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खामोशी को कहने दो

आंखों ही आंखों में कुछ
इशारेइशारे होने दो
मौन शब्द होंठों में
जो बात है दिल में
एहसास प्यार का होने दो
 
चांदनी रात सुहानी
मदभरी हवा को गाने दो
दो दिल मिल रहे हैं
सांसों में सांसें घुल रही हैं
पल सा इन्हें थमने दो
 
होंठों को छू के हलके से
प्यार की प्यास बुझने दो
हाथों में हाथ रेशम सा
स्पर्श मदिर मधुर सा
एकदूजे में खो जाने दो
 
कुछ न कहो आज
खामोशी को कहने दो.
मीना खोंड

इन्हें भी आजमाइए

  1. एकदूसरे से बातचीत कर के, रुचिपूर्वक सुन कर, प्रश्न पूछ कर बहुत कुछ सीखा जा सकता है. बातचीत जितने विविध विषयों पर होगी उतनी ही रोचक होगी. हम अपने आसपास के माहौल व समाचारों के प्रति जितने ज्यादा सजग होंगे हमें वार्त्तालाप में हिस्सा ले कर उतना ही आनंद आएगा.
  2. यदि आप के बच्चे की उम्र काफी कम हो तो बच्चों की किसी पार्टी में जाने पर पूरे समय उस के साथ रहें, अन्यथा बच्चे को मेजबान के घर अन्य बच्चों के साथ छोड़ दें और वहां से थोड़ी देर बाद, जब बच्चा सब के बीच घुलमिल जाए तो वापस आ जाएं.
  3. अस्पताल में रोगी के स्वास्थ्य के विषय में पूछते समय उस
  4. का मनोबल बढ़ाएं. हलकीफुलकी बातचीत से रोगी का चित्त प्रसन्न करने का प्रयास करें. लेकिन अपने इस प्रयास की अति भी न करें.
  5. पड़ोसियों को बिना पूछे और हर बात में उन्हें ‘नेक सलाह’ न देने लगें. शिष्टाचार यही है कि अपने कान और आंखें तो खुली रखें पर मुंह तभी खोलें जब आप से सलाह मांगी जाए.
  6. होली खेलने से पूर्व नाश्ता प्लेटों में लगा कर रख लें ताकि आने वाले मेहमानों को शीघ्र ही खिलाया जा सके.
  7. अगर आप बात करने वाले से महज कुछ ही कदमों की दूरी पर हों तो मोबाइल के इस्तेमाल से बचें.

बात ऐसे बनी

हम कुछ सामान लेने सुनार की दुकान गए थे. सामान खरीदने के बाद हम ने उसे रुपए दिए. उस ने रुपए गिनने शुरू किए. हम सब उसे ही देख रहे थे कि रुपए पूरे हैं या नहीं. दुकानदार ने गिनती पूरी की और गिनती खत्म होते ही पास रखे पैन को उठा कर सब से ऊपर के नोट पर वह संख्या लिखने ही वाला था कि मेरे मुंह से निकला, ‘‘रुकिए, कृपया नोट पर संख्या न लिखें.’’
दुकानदार को मेरे टोकने पर बुरा लगा. वह बोला, ‘‘क्यों?’’
मैं ने उसे बताया, ‘‘यह हमारी राष्ट्रीय मुद्रा है और इस पर हमें कुछ लिखना नहीं चाहिए.
वह कहने लगा, ‘‘बैंक वाले भी तो नोटों की गड्डी बना कर उस पर लिखते हैं.’’
मैं ने कहा, ‘‘अगर ऐसा है तो वे भी गलत करते हैं, आप भी उन्हें टोक दीजिए.’’ दुकानदार मेरी बात समझ गया और उस ने कहा कि आगे से वह ऐसा नहीं करेगा.
मैं ऐसे सभी लोगों से कहना चाहती हूं कि कृपया ऐसा न करें और राष्ट्रीय मुद्रा का सम्मान करें. रुपयों के बराबर के कागज काट कर साथ रखें और उन्हें गड्डी के सब से ऊपर लगा कर रबड़ बैंड से बांध दें.
वंदना मानवटकर, सिवनी (म.प्र.)
बचपन से मन में शिक्षक बनने की तमन्ना थी. मैं मेहनत और लगन से पढ़ाई करता रहा. जब मैं बीएससी में था तो टीचर्स टे्रनिंग के लिए टे्रनिंग कालेज में फौर्म भरा. मेरा टे्रनिंग कालेज में नामांकन करने का फौर्म, नामांकन तिथि समाप्त हो जाने के बाद मिला. मैं बहुत निराश हो गया.
मैं ने यह बात पिताजी से बताई. पिताजी ने कहा, ‘‘ठहरो, मैं अपने दोस्त गोपाल बाबू से मिलता हूं.’’ संयोग से वे पटना से छुट्टी ले कर आए हुए थे. जैसे ही पिताजी ने मेरी समस्या बताई तो उन्होंने कहा, ‘‘चलिए, कल जिला शिक्षा पदाधिकारी से मिलते हैं.’’
उन्होंने मुझे जिला शिक्षा पदाधिकारी से मिलवाया. जिला शिक्षा पदाधिकारी ने मुझे एक बार गौर से देखा. मुझ से बिना कुछ पूछे ही मुझे नामांकन फौर्म भरने का आदेश दे दिया. आज मैं एक कुशल शिक्षक के रूप में कार्यरत हूं.
अशोक कुमार महतो, रांची (झारखंड)
मैंअपने परिवार में पापा की सब से लाड़ली बेटी थी. लेकिन प्रेम विवाह करने के कारण पापा का मेरे से लगाव कम हो गया. लेकिन आज 4 साल बाद जब मैं ने एक बेटी को जन्म दिया तो पापा का वही पुराना प्यार मुझे फिर से मिलने लगा है. दरअसल मेरा ससुराल मायके से बहुत दूर है तो मैं ने अपने पति से कहा कि पापा के घर के पास ही अपना घर ले लेंगे तो मेरे पति बोले कि रिश्तों में मिठास थोड़ी दूरियों से ही बनती है. बाकी जब तुम्हारा दिल हो मिल आया करो. बात मेरे दिल को भा गई.
एक पाठिका 

प्रेम गली अति सांकरी (पहली किस्त)

एक सौतन के साथ अपने पति को शेयर करने में कितनी हिम्मत चाहिए, यह मैं अब जान पाई हूं. बचपन से ही मैं ने मां को तिलतिल मरते देखा है, पापा से हर दिन लड़ते देखा है और अपने हक के लिए दिनरात कुढ़ते देखा है. जब एक म्यान में दो तलवारें ठूंस दी जाएंगी तो वे एकदूसरे को काटेंगी ही. उसी तरह एक पत्नी के होते हुए दूसरी पत्नी लाई जाएगी तो उन के दिलों में हड़कंप मचना स्वाभाविक है.

