story in hindi
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सवाल
मैं एक औरत से 2 साल से प्यार कर रहा हूं. उस का पति नहीं है. एक दिन मैं ने उसे उस के देवर के साथ देख लिया, तब से मुझे उस से नफरत हो गई है. वह कहती है कि मैं उसे न छोड़ूं. आप बताएं कि मैं क्या करूं?
जवाब
आप को शादीशुदा औरत के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए. आप को उस से प्यार नहीं है, आप बस उस का फायदा उठा रहे थे. उस का देवर भी मौके का फायदा उठा रहा है. बेहतर होगा कि आप उस से दूर रहें.
प्लेन से मुंबई से दिल्ली तक के सफर में थकान जैसा तो कुछ नहीं था पर मां के ‘थोड़ा आराम कर ले,’ कहने पर मैं फ्रैश हो कर मां के ही बैडरूम में आ कर लेट गई. भैयाभाभी औफिस में थे. मां घर की मेड श्यामा को किचन में कुछ निर्देश दे रही थीं. कल पिताजी की बरसी है. हर साल मैं मां की इच्छानुसार उन के पास जरूर आती हूं. मैं 5 साल की ही थी जब पिताजी की एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी. भैया उस समय 10 साल के थे. मां टीचर थीं. अब रिटायर हो चुकी हैं.
25 सालों के अपने वैवाहिक जीवन में मैं सुरभि और सार्थक के जन्म के समय ही नहीं आ पाई हूं पर बाकी समय हर साल आती रही हूं. विपिन मेरे सकुशल पहुंचने की खबर ले चुके थे. बच्चों से भी बात हो चुकी थी.
मैं चुपचाप लेटी कल होने वाले हवन, भैयाभाभी और अपने इकलौते भतीजे यश के बारे में सोच ही रही थी कि तभी मां की आवाज से मेरी तंद्रा भंग हुई, ‘‘ले तनु, कुछ खा ले.’’
पीछेपीछे श्यामा मुसकराती हुई ट्रे ले कर हाजिर हुई.
मैं ने कहा, ‘‘मां, इतना सब?’’
‘‘अरे, सफर से आई है, घर के काम निबटाने में पता नहीं कुछ खा कर चली होगी या नहीं.’’
मैं हंस पड़ी, ‘‘मांएं ऐसी ही होती हैं, मैं जानती हूं मां. अच्छाभला नाश्ता कर के निकली थी और प्लेन में कौफी भी पी थी.’’
मां ने एक परांठा और दही प्लेट में रख कर मुझे पकड़ा दिया, साथ में हलवा.
मायके आते ही एक मैच्योर स्त्री भी चंचल तरुणी में बदल जाती है. अत: मैं ने भी ठुनकते हुए कहा, ‘‘नहीं, मैं इतना नहीं खाऊंगी और हलवा तो बिलकुल भी नहीं.’’
मां ने प्यार भरे स्वर में कहा, ‘‘यह डाइटिंग मुंबई में ही करना, मेरे सामने नहीं चलेगी. खा ले मेरी बिटिया.’’
‘‘अच्छा ठीक है, अपना नाश्ता भी ले आओ आप.’’
‘‘हां, मैं लाती हूं,’’ कह कर श्यामा चली गई.
हम दोनों ने साथ नाश्ता किया. भैया भाभी रात तक ही आने वाले थे. मैं ने कहा, ‘‘कल के लिए कुछ सामान लाना है क्या?’’
‘‘नहीं, संडे को ही अनिल ने सारी तैयारी कर ली थी. तू थोड़ा आराम कर. मैं जरा श्यामा से कुछ काम करवा लूं.’’
दोपहर तक यश भी आ कर मुझ से लिपट गया. मेरे इस इकलौते भतीजे को मुझ से बहुत लगाव है. मेरे मायके में गिनेचुने लोग ही तो हैं. सब से मुधर स्वभाव के कारण घर में एक स्नेहपूर्ण माहौल रहता है. जब आती हूं अच्छा लगता है. 3 बजे तक का टाइम कब कट गया पता ही नहीं चला. यश कोचिंग चला गया तो मैं भी मां के पास ही लेट गई. मां दोपहर में थोड़ा सोती हैं. मुझे नींद नहीं आई तो मैं उठ कर ड्राइंगरूम में आ कर सोफे पर बैठ कर एक पत्रिका के पन्ने पलटने लगी. इतने में डोरबैल बजी. मैं ने ही दरवाजा खोला, श्यामा पास में ही रहती है. वह दोपहर में घर चली जाती है. शाम को फिर आ जाती है.
पोस्टमैन था. टैलीग्राम था. मैं ने उलटापलटा. टैलीग्राम मेरे नाम था. प्रेषक के नाम पर नजर पड़ते ही मुझे हैरत का एक तेज झटका लगा. मेरी हथेलियां पसीने से भीग उठीं. अनिरुद्ध. मैं टैलीग्राम ले कर सोफे पर धंस गई.
हमेशा की तरह कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया था अनिरुद्ध ने, ‘‘तुम इस समय यहीं होगी, जानता हूं. अगर ठीक समझो तो संपर्क करना.’’
पता नहीं कैसे मेरी आंखें मिश्रित भावों की नमी से भरती चली गई थीं. ओह अनिरुद्ध. तुम्हें आज 25 साल बाद भी याद है मेरे पिताजी की बरसी. और यह टैलीग्राम. 3 दिन बाद 164 साल पुरानी टैलीग्राम सेवा बंद होने वाली है. अनिरुद्ध के पास यही एक रास्ता था आखिरी बार मुझ तक पहुंचने का. मेरा मोबाइल नंबर उस के पास है नहीं, न मेरा मुंबई का पता है उस के पास. तब यहां उन दिनों घर में भी फोन नहीं था. बस यही आखिरी तरीका उसे सूझा होगा. उसे यह हमेशा से पता था कि पिताजी की बरसी पर मैं कहीं भी रहूं, मां और भैया के पास जरूर आऊंगी और उस की यह कोशिश मेरे दिल के कोनेकोने को उस की मीठी सी याद से भरती जा रही थी.
अनिरुद्ध… मेरा पहला प्यार एक सुगंधित पुष्प की तरह ही तो था. एक पूरा कालखंड ही बीत गया अनिरुद्ध से मिले. वयसंधि पर खड़ी थी तब मैं जब पहली बार मन में प्यार की कोंपल फूटी थी. यह वही नाम था जिस की आवाज कानों में उतरने के साथ ही जेठ की दोपहर में वसंत का एहसास कराने लगती. तब लगता था यदि परम आनंद कहीं है तो बस उन पलो में सिमटा हुआ जो हमारे एकांत के हमसफर होते, पर कालेज के दिनों में ऐसे पल हम दोनों को मुश्किल से ही मिलते थे. होते भी तो संकोच, संस्कार और डर में लिपटे हुए कि कहीं कोई देख न ले. नौकरी मिलते ही उस पर घर में विवाह का दबाव बना तो उस ने मेरे बारे में अपने परिवार को बताया.
फिर वही हुआ जिस का डर था. उस के अतिपुरातनपंथी परिवार में हंगामा खड़ा हो गया और फिर प्यार हार गया था. परंपराओं के आगे, सामाजिक नियमों के आगे, बुजुर्गों के आदेश के आगे मुंह सिला खड़ा रह गया था. प्यार क्या योजना बना कर जातिधर्म परख कर किया जाता है या किया जा सकता है? और बस हम दोनों ने ही एकदूसरे को भविष्य की शुभकामनाएं दे कर भरे मन से विदा ले ली थी. यही समझा लिया था मन को कि प्यार में पाना जरूरी भी नहीं, पृथ्वीआकाश कहां मिलते हैं भला. सच्चा प्यार तो शरीर से ऊपर मन से जुड़ता है. बस, हम जुदा भर हुए थे.
उस की विरह में मेरी आंखों से बहे अनगिनत आंसू बाबुल के घर से विदाई के आंसुओं में गिन लिए गए थे. मैं इस अध्याय को वहीं समाप्त समझ पति के घर आ गई थी. लेकिन आज उसी बंद अध्याय के पन्ने फिर से खुलने के लिए मेरे सम्मुख फड़फड़ा रहे थे.
टैलीग्राम पर उस का पता लिखा हुआ था, वह यहीं दिल्ली में ही है. क्या उस से मिल लूं? देखूं तो कैसा है? उस के परिवार से भी मिल लूं. पर यह मुलाकात हमारे शांतसुखी वैवाहिक जीवन में हलचल तो नहीं मचा देगी? दिल उस से मिलने के लिए उकसा रहा था, दिमाग कह रहा था पीछे मुड़ कर देखना ठीक नहीं रहेगा. मन तो हो रहा था, देखूंमिलूं उस से, 25 साल बाद कैसा लगता होगा. पूछूं ये साल कैसे रहे, क्याक्या किया, अपने बारे में भी बताऊं. फिर अचानक पता नहीं क्या मन में आया मैं चुपचाप स्टोररूम में चली गई. वहां काफी नीचे दबा अपना एक बौक्स उठाया. मेरा यह बौक्स सालों से यहीं पड़ा है. इसे कभी किसी ने नहीं छेड़ा. मैं ने बौक्स खोला, उस में एक और डब्बा था.
सामने अनिरुद्ध के कुछ पुराने पीले पड़ चुके, भावनाओं की स्याही में लिपटे खतों का 1-1 पन्ना पुरानी यादों को आंखों के सामने एक खूबसूरत तसवीर की तरह ला रहा था. न जाने कितनी भावनाओं का लेखाजोखा इन खतों में था. मुझे अचानक महसूस हुआ आजकल के प्रेमियों के लिए तो मोबाइल ने कई विकल्प खोल दिए हैं. फेसबुक ने तो अपनों को छोड़ कर अनजान रिश्तों को जोड़ दिया है.
सारा सामान अपनी गोद में फैलाए मैं अनगिनत यादों की गिरफ्त में बैठी थी जहां कुछ भी बनावटी नहीं होता था. शब्दों का जादू और भावों का सम्मोहन लिए ये खत मन में उतर जाते थे. हर शब्द में लिखने वाले की मौजूदगी महसूस होती थी. अनिरुद्ध ने एक पेपर पर लिखा था, ‘‘खुसरो दरिया प्रेम का, उलटी वाकी धार. जो उतरा सो डूब गया, जो डूबा सो पार.’’
मेरे होंठों पर एक मुसकराहट आ गई. आजकल के बच्चे इन शब्दों की गहराई नहीं समझ पाएंगे. वे तो अपने प्रिय को मनाने के लिए सिर्फ एक आई लव यू स्माइली का सहारा ले कर बात कर लेते हैं. अनिरुद्ध खत में न कभी अपना नाम लिखता था न मेरा, इसी वजह से मैं इन्हें संभाल कर रख सकी थी. अनिरुद्ध की दी हुई कई चीजें मेरे सामने पड़ी थीं. उस का दिया हुआ एक पैन, उस का पीला पड़ चुका एक सफेद रूमाल जो उस ने मुझे बारिश में भीगे हुए चेहरे को साफ करने के लिए दिया था. मुझे दिए गए उस के लिखे क्लास के कुछ नोट्स, कई बार तो वह ऐसे ही कोई कागज पकड़ा देता था जिस पर कोई बहुत ही सुंदर शेर लिखा होता था.
