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एड्स (HIV) की रोकथाम के लिए हल्ला बहुत पर पुख्ता व्यवस्था नहीं

एड्स के मरीजों पर डाक्टरों की एक चिंता होती है कि कैसे वे उस के परिवार वालों या पत्नी या होने वाली पत्नी को बताएं. एड्स पर आज काफी कंट्रोल हो गया है पर फिर भी यह है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता है. अब कालगर्ल्स भी बिना कंडोम के संबंध नहीं बनाती.
एक डाक्टर का अनुमान देखिए. उस के क्लिनिक में एक जवान लड़का आया. काफी दिनों से शरीर गिरागिरा रहता था. वजन भी कम हो रहा था. हलका बुखार भी रहता था. सभी तरह की जांच की गई पर किसी में कुछ नहीं मिला. चमड़ी के नीचे गर्दन और अन्यत्र छोटीछोटी गांठे थीं.

चिकित्सक की सलाह पर उन गांठों में से एक को निकाल कर बायोप्सी के लिए भेजी गई, यह देखने के लिए कि उसे लिम्फोमा ल्यूकिमिया जैसा कोई कैंसर तो नहीं है.

गांठ का परीक्षण हुआ. कैंसर नहीं था. पर गांठ नौर्मल भी नहीं थी. सुक्ष्मदर्शी यंत्र से देखने पर उस में ऐसे चेंजेज थे जो एक एचआईवी पोजिटिव व्यक्ति से मिलते हैं. रिपोर्ट लेने आया तब लड़के को बताया गया कि उसे कैंसर जैसा तो कुछ नहीं है लेकिन जो मिला है उसे कंफर्म करने के लिए अगर उस की सहमती हो तो एचआईवी के लिए टैस्ट करना चाहेंगे. लड़के की सहमती पर रक्त का एचआईवी परीक्षण किया गया. वह पोजिटिव था.

एचआईवी संक्रमण संभावनाओं के बारे में पूछने पर लड़के ने बताया कि वह अविवाहित है, उस के कोई सैक्स संबंध नहीं है, उस को कभी ब्लड ट्रांसफ्यूजन नहीं दिया गया, उस का कोई औपरेशन नहीं हुआ और न ही उस ने कोई इंजैक्शन लिए. उसे सलाह दी गई कि वह कंफर्मेंटरी टैस्ट करवा ले क्योंकि अपनाई गई विधि में कुछ प्रतिशत फाल्स पौजिटिव होते हैं.

लड़का टैस्ट करवा कर आया तो कहने लगा वह अलग से बात करना चाहता है. उस ने बताया टैस्ट पोजिटिव है. उस ने माफी मांगी कि उस ने जो पहले बताया था वह गलत था. उस की सगाई हो चुकी है लेकिन अभी विवाह नहीं हुआ है, लड़की पढ़ती है. उस ने यह भी बताया कि वह और उस के कुछ दोस्त एक कालगर्ल से सैक्स संबंध रखते आए हैं.

लड़का तो चला गया लेकिन डाक्टर दुविधा में है. एचआईवी संक्रमण समाज में न फैलने देने के अपने दायित्व को वह कैसे निभाए. करना तो यह चाहिए कि उस की मंगेतर, जो एक चिन्हित व्यक्ति एट रिस्क है, उसे बुलाए. समझाएं. लड़के के उन दोस्तों को बुलाए उन का टैस्ट करे. उस कालगर्ल को बुलाए, परीक्षण करे और फिर उसे क्वारनटीन करवाने की व्यवस्था करे. पर वह ऐसा कुछ नहीं कर सकता.

ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. एड्स की रोकथाम के लिए हल्ला तो बहुत है, टैस्ट भी खूब हो रहे हैं, टैस्ट से करोड़ों रुपए का व्यापार हो रहा है, लेकिन रोकथाम की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है. संक्रमित व्यक्ति को परामर्श देने के अलावा और कुछ नहीं.

भारत में आज 25 लाख लोग एड्स से पीड़ित हैं. 50,000 मौतें हर साल इस रोग से होती हैं. 1990 के आसपास से इस रोग के मरीजों की संख्या काफी कम हो गई है पर यह खत्म नहीं हुआ है.

AI और DEEPFAKE का नया सिरदर्द : IPS अफसर का चेहरा लगा कर की ठगी

कुछ हफ्ते पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ जिस में वे सिने सितारे सलमान खान के साथ मंच पर डांस करते दिखे. काले सूट पैंट में उन्हें देख कर कोई कह नहीं सकता कि यह प्रधानमंत्री नहीं हैं और ये डीपफेक का मामला है. यानी किसी और के चेहरे पर मोदी का चेहरा लगा कर वीडियो बनाया गया और वायरल किया गया.

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) तकनीक ने अपराधियों के हाथ में ऐसा खतरनाक हथियार थमा दिया है जो आने वाले समय में बहुत घातक साबित होगा. इस का नमूना कल उस वक्त फिर सामने आया जब गाजियाबाद में साइबर ठगों ने भारतीय पुलिस सेवा के एक शीर्ष अधिकारी, जो कुछ दिन पहले ही सेवानिवृत्त हुए हैं, उन का डीपफेक वीडियो बना कर एक 76 साल के बुजुर्ग से ना केवल 74000 रूपए की ठगी कर ली बल्कि उन को इतना ज्यादा ब्लैकमेल किया कि वे आत्महत्या करने की कगार पर पहुंच गए.

ये तो अच्छा हुआ कि कि उन को परेशान देख बेटी ने पूछ लिया और उन्होंने डरतेडरते अपनी बेटी से बताया कि एक पुलिस अधिकारी उन को ब्लैकमेल कर रहा है. अगली बार कौल आने पर उन की बेटी ने न सिर्फ कौल करने वाले वर्दीधारी को बुरी तरह हड़काया बल्कि उस के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करवाई. जब पुलिस ने रिकौर्ड किए गए वीडियो की जांच की तो पता चला कि मामला डीपफेक का है और आईपीएस प्रेम प्रकाश का चेहरा लगा कर अपराधी ने बुजुर्ग को ना सिर्फ ब्लैकमेल किया बल्कि उन की मानसिक हालत भी ऐसी कर दी कि वे डर के मारे आत्महत्या की बात सोचने लगे.

दरअसल 76 वर्षीय बुजुर्ग ने एक महीना पहले एक स्मार्टफोन खरीदा था और उस पर अपनी फेसबुक प्रोफाइल बनाई थी. आजकल घर में खाली बैठे अधिकांश बुजुर्ग फेसबुक पर ही समय व्यतीत करते हैं. 20 अक्तूबर को उन के पास एक वीडियो कौल आई जिस का उन्होंने जवाब दिया था. वीडियो कौल करने वाली महिला नग्नावस्था में थी.

इस कौल को अटेंड करने के बाद बुजुर्ग के सामने मुश्किल खड़ी हो गई. उस नग्न महिला के साथ बुजुर्ग की कई तस्वीरें उन को भेजी गईं. इन तस्वीरों के आने से बुजुर्ग दहशत में आ गए क्योंकि वो तो उस महिला को जानते तक नहीं थे फिर उस के साथ उन की अश्लील मुद्रा वाली फोटो कैसे आई ये उनकी समझ से परे था.

उन को धमकी दी गई कि ये तस्वीरें फेसबुक पर वायरल कर दी जाएंगी. फिर एक दिन पुलिस की वर्दी में आईपीएस प्रेम प्रकाश का वीडियो कौल उन को आया. उस ने कहा कि वह दिल्ली के द्वारका पुलिस स्टेशन में तैनात अधिकारी है. उस ने बुजुर्ग से कहा कि उन्हें एक महिला द्वारा आत्महत्या किए जाने के मामले में अभियुक्त बनाया गया है. अगर इस से बचना है तो 24 हजार रुपए तुरंत जमा करा दे.

बुजुर्ग ने बताए गए बैंक अकाउंट में रुपया जमा करा दिया. कुछ दिन बाद उन से 50 हजार रुपए प्रेम प्रकाश ने और मांगे. बुजुर्ग ने किसी तरह वो भी जमा कराए. पैसे की मांग बढ़ने लगी तो लोकलाज के डर और धन का इंतजाम न कर पाने की वजह से उन्होंने आत्महत्या का मन बना लिया.

उन की बेटी ने जब अपने पिता को परेशान देखा तो उस ने वजह जानने की कोशिश की. बुजुर्ग ने डरतेडरते पूरा किस्सा बयान किया. जब अगली बार धन की मांग को ले कर फोन आया तो बेटी ने न सिर्फ फोन रिकौर्ड किया बल्कि उस को जोरदार डांट भी पिलाई.

फोन पर नजर आने वाले चेहरे को जब उस ने इंटरनेट पर डाला तो पता चला कि फोटो सीनियर आईपीएस और उत्तर प्रदेश पुलिस से एडीजी पोस्ट से रिटायर हुए अधिकारी प्रेम प्रकाश की है. पुलिस ने उन से पूछताछ की तो वे हक्काबक्का रह गए क्योंकि उन्होंने ऐसा कोई फ़ोन नहीं किया था. जांच आगे बढ़ी तो पूरा मामला डीपफेक का निकला, जिस में प्रेम प्रकाश का चेहरा इस्तेमाल कर बुजुर्ग को ब्लैकमेल किया गया था. मामले की जांच जारी है. फिलहाल अपराधी पुलिस की पकड़ से दूर हैं.

भारत में बढ़ता साइबर क्राइम

भारत में साइबर अपराधों में तेजी से वृद्धि हो रही है. देश में यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) की शुरुआत के बाद साइबर क्राइम ने जो गति पकड़ी है, उस को कंट्रोल करने में पुलिस और साइबर सेल पस्त हुए जा रहे हैं. यूपीआई को शुरू करने में भारत अन्य देशों के मुकाबले अग्रणीय रहा है. 140 करोड़ की हमारी आबादी में आज 80 करोड़ लोग मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल कर रहे हैं और अधिकांश लोग वित्तीय लेनदेन के लिए यूपीआई का इस्तेमाल करते हैं.

सब्जी वाले, रेहड़ी-पटरी वाले, देहाड़ी मजदूर, प्लम्बर, कारपेंटर जैसे निम्न आय वाले लोग भी पेटीएम जैसे प्लेटफार्म के माध्यम से यूपीआई द्वारा छोटीछोटी राशियों का लेनदेन कर रहे हैं. यानी अब ये निम्न तबका भी बहुत अधिक नगदी अपने पास नहीं रखता है, उस की सारी कमाई सीधे उसके बैंक में जाती है. इस से उस को सुविधा तो हुई है लेकिन साइबर अपराध और धोखाधड़ी का वह शिकार बन रहा है. ये तबका कम पढ़ालिखा होने के कारण उन साइबर अपराधियों की चालाक बातों में आसानी से फंस जाता है जो खुद को बैंक एम्प्लोय बता कर उस से उसके बैंक डिटेल्स प्राप्त कर लेते हैं या कैशबैक, लौटरी जैसा कोई लालच दे कर उस को ठग लेते हैं अथवा अश्लील विडियो भेज कर ब्लैकमेल करते हैं.

घातक है तकनीक

आजकल इंटरनेट पर फर्जी हेल्पलाइन नंबर डाल कर भी ऐसे फ्रौड हो रहे हैं. एक नया तरीका और देखने में आ रहा है. कोई आप के खाते में, या मोबाइल रिचार्ज में कुछ पैसा डाल कर आप को फोन कर के कहेगा कि ऐसा उससे गलती से हो गया. अब जब आप उस का पैसा औनलाइन वापस लौटाएंगे तो कुछ ही देर में आप को अपना पूरा अकाउंट खाली मिलेगा. क्योंकि पैसा वापस भेजने के क्रम में आप अनजाने में अपने बैंक डिटेल का खुलासा कर देते हैं.

जो अपराधी साइबर क्राइम सेल द्वारा पकड़े गए हैं उन से ये बात भी सामने आई है कि ऐसी धोखाधड़ी शिक्षित या तकनीकी विशेषज्ञों द्वारा ही नहीं, बल्कि कम पढ़ेलिखे लोगों द्वारा भी खूब हो रही है. हाल ही में दिल्ली पुलिस ने ग्रामीण युवाओं के एक गिरोह का भंडाफोड़ किया, जो फरीदाबाद और गाजियाबाद के पास जंगलों के पास बसे स्लम एरिया में रहते हुए ऐसी आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे थे. सरकार ऐसे साइबर धोखेबाजों के खिलाफ जागरूकता अभियान चला रही है लेकिन फिर भी अपराध तेजी से बढ़ रहा है. अपराधी पुलिस से चार कदम आगे ही हैं.

बचें ऐसे

साइबर अपराध काबू में इसलिए भी नहीं आ रहे हैं क्योंकि इन को पकड़ने के लिए आवश्यक प्रशिक्षण पुलिस को प्राप्त नहीं है. वहीं देश में मात्र 312 साइबर पुलिस स्टेशन और कानून का एक समूह है. मौजूदा नियामक ढांचा डिजिटल वित्तीय गड़बड़ियां पैदा करने वाले इस तंत्र के खतरों को भांपने में असमर्थ हैं. इसलिए साइबर अपराधों से निपटने के लिए विशेष एजेंसी स्थापित करने की तत्काल आवश्यकता है.

इस के अलावा बच्चों और वरिष्ठ नागरिकों के बीच जागरूकता बढ़ाने की जरूरत है. अनजान फोन कौल ना उठाएं, अनजान लोगों द्वारा किए गए वीडियो कौल न लें, कोई फोन पर धमकी दे तो तुरंत पुलिस को सूचित करें. किसी का फोन बारबार आए तो उस को ब्लौक कर दें.

