एड्स के मरीजों पर डाक्टरों की एक चिंता होती है कि कैसे वे उस के परिवार वालों या पत्नी या होने वाली पत्नी को बताएं. एड्स पर आज काफी कंट्रोल हो गया है पर फिर भी यह है, इस से इनकार नहीं किया जा सकता है. अब कालगर्ल्स भी बिना कंडोम के संबंध नहीं बनाती.
एक डाक्टर का अनुमान देखिए. उस के क्लिनिक में एक जवान लड़का आया. काफी दिनों से शरीर गिरागिरा रहता था. वजन भी कम हो रहा था. हलका बुखार भी रहता था. सभी तरह की जांच की गई पर किसी में कुछ नहीं मिला. चमड़ी के नीचे गर्दन और अन्यत्र छोटीछोटी गांठे थीं.

चिकित्सक की सलाह पर उन गांठों में से एक को निकाल कर बायोप्सी के लिए भेजी गई, यह देखने के लिए कि उसे लिम्फोमा ल्यूकिमिया जैसा कोई कैंसर तो नहीं है.

गांठ का परीक्षण हुआ. कैंसर नहीं था. पर गांठ नौर्मल भी नहीं थी. सुक्ष्मदर्शी यंत्र से देखने पर उस में ऐसे चेंजेज थे जो एक एचआईवी पोजिटिव व्यक्ति से मिलते हैं. रिपोर्ट लेने आया तब लड़के को बताया गया कि उसे कैंसर जैसा तो कुछ नहीं है लेकिन जो मिला है उसे कंफर्म करने के लिए अगर उस की सहमती हो तो एचआईवी के लिए टैस्ट करना चाहेंगे. लड़के की सहमती पर रक्त का एचआईवी परीक्षण किया गया. वह पोजिटिव था.

एचआईवी संक्रमण संभावनाओं के बारे में पूछने पर लड़के ने बताया कि वह अविवाहित है, उस के कोई सैक्स संबंध नहीं है, उस को कभी ब्लड ट्रांसफ्यूजन नहीं दिया गया, उस का कोई औपरेशन नहीं हुआ और न ही उस ने कोई इंजैक्शन लिए. उसे सलाह दी गई कि वह कंफर्मेंटरी टैस्ट करवा ले क्योंकि अपनाई गई विधि में कुछ प्रतिशत फाल्स पौजिटिव होते हैं.

लड़का टैस्ट करवा कर आया तो कहने लगा वह अलग से बात करना चाहता है. उस ने बताया टैस्ट पोजिटिव है. उस ने माफी मांगी कि उस ने जो पहले बताया था वह गलत था. उस की सगाई हो चुकी है लेकिन अभी विवाह नहीं हुआ है, लड़की पढ़ती है. उस ने यह भी बताया कि वह और उस के कुछ दोस्त एक कालगर्ल से सैक्स संबंध रखते आए हैं.

लड़का तो चला गया लेकिन डाक्टर दुविधा में है. एचआईवी संक्रमण समाज में न फैलने देने के अपने दायित्व को वह कैसे निभाए. करना तो यह चाहिए कि उस की मंगेतर, जो एक चिन्हित व्यक्ति एट रिस्क है, उसे बुलाए. समझाएं. लड़के के उन दोस्तों को बुलाए उन का टैस्ट करे. उस कालगर्ल को बुलाए, परीक्षण करे और फिर उसे क्वारनटीन करवाने की व्यवस्था करे. पर वह ऐसा कुछ नहीं कर सकता.

ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. एड्स की रोकथाम के लिए हल्ला तो बहुत है, टैस्ट भी खूब हो रहे हैं, टैस्ट से करोड़ों रुपए का व्यापार हो रहा है, लेकिन रोकथाम की कोई पुख्ता व्यवस्था नहीं है. संक्रमित व्यक्ति को परामर्श देने के अलावा और कुछ नहीं.

भारत में आज 25 लाख लोग एड्स से पीड़ित हैं. 50,000 मौतें हर साल इस रोग से होती हैं. 1990 के आसपास से इस रोग के मरीजों की संख्या काफी कम हो गई है पर यह खत्म नहीं हुआ है.

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