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पौलीसिस्टिक ओवरी डिजीज क्या होती है, जानें इसके कारण और बचाव के उपाय

पीसीओडी यानी पौलीसिस्टिक ओवरी डिसीज (पीसीओडी) एक स्थिति है, जो महिलाओं में हार्मोनों के स्तर को प्रभावित करती है. इस में गर्भाशय में कई छोट- छोटे सिस्ट बन जाते हैं इसीलिए इसे पौलीसिस्टिक ओवरी डिसीज कहते हैं. जिन महिलाओं को पीसीओडी की समस्या होती है उन में पुरूष हार्मोनों का स्राव सामान्य से अधिक होता है. यह समस्या 15 से 44 वर्ष की महिलाओं में हो सकती है क्योंकि इसी दौरान उन्हें पीरियड्स आते हैं और वे प्रेग्नेंट होती हैं.

अमूमन 24 से 25 प्रतिशत महिलाएं इस की शिकार होती हैं. कुछ सालों पहले तक यह समस्या 30 से 35 साल के ऊपर की महिलाओ में ज्यादा होती थी परन्तु अब कम उम्र की लड़कियों में भी यह दिखने लगा है. पीसीओडी महिलाओं में बांझपन का सबसे प्रमुख कारण है क्योंकि यह फीमेल हार्मोन्स एस्ट्रोजन और प्रोजेस्ट्रौन के स्राव को प्रभावित करता है.

क्या हैं पीसीओडी के लक्षण

  1. पीरियड्स समय पर न होना

समय पर मासिक धर्म का न आना, छोटी उम्र में ही अनियमित पीरियड्स आना आदि इस का सबसे बड़ा संकेत होता है.

  1. अत्यधिक रक्तस्त्राव होना

जब पीरियड्स आता है तो सामान्य से अधिक दिनों तक आता है और रक्तस्त्राव भी अधिक होता है.

  1. अचानक वज़न बढ़ जाना

जिन महिलाओं को पीसीओडी होता है उन में से आधे से अधिक महिलाओं का वजन औसत से अधिक होता है या वे मोटी होती हैं. उन्हें वजन कम करने में भी परेशानी आती है.

4.  अनचाहे स्थानों पर बालों का विकसित होना

पीसीओडी से ग्रस्त अधिकतर महिलाओं के चेहरे और शरीर के अन्य भागों जैसे छाती, पीठ और पेट पर बाल उगने लगते हैं. कईं महिलाओं में अनचाहे बालों की समस्या अत्यधिक बढ़ जाती है जिसे हिरसुटिज़्म कहते हैं.

  1. मेल पैटर्न बाल्डनेस

इस बीमारी में महिलाओं के शरीर और चेहरे पर तो अनचाहे बाल उगने लगते हैं लेकिन सिर के बाल अत्यधिक झड़ने लगते हैं.

  1. त्वचा पर गहरे रंग के चकते पड़ जाना

शरीर की त्वचा पर जगहजगह गहरे रंग के चकते पड़ने लगते हैं. यह उन स्थानों पर अधिक पड़ते हैं जहां त्वचा फोल्ड होती है जैसे गर्दन पर, स्तनों के नीचे आदि.

कारण

कुछ ऐसे सामान्य कारण हैं जो पीसीओडी की चपेट में आने का खतरा बढ़ा देते हैं:

  1. शारीरिक रूप से सक्रिय न रहना.
  2. वजन सामान्य से अधिक बढ़ जाना.
  3. अनुवांशिक कारण (अगर आप की मां और बहन को यह समस्या है तो आप के इस की चपेट में आने की आशंका बढ़ जाती है).
  4. अत्यधिक तनाव (इस के कारण हार्मोन असंतुलन की आशंका बढ़ जाती है).

उपचार

पीसीओडी का वैसे तो कोई स्थायी उपचार नहीं है लेकिन जीवनशैली में परिवर्तन ला कर और कुछ जरूरी उपाय कर के इस के लक्षणों को नियंत्रित किया जा सकता है;

वजन कम करें

अगर आप अपने वज़न को 5% भी कम कर लेंगी तो पीसीओडी की गंभीरता कम होने लगेगी. वजन कम होने से प्रैग्नैंसी की संभावना भी बढ़ जाती है.

व्यायाम

व्यायाम करने से आप का वजन कंट्रोल में रहेगा और पीसीओडी की वजह से होने वाली इन्सुलिन रेसिसटेंट की समस्या भी कम हो जाएंगी. आप ब्रिस्क वाक, दौड़ना, तैराकी या एरोबिक व्यायाम कर सकती है.

संतुलित आहार

अपने खाने में पिज़्ज़ा, बर्गर जैसे शरीर के लिए नुकसानदायक आहार लेने की जगह हरे पत्तेदार सब्जी और फलों को शामिल करें.

दवाईयां

हार्मोन के स्राव को संतुलित करने वाली, पीरियड्स को नियमित करने वाली, मुंहासों, अनचाहे बालों और पिग्मेंटेशन का उपचार करने वाली विभिन्न दवाईयां आती हैं.

सर्जरी

हिरसुटिज़्म (अनचाहे बालों के अत्यधिक विकास) के लिए लेजर उपचार उपलब्ध है. गर्भाश्य से सिस्ट निकालने के लिए लैप्रोस्कोपिक सर्जरी भी की जाती है जिसे लैप्रोस्कॉपिक ओवेरियन ड्रिलिंग कहा जाता है. इस सर्जरी में लेज़र या अत्यधिक नुकीली सुईंयों द्वारा अंडाशय के सिस्ट में छेद किया जाता है.

आईवीएफ

जो महिलाएं गर्भाश्य में कई सिस्ट बनने के कारण मां नहीं बन पाती हैं उन के लिए असिस्टेड रिप्रोडक्टिव तकनीक के इन विट्रो फर्टिलाइज़ेशन (आईवीएफ) के द्वारा संतान प्राप्ति करना संभव है.

पीसीओडी के कारण होने वाली स्वास्थ्य जटिलताएं

बांझपन

पीसीओडी के कारण शरीर में एंड्रोजन हार्मोन का स्तर बढ़ जाता है जिस से बांझपन की समस्या हो सकती है.

एंडोमेट्रियल कैंसर

पीसीओडी के कारण अंडोत्सर्ग नहीं हो पाता है जिस से गर्भाश्य की सब से अंदरूनी परत निकल नहीं पाती है और वह समय बीतने के साथसाथ मोटी होती जाती है. गर्भाश्य की सब से अंदरूनी परत का मोटा हो जाना एंडोमेट्रियल कैंसर की चपेट में आने का खतरा बढ़ा देता है.

मेटाबालिक सिंड्रोम

पीसीओडी की शिकार अधिकतर महिलाएं मोटी होती हैं. मोटापे और पीसीओडी दोनों के कारण रक्तदाब, रक्त में शूगर और बुरे कोलेस्ट्राल का स्तर बढ़ जाता है. इन फैक्टर्स को एकसाथ मेटाबालिक सिंड्रोम कहते हैं और इन के कारण हृदय रोग, डायबिटीज़ और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है.

अवसाद

पीसीओडी में हार्मोनों के स्तर में परिवर्तन आने, बांझपन, अनचाहे बालों के विकसित होने और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं होने के कारण कईं महिलाएं अवसाद और एंग्जाइटी की शिकार हो जाती हैं.

कब करें डाक्टर से संपर्क:

  1. दो महीने से आप को पीरियड्स नहीं आ रहें हैं लेकिन आप प्रैग्नैंट नहीं हैं.
  2. आप 12 महीने से अधिक समय से गर्भधारण करने का प्रयास कर रही हैं लेकिन सफल नहीं हो पा रही हैं.
  3. वज़न कम करने के प्रयासों के बावजूद आप का वज़न बढ़ता ही जा रहा है.
  4. आप को डायबिटीज के लक्षण दिखाई दें जैसे अत्यधिक भूख या प्यास लगना, नजर धुंधली हो जाना या वजन बहुत कम हो जाना.

इंदिरा आईवीएफ अस्पताल की डा. सागरिका अग्रवाल से की गई बातचीत पर आधारित

पालक से बनाएं ये 4 यम्मी डिशेज

आप पालक की सब्जी और पराठे तो जरुर खाएं होगे, लेकिन क्या कभी आपने पालक रोल खाएं है. जी हां जो खाने में टेस्टी के साथ-साथ हेल्दी भी है. तो आइए जानते हैं इस रेसिपी के बारे में.

  1. चीज पालक रोल

सामग्री

दो लहसुन की कलियां

20 ग्राम चेडार चीज

20 ग्राम मोजेरला चीज

एक चम्मच टोमैटो प्यूरी

दो चम्मच व्हाइट सौस

स्वादानुसार नमक

स्वादानुसार काली मिर्च पाउड

गेहूं का आटा- 1कप

दूध- 1कप दूध

पालक 100 ग्राम बारीक कटा हुआ

एक अंडे का घोल

तीन चम्मच बटर

दो बारी कटी हुई प्याज

बनाने की विधि

सबसे पहले सबसे पहले आटा, दूध और अंडे का घोल डालकर मिलाएं.