स्टोररूम के ठंडेठंडे फर्श पर बैठ कर मैं उस के खत उलटपुलट रही थी और अब यह अंतिम टैलीग्राम. बहुत सी मीठी, अच्छी, मधुर यादों से भरे रिश्ते की मिठास से भरा, मैं इसे हमेशा संभाल कर रखूंगी पर कहां रख पाऊंगी भला, किसी ने देख लिया तो क्या समझा पाऊंगी कुछ? नहीं. फिर वैसे भी मेरे वर्तमान में अतीत के इस अध्याय की न जरूरत है, न जगह.
फिर पता नहीं मेरे मन में क्या आया कि मैं ने अंतिम टैलीग्राम को आखिरी बार भरी आंखों से निहार कर उस के टुकड़ेटुकड़े कर दिए. मुझे उसे कहीं रखने की जरूरत नहीं है. मेरे मन में इस टैलीग्राम में बसी भावनाओं की खुशबू जो बस गई है. अब इसी खुशबू में भीगी फिरती रहूंगी जीवन भर. वह मुझे भूला नहीं है, मेरे लिए यह एहसास कोई ग्लानि नहीं है, प्यार है, खुशी है.
Yeh Rishta kya kehlata hai Today Episode : सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इस समय जबरदस्त ट्रैक चल रहा है. इस वक्त कहानी अभिनव के इर्द-गिर्द घूम रही है. कल के एपिसोड में दिखाया गया था कि अभिनव के जन्मदिन के दिन उसका एक्सीडेंट हो जाता है. वह खाई में गिर जाता है लेकिन, आखिरी समय में अक्षरा अभिनव को बचा लेती है और उसे तुरंत हॉस्पिटल ले कर जाती है. वहीं आज के एपिसोड (Yeh Rishta kya kehlata hai Today Episode) में दिखाया जाएगा कि अभिनव का इलाज बिड़ला हॉस्पिटल में होगा. इसके अलावा अभिमन्यु जेल पहुंच जाएगा.
अक्षरा से अपने दिल की बात कहेगा अभिनव
आज के एपिसोड (yeh rishta kya kehlata hai) में दिखाया जाएगा कि डॉक्टर्स अक्षरा को बताएंगे कि अभिनव को होश आ गया है, जिसे सुनने के बाद अक्षरा खुशी से झूम उठेगी. वह अपने बालों में गुलाब का फूल लगाकर अभिनव से मिलने जाएगी. अभिनव को देख अक्षरा भावुक हो जाएगी और उसे गले लगा लेगी.
वहीं दूसरी तरफ अभिनव (Yeh Rishta kya kehlata hai Today Episode) भी अक्षरा को देख खुश होगा और अक्षरा से अपने दिल की बात करेगा. वह अक्षरा से कहता है, ‘आई लव यू’. ये सुन अक्षरा खुश हो जाएगी और वो भी अभिनव से अपने प्यार का इजहार करती है. लेकिन इस बीच ही अभिनव की मौत हो जाएगी. ये देख अक्षरा घबरा जाएगी और डॉक्टर्स को आवाज देने लगती है.
अभिमन्यु से नफरत करने लगेगी अक्षरा
इसके बाद दिखाया जाएगा कि अभिमन्यु जेल में कैद होगा. जहां उसके मन में अजीब सी घबराहट हो रही है. वह अभिनव के बारे में सोच-सोचकर परेशान हो रहा होता है. इसके अलावा ये भी कहा जा रहा है कि आने वाले एपिसोड (Yeh Rishta kya kehlata hai Today Episode) में दिखाया जाएगा कि अक्षरा अभिनव के बच्चे की मां बनेगी. साथ ही अभिमन्यु से नफरत करने लगेगी. कुल मिलाकर आने वाले एपिसोड में कई सारे नए-नए ट्विस्ट देखने को मिलेंगे.
इन दिनों फिल्म ‘गदर 2’ में तारा सिंह की बहू मुसकान का किरदार निभा कर सुर्खियों में छाई हुई अभिनेत्री
सिमरत कौर इस से पहले दक्षिण भारत में ‘बी’ ग्रेड की ‘प्रेमथो मी कार्तिक’ (2017), ‘परिचयम’ (2017) और ‘सोनी'(2018) जैसी फिल्मों में अभिनय कर दर्शकों का दिल जीत चुकी हैं. लेकिन 2019 में प्रदर्शित तेलुगु भाषा की कामुक, रोमांटिक व रोमांचक फिल्म ‘डर्टी हरी’ में अभिनेता श्रवण रेड्डी के साथ अंतरंग दृश्यों को निभा कर शोहरत के साथ ही आलोचनाओं का भी शिकार हुईं. इसी वजह से उन्होंने कभी बौलीवुड से जुड़ने का सपना भी नहीं देखा था.
लेकिन उन की मेहनत ने उन्हें फिल्म ‘गदर 2’ से बौलीवुड की हीरोइन बना दिया. इस से वे काफी उत्साहित हैं.
पेश हैं, सिमरत कौर से हुई ऐक्सक्लूसिव बातचीत के अंश…
आप ने अभिनय को कैरियर बनाने की बात कब सोची?
मेरी परवरिश मुंबई ही हुई है. मेरे मातापिता हैं, बड़ी बहन हैं. मेरे पिता अभी अवकाशप्राप्त जिंदगी गुजार रहे हैं. पहले उन की किताबों की दुकान थी. मिलिट्री व केंद्रीय विद्यालय में किताबें सप्लाई किया करते थे. मेरे दादाजी नेवी में थे. मैं ने कंप्यूटर विषय के साथ बीएससी किया है. मैं स्पोर्ट्स से जुड़ी हुई थी. अभिनय में मेरी कभी दिलचस्पी नहीं थी. 2017 में मुझे कैडबरी के प्रिंट विज्ञापन का औफर मिला, तो मैं ने कालेज के दिनों में ‘पौकेट मनी’ मिल रही है, सोच कर कर लिया था. फिर एक दिन ‘प्रेमाथो मी कार्तिक’ के कास्टिंग डाइरैक्टर ने मुझे इंस्टाग्राम पर देख कर संपर्क किया था. पर मैं ने उन से साफसाफ कह दिया था कि अभिनय में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं है. पर बाद में उन्होने मेरी मां रंजीत कौर से बात कर उन्हें राजी कर लिया.
मां के कहने पर मैं ने यह फिल्म की। उस वक्त मेरी उम्र 17 साल थी. मेरी मां खुद मुझे ले कर हैदराबाद गईं। हैदराबाद में मेरा औडिशन लिया गया. तब तक मुझे बिलकुल एहसास नहीं था कि मेरे अंदर अभिनय के गुण हैं. मगर मैं ने औडिशन दिया और उस फिल्म के लिए मेरा चयन हो गया. पर जब मुझे बताया गया कि मुझे तेलुगु के संवाद बोलने हैं, तो मैं ने उन से कह दिया कि मेरे बस की बात नहीं है. मैं उत्तर भारतीय लड़की हूं, मुंबई में पलीबङी हूं. इसलिए हिंदी, पंजाबी और मराठी ही बोल सकती हूं. पर उन्होंने मुझे तेलुगु सिखाने की बात की. मेरे लिए तेलुगु बोलना बहुत कठिन था. मैं ने 1 माह तक रोते हुए शूटिंग की. मैं बारबार कह रही थी कि मुझे मुंबई अपने घर जाना है.
खैर, इस 1 माह के दौरान मुझे कैमरे के सामने जाने पर मजा आने लगा. पहले मैं कैमरे से ही घबराती थी पर अब मैं कैमरे के सामने जाने पर घबराती नहीं जबकि इस की स्क्रिप्ट व संवाद को ले कर मेरी काफी समस्याएं थीं. मैं तेलुगु के संवाद रटरट कर बोल रही थी. इस फिल्म की शूटिंग पूरी होने में 1 साल लगा
और तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे अंदर अभिनय के गुण थे। मैं इस बात को ले कर खुश हूं कि मुझे मेरे मातापिता का शुरुआती दिनों से ही सहयोग मिला.
स्पोर्ट्स में आप किस खेल से जुड़ी हुई थीं?
मैं कराटे ब्लैकबेल्ट हूं. मैं ने कराटे की विश्व प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया है. कुछ प्रतियोगिताएं जीती हैं. मैं गोल्ड मैडलिस्ट भी हूं. इस के अलावा मैं कराटे सिखाती भी हूं. मैं ने 2 साल तक कुछ लोगों को कराटे की ट्रैनिंग भी दी है. इस के अलावा मैं 100 मीटर और 200 मीटर की दौड़ का हिस्सा रही हूं. तो मैं स्पोर्ट्स में बहुत अलग क्षेत्र में थी और अचानक ग्लमैर वर्ल्ड यानी कि अभिनय जगत में आ गई.
कहा जाता है कि हर लड़की को आत्मरक्षा यानि सैल्फ डिफैंस के लिए कराटे सीखना चाहिए. आप क्या कहती हैं?
लोग ऐसा सोचते हैं. मैं ब्लैक बैल्टधारी हूं इसलिए मेरे इलाके में सभी मुझ से डरते बहुत थे. सच यह है कि मैं ने 7 साल की उम्र से ही कराटे सीखना शुरू किया था. उस वक्त मुझे ज्यादा समझ नहीं थी. पर मां ने कहा तो सीखना पड़ा. 11 साल की उम्र में मैं ने नेपाल जा कर पहली बार कराटे प्रतियोगिता में हिस्सा लिया था. इस प्रतियोगिता में भारत से 23 बच्चे गए थे. हम वहां से ब्राउंज मैडल जीत कर आए थे. मैं भारत की एकमात्र लड़की थी, जो जीत कर आई थी, बाकी 22 बच्चे को कामयाबी नहीं मिली थी।
उस के बाद मुझे लगा कि कराटे सिर्फ लड़कियों को ही नहीं लड़कों को भी सीखना चाहिए. कराटे सीखने पर आप को अपने शरीर पर कंट्रोल करना आ जाता है. गुस्सा आने पर भी आप उस गुस्से पर काबू कर सकते हैं, अपने जज्बातों पर भी कंट्रोल कर सकते हैं. जिंदगी में अनुशासन आ जाता है. इसी के साथ कराटे से आप आत्मसुरक्षा कर सकते हैं. मेरी राय में लड़कियां कमजोर नहीं होतीं.
इस 1 साल के दौरान आप ने क्याक्या सीखा?
-देखिए, मैं स्पोर्ट्स में थी इसलिए टौमबौय वाली मेरी कार्यशैली थी. लड़कियों की तरह चलना, लड़कियों की तरह बात करना मेरे अंदर था ही नहीं. इस की वजह से सब से पहली कठिनाई साड़ी पहनने में आई फिर कानों की बालियां पहनने में. साड़ी पहनने के बाद हमें एक अलग ही लहजे में उठनाबैठना होता है. 1 साल में मैं ने यह सब ज्यादा सीखा. संवाद की प्रैक्टिस करना, लड़कियों की तरह के लुक में खुद को ढालना वगैरह. शुरुआत के 1-2 माह में तो लगा था कि मुझे यह अभिनय वगैरह छोड़ कर मुंबई भाग जाना चाहिए. दक्षिण में शूटिंग करना मुझ से हो ही नहीं रहा था. हमें तेलुगु भाषा के संवाद बोलने होते थे. यह भाषा मुझे नहीं आती थी. हम संवाद रटते थे और निर्देशक के ‘ऐक्शन’ कहने पर कैमरे के सामने बोल देते थे. कई बार निर्देशक के ऐक्शन बोलते ही मैं संवाद भूल जाती थी. मैं पूरी तरह से ब्लैंक हो जाती थी. धीरेधीरे मैं सामने वाले कलाकार के चेहरे के भावों से कुछ समझने लगी थी.
अनिल शर्मा निर्देशित फिल्म ‘गदर 2’ से कैसे जुङीं?
