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उतरन- भाग 1: क्यों बड़े भाई की उतरन पर जी रहा था प्रकाश

भैया अमेरिका जाने वाले हैं, यह जान कर मैं फूला न समाया. भैया से भी ज्यादा खुशी मुझे हुई थी. जानते हो क्यों? अब मुझे उन के पुराने कपड़े, जूते नहीं पहनने पड़ेंगे. बस, यह सोच कर ही मैं बेहद खुश था. आज तक मैं हमेशा उन के पुराने कपड़े, जूते, यहां तक कि किताबें भी इस्तेमाल करता आया था. बस, एक दीवाली ही थी जब मुझे नए कपड़े मिलते थे. पुरानी चीजों का इस्तेमाल करकर के मैं ऊब गया था.

मां से मैं हमेशा शिकायत करता था, ‘मां, मैं क्या जिंदगीभर पुरानी चीजें इस्तेमाल करूं?’

‘बेटे, वह तुम से 2 साल ही तो बड़ा है. तुम बेटे भी न जल्दीजल्दी बड़े हो जाते हो. अभी उसे तो एक साल में कपड़े छोटे होते हैं. उसे नए सिलवा देती हूं. लेकिन ये कपड़े मैं अच्छे से धो कर रखती हूं, देखो न, बिलकुल नए जैसे दिखते हैं. तो क्या हर्ज है? जूतों का भी ऐसे ही है. अब किताबों का पूछोगे तो हर साल कहां सिलेबस बदलता है. उस की किताबें भी तुम्हारे काम आ जाती हैं. देखो बेटे, बाइंडिंग कर के अच्छा कवर लगा कर देती हूं तुम्हें. क्यों फुजूल खर्च करना. मेरा अच्छा बेटा. तेरे लिए भी नई चीजें लाएंगे,’ मां शहद में घुली मीठी जबान से समझती थीं और मैं चुप हो जाता था.

मुझे कभी भी नई चीजें नहीं मिलती थीं. स्कूल के पहले दिन दोस्तों की नईर् किताबें, यूनिफौर्म, उन की एक अलग गंध, इन सब से मैं प्रभावित होता था. साथ ही बहुत दुख होता था. क्या इस खुशी से मैं हमेशा के लिए वंचित रहूंगा? ऐसा सवाल मन में आता था. पुरानी किताबें इस्तेमाल कर के मैं इतना ऊब गया था कि 10वीं कक्षा पास होने के बाद मैं ने साइंस में ऐडमिशन लिया. भैया तब 12वीं कौमर्स में थे. 11वीं कक्षा में मुझे पहली बार नई किताबें मिलीं. कैमिस्ट्री प्रैक्टिकल में मुझे चक्कर आने लगे. बदन पर धब्बे आने लगे. कुछ घर के उपाय करने के बाद पिताजी डाक्टर के पास ले गए.

‘अरे, इसे तो कैमिकल की एलर्जी है. कैमिस्ट्री नहीं होगी इस से.’

‘इस का मतलब यह साइंस नहीं पढ़ पाएगा?’

‘बिलकुल नहीं.’

डाक्टर के साथ इस बातचीत के बाद पिताजी सोच में पड़ गए. आर्ट्स का तो स्कोप नहीं. फिर क्या, मेरा भी ऐडमिशन कौमर्स में कराया गया, और फिर से उसी स्थिति में आ गया. भैया की वही पुरानी किताबें, गाइड्स. घर में सब से छोटा करने के लिए मैं मन ही मन मम्मीपापा को कोसता रहा. भैया ने बीकौम के बाद एमबीए किया और मैं सीए पूरा करने में जुट गया. सोचा, चलो पुरानी किताबों का झमेला तो खत्म हुआ. एमबीए पूरा होने के बाद भैया कैंपस इंटरव्यू में एक विख्यात मल्टीनैशल कंपनी में चुने गए. यही कंपनी उन्हें अमेरिका भेज रही थी. भैया भी जोरशोर से तैयारी में जुटे थे और मैं भी मदद कर रहा था. वे अमेरिका चले गए. समय के साथ मेरा भी सीए पूरा हुआ. इंटरव्यू कौल्स आने लगे.

‘‘मां, इंटरव्यू कौल्स आ रहे हैं, सोचता हूं कुछ नए कपड़े सिलवाऊं.’’

मां ने भैया की अलमारी खोल कर दिखाई, ‘‘देखो, भैया कितने सारे कपड़े छोड़ गया है. शायद तुम्हारे लिए ही हैं. नए ही दिख रहे हैं. सूट भी हैं. ऐसे लग रहे हैं जैसे अभीअभी खरीदे हैं. फिर भी तुम्हें लगता हो, तो लौंड्री में दे देना.’’

मां क्या कह रही हैं, मैं समझ गया. मैं पहले ही इंटरव्यू में पास हो गया. मां खुश हुईं और बोलीं, ‘‘देखो, भैया के कपड़े की वजह से पहले ही इंटरव्यू में नौकरी मिल गई. वह बड़ा खुश होगा.’’ एक तो पुराने कपड़े पहन कर मैं ऊब गया था और मां जले पर नमक छिड़क रही थीं. क्या मेरी गुणवत्ता का कोई मोल नहीं? मां का भैया की ओर झकाव मुझे दिल ही दिल में खाए जा रहा था. पहली सैलरी में कुछ अच्छे कपड़े खरीद कर मैं ने इस चक्रव्यूह को तोड़ा था. भैया के कपड़े मैं ने अलमारी में लौक कर डाले. मैं अपने लिए नईनई चीजें खरीदने लगा.

नया क्षितिज- भाग 1: जानें क्या हुआ जब फिर आमने सामने आए वसुधा-नागेश?

‘वसु,’ पीछे से आवाज आई, वसुधा के पांव ठिठक गए, कौन हो सकता है मुझे इस नाम से पुकारने वाला, वह सोचने लगी. ‘वसु,’ फिर आवाज आई, ‘‘क्या तुम मेरी आवाज नहीं पहचान रही हो? मैं ही तो तुम्हें वसु कहता था.’’ पुकारने वाला निकट आता सा प्रतीत हो रहा था. अब वसु ने पलट कर देखा, शाम के धुंधलके में वह पहचान नहीं पा रही थी. कौन हो सकता है? वह सोचने लगी. वैसे भी, उस की नजर में अब वह तेजी नहीं रह गई थी. 55 वर्ष की उम्र हो चली थी. बालों में चांदी के तार झिलमिलाने लगे थे. शरीर की गठन यौवनावस्था जैसी तो नहीं रह गई थी. लेकिन ज्यादा कुछ अंतर भी नहीं आया था, बस, हलकी सी ढलान आई थी जो बताती थी कि उम्र बढ़ चली है.

लंबा छरहरा बदन तकरीबन अभी भी उसी प्रकार का था. बस, चेहरे पर हलकीहलकी धारियां आ गई थीं जो निकट आते वार्धक्य की परिचायक थीं. कमर तक लटकती चोटी का स्थान ग्रीवा पर लटकने वाले ढीले जूड़े ने ले लिया था.

अभी भी वह बिना बांहों का ब्लाउज व तांत की साड़ी पहनती थी जोकि उस के व्यक्तित्व का परिचायक था. कुल मिला कर देखा जाए तो समय का उस पर वह प्रभाव नहीं पड़ा था जो अकसर इस उम्र की महिलाओं में पाया जाता है.

