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हाइपोथायराइडिज्म : लक्षण व उपचार

आयोडीन एक महत्त्वपूर्ण माइक्रोन्यूट्रिऐंट है, जो थायराइड हारमोन के निर्माण के लिए जरूरी है. आयोडीन हमारी डाइट का एक आवश्यक पोषक तत्त्व है. आयोडीन की कमी से हाइपोथायराइडिज्म हो जाता है. अगर समय रहते इस का उपचार न कराया जाए तो गर्भधारण करने में समस्या आना, बांझपन, नवजात शिशु में तंत्रिका तंत्र से संबंधित गड़बडि़यां आदि होने का खतरा भी बढ़ जाता है.

कुछ लोगों में आयोडीन का स्तर कम होने पर भी कोई लक्षण दिखाई नहीं देता है. वैसे कई लक्षण हैं, जिन से हाइपोथायराइडिज्म की पहचान होती है जैसे:

– थकान और उनींदापन महसूस होना.

– मांसपेशियों की कमजोरी.

– मासिकचक्र संबंधी गड़बडि़यां.

– ध्यानकेंद्रित करने में समस्या आना.

– याददाश्त का कमजोर पड़ना.

– असामान्य रूप से वजन बढ़ना.

– अवसाद.

– बाल झड़ना.

– त्वचा का ड्राई हो जाना.

– हृदय की धड़कनों का धीमा हो जाना.

महिलाओं के शरीर में आयोडीन की कमी का उन के प्रजनन तंत्र की कार्यप्रणाली से सीधा संबंध है. हाइपोथायराइडिज्म बांझपन और गर्भपात का सब से प्रमुख कारण है. जब थायराइड ग्लैंड की कार्यप्रणाली धीमी पड़ जाती है, तो वह पर्याप्त मात्रा में हारमोंस का उत्पादन नहीं कर पाती है, जिस से अंडाशयों से अंडों को रिलीज करने में बाधा आती है, जो बांझपन का कारण बनती है.

जो महिलाएं हाइपोथायराइडिज्म का शिकार होती हैं, उन में सैक्स में अरुचि, मासिकचक्र से संबंधित गड़बडि़यां और गर्भधारण करने में समस्या आना देखा जाता है. अगर हाइपोथायराइडिज्म से पीडि़त महिलाएं गर्भधारण कर भी लेती हैं, तो भी गर्भ का विकास प्रभावित होता है.

हाइपोथायराइडिज्म की रोकथाम

धूम्रपान बंद करें: धूम्रपान थायराइड को सीधे तौर पर प्रभावित करता है. इस के साथ ही निकोटिन शरीर से आयोडीन को अवशोषित करता है, जिस से हारमोन का स्राव प्रभावित होता है. यह सब से सामान्य कारण है, जो बांझपन में योगदान देता है.

बोतलबंद पानी पीना : इस पानी में मौजूद फ्लोराइड और परक्लोरेट वे तत्त्व हैं, जो हाइपोथायराइडिज्म को ट्रिगर करते हैं या थायराइड से संबंधित दूसरी समस्याओं का कारण बनते हैं.

सीमित मात्रा में करें आयोडीन का सेवन : ध्यान रखें कि आयोडीन का सेवन सीमित मात्रा में करना है. अधिक या कम मात्रा में आयोडीन का सेवन आयोडीन संबंधी गड़बडि़यों की आशंका बढ़ा देता है.

तनाव न पालें : नियमित व्यायाम और ध्यान करें. इस से आप को मानसिक शांति मिलेगी, जो थायराइड को रोकने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

सोया उत्पादों का अधिक सेवन न करें : सोया सप्लिमैंट्स और पाउडर का सेवन कम मात्रा में करें. दिन भर में सोयाबीन की एक आइटम से अधिक न खाएं और वह भी थोड़ी मात्रा में ही खाएं.

नवजातों को सोया बेस्ड चीजें न दें : जिन बच्चों को बहुत छोटी उम्र में सोयाबीन युक्त उत्पाद खिलाए जाते हैं उन में बड़े हो कर थायराइड रोग का खतरा बढ़ जाता है.

बांझपन को दूर करने के लिए किए जाने वाले प्रयासों में हाइपोथायराइडिज्म का उपचार एक महत्त्वपूर्ण भाग है. अगर हाइपोथायराइडिज्म का उपचार करने के बाद भी बांझपन की समस्या बरकरार रहती है, तो बांझपन के लिए दूसरे उपचार की आवश्यकता पड़ती है. गर्भवती महिलाओं को जितनी जल्दी हो सके शरीर में थायराइड के असामान्य स्तर का डायग्नोसिस करा लेना चाहिए. अगर डायग्नोसिस में थायराइड से संबंधित गड़बडि़यों का पता चलता है तो सुरक्षित गर्भावस्था, प्रसव और गर्भस्थ शिशु के स्वास्थ्य के लिए तुरंत उपचार कराएं.

मेरी बीवी पानी ऐसे बहाती है जैसे उसे कल की कोई फिक्र ही नहीं है, बताएं मैं क्या करूं ?

सवाल

मेरी उम्र 27 वर्ष है और मैं जयपुर का रहने वाला हूं. मेरी शादी को अभी कुछ महीने ही हुए हैं. पत्नी ने मेरे सिर में दर्द कर रखा है. मेरे घर में पानी की 500 लिटर की टंकी लगी है, 3 बजतेबजते वह खाली हो जाती है. वजह है मेरी पत्नी का पानी बहाना. हमें बचपन से ही पानी को बचाना सिखाया गया है और मेरी बीवी पानी ऐसे बहाती है जैसे उसे आने वाले कल की कोई फिक्र ही न हो. मैं उसे इस आदत पर बहुत टोकता हूं लेकिन वह टस से मस नहीं होती. अभी कुछ दिनों से मेरे और उस के झगड़े बहुत बढ़ गए हैं. उसे मेरी टोकाटाकी पसंद नहीं है और मुझे उस की आदतें. रोज की लड़ाइयों से मैं तंग आ चुका हूं. समझ नहीं आता कि इस परेशानी का हल आखिर है क्या ?

जवाब

आप का अपनी पत्नी को पानी की बरबादी के लिए रोकनाटोकना बिलकुल सही है. उन का इस तरह पानी बरबाद करना सचमुच गलत है और उस से भी ज्यादा गलत है इस आदत को सुधारने के बजाय उस पर बहस करना. आप उन्हें बैठ कर शांति से समझाएं कि पानी का कितना मोल है और पेयजल कितना कम होता जा रहा है. इस बात से तो कोई अनजान नहीं है कि यदि अभी पानी न बचाया गया तो भविष्य अंधकारमय हो जाएगा.

पत्नी को पानी का मोल समझाने के लिए आप एकदो दिनों के लिए कुछ ऐसा करिए कि घर में पानी न आए या कुछ ऐसा हो जाए कि आप की पत्नी को कुछ दिन पानी ही न मिले तो शायद वह समझ जाएगी कि बेवजह पानी बहाना कितना गलत है. हम सभी को पानी का महत्त्व समझना बहुत जरूरी है और इस के लिए पत्नी से माथापच्ची भी करनी पड़े तो सोचिए मत. आखिर बदलाव की शुरुआत घर से ही होती है.

चिकित्सा : ज्योतिषी की बात को झुण्लाती एक मनोवैज्ञानिक की कहानी

मैं कालेज से आ कर कपड़े भी नहीं उतार पाया था कि पत्नी ने सूचना दी, ‘‘सोमेश्वरजी को दिल का दौरा पड़ा है. घंटाभर पहले उन की पत्नी का मैसेज आया था.’’ सोमेश्वरजी मेरे घनिष्ठ मित्र हैं. मेरी और उन की अवस्था में 30 वर्ष का अंतर है. पर इस से हम लोगों की मैत्री में कभी बाधा नहीं पड़ी. व्यवसाय भी हम दोनों का भिन्न है. मैं अध्यापक हूं और वे आरएमपी डाक्टर. मैं इस नगर में आया, उस के 2 मास पश्चात ही मेरा उन से परिचय हो गया था. इस नगर का पानी मेरे अनुकूल नहीं था. मुझे भयानक पेचिश हुई. चिकित्सक उसे ठीक करने में विफल रहे. सभी ने एक ही सलाह दी, ‘चाय पियो या प्याज खाओ. तभी यहां का पानी अनुकूल आएगा.’ मैं दोनों में से एक भी काम नहीं कर सकता, इसलिए मैं ने यहां से जाने का निर्णय कर लिया.

