बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने 2001 में मायावती को अपना उत्तराधिकारी चुना था. उस समय तक मायावती ने अपनी योग्यता साबित कर दी थी. 2 बार वे उत्तर प्रदेश जैसे बड़े सूबे की मुख्यमंत्री रह चुकी थीं. पार्टी संगठन पर उन की पकड़ मजबूत बन चुकी थी. बसपा कैडर आधारित पार्टी थी तो हर किसी ने कांशीराम के फैसले को स्वीकार कर लिया था.

2023 में जब मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को अपना उत्तराधिकारी चुना तो उस की एक ही योग्यता है कि वह मायावती के भाई आनंद कुमार का बेटा और मायावती का भतीजा है.

आकाश आनंद ने बसपा के संगठन में किसी तरह का काम नहीं किया है. लदंन से एमबीए करने के कारण उस का देश में समाज के लोगों के बीच काम करने का कोई खास अनुभव भी नहीं है. जिन हालात को मायावती ने झेला उन से आकाश आनंद का इत्तफाक नहीं पड़ा. दलित बिरादरी के जमीनी अनुभव भी उस के पास नहीं है. ऐसे में दलित समस्याओं को समझना उस के लिए सरल नहीं होगा.

ऐसा ही एक उदाहरण लोकदल के सामने है. चौधरी चरण सिंह ने जब अपने बेटे चौधरी अजीत सिंह को पार्टी की बागडोर सौंपी तो वे पिता की राजनीति को आगे नहीं बढ़ा पाए क्योंकि राजनीति का अनुभव उन को नहीं था. अजीत सिंह ने अपने बेटे जंयत चौधरी को पार्टी सौंपी तो वे भी उसी तरह रह गए. राजनीति में जो जुझारुपन चाहिए वह आकाश आनंद, जयंत चौधरी जैसे नेताओं में नहीं दिखता है. ऐेसे में पूरी पार्टी एक या दो सीट पर आ कर सिमट जाती है.

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