कब्ज अमाशय की स्वाभाविक परिवर्तन की वह अवस्था है, जिसमें मल निष्कासन की मात्रा कम हो जाती है, मल कड़ा हो जाता है, उसकी आवृति घट जाती है या मल निष्कासन के समय अत्यधिक बल का प्रयोग करना पड़ता है. पेट में शुष्क मल का जमा होना ही कब्ज कहलाता है. कभी-कभी कब्ज की तकलीफ इतनी बढ़ जाती है कि बलपूर्वक मलत्याग पर खून भी आने लगता है. गुदा में जख्म हो जाता है और इन्फेक्शन का खतरा बढ़ जाता है. यदि कब्ज का जल्दी ही उपचार न किया जाये तो शरीर में कई दूसरी तकलीफें पैदा हो जाती हैं. कब्जियत का मतलब है प्रतिदिन पेट साफ न होना. एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में दो बार यानी सुबह और शाम मल त्याग के लिए जाना चाहिए. दो बार नहीं तो कम से कम एक बार तो अवश्य जाना चाहिए. नित्य सुबह मल त्याग करना अच्छे स्वास्थ्य की निशानी है.

आजकल की तेजरफ्तार जिन्दगी जंकफूड पर ज्यादा आधारित होती जा रही है. रेशेयुक्त भोजन, दालें, सलाद, सब्जियां हमारे खाने से गायब होती जा रही हैं, जिसकी परिणति कब्ज के रूप में सामने आती है. कब्ज एक आम समस्या बनती जा रही है. अगर इसका समय से उपचार न किया जाये तो यह बवासीर, शरीर में दर्द, सिरदर्द, ब्लॉटिंग, चक्कर, हाई बीपी, मुंह में छाले, पेट में अल्सर जैसी कई तकलीफों को बढ़ा देता है.

कब्ज का कारण छिपा है भोजन में

भोजन में फायबर की कमी कब्ज पैदा करती है. कम भोजन करने वालों को भी कब्ज सताता है. इसी के साथ पानी की कमी भी कब्ज को निमंत्रण देती है. दिन भर में आठ से दस गिलास पानी शरीर की जरूरत है. भोजन के पाचन में पानी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, ऐसे में कम पानी मल को अत्यंत सुखा देता है और यह मल अंतड़ियों में जमा होकर कब्ज पैदा करता है.

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