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चुनरी बेहाल

होली आई रे आई…
अब खेलेंगे गुलाल
बिना रंगे लाल हुए
सजनी के गाल
डाल दिया आंखों ने
जादू का जाल
 
कजराई आंखों ने
काला रंग डाला
लाललाल चोली ने
लाल रंग डाला
गोरा रंग तन का
कर रहा कमाल
 
हृदय से आ लगी
पलक किए बंद
होंठों ने लिख दिए
चुंबन के छंद
नाच उठा फागुन
दी होली ने ताल
 
सदियों से प्यासा मन
अब क्यों तरसे
जब पंखुडि़यां अधरों की
फागुन में बरसें
सांसें बेढंग हुईं
और चुनरी बेहाल.
डा. भारत गौड़

केन्या की विश्वप्रसिद्ध नायवाशा झील

रंगबिरंगे गुलाबों और विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों से घिरी केन्या की नायवाशा झील की खूबसूरती दिलोदिमाग में छा जाती है. अगर आप भी घुमक्कड़ मिजाज के हैं तो नायवाशा झील का एक दौरा तो बनता है जनाब.
 
ईस्ट अफ्रीका के देश केन्या जाने वाले ज्यादातर सैलानी नायवाशा झील जरूर देखते हैं. यह केन्या की राजधानी नैरोबी के उत्तरपश्चिम में है. यह ग्रेट रिफ्ट वैली का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है. यह 139 किलोमीटर के क्षेत्र में फैली हुई है. यह समुद्रतल से 6180 फुट की ऊंचाई पर है. इस की अधिकतम गहराई 100 फुट है.
झील के आसपास कई तरह के जंगली जानवरों का एक दर्शनीय स्थल है जिस में जिराफ, जैब्रा, हाइना, हिरण और 200 से अधिक तरह के पक्षी हैं.
विशेष प्रकार के फूलों, खासतौर से कई रंगों के गुलाबों के अनेक फौर्म यहां चारों ओर फैले हुए हैं. यह यहां का महत्त्वपूर्ण उद्योग है. हजारों अफ्रीकी लोगों को यहां रोजगार मिला हुआ है. ये फूल विशेषतौर पर गुलाब यूरोप के देशों में निर्यात किए जाते हैं.
मछली उद्योग भी यहां की स्थानीय आबादी की रोजीरोटी का बड़ा साधन है. इस झील में कई प्रकार की मछलियां पाई जाती हैं. वहां मसाई भाषा बोलने वाले मसाई लोग झील को नाइपोशा कहते थे जिस का अर्थ होता है तूफानी पानी. दरअसल, यहां शाम को अकसर पानी में तूफान आता है, ऊंची लहरें उठती हैं. 
यहां के फूल उद्योग पर अंगरेजों का तकरीबन पूरा कब्जा है. वे यहां फूलों के अलावा विभिन्न प्रकार की सब्जियां भी उगाते हैं.
ऐलसामेयर, झील के किनारे बसा विश्वप्रसिद्ध घर है जोकि अब एक स्मारक है. यहां जौय ऐडमसन रहती थीं. उन्होंने विश्वप्रसिद्ध पुस्तक ‘बौर्न फ्री’ की रचना की, जिस पर ‘बौर्न फ्री’ फिल्म बनी और लोगों के दिलोदिमाग पर छा गई.
ऐलसा नामक एक शेरनी से जाय ऐडमसन का गूढ़ स्नेह था. उस से प्रभावित हो कर उन्होंने ‘बौर्न फ्री’ की रचना की. केन्या के वन्यजीवन की रक्षा के लिए उन्होंने एक विशेष संस्था बनाई थी. वर्ष 1980 में इस महान लेखिका की हत्या हो गई थी. ऐलसामेयर को अब एक स्मारक के रूप में बदल दिया गया है. रोज शाम को इस को जनता के लिए खोल दिया
जाता है.