तभी किसी ने मुझे सोमेश्वरजी के पास जाने की सलाह दी. सोमेश्वरजी की पहली ही गोली से मुझे फायदा होने लगा. यदि यह कहूं कि मैं इस नगर में सोमेश्वरजी की कृपा से ही हूं तो अतिशयोक्ति नहीं होगी. यदि वे न होते तो मैं यहां से अवश्य चला गया होता. सोमेश्वरजी से मेरा परिचय घनिष्ठता में बदला और शीघ्र ही घनिष्ठता ने मित्रता का रूप ले लिया. इस बात से लगभग सारा नगर परिचित है कि जब मैं यहां होता हूं तो 4 बजे से 5 बजे तक सोमेश्वरजी के क्लीनिक पर अवश्य बैठता हूं. उस समय मेरा घर में मिलना असंभव होता है, इसलिए वहां से निराश हो कर लोग मुझे सोमेश्वरजी की दुकान पर ही खोजते हैं. इतनी घनिष्ठता होने के कारण सोमेश्वरजी के अस्वस्थ होने की बात से मेरा चिंतित होना स्वाभाविक था. वैसे सोमेश्वरजी का अस्वस्थ होना कोई आश्चर्य की बात नहीं थी. वे 70 साल की अवस्था में इतना अधिक परिश्रम करते थे कि उन्हें दिल का दौरा न पड़ना ही विचित्र बात जान पड़ती थी.

मैं ने उलटासीधा खाना खाया और सोमेश्वरजी के अस्पताल की ओर चल पड़ा. सोमेश्वरजी कमरे में लेटे हुए थे. कमरे के बाहर बहुत से लोग बैठे थे. डाक्टर ने उन के पास लोगों को जाने से मना कर दिया था. दरवाजे के बाहर उन की पत्नी के साथ दोनों पुत्रवधुएं चुपचाप आंसू बहा रही थीं. वातावरण अत्यंत शांत एवं करुण बना हुआ था. मेरे पहुंचते ही सोमेश्वरजी के बड़े लड़के ने मुझे प्रणाम किया और धीरे से किवाड़ खोल कर मुझे कमरे में ले गया. मैं एक कुरसी पर बैठ गया. मैं सोमेश्वरजी को देख रहा था और सोमेश्वरजी मुझे. डाक्टर ने उन्हें पूरा विश्राम करने की सलाह दी थी. उन्हें बोलने और उठनेबैठने की मनाही थी.

सोमेश्वरजी कुछ कहना चाह रहे थे, पर मैं ने उन्हें ऐसा करने से रोक दिया. सहसा उन की दोनों आंखों से आंसुओं की बूंदें निकल पड़ीं, जो उन के मानसिक ताप की साक्षी थीं. मैं ने सोमेश्वरजी के समीप बैठ कर उन्हें समझाया, ‘‘आप निराश क्यों होते हैं? आप अवश्य ठीक हो जाएंगे. वैसे भी आप को घबराना नहीं चाहिए. आप अपने सभी उत्तरदायित्व पूरे कर चुके हैं.’’ मेरी बात का सोमेश्वरजी पर विशेष प्रभाव नहीं हुआ. तभी सूचना मिली कि डाक्टर साहब उन्हें देखने आए हैं. मैं कमरे से बाहर आ गया. डाक्टर साहब मेरे परिचित थे. उन्होंने कमरे में घुसने से पहले मुझे नमस्ते की. मैं कुछ पूछता, इस से पहले ही वे सोमेश्वरजी के कमरे में प्रवेश कर गए. डाक्टर साहब कुछ देर बाद बाहर निकले. उन के चेहरे पर असंतोष के भाव थे. मैं उन्हें भीड़ से एक ओर ले गया. सोमेश्वरजी का बड़ा लड़का भी मेरे साथ था. मैं ने डाक्टर साहब से पूछा, ‘‘कहिए डाक्टर साहब, मेरे मित्र के स्वास्थ्य में कुछ सुधार है?’’

डाक्टर साहब ने विवशता दिखाते हुए उत्तर दिया, ‘‘मैं ने बढि़या से बढि़या दवा दी है. दवा अपना काम कर रही है पर उतना नहीं जितना करना चाहिए.’’

‘‘दवा पूरा प्रभाव क्यों नहीं कर रही, उन्हें आप की इच्छा के अनुसार लाभ क्यों नहीं हो रहा?’’ मैं ने उत्सुकता से पूछा.

डाक्टर साहब कुछ देर तक सोचते रहे. उन के चेहरे पर अनिश्चितता के भाव छाए रहे. सहसा कुछ निश्चय सा कर के वे कहने लगे, ‘‘इन के मन में जीवन के प्रति आशा और उमंग बिलकुल नहीं है. ये समझ बैठे हैं कि इन की मृत्यु निश्चित है. इन के मन में निराशा समाई हुई है. जब तक ये मन से जीवन की अभिलाषा नहीं करेंगे तब तक दवा पूरा लाभ नहीं कर सकती. इन्हें जीवन के प्रति आशावान बनना पड़ेगा अन्यथा ये चल बसेंगे. अगर इन्होंने 4 दिन काट लिए तो इन के बचने की संभावना बढ़ जाएगी.’’

‘‘आप ने इन्हें जीवन के प्रति आशावान बनाने का प्रयत्न नहीं किया?’’ मैं ने डाक्टर साहब से अगला प्रश्न किया.

‘‘मैं केवल समझा सकता हूं, इन्हें तसल्ली दे सकता हूं. मैं ने इन्हें कई बार बताया है कि आप मरेंगे नहीं, आप अवश्य ठीक हो जाएंगे. पर इन के ऊपर कोई असर नहीं होता,’’ डाक्टर साहब ने उदासीनतापूर्वक उत्तर दिया. मेरे मुख पर हलकी सी मुसकराहट दौड़ गई. मैं ने डाक्टर साहब को विश्वास दिलाते हुए कहा, ‘‘आप इन्हें दवा दीजिए. इन के मन में जीवित रहने वाली भावना जगाने का प्रबंध मैं कर दूंगा.’’ पर उन के चेहरे से ऐसा लगा जैसे वे न तो मेरी बात समझे हैं और न ही मेरी बात पर उन्हें विश्वास हो रहा है. उन्हें शायद दूसरा मरीज देखने जाना था, इसलिए बात अधिक न बढ़ा कर चले गए. मैं सोमेश्वरजी की कमजोरी जानता था. वे अंधविश्वास में ज्यादा भरोसा करते थे. वे ज्योतिषियों पर बहुत विश्वास करते थे. मुझे शंका हुई कि अवश्य किसी ज्योतिषी ने उन की मृत्यु की भविष्यवाणी कर दी है, इसीलिए वह अपने जीवन की समाप्ति का विश्वास कर के मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे हैं.

सोमेश्वरजी के क्लीनिक पर एक लड़का नौकर था, जो दवाएं उठाउठा कर देता था. सोमेश्वरजी कुरसी पर बैठे रहते थे. वे जिस दवा का नाम लेते थे, लड़का उसी की शीशी अलमारी से निकाल कर सोमेश्वरजी के सामने रख देता था. काम हो जाने पर शीशी को अलमारी में रखना भी उसी का काम था. मैं ने उस से पूछा, ‘‘क्या, कुछ दिन पहले डाक्टर साहब के पास कोई ज्योतिषी आया था?’’

‘‘आया था. डाक्टर साहब ने अपनी जन्मपत्री भी उसे दिखाई थी,’’ लड़के ने उत्तर दिया.

मैं ने लड़के से अगला प्रश्न किया, ‘‘तुम्हें ध्यान है कि उस ने डाक्टर साहब को क्या बातें बताई थीं?’’

