Download App

फिर शिवराज के किएधरे पर पानी फेर गए मोदी

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जैसेतैसे माहौल अपने पक्ष में कर पाते हैं, वैसे ही कोई और नहीं बल्कि खुद प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी उनकी महीनेभर की हाड़तोड़ मेहनत पर गंगाजल फेर जाते हैं. ऐसा बीते डेढ़ साल से हर कभी हो रहा है. पर पिछले 6 महीने से तो यह मासिक कार्यक्रम जैसा हो गया है क्योंकि मोदी ने इसी साल 1 अप्रैल से लेकर 25 सितंबर तक 7 दौरे मध्यप्रदेश के किए हैं. हर बार की तरह उनके 25 सितंबर के भोपाल दौरे, जिसमें उन्होंने कोई 5  लाख कार्यकर्ताओं के महाकुंभ को संबोधित किया, के बाद भगवा खेमे में ख़ुशी और जोश कम जबकि अवसाद और सवाल ज्यादा हैं.

पहला सवाल तो यह है कि मोदी जी नया क्या बोलेजिसे आम जनता और कार्यकर्ताओं ने पहले कभी न सुना हो. वही कांग्रेस और परिवारवाद की बुराई, वही भाजपा का विकास का एजेंडा, वही मोदी की गारंटियां, वही अर्बन नक्सली का राग,महिला आरक्षण बिल का श्रेय लेने की कोशिश , इंडिया गठबंधन पर धोखा देने का आरोप कि वह सनातन को समाप्त करना चाहता है वगैरहवगैरह. इतनी भागवत बांचने के बाद वे`मैं`पर उतरते बोले मोदी का मिजाज अलग है,मेहनत भी अलग है और मिशन भी अलग है.

इस डायलौग को सुनकर कई सिनेप्रेमियों को अपने दौर के 2 दिग्गज अभिनेताओं राजकुमार व दिलीपकुमार अभिनीत सुभाष घई की फिल्म ‘सौदागर’ की याद हो आई जिसमें राजकुमार का बोला एक डायलौग अभी भी लोगों के जेहन और जबां पर रहता है. इस डायलौग को राजकुमार ने अपने फेमस अंदाज में कुछ यों बोला था- ‘हम तुम्हें मारेंगे और जरूर मारेंगे लेकिन तब बंदूक भी हमारी होगी, गोली भी हमारी होगी, वक्त भी हमारा होगा और जगह भी हमारी होगी.’

अब अगर अक्खड़ और उजडड मिजाजवाले ओरिजनल घमंडी अभिनेता राजकुमार जिंदा होते तो तय है यह कहने से चूकते नहीं कि जानी, ये डायलौग तो किसी फिल्म में हमने बोला था. तुमने तो हमारी स्टाइल भी कौपी कर ली. खैर, कर लो हमारी तो नकल करके ही कईयों की रोजीरोटी चल रही है.हम राजकुमार हैं, राजकुमार…

मध्यप्रदेश में चर्चा उन बातों की ज्यादा रही जो मोदी नहीं बोले अपने संबोधन में.उन्होंने शिवराज सिंह का नाम तक नहीं लिया और न ही उनकी बनाई किसी योजना का जिक्र किया जबकि लाड़ली बहना योजना के सहारे भाजपा और शिवराज सिंह दोनों जीत का ख्वाव देख रहे हैं. इस योजना में सवा करोड़ से भी ज्यादा महिलाओं को 1,250 रुपए महीने दूसरी कई सहूलियतों सहित दिए जा रहे हैं.

शिवराज से परहेज क्यों

मंच से शिवराज सिंह की अनदेखी वह भी इस अंदाज में करना कि लोग इसे समझ लें कि यह अनदेखी ही है चुनाव के लिहाज से एक गंभीर बात है. जिसका मतलब अच्छेअच्छों को समझ नहीं आ रहा. मोदी जी का हवाई जहाज भोपाल से जयपुर उड़ने के घंटेभर बाद ही लोग अपनेअपने हिसाब से मतलब निकालने लगे.वे किसी नतीजे पर पहुंच पाते, इससे पहले ही दिल्ली से  उम्मीदवारों की दूसरी लिस्ट आ गई जिसमें 3केंद्रीय मंत्रियों सहित 4 सांसदों के भी नाम थे. इस लिस्ट के 2 नामों- कैलाश विजयवर्गीय और नरेंद्र सिंह तोमर- के जरिए मोदी-शाह ने स्पष्ट कर दिया कि उनके पास चेहरों की कमी नहीं है.

यह लिस्ट साफ़ तौर पर दर्शा गई कि वाकई भाजपा मध्यप्रदेश में खस्ता हाल है. अब बातें करने वालों में एकतरफ वे लोग थे जिनकी राय में शिवराज सिंह चौहान से प्रदेश के आम और खास दोनों तरह के लोग चिढ़ने लगे हैं. आप मध्यप्रदेश के किसी भी हिस्से में उतर जाइए, चुनाव पर सवाल करने पर जवाब मिलेगा- अरे भैया, हम तो चाहते हैं कि भाजपा जीते लेकिन मामा शिवराज जब तक हैं, जीत मुश्किल है.

बिलाशक आम जनता में शिवराज सिंह की इमेज काफी हद तक बिगड़ी हुई है और यह बात भाजपा आलाकमान यानी मोदी-शाह को मालूम है. फिर भी उन्हीं के नेतृत्व में चुनाव लड़ना कौन सी और कैसी रणनीति है, इस सवाल के भी आम और खास लोगों के पास दर्जनभर से ज्यादा जवाब हैं जिनमें से पहला तो यही है कि मोदी-शाह ने यह कब कहा है कि भाजपा सत्ता में आई तो शिवराज ही सीएम होंगे. दूसरा यह है कि अगर शिवराज की जगह दूसरा चेहरा आगे लाते तो भाजपा में फूट पड़ जाती. खुद शिवराज तो बगावत करते ही, उनके बाद लाइन में लगे नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा और गोपाल भार्गव वगैरह भी अपनीअपनी ढपली बजाने लगते.

इनसे भी बड़ा नाम कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में आए ज्योतिरादित्य सिंधिया का है जो इन दिनों आम कार्यकर्ताओं से कुंभ में बिछड़े भाइयों की तरह मिल रहे हैं. और तो और, वे सबको चौंकाते दलितों के पांव तक पखारने लगे हैं. कांग्रेस में रहते वे जमीन पर पांव तक नहीं रखते थे. ठसक का आलम यह था कि कांग्रेसी उनके स्वागत में फूलमाला लिए रास्ते में दरबारियों और कनीजों की तरह खड़े रहते थे लेकिन सिंधिया हार पहनने को भी सिर न झुकाते थे.

नाम न छापने की शर्त पर भोपाल के एक भाजपा कार्यकर्ता ने कहा,“असल में मोदी-शाह 2024 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर शिवराज को एक बड़े खतरे की शक्ल में देखने लगे हैं क्योंकि 2014 में मोदी के पहले प्रधानमंत्री पद के लिए उनका नाम ही चला था. लालकृष्ण आडवाणी जी तो उनकी ताजपोशी के लिए कुछ भी करगुजरने को उधार बैठे थे लेकिन शिवराज ही पीछे हट गए थे. अब यही मोदी-शाह उनकी दुकानदारी यहीं बंद कर देना चाहते हैं और इसके लिए सबसे आसान रास्ता है कि भाजपा उनके मुख्यमंत्री रहते चुनाव हारे.

“असल में शिवराज और मोदी में शुरू से ही छत्तीस का आंकड़ा है. 2013 के चुनाव की जनआशीर्वाद यात्राओं में शिवराज सिंह ने नरेंद्र मोदी के फोटो का इस्तेमाल नहीं किया था जबकि दूसरे राज्यों में किया गया था क्योंकि सभी यह मान चुके थे मोदी ही भाजपा की तरफ से पीएम होंगे.”

तो क्या आलाकमान इस बात पर राजी है कि देश के लिए मध्यप्रदेश जैसा गढ़ कांग्रेस को थाल में सजाकर दे दे . इस पर अच्कचाकर यह कार्यकर्ता बोला,“तो आप ही बताइए क्या वजह हो सकती है. वैसे, चाणक्य नीति तो यही कहती है कि सौ लोगों की जान बचाने किसी एक की बलि देना पड़े तो बेहिचक दे दो. इसी तरह देश बचाने कुछ गांवों की आहुति देनी पड़े तो राष्ट्रहित में दे दो.”

यह सच है कि शिवराज सिंह जनता की नजर से ठीक वैसे ही उतर चुके हैं जैसे 2003 में दिग्विजय सिंह उतरे थे.

माजरा क्या है

चर्चा भोपाल के व्यावसायिक इलाके एमपी नगर के मशहूर रैस्टोरैंट मनोहर डेयरी में हो रही थी और शिवराज सिंह के मसले पर लाल बुझक्कड़ किस्म की पहेलियों सरीखी होती जा रही थी जिसे एक मजाकिया किस्म के वरिष्ठ कार्यकर्ता ने शायराना अंदाज में ग़ालिब की गजल के कुछ शेर सुनाते खत्म किया-

दिले नादां तुझे हुआ क्या है,

आखिर इस दर्द की दवा क्या है.

हम हैं मुश्ताक और वे हैं बेजार,

या इलाही ये माजरा क्या है.

मैं भी मुंह में जबां रखता हूं,

काश, पूछो कि मुद्दुआ क्या है.

जबकि तुझ बिन कोई नहीं मौजूद,

फिर ये हंगामा ए खुदा क्या है.

इतना सुनाने के बाद उसने एक शेर को तोड़मरोड़ कर अपने मन की बात उसने यों की-

`मामा` को उनसे है वफ़ा की उम्मीद,

जो नहीं जानते वफा क्या है.

