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कलाकार में एक नहीं बल्कि कई प्रतिभाएं होती हैं जन्मजात

कला किसी मनुष्य की जन्मजात प्रतिभा होती है. किसी में चित्रकारी तो किसी में गायकी या अभिनय और नृत्य का जन्मजात गुण होता है. अधिकांश कलाकारों में दो या तीन कलाएं एकसाथ पाई जाती हैं, मगर दुनिया की नजर में वह किसी एक कला में ही पारंगत दिखाई देता है. उस की अन्य कलाओं को या तो मंच नहीं मिलता या उन को डैवलप करने का उन्हें वक्त नहीं मिलता. कई बार कलाकार की एक कला ही इतनी हावी हो जाती है कि उस की दूसरी कलाओं की तरफ किसी का ध्यान ही नहीं जाता.

फिल्म इंडस्ट्री में कई ऐसे कलाकार हैं जिन्होंने अभिनय के क्षेत्र में तो अपनी बड़ी पहचान बनाई लेकिन कम ही लोगों को उन की अन्य प्रतिभाओं के बारे में मालूम चला. जैसे यह बात बहुत कम लोग जानते होंगे कि रेखा गजब की अभिनेत्री तो हैं मगर एक बहुत अच्छी गायिका भी हैं और गजल गायकी में हर शेर के साथ उन की जो भावनाएं उबलती हैं उस का कोई जवाब नहीं. अधिकतर गजल गायक गजल की रूह तक नहीं उतर पाते और ऊपरऊपर से गा कर निकल जाते हैं, मगर रेखा सिर्फ गाती ही नहीं, बल्कि गीत के एकएक शब्द में उतर जाती हैं और सुनने वाले को भी उतार लाती हैं वे.

70 के दशक में जब फिल्म इंडस्ट्री में राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, जितेंद्र, विनोद खन्ना, संजीव कुमार जैसे ऐक्टर्स का बोलबाला था, उसी दौर में उत्तरपूर्वी भारत से आए शेरिंग फिनसो डेन्जोंगपा, जिन्हें हम डैनी डेन्जोंगपा के नाम से बुलाते हैं, ने इंडस्ट्री में अपने अभिनय और अपनी आवाज से तहलका मचा दिया था.

दरअसल, सिक्किम के रहने वाले डैनी डेन्जोंगपा जब मुंबई आए तो उन्होंने अपने फिल्मी कैरियर की शुरुआत एक प्लेबैक सिंगर के तौर पर ही की थी. उन के प्लेबैक का आरंभ लता मंगेशकर के साथ गाए ‘मेरा नाम आओ, मेरे पास आओ…’ गीत से हुआ था. फिर उन्होंने आशा भोंसले के साथ फिल्म ‘काला सोना’ में एक गीत ‘सुन सुन कसम से, लागूं तेरे कदम से, रहा जाए न हम से, गले लग जा…’ गाया जो सुपरडुपर हिट हुआ और जिसे काफी समय तक लोग प्लेबैक सिंगर शैलेंद्र सिंह का गाया गीत समझते रहे.

फिल्म ‘नया दौर’ में राहुल देव बर्मन ने उन्हें मोहम्मद रफी और आशा भोंसले जैसे नामचीन व स्थापित गायकों के साथ गाने का मौका दिया. लेकिन जब संगीतकार लक्ष्मीकांत और प्यारेलाल लगातार डैनी की गायकी में खामियां निकालने लगे तो उन्होंने फिल्मों में गाना छोड़ अपना सारा ध्यान अभिनय पर लगा दिया और एक सफल अभिनेता के रूप में अपनी पहचान गढ़ी.

कम लोग जानते होंगे कि डैनी नेपाली गीत खूब गाते हैं और कुछ नेपाली फिल्मों के लिए भी उन्होंने गीत रिकौर्ड किए. उन्होंने फे़मस म्यूजिक डायरैक्टर नदीम-श्रवण के साथ एक अलबम में भी काम किया, जिस का नाम ‘10 स्टार’ था.

नए कलाकारों में परिणीति चोपड़ा, जिन्होंने हाल ही में आम आदमी पार्टी के नेता राधव चड्ढा से विवाह किया है, भी गायकी के मामले में पीछे नहीं हैं. उन्होंने कई मंचों पर अपनी गायन प्रतिभा से लोगों को कायल किया है. उन्होंने अपनी फिल्मों में भी कई गानों में अपनी आवाज दी है.

परिणीति चोपड़ा ने वर्ष 2017 में अपनी फिल्म ‘मेरी प्यारी बिंदु’ के ‘माना के हम यार नहीं…’ गाने को अपनी आवाज दी थी. इस के आलावा अभिनेत्री ने वर्ष 2019 में आई फिल्म ‘केसरी’ में देशभक्ति गान ‘तेरी मिट्टी…’ गा कर अपनी आवाज का जादू बिखेरा था. वहीं, वर्ष 2021 की फिल्म ‘द गर्ल औन द ट्रेन’ का ‘मतलबी यारियां…’ गाना गाया था.

अभिनेत्री ने शादी में अपने पति राघव चड्ढा को ‘ओ पिया…’ गीत गा कर डैडिकेड किया था, जिसे सुन कर दर्शक मंत्रमुग्ध हो गए थे. परिणीति का यह वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ था. परिणीति एंटरटेनमैंट कंसल्टेंट एलएलपी के साथ साइनअप कर के सिंगिंग के अपने जुनून को एक लाइव मंच पर ले जाने के लिए तैयार हैं. यह टीएम वैंचर्स प्राइवेट लिमिटेड और टीएम टैलेंट मैनेजमैंट का एक हिस्सा है, जो देश के मशहूर संगीतकारों का प्रतिनिधित्व करता है.

‘मकबूल’ और ‘गैंग्स औफ वासेपुर’ से अपनी पहचान बनाने वाले पीयूष मिश्रा ने जब ‘आरंभ है प्रचंड बोल मस्तकों के झुंड, आज जंग की घड़ी की तुम गुहार दो, आन बान शान या कि जान का हो दान, आज एक धनुष के बाण पे उतार दो…’ गीत में अपनी ओजस्वी आवाज भरी तो उसे सुन कर युवाओं की भुजाएं फड़कने लगीं.

पीयूष मिश्रा में सिर्फ अभिनय और गायन की ही प्रतिभा नहीं बल्कि वे गायक और अभिनेता के साथसाथ संगीत निर्देशक, गीतकार, नाटककार और पटकथा लेखक भी हैं. उन्होंने ‘मकबूल’, ‘गुलाल’, ‘गैंग्स औफ वासेपुर’, ‘रौकस्टार’ और ‘तेरे बिन लादेन’ जैसी फिल्मों में अपने उत्कृष्ट अभिनय की जो छाप छोड़ी है वह आने वाले समय में उन्हें और बुलंदी पर ले जाएगी, लेकिन इस के साथ ही उन्होंने जो किताबें लिखी हैं उस की भी चर्चा जरूरी है.

पीयूष मिश्रा ने अब तक 9 किताबें लिखी हैं, जिन में ‘कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया’, ‘जब हमारा शहर सोता है’, ‘गगन दमामा बाज्यो’, ‘मेरे मंच की सरगम’, ‘आरंभ है प्रचंड’, ‘तुम मेरी जान हो रज़िया बी’, ‘सन 2025’, ‘वो अब भी पुकारता है’ और ‘तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा’ खासी पठनीय हैं.

रैपर सिंगर के रूप में अभिनेता रणवीर सिंह ने अपनी पहचान बना ली है. रणवीर सिंह ने अपनी फिल्म ‘गली बौय’ में पहली बार अपनी आवाज दी. इस फिल्म में रणवीर सिंह ने रैपर आर्टिस्ट का काम किया है और अपने रैप खुद ही गाए हैं. उन्होंने इस फिल्म के लिए 4 गाने गाए हैं. 2 गाने ‘असली हिप-हौप’ और ‘अपना टाइम आएगा’ सौंग इंटरनैट पर खूब वायरल हुए. रणवीर सिंह इकलौते ऐक्टर हैं, जिन्हें बतौर रैपर पसंद किया जाता है.

लोगों की नीरस जिंदगी में हंसी का तड़का लगाने वाले कौमेडियन कपिल शर्मा की दिलकश आवाज ‘द कपिल शर्मा शो’ के मंच से अकसर सुनाई दे जाती है. उन की गाई कई गजलें सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर खूब लाइक्स बटोरती हैं.

कपिल ने अपने कैरियर की शुरुआत भले कौमेडी से की हो मगर उन की गायकी भी लाजवाब है और फिल्म ऐक्टिंग में भी उन्होंने हाथ आजमाए हैं. उन की शानदार गायकी टी सीरीज द्वारा रिलीज किए गए नए अलबम ‘अलोन’ में भी सुनने को मिली. इस में कपिल शर्मा अदाकारी भी करते नजर आ रहे हैं. इस अलबम के गीतों को कंपोज किया है गुरु रंधावा ने जो एक मशहूर गायक हैं.

पुराने जमाने में फिल्म इंडस्ट्री में उन कलाकारों को हीरो या हीरोइन के तौर पर लिया जाता था जिन के अंदर अभिनय के अलावा नृत्य और गायन की प्रतिभा भी होती थी. याद होगा कि सुरैया, उमा देवी यानी टुनटुन जैसी हीरोइनें अपने गीत परदे पर खुद ही गाती थीं. अशोक कुमार, किशोर कुमार, कुंदन लाल सहगल भी अभिनय के साथ परदे पर गायकी भी करते थे. सहगल के अनेक गाने सुपर हिट हुए हैं.

मशहूर गायक मुकेश फिल्म इंडस्ट्री में ऐक्टिंग का शौक ले कर आए थे, मगर गायक बन कर मशहूर हुए. बीच के दौर में ऐक्टर्स-ऐक्ट्रेसेस को प्लेबैक दिया जाने लगा. दरअसल, बीच के दौर में यानी शर्मीला टैगोर, वहीदा रेहमान, आशा पारीख, बलराज साहनी, भारत भूषण, शशि कपूर, शम्मी कपूर जैसे खूबसूरत लोग जब परदे पर आने लगे तो हीरोहेरोइन का रूप लावण्य और अदाएं परदे पर ज्यादा दिखाई जाने लगीं. अब जरूरी नहीं था कि खूबसूरत हीरोइन या चौकलेटी हीरो की आवाज भी उतनी मधुर हो कि वे अपने गाने भी खुद गा लें. यहीं से प्लेबैक सिंगिंग की शुरुआत हुई और फिर जिन कलाकारों में अभिनय के अलावा गायन की भी प्रतिभा थी, उन्हें गायन के लिए कोई ज्यादा तवज्जुह नहीं मिली.

बहुतेरे अच्छे सिंगर बाथरूम सिंगिंग तक ही सिमट कर रह गए. लेकिन इंडस्ट्री में एक बार फिर ऐसे कलाकारों का दौर शुरू हुआ है जो ऐक्टिंग के अलावा अपनी अन्य प्रतिभाओं को भी सामने ला रहे हैं और प्रशंसा बटोर रहे हैं.

मोबाइल फोन आपकी सेहत और रिश्तों का बन गया है सबसे बड़ा दुश्मन

कोई भी रिश्ता तभी मुकम्मल होता है जब दोनों एकदूसरे के लिए 100 परसैंट उपलब्ध होते हैं. मगर इस तरह रिश्ता निभाना आसान नहीं होता. रास्ते में ढेरों चुनौतियां आती हैं. हाल ही में नेशनल ओपिनियन रिसर्च सैंटर के एक सर्वे में 60 प्रतिशत लोगों ने स्वीकार किया कि वे अपने रिश्ते से बहुत संतुष्ट नहीं हैं. इस सर्वे के मुताबिक, एक रिश्ते में कई तरह की परेशानियां सामने आती हैं, मसलन घर और नौकरी की जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बिठाना, बच्चे पालने से जुड़ी चुनौतियां, पैसे से जुड़ी परेशानियां और विवाद, रिश्ते में पर्याप्त इंटीमेसी यानी सैक्स का न होना.