अपनी पाठशाला के कुछ अध्यापकों तथा छात्राओं के विशेष आग्रह पर सितंबर के महीने में हम ने नायवाशा झील के भ्रमण का कार्यक्रम बनाया. केन्या वन विभाग के निदेशक मिस्टर मजाबी ने हमारे विशेष आग्रह पर विभाग की बस उपलब्ध करवा दी.
नायवाशा नकुरू टाउन से लगभग 75 किलोमीटर की दूरी पर है. 10 सितंबर, 1999 को 80 छात्राओं, 10 अध्यापकों तथा मैट्रन के साथ हम नायवाशा के लिए रवाना हुए. हम खाद्य सामग्री अपने साथ ले गए थे. बस के चलते ही मैट्रन ने सभी छात्राओं को चौकलेटें दीं. छात्राएं बहुत ही प्रसन्न थीं तथा अफ्रीकी गीत गा रही थीं.
नायवाशा पहुंचने से पहले मार्ग में गिलगिल नामक टाउन आया जोकि केन्या की सेना का एक प्रमुख अड्डा है. अनेक प्राकृतिक दृश्यों का आनंद लेते हुए हम नायवाशा टाउन के समीप पहुंच गए. केसीसी, जोकि दुग्ध उत्पादनों जैसे कि घी, पनीर, दही इत्यादि की एक विशाल फैक्टरी है, दृष्टिगोचर हुई. नायवाशा टाउन पहुंचने पर एक उद्यान में बैठ कर हम ने अपने साथ लाई खाद्य सामग्री का सेवन किया. झील, नायवाशा टाउन से 2 किलोमीटर दूर है.
झील के तट पर अनेक होटल व लौज हैं. लेक नायवाशा रिसौर्ट तथा लेक नायवाशा कंट्री क्लब कुछ विशेष होटल हैं, जहां पर्यटक ठहरना पसंद करते हैं. केन्या वनविभाग की बस हमें उस किनारे पर ले गई जहां जनता जा सकती है.
हम सभी इस विशाल झील की सुंदरता को देखते ही रह गए. मछुआरे अपनी नौकाओं से जाल फैलाए मछलियां पकड़ रहे थे. हम सब ने नौका विहार का आनंद लिया तथा अनेक दृश्य कैमरों में कैद किए. लगभग 1 घंटा वहां ठहरने के बाद हम ऐलसामेयर स्मारक की ओर बस में रवाना हुए. वहां पहुंचने पर वहां के मुख्य अधिकारी साइमन ने हमारा अच्छा स्वागत किया. उन्होंने हमें वे विशाल चित्र दिखाए जिन से जौय ऐडमसन के जीवन की विभिन्न झांकियां देखने को मिलीं. बौर्न फ्री फिल्म में जो बातें दिखी हैं वे प्रत्यक्ष रूप से सामने थीं. जौय ऐडमसन तथा उन के पति जौर्ज एडमसन, जो वस्तुएं प्रयोग करते थे, जैसे कि उन के बरतन, कपड़े, पुस्तकें आदि, वहां सुरक्षित रखी हैं.
अधिकारी महोदय ने छात्रों को बौर्न फ्री फिल्म का विशेष शो दिखाया. यहां से हम मिस्टर क्लाइव के गुलाबों के पुष्प उद्यान में गए जहां गुलाब के फूलों की ऐसीऐसी श्रेणियां देखीं जिन्हें दूसरे देशों को निर्यात किया जाता है.
केन्या वर्ष 1963 में ब्रिटिश साम्राज्य से स्वतंत्र हुआ था लेकिन नायवाशा जा कर ऐसा लगा कि यह अभी भी ब्रिटिश साम्राज्य में ही है. सब्जी उगाने वाले खेतों में कार्य कर रहे अंगेरज किसान तथा अनेक दुकानें तथा होटल, जिन को अंगरेज चला रहे हैं, देख कर लगा कि ब्रिटिश साम्राज्य का पूरा प्रभाव यहां आज भी विद्यमान है.
हमें माउंट लौंगोनौट पर जाना था लेकिन समयाभाव के कारण वहां नहीं जा पाए. शाम हो रही थी. झील पर मछुआरे अपनी नौकाओं में बैठे मछलियां पकड़ते दिखाई दे रहे थे. झील के पानी की लहरें ऊंची उठ रही थीं. नायवाशा की यात्रा अत्यंत आनंदपूर्ण थी जो भूले नहीं भुलाई जा सकती.