लड़का याद करता हुआ बोला, ‘‘बातें तो उस ने बहुत सी बताई थीं, पर मुझे तो एक ही बात याद है. उस ने कहा था कि आप की मृत्यु शीघ्र ही होने वाली है.’’ मैं ने जो अनुमान किया था वह सत्य निकला. डाक्टर साहब का बड़ा लड़का घबरा कर मुझ से पूछने लगा, ‘‘अब क्या होगा, शास्त्रीजी? लगता है, पिताजी अब नहीं रहेंगे. उस ज्योतिषी की बात इन के मन में बैठ गई है.’’ मैं ने सोमेश्वरजी के बड़े लड़के को आश्वासन दिया और सोचने लगा, विष को विष ही काटता है. कांटे से ही कांटा निकाला जा सकता है. यदि कोई ज्योतिषी विश्वास दिलाए तो सोमेश्वरजी जीवन के प्रति आशावान बन सकते हैं. पहले तो मैं ने सोचा कि उसी ज्योतिषी को बुला कर लाया जाए और उस से कहलवा दिया जाए कि उस ने जो कुछ बताया था, वह झूठ था. तभी मुझे ध्यान आया कि अब डाक्टर साहब उस की बात पर विश्वास नहीं करेंगे. वे समझ जाएंगे कि इस ने पहले तो ठीक बात बताई थी, अब वह किसी के कहने पर झूठ बोल रहा है. मैं ने किसी अन्य ज्योतिषी को बुला कर सोमेश्वरजी को जीवन की आशा दिलाने की बात सोची. पर कुछ देर में यह विचार भी मुझे लचर जान पड़ा. यह आवश्यक नहीं है कि वे एक ज्योतिषी के कहने से दूसरे की बात झूठ मान लें.

इसी समय मेरा ध्यान हस्तरेखा देख कर भविष्य बताने वालों की ओर चला गया. समीप ही ग्वालियर है. वहां अकसर हस्तरेखा विशेषज्ञ आते रहते हैं. उन के विज्ञापन समाचारपत्रों में निकलते हैं. मैं ने ग्वालियर से निकलने वाला एक दैनिक पत्र उठा कर देखा. उस में एक इसी प्रकार का विज्ञापन निकला था. मैं ने तुरंत मोबाइल से ग्वालियर फोन किया और उन्हें सारी स्थिति समझाई.

वे कहने लगे, ‘‘यह तो असत्य भाषण है. मुझ से यह नहीं हो सकेगा.’’

मैं ने उन्हें लालच देते हुए बताया, ‘‘मैं आप को 5 हजार रुपए दे सकता हूं. आप को आनेजाने में विशेष समय नहीं लगेगा. वहां तो केवल 10 मिनट का काम है. आप को केवल 2 बातें कहनी हैं. एक तो हस्तरेखा विज्ञान को ज्योतिष से श्रेष्ठ सिद्ध करना है, दूसरे, सोमेश्वरजी के कई वर्ष जीवित रहने की बात कहनी है.

‘‘रही झूठ बोलने की बात. यदि आप ने कभी भी झूठ नहीं बोला हो तो आज भी मत बोलिए. यह भी तो संभव है कि सोमेश्वरजी के हाथ की रेखाएं अभी उन के जीवित रहने का संकेत कर रही हों. वैसे भी किसी इंसान से जीवनरक्षा के लिए मन रखने वाली बात कह दी जाए तो मैं कुछ बुरा नहीं समझता.’’ लगता था हस्तरेखा विशेषज्ञ महोदय 2-5 हजार रुपए का लालच नहीं छोड़ सके. वे मेरे साथ चले आए. मैं उन्हें सोमेश्वरजी के कमरे में ले गया तो मेरे सिखाए अनुसार उन के बड़े लड़के ने हस्तरेखा विशेषज्ञ की ओर संकेत कर के पूछा, ‘‘शास्त्रीजी, ये सज्जन कौन हैं? मैं ने इन्हें पहले कभी नहीं देखा.’’

मैं ने उत्तर दिया, ‘‘तुम इन्हें देखते कहां से, ये यहां के रहने वाले नहीं हैं. ये प्रसिद्ध हस्तरेखा विशेषज्ञ हैं जो ग्वालियर के गूजरी महल में ठहरे हैं. यहां तहसीलदार साहब के घर आए थे. वहां से मैं इन्हें ले आया हूं सोमेश्वरजी का हाथ दिखाने.’’ हस्तरेखा विशेषज्ञ को अपने सामने बैठा जान कर सोमेश्वरजी अपना भविष्य जानने की अभिलाषा न रोक सके. उन्होंने अपना दायां हाथ धीरे से आगे बढ़ा दिया. मैं ने सोमेश्वरजी के विषय में जो कुछ बताया था, उसी के आधार पर हस्तरेखा विशेषज्ञ ने उन का भूतकाल इस प्रकार ठीकठीक बता दिया, जैसे खुली हुई किताब पढ़ रहे हों. उन बातों से सोमेश्वरजी पर उन का पूरा विश्वास जम गया.

मैं ने हस्तरेखा विशेषज्ञ से सोमेश्वरजी की आयु के विषय में पूछा तो उन्होंने सीधे हाथ की चारों उंगलियों को एकएक कर के हथेली पर मोड़ा और आत्मविश्वास के साथ कहने लगे, ‘‘इन की आयु 80 वर्ष है. इस से पहले इन की मृत्यु नहीं हो सकती.’’ सोमेश्वरजी चुप नहीं रह सके और धीरे से बोले, ‘‘मगर कुछ दिन पहले एक ज्योतिषी ने मेरी जन्मपत्री देख कर बताया था कि मैं 1 महीने से अधिक नहीं जी सकता. मुझे मारकेश लग चुका है.’’

हस्तरेखा विशेषज्ञ यह बात सुन कर जोश से भर गए और आत्मविश्वास के साथ कहने लगे, ‘‘जन्मपत्री और हस्तरेखाओं का अंतर आप समझ लेंगे तो मेरी बात ही आप को ठीक लगेगी. जन्मपत्री जन्मकाल के आधार पर बनाई जाती है. गांव के लोग बच्चे के जन्म का समय ठीक नहीं बता पाते, क्योंकि वहां सभी परिवारों में घडि़यां नहीं होतीं. यदि घड़ी हो तब भी समय में थोड़ाबहुत अंतर पड़ जाता है, क्योंकि अधिकांश घडि़यां थोड़ीबहुत आगेपीछे रहती हैं. ज्योतिष के 2 अंग हैं, गणित और फलित. गणित के आधार पर ज्योतिषी फलित के रूप में भविष्यवाणियां करते हैं. जन्मकाल ठीक ज्ञात न होने से गणित में अंतर पड़ जाता है और जन्मपत्री की घटनाएं सही नहीं बैठ पातीं. हस्तरेखाओं के विषय में ऐसी कोई बात नहीं है, उन्हें कभी भी देखा जा सकता है.’’ हस्तरेखा विशेषज्ञ की लंबीचौड़ी बातें सुन कर सोमेश्वरजी ज्योतिष की अपेक्षा हस्तरेखा विज्ञान को श्रेष्ठ समझने लगे हैं, ऐसा उन के चेहरे से लग रहा था. शीघ्र ही सोमेश्वरजी के मुख पर फिर शंका की भावना जगी और वे धीरे से बोले, ‘‘आप की बात ठीक होगी पर मुझे तो ऐसा लगता है कि मेरा अंतिम समय आ गया है.’’

सोमेश्वरजी की बात सुनते ही हस्तरेखा विशेषज्ञ की घनी भौंहें तन गईं. वह आत्मविश्वासपूर्वक बोले, ‘‘अधिक बात तो मैं नहीं कहता, पर आप के जीवन के प्रति मैं शर्त लगा सकता हूं. अभी तो आप को चारों धामों की तीर्थयात्रा करनी है. अगर 80 वर्ष से पहले आप की मृत्यु हो जाए तो मैं हस्तरेखा देखने का काम छोड़ दूंगा.’’ सोमेश्वरजी को हस्तरेखा विशेषज्ञ पर पक्का विश्वास हो गया. उन के चेहरे की उदासी मिट गई और वहां आशा का प्रकाश झलकने लगा. हस्तरेखा विशेषज्ञ बाहर निकले तो मैं ने सफल अभिनय के लिए उन की प्रशंसा की तथा 5100 रुपए दिए. 100 रुपए अभिनय का इनाम था. धीरेधीरे सोमेश्वरजी की दशा सुधरने लगी. अगले दिन डाक्टर साहब उन्हें देख कर बाहर निकले तो कहने लगे, ‘‘इन की हालत में जमीनआसमान का अंतर है. आप ने कमाल कर दिया है?’’

मैं ने डाक्टर साहब को सब बातें बताईं तो वे चकित रह गए. जब सोमेश्वरजी पूरी तरह से ठीक हो गए तो मैं ने उन्हें सारी बातें बता दीं. उस के बाद से सोमेश्वरजी ने ज्योतिष वगैरह में न सिर्फ विश्वास करना छोड़ दिया बल्कि दूसरे लोगों को भी इस तरह की फुजूल बातों पर विश्वास न करने की हिदायत देने लगे. इस बात को 8 वर्ष हो गए हैं. सोमेश्वरजी अपना काम पहले के समान ही परिश्रम और लगन के साथ कर रहे हैं.

