की दुकान वाला मुझे ही बुला रहा था. मुझे भी आश्चर्य हुआ कि पान की दुकान पर भला मेरा क्या काम? साथ की शिक्षिकाएं भी मेरी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगीं, लेकिन जब मुझे स्वयं ही कुछ पता नहीं था तो मैं भला उन से क्या कहती? अत: उन सब को वहीं छोड़ कर मैं पान की दुकान पर पहुंच गई और दुकानदार से कुछ पूछती उस से पहले उस ने स्वयं ही बोलना शुरू कर दिया :

‘‘बहनजी, आप इस महल्ले में अभी नईनई ही आई हैं न?’’

‘‘जी हां, अभी पिछले महीने ही मैं ने गुप्ताजी का मकान किराए पर लिया है,’’ मैं ने उसे जवाब दे दिया फिर भी दुकानदार द्वारा बुलाने का कारण मेरी समझ में नहीं आया.

‘‘अच्छा, तो मिस्टर श्याम आप के पति हैं?’’ दुकानदार ने आगे पूछा.

‘‘जी हां, लेकिन आप यह सब पूछ क्यों रहे हैं?’’ अब उस दुकानदार पर मुझे खीज होने लगी थी.

‘‘कुछ खास बात नहीं है, मुझे तो आप को सिर्फ यह बताना था कि सुबह  आप के पति दुकान पर आए थे और सिगरेट के 2 पैकेट, 4 जोड़े पान और कोल्डडिं्रक की 1 बड़ी बोतल ले गए थे. उस वक्त शायद उन की जेब में पैसे नहीं थे या फिर वे अपना पर्स घर पर ही भूल गए थे. उन्होेंने आप का परिचय दे कर आप से रुपए ले लेने के लिए कहा था,’’ दुकानदार ने मुझे बुलाने का अपना प्रयोजन स्पष्ट किया.

मैं ने पर्स खोल कर 100 रुपए का एक नोट दुकानदार की ओर बढ़ा दिया. उस ने पैसे काट कर जो पैसे वापस दिए, उन्हें बिना गिने ही मैं ने पर्स में रखा और वहां से चल दी. रास्ते में सोचने लगी कि इस आदमी ने यहां भी उधार लेना शुरू कर दिया. मेरे कानों में दुकानदार के कहे शब्द अब भी गूंज रहे थे :

‘कुछ भी हो आदमी वे बड़े दिलचस्प हैं. बातों का तो जैसे उन के पास खजाना है. बड़े काम की बातें करते हैं. दिमाग भी उन्होंने गजब का पाया है. मेरी दुकान की तो बहुत तारीफ कर रहे थे. साथ ही कुछ सुझाव भी दे गए.’

‘दिमाग की ही तो खा रहा है,’ मन ही मन सोचा और शिक्षिकाओं के समूह से आ मिली.

‘‘क्यों? क्या बात हो गई? क्यों बुलाया था दुकानदार ने?’’ रीना मैडम ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं, बस यों ही,’’ कहते हुए मैं ने बात को टाल दिया.

वे भी शायद घर पहुंचने की जल्दी में थीं, इसलिए किसी ने भी बात को आगे नहीं बढ़ाया. सब चुपचाप जल्दीजल्दी अपनेअपने घरों की ओर बढ़ने लगीं.

घर पहुंची तो देखा महाशय ड्राइंगरूम में सोफे पर लेट कर सिगरेट फूंक रहे थे. टेलीविजन चल रहा था और एक फैशन चैनल पर आधुनिक फैशन का ज्ञान लिया जा रहा था.

मुझे देखते ही श्याम बोले, ‘‘अच्छा हुआ यार, तुम आ गईं. मैं भी घर पर बैठेबैठे बोर हो रहा था. टेलीविजन भी कोई कहां तक देखे? फिर इस पर भी तो वही सब घिसेपिटे कार्यक्रम ही आते हैं.’’

जवाब में मैं ने कुछ भी नहीं कहा.

मेरी चुप्पी की ओर बिना कोई ध्यान दिए श्याम बोले, ‘‘सुनो, बहुत जोर की भूख लगी है. मैं सोच ही रहा था कि तुम आ जाओ तो साथ में भोजन करते हैं. अब तुम आ गई हो तो चलो फटाफट भोजन लगाओ, तब तक मैं हाथ धो कर आता हूं.’’

