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उस रात का सच

महेंद्र को यकीन था कि हरिद्वार थाने में वह ज्यादा दिनों तक थानेदार के पद पर नहीं रहेगा, इसीलिए नोएडा के थाने में तबादला होते ही उस ने अपना बोरियाबिस्तर बांधा और रेलवे स्टेशन चला आया. रेल चलते ही हरिद्वार में गुजारे समय की यादें उस के सामने एक फिल्म की तरह गुजरने लगीं. दरअसल, हुआ ऐसा था कि रुड़की थाने में रहते हुए वहां के एक साधु द्वारा वहीं के लोकल नेताओं को लड़कियों के साथ मौजमस्ती कराते महेंद्र ने रंगे हाथों पकड़ा था और थाने में बंद कर दिया था.

यकीन मानिए, उन नेताओं को थाने में  लाए उसे 10 मिनट भी नहीं हुए थे कि डीएसपी साहब का फोन आ गया कि फलांफलां नेता को फौरन रिहा कर दो. महेंद्र बड़े अफसर का आदेश मानने को मजबूर था, इसलिए उसे उन नेताओं को फौरन रिहा करना पड़ा. चूंकि वे नेता सत्ताधारी दल से जुड़े थे, इसलिए उन्होंने महेंद्र का तबादला हरिद्वार थाने में करा दिया. हरिद्वार थाने में कुछ दिन महेंद्र चुपचाप बैठा अपना काम करता रहा, लेकिन जब एक दिन थाने में बैठ कर वह पुरानी फाइलें देख रहा था, तभी एक फाइल पर जा कर उस की नजर रुक गई. उस ने फाइल में दर्ज रिपोर्ट पढ़ी. उस रिपोर्ट में लिखा था,  ‘गंगाघाट आश्रम में रहने वाली गंगाबाई आश्रम की तिजोरी में से 10 हजार रुपए चुरा कर भागी.’

उसी फाइल के अगले पेज पर उस आश्रम के महंत और उस के एक शिष्य का बयान था,  ‘उस रात हम दोनों साधना करने के लिए पास की पहाड़ी पर बने मंदिर में गए थे. चूंकि इस बात की जानकारी गंगाबाई को थी, इसी बात का फायदा उठा कर उस ने हमारे कमरे में से तिजोरी की चाबी चुराई और उस में रखे 10 हजार रुपए चुरा कर भाग गई. आश्रम से एक रजाई भी गायब है.’

महेंद्र ने जब यह रिपोर्ट पढ़ी, तो उसे इस में कुछ गोलमाल लगा. उस ने तभी सबइंस्पैक्टर राकेश को बुलाया और उस से पूछा,  ‘‘राकेश, गंगाघाट आश्रम में हुई चोरी की तहकीकात क्यों नहीं की गई?’’ उस ने जबाब दिया,  ‘‘सर, थानेदार साहब ने मुझ से कहा था कि आश्रम का महंत इस मामले की जांच की तहकीकात में मदद नहीं कर रहा है, इसलिए इसे ऐसे ही पड़ा रहने दो. सो, तब से यह फाइल ऐसे ही पड़ी है.’’ राकेश के जाने के बाद महेंद्र को लगा कि हो न हो, इस मामले में कुछ राज जरूर है, जो महंत छिपा रहा है. उस ने तय किया कि इस मामले की तहकीकात वह खुद ही करेगा.

इस के बाद महेंद्र ने आश्रम पर पैनी नजर रखनी शुरू कर दी. एक दिन शाम को महेंद्र गंगाघाट आश्रम के सामने वाले होटल में बैठा था. उस की नजर आश्रम के गेट पर थी. उस ने देखा कि कुछ औरतें आश्रम के अंदर गई हैं और तकरीबन एक घंटे बाद निकलीं. यह देख कर महेंद्र सोच में पड़ गया कि ये औरतें इतनी देर तक आश्रम में क्या कर रही थीं? जैसे ही वे औरतें आश्रम से बाहर निकल कर होटल के पास आईं, तभी महेंद्र ने उन में से एक औरत से पूछा,  ‘‘बहनजी, क्या आश्रम में बहुत से मंदिर हैं, जो दर्शन करने के लिए बहुत देर लगती है?’’ वह औरत हंसी और बोली,  ‘‘भैया, आश्रम में तो एक भी मंदिर नहीं है. हम तो महंतजी के पास गई थीं. वे  लाइलाज बीमारियों का इलाज भी मुफ्त में करते हैं.’’

महेंद्र ने आगे पूछा,  ‘‘बहनजी, आप इन महंतजी के आश्रम में कब से आ रही हैं?’’

वह औरत बोली,  ‘‘आज तो मैं दूसरी ही बार आई हूं, लेकिन महंतजी कहते हैं कि तुम्हारी बीमारी गंभीर है. तुम्हें ठीक होने में 4-5 महीने तो लग ही जाएंगे,’’ इतना कह कर वह औरत चली गई.

एक दिन शाम को महेंद्र ने एक पुलिस वाले को उस आश्रम के बाहर बैठा दिया और उस से कहा, ‘‘कोई औरत अंदर से बाहर आए, तो उसे ले कर तुम मेरे पास आना.’’

उस दिन रात के 8 बजे वह पुलिस वाला एक 30-32 साला औरत को ले कर महेंद्र के घर आया. महेंद्र ने उसे बैठने के लिए कहा.

‘‘क्या आप आश्रम में नौकरी करती हैं?’’ महेंद्र ने पूछा.

‘‘नहीं सर. दरअसल, मेरी शादी हुए तकरीबन 7 साल हो गए हैं और अभी तक मेरी गोद नहीं भरी है. मेरे महल्ले की एक औरत ने मुझे बताया कि तू गंगाघाट आश्रम के महंत के पास जा. कुछ ही दिनों में तेरी गोद भर जाएगी, इसलिए आज मैं पहली बार वहां गई थी.’’

महेंद्र ने उस से यह जानकारी ली और उसे इस तसदीक के साथ जाने के लिए कहा,  ‘‘मैं ने तुम से जो जानकारी ली है, यह बात तुम किसी को मत बताना. यहां तक कि महंत को भी नहीं.’’

उन दोनों औरतों से मिली जानकारी संकेत दे रही थी कि हो न हो, उस आश्रम में कोई  ‘अपराध का अड्डा’ जरूर चल रहा है. सो, महेंद्र ने गंगाघाट आश्रम में हुई चोरी की घटना की तहकीकात जोरशोर से शुरू कर दी.

एक बार जब महेंद्र इसी सिलसिले में महंत से मिलने आश्रम गया, तो उस ने उसे इस मामले पर हाथ ही नहीं रखने दिया और बोला,  ‘‘जाने भी दीजिए. 10 हजार रुपए कोई बड़ी बात नहीं है. आप तो चाय पीजिए.’’

उस की होशियारी देख महेंद्र के मन में शक और भी गहरा गया.

एक दिन रात को जब महेंद्र गश्त के लिए निकला, तो देखा कि वह महंत अपने शिष्य के साथ पहाड़ी पर जा रहा था. उस के पहाड़ी पर जाते ही महेंद्र गंगाघाट आश्रम के अंदर पहुंचा. वहां उसे भोलाराम नाम का एक आदमी मिला.

‘‘तुम यहां क्या करते हो? ’’ महेंद्र ने पूछा.

‘‘सर, आप मुझे इस आश्रम का मैनेजर भी कह सकते हैं और चौकीदार भी. सच तो यह है कि यहां का सारा काम मैं ही संभालता हूं. अब मेरी उम्र 70 पार हो चली है, इसलिए समय काटने के लिए मैं यहां रहता हूं. मैं ईमानदार आदमी हूं, इसलिए महंत ने मुझे अपने पास रखा है,’’ उस आदमी ने बताया.

‘‘तुम ईमानदार हो और सच्चे भी लगते हो. अच्छा, यह बताओं कि तुम्हारे आश्रम में रहने वाली गंगाबाई कैसी औरती थी? क्या वाकई वह चोरी कर सकती है?’’ महेंद्र ने पूछा.

वह आदमी बोला,  ‘‘सर, मैं आप से झूठ नहीं बोलूंगा. दरअसल, गंगाबाई इस आश्रम में झाड़ूपोंछे का काम करती थी. वह  ‘सुंदर’ तो थी ही, लेकिन  ‘जवान’ होने से कामकाज में बहुत तेज भी थी.

‘‘जब मैं नयानया इस आश्रम में आया, तब गंगाबाई ने ही मुझे बताया था कि महंतजी का नित्यक्रम एकदम पक्का है. वे सुबह मुझ से एक गिलास दूध मंगवाते हैं, फिर उस में अपने पास रखे काजूबदाम और अन्य मेवे मिलाते हैं और उसी का सेवन करते हैं. फिर दोपहर में केवल 2 रोटी खाते हैं. इसी तरह शाम को भी उन का यही नित्यक्रम रहता है.’’

‘‘उस दिन उस की यह बात सुन कर मुझे हंसी आ गई थी. तब गंगाबाई ने मुझ से पूछा भी था,  ‘भोला भैया, तुम्हें हंसी क्यों आई?’

‘‘सर, मुझे हंसी इसलिए आई थी कि उस की बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया था कि एक दिन में 2-2 गिलास  मेवे वाला दूध पी कर यह महंत उसे हजम कैसे करता होगा? क्योंकि वह अपने कमरे से कभीकभार ही बाहर जाता है.

‘‘सर, गंगाबाई का पति इसी आश्रम में रहता था. मेरे यहां आने से पहले आश्रम का सारा काम वही देखता था. कुछ दिनों से मैं ने उस में एक बरताव देखा था कि वह रोजाना रात को शराब पी कर आश्रम में आने लगा था. तब मेरे मन में सवाल भी उठा था कि उस के पास शराब पीने के लिए पैसे कहां से आते हैं?

‘‘एक दिन मुझ से रहा नहीं गया और मैं ने गंगाबाई से पूछ ही लिया,  ‘बहन, तुम रोजाना अपने पति को शराब पीने के लिए पैसे क्यों देती हो?’

‘‘तब वह बोली थी,  ‘भोला भैया, मेरे पति को शराब पीने के लिए पैसे मैं नहीं देती हूं, बल्कि खुद महंतजी ही देते हैं.’’’

उस दिन उस आदमी के मुंह से ऐसी बातें सुन कर महेंद्र भी दंग रह गया था.

उस आदमी ने आगे बताया, ‘‘एक दिन जब रात को गंगाबाई का पति शराब पी कर आया, तब महंतजी ने उस की सरेआम पिटाई की और आश्रम के गेट से उसे बाहर धकेलते हुए कहा,  ‘तू रोजाना शराब पी कर आश्रम के नियमों को तोड़ता है. अब तू इस आश्रम में नहीं रह सकेगा. आज के बाद तू मुझे कभी अपना मुंह मत दिखाना.’

‘‘सर, उस रात उस का पति जो इस आश्रम से गया, तो आज तक उस का पता नहीं चला कि वह कहां है? जिंदा भी है या नहीं?

‘‘गंगाबाई भी अपने पति के साथ यहां से जाना चाहती थी, लेकिन उसी दिन महंत का एक शिष्य आश्रम में आया और उस ने महंतजी को कह कर उसे आश्रम से नहीं जाने दिया. महंत और उस का शिष्य रोजाना मेवे वाला दूध गंगाबाई के हाथों से पीते रहे.’’

‘‘एक दिन महंतजी ने मुझ से कहा,  ‘कुछ दिन के लिए तुम अपने ऋषिकेश वाले आश्रम जा कर रहो और वहां का इंतजाम देखो.’

‘‘सर, समय कब रुका है, जो रुकता. मैं एक महीने बाद दोबारा इस आश्रम में आ गया.

‘‘एक दिन सुबहसुबह गंगाबाई दौड़ीदौड़ी अपने कमरे से बाहर निकली और बाथरूम में जा कर उलटियां करने लगी. जब उस की इस हरकत पर महंतजी और उन के शिष्य की भी नजर पड़ी, तब शिष्य बोला,  ‘गुरुजी, कुछ गड़बड़ लगती है. गंगा सुबह से कई बार उलटियां कर चुकी है. मुझे लगता है कि वह पेट से हो गई है.’

‘‘शिष्य के मुंह से ऐसी बात सुनते ही महंत के माथे पर पसीना आ गया. वे बोले, ‘जैसेजैसे इस का पेट बढ़ता जाएगा, अपने पाप का घड़ा लोगों के सामने आने लगेगा. फिर जो लोग हमें साधुसंन्यासी मान कर पूजते हैं, वे ही हमारा मुंह काला कर के हमें सरेबाजार घुमाएंगे. अगर इस मुसीबत को हम ने जल्दी से नहीं निबटाया, तो हम निबट जाएंगे.’