सच तो यह है कि मैं ने सपने में भी बौलीवुड से जुड़ने की बात नहीं सोची थी. मेरे अंदर आत्मविश्वास ही नहीं था कि मैं बौलीवुड फिल्मों में हीरोइन बन सकती हूं. मेरे पास ‘गदर 2’ के लिए औडीशन भेजने का संदेश आया था, पर मैं ने इसलिए नहीं भेजा कि मुझे ‘गदर 2’ जैसी फिल्म कहां से मिलने वाली.
एक दिन मुझे कास्टिंग डाइरैक्टर मुकेश छाबड़ा के कार्यालय से फोन पर औडीशन का संदेश आया और मैं ने फोन पर औडीशन भेज दिया. फिर मुझे अगले औडीशन के लिए पालमपुर, हिमाचल प्रदेश जाने के लिए कहा गया. मैं वहां लुक टेस्ट के लिए गई पर वहां पर भी मोबाइल पर ही टेस्ट हुआ. फिर मैं मुंबई वापस आ गई और 20 दिनों तक टीम से कोई जवाब नहीं मिला.
उस के बाद मुंबई में अनिल शर्मा के औफिस में मेरे 3-4 औडिशन लिए गए. इधर मेरे औडिशन हो रहे थे, उधर मैं सुन रही थी कि ‘गदर 2’ के लिए नई लड़की की तलाश हो रही है. इसलिए मैं कुछ निराश भी थी. एक दिन मैं ने हिम्मत जुटा कर अनिलजी से पूछ लिया कि माजरा क्या है? तब उन्होंने सब से पहले मुझे मिठाई खिलाई और कहा कि तुम्हारा चयन हो गया है. घर जाओ और आज रात ठीक से सो जाओ. मैं ने जा कर अपनी मां को बताया. 3 दिन बाद जब मैं ने अपनी बड़ी बहन को यह सूचना दी, तब मुझे वास्तव में एहसास हुआ कि ‘गदर 2’ के लिए मेरा चयन हो गया है.
आप के मन में ‘गदर 2’ को ले कर हौआ क्यों था?
इस की मूल वजह यह थी कि मैं गैर फिल्मी परिवार से हूं. मतलब मेरा या मेरे परिवार के किसी भी सदस्य का बौलीवुड से कोई नाता नहीं रहा है. मैं अपने खानदान की पहली लड़की हूं जोकि फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी हूं। ‘गदर 2’ बहुत बड़ी फिल्म है. तो स्वाभाविक तौर पर इस में कोई न कोई स्टारकिड ही रहेगा. अथवा किसी मशहूर कलाकार को लेंगे. वे एक नई लड़की को तो फिल्म के साथ नहीं जोड़ेंगे. फिर मुझे साइड करैक्टर या दोस्त का किरदार नहीं निभाना था. मेरे मन में कई विचार चल रहे थे.
ऐसे में जब ‘गदर 2’ में हीरोइन का किरदार मिला, तो मुझे लगा कि मुझ से ज्यादा खुश कोई नहीं हो सकता. अब जबकि ‘गदर 2’ अगस्त महीने में प्रदर्शित होने वाली है, तो मेरा आत्मविश्वास बढ़ गया है.
फिल्म ‘गदर 2’ के किरदार के बारे में बताएं?
मैं ने इस में मुसकान का किरदार निभाया है, जो हमेशा मुसकराती रहती है. अपने मातापिता की प्यारी है. मैं इस से अधिक अभी नहीं बता सकती. मगर मुसकान ‘गदर 2’ की नई सदस्य है. इस फिल्म के तारा सिंह, सकीना व जीते से तो सभी परिचित हैं. इन किरदारों से भारत की जनता को बहुत प्यार है. मगर अब ‘गदर 2’ में एक नई लड़की मुसकान आ रही है। इसे भी लोगों का प्यार मिलेगा, ऐसी मुझे उम्मीद है. मुसकान का किरदार फिल्म में बहुत महत्त्वपूर्ण है.
मुसकान के किरदार में खुद को ढालने के लिए आप ने किस तरह की तैयारी की?
देखिए, फिल्म की कहानी 1971 की पृष्ठभूमि की है. तो मुसकान भी 1971 की लड़की है. इत्तिफाक से मुझे अभिनेत्री बनने से पहले से ही पुरानी फिल्में देखना, पुराने गाने सुनने का शौक रहा है. मैं 40-50 के दशक की फिल्में देखती रही हूं. मैं ने मीना कुमारी, नूतन, मधुबाला, वैजयंती माला की फिल्में काफी देखी हैं. तो मुझे पता है कि उस वक्त की लड़कियां किस तरह की होती थीं. उन का पहनावा, बोलचाल की समझ थी.1971 में लड़कियां दब्बू नहीं थीं. वे स्मार्ट थीं. सर ने कहा कि लड़की 1971 की होते हुए भी मौडर्न है. उस वक्त लड़कियां कौनवैंट में इंग्लिश माध्यम से पढ़ाई करती थीं.
इस के अलावा मैं ने 1 माह की कत्थक नृत्य की ट्रेनिंग ली. वास्तव में 1971 की लड़कियों में ग्रेस बहुत हुआ करता था. उन के बात करने के तरीके, हाथपैर हिलाने आदि में ग्रेस बहुत हुआ करता था और कत्थक नृत्य से ग्रेस आता है.
मुसकान का किरदार निभाते हुए आप ने निजी जीवन के अनुभवों का उपयोग किया?
देखिए, मुसकान के किरदार में मेरी निजी जिंदगी के अनुभव भी काफी हैं. मुसकान की ही तरह मैं यानि कि सिमरत कौर भी अपने मातापिता की लाड़ली है. मैं सब से छोटी बेटी हूं, तो मुझे पता है कि जब आप घर में लाड़ली हो तो किस तरह अपनी बात मनवा सकते हो. वही मैं ने मुसकान का किरदार निभाते हुए उपयोग किया. इस के अलावा हंसमुख लड़की और फिल्मों की दीवानी बनाया मुसकान को.
कत्थक नृत्य सीखने पर उस की क्या उपयोगिता नजर आई? कत्थक नृत्य की तालीम अभिनय में किस तरह से मदद करती है?
कत्थक नृत्य सीखने से चाल में एक लचकपन आ जाता है, जोकि हर लड़की में होनी चाहिए. उस दौर की लड़कियों में यह खूबी कुदरती थी. 70-80 के दशक की हीरोइन में आप देखिए कितना ग्रेस था. कत्थक नृत्य करने के बाद मेरे हाथ हिलाने व मेरी चाल में अंतर आ गया.
इस के अलावा अब हम हर शब्द पर अपनी आंखों व आंखों की भौहों से भाव व्यक्त कर लेतेे हैं. चेहरे, मुंह और आंखों से शरारत करना आ गया.
आप ने कुछ म्यूजिक वीडियो भी किए हैं?
जी हां, मैं ने कुछ पंजाबी म्यूजिक वीडियो काफी पहले किए थे. पर इन में नृत्य नहीं करना था. जैसाकि मैं ने पहले ही कहा कि मैं गैरफिल्मी परिवार से हूं, तो मेरे लिए संघर्ष ज्यादा था. मेरे लिए जरूरी था कि मैं कुछ काम करती रहूं और लोगों की नजरों में आती रहूं. उस वक्त हम ने म्यूजिक वीडियो यह सोच कर किए थे कि 10 जगह काम करेंगे, तो 10 अलगअलग तरह के लोगों की नजरों में आएंगे. मुझे यहां तक पहुंचने के लिए बहुत संघर्ष करना पङा. मुकेश छाबड़ा ने भी मुझे किसी म्यूजिक वीडियो में या कहीं और देखा होगा, तभी उन्होंने मुझ से संपर्क कर ‘गदर 2’ के लिए औडीशन देने को कहा तो तेलुगु फिल्में व पंजाबी म्यूजिक वीडियो करतेकरते इस मुकाम तक पहुंची हूं. पर मैं संघर्ष भूल नहीं सकती. फिल्म ‘गदर 2’ के ट्रेलर लांच के वक्त मेरी आंखों के सामने 15 सैकंड में ही घूम गया था और मेरी आंखों से आंसू निकल आए थे.
तेलुगु फिल्म ‘डर्टी हरी’ के आप के अंतरंग दृश्यों को ले कर काफी कुछ कहा जा रहा है?
जी हां, मुझे पता है. मैं एक कलाकार हूं और इस तरह की बातें तो मुझे आजीवन सुननी पड़ेंगी जिन्हें दूसरों को ट्रोल करने में मजा आता है, वह तो हमेशा अवसर की तलाश में रहते हैं. यह व्यवसाय का एक हिस्सा है. आज किसी चीज के लिए, कल किसी और चीज के लिए. मैं ने ट्रोलिंग को नजरंदाज कर ‘गदर 2’ पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया. मेरे लिए ‘गदर 2’ का हिस्सा बनना मेरे आसपास किसी भी तरह की नकारात्मकता से कहीं बड़ा है. मुझे उम्मीद नहीं है कि लोग रातोंरात मेरे बारे में अपने विचार बदल देंगे.
हर किसी की एक अलग राय होती है. लोग इसे व्यक्त करने के लिए उत्तरदायी हैं. मैं एक संवेदनशील और भावुक लड़की हूं. जब मैं अभिनेत्री नहीं थी, तब भी मैं दूसरों को जज करती थी और सोशल मीडिया पर अपनी राय व्यक्त करती थी. लेकिन मैं जानती हूं कि जब हम कुछ अभद्र टिप्पणी करते हैं, तो इस से दूसरे व्यक्ति को ठेस पहुंच सकती है. इसलिए मैं सोशल मीडिया पर अपने विचार व्यक्त करने से पहले हमेशा समझदार रही हूं.
वास्तव में एक महिला अभिनेत्री को इस तरह की ट्रोलिंग का सामना करना पड़ता है क्योंकि लोग हमेशा
सुंदरता के बारे में बात करते हैं. लोग इस की ओर आकर्षित होते हैं. मेरा मानना है कि महिलाएं खूबसूरत होती हैं. आज ही नहीं बल्कि 100 साल पहले भी हरकोई महिलाओं के बारे में बात करता था. आज से 100 साल बाद भी वह हमारे बारे में बात करेंगे. मुझे लगता है कि महिला होना गर्व की बात है क्योंकि आप के बारे में हमेशा बात की जाएगी.
इन दिनों ओटीटी पर काफी कलाकार काम कर रहे हैं. आप भी करना चाहेंगी?
मैं किसी भी मीडियम में काम करने के लिए तैयार हूं, बशर्ते किरदार अच्छा हो. मैं मजबूत स्क्रिप्ट की तलाश में रहती हूं, जिस में अच्छी विषयवस्तु हो.
अब कंटैंट प्रधान सिनेमा का जोर है. किस तरह के किरदार निभाना चाहती हैं?
मैं एक खिलाड़ी की भूमिका निभाना चाहती हूं क्योंकि मैं ने राष्ट्रीय स्तर पर कराटे चैंपियनशिप में भाग लिया है. मैं किसी बायोपिक में अपना किरदार निभाना पसंद करूंगी.
