Top 10 Inspiration stories in hindi : सरिता डिजिटल लाया है लेटेस्ट प्रेरणा देने वाली कहानियाँ. तो पढ़िए वो छोटी-छोटी कहानियां. जो अवश्य ही आपके जीवन में लाएंगी सफलता के नए आयाम. दरअसल जीवन में कई बार हमें न चाहते हुए भी ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ जाता है जिससे निकलना हमारे लिए मुशकिल होता है. ऐसे में प्रेरणा की काफी आवश्यकता होती है. ‘सरिता’ पत्रिका भी मनुष्य जीवन की तमाम परेशानियों को भली भांति समझती है. इसलिए इसमें लिखित कहानियों से आप अपनी समस्याओं का समाधान आसानी से निकाल सकते हैं. साथ ही इन तमाम कहानियों को पढ़ने के बाद प्रेरणा भी मिलती है.
Special Motivational stories in hindi : सफलता की वो कहानियां जो बदल देंगी आपके जीवन को
1. माई दादू : बड़ों की सूझबूझ कैसे आती है लोगों के काम ?
‘‘हाय माई स्वीटी, दादू! आज आप इतना डल कैसे दिख रही हो? मैं तो मूड बना कर आया था आप के साथ बैडमिंटन खेलूंगा, लेकिन आप तो कुछ परेशान दिख रही हो.’’
‘‘अरे बेटा, कुश, बस तेरी इस लाड़ली बहन कुहु की फिक्र हो रही है. ये कुहु अंशुल के साथ अपने रिश्ते में इतना आगे बढ़ चुकी है पर अंशुल के पेरैंट्स इस रिश्ते से खुश नहीं. अब जब तक लड़के के मांबाप खुशीखुशी बहू को अपनाने के लिए राजी नहीं होते तो भला कोई रिश्ता अंजाम तक कैसे पहुंचेगा. मुझे तो बस यही फिक्र खाए जा रही है. मेरी तो कल्पना से परे है कि आज के जमाने में भी किसी की इतनी पिछड़ी सोच हो सकती है. आजकल जाति में ऊंचनीच भला कौन सोचता है. वे ऊंचे गोत्र वाले ब्राह्मण हैं तो हम भी कोई नीची जात के तो नहीं.’’
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2. कैप्टन नीरजा गुप्ता

लेह से मेरी नई पोस्टिंग श्रीनगर की एकवर्कशौप में हुई थी. मैं श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतरीतो मुझे वीआईपी लाउंज में पहुंच कर यूनिट केएडजूडेंट कैप्टन नसीर एहमद को फोन करना था, हालांकि, अधिकारिक तौर पर उन को मेरे आने की सूचनाथी. मैं ने नसीर साहब को फोन किया, ‘सर, गुडमौर्निंग. मैं कैप्टन नीरजा गुप्ता बोल रही हूंश्रीनगर ऐयरपोर्ट से. इस समय मैं वीआईपी लाउंज मेंहूं.’ ‘गुडमौर्निग, कैप्टन नीरजा. श्रीनगर में आप कास्वागत है. आप वीआईपी लाउंज में ही बैठें.
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3. मजबूत औरत : आत्मसम्मान के साथ जीती एक मां की कहानी

ऊषा ने जैसे ही बस में चढ़ कर अपनी सीट पर बैग रखा, मुश्किल से एकदो मिनट लगे और बस रवाना हो गई. चालक के ठीक पीछे वाली सीट पर ऊषा बैठी थी. यह मजेदार खिड़की वाली सीट, अकेली ऊषा और पीहर जाने वाली बस. यों तो इतना ही बहुत था कि उस का मन आनंदित होता रहता पर अचानक उस की गोद मे एक फूल आ कर गिरा. खिड़की से फूल यहां कैसे आया, वह इतना सोचती या न सोचती, उस ने गौर से फूल देखा तो बुदबुदाई, ‘ओह, चंपा का फूल’.
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4. घोंसला : वृद्धावस्था के संवेगों को उकेरती मर्मस्पर्शी कहानी

सुबह होतेहोते महल्ले में खबर फैल गई थी कि कोने के मकान में रहने वाले कपिल कुमार संसार छोड़ कर चले गए. सभी हैरान थे. सुबह से ही उन के घर से रोने की आवाजें आ रही थीं. पड़ोस में रहने वाले उन के हमउम्र दोस्त बहुत दुखी थे. वास्तव में वे मन से भयभीत थे.
उम्र के इस पड़ाव में जैसेतैसे दिन कट रहे थे. सब दोस्तों की मंडली कपिल कुमार के आंगन में सुबहशाम जमती थी. कपिल कुमार को चलनेफिरने में दिक्कत थी, इसलिए सब यारदोस्त उन के यहां ही एकत्रित हो जाते और फिर कभी कोई ताश की बाजी चलती तो कभी लूडो खेला जाता. कपिल कुमार की आवाज में खासा रोब था. ऊपर से जिंदादिली ऐसी कि रोते हुए को वे हंसा देते.
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5. न्याय : बेकसूर को न्याय दिलाने वाले व्यक्ति की दिलचस्प कहानी

पिछले वर्ष अपनी पत्नी शुभलक्ष्मी के कहने पर वे दोनों दक्षिण भारत की यात्रा पर निकले थे. जब चेन्नई पहुंचे तो कन्याकुमारी जाने का भी मन बन गया. विवेकानंद स्मारक तक कई पर्यटक जाते थे और अब तो यह एक तरह का तीर्थस्थान हो गया था. घंटों तक ऊंची चट्टान पर बैठे लहरों का आनंद लेते रहे और आंतरिक शांति की प्रेरणा पाते रहे. इस तीर्थस्थल पर जब तक बैठे रहो एक सुखद आनंद का अनुभव होता है जो कई महीने तक साथ रहता है.
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6. संकट की घड़ी : डॉक्टरों की परेशानियां कौन समझेगा ?