पापा को सच में मां से प्यार या सहानुभूति होती तो वे मां की सौतन को घर लाने के बारे में सोचते ही न. जब सबकुछ बरसों तक अनैतिक चलता रहा, फिर माफी मांगने से मेरी मां भला उन्हें कैसे माफ करती. प्रेम में क्षमा न तो दी जा सकती है और न ही मांगने से मिलती है. प्रेम या तो होता है या नहीं होता. कभी खुशी कभी गम वाली बीच की स्थिति में हजारों लोग जीते हैं, उन में प्रेम नहीं बल्कि सैक्स एकदूसरे का काम चलाता है. सैक्स को प्रेम मान लेना शादी की असफलता की बहुत भारी भूल है.

औरतें स्वभाव से भावुक होती हैं. हरेक बात अपने आसपास के लोगों से शेयर कर लेती हैं. हम लोग अभी बच्चे ही थे कि मां और पापा में किसी तीसरी औरत को ले कर ठन गई थी. मां ने उसे कभी नाम से नहीं पुकारा. मां हमेशा उसे ‘वह’ कहती थीं. उसे हमेशा नफरत और हिकारत की नजरों से देखतीं. ‘वह’ पापा के औफिस में काम करती थी. पापा औफिस में सीनियर औफिसर थे. हर तरफ उन का दबदबा था.

जब मैं 7 साल की थी तब पापा मुझे कभीकभार अपने साथ औफिस ले जाते थे. पापा मुझे अपने औफिस की अन्य महिला सहयोगियों से मिलवाते. वे मेरा खूब स्वागत करतीं. मुझ से प्यारभरी बातें करतीं.

‘वह’ उन सब में सब से अलग थी. मुझे उस के पास छोड़ कर पापा बहुत खुश होते. वह मुझे देखते ही खिल जाती थी. ‘वह’ मुझे गोद में उठा लेती. मेरा मुंह बारबार चूमती और मुझे चौकलेट ले कर देती या कैंटीन से कोल्ड डिं्रक मंगवाती. पूरे दफ्तर में मुझे ‘वह’ सब से ज्यादा प्यारी लगती थी.

एक दिन मैं उस की गोद में बैठी थी. ‘वह’ पापा के कैबिन में कुरसी पर बैठी थी. पापा भी पास ही खड़े थे. उस ने मुझ से पूछा, ‘क्या तुम भी मेरे साथ रहना पसंद करोगी, अगर तुम्हारे पापा मेरे साथ मेरे घर में रहने लगें तो?’ बहुत ही बेढंगा प्रस्ताव था उस का. मैं चक्कर में पड़ गई, हां कहूं या ना. मैं सकपका गई और घबरा कर उस की गोदी से नीचे उतर गई थी.

मां अकसर मेरी बड़ी बहन से ‘उस के’ बारे में बातें करती थीं. मैं तब समझती थी कि मां उस से जलती हैं. ‘वह’ सुंदर थी, उस के पास कीमती गहने थे, वह आकर्षक थी और हमेशा नए फैशन के कपड़े पहनती थी. मैं सोचती थी कि ‘वह’ मुझ से खास स्नेह रखती थी, इसलिए मां को चिंता थी कि कहीं ‘वह’ मुझे उस से छीन न ले.

असली बात मुझे तब पता चली जब मैं थोड़ी बड़ी हुई. मां और पापा के झगड़े भयानक तेवर लेने लगे थे. उन के बहस के केंद्र में हमेशा ‘वह’ होती. मां पापा को कोसतीं, गुस्से में कहतीं कि उन के दफ्तर की स्त्रियों से संबंध हैं. कई दिनों तक मां और पापा रूठे रहते जिस का असर हम दोनों बहनों पर पड़ता.

पापा की उस प्रेमिका ने हमारे घर में तूफान ला दिया था. हर वक्त घर में कोहराम मचा रहता था. पापा हमेशा कसमें खाते कि उन का ‘उस से’ कोई संबंध नहीं है. मां इधरउधर दफ्तर के लोगों से पूछताछ करतीं. वे लोग उन्हें सच क्यों बताने लगे.

 

कुछ दिन पापा मां के प्रति वफादार रहते मगर उस के बाद उन का असली रंग सामने आ जाता. मां जासूसी करतीं. वे पापा को पकड़ ही लेतीं. कभी पापा ‘उस के’ साथ कैफे में मिल जाते तो कभी किसी सिनेमाहाल के बाहर.

मामला घूमनेफिरने या फिल्म देखने तक ही सीमित नहीं रहा. पापा उस के साथ शुरूशुरू में रातभर कहीं रहने लगे तो मां ने आसमान सिर पर उठा लिया. घर में खाना न बनता. मां चीखतींचिल्लातीं, घर की कई चीजें तोड़ देतीं. हम बच्चों को बेवजह पीटने लगतीं.

पापा सिर झुकाए सब कुछ सहते, चुपचाप सिगरेट फूंकते रहते. बहुत देर तक टैनिस की बौल की तरह इधर से उधर टप्पे खाखा कर मां गला फाड़फाड़ कर अंत में थक जातीं मगर पापा को कोई फर्क न पड़ता.

अगले कुछ दिनों में मां को कीमती उपहार दे कर, आगे से सुधरने का वचन दे कर पापा मां को मना लेते. कुछ दिन मां खुश रहतीं मगर फिर कोई न कोई बात मां के कानों में पड़ ही जाती. फिर वही सबकुछ दोहराया जाता. मां की गालियां सुन कर भी पापा ने अपनी मिस्ट्रैस को छोड़ा नहीं.

उस दिन तो ‘उस ने’ बड़ी हिम्मत दिखाई. ‘वह’ एक दिन हमारे घर के दरवाजे पर आ खड़ी हुई. मैं ने दरवाजे के बाहर उसे अपनी तरफ मुसकराते देखा. घर में एक मैं ही थी जिस के मन में ‘उस के’ प्रति कोई प्रतिकार या नफरत की भावना नहीं थी.

उस के पेट के निचले हिस्से में आए उभार को देख कर मैं खुश हो उठी. मुझे मालूम था कि बच्चे मां के पेट में ही पलते व बढ़ते हैं. मां ने कुछ सप्ताह पहले ही मेरे छोटे भाई को जन्म दिया था.

मैं आश्वस्त थी कि पापा की मित्र भी जल्दी ही एक प्यारे से बच्चे को जन्म देगी. अब तक मैं ‘उसे’ पापा के औफिस की परिचित व मित्र मानती थी, जैसे हम बच्चों के स्कूल में लड़केलड़कियां मित्र होते हैं. यह तो काफी दिनों बाद मुझे बताया गया कि ‘उसे’ पापा ने ही गर्भवती बनाया था और एक विवाहित आदमी के लिए ऐसा काम अनैतिक व घृणित था. उस के बाद मैं ने ‘उसे’ नफरत की निगाहों से देखना शुरू कर दिया था.