‘‘सर, उस रात का सच आप को बता रहा हूं. वह अमावस की काली रात थी. जब रात को गंगाबाई उन्हें दूध देने उन के कमरे में गई, तभी उन्होंने उस के मुंह में कपड़ा ठूंसा, फिर गला दबा कर उस की हत्या कर दी और आधी रात के बाद रात के अंधेरे में  महंत के शिष्य ने उस की लाश एक रजाई में लपेटी और उसे गंगा में बहा आया.

‘‘उस के बाद उन दोनों ने तिजोरी से रुपए निकाल कर उसे खुला छोड़ दिया, ताकि  लगे कि यहां चोरी की वारदात हुई है.

‘‘सर, उस रात हुई हत्या और चोरी के बहुत से सुबूत मैं ने अपने पास महफूज रखे हैं. मेरी भी यही इच्छा थी कि साधु के रूप में छिपे इन अपराधी भेडि़यों को मैं सलाखों के पीछे देखूं, लेकिन जब आप के पहले के थानेदार ने इस केस में दिलचस्पी नहीं दिखाई, इसलिए मैं उन के सामने इन सुबूतों को नहीं लाया. अब मैं इस मामले से जुड़े सारे सुबूत आप को सौंप दूंगा.’’

‘‘अच्छा भोला भैया, यह बताओ कि यहां शाम ढले रोजाना कुछ औरतें अपनी लाइलाज बीमारी के इलाज के लिए आती हैं, जो कुछ  गोद भर जाने की चाह में. इस का क्या राज है?’’ महेंद्र ने धीरे से पूछा.

भोला बोला,  ‘‘सर, यह महंत और उस का शिष्य भोलीभाली औरतों को उन की लाइलाज बीमारी को मुफ्त में ठीक करने के बहाने यहां बुलाते हैं. तकरीबन 2 महीने तक जड़ीबूटियों के नाम पर पहाड़ी पर लगे पेड़ों की डालियों को पीस कर उन्हें दूध में पिलाया जाता है और जब वे औरतें इस महंत पर पूरा विश्वास करने लगती हैं, तब बारीबारी से, एकएक को दूध में  नशे की गोलियां मिला कर बेहोश किया जाता है और फिर ये उन के जिस्म के साथ अपनी हवस पूरी करते हैं. बेचारी इज्जत खो चुकी औरतें शर्म के मारे किसी को कुछ नहीं बतातीं और चुपचाप घर में बैठ जाती हैं.’’

‘‘लेकिन, आश्रम में गोद भरने ये औरतें किस आस पर आती हैं?’’ महेंद्र ने भोला से पूछा.

‘‘सर, यह महंत ऐसी हवा अपने बारे में फैलाता है कि गंगाघाट के आश्रम के महंत को सिद्धि प्राप्त हुई है और उन के आशीर्वाद से बांझ औरतों को भी बच्चे हो जाते हैं.

‘‘हमारा यह महंत गोद भरने की चाह रखने वाली औरतों को रात को आश्रम में बुलाता है, उन को 2-4 बार पूजापाठ और हवनों में बैठाता है, फिर एक  फल हाथ में दे कर उस के कान में धीरे से कहता है कि जब हम आदेश करें, तब इसे अपने मुंह में रखना. देखना, तुम्हारी गोद जल्दी ही भर जाएगी.

‘‘फिर उस औरत को महंत के कमरे के पास वाले अंधियारे कमरे में जाने के लिए कहा जाता है. वहां पहुंचते ही महंत का शिष्य उस औरत के कान में धीरे से कहता है, ‘आज तुम्हारी गोद भरने का  शुभ दिन है. देखना, आज चमत्कार होगा और महंतजी की कृपा से तुम्हारी गोद भर जाएगी. तुम इस फल को आंख बंद कर के खाती रहो.

‘‘जब वह औरत बिना कपड़ों में चमत्कार होने की राह देख रही होती है, तभी कभी यह महंत, तो कभी उस का शिष्य उस को उस अंधियारे कमरे में शिकार बनाते हैं. आखिर  मेवे वाला दूध कभी तो अपना असर दिखाएगा ही न?

‘‘अपनी लुटी इज्जत को ढकने के चक्कर में ऐसी औरतें इन पाखंडियों की करतूत किसी को नहीं बतातीं, इसलिए इन की यह दुकानदारी चलती रहती है.’’

‘‘अगर मैं महंत के खिलाफ ऐक्शन लूं, तो क्या तुम गवाही दोगे?’’ महेंद्र ने भोलाराम से पूछा.

‘‘सर, मैं यह सब लिख कर भी देने को तैयार हूं,’’ भोलाराम ने पूरे जोश के साथ कहा.

भोलाराम के बयान और उस के द्वारा दिए सुबूतों के आधार पर महेंद्र ने अगले ही दिन महंत और उस के शिष्य को गिरफ्तार कर लिया.

महंत और उस के शिष्य को गिरफ्तार हुए 2 घंटे भी नहीं हुए थे कि महेंद्र को आईजी और डीएसपी से संदेश मिलने शुरू हो गए कि उस महंत को तत्काल रिहा करो और उस के खिलाफ जो सुबूत है, उन्हें जला कर नष्ट कर दो.

जब महेंद्र ने आईजी साहब से कहा,  ‘‘सर, उस महंत के खिलफ मेरे पास पुख्ता सुबूत हैं.’’

तब आईजी बोले,  ‘‘मिस्टर, थोड़ी मेरी बात समझने की भी कोशिश करो. उस महंत का प्रभाव इतना ज्यादा है कि हम पर भी ऊपर से लगातार दबाव आ रहा है.’’

महेंद्र ने आईजी साहब से कहा,  ‘‘सर, मैं उन्हें रिहा नहीं कर सकता.’’

तब वे बोले,  ‘‘फिर तुम मेरा यह और्डर भी सुन लो, तुम्हारा तबादला  नोएडा थाने में किया जाता है. तुम तत्काल नोएडा थाने में जा कर मुझे सूचना दो.’’

रेल एकदम से रुक गई. मालूम करने पर पता चला कि किसी ने चेन खींची थी. रेल के रुकते ही इंस्पैक्टर महेंद्र यादों के साए से बाहर निकल कर हकीकत की दुनिया में आ गया. तब भी उस के मन में यह एकदम पक्का था कि वह किसी भी थाने मे क्यों न रहे, उस के काम करने का तरीका यही रहेगा, चाहे फिर तबादले कितने ही क्यों न होते रहें.

गलतियां सभी से होती हैं

दुलहन के जोड़े में सजी रोली बेहद ही खूबसूरत और आकर्षक लग रही थी. वैसे तो रोली प्राकृतिक रूप से खूबसूरत थी, परंतु आज ब्यूटीपार्लर के ब्राइडल मेकअप ने उस के चेहरे पर चार चांद लगा दिया था, किंतु उस के कमनीय चेहरे पर आकुलता थी. उस की नजरें रिसेप्शन में आ रहे मेहमानों पर ही टिकी हुई थीं. उस की निगाहें बेसब्री से किसी के आने का इंतजार कर रही थीं.

रोली को इस प्रकार परेशान देख वीर उस के हाथों को थामते हुए बोला, “क्या बात है? आर यू ओके?”

रोली होंठों पर फीकी सी मुसकान लिए बोली, “यस… आई एम ओके, परंतु थोड़ी सी थकान लग रही है.”

ऐसा सुनते ही वीर ने कहा, “पार्टी तो काफी देर तक चलेगी. तुम चाहो तो कुछ देर रूम में रिलैक्स हो कर आ जाओ.”

वीर के ऐसा कहने पर रोली रूम में चली आई और फौरन मोबाइल फोन निकाल नंबर डायल करने लगी. फोन बजता रहा, लेकिन किसी ने नहीं उठाया.रोली दुखी हो कर वहीं सोफे पर पसर गई.

उसे डौली आंटी याद आने लगी. आज वह जो भी है, उन्हीं की वजह से है वरना वह तो इस महानगरी में गुमनामी की जिंदगी जीने की ओर अग्रसर थी. वो डौली आंटी ही थीं, जिन्होंने वक्त पर उस का हाथ थाम लिया और वह उस गर्त में जाने से बच ग‌ई.

आज उस का प्यार वीर उस के साथ है. यह भी डौली आंटी की ही देने है. पर, अब तक वे आई क्यों नहीं? उन्होंने तो वादा किया था कि वे अंकल के साथ उस की शादी में जरूर आएंगी.

यही सब सोचती हुई रोली वहां पहुंच गई. अपने परिवार वालों से जिद कर वह एक सफल इंटीरियर डिजाइनर बनने का इरादा मन में ठाने जब अपने छोटे से शहर जौनपुर से दिल्ली आई थी.

यहां दिल्ली यूनिवर्सिटी में आ कर उस ने जो देखा, उसे देख वह भौंचक्की सी रह गई. यहां सभी लड़केलड़कियां बिना किसी पाबंदी के उन्मुक्त बिंदास अंदाज में खुल कर जीता देख रोली खुशी से उछल पड़ी. ऐसा उस ने पहले कभी नहीं देखा था.यहां ना तो कोई किसी को रोकने वाला था और ना ही कोई टोकने वाला, जैसा चाहो वैसा जियो.

रोली भी अब आजाद पंछी की भांति आकाश में उड़ने को तैयार थी.

वहां जौनपुर में दादी, मम्मीपापा, चाचाचाची, ताऊ यहां तक कि उस का छोटा भाई भी उस पर बंदिशें लगाता. हर छोटीबड़ी बातों के लिए उसे अनुमति लेनी पड़ती, परंतु यहां ऐसा कुछ नहीं था.

यहां रोली स्वयं अपनी मरजी की मालकिन थी. वह वो सब कर सकती थी, जो उस का दिल चाहता.

दिल्ली में आने के पश्चात रोली अपना लक्ष्य भूल यहां के चकाचौंध में खो गई. वह तो अपनी रूम पार्टनर रागिनी के संग जिंदगी के मजे लूटने लगी.

रागिनी उस से एक साल ‌सीनियर थी और हर मामले में स्मार्ट, र‌ईस लड़कों को अपनी अदाओं से रिझाना, उन्हें फांसना और उन से पैसे खर्च कराना, ये सारे हुनर उसे बखूबी आते थे, लेकिन रोली इन सब बातों से बेखबर बस रागिनी के बोल्डनेस और उस के बिंदास जीने के अंदाज की कायल थी.

रोली बिना सोचेसमझे कालेज में दिखावा और खुद को मौडल बताने के चक्कर में पैसे खर्च करने लगी. उसे इस बात का भी खयाल ना रहा कि वह एक मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार से ताल्लुक रखती है, जहां पैसे हिसाब से खर्च किए जाते हैं.

अपने घर की सारी परिस्थितियों से भलीभांति अवगत होने के बावजूद रोली रागिनी के रंग में रंगने लगी. केवल अब तक वह सिगरेट और शराब से बची हुई थी, लेकिन रागिनी को बिंदास धुआं उड़ाते, कश लगाते और पी कर लहराते देख कभीकभी उस का भी मन करता, लेकिन ना जाने कौन सी बात उसे रोक लेती. इस बार पैसे खत्म होने पर जब उस ने घर पर मां को फोन किया, तो मां भरे कंठ से बोली, “रोली, देखो बेटा हम हर महीने तुम्हें जितने पैसे भेजते हैं, तुम उसी से खर्च चलाने की कोशिश करो अन्यथा तुम्हें यहां वापस आना पड़ेगा.”

मां और भी कुछ कहना चाहती थीं, लेकिन उन के कहने से पहले ही रोली ने फोन काट दिया. होस्टल के कमरे में आई, तो उस ने देखा कि रागिनी अपना सारा सामान समेट कर कहीं जाने की तैयारी में है. यह देख रोली बोली, “कहां जा रही हो?”

रागिनी हंसते हुए अपने दोनों हाथ रोली के कंधे पर टिकाती हुई बोली, “ऐश करने, मेरी जान.”

रोली आश्चर्य से रागिनी को देखने लगी, तभीरागनी धुआं उड़ाती हुई बोली, “नहीं समझी मेरी मोम की भोली गुड़िया, मैं सौरभ के पास जा रही हूं. अब हम दोनों साथ ही रहेंगे. उस के बाप के पास बहुत माल है. उसे उड़ाने के लिए कोई तो चाहिए ना, सो मैं जा रही हूं. वैसे भी सौरभ मुझ पर लट्टू है.”

यह सुनते ही रोली बोली, “लेकिन…”

रागिनी उसे बीच में ही टोकती हुई बोली, “लेकिन क्या…? माई स्विट हार्ट मुझे मालूम है कि मैं क्या कर रही हूं. मेरी मान तो तू भी होस्टल छोड़ करबकिसी पीजी में रहने चली जा, फिर बिंदास रहना अपने वीर के साथ, समय पर होस्टल लौटने का कोई लफड़ा नहीं, अच्छा चलती हूं… फिर मिलते हैं,” कहती हुई रागिनी झूमते हुए चली गई.