इन सब कारणों के अलावा एक और बड़ा कारण है जो पिछले कुछ सालों से रिश्तों में दरार पैदा करने का जरिया बना है, वह है हमारा आप का प्यारा स्मार्टफोन. साइंसडायरैक्टडौटकौम में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक, मोबाइल फोन रिश्ते बिगड़ने से ले कर उन के टूटने तक की वजह बन रहा है.

मोबाइल फोन से बिगड़ रहे रिश्ते

मनोविज्ञान में एक टर्म है- फबिंग. इस का अर्थ है कि किसी व्यक्ति का फोन या अन्य मोबाइल डिवाइस पर ध्यान देने के लिए अपने साथी को नजरअंदाज करना. मान लीजिए कि आप बैठे हैं और बात पार्टनर से कर रहे हैं लेकिन नजरें फोन पर टिकी हैं. पार्टनर कुछ बोल रहा है लेकिन आप फोन पर गेम खेल रहे हैं. इस का अर्थ यह हुआ कि सामने बैठे व्यक्ति से आप का कोई कनैक्शन नहीं और मीलों दूर बैठे किसी इंसान से फोन पर आप की चैटिंग चल रही है. इस का नतीजा क्या होगा? क्या आप के पार्टनर को बुरा नहीं लगेगा? उस से आप का इक्वेशन बिगड़ेगा नहीं? आजकल यही समस्या आम बनती जा रही है.

इस स्टडी को कंडक्ट करने वाले डा. जेम्स ए रौबर्ट्स बायलर यूनिवर्सिटी, टेक्सास में मार्केटिंग के प्रोफैसर हैं. वे कहते हैं कि एक अमेरिकी व्यक्ति औसतन हर साढ़े 6 मिनट में अपना फोन चैक करता है और पूरे दिन में तकरीबन डेढ़ सौ बार.

हम भारतीयों का हाल ए दिल भी कुछ अलग नहीं है. स्टेट औफ मोबाइल 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, एक भारतीय दिन में 4.9 घंटे यानी तकरीबन 5 घंटे अपने फोन से चिपके हुए बिताता है. रोज 5 घंटे मतलब महीने के डेढ़ सौ घंटे और साल के 1,800 घंटे.

डा. रौबर्ट्स बताते हैं कि उन की स्टडी में शामिल 92 फीसदी लोगों ने कहा कि पार्टनर की हर वक्त मोबाइल फोन चैक करने की आदत उन के रिश्तों को खराब कर रही है. तकरीबन सभी प्रतिभागियों ने कहा कि पार्टनर का फोन हर वक्त उस के हाथ में रहता है.

रिसर्चगेट की एक स्टडी कहती है कि मोबाइल फोन एडिक्शन के कारण कपल के बीच तनाव और दूरियां पैदा हो रही हैं. इस स्टडी में शामिल 70 फीसदी लोगों का कहना है कि मोबाइल के कारण वे अपने पार्टनर के साथ पूरी तरह कनैक्ट नहीं कर पाते क्योंकि वह 100 फीसदी कभी मौजूद ही नहीं होता.

डा. क्लिंट मैक्सवेल अपनी किताब ‘ब्रेकअप विद योर फोन एडिक्शन’ में इस समस्या से छुटकारा पाने के तरीके बताते हुए लिखते हैं कि मोबाइल फोन की लत का कारण यह है कि हमारा दिमाग डोपामिन एडिक्ट हो गया है.

स्टैनफोर्ड मैडिकल स्कूल के न्यूरोसाइंस डिपार्टमैंट की एक रिसर्च के मुताबिक, मोबाइल फोन हमारे मस्तिष्क के डोपामिन सैंटर्स को एक्टिवेट करता है. यही कारण है कि हम कोई जरूरी काम न होने पर भी हर थोड़ी देर में अपना फोन उठा लेते हैं. अगर फोन पास न हो तो हमें घबराहट और बेचैनी होने लगती है.

रूममेट सिंड्रोम

अपने पार्टनर के साथ वक्त बिताना एक नई रिलेशनशिप की शुरुआत में आप को बहुत अच्छा और रोमांचक लग सकता है. लेकिन जैसे नए कपल्स का हनीमून पीरियड खत्म हो जाता है वैसे ही एकदूसरे के साथ रहने का उत्साह भी धीरेधीरे खत्म हो सकता है और इसे ही रूममेट सिंड्रोम कहते हैं. यह एक रिलेशनशिप या शादी के अंदर होता है जहां ऐसा लगता है कि रिश्ते में दोनों सामान्य रूप से रह रहें है. लेकिन जब आप एकसाथ नएनए आए थे तो वह रोमांच एक अलग ही था और अब वह रोमांच खत्म होता जा रहा है. ऐसा लगने लगता है कि आप एक रूममेट की तरह रह रहे हैं जहां कोई भावनात्मक जुड़ाव या रोमांटिक जुड़ाव नहीं होता. जब साथ रहने का रोमांच खत्म हो जाए तो कपल्स प्रैक्टिकल हो जाते है और अपने कामों में खो जाते हैं और अपने रिश्तों को उतनी प्राथमिकता नहीं देते. इस की वजह बढ़ती जिम्मेदारी और व्यस्तता के साथ मोबाइल एडिक्शन भी है. जिस इंसान ने मोबाइल के जरिए बाहर अपनी एक रोमांचक दुनिया बना रखी है और समय मिलते ही उस में डूब जाता है वह भला अपनी पत्नी के करीब कैसे होगा?

मोबाइल एडिक्शन का सेहत पर असर

औनलाइन कंटैंट से भरी दुनिया में बड़े हो रहे बच्चों के साथ रचनात्मक जुड़ाव और हानिकारक लत के बीच की रेखा खींचनी आसान नहीं है. भारत में स्मार्ट पेरैंटिंग सौल्यूशंस में अग्रणी बातू टैक का एक हालिया सर्वे बच्चों में स्क्रीन की लत, गेमिंग और एडल्ट कंटैंट देखने के बारे में भारतीय मातापिता की चिंताओं पर प्रकाश डालता है. 3,000 प्रतिभागियों के बीच किए गए सर्वे से पता चला कि 95 प्रतिशत भारतीय मातापिता स्क्रीन लत को ले कर चिंतित हैं जबकि 80 प्रतिशत और 70 प्रतिशत ने क्रमशः गेमिंग की लत और एडल्ट कंटैंट के बारे में चिंता व्यक्त की.

पहले भी कई रिसर्च ने बताया है कि ज्यादा स्क्रीन टाइम बच्चों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है और उन के विकास और सामाजिक संपर्क में बाधा डाल सकता है. विशेष चिंता बच्चों में गेमिंग की लत की बढ़ती प्रवृत्ति है. यह लत विभिन्न प्रकार के हानिकारक प्रभावों को जन्म दे सकती है, जैसे खराब शैक्षणिक प्रदर्शन, नींद के पैटर्न में व्यवधान और शारीरिक गतिविधि में कमी, बढ़ती आक्रामकता आदि.

हाल ही में किए गए एक और सर्वे में पाया गया कि युवाओं में मोबाइल की लत इतनी ज्यादा है कि इस की वजह से वे दिल के मरीज बन रहे हैं. उन की एक्टिविटी कम होती है, मोटापा बढ़ता है और साथ ही कोलैस्ट्रौल और दिल से जुड़ी दूसरी समस्याएं घर करने लगती हैं.

हमें समझना होगा कि यह लत भले ही थोड़ी देर का एक्साइटमैंट दे रही है लेकिन लौंग टर्म में यह हमारी हैल्थ और रिलेशनशिप दोनों के लिए खतरनाक है.

स्मार्टफोन से ब्रेक जरूरी

हमें शाम को रोजाना एकदो घंटे घर के सभी सदस्यों से बातचीत के लिए देना चाहिए. सब साथ बैठें और आपस में बात करें. उस वक्त किसी के हाथ में भी मोबाइल नहीं होना चाहिए. रोज सुबह पार्टनर के साथ वाक करने जाएं और नियम बनाएं कि उस वक्त मोबाइल फोन साथ ले कर नहीं जाएंगे. अपने घर में यह नियम भी बनाएं कि खाने की मेज पर कोई भी अपना फोन साथ ले कर नहीं आ सकता. उतना वक्त सिर्फ एकदूसरे से बातें करते हुए बिताएं. अगर हम घर में इस तरह के कुछ रूल्स सैट कर दें जिन का पालन करना अनिवार्य हो तो इस से नई आदतें बनने और मोबाइल से दूरी बढ़ाने में मदद मिलती है.

फोन से सोशल मीडिया ऐप्स डिलीट करें

मोबाइल फोन में 70 फीसदी वक्त हम बेवजह सोशल मीडिया ऐप्स स्क्रौल करते हुए बिताते हैं. सोशल मीडिया हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए खतरा है. इसलिए अपने फोन से सारे सोशल मीडिया ऐप्स, जैसे कि फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट वगैरह डिलीट कर दें. ये एप्स खोलने ही हैं तो दिन में एक बार सिर्फ लैपटौप में ही खोलें.

संडे को काम से छुट्टी के साथ आप अपने मोबाइल फोन से भी छुट्टी ले लें. फोन स्विचऔफ कर के बैग में डाल दें और उसे देखें भी न. आप खुद ये चीजें कर के देखें कि आप के रिश्तों और ओवरऔल हैल्थ में कितना सुधार होता है, आप की जिंदगी कितनी खूबसूरत बन जाती है.

Valentine’s Day 2024 : कांटे गुलाब के – अमरेश और मिताली की अनोखी प्रेम कहानी – भाग 3

स्वाति की शादी के बाद मोबाइल ठीक करा लिया तो अमरेश का फोन आ गया, ‘‘2 दिनों से परेशान हूं. तुम्हारा मोबाइल स्विचऔफ बता रहा था. बात क्या है?’’

उस ने मुंबई आने की बात अमरेश से छिपा ली. उस से कहा कि एक सहेली की शादी में दिल्ली आई हूं.

2 दिनों बाद लौट जाऊंगी.

अमरेश से हमेशा जिस तरह बात करती थी, उसी तरह से बात की. उसे यह संदेह नहीं होने दिया कि उसे उस की बेवफाई का पता चल गया है. अमरेश ने उस के साथ बेवफाई क्यों की? दुबई में नौकरी करने को बता कर दूसरी शादी कर मुंबई में क्यों रह रहा था? आखिर उस की क्या गलती थी? ये सारी बातें जानने के लिए उसे सारिका से मिलना जरूरी था.

स्वाति ससुराल चली गई थी. उस की मां से बहाना बना कर और सुमित को उन के हवाले कर चौधरी साहब की बिल्डिंग पर दोपहर में गई. उसे अनुमान था कि उस समय अमरेश घर पर नहीं रहता होगा. गार्ड से बात करने पर इस बात की पुष्टि भी हो गई. अमरेश उस समय औफिस में रहता था. गार्ड को उस ने अपना परिचय जर्नलिस्ट के रूप में दिया. कहा, ‘‘अमरेश सर ने सारिका का इंटरव्यू लेने के लिए बुलाया था.’’

गार्ड ने इंटरकौम द्वारा सारिका से बात की. उस की भी बात करवाई. उस के बाद उसे अंदर जाने की इजाजत मिल गई. अंदर गई तो सारिका ने उस का स्वागत किया. अपना परिचय देते हुए उसे सोफे पर बैठाया. बगैर समय गंवाए उस ने कहा, ‘‘अमरेश सर का कहना है कि उन की जिंदगी में यदि आप नहीं आतीं तो वे ऊंचाई के मुकाम पर नहीं पहुंच पाते. बताइए कि अमरेश सर से आप की शादी कब और कैसे हुई?’’

नौकर कोल्डड्रिंक ले आया. कोल्डड्रिंक पीते हुए जैसेजैसे बातों का सिलसिला आगे बढ़ता गया, वैसेवैसे अमरेश से शादी करने की जानकारी सारिका देती गई. सारिका अपने मातापिता की इकलौती संतान थी. मुंबई में ही उस ने ग्रेजुएशन की थी. पिता उस की शादी ऐसे लड़के से करना चाहते थे जो अमीर खानदान से हो और घरजमाई बन कर उन का बिजनैस संभाल सके.

सारिका सांवली थी. नाकनक्श भी अच्छे नहीं थे. कद भी छोटा था. शायद इसीलिए अमीर खानदान का कोई युवक चौधरी साहब का घरजमाई बनने के लिए तैयार नहीं था. गरीब युवकों में से कई सारिका से शादी करना चाहते थे, मगर चौधरी गरीब को पसंद नहीं करते थे. सारिका के ग्रेजुएशन करने के बाद चौधरी साहब ने उस की पढ़ाई छुड़वा दी थी और उस के लिए वर की तलाश शुरू कर दी थी. 3 साल बीत जाने के बाद भी मनपसंद वर नहीं मिला. उस के बाद सारिका की जिंदगी में अचानक अमरेश आ गया. हुआ यों कि सारिका मातापिता के साथ एक रिश्तेदार की शादी में 3 साल पहले कोलकाता गईर् थी. समारोह में अमरेश से उस की मुलाकात हुई थी.

अमरेश जिस कंपनी में काम करता था, उस के मैनेजिंग डायरैक्टर की बेटी की शादी थी. सारे स्टाफ को बुलाया गया था. पार्टी में अमरेश सारिका के आगेपीछे घूमने लगा तो मौका देख कर सारिका ने उस से पूछा, ‘आप मेरे आगेपीछे क्यों घूम रहे हैं, मुझ से चाहते क्या हैं?’

अमरेश ने बगैर किसी संकोच के कह दिया, ‘पहली नजर में ही मुझे आप से प्यार हो गया है. आप से शादी करना चाहता हूं.’

सारिका को अमरेश बड़ा दिलचस्प लगा. उस का व्यक्तित्व उस के दिल को छू गया. मुसकरा कर बोली, ‘आप ने मुझ में ऐसा क्या देखा कि मेरे दीवाने हो गए?’

‘आप बहुत सुंदर हैं. आप की सुंदरता मेरे दिल में उतर गई है. जब तक आप से शादी नहीं होगी, मुझे चैन नहीं मिलेगा.’

‘मैं गोरी नहीं, सांवली हूं, फिर सुंदर कैसे हो सकती हूं. आप झूठ बोल रहे हैं?’

‘मैं सच कह रहा हूं. सांवली होते हुए भी आप इतनी सुंदर हैं कि गोरी से गोरी लड़की भी सुंदरता में आप के सामने घुटने टेक देगी.’

अमरेश से सारिका प्रभावित हो गई. उस से उस की सारी जानकारी लेने के बाद उसे अपना परिचय दिया. फिर कहा, ‘घर जा कर मम्मीपापा से बात करूंगी. पापा तो नहीं चाहेंगे कि किसी गरीब लड़के से मेरी शादी हो. मैं आप से शादी करने की पूरी कोशिश करूंगी. दरअसल, मुझे भी आप से पहली नजर में ही प्यार हो गया है.’

अमरेश ने सारिका को बताया था कि वह कुंआरा है. दुनिया में उस का कोई नहीं है. वह छोटा था, तभी उस के मातापिता का देहांत हो गया था. मामा ने परवरिश की, उन्होंने ही पढ़ायालिखाया. मामा का अचानक देहांत हो गया तो उन के बेटों ने उसे घर से निकाल दिया. ऐसे में उस के एक दोस्त प्रभात ने उसे सहारा दिया. उस की बदौलत ही उसे नौकरी मिली. वह उस के साथ गोल पार्क में रहता है. उस का परिवार गांव में रहता है.

घर जा कर सारिका ने मम्मीपापा को अमरेश के बारे में बताया तो दोनों ने शादी से साफ मना कर दिया. सारिका अमरेश से हर हाल में विवाह करना चाहती थी. इसलिए उस ने घर में बवाल कर दिया. आत्महत्या करने की धमकी दी तो चौधरी साहब को उस की बात मान लेनी पड़ी. कोलकाता जा कर अमरेश से मिलने के 10 दिनों बाद चौधरी साहब ने सारिका की शादी अमरेश से कर दी. अमरेश अच्छा पति साबित हुआ. सारिका को कभी किसी तरह का कष्ट नहीं दिया. चौधरी साहब का बिजनैस भी संभाल लिया. वर्तमान में सारिका

2 महीने से प्रेग्नैंट थी. अमरेश की सचाई जान कर मिताली के दिमाग में जैसे हथौड़े चलने लगे थे. मन में आया कि इसी पल सबकुछ सारिका को बता दे. धोखेबाज अमरेश की कलई खोल कर रख दे. पर ऐसा न कर सकी. जबान तालू से चिपक गई थी. लगा, जैसे ही सारिका को अमरेश की सचाई बताऊंगी उस की जिंदगी में बहार के बाद पतझड़ वाली स्थिति आ जाएगी. न जाने क्यों वह उसे दुख नहीं देना चाहती थी.

वहां रुकना उस के लिए ठीक नहीं था. ‘‘जल्दी ही इंटरव्यू प्रकाशित होगा,’’ कह कर चली आई. तत्काल कोई फैसला लेना आसान नहीं था. अपने साथसाथ सुमित की जिंदगी का भी सवाल था. इसलिए चुपचाप कोलकाता लौट आई. वह प्रभात को जानती थी. वह अमरेश का दोस्त था. अमरेश के साथ उस के घर 3-4 बार जा चुकी थी. अमरेश की उपस्थिति में वह भी कई एक बार घर आ चुका था. कोलकाता में जिस कंपनी में अमरेश जौब करता था, प्रभात भी उसी कंपनी में था.

अमरेश से शादी किए हुए एक वर्ष हुआ था तब की बात है, एक दिन बातोंबातों में प्रभात ने बताया था, ‘अमरेश आप को बहुत प्यार करता है. इसीलिए उस ने आप से शादी की, नहीं तो वह अपनी ख्वाहिश पूरी करता.’

‘कैसी ख्वाहिश?’ उत्सुकतावश पूछ लिया था मैं ने.

‘वह ऐशोआराम की जिंदगी चाहता था. बेहिसाब धनदौलत का मालिक बनना चाहता था. इस के लिए वह कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार था. मौका नहीं मिला तो 20 हजार रुपए महीने की नौकरी कर आप से शादी कर ली.

‘आप से शादी करने के बाद भी उस ने हिम्मत नहीं हारी है. वह हर हाल में अथाह दौलत का मालिक बनना चाहता है. इसलिए अब भी मौके की तलाश कर रहा है. जिस दिन मौका उस के हाथ आएगा, अंजाम की परवा किए बिना अवसर को हथिया लेगा.’

प्रभात ने जिस अवसर की बात की थी, उस समय समझ नहीं पाई थी. अब सबकुछ समझ गई थी. वह किसी अमीर लड़की से शादी कर अपनी ख्वाहिश पूरी करना चाहता था. मामला शायद ऐसा था, कोलकाता की पार्टी में अमरेश को किसी सोर्स से सारिका की जानकारी मिली होगी. उस के बाद अपनी मंजिल पाने के लिए चिकनीचुपड़ी बातों से सारिका का दिल जीत कर उस से शादी की और मिताली से दुबई जाने की बात कह कर वह सारिका के साथ रहने लगा था.

इस में कोई शक नहीं था कि उस के प्रति अमरेश का प्यार मात्र छलावा था. मिताली दोराहे पर थी. फैसला लेना आसान नहीं था. तलाक लेने की स्थिति में उस की जिंदगी में तो बदलाव आता ही, सुमित की जिंदगी भी एकदम से बदल जाती. वह समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे, क्या न करे. इसी उधेड़बुन में कई दिन गुजर गए. इस बीच फोन पर अमरेश से बिलकुल सामान्य तरीके से बात की. उसे किसी तरह का संदेह नहीं होने दिया. 10 दिनों बाद की बात है. एक दिन शाम के 6 बजे सुमित को पढ़ा रही थी कि डोरबैल बज उठी. जा कर दरवाजा खोला, तो अमरेश था. वह जब भी आता था बगैर सूचना दिए ही आता था. 10-15 दिनों के लिए मुंबई से बाहर जाने के लिए उसे सारिका से कुछ अच्छा बहाना भी तो बनाना पड़ता होगा. सटीक बहाने के लिए उसे समय की प्रतीक्षा करनी होती होगी. इसीलिए आने की पूर्व सूचना नहीं दे पाता होगा.

अमरेश को किसी तरह का शक न हो, इसलिए सदैव की तरह वह उस से लिपट गई और उस का स्वागत किया. फिर उसे अंदर ले गई. आवाज सुन कर सुमित भी दौड़ कर आ गया. अमरेश के चेहरे पर सदैव की तरह खुशनुमा भाव था. जरा भी नहीं लगा कि वह दोहरी जिंदगी जी रहा है. हर बार की तरह इस बार भी उस ने मिताली पर अपना प्यार बरसाने में कोई कमी नहीं की. उस के मन में कई बार आया कि उस की बेवफाई का राज खोल दे. कह दे कि प्यार का नाटक बंद कर दो. पर कह नहीं  सकी. 10 दिनों बाद वह चला गया. प्रति महीना 50 हजार रुपए तो भेजता ही था. इस बार जाते समय उस ने 5 लाख रुपए यह कह कर दिए कि अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखना और सुमित की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने देना.

सदा अन्याय का मुकाबला करो, अपने हक के लिए सदा लड़ो, समाज में पनपती बुराइयों पर अंकुश लगाओ. यह सब स्कूल और कालेज में पढ़ाया गया था. मिताली ने सीखा भी था. पर जिंदगी की पाठशाला में तो कुछ और ही देखने को मिल रहा था. अमरेश के प्रति जबान खोलती तो कई जिंदगियां बरबाद हो जातीं.  मातापिता का कोई सहारा न था क्योंकि उन्होंने एक तरह से साफ कह दिया, अपनी जिंदगी खुद भुगतो.

इसलिए अमरेश के जाने के बाद उस ने फैसला किया कि जब तक उस का अभिनय सफलतापूर्वक चलता रहेगा, तब तक चुपचाप सहती रहेगी, ठीक उसी तरह जिस तरह उस की जैसी हजारों महिलाएं चुपचाप सहती रहती हैं. क्या उस का फैसला सही था? अगर वह हल्ला मचाती तो सारिका भी टूटती, सुमित भी टूटता, अमरेश भी बेकार होता और वह खुद अदालतों के चक्करों में पिस जाती. सारिका या वह कौन असली पत्नी है, कानूनी है, यह तो अभी नहीं पता, पर इस बोझ को ले कर चलना ही ठीक है.

उधार का रिश्ता : भाग 3 – उस दिन क्या हुआ थाा सरिता के साथ ?

ठीक 11 बजे बीएम साहब और ब्रिगेड कमांडर साहब आए. सभी ने उठ कर उन का अभिवादन किया. सभी के बैठ जाने के बाद कमांडर साहब ने कहना शुरू किया, ‘‘जैंटलमेन, आप सब जानते हैं, हम यहां क्यों इकट्ठे हुए हैं? मैं आप का अधिक समय न लेते हुए सीधी बात पर आ जाता हूं. कैप्टन सरिता अब हमारे बीच नहीं है. शी हैज कमीटेड सुसाइड.’’

कुछ समय रुक कर कमांडर साहब ने अपनी बात की प्रतिक्रिया जानने के लिए सभी के चेहरों को गौर से देखा, ‘‘मैं मानता हूं, आत्महत्या को भारतीय सेना में अपराध माना गया है और ऐसा अपराध करने वालों के परिवार वालों को सेना और सरकार किसी प्रकार की सुविधा नहीं देती. वे सड़क पर आ जाते हैं जिन्होंने कोई अपराध नहीं किया होता. इसलिए मैं चाहता हूं, कैप्टन सरिता की डैथ को औन ड्यूटी शो किया जाए जिस से उस के परिवार वालों को सभी सुविधाएं मिलें. आप लोगों के क्या विचार हैं, इसे जानने के लिए हम यहां एकत्रित हुए हैं.’’

काफी समय तक खामोशी छाई रही फिर प्रोवोस्ट यूनिट के ओसी कर्नल राजन बोले, ‘‘सर, ऐसा हो जाए तो इस से अच्छी बात और क्या हो सकती है. इसलिए नहीं कि कैप्टन सरिता एक अफसर थी बल्कि पिछले दिनों हवलदार जिले सिंह के केस में भी ऐसा किया गया.’’

‘‘और कर्नल सुरेश?’’ कमांडर साहब ने ओसी एमएच से पूछा.

‘‘सर, मुझे कोई एतराज नहीं है, केवल मिलिटरी पुलिस की इनीशियल रिपोर्ट को समझदारी से बदलना होगा.’’

कर्नल सुरेश के सवाल का जवाब कर्नल राजन ने दिया, ‘‘वह सब मैं बदल दूंगा.’’

‘‘फिर, पोस्टमौर्टम रिपोर्ट को मैं देख लूंगा.’’

‘‘कर्नल सुब्रामनियम, आप कोर्ट औफ इंक्वायरी की अध्यक्षता कर रहे हैं, आप को पता है, आप को क्या करना है?’’ कमांडर साहब ने पूछा.

‘‘सर.’’

‘‘तो जैंटलमैन, यह तय रहा कि कैप्टन सरिता के केस में क्या करना है?’’ कमांडर साहब ने कहना शुरू किया, ‘‘कर्नल सुरेश, पोस्टमौर्टम रिपोर्ट में कारण ऐसा होना चाहिए जिसे कहीं भी चैलेंज न किया जा सके.’’

‘‘सर, ऐसा ही होगा.’’

‘‘ओके जैंटलमेन, मीटिंग अब खत्म. एक सप्ताह में सारा काम हो जाए.’’

मीटिंग समाप्त होने पर सभी अपनेअपने कार्यालय में चले गए. गाड़ी में बैठते ही मुझे कैप्टन सरिता की डायरी की याद आई. ड्राइवर ने जब इस आशय से मेरी ओर देखा कि अब कहां जाना है तो मैं ने उसे औफिस चलने के लिए कहा. औफिस पहुंच कर मैं ने डायरी निकाली और पढ़ने लगा :

‘‘मेरे सपनों के राजकुमार, सर, मैं मानती हूं, किसी कुंआरी लड़की का एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति से प्यार करना सुगम नहीं है. इस का कोई औचित्य भी नहीं है परंतु मैं जिस माहौल में पल, पढ़ कर बड़ी हुई, उस में अधेड़ उम्र के व्यक्ति को पसंद किया जाता है. मेरे दादा मेरी दादी से बहुत बड़े थे, मेरी मां भी मेरे पिताजी से बहुत छोटी थीं. शायद यही कारण था, आप को जब पहली बार देखा तो आप की ओर आकर्षित हुए बिना न रह पाई. आप ने मुझे सब बताया कि आप के 2 बच्चे हैं, एक सुंदर बीवी है जिसे आप किसी भी तरह छोड़ नहीं सकते. मैं तो ‘लिव इन रिलेशन’ की बात कर रही थी जिसे आप ने मन की गहराइयों से माना और स्वीकार किया. यह रिलेशन एक लंबे समय तक चलता रहा.

‘‘सोचा था, किसी को कानोंकान खबर नहीं होगी लेकिन उस रोज आप की बीवी आईं और हमें रंगे हाथों पकड़ लिया. उन्होंने मुझे इतना बुराभला कहा कि मैं बर्दाश्त नहीं कर पाई, इसलिए भी कि आप चुपचाप सुनते रहे. आप की कातर नजरों ने इस बात की घोषणा कर दी कि जिसे मैं ने ‘लिव इन रिलेशन’ का रिश्ता समझा था, वह तो उधार का रिश्ता था, जो अब टूट चुका है. सो, मैं ने सोचा कि मेरे जीने का अब कोई औचित्य नहीं है, इसीलिए मैं ने स्वयं को खत्म करने का निर्णय लिया है.’’

मैं ने डायरी बंद कर दी और इस सोच में डूब गया कि 1 सप्ताह के भीतर सबकुछ ठीक हो जाएगा. सरकार की ओर से कैप्टन सरिता के परिवार वालों को सारी सुविधाएं मिल जाएंगी यानी जब तक उस की सर्विस रहती तब तक के लिए पूरा वेतन, उस के बाद पैंशन भी. परंतु अब भी मेरे सामने अनेक सवाल मुंहबाए खड़े हैं.

क्या किसी कुंआरी लड़की अथवा किसी ब्याहता का इस तरह ‘लिव इन रिलेशन’ में रहना और अपनी जान गंवाना ठीक है? मैं इस सवाल का जवाब नहीं ढूंढ़ पा रहा हूं.

साथ साथ : उस दिन कौन सी अनहोनी हुई थी रुखसाना और रज्जाक के साथ ? – भाग 3

रुखसाना के चेहरे को अपने हाथों में लेते हुए रज्जाक बोला, ‘रुखी, मैं अपनी मुहब्बत को हरगिज बरबाद नहीं होने दूंगा. बोल, क्या इरादा है?’

मुहब्बत के इस नए रंग से सराबोर रुखसाना ने रज्जाक की आंखों में आंखें डाल कर कुछ सोचते हुए कहा, ‘भाग निकलने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रज्जाक मियां. बोलो, क्या इरादा है?’

‘पैसे की चिंता नहीं, जेब में हजारों रुपए पडे़ हैं पर भाग कर जाएंगे कहां?’ रज्जाक चिंतित हो कर बोला.

महबूब के एक स्पर्श ने मासूम रुखसाना को औरत बना दिया था. उस के स्वर में दृढ़ता आ गई थी. हठात् उस ने रज्जाक का हाथ पकड़ा और दोनों दबेपांव झरोखे से निकल पड़े. झाडि़यों की आड़ में खुद को छिपातेबचाते चल पड़े थे 2 प्रेमी एक अनिश्चित भविष्य की ओर.

रज्जाक के साथ गांव से भाग कर रुखसाना अपने मामूजान के घर आ गई. मामीजान ने रज्जाक के बारे में पूछा तो वह बोली, ‘यह मेरे शौहर हैं.’

मामीजान को हैरत में छोड़ कर रुखसाना रज्जाक को साथ ले सीधा मामूजान के कमरे की तरफ चल दी. क्योंकि एकएक पल उस के लिए बेहद कीमती था.

मामूजान एक कीमती कश्मीरी शाल पर नक्काशी कर रहे थे. दुआसलाम कर के वह चुपचाप मामूजान के पास बैठ गई और रज्जाक को भी बैठने का इशारा किया.

बचपन से रुखसाना की आदत थी कि जब भी कोई मुसीबत आती तो वह मामूजान के पास जा कर चुपचाप बैठ जाती. मामूजान खुद ही समझ जाते कि बच्ची परेशान है और उस की परेशानी का कोेई न कोई रास्ता निकाल देते.

कनखियों से रज्जाक को देख मामूजान बोल पड़े, ‘इस बार कौन सी मुसीबत उठा लाई है, बच्ची?’

‘मामूजान, इस बार की मुसीबत वाकई जानलेवा है. किसी को भनक भी लग गई तो सब मारे जाएंगे. दरअसल, मामूजान इन को मजबूरी में जेहादियों का साथ देना पड़ा था पर अब ये इस अंधी गली से निकलना चाहते हैं. हम साथसाथ घर बसाना चाहते हैं. अब तो आप ही का सहारा है मामू, वरना आप की बच्ची मर जाएगी,’ इतना कह कर रुखसाना मामूजान के कदमों में गिर कर रोने लगी.

अपने प्रति रुखसाना की यह बेपनाह मुहब्बत देख कर रज्जाक मियां का दिल भर आया. चेहरे पर दृढ़ता चमकने लगी. मामूजान ने एक नजर रज्जाक की तरफ देखा और अनुभवी आंखें प्रेम की गहराई को ताड़ गईं. बोले, ‘सच्ची मुहब्बत करने वालों का साथ देना हर नेक बंदे का धर्म है. तुम लोग चिंता मत करो. मैं तुम्हें एक ऐसे शहर का पता देता हूं जो यहां से बहुत दूर है और साथ ही इतना विशाल है कि अपने आगोश में तुम दोनों को आसानी से छिपा सकता है. देखो, तुम दोनों कोलकाता चले जाओ. वहां मेरा अच्छाखासा कारोबार है. जहां मैं ठहरता हूं वह मकान मालिक गोविंदरामजी भी बड़े अच्छे इनसान हैं. वहां पहुंचने के बाद कोई चिंता नहीं…उन के नाम मैं एक खत लिखे देता हूं.’

मामूजान ने खत लिख कर रज्जाक को पकड़ा दिया था जिस पर गोविंदरामजी का पूरा पता लिखा था. फिर वह घर के अंदर गए और अपने बेटे की जीन्स की पैंट और कमीज ले आए और बोले, ‘इन्हें पहन लो रज्जाक मियां, शक के दायरे में नहीं आओगे. और यहां से तुम दोनों सीधे जम्मू जा कर कोलकाता जाने वाली गाड़ी पर बैठ जाना.’

जिस मुहब्बत की मंजिल सिर्फ बरबादी नजर आ रही थी उसे रुखसाना ने अपनी इच्छाशक्ति से आबाद कर दिया था. एक युवक को जेहादियों की अंधी गली से निकाल कर जीवन की मुख्यधारा में शामिल कर के एक खुशहाल गृहस्थी का मालिक बनाना कोई आसान काम नहीं था. पर न जाने रुखसाना पर कौन सा जनून सवार था कि वह अपने महबूब और मुहब्बत को उस मुसीबत से निकाल लाई थी.

पता ही नहीं चला कब साल पर साल बीत गए और वे कोलकाता शहर के भीड़़ का एक हिस्सा बन गए. रज्जाक बड़ा मेहनती और ईमानदार था. शायद इसीलिए गोविंदराम ने उसे अपनी ही दुकान में अच्छेखासे वेतन पर रख लिया था और जब रफीक गोद में आया तो उन की गृहस्थी झूम उठी.

शुरुआत में पहचान लिए जाने के डर से रज्जाक और रुखसाना घर से कम ही निकलते थे पर जैसेजैसे रफीक बड़ा होने लगा उसे घुमाने के बहाने वे दोनों भी खूब घूमने लगे थे. लेकिन कहते हैं न कि काले अतीत को हम बेशक छोड़ना चाहें पर अतीत का काला साया हमें आसानी से नहीं छोड़ता.

रोज की तरह उस दिन भी रज्जाक काम पर जा रहा था और रुखसाना डेढ़ साल के रफीक को गोद में लिए चौखट पर खड़ी थी. तभी न जाने 2 नकाबपोश कहां से हाजिर हुए और धांयधांय की आवाज से सुबह का शांत वातावरण गूंज उठा.

उस खौफनाक दृश्य की याद आते ही रुखसाना जोर से चीख पड़ी तो आसपास के लोग उस की तरफ भागे. रुखसाना बिलखबिलख कर रो रही थी. इतने में गोविंदराम की जानीपहचानी आवाज ने उस को अतीत से वर्तमान में ला खड़ा किया, वह कह रहे थे, ‘‘रुखसाना बहन, अब घबराने की कोई जरूरत नहीं. आपरेशन ठीकठाक हो गया है. रज्जाक मियां अब ठीक हैं. कुछ ही घंटों में उन्हें होश आ जाएगा.’’

रुखसाना के आंसू थे कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे. उसे कहां चोट लगी थी यह किसी की समझ से परे था.

इतने में किसी ने रफीक को उस की गोद में डाल दिया. रुखसाना ने चेहरा उठा कर देखा तो शीला बहन बड़े प्यार से उस की तरफ देख रही थीं. बोलीं, ‘‘चलो, रुखसाना, घर चलो. नहाधो कर कुछ खा लो. अब तो रज्जाक भाई भी ठीक हैं और फिर तुम्हारे गोविंदभाई तो यहीं रहेंगे. रफीक तुम्हारी गोद को तरस गया था इसलिए मैं इसे यहां ले आई.’’

रुखसाना भौचक्क हो कर कभी शीला को तो कभी गोविंदराम को देख रही थी. और सोच रही थी कि अब तक तो इन्हें उस की और रज्जाक की असलियत का पता चल गया होगा. तो पुलिस के झमेले भी इन्होंने झेले होंगे. फिर भी कितने प्यार से उसे लेने आए हैं.

रुखसाना आंखें पोंछती हुई बोली, ‘‘नहीं बहन, अब हम आप पर और बोझ नहीं बनेंगे. पहले ही आप के हम पर बड़े एहसान हैं. हमें हमारे हाल पर छोड़ दीजिए. कुछ लोग दुनिया में सिर्फ गम झेलने और मरने को आते हैं. हम अपने गुनाह की सजा आप को नहीं भोगने देंगे. आप समझती होंगी कि वे लोग हमें छोड़ देंगे? कभी नहीं.’’

‘‘रुखसाना कि वे आतंकवादी गली से बाहर निकल भी न पाए थे कि महल्ले वाले उन पर झपट पड़े. फिर क्या था, जिस के हाथों में जो भी था उसी से मारमार कर उन्हें अधमरा कर दिया, तब जा कर पुलिस के हवाले किया. दरअसल, इनसान न तो धर्म से बड़ा होता है और न ही जन्म से. वह तो अपने कर्म से बड़ा होता है. तुम ने जिस भटके हुए युवक को सही रास्ता दिखाया वह वाकई काबिलेतारीफ है. आज तुम अकेली नहीं, सारा महल्ला तुम्हारे साथ है .’’

शीला की इन हौसला भरी बातों ने रुखसाना की आंखों के आगे से काला परदा हटा दिया. रुखसाना ने देखा शाम ढल चुकी थी और एक नई सुबह उस का इंतजार कर रही थी. महल्ले के सभी बड़ेबुजुर्ग और जवान हाथ फैलाए उस के स्वागत के लिए खड़े थे. वह धीरेधीरे गुनगुनाने लगी, ‘हम साथसाथ हैं.’

घर लौट जा माधुरी : जवानी की दहलीज पर पैर रखते ही माधुरी की जिंगदी में क्या बदलाव आया ? – भाग 3

‘‘सच कहूं तृप्ति, मां के इस बरताव से मेरा सौरभ के प्रति और झुकाव बढ़ गया. उस दिन के बाद से मैं उस की दुकान पर जाने का बहाना ढूंढ़ने लगी.

‘‘एक दिन मौका मिल ही गया. बड़े वाले जीजाजी घर आए थे. मां ने जब भाभी के लिए खरीदे गए गहनों को दिखाया तो वे बोले, ‘सुनार ने वाजिब दाम लगाया है. मुझे भी उपहार में देने के लिए एक अंगूठी की जरूरत है. सलहज की उंगली का नाप आप के पास है ही, इस से थोड़ी अलग डिजाइन की अंगूठी मैं भी उसी दुकान से ले लेता हूं.’

‘‘मां ने कहा था, ‘माधुरी साथ चली जाएगी. दुकानदार का लड़का इस का परिचित है. कुछ छूट भी कर देगा.’

‘‘मां ने अंगूठी लौटाने वाली बात को जानबूझ कर छिपा लिया था. वे नहीं चाहती थीं कि मुझ पर किसी तरह का आरोप लगे. मेरी शादी के लिए बाबूजी किसी नौकरी वाले लड़के की तलाश में थे.

‘‘दूसरे दिन जीजाजी के साथ जब मैं उस की दुकान पर पहुंची तब सौरभ किसी औरत को अंगूठी दिखा रहा था. मुझे देखते ही वह मुसकराया और बैठने के लिए इशारा किया. जब जीजाजी ने अंगूठी दिखाने को कहा तो उस के पिताजी ने उसी की ओर इशारा कर दिया.

‘‘तभी कोई फोन आया और उस के पिताजी बोले, ‘2-3 घंटे के लिए मैं कुछ जरूरी काम से बाहर जा रहा हूं. ये लोग पुराने ग्राहक हैं, इन का ध्यान रखना.’

‘‘यह सुन कर सौरभ के चेहरे पर मुसकान थिरक गई. वह बोला, ‘जी बाबूजी, मैं सब संभाल लूंगा.’’

‘‘जीजाजी ने एक अंगूठी पसंद की और उस का दाम पूछा. मैं ने कहा, ‘मेरे जीजाजी हैं.’

‘‘मेरा इशारा समझ कर सौरभ ने कहा, ‘फिर तो जो आप दे दें, मुझे मंजूर होगा.’

‘‘जीजाजी ने बहुत कहा, लेकिन वह एक ही रट लगाए रहा, ‘आप जो देंगे, ले लूंगा. आप लोग पुराने ग्राहक हैं. आप लोगों से क्या मोलभाव करना है.’

‘‘जीजाजी धर्मसंकट में थे. उन्होंने अपना डैबिट कार्ड बढ़ाते हुए कहा, ‘अब मैं भी मोलभाव नहीं करूंगा. आप जो दाम भर देंगे, स्वीकार कर लूंगा.’

‘‘खैर, जीजाजी ने जो सोचा था, उस से कम दाम उस ने लगाया. उस ने हम लोगों के लिए मिठाई मंगाई और जब जीजाजी मुंह धोने वाशबेसिन की ओर गए तो वही पुरानी अंगूठी मुझे जबरन थमाते हुए कहा था, ‘अब फिर न लौटाना… नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा.’

‘‘जीजाजी देख न लें, इसलिए मैं ने उस अंगूठी को ले कर छिपा लिया.

‘‘उस दिन के बाद हम दोनों मौका निकाल कर चोरीछिपे एकदूसरे से मिलते रहे. सौरभ से मालूम हुआ कि उस के पिताजी ने पिछले साल उस की शादी एक अमीर लड़की से दहेज के लालच में करा दी थी. लड़की तो सुंदर है, लेकिन गूंगीबहरी है. वह अपने मातापिता की एकलौती बेटी है. मां का देहांत हो चुका है. पिता ने अपनी जायदाद लड़की के नाम कर दी है. शहर में एक तिमंजिला मकान भी उस की नाम से है. उस मकान से हर महीने अच्छा किराया मिलता है. रुपयापैसा उसी के अकाउंट में जमा होता है. पिताजी ने भी गहनों की यह दुकान उस के नाम कर दी है.

‘‘तृप्ति, सौरभ मुझ पर इतना पैसा खर्च करने लगा कि मैं उसी की हो कर रह गई.’’

‘‘यानी तुम ने अपना जिस्म भी उसे सौंप दिया?’’ तृप्ति ने हैरान होते हुए पूछ लिया.

‘‘क्या करती… कई बार हम लोग होटल में मिले. कोई न कोई बहाना बना कर मैं सुबह निकलती और उस के बुक कराए होटल में पहुंच जाती. शुरू में तो काफी हिचकिचाई, पर बाद में उस के आग्रह के आगे झुक गई.’’

‘‘फिर…?’’ तृप्ति ने पूछा.

‘‘नहींनहीं…’’ अचानक माधुरी के मुंह से चीख सी निकली.

‘‘पर, इस सब में केवल सौरभ ही कुसूरवार नहीं है, तुम भी हो. तुम ने क्या सोच कर अंगूठी अपने जीजाजी और मां से छिपाई.

‘‘जीजाजी के सामने ही क्यों नहीं कहा कि सौरभ, यह अंगूठी तुम्हें उपहार में दे रहा है. मां को भी क्यों नहीं बताया कि लाख मना करने पर भी सौरभ ने अंगूठी नहीं ली.

‘‘अगर तुम ने ऐसा किया होता तो फिर सौरभ समझ जाता कि उस ने गलत जगह अपनी गोटी डाली है और वह आगे बात न बढ़ाता. जवानी और पैसे के लालच में तुम्हारी मति मारी गई थी. तुम गलत को सही और सही को गलत समझने लगी थी.

‘‘तुम्हारी मां गहनों में छूट चाहती थीं. हर ग्राहक की चाहत सस्ता खरीदने की होती है, उन की भी थी. लेकिन वे नाजायज कुछ नहीं चाहती थीं. उन्होंने धूप में अपने बाल सफेद नहीं किए हैं. उन को सौरभ की अंगूठी देने के पीछे की मंशा पता चल गई थी, इसीलिए ऐसे लोगों से दूर रहने की सलाह दी थी.

‘‘अब तुम्हारी शादी जिस लड़के से तय हुई है, तुम उस से बात करती. उस के स्वभाव, व्यवहार और चरित्र का पता लगाती. अगर पसंद नहीं आता तो साफ इनकार कर देती. यह एक सही कदम होता. इस के लिए कई लोग तुम्हारी मदद में आगे आ जाते. तुम्हारा आत्मविश्वास बना रहता और मनोबल भी ऊंचा रहता.’’

माधुरी बोली, ‘‘एक गिलास पानी पिला तृप्ति. अब मैं सब समझ गई हूं. कल घर लौट जाऊंगी. मां से बोल दूंगी, आगे की पढ़ाई के लिए समझने मैं तृप्ति के पास आई थी. मां पूछेंगी तो तुम भी यही कह देना.’’

तृप्ति ने कहा, ‘‘कल सुबह मैं चाची को फोन कर के बता दूंगी. सौरभ को अभी तुम बोल दो. अभी वह भी सोया न होगा. बनारस आने की तैयारी में लगा होगा. उस से कहो कि मैं अब गांव लौट रही हूं. मांबाबूजी का दिल दुखाना नहीं चाहती. तुम्हारा घर तोड़ कर किसी की आह नहीं लेना चाहती.

‘‘मुझे पूरा भरोसा है कि सौरभ खुश होगा कि बला उस के सिर से टलेगी.’’

तृप्ति ने सच ही कहा था. सौरभ अभी जाग रहा था और थोड़ी देर पहले ही मुंबई वाले अपने दोस्त से कहा था, ‘यार, अब इस बला को तुम संभालो. वह सुंदर है. खर्च करोगे तो तुम्हारी हो जाएगी. जब मन भर जाएगा तो कुछ दे कर उस के गांव वाली ट्रेन पर बिठा देना. अब मुझे एक दूसरी मिल गई है.

सौरभ ने एक छोटा सा जवाब दिया था, ‘जैसी तुम्हारी इच्छा. मैं रिजर्वेशन कैंसिल करा देता हूं.’

माधुरी का मन अब हलका था, ‘‘तृप्ति, अब एक काम और कर दे. कल क्यों आज ही घर में फोन कर दे. अभी रात के 12 बजे हैं. मांबाबूजी बहुत चिंतित होंगे. मैं चुपके से यहां आ गई हूं.’’

‘‘अच्छा, बोलती हूं…’’ तृप्ति माधुरी की मां को समझा रही थी, ‘‘चिंता न करें आंटीजी. माधुरी मेरे पास आ गई है. वह आगे पढ़ना चाहती है. आप ने उस को घर से निकलने पर बंदिश लगा दी थी न, इसलिए… हां, उसे बता कर निकलना चाहिए था… अच्छा प्रणाम, माधुरी सो गई है, कल सुबह बात कर लेगी.’’

फोन कट गया. माधुरी को अपने किए पर पछतावा तो था, पर आगे साजिश में फंसने से बच जाने की खुशी भी थी. साथ ही, अपनी सहेली तृप्ति पर गर्व भी था. दोनों सहेलियां बात करतेकरते सो गईं.

Valentine’s Day 2024 : काश – श्रीकांत किसे देखकर हैरान हो गया था ? – भाग 3

‘‘याद से अपनी दवाइयां ले जाना,’’ शांता के कहने पर श्रीकांत के मन में एक टीस उठी. बीमारी भी इसी के स्वभाव के कारण लगी और अब उच्च रक्तचाप की दवाईर् लेने की याद भी यही दिलाती है.

बेंगलुरु के सदा सुहावने मौसम के बारे में श्रीकांत ने सुन रखा था. शहर में पहुंच कर उस मौसम का आनंद लेना उसे और भी अच्छा लग रहा था. किसी अन्य मैट्रो शहर की भांति चौड़ी सड़कें, फ्लाईओवर, और अब तो मैट्रो का भी काम चल रहा था. लेकिन भीड़ हर जगह हो गई है. यहां भी कितना ट्रैफिक, गाडि़यों का कितना धुआं है, सोचता हुआ वह अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच गया.

सारा दिन दफ्तर में काम निबटाने के बाद शाम को वह व्हाइटफील्ड मौल में कुछ देर तरोताजा होने चला गया. इस मौल में अकसर कोई न कोई मेला आयोजित होता रहता है, ऐसा दफ्तर के सहकर्मियों ने बताया था. आज भी मौल के प्रवेशद्वार पर जो लंबाचौड़ा अहाता है वहां गोल्फ की नकली पिच बिछा कर खेल चल रहा था. श्रीकांत को कुछ अच्छे पल बिताने के अवसर कम मिलते थे. वह भी वहां खेलने के इरादे से चला गया. अपना नाम दर्ज करवा कर जब वह काउंटर पर गोल्फस्टिक लेने पहुंचा तो सामने सारिका को गोल्फस्टिक वापस रखते देख चौंक गया. आंखों के साथसाथ मुंह भी खुला रह गया.

‘‘तुम? यहां?’’ अटकते हुए उस के मुंह से अस्फुटित शब्द निकले. सारिका भी अचानक श्रीकांत को यहां देख अचंभित थी. शाम ढल चुकी थी. श्रीकांत पहले ही अपने दफ्तर का काम निबटा कर फ्री हो चुका था. सारिका भी खाली हो गई. दोनों उसी मौल के तीसरे माले पर इटैलियन क्विजीन खाने कैलिफोर्निया पिज्जा किचन रैस्तरां की ओर चल दिए. वहां सारिका ने चिकन फहीता पिज्जा और इटैलियन सोडा मंगवाया. सारिका ने जिस अंदाज और आत्मविश्वास से और्डर किया, उस से श्रीकांत समझ गया कि सारिका का ऐसी महंगी जगहों पर आनाजाना आम होता होगा.

‘‘और तुम क्या लोगे?’’ सारिका के पूछने पर श्रीकांत थोड़ा सकुचाया, कहा, ‘‘क्या अच्छा है यहां का?’’

‘‘मैं और्डर करती हूं तुम्हारे लिए. अ… तुम तो शाकाहारी हो न, तो तुम्हारे लिए कैलिफोर्निया वेजी पिज्जा और तुम्हें नींबूपानी पसंद था न, तो लेमोनेड,’’ कहते हुए सारिका ने वेटर को चलता किया.

‘‘तुम्हें अब भी मेरी पसंदनापसंद याद है?’’ श्रीकांत आश्चर्यचकित था और थोड़ा शर्मिंदा भी.

‘‘क्यों, तुम भुला पाए मुझे?’’ सारिका के इस प्रश्न ने श्रीकांत की आंखों से अतीत का परदा सरका दिया. उस की आंखों के सामने पुरानी बातें फिल्मी रील की तरह प्रतिबिंबित होने लगीं.

वडोदरा में नौकरी के पहले दिन ही श्रीकांत अपनी सहकर्मी सारिका पर आसक्त हो गया था. अप्रतिम सौंदर्य की मलिका, हंसे तो लगता था जैसे पंखुरी से होंठ नाच रहे हों, नयनकटारी ऐसी तीखी जैसे तेजधार तलवार, काजल की रेखा नयनों को और भी पैना बना देती. लेकिन वहीं, इतनी कठोर कि दफ्तर में किसीकी हिम्मत नहीं थी सारिका को कुछ ऐसावैसा कहने की.

‘अपनी दृष्टि काबू में रख, अभीअभी नौकरी शुरू की है, अभी से छोड़ने का इरादा है क्या?’ दफ्तर के एक दोस्त के पूछने पर श्रीकांत ने हैरतभरी दृष्टि उस पर डाली थी. ‘तेरी आंखें सारे राज खोल रही हैं. पर कुछ ऐसावैसा सोचना भी मत. सारिका देखने में जितनी सुंदर है उतनी ही सख्त भी. किसी को नहीं बख्शती.’

चेतावनी पाने पर श्रीकांत चुप हो गया था पर वह दिल ही क्या जो दिमाग की बात मान जाए. घूमफिर कर सारिका का खयाल जेहन में घूमता रहता. नियति को भी तरस आ गया. एक प्रोजैक्ट पर सारिका और श्रीकांत को साथ काम करने को कहा गया. दोस्ती हो गई. सारिका भी श्रीकांत की तरह अपने घरपरिवार से दूर यहां नौकरी के लिए आई थी. श्रीकांत की तरह वह भी एक फ्लैट में रहती थी.

‘क्या हुआ, आज बड़े उखड़े हुए लग रहे हो?’ सारिका ने उस दिन श्रीकांत का खराब मूड भांपते हुए पूछा.

‘क्या बताऊं, आज फिर मकानमालिक से झगड़ा हो गया. वह बहुत झगड़ालू है. सोच रहा हूं घर बदल लूं. कोई नजर में हो तो बताना.’ लेकिन उसी रात श्रीकांत, सारिका के दरवाजे पर अपना सामान लिए खड़ा था. ‘सौरी सारिका, इस समय कहीं और जाने का ठिकाना न हुआ. मकानमालिक ने मेरे घर पहुंचने से पहले से सामान बाहर कर दिया था. प्लीज, आज रात रुक जाने दो. कल से कोई और इंतजाम कर लूंगा.’

रात्रिभोजन के बाद श्रीकांत के मुंह से निकल गया, ‘इतना स्वादिष्ठ खाना, तुम में तो आदर्श बीवी बनने के सारे गुण हैं,’ श्रीकांत की आंखों ने भी उस की भावनाओं का साथ दे डाला. शायद सारिका के मन में भी कुछ पनप रहा था श्रीकांत के लिए, वह बस, शरमा कर मुसकरा दी.

श्रीकांत की हिम्मत बढ़ गई. वह फौरन सारिका के पास आ बैठा और धीरे से उस के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए बोला, ‘सारिका, कभी हिम्मत नहीं हुई तुम से कहने की पर…मैं तुम्हें बहुत पसंद करता हूं. तुम हो ही ऐसी.’ सारिका खामोशी से सब सुनती, नीची नजर किए मुसकराती रही. उस के मुखमंडल पर एक अलग ही लालिमा छाई थी. उस सौंदर्य को पी जाने की लालसा में श्रीकांत ने अपने अधर सारिका के अधरों पर अंकित कर दिए. फिर दोनों को किसी भी सीमा का आभास न रहा. कुंआरे प्यार ने सारे बांध तोड़ दिए.

अब दोनों साथ रहने लगे थे. दोनों एकदूसरे के साथ बेहद खुश थे. तृप्ति उन के चेहरों से झलकती थी. धीरेधीरे दफ्तर में भी यह बात खुल गई. सब को पता चल गया. युवा समाज वाकई काफी बदल गया है. अधिकतर सहकर्मियों ने इस बात को सहर्ष स्वीकारा. लेकिन जब बात परिवार तक आती है तब अकसर समाज अपना पुराना, जीर्ण, संकुचित रूप ही दिखाता है. यहां भी यही हुआ. सारिका के परिवार वाले उस पर शादी के लिए जोर डालने लगे. श्रीकांत ने अपने परिवार में बात छेड़ी, तो वहां मानो जंग छिड़ गई.

‘हाय, यह किस कलमुंही को हमारे घर की बहू बनाने की बात कर रहा है? ऐसी निर्लज्ज, जो ब्याह से पहले ही…मुझे तो कहने में भी लज्जा आती है,’ मां ने घर सिर पर उठा लिया.

‘और नहीं तो क्या, आदमी का क्या है, वह तो बहक ही जाता है. पर औरत को तो खुद पर संयम रखना चाहिए. ऐसे नीच संस्कारों वाली भाभी नहीं चाहिए मुझे,’ दीदी भी चुप नहीं थीं.

‘अरे, चुप हो तुम सब. बिना पत्रीमिलान करे मैं इस की शादी की इजाजत नहीं दे सकता. पहले उस लड़की की पत्री मंगवा कर मुझे दे,’ पिताजी ने आखिरी फरमान सुनाया.

सब की बातों को दरकिनार कर श्रीकांत ने सारिका की पत्री अपने पिता को दी. उस ने सोचा, एक बार शादी हो जाएगी, तो सारिका अपने व्यवहार और निपुणता से सब का दिल स्वयं ही मोह लेगी.

‘इस लड़की की उम्र बहुत कम है, अधिक से अधिक एकडेढ़ वर्ष, और तब तक यह बीमारियों का शिकार रहेगी. इस के संसार छोड़ने से पहले श्रीकांत ने इसे गृहस्थ सुख का वरदान दिया, इस के लिए श्रीकांत को अवश्य लाभ मिलेगा. किंतु, अब बस. अब इस से नाता तोड़ो और जहां कुंडली मिलान हो वहां गृहस्थी बसाओ,’ पिताजी की इस अप्रत्याशित बात से श्रीकांत के पांवतले की जमीन सरक गई. वह तो सारिका के साथ जीवन के सुनहरे स्वप्न संजो रहा था और यहां तो बात ही खत्म. आगे किसी बहस की कोई गुंजाइश नहीं थी. श्रीकांत को नौकरी छोड़ कर अपने शहर लौटने का आदेश दे दिया गया था. फटाफट अपने ही शहर की एक कुलीन कन्या से पत्री मिलान करवाया जा चुका था.

जब श्रीकांत अपना सामान लेने आखिरी बार वडोदरा गया था तब सारिका उस के समक्ष फूटफूट कर रोई थी. ‘मेरी क्या गलती है, श्रीकांत? तुम मुझे यों मझधार में नहीं छोड़ सकते. सब को हमारे रिश्ते के बारे में पता है. तुम तो शादी कर लोगे, मेरा क्या होगा? मुझे कोई बीमारी नहीं है. मैं स्वस्थ हूं. बेकार की बातों में तुम हमारा भविष्य खराब करने पर राजी कैसे हो गए?’ पर श्रीकांत चुप रहा. आखिरी समय तक, स्टेशन पर गाड़ी में सवार होने तक सारिका प्रयास करती रही कि शायद श्रीकांत कुछ नम्र पड़ जाए.