यह गजल मध्यप्रदेश भाजपा के मौजूदा चुनावी माहौल पर फिट तो बैठती है जिसका मतलब है भाजपा में सबकुछ तो क्या, कुछ भी ठीक नहीं है. यह कार्यकर्ता 2018 के चुनाव में भाजपा की मामूली सीटों से हार की वजह नरेंद्र मोदी सरकार के नोटबंदी के फैसले को जिम्मेदार बताते यह भी जोड़ता है कि तब मोदी शाह सहित सुषमा स्वराज ने कोई 40 सीटों पर अपनी मरजी से टिकट बांटे थे जिन में से 25 के लगभग हारे थे. इस तिकड़ी ने शिवराज सिंह की भेजी लिस्ट पर ध्यान नहीं दिया था. यही गलती इस बार फिर हो रही है और शिवराज जी आदतन खामोश हैं.

इसमें शक नहीं कि बेरोजगारी और निचले दरजे तक फैले भ्रष्टाचार के चलते मध्यप्रदेश में विकट की एंटीइनकम्बेंसी है जिसका फायदा कांग्रेस को बैठेबिठाये मिलना तय है लेकिन यह जरूरी नहीं कि वह उसे सत्ता तक पहुंचा ही दे क्योंकि भाजपा मोदी के चेहरे के सहारे चुनाव लड़ रही है.हालांकि यह दांव अगर कामयाबी की गारंटी होता तो इसे हिमाचल और कर्नाटक में भी चलना   चाहिए था लेकिन यह, दरअसल, लोकसभा चुनाव के नजरिए से भाजपा का एक और नया प्रयोग है. मध्यप्रदेश भाजपा और आरएसएस का गढ़ है जिसके चलते उसे उम्मीद है कि विधानसभा में न सही, लोकसभा में तो नैया पार लग ही जाएगी. यहां का नतीजा इशारा करेगा कि क्या सचमुच हिंदीभाषी राज्यों में बिना किसी अड़ंगे के पार्टी हिंदुत्व और हिंदू राष्ट्र के नाम पर भगवा लहरा लेगी. वरना उसके पास रास्ता बदलने को नया विकल्प कहने को तो यह रहेगा ही कि हारे तो जिम्मेदार शिवराज सिंह चौहान और जीते तो मोदी जी जिंदाबाद हैं ही.

कुलजमा नरेंद्र मोदी का ताजा दौरा भी भाजपा कार्यकर्ताओं को गफलत में डाल गया है कि आखिर सीएम पद की स्थिति क्या है. अगर वह शिवराज सिंह से इतर कोई होगा तो हम उनके लिए हम्माली क्यों करें और अगर शिवराज सिंह ही होंगे तो उनकी चर्चा और तारीफ मंच से करने में परहेज क्यों जबकि वे दिनरात मेहनत कर रहे हैं.

मुश्किल में मोदी की तीसरी पारी

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तीसरी पारी का वही अंजाम न हो जो अटल बिहारी वाजपेई सरकार का 2004 में हुआ था. यह डर पूरी टीम मोदी को सता रहा है. यही वजह है कि जैसेजैसे चुनाव का समय करीब आता जा रहा है, नईनई घोषणाएं की जा रही हैं. पहले यह माना जा रहा था कि राममंदिर, अनुच्छेद 370, तीन तलाक, नई संसद जैसी उपलब्धियों के सहारे ही भाजपा 2024 के चुनाव मैदान में उतरेगी जैसे वर्ष 2004 में तत्कालीन भाजपाई प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई की सरकार ने किया था. उस समय ‘इंडिया शाइनिंग’ के नाम पर भाजपा को लगा कि उस की जीत होगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ था. अटल सरकार आत्मविश्वास से इतना भरी हुई थी कि उस ने समय से 6 माह पहले ही चुनाव करवा लिया.

मुगालते में थी भाजपा

साल 2004 के लोकसभा चुनाव में वाजपेयी के नेतृत्व वाले एनडीए की हार पर पहले कोई नेता कुछ सुनना ही नहीं चाहता था. उस के पास तर्क होते थे कि एनडीए के पास अटल जैसा नेता, प्रमोद महाजन जैसे कुशल प्रबंधक, ‘इंडिया शाइनिंग’ और ‘फील गुड’ जैसे नारे थे. उन के सामने बिखरा हुआ विपक्ष था. कांग्रेस यूपीए गठबंधन बना रही थी, जिस में तमाम नेता थे. सोनिया गांधी के ऊपर विदेशी मूल का ठप्पा लगा था. वे अच्छा भाषण नहीं कर पाती थीं. गठबंधन के दूसरे दल एकदूसरे के साथ चलने को तैयार न थे. माहौल पूरी तरह से अटल सरकार के पक्ष में था. मौसम अनुकूल देख चुनाव समय से पहले करा लिया गया.

भाजपा अपनी जीत को ले कर पूरी तरह आश्वस्त थी. चुनावी नतीजों के एक दिन पहले प्रमोद महाजन ने प्रधानमंत्री वाजपेयी के सामने भारत का नकशा ले कर यह व्याख्या की कि भाजपा 1999 के चुनावों के मुकाबले कहीं अधिक सीटें जीतने वाली है.

1999 से 2004 के बीच वाजपेयी के नेतृत्व में भाजपा ने पहली गैरकांग्रेसी सरकार चलाई जिस ने अपना कार्यकाल पूरा किया था. किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि भाजपा के संगठन और सरकार के बीच संवादहीनता है. पार्टी के अंदर अपने हाईकमान को ले कर गलत धारणा बन गई थी.

चुनावी प्रबंधन में जुटे लोग ऊपर से नीचे आदेश ही दे रहे थे. पार्टी ने विज्ञापन पर अधिक ध्यान दिया लेकिन जमीनी स्तर पर वह लोगों से जुड़ने में नाकाम रही. कई सुधारों के बावजूद भाजपा उन्हें प्रभावी ढंग से लोगों में पहुंचा न सकी. पार्टी में वही होता था जो हाईकमान चाहता था. लिहाजा, पार्टी को अपने गिरते जनाधार का एहसास ही नहीं हुआ. भाजपा पूछती थी, अटल के मुकाबले कौन, तो पूरा विपक्ष मौन हो जाता था.

अतिआत्मविष्वास वाली भाजपा चुनाव हार गई. यूपीए की सरकार बनी और जिन डाक्टर मनमोहन सिंह का नाम किसी ने भी प्रधानमंत्री के रूप में नहीं सोचा होगा वे 2004 में देश के प्रधानमंत्री बने. 10 साल वे प्रधानमंत्री रहे. यह ऐसा उदाहरण है जो मोदी सरकार के लिए सोचने वाली बात है. पार्टी में केवल ‘मोदीशाह’ की बात ही सुनी जाती है. उत्तर प्रदेश में जिलाध्यक्षों के नामों की लिस्ट को फाइनल करने का काम दिल्ली से हुआ जबकि पहले यह काम भाजपा में संगठन मंत्री और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष करते थे.

सामने आ रहा असंतोष

पार्टी में जिस तरह से असंतोष फैला है, उस की एक बानगी उत्तर प्रदेश के घोसी उपचुनाव में देखने को मिली, जहां पूरी ताकत लगाने के बाद भी भाजपा हार गई. भाजपा में असंतोष ऊपर से दिखाई नहीं दे रहा है, अंदर ही अंदर खतरा अधिक है. लखनऊ में मेयर पद के लिए भाजपा ने जब अपने प्रत्याशी की घोषणा की तो भाजपा की महिलाओं ने सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा जाहिर किया. बाद में पार्टी ने अनुशासन का डंडा चला कर सब को चुप करा दिया. उत्तर प्रदेश और दिल्ली की दूरी का दूसरा उदाहरण सुहेलदेव समाज पार्टी के अध्यक्ष ओमप्रकाश राजभर के मामले में देखने को मिलता है.

ओमप्रकाश राजभर 2022 के विधानसभा चुनाव के पहले भाजपा में थे. चुनाव के समय राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान जैसे नेता भाजपा छोड़ कर समाजवादी पार्टी में चले गए. जब समाजवादी पार्टी चुनाव हार गई तो 15 माह के बाद ही ओमप्रकाश राजभर और दारा सिंह चौहान जैसे लोग भाजपा में वापसी करने के लिए योजना बनाने लगे. इस योजना को मूर्तरूप दिल्ली दरबार ने दिया. राजभर ने कहा कि वे और दारा सिंह चौहान योगी सरकार में मंत्री बनेंगे. लखनऊ की सरकार ने इस काम को पूरा नहीं होने दिया. घोसी में हार के बाद अब इस मसले को बंद ही कर दिया गया है.

भाजपा के नेताओं में उन नेताओं से दिक्कत हो रही है जो दलबदल कर उन की पार्टी में आए हैं. पार्टी ने उन को तमाम पद दे दिए हैं. बहुजन समाज पार्टी से भाजपा में आए बृजेश पाठक और वामपंथी नेता रहे कौशल किशोर, समाजवादी नेता अशोक वाजपेई, कांग्रेस से नरेश अग्रवाल और जतिन प्रसाद इस के बड़े उदाहरण हैं. 2017 में बृजेश पाठक कैबिनेट मंत्री बने, 2022 में कैबिनेट मंत्री के साथ यूपी के डिप्टी सीएम बन गए.