 

उस दिन ‘वह’ पक्के इरादे के साथ हमारे घर आई थी. वह दरवाजे पर आश्वस्त हो कर खड़ी थी. उस ने मुझ से पापा के बारे में पूछा. उस के कसे हुए चुस्त कपड़े देख कर मैं उस की तरफ आकर्षित हुई. मैं हैरान थी कि ‘वह’ हमारे घर के अंदर क्यों नहीं आ रही थी.

मैं ने मां को बुलाया. ‘उसे’ घर के बाहर पा कर मां तो भड़क गईं. वे उस पर बुरी तरह चीखनेचिल्लाने लगीं. मां ने उसे धमकाया कि अगर ‘वह’ दोबारा इधर दिखी तो वे पुलिस को बुला लेंगी. ‘वह’ शांत बनी नीची नजर से धरती की तरफ देखती रही. उस की आंखें हमारे घर के अंदर कुछ ढूंढ़ रही थीं. उसे पता था कि मेरे पापा अंदर ही होंगे.

मां के इस प्रहार से एक मिनट के लिए तो वह घबरा गई. वह कुछ कहना चाहती थी मगर मां ने उसे मुंह खोलने का अवसर ही नहीं दिया. उस ने अपमान का कड़वा घूंट चुपचाप पी लिया.

वह चुपचाप वापस चली गई. पिछले एक सप्ताह से मां और पापा के बीच ‘उसे’ ले कर घमासान चल रहा था. पापा औफिस नहीं गए थे. मां उन्हें बाहर जाने नहीं दे रही थीं. सो, वह उन का पता करने आई थी. उस नादान उम्र में मैं साफ नहीं जान पाती थी कि बड़े लोग एकदूसरे के साथ कैसेकैसे खेल खेलते हैं. उन का व्यवहार हम बच्चों की समझ से बाहर था.

पापा की इस लंपट प्रवृत्ति के कारण हमारे घर में सदा शीतयुद्ध छिड़ा रहता था. पापा के अन्य स्त्रियों से भी अनैतिक संबंध थे और मां ने अपने विवाहित जीवन के पहले 10 वर्ष पापा की इन इश्कमिजाज पहेलियों को सुलझाने में ही होम कर दिए थे. रोमांस उन के जीवन से कोसों दूर था.

मां गोरीचिट्टी और जहीन दिमाग की भद्र महिला थीं. मगर पापा को तो तीखी व तुर्श स्त्रियां भाती थीं. पापा तो मां की सहेलियों से भी रोमांटिक संबंध बना लेते और फोन पर बतियाते रहते. मां किसकिस सौतन से उन का बचाव करतीं.

‘वह’ पापा के रोमांस की धुरी बन कर रह गई. पापा उस से बहुत ज्यादा हद तक ‘इन्वौल्व’ थे. ‘उस के’ लिए वे मां व हम बच्चों को छोड़ देने को तैयार थे. मां ने कई बार पापा को छोड़ देने की बात की, कोशिश भी की.

पापा ने उन्हें उकसाया भी मगर 90 के दशक में एक मध्यवर्ग की औरत के लिए इतना आसान नहीं था कि वह एक आवारा भंवरेरूपी पति से छुटकारा पा सके और खासकर तब जब उस के 3 बच्चे हों.

पापा सच में शैतान का अवतार थे. उन्होंने एक ही समय में 2-2 औरतों को गर्भवती बना दिया था. मां के साथ तो चलो ठीक था, वे उन की कानूनी पत्नी थीं मगर ‘उसे’ अपनी हवस का शिकार बना कर कहीं का नहीं छोड़ा.

अपना बढ़ता हुआ पेट ले कर वह कहीं नहीं जा सकती थी. औफिस से उस ने छुट्टी ले रखी थी. आसपड़ोस में बदनामी हो रही थी. ‘उस के’ मांबाप ने उसे काफी साल पहले त्याग दिया था. वे उस की शादी अच्छी जगह करना चाहते थे मगर पापा से रोमांटिक तौर पर जुड़ने के चलते ‘उस ने’ आने वाले रिश्तों को ठुकरा दिया था.

‘उस में’ बला की हिम्मत थी और गजब का आत्मविश्वास. जब उस ने फैसला किया कि वह पापा के नाजायज बच्चे को जन्म देगी तो पापा ने उसे कितना समझाया होगा मगर वह बच्चा गिराने के पक्ष में नहीं थी. बेचारी को तब पता नहीं था कि उस का सामना कितने बड़े तूफान से होने वाला था. मगर उसे यों गुमनामी के अंधेरों में धकेला जाना अच्छा नहीं लगा. उस ने जम कर संघर्ष करना शुरू कर दिया था.

वह 25 बरस की थी और पापा 40 पार कर चुके थे. ‘उस में’ इतनी समझ तो थी ही कि ‘वह’ एक बंद गली के पार नहीं जा पाएगी मगर अब जब उस ने पापा से प्यार कर ही लिया था तो पीछे किस तरफ लौटती.

पापा अभी हम लोगों को छोड़ने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थे. एक कुंआरी लड़की का मां बनने का यह साहसभरा फैसला विवाहित लोगों के लिए चुनौती ही था क्योंकि सिंगल पेरैंट बनने की यह आधुनिक संकल्पना अभी काफी दूर थी.

पापा ने मां और हम से कड़ी बेरुखी दिखानी शुरू कर दी थी. वे अपनी मिस्ट्रैस को ज्यादा तवज्जुह देने लगे थे. जब मेरा छोटा भाई मां के पेट में था तब पापा कईकई दिन घर से बाहर रहते. जब बच्चा पैदा हुआ तब हमारे पड़ोस की आंटी मां के पास अस्पताल में थीं. मां को पता था कि पापा कहां हैं और किस के पास हैं.

बच्चा पैदा होने के 2 सप्ताह बाद पापा घर लौटे. मां ने पापा को बुलाना बंद कर दिया था. कोई वादप्रतिवाद नहीं हुआ. पापा को इस से कुछ ज्यादा ही शह मिली. अब उन्होंने अपना समय इस तरह बांट लिया था कि ज्यादा समय वे ‘उस के’ साथ बिताते.

अगर हमारे पास कुछ ज्यादा समय के लिए ठहर जाते तो उन की मिस्ट्रैस उन्हें ढूंढ़ते हुए हमारे घर पहुंच जाती. अगर पापा अपनी चहेती के घर ज्यादा दिनों तक टिके रहते तो मां कभी उन की छानबीन न करतीं. पापा घर में न होते तो घर में शांति बनी रहती.