Bodyguard Director Siddique Dies : बॉलीवुड एक्टर सलमान खान (Salman Khan) की फिल्म ‘बॉडीगार्ड’ (Bodyguard) के निर्देशक सिद्दीकी (Siddique) का निधन हो गया है. 69 साल की उम्र में फेमस मलयालम डायरेक्टर ने दुनिया को अलविदा कह दिया. सिद्दीकी की मौत से मलयालम फिल्म इंडस्ट्री के साथ-साथ बॉलीवुड इंडस्ट्री को भी बड़ा झटका लगा है. फैंस सहित सेलेब्स भी सिद्दीकी की मौत से काफी दुखी हैं. हालांकि इस बीच श्रद्धांजलि देने का सिलसिला भी शुरु हो गया है. सिद्दीकी को साउथ से लेकर बॉलीवुड तक सभी बड़े स्टार्स श्रद्धांजलि दे रहे हैं.
लिवर की समस्या से परेशान थे सिद्दीकी
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीते दिन सिद्दीकी को कार्डिएक अरेस्ट आया था, जिसके बाद उन्हें आनन-फानन में कोच्चि के एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया. जहां उनकी हालात लगातार बिगड़ रही थी. इसके बाद उन्हें ईसीएमओ पर रखा गया, लेकिन मंगलवार को उनका (Bodyguard Director Siddique Dies) निधन हो गया. आपको बता दें कि सिद्दीकी को लिवर से जुड़ी समस्या थी. साथ ही उनका निमोनिया का भी इलाज चल रहा था.
सिनेमा को कई सुपरहिट फिल्में दी हैं सिद्दीकी ने
आपको बता दें कि सिद्दीकी ने अपने करियर की शुरुआत साल 1983 में आई फिल्म ‘फासिल’ में असिस्टेंट डायरेक्टर के तौर पर की थी. इसके बाद उन्होंने मलयालम सिनेमा को एक से बढ़कर एक कई सुपरहिट फिल्में दीं. हालांकि मलयालम के अलावा सिद्दीकी (Bodyguard Director Siddique Dies) ने हिंदी, तमिल और तेलुगू भाषाओं में आई कई फिल्मों का भी निर्देशन किया है.
उन्होंने सलमान खान (Salman Khan) और करीना कपूर की फिल्म ‘बॉडीगार्ड’ को भी डायरेक्ट किया था, जो बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट साबित हुई थी.
सौरभ रस्तोगी अपनी पत्नी शैली के साथ बरेली के फतेहगंज (पश्चिमी) थाना क्षेत्र के माली मोहल्ले में रहता था. उस का अपना मकान था, जिस के निचले तल पर उन की सोनेचांदी की ज्वैलरी की दुकान थी. ऊपरी तल पर उस का निवास था.
सौरभ का नौकर विनोद फतेहगंज से लगभग 2 किलोमीटर दूर खिरका गांव में रहता था. वह काम कर के रोजाना अपने घर चला जाता था. 3 मई की सुबह 9 बजे विनोद सौरभ रस्तोगी के घर पहुंचा और सड़क पर खड़े हो कर उस ने सौरभ को कई आवाज लगाई. लेकिन ऊपर कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई. जबकि रोजाना उस की आवाज सुनते ही सौरभ बाहर झांकता और उसे देख कर दुकान खोलने के लिए चाबियां नीचे फेंक देता.
दुकान के बराबर से ही ऊपर जाने के लिए सीढि़यां थीं, जिस में आगे की ओर चैनल लगा था और उस के पीछे शटर. शटर और चैनल दोनों हमेशा अंदर से बंद रहते थे. शटर को थोड़ा खुला देख विनोद आश्चर्य में पड़ गया. क्योंकि सौरभ अगर सामने की दुकान पर चाय पीने भी जाता था तो शटर लौक कर के जाता था.
विनोद ने सौरभ के बारे में पड़ोस में पूछा तो कुछ पता नहीं चला. उस ने संदेह वाली बात पड़ोसी को बताई तो उस ने ऊपर जा कर देखने को कहा. विनोद पूरा शटर खोल कर सीढि़यों के रास्ते प्रथम तल से होते हुए जब दूसरे तल पर पहुंचा तो सौरभ को हाथपैर बंधे हुए पड़े पाया. उसे उस हालत में देख कर ही लग रहा था कि वह जीवित नहीं है. विनोद घबरा कर उल्टे पैर वापस लौट आया.
नीचे आ कर उस ने पड़ोसी को पूरी बात बताई. उस की बात सुन कर जरा सी देर में पासपड़ोस के लोग एकत्र हो गए. पुलिस चौकी पास ही थी. विनोद ने इस मामले की सूचना पुलिस चौकी में दे दी. चौकी से अविलंब थाना फतेहगंज (पश्चिमी) को सूचना भेज दी गई.
15 मिनट में ही थाने के इंसपेक्टर देवेश सिंह पुलिस टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. पुलिस मकान के दूसरे तल पर पहुंची तो घर का सारा सामान बिखरा पड़ा मिला. सौरभ की हत्या कर दी गई थी और उस की लाश बेड पर पड़ी थी. उस की कनपटी पर गोली लगने का निशान था, साथ ही गरदन पर भी घाव था. लग रहा था, जैसे गोली कनपटी पर लगने के बाद गरदन से होती हुई बाहर निकली हो. गरदन पर किसी तेज धारदार चीज से काटे जाने का भी निशान था और गला कसे जाने के निशान भी साफ नजर आ रहे थे. इस का मतलब हत्यारे सौरभ को किसी भी हालत में जिंदा नहीं छोड़ना चाहते थे.
इंसपेक्टर देवेश सिंह ने घटना की सूचना अपने उच्चाधिकारियों को दे दी. सूचना पा कर कुछ ही देर में बरेली के एसएसपी जे. रविंद्र गौड़ और सीओ मीरगंज मनोज कुमार पांडेय भी फिंगर प्रिंट एक्सपर्ट्स की टीम के साथ वहां पहुंच गए. एक्सपर्ट की टीम घटनास्थल से साक्ष्य जुटाने में लग गई. टीम द्वारा अपना काम कर लिए जाने के बाद अधिकारियों ने घटनास्थल का निरीक्षण किया.
करीब 20 गज के प्लौट में बने उस मकान के प्रथम तल पर किचन और बाथरूम के अलावा एक दीवान पड़ा था. यहीं पर सौरभ की दुकान का लौकर था, जिस में वह ग्राहकों द्वारा गिरवी रखे जाने वाले गहने और पैसा रखता था. दूसरे तल पर बना कमरा सौरभ का बेडरूम था. जबकि तीसरे व अंतिम तल पर टौयलेट था.
जिस बेडरूम में सौरभ की हत्या की गई थी, वह काफी कम जगह में बना था. एक बेड और एक टेबल के अलावा वहां एक अलमारी रखी थी. इतने सामान से ही पूरा कमरा भरा था. कमरे में रखी अलमारी खुली पड़ी थी और उस का सामान बाहर निकला पड़ा था. अलमारी का लौकर खुला था और बिलकुल खाली था. अलमारी और लौकर के लौक टूटे हुए थे. कमरे में टूटी हुई चूडि़यां पड़ी थीं. कांच का गिलास भी मेज के पास टूटा पड़ा था. गिलास के कांच का एक टुकड़ा खून से सना हुआ था. सौरभ का गला शायद उसी कांच से काटा गया था. सीढि़यों पर चाबी के कई गुच्छे पड़े मिले थे.
इसी बीच सूचना पा कर बरेली से सौरभ के पिता सुनील रस्तोगी व अन्य घर वाले आ गए. उन से पूछताछ करने पर पता चला कि गत दिवस 2 मई को सौरभ अकेला था. उस की पत्नी शैली 2 मई की सुबह नोएडा चली गई थी. उस दिन शुक्रवार होने की वजह से बाजार की साप्ताहिक छुट्टी थी. सुबह पत्नी को टे्रन में बैठाने के बाद सौरभ अपनी नानी की अंत्येष्टि में बछला गया था. उस की नानी की मौत भी 2 मई की सुबह हुई थी. नानी की अंत्येष्टि में वह गया तो था, लेकिन घर वालों के रोकने के बावजूद जल्दी चला आया था.
घटनास्थल के मुआयने और पूछताछ के बाद यह नतीजा निकला कि इस घटना को पुख्ता योजना बना कर अंजाम दिया गया था. हत्यारों कोे यह बात अच्छी तरह पता थी कि सौरभ घर पर अकेला है, उस की पत्नी शैली बाहर गई हुई है. इसीलिए घटना को अंजाम देने के लिए 2 मई की रात चुनी गई.
हालात बता रहे थे कि घर के अंदर दाखिल होने वाले को सौरभ अच्छी तरह जानता था. क्योंकि कोई भी व्यक्ति बाहर से घर के अंदर तब तक प्रवेश नहीं कर सकता था, जब तक अंदर मौजूद शख्स ताला न खोले. बाहर से ताला खोलना किसी भी तरह संभव नहीं था. सीढि़यों के पास शटर लगा था, जिस में अंदर से ताला पड़ा हुआ था. फिर सीढि़यां चढ़ने के बाद एक दरवाजा था, वह भी अंदर से बंद रहता था.
अगर किसी ने दरवाजा तोड़ने का प्रयास किया होता तो निशान जरूर मिलते. दरवाजों पर लगी कुंडियां सहीसलामत थीं. इस का मतलब था कि सौरभ ने ही अपने किसी परिचित को देख कर दरवाजे खोले होंगे और उसे ऊपर ले गया होगा. रात 9 बजे सौरभ ने विनोद को फोन कर के बुलाया था, लेकिन मौसम खराब होने की वजह से वह नहीं आ सका था. इस के बाद ही किसी समय सौरभ की हत्या की गई थी.
पुलिस अधिकारियों ने गहन जांचपड़ताल करने के बाद करीब एक बजे सौरभ की लाश पोस्टमार्टम के लिए बरेली स्थित मोर्चरी भेज दी. मौके पर मिले सौरभ के मोबाइल को पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. घटनास्थल से पुलिस ने 2 बुलेट भी बरामद किए.
उधर सौरभ की पत्नी शैली को पति की मौत की खबर मिली तो वह देर शाम दिल्ली से वापस आ गई.
सौरभ के पिता सुनील रस्तोगी की लिखित तहरीर पर इंसपेक्टर देवेश सिंह ने अज्ञात लोगों के विरुद्ध भादंवि की धारा 394 और 302 के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया.
पुलिस ने सौरभ के मोबाइल नंबर की काल डिटेल्स निकलवाई तो पता चला कि घटना वाली रात उस ने अंतिम काल अपनी पत्नी शैली को की थी. उस से पहले उस ने 9 बजे विनोद से बात की थी. इन दोनों काल से पहले सौरभ की बात एक अनजान नंबर पर भी हुई थी. उस नंबर पर उस दिन भी और उस के पहले दिन भी कईकई बार देर तक बातें की गई थीं.
इंसपेक्टर देवेश सिंह ने उस नंबर के बारे में विनोद से पूछताछ की तो उस ने बताया कि वह नंबर बरेली के थाना बहेड़ी के अंतर्गत आने वाले गांव जुआ जवाहरपुर की रहने वाली पूजा शर्मा का था. विनोद उस के बारे में इसलिए जानता था, क्योंकि सौरभ ने उसे भेज कर कई बार पूजा का मोबाइल रिचार्ज कराया था. इस से पुलिस को यह मामला अवैध संबंधों का लगा.
पुलिस ने पूजा के घर पर गिरफ्तारी के लिए दबिश दी, लेकिन वह नहीं मिली. पता चला कि वह 19 अप्रैल को अपने प्रेमी राकेश गंगवार के साथ भाग गई थी. राकेश पड़ोस के गांव मोहम्मदपुर का रहने वाला था.
राकेश और पूजा का एक साथ भागना और पूजा का सौरभ से बराबर बात करना, इस बात की ओर इशारा करता था कि संभवत: उन दोनों ने ही मिल कर सौरभ की हत्या कर के लूट को अंजाम दिया था.