कौशल किशोर 2014 में सांसद बने. 2019 के बाद उन को केंद्र सरकार में मंत्री बनाया गया. उन की पत्नी और रिश्तेदार को मलिहाबाद और मोहनलालगंज विधानसभा से विधायक बना दिया गया. जो जतिन प्रसाद भाजपा पर ब्राहमणों की हत्या का आरोप लगा रहे थे उन को मंत्री बना दिया गया. ऐसे उदाहरण पूरे देश में फैले हैं. यह भाजपा के अंदर असंतोष का कारण है. कार्यकर्ता नाराज हैं. मोदी सरकार के डर का सब से बड़ा कारण यही है. कार्यकर्ता नाराज होगा तो क्या हो सकता है, इस को देखने के लिए 2004 की अटल सरकार की हार को देखा जा सकता है.

2004 के मुकाबले 2024 में ताकतवर है विपक्ष

अटल सरकार के समय विपक्ष बिखरा हुआ था. 2024 के लिए विपक्ष आज पहले से अधिक ताकतवर और संगठित है. 10 सालों में भाजपा के अंदर लोकतंत्र नहीं रह गया है. मोदीशाह के फैसले बिना किसी तर्क के पार्टी नेता मान लेते हैं. इस से कार्यकर्ता निराश हैं. इस का असर चुनाव पर पड़ेगा. कार्यकर्ताओं के निराश होने व उन के सहयोग न करने के चलते इंडिया शाइनिंग, और फील गुड का नारा देने वाली अटल सरकार चुनाव हार गई थी. यह उदाहण मोदी सरकार को डरा रहा है. इस डर को दूर करने के लिए मोदी सरकार एक के बाद एक ऐसे शिगूफे छोड़ने का काम कर रही है कि वह ताकतवर दिख सके.

महिला आरक्षण 2029 के पहले नहीं लागू हो पाएगा. लेकिन 2023 में ऐसे हल्ला मच रहा है जैसे यह लागू हो गया हो. ‘वन नैशन वन इलैक्शन’ की बात भी इसी का हिस्सा है. जिन बातों को लागू होने में लंबा समय लगने वाला है उन को भी मोदी सरकार ऐसे दिखा रही है जैसे ये काम हो गए हैं. मोदी सरकार को अटल सरकार का हाल पता है, इसीलिए उस के आत्मविश्वास में कमी दिख रही है. वह लगातार ऐसे शिगूफे छोड़ेगी जिस से यह लगे कि मोदी सरकार आत्मविश्वास से भरी है, ताकतवर है. असल में मोदी की तीसरी पारी संकट में है. चुनावी प्रबंधकों को इस बात का अंदाजा है, लेकिन वे इसे जाहिर नहीं होने देना चाहते हैं.

विधानसभा चुनाव : कांग्रेस आगे भाजपा पीछे

आगामी 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं. ऐसे में जहां एक तरफ भारतीय जनता पार्टी किसी भी हालत में जीत हासिल करना चाहती है, वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस एक बार फिर इन राज्यों में वापसी करने के लिए जद्दोजेहद कर रही है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार डर कर इन राज्यों के लिए लोकलुभावन घोषणाएं कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस इन राज्यों में सफलता दोहराना चाहती है. इस तारतम्य में राहुल गांधी ने आगामी अक्तूबरनवंबर में 5 राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के संदर्भ में खुल कर अपने विचार और चुनावी परिणाम पर अपने सर्वे को देश के सामने रख दिया है.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस को एक ताकत दी है वह धीरेधीरे प्रत्यक्ष हो रही है. ऐसे में राहुल गांधी का विधानसभा चुनाव के परिणामों पर खुल कर अपना नजरिया प्रस्तुत करना यह बता रहा है कि कांग्रेस आज किस तरह आत्मविश्वास से भरी हुई है. यहां उल्लेखनीय है कि जिस तरह राहुल गांधी ने अपने विचार रखे हैं उस से आमतौर पर राजनेता बचते रहते हैं और यह कर देते हैं कि यह काम ज्योतिषियों का है.

जमीनी हकीकत

मगर राहुल गांधी के विचारों को जानना अपनेआप में रोचक है और कांग्रेस के लिए आत्मविश्वास से लबरेज. राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के संदर्भ में अच्छा प्रदर्शन करने का विश्वास जताते हुए 24 सितंबर को कहा कि आज की स्थिति के अनुसार कांग्रेस निश्चित रूप से मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव जीत रही है. संभवतया वह तेलंगाना में भी जीत दर्ज करेगी और राजस्थान में ‘बेहद करीबी’ मुकाबला हो सकता है व पार्टी को भरोसा है कि वह वहां भी विजयी होगी.

छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश की जमीनी हकीकत यह है कि जहां एक तरफ मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान अलोकप्रियता के अपने शिखर पर हैं, तो वहीं दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल लोकप्रियता के शिखर पर हैं. यह भी राजनीतिक पंडित मानते हैं कि भूपेश बघेल 90 विधानसभा सीटों में जिस तरह 70 सीटों पर दावा कर रहे है यह संभव नहीं है मगर 50 से 55 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस की विजय संभव है.

कांग्रेस आगे भाजपा पीछे

सच तो यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी नीतियों के कारण लगातार अलोकप्रिय होते चले जा रहे हैं. यही कारण है कि हिमाचल प्रदेश हो या कर्नाटक, दोनों ही राज्यों में भारतीय जनता पार्टी को बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा है और भाजपा के नेता आगामी विधानसभा चुनाव को ले कर कुछ भी बोलने से बचते रहे हैं. ऐसे में ताल ठोंक कर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि विपक्ष की एकजुटता आगामी लोकसभा चुनाव (आम चुनाव) में भाजपा को चौंकाने वाले परिणाम देगी. उन्होंने यह भी खुलासा किया कि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान उन के सोशल मीडिया खातों को दबाया गया था और कांग्रेस चाहती है कि एक बार फिर से आम जनता के हाथों में अधिकार की शक्ति जाए.

आत्मविश्वास से लबरेज

राहुल गांधी ने कहा कि संभवतया कांग्रेस तेलंगाना में भी जीत दर्ज करेगी और राजस्थान में ‘बेहद करीबी’ मुकाबला हो सकता है और पार्टी को भरोसा है कि वह राजस्थान में भी विजयी होगी.

राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस ने कर्नाटक चुनाव में एक महत्त्वपूर्ण सबक सीखा है कि भाजपा ध्यान भटका कर और हमें हमारी बात रखने से रोक कर चुनाव जीतती है और इसलिए हम ने अपनी बात प्रमुखता से रख कर चुनाव लड़ा.

सब से बड़ी बात यह है कि राहुल गांधी में देश के नब्ज पर एक तरह से हाथ रखते हुए कहा कि अमीरगरीब के बीच भारी असमानता, बड़े पैमाने पर बेरोजगारी, निचली जाति, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और आदिवासी समुदायों के प्रति पक्षपात आज प्रासंगिक हैं.

उन्होंने कहा कि उन की पार्टी आगामी विधानसभा चुनावों में किसी भी राज्य में जीत हासिल न करे, यह सवाल ही पैदा नहीं होता. इस तरह एक तरह से राहुल गांधी आत्मविश्वास से लबरेज दिखाई देते हैं और उन्होंने जो बातें कहीं हैं वह बहुत हद तक राजनीतिक विश्लेषक भी गाहेबगाहे कह रहे हैं और और भाजपा भी इस सच को जानती है.

मेरे पति शादी से पहले किसी लड़की से प्यार करते थे, अगर अब उनका सोया हुआ प्यार जाग गया, तो मैं क्या करूंगी ?

सवाल

मेरे विवाह को 6 महीने हो चुके हैं. पति मुझे बहुत प्यार करते हैं और मैं भी उन्हें बेहद चाहती हूं. बावजूद इस के मेरा मन आशंकित रहता है. मेरे पति ने सुहागरात को बताया था कि विवाहपूर्व वे किसी लड़की से प्यार करते थे पर घर वाले शादी के लिए राजी नहीं हुए, इसलिए उसे छोड़ कर उन्हें मुझ से शादी करनी पड़ी. उन्होंने कहा कि अब मैं ही उन के लिए सब कुछ हूं और वे उस लड़की को पूरी तरह भूल चुके हैं पर मेरे मन में गांठ पड़ गई है. डरती हूं कि यदि उन का सोया प्यार जाग गया और मुझे छोड़ कर वे उस के पास चले गए तो क्या होगा?

जवाब

आप के पति ने आप से संबंध बनाने से पहले अपने अतीत की बातें शेयर कीं तो आप को उन की ईमानदारी पर फख्र करना चाहिए. आप उन की ब्याहता हैं और आप मानती हैं कि वे आप से प्यार करते हैं तो आप को बेवजह उन पर शक नहीं करना चाहिए. उन्हें इतना प्यार दें कि उन्हें किसी और के बारे में सोचने की जरूरत ही न रहे. आप की नईनई शादी हुई है, इसलिए बातों को छोड़ कर वैवाहिक जीवन का आनंद लें.

सैरोगेसी : एक पहलू यह भी

एक मां का प्रेम कई रूपों में प्रकट होता है और उस का एहसास हर इनसान करता है. मगर उस प्रेम को क्या कहा जाए, जब मां अपनी बेटी की संतान को अपनी कोख से जन्म दे कर उसे मातृत्व का उपहार दे?

फरवरी, 2011 में शिकागो में जन्मे फिन्नेन के जन्म की कहानी कुछ ऐसी ही कुतूहल भरी है. लाइफकोच और राइटर कोनेल उन की जैविकीय मां हैं, मगर उन्हें जन्म देने वाली मां उन की अपनी नानी हैं. दरअसल, 35 वर्षीय कोनेल इनफर्टिलिटी की समस्या से जूझ रही थीं. ऐसे में उन की 60 वर्षीय मां क्रिस्टीन कैसे, जो 30 साल पहले 3 बेटियों को जन्म दे कर मेनोपौज की अवस्था पार कर चुकी थीं, ने बेटी की संतान हेतु सैरोगेट मदर बनने की इच्छा जाहिर की.