‘वसु’ पुकारने वाला निकट आता सा प्रतीत हो रहा था. कौन हो सकता है? इस नाम से तो उसे केवल 2 ही व्यक्तियों ने पुकारा था, पहला नागेश, जिस ने जीवन की राह में हाथ पकड़ कर चलने का वादा किया था लेकिन आधी राह में ही छोड़ कर चला गया और दूसरे उस के पति मृगेंद्र जिन्हें विवाह के 15 वर्षों बाद ही नियति छीन कर ले गई थी. दोनों ही अतीत बन चुके थे तो यह फिर कौन हो सकता था. क्या ये नागेश है जो आवाज दे रहा है, क्या आज 35 वर्षों बाद भी उस ने उसे पीछे से पहचान लिया था?

आवाज देने वाला एकदम ही निकट आ गया था और अब वह पहचान में भी आ रहा था. नागेश ही था. कुछ भी ज्यादा अंतर नहीं था, पहले में और बाद में भी. शरीर उसी प्रकार सुगठित था. मुख पर पहले जैसी मुसकान थी. बाल अवश्य ही थोड़े सफेद हो चले थे. मूंछें पहले पतली हुआ करती थीं, अब घनी हो गई थीं और उन में सफेदी भी आ गई थी.

‘तुम यहां?  इतने वर्षों बाद और वह भी इस शाम को अचानक ही कैसे आ गए,’ वसुधा ने कहना चाहा किंतु वाणी अवरुद्ध हो चली थी.

वह क्यों रुक गई? कौन था वो, उसे वसु कह कर पुकारने वाला. यह अधिकार तो उस ने वर्षों पहले ही खो दिया था. बिना कुछ भी कहे, बिना कुछ भी बताए जो उस के जीवन से विलुप्त हो गया था. आज अचानक इतने वर्षों बाद इस शाम के धुंधलके में उस ने पीछे से देख कर पहचान लिया और अपना वही अधिकार लादने की कोशिश कर रहा था. फिर इस नाम से पुकारने वाला जब तक रहा, पूरी निष्ठा से रिश्ते निभाता रहा.

आवाज देने वाला अब और निकट आ गया था. वसुधा ने अपने कदम तेजी से आगे बढ़ाए. अब वह रुकना नहीं चाहती थी. तीव्र गति से चलती हुई वह अपने घर के गेट पर आ गई थी. कदमों की आहट भी और करीब आ गई थी. उस ने जल्दी से गेट खोला. उस की सांसें धौंकनी की तरह चल रही थीं. वह सीधे ड्राइंगरूम में जा कर धड़ाम से सोफे पर गिर पड़ी.

दिल की धड़कनें तेजतेज चल रही थीं. किसी प्रकार उस ने उन पर नियंत्रण किया. प्यास से गला सूख रहा था. फ्रिज खोल कर ठंडी बोतल निकाली. गटगट कर उस ने पानी पी लिया. तभी डोरबैल बज उठी.

उस के दिल की धड़कनें बढ़ने लगीं. कहीं वही तो नहीं है, उस ने सोचते हुए धड़कते हृदय से द्वार खोला. उस का अनुमान सही था. सामने नागेश ही खड़ा था. क्या करूं, क्या न करूं, इतनी तेजी से इसलिए भागी थी कि कहीं फिर उस का सामना न हो जाए लेकिन वह तो पीछा करते हुए यहां तक आ गया. अब कोई उपाय नहीं था सिवा इस के कि उसे अंदर आने को कहा जाए. ‘‘आइए’’ कह कर पीछे खिसक कर उस ने अंदर आने का रास्ता दे दिया. अंदर आ कर नागेश सोफे पर बैठ गया.

वसुधा चुपचाप खड़ी रही. नागेश ने ही चुप्पी तोड़ी, ‘‘बैठोगी नहीं वसु?’’ वसु शब्द सुन कर उस के कान दग्ध हो उठे. ‘‘यह तुम मुझे वसुवसु क्यों कह रहे हो? मैं हूं मिसेज वसुधा रैना. कहो, यहां क्यों आए हो?’’ वसुधा बिफर उठी.

‘‘सुनो, वसु, सुनो, नाराज न हो. मुझे भी तो बोलने दो,’’ नागेश ने शांत स्वर में कहा.

‘‘पहले तुम यह बताओ, यहां क्यों आए हो? मेरा पता तुम को कैसे मिला?’’ वसुधा क्रोध से फुंफकार उठी.

अनोखी जोड़ी- भाग 1: शादी के बाद विशाल और अवंतिका के साथ क्या हुआ?

विशाल और अवंतिका ने पहली मुलाकात के बाद चट मंगनी पट ब्याह कर लिया. लेकिन कुछ ही दिनों बाद दोनों को महसूस हुआ कि वे एकदूसरे के लिए बने ही नहीं हैं. स्थिति तब और भी गंभीर हो गई जब अवंतिका ने विशाल की तेलशोधक कंपनी के खिलाफ आंदोलन में भाग लेने का फैसला किया.

दिल्ली की एक अदालत में विशाल अपनी मुसीबतों का बखान कर रहा था और इस में भी वह अपने को कठिनाइयों में घिरा पा रहा था, क्योंकि कहानी 8 वर्षों से चली आ रही थी.

विशाल मुंबई की एक मशहूर तेलशोधक कंपनी में अधिकारी था. किसी काम से दिल्ली आया तो चांदनी चौक में अवंतिका से मुलाकात हो गई…वह भी रात के 1 बजे.

खूबसूरत अवंतिका रात में सीढ़ी पर खड़ी हो कर दीवार पर ‘कांग्रेस गिराओ’ का एक चित्र बना रही थी. नीचे खड़ा विशाल उस की दस्तकारी को देख रहा था. तभी बड़ी तूलिका ने अवंतिका के हाथ से छूट कर विशाल के चेहरे को हरे रंग से भर दिया.

उस छोटी सी मुलाकात ने दोनों के दिलों को इस कदर बेचैन किया कि उन्होंने ‘चट मंगनी पट ब्याह’ कहावत को सच करने के लिए अगले ही दिन अदालत में जा कर अपने विवाह का पंजीकरण करवा लिया.

प्रेम में कई बार ऐसा भी होता है कि वह पारे की तरह जिस तेजी से ऊपर चढ़ता है उसी तेजी से नीचे भी उतर जाता है. अवंतिका के 2 कमरों के मकान में दोनों का पहला सप्ताह तो शयनकक्ष में बीता किंतु दूसरे सप्ताह जब जोश थोड़ा ठंडा हुआ तो विशाल को लगा कि उस से शादी करने में कुछ जल्दी हो गई है, क्योंकि अवंतिका का आचरण घरेलू औरत से हट कर था. नईनवेली पत्नी यदि पति व घर की परवा न कर अपनी क्रांतिकारी सक्रियता पर ही डटी रहे तो भला कौन पति सहन कर पाएगा.

विवाह के 10वें दिन से ही विवाद में घर के प्याले व तश्तरियां शहीद होने लगे तो स्थिति पर धैर्यपूर्वक विचार कर विशाल ने पत्नी को छोड़ना ही उचित समझा.