उत्तरकाशी सुरंग हादसा : मजदूरों की सकुशल वापसी का इंतजार

इस बार की दीवाली उन 41 मजदूर परिवारों के लिए बिलकुल काली हो गई जो उत्तराखंड की सिल्क्यारा टनल के अचानक धंसने से उसमें फंस गए हैं. दीवाली के दिन सुबह साढ़े 5 बजे निर्माणाधीन सिलक्यारा-डंडालगांव सुरंग का एक हिस्सा ढह गया. उस सुरंग में उस वक़्त 41 मजदूर खुदाई में जुटे थे. सुरंग का पिछला हिस्सा भूस्खलन की वजह से इस तरह भरभरा कर गिरा कि उस ने बाहर निकलने का रास्ता ही बंद कर दिया.

बीते 14 दिन से चल रहे बचाव कार्यों के बीच सुरंग में बंद मजदूरों और बाहर जमावड़ा लगाए उन के परिजनों की हर सुबह इस उम्मीद के साथ हो रही है कि शायद आज उन्हें बाहर निकाल लिया जाएगा मगर हर शाम निराश और खामोश हो जाती है.

इन 41 मजदूरों में से 15 मजदूर झारखंड के हैं, इस के अलावा उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार के मजदूर हैं. गांव-देहात में उन के परिजन किसी अनहोनी की आशंका से भरे हुए हैं. सुरंग में बंद एक मजदूर अनिल की मां राजो देवी ने खाना पीना छोड़ रखा है. कहती है जब तक मेरा बेटा जीवित नहीं निकलेगा अन्न को हाथ नहीं लगाऊंगी.

अनिल का बड़ा भाई सुनील पिछले 14 दिनों से सुरंग के बाहर बचावकर्मियों के साथ डटा हुआ है और वहां के पल पल की खबर अपने गांव भेज रहा है. अन्य मजदूरों के परिजन भी वहां पहुंच चुके हैं जिन के आने, ठहरने और खानेपीने का सारा इंतजाम राज्य सरकार ने किया है.

मजदूरों को सकुशल बाहर निकालने के लिए सरकार द्वार जो काम हो रहा है वह तारीफ के काबिल है क्योंकि ऐसा पहली बार देखने में आ रहा है कि मजदूर वर्ग की जान बचाने के लिए सरकार ने जमीन आसमान एक कर दिया है.

दरअसल 41 मजदूरों को सुरंग से सकुशल निकाल लेना उत्तराखंड सरकार के लिए ही नहीं, बल्कि केंद्र की मोदी सरकार के लिए भी निहायत जरूरी हैं क्योंकि अगर ऐसा नहीं हो सका तो यह घटना न सिर्फ चारधाम यात्रा के लिए अभिशाप बन जाएगी, बल्कि आगे होने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनाव पर भी इस का बुरा असर भाजपा को झेलना होगा.

मजदूरों को बाहर निकालने की जद्दोजहद में अनेक इंजीनियर, तकनीकी विशेषज्ञ, सेना के जवान, राष्ट्रीय आपदा मोचन बल, उत्तराखंड राज्य आपदा प्रतिवादन बल, सीमा सड़क संगठन और परियोजना का निर्माण करने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग एवं अवसंरचना विकास निगम (एनएचआइडीसीएल), भारत तिब्बत सीमा पुलिस, स्थानीय लोग और बड़ी संख्या में महिलाएं भी जुटी हुई हैं.

ढीले मलबे को ‘शाटक्रीटिंग’ की मदद से ठोस करने और उस के बाद उसे भेद कर उस में बड़े व्यास के स्टील पाइप डाल कर श्रमिकों को बाहर निकालने की रणनीति बनाई गई थी. बाद में इस के जरिए दो बड़े व्यास के पाइप डाल कर कैमरे के जरिए मजदूरों का हालचाल जाना गया. कंप्रेशर से दबाव बना कर इन पाइप के जरिए श्रमिकों को ऑक्सीजन, बिजली, पानी, दवाइयां और खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है.

रातदिन ड्रिलिंग का काम हो रहा है मगर सख्त चट्टानों सरिया, पत्थर और उन के बीच स्टील और लोहे के गर्डर व तारों के जंजाल ने मजबूत मशीनों को भी नाकों चने चबवा दिए हैं. ड्रिलिंग में लगी औगर मशीन बारबार क्षतिग्रस्त हो कर बंद हो रही है.

15 नवम्बर को पहली ड्रिलिंग मशीन के बार बार खराब होने से असंतुष्ट एनएचआईडीसीएल ने बचाव कार्य तेज करने के लिए दिल्ली से अत्याधुनिक अमेरिकी औगर मशीन मंगाई. 16 नवम्बर से इस उच्च क्षमता वाली अमेरिकी औगर मशीन से खुदाई का काम शुरू हुआ.

14 दिन की खुदाई के बाद अब मजदूरों तक पहुंचने में करीब 9 मीटर की दूरी शेष बची है जो मिटने का नाम नहीं ले रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि इस दूरी को अब बहुत संभल का पार करना होगा. एकएक इंच मिट्टी हटाने के लिए धैर्य से काम लेना होगा.

कोशिश है कि इस 9 मीटर के अवरोध को अब मशीन के बजाए हाथ से ड्रिल करके दूर किया जाए और मजदूरों को एकएक कर पाइप में पहियेदार स्ट्रेचर के जरिए बाहर निकाला जाए.

पूरे रेस्क्यू औपरेशन पर राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी खुद नजर बनाए हुए हैं और घटनास्थल के दौरे कर चुके हैं. रेस्क्यू औपरेशन के पल पल की जानकारी वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी शेयर कर रहे हैं.

वैसे कई सालों से हिमालय की जानकारी रखने वाले ज्योलोजिकल साइंटिस्ट किसी भी तरह की सड़कों, बांधों और निर्माण का विरोध करते रहे हैं पर धर्म के व्यापार को बढ़ावा देना भी तो जरूरी है न.

पंजाब सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई गवर्नरों को फटकार

सुप्रीम कोर्ट ने 4 विधेयकों को लंबित रखने पर पंजाब के संघ के पुराने कार्यकर्ता राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित को जिस तरह फटकार लगाई है और दोनों राजभवनों के आचरण पर नाखुशी व्यक्त की है, उस से एक कडा मैसेज मोदी की केंद्र सरकार को भी मिला है, जिस के इशारे पर अनेक राज्यों में तैनात भाजपाई गवर्नर विपक्षी दलों की राज्य सरकार के कामों में बेवजह का हस्तक्षेप करते रहते हैं और विधायकों को लंबित रख कर जनता के काम नहीं होने देते.

24 नवम्बर की शाम सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर कोर्ट का जो फैसला दर्ज हुआ है वह पंजाब के ही नहीं बल्कि देश के उन तमाम गवर्नरों के लिए एक सबक है जो केंद्र के इशारे पर राज्य सरकारों के कार्यों में हस्तक्षेप और अवरोध पैदा करते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने अपनी एक अहम टिप्पणी में कहा है कि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयकों को अपने पास लंबित नहीं रख सकते. राज्यपाल के पास संवैधानिक ताकत होती है लेकिन वह इस ताकत का इस्तेमाल राज्य सरकार के कानून बनाने के अधिकार को वीटो करने के लिए नहीं कर सकते.

पंजाब सरकार ने राज्यपाल पर विधेयकों को मंजूरी नहीं देने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित का कहना था कि पंजाब सरकार द्वारा 19 – 20 जून को बुलाया गया विशेष सत्र असंवैधानिक है, इसलिए उस सत्र में किया गया काम भी असंवैधानिक है. वहीं सरकार का तर्क है कि बजट सत्र का सत्रावसान नहीं हुआ है, इसलिए सरकार जब चाहे फिर से सत्र बुला सकती है.

सिख गुरुद्वारा (संशोधन) विधेयक, 2023, पंजाब विश्वविद्यालय कानून (संशोधन) विधेयक, 2023, पंजाब पुलिस (संशोधन) विधेयक, 2023, और पंजाब संबद्ध कालेज (सेवा की सुरक्षा) संशोधन विधेयक, 2023 अभी भी राज्यपाल की सहमति की प्रतीक्षा कर रहे हैं. मगर राज्यपाल ने इन विधेयकों को मंजूरी देने में टालमटोल का रवैया इख्तियार कर रखा था क्योंकि इनसे भाजपा को परेशानी है जिस के बाद सरकार को सुप्रीम कोर्ट का रुख करना पड़ा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ‘बेशक राज्यपाल संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत किसी विधेयक को रोक सकते हैं लेकिन इसका सही तरीका ये है कि वह विधेयक को फिर से पुनर्विचार के लिए विधानसभा को भेजें.’