इसे अच्छी तरह से फेंट लें और इसके बाद एक नौन स्टिक पैन लें.

जिसे गैस को सिंक करके रखें, फिर इसमें बटर डालें.

इसके पिघलने के बाद इसमें गेहूं और अंडे वाला घोल डालकर फैलाएं.

इसे दोनों तरफ से सुनहरा होने तक सेंक लें और पूरे घोल से क्रेप इसी तरह से बना लें.

भरावन ऐसे करें

इसके लिए एक पैन में बटर डालकर गैस की मध्यम आंच पर रखें.

फिर इसमें प्याज, लहसुन और पालक डालकर तेज आंच पर भूनें.

इसके बाद इसमें चेडार चीज, व्हाइट सौस, नमक और काली मिर्च पाउडर डालकर 2 मिनट तक पकाएं.

आंच से उतारकर इस मिश्रण को क्रेप्स पर फैलाकर इसे मोड़ दें.

इस पर टोमैटो प्यूरी मिलाकर मोजरेला चीज कद्दूकस करके डालें और फिर इन्हें ओवन प्लेट में रखें.

2.घर पर बनाएं पालक की भुर्जी

सामग्री

1 टी स्पून जीरा पाउडर

1 टी स्पून धनिया पाउडर

1 टेबल स्पून देसी घी

2 टी स्पून अदरक पेस्ट

3 बड़ा बटर क्यूबस

2 प्याज, टुकड़ों में कटा हुआ

2-3 टमाटर, टुकड़ों में कटा हुआ

हरा धनिया, टुकड़ों में कटा हुआ

अदरक का पीस, कटा हुआ

2 टी स्पून लाल मिर्च पाउडर

4-5 हरी मिर्च

4 टी स्पून लहसुन का पेस्ट

बनाने की वि​धि

पालक को काट लें, एक पैन में तेल गर्म करें. इसमें लहसुन का पेस्ट, पालक और नमक डालकर कुछ देर पकाएं.

एक पैन में देसी घी गर्म करें,  इसमें लहसुन का पेस्ट,  अदरक का पेस्ट डालकर भूनें.

एक बार जब लहसुन ब्राउन हो जाए तो इसमें टमाटर, जीरा पाउडर और धनिया पाउडर डालें और इसे थोड़ी देर पकाएं.

एक पैन में मक्खन डालें, इसमें कटा हुआ प्याज डालकर भूनें. अब इसमें पालक, टमाटर पेस्ट, नमक, लाल मिर्च पाउडर, पनीर, हरी मिर्च और हरा धनिया डालें.

पालक भुर्जी को थोड़ी देर पकाएं और गर्मागर्म सर्व करें.

3. पालक पकौड़े

सामग्री

पालक के पत्ते – 10

हल्दी – 1/4 चम्मच

बेसन – 70 ग्राम

लाल मिर्च – 1/2 चम्मच

चाट मसाला – 1/2 चम्मच

अजवाइन – 1/2 चम्मच

नमक – 1/2 चम्मच

चावल का आटा – 1 चम्मच

तेल

पानी

सौस – सर्व के लिए

विधि

पालक पकौड़े बनाने के लिए सबसे पहले आप पालक के पत्तों को काट लें. अब एक बाउल में बेसन, लाल मिर्च, हल्दी, अजवाइन, चावल का आटा, चाट मसाला और नमक डालें और अच्छे से मिला लें.

अब इसमें थोड़ा-सा पानी डालें और गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें. इसमें कटे हुए पालक के पत्ते डालें.

फिर एक कड़ाही में तेल गर्म करें और पकोड़ों को फ्राई करें. इसे हल्का ब्राउन होने तक पकाएं. पालक पकौड़े बनकर तैयार हैं. इसे सौस के साथ सर्व करें.

4. जानें, कैसे बनाएं पालक दाल खिचड़ी

सामग्री

दाल (1 कप)

जीरा (1 टी स्पून)

सरसों के दाने (1 टी स्पून)

हल्दी पाउडर

नमक (स्वादानुसार)

लाल मिर्च पाउडर (स्वादानुसार)

कढ़ीपत्ता (5-6)

घी (1 टी स्पून)

हरी मिर्च

लहसुन का पेस्ट (1 टी स्पून अदरक)

पानी (आवश्यकतानुसार)

पालक (1 कप)

1 प्याज ( टुकड़ों में कटा हुआ)

2 टमाटर (टुकड़ों में कटा हुआ)

चावल (½ कप)

बनाने की वि​धि

चावल को 15 मिनट के लिए भिगो दें और दाल को  धो लें.

एक प्रेशर कूकर लें और इसमें तेल डालें.

एक बार जब तेल गर्म हो जाए तो इसमें सरसों के दाने, जीरा, कढ़ीपत्ता, ताजा बना अदरक लहसुन का पेस्ट डालकर अच्छी तरह भूनें.

इसमें बारीक कटा हुआ टमाटर और प्याज डालें, अपने स्वादानुसार हरी मिर्च डालें और पकने दें.

इसमें हल्दी, धनिया और लाल मिर्च पाउडर डालकर भूनें और स्वादानुसार नमक डालें.

दाल और चावल डालें और साथ ही इसमें एक गिलास पानी भी डालें.

और इसे 2 मिनट पकाने के बाद ताजी कटी पालक डालकर प्रेशर कूकर को बंद कर दें.

इसे 10 से 12 मिनट पकने दें.

मैं फेसबुक पर एक फ्रैंड से बात करती हूं, अब वो मिलने की बात कह रहा है, मैं क्या करूं ?

सवाल

फेसबुक पर फ्रैंड रिक्वैस्ट आई थी. मैं अपनी जौब के कारण दिल्ली में अकेली रहती हूं. घरपरिवार सब देहरादून में है. शुरू से कैरियर ओरिएंटेड रही हूं, इसलिए जब हाईक पर दिल्ली में जौब औफर हुई तो मौका नहीं गंवाया. 36 साल की हो चुकी हूं. मातापिता शादी करने के लिए बोलते रहते हैं. मुझे फोटोज भी भेजते रहते हैं लेकिन मैं शादी के बारे में सोचना नहीं चाहती और न ही उन फोटोज में कोई मुझे भाता है. औफिस से आ कर घर पर टाइमपास के लिए अपना इंस्टा, फेसबुक देखती रहती हूं. 3 महीने पहले मेरे फेसबुक पर एक लड़के की फ्रैंड रिक्वैस्ट आई.

मैं ने यों ही ऐक्सैप्ट कर ली. हमारी थोड़ी बातें शुरू हो गईं. मैं ने उसे अपना मोबाइल नंबर दे दिया. उस ने अपनी उम्र 27 साल बताई. मुझे अपनी उम्र से कम उम्र का वह लड़का भाने लगा. उस की रोमांटिक बातों में मुझे मजा आने लगा. वह खूब मेरी तारीफ करता. मैं ने ऐसा पहले कभी फील नहीं किया जैसा मैं उस के लिए फील करने लगी. थोड़े दिनों पहले उस ने मुझ से कहा कि फोन पर बातें तो बहुत हो गई हैं, अब वह मुझ से मिलना चाहता है. तब से मुझे घबराहट हो रही है. यह सब मैं ने अपने मजे के लिए शुरू किया था. अपनी उम्र से कम लड़के से बातें कर के मुझे यंगनैस की फील आ रही थी.

मुझे नहीं पता कि मुझ से पर्सनली मिलने के बाद वह क्या फील करेगा. मैं तो फोन पर बातें कर के उस से अपना टाइमपास करती थी. मैं उस से कोई सीरियस रिलेशनशिप नहीं चाहती. अब आप ही बताएं कि मैं क्या करूं?

जवाब

ऐसा लगता है कि आप खुद नहीं जानतीं कि आप चाहती क्या हैं. एक तरफ तो आप कहती हैं कि उस से बात कर के आप बहुत अच्छा फील करती हैं. किसी और के साथ आप ने ऐसा फील नहीं किया. दूसरी तरफ कहती हैं कि अपना टाइम पास करती हैं, कोई सीरियस रिलेशनशिप नहीं चाहतीं.

देखिए, सब से पहली बात, वह लड़का कोई आप का एंटरटेनमैंट का साधन नहीं है. आप ने उस से दोस्ती की है तो वह मिलने की इच्छा जाहिर करेगा ही. आप डर रही हैं कि पर्सनली मिलने के बाद क्या फील करेगा.

जब आप सीरियस रिलेशनशिप रखना ही नहीं चाहतीं तो डरने की बात ही नहीं. जो होगा देखा जाएगा. आप से पर्सनली मिलने के बाद वह कैसे रिऐक्ट करता है, उसे करने दो. आप को कुछ फर्क नहीं पड़ना चाहिए.