रागिनी के होस्टल से चले जाने के पश्चात रोली भी कुछ दिनों में होस्टल छोड़ पीजी में डौली आंटी के यहां आ गई.

यहां आने के बाद उसे पता चला कि यहां रहना इतना आसान नहीं है. लोग डौली आंटी के बारे में तरहतरह की बातें किया करते थे. कोई उन्हें खड़ूस, कोई पागल, तो कोई उन्हें सीसीटीवी कहता, क्योंकि उन की नजरों से कुछ भी छुपना नामुमकिन था. आसपड़ोस की महिलाएं तो उन से बात करने से भी कतरातीं, सब कहतीं कि न जाने कब ये सनबकी बुढ़िया किस बात पर सनक जाए.

डौली आंटी की टोकाटाकी की वजह से कोई ज्यादा दिनों तक यहां टिकता भी नहीं था, लेकिन रोली का अब यहां रहना मजबूरी था, क्योंकि वह होस्टल छोड़ चुकी थी और सब से बड़ी बात डौली आंटी पैसे भी कम ले रही थी, यहां से कालेज की दूरी भी ज्यादा नहीं थी, जिस की वजह से बस और रिकशा के पैसे भी बच रहे थे और साथ ही साथ डौली आंटी के हाथों में वो जादू था कि वह जो भी खाना बनाती स्वादिष्ठ और लजीज होता, उस में बिलकुल मां के हाथों का स्वाद होता.

सब ठीक था, लेकिन डौली आंटी की टोकाटाकी और जरूरत से ज्यादा हस्तक्षेप रोली को नागवार गुजरने लगा. वह वीर के साथ भी वैसे समय नहीं बिता पा रही थी, जैसा उस ने सोचा था.
जब उस ने वीर से इस बारे में बात की, तो वह कहने लगा, “आंटी स्ट्रिक्ट है तो क्या हुआ… वह तुम्हारा भला ही चाहती है. 1-2 साल में मेरा प्रमोशन हो जाएगा. कंपनी की ओर से मुझे फ्लेट भी मिल जाएगा और तुम्हारा ग्रेजुएशन भी पूरा हो जाएगा, फिर हम शादी कर साथ रहेंगे.”

वीर से यह सब सुन रोली स्तब्ध रह ग‌ई. वह तो उस से शादी करना ही नहीं चाहती. वह तो बस वीर को अपनी खूबसूरती और मोहपाश के झूठे जाल में केवल पैसों के लिए बांध रखी थी और वह भी रागिनी के कहने पर, लेकिन अब वीर उस से शादी की सोच रहा है. यह जान कर रोली विचलित हो ग‌ई.

अपसेट रोली घर पहुंची, तो उस ने देखा कि डौली आंटी और अंकल कहीं जाने की तैयारी में हैं. उसे देखते ही आंटी बोली, “रोली बेटा मैं और अंकल एक शादी में जा रहे हैं. कल रात तक लौटेंगे. तुम अपना और घर का खयाल रखना, रात को दरवाजा अच्छी तरह बंद कर लेना,” इतना कह कर वे दोनों चले गए.

परेशान रोली को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे. तभी रागिनी का फोन आया.

रोली उसे फोन पर सारी बातें बता कर इस समस्या से बाहर निकलने का हल पूछने लगी, तो रागनी ने कहा, “डोंट वरी डियर, आज रात मैं तेरे रूम पर आती हूं. दोनों पार्टी करते हैं और सोचते हैं कि क्या करना है.”

रोली नहीं चाहती थी कि रागिनी आए, लेकिन वह उसे मना ना कर सकी. रागिनी शराब, सिगरेट और दो चीज पिज्जा ले कर पहुंची.

ये सब देख कर रोली चिढ़ती हुई बोली, “तू ये सब क्या ले कर आई है? आंटी को पता चल गया, तो वह मुझे निकाल देगी.”

“चिल यार… किसी को कुछ पता नहीं चलेगा. वैसे भी आंटी तो कल रात तक लौटेंगी?” कहती हुई रागिनी एक गिलास में शराब डालती हुई धुआं उड़ाने लगी.

रोली भी वीर की बातों से परेशान तो थी ही, वह भी सिगरेट सुलगा कर पीने लगी. तभी रागिनी अपने बैग से एक छोटी सी पुड़िया निकाल कर रोली को देती हुई बोली, “इसे ट्राई कर… ये जादू की पुड़िया है. इसे लेते ही तेरी सारी परेशानी उड़नछू हो जाएगी.”

यह सुन कर रोली पुड़िया खोल कर एक ही बार में ले ली. पुड़िया लेने के कुछ समय पश्चात वह बेहोश होने लगी. यह देख कर रागिनी उसे उसी हालत में छोड़ भाग गई.

जब रोली को होश आया, तो उस ने स्वयं को अस्पताल के बेड पर लेटा पाया, जहां एक ओर डौली आंटी डबडबाई आंखों से स्टूल पर बैठी थी और अंकल डाक्टर से कुछ बातें कर रहे थे.

रोली को होश में आया देख आंटी ने रोली का माथा चूम लिया. रोली घबराई हुई डौली आंटी की ओर देखने लगी, तभी आंटी रोली का हाथ अपने हाथों में लेती हुई बोली, “शादी में पहुंचने के बाद मैं ने रात को क‌ई दफे तुम्हें फोन किया, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला, किसी अनहोनी के भय से हम उसी वक्त घर लौट आए. यहां आ कर देखा, तो बाहर का दरवाजा खुला था और तुम बेहोश पड़ी थी. पूरे कमरे में शराब की बोतल, सिगरेट और ड्रग्स के पैकेट पड़े थे. हम समझ गए कि आखिर माजरा क्या है.”

फिर आंटी लंबी सांस लेते हुए बोली, “तुम सब यह सोचते हो ना कि मैं इतनी खड़ूस, इतनी स्ट्रिक्ट क्यों हूं. मैं ऐसी इसलिए हूं, क्योंकि इसी ड्रग्स की वजह से मैं ने अपने एकलौते बेटे को खोया है…

“और मैं यह नहीं चाहती कि कोई भी मांबाप अपने बच्चे को इस वजह से खोए. मेरा बेटा भी तुम्हारी तरह आंखों में क‌ई सुनहरे सपने लिए बीई की पढ़ाई करने जालंधर गया था, लेकिन वहां जा कर वह बुरी संगत में पड़ ड्रग्स लेने लगा, क्योंकि वहां कोई रोकटोक करने वाला नहीं था और हर कोई बस यही सोचता था कि हमें क्या करना…?

“एक बार सप्ताहभर उस ने कोई फोन नहीं किया, हमारे फोन लगाने पर वह फोन भी नहीं उठा रहा था, तब हम परेशान हो कर उस के पास पहुंचे, तो पता चला कि वह ड्रग्स की ओवरडोज के कारण हफ्तेभर से अपने कमरे में बेहोश पड़ा है. उसे देखने वाला कोई नहीं था. हम उसे उसी हालत में यहां ले आए, लेकिन बचा ना सके.”

यह सब कहती हुई डौली आंटी फूटफूट कर रो पड़ी. रोली की आंखों के कोर में भी पानी आ गया.

आंटी ने आगे बताया कि तुम भी ड्रग्स के ओवरडोज की वजह से बेहोश पड़ी थी. आज पूरे 2 दिन बाद तुम्हें होश आया है.

यह सुन कर रोली की आंखें शर्म से झुक गईं. तभी आंटी बोली, “बेटी, गलतियां तो सभी से होती हैं, लेकिन उन गलतियों से सबक ले कर आगे बढ़ना ही जीवन है. अक्लमंदी और समझदारी इसी में है कि वक्त रहते उन्हें सुधार लिया जाए .”

फिर आंटी मुसकराती हुई बोली, “वीर एक अच्छा लड़का है. तुम्हें बहुत प्यार भी करता है और शायद तुम भी, वरना पिछले डेढ़ साल में रागिनी की तरह तुम भी क‌ई बौयफ्रेंड बदल चुकी होती.

“वीर तुम्हें क‌ई बार फोन कर चुका है, मैं ने उस से कहा है कि तुम हमारे साथ शादी में आई हो और अभी काम में व्यस्त हो.”

खटखट की आवाज से रोली वर्तमान में लौट आई. दरवाजा खोलते ही डौली आंटी और अंकल सामने खड़े थे. उन्हें देखते ही रोली आंटी से लिपट रो पड़ी, उसे शांत कराती हुई आंटी बोली, “रोते नहीं बेटा, अब तुम एक सफल इंटीरियर डिजाइनर हो. तुम सफलता के उस शिखर पर हो, जहां पहुंचने का सपना लिए तुम इस महानगरी में आई थीं. आज खुशी का दिन है,अब आंसू पोंछो और चलो वीर तुम्हारा पार्टी में इंतजार कर रहा है.”

जिंदगी बदगुमां नहीं : जिंदगी के भंवर में फंस चुके युवक की कहानी

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हिंदी फिल्मों में काम क्यों नहीं करना चाहते Mahesh Babu ? जानें कारण

Mahesh Babu : हिंदी और साउथ सिनेमा में हमेशा से ही एक तकरार रही है. जहां साउथ की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर ताबड़तोड़ कमाई करती हैं. तो वहीं हिंदी की ज्यादातर फिल्में अपने बजट के पैसे भी नहीं निकाल पाती थी. लेकिन अब समय बदल रहा है. पिछले कुछ समय में केजीएफ, पु्ष्पा, आरआरआर और केजीएफ चैप्टर 2 को दर्शकों का जहां खूब प्यार मिला है. तो वहीं पठान, गदर 2, जवान और रॉकी और रानी की प्रेम कहानी भी लोगों के बीच अपनी जगह बनाने में कामयाब रही.

इसके अलावा साउथ सिनेमा के तमाम स्टार्स भी हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में धीरे-धीरे अपनी जगह बना रहे हैं. तो वहीं तमिल सुपरस्टार ”महेश बाबू” बॉलीवुड में काम करने से कतराते हैं. उन्होंने अब तक के अपने करियर में किसी भी हिंदी फिल्म में काम नहीं किया है. तो आइए जानते हैं उस कारण (Why Mahesh Babu not to work in bollywood) के बारे में जिस वजह से एक्टर ”महेश बाबू” हिंदी फिल्मों में काम नहीं करते हैं.

वजह जानकर हो जाएंगे हैरान

आपको बता दें कि फिल्म ‘मेजर’ के ट्रेलर लॉन्च के दौरान मीडिया को दिए इंटरव्यू में अभिनेता ”महेश बाबू” (Mahesh Babu) ने बताया था कि क्यों वो हिंदी फिल्मों में काम नहीं करना चाहते हैं. एक्टर ”महेश” का कहना था कि, ‘बॉलीवुड उन्हें अफोर्ड नहीं कर सकती इसलिए वो वहां जाकर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहते. वो पैन इंडिया स्टार नहीं बनना चाहते हैं और वो तेलुगू में ही खुश हैं.

इसी के साथ उन्होंने ये भी कहा था कि, ‘वैसे तो उन्हें बॉलीवुड फिल्मों के ऑफर मिलते रहते हैं लेकिन वो तेलुगू के लिए ही सिनेमा बनाना चाहते हैं क्योंकि वो इससे ज्यादा खुश नहीं होना चाहते.’ हालांकि बाद में ”महेश बाबू” को अपने इस बयान के चलते खूब आलोचना का सामना भी करना पड़ा था. सोशल मीडिया पर लोगों ने उनके खिलाफ एक जंग सी छेड़ दी थी.

एक्टर के चाहने वालों की नहीं है कोई कमी

आपको बताते चलें कि बेशक ”महेश बाबू” (Mahesh Babu) ने अभी तक हिंदी फिल्मों में काम नहीं किया है. लेकिन ‘कोल्ड ड्रिंक’ और ‘टोबैको’ प्रोडक्ट की ऐड के जरिए उन्हें साउथ के साथ-साथ दुनियाभर में प्रसिद्धी मिली है. इसके अलावा साउथ की हिंदी डब फिल्मों में भी लोग एक्टर को देख चुके हैं और इसी वजह से बॉलीवुड में भी उनके चाहने वालों की कोई कमी नहीं हैं.