पापा आते और सारी की सारी सैलरी मां को सौंप देते. ‘वह’ नौकरी करती थी, सो पापा का सारा खर्च वही उठाती थी. मां ने कभी पैसे की तंगी नहीं झेली. अच्छा मकान था और अच्छी आय, साथ में सारे बच्चे भी मां की तरफ ही थे.

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मां ने पापा को इधरउधर मुंह मारने के लिए लंबी रस्सी थमा रखी थी और मन ही मन उन्हें पता भी था कि थकहार कर एक दिन उन का पति पूरी तरह उन के पास लौट आएगा. मां ने अगर पापा के साथ सख्त रवैया अपनाया होता तो हो सकता था कि पापा इतनी देर तक लंपट नहीं रहते. मां के ढुलमुल रवैये के कारण पापा बेलगाम होते गए.

और तभी मां के सब्र का प्याला भर गया. मां और पापा में एक दिन खूब झगड़ा हुआ. मां ने बताया कि पापा उस से जबरदस्ती करना चाहते थे. मां भड़क गईं, ‘उसे’ भलाबुरा कहने लगीं. पापा ने हाथ चला दिया तो मां ने आसमान सिर पर उठा लिया.

मैं स्कूल से घर आई तो पाया कि मां घर पर नहीं हैं. पापा मेरे छोटे भाई की नैपी बदल रहे थे. उन की हालत काफी दयनीय थी. मैं ने दबी जबान में पूछा, ‘मां कहां हैं?’

पापा का सख्त व रूखा जवाब था, ‘चली गई है.’

मेरे पैरों तले जमीन डोल गई. कांपती आवाज में मैं ने फिर पूछा, ‘मां कहां चली गईं?’

पापा का गुस्से से भरा उत्तर था, ‘बस चली गई.’

पापा ने हम दोनों बहनों के लिए खाना बनाया जो हमें बिलकुल अच्छा नहीं लगा. पिछले कितने महीनों से पापा हम से बेरुखी से बात करते थे.

घर का मालिक अपनी कमाई से परिवार के लिए सुविधाएं जुटाता है और इस के जरिए अपनी ताकत बढ़ाता है और इसी ताकत के आगे गिरवी पड़ी रहती है बच्चों की मां. हमारे लिए तो मां ही सबकुछ थीं. अब मां पता नहीं कहां होंगी. कहीं नानी के पास तो नहीं चली गईं. वहां तो जाने में ही 2 दिन लगते हैं और आने में भी समय लगता है. इतने दिनों तक हम कैसे रहेंगी? क्या पापा उन्हें मना कर लाएंगे?

 

अगले दिन भी मां नहीं लौटीं तो हम दोनों बहनों की चिंता बढ़ गई. पापा ने पिछले कई महीनों में हम से ढंग से बात नहीं की थी. हम तैयार हो कर स्कूल चली गईं. पापा ने घर की चाबियां पड़ोस में दीं व हमारे छोटे भाई को ले कर चले गए और रातभर नहीं लौटे.

पड़ोस की आंटी ने हमें खाना खिलाया. मां की हमें बुरी तरह याद आ रही थी. पता नहीं उन से मिलना हो पाएगा या नहीं.

अगले दिन स्कूल से आ कर देखा कि घर में पापा की मिस्ट्रैस आई हुई थी. साथ में, उस की छोटी सी गुडि़या और हमारा छोटा भाई. ‘उस ने’ घर का काम संभाल लिया.

‘वह’ उस बैडरूम में सोने लगी थी जहां मां सोती थीं. पापा भी उस के साथ ही सोते. पापा के हौसले बुलंद थे. घर में हुए इस बदलाव से हम दोनों बहनें बहुत त्रस्त थीं.

हमें मां की याद सता रही थी और हमें कुछ भी पता नहीं था कि मां कहां हैं. कहीं वे मर तो नहीं गईं. हम यह बात पड़ोसियों से भी पूछ नहीं सकते थे.

पड़ोसियों की आंखों में कुछ दूसरे हैरानजदा सवाल थे कि हमारे घर में आ कर रहने वाली यह स्त्री कौन है और पापा की क्या लगती है. पापा ने उस के बारे में एकदो पड़ोसियों को यह बताया था कि ‘वह’ उन की चचेरी बहन है जिसे उस के पति ने छोड़ दिया है.

सप्ताह बाद मां लौटीं तो हमारी सांस में सांस आई. हमारा रुटीन सामान्य हो गया. सुबह स्कूल, दोपहर को होमवर्क और शाम को खेल. बड़े लोगों को घर में क्या परेशानियां हैं, हम उन्हें क्या समाधान दे सकते थे. पापा ने घर में क्या गड़बड़झाला रचा रखा है, हमारी समझ में कुछ नहीं आता था. अब घर में कई लोग थे : एक पति और उन की 2 पत्नियां व 4 बच्चे.

मां के लौट आने पर अब घर में पापा की मिस्ट्रैस का रुतबा घट गया था. ‘वह’ चुपचाप रहती, गेट के ठीक सामने बाहर वाले कमरे में अपनी गुडि़या को संभालने में ही मस्त और व्यस्त रहती. घर के किसी मामले में उस की कोई राय नहीं ली जाती थी. मां ने अपना पुराना बड़ा वाला बैडरूम संभाल लिया था.

घर में पापा का दरजा अब वह नहीं रह गया था. हर तीसरेचौथे दिन ये बड़े लोग घर में तूफान मचाते, गालियां देते और एकदूसरे को कोसते. पापा सोते तो मां के कमरे में ही मगर दोनों के बीच कोई बातचीत नहीं होती थी.

पापा की जरूरतें पूरी करने के लिए दोदो औरतें थीं. घर में हर समय तनाव रहता. मां उन से बचने की कोशिश न करती या यों कहें कि वे जानबूझ कर पापा को और दुखी करतीं. पापा उन की ये बातें समझ न पाते या समझ कर अनजान बने रहते.

उन के लिए घर में रखैल रखना खांडे की धार पर चलने जैसा था. वे एक समय में दोदो नावों पर सवार होना चाहते थे. वे दोनों औरतों के बीच बुरी तरह फंस गए थे. एक को खुश करते तो दूसरी नाराज हो जाती.

हर रात हम खाने के टेबल पर डिनर के लिए बैठते. एक कष्टभरी खामोशी हमारे बीच तनी रहती. हम ऐसा बरताव करते, मानो एकदूसरे के लिए एलियंस हों. सुबह मां हमें तैयार कर के स्कूल भेजतीं. फिर किचन में पापा व उन की मिस्ट्रैस घुसते. मां की गालियों और तानों की बौछारों को सहन करते हुए ‘वह’ रह रही थी. उस का यह साहस वर्णन से बाहर था.