मेरा मन तो हुआ कि पूछ लूं, ‘क्या थाली ले कर खा भी नहीं सकते हो. सुबह स्कूल जाने से पहले ही मैं पूरा भोजन बना कर जाती हूं, क्या भोजन परोस कर खाना भी नहीं होता?’ लेकिन फालतू का विवाद हो जाएगा, यह सोच कर चुप रही.

‘‘क्या सोच रही हो?’’ मुझे चुप देख कर श्याम ने पूछा.

‘‘कुछ नहीं,’’ मैं ने संक्षिप्त सा जवाब दिया.

अभी मैं आगे कुछ कहती, इस से पहले ही जैसे श्याम को कुछ याद आ गया, वह बोले, ‘‘अरे, हां यार, घर में कुछ पैसे तो रख कर जाया करो. आज तुम्हारे जाने के बाद मुझे सिगरेट के लिए पैसों की जरूरत थी. पूरा घर छान मारा पर कहीं भी एक पैसा नहीं मिला. मजबूरन नुक्कड़ वाली पान की दुकान से मुझे सिगरेट उधार लेनी पड़ी. अभी कुछ रुपए दे देना तो शाम को मैं उस के रुपए चुका आऊंगा.’’

‘‘आप का उधार मैं ने चुका दिया है,’’ मैं ने संक्षिप्त सा उत्तर दिया और भोजन गरम करने में लग गई.

भोजन करते समय श्याम एक बार फिर शुरू हो गए, ‘‘यार, वंदना, यह तो बहुत ही गलत बात है कि सारे पैसे पर्स में रख कर तुम स्कूल चली जाती हो. ए.टी.एम. कार्ड भी तुम्हारे ही पास रहता है. ऐसे में अचानक यदि मुझे रुपयों की जरूरत पड़ जाए तो मैं क्या करूं, किस से मांगूं? जरा मेरी हालत के बारे में भी तो सोचो. मैं यहां पर घर की रखवाली करूं, सारी व्यवस्थाएं करूं, तुम्हारी देखभाल करूं, तुम्हारी सुरक्षा की चिंता करूं. ऐसे में यदि मेरी ही जेब खाली हो तो मैं कैसे ये सबकुछ कर पाऊंगा. पैसों की आवश्यकता तो पगपग पर होती है. अरे, तुम्हारे लिए ही तो मैं यहां पड़ा हूं.’’

‘‘आप को कुछ भी करने की जरूरत नहीं है. क्या करना है, कैसे करना है, मुझे सब पता है. और हां, रुपयों की चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. कोई रुपए मांगते हुए यहां घर तक नहीं आएगा. मुझे सब का हिसाब करना आता है,’’ मैं ने तिक्त स्वर में कहा.

पिछला अनुभव मुझे अच्छी तरह याद है कि उधार तो चुकेगा नहीं, उलटे दोबारा भुगतान अलग से करना पड़ जाएगा. रायपुर का एक किस्सा मुझे अच्छी तरह याद है कि किस तरह मुझे दुकानदारों के सामने शर्मिंदा होना पड़ता था. किस तरह एक ही बिल का मुझे 2 बार भुगतान करना पड़ता था. एक बार तो एक दुकानदार ने पूछ भी लिया था, ‘मैडमजी, यदि बुरा न मानें तो एक बात पूछ सकता हूं?’

‘पूछिए, गुप्ताजी क्या पूछना चाहते हैं आप?’ मुझे कहना पड़ा था क्योंकि गुप्ता किराना वाले के मुझ पर बहुत से एहसान थे.

‘मैडम, श्याम भाई कुछ करते क्यों नहीं? आप कहें तो मैं उन के लिए कहीं नौकरी की बात करूं?’ गुप्ताजी ने कुछ संकोच से पूछा था.

‘गुप्ताजी, बेहतर होगा ये सब बातें आप उन्हीं से कीजिए. उन के बारे में भला मैं क्या कह सकती हूं? अपने बारे में वे स्वयं ज्यादा अच्छी तरह से बता पाएंगे,’ कहते हुए मैं ने घर की तरफ कदम बढ़ा दिए थे.

‘‘कुछ ले नहीं रही हो, तबीयत खराब है क्या?’’ रुके हुए हाथ को देख कर श्याम ने पूछा.

‘‘कुछ विशेष नहीं, बस थोड़ा सिरदर्द है,’’ कह कर मैं किसी तरह थाली में लिया भोजन समाप्त कर के बिस्तर पर आ कर लेट गई. अतीत किसी चलचित्र की तरह मेरी आंखों के सामने घूमने लगा था.