हां, आप से मिलने के बाद वह दोस्ती से कुछ ज्यादा सीरियस रिलेशनशिप चाहेगा तो आप को सोचने की जरूरत पड़ेगी.

वैसे, आप की लाइफ है, निर्णय आप के खुद के होने चाहिए. हम सिर्फ यह सलाह देना चाहते हैं कि आप के मन में यदि उस लड़के की उम्र को ले कर इश्यू है तो आज इस टाइप की कई रिलेशनशिप, कई मैरिज देखने को मिल रही हैं. उम्र का फर्क सिर्फ एक नंबर का फर्क है. प्यार है तो रिलेशनशिप लंबी चलती है.

फिलहाल, आप अभी ज्यादा मत सोचिए. पहले उस लड़के से मिलिए. उस के बाद ही कुछ डिसाइड कीजिएगा.

गर्लफ्रैंड सोशल मीडिया क्रेजी है. मैं जितना इंस्टाग्राम, फेसबुक, व्हाट्सऐप आदि से दूरी बना कर चलता हूं, उतनी ही मेरी गर्लफ्रैंड इन सब की दीवानी है. फोटो पोस्ट करना, अपना स्टेटस अपडेट रखना, कमैंट देने में सब से आगे रहना, रोज अपनी प्रोफाइल पिक चेंज करना, उस पर अपने लाइक देखना, इस सब के पीछे सारा दिन लगी रहती है. ठीक है, मैं इस सब के अगेंस्ट नहीं हूं लेकिन पागलपन की हद तक इसी में घुसे रहना मुझे पसंद नहीं.

इस बात को ले कर हमारा झगड़ा भी हो जाता है. कईकई दिन हमारे बीच बात नहीं होती. लेकिन फिर वह खुद ही मुझे मना लेती है. कहती है कि वह यह सब कम कर देगी. लेकिन थोड़े दिनों बाद फिर वही सब शुरू कर देती है. मैं परेशान हो गया हूं उस की इस हरकत से. अब आप ही बताएं कि मैं क्या करूं? ऐसी गर्लफ्रैंड के साथ मैं शादी तो हरगिज नहीं कर सकता.

गर्लफ्रैंड के सोशल मीडिया क्रेजीनैस से परेशान हैं तो पहले आप को गर्लफ्रैंड से साफसाफ बात करनी चाहिए. नहीं तो शादी के बाद यही बात झगड़े की वजह बन जाएगी, जिस का नतीजा अच्छा नहीं होगा.

हम भी यही मानते हैं कि सब चीजों की एक लिमिट होती है. लिमिट से बाहर सब खराब होता है. सोशल मीडिया हमारे फायदे के लिए हैं. डिजिटल वर्ल्ड ने हमें कई सहूलियतें दी हैं. उन का फायदा उठाना चाहिए. लाइफ का उसे पार्ट बनना चाहिए न कि उसे ही लाइफ बना लें. आप को गर्लफ्रैंड को और समझना होगा. उस से शादी जैसा अहम फैसला बहुत सोचविचार के बाद ही लीजिएगा.

Holi Special: हक ही नहीं कुछ फर्ज भी- भाग 3

पीछे का दरवाजा खुला था. उन्नति और काव्या दबे पांव हिसाब लगाते हुए कि पापा इस समय बाथरूम में होंगे और मां किचन में. मेड जा चुकी होगी. 9 बज रहे हैं तो सुरम्य सो ही रहा होगा. एकदूसरे को देख मुसकराते हुए वे सुकांत और निधि के बैडरूम में पहुंच गईं. सुकांत की दराज खोल उन्होंने चुपके से कुछ रखा. फिर सीधे सुरम्य के रूम में जा कर तकियों के वार से उसे जगा दिया.

‘‘आज भी देर तक सोएगा? संडे तो है पर रक्षाबंधन भी है. उठ जल्दी नहा कर आ. राखी नहीं बंधवानी?’’

‘‘अरे उठ भी तुझे राखी बांधने के बाद ही मां कुछ खाने को देंगी… बहुत जोर की भूख लग रही है,’’ कहते हुए काव्या ने एक तकिया उसे और जमा दिया.

‘‘क्या है,’’ सुरम्य आंखें मलते हुए उठ बैठा.

दोनों बहनें उसे बाथरूम की ओर धकेल हंसती हुई किचन की ओर बढ़ गईं.

‘‘मां सरप्राइज,’’ कह दोनों निधि से लिपट गईं.

‘‘अरे, कब घुसी तुम दोनों? मुझे तो पता ही नहीं चला,’’ कह निधि मुसकरा उठी.

राखियां बंधवाने के बाद जब सुरम्य ने दोनों को 6-6 लाख के चैक दिए तो दोनों बहनें उस का चेहरा देखने लगीं.

‘‘मजाक कर रहा है?’’

‘‘मजाक नहीं सच में बेटा… हम वह मुकदमा जीत गए… उसी के 4 हिस्से कर दिए. एक मेरा व निधि का बाकी तुम तीनों के.’’‘‘अरे नहीं पापा ये हम नहीं ले सकतीं,’’ काव्या और उन्नति एकसाथ बोलीं. उन्होंने उन पैसों को लेने से साफ इनकार कर दिया, ‘‘नहीं मम्मीपापा, इन पर केवल सुरम्य का ही हक है. उसी ने आप दोनों के साथ सारी जिम्मेदारियां उठाई हैं. पहले घर के छोटेछोटे कामों में फिर बड़े कामों में… लोन, बिल्स, औपरेशन, इलाज, रिश्तेदारी, गाड़ी और अब यह मकान. आप दोनों और घर से अलग अपने लिए कुछ नहीं जोड़ा उस ने.

‘‘सच है मम्मीपापा हर बात में बराबरी करने वाली हम बेटियां पढ़लिख कर भी बेटियां ही रह गईं बेटा न बन सकीं. हम ने शान और मस्ती के अलावा कुछ सोचा ही नहीं… कभी समझना ही नहीं चाहा. दायित्व तो दूर की बात… मेरे और काव्या के लिए बहुत कुछ कर लिया आप ने… अब तो इस का ही हक बनता है हमारा नहीं.’’

‘‘हां पापा, अब तो बस झट से इस के लिए अच्छी सी लड़की पसंद कीजिए और इस की धूमधाम से शादी कर दीजिए, बहुत आनाकानी कर चुका है. हां, नेग हम बड़ाबड़ा लेंगी.’’

उन्नति और काव्या एक के बाद एक बोले जा रही थीं. फिर वे सुरम्य को छेड़ने लगीं, ‘‘वैसे एक बहुत सुंदर लड़की मेरे पड़ोस में है. बस थोड़ी तोतली है. उस से करेगा शादी?’’ उन्नति ने ठिठोली की तो काव्या भी पीछे नहीं रही, ‘‘अरे, मेरी ननद की देवरानी की छोटी बहन दूध जैसी गोरीचिट्टी है. बस थोड़ी भैंगी है. पर उस के बड़े फायदे रहेंगे एक नजर किचन में तो दूसरी से वह तुझे निहारेगी.’’

काव्या और उन्नति दोनों अगले ही दिन चली गईं. घर सूना हो गया.

‘‘निधि… ये मेरी दराज में लिफाफे कैसे रखे हैं?’’ कह उन्होंने एक खोला तो पत्र में लिखावट उन्नति की थी. लिफाफे में हजारहजार के नोट रखे थे. वे अचरज से पढ़ने लगे-

‘‘मम्मीपापा यह मेरी पहली कमाई का छोटा सा अंश है,  आप दोनों के चरणों में. आप इसे मना मत करिएगा. आप दोनों ने मुझे इस काबिल बनाया. मैं कमा कर कम से कम अपना लोन तो खुद उतार सकती थी पर मैं तो अपने में ही मस्त थी. मैं इतनी स्वार्थी कैसे बन गई.

‘‘न कभी आप लोगों के लिए सोचा न सुरम्य के लिए. छोटा था पर हर बात में उस से बराबरी करते हुए उस से घर के कामों में भी फायदा उठाया और अपने बाहर के काम भी उसी से करवाए कि वह लड़का है. सब कुछ उसी पर डाल कर हम बहनें मजे लेती रहीं. सौरी मम्मीपापा. मैं फिर जल्द आऊंगी. आप की डैंटिस्ट बेटी उन्नति.’’

दूसरा लिफाफा काव्या का था, लिखा था-

‘‘मां और पापा, आप ने हमेशा हम तीनों को बराबर का प्यार दिया, हक दिया. बराबर मानते हैं न तो सुरम्य की ही तरह मुझे भी अपना लोन चुकाने दीजिए. आप दोनों मना नहीं करेंगे, सामने से देती तो आप बिलकुल न लेते पर सोचिए तो पापा अगर बेटेबेटी में कोई फर्क नहीं मानते तो आप को इसे लेना ही पड़ेगा. प्रतीक की भी यही इच्छा है.