‘उस की’ बेटी से हम बात नहीं करते थे. हमारे लिए ‘उस से’ बोलना भी मना था. पापा के खिलाफ मां की उस जंग में हम बच्चे पूरी तरह मां के साथ थे. ‘उस ने’ मुझे अपनी तरफ झुकाने की बहुत कोशिश की.

उस ने मुझे ‘एलिस इन वंडरलैंड’ नामक किताब मेरे 12वें जन्मदिन पर उपहार में दी. मुझे वह पुस्तक बहुत अच्छी लगी. मैं जानती थी कि वह मेरे प्रति दयालु है मगर मैं अपनी मां के प्रति वफादार रहना चाहती थी. हां, मेरे मन का एक हिस्सा ‘उसे’ चाहता जरूर था. मुझे तब पता नहीं था कि मेरे पापा से प्यार कर के उस ने कितना बड़ा गुनाह किया है.

‘उस का’ इस तरह हमारे साथ रहने का यह अनोखा अरेंजमैंट ज्यादा दिनों तक चल नहीं पाया. पापा को तो कोई आपत्ति नहीं थी मगर जब भी मां मेरे छोटे भाई को ले कर बाहर निकलतीं, उन्हें खुद पर शर्म आती कि वे अपनी सौत के साथ रह रही हैं. हमें भी यही बताया गया था कि अगर पड़ोसी ‘उस के’ बारे में पूछताछ करें तो कहो कि वह हमारी किराएदार है.

मां ने सभी टोनेटोटके कर के देख लिए, नानी और मामा की राय ली, कई वकीलों से सलाह की मगर ‘उसे’ अपने घर से नहीं निकाल पाईं. ‘वह’ इतने अपमान और बेइज्जती के बावजूद हमारे घर में रह रही थी, उस की एक ही मुख्य वजह थी. वह वजह थी कि ‘वह’ पापा से बेइंतहा प्यार करती थी. जो ज्ञान पुरुष स्त्रियों से उन के बारे में हासिल करते हैं भले ही वह उन की संचित संभावनाओं के बारे में न हो कर सिर्फ उन के भूत और वर्तमान के बारे में ही क्यों न हो, वह तब तक अधूरा और उथला रहेगा जब तक कि स्त्रियां स्वयं वह सबकुछ नहीं बता देतीं.

कई महीनों बाद जब मां से यह सब सहन नहीं हुआ तो उन्होंने अदालत का दरवाजा खटखटाया और पापा पर दोष लगाते हुए ‘उसे’ घर से निकालने के लिए पुलिस कार्यवाही की मांग की. पापा के औफिस में भी लिख कर शिकायत दे दी कि ‘उस के’ हमारे घर में यों रहने से हम पर व हमारे बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है.

एक रात उस का सामान चला गया और साथ ही वह भी. पापा 2 परिवारों के मुखिया बन गए. पापा ने हमारे घर आना बिलकुल ही कम कर दिया. बस, हर महीने की पहली तारीख को आते और घर में अपनी तनख्वाह छोड़ जाते. किसी बच्चे के बारे में न पूछते.

मां ने तलाक की अर्जी लगा दी तो पापा हम से बिलकुल ही दूर हो गए. हम बच्चों की हालत बहुत खराब हो गई थी. मां हमेशा गुमसुम रहने लगी थीं. अपनी सेहत का खयाल न रखतीं. ढंग के कपड़े न पहनतीं. न कहीं जातीं और न ही हमें ले कर निकलतीं.

हमारी पढ़ाईलिखाई के खर्च बढ़ते जा रहे थे. पापा खर्च उठा रहे थे मगर मां बहुत बार हमें बिना कारण डांटतीं, हम पर पाबंदियां लगातीं.

मां अपने आत्मत्याग से हमें ब्लैकमेल करतीं. हमें वही पता होता जो वे हमें बतातीं. वे हमें हर वक्त बतातीं कि कैसे अपना पेट काटकाट कर उन्होंने हमें शिक्षा दी. कभीकभी वही बातें बारबार सुनसुन कर हमें चिढ़ आ जाती. हमें पैदा करने या महंगे स्कूलों में भेजने का आग्रह हम बच्चों ने तो नहीं किया था.

 

हम नहीं जानते थे कि जो कुछ वे कर रही थीं या पति के साथ जैसे उन का समीकरण बिगड़ रहा था उस में हम लोगों की कोई भूमिका थी भी या नहीं. हां, इस का असर हम पर पड़ रहा था. वे हमारे लिए जो कर रही थीं उस के पीछे उन का अपना निजी उद्देश्य भी तो था. पापा ने तो आसानी से पैसे के दम पर हम से पल्ला झाड़ लिया था मगर मां कई बार गुस्से में बिफर कर कहतीं, ‘तुम न होते तो मैं फिर शादी कर लेती या फिर अपने मायके में जा कर शान से रहती. हमारी खातिर मां के आत्महत्या और बलि का बकरा बनने का विचार हमें उन के प्रति कृतज्ञता नहीं बल्कि भ्रम और अपराधबोध से भर देता था.

हम मां की आधीअधूरी रह गई आकांक्षाओं की पूर्ति के साधनमात्र रह गए थे. हम चाहते थे कि मां हर हालत में खुश रहें मगर वे उदास थीं, वंचिता थीं. और हमारे खयाल में यह सब हमारी गलती के कारण ही था.

– क्रमश:

यह भी खूब रही

बात उन दिनों की है जब हम शिमला में रहते थे. एक बार मेरे जन्मदिन पर पति और बच्चों ने घर में छोटी सी पार्टी रखी. खानेपीने का सामान रसोई की अलमारी में रख कर केक खरीदने के लिए वे बाजार चले गए. गलती से रसोई का दरवाजा खुला रह गया. मैं दूसरे कमरे में तैयार हो रही थी. रसोई में 3-4 बंदर घुस गए. सारा सामान फर्श पर गिरा कर खाने लगे.
इस प्रकार मेहमानों के आने से पहले बंदरों ने मेरा जन्मदिन मना लिया.
निर्मल कांता गुप्ता, कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
 
बिजली का बिल भरने को मैं दोपहर को डाकघर पहुंचा. डाकघर में बिजली, टैलीफोन का बिल भरने के लिए केवल 2 काउंटर थे. अंतिम दिन था, भोजनावकाश का समय होने वाला था. दोनों काउंटर पर लंबी कतारें थीं.
एक काउंटर पर मैडम अनुभवी होने की वजह से तेजी से हाथ चला रही थीं. वह कतार घट रही थी. मगर दूसरे काउंटर पर नया कर्मचारी होने की वजह से वह कतार अपेक्षाकृत धीमी गति 
से रेंग रही थी. उस में खड़े ग्राहक उकता कर ताने कसने लगे मगर कोई फर्क नहीं पड़ा.
तेजी से बढ़ने वाली कतार से एक सज्जन बोले, ‘‘भई, डाकघर भी क्या करेगा? उन के पास मैनपावर की जो कमी है.’’
तभी दूसरी कतार से कोई तपाक से बोला, ‘‘भाईसाहब, मैन तो है बस, पावर की कमी है.’’ उन की यह बात सुनते ही जोरदार ठहाका गूंज उठा, माहौल हलकाफुलका हो गया और दूसरे काउंटर का नया कर्मचारी भी थोड़ी मुस्तैदी दिखाने लगा.
राजेश पाटील, बुलडाना (महा.)
 