मातापिता और भाइयों के मना करने और सब के द्वारा श्याम के सभी दुर्गुणों को बताने के बावजूद मैं ने श्याम से प्रेम विवाह किया था. श्याम ने मुझे भरोसा दिलाया था कि शादी के बाद वह स्वयं को पूरी तरह से बदल लेगा और अपनी सारी बुराइयों को छोड़ देगा.

शादी के बाद जब श्याम ने मुझे नौकरी के लिए प्रोत्साहित किया तो श्याम की सोच पर मुझे गर्व हुआ था. श्याम का कहना था कि यदि हम दोनों नौकरी करेंगे तो हमारी गृहस्थी की गाड़ी और ज्यादा अच्छी तरह से चल निकलेगी. उस समय मुझे श्याम की चालाकी का जरा भी अनुभव नहीं हुआ था…लगा कि श्याम सच ही कह रहा है. यदि मैं पढ़ीलिखी हूं, प्रशिक्षित हूं तो मुझे अपने ज्ञान का सदुपयोग करना चाहिए. उसे यों ही व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए.

संयोग से हमारी शादी के कुछ दिनों बाद ही केंद्रीय विद्यालय समूह में नौकरी (शिक्षकों) की रिक्तियां निकलीं. श्याम के सुझाव पर मैं ने भी आवेदनपत्र जमा कर दिया. जिस दिन मुझे शिक्षिका की नौकरी मिली उस दिन मुझ से ज्यादा खुश श्याम था.

श्याम की आंखों की चमक ने मेरी खुशियों को दोगुना कर दिया था. मुझे तब ऐसा लगा था जैसे श्याम को पा कर मैं ने जिंदगी में सबकुछ पा लिया. मेरी जिंदगी धन्य हो गई. हां, एक बात मुझे जरूर खटकती थी कि मुझ से वादा करने के बाद भी श्याम ने अपनी सिगरेट और शराब की आदतें छोड़ी नहीं थीं. कई बार तो मुझे ऐसा लगता जैसे वह पहले से कहीं अधिक शराब पीने लगा है.

श्याम की नौकरी लगे मुश्किल से 8 महीने भी नहीं हुए थे कि अचानक एक दिन श्याम के आफिस से उस के निलंबन का पत्र आ गया. कारण था, शराब पी कर दफ्तर आना और अपने सहकर्मियों के साथ अभद्रतापूर्ण व्यवहार करना. दफ्तर का काम न करना, लेकिन श्याम पर जैसे इस निलंबन का कोई असर ही नहीं पड़ा. उलटे उस पत्र के आने के बाद वह और अधिक शराब पीने लगा.

कभीकभी वह शराब के नशे में बड़बड़ाता, ‘करो, जो करना है करो. निलंबित करो चाहे नौकरी से निकालो या और भी कुछ बुरा कर सकते हो तो करो. यहां नौकरी की चिंता किसे है? अरे, चिंता करनी ही होती तो पत्नी को नौकरी पर क्यों लगवाता. चिंता तो वे करें जिन के घर में अकेला पति कमाने वाला हो. यहां तो मेरी पत्नी भी एक केंद्रीय कर्मचारी है. यदि मेरी नौकरी छूट भी गई तो एकदम सड़क पर नहीं आ जाऊंगा. मेरा घर तो चलता रहेगा. मैं नहीं तो पत्नी कमाएगी.’

वह दिन है और आज का दिन है. अकेली मैं कमा रही हूं. मुझे स्वयं ही नहीं मालूम कि कब तक अपने कंधों पर न केवल खुद का बल्कि अपने पति का भार भी ढोना पड़ेगा. अचानक मुझे अपने कंधों में दर्द का अनुभव होने लगा. दर्द के मारे मेरे कंधे झुकते चले गए.

जब बीवी बन जाए घर में बौस

सम्मान न खोने दें: आप ने प्यारप्यार में कुछ ज्यादा ही छूट तो नहीं दे दी जो उस का गलत फायदा उठा कर वह आप के सिर पर सवार होने की कोशिश

कर रही हो. अत: प्यार करें, लेकिन अपने सम्मान को न खोने दें.

अपने दब्बूपन को बदलें: खुद को भी टटोलें कि कहीं आप कुछ ज्यादा ही दब्बू तो नहीं हैं  हर जगह चाहे पड़ोसी से लड़ाई हो या रिश्तेदारी में कोई बात, आप अपनी बीवी को आगे तो नहीं कर देते  अगर ऐसा है तो सब से पहले अपनी इस आदत को बदलें, क्योंकि बाहर रोब जमातेजमाते यह ऐटिट्यूड वह घर में आप पर भी अपनाने लगी है.