करोड़ों के मालिक हैं महेश बाबू

आपको बता दें कि ”महेश बाबू” (Mahesh Babu) के हैदराबाद स्थित घर को सबसे महंगे घरों में एक माना जाता हैं, जिसमें स्विमिंग पूल से लेकर जिम, मिनी थिएटर सहित कई आलीशान चीजें है. इसके अलावा उनके घर का नाम साल 2012 में आई ‘फोर्ब्स की सेलिब्रिटी 100 लिस्ट’ में भी शामिल हुआ था. इसी के साथ एक्टर के नाम पर हैदराबाद की जुबिली हिल्स में तीस करोड़ रुपए की कीमत के दो बड़े बंगले, बेंगलुरु में भी कई प्रॉपर्टीज, एक करोड़ रुपए से ज्यादा की कई महंगी गाड़ियां और 7 करोड़ रुपए की एक वैनिटी वैन भी हैं.

वहीं ‘डॉटकॉम कंपनी’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक ”महेश बाबू” एक फिल्म के लिए लगभग 55 करोड़ रुपए चार्ज करते हैं. इसी के साथ फिल्मों के प्रॉफिट में से कमीशन भी लेते हैं. इसी हिसाब से उनकी नेटवर्थ करीब 135 करोड़ रुपये हैं. इसके अलावा एक्टर ब्रांड्स एंडोर्समेंट से भी 15 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई कर लेते हैं. साथ ही उनका एक प्रोडक्शन हाउस भी है.

विजया दशमी : नरेन्द्र मोदी के शगुन अपशगुन

दशहरा उत्सव में हमारे समाज में “शगुन अपशगुन” के अनेक मिथक है, जो भारतीय समाज की खामियों को ही रेखांकित करते है. चिंता की बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने विजयादशमी के पर्व पर जब अपने संबोधन में शगुन की बात की और यह जता दिया कि आज भी 21वीं शताब्दी में जब भारत चांद पर पहुंच चुका है देश का प्रधानमंत्री शगुन और अपशगुन के घेरे में फंसा हुआ हैं. ऐसे में आम

आदमी अगर अपनी अशिक्षा, अपने अज्ञान के कारण अगर शगुन अपशगुन की दुविधा में फंसा हुआ है तो उसे पर सिर्फ दया की जा सकती है.
मगर देश का प्रधानमंत्री अगर “शगुन अपशगुन” के आधार पर निर्णय लेने लगे और यही संदेश देने लगे तो देश एक बार फिर 16वीं शताब्दी में पहुंच गया समझना चाहिए.

दरअसल,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विजयादशमी पर्व पर समाज में जातिवाद और क्षेत्रवाद जैसी विकृतियों को जड़ से खत्म करने का आह्वान तो किया. मगर प्रधानमंत्री स्वयं शगुन अपशगुन के फेर में उलझ गए. नरेन्द्र मोदी ने नई दिल्ली में द्वारका सेक्टर-10 में श्री चरका श्रीरामलीला में 101 फीट लंबे रावण पुतले का दहन किया और अपने लंबे संबोधन में शगुन के महत्व को बताने से नहीं चुके जब देश का प्रधानमंत्री शगुन अपशगुन में जीने लगे तो इसका मतलब यह है कि देश की जनता उनका अनुसरण करेगी और देश का विकास अवरूद्ध होना तय है.

वेशभूषा और आचार विचार

दुनिया देख रही है कि नरेंद्र मोदी की शख्सियत कैसी है. स्वयं को हमेशा समाज और दुनिया के आगे आगे रखने वाले नरेंद्र मोदी की कलाई शायद स्वयं खुल गई है.

आश्चर्य की बात है कि अपने आप को प्रगति शील बताने जताने वाले नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने कहा – यह हर किसी का सौभाग्य है कि वे सदियों के इंतजार के बाद अब अयोध्या में एक भव्य राम मंदिर के निर्माण का गवाह बन रहे हैं, जब प्रभु श्रीराम का जन्म हुआ था, तब अयोध्या में शगुन होने लगा था. सभी का मन प्रसन्न होने लगा और पूरा नगर रमणीक बन गया. ऐसे ही शगुन आज हो रहे आज भारत चंद्रमा पर विजयी हुआ है. हम दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने जा हे हैं. हमने कुछ सप्ताह पहले संसद की नई इमारत प्रवेश किया है. नारी शक्ति को प्रतिनिधित्व देने के लिए संसद ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम पारित किया है. यह हमें सौभाग्य मिला है कि हम भगवान राम का भव्य मंदिर बनता श्री रामलीला सो देख पा रहे हैं.अयोध्या की अगली रामनवमी पर राम लला के मंदिर में गूंज हर स्वर पूरे

विश्व को हर्षित करने वाला होगा. वो स्वर जो शताब्दियों से यहां कहा जाता है भय प्रगट कृपाला, दीनदयाला कौसल्या हितकारी.”
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस तरह शगुन और अपशगुन की महत्ता को प्रतिपादित किया और आगे कहा -“भगवान राम की जन्मभूमि पर बन रहा मंदिर सदियों की प्रतीक्षा के बाद हम भारतीयों के धैर्य को मिली विजय का प्रतीक है. उस हर्ष की परिकल्पना कीजिए, जब शताब्दियों के बाद राम मंदिर में भगवान राम की प्रतिमा विराजेगी.”

नरेंद्र मोदी ने कहा -” इस बार हम विजयादशमी तब मना रहे हैं, जब चंद्रमा पर हमारी विजय को 2 महीने पूरे हुए हैं. विजयादशमी पर शस्त्र पूजा का भी विधान है. भारत की धरती पर शस्त्रों की पूजा किसी भूमि पर आधिपत्य नहीं, बल्कि उसकी रक्षा के लिए की जाती है. नवरात्र की शक्तिपूजा का संकल्प शुरू होते समय हम कहते हैं- या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै, नमस्तस्यै नमो नमः जब पूजा पूर्ण होती है तो हम कहते है- देहि सौभाग्य आरोग्य देहि मे परमं सुखम, रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषोजहि …. यानि हमारी शक्ति पूजा सिर्फ हमारे लिए नहीं, पूरी सृष्टि के सौभाग्य, आरोग्य, सुख, विजय और यश के लिए की जाती है. भारत का दर्शन और विचार यही है. हम गीता का ज्ञान भी जानते हैं और आईएनएस विक्रांत और तेजस का निर्माण भी जानते हैं.” प्रधानमंत्री ने कहा कि हम श्री राम की मर्यादा भी जानते हैं और अपनी सीमाओं की रक्षा करना भी जानते हैं. हम शक्ति पूजा का संकल्प भी जानते हैं और कोरोना में ‘सर्व संतु निरामया’ का मंत्र भी मानते हैं.”

प्रधानमंत्री ने अपने संबोधन में कहा -” आज भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र होने के साथ सबसे विश्वस्त लोकतंत्र के रूप में उभर रहा है और दुनिया देख रही है ये लोकतंत्र की जननी है. इन सुखद क्षणों के बीच अयोध्या के राम मंदिर में प्रभु श्री राम विराजने जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि एक तरह से आजादी के 75 साल बाद अब भारत के भाग्य का उदय होने जा रहा है. लेकिन यही वो समय भी है, जब भारत को बहुत सतर्क रहना है. हमें ध्यान रखना है कि आज रावण का दहन बस एक पुतले का दहन ना हो, वे दहन हो हर उस विकृति का जिसके कारण समाज का आपसी सौहार्द बिगड़ता है. इस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक तरह से प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए देश की आवाम को शगुन और अपशगुन से जोड़कर यह संदेश दे दिया है कि देश के कोने-कोने में रहने वाले आम जन हो या विशिष्ट सभी को इसका ध्यान रखना चाहिए यह विजयदशमी का संदेश भारत को आगे नहीं ले जा सकता यह पीछे ही ले जाएगा जो की एक दुर्भाग्य जनक बात है.

मैं 2 साल से अपनी चाची के साथ संबंध बना रहा हूं, समझ नहीं आ रहा ये सही है या गलत ?

सवाल

मैं 20 वर्षीय युवक हूं. मेरे अपनी चाची के साथ 2 वर्षों से शारीरिक संबंध हैं और शारीरिक संबंधों के परिणामस्वरूप इस समय वे गर्भवती भी हैं. लेकिन इस अवस्था में भी वे मेरे साथ शारीरिक संबंध कायम रखना चाहती हैं. मैं मना करता हूं तो धमकी देती हैं कि वे हमारे संबंधों के बारे में पूरे परिवार को बता देंगी. मैं बहुत परेशान हूं औैर इस सब से निकलना चाहता हूं.

जवाब

पहले आप ने अपनी चाची के साथ शारीरिक संबंध बना कर बहुत बड़ी गलती की और चाची ने भी आप का फायदा उठाया. लेकिन अब जब स्थिति आप के नियंत्रण से बाहर हो गई है तो अब उस से निकलना चाहते हैं. माना कि इस सब में आप की चाची की भी गलती है लेकिन आप को उन का साथ नहीं देना चाहिए था. लेकिन अब पछताने से कुछ नहीं हो सकता.

वर्तमान स्थिति में अगर चाची आप को धमकी दे रही हैं परिवार वालों को सब सच बताने की तो इस में आप की बदनामी ज्यादा होगी हालांकि इस सब में उन की खुद की भी बदनामी होगी.

बहरहाल, इस चक्रव्यूह से निकलने के लिए आप को साफ शब्दों में चाची को शारीरिक संबंधों के लिए न कहना होगा, वरना आप की चाची आप को भविष्य में भी ब्लैकमेल करती रहेंगी.

रामलाल की घर वापसी

सात आठ घंटे के सफर के बाद बस ने गांव के बाहर ही उतार दिया था . कमला को भी रामलाल ने अपने साथ बस से उतार लिया था.

“देखो कमला तुम्हारा पति जब तुम्हारे साथ इतनी मारपीट करता है तो तुम उसके साथ क्यों रहना चाहती हो ”

कमला थोड़ी देर तक खामोश बनीं रही . उसने कातर भाव से रामलाल की ओर देखा

“पर …….”

“पर कुछ नहीं तुम मेरे साथ चलो”

“तुम्हारे घर के लोग मेरे बारे में पूछेंगे तो क्या कहोगे”

“कह दूंगा  कि तुम मेरी घरवाली हो, जल्द बाजी में ब्याह करना पड़ा”.

कमला कुछ नहीं बोली .दोनों के कदम गांव की ओर बढ़ गये .

रामलाल के सामने विगत एक माह में घटा एक एक घटनाक्रम चलचित्र की भांति सामने आ रहा था .

रामलाल शहर में मजदूरी करता था . ब्याह नहीं हुआ था इसलिए जो मजदूरी मिलती उसमें उसका खर्च आराम से चल जाता . थोड़े बहुत पैसे जोड़कर वह गांव में अपनी मां को भी भैज देता .गांव में एक बहिन और मां ही रहते हैं . एक बीघा जमीन है पर उससे सभी की गुज़र बसर होना संभव नहीं था .गांव में मजदूरी मिलना कठिन था इसलिए उसे शहर आना पड़ा .शहर गांव से तो बहुत दूर था “पर उसे कौन रोज-रोज गांव आना है” सोचकर यही काम करने भी लगा था . एक छोटा सा कमरा किराए पर ले लिया था . एक स्टोव और कुछ बर्तन . शाम को जब काम से लौटता तो दो रोटी बना लेता और का कर सो जाता . दिन भर का थका होता इसलिए नींद भी अच्छी आती . वह ईमानदारी से काम करता था इस कारण से सेठ भी उस पर खुश रहता . वह अपनी मजदूरी से थोड़े पैसे सेठ के पास ही जमा कर देता

” मालिक जब गांव जाऊंगा तो आप से ले लूंगा ‘ .उसे सेठ पर भरोसा था .

साल भर हो गया था उसे शहर में रहते हुए . इस एक साल में वह अपने गांव जा भी नहीं पाया था .उस दिन उसने देर तक काम किया था . वह अपने कमरे पर देर से पहुंचा था .जल्दबाजी में उसे ध्यान ही नहीं रहा कि वो सेठ से कुछ पैसे ले ले . उसने अपनी जेब टटोली दस का सिक्का उसके हाथ में आ गया “चलो आज का खर्चा तो चल जाएगा कल सेठ से पैसे मिल ही जायेंगे” .रामलाल ने गहरी सांस ली . दो रोटी बनाई और खाकर सो गया .

सुबह जब वह नहाकर काम पर जाने के लिए निकला तो पता चला कि पुलिस वाले किसी को घर से निकलने ही नहीं दे रहे हैं . सरकार ने लांकडाउन लगा दिया है . बहुत देर तक ऐ वह इसका मतलब ही नही समझ पाया .केवल यही समझ में आया कि वो आज काम पर नहीं जा पाएगा .वह उदास कदमों से अपने कमरे पर लौट आया . मकान मालिक उसके कमरे के सामने ही मिल गया था.