इसी के साथ साइबर अपराध कानून को मजबूत करने और सख्त सजा का प्रावधान होना बहुत जरुरी है. शीघ्र न्याय प्रदान करने के लिए विशेष अदालतें खुलनी चाहिए, वरना जीवन भर की मेहनत से कमाई पूंजी जिस पर लोगों का पूरा बुढ़ापा टिका होता है, वह एक क्षण में जो लोग ले उड़ते हैं अगर उन को समय रहते कड़ा सबक नहीं सिखाया गया तो क्राइम रेट बढ़ता ही चला जाएगा.

जातीय जनगणना पर बगले झांकते भारतीय जनता पार्टी के पिछड़े नेता

उत्तर प्रदेश विधानसभा के अनुपूरक बजट सत्र में बोलते हुए समाजवादी पार्टी की विधायक पल्लवी पटेल ने जातीय जनगणना का मुद्दा उठाते हुए कहा ‘जातीय गणना बिल भाजपा को लाना चाहिए था, क्योंकि भाजपा दलित और ओबीसी वोट ले कर सत्ता में बैठी है. सचाई यह है कि भाजपा के विधायक ‘पंगु’ हैं.’

पल्लवी पटेल ने जैसे ही ‘पंगु’ शब्द का प्रयोग किया तो पूरे सदन में हो हल्ला मचना शुरू हो गया. बचाव में उतरी भाजपा के विधायकों ने जातीय गणना को केन्द्र सरकार का मुद्दा बता कर गेंद केन्द्र सरकार के गोल में डाल दिया.

असल में भारतीय जनता पार्टी तुलसीदास की रामचरितमानस के बताए रास्ते पर चलती है. रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने ओबीसी के बारे में लिखा है, ‘ढोल गंवार शुद्र पशु नारी’ चौपाई लिखी है, जिस को ले कर विवाद है. तुलसीदास को अपना पथप्रदर्शक मानती है इसी वजह से उस के लिए जातीय गणना कोई अहम मुद्दा नहीं है.

समाजवादी पार्टी के नेता स्वामी प्रसाद मौर्य इस बात को ले कर खुल कर बोलते रहते हैं और पूजापाठियों के निशाने पर रहते हैं. स्वामी प्रसाद मौर्य को समर्थन देते अखिलेश यादव भी ‘हम शुद्र हैं’ का नारा लगाते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का घेराव कर चुके हैं.

पल्ला झाड़ने भाजपा नेता

हर मुददे पर खुल कर बोलने वाली भाजपा जातीय गणना के मुद्दे पर बगले झांकने लगती है. पल्लवी पटेल ने जब भाजपा नेताओं को घेरना शुरू किया तो उन को बच निकलने का रास्ता नहीं मिला. ऐसे में वह जातीय गणना की जगह पर ‘पंगु’ शब्द को मुद्दा बना कर पल्लवी पटेल से अपने कहे पर माफी मांगने का दबाव बनाने लगे. ‘पप्पू’ जैसे शब्द गढ़ने के माहिर अब ‘पनौती’ और ‘पंगू’ शब्द पर विचलित हो जा रहे हैं.

पल्लवी का केशव प्रसाद मौर्य पर निशाना

पल्लवी पटेल के निशाने पर उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य भी थे. पल्लवी पटेल ने पहली बार 2022 का विधान सभा चुनाव केशव प्रसाद मौर्य के सामने लड़ा और चुनाव जीत लिया. विधानसभा चुनाव हारने के बाद भी भाजपा ने केशव प्रसाद मौर्य को डिप्टी सीएम बना दिया. पल्लवी पटेल ने कहा कि भाजपा जातीय जनगणना भाग रही है. विपक्ष जातीय जनगणना पर सदन में चर्चा चाहता है और इस से बचने के लिए सरकार ने सत्र को छोटा रखा है.

अब सदन में जब पल्लवी पटेल और केशव प्रसाद मौर्य होते हैं तो दोनों के बीच तनातनी हो जाती है. जातीय गणना के मुद्दे पर केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, ‘वह और उन की पार्टी के बड़े नेता जातीय जनगणना चाहते हैं. पर यह मसला केंद्र सरकार का है. भाजपा नियम कानून और संविधान से चलने वाली पार्टी है.’ उन्होंने ‘सपा को दलित, गरीब व पिछड़ा विरोधी बताते हुए माफिया व गुंडों की समर्थक बताया’.

केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि अब की लोकसभा चुनावों में जब भाजपा प्रदेश में सभी 80 सीटें जीतेगी तब इन का हाजमा ठीक होगा. उन का कहना था कि जातीय जनगणना का निर्णय केंद्र सरकार को होता है और कार्यक्रम उसी को तय करना है. मौर्य ने कहा कि सत्ता से बेदखल हो जाने के बाद सपा को पिछड़ों की याद आ रही है. जबकि उन्होंने जाति के नाम पर सत्ता में रहते हुए भी न्याय नहीं किया था.

जातीय जनगणना पर विपक्ष एकजुट

सपा ने शिवपाल ने कहा कि ‘सपा पूरी तरह से जातीय जनगणना के पक्ष में है और भारतीय जनता पार्टी के पिछड़े वर्ग के नेताओं को चाहिए कि वो इस मुद्दे पर अपने दल में बात करें. अगर वह यह नहीं कर सकते तो भाजपा को साफ करना चाहिए कि वह जातीय जनगणना नहीं करा पाएंगे.

समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव सहित सभी नेता जहां इस मुद्दे पर सदन के बाहर व भीतर सवाल उठा रहे हैं. वहीं कांग्रेस ने कहा है कि उन के नेता राहुल गांधी पूरे देश में जातीय जनगणना की मांग कर रहे हैं.

कांग्रेस विधानमंडल की नेता आराधना मिश्रा मोना ने कहा कि ‘अब तो बिहार जैसे राज्य ने जातीय जनगणना कर इस के नतीजे सामने रख दिया तो उत्तर प्रदेश में भी इसे करना चाहिए. राहुल गांधी ने सदन में इस की मांग उठाई थी. सभी की मांग है तो जातीय जनगणना होनी ही चाहिए.’

जातीय गणना को ले कर जहां विपक्ष एकजुट है वहीं भाजपा के पिछड़े वर्ग के नेता जातीय गणना के मुद्दे पर बगले झांकने लगते हैं. इस को केंद्र का मुद्दा बता कर पल्ला झाड़ने लगते हैं.

नया जीवन : परिवार को जोड़ने वाली कहानी

मौसी मजबूरी में अंतरा के पास रहने तो आ गईं पर इस अनजान घर में उन्हें बड़ा अजीब व अटपटा सा लग रहा था. वे चारपाई पर लेटी हुई रातभर करवटें बदलती रहीं, पता नहीं कब सुबह होगी.

रोज की तरह सुबह अंतरा जल्दी उठ गई और किचन में जा कर चाय बनाने लगी. वह सोच रही थी, अब तो मौसी भी घर में हैं, उन का पहला दिन है, नाश्ता भी ढंग का होना चाहिए. उस ने आलू उबलने रख दिए. सोचा, पूरी के साथ आलू की सब्जी और अचार ठीक रहेगा, बाकी फिर माहौल के हिसाब से देखा जाएगा.

खटरपटर सुन कर मौसी उठ कर किचन में आ गईं और बोलीं, ‘‘क्या कर रही हो, बहू.’’

‘‘आप के लिए चाय बना रही हूं, आप नाश्ते में क्या लेंगी? आप तो शाकाहारी हैं न?’’ अंतरा ने हंस कर पूछा.

‘‘हूं तो पूरी शाकाहारी लेकिन मेरे लिए कुछ खास बनाने की जरूरत नहीं है. जो सब खाते हैं वही खा लूंगी,’’ मौसी ने मुसकरा कर कहा, ‘‘अगर तुम लोग मांसमछली खाते हो तो मेरी चिंता मत करना, मैं छूआछूत नहीं मानती.’’

‘‘यह बड़ी अच्छी बात है, मौसी. हमारी तो जब बूआजी आती हैं तो सारे बरतन अलग रखवा देती हैं. नए बरतन निकालने पड़ते हैं,’’ अंतरा ने सिर हिलाते हुए कहा.

‘‘अब मौसी, आप की तरह तो हर आदमी समझदार नहीं होता,’’ अंतरा ने थोड़ा मुंह बना कर मौसी को चाय पकड़ाते हुए कहा, ‘‘अब हमारे पिताजी को ही लो, बड़े तुनकमिजाज हैं. कभी कुछ चाहिए तो कभी कुछ. यह भी नहीं देखते कि मुझे दफ्तर जाने में देरी हो रही है. कभीकभी तो मैं बड़ी परेशान हो जाती हूं.’’

‘‘अब बुजुर्ग हैं,’’ मौसी ने समझते हुए कहा, ‘‘समझने में तो समय लगता ही है. अब पत्नी के जाने के बाद उन का तुम लोग खयाल नहीं रखोगे तो कौन रखेगा.’’

अंतरा को हंसी आ गई. मौसी के सारे नखरे रानी ने पहले ही बता दिए थे.

‘‘आप का कहना सच है, मौसी. अपनी तरफ से तो हम कोई कसर नहीं छोड़ते,’’ अंतरा बोली, ‘‘बस, कभीकभी सहना मुश्किल हो जाता है. तनावभरा जीवन है न.’’

‘‘सो तो है, मैं क्या जानती नहीं,’’ मौसी ने कहा, ‘‘मेरे लिए कोई काम हो तो जरूर बता देना. दिनभर बैठीबैठी करूंगी भी क्या.’’

‘‘जरूर बता दूंगी, मौसी. अभी तो जा कर आप आराम करिए,’’ अंतरा ने मुसकरा कर कहा.

मौसी को सुन कर अच्छा लगा.

नाश्ते के समय मौसी की मौजूदगी का खयाल कर के अंतरा के ससुर निहालचंद ने खुद पर काबू रखा और जो कुछ सामने रखा था, चुपचाप खा लिया.

अंतरा तो डर रही थी कि पिताजी कुछ कह कर बदमजगी न पैदा कर दें. मौसी क्या सोचेंगी.

औफिस जाते समय अंतरा ने रोज की तरह कहा, ‘‘पिताजी, आप का और मौसी का खाना बना कर हौटकेस में रख दिया है. आज मैं ने सूजी का हलवा भी बना दिया है. फ्रिज में रखा है. हां, दही भी है. जाऊं.’’

अंतरा के ससुर निहालचंद आदत के अनुसार ताना देतेदेते रुक गए. कहना चाहते थे जैसे हलवा रोज बना खिलाती है. क्या दिखावा कर रही है पर मौसी को देख कर चुप हो गए. अंतरा ने गहरी सांस ली.

जब 11 बजे तो निहालचंद को चाय की तलब लगी. यह उन की रोज की आदत थी. थोड़ा ?िझके पर कुछ सोच कर उठे और चाय बनाने लगे. किचन में आवाज सुन मौसी आ गईं.

‘‘अरे हटिए, मैं चाय बना देती हूं.’’ मौसी ने अधिकार से कहा.

‘‘नहींनहीं, मौसी,’’ निहालचंद के मुंह से निकला, ‘‘मैं तो रोज ही बनाता हूं और अच्छी भी.’’

‘‘देखिए, भाईसाहब,’’ मौसी ने मुंह सिकोड़ कर कहा, ‘‘मैं आप की मौसी नहीं हूं.’’

‘‘यह तो सच है, शतप्रतिशत सच है,’’ निहालचंद ने चिढ़ कर कहा, ‘‘लेकिन मैं भी आप का भाईसाहब नहीं हूं.’’

मौसी को हंसी आ गई, ‘‘चलिए, दोनों का हिसाब बराबर हो गया. अगर मैं बच्चों की मौसी हूं तो आप इस रिश्ते से मेरे जीजा हो गए.’’

‘‘और आप मेरी साली,’’ निहालचंद खुल कर हंस पड़े, ‘‘लीजिए, इसी बात पर मेरे हाथ की स्वादिष्ठ चाय

हाजिर है. दार्जिलिंग की शुद्ध पत्ती मंगवाता हूं.’’

‘‘दार्जिलिंग तो बहुत दूर है, मैं तो अपने आंगन की तुलसी की चाय बनाती हूं, खुशबूदार और गुणसंपन्न,’’ मौसी ने चाय का घूंट ले कर कहा, ‘‘सचमुच, बहुत अच्छी है. क्या कहूं, इस घर में न तो बहू इस समय चाय बनाती है और

न ही बनाने देती है. मन मार कर रह जाती हूं.’’

‘‘अब जब तक आप यहां पर हमारी मेहमान हैं, रोज मैं आप को चाय पिलाऊंगा. मन मान कर नहीं मन भर कर पीजिए,’’ हंसते हुए निहालचंद उठे और जूठे प्याले उठाने लगे.

‘‘अरेअरे,’’ मौसी ने प्याला पकड़ते हुए कहा, ‘‘अब कुछ मेरे लिए भी तो छोडि़ए.’’

निहालचंद मुसकरा कर रह गए. दरअसल वे जूठे बरतन रोजाना ऐसे ही छोड़ देते थे. जब अंतरा आती थी तो उठाती थी और उसे उन की इस आदत से बेहद चिढ़ होती थी. वह सोचती थी कि पिताजी जानबूझ कर उसे चिढ़ाने के लिए ऐसा करते हैं.

2 दिनों बाद मौसी ने कहा, ‘‘बहू, तुम्हें सुबह बहुत काम रहते हैं. तुम अपना नाश्तापानी कर लिया करो. मैं खाली बैठी रहती हूं. बाकी का काम मैं संभाल लूंगी. ऐसे मेहमानों की तरह कब तक बैठी रहूंगी.’’