पुलिस ने उन्हें शीघ्र गिरफ्तार करने के लिए मुखबिरों को सुरागरसी पर लगा दिया. 7 मई की दोपहर को एक मुखबिर से इंसपेक्टर देवेश सिंह को सूचना मिली कि पूजा अपने प्रेमी राकेश के साथ इज्जत नगर रेलवे स्टेशन पर खड़ी है. यह खबर मिलते ही उन्होंने तुरंत वहां जा कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया. दोनों को थाने ला कर कड़ाई से पूछताछ की गई तो उन्होंने सारा सच उगल दिया.
पूजा थाना बहेड़ी क्षेत्र के गांव जुआ जवाहरपुर निवासी रामवीर की बेटी थी. रामवीर खेतीकिसानी का काम करता था. उस का अपनी पत्नी कमला से अकसर वादविवाद होता रहता था, जोकि कभीकभी भयंकर रूप अख्तियार कर लेता था.
वादविवाद का कारण था कमला का महत्त्वाकांक्षी होना. उसे अपनी चादर के हिसाब से पैर पसारना नहीं आता था. उस के हाथ में जितना पैसा आता था, वह घर की जिम्मेदारियों के बजाय फिजूल के कामों में खर्च कर देती थी. 3 बच्चों की मां होने के बावजूद कमला को बनसंवर कर रहना पसंद था. इसी वजह से उस के खरचे ज्यादा बढ़े हुए थे. उस की फिजूलखर्ची को ले कर पतिपत्नी में प्राय: रोज झगड़ा होता था.
इस सब से तंग आ कर रामवीर ने कमला को तलाक दे दिया. तलाक के बाद वह अपने बच्चों के साथ अपने मायके बरेली के ही गांव मोहम्मदपुर आ गई. लेकिन जवान बेटी को घर में बैठे देख कुछ ही दिनों में मांबाप को चिंता होने लगी. उन्होंने किसी तरह दौड़भाग कर के उस की शादी जुआ जवाहरपुर के सेवानिवृत्त फौजी भूपराम शर्मा से कर दी. भूपराम सेवानिवृत्ति के बाद अपनी पुश्तैनी जमीन पर खेतीबाड़ी करते थे. शादी के बाद कमला बच्चों के साथ अपनी इस ससुराल में रहने लगी.
समय के साथ कमला की बेटी पूजा जवान हो गई. वह बरेली के विशाल कन्या डिग्री कालेज से बीए द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही थी. पूजा अपनी मां कमला से इसलिए नाराज रहती थी, क्योंकि उस ने दूसरा विवाह कर लिया था. इसी बात को ले कर मांबेटी में अकसर झगड़ा हो जाता था. कमला अपनी झगड़ालू बेटी से कम ही बोलती थी. पूजा के उग्र स्वभाव से कमला काफी डरती थी.
पूजा भी अपनी मां पर गई थी. उस के भी काफी ऊंचे ख्वाब थे, जिन्हें पूरा करने के लिए वह सहीगलत के चक्कर में भी नहीं पड़ना चाहती थी. ऐसी बातों में उस का दिमाग भी काफी तेज दौड़ता था.
पूजा अपनी ननिहाल मोहम्मदपुर जाती रहती थी. एक दिन वहीं पर उस की मुलाकात राकेश कुमार गंगवार से हुई. राकेश के पिता होरीलाल भी किसान थे. उस की 2 बड़ी बहनों का विवाह हो चुका था. राकेश उन दिनों बरेली कालेज में बीए द्वितीय वर्ष (प्राइवेट) की पढ़ाई कर रहा था. इस के अलावा वह पार्ट टाइम नौकरी भी करता था. राकेश का पूजा की ननिहाल में आनाजाना था. दोनों ने बीए के फार्म भी साथसाथ भरे थे.
पूजा के ननिहाल में रहते राकेश का आनाजाना बढ़ गया था. जब भी वह आता, उस की नजरें पूजा पर ही टिकी रहतीं. पूजा नासमझ तो थी नहीं कि उस की नजरों को नहीं पढ़ पाती. वह उस के दिल की बात बखूबी समझती थी. मोहब्बत का बीज जब दोनों ओर अंकुरित हो जाए तो एकदूसरे के करीब आने में वक्त नहीं लगता. धीरेधीरे पूजा राकेश से खुलती चली गई. वक्त के साथ दोनों ने अपनेअपने प्यार का इजहार कर लिया. इस के बाद दोनों छिपछिपा कर एकदूसरे से मिलने लगे. जीवन भर एकदूसरे का साथ निभाने का सपना लिए दोनों ने जल्दी ही अपने बीच की सारी दूरियां भी मिटा दीं.
राकेश और पूजा जहां प्यार के रास्ते पर बेफिक्र हो कर तेजी से आगे बढ़ रहे थे, वहीं उन दोनों के प्यार की बात गांव वालों से छिपी न रह सकी. जल्दी ही इस बारे में दोनों के घर वालों को भी पता चल गया.
राकेश और पूजा के प्यार के किस्से सुनसुन कर दोनों के परिजन तंग आ गए थे. इसी के मद्देनजर राकेश के घर वालों ने उस का रिश्ता बरेली के नवाबगंज कस्बे के एक सभ्रांत परिवार में तय कर दिया. वहीं पूजा के पिता भूपराम ने भी बेटी की शादी मीरगंज थाना क्षेत्र के गांव धनेली में पक्की कर दी.
इस से पूजा को अपने अरमान और ख्वाब बिखरते नजर आए. वह राकेश पर गांव छोड़ कर भागने का दबाव बनाने लगी. लेकिन राकेश इस के लिए तैयार नहीं था. इस पर पूजा ने उसे बलात्कार के आरोप में जेल भिजवाने की धमकी दी, तो उसे पूजा की बात माननी पड़ी.
20 अप्रैल, 2014 को पूजा की शादी होनी थी. लेकिन उस से पहले ही 19 अप्रैल को वह राकेश के साथ गांव से भाग गई. राकेश पूजा को ले कर अपने मामा ओमप्रकाश के घर जा पहुंचा, जो बरेली के थाना देवरनिया क्षेत्र के गांव जमुनिया में रहते थे.
वहीं पर दोनों ने विवाह कर लिया. लेकिन विवाह के बाद की जिंदगी की अच्छी शुरुआत के लिए पैसों की जरूरत थी. पूजा ने इस के लिए पहले से ही एक योजना बना रखी थी. उस ने अपनी योजना राकेश को बताई तो उसे पूजा की योजना अच्छी लगी. उस ने पूजा से वादा किया कि वह इस योजना में उस का हर तरह से साथ निभाएगा.
सुनील रस्तोगी बरेली स्थित फतेहगंज (पश्चिमी) के माली मोहल्ले में अपने परिवार के साथ रहता था. उस के मकान के निचले तल पर उस की ज्वैलरी शौप थी. अच्छी जगह दुकान होने की वजह से ग्राहक भी खूब आते थे. ज्वैलरी बेचने के अलावा सुनील गिरवीगांठ का भी काम करता था. उस के यहां आने वाले ग्राहकों की कोई कमी नहीं थी.
सुनील के परिवार में उस की पत्नी सीमा, एक बेटा सौरभ और 2 बेटियां वर्षा और दीपिका थीं. उन्होंने बेटियों के विवाह कर दिए थे. चार साल पहले सौरभ का विवाह भी बरेली के कस्बा सिरौली के मोहल्ला सीपरी निवासी शैली से हो गया था. उन दिनों सौरभ पिता के साथ दुकान पर बैठता था.
2 साल पहले सौरभ की मां का देहांत हो गया तो कुछ ही महीने बाद सौरभ के पिता सुनील ने दूसरा विवाह करने की ठान ली. इस विवाह का सौरभ व शैली के अलावा अन्य घर वालों ने भी काफी विरोध किया, लेकिन सुनील नहीं माने.
उन्होंने अखबारों में विवाह हेतु विज्ञापन दे दिया. जल्द ही मीरजापुर जनपद से उन के लिए एक विधवा महिला का रिश्ता आ गया. उस का एक बच्चा भी था. तमाम विरोधों के बाद सुनील ने विवाह कर लिया और घर से अलग हो कर उस महिला के साथ बरेली शहर स्थित किला थाना क्षेत्र के कूंचा मोहल्ले में रहने लगे.
पिता के बरेली जाने के बाद दुकान की पूरी जिम्मेदारी सौरभ पर आ गई. कह सकते हैं कि वह दुकान उसी की हो गई. पूजा की दूर के रिश्ते की एक नानी थी, जो सौरभ की दुकान पर अकसर खरीदारी करने जाती रहती थी. वह चूंकि काफी पुरानी ग्राहक थी, इसलिए सौरभ उस का खास ख्याल रखता था. एक बार पूजा भी अपनी नानी के साथ सौरभ की दुकान पर गई. नानी ने उस का परिचय सौरभ से करा कर कहा कि कभी यह कुछ खरीदने आए तो उसे उचित दाम पर ही ज्वैलरी दे देना.
पहली ही मुलाकात में सौरभ पूजा के दिमाग में चढ़ गया. वह अकसर उस की दुकान पर जाने लगी. एक दिन वह शाम के वक्त सौरभ की दुकान पर पहुंची तो वह दुकान बंद कर रहा था. सौरभ उसे ऊपर अपने मकान में ले गया और अपनी पत्नी शैली से मिलवाया.
बेडरूम में बिठा कर उस ने शैली से अपनी ज्वैलरी पूजा को दिखाने को कहा, जो उस ने हाल में ही बनवाई थी. दरअसल सौरभ सोच रहा था कि शैली की ज्वैलरी देख कर शायद पूजा को डिजाइन पसंद आ जाएं और वह वैसे ही डिजाइन की ज्वैलरी बनवाने का मन बना ले.
शैली एक अजनबी लड़की के सामने अपनी अलमारी खोल कर ज्वैलरी नहीं दिखाना चाहती थी, लेकिन सौरभ के कहने पर उसे बात माननी पड़ी. शैली की ज्वैलरी देख कर पूजा की आंखें चुंधिया गईं. ज्वैलरी के वजन और कीमत की सोच कर उस के मन में लालच आ गया.
उस दिन पूजा वहां से वापस तो लौट आई, लेकिन उस की आंखों के सामने वहीं ज्वैलरी नाचती रही. इस के बाद उस ने सौरभ से मुलाकातें बढ़ा दीं. मुलाकातें बढ़ी तो दोनों ने एकदूसरे को अपने मोबाइल नंबर दे दिए. इस के बाद दोनों की बातें होने लगीं.
पूजा को अपनी तरफ खिंचता देख सौरभ खुश था. उस का भी मन बहक गया. धीरेधीरे स्थिति यह आ गई कि सौरभ अपने नौकर विनोद को भेज कर पूजा का मोबाइल भी रिचार्ज कराने लगा.
राकेश के साथ भागने और शादी करने के बाद जब अच्छी जिंदगी के लिए पैसे की जरूरत महसूस हुई तो पूजा ने राकेश के साथ मिल कर सौरभ को लूटने की योजना बना ली.
इस के लिए उस ने मर्दों की कमजोरी वाला रास्ता अख्तियार किया. वह सौरभ से खुल कर प्रेम भरी बातें करने लगी. एक साथ तन्हा समय बिताने की बात हुई तो सौरभ ने मौके की तलाश शुरू कर दी.