8 वर्ष बीत गए. इस बीच विशाल की कंपनी ने कई बार उसे शेखों से सौदा करने के लिए सऊदी अरब व कुवैत भेजा. अपनी वाक्पटुता व मेहनत से विशाल ने लाखों टन तेल का फायदा कंपनी को कराया तो कंपनी के मालिक मुंशी साहब बहुत खुश हुए और उसे तरक्की देने का निर्णय लिया, किंतु अफवाहों से उन्हें पता चला कि विशाल का पत्नी से तलाक होने वाला है. कंपनी के मालिक नहीं चाहते थे कि उन के किसी कर्मचारी का घर उजडे़. अत: विशाल के टूटते घर को बचाने के लिए उन्होंने उस के मित्र विवेक को इस काम पर लगाया कि वह इस संबंध  विच्छेद को बचाए. जाहिर है कहीं न कहीं कंपनी की प्रतिष्ठा का सवाल भी इस से जुड़ा था.

विशाल से मिलते ही विवेक ने जब उस के तलाक की खबर पर चर्चा शुरू की तो वह तमक कर बोला, ‘‘यह किस बेवकूफ के दिमाग की उपज है.’’

‘‘खुद मुंशी साहब ने फरमान जारी किया है. प्रबंध परिषद चाहती है कि कंपनी के सब उच्चाधिकारी पारिवारिक सुखशांति से रहें, कंपनी की इज्जत बढ़ाएं.’’

‘‘क्या बेवकूफी का सिद्धांत है. कंपनी को अधिकारियों की निपुणता से मतलब है कि उन के बीवीबच्चों से?’’

‘‘भैया, वातानुकूलित बंगला, कंपनी की गाड़ी, नौकरचाकर आदि की सुविधा चाहते हो तो परिषद की बात माननी ही होगी. वार्षिक आम सभा में केवल 1 महीना ही बाकी है. तुम अवंतिका को ले कर आम बैठक में शक्ल दिखा देना, पद तुम्हारा हो जाएगा. बाद में जो चाहे करना.’’

‘‘अवंतिका इस छल से सहमत नहीं होगी…विवेक और मैं उसे मना नहीं सकता. औंधी खोपड़ी की जो है,’’ इतना कह कर विशाल अपने तलाक को अंतिम रूप देने के लिए निकल पड़ा.

अदालत में दोनों के वकील तलाक की शर्तों पर आपस में बहस करते रहे जबकि वे दोनों भीगी आंखों से एकदूसरे को देखते रहे. पुराना प्रेम फिर से दिल में उमड़ने लगा, बहस बीच में रोक दी गई क्योंकि जज उठ कर जा चुके थे. मुकदमे की अगली तारीख लगा दी गई.

अदालत के बाहर बारिश हो रही थी. एक टैक्सी दिखाई दी तो विशाल ने उसे रोका. अवंतिका का हाथ भी उठा हुआ था. दोनों बैठ गए. रास्ते में बातें शुरू हुईं:

‘‘क्या करती हो आजकल?’’

‘‘ड्रेस डिजाइनिंग की एक कंपनी में काम करती हूं और सामाजिक सेवा के कार्यक्रमों से भी जुड़ी हूं…जैसे पहले करती थी.’’

‘‘अच्छा, किस के साथ?’’

‘‘हेमंतजी के साथ. वह मेरे अधिकारी भी हैं. वैसे तो उन से मेरी शादी भी होने वाली थी किंतु अचानक तुम मिले और मेरे दिलोदिमाग पर छा गए. याद है न तुम्हें?’’

‘‘कैसे भूल सकता हूं उन हसीन पलों को,’’ विशाल पुरानी यादों में खो गया. फिर बोला, ‘‘तुम अभी भी उसी घर में रहती हो?’’

‘‘हां.’’

घर आया तो टैक्सी से उतरते हुए अवंतिका बोली, ‘‘चाय पी कर जाना.’’

‘‘तुम कहती हो तो जरूर पीऊंगा. तुम्हारे हाथ की अदरक वाली चाय पिए हुए 8 वर्ष हो गए हैं.’’

चाय तो क्या पी विशाल ने वह रात भी वहीं बिताई और वह भी एकदूसरे की बांहों में. आखिर पतिपत्नी तो वे थे ही. तलाक तो अभी हुआ नहीं था.

सुबह उठे तो दोनों में दांपत्य का खुमार जोरों पर था. पत्नी को बांहों में लेते हुए विशाल बोला, ‘‘अब अकेले नहीं रहेंगे. तलाक को मारो गोली.’’

अवंतिका ने भी सिर हिला कर हामी भर दी.

‘‘अगर हम बेवकूफी न करते तो अभी तक हमारे घर में 2-3 बच्चे होते. खैर, कोई बात नहीं…अब सही. क्यों?’’ विशाल बोला.

‘‘बिलकुल,’’ अवंतिका ने जवाब दिया, ‘‘अब पारिवारिक सुख रहेगा, श्री और श्रीमती विशाल स्वरूप और उन के रोतेठुनकते बच्चे, बच्चों के स्कूल टीचरों की चमचागीरी आदि. क्यों प्रिये, तुम घबरा तो नहीं गए?’’

‘‘घबराऊं और वह भी जब तुम्हारा साथ रहे? नामुमकिन.’’

डायबिटीज मरीजों के लिए वरदान है ये फल

Mulberry Benefits : आज के समय में ज्यादातर लोग डायबिटीज की समस्या से परेशान है. खराब लाइफस्टाइल और अस्वस्थ खान-पान की वजह से छोटे से छोटे बच्चे को भी डायबिटीज की बीमारी हो रही है. कई बार तो दवाईयों के खाने के बाद भी ब्लड शुगर कंट्रोल नहीं होती है. हालांकि, अब एक शोध में पता चला है कि डायबिटीज के मरीजों के लिए शहतूत (Mulberry Benefits) का सेवन काफी फायदेमंद होता हैं.

शहतूत खाने से मिलते हैं अनगिनत फायदे

शहतूत सफेद, हरा, लाल और काले तीनों रंग के होते हैं, जो खाने में काफी स्वादिष्ट होते है. साथ ही इसके सेवन से सेहत को भी अनगिनत फायदे मिलते हैं. इसमें (Mulberry Benefits) विटामिन सी, विटामिन के, आयरन, कैल्शियम और पोटेशियम की भरपूर मात्रा होती है जो सभी डायबिटीज के मरीजों के लिए फायदेमंद होते हैं.

डायबिटीज मरीजों के लिए क्यों फायदेमंद है शहतूत?

इसके अलावा शहतूत (Mulberry Benefits) में कंपाउंड 1-डीऑक्सिनोजिरिमाइसिन होता है जो बॉडी में जाकर ब्लड शुगर के बढ़ने की गति को धीमा करता है. इसी वजह से डायबिटीज पेशेंट के लिए शहतूत का सेवन लाभदायक होता है. इसके अलावा ये शरीर में आयरन की मात्रा को भी बढ़ाता है. बता दें कि शहतूत के फल के अलावा इसकी पत्तियां भी काफी फायदेमंद होती है. इसकी पत्तियों की चाय पीने से ब्लड शुगर का लेवल कंट्रोल होता है.

Kaun Banega Crorepati 15:  नए पैटर्न में आएगा शो, बिग बी ने दिया हिंट

Kaun Banega Crorepati 15 Promo: टीवी के पॉपुलर क्विज शो ‘कौन बनेगा करोड़पति’ (Kaun Banega Crorepati) के फैंस का इंतजार आखिरकार खत्म होने वाला हैं, क्योंकि शो जल्द ही शुरू होने वाला है. हाल ही में केबीसी के होस्ट अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) ने खुद शो का प्रोमो (KBC Promo) जारी किया है. हालांकि इस बार शो के प्रोमो को एकदम अलग अंदाज में बनाया गया है. इसी वजह से कयास लगाए जा रहे है कि इस बार शो के पैटर्न को बदला गया है.