उस ने घड़ी देखी. 7 बजने को थे. मतलब, वह पूरे 12 घंटों से यहां लगा हुआ था. परिस्थिति ही कुछ ऐसी बन गई थी कि उसे कुछ सोचनेसमझने का अवसर ही नहीं मिला था.
जब से वह यहां इस अस्पताल में है, मरीज और उस के परिजनों से घिरा शोरगुल सुनता रहा है. किसी को बेड नहीं मिल रहा, तो किसी को दवा नहीं मिल रही. औक्सीजन का अलग अकाल है. बात तो सही है. जिस के परिजन यहां हैं या जिस मरीज को जो तकलीफ होगी, यहां नहीं बोलेगा, तो कहां बोलेगा. मगर वह भी किस को देखे, किस को न देखे.
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7. चाहत : एक गृहिणी की ख्वाहिशों की दिल छूती कहानी

‘थक गई हूं मैं घर के काम से. बस, वही एकजैसी दिनचर्या, सुबह से शाम और फिर शाम से सुबह. घर की सारी टैंशन लेतेलेते मैं परेशान हो चुकी हूं. अब मुझे भी चेंज चाहिए कुछ,’ शोभा अकसर ही यह सब किसी न किसी से कहती रहतीं. एक बार अपनी बोरियतभरी दिनचर्या से अलग, शोभा ने अपनी दोनों बेटियों के साथ रविवार को फिल्म देखने और घूमने का प्लान बनाया. शोभा ने तय किया इस आउटिंग में वे बिना कोई चिंता किए सिर्फ और सिर्फ आनंद उठाएंगी.
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8. राधेश्याम नाई : आखिर क्यों खास था राधेश्याम नाई ?
‘‘अरे भाई, यह तो राधेश्याम नाई का सैलून है. लोग इस की दिलचस्प बातें सुनने के लिए ही इस की छोटी सी दुकान पर कटिंग कराने या दाढ़ी बनवाने आते हैं. ये बड़ा जीनियस व्यक्ति है. इस की दुकान रसिक एवं कलाप्रेमी ग्राहकों से लबालब होती है, जबकि यहां आसपास के सैलून ज्यादा नहीं चलते. राधेश्याम का रेट भी सारे शहर के सैलूनों से सस्ता है. राधेश्याम के बारे में यहां के अखबारों में काफी कुछ छप चुका है.’’
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9. कशमकश : दो जिगरी दोस्त क्यों मजबूर हुए गोलियां बरसाने के लिए ?

मई 1948, कश्मीर घाटी, शाम का समय था. सूरज पहाड़ों के पीछे धीरेधीरे अस्त हो रहा था और ठंड बढ़ रही थी. मेजर वरुण चाय का मग खत्म कर ही रहा था कि नायक सुरजीत उस के सामने आया, और उस ने सैल्यूट मारा.
‘‘सर, हमें सामने वाले दुश्मन के बारे में पता चल गया है. हम ने उन की रेडियो फ्रीक्वैंसी पकड़ ली है और उन के संदेश डीकोड कर रहे हैं. हमारे सामने वाले मोरचे पर 18 पंजाब पलटन की कंपनी है और उस का कमांडर है मेजर जमील महमूद.’’
नायक सुरजीत की बात सुनते ही वरुण को जोर का धक्का लगा और चंद सैकंड के लिए वह कुछ बोल नहीं सका. फिर उस ने अपनेआप को संभाला और बोला, ‘‘शाबाश सुरजीत, आप की टीम ने बहुत अच्छा काम किया. आप की दी हुई खबर बहुत काम आएगी. आप जा सकते हैं.’’
सुरजीत ने सैल्यूट मारा और चला गया. उस के जाने के बाद वरुण सोचने लगा, ‘18 पंजाब-मेरी पलटन. मेजर जमील महमूद-मेरा जिगरी दोस्त. क्या मैं उस की जान ले लूं जिस ने कभी मेरी जान बचाई थी. यह कहां का इंसाफ होगा?’
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10. नारायण बन गया जैंटलमैन
कंप्यूटर साइंस में बीटैक के आखिरी साल के ऐग्जाम्स हो चुके थे और रिजल्ट आजकल में आने वाला था. कालेज में प्लेसमैंट के लिए कंपनियों के नुमाइंदे आए हुए थे. अभी तक की बैस्ट आईटी कंपनी ने प्लेसमैंट की प्रक्रिया पूरी की और नाम पुकारे जाने का इंतजार करने के लिए छात्रों से कहा. थोड़ी देर बाद कंपनी के मैनेजर ने सीट ग्रहण की और हौल में एकत्रित सभी छात्रों को संबोधित करते हुए प्लेसमैंट हुए छात्रों की लिस्ट पढ़नी शुरू की. ‘‘पहला नाम है जैंटलमैन नारायण का. नारायण स्टेज पर आएं और कंपनी में सेवाएं देने के लिए अपना फौर्म भरें. अगला नाम है…’’ कहते हुए उन्होंने कई नाम लिए. नारायण अपना नाम सुनते ही फूला न समाया. जब उस का नाम पुकारा गया तो हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.