संघवाद यानी फेडरल स्ट्रक्चर और लोकतंत्र बुनियादी ढांचे का हिस्सा हैं और दोनों को अलग नहीं किया जा सकता. अगर एक तत्व कमजोर होगा तो दूसरा भी खतरे में आएगा. नागरिकों की आकांक्षाओं और मौलिक आजादी को हकीकत बनाने के लिए इन दोनों का समन्वय के साथ काम करना जरूरी है.

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित को निर्देश दिया कि वह विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर जल्द फैसला लें. साथ ही कोर्ट ने पंजाब सरकार के जून के विधानसभा सत्र को संवैधानिक करार दिया है.

भाजपा इतनी आसानी से हार नहीं मानने वाली और महामहिम राज्यपाल पुरोहित कुछ और बहाना ढूंढेंगे.

यूपी विधानसभा के नए नियम : मोबाइल, झंडे, बैनर बैन लेकिन गुटखा, खैनी क्यों नहीं?

पिछले कई मामलों में यह देखा गया कि देश के अलगअलग राज्यों में विधानसभाओ में सदन सत्र के दौरान कई सदस्य मोबाइल पर आपत्तिजनक समाग्री देखते पाये गए थे. कई बार सरकार का विरोध करने के लिये झंडे, बैनर और तख्ती लहराने की घटनाएं घटी थी. कई बार सदस्य सदन की कार्यवाही में गंभीरता से हिस्सा न ले कर मोबाइल देखते रहते थे.

इसलिए उत्तर प्रदेश की सरकार ने विधानसभा में प्रवेश के नए नियम बना रही है. जहां मोबाइल, झंडा और बैनर पर प्रतिबंध लग रहा है वहीं गुटखा और खैनी को ले कर भी प्रतिबंध लगना चाहिए. पिछले दिनों सदन में खैनी खाने को ले कर भी सोशल मीडिया पर बहुत हल्ला मचा था.

उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए उत्तर प्रदेश सरकार 66 साल के बाद नियमों में बदलाव करने जा रही है. इस के तहत विधानसभा में मोबाइल फोन, झंडे और बैनर ले कर जाना मना होगा. विधानसभा में विधायक मोबाइल फोन नहीं ले जा सकेंगे. इस का कारण यह बताया जा रहा है कि इस से सदस्यों के आचरण को सुधारने में मदद मिलेगी और सदन के कामकाज संचालन की प्रक्रिया सरल बन सकेगी.

नए नियमों के अनुसार सदस्य सभा में झंडे, प्रतीक या कोई वस्तु प्रदर्शित नहीं करेंगे. सदस्यों को नए नियमों के अनुसार सदन के अंदर किसी भी दस्तावेज को फाड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी. यूपी विधानसभा अध्यक्ष महाना के अनुसार नियमावली पर चर्चा के बाद इस के पारित होने उत्तर प्रदेश विधानसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमावली, 2023, उप्र विधानसभा की प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमावली, 1958 का स्थान ले लेंगी.

विधानसभा सदन भाषण देने के लिये होता है. ऐसे में वहां पर झंडा और बैनर दिखा कर विरोध करने की वजह सही नहीं लगती है. इस से लोगों का ध्यान प्रभावित होता है. सुनने वाले को सही बात समझ में नहीं आती है. मोबाइल, झंडा और बैनर के साथ ही साथ कई खास किस्म का संदेश देने या विरोध प्रदर्शन के लिए कपड़े पहन कर सदस्य आ जाते हैं. यूपी विधानसभा में पिछली बार तब हंगामा मचा था जब कुछ सदस्य काले रंग के कपडे पहन कर आ गए थे. इस तरह के काम भी नहीं होने चाहिए.

यह भी नियम बनना चाहिए क्या कि धार्मिक पोशाक पहन कर कोई भी सदस्य विधानसभा या संसद में नहीं आए क्योंकि हमारा संविधान सेक्यूलर है? शायद इस पर भाजपा राजी नहीं होगी क्योंकि वह तो धर्म राज लाना चाहती है जिस में सिर्फ धार्मिक पोशाक दिखे. मोबाइल और बैनर विधानसभा में भाजपा की पोल खोल रहे हैं.

सच बात यह है कि नियम बनते है पर इन का सख्ती से पालन नहीं होता. विधायकों की चैकिंग नहीं होती है. वह अंदर कुछ भी ले कर चले जाते हैं. इस को भी देखा जाना चाहिए. अगर विधायकों की भी सघन चैकिंग की व्यवस्था हो तभी इस तरह के नियमों का बनाना सही हो सकेगा.

विधानसभा में प्रवेश जैसे नियम मंत्री, विधायक और सांसद द्वारा उदघाटन और शिलान्यास को ले कर नहीं बनने चाहिए जिस से विवाद न हो सके ?

अभी लोकसभा को ले कर विवाद था कि राष्ट्रपति करे या प्रधानमंत्री. उत्तर प्रदेेश में समाजवादी पार्टी खुल कर आरोप लगाती है कि भाजपा की योगी सरकार अखिलेश यादव के द्वारा कराये गए कामों को अपना बता कर उस का उदघाटन कर रही है. इस तरह के नियम कानून बनने से विवादों से बचा जा सकेगा. जिस सरकार का काम होगा उस के खातें में दर्ज हो सकेगा.

पनौती शब्द चर्चा में, जानें कहां और क्यों होता है इसका इस्तेमाल

राष्ट्रीय उत्सुकता, चिंतन और रिसर्च का विषय बन गए पनौती शब्द को ले कर देश भर के लोग हैरान हैं कि आखिर यह है क्या बला. हर किसी ने पनौती शब्द कभी न कभी सुना जरुर था लेकिन इस का सटीक अर्थ हर किसी को नहीं मालूम.

मौटे तौर पर समझा यही जाता है कि यह कोई अच्छा शब्द नहीं है इसलिए इस के भाव भी अच्छे नहीं है, अब यही शब्द राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए इस्तेमाल कर दिया तो खासा बवंडर मच गया.

प्रधानमंत्री मोदी अहमदाबाद में हुए आस्ट्रेलिया और भारत के वर्ल्ड कप फाइनल को देखने पहुंचे थे और 10 मैच जीत चुकी भारतीय टीम यह मैच हार गई और वह भी 6 विकटों से. इस से क्रिकेट भक्त चिढ़ गए हैं. नरेंद्र मोदी की उपस्थिति को हार का कारण वही अंधविश्वासी बता रहे हैं जो हर मामले में भाजपा भक्त रहते रहे हैं.

भाजपा ने इस शब्द को बतौर खिताब लेने से मना कर दिया और पहुंच गई सीधे चुनाव आयोग, जहां होना जाना कुछ नहीं है क्योंकि पनौती कोई गाली नहीं है ठीक वैसे ही जैसे मूर्खों का सरदार कहना गाली नहीं है.

ये शब्द तो नेताओं द्वारा एकदूसरे के लिए `मोहब्बत’ इजहार व्यक्त करने के अपनेअपने मनोभाव, कुंठा और ख्यालात भर हैं.

कोई शब्दकोश टटोल रहा है तो कोई मूर्धन्य साहित्यकारों की चिचोरी कर रहा है. 48 घंटों में पनौती पर जो शोध हुआ है उस से निम्नलिखित निष्कर्ष सामने आए हैं. सामने यह भी आया है कि अपने आराध्य को पनौती के ख़िताब से नवाज दिए जाने पर भगवा गैंग तिलमिलाई हुई क्यों है.

– पनौती शब्द उन व्यक्तियों के लिए प्रयोग किया जाता है जिन के दखल और आगमन तो दूर स्मरण मात्र से ही काम बिगड़ जाते हैं. जैसे टीवी सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा ‘ में जेठालाल अपने साले सुंदर लाल के फोन आने से ही समझ जाता है कि अब कोई मुसीबत आने वाली है या कोई फसाद खड़ा होने वाला है.