क्रांति का प्रतीक मे विंड

चीन में पर्यटन के बेहतरीन ठिकानों के बीच एक ठिकाना मे विंड भी है. इतिहास और अतीत को संजोए इस जगह की ऊंची अट्टालिकाएं और समुद्र का नजारा देखते ही बनता है. मे विंड के सफर पर आप भी चलिए.
पर्यटन पर आप निकले हैं तो चीन की दीवार ही नहीं मे विंड को देखना न भूलें. एक समय था जब चीन में बहुत से क्षेत्रों के विदेशी पर्यटकों के लिए ‘प्रतिबंधित क्षेत्र’ करार दिया गया था और लोग उन क्षेत्रों की सीमा के निकट भी नहीं जा सकते थे. लेकिन बदलते समय के साथ वही प्रतिबंधित क्षेत्र पर्यटन का केंद्र बन चुके हैं. हाल ही में मुझे चीन जाने का अवसर मिला और इसी दौरान क्विंगदाओ प्रांत की खूबसूरती को निहारने का अवसर भी.
अद्भुत संरचना
क्विंगदाओ प्रौविंस के सैंट्रल बिजनैस डिस्ट्रिक्ट क्षेत्र में निर्मित मे फोर्थ स्क्वायर में बनी एक अद्भुत संरचना मे विंड को देखने के लिए विश्वभर के पर्यटक जुटते हैं. यह संरचना स्तुशास्त्रियों और कलाप्रेमियों के लिए विशेष महत्त्व की कृति है.
इसे म्यूनिसिपल गवर्नमैंट बिल्डिंग्स और समुद्री तट फ्यूशान बे के बीच शिजिंगतिंग स्क्वायर में बनाया गया है. लाल रंग के मे विंड को चीनी भाषा में वूई फेंक कहा जाता है. इस संरचना के एक ओर ऊंचीऊंची अट्टालिकाएं हैं और दूसरी ओर है लहलहाता समुद्र. मेरे लिए एक अप्रत्याशित और सुखद अनुभव यह भी था कि मे फोर्थ स्क्वायर देखने आए पर्यटकों में कुछेक भारतीय मूल के भी थे. मे फोर्थ स्क्वायर में बने टूरिस्ट गाइड सैंटर के संचालक वांग चुआंग ली (जूनियर) ने मे विंड के इतिहास के बारे में काफी हिचकिचाहट के बाद बताया कि 1917 में अलाइड ट्रिपल एन्टेन्ते (संबद्ध त्रिपक्षीय संधि) के तहत चीन प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा लेने के लिए इस शर्त पर तैयार हुआ था कि जरमनी के अधिकार में आता शेंदोंग चीन को लौटा दिया जाएगा. इसी शर्त के तहत 1 लाख से अधिक चीनी मजदूरों को ब्रिटिश फौज के हिस्से के तौर पर फ्रांस भेजा गया लेकिन वैसा कुछ भी नहीं हुआ जैसा अपेक्षित था.
वर्सेलिस ट्रीटी-1919 के अनुसार, शेंदोंग प्रौविंस को अप्रत्याशित रूप से जापान के हवाले कर दिया गया जिस का चीन ने बहुत विरोध किया लेकिन सार्थक परिणाम न निकला. युद्ध के बाद पैरिस पीस कौन्फ्रैंस हुई लेकिन चीनी सरकार वहां भी कुछ हासिल न कर सकी. सरकार की इस नाकामी से विभिन्न विश्वविद्यालयों के छात्र भड़क उठे और सरकार के विरुद्ध संघर्ष का बिगुल बजा दिया. दिन था 4 मई, 1919.यही दिन था जब थियानानमिन स्क्वायर में बीजिंग विश्वविद्यालय के 3 हजार से अधिक उग्र छात्र एकत्रित हुए और सरकार की नाकामी के विरुद्ध जम कर नारेबाजी की जिसे सरकार ने बर्बरता के साथ दबा दिया और कई प्रमुख छात्र नेता गिरफ्तार कर लिए गए. साथ ही, जापानी उत्पादों का चौतरफा बहिष्कार किया गया.
स्मृति चिह्न
अगले दिन यानी 5 मई को समूचे बीजिंग के शिक्षण संस्थान छात्रों ने बंद करवा दिए. देखते ही देखते ढेरों अन्य संस्थाएं भी इस संघर्ष से आ जुड़ीं. संघर्ष की आग बीजिंग से शंघाई तक जा पहुंची. सरकार की नाकामी का विरोध समूचे देश में फैल गया और शंघाई के सभी व्यापारिक प्रतिष्ठान बंद कर दिए गए.
उधर, पैरिस पीस ट्रीटी पर चीनी प्रतिनिधिमंडल ने हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया. यह 4 मई के आंदोलन की पहली जीत थी. इसी समूचे घटनाक्रम की स्मृति को ताजा रखने के लिए मे फोर्थ स्क्वायर में मे विंड नाम की इस अद्भुत संरचना का सृजन किया गया. इसे चौबीसों घंटे पर्यटकों के लिए खुला रखा जाता है.
लोग कईकई घंटे कौफी पीने, रात्रिभोज करने के साथ स्क्वायर में हर समय संगीत का आनंद देने वाले म्यूजिक बैंड का भी मजा लेते हैं. क्विंगदाओं में पर्यटकों को मे विंड तक लाने के लिए विशेष वातानुकूलित बसों व टैक्सियों की व्यवस्था रहती है. जो लोग टूरिस्ट पैकेज के तहत यहां लाए जाते हैं वे मुफ्त यात्रा कर के यहां पहुंचते हैं.