हिम्मत भी दिखाएं: हर बार टालना भी कोई उपाय नहीं है. इसलिए एक बार हिम्मत कर के आमनेसामने बात कर ही लें कि आखिर इस तरह के व्यवहार की वजह क्या है  पत्नी को साफसाफ शब्दों में यह भी समझा दें कि अब इस तरह की बातें आप और सहन नहीं करेंगे. हो सकता है आप की इस धमकी के बाद वह सुधर जाए.

बिजी रखें: आप खुद को बिजी रखें ताकि आपस में उलझने के मौके कम आएं. जब आप खुद को बिजी रखेंगे तो वह भी आप से कम ही बोलेगी.

ओवर रिऐक्ट न करें: यह भी हो सकता है कि वह सही बात कह रही हो, बस कहने का अंदाज थोड़ा कर्कश हो. यह उस का नेचर भी हो सकता है, इसलिए यह भी सोचें कि कहीं आप ही तो ओवर रिऐक्ट नहीं कर रहे

राकेश अपने दफ्तर में सीनियर पोस्ट पर काम करता है. औफिस में उस की खूब चलती है. कई लोग उस के नीचे काम करते हैं. मगर उस का यह रोब और रुतबा घर आते ही खत्म हो जाता है, क्योंकि घर आते ही बीवी का मिजाज देखते ही उस के हौसले पस्त हो जाते हैं. बीवी के आगे उस की एक नहीं चलती. बीवी की जीहुजूरी के अलावा राकेश के पास कोई और चारा नहीं है. आखिर बात घर में शांति की है.

यह कहानी सिर्फ राकेश की ही नहीं है, बल्कि ऐसे बहुत से पति हैं, जिन्हें बीवी के इस तरह के ऐटिट्यूड को ले कर हमेशा शिकायत रही है. लेकिन वे चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाते. माना यह समस्या मुश्किल है, लेकिन ऐसी भी नहीं कि इस से निबटा ही न जा सके. बस इस के लिए थोड़ी सी समझदारी और हिम्मत की जरूरत है.

इस चिकचिक डौट कौम से कैसे बचें

टहल आएं: जब बीवी ऐसा ऐटिट्यूड दिखाने के मूड में हो तो इधरउधर टहल लें. मतलब उस सिचुएशन में पड़ने से बचें. उस स्थिति से जितना बचेंगे तकरार की संभावना उतनी ही कम होगी.

काम करें लेकिन सोचसमझ कर: अगर दफ्तर से आते ही या घर पर खाली बैठा देख कर वह आप को घर का काम करने का हुक्म सुनाती है और खुद टीवी के सामने बैठ जाती है तो उस से कहें कि आप भी अभी थक कर आए हैं या अभी मैं रिलैक्स कर रहा हूं, थोड़ी देर बाद दोनों मिल कर सारा काम निबटा लेंगे. घर का काम पुरुष नहीं कर सकते, ऐसा नहीं है, लेकिन वह किस ढंग और ऐटिट्यूड के साथ कराया जा रहा है उस पर डिपैंड करता है.

वार्निंग दें: न तो आप खुद बेवजह बीवी पर चिल्लाएं और न ही उसे ऐसा करने दें. उसे समझाएं कि बात आराम से भी हो सकती है वरना चिल्लाना आप को भी आता है. इस से वह अगली बार आप से बदतमीजी करने से पहले एक बार जरूर सोचेगी.

आपसी विश्वास बढ़ाएं: बीवी को प्यार से भी समझाया जा सकता है कि उसे उस का इस तरह का व्यवहार आप को बिलकुल पसंद नहीं है. उसे खुद में थोड़ा बदलाव लाने की जरूरत है. साथ में यह भी कहें कि अगर उसे भी आप में कुछ खामियां नजर आती हैं तो आप भी खुद को बदलने को तैयार हैं. इस से आप दोनों के बीच आपसी समझ और विश्वास बढ़ेगा.

नेक सलाह

– ज्यादा रोब जमाने के चक्कर में कहीं ऐसा न हो कि पति की नजरों में आप की इज्जत एक धेले की भी न रह जाए.