‘‘नहीं, मौसी,’’ अंतरा ने विरोध किया, ‘‘ऐसा कैसे हो सकता है. आप थोड़े दिनों के लिए तो आई हैं. आप चिंता मत करिए. मुझे काम करने की आदत है.’’

‘‘बहू, मुझे अच्छा नहीं लगता. बस, मैं ने कह दिया, अब मुझे कुछ न कुछ तो करना ही है,’’ मौसी ने लगभग डांटते हुए कहा.

अंतरा को मालूम था कि अपने घर में अगर उन से कोई काम करने को कह दे तो मौसी अपनी बहू रानी की मुसीबत कर देती थीं. यहां तक कि मां भी दुखी हो जाती थीं.

‘‘ओह, नहीं न मौसी, आप को कुछ नहीं करना है. रानी मुझ से झगड़ा करेगी,’’ अंतरा ने हठ किया.

‘‘कौन होती है, रानी,’’ मौसी ने गुस्से से कहा, ‘‘मैं जानती हूं, उस ने मेरी बड़ी बुराई की होगी. दरअसल वह मेरी लाचारी का फायदा उठाती है. कभीकभी तो सोचती हूं, मेरे सोनूमोनू की बहुएं ही क्या बुरी थीं.’’

‘‘अरे, क्या आप की अपनी बहुएं आप की सेवा नहीं करतीं,’’ अंतरा ने ऊपरी सहानुभूति जताते हुए कहा, ‘‘सच, कितने अरमानों से लोग बहू घर में लाते हैं.’’

मौसी की अपनी बहुओं से बिलकुल नहीं बनती थी, यह सब जानते थे लेकिन दूसरे के मुंह से उन की बुराई सुनना मौसी को अच्छा नहीं लगा.

‘‘अरे नहीं, बहू, आजकल की हवा ही खराब है. वे इतनी बुरी भी नहीं हैं,’’ मौसी ने मक्खी उड़ाते हुए कहा, ‘‘अब तुम भी तो काम करती हो. इस बुढ़ापे में ससुर की पूरी सेवा करती हो. देख कर अच्छा लगता है. अगले जनम में अच्छा ही फल मिलेगा.’’

‘‘मौसी, अगला जनम किस ने देखा है. मैं तो पूरी स्वार्थी हूं. सारे फल इसी जनम में चाहती हूं,’’ अंतरा ने मुसकरा कर कहा.

मौसी को भी हंसी आ गई, ‘‘तू कितनी अच्छी बातें करती है. खैर, असल मुद्दा यह है कि जब तक मैं यहां हूं, तू घर की चिंता मत कर, मैं सब संभाल लूंगी. तेरे दफ्तर जाने से मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता.’’

अंतरा को डर लगा कि कहीं उस के ज्यादा मना करने से मौसी बुरा न मान जाएं. जल्दी से उन की बात मान ली. संतोष की गहरी और ठंडी सांस ली. इस चक्कर में अपने ससुर के चेहरे पर ढीली पड़ती शिकन दिखाई नहीं दी.

रसोई का काम हाथ में आते ही मौसी के ढीले शरीर में चुस्ती आ गई. अब वे बेरोकटोक मनपसंद खाना बना सकती थीं और निहालचंद के मुंह से अपनी तारीफ भी सुन सकती थीं. वे कभीकभी निहालचंद की पसंद के नएनए व्यंजन बनातीं. निहालचंद भी बस उन पर निहाल हो गए. उन का चिड़चिड़ापन छूमंतर हो गया. खुशमिजाजी लौट आई. सब से बड़ी बात यह थी कि उन का साथ देने वाला कोई मिल गया था जो उन की बातें पूरी सहानुभूति से सुनता भी था.

अकसर वे दोनों अपने सुखदुख की बातें कर लेते थे. उन्हें बहुत शांति मिलती थी. नजदीकी बढ़ने से एकदूसरे को जीजासाली कह कर थोड़ी छेड़खानी भी कर लेते थे. जीवन सुखमय हो रहा था.

दोपहर का समय काटने के लिए निहालचंद ने टांड़ पर से कैरम बोर्ड उतार लिया था. ताश भी ले आए थे. खेलना तो खास आता नहीं था. एकदूसरे के अनाड़ीपन पर हंस भी लेते थे.

देखतेदेखते एक महीना कैसे गुजर गया, पता ही नहीं लगा. मौसी के जाने का समय आ गया.

पड़ोसियों को भी मसाला मिल गया था. कानाफूसी करते थे कि बुड्ढेबुढि़या का कोई चक्कर चल रहा है. चलतेफिरते कभीकभी हलकेफुलके ताने भी कानों में पड़ जाते थे. नजरअंदाज करने के अलावा कोई चारा नहीं था.

दरअसल मौसी किसी की भी सगी मौसी नहीं थीं. बस, सब के लिए मुसीबत बनी हुई थीं. अंतरा और मनु के घर रहने आने के पीछे एक लंबी कहानी थी. यह एक निष्कपट प्रयोग था.

सपन अंतरा के पति मनु का सहयोगी, सहकर्मी व मित्र सबकुछ था. एक दिन सपन को बहुत दुखी देख मनु ने पूछ लिया कि आखिर बात क्या है.

‘यार, मेरी दूर के रिश्ते की एक मौसी है. मौसाजी की मृत्यु के बाद उसे कुछ ऐसा लगने लगा कि उस के दोनों बेटे और बहुएं उस की उपेक्षा करते हैं. मौसाजी ने एक गलती यह की थी कि मकान अपनी पत्नी के नाम नहीं किया था. एक दिन रोधो कर मां के पास अपनी कहानी सुनाने आ गई,’ यह कह कर सपन गिलास उठा कर जैसे ही पानी पीने लगा, मनु बोला, ‘मैं समझ रहा हूं, तू आगे क्या कहने वाला है.’

‘क्या.’

‘पहले तू अपनी बात पूरी कर ले, फिर मेरी सुनना,’ मनु बोला.

‘तरस खा कर मां ने उसे कुछ समय अपने पास आने व रहने का निमंत्रण दे दिया. वह तो मानो आने को तैयार बैठी थी, सो, कुछ दिनों बाद ही अपनी गठरी ले कर आ गई,’ सपन ने सिर हिलाते हुए गहरी सांस ली.

‘तो इस में बुरा क्या हुआ?’ मनु ने पूछा.

‘अरे, अब वह जाने का नाम नहीं लेती. मां ने कहा भी कि जाओ बेटों के पास, तो कहती है, ‘मुझे जहर ला कर दे दो. किसी घर में भी नौकरानी की तरह रह लूंगी, पर वहां नहीं जाऊंगी,’ सपन ने दुखी हो कर कहा.

‘यार, तू कुछ समझ नहीं. इतनी सी बात होती तो दुखड़ा क्यों रोता,’ सपन ने कहा, ‘दरअसल मौसी बड़े टेढ़े स्वभाव की है. मां से तो कुछ कहती नहीं, रानी से झगड़ती रहती है कि यह ऐसे क्यों कर दिया, तुझे सलीका नहीं है, तुझे ढंग का खाना बनाना नहीं आता और न जाने क्याक्या. अब हम समझ गए हैं कि क्यों मौसी की अपनी बहुओं से नहीं बनती थी. सब रानी झेल रही है.’

‘है तो यह विकट समस्या,’ मनु ने स्वीकारा, ‘पर यार, हम भी कम नहीं झेल रहे हैं. मेरी समस्या कुछ हट कर है. लेकिन है कुछ तेरी जैसी ही.’

‘तू भी अपनी कहानी कह डाल,’

सपन ने मुसकरा कर कहा,

‘कहते हैं न कि बांटने से दुख कम होता है और सुख बढ़ता है.’

मनु के पिता निहालचंद अच्छे इंसान थे. अंतरा से कभी कोई शिकायत नहीं थी. उस के नौकरी करने पर भी कोई आपत्ति नहीं थी. अपनी पत्नी के देहांत के बाद अकेलापन खलने लगा था. उदास भी रहते थे. धीरेधीरे उन की आदतें बदलने लगीं. जो कुछ घर के कामों में हाथ बंटाते थे, अब हाथ खींच लिया. खाली दिमाग तो होता ही शैतान का घर है. अंतरा के काम पर जाने से उन्हें बुरा लगने लगा. सुनासुना कर कहते थे, घर में अकेले रहते हैं, कोई उन का खयाल नहीं रखता. अगर सुबह का नाश्ता जल्दी बना दिया तो शिकायत, नहीं बना पाई तो वह भी मुसीबत. चाय बना कर सामने रख दी तो अखबार पढ़ने लगे और फिर चाय ठंडी हो गई तो डांट लगा दी. एक दिन तो हद ही कर दी.

अंतरा ने अंडाटोस्ट बना कर व गरम दूध सामने रखते हुए कहा था, ‘पिताजी, नाश्ता रख दिया है. मैं दफ्तर के लिए तैयार होने जा रही हूं.’

निहालचंद ने सुन तो लिया पर अखबर सामने से नहीं हटाया.

काफी देर बाद ऊंची आवाज में बोले, ‘बहू, यह ठंडा नाश्ता क्या मेरे लिए था.’

‘पर पिताजी, मैं ने तो गरम बना कर रखा था और आप को बोल कर भी आई थी,’ अंतरा ने शालीनता से ही कहा था.

तभी मनु सामने आ कर बोला, ‘मैं ने खुद सुना था. अंतरा ने आप को बता कर गरम नाश्ता रखा था. अब

आप देर तक न खाएं तो उस का क्या कुसूर है.’

‘तू चुप रह,’ निहालचंद ने डांट कर कहा, ‘क्या मैं झठ बोल रहा हूं.’

अंतरा से न रहा गया. वह बोली, ‘आप क्यों झठ बोलेंगे, हम ही झठ कह रहे हैं.’

‘कुछ कहा तुम ने?’ निहालचंद ने अखबार नीचे फेंकते हुए कहा.

‘जी नहीं, मैं ने कुछ नहीं बोला,’ अंतरा दूध का गिलास उठाती हुई बोली, ‘अभी गरम कर के लाती हूं. टोस्ट भी और बना देती हूं.’

‘रहने दो बहू, तुम्हें दफ्तर पहुंचने में देर हो जाएगी. देर होगी तो तुम्हारा बौस तुम्हें डांटेगा. तुम्हारा बौस तुम्हें डांटेगा तो तुम रोतेरोते मेरी बुराई करोगी,’ निहालचंद ने कटुता से पूछा, ‘मैं ने ठीक कहा न?’

मनु ने अंतरा को खींचते हुए कहा, ‘हम जा रहे हैं, पिताजी. देर हो रही है. जब काली आए तो उसी से गरम करवा लेना. वैसे, आप भी इतना तो कर ही सकते हैं.’

दुखी हो कर मनु अंतरा से कह रहा था. ‘क्या करूं समझ नहीं आता. अचानक पिताजी को क्या हो जाता

है. सारी झंझलाहट तुम्हारे ऊपर ही उतारते हैं.’

‘चिंता मत करो,’ अंतरा ने मुसकरा कर कहा, ‘झेलने के मामले में मैं इतनी कमजोर नहीं हूं.’

‘ऐसा क्यों नहीं करतीं,’ मनु ने सुझव दिया, ‘कुछ दिनों की छुट्टी ले कर घर पर पिताजी की सेवा करो. शायद खुश हो जाएं.’

‘न बाबा,’ अंतरा ने सिहर कर कहा, ‘यह तो मेरे लिए बड़ी सजा होती. मैं नौकरी नहीं छोड़ूंगी.’

मनु और सपन बहुत देर तक अपनीअपनी समस्याओं का विश्लेषण करते रहे और एकदूसरे के प्रति सहानुभूति भी दिखाते रहे. बहुत दूर तक कोई हल नहीं सूझ रहा था.

‘‘तो पिताजी की समस्या है अकेलापन,’’ सपन ने बहुत सोच कर कहा, ‘‘अगर कोई साथी उन्हें मिल जाए तो शायद बात बन जाए.’’

‘‘पर साथी कहां से लाऊं?’’ मनु ने निरुत्साह से कहा, ‘‘क्या सौतेली मां ले आऊं?’’

‘‘अरे नहीं, इतनी दूर सोचने की जरूरत नहीं है,’’ सपन ने कुटिल मुसकान से कहा, ‘‘मुझे एक प्रयोग सूझ है. एक तीर से दो निशाने. बस, तीर निशाने पर बैठना चाहिए.’’

‘‘अब कुछ बक भी,’’ मनु ने झंझला कर कहा.

‘‘ध्यान से सुन. तू हमारी मौसी को एक महीने के लिए अपने घर में रख ले. मौसी की आबोहवा बदल जाएगी और तेरे पिताजी को संगसाथ मिल जाएगा,’’ सपन ने कहा, ‘‘हां, अगर तू भी परेशान हो जाए तो मेरा सिक्का पहले भी वापस कर सकता है.’’

मनु बहुत देर तक सोचता रहा और फिर गहरी सांस ले कर बोला, ‘‘बात में दम तो है पर अंतरा से पूछना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है, हम चारों मिल कर कल एक मीटिंग रख लेते हैं.’’

चारों ने मिल कर यह प्रयोग करने का निर्णय किया. मौसी को बस इतना बताना था कि सपन, रानी और मां को ले कर एक महीने के लिए छुट्टी ले कर बाहर जा रहा है. तब तक मौसी का अपने एक मित्र के यहां रहने का बंदोबस्त कर दिया है.

यह सुन कर पहले तो मौसी बहुत उखड़ीं पर उन के पास कोई चारा न था. अकेले घर में रह नहीं सकती थीं और बेटों के पास जाने का प्रश्न ही नहीं उठता था.