हारमोनल सप्लिमैंटेशन के बाद सैरोगेसी के जरीए क्रिस्टीन ने कोनेल और उन के पति बिल की संतान को अपनी कोख से जन्म दिया. 7 पाउंड का यह बेहतरीन तोहफा आज 5 साल का हो चुका है, जो मां और बेटी के बीच पैदा हुए एक खूबसूरत बंधन की नाजुक निशानी है.

दरअसल, मातृत्व एक औरत के जीवन का बेहद खूबसूरत एहसास होता है. अपने नन्हे बच्चे की तुतलाती जबान से अपने लिए मां शब्द सुन कर उसे लगता है जैसे वह पूर्ण हो गईर् हो. लेकिन जो महिलाएं किसी तरह की शारीरिक परेशानी की वजह से मां नहीं बन पाती हैं, उन के लिए विज्ञान ने सैरोगेसी के रूप में एक नया रास्ता निकाला है.

इस की जरूरत तब पड़ती है जब किसी औरत को या तो गर्भाशय का संक्रमण हो या फिर किसी अन्य शारीरिक दोष के कारण वह गर्भधारण में सक्षम न हो. ऐसे में कोईर् और महिला उस दंपती के बच्चे को अपनी कोख से जन्म दे सकती है.

डा. शोभा गुप्ता बताती हैं, ‘‘सैरोगेसी 2 तरह की होती है- एक ट्रैडिशनल सैरोगेसी, जिस में पिता के शुक्राणुओं को एक अन्य महिला के एग्स के साथ निषेचित किया जाता है. इस में जैनेटिक संबंध सिर्फ पिता से होता है तो दूसरी जैस्टेशनल सैरोगेसी जिस में मातापिता के अंडाणु व शुक्राणुओं का मेल परखनली विधि से करवा कर भू्रण को सैरोगेट मदर के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है. इस में बच्चे का जैनेटिक संबंध मातापिता दोनों से होता है.’’

यह सैरोगेसी का विकल्प अपनाने वाले दंपती पर निर्भर करता है कि वह किस तरह की विधि द्वारा संतान चाहते हैं. इस बारे में दंपती चिकित्सक से परामर्श कर सकते हैं.

सैरोगेसी से जुड़े मनोवैज्ञानिक पहलू

गहरा भावनात्मक  बंधन : सैरोगेसी के मनोवैज्ञानिक पहलुओं पर किए गए एक अध्ययन में सैरोगेट मदर, कमिशनिंग पेरैंट्स व बच्चे इन तीनों के मानसिक सुख में सामान्य तरीके से पैदा बच्चों व उन के पेरैंट्स के मुकाबले कोई कमी नहीं देखी गई. इस के विपरीत कमिशनिंग मातापिता की देखभाल ज्यादा सकारात्मक रही.

दरअसल, सैरोगेसी में बच्चे वांछित व प्लान किए होते हैं. इन बच्चों की प्लानिंग व प्रैगनैंसी में काफी प्रयास शामिल होते हैं. प्रैगनैंसी के बाद भू्रण विकास के हर चरण की खबर कमिशनिंग पेरैंट्स लगातार और गंभीरता से लेते रहते हैं. लंबे इंतजार के बाद बच्चे का जन्म होता है. फिर वे बच्चे को गोद लेने की प्रक्रिया से गुजरते हैं. इस दौरान भावनात्मक रूप से वे बहुत गहराई से बच्चे के साथ जुड़ जाते हैं.

जाहिर है, इतनी मुश्किलों से प्राप्त बच्चे के पालनपोषण व देखभाल में वे जरा सी भी लापरवाही नहीं कर सकते और इस गहरे प्रेम का एहसास बच्चे को भी रहता है. सैरोगेसी का इन पर कोई नकारात्मक प्र्रभाव नहीं देखा जाता. वे इस बात को सहजता से स्वीकार करते हैं और अपने कमिशनिंग पेरैंट्स के प्रति समर्पित रहते हैं.

पिता के स्पर्म व सैरोगेट मदर लौरी वैगन के एग व उन्हीं की कोख से जन्मी 18 वर्षीय मोर्गन रेनी कहती है कि वह अपनी कमिशनिंग मदर को पूरी तरह मां स्वीकार करती है. इस मां ने ही उसे पालपोस कर बड़ा किया. उस का खयाल रखा और उस की हर जरूरत पूरी की. भले ही इस मां ने उसे जन्म न दिया हो, पर मां की जिम्मेदारी निभाने वाली ही उस की असली मां हैं.

लौरी, जो मोर्गन की सैरोगेट मदर हैं, को मोर्गन केवल अपने परिवार का एक सदस्य ही मानती हैं. वह लौरी के बहुत करीब है. पर उन के लिए मां जैसा कोई कनैक्शन कभी महसूस नहीं किया. दोनों रिश्तों के बीच उसे कोई कन्फ्यूजन नहीं है और वह अपनी जिंदगी से खुश है.

इसी तरह आस्ट्रिया की पहली सैरोगेट चाइल्ड 26 वर्षीय एलाइस क्लार्क ने भी अपने जीवन की हकीकत को सहजता से स्वीकारा है. उस के केस में स्थिति थोड़ी अलग थी. मां के एग और डोनेटेड स्पर्म के जरीए मामी की कोख से उस का जन्म हुआ. वह अपना पालन करने वाली मां को ही रियल मदर मानती है. मगर कोख में रखने वाली मां के भी करीब है.

एलाइस ने स्वीकारा कि हालांकि उस का परिवार अलग है, फिर भी वह अपने जन्म को ले कर खुश है. यह कमिशनिंग मातापिता की सकारात्मक देखभाल का ही नतीजा है.

गोद लेने से अलग : एससीआई हैल्थ केयर की डाइरैक्टर, डा. शिवानी सचदेव गौर कहती हैं, ‘‘सैरोगेसी की तुलना बच्चा गोद लेने वाली प्रक्रिया से नहीं की जा सकती. गोद लेने में बच्चा प्लान किया हुआ नहीं होता. वह या तो बलात्कार का परिणाम होता है या फिर पुरुष साथी द्वारा त्यागी गई महिला का, जो काफी निराशाजनक हालत में होती है व मानसिक, आर्थिक तनाव और नकारात्मक सोच के साथ बच्चे को जन्म देती है. वह बच्चे को गोद लेने के लिए छोड़ देती है, क्योंकि वह असहाय महसूस करती है. वह भावनात्मक रूप से भी कमजोर होती है और इस सब के परिणामस्वरूप बच्चे की नकारात्मक देखभाल होती है.

‘‘ये अनचाहे बच्चे होते हैं, खराब भावनात्मक व आर्थिक स्थिति में बड़े हुए होते हैं और बचपन के बुरे अनुभवों से गुजरे होते हैं, जिस के चलते इन में व्यावहारिक समस्याएं होने का खतरा अधिक रहता है. सैरोगेसी में ऐसा कुछ नहीं होता है.’’

सैरोगेट मदर का रवैया

डा. शिवानी सचदेव कहती हैं, ‘‘सैरोगेट मदर में भी अलग रवैया देखने को मिलता है. वह दृढ़ आत्मविश्वासी, सकारात्मक और आमतौर पर एक सहयोगी प्रवृत्ति की तथा अच्छे विचारों वाली होती है. वह स्वेच्छा से बच्चे को कोख में रखती है. चूंकि इस कोख धारण का उद्देश्य पहले से तय होता है. ऐसे में इस में कोई नकारात्मक सोच नहीं होती और न ही बच्चे के साथ कोई खास जुड़ाव होता है. ऐसे में सैरोगेट मां को इस बच्चे को गोद देने में कोई भावनात्मक तनाव नहीं होता है.

सामाजिक सोच : समाज में अब खुलापन बढ़ रहा है. रूढि़वाद विरोधी परिवारों की संख्या बढ़ रही है. ऐसे में सैरोगेसी को ले कर व्याप्त भेदभाव भी कम होने लगा है. सैरोगेसी से पैदा बच्चों को भी लोग सहज भाव से देखते हैं. ऐसे में बच्चों को भी इस हकीकत को आसानी से स्वीकारने में मदद मिलती है. यदि उन्हें शुरुआत में ही उन के जन्म की कहानी बता दी जाए, तो आगे चल कर उन्हें झटका नहीं लगता. यह उन के लिए बेहतर ही होता है.

इतना ही नहीं, हकीकत जानने के बाद सैरोगेसी से पैदा हुए बच्चे के मन में अपने कमीशनिंग पेरैंट्स के प्रति भावनात्मक लगाव और बढ़ जाता है.

सैरोगेसी से जुड़े कुछ भ्रम

सैरोगेसी का विकल्प अपनाने वाले दंपती के मन में कहीसुनी बातों के आधार पर कई सारे भ्रम पैदा हो जाते हैं. जबकि ऐसी बातों में सचाई नाममात्र को ही होती है

इस बारे में डा. शिवानी बताती हैं, ‘‘कुछ मामले ऐसे देखे गए हैं कि सैरोगेट मदर ने बच्चा पैदा होने के बाद भावनात्मक लगाव के कारण बच्चे को उस के कानूनन मांबाप को देने से इनकार कर दिया. मगर वास्तविकता में 100 में से 1 मामला ऐसा होता है. असलियत में 99% से ज्यादा सैरोगेट मांएं अपनी मरजी से खुशीखुशी बच्चे को कमिशनिंग मांबाप को देने को तैयार होती हैं. कुछ ही मामले कोर्ट तक पहुंचते हैं.’’