“देखो रामलाल लाकडाउन लग गया है महिने भर का .कोई वायरस फैल रहा है . तुम एक काम करो कि जल्दी से जल्दी कमरा खाली कर दो”

रामलाल वैसे ही लाकडाउन का मतलब नहीं समझ पाया था उस पर वायरस की बात तो उसे बिल्कुल भी समझ में नहीं आई ।

“कमरा खाली कर दो …. मुझसे कोई गल्ती हो गई क्या ?’

“नहीं पर तुम काम पर जा नहीं पाओगे तो कमरे का किराया कैसे दोगे”

“क्या महिने भर काम बंद रहेगा “?

“हां घर से निकलोगे तो पुलिस वाले डंडा मारेंगे”.

रामलाल के सामने अंधेरा छाने लगा .उसके पास तो केवल दस का सिक्का ही है . वह कुछ नहीं बोला उदास क़दमों से अपने कमरे में आ कर जमीन पर बिछी दरी पर लेट गया .

उसकी नींद जब खुली तब तक शाम का अंधेरा फैलने लगा था . उसने बाहर निकल कर देखा . बाहर सुनसान था . उसे पैसों की चिंता सता रही थी यदि वह कल ही सेठ से पैसे ले लेता तो कम से खाने की जुगाड़ तो हो जाती . यदि वह सेठ के पास चला जाए तो सेठ उसे पैसे अवश्य दे सकते हैं . उसने कमरे से फिर बाहर की ओर झांका बहुत सारे पुलिस वाले खड़े थे. उसकी हिम्मत बाहर निकलने की नहीं हुई .वह फिर से दरी पर लेट गया . उसकी नींद जब खुली उस समय रात के दो बज रहे थे . भूख के कारण उसके पेट में दर्द सा हो रहा था .वह उठा “दो रोटी बना ही लेता हूं दिन भर से कुछ खाया कहां है” .स्टोव जला लिया पर आटा रखने वाले डिब्बे को खोलने की हिम्मत नहीं हो रही थी .वह जानता था कि उसमें थोड़ा सा ही आटा शेष है .यदि अभी रोटी बना ली तो कल के लिए कुछ नहीं बचेगा .उसने निराशा के साथ डिब्बा खोला और सारे आटे को थाली में डाल लिया . दो छोटी छोटी रोटी ही बन पाई . एक रोटी खा ली और दूसरी रोटी को डिब्बे में रख दिया .

सुबह हो गई थी .उसने बाहर झांक कर देखा .पुलिस कहीं दिखाई नहीं दी  . वह कमरे से बाहर निकल आया . उसके कदम सेठ के घर की ओर बढ़ लिए . सेठ का घर बहुत दूर था छिपते छिपाते वह उनके घर के सामने पहुंच गया था .दिन पूरा निकल आया था .यह सोचकर कि सेठ जाग गये होंगे ,उसके हाथ बाहर लगी घंटी पर पहुंच गए थे .उनके नौकर ने दरवाजा खोला था

“जी मैं रामलाल हूं सेठ के ठेके पर काम करता हूं”

“हां तो…..

“मुझे कुछ पैसे चाहिए हैं”

“हां तो ठेके पर जाना वहीं मिलेंगे, सेठजी घर पर नौकरों से नहीं मिलते”

“पर वो लाकडाउन लग गया है न तो काम तो महिने भर बंद रहेगा”

“तभी आना…”

“तुम एक बार उनसे बोलो तो वो मुझे बहुत चाहते हैं ”

“अच्छा रूको मैं पूछता हूं” . नौकर को  शायद दया आ गई थी उस पर .

नौकर के साथ सेठ ही बाहर आ गए थे .उनके चेहरे पर झुंझलाहट के भाव साफ़ झलक रहे थे जिसे रामलाल नहीं पढ़ पाया . सेठ जी को देखते ही उसने झुक कर पैर पड़ने चाहे थे पर सेठ ने उसे दूर से ही झटक दिया .

“अब तुम्हारी हिम्मत इतनी हो गई कि घर पर चले आए”

“वो सेठ जी कल आपसे पैसे ले नहीं पाया था , मेरे पास बिल्कुल भी पैसे नहीं हैं, ऊपर से लाकडाउन हो गया है इसलिए आना पड़ा” . रामलाल ने सकपकाते हुए कहा .

“चल यहां से बड़ा पैसे लेने आया है, मैं घर पर लेन-देन नहीं करता”

सेठ ने उसे खूंखार निगाहों से घूरा तो रामलाल घबरा गया .उसने सेठ जी के पैर पकड़ लिए “मेरे पास बिल्कुल भी पैसे नहीं हैं थोड़े से पैसे मिल जाते हुजूर” .

सेठ ने उसे ठोकर मारते हुए अंदर चला गया .हक्का-बक्का रामलाल थोड़ी देर तक वहीं खड़ा रहा .उसे समझ में ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे.तभी पुलिस की गाड़ियों के आने की आवाज गूंजने लगी . वह भयभीत हो गया और भागने लगा .छिपते छिपाते वह अपने कमरे के नजदीक तक तो पहुंच गया पर यहीं गली में उसे पुलिस वालों ने पकड़ लिया .वह कुछ बोल पाता इसके पहले ही उसके ऊपर डंडे बरसाए जाने लगे थे . रामलाल दर्द से कराह उठा . अबकी बार पुलिस वालों ने गंदी गंदी  गालियां देनी शुरू कर दी थी . तभी एक मोटरसाइकिल पर सवार कुछ नवयुवक आकर रुक गये . उन्होंने ने पुलिस वालों से कुछ बात की . पुलिस ने उन्हें जाने दिया . रामलाल भी इसी का फायदा उठा कर वहां से खिसक लिया . वह हांफते हुए अपने कमरे की दरी पर लेट गया । उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे जिन्हें पौंछने वाला कोई नहीं था . उसे अपनी मां की याद सताने लगी.

“क्या हुआ बेटा रो क्यों रहा है”

“कुछ नहीं मां पीठ पर दर्द हो रहा है”

“अच्छा बता मैं मालिश कर देती हूं”

मां की याद आते ही उसके आंसुओं की रफ्तार बढ़ गई थी . रोते-रोते वह सो गया था . दोपहर का समय ही रहता होगा जब उसकी आंख खुली .उसका सारा बदन दुख रहा था . पुलिस वालों ने उसे बेदर्दी से मारा था  वह कराहता हुआ उठा .बहुत जोर की भूख लगी थी . वह जानता था कि डिब्बे में अभी एक रोटी रखी हुई है .

सूखी और कड़ी रोटी खाने में समय लगा .वह अब क्या करे ? उसके सामने अनेक प्रश्न थे .

मकान मालिक ने दरवाजा भी नहीं खटखटाया था सीधे अंदर घुस आया था ” तुम कमरा कब खाली कर रहे हो”

वह सकपका गया

“मैं इस समय कहां जाऊंगा, आप कुछ दिन रूक जाओ, माहौल शांत हो जाने दो ताकि मैं दूसरा कमरा ढूंढ सकूं”

रामलाल हाथ जोड़कर खड़ा हो गया था .

“नहीं माहौल तो मालूम नहीं कब ठीक होगा तुम तो कमरा कल तक खाली कर दो…. नहीं तो मुझे जबरदस्ती करनी पड़ेंगी” . कहता हुआ वह चला गया . रामलाल को समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे .वह चुपचाप बैठा रहा ।.अभी तो उसे शाम के खाने की भी फ़िक्र थी .

सूरज ढलने को था .रामलाल अभी भी वैसे ही बैठा था खामोश और वह करता भी क्या? . उसने कमरे का दरवाजा जरा सा खोलकर देखा . बाहर पुलिस नहीं थी , वह बाहर निकल आया . थोड़ी दूर पर उसे कुछ भीड़ दिखाई दी .वह लड़खड़ाते हुए वहां पहुंच गया .कुछ लोग खाने का पैकेट बांट रहे थे . वह भी लाईन में लग गया .हर पैकेट को देते हुए वो फोटो खींच रहे थे इसलिए समय लग रहा था . उसका नंबर आया एक व्यक्ति ने उसके हाथ में खाने का पैकेट रखा साथ के और लोग उसके चारों ओर खड़े हो गए .कैमरे का फ्लेश चमकने लगा .फोटो खिंचवा कर वो लोग जा चुके थे . रामलाल भी अपने कमरे कीओर लौट पड़ा “चलो ऊपर वाले ने सुन ली आज के खाने का इंतजाम तो हो गया, इसी में से कुछ बचा लेंगे तो सुबह का लेंगे” .

 

उसे बहुत जोरों से भूख लगी थी इसलिए कमरे में आते ही उसने पैकेट खोल लिया था . पैकेट में केवल दो मोटी सी पुड़ी थीं और जरा सी सब्जी .सब्जी बदबू मार रहीथी ,शायद वह खराब हो गई थी .हक्का-बक्का रामलाल रोटियों को कुछ देर तक यूं ही देखता रहा फिर उसने मोटी पुड़ी को चबाना शुरू कर दिया . दरी पर लेट कर वह भविष्य के बारे में सोचने लगा . वह अब क्या करें । कमरा भी खाली करना है .अपने गांव भी नहीं लौट सकता क्योंकि ट्रेने और बस बंद हो चुकी है, पैसे भी नहीं है . वह समझ ही नहीं पा रहा था कि वह करे तो क्या करें . उसने फिर से ऊपर की ओर देखा कमरे से आसमान दिखाई नहीं दिया पर उसने मन ही मन भगवान को अवश्य याद किया .

‌उसे सुबह ही पता लगा था कि सरकार की ओर से खाने की व्यवस्था की गई है इसलिए वह ढ़ूढ़ते हुए यहां आ गया था . उसके जैसे यहां बहुत सारे लोग लाईन में लगे थे . वे लोग भी मजदूरी करने दूसरी जगह से आए थे . यहीं उसकी मुलाकात मदन से हुई थी जो उसके पास वाले जिले में था .  उसे से ही उसे पता चला कि बहुत सारे मजदूर शाम को पैदल ही अपने अपने गांव लौट रहे हैं मदन भी उनके साथ जा रहा है .रामलाल को लगा कि यही अच्छा मौका है उसे भी इनके साथ गांव चले जाना चाहिए . पर क्या इतनी दूर पैदल चल पायेगा . पर अब उसके पास कोई विकल्प है भी नहीं यदि मकान मालिक ने जबरन उसे कमरे से निकाल दिया तो वह क्या करेगा .गहरी सांस लेकर उसने सभी के साथ गांव लौटने का मन बना लिया .

शाम को वह अपना सामान बोरे में भरकर निर्धारित स्थान पर पहुंच गया जहां मदन उसका इंतज़ार कर रहा था . सैंकड़ों की संख्या में उसके जैसे लोग थे जो अपना अपना सामान सिर पर रखकर पैदल चल रहे थे .इनमें बच्चे भी थे और औरतें भी .रात का अंधकार फैलता जा रहा था पर चलने वालों के कदम नहीं रूक रहे थे .कुछ अखबार वाले और कैमरा वाले सैकड़ों की इस भीड़ की फोटो खींच रहे थे . इसी कारण से पुलिस वालों ने उन्हें घेर लिया था  .वो गालियां बक रहे थे और लौट जाने का कह रहे थे .भीड़ उनकी बात सुन नहीं रही थी . पुलिस ने जबरन उन्हें रोक लिया था “आप सभी की जांच की जाएगी और रूकने की व्यवस्था की जाएगी कोई आगे नहीं बढ़ेगा” लाउडस्पीकर से बोला जा रहा था .सारे लोग रूक गये थे. एक एक कर सभी की जांच की गई .फिर सभी को इकट्ठा कर आग बुझाने वाली मशीन से दवा छिड़क दी गई . दवा की बूंदें पड़ते ही रामलाल की आंखों में जलन होने लगी थी . मदन भी आंख बंद किए कराह रहा था और भी लोगों को परेशानी हो रही थी पर कोई सुनने को तैयार ही नहीं था .दवा झिड़कने वाले कर्मचारी उल्टा सीधा बोल रहे थे . सारे लोगों को एक स्कूल में रोक दिया गया था . सैकड़ों लोग और कमरे कम . बिछाने के लिए केवल दरी थी . पानी के लिए हैंडपंप था . महिलाओं के लिए ज्यादा परेशानी थी . दो रोटी और अचार खाने को दे दिया गया था .

“साले हरामखोरों ने परेशान कर दिया” बड़बड़ाता हुआ एक कर्मचारी जैसे ही निकला एक महिला ने उसे रोक लिया “क्या बोला ….हरामखोर … अरे हम तो अच्छे भले जा रहे थे हमको जबरन रोक लिया और अब गाली दे रहे हैं” .

महिला की आवाज सुनकर और भी लोग इकट्ठा हो गए थे .

“सालों को जमाई जैसी सुविधाएं चाहिए …”

वह फिर बड़बड़या .