– एक पौराणिक प्रसंग के मुताबिक क्रूर माने जाने वाले गृह शनि की बहन भद्रा को पनौती कहा जाता है. रक्षा बंधन में भद्रा काल में इसीलिए बहनों को पंडेपुरोहित मना करते हैं कि भद्रा काल में राखी न बांधी जाए.

– भाषाविदों के मुताबिक पनौती शब्द हिंदी में औती प्रत्यय से बना है इस से मिलतेजुलते शब्द हैं – चुनौती ,बपौती, मनौती, कटौती आदि.

संधि विच्छेद करें तो पन और औती मिला कर पनौती शब्द बनता है, जिस का मतलब होता है बाढ़. जिस का कहर किसी सबूत का मोहताज नहीं.

– कुछ जानकारों के अनुसार पनौती शब्द उन बहुओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है जिन के घर में कदम रखते ही कोई अशुभ घटना हो जाती है. जैसे किसी बुजुर्ग की मौत हो जाना खेतीकिसानी या व्यापार में नुकसान हो जाना.

अब यह और बात है कि हरेक सास के लिए बहू पनौती ही होती है. यानी बड़े पैमाने पर औरतों को बेइज्जत करने पनौती शब्द मुफीद है. कुछ इलाकों में लड़की के जन्म पर कहा जाता है पनौती आ गई. कोई कोई पति भी पत्नियों को प्यार से पनौती कहते हैं.

कुल मिला कर पनौती शब्द अपशगुन और दुर्भाग्य का सूचक है अब इस शब्द का महत्व और बढ़ गया है. पिछले 2 दिनों से हर कोई इस शब्द को इस्तेमाल करने के लिए मौके की तलाश ढूंढ रहा है. गूगल पर इसे तेजी से सर्च किया जा रहा है.

साल 2023 के सब से चर्चित शब्दों में शुमार पनौती पर एक पुराण सा तैयार हो रहा है. पनौती पर मीम्स और वीडियो बन रहे हैं. मुमकिन है कोई उत्साही फिल्म निर्माता पनौती नाम से फिल्म बनाने का ही ऐलान कर डाले.

रूढि़यों के साए में

दीपों की टेढ़ीमेढ़ी कतारों के कुछ दीप अपनी यात्रा समाप्त कर अंधकार के सागर में विलीन हो चुके थे, तो कुछ उजाले और अंधेरे के बीच की दूरी में टिमटिमा रहे थे. गली का शोर अब कभीकभार के पटाखों के शोर में बदल चुका था.

दिव्या ने छत की मुंडेर से नीचे आंगन में झांका जहां मां को घेर पड़ोस की औरतें इकट्ठी थीं. वह जानबूझ कर वहां से हट आई थी. महिलाओं का उसे देखते ही फुसफुसाना, सहानुभूति से देखना, होंठों की मंद स्मिति, दिव्या अपने अंतर में कहां तक झेलती? ‘कहीं बात चली क्या…’, ‘क्या बिटिया को बूढ़ी करने का इरादा है…’ वाक्य तो अब बासी भात से लगने लगे हैं, जिन में न कोई स्वाद रहता है न नयापन. हां, जबान पर रखने की कड़वाहट अवश्य बरकरार है.

काफी देर हो गई तो दिव्या नीचे उतरने लगी. सीढि़यों पर ही रंभा मिल गई. बड़ेबड़े फूल की साड़ी, कटी बांहों का ब्लाउज और जूड़े से झूलती वेणी…बहुत ही प्यारी लग रही थी, रंभा.

‘‘कैसी लग रही हूं, दीदी…मैं?’’ रंभा ने उस के गले में बांहें डालते हुए पूछा तो दिव्या मुसकरा उठी.

‘‘यही कह सकती हूं कि चांद में तो दाग है पर मेरी रंभा में कोई दाग नहीं है,’’ दिव्या ने प्यार से कहा तो रंभा खिलखिला कर हंस दी.

‘‘चलो न दीदी, रोशनी देखने.’’

‘‘पगली, वहां दीप बुझने भी लगे, तू अब जा रही है.’’

‘‘क्या करती दीदी, महल्ले की डाकिया रमा चाची जो आ गई थीं. तुम तो जानती हो, अपने शब्दबाणों से वे मां को कितना छलनी करती हैं. वहां मेरा रहना जरूरी था न.’’

दिव्या की आंखें छलछला आईं. रंभा को जाने का संकेत करती वह अपने कमरे में चली आई. बत्ती बुझाने के पूर्व उस की दृष्टि सामने शीशे पर चली गई, जहां उस का प्रतिबिंब किसी शांत सागर की याद दिला रहा था. लंबे छरहरे शरीर पर सौम्यता की पहनी गई सादी सी साड़ी, लंबे बालों का ढीलाढाला जूड़ा, तारे सी नन्ही बिंदी… ‘क्या उस का रूप किसी पुरुष को रिझाने में समर्थ नहीं है? पर…’

बिस्तर पर लेटते ही दिव्या के मन के सारे तार झनझना उठे. 30 वर्षों तक उम्र की डगर पर घिसटघिसट कर बिताने वाली दिव्या का हृदय हाहाकार कर उठा. दीवाली का पर्व सतरंगे इंद्रधनुष में पिरोने वाली दिव्या के लिए अब न किसी पर्व का महत्त्व था, न उमंग थी. रूढि़वादी परिवार में जन्म लेने का प्रतिदान वह आज तक झेल रही है. रूप, यौवन और विद्या इन तीनों गुणों से संपन्न दिव्या अब तक कुंआरी थी. कारण था जन्मकुंडली का मिलान.

तकिए का कोना भीगा महसूस कर दिव्या का हाथ अनायास ही उस स्थान को टटोलने लगा जहां उस के बिंदु आपस में मिल कर अतीत और वर्तमान की झांकी प्रस्तुत कर रहे थे. अभी एक सप्ताह पूर्व की ही तो बात है, बैठक से गुजरते हुए हिले परदे से उस ने अंदर देख लिया था. पंडितजी की आवाज ने उसे अंदर झांकने पर मजबूर किया, आज किस का भाग्य विचारा जा रहा है? पंडितजी हाथ में पत्रा खोले उंगलियों

पर कुछ जोड़ रहे थे. कमरे तक आते हुए दिव्या ने हिसाब लगाया, 7 वर्ष से उस के भाग्य की गणना की जा रही है.

खिड़की से आती धूप की मोटी तह उस के बिस्तर पर साधिकार पसरी हुई थी. दिव्या ने क्षुब्ध हो कर खिड़की बंद कर दी.

‘‘दीदी…’’ बाहर से रंभा ने आते ही उस के गले में बांहें डाल दीं.

‘‘बाहर क्या हो रहा है…’’ संभलते हुए दिव्या ने पूछा था.

‘‘वही गुणों के मिलान पर तुम्हारा दूल्हा तोला जा रहा है.’’

रंभा ने व्यंग्य से उत्तर दिया, ‘‘दीदी, मेरी समझ में नहीं आता…तुम आखिर मौन क्यों हो? तुम कुछ बोलती क्यों नहीं?’’

‘‘क्या बोलूं, रंभा?’’

‘‘यही कि यह ढकोसले बंद करो. 7 वर्षों से तुम्हारी भावनाओं से खिलवाड़ किया जा रहा है और तुम शांत हो. आखिर ये गुण मिल कर क्या कर लेंगे? कितने अच्छेअच्छे रिश्ते अम्मांबाबूजी ने छोड़ दिए इस कुंडली के चक्कर में. और वह इंजीनियर जिस के घर वालों ने बिना दहेज के सिर्फ तुम्हें मांगा था…’’

‘‘चुप कर, रंभा. अम्मां सुनेंगी तो क्या कहेंगी.’’

‘‘सच बोलने से मैं नहीं डरती. समय आने दो. फिर पता चलेगा कि इन की रूढि़वादिता ने इन्हें क्या दिया.’’

रंभा के जलते वाक्य ने दिव्या को चौंका दिया. जिद्दी एवं दबंग लड़की जाने कब क्या कर बैठे. यों तो उस का नाम रंभा था पर रूप में दिव्या ही रंभा सी प्रतीत होती थी. मां से किसी ने एक बार कहा भी था, ‘बहन, आप ने नाम रखने में गलती कर दी. रंभा सी तो आप की बड़ी बेटी है. इसे तो कोई भाग्य वाला मांग कर ले जाएगा,’

तब मां चुपके से उस के कान के पीछे काला टीका लगा जातीं. कान के पीछे लगा काला दाग कब मस्तक तक फैल आया, स्वयं दिव्या भी नहीं जान पाई.