सौरभ की पत्नी शैली की बच्चेदानी पर कुछ चर्बी थी, जिस वजह से गर्भ नहीं ठहर पा रहा था. उस का इलाज नोएडा के नीलकंठ अस्पताल में चल रहा था. डाक्टर गर्भाशय की चर्बी औपरेशन के जरिए हटाने की बात कर रहे थे. शैली को उसी औपरेशन के लिए नोएडा जाना था.
सौरभ को पूजा से एकांत में मिलने के लिए यह सही मौका लगा. इस के लिए उसे ऐसा इंतजाम करना था कि उसे शैली के साथ न जाना पड़े. इस के लिए उस ने काम का बहाना बना कर शैली को अपने नौकर जंगबहादुर की पत्नी के साथ नोएडा जाने के लिए मना लिया.
25 अप्रैल को शैली के जाने की योजना बन गई. सौरभ ने पूजा को फोन कर के उस से घर पर मिलने की बात भी बता दी, लेकिन ऐन वक्त पर किसी वजह से उस दिन शैली का जाना स्थगित हो गया. इस वजह से उस दिन सौरभ और पूजा नहीं मिल पाए.
2 मई को सुबह सौरभ शैली को नौकर की पत्नी के साथ ले कर बरेली जंक्शन गया और साढ़े 6 बजे दिल्ली जाने वाली आला हजरत एक्सप्रेस से उसे दिल्ली भेज दिया, वहां से उसे नोएडा जाना था. पत्नी को भेजने के बाद सौरभ ने 8 बजे सुबह फोन कर के पूजा को मिलने के लिए बुला लिया.
उस दिन शुक्रवार था और शुक्रवार को मार्केट की साप्ताहिक छुट्टी रहती थी, इसलिए उस दिन दुकान खोलने की भी मजबूरी नहीं थी. प्रोग्राम के हिसाब से सब कुछ ठीक था, लेकिन तभी सौरभ को नानी की मौत का समाचार मिला. मजबूरी थी, इसलिए न चाहते हुए उसे बेमन से कछला जाना पड़ा, जहां उस की नानी की अंत्येष्टि होनी थी.
वहां पर भी पूजा ने उसे 3-4 बार फोन किया. पूजा से एकांत में मिलने की तमन्ना सौरभ के सिर चढ़ कर बोल रही थी. अंत्येष्टि के बाद जब वह जाने लगा तो घर वालों और रिश्तेदारों ने उसे रोकने की काफी कोशिश की, लेकिन वह नहीं रुका.
शाम लगभग साढ़े 6 बजे तक वह अपने घर पहुंच गया. उस ने घर पहुंचने की खबर पूजा को दे दी. इस के बाद पूजा राकेश के साथ बाइक पर बैठ कर सौरभ के घर के लिए चल दी. बाइक राकेश के मामा ओमप्रकाश की थी.
रात 8 बजे वह सौरभ के मकान से कुछ दूरी पर उतर गई और सौरभ के घर की तरफ चल दी. राकेश वहीं मार्केट में घूमने लगा. इसी बीच उस ने शराब पी और वहीं पास के एक बैंक्वेट हौल में हो रहे वैवाहिक समारोह में जा कर खाना खाया.
नशे की हालत में उस ने बाइक एक स्थानीय पत्रकार अनवार खान की बाइक से भिड़ा दी. इस पर दोनों में काफी बहस हुई. राकेश अपनी बाइक वहीं खड़ी कर के वहां से चला गया. पत्रकार अनवार खान ने फतेहगंज (पश्चिमी) थाने को सूचना दी, जिस के बाद थाने से सिपाही वहां पहुंचे और राकेश की क्षतिग्रस्त बाइक को उठवा कर थाने ले गए.
दूसरी ओर पूजा सौरभ के घर पहुंची तो सौरभ ने खुद आ कर शटर खोला और उसे अपने साथ दूसरी मंजिल पर बने अपने बेडरूम में ले गया. कुछ देर दोनों के बीच बातें होती रहीं.
फिर सौरभ 2 गिलास और फ्रिज से फू्रटी की बोतल निकाल कर ले लाया. उस ने फू्रटी मेज पर रख दी. पूजा फू्रटी की बोतल उठा कर दोनों गिलासों में पलटने लगी. इसी बीच सौरभ टौप फ्लोर पर टौयलेट चला गया. पूजा ने मौके का फायदा उठा कर अपने पर्स में रखे ‘एटीवान’ की 2 टैबलेट का पिसा पाउडर निकाला और सौरभ के गिलास में डाल कर मिला दिया.
जब सौरभ टौयलेट से वापस आया तो पूजा ने एक गिलास उसे दे कर दूसरा गिलास अपने होंठों से लगा लिया और सिप करने लगी. सौरभ फ्रूटी पीते हुए टीवी खोल कर उस पर प्रोग्राम सेट करने लगा. करीब 20 मिनट बाद सौरभ बेहोश हो कर बेड पर लुढ़क गया. सौरभ के बेहोश होते ही पूजा ने राकेश को फोन कर के आने को कह दिया.
लगभग 11 बजे राकेश आया तो पूजा उसे शटर उठा कर अंदर ले आई. आने के बाद राकेश सौरभ को होश में लाने की कोशिश करने लगा. वह होश में आया तो राकेश ने 315 बोर का तमंचा तान कर सौरभ को पेट के बल लेटने की हिदायत दी. डर कर सौरभ पेट के बल लेट गया.
पूजा ने सौरभ के हाथ पीठ की तरफ ला कर अपने दुपट्टे से बांध दिए. साथ ही उस ने सौरभ के पैर भी उस की शर्ट से बांध दिए. इस के बाद राकेश ने अलमारी की चाबी मांगी तो सौरभ ने देने से इनकार कर दिया. इस पर राकेश ने उसे डराने के लिए तमंचे से एक हवाई फायर किया. उस ने एक बार फिर चाबी मांगी, लेकिन सौरभ ने चाबी देने से फिर मना कर दिया.
इस पर राकेश को गुस्सा आ गया और उस ने सौरभ की कनपटी पर तमंचे की नाल रख कर गोली मार दी जो कि गर्दन के पार होते हुए बाहर निकल गई. सौरभ ने उठने की कोशिश की, लेकिन हाथपैर बंधे होने के कारण वह गिर पड़ा. जिस से मेज पर रखा फू्रटी का गिलास टूट गया. उसी गिलास के टूटे कांच से राकेश ने सौरभ की गर्दन काटी. उस के बाद उस ने बेल्ट से उस का गला कस दिया, जिस से सौरभ की मौत हो गई.
सौरभ को मौत के घाट उतार कर राकेश और पूजा ने अलमारी का लौक तोड़ा और उस के अंदर बनी छोटी तिजोरी का लौक भी तोड़ कर उस में रखी 650 ग्राम ज्वैलरी और लगभग 4 हजार रुपए निकाल लिए.
यह सब करतेकरते रात का एक बज गया था. काम हो गया तो दोनों वहां से निकल आए. राकेश ने बाहर आ कर अपनी बाइक ढूंढ़ी, लेकिन बाइक नहीं मिली. बाइक सिपाही थाने ले गए थे. राकेश ने बैंक्वेट हौल के बाहर खड़ी एक बाइक में अपनी चाबी लगाई तो वह स्टार्ट हो गई. उसी बाइक पर बैठ कर दोनों वहां से निकल गए.
राकेश के बहनबहनोई बरेली के भोजीपुरा थाने के चौपारा गांव में रहते थे. राकेश पूजा को साथ ले कर रात 3 बजे अपनी बहन के घर पहुंच गया. 2 दिन दोनों वहीं रुके. इसी बीच राकेश ने अपने घर जा कर लूटी गई ज्वैलरी और रुपए भैसों के बाड़े में चारा रखने वाली नांद के नीचे जमीन में छिपा दिए. लूट का माल ठिकाने लगा कर वह अपनी बहन के घर आ गया. फिर 5 मई को दोनों नैनीताल चले गए.
7 मई को दोनों वापस बरेली आए. इज्जतनगर रेलवे स्टेशन से वे बाहर आ कर खड़े ही हुए थे कि फतेहगंज (पश्चिमी) थाने के इंस्पेक्टर देवेश सिंह ने अपनी पुलिस टीम के साथ वहां पहुंच कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया. पुलिस ने राकेश की निशानदेही पर चुराई गई साढ़े 6 सौ ग्राम ज्वैलरी और 4 हजार रुपए भी बरामद कर लिए. हत्या में प्रयुक्त बाइक पुलिस पहले ही बरामद कर चुकी थी. आवश्यक लिखापढ़ी के बाद दोनों को सीजेएम की अदालत में पेश करने के बाद जेल भेज दिया गया.
पूजा और राकेश गंगवार एकदूसरे को प्यार करते थे, यह गलत नहीं था. दोनों ने घर से भाग कर शादी कर ली, इसे भी गलत नहीं कहा जा सकता. लेकिन अपने प्यार को मंजिल देने के लिए जब वे गुनाह के रास्ते पर उतर गए तो अंजाम बुरा ही होना था.
—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित
सोशल मीडिया प्लेटफौर्मों में व्हाट्सऐप, इंस्टाग्राम, फेसबुक यूट्यूब और ट्विटर के बाद अब फेसबुक की कंपनी से ट्विटर जैसा थ्रैड्स भी जुड़ गया है. सोशल मीडिया आज मुख्य मीडिया से ज्यादा महत्त्व का हो गया है. मुसीबत यह है कि इन सब का कोई संपादक नहीं है, कोई यह नहीं देख रहा है कि लोग जो फौरवर्ड कर रहे हैं या लिख रहे हैं वह मतलब का है या नहीं, भ्रामक है या नहीं, झूठा है या सच्चा, उकसाता है या थोड़ा मनोरंजन करता है आदिआदि.
दरअसल, सोशल मीडिया सुलभ है, हाथ में ले कर एकदूसरे से बात करने के लिए बने मोबाइल पर यह मिल रहा है, इसलिए इसे जम कर देखा जा रहा है. वहीं, इस पर बकवास करने वालों की भीड़ इतनी बड़ी हो गई है कि सही व समझदारी की बात ढूंढना मुश्किल हो गया है.
दुनिया की सारी सरकारें आज सोशल मीडिया से भयभीत हैं क्योंकि इस ने चौराहों पर होने वाली गपों को एक क्षेत्र तक सीमित न रख कर दुनियाभर में फैला दिया है. इस से जहां सरकारों की पोल खोली जा रही है वहीं सरकारों के समर्थक जम कर अपना प्रचार कर रहे हैं और आमजन सरकारी झूठ को सच मानने लगे हैं.
जो काम कभी समाचारपत्रों और पत्रिकाओं के लेखक-संपादक बड़ी गंभीरता और जिम्मेदारी से करते थे वही चीज आज नौसिखिए बिना आगेपीछा सोचे पोस्ट कर रहे हैं. सरकारों को उन मैसेजों की तो चिंता है जो सत्ता में बैठे नेताओं और जनता की परेशानियों पर खरीखोटी सुनाएं पर जो उन की झूठी बड़ाई करें या फालतू के लोगों के स्वास्थ्य, चमत्कारी उपायों, डरावने व घिनौने वीडियो पोस्ट करें उन की कोई चिंता नहीं है.
मार्क जुकरबर्ग का थैड्स एलन मस्क के ट्विंटर को नुकसान पहुंचा कर दोनों का बंटाधार कर दे, तो अच्छा है वरना सोशल मीडिया उस मुकाम पर पहुंच चुका है जहां यह सिर्फ लोगों को परियों की कहानियों सुनाने वाला रह गया है और उन्हें लगातार मानसिक दीवालिया बना रहा है. शातिर लोग पैसा बनाने या सिर्फ चख लेने के लिए जो बात सोशल मीडिया पर लिख रहे हैं, वे तर्क, तथ्य, विवेक से दूर हैं. वे लोगों की सोचनेसमझने की शक्ति को कुंद कर रही हैं.