‘‘पता नहीं बेटियों का बेटों की तरह मांबाप पर तो हक है पर मांबाप को बेटों की तरह बेटियों पर हक अभी भी समाज में क्यों मान्य नहीं हो पा रहा? प्रतीक ऐसा ही सोचता है. आप ने अपनी परेशानियों को एक ओर कर के हमारे सपने, हमारी जरूरतें पूरी की हैं. हमारा आप पर हक है ठीक है पर हमारा फर्ज भी तो है कुछ… जिसे मैं पहले कभी नहीं समझ पाई. आप दोनों की लाडली बेटी काव्या.’’

पत्र के पीछे लोन अमाउंट का चैक संलग्न था.

बेटियों की चिट्ठियां पढ़ रहे सुकांत और उन के पास खड़ी निधि की आंखें सजल हो उठी थी और सीना गर्व से भर उठा.

‘‘हमें इन्हें वापस करना होगा निधि, कितने समझदार बन गए हैं बच्चे. इन्होंने हमारे लिए इतना सोचा यही बहुत है… अब हमें वैसे भी पैसे की कोई जरूरत नहीं रही.’’

निधि ने आंचल से आंखों के कोरों को पोंछ मुसकराते हुए अपनी सहमति में सिर हिला दिया.

Writer- Dr. Neerja Srivastava

उधार का रिश्ता : भाग 1 – उस दिन क्या हुआ थाा सरिता के साथ ?

टैलीफोन की घंटी लगातार बजती जा रही थी. मैं ने उनीदी आंखों से घड़ी की ओर देखा. रात के 2 बजे थे. ‘इस समय कौन हो सकता है?’ मैं ने स्वयं से ही सवाल किया और जल्दी से टैलीफोन का रिसीवर उठाया, ‘‘मेजर रंजीत दिस साइड.’’

‘‘सर, कैप्टन सरिता ने आत्महत्या कर ली है’’ औफिसर्स मैस के हवलदार की आवाज थी. वह बहुत घबराया हुआ लग रहा था.

‘‘क्या?’’

‘‘सर, जल्दी आइए.’’

‘‘घबराओ मत, मैं तुरंत आ रहा हूं. किसी को भी मेरे आने तक किसी चीज को हाथ मत लगाने देना.’’

‘‘जी सर.’’

मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि कैप्टन सरिता ऐसा कर सकती है. वह एक होनहार अफसर थी. मैं नाइट सूट में था और उन्हीं कपड़ों में औफिसर्स मैस की ओर भागा. वहां पहुंचा तो कैप्टन नीरज और कैप्टन वर्मा पहले से मौजूद थे. कैप्टन नीरज ने सरिता के कमरे की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘सर, इस ओर.’’

‘‘ओके,’’ हम सब कैप्टन सरिता के कमरे की ओर बढ़े. नाइलौन की रस्सी का फंदा बना कर वह सीलिंग फैन से झूल गई थी.

‘‘सब से पहले कैप्टन सरिता को इस अवस्था में किस ने देखा?’’  मैस स्टाफ से मैं ने पूछा.

‘‘सर, 10 बजे मैम ने गरम दूध मंगवाया था. मैं दूध देने आया तो मैम लैपटौप पर काम कर रही थीं. मैं ने दूध का गिलास रख दिया. उन्होंने कहा, ‘आधे घंटे में गिलास ले जाना.’ मैं ‘जी’ कह कर लौट आया. आ कर कुरसी पर बैठा तो मेरी आंख लग गई. आंख खुली तो देखा कि मैम के कमरे की लाइट जल रही थी. सोचा, खाली गिलास उठा लाता हूं. मैम के कमरे में आया तो उन को पंखे से लटके देखा. मैं ने उन का चेहरा देख कर अनुमान लगाया था कि वे मर चुकी हैं. तुरंत आप को सूचित किया.’’

‘‘क्या तुम्हें इस बात का ध्यान नहीं रहा कि इतनी रात गए किसी महिला अफसर के कमरे में नहीं जाना चाहिए?’’ मैं ने मैस हवलदार को घूरते हुए कहा.

‘‘सर, मुझे समय का ध्यान नहीं रहा. मैं ने घड़ी की ओर देखा ही नहीं. मैं ने सोचा, मेरी आंख लगे अधिक देर नहीं हुई है. इसलिए चला गया, सर.’’

मैं ने देखा, मैस हवलदार एकदम डर गया है. शायद उसे लग रहा था कि इस छोटी सी गलती के लिए उसे ही न फंसा दिया जाए.

‘‘कैप्टन नीरज, देखो कोई सुसाइड नोट है या नहीं? तब तक मैं मिलिटरी पुलिस को इस की सूचना दे देता हूं,’’ यह कहते हुए मैं टैलीफोन की ओर बढ़ा. मैं ने नंबर डायल किया तो दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘सर, मैं डेस्क एनसीओ हवलदार राम सिंह बोल रहा हूं.’’

इधर से मैं ने कहा, ‘‘मैं ओएमपी से मेजर रंजीत सिंह बोल रहा हूं. मुझे आप के ड्यूटी अफसर से तुरंत बात करनी है.’’

‘‘सर, एक सेकंड होल्ड करें, मैं लाइन ट्रांसफर कर रहा हूं,’’ राम सिंह ने कहा.

कुछ समय बाद दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘ड्यूटी अफसर कैप्टन डोगरा स्पीकिंग, सर, इतनी रात गए कैसे याद किया?’’

‘‘एक बुरी खबर है कैप्टन डोगरा. कैप्टन सरिता कमीटैड सुसाइड,’’ मैं ने उसे बताया.

‘‘ओह, सर, यह तो बहुत बुरी खबर है. सर, किसी को बौडी से छेड़छाड़ न करने दें. मैं अभी टीम भेज रहा हूं. प्लीज मेजर साहब, डू इनफौर्म टू ब्रिगेड मेजर इन ब्रिगेड हैडक्वार्टर. आई विल आलसो इनफौर्म हिम.’’ यह कह कर कैप्टन डोगरा ने फोन काट दिया.

मैं ने तुरंत बीएम साहब को फोन लगाया. दूसरी ओर से आवाज आई, ‘‘यस, मेजर बतरा स्पीकिंग.’’

‘‘मेजर रंजीत दिस साइड,’’ मैं ने कहा.

‘‘इन औड औवर्स? इज देयर ऐनी इमरजैंसी, मेजर रंजीत?’’

‘‘यस, कैप्टन सरिता कमीटैड सुसाइड.’’

‘‘ओह, सैड न्यूज, मेजर. हैव यू इनफौर्म मिलिटरी पुलिस?’’

‘‘यस, मेजर.’’

‘‘ओके, प्लीज डू नीडफुल.’’

‘‘राइट, मेजर.’’

मैं अभी फोन कर के हटा ही था कि मिलिटरी पुलिस की टीम आ गई. उस टीम में 1 सूबेदार और 2 हवलदार थे. उन्होंने मुझे सैल्यूट किया और चुपचाप अपने काम में लग गए. इतने में कैप्टन नीरज मेरे पास आया और कहा, ‘‘सर, और कुछ तो मिला नहीं, लेकिन यह डायरी मिली है. मैं मिलिटरी पुलिस की टीम से बचा कर ले आया हूं. सोचा, टीम के देखने से पहले शायद आप देखना चाहें.’’

‘‘गुड जौब, कैप्टन नीरज.’’

‘‘थैंक्स, सर.’’

‘‘कैप्टन नीरज, हैडक्लर्क को मेरे पास भेजो.’’

‘‘राइट, सर.’’

थोड़ी देर बाद हैडक्लर्क साहब आए, सैल्यूट किया और चुपचाप आदेश के लिए खड़े हो गए. मैं ने उन्हें गहराई से देखा और कहा, ‘‘यू नो, व्हाट हैज हैपेंड?’’

‘‘यस सर.’’

‘‘गिव टैलीग्राम टू हर पेरैंट्स. जस्ट राइट डाउन, कैप्टन सरिता एक्सपायर्ड, गिव नियरैस्ट रेलवे स्टेशन ऐंड माई सैल नंबर. डोंट राइट वर्ड सुसाइड.’’

‘‘राइट, सर.’’

‘‘मेक दिस टैलीग्राम मोस्ट अरजैंट.’’

‘‘सर, हम सैल से भी इनफौर्म कर सकते हैं.’’

‘‘कर सकते हैं, पर इस समय हम इस अवस्था में नहीं हैं कि उन से बात कर सकें. जस्ट डू इट, इट इज माई और्डर.’’

‘‘यस, सर,’’ हैडक्लर्क साहब ने सैल्यूट किया और चले गए.

