होली आई रे आई...
अब खेलेंगे गुलाल
बिना रंगे लाल हुए
सजनी के गाल
डाल दिया आंखों ने
जादू का जाल
कजराई आंखों ने
काला रंग डाला
लाललाल चोली ने
लाल रंग डाला
गोरा रंग तन का
कर रहा कमाल
हृदय से आ लगी
पलक किए बंद
होंठों ने लिख दिए
चुंबन के छंद
नाच उठा फागुन
दी होली ने ताल
सदियों से प्यासा मन
अब क्यों तरसे
जब पंखुडि़यां अधरों की
फागुन में बरसें
सांसें बेढंग हुईं
और चुनरी बेहाल.
डा. भारत गौड़
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