सवाल यह भी उठता है कि किराए पर कोख दे कर दूसरे लोगों की जिंदगी में खुशियां लाने वाली महिलाएं खुद शोषण का शिकार हो रही हैं. एनजीओ सैंटर फौर सोशल रिसर्च द्वारा कराए गए एक सर्वे में पाया गया कि अकसर महिलाएं अपनी मरजी से सैरोगेट मदर नहीं बनना चाहतीं. पति का दबाव या आर्थिक परेशानी के चलते वे इस व्यवस्था को स्वीकार करती हैं.

मगर इस तथ्य की तह तक जाया जाए तो साफ होगा कि ज्यादातर सैरोगेट मदर्स मानती हैं कि वे किसी को जीवन का तोहफा दे रही हैं, उस का दामन खुशियों से भर रही हैं और सब से बड़ी बात यह कि वे अपनी इच्छा से सैरोगेट बनना स्वीकार करती हैं.

सैलिब्रिटिज भी पीछे नहीं

हाल ही में जानेमाने फिल्म प्रोड्यूसर करण जौहर सैरोगेसी के जरीए जुड़वां बच्चों के पिता बने हैं. 7 फरवरी, 2017 को मुंबई के एक अस्पताल में यश और रूही नाम के इन 2 बच्चों का जन्म हुआ. इस अवसर पर अपनी खुशी जाहिर करते हुए करण जौहर ने इस दिन को बेहद खास बताया. इस से पहले तुषार कपूर और शाहरुख खान जैसे सैलिब्रिटिज भी सैरोगेट बच्चे के पिता बन चुके हैं.

संभव है कि भारत में करण जौहर इस तरह सिंगल पेरैंट बनने वाले अंतिम शख्स हों, क्योंकि अगस्त, 2016 में सरकार सैरोगेसी का नया कानून ले कर आई है जिस के अनुसार सिंगल व्यक्ति सैरोगेसी के जरीए पिता/मां नहीं बन सकता. इस के अलावा सैरोगेट मदर बनने के लिए भी कई तरह की सीमाएं तय की गई हैं.

सैरोगेसी कानून

हाल ही में सरकार ने नया सैरोगेसी कानून पास किया, जो काफी चर्चा में है. बीते कुछ समय में सैरोगेसी से जुड़े अनैतिक मामलों को देखते हुए सरकार ने कमर्शियल सैरोगेसी पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है.

सैरोगेसी कानून के अंतर्गत दूसरे के हित के लिए सैरोगेसी का अधिकार सिर्फ भारतीय नागरिकों के लिए होगा. एनआरआई और ओसीआई कार्ड धारकों को यह अधिकार नहीं मिलेगा. साथ ही, सिंगल पेरैंट्स होमोसैक्सुअल कपल्स और लिव इन रिलेशनशिप कपल्स को सैरोगेसी की अनुमति नहीं होगी.

इस कानून के मुताबिक, परिवार की कोईर् करीबी सदस्या ही सैरोगेट मां हो सकती है और शादीशुदा दंपती विवाह के 5 साल के बाद ही सैरोगेसी के लिए अर्जी दे सकते हैं.

मदर्स लैप आईवीएफ सैंटर की डा. शोभा गुप्ता कहती हैं, ‘‘बहुत समय से किराए की कोख पर विचारविमर्श और विवाद होते रहे हैं. सैरोगेसी के नियम व कायदेकानून में जो बदलाव हुए हैं, वे बहस का कारण बन गए हैं. यह सही है कि सैरोगेसी अनैतिक व अवैध तरीके से नहीं होनी चाहिए. मगर ऐसे बहुत से लोग हैं, जो संतानसुख से वंचित हैं. उन के लिए सैरोगेसी एक सहारा है. इस पर रोक नहीं लगानी चाहिए. सिर्फ नियमित रखने का प्रयास करना चाहिए.’’

मैक्स हौस्पिटल की गाइनोकोलौजिस्ट, डा. श्वेता गोस्वामी के अनुसार, ‘‘सरकार को ऐसा कानून बनाना चाहिए था, जो 1% सैलिब्रिटीज को देख कर नहीं, बल्कि 90% आम लोगों को देख कर बनाया जाता. अगर सैरोगेट मदर परिवार में ही होनी चाहिए तो 99% परिवारों में तो ऐसी कोई महिला ही नहीं है, जो सैरोगेट मदर बन सके. आजकल कोई भी रिश्तेदार सैरोगेसी के लिए आगे नहीं आता. ऐसे में बहुत सारे कपल्स मातापिता बनने का सुख नहीं उठा पाएंगे.’’

यह कानून असल में भगवाई सोच का नतीजा है कि संतान सुख तो पिछले जन्मों का फल है. य-पि हमारे ग्रंथों में दर्शाए गए अधिकांश पात्र अपनी मां या पिता की संतानें नहीं हैं पर फिर भी हमारे यहां नैतिकता का ढोल इस तरह पीटा गया है कि सैरोगेट मदर को पैसे दे कर तैयार करना जनता में अपराध मान लिया गया है और सैकड़ों रिपोर्टें प्रकाशितप्रसारित हो गईं कि देखो क्या अनाचार हो रहा है.

एक तरफ हर अस्पताल में आज अंगदान के बोर्ड लगा दिए गए हैं तो दूसरी ओर गर्भाशय को किराए पर देने पर रोक लगाना, यह दोमुंही नीति समझ से परे है.

सैरोगेट चाइल्ड और सैरोगेट मदर दोनों नितांत कानूनी हैं और इन पर कानूनी शिकंजा एक आधुनिक चिकित्सा सुविधा को ब्लैक मार्केटिंग के दायरे में डालने का काम है. इस कानून से बच्चे तो पैदा होंगे ही पर कालाधन भी, जिसे नष्ट करने का नाटक सरकार जोरशोर से कर रही है.

जारी है सजा : श्रीमती गोयल की गलत आदतों को क्यों सहती थी?

पूर्व कथा

श्रीमान गोयल की रंगीनमिजाजी के चलते उन के बेटेबहुएं साथ नहीं रहते. पति से बहुत ही लगाव रखती व उन की खूब इज्जत करती श्रीमती गोयल के पास पति की गलत आदतोंबातों को सहने के अलावा चारा न था, जबकि उन के बच्चे पिता की गंदी हरकतों से बेहद क्रोधित रहते थे. उन के अपने बच्चों पर श्रीमान गोयल की छाया न पड़े, इसलिए वे मातापिता से अलग रहते हैं. लेकिन उन में मां की ममता में कोई कमी न थी. वे मां को बराबर पैसे भेजते रहते हैं ताकि उन के पिता, उन की मां को तंग न करें. उधर, श्रीमती गोयल का अपनी नई पड़ोसन शुभा से संपर्क हुआ तो उन्हें लगा कि गैरों में भी अपनत्व होता है.

जबतब दोनों में मुलाकातें होती रहतीं और श्रीमती गोयल उन्हें पति का दुखड़ा सुना कर संतुष्ट हो लेतीं. शुभा के पूछने पर श्रीमती गोयल ने बताया, ‘‘गोयल साहब औरतबाज हैं, इस सीमा तक बेशर्म भी कि बाजारू औरतों के साथ मनाई अपनी रासलीला को चटकारे लेले कर मुझे ही सुनाते रहते हैं,’’ श्रीमती गोयल पति के साथ इस तरह जीती रहीं जैसे पड़ोसी. ऐसा बदचलन पड़ोसी जो जब जी चाहे, दीवार फांद कर आए और उन का इस्तेमाल कर चलता बने.

श्रीमती गोयल सोचती हैं कि शायद ऐसा पति ही उन के जीवन का हिस्सा था, जैसा मिला है उसी को निभाना है. श्रीमती गोयल न जाने कौन सा संताप सहती रहीं जबकि उन का पति क्षणिक मौजमस्ती में मस्त रहा. कुछ भी गलत न करने की कैसी सजा वे भोग रही हैं वहीं, कुकर्म करकर के भी श्रीमान गोयल बिंदास घूम रहे हैं. लेकिन…अब आगे…

ऐयाश बाप को उन के पुत्र इसलिए पैसा देते हैं कि वे घर से बाहर बाहरवालियों पर लुटाएं और मां को तंग न करें. लेकिन जब मां की आंखें हमेशा के लिए बंद हो जाती हैं तब…

गतांक से आगे…

अंतिम भाग

बातों का सिलसिला चल निकलता तो उन का रोना भी जारी रहता और हंसना भी.

‘‘आप के घर का खर्च कैसे चलता है?’’

‘‘मेरे बच्चे मुझे हर महीने खर्च भेजते हैं. बाप को अलग से देते हैं ताकि वे मुझे तंग न करें और जितना चाहें घर से बाहर लुटाएं.’’

मैं स्तब्ध थी. ऐसे दुराचारी पिता को बच्चे पाल रहे हैं और उस की ऐयाशी का खर्च भी दे रहे हैं.

अपने बच्चों के मुंह से निवाला छीन कर कौन इनसान ऐसे बाप का पेट भरता होगा जिस का पेट सुरसा के मुंह की तरह फैलता ही जा रहा है.

‘‘आप लोग इतना सब बरदाश्त कैसे करते हैं?’’

‘‘तो क्या करें हम. बच्चे औलाद होने की सजा भोग रहे हैं और मैं पत्नी होने की. कहां जाएं? किस के पास जा कर रोएं…जब तक मेरी सांस की डोर टूट न जाए, यही हमारी नियति है.’’

मैं श्रीमती गोयल से जबजब मिलती, मेरे मानस पटल पर उन की पीड़ा और गहरी छाप छोड़ती जाती. सच ही तो कह रही थीं श्रीमती गोयल. इनसान रिश्तों की इस लक्ष्मण रेखा से बाहर जाए भी तो कहां? किस के पास जा कर रोए? अपना ही अपना न हो तो इनसान किस के पास जाए और अपनत्व तलाश करे. मेकअप की परत के नीचे वे क्याक्या छिपाए रखने का प्रयास करती हैं, मैं सहज ही समझ सकती थी. जरूरी नहीं है कि जो आंखें नम न हों उन में कोई दर्द न हो, अकसर जो लोग दुनिया के सामने सुखी होने का नाटक करते हैं ज्यादातर वही लोग भीतर से खोखले होते हैं.