सालों बाद नए पैटर्न में देखने को मिलेगा शो

बता दें कि, नए प्रोमो (Kaun Banega Crorepati 15 Promo) में बॉलीवुड के महानायक यानी अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) का नया अवतार और शो में कई नए-नए ट्विस्ट देखने को मिलेगे. केबीसी के प्रोमो में बिग बी बताते हैं, ‘इस बार ‘केबीसी 15’ (KBC News) एकदम नए अंदाज में आएगा. जैसे समय के साथ सब कुछ बदल रहा है, वैसे ही शो भी अब दर्शकों को नए अंदाज में देखने को मिलेगा.’

जानें क्या खास है प्रोमो में?

वीडियो (Kaun Banega Crorepati 15 Promo) की शुरुआत एक महिला से होती है, जो वर्चुअली मीटिंग अटेंड कर रही होती है. साथ ही टेबल के नीचे से वह अपने बेटे के साथ फुटबॉल खेल रही होती है. वहीं, वीडियो में आगे  एक लड़का नजर आता है, जो सड़क पर समान बेचता है और जब उसे कैश दिया जाता है तो वह अपने हाथ पर क्यूआर स्कैनर का टैटू दिखाता है.

इसके अलावा भी ऐसे ही कई सारे उदाहरण प्रोमो में दिखाए गए हैं, जिसके जरिए मेकर्स दिखाना चाहते हैं कि देश बदल गया है.

नवाजुद्दीन सिद्दीकी की एक्स-वाइफ आलिया ने लगाई Kangana Ranaut की क्लास

Aaliya Siddiqui slams Kangana Ranaut : नवाजुद्दीन सिद्दीकी और उनकी एक्स-वाइफ लंबे समय से अपने तलाक के चलते सुर्खियों में बने हुए हैं. इसके अलावा आलिया ने ‘बिग बॉस OTT 2’ में भी भाग लिया था, जहां से अब वह बाहर आ गई है. हालांकि घर से बाहर आते ही अब उन्होंने अपनी भड़ास निकाली है. उन्होंने इस बार बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत (Kangana Ranaut) को आड़े हाथ लिया है.

कंगना ने किया था नवाजुद्दीन का सर्पोट

दरअसल, कंगना रनौत ने नवाजुद्दीन का तब सर्पोट किया था, जब उनकी वाइफ आलिया ने अपने पति के बंगले के गेट के बाहर खड़े होकर एक वीडियो बनाया था, जिसे उन्होंने अपने सोशल मीजिया अकाउंड पर अपलोड किया था. तब कंगना ने कहा था, ‘जब नवाज जैसे बड़े स्टार को उनकी ही पत्नी द्वारा सार्वजनिक रूप से अपमानित किया जा रहा था तो उन्हें रोना आ रहा था’. हालांकि कंगना के इस बयान पर आलिया ने अब रिएक्ट किया है.

कंगना ने क्यों किया था नवाजुद्दीन का सर्पोट?

नवाजुद्दीन सिद्दीकी की एक्स-वाइफ आलिया सिद्दीकी ने कहा, ‘वो कंगना रनौत पर ध्यान नहीं देतीं है क्योंकि उनकी बातों का उनके लिए कोई मतलब नहीं है. वो हर बात में अपनी नाक घुसाती हैं और सबके बारे में बोलती रहती हैं. मेरी राय में, उनके शब्दों का कोई मतलब नहीं है.’ इसके आगे उन्होंने कहा, कंगना ने नवाजुद्दीन का सपोर्ट सिर्फ इसलिए किया क्योंकि वह उनके पहले प्रोजेक्ट ‘टीकू वेड्स शेरू’ के हीरो थे.’

आलिया ने सख्ती से कहा कि उनकी जिंदगी में कंगना रनौत को कोई महत्व नहीं है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि कंगना के अलावा किसी ने भी नवाज के बारे में कुछ नहीं कहा, क्योंकि वो एक प्रोड्यूसर हैं और उन्हें अपनी फिल्म बचानी है.

कुछ हाथों में पूंजी, लोकतंत्र खत्म

अमेरिका के न्यायिक इतिहास में एक मशहूर जज हुए हैं लुइस ब्रैंडिस. 100 साल पहले सुप्रीम कोर्ट में दिए गए एक चर्चित फैसले में उन्होंने कहा था, “किसी भी देश में लोकतंत्र और चंद हाथों में पूंजी का सिमटना एकसाथ नहीं चल सकते. अगर चंद हाथों में पूंजी सिमट जाएगी तो लोकतंत्र महज मखौल बन कर रह जाएगा. आखिरकार लोकतंत्र पूंजी के हाथों का खिलौना बन जाएगा.”

हालांकि, कालांतर में खुद अमेरिका में ब्रैंडिस के इस कथन के उलट पूंजी का सिमटना  निर्लज्ज तरीके से बढ़ने लगा और बावजूद अपनी आंतरिक मजबूती के, अमेरिकी लोकतंत्र और उस की नीतियों पर कुछ खास पूंजीपतियों का प्रभुत्व कायम हो गया.

अब चूंकि अमेरिका द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद विश्व महाशक्ति बन कर अंतर्राष्ट्रीय पटल पर छा गया तो पूंजीपतियों के इशारों पर बनने वाली उस की नीतियों का नकारात्मक असर दुनिया के गरीब और कमजोर देशों पर पड़ना स्वाभाविक था.

हालात बेहद संगीन तब होने लगे जब साल 1950 के दशक में आइजनहावर अमेरिका के राष्ट्रपति बने. असल में पूर्व सैन्य अधिकारी आइजनहावर अमेरिकी हथियार कंपनियों के अप्रत्यक्ष राजनीतिक प्रतिनिधि के रूप में राष्ट्रपति चुनाव में उतरे थे. पहले विश्वयुद्ध से त्रस्त और दूसरे विश्वयुद्ध से ध्वस्त मानवता अंतर्राष्ट्रीय शांति की तलाश में थी और सोवियत संघ के भी महाशक्ति बन कर उभरने के बाद दुनिया में रणनीतिक संतुलन जैसा बनने लगा था.

अब युद्ध हो ही नहीं, तो हथियार कंपनियों का व्यापार कैसे फलेफूले. तो हथियार कंपनियों ने चुनाव में आइजनहावर का खुल कर समर्थन किया और जीत के बाद राष्ट्रपति ने भी उन्हें निराश नहीं किया. उन्होंने बढ़ते सोवियत प्रभाव को बहाना बना कर मध्यपूर्व के देशों सहित कई अन्य देशों को सैन्य सहायता के नाम पर बड़े पैमाने पर हथियार मुहैया कराना शुरू किया. अब तो द्वितीय विश्वयुद्ध के खत्म होने के बाद सुस्त पड़ी हथियार कंपनियों की चल निकली. उन का व्यापार तेजी से बढ़ने लगा.

आइजनहावर ने अमेरिकीसोवियत शीतयुद्ध को अपनी आक्रामक नीतियों से एक नए मुकाम पर पहुंचाया. अमेरिकी इतिहास में इन नीतियों को ‘आइजनहावर सिद्धांत’ के नाम से जाना जाता है.