योजना के अनुसार एक महीना पूरा हो गया था. मनु व सपन सोचसोच कर घबरा रहे थे कि मौसी और पिताजी की क्या प्रतिक्रिया होगी. रानी डर रही थी कि कहीं मौसी पुराने ढर्रे पर न आ जाएं. अब की तो वह उन का पूरा विरोध करेगी. अंतरा सोच रही थी कि मौसी के जाने के बाद अगर पिताजी फिर से नखरे दिखाने लगे तो वह क्या करेगी.

‘‘चलो मौसी,’’ सपन ने कहा, ‘‘हम आप को लेने आए हैं. जल्दी से तैयार हो जाइए. हां, सोनूमोनू भी आप को याद कर रहे थे. वे आप को ले जाना चाहते हैं.’’

‘‘सच,’’ मौसी की आंखों में चमक आ गई, वे बोलीं, ‘‘नहीं, तू झठ कह रहा है. मैं बहुओं को जानती हूं.’’

‘‘मैं क्यों झठ बोलूंगा,’’ सपन ने हंस कर कहा, ‘‘वे तो शिकायत कर रहे थे कि मैं ने आप को अगवा कर लिया है.’’

निहालचंद हंस पड़े, ‘‘दरअसल तुम्हारी मौसी को तो मैं अगवा करना चाहता हूं. बहुत अच्छी हैं. बड़ा मन लग गया है इन से.’’

यह सुनते ही सब हंस पड़े. निहालचंद और मौसी झेंप गए.

‘‘क्या बात है, पिताजी, चलाएं कुछ चक्कर,’’ मनु ने छेड़ा.

‘‘तुम लोग बड़े शरारती हो,’’ मौसी के गाल सुर्ख हो गए.

‘‘मौसी, आप चली जाएंगी तो पिताजी आप को बहुत याद करेंगे,’’ अंतरा बोली, ‘‘आप के बनाए कढ़ी, बैगन का भुरता, लौकी के कोफ्ते, मूंग की दाल का हलवा और सभी चीजों की इतनी तारीफ करते हैं कि बस, पूछो ही मत. काश, मैं आप से सीख पाती.’’

अपनी तारीफ सुन कर मौसी का चेहरा खिल गया, ‘‘अरे, बस. ऐसे ही थोड़ाबहुत बना लेती हूं. वैसे, तुम नौकरी पर जाती हो, इतनी फुरसत कहां.’’

रानी ने मौसी के कमरे में झंकते हुए कहा, ‘‘अरे मौसी, आप का सामान सब वैसा का वैसा ही पड़ा है. क्या अभी चलने का इरादा नहीं है.’’

‘‘चलना तो है पर सोच रही हूं कि चलूं या नहीं,’’ मौसी ने हिचकते हुए कहा.

‘‘क्यों?’’ रानी और सपन चौंक पड़े.

‘‘बात यह है बहू कि अंतरा के पैर भारी हैं. अब उस की देखभाल करने वाला भी तो कोई घर में होना चाहिए न,’’ मौसी ने गंभीरता से कहा.

‘‘अरे, और हमें पता भी नहीं,’’ सब एकसाथ बोल पड़े.

रानी ने अंतरा का हाथ अपने हाथों में ले कर बड़ी आत्मीयता से कहा, ‘‘तुम तो बड़ी छिपी रुस्तम निकलीं. मुबारक हो और मनु भैया आप को भी,’’ तो मनु मुसकरा कर रह गया.

रात में मनु अंतरा के पैर उठाउठा कर देख रहा था.

‘‘यह क्या कर रहे हो?’’ अंतरा ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘देख रहा हूं कितने भारी हैं,’’ मनु ने शरारत से कहा.

‘‘छि : बेशर्म कहीं के,’’ अंतरा ने पैर खींच लिए.

‘‘सुनो,’’ मनु ने गंभीरता से कहा, ‘‘अब मौसी को दुनिया के सामने झठला तो नहीं सकते. उन की बात

का मान तो रखना ही पड़ेगा. क्या

कहती हो?’’

बाहर किसी बात पर मौसी और निहालचंद खिलखिला कर हंस रहे थे, बिलकुल बच्चों की तरह.

शायद यह एक नए जीवन की शुरुआत थी.   द्य

आप का कमैंट :

क्या जीवनसंध्या में जीवनसाथी की

जरूरत होती है?

हां.

न.

किसी का साथ जरूरी है.

जीवनसाथी हर उम्र में जरूरी है.

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पीड़ा : एक सिपाही के उलझनों की कहानी

ब यह अपनी ससुराल के तलवे चाटेगा,’’ बड़े भाई ने कहा.

‘‘ससुराल के तलवे क्यों चाटूंगा, मैं भारतीय सेना का सैनिक हूं. मुझे देश के किसी भी कोने में सैप्रेट फैमिली क्वार्टर अथोराइज हैं. यह उन को मिलता है जिन की पोस्ंिटग बौर्डर पर होती है और वे गलती से घर वालों पर विश्वास कर के अपनी बीवी व बच्चों को घर में छोड़ने का जुल्म करते हैं. जैसे मैं ने राजी और बच्चे को यहां छोड़ने का जुल्म किया. फैमिली क्वार्टर का अलौटमैंट लैटर है मेरी जेब में. अभी मिलिट्री की गाड़ी आ रही है, हम यहां से चले जाएंगे.’’

‘‘घर का खर्चा कैसे चलेगा?’’ मां ने कहा था.

‘‘यह आप को पहले सोचना चाहिए था. सबकुछ आप ने अपनी बेटी और दामाद को दे दिया है. मैं आप का अकेला बेटा नहीं हूं. और बेटे भी हैं. आप ने क्या किया, यह आप जानती हैं. पिताजी ने आप को सबकुछ दिया था. 2 मकान एक गांव में, एक शहर में. शहर का मकान घरों के बीच में था. बैंकबैलेंस था. बुजुर्गों की जमीनें थीं.

‘‘आप के पास इतना कुछ था कि आप को किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं थी. छोटा भी बड़े आराम से पढ़ जाता. आप न केवल खुद लुटीं बल्कि अपने सारे बेटों को भी कंगाल कर दिया. 10 हजार रुपए के बदले आप ने सब को गुलाम बना दिया, सब का बेड़ा गर्क कर दिया.’’

‘‘मैं ने तो वह किया जो सब ने कहा.’’

‘‘सब में कौनकौन आता है? यह बेटी, दामाद और बड़ा भाई. दामाद तो बाहर का आदमी था. आप नहीं जानती थीं, इन दोनों ने अपने जीवन में क्या किया था?

‘‘हमारे परिवार की बरबादी तब से शुरू हो गई थी जब मैं 7वीं में पढ़ता था. गली की लड़की के लिए सब से बड़े भाई ने 2 बार अफीम खाई और पागलखाने चला गया था. लड़की के घर वालों से पिटा भी था. पिताजी को पागलखाने में दाखिले के लिए चंडीगड़ जा कर सीएम औफिस से परमिशन लानी पड़ी थी. आप जानती थीं, फिर भी उसे पढ़ने को डाला और पैसा बरबाद किया था.

‘‘यह आप की बेटी संगीत सीखना चाहती थी. उस के विपरीत लेडी हैल्थ विजिटर के कोर्स में दाखिला लिया और पूरा नहीं किया था. पैसा बरबाद किया. यह जो बड़ा भाई सामने बैठा है, इस ने जीवन में क्या किया? जीवनभर अपने को, अपनी बीवी को और अपने बच्चों को धोखा देता रहा है. जितना नुकसान इस ने परिवार को पहुंचाया है और किसी ने नहीं पहुंचाया. आप इस की बातों के झंसे में आ गईं.

‘‘ये श्रीमानजी, पहले नेवी में गए थे. वहीं रहते तो चीफ पैटी अफसर बन कर रिटायर होते और अच्छी पैंशन मिलती. नेवी में दाढ़ीमूछ इकट्ठी रखने का आदेश है. ये अड़ गए कि हमारे कस्टम हैं कि मूंछ रखनी है, दाढ़ी नहीं रखनी है. इंटरनल होने वाले पेपर ठीक से नहीं दिए, उन्होंने निकाल दिया. काहे की दाढ़ी, काहे की मूंछ, काहे का कस्टम. सच बात यह थी, ट्रेनिंग की सख्ती नहीं सह पाए ये. परिवार ने फिर इन का साथ दिया.

‘‘इस धोखेबाज आदमी को पढ़ने के लिए डाला. पढ़ा फिर भी नहीं था. घर में झगड़ा किया, फिर फौज में चले गए. वहां बीमार हुए, मैडिकल बोर्ड से आउट हो कर घर आ गए.

‘‘मैट्रिक में फर्स्ट डिविजन थे. एक्स सर्विसमैन कोटे से इन को पंजाब सरकार में फूड सबइंस्पैक्टर की नौकरी मिली थी. वहीं रहते तो उस विभाग के सब से ऊंचे पद तक जाते. इस ने यह कह कर वह नौकरी छोड़ दी थी कि यह ईमानदारी का महकमा नहीं है. एक बेईमान और धोखेबाज आदमी ईमानदारी की बात कर रहा था.

‘‘आप को इस आदमी की वृत्ति की फिर भी समझ नहीं आई थी? किस मोह के झंसे में आ गई थीं? मां तो सब के बारे में सोचती है. हम सब इसलिए पढ़ नहीं पाए कि सारा पैसा इन तीनों पर खर्च हो गया था. रहीसही कसर बेटी और दामाद ने पूरी कर दी.

‘‘दामादजी कह रहे थे, उन के पास 10 हजार रुपए नहीं हैं. लोन लेना पड़ेगा. लोन तब मिलेगा जब जमीन उन के नाम होगी.

‘‘रजिस्ट्री नहीं करवानी थी न. कम से कम पैसा तो आप के पास रहता था. सब धोखेबाजी थी. कोई लोनवोन नहीं लेना था. केवल जमीन हथियानी थी. पैसा इन के पास था, वही दिया. पूछो इन से, सामने बैठे हैं.

‘‘भाईसाहब, आप को तो पता था. आप तो जानते थे, कानून क्या होता है? आप ने 6 साल अपनी बीवी से तलाक का मुकदमा लड़ा था. आप को नहीं पता था कि जमीन उस की होती है जिस के नाम से उस की रजिस्ट्री हुई हो.

‘‘समझते के अनुसार जो पैसा घर में दिया जाना चाहिए था, वह मुकदमे में बरबाद कर दिया. समझते के लिए कंपनी बनाई, ‘ यूनाइटेड स्टैंड, डीवाइटेड फौल.’ माई फुट. बलि का बकरा बना मैं, भलोल समझ कर लूटते रहे.’’

‘‘आप को अपना दिमाग इस्तेमाल करना चाहिए था?’’

‘‘सही कहा आप ने. आप ने अपना दिमाग इस्तेमाल किया था न, क्या हुआ? बच्चे कहां हैं और बीवी कहां है? अगर और भाइयों की तरह उस मकान का हिस्सा आप को बेच दिया होता तो आज वे सड़क पर होते. आप गांव के मकान को भी बेच कर डकार गए होते. काश, मैं ने अपना दिमाग इस्तेमाल किया होता.

‘‘पिताजी के मरने के बाद मैं ने अपना पैसा संभाल कर रखा होता और किसी तरह का सहयोग न करता या हम में से किसी एक ने भी अपना दिमाग इस्तेमाल किया होता तो शहर वाला मकान न बिकता. किसी एक ने भी पावर औफ अटौर्नी न दी होती तो कम से कम 3 भाई अपनाअपना पोर्शन बना कर वहां सैटल हो जाते. खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी. फायदा, बेईमानों और धोखेबाजों को मिला.

‘‘हमारे घर में केवल 2 शादियां अच्छी हुई थीं. एक सब से बड़े भाई की. दूसरे, इस लुटेरी बहन की. शादी से पहले या शादी के बाद उस भाई ने घर में सहयोग नहीं किया. शादी करते ही वे घर से अलग हो गए थे. अच्छा किया था, वे आप सब की धोखेबाजियों में तो नहीं आए. बस, एक जगह धोखा खा गए थे, आप को पावर औफ अटौर्नी दे कर. दोनों शादियां भी पिताजी ने अपने हाथों से कर दीं. नहीं तो कोई और लुटेरा लूट कर ले जाता.

‘‘हम बाकियों की शादी मंदिरों में, गुरुद्वारों में करना चाहते थे. दहेज से नफरत थी, ऐसा नहीं था बल्कि कुछ पास में था ही नहीं. अच्छी शादी करने की हमारी औकात नहीं रह गई थी. बाकियों की शादी किस तरह हुई, आप जानती हैं. मैं ने 2 महीने की छुट्टियों के पैसे से शादी की थी. छोटे ने यहीं आपस में वरमाला पहन ली थी. सब के सब लड़की वाले गर्जी थे. कइयों की ज्यादा लड़कियां थीं, इसलिए झंसे में आए. कई पिताजी नाम के कारण फंसे.

‘‘मैं शन्नो को साथ ले कर गया. आप को पैसे दे कर गया था, पीछे से कोई दिक्कत न हो. यहां भी गलती की. वहां हम तेल की रोटियां खाते रहे. जब वह लौट कर आई तो पेट से थी. आप ने क्या कहा था, मां? ‘बड़ी आई थी, वह इसी तरह पेट से थी. लड़की हुई थी. यह भी लड़कियों के घर से आई है, लड़की जनेगी. वंश आगे बढ़ेगा भला.’ इस से आप के चेहरे पर थोड़ी सी भी खुशी नहीं थी. आप को लगातार 12 साल से आ रहे पैसों के बंद होने की चिंता थी.