बी.एड. करते ही एक इंटर कालेज में दिव्या की नौकरी लग गई तो शुरू हुआ सिलसिला ब्याह का. तब पंडितजी ने कुंडली देख कर बताया कि वह मंगली है, उस का ब्याह किसी मंगली युवक से ही हो सकता है अन्यथा दोनों में से कोई एक शीघ्र कालकवलित हो जाएगा.

पहले तो उस ने इसे बड़े हलकेफुलके ढंग से लिया. जब भी कोई नया रिश्ता आता, उस के गाल सुर्ख हो जाते, दिल मीठी लय पर धड़कने लगता. पर जब कई रिश्ते कुंडली के चक्कर में लौटने लगे तो वह चौंक पड़ी. कई रिश्ते तो बिना दानदहेज के भी आए पर अम्मांबाबूजी ने बिना कुंडली का मिलान किए शादी करने से मना कर दिया.

धीरेधीरे समय सरकता गया और घर में शादी का प्रसंग शाम की चाय सा साधारण बैठक की तरह हो गया. एकदो जगह कुंडली मिली भी तो कहीं लड़का विधुर था, कहीं परिवार अच्छा नहीं था. आज घर में पंडितजी की उपस्थिति बता रही थी कि घर में फिर कोई तामझाम होने वाला है.

वही हुआ, रात्रि के भोजन पर अम्मांबाबूजी की वही पुरानी बात छिड़ गई.

‘‘मैं कहती हूं, 21 गुण कोई माने नहीं रखते, 26 से कम गुण पर मैं शादी नहीं होने दूंगी.’’

‘‘पर दिव्या की मां, इतनी देर हो चुकी है. दिव्या की उम्र बीती जा रही है. कल को रिश्ते मिलने भी बंद हो जाएंगे. फिर पंडितजी का कहना है कि यह विवाह हो सकता है.’’

‘‘कहने दो उन्हें, एक तो लड़का विधुर, दूसरे, 21 गुण मिलते हैं,’’ तभी वे रुक गईं.

रंभा ने पानी का गिलास जोर से पटका था, ‘‘सिर्फ विधुर है. उस से पूछो, बच्चे कितने हैं? ब्याह दीदी का उसी से करना…गुण मिलना जरूरी है लेकिन…’’

रंभा का एकएक शब्द उमंगों के तरकश से छोड़ा हुआ बाण था जो सीधे दिव्या ने अपने अंदर उतरता महसूस किया.

‘‘क्या बकती है, रंभा, मैं क्या तुम लोगों की दुश्मन हूं? हम तुम्हारे ही भले की सोचते हैं कि कल को कोई परेशानी न हो, इसी से इतनी मिलान कराते हैं,’’ मां की झल्लाहट स्वर में स्पष्ट झलक रही थी.

‘‘और यदि कुंडली मिलने के बाद भी जोड़ा सुखी न रहा या कोई मर गया तो क्या तुम्हारे पंडितजी फिर से उसे जिंदा कर देंगे?’’ रंभा ने चिढ़ कर कहा.

‘‘अरे, कीड़े पड़ें तेरी जबान में. शुभ बोल, शुभ. तेरे बाबूजी से मेरे सिर्फ 19 गुण मिले थे, आज तक हम दोनों विचारों में पूरबपश्चिम की तरह हैं.’’

अम्मांबाबूजी से बहस व्यर्थ जान रंभा उठ गई. दिव्या तो जाने कब की उठ कर अपने कमरे में चली गई थी. दोचार दिन तक घर में विवाह का प्रसंग सुनाई देता रहा. फिर बंद हो गया. फिर किसी नए रिश्ते की बाट जोहना शुरू हो गया. दिव्या का खामोश मन कभीकभी विद्रोह करने को उकसाता पर संकोची संस्कार उसे रोक देते. स्वयं को उस ने मांबाप एवं परिस्थितियों के अधीन कर दिया था.

रंभा के विचार सर्वथा भिन्न थे. उस ने बी.ए. किया था और बैंक की प्रतियोगी परीक्षा में बैठ रही थी. अम्मांबाबूजी के अंधविश्वासी विचारों पर उसे कुढ़न होती. दीदी का तिलतिल जलता यौवन उसे उस गुलाब की याद दिलाता जिस की एकएक पंखड़ी को धीरेधीरे समय की आंधी अपने हाथों तोड़ रही हो.

आज दीवाली की ढलती रात अपने अंतर में कुछ रहस्य छिपाए हुए थी. तभी तो बुझते दीपों के साथ लगी उस की आंख सुबह के हलके शोर से टूट गई. धूप काफी निकल आई थी. रंभा उत्तेजित स्वरों में उसे जगा रही थी, ‘‘दीदी…दीदी, उठो न…देखो तो भला नीचे क्या हो रहा है…’’

‘‘क्या हो रहा है नीचे? कोई आया है क्या?’’

‘‘हां, दीदी, अनिल और उस के घर वाले.’’

‘‘अनिल वही तो नहीं जो तुम्हारा मित्र है और जो मुंसिफ की परीक्षा में बैठा था,’’ दिव्या उठ बैठी.

‘‘हां, दीदी, वही. अनिल की नियुक्ति शाहजहांपुर में ही हो गई है. दीदी, हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते हैं. सोचा था शादी की बात घर में चलाएंगे पर कल रात अचानक अनिल के घर वालों ने अनिल के लिए लड़की देखने की बात की तब अनिल ने उन्हें मेरे बारे में बताया.’’

‘‘फिर…’’ दिव्या घबरा उठी.

‘‘फिर क्या? उन लोगों ने तो मुझे देखा था, वह अनिल पर इस कारण नाराज हुए कि उस ने उन्हें इस विषय में पहले ही क्यों नहीं बता दिया, वे और कहीं बात ही न चलाते. वे तो रात में ही बात करने आ रहे थे पर ज्यादा देर हो जाने से नहीं आए. आज अभी आए हैं.’’

‘‘और मांबाबूजी, वे क्या कह रहे हैं?’’ दिव्या समझ रही थी कि रंभा का रिश्ता भी यों आसानी से तय होने वाला नहीं है.

‘‘पता नहीं, उन्हें बिठा कर मैं पहले तुम्हें ही उठाने आ गई. दीदी, तुम उठो न, पता नहीं अम्मां उन से क्या कह दें?’’

दिव्या नीचे पहुंची तो उस की नजर सुदर्शन से युवक अनिल पर पड़ी. रंभा की पसंद की प्रशंसा उस ने मन ही मन की. अनिल की बगल में उस की मां और बहन बैठी थीं. सामने एक वृद्ध थे, संभवत: अनिल के पिताजी. उस ने सुना, मां कह रही थीं, ‘‘यह कैसे हो सकता है बहनजी, आप वैश्य हम बंगाली ब्राह्मण. रिश्ता तो हो ही नहीं सकता. कुंडली तो बाद की चीज है.’’

‘‘पर बहनजी, लड़कालड़की एकदूसरे को पसंद करते हैं. हमें भी रंभा पसंद है. अच्छी लड़की है, फिर समस्या क्या है?’’ यह वृद्ध सज्जन का स्वर था.

‘‘समस्या यही है कि हम दूसरी जाति में लड़की नहीं दे सकते,’’ मां के सपाट स्वर पर मेहमानों का चेहरा सफेद हो गया. अपमान एवं विषाद की रेखाएं उन के अस्तित्व को कुरेदने लगीं. अनिल की नजर उठी तो दिव्या की शांत सागर सी आंखों में उलझ गई. घने खुले बाल, सादी सी धोती और शरीर पर स्वाभिमान की तनी हुई कमान. वह कुछ बोलता इस के पूर्व ही दिव्या की अपरिचित ध्वनि गूंजी, ‘‘यह शादी अवश्य होगी, मां. अनिल रंभा के लिए सर्वथा उपयुक्त वर है. ऐसे घर में जा कर रंभा सुखी रहेगी. चाहे कोई कुछ भी कर ले मैं जाति एवं कुंडली के चक्कर में रंभा का जीवन नष्ट नहीं होने दूंगी.’’

‘‘दिव्या, यह तू…तू बोल रही है?’’ पिता का स्वर आश्चर्य से भरा था.

‘‘बाबूजी, जो कुछ होता रहा, मैं शांत हो देखती रही क्योंकि आप मेरे मातापिता हैं, जो करते अच्छा करते. परंतु 7 वर्षों में मैं ने देख लिया कि अंधविश्वास का अंधेरा इस घर को पूरी तरह समेटे ले रहा है.