इसी तरह कुछ समय बीत गया. मुझ से बात कर वे अपना मन हलका कर लेती थीं.

उन्हीं दिनों एक शादी में शामिल होने को मुझे कुल्लू जाना पड़ा. जाने से पहले श्रीमती गोयल ने मुझे 5 हजार रुपए शाल लाने के लिए दिए थे. मैं और मेरे पति लंबी छुट्टी पर निकल पड़े. लगभग 10 दिन के बाद हम वापस आए.

रात देर से पहुंचे थे इसलिए खाना खाया और सो गए. अगले दिन सुबह उठे तो 10 दिन का छोड़ा घर व्यवस्थित करतेकरते ही शाम हो गई. चलतेफिरते मेरी नजर श्रीमती गोयल के घर पर पड़ जाती तो मन में खयाल आता कि आई क्यों नहीं आंटी. जब हम गए थे तो उन्होंने सफर के लिए गोभी के परांठे साथ बांध दिए थे. गरमगरम चाय और अचार के साथ उन परांठों का स्वाद अभी तक मुंह में है. शाम के बाद रात और फिर दूसरा दिन भी आ गया, मैं ने ही उन की शाल अटैची से निकाली और देने चली गई, लेकिन गेट पर लटका ताला देख मुझे लौटना पड़ा.

अभी वापस आई ही थी कि पति का फोन आ गया, ‘‘शुभा, तुम कहां गई थीं, अभी मैं ने फोन किया था?’’

‘‘हां, मैं थोड़ी देर पहले सामने आंटी को शाल देने गई थी, मगर वे मिलीं नहीं.’’

वे बात करतेकरते तनिक रुक गए थे, फिर धीरे से बोले, ‘‘गोयल आंटी का इंतकाल हुए आज 12 दिन हो गए हैं शुभा, मुझे भी अभी पता चला है.’’

मेरी तो मानो चीख ही निकल गई. फोन के उस तरफ पति बात भी कर रहे थे और डर भी रहे थे.

‘‘शुभा, तुम सुन रही हो न…’’

ढेर सारा आवेग मेरे कंठ को अवरुद्ध कर गया. मेरे हाथ में उन की शाल थी जिसे ले कर मैं क्षण भर पहले ही यह सोच रही थी कि पता नहीं उन्हें पसंद भी आएगी या नहीं.

‘‘वे रात में सोईं और सुबह उठी ही नहीं. लोग तो कहते हैं उन के पति ने ही उन्हें मार डाला है. शहर भर में इसी बात की चर्चा है.’’

धम्म से वहीं बैठ गई मैं, पड़ोस की बीना भी इस समय घर नहीं होगी…किस से बात करूं? किस से पूछूं अपनी सखी के बारे में. भाग कर मैं बाहर गई और एक बार फिर से ताले को खींच कर देखने लगी. तभी उधर से गुजरती हुई एक काम वाली मुझे देख कर रुक गई. बांह पकड़ कर फूटफूट कर रोने लगी. याद आया, यही बाई तो श्रीमती गोयल के घर काम करती थी.

‘‘क्या हुआ था आंटी को?’’ मैं ने हिम्मत कर के पूछा.

‘‘बीबीजी, जिस दिन सुबह आप गईं उसी रात बाबूजी ने सिर में कुछ मार कर बीबीजी को मार डाला. शाम को मैं आई थी बरतन धोने तो बीबीजी उदास सी बैठी थीं. आप के बारे में बात करने लगीं. कह रही थीं, ‘मन नहीं लग रहा शुभा के बिना.’ ’’

आंटी का सुंदर चेहरा मेरी आंखों के सामने कौंध गया. बेचारी तमाम उम्र अपनेआप को सजासंवार कर रखती रहीं. चेहरा संवारती रहीं जिस का अंत इस तरह हुआ. रो पड़ी मैं, सत्या भी जोर से रोने लगी. कोई रिश्ता नहीं था हम तीनों का आपस में. मरने वाली के अपने कहां थे हम. पराए रो रहे थे और अपने ने तो जान ही ले ली थी.

दोपहर को बीना आई तो सीधी मेरे पास चली आई.

‘‘दीदी, आप कब आईं? देखिए न, आप के पीछे कैसा अनर्थ हो गया.’’

रोने लगी थी बीना भी. सदमे में लगभग सारा महल्ला था. पता चला श्रीमान गोयलजी तभी से गायब हैं. डाक्टर बेटा आ कर मां का शव ले गया था. बाकी अंतिम रस्में उसी के घर पर हुईं.

‘‘तुम गई थीं क्या?’’

‘‘हां, अमेरिका वाला बेटा भी आजकल यहीं है. तीनों बेटे इतना बिलख रहे थे कि  क्या बताऊं आप को दीदी. गोयल अंकल ने यह अच्छा नहीं किया. गुल्लू तो कह रहा था कि बाप को फांसी चढ़ाए बिना नहीं मानेगा लेकिन बड़े दोनों भाई उसे समझाबुझा कर शांत करने का प्रयास कर रहे हैं.’’

गुल्लू अमेरिका में जा कर बस जाना ज्यादा बेहतर समझता था, इसीलिए साथ ले जाने को मां के कागजपत्र सब तैयार किए बैठा था. वह नहीं चाहता था कि मां इस गंदगी में रहें. घर का सारा वैभव, सारी सुंदरता इसी गुल्लू की दी हुई थी. सब से छोटा था और मां का लाड़ला भी.

हर सुबह मां से बात करना उस का नियम था. आंटी की बातों में भी गुल्लू का जिक्र ज्यादा होता था.

‘‘तुम चलोगी मेरे साथ बीना, मैं उन के घर जा कर उन से मिलना चाहती हूं.’’

‘‘इसीलिए तो आई हूं. आज तेरहवीं है. शाम 4 बजे उठाला हो जाएगा. आप तैयार रहना.’’

आंखें पोंछती हुई बीना चली गई. दिल जैसे किसी ने मुट्ठी में बांध रखा था मेरा. नाश्ता वैसे ही बना पड़ा था जिसे मैं छू भी नहीं पाई थी. संवेदनशील मन समझ ही नहीं पा रहा था कि आखिर आंटी का कुसूर क्या था, पूरी उम्र जो औरत मेहनत कर बच्चों को पढ़ातीलिखाती रही, पति की मार सहती रही, क्या उसे इसी तरह मरना चाहिए था. ऐसा दर्दनाक अंत उस औरत का, जो अकेली रह कर सब सहती रही.

‘एक आदमी जरा सा नंगा हो रहा हो तो हम उसे किसी तरह ढकने का प्रयास कर सकते हैं शुभा, लेकिन उसे कैसे ढकें जो अपने सारे कपड़े उतार चौराहे पर जा कर बैठ जाए, उसे कहांकहां से ढकें…इस आदमी को मैं कहांकहां से ढांपने की कोशिश करूं, बेटी. मुझे नजर आ रहा है इस का अंत बहुत बुरा होने वाला है. मेरे बेटे सिर्फ इसलिए इसे पैसे देते हैं कि यह मुझे तंग न करे. जिस दिन मुझे कुछ हो गया, इस का अंत हो जाएगा. बच्चे इसे भूखों मार देंगे…बहुत नफरत करते हैं वे अपने पिता से.’

गोयल आंटी के कहे शब्द मेरे कानों में बजने लगे. पुन: मेरी नजर घर पर पड़ी. यह घर भी गोयल साहब कब का बेच देते अगर उन के नाम पर होता. वह तो भला हो आंटी के ससुर का जो मरतेमरते घर की रजिस्ट्री बहू के नाम कर गए थे.

शाम 4 बजे बीना के साथ मैं

डा. विजय गोयल के घर पहुंची. वहां पर भीड़ देख कर लगा मानो सारा शहर ही उमड़ पड़ा हो. अच्छी साख है उन की शहर में. इज्जत के साथसाथ दुआएं भी खूब बटोरी हैं आंटी के उस बेटे ने.

तेरहवीं हो गई. धीरेधीरे सारी भीड़ घट गई. आंटी की शाल मेरे हाथ में कसमसा रही थी. जरा सा एकांत मिला तो बीना ने गुल्लू से मेरा परिचय कराया. गुल्लू धीरे से उठा और मेरे पास आ कर बैठ गया. सहसा मेरा हाथ पकड़ा और अपने हाथ में ले कर चीखचीख कर रोने लगा.

‘‘मैं अपनी मां की रक्षा नहीं कर पाया, शुभाजी. पिछले कुछ हफ्तों से मां की बातों में सिर्फ आप का ही जिक्र रहता था. मां कहती थीं, आप उन्हें बहुत सहारा देती रही हैं. आप वह सब करती रहीं जो हमें करना चाहिए था.’’

‘‘जिस सुबह आप कुल्लू जाने वाली थीं उसी सुबह जब मैं ने मां से बात की तो उन्होंने बताया कि बड़ी घबराहट हो रही है. आप के जाने के बाद वे अकेली पड़ जाएंगी. ऐसा हो जाएगा शायद मां को आभास हो गया था. हमारा बाप ऐसा कर देगा किसी दिन हमें डर तो था लेकिन कर चुका है विश्वास नहीं होता.’’

दोनों बेटे भी मेरे पास सिमट आए थे. तीनों की पत्नियां और पोतेपोतियां भी. रो रही थी मैं भी. डा. विजय हाथ जोड़ रहे थे मेरे सामने.