– हो सकता है कि आप दफ्तर में अपने पति की बौस हों, लेकिन यह बात कभी न भूलें कि यह घर है आप का दफ्तर नहीं. इसलिए हर बात में हुक्म न चलाएं.

– पति की तो छोडि़ए, बच्चे भी आप से डरने लगेंगे और पीठ पीछे आप की चुगली करेंगे कि मम्मा कितनी बुरी हैं और यह बात आप को कभी पसंद नहीं आएगी.

ऐटिट्यूड के कारण जानें

– क्या वह आप से कहीं ज्यादा गुड लुकिंग है

– क्या वह दफ्तर में भी आप की बौस है

– क्या वह बहुत अमीर घर से है

– क्या वह अपने मायके में बच्चों में सब से बड़ी है जो अपने भाईबहनों पर रोब चलातेचलाते यह उस की आदत हो गई

– क्या आप दोनों के बीच कुछ ऐसी बातें हैं, जिन की वजह से पत्नी फ्रस्ट्रेट फील करती हो और उस का गुस्सा वह आप पर निकालती हो

जब बेवजह आए गुस्सा

यदि आप को अकसर गुस्सा आता है और आप अपने साथी पर बेवजह चिल्लाते हैं, तो आप को अपने खून में ग्लूकोज के स्तर की जांच करानी चाहिए. ग्लूकोज का स्तर सामान्य से कम होने पर लोग गुस्सैल और आक्रामक हो जाते हैं.

ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी में संचार एवं मनोविज्ञान के प्रोफैसर ब्रैड बुशमैन का कहना है कि अध्ययन से पता चला है कि किस तरह भूख जैसा सामान्य सा कारक भी परिवार में कलह, लड़ाईझगड़ा और कभीकभी घरेलू हिंसा की वजह बन जाता है.

शोध में 107 विवाहित युगलों पर अध्ययन किया गया, जिस में हर जोड़े से पूछा गया कि अपने विवाहित जीवन से संतुष्ट होने के बारे में उन की क्या राय है  21 दिनों तक किए गए अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि विवाहित जोड़े में हर शाम ग्लूकोज का स्तर साथी के साथ संबंधों पर प्रभाव डालता है.

जिन लोगों में ग्लूकोज का स्तर कम पाया गया, वे अपने साथी पर ज्यादा गुस्सा करते हैं, उन पर हावी होने की कोशिश कर उन्हें दबाने के प्रयास में तेज आवाज में बात करते हैं. ग्लूकोज का स्तर कम होने से उत्पन्न भूख और क्रोध की स्थिति बेहद करीबी रिश्तों को भी प्रभावित कर सकती है

मैं गृहिणी हूं और मैं जानना चाहती हूं कि फाइब्रौयड्स की समस्या क्या होती है?

सवाल

मैं 35 वर्षीय गृहिणी हूं. मैं जानना चाहती हूं कि फाइब्रौयड्स की समस्या क्या होती है?

जवाब

फाइब्रौयड कैंसर रहित ट्यूमर होता है, जो गर्भाशय की मांसपेशीय परत में विकसित होता है. इसे यूटरिन फाइब्रौयड मायोमास या फाइब्रोमायोमास भी कहते हैं. जब गर्भाशय में केवल एक ही फाइब्रौयड हो तो उसे यूटरिन फाइब्रोमा कहते हैं. फाइब्रौयड का आकार मटर के दाने से ले कर तरबूज के बराबर हो सकता है. कभीकभी इन ट्यूमरों में कैंसरग्रस्त कोशिकाएं भी विकसित हो जाती हैं जिन्हें लियोमायोसारकोमा कहते हैं. हालांकि इस तरह के मामले बहुत कम देखे जाते हैं.

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छुपाएं नहीं दिखाएं बेबी बंप्स

वर्ष 2011 में मलेशियन डेयरी फ्रीसो ने जब मलेशियाई गर्भवती महिलाओं को अपने लुक्स और बढ़ते पेट के आकार को लेकर सैल्फ कोंशियसनैस से उबरने में मदद के उद्देश्य से फेसबुक पर कैंपेन चलाया था तब इस कैंपेन में देश की महिलाओं ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था. कैंपेन के तहत गर्भवती महिलाओं को अपने बेबी बंप्स के साथ एक पिक्चर क्लिक कर के फ्रीसो के पेज पर अपलोड करनी थी.