हैडक्लर्क साहब गए तो मेरे सेवादार ने आ कर कहा, ‘‘सर, ब्रिगेड कमांडर साहब आप को याद कर रहे हैं. उन्होंने कहा है, जिस अवस्था में हों, आ जाएं.’’

‘‘उन के साथ और कोई भी है?’’

‘‘सर, बीएम साहब हैं.’’

‘‘ठीक है, तुम उन को औफिस में ले जा कर बैठाओ. उन्हें पानी वगैरह पिलाओ, तब तक मैं आता हूं.’’

‘‘जी, सर,’’ कह कर वह चला गया लेकिन मैं खुद पिछली यादों में खो गया.

अभी पिछले सप्ताह की ही तो बात है, ब्रिगेड औफिसर्स मैस की पार्टी में कैप्टन सरिता ब्रिगेडियर यानी ब्रिगेड कमांडर साहब से चिपक कर डांस कर रही थी. मुझे ही नहीं बल्कि पूरी यूनिट के सभी अफसरों को यह बुरा लगा था. मैं उस का कमांडिंग अफसर था. मेरा फर्ज था, मैं उसे समझाऊं. दूसरे रोज औफिस में बुला कर उसे समझाने की कोशिश भी की थी.

‘यह सब क्या था, कैप्टन सरिता?’

‘क्या था, सर?’ उलटे उस ने मुझ से सवाल किया था.

‘कल रात पार्टी में ब्रिगेडियर साहब के साथ इस तरह डांस करना क्या अच्छी बात थी?’ मैं ने उसे डांटते हुए कहा. कुछ समय के लिए वह झिझकी फिर बड़े साफ शब्दों में बोली, ‘सर, मैं उन के साथ रिलेशन में हूं.’

‘क्या बकवास है यह? जानती हो तुम क्या कह रही हो? तुम कैप्टन हो, वे ब्रिगेडियर हैं. तुम्हारे और उन के स्टेटस में जमीनआसमान का फर्क है. वे शादीशुदा हैं, 2 बच्चे और एक सुंदर बीवी है. तुम उन के साथ कैसे रिलेशन रख सकती हो? थोड़ा सा भी दिमाग है तो जरा सोचो.’

‘सर, उन्होंने कहा है, वे मेरे साथ लिव इन रिलेशन में रहेंगे. वे अपने बीवीबच्चों को भी खुश रखेंगे और मुझे भी.’

‘माइ फुट. वह तुम्हें यूज करेगा और छोड़ देगा. वह मर्द है, सरिता, मर्द. उस को कुछ फर्क नहीं पड़ता, वह चाहे 10 के साथ संबंध रखे. तुम लड़की हो, एक कुंआरी लड़की, तुम्हारा ब्राइट कैरियर है. जरा सोचो, लोग, तुम्हारे मांबाप, समाज, सब तुम्हें उस की रखैल कहेंगे और रखैल को समाज में अच्छी नजरों से नहीं देखा जाता.’

सच्चा प्यार : क्या शेखर की कोई गलत मंशा थी ? – भाग 1

‘‘उर्मी,अब बताओ मैं लड़के वालों को क्या जवाब दूं? लड़के के पिताजी 3 बार फोन कर चुके हैं. उन्हें तुम पसंद आ गई हो… लड़का मनोहर भी तुम से शादी करने के लिए तैयार है… वे हमारे लायक हैं. दहेज में भी कुछ नहीं मांग रहे हैं. अब हम सब तुम्हारी हां सुनने के लिए बेचैनी से इंतजार कर रहे हैं. तुम्हारी क्या राय है?’’ मां ने चाय का प्याला मेरे पास रखते हुए पूछा.

मैं बिना कुछ बोले चाय पीने लगी. मां मेरे जवाब के इंतजार में मेरी ओर देखती रहीं. सच कहूं तो मैं ने इस बारे में अब तक कुछ सोचा ही नहीं था. अगर आप सोच रहे हैं कि मैं कोई 21-22 साल की युवती हूं तो आप गलतफहमी में हैं. मेरी उम्र अब 33 साल है और जो मुझ से ब्याह करना चाहते हैं उन की 40 साल है. अगर आप मन ही मन सोच रहे हैं कि यह शादी करने की उम्र थोड़ी है तो आप से मैं कोई शिकायत नहीं करूंगी, क्योंकि मेरे मन में भी यह सवाल उठ चुका है और इस का जवाब मुझे भी अब तक नहीं मिला. इसलिए मैं चुपचाप चाय पी रही हूं.

सभी को अपनीअपनी जिंदगी से कुछ उम्मीदें जरूर होती हैं, इस बात को कोई नकार नहीं सकता. हर चीज को पाने के लिए सही वक्त तो होता ही है. जैसे पढ़ाई के लिए सही समय होता है उसी तरह शादी करने के लिए भी सही समय होता है. मेरे खयाल से लड़कियों को 20 और 25 साल की उम्र के बीच शादी कर लेनी चाहिए. तभी तो वे अपनी शादीशुदा जिंदगी का पूरा आनंद उठा सकेंगी. प्यारमुहब्बत आदि जज्बातों के लिए यही सही उम्र है. इस उम्र में दिमाग कम और दिल ज्यादा काम करता है और फिर प्यार को अनुभव करने के लिए दिमाग से ज्यादा दिल की ही जरूरत होती है. लेकिन मेरी जिंदगी की परिस्थितियां कुछ ऐसी थीं कि मेरे जीवन में 20 से 25 साल की उम्र संघर्षों से भरी थी. हम खानदानी रईस नहीं थे. शुक्र है कि मैं अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. यदि एक से अधिक बच्चे होते तो हमारी जिंदगी और मुश्किल में पड़ जाती. मेरे पापा एक कंपनी में काम करते थे और मां स्कूल अध्यापिका थीं. दोनों की आमदनी को मिला कर हमारे परिवार का गुजारा चल रहा था.

एक विषय में मेरे मातापिता दोनों ही बड़े निश्चिंत थे कि मेरी पढ़ाई को किसी भी हाल में रोकना नहीं. मैं भी बड़ी लगन से पढ़ती रही. लेकिन हमारी और कुदरत की सोच का एक होना अनिवार्य नहीं है न? इसीलिए मेरी जिंदगी में भी एक ऐसी घटना घटी, जिस से जिंदगी से मेरा पूरा विश्वास ही उठ गया.

एक दिन दफ्तर में दोपहर के समय मेरे पिताजी अचानक अपनी छाती पकड़े नीचे गिर गए. साथ काम करने वालों ने उन्हें अस्पताल में भरती करा कर मेरी मां के स्कूल फोन कर दिया. मेरे पिताजी को दिल का दौरा पड़ा था. मेरे पिताजी किसी भी बुरी आदत के शिकार नहीं थे, फिर भी उन्हें 40 वर्ष की उम्र में यह दिल की बीमारी कैसी लगी, यह मैं नहीं समझ पाई. 3 दिन आईसीयू में रह कर मेरे पिताजी ने अपनी आंखें खोलीं और फिर मेरी मां और मुझे देख कर उन की आंखों में आंसू आ गए. मेरा हाथ पकड़ कर उन्होंने बहुत ही धीमी आवाज में कहा, ‘‘मुझे माफ कर दो बेटी… मैं अपना फर्ज पूरा किए बिना जा रहा हूं… मगर तुम अपनी पढ़ाई को किसी भी कीमत पर बीच में न छोड़ना… वही कठिन समय में तुम्हारे काम आएगी,’’ वे ही मेरे पिताजी के अंतिम शब्द थे.

पिताजी की मौत के बाद मैं और मेरी मां दोनों बिलकुल अकेली पड़ गईं. मेरी मां इकलौती बेटी थीं. उन के मातापिता भी इस दुनिया से चल बसे थे. मेरे पापा के एक भाई थे, मगर वे भी बहुत ही साधारण जीवन बिता रहे थे. उन की 2 बेटियां थीं. वे भी हमारी कुछ मदद नहीं कर सके. अन्य रिश्तेदार भी एक लड़की की शादी का बोझ उठाने के लिए तैयार नहीं थे. मैं उन्हें दोषी नहीं ठहराना चाहती, क्योंकि एक कुंआरी लड़की की जिम्मेदारी लेना आज कोई आसान काम नहीं है. मेरी मां ने अपनी कम तनख्वाह से मुझे अंगरेजी साहित्य में एम.ए. तक पढ़ाया. मैं ने एम.ए. अव्वल दर्जे में पास किया और उस के बाद अमेरिका में स्कौलरशिप के साथ पीएच.डी. की. उसी दौरान मेरी पहचान शेखर से हुई. अमेरिका में भारतवासियों की एक पार्टी में पहली बार मेरी सहेली ने मुझे शेखर से मिलवाया. पहली मुलाकात में ही शेखर ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया. वह बहुत ही सरलता से मुझ से बात करने लगा. जैसे मुझे बहुत दिनों से जानता हो. पूरी पार्टी में उस ने मेरा साथ दिया.