‘‘आप ने एक बेटी की तरह हमारी मां को सहारा दिया, जो हम नहीं कर पाए वह आप करती रहीं. हम आप का एहसान कभी नहीं भूल सकते.’’

क्या उत्तर था मेरे पास. स्नेह से मैं ने गुल्लू का माथा सहला दिया.

सभी तनिक संभले तो मैं ने वह शाल गुल्लू को थमा दी.

‘‘श्रीमती गोयल ने मुझे 5 हजार रुपए दिए थे. कह रही थीं कि कुल्लू से उन के लिए शाल लेती आऊं. कृपया आप इसे रख लीजिए.’’

पुन: रोने लगा था गुल्लू. क्या कहे वह और क्या कहे परिवार का कोई अन्य सदस्य.

‘‘आप की मां की सजा पूरी हो गई. मां की कमी तो सदा रहेगी आप सब को, लेकिन इस बात का संतोष भी तो है कि वे इस नरक से छूट गईं. उन की तपस्या सफल हुई. वे आप सब को एक चरित्रवान इनसान बना पाईं, यही उन की जीत है. आप अपने पिता को भी माफ कर दें. भूल जाइए उन्हें, उन के किए कर्म ही उन की सजा है. आज के बाद आप उन्हें उन के हाल पर छोड़ दीजिए. समयचक्र कभी क्षमा नहीं करता.’’

‘‘समयचक्र ने हमारी मां को किस कर्म की सजा दी? हमारी मां उस आदमी की इतनी सेवा करती रहीं. उसे खिला कर ही खाती रहीं सदा, उस इनसान का इंतजार करती रहीं, जो उस का कभी हुआ ही नहीं. वे बीमार होती रहीं तो पड़ोसी उन का हालचाल पूछते रहे. भूखी रहतीं तो आप उसे खिलाती रहीं. हमारा बाप सिर पर चोट मारता रहा और दवा आप लगाती रहीं…आप क्या थीं और हम क्या थे. हमारे ही सुख के लिए वे हम से अलग रहीं सारी उम्र और हम क्या करते रहे उन के लिए. एक जरा सा सहारा भी नहीं दे पाए. इंतजार ही करते रहे कि कब वह राक्षस उन्हें मार डाले और हम उठा कर जला दें.’’

गुल्लू का रुदन सब को रुलाए जा रहा था.

‘‘कुछ नहीं दिया कालचक्र ने हमारी मां को. पति भी राक्षस दिया और बेटे भी दानव. बेनाम ही मर गईं बेचारी. कोई उस के काम नहीं आया. किसी ने मेरी मां को नहीं बचाया.’’

‘‘ऐसा मत सोचो बेटा, तुम्हारी मां तो हर पल यही कहती रहीं कि उन के  बेटे ही उन के जीने का सहारा हैं. आप सब भी अपने पिता जैसे निकल जाते तो वे क्या कर लेतीं. आप चरित्रवान हैं, अच्छे हैं, यही उन के जीवन की जीत रही. बेनाम नहीं मरीं आप की मां. आप सब हैं न उन का नाम लेने वाले. शांत हो जाओ. अपना मन मैला मत करो.

‘‘आप की मां आप सब की तरफ से जरा सी भी दुखी नहीं थीं. अपनी बहुओं की भी आभारी थीं वे, अपने पोतेपोतियों के नाम भी सदा उन के होंठों पर होते थे. आप सब ने ही उन्हें इतने सालों तक जिंदा रखा, वे ऐसा ही सोचती थीं और यह सच भी है. ऐसा पति मिलना उन का दुर्भाग्य था लेकिन आप जैसी संतान मिल जाना सौभाग्य भी है न. लेखाजोखा करने बैठो तो सौदा बराबर रहा. प्रकृति ने जो उन के हिस्से में लिखा था वही उन्हें मिल गया. उन्हें जो मिला उस का वे सदा संतोष मनाती थीं. सदा दुआएं देती थीं आप सब को. तुम अपना मन छोटा मत करो… विश्वास करो मेरा…’’

मेरे हाथों को पकड़ पुन: चीखचीख कर रो पड़ा था गुल्लू और पूरा परिवार उस की हालत पर.

समय सब से बड़ा मरहम है. एक बुरे सपने की तरह देर तक श्रीमती गोयल की कहानी रुलाती भी रही और डराती भी रही. कुछ दिनों बाद उन के बेटों ने उस घर को बेच दिया जिस में वे रहती थीं.

श्रीमान गोयल के बारे में भी बीना से पता चलता है. बच्चों ने वास्तव में पिता को माफ कर दिया, क्या करते.

उड़तीउड़ती खबरें मिलती रहीं कि श्रीमान गोयल का दिमाग अब ठीक नहीं रहा. बाहर वालियों ने उन का घर भी बिकवा दिया है. बेघर हो गया है वह पुरुष जिस ने कभी अपने घर को घर नहीं समझा. पता नहीं कहां रहता है वह इनसान जिस का अब न कोई घर है न ठिकाना. अपने बच्चों के मुंह का निवाला जो इनसान वेश्याओं को खिलाता रहा उस का अंत भला और कैसा होता.

एक रात पुन: गली में चीखपुकार हुई. श्रीमान गोयल अपने घर के बाहर खड़े पत्नी को गालियां दे रहे थे. भद्दीगंदी गालियां. दरवाजा जो नहीं खोल रही थीं वे, शायद पागलपन में वे भूल चुके थे कि न यह घर अब उन का है और न ही उन्हें सहन करने वाली पत्नी ही जिंदा है.

चौकीदार ने उन्हें खदेड़ दिया. हर रोज चौकीदार उन्हें दूर तक छोड़ कर आता, लेकिन रोज का यही क्रम महल्ले भर को परेशान करने लगा. बच्चों को खबर की गई तो उन्होंने साफ कह दिया कि वे किसी श्रीमान गोयल को नहीं जानते हैं. कोई जो भी सुलूक चाहे उन के साथ कर सकता है. किसी ने पागलखाने में खबर की. हर रात  का तमाशा सब के लिए असहनीय होता जा रहा था. एक रात गाड़ी आई और उन्हें ले गई. मेरे पति सब देख कर आए थे. मन भर आया था उन का.

‘‘वह आंटीजी कैसे सजासंवार कर रखती थीं इस आदमी को. आज गंदगी का बोरा लग रहा था…बदबू आ रही थी.’’

आंखें भर आईं मेरी. सच ही कहा है कहने वालों ने कि काफी हद तक अपने जीवन के सुख या दुख का निर्धारण मनुष्य अपने ही अच्छेबुरे कर्मों से करता है. श्रीमती गोयल तो अपनी सजा भोग चुकीं, श्रीमान गोयल की सजा अब भी जारी है.

न उम्र की सीमा हो : क्या थी नलिनी की कहानी ?

story in hindi

जेनिफर मिस्त्री ने TMKOC के मेकर्स को फिर किया एक्सपोज ! वीडियो शेयर कर कही ये बात

Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah Controversy : छोटे पर्दे के सबसे चहेते शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ के प्रोड्यूसर ‘असित मोदी’ (Asit Modi) पिछले कई समय से लाइमलाइट में बने हुए हैं. प्रोड्यूसर के खिलाफ शो के कई कलाकारों ने गलत व्यवहार करने के साथ-साथ उनकी सैलरी नहीं देने के भी आरोप लगाए है. इसके अलावा शो में ‘रोशन’ का किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस ”जेनिफर मिस्त्री” ने ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ के प्रोड्यूसर असित मोदी, प्रोजेक्ट हेड और एक्जिक्यूटिव प्रोड्यूसर पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे.

वहीं अब एक बार फिर ”जेनिफर मिस्त्री” (Jennifer mistry) ने इस मामले में अपने ऑफिशियल इंस्टाग्राम अकाउंट पर वीडियो शेयर कर कई बड़े खुलासे किए हैं.

जेनिफर मिस्त्री ने मेकर्स के खिलाफ शेयर किया वीडियो

आपको बता दें कि एक्ट्रेस ”जेनिफर मिस्त्री” (Jennifer mistry) ने न्याय (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah Controversy) न मिलने के बाद अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर चार पार्ट में वीडियो शेयर किया है, जिसको देखने के बाद सोशल मीडिया पर हलचल तेज हो गई है.

जेनिफर (Jennifer mistry) ने वीडियो में बताया है कि, ”तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ शो के मेकर्स उनके साथ कैसा व्यवहार करते थे? उनका उनके सथ किस बात को लेकर विवाद हुआ था? इसके अलावा उन्होंने ये भी बताया कि, पुलिस अधिकारियों और अन्य अधिकारियों से उन्होंने कैसे संपर्क किया?”

एक्ट्रेस ने कहा, ”मुझे न्याय चाहिए पर इसके लिए मुझे मदद नहीं मिल रही है. मैं अपनी बेटी को ससुराल वालों के पास छोड़कर न्याय के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रही हूं. कार्यालयों में घंटों इंतजार करना पड़ता है. अब तो मुझे ऐसा लगता है कि जैसे मैं ही दोषी हूं. हालांकि इस बीच मेरे दोस्तों, सहकर्मियों और तो और समाज ने भी मुझसे बात करना बंद कर दिया है. लेकिन मैं न्याय पाने के लिए किसी भी स्तर तक जाऊंगी. मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि अधिकारियों और गवाहों को कितनी रिश्वत दी गई है. क्योंकि मैं सच बोल रही हूं. इसलिए न्याय पाना ही अब मेरे जीवन का उद्देश्य है.”

इसके आगे उन्होंने (Jennifer mistry) कहा, ”कर्म ही वास्तविक है. अधिकार क्षेत्र नहीं तो भगवान क्या न्याय करने के लिए कोई है.”