इन पर कंट्रोल करना सरकार का काम नहीं है, लोगों का खुद का है. यदि समाज के समझदारी और विशेषज्ञों की जानकारी चाहिए तो सोशल मीडिया कभी काम का नहीं हो सकता क्योंकि इस में कौन सा तथ्य कहां से आया, कभी पता नहीं चल सकता. बाजार में मजमा लगा कर झूठी कहानियों के बल पर मर्दानगी की दवाएं बेचने वालों से भी बदतर है यह क्योंकि वहां एक शक्ल तो होती है. सोशल मीडिया पर न पता है, न सूरत है, न स्रोत है. लोग, बस, इस से भ्रमित हुए चले जा रहे हैं.
सोशल मीडिया से लाभ हो रहा है तो टैक्नोलौजी देने वाले प्लेटफौर्मों को, जो मनचाहे मुनाफे विज्ञापनों से कमा रहे हैं. लोग इन विज्ञापनों से भी वैसे ही बहकाए जा रहे हैं जैसे अपने धर्मगुरुओं और नेताओं के चमत्कारों के माध्यम से बहकाए जाते हैं.
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सवाल
मेरी जिंदगी में एक लड़का आया है जो मुझ से कम उम्र का है. वह मुझे बहुत चाहता है. वह मेरे पास मैथ्स की क्लासेज लेने आता था. धीरेधीरे हमारे बीच अजीब सा आकर्षण पैदा हुआ. मैं मानती हूं कि यह गलत है, क्योंकि मैं शादीशुदा हूं. मगर मैं स्वयं नहीं जानती कि ऐसा कैसे हो गया. आप ही बताएं, मैं क्या करूं?
जवाब
आप के और उस लड़के के बीच आकर्षण का पैदा होना स्वाभाविक प्रक्रिया है. विपरीतलिंगी व्यक्ति के साथ जब आप समय बिताते हैं तो सहज ही आप के बीच ऐसा रिश्ता कायम हो सकता है. मगर इस रिश्ते को आप को अपने जीवन की गलती नहीं बनानी चाहिए.
आप का अपना परिवार है. यह संबंध परिवारों में तनाव पैदा कर सकता है. उस लड़के से आप कम से कम मिलें. उस के साथ सिर्फ हैल्दी फ्रैंडशिप का रिश्ता रखें.
कुछ महिलाएं इस वजह से भी अपने से कम उम्र के पुरुषों के प्रति आकर्षित हो जाती हैं क्योंकि वे अपने पति की बढ़ती उम्र, उदासीनता और सपाट रवैए से नाखुश रहने लगती हैं. यदि ऐसा है तो अपने पति से इस संदर्भ में बात करें. इस प्रकार का दिल का संबंध आमतौर पर तर्क व व्यावहारिकता नहीं देखता और नितांत प्राकृतिक है. आप अपराधबोध नहीं रखेंगी तो ज्यादा खुश रहेंगी.
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कैसा था उस लड़की का खुमार
दरवाजा खुला. जिस ने दरवाजा खोला, उसे देख कर चंद्रम हैरान रह गया. वह अपने आने की वजह भूल गया. वह उसे ही देखता रह गया.
वह नींद में उठ कर आई थी. आंखों में नींद की खुमारी थी. उस के ब्लाउज से उभार दिख रहे थे. साड़ी का पल्लू नीचे गिरा जा रहा था. उस का पल्लू हाथ में था. साड़ी फिसल गई. इस से उस की नाभि दिखने लगी. उस की पतली कमर मानो रस से भरी थी.
थोड़ी देर में चंद्रम संभल गया, मगर आंखों के सामने खुली पड़ी खूबसूरती को देखे बिना कैसे छोड़ेगा? उस की उम्र 25 साल से ऊपर थी. वह कुंआरा था. उस के दिल में गुदगुदी सी पैदा हुई.
वह साड़ी का पल्लू कंधे पर डालते हुए बोली, ‘‘आइए, आप अंदर आइए.’’
इतना कह कर वह पलट कर आगे बढ़ी. पीछे से भी वह वाकई खूबसूरत थी. पीठ पूरी नंगी थी.
उस की चाल में मादकता थी, जिस ने चंद्रम को और लुभा दिया था. उस औरत को देखने में खोया चंद्रम बहुत मुश्किल से आ कर सोफे पर बैठ गया. उस का गला सूखा जा रहा था.
उस ने बहुत कोशिश के बाद कहा, ‘‘मैडम, यह ब्रीफकेस सेठजी ने आप को देने को कहा है.’’
चंदम ने ब्रीफकेस आगे बढ़ाया.
‘‘आप इसे मेज पर रख दीजिए. हां, आप तेज धूप में आए हैं. थोड़ा ठंडा हो जाइएगा,’’ कहते हुए वह साथ वाले कमरे में गई और कुछ देर बाद पानी की बोतल, 2 कोल्ड ड्रिंक ले आई और चंद्रम के सामने वाले सोफे पर बैठ गई.
चंद्रम पानी की बोतल उठा कर सारा पानी गटागट पी गया. वह औरत कोल्ड ड्रिंक की बोतल खोलने के लिए मेज के नीचे रखे ओपनर को लेने के लिए झुकी, तो फिर उस का पल्लू गिर गया और उभार दिख गए. चंद्रम की नजर वहीं अटक गई.
उस औरत ने ओपनर से कोल्ड ड्रिंक खोलीं. उन में स्ट्रा डाल कर चंद्रम की ओर एक कोल्ड ड्रिंक बढ़ाई.
चंद्रम ने बोतल पकड़ी. उस की उंगलियां उस औरत की नाजुक उंगलियों से छू गईं. चंद्रम को जैसे करंट सा लगा.
उस औरत के जादू और मादकता ने चंद्रम को घायल कर दिया था. वह खुद को काबू में न रख सका और उस औरत यानी अपनी सेठानी से लिपट गया. इस के बाद चंद्रम का सेठ उसे रोजाना दोपहर को अपने घर ब्रीफकेस दे कर भेजता था. चंद्रम मालकिन को ब्रीफकेस सौंपता और उस के साथ खुशीखुशी हमबिस्तरी करता. बाद में कुछ खापी कर दुकान पर लौट आता. इस तरह 4 महीने बीत गए.
एक दोपहर को चंद्रम ब्रीफकेस ले कर सेठ के घर आया और कालबेल बजाई, पर घर का दरवाजा नहीं खुला. वह घंटी बजाता रहा. 10 मिनट के बाद दरवाजा खुला.
दरवाजे पर उस की सेठानी खड़ी थी, पर एक आम घरेलू औरत जैसी. आंचल ओढ़ कर, घूंघट डाल कर.
उस ने चंद्रम को बाहर ही खड़े रखा और कहा, ‘‘चंद्रम, मुझे माफ करो. हमारे संबंध बनाने की बात सेठजी तक पहुंच गई है. वे रंगे हाथ पकड़ेंगे, तो हम दोनों की जिंदगी बरबाद हो जाएगी.
‘‘हमारी भलाई अब इसी में है कि हम चुपचाप अलग हो जाएं. आज के बाद तुम कभी इस घर में मत आना,’’ इतना कह कर सेठानी ने दरवाजा बंद कर दिया.
चंद्रम मानो किसी खाई में गिर गया. वह तो यह सपना देख रहा था कि करोड़पति सेठ की तीसरी पत्नी बांहों में होगी. बूढ़े सेठ की मौत के बाद वह इस घर का मालिक बनेगा. मगर उस का सपना ताश के पत्तों के महल की तरह तेज हवा से उड़ गया. ऊपर से यह डर सता रहा था कि कहीं सेठ उसे नौकरी से तो नहीं निकाल देगा. वह दुकान की ओर चल दिया.
सेठानी ने मन ही मन कहा, ‘चंद्रम, तुम्हें नहीं मालूम कि सेठ मुझे डांस बार से लाया था. उस ने मुझ से शादी की और इस घर की मालकिन बनाया. पर हमारे कोई औलाद नहीं थी. मैं सेठ को उपहार के तौर पर बच्चा देना चाहती थी. सेठ ने भी मेरी बात मानी. हम ने तुम्हारे साथ नाटक किया. हो सके, तो मुझे माफ कर देना.’ इस के बाद सेठानी ने एक हाथ अपने बढ़ते पेट पर फेरा. दूसरे हाथ से वह अपने आंसू पोंछ रही थी.
आर्थ्राइटिस को आम बोलचाल की भाषा में गठिया कहते हैं. शरीर के जोड़ रोजाना विभिन्न तरह के काम करते हैं और घुटने व कूल्हे खासतौर से पूरे शरीर का वजन उठाते हैं. घुटनों के जौइंट के बीच जैली जैसा एक तत्त्व होता है जिसे कार्टिलेज कहते हैं. यह कुशन या शौक अब्जौर्बर का काम करता है. समय के साथ या फिर किसी दुर्घटना में यह कार्टिलेज घिसना शुरू हो जाता है जिस से हड्डियां एकदूसरे के संपर्क में आ जाती हैं और आपसी रगड़ से उन में दर्द व अकड़न आ जाती है, इसे ही आर्थ्राइटिस कहते हैं.
क्या हैं लक्षण
आर्थ्राइटिस से पीडि़त व्यक्ति के जोड़ों में बहुत अधिक दर्द रहता है. अगर समय पर इलाज न करवाया जाए तो समय के साथ यह दर्द लगातार बढ़ता रहता है. गंभीर स्थिति में दर्द इतना ज्यादा बढ़ जाता है कि मरीज के लिए रोजमर्रा के काम करना तक मुश्किल हो जाता है. कई मामलों में तो रोगी बिस्तर तक पकड़ लेता है.
कैसे होता है आर्थ्राइटिस
आर्थ्राइटिस होने के मुख्य कारण रोजमर्रा की जीवनशैली, रहनसहन, खानपान, पोषण युक्त आहार, शारीरिक व्यायाम या काम न करना और सही मुद्रा में न बैठना व उठना है. इस वजह से उम्र के साथसाथ हड्डियों और जोड़ों में घिसाव होने लगता है जिस से वे विकृत हो जाते हैं.
इस के अलावा जो लोग लगातार कई सालों तक एक ही प्रक्रिया को बारबार दोहराते हैं और उस प्रक्रिया में घुटनों के या किसी भी और जोड़ पर दबाव पडे़ तो उस से भी घुटने का प्रभावित होना स्वाभाविक है. इसीलिए तो ऐथलीट और दूसरे खिलाडि़यों को जोड़ों की समस्या से जूझना पड़ता है.
युवा भी अछूते नहीं
पहले आर्थ्राइटिस की समस्या केवल बुजुर्गों में ही देखने को मिलती थी लेकिन अब युवाओं को भी इस समस्या से जूझना पड़ रहा है. आजकल युवा वर्ग टैक्नोलौजी और सुविधाओं पर इतना ज्यादा निर्भर हो गए हैं कि शारीरिक परिश्रम करना कहीं पीछे रह गया है. बच्चों का भी यही हाल है. बच्चे इंटरनैट और टीवी पर ही समय बिताना पसंद करते हैं. खेलनाकूदना, पसीना बहाना या शारीरिक मेहनत करना बहुत कम देखने को मिलता है.
इस के अलावा युवाओं की अनियमित दिनचर्या, दिनभर डैस्क जौब, टैक्नोलौजी व मशीनों पर बढ़ती निर्भरता, शारीरिक व्यायाम न करने और पोषक खानपान न होने की वजह से आर्थ्राइटिस होने का रिस्क बढ़ जाता है.