“रोकने की व्यवस्था नहीं थी तो काहे को रोका…दो सूखी रोटी देकर अहसान बता रहे हैं” . किसी ने जोर से बोला था ताकि सभी सुन लें . पर साहब को यह पसंद नहीं आया . उन्होंने हाथ में डंडा उठा लिया था “कौन बोला…जरा सामने तो आओ.. यहां मेरी बेटी की बारात लग रही है क्या ….जो तुम्हें छप्पन व्यंजन बनवाकर खिलवायें”.

सारे सकपका गये .वे समझ चुके थे कि उन्हें कुछ दिन ऐसे ही काटना पड़ेंगे .छोटे से कमरे में बहुत सारे लोग जैसे तैसे रात को सो लेते और दिन में बाहर बैठे रहते .बाथरूम तक की व्यवस्था नहीं थी औरतें बहुत परेशान हो रहीं थीं .कोई नेताजी आए थे उनसे मिलने .वहां के कर्मचारियों ने पहले ही बता दिया था कि कोई नेताजी से कोई शिकायत नहीं करेगा इसलिए बाकी  सारे लोग तो खामोश रहे पर एक बुजुर्ग महिला खामोश नहीं रह पाई . जैसे ही नेताजी ने मुस्कुराते हुए पूछा “कैसे हो आप लोग…. हमने आपके लिए बहुत सारी व्यवस्थाएं की है उम्मीद है आप अच्छे से होंगे”

बुजुर्ग महिला भड़क गई

“दो सूखी रोटी और सड़ी दाल देकर अहसान बता रहे हो .”

किसी को उम्मीद नहीं थी .सभी लोग सकपका गये . एक कर्मचारी उस महिला की ओर दोड़ा ,पर महिला खामोश नहीं हुई “हुजूर यहां कोई व्यवस्था नहीं है हम लोग एक कमरे में भेड़ बकरियों की तरह रह रहे हैं ”

नेताजी कुछ नहीं बोले .वे लौट चुके थे . उनके जाने के बाद सारे लोगों पर कहर टूट पड़ा था .

सरकार ने बस भिजवाई थी ताकि सभी लोग अपने अपने गांव लौट सकें . मदन और रामलाल एक ही बस में बैठ रहे थे ,तभी किसी महिला के रोने की आवाज सुनाई दी थी .उत्सुकता वश वो वहां पहुंच गया था .एक आदमी एक औरत के बाल पकड़ पीठ पर मुक्के मार रहा था . वह औरत दर्द से बिलबिला रही थी .

“इसे क्यों मार रहे हो भाई” रामलाल से सहन नहीं हो रहा था .

“ये तू बीच में मत पड़, ये मेरी घरवाली है समझ गया तू”

उसने अकड़ कर कहा

“अच्छा घरवाली है तो ऐसे मारोगे”

“तुझे क्या जा अपना काम कर”

रामलाल का खून खौलने लगा था “पर बता तो सही इसने किया क्या है”

“ये औरत मनहूस है इसके कारण ही मैं परेशान हो रहा हूं” ,कहते हुए उसने जोर से औरत के बाल खीचे .वह दर्द से रो पड़ी . रामलाल सहन नहीं कर सका . उसने औरत का हाथ पकड़ा और अपनी बस में ले आया .

“तुम  मेरे साथ बैठो देखता हूं कौन माई का लाल है जो तुम्हें हाथ लगायेगा”.

औरत बहुत देर तक सुबकती रही थी . कमला नाम बताया था उसने . उसने तो केवल यह सोचा था कि उसके आदमी का गुस्सा जब शांत हो जायेगा तो वो ही उसे ले जायेगा .पर वो उसे लेने नहीं आया “अच्छा ही हुआ उसने उसका जीवन खराब कर रखा था, पर वह यह जायेगी कहां” . प्रश्न तो रामलाल के थे पर उतर उसके पास नहीं था .बस से उतर कर उसने उसे साथ ले जाने का फैसला कर लिया था .

रामलाल के साथ कमला भी सोचती हुई कदम बढ़ा रही थी . उसे नहीं मालूम था कि उसका भविष्य क्या है पर रामलाल उसे अच्छा लगा था . वह जिन यातनाओं से होकर गुजरी है शायद उसे उनसे छुटकारा मिल जाए .

मां बाहर आंगन में बैठी ही मिल गई थी .

वह उनसे लिपट पड़ा ” मां….” उसकी आंखों से आंसू बह रहे थे . रो तो मां भी रही थी , जब से लाकडाउन लगा था तब से ही मां उसके लिए बैचेन थीं . उन्होंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लिया था .दोनों रो रहे थे , कमला चुपचाप मां बेटे को रोता हुआ देख रही थी .अपने आंसू पौंछ कर उसने कमला की ओर इशारा किया “मां आपकी बहु…..”

चौंक गईं मां ” बहु ….. तूने बगैर मुझसे पूछे ब्याह रचा लिया ….?”

“वो मां मजबूरी थी लाकडाउन के कारण…. गांव आना था इसे कहां छोड़ता…. बेसहारा है न मां”

मां ने नजर भर कर कमला को देखा

“चल अच्छा किया”

मां ने कमला का माथा चूम लिया.

रूपदिवानी : मोहजाल का जादू

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धार्मिक कट्टरता से तबाह पाकिस्तान, क्या भारत भी चला इसी राह

पाकिस्तानी अवाम बढ़ती महंगाई को ले कर सड़कों पर है. चारों तरफ हायतोबा मची है. लोग भूखों मर रहे हैं. लोगों के पास न रोटी है न रोजगार. राजनीतिक अस्थिरता और बिगड़ती आर्थिक स्थिति ने पड़ोसी देश पाकिस्तान में महंगाई के एक नए तुफान को जन्म दे दिया है.

पाकिस्तान के सिर पर आज 100 अरब डौलर से ज्यादा का विदेशी कर्ज है. उच्च ब्याज दर और जर्जर आर्थिक हालात के कारण कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार न्यूनतम स्तर पर आ चुका है. ऐसे में पाकिस्तान के ऊपर डिफौल्ट होने का खतरा भी मंडरा रहा है.

इतिहास गवाह है कि जो राष्ट्र धार्मिक कट्टरता की नींव पर खड़ा हुआ वे या तो तबाह हो गए या तबाह होने की राह पर हैं. धर्म की दकियानूसी मान्यताओंप्रथाओं ने ऐसे राष्ट्रों की कभी तरक्की नहीं होने दी. इस के उलट जिन देशों ने धर्म को नागरिकों के व्यक्तिगत सीमा में रख कर आधुनिक शिक्षा, नई खोजों, आविष्कारों और अनुसंधानों पर ध्यान दिया वे तेजी से तरक्की के रास्ते पर बढ़ गए. आज भारत चंद्रयान-3 को चांद पर सफलतापूर्वक लैंड करवा कर जहां इतिहास बना चुका है, वहीं पाकिस्तान में मौलाना 50 साल तक यही तय करने में लगे रहे कि कैमरे से तसवीर खींचना हराम है या हलाल. आज भी कुछ इसे हराम ही मानते हैं.

धर्म के नाम पर खूनखराबा

प्राकृतिक संसाधन किसी भी राष्ट्र के आर्थिक विकास की आधारशिला होते हैं. पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन राष्ट्र के आर्थिक विकास की कुंजी हैं. लेकिन प्राकृतिक संसाधनों की प्राप्ति और उस का सही प्रयोग तभी संभव होता है जब लोग शिक्षित हों, उन्हें वैज्ञानिक जानकारी हो, तकनीकी ज्ञान हो. आप के सामने सोने का पहाड़ खड़ा हो मगर अल्लाह… अल्लाह… करने से, उस के सामने बैठ कर नमाज पढने से, दुआ मांगने से या मंत्रोच्चारण करने या पूजापाठ, दियाबाती, आरती करने से वह गहने में नहीं बदलेगा. सोने के सिक्के या गहने बनाने के लिए शिक्षा, तकनीक और साइंस की जानकारी चाहिए.

सिर्फ उन्नत विज्ञान व तकनीक द्वारा ही प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और उपयोग कर के कोई देश आर्थिक विकास के लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है और मजबूत बन सकता है. आज जिन देशों को विकसित देशों की श्रेणी में रखा गया है वे उच्च शिक्षा, विज्ञान एवं उन्नत तकनीकी का समुचित उपयोग कर के ही विकसित हुए हैं. धर्म का झंडा बुलंद कर के, अपने ही नागरिकों को आपस में लड़वा कर, अपनी ही औरतों पर जुल्म कर के और धर्म के नाम पर खूनखराबा कर के नहीं.

ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जरमनी आदि देशों ने अपने बच्चों की शिक्षा पर सब से ज्यादा ध्यान दिया. लड़कियों और लड़कों की शिक्षा में कोई असमानता नहीं रखी. उन का कौशल विकास किया. नौकरियों में स्त्रीपुरुष की बराबर की भागीदारी हुई. धर्म को लोगों के घर तक सीमित रखा और घर के बाहर देश और समाज की उन्नति और सशक्तिकरण के लिए कार्य हुए.

उन्होंने औद्योगीकरण की ओर विशेष ध्यान दिया. विकसित हुए देशों में लोहाइस्पात उद्योग, रसायन उद्योग, इंजीनियरिंग उद्योग, मोटरगाड़ी निर्माण उद्योग, पोत व वायुयान निर्माण उद्योग आदि का तीव्र गति से विकास हुआ. कृषि के यंत्रीकरण ने उन के लिए प्रगति के द्वार खोले.

बदहाली के कगार पर हैं ये देश

इस के विपरीत पाकिस्तान, अफगानिस्तान, बलूचिस्तान, अल्जीरिया, बेलारूस, उज्बेकिस्तान, तुर्की, म्यांमार, श्रीलंका जैसे अनेक देश आज बदहाली की कगार पर हैं क्योंकि इन देशों पर धर्मजाति, भाषासंप्रदाय जैसी चीजें हावी रहीं. प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर होने के बावजूद सदियों से अधिकांश मुसलिम देशों में सिर्फ लड़ाईयां ही हो रही हैं. इंसानों का खून बह रहा है. औरतों पर जुल्म ढाए जा रहे हैं. बच्चों के कत्ल हो रहे हैं या उन्हें धार्मिक लड़ाकू, जिहादी या आतंकी बनने की ट्रेनिंग मिल रही है.

जिन देशों में धर्म लोगों पर हावी है वहां धर्म ने पुरुषों के दिमाग कुंद कर दिए हैं. ऐसी मानसिकता और सोच उन के अंदर विकसित की कि वह धर्म और जिहाद के रास्ते पर हैं तो ही ठीक और नेक रास्ते पर हैं. उन के अंदर धार्मिक कट्टरता पैदा की गई. उन को सिखाया गया कि कोई तुम्हारे धर्म को फैलने में बाधा बने, कोई तुम्हारे धर्म की तरफ आंख उठा कर देखे तो उस को खत्म कर दो. यानी धर्म ने हिंसा सिखाई और हिंसा को बढ़ावा दिया. शांति वार्ता का कोई मार्ग नहीं सुझाया क्योंकि वार्ता और तर्क तो वही करता है जिस का दिमाग खुला हुआ हो और जो सचमुच शिक्षित हो.

धर्म ने तरक्की को बाधित कर इंसान को बंधनों में जकड़ दिया. 5 वक्त नमाज पढ़ो, सिर पर टोपी पहनो, औरतों को सिर से पैर तक बुरके में ढंक कर रखो, उन को बाहर मत निकलने दो, उन्हें अपने इशारे पर नचाओ, उन की इच्छा का दमन करो, उन्हें पढ़ने मत दो, घरों में कैद हो कर वे सिर्फ धार्मिक कृत्य करें, नमाज पढ़ें, रोजा रखें, घर की सफाई करें, खाना पकाएं, पति की ख्वाहिशें पूरी करें, उस के बच्चे पैदा करें और उन को पालें.

धर्म ने मर्द को औरत का मालिक नियुक्त कर दिया. ऐसा मालिक जिस की सोच में हिंसा भरी हुई है, लिहाजा उस ने सबसे पहले अपने ही घर की औरतों पर उस हिंसा का प्रदर्शन शुरू किया. फिर धर्म के प्रचार के लिए बाहर निकला और बाहर की औरतों, बच्चों पर उस ने हिंसा का प्रयोग किया. अफगानिस्तान में तालिबानी लड़ाकों का उदाहरण सामने है.