दिलकश नजारों से रूबरू कराता पश्चिम बंगाल

पारंपरिक व आधुनिक संस्कृति को अपने में समेटे भौगोलिक विविधताओं से परिपूर्ण पश्चिम बंगाल में जहां प्राकृतिक सौंदर्य का खजाना है वहीं इतिहास में रुचि रखने वाले पर्यटकों को भी यह बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है.
पश्चिम बंगाल के पर्यटन का नाम लेते ही दार्जिलिंग, सुंदरवन, दीघा का नाम जेहन में आता है. लेकिन उत्तर बंगाल के समतल मैदान से ले कर दक्षिण बंगाल के कई पर्यटन क्षेत्रों के बारे में जान कर आप का मन प्रफुल्लित हो उठेगा. दरअसल, बंगाल के कई जिलों का अपना पर्यटन महत्त्व है. राज्य में जलपाईगुड़ी जिले से हो कर कई पर्यटन स्थलों की सैर की जा सकती है. आइए, उत्तर बंगाल के राष्ट्रीय उद्यान से चर्चा शुरू करते हैं.
गोरूमारा राष्ट्रीय उद्यान: कोलकाता से जलपाईगुड़ी के रास्ते 52 किलोमीटर की दूरी पर गोरूमारा राष्ट्रीय उद्यान स्थित है. यह अपने प्राकृतिक सौंदर्य, मनमोहक दृश्य, घने जंगल और खूबसूरत झरनों के लिए जाना जाता है. ऊपरी हिमालय की पर्वतशृंखलाओं के नीचे समतल का खुला मैदान पर्यटकों को अपनी ओर खूब आकर्षित करता है. इस उद्यान के मुख्य आकर्षण गैंडा, हाथी, गौड़, तेंदुआ आदि वन्य जीव हैं.
जल्दपाड़ा अभयारण्य : भूटान की सीमा के नजदीक बंगाल के उत्तरी जिले जलपाईगुड़ी में 217 वर्ग किलोमीटर तक के क्षेत्र में फैला है जल्दपाड़ा वन्यजीव अभयारण्य. यह जलपाईगुड़ी की तोरसा नदी समेत इस की अन्य सहायक नदियों के करीबी समतल मैदानों के घने जंगलों से घिरा अभयारण्य है. यहां के जंगल में सागौन के पेड़ और एक विशेष प्रकार की घास, जो हाथी घास के नाम से जानी जाती है, बहुतायत में पाई जाती है. अभयारण्य के दलदल में हिरण, तेंदुए, सांबर, काकड़, पाड़ा, जंगली सूअर, जंगली मुरगी, मोर, बटेर, हाथी और बाघ पाए जाते हैं. अभयारण्य में हाथी  की सवारी का लुत्फ भी उठाया जा सकता है.
कासिम बाजार : जलपाईगुड़ी के बाद मुर्शिदाबाद पर्यटन के लिहाज से प्रमुख जिला है. वैसे भी मध्यकाल में मुर्शिदाबाद नवाबों की राजधानी के रूप में जाना जाता था. इस जिले की भागीरथी नदी के तट पर कासिम बाजार का अपना ऐतिहासिक महत्त्व है. इस की वजह यह है कि अंगरेज फ्रांसीसी, डच समेत यूरोपीय व्यापारियों के बीच इस का महत्त्व रहा है. यूरोपीय व्यापारियों ने यहां अपने कारखाने स्थापित किए थे. भारत के विभिन्न स्थानों पर अपना उपनिवेश बनाने की ताक में रही विदेशी शक्तियों के लिए कासिम बाजार में रहते हुए मुर्शिदाबाद पर नजर रखना आसान हो जाता था.
कासिम बाजार रेशम उत्पादन का वृहद केंद्र रहा है. जाहिर है यहां रेशम उद्योग के लिए कच्चे माल और कुशल बुनकर आसानी से उपलब्ध हो जाते थे. हौलैंड के व्यापारियों ने यहां रेशम का एक कारखाना खोला था, जिस में 700-800 कारीगर काम करते थे.