‘‘शन्नो, इस बहन के पांव को छूने के लिए झकी तो इस ने आशीर्वाद देने के बजाय आगे से ठुड मारा. आप भी तो वहीं थी, मां. अगर मां जाई बहन ऐसी होती है तो ऐसी बहन को दूर से तौबा.

‘‘अपने जीवन में मुझे 1,000 रुपए की जरूरत पड़ी थी. इस बहन ने पैसे तो दिए, साथ में, 11 पेज का लैटर लिखा था. जिस में गालियों के अतिरिक्त और कुछ नहीं था. आप कहें तो वह लैटर फेसबुक पर डालूं.

‘‘ये श्रीमानजी, हमारे जीजा, पिताजी के मरने के बाद हम ने इन को पिताजी का दर्जा दिया था. मैं ने खुद कहते सुना था कि जमीन तो मैं ने अपने नाम करवा ली है, आंएगे साले मेरे पास ही. आप कहें तो मेरे मोबाइल में की गई वह रिकौर्डिंग है, सुनाऊं. लो, सुन लो, किसी तरह का भ्रम मन में नहीं रहना चाहिए. जीजू, कुछ शर्म आई. बेशर्मों को क्या शर्म आएगी?

‘‘मां, शन्नो के मेहनतकश बाप ने अपनी लाड़ली बेटी को जीवन में काम आने वाली हर चीज दी. हर बाप देता है. आप जानती हैं, मांबाप पंजाब में अपनी बेटी को फुलकारी क्यों देते हैं? आप ने भी तो दी थी. बेटी जीवनभर उसे संभाल कर रखती है, इसलिए देते हैं. अगर उस की बेटी की मौत हो जाए और वे समय पर पहुंच न पाएं तो मायके की ओर से चादर के रूप में डाली जाती है वह. वह फुलकारी गांव कैसे पहुंच गई? शन्नो कह रही थी कि उस का एक पर्पल कलर का सिल्क का नाइट सूट था, वह भी गायब है. 101 नाड़े दिए थे, रेशमी रंगदार नाड़े, अपनी लाड़ली को ताकि जीवनभर नाड़े मांगने की जरूरत न पड़े. वे भी नहीं हैं.’’

‘‘नाइट सूट और नाड़े मैं ले गई थी. शालू को नाइट सूट बहुत पसंद था,’’ बहन ने कहा.

‘‘वह भी चोरी कर के, बिना किसी को बताए. दहेज से नफरत करने वाले दहेज चोरी कर के ले गए. पसंद था तो अपने पैसे से खरीदतीं, पहले कम लूटा है?’’

‘‘मैं ने मां को बताया था.’’

‘‘मां का सामान था. आप के दहेज का सामान आप की सास या और कोई ले जाता तो आप उस को छोड़तीं? खा जातीं उसे. जिस का सामान था, उस से पूछना गवारा नहीं समझ? मां, आप ने शन्नो को बताना तो दूर, मुझे भी नहीं बताया था. कई बातें लिखती थीं कि काका, यह हो गया है, वह कर दिया है. यह इसलिए नहीं बताया कि चोरी किया जा रहा था. दहेज का सारा सामान टूटी पेटी में कैसे चला गया? उस की नई पेटी में गेहूं कैसे डाल दिया और सामान टूटी हुई पेटी में क्यों व कैसे? सब के सब बेईमान और धोखेबाज हो.’’

‘‘बाहर गेहूं खराब हो रहा था तेजिंदर.’’

‘‘खराब हो रहा था, खराब होने देते. नई पेटी लानी थी.’’

‘‘उस के लिए पैसे नहीं थे.’’

‘‘आप ने सबकुछ अपनी बेटी को दे दिया. हर जगह इस ने हिस्सेदारी ली है. मां का खयाल रखने की जिम्मेदारी इस की भी है. अब आप की बेटी आप को खाने से ले कर कपड़ेलत्ते तक, सब देगी. अगर ऐसी होती है मां, ऐसे होते हैं बहनभाई तो नहीं चाहिए ऐसे भाईबहन. इस भाई के पास पैसे नहीं थे, यह नई पेटी ले आता.

‘‘मेरे पास आज भी छोटे भाई का वह लैटर फाइल में पड़ा है जिस में उस ने लिखा था कि आप भाभी और बच्चे को बचा लो. भाई आप की तनख्वाह से घर का खर्चा चलाता है और अपनी तनख्वाह बचाता है. भाभी सूख कर कांटा हो गई है. बच्चे को दूध मिलता है तो भाभी को नहीं मिलता. दूध नहीं पिएगी तो बच्चे के लिए दूध कैसे आएगा. वह बीमार भी रहने लगी है.

‘‘आप की यह बेटी कहती थी, बूढ़े, पढ़ने वाले और बच्चे को दूध मिलना चाहिए, जवानों को दूध की क्या जरूरत है. मैं इसी टैंशन में बीमार हुआ और हैलिकौप्टर से अस्पताल में शिफ्ट किया गया था. अगर मुझे इस तरह शिफ्ट न किया जाता तो आज मैं जीवित न होता. छोटे का वह पत्र आज भी मेरे पास है. कहें तो फेसबुक में डालूं पर आप जैसे बेशर्म लोगों को क्या फर्क पड़ेगा, क्या फर्क पड़ता है.

‘‘मां, मैं आप से क्या कहूं. शर्म भी आती है. आप ने तो जीवन में कभी अंडरगारमैंट पहने नहीं. घर में बहुएं भी ऐसे ही घूमें? आप घर की बड़ी थीं. आप को इतनी समझ नहीं थी कि बहुओं की अपनी भी जरूरतें होती हैं. क्यों आप ने इस के लिए पैसे नहीं दिए थे? पैसे की कमी कैसे पड़ी थी? क्यों आप ने मेरी तनख्वाह की तरह भाई से पैसे नहीं मांगे. समझता तो यही था कि सभी अपनी तनख्वाहें आप को देंगे? कोई नहीं देता था तो आप ने मुझे क्यों नहीं लिखा? मुझ से गलती यह हुई कि मैं सारे पैसे आप को भेजता रहा कि आप शन्नो का खयाल रखेंगी पर मेरा यह वहम निकला.

‘‘मैं ने हर महीने शन्नो को 500 रुपए महीना देने की बात की थी. ये सब जो बैठे हुए हैं, इन सभी ने विरोध किया था कि घर की सभी बहुओं को 500 रुपए महीना मिलना चाहिए. क्या मेरी परिस्थितियों और इन की परिस्थितियों में फर्क नहीं था? ये सब अपनी बीवियों का खयाल रखने के लिए साथ में थे. मैं तो दूर था. शन्नो अपने मन की बात केवल पत्रों से लिखती थी, मोबाइल उस के पास नहीं था. जब तक पत्र मुझ तक पहुंचता तब तक पीछे बहुतकुछ घट जाता. अगर अमृतसर में शन्नो तक पैसे ही पहुंचाने थे तो मेरे पास कई साधन थे. मैं तो आप के हाथों से दिलाना चाहता था, आप का मान बढ़ता. लेकिन आप ने क्या किया? शन्नो और मेरे बच्चे का सत्यानाश ही कर दिया. आप सब बेईमान और धोखेबाज हो.

‘‘काश, मैं ने आप पर विश्वास न किया होता. फैमिली क्वार्टर लिया होता और यह नौकरी करती. अब ऐसा ही होगा. आप सब की वहां एंट्री बंद. मैं गेट पर और स्टेशन हैडक्वार्टर में लिख कर दे जाऊंगा कि इन लागों को कैंपस में एंटरी न दी जाए. ये किसी समय भी मेरी फैमिली को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

‘‘शन्नो, तुम्हें मां ने सोने की 2 चूडि़यां दी थीं न. वे वापस दे दो. मैं तुम्हें नई चूडि़यां बनवा कर दूंगा. जब हम सारे रिश्तेनाते ही तोड़ कर जा रहे हैं या इन्होंने रिश्ते बनाने योग्य संबंध ही नहीं रखे हैं तो ये चूडि़यां कैसी?’’

‘‘जा, शन्नो जिस तरह से तुम ने मेरा पुत्र छुड़ाया है, तुम्हारा पुत्र भी छूटे,’’ मां ने कहा.

‘‘वाह मां, वाह, अपनी गलितयां मानने के बजाय मुझे और शन्नो को बद्दुआएं दे रही हो?’’

‘‘मैं तुम्हें कभी राखी, भैया दूज नहीं भेजूंगी. आज से सब बंद,’’ बहन ने अपनी चुभती आवाज में कहा.

‘‘आप भेजोगे तो तब जब मैं संबंध रखूंगा. देख लो मां, मैं यहां से कुछ नहीं ले जा रहा हूं. शन्नो भी केवल अपना सामान ले जा रही है जो उस के पिताजी ने दिया था,’’ मैं ने कहा.

गाड़ी आई, 2 जवान भी साथ में थे. सारा सामान लोड किया और चल दिए. शन्नो और मुन्ना मेरे साथ आगे बैठ गए. कुछ सामान बाहर खराब होते देख मैं ने पहले ही अपनी ससुराल में छोड़ दिया था. मैं ने ड्राइवर को बताया. ड्राइवर ने गाड़ी हौल बाजार की ओर मोड़ दी. वहां से सब लोड करने के बाद पापाजी हमारे साथ हो लिए. वे देखना चाहते थे कि अब उन की बेटी कहां रहेगी. वह जगह सुरक्षित होगी या नहीं.

किला गोविंदगढ़ के अंदर बड़े मैदान को चारों तरफ दीवार से घेर कर बहुत सुंदर मल्टी स्टोरी नए क्वार्टर बनाए गए थे. मुझे ए बलौक में क्वार्टर नंबर 29 अलौट किया गया था. गेट पर खड़े गार्ड को अपना अलौटमैंट लैटर दिखाया. उस ने मुझे गार्ड रूम में गार्ड कमांडर के पास भेज दिया. रजिस्टर में पर्टीकुलर्स नोट किए और पीछे लगे बड़े बोर्ड पर मेरे क्वार्टर नंबर के आगे मेरे नाम की पर्ची चिपका दी. गार्ड को गेट खोलने के लिए आदेश दिया. गार्ड रूम के सामने बड़ा मैदान था. मैदान खत्म होते ही ब्लौक शुरू हो जाते थे.

पहले ब्लौक में ही मुझे क्वार्टर अलौट हुआ था. मैं सुबह ही क्वार्टर का चार्ज ले कर अपना ताला लगा गया था. ताला खोला और दोनों जवानों ने सारा सामान उतार दिया. वे जाने लगे तो मैं ने उन की मेहनत के लिए रम की बोतल दी. वे खुश हो कर चले गए.

सामान उतरने के बीच पापाजी ने सारा क्वार्टर देख लिया. चेहरे से वे बहुत खुश दिखाई दे रहे थे.

‘‘क्वार्टर बहुत शानदार है. बस, यही है कि शन्नो यहां अकेली कैसे रहेगी?’’

‘‘पापाजी, यहां केवल औरतें और बच्चे रहते हैं. सुरक्षा का पूरा प्रबंध है. यहां अंदर आने के लिए केवल एक ही गेट है. जहां 24 घंटे राइफल ले कर गार्ड खड़े हैं. बिना पूछे कोई अंदर आ नहीं सकता. वही अंदर आते हैं जिन को क्वार्टर अलौट हैं या कोई ऐसा रिश्तेदार जो अकेली औरत के साथ रात को रुकेगा. उस के लिए भी स्टेशन हैडक्वार्टर फोटो वाला पहचानपत्र इशू करता है. वैसे, मीनू रात को यहां पर रुका करेगी, उस की मम्मी से बात हो गई थी. कल स्टेशन हैडक्वार्टर जा उस के लिए पहचानपत्र ले आऊंगा,’’ मैं ने कहा.

‘‘पापाजी, सारा दिन मैं फैक्टरी में रहूंगी और मुन्ना आप के पास. मीनू फैक्टरी जाने के लिए वहीं मम्मी के पास आ जाया करेगी जैसे पहले आती थी. वहीं से हम दोनों फैक्टरी चली जाया करेंगी और आते समय मुन्ना को ले कर मैं यहां आ जाया करूंगी,’’ शन्नो ने कहा.

‘‘वह तो अच्छा है. हमारे पास रौनक हो जाएगी. दिल लगा रहेगा. सब मिल कर संभाल लेंगे. इस के अलावा भी घर की बहुत सी चीजें होती हैं जो रोजरोज लानी पड़ती हैं,’’ पापाजी ने कहा.

‘‘पापाजी, यहां सब मिलेगा. दूध और सब्जी के लिए गेट के बाहर मदर डेरी के बूथ हैं. पैसों के लिए बैंक का एटीएम है. कैंटीन की गाड़ी आएगी, राशन की गाड़ी आएगी. बच्चों के स्कूल जाने के लिए स्कूल बसें आती हैं. गेट पर सब की टाइमिंग लिखी हुई है. अपनेअपने समय पर आती रहेंगी.

‘‘इमरजैंसी में किसी चीज की जरूरत पड़ती है तो वे सामने बनिया कैंटीन है, उस में सबकुछ मिल जाएगा. सेना का कोई काम रामभरोसे नहीं होता है. वह गार्ड रूम के साथ एक कमरा है, वह एमआई रूम है. वहां सुबह 9 बजे से ले कर 1 बजे तक सेना का डाक्टर बैठता है, कोई बीमार होता है तो दवाइयां दी जातीं हैं. 24 घंटे एंबुलैंस खड़ी रहती है. कोई सीरियस हो जाता है तो उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया जाता है,’’ मैं ने पापाजी से कहा, ‘‘बस, गलती यह हो गई थी कि मैं ने घर वालों पर विश्वास किया. जब पता चला, बहुत नुकसान हो चुका था.’’