बिखरते बिखरते : माया क्या सोचकर भावुक हो रही थी ? – भाग 1

महेश ने कहा, ‘‘माया, आज शाम को गाड़ी से मुझे मुंबई जाना है. मेरा सूटकेस तैयार कर देना.’’ ‘‘शाम को जाना है और अब बता रहे हैं, कल रात भी तो बता सकते थे,’’ माया को पति की लापरवाही पर क्रोध आ रहा था.

‘‘ऐसी कौन सी नई बात है. हमेशा ही तो मुझे बाहर आनाजाना पड़ता है,’’ महेश ने कुरसी से उठते हुए कहा.

‘‘कब तक लौटोगे?’’ आने वाले दिनों के अकेलेपन की कल्पना से माया भावुक हो गई.

‘‘यही कोई 10 दिन लग जाएंगे. तुम चाहो तो अपनी मौसी के यहां चली जाना. नहीं तो आया से रात को यहीं सो जाने को कहना,’’ कह कर महेश अपना ब्रीफकेस ले कर निकल पड़ा.

दरवाजा बंद कर माया सोफे पर आ बैठी तो उस का दिल भर आया. माया कुछ क्षण घुटनों में सिर छिपाए बैठी रही. अपनी कारोबारी दुनिया में खोए रहने वाले महेश के पास माया के लिए दोचार पल भी नहीं रह गए हैं. कम से कम सुषमा साथ होती तो यह दुख वह भूल जाती. इतने बड़े मकान में घंटों अकेले पड़े रहना कितना खलता है. माया के 12 वर्षों के दांपत्य जीवन में न कोई महकता क्षण है, न कोई मधुर स्मृति.

महेश शाम को औफिस से लौट कर झटपट तैयार हो कर निकल पड़ा. रसोई की बत्ती बुझा कर माया कमरे में चली आई. माया लेट चुकी थी. नींद तो आने से रही. अलमारी से यों ही एक किताब ले कर पलंग पर बैठ गई. पहला पन्ना उलटते ही माया की नजर वहीं ठहर गई : ‘प्यार सहित– सौरभ.’ माया के 20वें जन्मदिवस के अवसर पर सौरभ ने यह किताब उसे भेंट की थी. माया का मन अतीत की स्मृतियों में खो गया…

‘माया, मेरे सौरभ भैया अपनी पढ़ाई खत्म कर के कोलकाता से आ गए हैं. भैया भी तुम्हारी तरह बहुत अच्छा वायलिन बजाते हैं. शाम को आना,’ रिंकू कालेज जाते समय उसे न्योता दे गई. माया का संगीतप्रेम उसे शाम को रिंकू के घर खींच ले गया. सौरभ ने वायलिन बजाना शुरू किया और माया वायलिन की धुनों में खो गई. सौरभ की नौकरी, उस के पिता की फैक्टरी में ही लग गई. माया नईनई धुनें सीखने के लिए सौरभ के पास जाने लगी थी. सौरभ उस की खूबसूरती व मासूमियत पर फिदा हो गया था. एक दिन सौरभ ने अचानक ही पूछ डाला, ‘माया, अपने पापा से बात क्यों नहीं करती?’

‘किस बारे में?’

‘हम दोनों के विवाह के बारे में.’

माया वायलिन एक ओर रख कर खिड़की के पास जा खड़ी हुई. लौन में लाल गुलाब खिले हुए थे. वह उन फूलों को कुछ पल निहारती रही. आज तक वह पापा के सामने खड़ी हो बेझिझक कोई बात नहीं कह पाई है. फिर इतनी बड़ी बात भला कैसे कह पाएगी? किंतु आखिर कब तक टाला जा सकता है? देखतेदेखते 3 वर्ष बीत गए थे. उस ने एमएससी कर लिया था. अब तक तो पढ़ाई का बहाना कर के वह सौरभ को रुकने के लिए कहती आई थी.

अचानक उसे एक बात सूझ गई. वह बोली, ‘सौरभ, तुम स्वयं ही आ कर पापा से कह दो न, मुझे बड़ी झिझक हो रही है.’

‘माया, झिझक नहीं. डर कहो. समस्या से दूर भागने की यह सोच ही तुम्हारी कमजोरी है. खैर, ठीक है. मैं कल शाम को आऊंगा,’ सौरभ ने हंसते हुए माया से विदा ली. पापा ने दफ्तर से आ कर चाय पी और अखबार ले कर आरामकुरसी पर बैठ गए. माया का दिल यह सोच कर धकधक कर रहा था कि बस, अब सौरभ आता ही होगा.

थोड़ी देर बाद सौरभ आया. हाथ जोड़ कर उस ने कहा, ‘नमस्ते, अंकल.’ कुछ देर तक इधरउधर की आम बातें हुईं. फिर सौरभ ने अपने स्वभाव के मुताबिक सीधे प्रस्ताव रख दिया, ‘अंकल, मैं और माया एकदूसरे को पसंद करते हैं. मैं आप से माया का हाथ मांगने आया हूं.’ ‘क्या?’ उन के हाथ से अखबार गिर गया. उन्हें अपनी सरलसंकोची बेटी के इस फैसले पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. कुछ पलों बाद उन्होंने स्वयं को संयत करते हुए कठोर आवाज में कहा, ‘देखो सौरभ, मुझे यह बचकाना तरीका बरदाश्त नहीं है. तुम लोग खुद विवाह का निर्णय करो, यह गलत है. अच्छा, तुम अपने पापा को भेजना.’

एक साथी की तलाश : आखिर मधुप और बिरुवा का रिश्ता था क्या ? – भाग 1

शाम गहरा रही थी. सर्दी बढ़ रही थी. पर मधुप बाहर कुरसी पर बैठे  शून्य में टकटकी लगाए न जाने क्या सोच रहे थे. सूरज डूबने को था. डूबते सूरज की रक्तिम रश्मियों की लालिमा में रंगे बादलों के छितरे हुए टुकड़े नीले आकाश में तैर रहे थे.

उन की स्मृति में भी अच्छीबुरी यादों के टुकड़े कुछ इसी प्रकार तैर रहे थे. 2 दिन पहले ही वे रिटायर हुए थे. 35 सालों की आपाधापी व भागदौड़ के बाद का आराम या विराम, पता नहीं, पर अब, अब क्या…’ विदाई समारोह के बाद घर आते हुए वे यही सोच रहे थे. जीवन की धारा अब रास्ता बदल कर जिस रास्ते पर बहने वाली थी, उस में वे अकेले कैसे तैरेंगे.

‘‘साहब, सर्दी बढ़ रही है, अंदर चलिए’’, बिरुवा कह रहा था.

‘‘हूं,’’ अपनेआप में खोए मधुप चौंक गए, ‘‘हां चलो.’’ और वे उठ खड़े हुए.

‘‘इस वर्ष सर्दी बहुत पड़ रही है साहब,’’ बिरुवा कुरसी उठा कर उन के साथ चलते हुए बोला, ‘‘ओस भी बहुत पड़ती है. सुबह सब भीगाभीगा रहता है, जैसे रातभर बारिश हुई हो,’’ बिरुवा बोलते जा रहा था.

मधुप अंदर आ गए. बिरुवा उन के अकेलेपन का साथी था. अकेलेपन का दुख उन्हें मिला था पर भुगता बिरुवा ने भी था. खाली घर में बिरुवा कई बार अकेला ही बातें करता रहता. उन की आवश्यकता से अधिक चुप रहने की आदत थी. उन की तरफ से कोई प्रतिक्रिया न पा कर, बड़बड़ाता हुआ वह स्वयं ही खिसिया कर चुप हो जाता.

पर श्यामला खिसिया कर चुप न होती थी, बल्कि झल्ला जाती थी, ‘मैं क्या दीवारों से बातें कर रही हूं. हूं हां भी नहीं बोल पाते, चेहरे पर कोई भाव ही नहीं रहते, किस से बातें करूं,’ कह कर कभीकभी उस की आंखों में आंसू आ जाते.

उन की आवश्यकता से अधिक चुप रहने की आदत श्यामला के लिए इस कदर परेशानी का सबब बन गई थी कि वह दुखी हो जाती थी. उन की संवेदनहीनता, स्पंदनहीनता की ठंडक बर्फ की तरह उस के पूरे व्यक्तित्व को झुलसा रही थी. नाराजगी में तो मधुप और भी अभेद हो जाते थे. मधुप ने कमरे में आ कर टीवी चला दिया.

तभी बिरुवा गरम सूप ले कर आ गया, ‘‘साहब, सूप पी लीजिए.’’

बिरुवा के हाथ से ले कर वे सूप पीने लगे. बिरुवा वहीं जमीन पर बैठ गया. कुछ बोलने के लिए वह हिम्मत जुटा रहा था, फिर किसी तरह बोला, ‘‘साहब, घर वाले बहुत बुला रहे हैं, कहते हैं अब घर आ कर आराम करो, बहुत कर लिया कामधाम, दोनों बेटे कमाने लगे हैं. अब जरूरत नहीं है काम करने की.’’