1950 के दशक में अमेरिकी राजनीति और अर्थनीति में बड़ी हथियार कंपनियों के बढ़ते प्रभुत्व ने फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. उस के बाद जितने भी राष्ट्रपति आए, सब ने बातें तो शांति को ले करकीं लेकिन दुनिया के हर कोने में प्रत्यक्षअप्रत्यक्ष युद्ध को बढ़ावा देने में कोई कसर बाकी नहीं रखी, इतनी कि मानवता त्राहित्राहि कर उठी.

अमेरिकी अर्थव्यवस्था में हथियार उद्योग की बड़ी भूमिका है और वहां की राजनीति को बड़े हथियार सौदागरों ने हमेशा अपने निर्णायक प्रभावों के घेरे में रखा. नतीजा, उन पूंजीपतियों के असीमित लालच ने दुनिया को फिर कभी चैन और शांति से जीने नहीं दिया. युद्ध पर युद्ध होते रहे, उन का मुनाफा बढ़ता गया. आजकल चल रहे रूसयूक्रेन युद्ध में भी अमेरिकीयूरोपीय बहुराष्ट्रीय हथियार कंपनियों के प्रभावों को महसूस किया जा सकता है.

तकनीक के विकास और उस के विस्तार ने पूंजीपतियों के लिए अवसरों के नए द्वार खोले क्योंकि उन्होंने तकनीक पर अपनी पूंजी के बल पर कब्जा कर लिया. धीरेधीरे जनता उन की गुलाम होती गई और वे देश व दुनिया को हांकने लगे. राजनीति उन के इशारों पर नाचने वाली नृत्यांगना बन कर रह गई.

इन वैश्विक रुझानों से भारत जैसे गरीब और विकासशील देशों को भी प्रभावित होना ही था. विशेषकर 1990 के दशक में आर्थिक उदारीकरण की तीव्र होती प्रवृत्तियों ने भारत में भी चंद हाथों में पूंजी के संकेंद्रण को बढ़ावा देना शुरू किया. यद्यपि यहां की राजनीति में भी आजादी के बाद से ही पूंजीपतियों का प्रभाव बना रहा था लेकिन नई सदी तक आतेआते यह प्रभाव एक नए मुकाम पर पहुंच गया. क्रोनी कैपिटलिज्म के प्रतीक के रूप में अंबानी घराने के उत्थान ने भारतीय राजनीति के नैतिक पतन का एक नया अध्याय लिखना शुरू किया.

देखते ही देखते अंबानी घराना इस देश का शीर्षस्थ अमीर बन गया. उन की संपत्ति में इतनी तेजी से बढ़ोतरी कैसे हुई, यह आम लोगों ही नहीं, अर्थशास्त्रियों के लिए भी जिज्ञासा का विषय बना रहा. देश की आर्थिक नीतियों के निर्माण पर इस घराने की पकड़ जगजाहिर रही.

लेकिन, क्रोनी कैपिटलिज्म को गैंगस्टर कैपिटलिज्म में बदलते देर नहीं लगी जब नई सदी के दूसरे दशक में राजनीति के मोदीकाल ने गौतम अडानी के नाम को कौर्पोरेट जगत के शीर्ष पर ला खड़ा किया.

नियमित अंतराल पर जारी होती रहींऔक्सफेम सहित अन्य कई रिपोर्ट्स में चेतावनी दी जाती रही है कि भारत में चंद हाथों में पूंजी का संकेंद्रण बेहद खतरनाक तरीके से बढ़ता जा रहा है और यह एक कैंसर की तरह भारतीय राजनीति व समाज को अपने घेरे में लेता जा रहा है.

किंतुमीडिया पर बढ़ते कौर्पोरेट प्रभावों और राजनीति के नैतिक पतन ने आम लोगों को वैचारिक रूप से दरिद्र बनाने का अभियान छेड़ दिया. दुष्प्रचार और गलतबयानी मीडिया का स्थाई भाव बन गया और नवउदारवादी नीतियों की अवैध संतानों के रूप में जन्मे नवधनाढ्य वर्ग ने समाज में नेतृत्व हासिल कर लिया.

समाज में बढ़ती विचारहीनता ने अनैतिक जमातों के नेतृत्व हासिल करने में प्रभावी भूमिका निभाई और भारतीय राजनीति ने पूंजी के कदमों तले बिछने में शरमाना छोड़ दिया. चुने हुए जनप्रतिनिधियों की खरीदफरोख्त अब खुलेआम होने लगी और पूंजी राजनीति के सिर चढ़ कर अपने खेल खेलने लगी है.

नतीजा, मतदाताओं का निर्णय अपनी जगह, राजनीति और कौर्पोरेट के अनैतिक गठजोड़ के खेल अपनी जगह. ऐसे में लोकतंत्र को मखौल के रूप में बदलना ही था.

अबऐसे दृश्य आम हो गए कि मतदाताओं ने किसी सरकार को चुना और सत्ता में कोई अन्य सरकार आ गई. चार्टर्ड हवाई जहाज, उन पर बिकी हुई सामग्रियों की शक्ल में बैठाए और उड़ा कर ले जाए गए जनप्रतिनिधियों के समूह, फाइवस्टार होटलों या सातसितारा रिजौर्ट्स में शर्मनाक बैठकों की शक्ल में अनैतिक मोलभाव के अंतहीन सिलसिले.

सब को पता रहता है कि करोड़ोंअरबों की ऐसी राजनीतिक डीलिंग्स में किन पूंजीपतियों का पैसा लग रहा है और अपनी मनमाफिक सरकार बनवा लेने के बाद वे क्या करेंगे.लेकिन इन अनैतिक और अलोकतांत्रिक गतिविधियों के विरुद्ध जनप्रतिरोध की कोई सुगबुगाहट कहीं नजर नहीं आती. उलटे, आम लोग टीवी चैनलों के सामने बैठ इन खबरों और विजुअल्स का मजा लेते हैं, उन पर चटखारे लेते हैं. लोगों का वोट ले कर करोड़ों में बिक जाने वाले जनप्रतिनिधि अपने मतदाताओं की हिकारत के पात्र तो नहीं ही बनते.

पूंजी पर कब्जा

पूंजी का चंद हाथों में अनैतिक सिमटना, राजनीति का उस की दासी बन जाना, मीडिया का उस का भोंपू बन जाना आखिरकार ऐसे विचारहीन, खोखले समाज को जन्म देता है जहां न अन्याय के खिलाफ प्रतिरोध उपजता है, न राजनीतिक अनाचार के प्रति कोई जुगुप्सा का भाव उत्पन्न होता है.

अनैतिक पूंजी जब किसी को हीरो बनाती है तो वह समाजोन्मुख या जनोन्मुख हो ही नहीं सकता. उसे उन इशारों पर नाचना ही है जो उन को फर्श से अर्श पर पहुंचाते हैं.

निष्कर्ष में एक नई तरह की गुलामी आती है जिस में जनता को पता भी नहीं चलता कि वह किन तत्त्वों की गुलाम बनती जा रही है. अपनी भावी पीढ़ियों के प्रति दायित्वबोध का नैतिक भाव उस के मन से तिरोहित हो जाता है.

आज का भारत इसी रास्ते पर है जहां चंद हाथों में पूंजी का सिमटना अब कोई रहस्य नहीं रह गया है, न यह रहस्य रह गया है कि राजनीति और कौर्पोरेट के वे खिलाड़ी कौन हैं जो जनता को गुलाम बनाने की साजिशों में शामिल हैं.