‘‘कोई बात नहीं. देर आए, दुरुस्त आए. मुन्ना की चिंता न करें. उस की देखभाल हो जाएगी. शन्नो का भी खयाल रखा जाएगा.’’

‘‘पापाजी, मुन्ना को मैं सुबह आप के पास छोड़ जाया करूंगी और आते वक्त ले आया करूंगी. सब्जी रामबाग सब्जी मंडी से ले आया करूंगी. नहीं तो यहां मिल जाया करेगी. कोई मुश्किल नहीं होगी. फिर आप सब तो हैं खयाल रखने के लिए.’’

पापाजी संतुष्ट हो कर घर गए. मैं और शन्नो क्वार्टर सैट करने में लग गए. किचन सैट हुआ तो बाकी सैट करना मुश्किल नहीं था. सब ठीक हुआ तो दोपहर के खाने की चिंता हुई. मुन्ना दूध पी कर सो गया था.

‘‘सामने वैज कैंटीन है. वहां खाने के लिए कुछनकुछ मिल जाएगा,’’ मैं ने कहा.

कैंटीन में 100 रुपए की थाली लंच की मिल रही थी. मैं ने 2 थाली के पैसे दिए और वेटर से कहा, ‘‘मेरे साथ आओ, सामने ए ब्लौक में जाना है.’’

लंच के बाद कुछ घर का सामान लेना था. शन्नो के बिना यह हो नहीं सकता था, इसलिए मुन्ना को भी साथ ले लिया. मुन्ना को शन्नो के मायके छोड़ कर बाजार चले गए. सारा सामान ले कर वापस आए तो रात के 9 बज गए थे. खाना तैयार था. क्वार्टर में जा कर रात को खाना कहां बनाएंगे, इसलिए यहीं खाना श्रेष्ठ समझ. स्कूटर पर सारा सामान ले जाना संभव नहीं था. जरूरी सामान लिया और वापस क्वार्टर पर आ गए. रास्ते से सुबह के लिए दूध ले लिया.

दूसरे रोज मीनू के लिए स्टेशन हैडक्वार्टर से यहां रहने का पहचानपत्र ले आया. मीनू शन्नो की पक्की सहेली थी. इतनी पक्की कि उसी ने हमारा रिश्ता भी करवाया था. दोनों फैक्ट्री में साथ काम करती थीं. मीनू, मेरी बूआ की जेठ की लड़की थी. इस नाते वह मेरी बहन लगती थी पर वह मुझे जीजू कहती थी.

छुट्टी खत्म होने पर यूनिट वापस जाने लगा तो मन में बहुत टीस थी, पीड़ा थी. समय पर निर्णय न लेने की पीड़ा थी. जवानों को मैं ने कई बार बैरक के कोनों में रोते देखा था. शायद वे भी मेरी जैसी परिस्थितियों में मन की पीड़ा को आंसुओं में बहाते थे. कई तो अपनी पत्नी, बच्चों को किन्हीं कारणों से अपने साथ रख ही नहीं पाते हैं. किसी को घर संभालना है तो किसी को जमीन.

वे अपनी फैमिली सैप्रेट क्वार्टरों में भी नहीं रख पाते हैं. उन की और उन के बीवीबच्चों की पीड़ा अलग है. हर छत की अपनी पीड़ा होती है और हर पीड़ा का निदान नहीं होता है. सैनिक सम्मेलनों में चाहे हमें समझया जाता है, फैमिली का मतलब है, पत्नी और बच्चे. कोई जवान मांबाप का अकेला बेटा है तो मांबाप भी फैमिली में आते हैं. सेना, उन की दवाइयों आदि का भी खर्चा उठाती है. पर थोड़े से बदलाव के साथ पीड़ा उन का पीछा नहीं छोड़ती है.

सारी सुविधाएं होने पर भी अपनी फैमिली को साथ न रख पाना पीड़ादायक है. जवान अपनी ड्यूटी को ले कर कभी पीडि़त नहीं हुए. वे अपनों के कारण पीडि़त होते हैं. समस्या भयंकर है पर इस का हल केवल यही है कि वे पत्नी और बच्चों का पुख्ता प्रबंध कर के बौर्डर ड्यूटी पर जाएं. जब पीस एरिया में हों तो अपने साथ रखें.

बच्चों को बेसहारा बनाते अपराधी मांबाप

मातापिता बच्चे की परवरिश की रीढ़ होते हैं. मातापिता के किसी अपराध में संलिप्त होने से उस का बच्चों पर सीधा असर पड़ता है. वे बेसहारा हो जाते हैं, दरदर भटकना पड़ता है उन्हें. आखिर ऐसी नौबत ही क्यों?

27 फरवरी, 2022 को कमल अहिरवार अपनी पत्नी नारायणी को उस के मायके पूनमखेड़ी से ससुराल बांसखेड़ी ले कर आया था. खाना खाने के बाद 17 साल की रजनी और छोटी बहन सुरक्षा घर पर ही थीं. एक भाई और 2 छोटी बहनें सो चुके थे. रात में रजनी और सुरक्षा बैठ कर बातें कर रही थीं, तभी किसी बात को ले कर मम्मीपापा झगड़ने लगे. पापा मां के साथ मारपीट करते हुए कह रहे थे, ‘तुम एक साल से घर क्यों नहीं आईं?’

उन को झगड़ते देख हम दोनों बहनें हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाते हुए पापा से कहने लगीं, ‘पापा, मत लड़ो, मम्मी को मत मारो.’ लेकिन पापा ने हम लोगों की एक न सुनी. इस के बाद मां को घर के अंदर ले गए और लाठीडंडों से पीटने लगे.

मां ने बचाव की बहुत कोशिश की. उस की चूडि़यां भी टूट गईं. जब वह थक कर गिर गई तो पापा उस के पेट पर बैठ गए और किचन से मसाला कूटने वाली पत्थर की लुढि़या ले कर आए और मां के सिर पर मारने लगे. पापा ने गुस्से में कई वार किए. मां के सिर से खून निकल रहा था. देखते ही देखते मां मर चुकी थी.

17 साल की रजनी अहिरवार उस रात की कहानी सुनाते हुए सिसकने लगती है, कहती है, ‘‘काश, पापा ने हमारा गिड़गिड़ाना सुन लिया होता, हम 5 भाईबहन आज अनाथ जैसी जिंदगी न जी रहे होते.’’

मातापिता में किसी का भी सहारा नहीं होने से रिश्तेदारों की मेहरबानी पर 5 बच्चों की जिंदगी गुजर रही है. नारायणी की हत्या के बाद कमल अहिरवार को जेल हो चुकी है. अब 17 साल की रजनी अहिरवार अपने साथ 3 छोटी बहनों और एक भाई की परवरिश कर रही है.

ऐसे ही दूसरे मामले में मां की हत्या के जुर्म में पिता को उम्रकैद हो गई. गुना जिले में ही 17 अगस्त, 2022 को धरनावदा इलाके के महू गांव का रहने वाला शैतान सिंह लोधा अपनी ससुराल पठार महल्ला आरोन में था. उस की पत्नी प्रीति लोधा भी वहीं पर थी. शैतान सिंह अपनी पत्नी के चरित्र को ले कर शक करता था.

17 अगस्त की रात को शैतान सिंह ने गला दबा कर पत्नी की हत्या कर दी. कोर्ट ने 1 मार्च, 2023 को 6 साल के बेटे की गवाही पर पिता को उम्रकैद की सजा सुनाई है. अब मासूम अपनी बहन और बुजुर्ग नानी के साथ आर्थिक सहायता के लिए दफ्तरों के चक्कर काट रहा है.

एक तीसरे मामले में अशोक नगर में अक्तूबर 2022 में मुंगावली की अजीज कालोनी में एक महिला रिंकी पाल की संदिग्ध अवस्था में मौत हो गई थी. पुलिस ने जब सख्ती से पूछताछ की तो पति लेखराज पाल ने चरित्र पर संदेह के चलते हत्या करने का गुनाह कुबूल कर लिया. बताया जाता है कि वह पत्नी का मोबाइल चैक करना चाहता था. इसी को ले कर दोनों में विवाद हो गया.

मोबाइल छुड़ाते हुए पति ने महिला का गला दबा दिया. घटना के 6 दिनों पहले ही महिला ने बच्ची को जन्म दिया था. मां की हत्या होने से 6 दिन की मासूम बेटी के सिर से मां का साया हट गया. अब पिता जेल में है और 5 महीने की बच्ची की परवरिश का संकट खड़ा हो गया.

गलती मातापिता की

पिछले कुछ महीनों में ऐसे मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं जिन में मातापिता की गलती की वजह से अपराध होने से बच्चे बेसहारा हो रहे हैं. मध्य प्रदेश के गुना जिले में ही ऐसे 44 केस हैं. वहीं, अशोक नगर जिले में 15 और शिवपुरी जिले में 30 केस इस तरह के हैं. गुना में हाल ही में 2 ऐसे मामलों में कोर्ट का फैसला आया जिन में पति अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में जेल जा चुके हैं. अब उन के बच्चे दरदर की ठोकरें खा रहे हैं.

गांवकसबों के बड़ेबुजुर्गों से यह कहते कई बार सुना है कि औलाद अगर गलत रास्ते पर चल पड़े तो उस की शादी कर देनी चाहिए. शादी के बंधन में बंधते ही उसे घरगृहस्थी दिखने लगती है. गलत काम करने से पहले वह एक दफा अपने बीवीबच्चों के बारे में जरूर सोचता है. इंसान की सहनशीलता, बुद्धि और धैर्य उसे जीवन जीने की कला सिखाते हैं. कई बार देखने को मिला है कि छोटीछोटी बातों पर गुस्से में आ कर ऐसे अपराध हो जाते हैं जिन से जीवनभर जेल की चारदीवारी में रह कर पछताना पड़ता है. बिना सोचेविचारे किए गए अपराध बीवीबच्चों को यतीम बना देते हैं. अपराधियों के ये बच्चे अपने रिश्तेदारों के रहमोकरम पर अपना जीवन बिताने को मजबूर होते हैं.

माना जाता है कि अपराध की जड़

3 चीजें हैं- जर यानी धनसंपदा, जोरू यानी औरत और जमीन. धनदौलत की चाह में लोग बड़े से बड़ा अपराध करने से नहीं हिचकते, भले ही अंजाम कुछ हो. जमीनजायदाद पाने के लिए भाई भाई के खून का प्यासा हो जाता है.

इन में से जर और जमीन के मामलों में अपराध भले ही कम होते हैं लेकिन औरत के नाजायज संबंध की वजह से अपराध ज्यादा होते हैं. जब पुरुष को पता चलता है कि उस की पत्नी के किसी के साथ नाजायज ताल्लुकात हैं तो वह मरनेमारने पर उतारू हो जाता है. मौजूदा दौर में नाजायज संबंधों की वजह से होने वाले अपराधों की बाढ़ सी आ गई है.

पीछे रह जाता पछतावा

महिला अपराधों की एक खास वजह धर्म भी है. धार्मिक कथाकहानियों में यह सीख दी गई है कि महिलाओं पर पुरुष कितना ही जुल्म करे, मगर उसे पति को परमेश्वर मान कर चुप रहना चाहिए. आज की पढ़ीलिखी, कामकाजी नारी जब पुरुषों के अत्याचारों का विरोध करती है तो पुरुष का स्वाभिमान आड़े आ जाता है.

पुरुष भले ही दोतीन औरतों के साथ संबंध बना ले लेकिन औरत के किसी के साथ संबंध बनाने पर पुरुष इसे पचा नहीं पाता और अपराधी बनने से भी नहीं डरता. महिलाओं को भी जब पति से प्रेम नहीं मिलता तो वे कहीं और ठौर तलाश लेती हैं और वक्त आने पर पति को भी रास्ते से हटा देती हैं.

अपराध की वजह जो भी हो लेकिन परिवार में मातापिता द्वारा किए गए अपराध से बच्चे अनाथ हो जाते हैं. बच्चों की सही परवरिश न होने से वे भी नशे के शिकार हो सकते हैं और अपराध की दुनिया की तरफ उन के कदम भी मुड़ सकते हैं. किसी के किए गए गलत कामों पर तुरंत निर्णय करने के बजाय सोचविचार कर निर्णय लेना चाहिए.

अपराधी कितनी ही सफाई से अपराध की घटना को अंजाम दें मगर पुलिस की नजरों और कानून के लंबे हाथों से वे बच नहीं पाते और फिर जीवनभर पछतावा हाथ रह जाता है. किसी को खुद सजा देने की जगह कानून का सहारा लेना चाहिए. जल्दबाजी में कोई निर्णय लेने के बजाय अपने दिमाग का इस्तेमाल कर समस्या का हल खोजने में ही अपनी भलाई है. ऐसा करने से अपराध की संभावना भी कम होगी और बच्चे भी यतीम होने से बचेंगे.

मेरी बहू अड़ियल रवैये की है, समझ नहीं आता मैं उससे कैसे बात करूं?

सवाल

मेरी उम्र 54 साल की है और मैं सास बन गई हूं. बेटे ने लवमैरिज की है. एक ही बेटा है, इसलिए हम ने बड़े चाव से शादी की उस की. बड़े अरमान से बहू को घर लाई लेकिन हमारे सारे अरमान धरे के धरे रह गए. मैं ने हर तरह से एडजस्टमैंट कर के देख लिया पर बहू अपने अंदर कोई बदलाव नहीं लाना चाहती, उलटा झगड़ने लगती है.