मलेशियन सैलिब्रिटी  डीजे मम द्वारा इस कैंपेन में सब से पहले बेबी बंप वाली तस्वीर अपलोड की गई. इस के बाद तो मलेशियन महिलाओं ने हिचकिचाहट के तमाम पैमानों को दरकिनार कर अपनी बेबी बंप्स के साथ तस्वीरें अपलोड करना शुरू कर दीं. इस कैंपेन द्वारा 20000 से भी अधिक मलेशियन गर्भवती महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान लुक्स को लेकर होने वाली झिझक को दूर करने का प्रयास किया गया था.

यदि हम भारत जैसे विकसित देश की बात करें, जहां डिजिटल क्रान्ति वर्षों पहले ही दस्तक दे चुकी है, वहाँ इस तरह का डिजिटल कैंपेन अब तक नहीं किया गया जिस में आम गर्भवती महिलाओं ने हिस्सा लिया हो. मगर भारत की कुछ सैलिब्रिटीज द्वारा अपने बेबी बंप्स की तस्वीरें ट्वीट करने या इंस्टाग्राम पर अपलोड करने के कई मामले देखे गए हैं.

समाज की दोहरी मानसिकता में फंसे बेबी बंप्स 

हाल ही में अभिनेत्री करीना कपूर खान द्वारा कराए गए प्री मैटरनिटी फोटोशूट के चर्चा में आने के बाद जरूर 1-2 गर्भवती महिलाओं ने इसे खुद पर आजमाया है मगर उन के फोटोशूट को सोशल मीडिया पर ज्यादा सराहा नहीं गया. इंदौर की वीर वाधवानी इन्हीं महिलाओं में से एक है. उन्होने करीना कपूर के फोटोशूट की देखादेखी यह शूट कराया और उन्हीं के पोज की नकल भी की. मगर जहां करीना कपूर खान को उनके फोटोशूट के लिए दर्शकों की प्रशंसा मिली वहीं वीर को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा. लोगों वीर के इस स्टेप को एक्शन सीकिंग स्टंट तक कह दिया . फिर क्या वीर की तस्वीरें एल्बम की परतों में बंद हो कर रेह गईं बस मगर यहाँ लोगों की डिप्लोमैटिक सोच पर बड़ा सवाल खड़ा होता है कि एक सैलिब्रिटी और एक आम महिला, दोनों ही एक ही अवस्था में हैं मगर व्यवहार दोनों के साथ अलगअलग क्यों?

इस बात का जवाब देते हुये कानपुर स्थित सखी केंद्र की संचालिका एवं सोशल एक्टिविस्ट नीलम चतुर्वेदी कहती हैं, ‘समाज महिलाओं के चरित्र को हमेशा खुद से ही वर्गीकृत कर देता है. यदि इस संबंध में बात की जाये तो समाज की सोच यहाँ दोहरी हो जाती है. करीना कपूर खान एक्ट्रेस है तो फोटो खिंचवाना उसके पेशे का हिस्सा है. मगर वीर जैसी आम महिलाएं ऐसा नहीं कर सकतीं क्योंकि समाज उन्हें बन्दिशों में जकड़ कर रखना चाहता है और यदि वे इस बंदिश को तोड़ती हैं तो उनका चरित्र हनन कर उन्हें कदम पीछे खींचने को मजबूर कर दिया जाता है. लोग उनकी खिल्ली उड़ाने लगते हैं जिससे घबराकर वह अपने द्वारा लिए गए फैसलों को गलत समझने लगती हैं.

मोटे दिखने की हिचकिचाहट 

भारत में यह ट्रैंड नया नहीं है. बीते 5-6 वर्षों से बॉलीवुड सेलेब्स इस तरह के फोटोशूट करा रहे हैं. हॉलीवुड में तो बरसों पहले ही यह ट्रैंड आगया था. माना जाता है की बेबी बंप्स के साथ ओपन होने का ट्रैंड हॉलीवुड एक्ट्रेस डेमी मूर ने शुरू किया था. बॉलीवुड एक्ट्रेसेस में भी प्री मैटरनिटी का क्रेज दिन पर दिन बढ़ता जा रहा है और उनकी देखादेखी आम महिलाएं भी बेबी बंप्स के साथ प्री मैटरनिटी फोटोशूट में दिलचस्पी दिखा रही हैं. बावजूद इस के सोशल मीडिया पर केवल अभिनेत्रियों के ही इस तरह के फोटोशूट देखने को मिलते हैं.