हमारी कालोनी का एक बच्चा बहुत शैतान है, वह अकसर मेरे घर की घंटी बजा कर भाग जाता था. जब हम लोग उस से पूछते, ‘‘बेटा डोरबैल किस ने बजाई,’’ तो वह कहता, ‘‘हमें पता नहीं.’’
उस को कई बार समझाया भी, पर वह माना नहीं. ऐसे में मेरे पति को एक उपाय सूझा. एक दिन वे छत पर जा कर दीवार के पीछे छिप गए. जैसे ही उस बच्चे ने घंटी बजाई, उन्होंने एक छोटी बालटी से उस के ऊपर पानी डाल दिया. वह एकदम से हैरानपरेशान हुआ कि यह क्या हुआ, क्योंकि पूरा भीग गया था. ऊपर देख कर बोला, ‘‘क्या है अंकलजी, आप ने मुझे भिगो दिया.’’
तब मेरे पति प्यार से बोले, ‘‘अरे ये तुम थे, मैं ने तो उस शैतान बच्चे पर पानी डाला था, जो घंटी बजा रहा था,’’ यह सुन कर वह बहुत शर्मिंदा हुआ और उस ने घंटी बजानी छोड़ दी.
शशी अग्रवाल, पीलीभीत (उ.प्र.) 
 

सूक्तियां

मूल्यवान संपत्ति
हमारी सब से मूल्यवान संपत्ति वह है जो दूसरों में बांटने पर भी बढ़ती जाती है और सब से कम मूल्यवान वह जो बांटने पर कम हो जाती है.
वृद्धावस्था
केवल सफेद बाल, सिकुड़ी हुई खाल और पोपला मुंह या झुकी हुई कमर किसी को आदर का पात्र नहीं बना देते.
युवावस्था
युवावस्था बहुत सुंदर है, संदेह नहीं. पर जहां जीवन की गहनता की जांच होती है वहां यौवन का कोई मूल्य नहीं रह जाता.
लेखक
भाषणकर्ता व लेखक को तभी सफल कहा जा सकता है जब उस के शब्द विचारों से ज्यादा न फैले हों.
प्रेम
प्रेम हमेशा कष्ट सहता है, न कभी झुंझलाता है न बदला लेता है.
भय
भय खतरे को टालने के बजाय उसे बुला लेता है.
विरोध
विरोध उत्साह को और भी भड़का देता है, उस को खंडित नहीं करता.

जीवन की मुसकान

बात मेरे बचपन की है जब हम एक छोटे से गांव में रहते थे और रोजमर्रा का सामान लेने के लिए शहर जाना पड़ता था. एक दिन मैं और मां सामान खरीदने के लिए शहर गए. सामान पैक करते समय काउंटर पर पड़ा एक टूथपेस्ट मैं ने अपना सामान समझ कर जेब में डाल लिया. दुकानदार इस बात से अनजान था.
लौटते समय जब मैं ने मां को इस बारे में बताया तो वे तुरंत 1 किलोमीटर पैदल चल कर टूथपेस्ट वापस देने गईं. मुझे भी यह सीख मिली कि किसी भी चीज को बिना पूछे छूना नहीं चाहिए. उन की बात मेरे दिल को छू गई. यह उन की ही सीख का परिणाम है कि इन तमाम सालों में मैं सत्य व ईमानदारी के पथ पर चल कर कामयाबी की नई मंजिलें पाने में सफल रहा हूं.
मनोज जैन, चेन्नई (तमिलनाडु)
 
हम लोग नानकपुरा में रहते थे. मैं और मेरी बेटी सामने वाले ब्लौक में किसी से मिलने चले गए. लगभग 1 घंटे के बाद हम दोनों वापस आए और मेरी बेटी ने जैसे ही ताला खोलने के लिए चाबी लगाई, उस ने देखा ताला टूटा हुआ है. हम घबरा गए. घर खोलने पर देखा तो घर का बुरा हाल था. अलमारियों का सब सामान बाहर था, तख्त खुला पड़ा था.
सिर्फ 2 दिन पहले ही मेरे पति ने मेरे गहनों का डब्बा अलमारी से निकाल कर सितार के बक्से में रख दिया था जो रसोई के साथ लगे स्टोर में रखा था. चोर ने कमरों की तो सफाई कर दी थी पर उस का ध्यान स्टोर की तरफ नहीं गया. पति यदि गहनों के डब्बे की जगह नहीं बदलते तो मेरे गहनों के साथसाथ मेरी जेठानी के भी गहने चले जाते.
आशा भटनागर, जनपथ (न.दि.)
 
एक बार आटो से मैं मम्मी के घर जा  रही थी. मेरा बेटा छोटा था. सर्दी का वक्त था. मेरे पास पर्स के अलावा एक बैग था जिसे मैं आटो में ही भूल गई.
मम्मी के घर जा कर थोड़ी देर बाद बेटे को जब भूख लगी तो दूध की बोतल के लिए बैग ढूंढ़ने लगी तो याद आया बैग तो मैं ने आटो में से उतारा ही नहीं. उस में मिठाई, बेटे के कपड़े, छोटा कंबल, चादर आदि सामान थे. मुझे घबराहट होने लगी.
करीब 3 घंटे बाद दरवाजे की घंटी बजी. मम्मी ने जा कर देखा, लौटीं तो उन के हाथ में मेरा बैग था. वे बोलीं, बाहर आटो वाला खड़ा है. मैं बाहर गई. आटो वाले को धन्यवाद दिया.
वह बोला कि जाते समय उसे वही  सवारियां मिल गई थीं जिन्हें स्टेशन जाना था. उन के उतरते समय मैं ने बैग देखा. उन से लेने के लिए कहा, वे बोले, ‘यह हमारा नहीं है.’ तब मुझे आप का ध्यान आया. इसीलिए बैग लौटाने में इतना वक्त लगा. मुझे खुशी हुई कि आज भी ईमानदार लोगों की कमी नहीं है.
शशि पंचोली, जयपुर (राज.)