गौरतलब है कि अगर मांसपेशियां मजबूत होंगी तो शारीरिक गतिविधियों पर प्रभाव पड़ेगा जिस से हमारे जोड़ संरक्षित रहते हैं. इसलिए नियमित रूप से व्यायाम करने के साथ पोषकतत्त्वों से युक्त खानपान का भी ध्यान रखना चाहिए.
क्या है इलाज
घुटने का इलाज उस की स्थिति के अनुसार ही किया जाता है. सर्जरी कराने की सलाह तभी दी जाती है जब दर्द इतना ज्यादा बढ़ जाए कि रोजमर्रा के काम करने में तकलीफ होने लगे, घुटने में अकड़न और गतिशीलता न रहे, एक्सरे में गंभीर आर्थ्राइटिस या किसी भी प्रकार की विकृति नजर आए और अन्य इलाज जैसे कि दवाएं, फिजियोथैरेपी और नियमित व्यायाम कारगर साबित न हो रहे हों.
अकसर रोगी को शुरुआती स्टेज में दवाओं, फिजियोथैरेपी और नियमित व्यायाम से आराम देने की कोशिश की जाती है. शुरुआत में दर्द होने पर अकसर रोगी पेनकिलर दवाइयां लेते हैं. पेनकिलर दवाएं लेने से पहले डाक्टर से परामर्श लेना बहुत जरूरी है. कई बार मरीज खुद ही दवाएं ले लेते हैं जिस से उन्हें एलर्जी या अन्य कई समस्याएं हो सकती हैं.
अगर रोगी को लगातार दर्द (चलने, दौड़ने, घुटने टेकने और झुकने में दिक्कत, लंबे समय तक बैठने पर जौइंट में अकड़न, जौइंट में सूजन रहे तो उसे स्टेरौयड आदि के इंजैक्शन देने का परामर्श दिया जाता है. ये 2 से 6 महीने तक प्रभावी रहते हैं. ज्यादा समय तक पेनकिलर दवाएं लेना ठीक नहीं है. इस से किडनी और शरीर के अन्य अंगों पर दुष्प्रभाव जैसे कई साइड इफैक्ट्स हो सकते हैं.
अगर आप को दर्द असहनीय हो रहा है और आप को टीकेआर यानी कि टोटल नी रिरप्लेसमैंट की सलाह दी गई है तो आप इस सर्जरी को ज्यादा समय तक न टालें क्योंकि घुटने की स्थिति और ज्यादा गंभीर हो सकती है.
(लेखक नोएडा स्थित फोर्टिस अस्पताल के और्थोपैडिक्स विभाग के अतिरिक्त निदेशक हैं.)
आर्थ्राइटिस एवं जोड़ प्रत्यारोपण
कुछ गलतफहमियां
जोड़ों में तकलीफ होने के कारण कुरसी से उठने के लिए आप को दो बार सोचना पड़ता है, इस दर्द ने आप का चलनाफिरना मुहाल कर दिया है? क्या आप घुटनों में तकलीफ या नितंब में दर्द के कारण सुबह की सैर छोड़ देते हैं और निष्क्रिय होने के कारण आप का वजन बढ़ता जा रहा है? यदि ऐसा है तो भले ही आप अपनेआप को आर्थ्राइटिस के कटु अनुभव के साथ जिंदगी बिताने के लिए तैयार कर लें लेकिन आप का शरीर इस बात को नहीं मानेगा. लंबे समय तक शारीरिक गतिविधियां बंद रखने पर जीवन की गुणवत्ता और उत्पादनशीलता का स्तर गिरने के साथ ही आप में स्वास्थ्य संबंधी कई अन्य समस्याएं भी घर करने लगेंगी. लिहाजा, आर्थ्राइटिस या जोड़ों संबंधी अन्य बीमारियों को अपने शरीर पर हावी न होने दें.
आर्थ्राइटिस एक ऐसी स्थिति है जब आप के जोड़ सूज जाते हैं, सख्त और लाल हो जाते हैं. इस वजह से चलनेफिरने में दिक्कत और इस से जुड़े स्वास्थ्य खतरे बढ़ने के साथ ही आप को अत्यंत कष्टकारी दौर से गुजरना पड़ता है. हालांकि आप को किसी भी जोड़ (या सभी जोड़ों) में आर्थ्राइटिस हो सकता है लेकिन इस का सब से ज्यादा असर नितंब और घुटनों पर पड़ता है.
कुछ मामलों में दवाओं के सहारे और जीवनशैली में बदलाव लाने से आर्थ्राइटिस पर काबू पाया जा सकता है लेकिन नौनसर्जिकल चिकित्सा से जब स्थिति नहीं सुधरती तो जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी पर गंभीरता से विचार करना चाहिए.
यह विडंबना ही है कि पिछले एक दशक में मैडिकल टैक्नोलौजी में महत्त्वपूर्ण तरक्की होने के बावजूद लोग अभी भी जौइंट रिप्लेसमैंट जैसी सर्जिकल प्रक्रिया अपनाने से डरते हैं जबकि इस तरह की आधुनिक सर्जरी आप की सामान्य गतिविधि को पूरी तरह से सुचारू कर सकती है और जोड़ों की ताकत बढ़ा सकती है.
सर्जरी का फायदा उठाने के बारे में लोगों के मन में मौजूद गलतफहमियों के चलते वे सशंकित रहते हैं.
गलतफहमी 1 : जितना हो सके, जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी को टालते रहना ठीक है.
ऐसी स्थिति में डाक्टर की राय बहुत माने रखती है. कोई विशेषज्ञ ही तय कर सकता है कि मरीज को हिप रिप्लेसमैंट सर्जरी करानी चाहिए या नहीं. दरअसल, जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी से बचते रहने से न सिर्फ मरीज की पूरी जिंदगी अस्तव्यस्त हो जाती है बल्कि बहुत बाद में सर्जरी कराने से रिकवरी भी काफी मुश्किल से होती है. अमेरिकन एकेडमी औफ और्थोपैडिक सर्जन्स 1999 के मुताबिक, दिल की बीमारी, कैंसर या डायबिटीज की तुलना में आर्थ्राइटिस के कारण शारीरिक गतिविधियां ज्यादा सीमित हो जाती हैं. लंबे समय तक सर्जिकल चिकित्सा टालते रहने से बीमारियां और इन के लक्षण बढ़ने के साथ ही मरीज मोटापा और अन्य स्वास्थ्य तकलीफों से घिर जाता है.
गलतफहमी 2 : आर्थ्राइटिस बुढ़ापे से जुड़ी एक स्वाभाविक बीमारी है. आप को इस का सामना करने के लिए तैयार रहना होगा.
पूरी दुनिया में लाखों लोग आर्थ्राइटिस की समस्या से जूझ रहे हैं और हर वर्ष पीडि़तों की संख्या बढ़ती ही जा रही है. चिकित्सकीय सहायता पा चुके लोग स्वस्थ, उत्पादनशील जीवन जीने में सक्षम हैं. निश्चित तौर पर आर्थ्राइटिस शारीरिक दुर्बलता से जुड़ी बीमारी है लेकिन इसे बुढ़ापे की सामान्य दिक्कतें कभी नहीं कहा जा सकता. किसी भी उम्र में यह समस्या आने पर चिकित्सकीय सहायता जीवन की गुणवत्ता सुधारने में कारगर हो सकती है.
गलतफहमी 3 : कृत्रिम अंग आखिर कृत्रिम ही होते हैं और ये स्वाभाविक जोड़ों जैसा एहसास कभी नहीं दे सकते.
यह गलतफहमी जानकारी के अभाव के कारण ही पैदा होती है. लोगों को पता नहीं होता कि जौइंट रिप्लेसमैंट पद्धति में आमतौर पर असल में जोड़ नहीं बदले जाते हैं, उन्हें सिर्फ व्यवस्थित (घुटने का जोड़) किया जाता है. ठीकठाक घुटने से घुटने की हड्डियों के ऊपर कार्टिलेज का आवरण होता है लेकिन आर्थ्राइटिस से पीडि़त घुटने में हड्डियों के छोर को कवर करने वाले कार्टिलेज क्षतिग्रस्त हो जाते हैं, इसी कारण हड्डियां आपस में रगड़ खाने लगती हैं.
सर्जरी के दौरान सिर्फ हड्डी के छोरों को क्रमबद्ध तरीके से घिस कर चिकना कर दिया जाता है और क्षतिग्रस्त हड्डी के छोर पर एक कैप डाल दिया जाता है ताकि हड्डियों के बजाय कृत्रिम और चिकने कैप ही आपस में रगड़ खाते रहें.
इस के अलावा, यदि जोड़ (नितंब के जोड़) को सचमुच बदलना पड़ जाए तो इस उन्नत रिप्लेसमैंट पद्धति में मैटेरियल और डिजाइन भी अच्छी क्वालिटी के होते हैं और प्रत्यारोपित जोड़ प्राकृतिक जोड़ों की तरह ही स्वाभाविक, आरामदेह और लचीले होते हैं. यदि किसी को सर्जरी कराने के बाद चलनेफिरने में कोई दिक्कत आती है तो इस से राहत पाने के लिए कुछ रिहैब थैरेपी (स्वास्थ्यलाभ के उपाय) भी मौजूद हैं.
गलतफहमी 4 : जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी कराने के बाद सक्रिय जीवन जीना संभव नहीं होता है, खासकर व्यायाम, तैराकी और साइक्लिंग के दौरान दिक्कतें आती हैं.
रिप्लेसमैंट सर्जरी से पूरी तरह रिकवर हो जाने के बाद कई ऐसी शारीरिक गतिविधियां हैं जिन्हें आप आसानी से जारी रख सकते हैं. प्रत्यारोपित जोड़ की मदद से तैराकी साइक्लिंग, सैर और इसी तरह की हलकीफुलकी गतिविधियों को बेझिझक अंजाम दिया जा सकता है. हालांकि जौगिंग, दौड़ या फुटबौल या टैनिस खेलने जैसी अधिक मेहनत वाली गतिविधियों से बचना चाहिए क्योंकि इन गतिविधियों से जोड़ों पर अत्यधिक दबाव पड़ता है.
गलतफहमी 5 : जौइंट रिप्लेसमैंट सिर्फ बुजुर्गों को ही कराना चाहिए.
मैं ने महसूस किया है कि आर्थ्राइटिस जोड़ के सिर्फ इलाज कराने की अपेक्षा जौइंट रिप्लेसमैंट कराना लाइफस्टाइल को सुचारु बनाने में अधिक कारगर होता है. लेकिन कई बार युवा मरीज भी इस प्रकार के प्रभावी चिकित्सकीय उपाय को चुनने से कतराते हैं. सच तो यह है कि शुरुआती चरण में ही जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी न सिर्फ तीव्र और बेहतर रिकवरी सुनिश्चित करती है और सक्रिय जीवनशैली को अधिकतम स्तर पर बहाल करती है बल्कि निष्क्रियता से जुड़ी अन्य स्वास्थ्य समस्याएं रोकने में मददगार भी होती है. लिहाजा, आप की उम्र कोई माने नहीं रखती, यदि आप के डाक्टर ने आप को जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जरी कराने की सलाह दी है तो आप को निश्चिंत ही यह सर्जरी करा लेनी चाहिए.
(डा. राजीव के शर्मा, लेखक अपोलो अस्पताल में और्थोपेडिक स्पैशलिस्ट एवं जौइंट रिप्लेसमैंट सर्जन हैं.)