मधुप कुछ बोल न पाए, छन्न से दिल के अंदर कुछ टूट कर बिखर गया. बिरुवा का भी कोई है जो उसे बुला रहा है. 2 बेटे हैं जो उसे आराम देना चाहते हैं. उस के बुढ़ापे की और अशक्त होती उम्र की फिक्रहै उन्हें. लेकिन सबकुछ होते हुए भी यह सुख उन के नसीब में नहीं है.

बिरुवा के बिना रहने की वे कल्पना भी नहीं कर पाते. अकेले में इस घर की दीवारों से भी उन्हें डर लगता है, जैसे कोनों से बहुत सारे साए निकल कर उन्हें निगल जाएंगे. उन्हें अपनी यादों से भी डर लगता है और अकेले में यादें बहुत सताती हैं.

‘सारा दिन आप व्यस्त रहते हैं, रात को भी देर से आते हैं, मैं सारा दिन अकेले घर में बोर हो जाती हूं,’ श्यामला कहती थी.

‘तो, और औरतें क्या करती हैं और क्या करती थीं, बोर होना तो एक बहाना भर होता है काम से भागने का. घर में सौ काम होते हैं करने को.’

‘पर घर के काम में कितना मन लगाऊं. घर के काम तो मैं कर ही लेती हूं. आप कहो तो बच्चों के स्कूल में एप्लीकेशन दे दूं नौकरी के लिए, कुछ ही घंटों की तो बात होती है, दोपहर में बच्चों के साथ घर आ जाया करूंगी,’ श्यामला ने अनुनय किया.

‘कोई जरूरत नहीं. कोई कमी है तुम्हें?’ अपना निर्णय सुना कर जो मधुप चुप हुए तो कुछ नहीं बोले. उन से कुछ बोलना या उन को मनाना टेढ़ी खीर था. हार कर श्यामला चुप हो गई, जबरदस्ती भी करे तो किस के साथ, और मनाए भी तो किस को.

‘नौवल्टी में अच्छी पिक्चर लगी है, चलिए न किसी दिन देख आएं, कहीं भी तो नहीं जाते हैं हम?’

‘मुझे टाइम नहीं, और वैसे भी, 3 घंटे हौल में मैं नहीं बैठ सकता.’

‘तो फिर आप कहें तो मैं किसी सहेली के साथ हो आऊं?’

‘कोई जरूरत नहीं भीड़ में जाने की, सीडी ला कर घर पर देख लो.’

‘सीडी में हौल जैसा मजा कहां

आता है?’

लेकिन अपना निर्णय सुना कर चुप्पी साधने की उन की आदत थी. श्यामला थोड़ी देर बोलती रही, फिर चुप हो गई. तब नहीं सोच पाते थे मधुप, कि पौधे को भी पल्लवित होने के लिए धूप, छांव, पानी व हवा सभी चीजों की जरूरत होती है. किसी एक चीज के भी न होने पर पौधा मर जाता है. फिर, श्यामला तो इंसान थी, उसे भी खुश रहने के लिए हर तरह के मानवीय भावों की जरूरत थी. वह उन का एक ही रूप देखती थी, आखिर कैसे खुश रह पाती वह.

‘थोड़े दिन पूना हो आऊं मां के

पास, भैयाभाभी भी आए हैं आजकल, मुलाकात हो जाएगी.’

‘कैसे जाओगी इस समय?’ मधुप आश्चर्य से बोले, ‘किस के साथ जाओगी?’

‘अरे, अकेले जाने में क्या हुआ, 2 बच्चों के साथ सभी जाते हैं.’

‘जो जाते हैं, उन्हें जाने दो, पर मैं तुम लोगों को अकेले नहीं भेज सकता.’

फिर श्यामला लाख तर्क करती, मिन्नतें करती. पर मधुप के मुंह पर जैसे टेप लग जाता. ऐसी अनेक बातों से शायद श्यामला का अंतर्मन विरोध करता रहा होगा. पहली बार विरोध की चिनगारी कब सुलगी और कब भड़की, याद नहीं पड़ता मधुप को.

‘‘साहब, खाना लगा दूं?’’ बिरुवा कह रहा था.

‘‘भूख नहीं है बिरुवा, अभी तो सूप पिया.’’

‘‘थोड़ा सा खा लीजिए साहब, आप रात का खाना अकसर छोड़ने लगे हैं.’’

‘‘ठीक है, थोड़ा सा यहीं ला दे,’’ मधुप बाथरूम से हाथ धो कर बैठ गए.

इस एकरस दिनचर्या से वे दो ही दिन में घबरा गए थे, तो श्यामला कैसे बिताती पूरी जिंदगी. वे बिलकुल भी शौकीन तबीयत के नहीं थे. न उन्हें संगीत का शौक था, न किताबें पढ़ने का, न पिक्चरों का, न घूमने का, न बातें करने का. श्यामला की जीवंतता, मधुप की निर्जीवता से अकसर घबरा जाती. कई बार चिढ़ कर कहती, ‘ठूंठ के साथ आखिर कैसे जिंदगी बिताई जा सकती है.’

Valentine’s Day 2024 : कांटे गुलाब के – अमरेश और मिताली की अनोखी प्रेम कहानी – भाग 1

सुबह के 8 बज रहे थे. किचन में व्यस्त थी. तभी मोबाइल की घंटी बज उठी. मन में यह सोच कर खुशी की लहर दौड़ गई कि अमरेश का फोन होगा. फिर अचानक मन ने प्रतिवाद किया. वह अभी फोन क्यों करेगा? वह तो प्रतिदिन रात के 8 बजे के बाद फोन करता है.

अमरेश मेरा पति था. दुबई में नौकरी करता था. मोबाइल पर नंबर देखा, तो झट से उठा लिया. फोन मेरी प्रिय सहेली स्वाति ने किया था. बात करने पर पता चला कि कल उस की शादी होने वाली है. शादी में उस ने हर हाल में आने के लिए कहा. शादी अचानक क्यों हो रही है, यह बात उस ने नहीं बताई. दरअसल, उस की शादी 2 महीने बाद होने वाली थी. जिस लड़के से शादी होने वाली थी, उस की दादी की तबीयत अचानक बहुत खराब हो गईर् थी. डाक्टर ने उसे 2-3 दिनों की मेहमान बताया था. इसीलिए घर वाले दादी की मौजूदगी में ही उस की शादी कर देना चाहते थे.

स्वाति मेरी बचपन की सहेली थी. ग्रेजुएशन तक हम दोनों ने एकसाथ पढ़ाई की थी. उस के बाद मुंबई में उसे जौब मिल गई. वह मातापिता के साथ वहीं बस गई. अब वहीं के लड़के से शादी कर रही थी. अमरेश को बताना जरूरी था कि मुंबई जा रही हूं. उसे फोन किया, नंबर नहीं लगा. रौंग नंबर बताया गया. वह आश्चर्यचकित थी. रौंग नंबर क्यों?

अमरेश ने दुबई का जो नंबर दिया था, उस पर कभी फोन नहीं किया था. फोन करती भी तो कैसे करती? उस ने फोन करने से मना जो कर रखा था.

उस ने कहा था, ‘औफिस के काम से हर समय व्यस्त रहता हूं. सो, फोन मत करना. मैं खुद तुम्हें रोज फोन करूंगा.’ वह रोज फोन करता भी था.

फोन ट्राई करतेकरते अचानक मोबाइल हाथ से छूट गया और फर्श पर गिर कर बंद हो गया. उस ने बहुत कोशिश की ठीक करने की, मगर ठीक नहीं हुआ. हर हाल में मुंबई आज ही जाना था. सो, एजेंट से टिकट की व्यवस्था कर प्लेन से बेटे सुमित के साथ चली गई.

मुंबई एयरपोर्ट से बाहर आईर् तो शाम के 6 बज गए थे. टैक्सी से सहेली के घर जा रही थी कि एक मोड़ पर लालबत्ती देख कर ड्राइवर ने टैक्सी रोक दी. उसी समय एक गाड़ी बगल में आ कर खड़ी हो गई. अचानक गाड़ी के अंदर नजर पड़ी तो चौंक गई. बगल वाली गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर अमरेश था. उस की बगल में एक युवती बैठी थी. अमरेश को आवाज देने न देने की उधेड़बुन में थी कि हरी बत्ती हो गई और वाहन गंतव्य की ओर दौड़ने लगे.

टैक्सी वाले को उक्त गाड़ी का पीछा करने के लिए कहा तो वह तैयार हो गया. लगभग 20 मिनट बाद सफेद गाड़ी एक शानदार बिल्डिंग के अहाते में दाखिल हो गई. बिल्डिंग किस की थी? अमरेश का युवती से कैसा नाता था? मुझे दुबई बता कर मुंबई में क्या कर रहा था? यह सब जानना जरूरी था.