माना की पुरानी घिसिपीटी परम्पराओं और धार्मिक ढकोसलों के अनुसार गर्भवती महिला को ज्यादा किसी के सामने नहीं आने की अनुमति होती है. घर के बड़े बुजुर्ग इस अवस्था में महिलाओं को पेट ढक कर रखने की भी सलाह देते हैं. मगर मगर 21 वीं सदी की महिलाएं इन ढकोसलों को पीछे छोड़ कर काफी आगे बढ़ चुकी हैं. इसका सबसे बड़ा उदाहरण वह महिलाएं हैं, जो 9वें महीने में भी दफ्तर जाना नहीं छोड़ती. मगर बात जब बेबी बंप्स शोऑफ की आती है तो यही महिलाएं अपने कदम पीछे खींच लेती हैं.
दिल्ली मैट्रो में करोल बाग से वैशाली तक रोजाना सफर करने वाली मयंका की प्रैगनैंसी का 8वां महिना चल रहा है. मयंका का पहला बेबी है इसलिए वह बेहद एक्साइटेड हैं लेकिन बेबी बंप के साथ पब्लिक प्लेस पर उन्हें थोड़ा अटपटा लगता हैं. इसलिए मयंका हमेशा दुपट्टे से अपना पेट ढाँक कर रखती हैं. वह ऐसा क्योंक करती हैं ? पूछने पर वह बताती हैं, ‘बड़ा सा पेट थोड़ा अजीब लगता है. हाला कि जहां जाओ सब केयर करते हैं मगर निगाह तो मेरे पेट पर जाती ही है, तो थोड़ा खुद को लगता है कि कैसी दिख रही हूँ. ’

मयंका अकेली नहीं बल्कि हर गर्भवती महिला की भारत में यही कहानी है. बढ़ा हुआ पेट लेकर कैसे किसी के सामने जाएँ? ऐसे में प्री मैटरनिटी फोटोशूट कराने का हौसला कम ही महिलाएं दिखा पाती हैं.
ऐसी ही बुलंद हौसले वाली महिला हैं दिल्ली निवासी हीना. हीना ने 2013 में अपनी पहली संतान को जन्म देने से 2 दिन पूर्व ही प्री मैटरनिटी फोटोशूट कराया था. अपना अनुभव बताते हुये वह कहती हैं, ‘पहले हिचकिचाहट हुई थी थोड़ी. लग रहा था कि मोटी दिखूंगी. मगर पति और सास के सहियोग से यह मेरे लिए आसान हो सका.

घरवालों के साथ से बन सकती है बात 

भारतीय लोगों की मानसिकता गर्भवती महिला के शरीर में होने वाले प्रतिदिन के बदलाव को अलगअलग रूप में परिभाषित करती है. इनमें सबसे पहले उस के खुद के घरवाले आते हैं. बस यहीं पर गर्भवती का आत्मविश्वास डगमगा जाता है और वो खुद को दूसरों की नज़र से देखने लगती है. इस अवस्था में महिलाओं की साइकोलौजी के बारे में बात करते हुये मनोचिकित्सक प्रतिष्ठा त्रिवेदी कहती हैं, ‘गर्भावस्था में महिलाओं के शरीर में कई परिवर्तन होते हैं. उनका वजन बढ़ जाता है,शरीर का आकार बदल जाता है, चेहरे पर परिपक्वता आजाति है. इन्हें आसानी से स्वीकार करना हर महिला के बस में नहीं होता. अलगअलग लोग जब उनके लुक्स के लिए अलगअलग बात करते हैं, उन्हें सलाह देने लगते है, तो उनका थोड़ा बहुत असहज होना स्वाभाविक है. मगर गर्भवती के बेबी बंप्स दिखना तो प्राकृतिक है. इस बात को समझना मुश्किल नहीं है. ’
कई बार पति द्वारा मज़ाक में फिगर खराब होने की बात सुन कर भी गर्भवती महिला भावुक हो जाती हैं. यहाँ पति को इस बात का ध्यान रखना है कि मज़ाक का विषय सावधानी से चुने. पुष्पावति सिंघानिया रिसर्च इंस्टिट्यूट में हैड गाइनाक्लौजिस्ट राहुल मनचंदा कहते हैं, ‘बेबी बंप्स केवल 7वें, 8वें और 9वें महीने में ही मैच्योर स्टेज पर होते हैं. प्रसव के बाद साल भर के अंदर महिलाएं वापिस से अपने पुराने बॉडी शेप को पा सकती हैं. इसलिए वजन कभी कम नहीं होगा यह सोचना गलत है. वजन को लेकर महिलाओं का भावुक होना समझा जा सकता है क्योंकि हार्मोनल बदलाव से उनका मूड स्विंग होता रेहता है. असल में तो वह भी यह बात जानती हैं कि ऐसा हमेशा के लिए नहीं है. मगर महिलाओं को इस बात का बारबार एहसास करना पड़ता है ताकि वह अवसाद जैसी गंभीर स्थिति का शिकार न हो. यह काम केवल पति और महिला के घरवाले ही कर सकते हैं.
प्री मैटरनिटी फोटोशूट भी महिलाओं की लुक्स को लेकर चिंता पर काबू पाने का अच्छा विकल्प है . इस बाबत चाइल्ड फोटोग्राफर साक्षी कहती हैं, ‘कहते हैं कि मानव प्रकृति कि सबसे खूबसूरत संरचना है. तो फिर एक नई ज़िंदगी को जन्म देने वाली महिला की यह अवस्था बदसूरत कैसे हो सकती है. बल्कि इस अवस्था में हर दिन होने वाले परिवर्तनों को तस्वीर में कैद करके रख लेना चाहिए. ताकि बाद में यही तस्वीरें अपने बच्चे को दिखाई जा सकें. बच्चे भी इन तस्वीरों की मदद से खुद को भावनात्मक रूप से माँ से जोड़ पाते हैं. ’

