सुप्रीम कोर्ट ने 4 विधेयकों को लंबित रखने पर पंजाब के संघ के पुराने कार्यकर्ता राज्यपाल बनवारीलाल पुरोहित को जिस तरह फटकार लगाई है और दोनों राजभवनों के आचरण पर नाखुशी व्यक्त की है, उस से एक कडा मैसेज मोदी की केंद्र सरकार को भी मिला है, जिस के इशारे पर अनेक राज्यों में तैनात भाजपाई गवर्नर विपक्षी दलों की राज्य सरकार के कामों में बेवजह का हस्तक्षेप करते रहते हैं और विधायकों को लंबित रख कर जनता के काम नहीं होने देते.
24 नवम्बर की शाम सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर कोर्ट का जो फैसला दर्ज हुआ है वह पंजाब के ही नहीं बल्कि देश के उन तमाम गवर्नरों के लिए एक सबक है जो केंद्र के इशारे पर राज्य सरकारों के कार्यों में हस्तक्षेप और अवरोध पैदा करते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने अपनी एक अहम टिप्पणी में कहा है कि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक विधेयकों को अपने पास लंबित नहीं रख सकते. राज्यपाल के पास संवैधानिक ताकत होती है लेकिन वह इस ताकत का इस्तेमाल राज्य सरकार के कानून बनाने के अधिकार को वीटो करने के लिए नहीं कर सकते.
पंजाब सरकार ने राज्यपाल पर विधेयकों को मंजूरी नहीं देने का आरोप लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित का कहना था कि पंजाब सरकार द्वारा 19 - 20 जून को बुलाया गया विशेष सत्र असंवैधानिक है, इसलिए उस सत्र में किया गया काम भी असंवैधानिक है. वहीं सरकार का तर्क है कि बजट सत्र का सत्रावसान नहीं हुआ है, इसलिए सरकार जब चाहे फिर से सत्र बुला सकती है.
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