जवाब

सब से पहले तो आप को अपनी बहू से पूछना होगा कि उसे दिक्कत किस बात की है. वह चाहती क्या है. क्या बात है जो उसे बुरी लगती है. खुल कर बात करने से ही इस समस्या का हल निकलेगा. यह समझाने की कोशिश करें कि आखिर क्यों कुछ चीजों को ले कर बहू अडि़यल रुख दिखा रही है. आखिर क्यों वह बदलना नहीं चाह रही है. हो सकता है कि वह जो कर रही है उस के पीछे कोई भावनात्मक वजह छिपी हो. एक बार आप उस का पक्ष भी सम?ा जाएंगी तो चीजें सामान्य करना आसान हो जाएंगी.

कई बार बहू के मन में यही भाव बना रहता है कि घर का कंट्रोल तो सास के हाथ में ही है. ऐसे में वह अपनी जिम्मेदारियों पर ध्यान देने में रुचि नहीं दिखाती. वहीं अगर बहू को महत्ता दी जाए, उसे कुछ अहम जिम्मेदारियां पूरी करने को दी जाएं तो उसे लगेगा कि ससुराल में उस की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है. अगर बहू अपनी जिम्मेदारी या सौंपे गए काम को अच्छे से पूरा करती है तो उस की तारीफ करना न भूलें.

अगर आप ये सारे तरीके अपना कर देख चुकी हैं और नतीजा कुछ नहीं निकला तो यह न भूलें कि आप की मैंटल पीस और घर की शांति ज्यादा जरूरी है. इकलौता बेटा है, फिर भी आप को अपना मन कड़ा करना पड़ेगा क्योंकि अंत में बेहतर विकल्प यही बचता है कि आप दोनों अलगअलग घरों में रहें ताकि आप दोनों अलगअलग अपनेअपने मुताबिक जिएं. जरूरी नहीं कि अलग रहने से चीजें बदल जाएंगी लेकिन रोजरोज की चिकचिकबाजी से नजात जरूर मिल जाएगी.

घातक है फेफड़ों का कैंसर

फेफड़ों का कैंसर एक खतरनाक रोग होता है. यह जानलेवा हो सकता है और साधारण तौर पर यह महीनों, सालों तक अस्थायी लक्षणों के बिना विकसित होता है. इस के कारण इस कैंसर की पहचान और उपचार में देरी हो जाती है.

कुछ कारणों से फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है. जैसे, तंबाकू का उपयोग, धूल और एनवायरमैंटल प्रदूषण का अधिक संपर्क, परिवार में कैंसर का इतिहास और अन्य उपयोगकर्ता जैसे कारकों से यह जुड़ा होता है.

फेफड़ों के कैंसर को उस के प्रारंभिक चरण में पहचाना और उपचार किया जाता है तो सफल उपचार की संभावना बढ़ जाती है.

फेफड़ों के प्राइमरी कैंसर की 2 मुख्य श्रेणियां होती हैं-

स्मौल सैल लंग कैंसर : यह कैंसर फेफड़ों की छोटी कोशिकाओं में शुरू होता है. यह तेजी से बढ़ता है और अकसर शरीर के दूसरे क्षेत्रों में फैल सकता है.

नौन स्मौल सैल लंग कैंसर : यह कैंसर फेफड़ों की थोड़ी बड़ी कोशिकाओं में शुरू होता है और इस के अंदर कई उपश्रेणियां होती हैं, जैसे कि एडेनोकार्सिनोमा, स्क्वेमस सैल कार्सिनोमा और लार्ज सैल कार्सिनोमा.

इन 2 मुख्य श्रेणियों के अलावा कई अन्य भिन्न प्रकार के फेफड़ों के कैंसर भी हो सकते हैं, जैसे कि कैविटी तंत्रिका एडेनोकार्सिनोमा, अल्वियोलर कैंसर और क्रायडर कैंसर. इन प्रकार के कैंसर का इलाज और रोग की प्रगति का अनुसरण भिन्न होता है.

कैंसर के लक्षण

फेफड़ों के कैंसर के लक्षण व्यक्ति से व्यक्ति में भिन्न हो सकते हैं. इन में से कुछ लक्षण शुरुआत में हलके हो सकते हैं लेकिन समय के साथ वे गंभीर और परेशानीदायक हो सकते हैं. फेफड़ों के कैंसर के कुछ प्रमुख लक्षण ये हो सकते हैं :

खांसी और थूकना : लगातार खांसी और बलगम के साथ थूकना, जो दिन या रात में बढ़ सकता है.

दुर्बलता और वजन में कमी : फेफड़ों के कैंसर के मरीज में दुर्बलता और वजन की कमी हो सकती है.

छाती में दर्द : छाती के बीच में दर्द या दबाव की अवस्था एक लक्षण है जो बढ़ सकता है और सांस लेने में कठिनाइयों का कारण बन सकता है.

खूनी खांसी : फेफड़ों के कैंसर के चलते किसी में खूनी खांसी के लक्षण का होना भी है.

सांस लेने में कठिनाई : सांस लेने में कठिनाइयां या सांस लेने में तकलीफ हो सकती है.

छाती के आकार में परिवर्तन : छाती के आकार में बदलाव होना भी इस कैंसर का एक लक्ष्ण है.

फेफड़ों के कैंसर के अधिक विकसित चरण में एक्सरे, सीटी स्कैन और ब्रोंकोस्कोपी की जा सकती है.

यदि इन लक्षणों में से कुछ दिखाई देते हैं तो तुरंत चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए क्योंकि फेफड़ों के कैंसर के समय पर निदान और उपचार के लिए जल्दी उपाय आवश्यक होता है.

फेफड़ों के कैंसर के जोखिम कारक

सिगरेट स्मोकिंग : सिगरेट स्मोकिंग फेफड़ों के कैंसर के प्रमुख जोखिम कारकों में से एक है.

पैसिव स्मोकिंग : सिगरेट स्मोकिंग करने वाले व्यक्ति के पास सिगरेट के धुएं का संपर्क भी कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है.

प्रदूषण : जलवायु प्रदूषण और कार्बन मोनोक्साइड की अधिक सामर्थ्यपूर्ण बाह्य एकाग्रता भी फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ा सकती है.

कार्सिनोजेनिक अधिकारियों का संपर्क : कार्सिनोजेनिक रेडिएशन, यातायात के धुएं, एसबेस्टोस और अन्य कार्सिनोजेनिक रसायनों के संपर्क का भी खतरा हो सकता है.

पारिवारिक इतिहास : किसी व्यक्ति के परिवार में फेफड़ों के कैंसर के मालूम होने की स्थिति भी उन के लिए जोखिम बढ़ाती है.

फेफड़ों के कैंसर का उपचार

कीमोथेरैपी : कीमोथेरैपी का इस्तेमाल कैंसर के सैल्स को खत्म करने के लिए किया जाता है. कीमोथेरैपी के दौरान कैंसर को खत्म करने वाली दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है. इन दवाओं से कैंसर ट्यूमर सिकुड़ जाते हैं और फैलते नहीं हैं.

रेडिएशन थेरैपी : यह कैंसर को बरबाद करने के लिए उच्च ऊर्जा विकिरण का उपयोग करती है, जो कैंसर को नष्ट कर सकती है.

सर्जरी : फेफड़ों के कैंसर के उपचार के एक हिस्से के रूप में कैंसर के आक्रमण का निकास करने को सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है.

टारगेटेड थेरैपी : यह दवाओं का उपयोग करती है जो कैंसर को विशेष तरीके से प्रभावित करने में मदद कर सकती है.

इम्यूनोथेरैपी : इस का उपयोग व्यक्ति की खुद की प्रतिरक्षा प्रणाली को सक्षम करने के लिए किया जाता है ताकि वह कैंसर के खिलाफ लड़ सके.

उपचार का चयन रोग के स्थान, प्रकार और प्रगति पर निर्भर करेगा और चिकित्सक द्वारा सिफारिश किया जाएगा. कैंसर के प्रारंभिक चरण में जब कैंसर हलका होता है, उस समय उपचार की सफलता की संभावना अधिक होती है, इसलिए जल्दी निदान और उपचार की जरूरत होती है.

(लेखक फोर्टिस हौस्पिटल, दिल्ली में ओंकोलौजी विभाग में सीनियर कंसल्टैंट हैं.)

परिंदा : भाग 1

‘‘सुनिए, टे्रन का इंजन फेल हो गया है. आगे लोकल ट्रेन से जाना होगा.’’

आवाज की दिशा में पलकें उठीं तो उस का सांवला चेहरा देख कर पिछले ढाई घंटे से जमा गुस्सा आश्चर्य में सिमट गया. उस की सीट बिलकुल मेरे पास वाली थी मगर पिछले 6 घंटे की यात्रा के दौरान उस ने मुझ से कोई बात करने की कोशिश नहीं की थी.

हमारी टे्रन का इंजन एक सुनसान जगह में खराब हुआ था. बाहर झांक कर देखा तो हड़बड़ाई भीड़ अंधेरे में पटरी के साथसाथ घुलती नजर आई.

अपनी पूरी शक्ति लगा कर भी मैं अपना सूटकेस बस, हिला भर ही पाई. बाहर कुली न देख कर मेरी सारी बहादुरी आंसू बन कर छलकने को तैयार थी कि उस ने अपना बैग मुझे थमाया और बिना कुछ कहे ही मेरा सूटकेस उठा लिया. मेरी समझ में नहीं आया कि क्या कुछ क हूं.

‘‘रहने दो,’’ मैं थोड़ी सख्ती से बोली.

‘‘डरिए मत, काफी भारी है. ले कर भाग नहीं पाऊंगा,’’ उस ने मुसकरा कर कहा और आगे बढ़ गया.

पत्थरों पर पांव रखते ही मुझे वास्तविकता का एहसास हुआ. रात के 11 बजे से ज्यादा का समय हो रहा था. घनघोर अंधेरे आकाश में बिजलियां आंखें मटका रही थीं और बारिश धीरेधीरे जोश में आ रही थी.

हमारे भीगने से पहले एक दूसरी टे्रन आ गई लेकिन मेरी रहीसही हिम्मत भी हवा हो गई. टे्रन में काफी भीड़ थी. उस की मदद से मुझे किसी तरह जगह मिल गई मगर उस बेचारे को पायदान ही नसीब हुआ. यह बात तो तय थी कि वह न होता तो उस सुनसान जगह में मैं…

आखिरी 3-4 स्टेशन तक जब टे्रन कुछ खाली हो गई तब मैं उस का नाम जान पाई. अभिन्न कोलकाता से पहली बार गुजर रहा था जबकि यह मेरा अपना शहर था. इसलिए कालिज की छुट्टियों में अकेली ही आतीजाती थी.

हावड़ा पहुंच कर अभिन्न को पता चला कि उस की फ्लाइट छूट चुकी है और अगला जहाज कम से कम कल दोपहर से पहले नहीं था.

‘‘क्या आप किसी होटल का पता बता देंगी?’’ अभिन्न अपने भीगे कपड़ों को रूमाल से पोंछता हुआ बोला.

हम साथसाथ ही टैक्सी स्टैंड की ओर जा रहे थे. कुली ने मेरा सामान उठा रखा था.

लगभग आधे घंटे की बातचीत के बाद हम कम से कम अजनबी नहीं रह गए थे. वह भी कालिज का छात्र था और किसी सेमिनार में भाग लेने के लिए दूसरे शहर जा रहा था. टैक्सी तक पहुंचने से पहले मैं ने उसे 3-4 होटल गिना दिए.

‘‘बाय,’’ मेरे टैक्सी में बैठने के बाद उस ने हाथ हिला कर कहा. उस ने कभी ज्यादा बात करने की कोशिश नहीं की थी. बस, औपचारिकताएं ही पूरी हुई थीं मगर विदा लेते वक्त उस के शब्दों में एक दोस्ताना आभास था.

‘‘एक बात पूछूं?’’ मैं ने खिड़की से गरदन निकाल कर कुछ सोचते हुए कहा.

एक जोरदार बिजली कड़की और उस की असहज आंखें रोशन हो गईं. शायद थकावट के कारण मुझे उस का चेहरा बुझाबुझा लग रहा था.

उस ने सहमति में सिर हिलाया. वैसे तो चेहरा बहुत आकर्षक नहीं था लेकिन आत्मविश्वास और शालीनता के ऊपर बारिश की नन्ही बूंदें चमक रही थीं.

‘‘यह शहर आप के लिए अजनबी है और हो सकता है आप को होटल में जगह न भी मिले,’’ कह कर मैं थोड़ी रुकी, ‘‘आप चाहें तो हमारे साथ हमारे घर चल सकते हैं?’’

उस के चेहरे पर कई प्रकार की भावनाएं उभर आईं. उस ने प्रश्न भरी निगाहों से मुझे देखा.

‘‘डरिए मत, आप को ले कर भाग नहीं जाऊंगी,’’ मैं खिलखिला पड़ी तो वह झेंप गया. एक छोटी सी हंसी में बड़ीबड़ी शंकाएं खो जाती हैं.

वह कुछ सोचने लगा. मैं जानती थी कि वह क्या सोच रहा होगा. एक अनजान लड़की के साथ इस तरह उस के घर जाना, बहुत अजीब स्थिति थी.

‘‘आप को बेवजह तकलीफ होगी,’’ आखिरकार अभिन्न ने बहाना ढूंढ़ ही निकाला.

‘‘हां, होगी,’’ मैं गंभीर हो कर बोली, ‘‘वह भी बहुत ज्यादा यदि आप नहीं चलेंगे,’’ कहते हुए मैं ने अपने साथ वाला गेट खोल दिया.