‘‘रंभा मेरी छोटी बहन है. उसे मुझ से भी कुछ अपेक्षाएं हैं जैसे मुझे आप से थीं. मैं उस की अपेक्षा को टूटने नहीं दूंगी. यह शादी होगी और जरूर होगी,’’ फिर वह अनिल की मां की तरफ मुड़ कर बोली, ‘‘आप विवाह की तिथि निकलवा लें. रंभा आप की हुई.’’

अब आगे किसी को कुछ बोलने का साहस नहीं हुआ पर रंभा सोच रही थी, ‘दीदी नारी का वास्तविक प्रतिबिंब है जो स्वयं पर हुए अन्याय को तो झेल लेती है पर जब चोट उस के वात्सल्य पर या अपनों पर होती है तो वह इसे सहन नहीं कर पाती. इसी कारण तो ढेरों विवाद और तूफान को अंतर में समेटे सागर सी शांत दिव्या आज ज्वारभाटा बन कर उमड़ आई है.’

सर्दियों में मेरे घुटने का दर्द बढ़ जाता है, क्या सर्जरी कराना ठीक होगा ?

सवाल

मेरे घुटनों में बहुत ज्यादा दर्द होता है. सर्दियों में यह और बढ़ जाता है. क्या सर्जरी ही दर्द से मुक्ति का एकमात्र इलाज है?

जवाब

सर्दियों में जोड़ों में दर्द होने की बहुत ज्यादा संभावना होती है. बैरोमीट्रिक दबाव में बदलाव से घुटनों में सूजन और बहुत तेज दर्द हो सकता है. चूंकि घुटने ही शरीर का पूरा भार वाहन करते हैं, इसलिए अपने वजन पर निगरानी रखनी बहुत जरूरी है. अगर आप में घुटनों के आर्थ्राइटिस की पहचान हुई है तो इस का मतलब यह नहीं है कि आप को अभी घुटने बदलवाने की आवश्यकता है. अगर आप को बारबार घुटनों में दर्द होता है तो डाक्टर से सलाह लेनी चाहिए. आप की स्थिति की गंभीरता के आधार पर डाक्टर आप के इलाज के तरीके पर फैसला कर सकता है.

आमतौर पर शुरुआत में मरीज को अपने लाइफस्टाइल में बदलाव लाने, उचित आहार लेने, वजन कम करने और नियमित व्यायाम की सलाह दी जाती है. सर्जरी की सलाह मरीज को तभी दी जाती है, जब दर्द कम करने की किसी भी तकनीक से मरीज को कोई आराम न मिले.

क्या आप कमर दर्द व माइग्रेन की समस्या से परेशान हैं और इस से छुटकारा पाना चाहते हैं ?

सिरदर्द और कमर दर्द दोनों आज आम समस्याएं बनती जा रही हैं. 90% लोग अपने जीवन के किसी न किसी मोड़ पर कमर दर्द से पीडि़त होते हैं.

दिल्ली के सर गंगा राम हौस्पिटल के डा. सतनाम सिंह छाबड़ा के मुताबिक कमर दर्द रीढ़ की हड्डी या कमर की मांसपेशियों में समस्या के कारण ही नहीं होता, बल्कि स्पाइन में फै्रक्चर होने से भी कमर दर्द की परेशानी हो सकती है. स्पाइन में फ्रैक्चर चोट लगने के अलावा औस्टियोपोरोसिस ट्यूमर या किसी अन्य हैल्थ प्रौब्लम के कारण हो सकता है, जिस से हड्डियां कमजोर हो जाती हैं.

कई बार तो फ्रैक्चर का पता ही नहीं चलता जब तक कि गंभीर कमर दर्द के कारण का पता लगाने के लिए मैडिकल टैस्ट न कराया जाए.

कमर दर्द: ‘जर्नल औफ बोन ऐंड मिनिमल रिसर्च’ नामक पत्रिका के मुताबिक औस्टियोपोरोसिस के कारण होने वाले छोटे स्पाइनल फ्रैक्चर अकसर जांच में नजर नहीं आते, मगर तकलीफ पहुंचाते हैं. 4,400 बुजुर्गों पर 4 सालों से अधिक समय तक शोध किया गया. इस दौरान 28 लोगों के स्पाइन में फै्रक्चर डाइग्नोज किया गया.

हालांकि एक्सरे में यह बात साफ हुई कि अन्य 169 लोगों के स्पाइन में भी ब्रेक्स थे, मगर इन का पता नहीं लग सका था. जिन के स्पाइन में फ्रैक्चर था उन्होंने कमर दर्द की समस्या बताई. पिछले अध्ययनों के मुताबिक उम्रदराज महिलाओं में स्पाइनल फ्रैक्चर की समस्या और भी ज्यादा पाई जाती है.

ज्यादातर कमर दर्द मस्क्युलर होते हैं और 6 सप्ताह के अंदर ठीक हो जाते हैं, मगर ये लंबे समय तक टिकें तो पूरी जांच जरूर करवाएं.

कैसे बचें: पीडी हिंदुजा हौस्पिटल के डा. संजय अग्रवाल के मुताबिक कमर दर्द से बचने के लिए इन बातों का ध्यान रखें:

– जीवनशैली में बदलाव लाएं. हैल्दी डाइट लें यानी ऐसी डाइट जो कैल्सियम और विटामिन डी से भरपूर हो.

– पैदल चलने की कोशिश करें, पैदल चलना बोन मास को बढ़ाने में सहायक होता है.

– शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. रोज ऐक्सरसाइज करें.

– शरीर का पोश्चर ठीक रखें. गलत पोश्चर कमर दर्द का मेन कारण है.

– अपना वजन कम रखें. कमर के आसपास चरबी न बढ़ने दें.

– ऊंची ऐडि़यों वाले जूतेचप्पल पहनने के बजाय आरामदायक फुटवियर पहनें.

– भारी चीजों को घुटने मोड़ कर सावधानी से उठाएं, झटके से नहीं.

– हमेशा आरामदायक बिस्तर पर सोएं. यानी बिस्तर न बहुत सख्त हो और न ही बहुत नर्म.

माइग्रेन: लंबे समय तक चलने वाला सिरदर्द बाद में माइग्रेन का रूप धारण कर लेता है. माइग्रेन का दर्द कुछ घंटों से ले कर कई दिनों तक रह सकता है.

कैसे बचें: डा. संजय अग्रवाल के मुताबिक माइग्रेन से बचने के लिए निम्न बातों का खयाल रखें:

– 7-8 घंटे की गहरी नींद लें. सोने और उठने का समय तय करने की कोशिश करें.

– जरूरत से ज्यादा और कम सोना माइग्रेन का कारण बन सकता है.

– रोज 3-4 लिटर पानी जरूर पीएं. शरीर में पानी के स्तर को बनाए रख कर माइग्रेन के खतरे से बचा जा सकता है.

– कई लोगों में कुछ खानेपीने की चीजें माइग्रेन को ट्रिगर करती हैं. इन को पहचान कर इन के सेवन से बचें.

– खून में शुगर का स्तर कम न होने दें. खाना सही समय पर खाएं. नाश्ता अवश्य करें.

– तनाव न लें. दिमाग को शांत रखने के लिए ध्यान करें.

– शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. प्रतिदिन 30 मिनट ऐक्सरसाइज के लिए जरूर निकालें.

– लंबे समय तक टीवी न देखें और न ही कंप्यूटर की स्क्रीन पर लगातार ज्यादा देर तक काम करें. हर घंटे में 5 मिनट का ब्रेक जरूर लें.

जोड़ों का दर्द: जोड़ों का दर्द बोन फ्लूइड मैंब्रेन में बदलाव आ जाने, चोट लगने या फिर कोई अंदरूनी बीमारी होने से हो सकता है. उम्र बढ़ने के साथ जोड़ों के बीच के कार्टिलेज कुशन को लचीला और चिकना बनाए रखने वाला लुब्रिकैंट कम होने लगता है. लिगामैंट्स की लंबाई और लचीलापन भी कम हो जाता है, जिस के कारण जोड़ अकड़ जाते हैं.

कैसे बचें: जोड़ों को दुरुस्त रखने के लिए नियमित ऐक्सरसाइज करें. इस से हड्डियां मजबूत होती हैं. डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे लो कैलोरी दही, मक्खन, दूध का सेवन करें. खाने में हरी सब्जियां, साबूत अनाज और फल अवश्य शामिल करें.

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