चुनरी बेहाल

होली आई रे आई…
अब खेलेंगे गुलाल
बिना रंगे लाल हुए
सजनी के गाल
डाल दिया आंखों ने
जादू का जाल
 
कजराई आंखों ने
काला रंग डाला
लाललाल चोली ने
लाल रंग डाला
गोरा रंग तन का
कर रहा कमाल
 
हृदय से आ लगी
पलक किए बंद
होंठों ने लिख दिए
चुंबन के छंद
नाच उठा फागुन
दी होली ने ताल
 
सदियों से प्यासा मन
अब क्यों तरसे
जब पंखुडि़यां अधरों की
फागुन में बरसें
सांसें बेढंग हुईं
और चुनरी बेहाल.
डा. भारत गौड़

केन्या की विश्वप्रसिद्ध नायवाशा झील

रंगबिरंगे गुलाबों और विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों से घिरी केन्या की नायवाशा झील की खूबसूरती दिलोदिमाग में छा जाती है. अगर आप भी घुमक्कड़ मिजाज के हैं तो नायवाशा झील का एक दौरा तो बनता है जनाब.
 
ईस्ट अफ्रीका के देश केन्या जाने वाले ज्यादातर सैलानी नायवाशा झील जरूर देखते हैं. यह केन्या की राजधानी नैरोबी के उत्तरपश्चिम में है. यह ग्रेट रिफ्ट वैली का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. यह 139 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है. यह समुद्रतल से 6180 फुट की ऊंचाई पर है. इस की अधिकतम गहराई 100 फुट है.
झील के आसपास कई तरह के जंगली जानवरों का एक दर्शनीय स्थल है जिस में जिराफ, जैब्रा, हाइना, हिरण और 200 से अधिक तरह के पक्षी हैं.
विशेष प्रकार के फूलों, खासतौर से कई रंगों के गुलाबों के अनेक फौर्म यहां चारों ओर फैले हुए हैं. यह यहां का महत्त्वपूर्ण उद्योग है. हजारों अफ्रीकी लोगों को यहां रोजगार मिला हुआ है. ये फूल विशेषतौर पर गुलाब यूरोप के देशों में निर्यात किए जाते हैं.
मछली उद्योग भी यहां की स्थानीय आबादी की रोजीरोटी का बड़ा साधन है. इस झील में कई प्रकार की मछलियां पाई जाती हैं. वहां मसाई भाषा बोलने वाले मसाई लोग झील को नाइपोशा कहते थे जिस का अर्थ होता है तूफानी पानी. दरअसल, यहां शाम को अकसर पानी में तूफान आता है, ऊंची लहरें उठती हैं. 
यहां के फूल उद्योग पर अंगरेजों का तकरीबन पूरा कब्जा है. वे यहां फूलों के अलावा विभिन्न प्रकार की सब्जियां भी उगाते हैं.
ऐलसामेयर, झील के किनारे बसा विश्वप्रसिद्ध घर है जोकि अब एक स्मारक है. यहां जौय ऐडमसन रहती थीं. उन्होंने विश्वप्रसिद्ध पुस्तक ‘बौर्न फ्री’ की रचना की, जिस पर ‘बौर्न फ्री’ फिल्म बनी और लोगों के दिलोदिमाग पर छा गई.
ऐलसा नामक एक शेरनी से जाय ऐडमसन का गूढ़ स्नेह था. उस से प्रभावित हो कर उन्होंने ‘बौर्न फ्री’ की रचना की. केन्या के वन्यजीवन की रक्षा के लिए उन्होंने एक विशेष संस्था बनाई थी. वर्ष 1980 में इस महान लेखिका की हत्या हो गई थी. ऐलसामेयर को अब एक स्मारक के रूप में बदल दिया गया है. रोज शाम को इस को जनता के लिए खोल दिया
जाता है.
अपनी पाठशाला के कुछ अध्यापकों तथा छात्राओं के विशेष आग्रह पर सितंबर के महीने में हम ने नायवाशा झील के भ्रमण का कार्यक्रम बनाया. केन्या वन विभाग के निदेशक मिस्टर मजाबी ने हमारे विशेष आग्रह पर विभाग की बस उपलब्ध करवा दी.
नायवाशा नकुरू टाउन से लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर है. 10 सितंबर, 1999 को 80 छात्राओं, 10 अध्यापकों तथा मैट्रन के साथ हम नायवाशा के लिए रवाना हुए. हम खाद्य सामग्री अपने साथ ले गए थे. बस के चलते ही मैट्रन ने सभी छात्राओं को चौकलेटें दीं. छात्राएं बहुत ही प्रसन्न थीं तथा अफ्रीकी गीत गा रही थीं.
नायवाशा पहुंचने से पहले मार्ग में गिलगिल नामक टाउन आया जोकि केन्या की सेना का एक प्रमुख अड्डा है. अनेक प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते हुए हम नायवाशा टाउन के समीप पहुंच गए. केसीसी, जोकि दुग्ध उत्पादनों जैसे कि घी, पनीर, दही इत्यादि की एक विशाल फैक्टरी है, दृष्टिगोचर हुई. नायवाशा टाउन पहुंचने पर एक उद्यान में बैठ कर हम ने अपने साथ लाई खाद्य सामग्री का सेवन किया. झील, नायवाशा टाउन से 2 किलोमीटर दूर है.
झील के तट पर अनेक होटल व लौज हैं. लेक नायवाशा रिसौर्ट तथा लेक नायवाशा कंट्री क्लब कुछ विशेष होटल हैं, जहां पर्यटक ठहरना पसंद करते हैं. केन्या वनविभाग की बस हमें उस किनारे पर ले गई जहां जनता जा सकती है.
हम सभी इस विशाल झील की सुंदरता को देखते ही रह गए. मछुआरे अपनी नौकाओं से जाल फैलाए मछलियां पकड़ रहे थे. हम सब ने नौका विहार का आनंद लिया तथा अनेक दृश्य कैमरों में कैद किए. लगभग 1 घंटा वहां ठहरने के बाद हम ऐलसामेयर स्मारक की ओर बस में रवाना हुए. वहां पहुंचने पर वहां के मुख्य अधिकारी साइमन ने हमारा अच्छा स्वागत किया. उन्होंने हमें वे विशाल चित्र दिखाए जिन से जौय ऐडमसन के जीवन की विभिन्न झांकियां देखने को मिलीं. बौर्न फ्री फिल्म में जो बातें दिखी हैं वे प्रत्यक्ष रूप से सामने थीं. जौय ऐडमसन तथा उन के पति जौर्ज एडमसन, जो वस्तुएं प्रयोग करते थे, जैसे कि उन के बरतन, कपड़े, पुस्तकें आदि, वहां सुरक्षित रखी हैं.
अधिकारी महोदय ने छात्रों को बौर्न फ्री फिल्म का विशेष शो दिखाया. यहां से हम मिस्टर क्लाइव के गुलाबों के पुष्प उद्यान में गए जहां गुलाब के फूलों की ऐसीऐसी श्रेणियां देखीं जिन्हें दूसरे देशों को निर्यात किया जाता है.
केन्या वर्ष 1963 में ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्र हुआ था लेकिन नायवाशा जा कर ऐसा लगा कि यह अभी भी ब्रिटिश साम्राज्य में ही है. सब्जी उगाने वाले खेतों में कार्य कर रहे अंगेरज किसान तथा अनेक दुकानें तथा होटल, जिन को अंगरेज चला रहे हैं, देख कर लगा कि ब्रिटिश साम्राज्य का पूरा प्रभाव यहां आज भी विद्यमान है.
हमें माउंट लौंगोनौट पर जाना था लेकिन समयाभाव के कारण वहां नहीं जा पाए. शाम हो रही थी. झील पर मछुआरे अपनी नौकाओं में बैठे मछलियां पकड़ते दिखाई दे रहे थे. झील के पानी की लहरें ऊंची उठ रही थीं. नायवाशा की यात्रा अत्यंत आनंदपूर्ण थी जो भूले नहीं भुलाई जा सकती.