वह चुपचाप आ कर टैक्सी में बैठ गया. इंसानियत के नाते मेरा क्या फर्ज था पता नहीं, लेकिन मैं गलत कर रही हूं या सही यह सोचने की नौबत ही नहीं आई.

मैं रास्ते भर सोचती रही कि चलो, अंत भला तो सब भला. मगर उस दिन तकदीर गलत पटरी पर दौड़ रही थी. घर पहुंच कर पता चला कि पापा बिजनेस ट्रिप से एक दिन बाद लौटेंगे और मम्मी 2 दिन के लिए रिश्तेदारी में दूसरे शहर चली गई हैं. हालांकि चाबी हमारे पास थी लेकिन मैं एक भयंकर विडंबना में फंस गई.

‘‘मुझे होटल में जगह मिल जाएगी,’’ अभिन्न टैक्सी की ओर पलटता हुआ बोला. उस ने शायद मेरी दुविधा समझ ली थी.

‘‘आप हमारे घर से यों ही नहीं लौट सकते हैं. वैसे भी आप काफी भीग चुके हैं. कहीं तबीयत बिगड़ गई तो आप सेमिनार में नहीं जा पाएंगे और मैं इतनी डरपोक भी नहीं हूं,’’ भले ही मेरे दिल में कई आशंकाएं उठ रही थीं पर ऊपर से बहादुर दिखना जरूरी था.

कुछ देर में हम घर के अंदर थे. हम दोनों बुरी तरह से सहमे हुए थे. यह बात अलग थी कि दोनों के अपनेअपने कारण थे.

मैं ने उसे गेस्टरूम का नक्शा समझा दिया. वह अपने कपड़ों के साथ चुपचाप बाथरूम की ओर बढ़ गया तो मैं कुछ सोचती हुई बाहर आई और गेस्टरूम की कुंडी बाहर से लगा दी. सुरक्षा की दृष्टि से यह जरूरी था. दुनियादारी के पहले पाठ का शीर्षक है, शक. खींचतेधकेलते मैं सूटकेस अपने कमरे तक ले गई और स्वयं को व्यवस्थित करने लगी.

‘‘लगता है दरवाजा फंसता है?’’ अभिन्न गेस्टरूम के दरवाजे को गौर से देखता हुआ बोला. उस ने कम से कम 5 मिनट तक दरवाजा तो अवश्य ठकठकाया होगा जिस के बारे में मैं भूल गई थी.

‘‘हां,’’ मैं ने तपाक से झूठ बोल दिया ताकि उसे शक न हो, पर खुद पर ही यकीन न कर पाई. फिर मेरी मुश्किलें बढ़ती जा रही थीं.

किचन से मुझे जबरदस्त चिढ़ थी और पढ़ाई के बहाने मम्मी ने कभी जोर नहीं दिया था. 1-2 बार नसीहतें मिलीं भी तो एक कान से सुनी दूसरे से निकल गईं. फ्रिज खोला तो आंसू जमते हुए महसूस होने लगे. 1-2 हरी सब्जी को छोड़ कर उस में कुछ भी नहीं था. अगर घर में कोई और होता तो आसमान सिर पर उठा लेती मगर यहां खुद आसमान ही टूट पड़ा था.

एक बार तो इच्छा हुई कि उसे चुपचाप रफादफा करूं और खुद भूख हड़ताल पर डट जाऊं. लेकिन बात यहां आत्मसम्मान पर आ कर अटक गई थी. दिमाग का सारा सरगम ही बेसुरा हो गया था. पहली बार अफ सोस हुआ कि कुछ पकाना सीख लिया होता.

‘‘मैं कुछ मदद करूं?’’

आवाज की ओर पलट कर देखा तो मन में आया कि उस की हिम्मत के लिए उसे शौर्यचक्र तो मिलना ही चाहिए. वह ड्राइंगरूम छोड़ कर किचन में आ धमका था.

‘दफा हो जाओ यहां से,’ मेरे मन में शब्द कुलबुलाए जरूर थे मगर प्रत्यक्ष में मैं कुछ और ही कह गई, ‘‘नहीं, आप बैठिए, मैं कुछ पकाने की कोशिश करती हूं,’’ वैसे भी ज्यादा सच बोलने की आदत मुझे थी नहीं.

‘‘देखिए, आप इतनी रात में कुछ करने की कोशिश करें इस से बेहतर है कि मैं ही कुछ करूं,’’ वह धड़धड़ा कर अंदर आ गया और किचन का जायजा लेने लगा. उस के होंठों पर बस, हलकी सी मुसकान थी.

मैं ठीक तरह से झूठ नहीं बोल पा रही थी इसलिए आंखें ही इशारों में बात करने लगीं. मैं चाह कर भी उसे मना नहीं कर पाई. कारण कई हो सकते थे मगर मुझे जोरदार भूख लगी थी और भूखे इनसान के लिए तो सबकुछ माफ है. मैं चुपचाप उस की मदद करने लगी.

10 मिनट तक तो उस की एक भी गतिविधि समझ में नहीं आई. मुझे पता होता कि खाना पकाना इतनी चुनौती का काम है तो एक बार तो जरूर पराक्रम दिखाती. उस ने कढ़ाई चढ़ा कर गैस जला दी. 1-2 बार उस से नजर मिली तो इच्छा हुई कि खुद पर गरम तेल डाल लूं, मगर हिम्मत नहीं कर पाई. मुझे जितना समझ में आ रहा था उतना काम करने लगी.

‘‘यह आप क्या कर रही हैं?’’

मैं पूरी तल्लीनता से आटा गूंधने में लगी थी कि उस ने मुझे टोक  दिया. एक तो ऐसे काम मुझे बिलकुल पसंद नहीं थे और ऊपर से एक अजनबी की रोकटोक, मैं तिलमिला उठी.

‘‘दिखता नहीं, आटा गूंध रही हूं,’’ मैं ने मालिकाना अंदाज में कहा, पर लग रहा था कहीं कुछ गड़बड़ जरूर है. मैं ने एक बार उस की ओर नजर उठाई तो उस की दबीदबी हंसी भी दुबक गई.

‘‘आप रहने दें, मैं कर लूंगा,’’ उस ने विनती भरे स्वर में कहा.

आटा ज्यादा गीला तो नहीं था मगर थोड़ा पानी और मिलाती तो मिल्क शेक अवश्य बन जाता.

हाथ धोने बेसिन पर पहुंची तो आईना देख कर हृदय हाहाकार कर उठा. कान, नाक, होंठ, बाल, गाल यानी कोई ऐसी जगह नहीं बची थी जहां आटा न लगा हो. एक बार तो मेरे होंठों पर भी हंसी फिसल गई.

मैं जानबूझ कर किचन में देर से लौटी.

‘‘आइए, खाना बस, तैयार ही है,’’ उस ने मेरा स्वागत यों किया जैसे वह खुद के घर में हो और मैं मेहमान.

इतनी शर्मिंदगी मुझे जीवन में कभी नहीं हुई थी. मैं उस पल को कोसने लगी जिस पल उसे घर लाने का वाहियात विचार मेरे मन में आया था. लेकिन अब तीर कमान से निकल चुका था. किसी तरह से 5-6 घंटे की सजा काटनी थी.

मैं फ्रिज से टमाटर और प्याज निकाल कर सलाद काटने लगी. फिलहाल यही सब से आसान काम था मगर उस पर नजर रखना नहीं भूली थी. वह पूरी तरह तन्मय हो कर रोटियां बेल रहा था.

‘‘क्या कर रही हैं आप?’’

‘‘आप को दिखता कम है क्या…’’ मेरे गुस्से का बुलबुला फटने ही वाला था कि…

‘‘मेरा मतलब,’’ उस ने मेरी बात काट दी, ‘‘मैं कर रहा हूं न,’’ उसे भी महसूस हुआ होगा कि उस की कुछ सीमाएं हैं.

‘‘क्यों, सिर्फ काटना ही तो है,’’ मैं उलटे हाथों से आंखें पोंछती हुई बोली. अब टमाटर लंबा रहे या गोल, रहता तो टमाटर ही न. वही कहानी प्याज की भी थी.

‘‘यह तो ठीक है इशिताजी,’’ उस ने अपने शब्दों को सहेजने की कोशिश की, ‘‘मगर…इतने खूबसूरत चेहरे पर आंसू अच्छे नहीं लगते हैं न.’’

मैं सकपका कर रह गई. सुंदर तो मैं पिछले कई घंटों से थी पर इस तरह बेवक्त उस की आंखों का दीपक जलना रहस्यमय ही नहीं खतरनाक भी था. मुझे क्रोध आया, शर्म आई या फिर पता नहीं क्या आया लेकिन मेरा दूधिया चेहरा रक्तिम अवश्य हो गया. फिर मैं इतनी बेशर्म तो थी नहीं कि पलकें उठा कर उसे देखती.

उजाले में आंखें खुलीं तो सूरज का कहीं अतापता नहीं था. शायद सिर पर चढ़ आया हो. मैं भागतीभागती गेस्टरूम तक गई. अभिन्न लेटेलेटे ही अखबार पलट रहा था.

‘‘गुडमार्निंग…’’ मैं ने अपनी आवाज से उस का ध्यान खींचा.

‘‘गुडमार्निंग,’’ उस ने तत्परता से जवाब दिया, ‘‘पेपर उधर पड़ा था,’’ उस ने सफाई देने की कोशिश की.

‘‘कोई बात नहीं,’’ मैं ने टाल दिया. जो व्यक्ति रसोई में धावा बोल चुका था उस ने पेपर उठा कर कोई अपराध तो किया नहीं था.

‘‘मुझे कल सुबह की फ्लाइट में जगह मिल गई है,’’ उसे यह कहने में क्या प्रसन्नता हुई यह तो मुझे पता नहीं लेकिन मैं आशंकित हो उठी, ‘‘सौरी, वह बिना पूछे ही आप का फोन इस्तेमाल कर लिया,’’ उस ने व्यावहारिकतावश क्षमा मांग ली, ‘‘अब मैं चलता हूं.’’

‘‘कहां?’’

आखिरी लोकल : भाग 1

शिवानी और शिवेश दोनों मुंबई के शिवाजी छत्रपति रेलवे स्टेशन पर लोकल से उतर कर रोज की तरह अपने औफिस की तरफ जाने के लिए मुड़ ही रहे थे कि शिवानी ने कहा, ‘‘सुनो, आज मुझे नाइट शो में ‘रईस’ देखनी ही देखनी है, चाहे कुछ भी हो जाए.’’ ‘‘अरे, यह कैसी जिद है?’’

शिवेश ने हैरान हो कर कहा. ‘‘जिदविद कुछ नहीं. मुझे बस आज फिल्म देखनी है तो देखनी है,’’ शिवानी ने जैसे फैसला सुना दिया हो.  ‘‘अच्छा पहले इस भीड़ से एक तरफ आ जाओ, फिर बात करते हैं,’’ शिवेश ने शिवानी का हाथ पकड़ कर एक तरफ ले जाते हुए कहा.

‘‘आज तो औफिस देर तक रहेगा. पता नहीं, कितनी देर हो जाएगी. तुम तो जानती हो,’’ शिवेश ने कहा.  ‘‘मुझे भी मालूम है. पर जनाब, इतनी भी देर नहीं लगने वाली है. ज्यादा बहाना बनाने की जरूरत नहीं है. यह कोई मार्च भी नहीं है कि रातभर रुकना पड़ेगा. सीधी तरह बताओ कि आज फिल्म दिखाओगे या नहीं?’’

‘‘अच्छा, कोशिश करूंगा,’’ शिवेश ने मरी हुई आवाज में कहा.

‘‘कोशिश नहीं जी, मुझे देखनी है तो देखनी है,’’ शिवानी ने इस बार थोड़ा मुसकरा कर कहा. शिवेश ने शिवानी की इस दिलकश मुसकान के आगे हथियार डाल दिए.

‘‘ठीक है बाबा, आज हम फिल्म जरूर देखेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए.’’  शिवानी की इसी मुसकान पर तो शिवेश कालेज के जमाने से ही अपना दिल हार बैठा था. दोनों ही कालेज के जमाने से एकदूसरे को जानते थे, पसंद करते थे.  शिवानी ने उस के प्यार को स्वीकार तो किया था, लेकिन एक शर्त भी रख दी थी कि जब तक दोनों को कोई ढंग की नौकरी नहीं मिलेगी, तब तक कोई शादी की बात नहीं करेगा.

शिवेश ने यह शर्त खुशीखुशी मान ली थी. दोनों ही प्रतियोगिता परिक्षाओं की तैयारी में जीजान से लग गए थे. आखिरकार दोनों को कामयाबी मिली. पहले शिवेश को एक निजी पर सरकार द्वारा नियंत्रित बीमा कंपनी में क्लर्क के पद पर पक्की नौकरी मिल गई, फिर उस के 7-8 महीने बाद शिवानी को भी एक सरकारी बैंक में अफसर के पद पर नौकरी मिल गई थी.

मुंबई में उन का यह तीसरा साल था. तबादला तो सरकारी कर्मचारी की नियति है. हर 3-4 साल के अंतराल पर उन का तबादला होता रहा था. 15 साल की नौकरी में अब तक दोनों 3 राज्यों के  4 शहरों में नौकरी कर चुके थे.  शिवानी ने इस बार तबादले के लिए मुंबई आवेदन किया था. दोनों को मुंबई अपने नाम से हमेशा ही खींचती आई थी. वैसे भी इस देश में यह बात आम है कि किसी भी शहर के नागरिकों में कम से कम एक बार मुंबई घूमने की ख्वाहिश जरूर होती है. कुछ लोगों को यह इतनी पसंद आती है कि वे मुंबई के हो कर ही रह जाते हैं.

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