मानसिक रूप से गुलाम होते लोग भला प्रतिरोध की भाषा क्यों बोलेंगे?वे तो प्रतिरोध और विचारों की बात करने वालों का मजाक उड़ाएंगे.

आज के भारत का स्याह सच यही है.100 साला पहले अपने उसी फैसले में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के जज लुइस ब्रैंडिस ने यह पंक्ति भी लिखी थी, “चंद हाथों में पूंजी का संकेंद्रण आखिरकार मानवता के खिलाफ अनैतिक शक्तियों को ही मजबूत करेगा.” आज वह आशंका सच में तबदील हो कर हमारे सामने एक सामूहिक विपत्ति की तरह खड़ी हो चुकी है.

कमाऊ बच्चों की देरी से शादी के लिए जिम्मेदार कौन?

अनिता 25 साल की अनमैरिड युवती है. उस के घर में एक छोटी बहन रुचि, जिस की उम्र 15 साल है,भी रहती है जो 9वीं क्लास में पढ़ती है और एक वृद्ध मां है. उस के पिता की मौत 5 वर्षों पहले हो गई थी. किसी तरह छोटामोटा काम कर के उस की मां ने उन्हें पालपोसकर बड़ा किया. अपनी पढ़ाई पूरी करते ही अनिता जौब करने लगी. रुचि की पढ़ाई और घर का सारा खर्चा उस ने अपने नाजुक कंधों पर ले लिया. इसी बीच अचानक उस की मां की तबीयत खराब हुई और वह बीमार रहने लगी. मां की खराब हालत देखकर अनिता ने उन्हें जौब छोड़ कर घर पर आराम करने की हिदायत दी.

रिश्तेदारों ने तो पिता की मौत होते ही अपने रंग दिखाने शुरु कर दिए थे. अनिता की मां हर वक्त सिर्फ यह सोचती रहती है कि अगर अनिता शादी कर के अपने घर चली जाएगी तो उन का घरखर्च कैसे चलेगा, वे क्या खाएंगे, कैसे रहेंगे. इन सब सवालों ने उसे परेशान कर रखा है. शायद इसलिए वह अनिता की शादी नहीं कराना चाहती. उसे लगता है कि अनिता की शादी होने पर घरखर्च के लिए आय का सोर्स खत्म हो जाएगा. इसलिए उस के लिए आने वाले रिश्तों को वह इग्नोर कर देती है. ऐसा कर के उस ने केवल अपनी जरूरतों को देखा अनिता की जरूरत को नहीं. अनिता क्या चाहती है, यह उस ने कभी सोचा ही नहीं. उसे, बस, यही था कि अनिता जिंदगीभर उस का और रुचि की जरूरतों का खयाल रखती रहे.

केवल अनिता ही अकेली ऐसी लडक़ी नहीं है जिस की शादी में देरी हो रही है.आजकल ऐसे बहुत से लड़केलड़कियां है जो इस प्रौब्लम को फेस कर रहे हैं. इस का कारण है उन का घर का एकमात्र सहारा होना या कहें कि वे घर के खर्च की सारी जिम्मेदारी उठाते हैं. ऐसे लोगों को एक तरह से इमोशनल ब्लैकमेल किया जाता है, जैसे ‘तुम शादी कर लोगे या लोगी तो तुम्हारे भाईबहनों का क्या होगा, उन का खयाल कौन रखेगा, हमारा गुजारा कैसे होगा?’ वगैरहवगैरह.

कुछ ऐसी ही प्रौब्लम मंदना भी फेस कर रही है. वह एक कौल सैंटर में जौब करती है. उस की उम्र करीब 29 साल है. करीब 3 साल पहले काम के दौरान स्ट्रौक पड़ने से उस के पिता पैरेलाइज हो गए थे. मंदना का कोई भाईबहन नहीं है, इसलिए पिता के पैरेलाइज होने के बाद घर के खर्चे की पूरी जिम्मेदारी उस के ऊपर आ गई.वह घर का किराया, राशन, दवाएं सभी चीजों का खर्चा उठाती है. मंदना की मां, जो कि हाउसवाइफ है, का पूरा दिन अपने हसबैंड की देखभाल में निकल जाता है और मंदना की इनकम अभी इतनी नहीं है कि वह उन के लिए एक नर्स की व्यवस्था कर सके.

ऐसे में मंदना की मां मनोरमा और उस के पिता स्वार्थी हो गए हैं. वे सोच रहे हैं कि मंदना यहीं रहे, कहीं न जाए. इसलिए वे लोग उस की शादी के बारे में भी नहीं सोच रहे हैं क्योंकि उन के मन में यह बात है कि अगर मंदना की शादी हुई तो वह यहां से चली जाएगी और उस के जाते ही उन का मनी सोर्स भी उस के साथ चला जाएगा. ऐसा होते ही उन के भूखे मरने की नौबत आ जाएगी. ऐसा कर के वे उस की अपनी ख्वाहिशों का गला घोंट रहे हैं.

सोने की मुरगी

भारत में करीब 12 फीसदी महिलाएं एकाकी के रूप में अपनी जिंदगी जी रही हैं. 2001 में एकाकी महिलाओं की संख्या 5.1 करोड़ थी. सिंगल महिलाओं में सब से ज्यादा युवतियां 25 से 29 साल की हैं. इस में 23 प्रतिशत 20 से 24 साल की लड़कियां हैं.इन महिलाओं की संख्या 2011 में 13.5 प्रतिशत थी जो 2019 में बढ़ कर 19.9 प्रतिशत हो गई है. इन में से कितनों की शादियां इसीलिए नहीं हो रहीं कि वे घरों के लिए कमाऊ गाय हैं और शादी का मतलब सोने का अंडा देने वाली मुरगी का ख़त्म हो जाना है.

अनिता और मंदना भी ऐसी ही लड़कियां हैं और हमारे रीतिरिवाज के अनुसार लड़की शादी कर के लड़के के घर में जाती है, इसलिए दूर रहकर वह पूरी तरह से अपने मम्मीपापा का खयाल नहीं रख पाती जैसा कि वह अपने घर में रखती है. लेकिन ऐसा सिर्फ लड़कियों के साथ ही नहीं हो रहा. यह प्रौब्लम लड़कों के साथ भी है. अनिता और मंदना की तरह यह प्रौब्लम सोनू की भी है, जबकि उसे तो इसी घर में ही रहना है. फिर भी वह इस समस्या को झेल रहा है.

सोनू अपने घर का एकलौता लड़का है. उस की उम्र अब 32 की हो चली है. उस के सभी दोस्तों की शादी हो गई है. कुछ के तो बच्चे भी हैं और जिन की नहीं हुई उन के रिश्ते की बात कहीं न कहीं चल ही रही है. लेकिन सोनू के घर में उस की शादी को लेकर कोई बात नहीं हो रही है. इस के पीछे कारण यह है कि घर में कमाने वाला सिर्फ एक वह ही है. अगर उस की शादी हो गई तो आगे जा कर उस की अपनी फैमिली होगी, फिर उन के अपने खर्चे होंगे. ऐसे में वह बेटा होने की जिम्मेदारी से दूर भागेगा और घर के खर्चों को इग्नोर करेगा.