क्रांति का प्रतीक मे विंड

चीन में पर्यटन के बेहतरीन ठिकानों के बीच एक ठिकाना मे विंड भी है. इतिहास और अतीत को संजोए इस जगह की ऊंची अट्टालिकाएं और समुद्र का नजारा देखते ही बनता है. मे विंड के सफर पर आप भी चलिए.
पर्यटन पर आप निकले हैं तो चीन की दीवार ही नहीं मे विंड को देखना न भूलें. एक समय था जब चीन में बहुत से क्षेत्रों के विदेशी पर्यटकों के लिए ‘प्रतिबंधित क्षेत्र’ करार दिया गया था और लोग उन क्षेत्रों की सीमा के निकट भी नहीं जा सकते थे. लेकिन बदलते समय के साथ वही प्रतिबंधित क्षेत्र पर्यटन का केंद्र बन चुके हैं. हाल ही में मुझे चीन जाने का अवसर मिला और इसी दौरान क्विंगदाओ प्रांत की खूबसूरती को निहारने का अवसर भी.
अद्भुत संरचना
क्विंगदाओ प्रौविंस के सैंट्रल बिजनैस डिस्ट्रिक्ट क्षेत्र में निर्मित मे फोर्थ स्क्वायर में बनी एक अद्भुत संरचना मे विंड को देखने के लिए विश्वभर के पर्यटक जुटते हैं. यह संरचना स्तुशास्त्रियों और कलाप्रेमियों के लिए विशेष महत्त्व की कृति है.
इसे म्यूनिसिपल गवर्नमैंट बिल्डिंग्स और समुद्री तट फ्यूशान बे के बीच शिजिंगतिंग स्क्वायर में बनाया गया है. लाल रंग के मे विंड को चीनी भाषा में वूई फेंक कहा जाता है. इस संरचना के एक ओर ऊंचीऊंची अट्टालिकाएं हैं और दूसरी ओर है लहलहाता समुद्र. मेरे लिए एक अप्रत्याशित और सुखद अनुभव यह भी था कि मे फोर्थ स्क्वायर देखने आए पर्यटकों में कुछेक भारतीय मूल के भी थे. मे फोर्थ स्क्वायर में बने टूरिस्ट गाइड सैंटर के संचालक वांग चुआंग ली (जूनियर) ने मे विंड के इतिहास के बारे में काफी हिचकिचाहट के बाद बताया कि 1917 में अलाइड ट्रिपल एन्टेन्ते (संबद्ध त्रिपक्षीय संधि) के तहत चीन प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा लेने के लिए इस शर्त पर तैयार हुआ था कि जरमनी के अधिकार में आता शेंदोंग चीन को लौटा दिया जाएगा. इसी शर्त के तहत 1 लाख से अधिक चीनी मजदूरों को ब्रिटिश फौज के हिस्से के तौर पर फ्रांस भेजा गया लेकिन वैसा कुछ भी नहीं हुआ जैसा अपेक्षित था.
वर्सेलिस ट्रीटी-1919 के अनुसार, शेंदोंग प्रौविंस को अप्रत्याशित रूप से जापान के हवाले कर दिया गया जिस का चीन ने बहुत विरोध किया लेकिन सार्थक परिणाम न निकला. युद्ध के बाद पैरिस पीस कौन्फ्रैंस हुई लेकिन चीनी सरकार वहां भी कुछ हासिल न कर सकी. सरकार की इस नाकामी से विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्र भड़क उठे और सरकार के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजा दिया. दिन था 4 मई, 1919.यही दिन था जब थियानानमिन स्क्वायर में बीजिंग विश्वविद्यालय के 3 हजार से अधिक उग्र छात्र एकत्रित हुए और सरकार की नाकामी के विरुद्ध जम कर नारेबाजी की जिसे सरकार ने बर्बरता के साथ दबा दिया और कई प्रमुख छात्र नेता गिरफ्तार कर लिए गए. साथ ही, जापानी उत्पादों का चौतरफा बहिष्कार किया गया.
स्मृति चिह्न
अगले दिन यानी 5 मई को समूचे बीजिंग के शिक्षण संस्थान छात्रों ने बंद करवा दिए. देखते ही देखते ढेरों अन्य संस्थाएं भी इस संघर्ष से आ जुड़ीं. संघर्ष की आग बीजिंग से शंघाई तक जा पहुंची. सरकार की नाकामी का विरोध समूचे देश में फैल गया और शंघाई के सभी व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद कर दिए गए.
उधर, पैरिस पीस ट्रीटी पर चीनी प्रतिनिधिमंडल ने हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. यह 4 मई के आंदोलन की पहली जीत थी. इसी समूचे घटनाक्रम की स्मृति को ताजा रखने के लिए मे फोर्थ स्क्वायर में मे विंड नाम की इस अद्भुत संरचना का सृजन किया गया. इसे चौबीसों घंटे पर्यटकों के लिए खुला रखा जाता है.
लोग कईकई घंटे कौफी पीने, रात्रिभोज करने के साथ स्क्वायर में हर समय संगीत का आनंद देने वाले म्यूजिक बैंड का भी मजा लेते हैं. क्विंगदाओं में पर्यटकों को मे विंड तक लाने के लिए विशेष वातानुकूलित बसों व टैक्सियों की व्यवस्था रहती है. जो लोग टूरिस्ट पैकेज के तहत यहां लाए जाते हैं वे मुफ्त यात्रा कर के यहां पहुंचते हैं.
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