वैसे बेबी बंप्स को फ़्लौंट न होने देने कि चिंता सिर्फ शहरी महिलाओं को होती है. गाँव की औरतों को इसकी कोई चिंता नहीं होती. इस बाबत मनोचिकित्सक प्रतिष्ठा कहती हैं, ‘शहर की हर महिला स्लिम दिखना चाहती है. यह गलत भी नहीं ओवरवेट होना बीमारियों को न्यौता देना होता है. मगर प्रैगनैंसी कोई बीमारी नहीं है. बच्चे की ग्रोथ के साथसाथ बेबी बंप्स मैच्योर होते जाते हैं . यह एक प्रक्रिया है. अच्छी बात है की आधुनिक समय में महिलाएं इस पूरी प्रक्रिया को तस्वीरों में कैद कर सकती हैं. बाद में इन्हीं तस्वीरों को देख कर पुरानी यादें ताजा की जाती हैं. ’

अंधविश्वास से रहें दूर 

इन सब के अतिरिक गर्भवती महिलाओं को कैमरे से जुड़े मिथों पर भी ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए. एक मिथ के अनुसार गर्भावस्था के दौरान किसी भी तरह की इलैक्ट्रोनिक किरणें गर्भवती के पेट पर नहीं पड़नी चाहिए जब कि इस मसले पर गाइनाक्लौजिस्ट डॉक्टर राहुल की राय अलग है. वह कहते हैं, ‘पहले ट्राइमिस्टर में, जब बच्चे के ऑर्गन्स बन रहे होते हैं तब एक्सरे कराना माना होता है मगर उसके बाद कोई परेशानी नहीं है. जहां तक बात कैमरे से तस्वीर लेने की है तो विज्ञान में ऐसे प्रमाण कहीं नहीं मिलते कि बच्चे या माँ पर इसका कोई बुरा असर पड़ता हो.’ कई लोग यह भी कहते हैं कि गर्भवती महिला के तस्वीर खिंचवाने से बच्चे की ग्रोथ पर असर पड़ता है और पेट का आकार कम हो जाता है. मगर डॉक्टर राहुल इस बात का भी खंडन करते हैं. वह कहते हैं, ‘पेट का आकार कम है तो इंट्रायुट्राइन ग्रोथ रिटारडेशन की संभावना होती है, जिसमें बच्चे की ग्रोथ ठीक नहीं होती. मगर इसकी वजह गर्भवती द्वारा अच्छी डाइट न लेना होता है. मगर पेट का साइज ज्यादा है तो यह भी अच्छी बात नहीं ऐसे में बच्चा मधुमेह का शिकार हो सकता है. इन दोनों ही स्थितियों का कैमरे से कोई लेना देना नहीं होता है.’

अतः प्री मैटरनिटी फोटोशूट को हौआ समझने या गर्भवती द्वारा अपने बेबी बंप्स के साथ सोशल मीडिया में फोटो अपलोड करने को आलोचना का विषय बनाना केवल मानसिक संक्रामण की निशानी है. जिसका इलाज किसी भी चिकित्सक के पास नहीं है.

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