तारक मेहता ने भी लगाए थे आरोप

आपको बताते चलें कि ‘जेनिफर मिस्त्री’ के अलावा शो (Taarak Mehta Ka Ooltah Chashmah Controversy) में तारक मेहता का किरदार निभाने वाले एक्टर ”शैलेश लोढ़ा” (Shailesh Lodha) ने भी असित मोदी के खिलाफ केस दर्ज करवाया था.

Kangana से लेकर katrina तक, सॉलिड ‘हीरो’ के रोल में बड़े से बड़े एक्टर को टक्कर देती हैं ये 5 हसीनाएं

Politician Role in Films : हमेशा से ही हर क्षेत्र में नारी शक्ति का बोलबाला होता रहा है. इसी कड़ी में फिल्म इंडस्ट्री में भी कई फिल्में और वेब सीरीज ऐसी बन चुकी हैं, जिनमें हसीनाओं ने लीड रोल प्ले करके लाइमलाइट बटोरी है. एक्ट्रेस ने फिल्मों में न सिर्फ एक्शन किया बल्कि पॉलिटिशियन का भी दमदार किरदार निभाया है.

बीते सालों में बॉलीवुड एक्ट्रेस ”कंगना रनौत” (kangana ranaut) से लेकर ”कैटरीना कैफ” (katrina kaif) तक ने बड़े पर्दे पर पॉलिटिशियन का किरदार निभाकर लोगों का दिल जीता है. इसके अलावा अभिनेत्री ऋचा चड्ढा ने भी फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ में मुख्यमंत्री की जबरदस्त भूमिका निभाई है. गौरतलब है कि यह किरदार, न केवल स्टार्स के लिए चुनौतीपूर्ण होते हैं बल्कि दर्शकों के लिए देखने में भी नया अनुभव होता है.

तो आइए जानते हैं उन कुछ उम्दा अभिनेत्रीयों के बारे में जिन्होंने निडर होकर बड़े पर्दे पर ”पॉलिटिशियन” की भूमिका (Politician Role in Films) निभाई है.

 कंगना रनौत

भारतीय एक्ट्रेस और पॉलिटिशियन ‘जे जयललिता’ के जीवन पर आधारित फिल्म ‘थलाइवी’ बनाई गई है. जे जयललिता की बायोपिक में एक्ट्रेस ”कंगना रनौत” (kangana ranaut) ने उनका किरदार निभाया है. इस फिल्म में जयललिता के जीवन के साथ-साथ उनके गुरु एमजी रामचंद्रन के मार्गदर्शन से वह कैसे राजनीति में आई और उनके कार्यकाल को दिखाया गया है.

इसके अलावा फिल्म ‘थलाइवी’ में उस दौरान भारत में पुरुष-प्रधान राजनीतिक माहौल में पॉलिटिशियन जयललिता द्वारा झेले गए संघर्षों को भी दिखाया गया है. कंगना ने ये रोल इतने अच्छे से निभाया है कि हर कोई उनकी एक्टिंग का फैन हो गया है.

ऋचा चड्ढा

फिल्म ‘मैडम चीफ मिनिस्टर’ में एक्ट्रेस ”ऋचा चड्ढा” ने एक दलित महिला का किरदार निभाया है. जो बाद में उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनती हैं. गौर करने वाली बात ये है कि फिल्म में चीफ मिनिस्टर की भूमिका निभाना, ऋचा (richa chadha) के चतुर, निडर अंदाज व उनकी खुद की निर्भीकता को बखूबी दर्शाता है.

जूही चावला

हिन्दी फिल्मों की अभिनेत्री, मॉडल, फिल्म निर्माता और 1984 की मिस इंडिया विजेता ”जूही चावला” की एक्टिंग का हर कोई दीवाना है. उन्होंने (juhi chawla) अब तक के अपने करियर में एक से बढ़कर एक फिल्में दी हैं. फिल्म ‘गुलाब गैंग’ में उन्होंने पॉलिटिशियन सुमित्रा देवी का किरदार निभाया है, जो निडर होकर स्थानीय चुनाव लड़ने का फैसला करती है. जूही ने फिल्म में इतना जबरदस्त अभिनय किया था कि सोशल मीडिया पर फैंस ने उनकी तारीफों के पूल बांध दिए थे.

कीर्ति कुल्हारी

आपातकाल के दौर पर बनी फिल्म ‘इंदु सरकार’ में एक्ट्रेस ”कीर्ति कुल्हारी” (kirti kulhari) ने बहुत ही उम्दा एक्टिंग की है. फिल्म में इंदु अपनी नैतिकता की कसम खाती है और कार्यकर्ता बनती है.

कैटरीना कैफ

बॉलीवुड एक्टर ‘रणबीर कपूर’ और एक्ट्रेस ”कैटरीना कैफ” (katrina kaif) स्टारर फिल्म ‘राजनीति’ को दर्शकों का खूब प्यार मिला था. ये फिल्म राजनीति समर और इंदु के जीवन पर बेस्ड है, जिसका किरदार एक्ट्रेस कैटरीना कैफ ने निभाया है. वैसे तो कैटरीना के लिए ये किरदार काफी चुनौती भरा था. लेकिन उन्होंने ये रोल बखूबी निभाया था.

डाक्टर के पास जाते समय रखें इन बातों का ध्यान

गाहेबगाहे हम सभी को कभी न कभी डाक्टर के पास जाना ही पड़ता है. कुछ दिनों पहले मेरा भी एक डैंटिस्ट के यहां जाना हुआ. मेरे बगल वाली पेशेंट की सीट पर लेटी 30-35 वर्षीया युवा महिला इतने डीप गले का कुरता पहने थी कि कुरते के अंदर से उसका पूरा का पूरा वक्ष ही झांक रहा था, जिसके कारण डाक्टर ही बारबार स्वयं को असहज महसूस कर रहा था.

यह देखकर मैं सोचने लगी कि अमुक महिला बीमारी का इलाज करवाने आई है या किसी विज्ञापन की मौडलिंग करने. इसी प्रकार कुछ महिलाएं हौस्पिटल में भी बेहिसाब मेकअप और परफ्यूम स्प्रे करके जाती हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है मानो वे किसी हौस्पिटल में नहीं बल्कि फैशन परेड में जा रही हों.

कई बार लोग अपने जरूरी कागजात ही डाक्टर के पास ले जाना भूल जाते हैं और फिर ऐसे में पर्याप्त जानकारी के अभाव में डाक्टर को इलाज शुरू करने में परेशानी होती है. आप किसी भी प्रकार की बीमारी का इलाज करवाने जाएंतो डाक्टर के पास जाते समय इन कुछ बातों का ध्यान अवश्य रखें-

1सबसे पहले अपनी मैडिकल फाइल के समस्त कागजों को अपडेट करें और इसे अपने साथ अवश्य ले जाएं क्योंकि इसके माध्यम से ही डाक्टर आपकी केस हिस्ट्री जानकर इलाज शुरू कर सकेगा.

2 डैंटिस्ट के पास जाते समय ऐसा वस्त्र पहनें जिसका गला डीप न हो क्योंकि डाक्टर आपके दांतों का इलाज करते समय आपकी चेयर को काफी नीचे कर देता है और उसे आपके सिरहाने बैठना होता है. ऐसे में गहरे गले के बीच से झांकता आपका वक्षस्थल शोभा नहीं देता. इसके अतिरिक्त,डैंटिस्ट के पास हमेशा मुंह साफ करके जाएं और चूंकि दांतों के इलाज के दौरान आपको बारबार पानी से कुल्ला करना पड़ता है, इसलिए अपने साथ एक रूमाल अवश्य ले जाएं.

3 फिजियोथेरैपिस्ट के पास जाते समय सदैव ढीलेढाले वस्त्र पहनें. साथ ही, बंद या हाईनैक गले का कुरता या ब्लाउज पहनकर न जाएं क्योंकि ऐसे में आपके कंधे व पीठ पर मशीन लगाने में डाक्टर को परेशानी होती है. यहां पर साड़ी पहनकर जाने से भी बचें क्योंकि कुछ ऐक्सरसाइज ऐसी होती हैं जिनमें आपको पैर ऊपर करने होते हैं.

ऐसे में आपकी साड़ी ऊपर हो जाएगी और आप ठीक से ऐक्सरसाइज न कर पाएंगी. यदि आप सूट नहीं पहनती हैं तो साड़ी के अंदर लैगिंग्स या पैंट पहनकर जाएं ताकि आप पैर और कमर को सहजता से उपर उठा सकें.

4 गायनीकोलौजिस्ट के पास अपने अंतरंग हिस्सों को साफ करके और सदैव साड़ी पहनकर ही जाएं. इससे डाक्टर को तो चैकअप करने में सुगमता रहती ही है, साथ ही, आप भी स्वयं को असहज महसूस नहीं करतीं.

5 पैथोलौजिकल टैस्ट करवाने भी ढीलेढाले वस्त्र पहनकर ही जाएं ताकि बांह से सुगमता से खून लिया जा सके. साथ ही, यदि आपको खाली पेट आने को कहा गया है तो टैस्ट करवाने से पहले कुछ न खाएंपिएं.

6 डाक्टर के पास कभी भी हैवी ज्वैलरी पहनकर और मेकअप करके न जाएं.

7 एक्सरे और एमआरआई करवाने जाते समय ध्यान रखें कि आपके शरीर पर किसी भी प्रकार की धातु का गहना, सेफ्टी पिन, हेयर पिन और रबर बैंड आदि न हो.

8 डाक्टर के पास जाने से पहले घर पर शांति से बैठकर अपनी समस्यायों के बारे में अच्छी तरह मनन करें ताकि आप डाक्टर को विस्तार से समस्या बता सकें और उसके आधार पर डाक्टर आपका इलाज शुरू कर सके.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें