जीवन में बहुत से संबंध जन्म से बनते हैं. मांपिता, भाईबहन और मां व पिता के संबंधियों से संबंध जन्म से अपनेआप बनते चले जाते हैं और इसी के साथ ढेरों चाचाचाची, ताऊ चचेरेममेरे भाईबहन, भाभियां, मौसियां, मौसा, फूफा, बूआ के संबंध बन जाते हैं. इन संबंधों को निभाने और इन में खटपट होने का अंदेशा कम होता है क्योंकि ये मांबाप के इशारे पर बनते हैं जो प्रगाढ़ होते हैं.

लेकिन शादी के बाद एक लड़की का इन संबंधियों से एक नया रिश्ता बनता है. रिश्ता तो लड़के का भी लड़की के संबंधियों से बनता है पर वह मात्र औपचारिक होता है. शादी होने पर लड़की का जो रिश्ता लड़के के संबंधियों से बनता है, वह कुछ और माने रखता है.

सास और ससुर से संबंध इस मामले में सब से बड़ा और महत्त्वपूर्ण होता है. लड़के का संबंध अपने मांबाप से नैसर्गिक, नैचुरल होता है, 20-30 साल पुराना होता है, लेकिन उस की पत्नी को उन (सासससुर) से संबंध एक दिन में बनाना होता है जिस की न कोई तैयारी होती है न ट्रेनिंग. लड़की चाहे सास खुद पसंद कर के लाए या सास का लाड़ला अपनी मां की सहमति या असहमति से लाए, संबंध को निभाने की जिम्मेदारी अकेली उसी यानी नई पत्नी की होती है.

यह एक बड़े पेड़ के प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) की तरह होता है. अब तक मनुष्य पेड़ों को इधर से उधर जड़ समेत नहीं ले जाता था, नए लगाना वह आसान समझता था क्योंकि हाल तक यह माना जाता था कि जिस पेड़ की जड़ें जमीन में गहरे तक गई हुई हैं, उसे दूसरी जगह ले जाना और फिर उस का फलनाफूलना असंभव सा है. लेकिन हाल में तकनीक विकसित हुई है कि पेड़ को जड़ समेत एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है, हालांकि, इस प्रक्रिया में बहुत से पेड़ मुरड़ जाते हैं.

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