पिछले 2 दशकों से भारत की मुख्य चिंता है कट्टरता

पिछले 2 दशकों से भारत में भी धर्म का प्रचार बड़े जोरशोर से हो रहा है. बहुसंख्यक अपने धर्म को ले कर उग्र हैं. अधिकांश युवा जिन्हें शिक्षित हो कर कामकाज से जुड़ना था, वे शिक्षा से विमुख हो कर धर्म का झंडा हाथ में उठा कर सड़कों पर नारे बुलंद करते और अल्पसंख्यक समाज पर जुल्म करते दिखते हैं. इन बेरोजगार और खाली युवाओं की धार्मिक सेना तैयार हो रही है जो कट्टरपंथी सत्तारूढ़ नेतृत्व के आह्वान पर खून की नदियां बहाने को तैयार बैठे हैं. क्या हम पकिस्तान जैसे जाहिल देश का अनुकरण नहीं कर रहे?

पाकिस्तान की बुनियाद धर्म के नाम पर रखी गई थी. धर्म का हवाला दे कर वह भारत से अलग हुआ था. पाकिस्तान को जाहिल कठमुल्लाओं ने ऐसे अपने काबू में किया कि आतंकी गतिविधियों में लिप्त यह देश कभी तरक्की नहीं कर पाया.

पाकिस्तान में कभी सही मानों में जनतांत्रिक सरकार की स्थापना नहीं हुई. धार्मिक कट्टरता में जकड़े जनरलों और मुल्लाओं ने पकिस्तान को अपहृत कर तबाह कर दिया.

पाकिस्तान की दुविधा

पाकिस्तान की दुविधा यह है कि वहां मुल्लाओं और सेना के जनरलों दोनों ने एक स्वतंत्र देश के रूप में इस की लगभग आधी अवधि के दौरान राजनीतिक शक्ति को नियंत्रित किया और लोकतंत्र के शासन को प्रतिबंधित किया. जनरल जिया उल हक ने मुल्लाओं को व्यापक शक्तियां दीं, जिन्होंने धार्मिक रूढ़ियों, परंपराओं, दकियानूसी खयालातों और औरतों को बंधक बना कर रखने वाले प्रतिगामी कानून बनाए जो आज तक नहीं बदले गए. 7 दशक बीत जाने के बाद भी कोई भी निर्वाचित सरकार उन्हें बदलने की हिम्मत नहीं कर पाई.

पाकिस्तान में महिलाएं जनसंख्या का 48.76% हैं, मगर शिक्षा के क्षेत्र में वे बहुत पीछे हैं. विश्व स्तर पर महिलाएँ श्रम शक्ति का 38.8% हैं, लेकिन पाकिस्तान में केवल 20% के आसपास हैं, जो दक्षिण एशिया में सब से कम है. महिलाओं के लिए स्कूल, कालेजों और प्रशिक्षण संस्थानों की संख्या उन की आबादी के लिहाज से बहुत कम है. पिछड़े इलाकों में बलात्कार, औनर किलिंग, हत्या और जबरन विवाह के मामले भी सामने आते हैं. दरअसल, लिंग संबंधी सभी संकेतकों पर पाकिस्तान का प्रदर्शन खराब है.

चौंकाती है रिपोर्ट

ग्लोबल जैंडर गैप इंडैक्स रिपोर्ट, 2022 ने महिलाओं की आर्थिक भागीदारी और अवसर के मामले में पाकिस्तान को 156 देशों में 145वें स्थान पर रखा. यहां महिलाएं शैक्षिक उपलब्धि के मामले में 135वें स्थान पर हैं. स्वास्थ्य के मामले में महिलाएं 143वें स्थान पर और राजनीतिक सशक्तिकरण के मामले में 95वें स्थान पर हैं.

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की वैश्विक वेतन रिपोर्ट 2018-19 में पुरुषों और महिलाओं के बीच वेतन का अंतर करीब 34% है. पाकिस्तान में मतदान प्रक्रिया में भी औरतों की भागीदारी पुरुषों के मुकाबले 20% कम है. महिलाओं की गतिशीलता बढ़ाने के लिए पाकिस्तान में कभी कोई नीति, योजना बनाने की बात नहीं होती है. पितृसत्तात्मक मानसिकता और सामाजिक मानदंड उन के विकास में सब से बड़े बाधक हैं.

प्रधानमंत्री के रूप में बेनजीर भुट्टो का चुनाव एक बड़ी उपलब्धि की तरह लग रहा था मगर उन का शासन बहुत अल्पकालिक और अराजकता से भरा हुआ रहा. उन के वक्त में पाकिस्तान ने अपने इतिहास की सब से खराब जातीय और सांप्रदायिक हिंसा देखी. बेनजीर ने अपने चुनाव अभियानों के दौरान महिलाओं के सामाजिक मुद्दों, स्वास्थ्य और महिलाओं के खिलाफ भेदभाव पर चिंता व्यक्त की. उन्होंने महिला पुलिस स्टेशन, अदालतें और महिला विकास बैंक स्थापित करने की योजना की भी घोषणा की. महिलाओं के अधिकारों को कम करने वाले विवादास्पद हुदूद कानूनों को रद्द करने का भी वादा बेनजीर ने किया. लेकिन एक औरत को सत्ता शीर्ष पर बरदाश्त न कर पाने वाली पितृमानसिकता ने आखिरकार बेनजीर को बम धमाके में उड़ा कर खत्म कर दिया.

सरकार बनाम सेना

पाकिस्तान में किसी भी पार्टी की सरकार रही हो, उस के ऊपर हमेशा सेना की तलवार लटकती रहती है. जिसे धार्मिक सेना कहना ज्यादा ठीक होगा. कई बार तो वहां सेना ने ही सत्ता संभाली है. जनरल अयूब से लेकर याह्या खान, जनरल जिया उर रहमान और फिर जनरल परवेज मुशर्रफ तक ने पाकिस्तान की सत्ता संभाली. इन के बाद जनरल परवेज कयानी और जनरल बाजवा ने भी परदे के पीछे से सत्ता का संचालन किया. मगर उन्होंने नागरिक सरकार को स्वतंत्र हो कर कभी काम नहीं करने दिया. अगर नागरिक सरकार स्वतंत्र हो कर काम कर पाती तो पकिस्तान की हालत बेहतर होती क्योंकि जनता के नुमाइंदे जनता का दर्द कुछ हद तक तो समझते हैं. वे उन की बेहतरी के लिए कुछ काम जरूर करते. मगर पाकिस्तान में नागरिक सरकार के सामने न केवल सेना को खुश रखने की मजबूरी होती है बल्कि उस से ज्यादा जिहादी तंजीमों के मुल्लाओं के तलवे सहलाने होते हैं.

पाकिस्तान में इमरान खान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक ए इंसाफ़ (पीटीआई) सैन्य समर्थन से सत्ता में आई और आने के 2 साल से भी कम समय में पीटीआई सरकार ने बड़ा राजनीतिक स्थान सेना को सौंप दिया है. सरकार ने सुनिश्चित किया है कि भले ही देश पर 33 ट्रिलियन रुपए से अधिक का कर्ज चढ़ गया है और देश अंतर्राष्ट्रीय महामारी से जूझ रहा है, मगर प्राथमिकता हमेशा सेना और मुल्ला की इच्छाओं और चाहतों को दी जानी चाहिए.

हालांकि जब 1947 में मोहम्मद अली जिन्ना ने अलग पकिस्तान का राग अलापा और भारत से उस को तोड़ा तो उस का इरादा पकिस्तान को कोई कट्टर इसलामिक कंट्री बनाने का नहीं था. जिन्ना बड़े खुले विचारों के व्यक्ति थे. बहुत पढ़ालिखे, आले दरजे के वकील और आधुनिकता के सांचे में ढले हुए. उन्होंने शादी भी पारसी धर्म की लड़की रत्तीबाई से की थी, जिस का मुल्लाओं ने बड़ा विरोध किया था. धर्म के आधार पर अलग देश की मांग सिर्फ जिन्ना के राजनीतिक लालच के कारण थी और देश के सब से ऊंचे पद पर बैठने की लालसा थी. पाकिस्तान बना कर उन्होंने अपनी यह ख्वाहिश पूरी की.

जिन्ना पाकिस्तान में जनतांत्रिक सरकार बनाने की इच्छा रखता थे. यही वजह थी कि उन्होंने वकील और दूरदर्शी दलित नेता जोगिंदरनाथ मंडल को अपने साथ पाकिस्तान आने के लिए मनाया और पाकिस्तान की संविधान सभा के पहले सत्र की अध्यक्षता की जिम्मेदारी उन को दी. बाद में जोगिंदरनाथ मंडल पाकिस्तान के कानून मंत्री बनाए गए.

कौन थे जोगिंदरनाथ मंडल

जोगिंदरनाथ मंडल की पाकिस्तान में वही हैसियत थी, जो भारत में बाबा साहब भीम राव आंबेडकर की थी. भारत और पाकिस्तान दोनों के पहले कानून मंत्री दलित थे. जब भारत में संविधान लिखने की प्रक्रिया शुरू हुई तो नेहरू ने अपने मंत्रिमंडल में एक गैर कांग्रेसी दलित नेता डा. भीमराव आंबेडकर को जगह दी और देश का पहला कानून मंत्री बनाया. उन्हें देश के संविधान का मसौदा तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई.

पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना का पहला भाषण सिर्फ उन की एक परिकल्पना नहीं थी, बल्कि एक राजनीतिक रणनीति भी थी. उसी रणनीति के तहत उन्होंने अपने भाषण से पहले बंगाल के हिंदू दलित नेता जोगिंदरनाथ मंडल से संविधान सभा के पहले सत्र की अध्यक्षता करवाई. हालांकि अब पाकिस्तान की नेशनल असैंबली की वेबसाइट पर उस के पहले अध्यक्ष के तौर पर मंडल का नाम मौजूद नहीं है. धर्म की कट्टरता में अंधे पाकिस्तान ने खुली सोच रखने वाले और देश को प्रगति की राह दिखाने वाले मंडल को जिन्ना के मरते ही दूध की मक्खी की तरह निकाल फेंका और पाकिस्तानी दस्तावेजों से उन का नामोनिशान मिटा दिया. इतिहास पर स्याही फेरने और उसे बदलने का बिलकुल वैसा ही काम आज हिंदुत्व का झंडा उठाए मोदी सरकार करने में लगी है. पर दस्तावेजों पर स्याही फेरने से इतिहास न तो मिटता है, न बदलता है.

जोगिंदरनाथ मंडल का जन्म बंगाल के एक कस्बे बाकरगंज में एक किसान परिवार में हुआ था. उन के पिता चाहते थे कि घर में कुछ हो या न हो उन का बेटा शिक्षा जरूर हासिल करे.

जोगिंदरनाथ मंडल ने अंबेडकर की तरह ही उच्च शिक्षा प्राप्त की. शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने बारिसाल की नगर पालिका से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की. उन्होंने निचले तबके के लोगों के हालात सुधारने के लिए संघर्ष किया. वह भारत के बंटवारे के पक्ष में नहीं थे. लेकिन उन्होंने महसूस किया कि उच्च जाति के हिंदुओं (सवर्णों) के बीच रहने से दलितों जिन्हें उन दिनों शूद्रों की संज्ञा दी गई थी, की स्थिति में सुधार नहीं हो सकता. उन्होंने सोचा कि पाकिस्तान नीची जाति के लिए एक बेहतर अवसर हो सकता है.

अधिकारों के लिए संघर्ष

उन्होंने जिन्ना के आश्वासन के बाद पाकिस्तान जाने का फैसला किया और अपने पाकिस्तान चुनने की वजह भी साफ की. उन्होंने कहा कि उन्होंने पाकिस्तान को इसलिए चुना क्योंकि उन का मानना था कि मुसलिम समुदाय ने भारत में अल्पसंख्यक के रूप में अपने अधिकारों के लिए बहुत संघर्ष किया है. लिहाजा वे अपने देश में यानी पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के साथ न केवल न्याय करेगा, बल्कि उन के प्रति उदारता भी दिखाएगा. हालांकि कट्टरपंथी मुल्लाओं ने उन की इस सोच पर पानी फेर दिया और जिन्ना की मौत के बाद उन को पकिस्तान छोड़ने के लिए भी मजबूर कर दिया.

इतिहासकारों का मानना है कि 11 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान के संस्थापक और देश के पहले गवर्नर जनरल मोहम्मद अली जिन्ना ने संविधान सभा की पहली बैठक में अध्यक्ष के तौर पर अपने भाषण में पाकिस्तान के भविष्य का खाका पेश करते हुए रियासत (सत्ता) को धर्म से अलग रखने का ऐलान किया था. जिन्ना ने कहा था, “हम एक ऐसे दौर की तरफ जा रहे हैं जब किसी के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा. एक समुदाय को दूसरे पर कोई वरीयता नहीं दी जाएगी. किसी भी जाति या नस्ल के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा. हम इस मूल सिद्धांत के साथ अपनी यात्रा शुरू कर रहे हैं कि हम सभी नागरिक हैं और हम सभी इस राज्य के समान नागरिक हैं.”