 

अनकहा प्यार : 40 साल की औरत की जिंदगी को दर्शाती कहानी – भाग 3

लेकिन एमए पूरा होते ही सबीना के निकाह की बात चलने लगी. उस के पिता चुनाव हार चुके थे. और सारी जमापूंजी चुनाव में लगा चुके थे. बहुत सारा कर्र्ज भी हो गया था उन पर. जब सबीना ने निकाह से मना करते हुए पीएचडी की बात कही, तो उस के अब्बू ने कहा, ‘बीएड कर लो. पढ़ाई करने से मना नहीं करता. लेकिन पीएचडी नहीं. मैं जानता हूं कि पीएचडी के नाम पर पीएचडी करने वालों का कैसा शोषण होता है? निकाह करो और प्राइवेट बीएड करो. अपने अब्बू की बात मानो. समय बदल चुका है. मेरी स्थिति बद से बदतर हो गई है. अपने अब्बू का मान रखो.’ अब्बू की बात तो वह काट न सकी, सोचा, जा कर अमित के सामने ही हिम्मत कर के अपने प्यार का इजहार कर दे.

अमित को जब उस ने बीएड की बात बताई और साथ ही निकाह की, तो अमित चुप रहा.

‘तुम क्या कहते हो?’

‘तुम्हारे अब्बू ठीक कहते हैं,’ उस ने उदासीभरे स्वर में कहा.

‘उदास क्यों हो?’

‘दहेज न दे पाने के कारण बहन की शादी टूट गई.’ सबीना क्या कहती ऐसे समय में चुप रही. बस, इतना ही कहा, ‘अब हमारा मिलना नहीं होगा. कुछ कहना चाहते हो, तो कह दो.’

‘बस, एक अच्छी नौकरी चाहता हूं.’

‘मेरे बारे में कुछ सोचा है कभी.’

वह चुप रहा और उस ने मुझे भी चुप रहने को कहा, ‘कुछ मत कहो. हालात काबू में नहीं हैं. मैं भी पीएचडी करने के लिए दिल्ली जा रहा हूं. औल द बैस्ट. तुम्हारे निकाह के लिए.’

दोनों की आंखों में आंसू थे और दोनों ही एकदूसरे से छिपाने की कोशिश कर रहे थे. जो कहना था वह अनकहा रह गया. और आज इतने वर्षों के बीत जाने के बाद वही शख्स नागपुर में पार्क में इस बैंच पर उदास, गुमसुम बैठा हुआ है. सबीना उस की तरफ बढ़ी. उस की निगाह सबीना की तरफ गई. जैसे वह भी उसे पहचानने की कोशिश कर रहा हो.

‘‘पहचाना,’’ सबीना ने कहा.

कुछ देर सोचते हुए अमित ने कहा, ‘‘सबीना.’’

‘‘चलो याद तो है.’’

‘‘भूला ही कब था. मेरा मतलब, कालेज का इतना लंबा साथ.’’

‘‘यह क्या हुलिया बना रखा है,’’ सबीना ने पूछा.

‘‘अब यही हुलिया है. 45 साल का वक्त की मार खाया आदमी हूं. कैसा रहूंगा? जिंदा हूं. यही बहुत है.’’

‘‘अरे, मरें तुम्हारे दुश्मन. यह बताओ, यहां कैसे?’’

‘‘मेरी छोड़ो, अपने बारे में बताओ.’’

‘‘मैं ठीक हूं. खुश हूं. एक बेटे की मां हूं. प्राइवेट स्कूल में टीचर हूं. पति का अपना बिजनैस है,’’ सबीना ने हंसते

हुए कहा.

‘‘देख कर तो नहीं लगता कि खुश हो.’’

‘‘अरे भई, मैं भी 40 साल की हो गई हूं. कालेज की सबीना नहीं रही. तुम बताओ, यहां कैसे? और हां, सच बताना. अपनी बैस्ट फ्रैंड से झठ मत बोलना.’’

‘‘झठ क्यों बोलूंगा. बहन की शादी हो चुकी है. मां अब इस दुनिया में नहीं रहीं. मैं एक प्राइवेट कालेज में प्रोफैसर हूं. मेरा भी एक बेटा है.’’

‘‘और पत्नी?’’

‘‘उसी सिलसिले में तो यहां आया हूं. पत्नी से बनी नहीं, तो उस ने प्रताड़ना का केस लगा कर पहले जेल भिजवाया. किसी तरह जमानत हुई. कोर्ट में सम?ौता हो गया. आज कोर्ट में आखिरी पेशी है. उसे ले जाने के लिए आया हूं. अदालत का लंचटाइम है, तो सोचा पास के इस बगीचे में थोड़ा आराम कर लूं,’’ उस ने यह कहा तो सबीना ने कहा, ‘‘मतलब, खुश नहीं हो तुम.’’

उस ने हंसते हुए कहा, ‘‘खुश तो हूं लेकिन सुखी नहीं हूं.’’

जी में तो आया सबीना के, कि कह दे कालेज में जो प्यार अनकहा रह गया, आज कह दो. चलो, सबकुछ छोड़ कर एकसाथ जीवन शुरू करते हैं. लेकिन कह न सकी. उसे लगा कि अमित ही शायद अपने त्रस्त जीवन से तंग आ कर कुछ कह दे. लगा भी कि वह कुछ कहना चाहता था. लेकिन, कहा नहीं उस ने. बस, इतना ही कहा, ‘‘कालेज के दिन याद आते हैं तो तुम भी याद आती

हो. कम उम्र का वह निश्छल प्रेम, वह मित्रता अब कहां? अब तो

केवल गृहस्थी है. शादी है. और उस शादी को बचाने की हर

संभव कोशिश.’’

‘‘आज रुकोगे, तुम्हारा तो ससुराल है इसी शहर में,’’ सबीना ने पूछा.

‘‘नहीं, 4 बजे पेशी होते ही मजिस्ट्रेट के सामने समझौते के कागज पर दस्तखत कर के तुरंत निकलना पड़ेगा. 8 दिन बाद से कालेज की परीक्षाएं शुरू होने वाली हैं. फिर, बस खानापूर्ति के लिए, समाज के रस्मोरिवाज के लिए कानूनी दांवपेंच से बचने के लिए पत्नी को ले कर जाना है. ऐसी ससुराल में कौन रुकना चाहेगा. जहां सासससुर, बेटी के माध्यम से दामाद को जेल की सैर करा दी जा चुकी हो.’’ उस के स्वर में कुछ उदासी थी.

‘‘अब कब मुलाकात होगी?’’ सबीना ने पूछा.

इस घने अंधकार में उजाले का टिमटिमाता तारा लगा अमित. सबीना की आंखों में आंसू आ गए. आंसू तो अमित की आंखों में भी थे. सबीना ने आंसू छिपाते हुए कहा, ‘‘पता नहीं, अब कब मुलाकात होगी.’’

‘‘शायद ऐसे ही किसी मोड़ पर. जब मैं दर्द में डूबा हुआ रहूं और तुम मिल जाओ अचानक. जैसे आज मिल गईं. मैं तो तुम्हें देख कर पलभर को भूल ही गया था कि यहां किस काम से आया हूं. मेरी कोर्ट में पेशी है. अपनी बताओ, तुम कैसी हो?’’

सबीना उस के दुख को बढ़ाना नहीं चाहती थी अपनी तकलीफ बता कर. हालांकि, समझ चुका था अमित कि उस की दोस्त खुश नहीं है. ‘‘बस, जिंदगी मिली है, जी रही हूं. थोड़े दुख तो सब के हिस्से में आते हैं.’’

‘‘हां, यह ठीक कहा तुम ने,’’ अमित ने कहा.

‘‘मेरे कोर्ट जाने का समय हो गया, मैं चलता हूं.’’

‘‘कुछ कहना चाहते हो,’’ सबीना ने कुरेदना चाहा.

‘‘कहना तो बहुतकुछ चाहता था. लेकिन कमबख्त समय, स्थितियां, मौका ही नहीं देतीं,’’ आह सी भरते हुए अमित ने कहा.

‘‘फिर भी, कुछ जो अनकहा रह गया हो कभी,’’ सबीना ने कहा. सबीना चाहती थी कि वह अमित के मुंह से एक बार अपने लिए वह अनकहा सुन ले.

‘‘बस, यही कि तुम खुश रहो अपनी जिंदगी में. मैं भी कोशिश कर रहा हूं जीने की. खुश रहने की. जो नहीं कहा गया पहले. उसे आज भी अनकहा ही रहने दो. यही बेहतर होगा. झठी आस पर जी कर क्यों अपना जीना हराम करना.’’

दोनों की आंखों में आंसू थे और दोनों ही एकदूसरे से छिपाने की कोशिश करते हुए अपनीअपनी अंधेरी सुरंगों की तरफ बढ़ चले. जो पहले अनकहा रह गया था, आज भी अनकहा ही रह गया.

Valentine’s Day 2024 : रूह का स्पंदन – दीक्षा के जीवन की क्या थी हकीकत ? – भाग 3

अचानक सुदेश की नजर दक्षा पर पड़ी तो दोनों की नजरें मिलीं. ऐसा लगा, दोनों एकदूसरे को सालों से जानते हों और अचानक मिले हों. दोनों के चेहरों पर खुशी छलक उठी थी.

खातेपीते दोनों के बीच तमाम बातें हुईं. अब वह घड़ी आ गई, जब दक्षा अपने जीवन से जुड़ी महत्त्वपूर्ण बातें उस से कहने जा रही थी. वहां से उठ कर दोनों एक पार्क में आ गए थे, जहां दोनों कोने में पेड़ों की आड़ में रखी एक बेंच पर बैठ गए. दक्षा ने बात शुरू की, ‘‘मेरे पापा नहीं हैं, सुदेश. ज्यादातर लोगों से मैं यही कहती हूं कि अब वह इस दुनिया में नहीं है, पर यह सच नहीं है. हकीकत कुछ और ही है.’’

इतना कह कर दक्षा रुकी. सुदेश अपलक उसे ही ताक रहा था. उस के मन में हकीकत जानने की उत्सुकता भी थी. लंबी सांस ले कर दक्षा ने आगे कहा, ‘‘जब मैं मम्मी के पेट में थी, तब मेरे पापा किसी और औरत के लिए मेरी मम्मी को छोड़ कर उस के साथ रहने के लिए चले गए थे.

‘‘लेकिन अभी तक मम्मीपापा के बीच डिवोर्स नहीं हुआ है. घर वालों ने मम्मी से यह कह कर उन्हें अबार्शन कराने की सलाह दी थी कि उस आदमी का खून भी उसी जैसा होगा. इस से अच्छा यही होगा कि इस से छुटकारा पा कर दूसरी शादी कर लो.’’

दक्षा के यह कहते ही सुदेश ने उस की तरफ गौर से देखा तो वह चुप हो गई. पर अभी उस की बात पूरी नहीं हुई थी, इसलिए उस ने नजरें झुका कर आगे कहा, ‘‘पर मम्मी ने सभी का विरोध करते हुए कहा कि जो कुछ भी हुआ, उस में पेट में पल रहे इस बच्चे का क्या दोष है. यानी उन्होंने गर्भपात नहीं कराया. मेरे पैदा होने के बाद शुरू में कुछ ही लोगों ने मम्मी का साथ दिया. मैं जैसेजैसे बड़ी होती गई, वैसेवैसे सब शांत होता गया.