गेट पर गार्ड था. ड्राइवर को समझाबुझा कर गार्ड से पूछताछ करने के लिए भेज दिया. गार्ड से बात कर के 10 मिनट बाद ड्राइवर आया तो बताया कि बिल्ंिडग यहां के मशहूर बिल्डर रत्नेश्वर चौधरी की है. गाड़ी से उतर कर जो युवक व युवती मकान के अंदर गए हैं, वे चौधरी साहब की बेटी सारिका और दामाद अमरेश हैं. मुझे लगा, भूचाल आ गया है. अंदर तक हिल गई. जी चाहा कि फफकफफक कर रो पड़ूं. बड़ी मुश्किल से अपनेआप को संभाला और सहेली के घर गई.

वह अमरेश को विवाह से पहले से जानती थी. जिस कालेज में पढ़ती थी, वह भी उसी में पढ़ता था. बहुत स्मार्ट और हैंडसम था. लड़कियां उस की दीवानी थीं. मगर वह उस का दीवाना था. उस की खूबसूरती पर आहें भरता था और उस के आगेपीछे घूमता रहता था.

वह उसे चांस नहीं देती थी. दरअसल, प्रेममोहब्बत के चक्कर में पड़ कर वह पढ़ाई में पीछे नहीं होना चाहती थी. उस का इरादा ग्रेजुएशन के बाद पहले अपने पैरों पर खड़ा होना था, फिर विवाह करना था. उस के मातापिता भी यही चाहते थे.

इस तरह 2 वर्ष बीत गए. उस के बाद वह महसूस करने लगी कि वह अमरेश के इश्क में गिरफ्त हो चुकी है, क्योंकि सोतेजागते वही नजर आने लगा था. 2 साल तक जिस जज्बात को इनकार करती रही थी, वह संपूर्ण चरमोत्कर्ष के साथ उस पर छा चुका था. शायद अमरेश की लगातार कोशिश और उस के अच्छे व्यवहार ने उस की जिद के पांव उखाड़ दिए थे. 2 साल में अमरेश ने उस के साथ कभी कोई आपत्तिजनक हरकत नहीं की थी.

हमेशा उस से दोस्ताना तरीके से मिलता था. अपने जज्बात का इजहार करता था. लेकिन कभी भी जवाब के लिए तकाजा नहीं करता था. कभी कालेज से दूर तनहाई में मिलने के लिए मजबूर भी नहीं किया था.

सरिता : मुन्ना को किस बात की चिंता हो रही थी ? – भाग 1

कितना मुश्किल हो जाता है कभीकभी कोई निर्णय ले पाना. जिंदगी जैसे किसी मुकाम पर पहुंच कर आगे ही नहीं बढ़ना चाहती. बस, दिल चाहता है कि वक्त यहीं रुक जाए और हम आने वाले उस वक्त से अपना दामन बचा सकें, जो अपने साथ पता नहीं कितने अनसुलझे सवाल ले कर आ रहा है. परंतु ऐसा कहां हो पाता है, किसी के चाहने से वक्त भला कहीं रुकता है. उस की तो अपनी ही गति है. जिंदगी के सवाल चाहे जितने उलझे हों परंतु उन के उत्तर तो हमें तलाशने ही पड़ते हैं.

‘‘क्या बात है, तुम सो क्यों नहीं रहे…’’ पत्नी की आवाज सुन कर थोड़ी देर के लिए मेरी विचार तंद्रा भंग हो गई, ‘‘क्या बात है, आफिस में कुछ हुआ है क्या?’’ उसे मेरी बेचैनी की वजह नहीं समझ में आ रही थी.

‘‘नहीं, बस, यों ही… नींद नहीं आ रही, तुम सो जाओ, शुभी,’’ मैं ने धीरे से थपकी दे कर उसे आश्वस्त किया तो दिनभर की थकीमांदी शुभी कुनमुना कर सो गई.

घड़ी की टिकटिक निरंतर अपनी आवाज से मुझे बीतते वक्त का बोध करा रही थी. क्या होगा कल…कल जीजाजी फिर मुझ से पूछेंगे तब क्या जवाब दूंगा मैं उन्हें…मेरी नजरों के सामने उन की कातर छवि घूम गई थी. पता नहीं कैसे वह कांपते पैरों से मेरे आफिस में आए थे. कितने भीगे हुए स्वर में उन्होंने कहा था, ‘मुन्ना, अब मैं थक गया हूं…तन से भी और मन से भी. जिंदगी में जो गलती मैं ने की थी उस का प्रायश्चित्त तो शायद ही हो पर एक बार, सिर्फ एक बार मैं सरिता से मिलना चाहता हूं. मन में अब इतनी शक्ति शेष नहीं है कि मैं खुद उस के सामने जा सकूं. मुन्ना, बस एक बार मुझे उस से मिलवा दे. फिर शायद मैं सुकून से मर सकूं.’

क्या कहता मैं उन से. एक बार तो सोचा कि कह दूं, ‘जीजाजी, आप जिस भगवान की तलाश में उस बेसहारा औरत को एक बच्चे की जिम्मेदारी के साथ छोड़ गए थे, क्या वह भगवान आप को नहीं मिला. उसी से कहिए न कि वह बीते वक्त को वापस ला दे, क्यों मिलेगी वह आप से? जिंदगी के 20 साल तो उस ने अपने आंसुआें को अपने आंचल में छिपाए आप के बगैर काट दिए, अब कौन से नए आंसू देने के लिए आप मिलना चाहते हैं?’ लेकिन नहीं कह सका, बिस्तर पर पड़े मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे उस व्यक्ति से कोई कठोर बात कहने की हिम्मत ही नहीं पड़ी.

यह वह जीजाजी नहीं थे, जो कभी दमकते चेहरे वाले सुंदर, सुगठित नौजवान थे. घर छोड़ते वक्त जब साधुओं वाले वस्त्र पहने थे तब भी मैं ने इन्हें देखा था. उस दुखद वातावरण में भी मुझे इन का सौंदर्य खिला सा लग रहा था, लेकिन आज बीमारी से जर्जर शरीर के साथ सरकारी अस्पताल के बेड पर जाने लायक यह व्यक्ति जैसे निरीहता की प्रतिमूर्ति लग रहा था.

परंतु अब मैं क्या करूं, उन की हालत से पिघल कर मैं उन्हें मौन आश्वासन तो दे आया था, लेकिन कैसे कहूं दीदी से और क्या कहूं. 20 साल से दीदी अपने अंदर पता नहीं कितने तूफानों को समेटे चुपचाप जीती चली जा रही हैं.

जीजा के संन्यास लेने के बाद भी शायद ही किसी ने कभी उन के मुंह से जीजा की कोई शिकायत सुनी हो, वह तो बस निरंतर समय की गति के साथ किसी नदी की भांति बहती चली जा रही हैं. न किसी से कोई शिकवा न शिकायत. बीते वक्त का कोई भी दंश उन के व्यक्तित्व से नहीं झलकता. आज भी जो उन से मिलता है, प्रभावित हुए बिना नहीं रहता.

अब तो प्रियांशु ने ही सारा घर संभाल लिया है. वह दीदी के ही नक्शेकदम पर गया है. वही बोलने का मधुर अंदाज, वही सपनीली आंखें, अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठा. दीदी ने प्रियांशु में अपने संस्कार कूटकूट कर भर दिए हैं. उन दोनों की जिंदगी किसी मधुरमंद हवा की भांति बह रही है. ऐसे में मैं कैसे उन दोनों की जिंदगी में एकाएक कोई तूफान भर दूं, कैसे कहूं दीदी से कि आज जीजा तुम से मिलने के लिए व्याकुल हैं, प्रियांशु पर क्या प्रभाव पड़ेगा उस का…

5 साल का था जब जीजा ने उन दोनों को छोड़ कर संन्यास ले लिया था. इस की खबर पा कर मैं भी बाबूजी के साथ दीदी के घर गया था. 2 साल ही तो बड़ी थीं दीदी मुझ से पर उस समय मुझे उन्हें देख कर ऐसा लगा था जैसे वह अपनी उम्र से 10 साल आगे निकल गई हों.

जीजाजी के पिताजी भी तब जीवित थे. उन की हालत तो दीदी से भी बुरी थी. बाबूजी के आगे हाथ जोड़ कर उन्होंने कहा था, ‘भाई साहब… कैसे भी वापस लौटा लाइए उसे, उसे जो भी करना है घर में रह कर करे, आखिर उस के अलावा हम लोगों का कौन है? कैसे जीएगी बहू, जवान बहू को ले कर मैं बूढ़ा गृहस्थी की गाड़ी को खींच नहीं पाऊंगा, मेरी तो उस ने सुनी नहीं अब आप ही…’ कह कर रो पड़े थे वह.

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