यह सच है कि नए राज्य के भविष्य के नागरिकों के लिए समान अधिकारों के जोरदार दावे जिन्ना ने किए. जिन्ना को इस बात पर पूरा विश्वास था कि धार्मिक राष्ट्रवाद के जिस राक्षस को उन्होंने जगाया था उस पर वे काबू कर लेंगे, मगर उन की वह सोच गलत साबित हुई. जिन्ना की अचानक मौत ने पाकिस्तान के चरमपंथियों को बेकाबू कर दिया. जिन्ना के खास जोगिंदरनाथ मंडल को उस माहौल में न सिर्फ पूरी तरह से अलगथलग कर दिया गया बल्कि धार्मिक चरमपंथियों ने उन के लिए जिंदगी इतनी मुश्किल कर दी कि उन्हें पाकिस्तान छोड़ कर भागना पड़ा.

जिन्ना की मौत के बाद मंडल ने देखा कि पाकिस्तान का रास्ता जिन्ना के ‘दृष्टिकोण’ से अलग हो चुका है. जिन्ना की मौत के बाद कई ऐसी घटनाएं हुईं जिन से जोगिंदरनाथ मंडल बहुत ज्यादा निराश हुए. धार्मिक कट्टरता के कारण पाकिस्तान में अब अल्पसंख्यकों से किए गए वादों को पूरा करने वाला कोई नहीं था. ऐसे लोग सरकार में आ गए थे जो बहुत शिद्दत के साथ मजहब को रियासत पर थोप रहे थे. पाकिस्तान को एक इसलामिक राज्य बनाने के लिए अल्पसंख्यकों की सभी चिंताओं को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया था. उन पर जुल्म होने शुरू हो गए थे. उन के धार्मिक स्थलों को मटियामेट किया जाने लगा था. उन्हें सरकारी नौकरियों और सत्ता से बेदखल कर दिया गया. बिलकुल वैसे ही जैसे आज भारत में हिंदुत्व का झंडा बुलंद करने वाली सरकार कर रही है.

जोगिंदरनाथ मंडल के पाकिस्तान छोड़ने और भारत वापस लौटने के फैसले का कारण पाकिस्तान में पैदा हो चुकी धार्मिक कट्टरता ही थी, जिसने मुसलिम लीग के नेताओं के लिए मंडल को अस्वीकार्य बना दिया था. उन्होंने उन की निष्ठा पर महज इसलिए सवाल उठाए क्योंकि वह एक नीची जाति के हिंदू थे. ऐसे बहुतेरे जोगिंदरनाथ मंडल विभाजन के वक्त पकिस्तान गए जिन्होंने वहां एक जनतांत्रिक सरकार बनने का सपना देखा. लेकिन ऐसे सभी लोगों को धार्मिक कट्टरपंथियों ने दरकिनार कर दिया.

दिवालिया होने की कगार पर पाकिस्तान

बीते 75 साल में उसी कट्टरता के चलते पाकिस्तान आज दिवालिया होने की कगार पर खड़ा है. आज वह अपने मित्र देशों और इसलामी भ्राता देशों से वित्तीय मदद की गुहार लगा रहा है. चीन का लौहमित्र, अमेरिका और पश्चिमी देशों का दुलारा रह चुके और इसलामी देशों के संगठन (ओआईसी) की नेतागीरी करने वाले पाकिस्तान को आज कोई सहयोग करने को तैयार नहीं है. पाकिस्तान में समझदार लोग इस के पीछे का राज समझते हैं, लेकिन इस के लिए गहन आत्ममंथन करने को तैयार नहीं हैं.

पाकिस्तानी मीडिया के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, पाकिस्तान के पास विदेशी मुद्रा का भंडार घट कर करीब 4 अरब डौलर के सब से निचले स्तर पर आ गया है. पाकिस्तान पर करीब 268 अरब डौलर का कर्ज है जिस में से 31 अरब डौलर का कर्ज पाकिस्तान ने चीन से ही लिया है. पर्यवेक्षकों का मानना है कि पाकिस्तान को यदि तत्काल 20-25 अरब डालर की मदद नहीं मिलेगी तो जल्द ही श्रीलंका जैसे हालात वहां बन सकते हैं. गेहूं के आटे और दैनिक जीवन के लिए अन्य घरेलू सामान आम आदमी को नहीं मिल रहे. मुद्रास्फीति की दर 40% से ऊपर चल रही है. आखिर जब महंगाई की मार असहनीय हो जाएगी तो श्रीलंका की तरह पाकिस्तान का मध्यवर्ग भी सड़कों पर उतरने को बाध्य होगा.

आयात के लिए पाकिस्तान को हर महीने 8 से 10 अरब डौलर की जरूरत होती है. पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार यदि खाली ही रहा तो पाकिस्तान पैट्रोलडीजल आयात नहीं कर सकेगा. इस से पाकिस्तान में घोर कुहराम मच सकता है. इस वजह से पाकिस्तान की पूरी अर्थव्यवस्था ही बैठ सकती है. तब पाकिस्तान की मौजूदा सरकार के लिए घरेलू हालात को संभालना और कितना मुश्किल होगा इस का अनुमान लगाया जा सकता है. धर्म और भारत विरोध के नशे में धुत्त पाकिस्तान ने वैश्विक आर्थिक प्रतिस्पर्धा के अनुरूप अपने को नहीं ढाला, जिस का नतीजा है कि चीन, तुर्की और खाड़ी के कुछ देशों को छोड़ कर अन्य विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने पाकिस्तान से किनारा किया हुआ है. पाकिस्तान में धन का निवेश करने और उसे गंवाने के लिए कोई तैयार नहीं है.

राजनीतिक, आर्थिक अस्थिरता व अराजकता के माहौल में विदेशी निवेश तो बंद ही है, घरेलू उद्योगपति भी नए निवेश नहीं कर रहे हैं. 2 साल तक चली कोविड महामारी और पिछले साल अगस्त में आई भीषण बाढ़ ने पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था को और रसातल में भेज दिया है.

इस दयनीय हालात का लाभ पाकिस्तान का जिहादी तबका उठा सकता है. पाकिस्तान के घोर उग्रवादी संगठन तहरीक ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने पहले ही पाकिस्तान की नागरिक सरकार और सेना की नाक में दम कर रखा है. टीटीपी का साम्राज्य फैलता जा रहा है और एक बार फिर वह इस्लामाबाद के नजदीक मनोरम स्वात घाटी पर कब्जा करने की फिराक में है और पाकिस्तान की सेना और सरकार के लिए बड़ी चुनौती बन गया है. पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने भारी खर्च कर जिन जिहादियों को भारत के भीतर आतंकवादी वारदातें करने के लिए जैश ए मोहम्मद व लश्कर ए तैयबा में भरती करने के लिए तैयार किया वे अब टीटीपी में भरती होने लगे हैं.

साफ है कि पाकिस्तान की सेना और सरकार भीतर और बाहर दोनों मोरचों पर अपना अस्तित्व बचाने में ही जुटी है, जिस पर होने वाले हजारों करोड़ रुपए का सालाना खर्च यदि पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था सुधारने पर लगाया जाता तो पाकिस्तान के आज जैसे हालात नहीं होते.

 

गौतम अदानी बनाम नरेंद्र मोदी

दुनिया का सब से बड़ा राजनीतिक दल होने का दावा करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने राजनीति में ईमान को ताक पर रख दिया है. चाहे आर्थिक क्षेत्र हो, राजनीतिक हो, सामाजिक हो या फिर वैश्विक हर जगह वह सब काम किया है जो देश हित में नहीं है कतई नहीं करना चाहिए.

इस का वर्तमान में कम ज्यादा असर होता दिखाई दे रहा है. आगे दूरगामी रूप से यह देश के लिए घातक सिद्ध भी होगा. दरअसल,  भारतीय जनता पार्टी की दशा और दिशा पर आज शोध करने की आवश्यकता है ताकि आने वाले समय में भाजपा की नीतियों के कारण देश को जो चहुंमुखी क्षति हो रही है उस का आकलन किया जा सके. भारतीय जनता पार्टी में देश के प्रति समर्पण, निष्ठा और ईमानदारी की कमी, देश की आम जनता को एक राजनीतिक दल होने के नाते सत्ता में होने के कारण हम किस तरह आर्थिक रूप से मजबूत बनाएं यह भावना नहीं दिखाई देती.

इस की जगह पर भारत माता की जय वंदे मातरम, मंदिर बनाएंगे जैसे मसलों को ले कर के जनता को बरगलाने का काम, भ्रमित करने का काम किया गया. इसी के तहत भाजपा के बड़े नेता नरेंद्र दामोदरदास मोदी और अमित शाह द्वारा मुकेश अंबानी और गौतम अडानी दोनों को जो संरक्षण दिया गया. इस के कारण यह दोनों मालामाल हो गए. जिस तरह भाजपा दुनिया के सब से बड़ी राजनीतिक पार्टी का ढोल बजा रही है इस तरह गौतम अडानी को भी दुनिया का सब से बड़ा अमीर आदमी बनने के लिए केंद्र सरकार खुलकर समर्थन कर रही है. यह आज देश का बच्चाबच्चा जानता है.

यही कारण है जब गौतम अदानी समूह की पोल खुली तो वह लुढ़क कर नीचे आ गया. नरेंद्र मोदी सरकार ने जिस तरह गौतम अडानी को समर्थन दिया है वह सीमाओं का अतिक्रमण करता है और देश के लिए चिंता का सबब होना चाहिए.

देश में कांग्रेस और अन्य राजनीतिक पार्टियों ने भी सरकार चलाई है मगर कभी भी किसी उद्योगपति को आंख बंद करके समर्थन नहीं किया गया. यही कारण है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अदानी समूह पर कोयले के आयात में ज्यादा कीमत दिखा कर 12 हजार करोड़ रुपए की अनियमितता का आरोप लगाया है और कहा, “2024 में उनकी पार्टी को केंद्र सरकार बनाने का मौका मिला तो इस कारोबारी समूह से जुड़े मामले की जांच कराई जाएगी.”

दुनिया की निगाहों में अदाणी                        

राहुल गांधी ने ब्रिटिश समाचारपत्र ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ की एक खबर का हवाला देते हुए कहा. “वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस संदर्भ में ‘मदद करना चाहते हैं कि प्रधानमंत्री अदानी समूह के मामले की जांच कराएं और अपनी विश्वसनीयता बचाएं.”

अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष होने के नाते राहुल गांधी ने खुल कर अपना और पार्टी का पक्ष देश के सामने रख दिया है और नरेंद्र मोदी पर तल्ख टिप्पणी की है. नरेंद्र मोदी और देश उसे चौराहे पर खड़ा है जहां से गौतम अडानी पर सरकार को जांच कर के दूध का दूध और पानी का पानी करना चाहिए. मगर आजकल भारत सरकार जिस तरीके से कम कर रही है वह निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता क्योंकि जहां सरकार और उन के चेहरों के पक्ष की बात होती है वहां फैसला बदल जाते हैं यह स्थिति देश के लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती और दुनिया के जीनियस इसे ले कर के चिंतित हैं.

राहुल गांधी ने उद्योगपति गौतम अदानी से राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के अध्यक्ष शरद पवार की मुलाकातों को ले कर सफाई दी और कह, “शरद पवार देश के प्रधानमंत्री नहीं हैं और अदानी का बचाव भी नहीं कर रहे हैं, इसलिए वह राकांपा नेता से सवाल नहीं करते.”

दरअसल,राहुल गांधी ने ‘फाइनेंशियल टाइम्स’ की जिस खबर का हवाला दिया उस में कहा गया है नरेंद्र दामोदरदास मोदी के प्रधानमंत्री समय काल में 2019 और 2021 के बीच अदानी के 31 लाख टन मात्रा वाले 30 कोयला शिपमेंट का अध्ययन किया गया, जिस में कोयला व्यापार जैसे कम मुनाफे वाले व्यवसाय में भी 52 फीसद लाभ समूह को मिला है.”

कुल मिला कर के सच यह है कि कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने अदानी समूह पर कोयले के आयात में ज्यादा कीमत दिखाकर 12 हजार करोड़ की अनियमितता का आरोप लगाया है. उन्होंने कहा, “यह चोरी का मामला है और यह चोरी जनता की जेब से की गई है. यह राशि करीब 12,000 करोड़ रुपए हो सकती है. पहले हम ने 20 हजार करोड़ रुपए की बात की थी और सवाल पूछा था कि ये पैसा किस का है, कहां से आया? अब पता चला है कि 20 हजार करोड़ रुपए का आंकड़ा गलत था, उस में 12 हजार करोड़ रुपए और जुड़ गए हैं. अब कुल आंकड़ा 32 हजार करोड़ रूपए का हो गया है.

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