उस के घर वाले उस की शादी को लेकर चिंतित नहीं हैं क्योंकि उन्हें डर है कि उस की शादी होते ही वह अपनी फैमिली में बिजी हो जाएगा और उन पर ध्यान नहीं देगा. वह उन का मनी सोर्स है और शादी के बाद धीरेधीरे उन का यह सोर्स खत्म हो जाएगा. इसी डर से वे सोनू की शादी पर जोर नहीं दे रहे. लेकिन उन का ऐसा करना एक तरह से सोनू के साथ अन्याय है.

किसी भी व्यक्ति की जिंदगी में कैरियर बहुत जरूरीभूमिका निभाता है. इसी कैरियर को बनाने में लखनऊ की रहने वाली परिधि ने अपनी मेहनत, धीरेंद्र कुमार ने अपनी खूनपसीने की कमाई और उन की पत्नी सुनिता ने अपना स्त्रीधन लगा दिया. अब उन की सारी उम्मीदें परिधि से ही हैं क्योंकि वह उन की एकलौती संतान है. एमबीए की पढ़ाई कंपलीट होने के बाद वह एक कंपनी में जौब करने लगी. इस वक्त तक उस की उम्र 23 साल थी. उस ने अपना पूरा फोकस कैरियर पर लगा रखा था. इसी बीच कोरोना वायरस ने देश में दस्तक दी और अपनी चपेट में हजारों लोगों को ले लिया, उन्हीं में से एक परिधि के पिता भी थे. अब घर के सभी खर्चों का बोझ परिधि पर आ गया.

करीब 5 साल की कड़ी मेहनत के बाद वह एक अच्छी सैलरी पर आ गई. इस बीच उस के कई रिश्ते आए लेकिन वह यह सोचती रही कि अगर उस ने अपना घर बसा लिया तो उस की मां का क्या होगा. वह यह भी जानती थी कि एक ऐसा हमसफर ढूंढना बहुत मुश्किल है जो उसे अपनी मां का खर्चा उठाने दे. कुछ समय बाद प्रवीन नाम के एक लड़के का रिश्ता परिधि के लिए आया लेकिन उस की मां ने इस रिश्ते की बात परिधि तक पहुंचने से पहले ही उसे मना करवा दिया क्योंकि उन्हें अब यह डर सताने लगा था कि परिधि के जाते ही वह बेसहारा हो जाएगी, वह सड़क पर आ जाएगी क्योंकि उस का खर्चा उठाने वाला परिधि के अलावा कोई और नहीं है. इसलिए वह परिधि को अपने से दूर नहीं जाने देना चाहती. यही कारण है कि वह परिधि की शादी में दिलचस्पी नहीं ले रही है.

ऐसे परिजन अपने बच्चों को केवल अर्निंग का एक सोर्स मानते हैं.वे क्या चाहते हैं, वे क्या सोचते हैं, इस से मातापिता बेखबर ही रहना चाहते हैं,बस, पैसों का गणित नहीं बिगड़ना चाहिए.

शादी से मोहभंग

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (एनएसओ) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, देश में ऐसे पुरुषों की आबादी 2011 में 20.8 प्रतिशत थी जिन्होंने कभी शादी नहीं की थी. यह अनुपात 2019 में बढ़ कर 26.1 प्रतिशत हो गया है. ऐसे लड़के और लड़कियां जो अपने घर का सारा खर्चा उठाते हैं उन की शादी न होने के पीछे जो लोग हैं, उन में बड़ी तादाद उन के परिवार वालों की है, जो नहीं चाहते कि उन का मनी सोर्स उन से कहीं दूर जाए. इसलिए,वे उन की शादी में आनाकानी करते रहते हैं.

असल में ऐसे लोग केवल अपनी जरूरतों के लिए अपने बच्चों का यूज करते हैं. उन्हें सिर्फ खुद की जरूरतों से मतलब है. अपने बच्चों की शारीरिक और मानसिक जरूरतों से ऐसे लोग कोसों दूर हैं.परिवार यह नहीं समझता कि उन की भी अपनी फीलिंग है, वे भी अपना साथी चाहते हैं.वे भी अपनी फैमिली बनाना चाहते हैं.

एचडीएफसी बैंक में काम करने वाली सिमरन रामगडिया कहती है,““जब कोई लड़की या लड़का अपने घरपरिवार का खर्चा उठाता है तो वह अपनी ख्वाहिशों को साइड में रख कर जिम्मेदारियों पर फोकस करता है.”” वह आगे कहती है, ““ ऐसे लड़केलड़कियों की शादी देर से होती है या फिर नहीं होती क्योंकि वे अपना कर्तव्य निभाने में बिजी होते हैं और उन के पेरैंट्स अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं.””

मीडिया इंडस्ट्री से जुड़ी प्रीति कहती है, “”अब युवावर्ग अपने कैरियर पर ज्यादा फोकस करने लगा है. शादी उस के लिए कैरियर के बाद है और यह सही भी है कि जब आपने किसी चीज की पढ़ाई की है तो कैरियर बना कर उस का इस्तेमाल करना चाहिए.””

अगर शादी की उम्र की बात की जाए तो शादी की औसत उम्र 2005-06 में 17.4 वर्ष थी, जो 2019-21 में बढ़ कर 19.7 वर्ष हो गई है. राष्ट्रीय युवा नीति 2014 के अनुसार, 15-29 वर्ष के लोगों को युवा माना गया. 2019-2021 के दौरान 25-29 वर्ष आयुवर्ग की 52.8 फीसदी युवतियों की शादी 20 साल की उम्र में हुई है जबकि 2005-06 में यह संख्या 72.4 प्रतिशत थी. 2019-21 में 25-29 वर्ष के 42.9 प्रतिशतयुवकों ने 25 की उम्र में शादी की, जबकि युवतियों में यह 83 प्रतिशत रही.

शादी देरी से होने की खामियां

हालांकि शादी की कोई करैक्ट ऐज नहीं होती, फिर भी ज्यादा देरी से शादी करने से कई हैल्थ इश्यूज हो सकते हैं, जैसे ज्यादा ऐज होने पर महिलाओं का फिजिकल इंटीमेसी में मन नहीं लगता है और वे उदासीन होने लगती हैं. इस की वजह से कपल में लड़ाईझगड़े होने लगते हैं. महिलाओं में 30 की उम्र के आसपास फर्टिलिटी कम होने लगती है.

35 साल की उम्र के बाद तो यह तेजी से घटने लगती है. जैसेजैसे महिला की एज बढ़ती जाती है, उस केप्रैग्नैंट होने के चांस घटते जाते हैं और इनफर्टिलिटी होने की संभावना बढ़ती जाती है. इस के अलावा ज्यादा उम्र होने से पुरुषों में टेस्टोस्टेरौन हार्मोन कम होने लगता है और उन में भी इंटीमेसी को लेकर दिलचस्पी कम होने लगती है. मौजूदा समय में भारत में 40 प्रतिशत कपल्स ऐसे हैं जो पुरुषों में इनफर्टिलिटी के कारण पेरैंट्स नहीं बन पाते हैं.

स्टडीज बताती हैं कि इंडिया में एक साल तक अनप्रोटेक्टिड सैक्स करने के बाद भी 12 से 15 प्रतिशत कपल्स ऐसे हैं जिन्हें नैचुरल तरीके से पेरैंट्स बनने में समस्या आती है, जबकि 10 प्रतिशत कपल्सऐसे हैं जो शादी के 2 साल बाद भी नैचुरल तरह से पेरैंट्स नहीं बन पाते हैं.