‘‘मेरा पालनपोषण एक बेटे की तरह हुआ. अगलबगल की परिस्थितियां, जिन का अकेले मैं ने सामना किया है, उस का मेरी वाणी और व्यवहार में खासा प्रभाव है. मैं ने सही और गलत का खुद निर्णय लेना सीखा है. ठोकर खा कर गिरी हूं तो खुद खड़ी होना सीखा है.’’

अपनी पलकों को झपकाते हुए दक्षा आगे बोली, ‘‘संक्षेप में अपनी यह इमोशनल कहानी सुना कर मैं आप से किसी तरह की सांत्वना नहीं पाना चाहती, पर कोई भी फैसला लेने से पहले मैं ने यह सब बता देना जरूरी समझा.

‘‘कल कोई दूसरा आप से यह कहे कि लड़की बिना बाप के पलीबढ़ी है, तब कम से कम आप को यह तो नहीं लगेगा कि आप के साथ धोखा हुआ है. मैं ने आप से जो कहा है, इस के बारे में आप आराम से घर में चर्चा कर लें. फिर सोचसमझ कर जवाब दीजिएगा.’’

सुदेश दक्षा की खुद्दारी देखता रह गया. कोई मन का इतना साफ कैसे हो सकता है, उस की समझ में नहीं आ रहा था. अब तक दोनों को भूख लग आई थी. सुदेश दक्षा को साथ ले कर नजदीक की एक कौफी शौप में गया. कौफी का और्डर दे कर दोनों बातें करने लगे तभी अचानक दक्षा ने पूछा था, ‘‘डू यू बिलीव इन वाइब्स?’’

सुदेश क्षण भर के लिए स्थिर हो गया. ऐसी किसी बात की उस ने अपेक्षा नहीं की थी. खासकर इस बारे में, जिस में वह पूरी तरह से भरोसा करता हो. वाइब्स अलौकिक अनुभव होता है, जिस में घड़ी के छठें भाग में आप के मन को अच्छेबुरे का अनुभव होता है. किस से बात की जाए, कहां जाया जाए, बिना किसी वजह के आनंद न आए और इस का उलटा एकदम अंजान व्यक्ति या जगह की ओर मन आकर्षित हो तो यह आप के मन का वाइब्स है.

यह कभी गलत नहीं होता. आप का अंत:करण आप को हमेशा सच्चा रास्ता सुझाता है. दक्षा के सवाल को सुन कर सुदेश ने जीवन में एक चांस लेने का निश्चय किया. वह जो दांव फेंकने जा रहा था, अगर उलटा पड़ जाता तो दक्षा तुरंत मना कर के जा सकती थी. क्योंकि अब तक की बातचीत से यह जाहिर हो गया था. पर अगर सब ठीक हो गया तो सुदेश का बेड़ा पार हो जाएगा.

सुदेश ने बेहिचक दक्षा से उस का हाथ पकड़ने की अनुमति मांगी. दक्षा के हावभाव बदल गए. सुदेश की आंखों में झांकते हुए वह यह जानने की कोशिश करने लगी कि क्या सोच कर उस ने ऐसा करने का साहस किया है. पर उस की आंखो में भोलेपन के अलावा कुछ दिखाई नहीं दिया. अपने स्वभाव के विरुद्ध उस ने सुदेश को अपना हाथ पकड़ने की अनुमति दे दी.

दोनों के हाथ मिलते ही उन के रोमरोम में इस तरह का भाव पैदा हो गया, जैसे वे एकदूसरे को जन्मजन्मांतर से जानते हों. दोनों अनिमेष नजरों से एकदूसरे को देखते रहे. लगभग 5 मिनट बाद निर्मल हंसी के साथ दोनों ने एकदूसरे का हाथ छोड़ा. दोनों जो बात शब्दों में नहीं कह सके, वह स्पर्श से व्यक्त हो गई.

जाने से पहले सुदेश सिर्फ इतना ही कह सका, ‘‘तुम जो भी हो, जैसी भी हो, किसी भी प्रकार के बदलाव की अपेक्षा किए बगैर मुझे स्वीकार हो. रही बात तुम्हारे पिछले जीवन के बारे में तो वह इस से भी बुरा होता तब भी मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ता. बाकी अपने घर वालों को मैं जानता हूं. वे लोग तुम्हें मुझ से भी अधिक प्यार करेंगे. मैं वचन देता हूं कि बचपन से ले कर अब तक अधूरे रह गए सपनों को मैं हकीकत का रंग देने की कोशिश करूंगा.’’

सुदेश और दक्षा के वाइब्स ने एकदूसरे से संबंध जोड़ने की मंजूरी दे दी थी.

एक साथी की तलाश : आखिर मधुप और बिरुवा का रिश्ता था क्या ? – भाग 3

उन्होंने चौंक कर श्यामला की तरफ देखा, एक हफ्ते बाद सीधेसीधे श्यामला का चेहरा देखा था उन्होंने. एक हफ्ते में जैसे उस की उम्र 7 साल बढ़ गई थी. रोतेरोते आंखें लाल, और चारों तरफ कालेस्याह घेरे.

‘यह क्या कर रही हो तुम श्यामला, छोटी सी बात को तूल दे रही हो?’ उस की ऐसी शक्ल देख कर वे थोड़े पसीज गए थे, ‘सब ठीक हो जाएगा.’ वे धीरे से उस को कंधों से पकड़ कर बोले.

‘क्या ठीक हो जाएगा’, उस ने हाथ झटक दिए थे, ‘मैं अब यहां नहीं रह सकती. घर में रखे सामान की तरह आप की बंदिशें किसी समय मेरी जान ले लेंगी. मेरे तन के साथसाथ मेरे मनमस्तिष्क पर भी बंदिशें लगा दी हैं आप ने. मैं आप से अलग कहीं जाना तो दूर की बात है, आप से अलग सोच तक भी नहीं सकती लेकिन अब मुझ से नहीं हो पाएगा यह सब.’

तो अब क्या करना चाहती हो,’ वे व्यंग्य से बोले.‘मैं यहां से जाना चाहती हूं आज ही,  अपना घर संभालो. आप जब औफिस से आओगे तो मैं नहीं मिलूंगी,’

‘तुम्हें जो करना है करो, जब सोच लिया तो मुझ से क्यों कह रही हो,’ कह कर मधुप दनदनाते हुए औफिस चले गए. वे हमेशा की तरह जानते थे कि श्यामला ऐसा कभी नहीं कर सकती, इतनी हिम्मत नहीं थी श्यामला के अंदर कि वह इतना बड़ा कदम उठा पाती.

लेकिन अपनी पत्नी को शायद वे पूरी तरह नहीं जानते थे. उस दिन उन की सोच गलत साबित हुई. बिना स्पंदन व जीवंतता के रिश्ते आखिर कब तक टिकते. जब वे औफिस से लौटे तो श्यामला जा चुकी थी. घर में सिर्फ बिरुवा था.

‘श्यामला कहां है?’ उन्होंने बिरुवा से पूछा.‘मालकिन तो चली गईं साहब, कह रही थीं, पुणे जा रही हूं हमेशा के लिए.’वे भौचक्के रह गए.

‘ऐसा क्या हुआ साहब, मालकिन क्यों चली गईं?’‘कुछ नहीं बिरुवा.’ क्या समझाते बिरुवा को वे.

थोड़े दिन उस के लौट आने का इंतजार किया. फिर फोन करने की कोशिश की. श्यामला ने फोन नहीं उठाया. मिलने की कोशिश की, श्यामला ने मिलने से इनकार कर दिया. धीरेधीरे उन दोनों के बीच की दरार बढ़तीबढ़ती खाई बन गई. दोनों 2 किनारों पर खड़े रह गए. मनाने की उन की आदत थी नहीं जो मना लाते. नौकरी की व्यस्तता में एक के बाद एक दिन व्यतीत होता रहा. एक दिन सब ठीक हो जाएगा, श्यामला लौट आएगी, यह उम्मीद धीरेधीरे धुंधली पड़ती गई. उस समय श्यामला की उम्र 41 साल थी और वे स्वयं 45 साल के थे. तब से एकाकी जीवन, नौकरी और बिरुवा के सहारे काट दिया उन्होंने. बच्चों के भविष्य की चिंता ने श्यामला को किसी तरह बांध रखा था उन से. उन के कैरियर का रास्ता पकड़ने के बाद वह रुक नहीं पाई. इतना मजबूत नहीं था शायद उन का और श्यामला का रिश्ता.

श्यामला को रोकने में उन का अहं आड़े आया था. लेकिन बिरुवा को उन्होंने घर से कभी जाने नहीं दिया. उस का गांव में परिवार था पर वह मुश्किल से ही गांव जा पाता था. उन के साथ बिरुवा ने भी अपनी जिंदगी तनहा बिता दी थी. बच्चों ने अपनी उम्र के अनुसार मां को बहुतकुछ समझाने की कोशिश भी की पर श्यामला पर बच्चों के कहने का भी कोई असर नहीं पड़ा. वे इतने बड़े भी नहीं थे कि कुछ ठोस कदम उठा पाते. थकहार कर वे चुप हो गए. कुछ छुट्टियां मां के पास, कुछ छुट्टियां पिता के पास बिता कर वापस चले जाते.

श्यामला के मातापिता ने भी शुरू में काफी समझाया उस को. लेकिन श्यामला तो जैसे पत्थर सी हो चुकी थी. कुछ भी सुनने को तैयार न थी. हार कर उन्होंने घर का एक कमराकिचन उसे रहने के लिए दे दिया. कुछ पैसा उस के नाम बैंक में जमा कर दिया. बच्चों का खर्चा तो बच्चों के पिता उठा ही रहे थे.

बेटों की इंजीनियरिंग पूरी हुई तो वे नौकरियों पर आ गए. आजकल एक बेटा मुंबई व एक जयपुर में कार्यरत था. बेटों की नौकरी लगने पर वे जबरदस्ती मां को अपने साथ ले गए. वे कई बार सोचते, श्यामला उन के साथ अकेलापन महसूस करती थी, तो क्या अब नहीं करती होगी. ऐसा तो नहीं था कि उन्हें श्यामला या बच्चों से प्यार नहीं था. पर चुप रहना या शौकविहीन होना उन का स्वभाव था. अपना प्यार वे शब्दों से या हावभाव से ज्यादा व्यक्त नहीं कर पाते थे. लेकिन वे संवेदनहीन तो नहीं थे. प्यार तो अपने परिवार से वे भी करते थे. उन के दुख से चोट तो उन को भी लगती थी. श्यामला के अलग चले जाने पर भी उस के सुखदुख की चिंता तो उन्हें तब भी सताती थी.

दोनों बेटों ने प्रेम विवाह किए. दोनों के विवाह एक ही दिन श्यामला के मायके में ही संपन्न हुए. हालांकि बच्चों ने उन के पास आ कर उन्हें सबकुछ बता कर उन की राय मान कर उन्हें पूरी इज्जत बख्शी पर उन के पास हां बोलने के सिवा चारा भी क्या था. बिना मां के वे अपने पास से बच्चों का विवाह करते भी कैसे. उन्होंने सहर्ष हामी भर दी. जो भी उन से आर्थिक मदद बन पड़ी, उन्होंने बच्चों की शादी में की. और 2 दिन के लिए जा कर शादी में परायों की तरह शरीक हो गए.

जब से श्यामला बच्चों के साथ रहने लगी थी, वे उस की तरफ से कुछ निश्चिंत हो गए थे. बेटों ने उन्हें भी कई बार अपने पास बुलाया. पर पता नहीं उन के कदम कभी क्यों नहीं बढ़ पाए. उन्हें हमेशा लगा कि यदि उन्होंने बच्चों के पास जाना शुरू कर दिया तो कहीं श्यामला वहां से भी चली न जाए. वे उसे फिर से इस उम्र में घर से बेघर नहीं करना चाहते थे.

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