आज के समय में नैचुरल तरह से प्रैग्नैंट न हो पाना कपल्स की सबसे बड़ी प्रौब्लम है. लोगों को लगता है कि प्रैग्नैंट न होने के पीछे सिर्फ महिला जिम्मेदार होती है, जबकि यह सिर्फ सुनीसुनाई बात है. अगर हम पुराने समय की बात करें तो जो औरत बच्चा पैदा नहीं कर पाती थी, उसे लोग तरहतरह के ताने देते थे. न सिर्फ उन के साथ दुर्व्यवहार होता था बल्कि उन्हें मारापीटा भी जाता है.

निसंतानता बड़ी समस्या

आज भी कई मामलों में जहां संतानप्राप्ति नहीं होती वहां परिवार वालेमहिला को घर से निकाल तक देते हैं और पति दूसरी शादी कर लेताहै.परिवार इस के पीछे यह जानने की कोशिश नहीं करता कि कहीं कमी पुरुष के अंदर भी हो सकती है. लेकिन समाज तो जैसे कुछ भी गलत होने पर महिलाओं को ही उस का जिम्मेदार ठहराताहै.

मदर्स लैप आईवीएफ सैंटर की आईवीएफ विशेषज्ञ डाक्टर शोभा गुप्ता बताती हैं कि महिलाओं में बांझपन की समस्या का एक मुख्य कारण पोलीसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस) है. यह महिलाओं के ओवरी (अंडाशय) से जुड़ी एक गंभीर बीमारी है. पीसीओएस की वजह से महिलाओं के शरीर में हार्मोन का संतुलन बिगड़ जाता है जिस से गर्भधारण करना मुश्किल हो जाता है. इस से पीड़ित महिलाओं की संख्या काफी तेजी से बढ़ती जा रही है.

डाक्टर शोभा गुप्ता ने बताया कि करीब 10 प्रतिशत महिलाएं किशोरावस्था में ही पीसीओएस की समस्या से प्रभावित होती है.

इनफर्टिलिटी से जूझ रहे कपल्स सरोगेसी की मदद से पेरैंट्स बन सकते हैं. देशभर में 20 हजार से अधिक एआरटी क्लिनिक, आईवीएफ और आईयूआई सैंटर हैं. हमारे देश में हर साल 20 हजार सरोगेट चाइल्ड पैदा होते हैं. सरोगेसी में कोई कपल किसी महिला की कोख को बच्चा पैदा करने के लिए किराए पर लेता है.

इस में महिला अपने या फिर डोनर के एग्स के जरिए किसी दूसरे कपल के लिए गर्भवती होती है. आईवीएफ भी एक तरह से सरोगेसी में ही आती है और इस में एक या दोनों पेरैंट्स बायोलौजिकली बच्चे से जुड़ सकते हैं. बच्चा गोद लेने की तुलना में सरोगेसी में पेरैंट्स को कम परेशानियां उठानी पड़ती हैं.

सरोगेसी में कोई कपल किसी महिला की कोख को बच्चा पैदा करने के लिए किराए पर ले सकता है. इसमें महिला अपने या फिर डोनर के एग्स के जरिए किसी दूसरे कपल के लिए गर्भवती होती है. जो महिला बच्चे को जन्म देती है और जो कपल सरोगेसी करवा रहे हैं, उनके बीच एक एग्रीमैंट होता है. जब सरोगेट मदर कपल से बच्चा पैदा करने के लिए पैसे लेती है तो इसे कमर्शियल सरोगेसी कहते हैं. हर देश में कमर्शियल सरोगेसी को लेकर अलगअलग नियम हैं.

आईवीएफ उन लोगों के लिए वरदान है जो अपना बच्चा पैदा करने में असमर्थ हैं. सरोगेसी से संबंधी नया कानून साल 2020 में आया.उस के तहत, सरोगेट मदर बनने के लिए कुछ क्राइटेरिया रखे गए हैं जिन्हें पूरा करना जरूरी है. जैसे, एक सरोगेट मां को कपल का एक करीबी रिश्तेदार होना चाहिए, सरोगेट मदर एक विवाहित महिला होनी चाहिए और उस के अपने बच्चे होने चाहिए. उस की उम्र 25-35 वर्ष के बीच होनी चाहिए और वह जीवन में केवल एक बार सरोगेट बन सकती है. हमारे देश में हर साल 20 हजार सरोगेट चाइल्ड पैदा होते हैं.

आईवीएफ का मतलब इन विट्रो फर्टिलाइजेशन होता है. जब शरीर अंडों को निषेचित करने में फेल हो जाता है तो उन्हें लैब में निषेचित किया जाता है, इसलिए इसे आईवीएफ कहते हैं. एक आईवीएफ चक्र की कीमत डेढ़ से ढाई लाख रुपए के बीच कहीं भी हो सकती है. आईवीएफ और एआरटी सेवाओं की मांग बढ़ रही है.

आईवीएफ से जन्मे शिशु में कुछ प्रौब्लम देखी गई है, जैसे आईवीएफ से जन्मा शिशु समय से पहले जन्म ले लेता है या इन का वजन कम होने के चांस होते हैं और उन में नवजात श्वसन संकट सिंड्रोम (एनआरडीएस) या लंबे समय के लिए विकलांगता, जैसे कि सेरेब्रल पाल्सी जैसी बीमारियों के विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है.

सब की लाइफ में ऐसा एक वक्त आता है जब हर किसी को एक पार्टनर की जरूरत होती है क्योंकि हर कोई चाहता है कि वह अपना सुखदुख किसी के साथ शेयर करे. लेकिन जो लोग अपने घरवालों का पूरा खर्चा उठा रहे होते हैं वे कई बार पार्टनर के सुख से वंचित रह जाते हैं क्योंकि उन के घर वालों को लगता है कि अगर वे शादी कर लेंगे तो घर के प्रति उन की जो जिम्मेदारी है उन से वे मुंह मोड़ लेंगे और सैलफिश हो जाएंगे. लेकिन सच बात तो यह है कि यहां सैलफिश वे खुद हैं, तभी उन्हें उन की खुशियों से दूर रख रहेहैं.

मेरे जीजा जी के मेरी छोटी बहन के साथ संबंध हैं, मैं क्या करूं?

सवाल

मैं हाईस्कूल का छात्र हूं. मेरी 2 बड़ी बहनें हैं. सब से बड़ी बहन की शादी को 2 वर्ष हो चुके हैं, लेकिन इधर कुछ दिनों से मेरे जीजाजी के मेरी छोटी बहन के साथ गलत संबंध बन गए हैं. मैं यह बात अपने मातापिता को भी बता चुका हूं. लेकिन वे मेरी बात नहीं सुनते. हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है और जीजाजी ही हमारी मदद करते हैं. इसलिए मेरे मातापिता जान कर भी अनजान बने रहते हैं. कृपया इस समस्या का कोई समाधान बताइए?

जवाब

आप की समस्या का सब से बड़ा समाधान आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता है. आप के पत्र से यह तो मालूम नहीं हुआ कि आखिर मातापिता के होते हुए भी ऐसी कौन सी समस्या है जो आप को ये सब अत्याचार सहने पर मजबूर कर रही है. इस के समाधान के लिए आप अपनी छोटी बहन को समझा सकते हैं. आवश्यकता पड़ने पर कानूनी सहायता भी ले सकते हैं.

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