हजारद्वारी पैलेस : मुर्शिदाबाद जिले का सब से प्रमुख पर्यटक स्थल हजारद्वारी पैलेस है. इसे मीर जाफर के वंशज नजीम हुमायूं शाह ने बनवाया था. इस राजमहल के वास्तुकार डंकन मैकलियोड थे. यह यूरोपीय शैली का स्थापत्य है. जैसा कि इस के नाम से जाहिर है, इस में 1 हजार द्वार हैं. 3 मंजिला यह महल 40 एकड़ से भी अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है. महल के आसपास मनोरम दृश्य पर्यटकों के लिए दर्शनीय हैं. यहां एक बड़ा पुस्तकालय भी है.
हजारद्वारी पैलेस में एक संग्रहालय भी है, जहां 18वीं शताब्दी की दुर्लभ चीजें हैं. शाही घरानों और नवाबों की जीवनशैली से जुड़ी बहुत सारी दर्शनीय चीजें संग्रहालय में हैं. 18वीं शताब्दी के 2,700 से भी अधिक प्रकार के हथियारों के अलावा सुंदर पेंटिंग्स, हाथीदांत से बनी वस्तुएं और कलाकृतियां प्रमुख हैं. पेंटिंग्स में नवाब सिराजुद्दौला समेत उन के पूर्वजों और नवाब अलीवर्दी खान की तलवारें भी संग्रहालय में हैं. संग्रहालय का बड़ा आकर्षण विंटेज कारों का बड़ा कलैक्शन है. बताया जाता है कि इन कारों का इस्तेमाल शाही घराने के सदस्य किया करते थे. इस के अलावा धर्मभीरु पर्यटक मायापुर इस्कौन मंदिर भी जा सकते हैं.
विष्णुपुर टेराकोटा मंदिर: बांकुड़ा जिला अपने टेराकोटा मंदिरों, बालूचरी साडि़यों और पीतल की सजावटी कलाकृतियों के लिए जाना जाता है. कोलकाता से 200 किलोमीटर की दूरी पर मल्ल राजाओं की राजधानी रहा है यह जिला. आधुनिक बांकुड़ा जिला पुराने समय में मल्लभूमि के रूप में भी जाना जाता रहा है. मल्ल राजाओं के वंशजों ने बालूचरी साड़ी और टेराकोटा कला को परवान चढ़ाने में बहुत बड़ा योगदान दिया है. इस जिले के पक्की मिट्टी के बने लाल रंग के मंदिर पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं.
अगर बालूचरी साड़ी की बात की जाए तो यह विश्व प्रसिद्ध साड़ी है. ऐसी एक साड़ी को तैयार करने में
2 मजदूरों को कम से कम एक हफ्ता या उस से अधिक समय लगता है. काम की बारीकी के हिसाब से इस की कीमत होती है. 1 हजार से 15 हजार रुपए तक की साड़ी यहां मिलती है.
यहां हर साल दिसंबर के आखिरी सप्ताह में एक मेला लगता है, जो विष्णुपुर मेला के रूप में जाना जाता है. यह मेला कला और संस्कृति के अनोखे संगम के रूप में विश्वप्रसिद्ध है. मेले में देशीविदेशी पर्यटकों के अलावा दूरदूर से अपने हुनर के प्रदर्शन के लिए कलाकार और कला के पारखी आते हैं.
मुकुटमणिपुर
बांकुड़ा जिले का दूसरा प्रसिद्ध पर्यटक स्थल है मुकुटमणिपुर. यह बांकुड़ा से 55 किलोमीटर दूर है. यह दरअसल एक बांध है. हरेभरे जंगल और पानी की विशाल धारा के साथ प्राकृतिक सौंदर्य के लिए यह बहुत मशहूर है. यहां के विशाल जलाशय के पानी में आसमान का प्रतिबिंब इस जगह की खूबसूरती में चार चांद लगा देता है. पर्यटक यहां पहाड़ी पर ट्रैकिंग का भी मजा ले सकते हैं. यहां की सब से ऊंची पहाड़ी बिहारीनाथ के नाम से जानी जाती है. यह पहाड़ी पर्यटन के लिए मशहूर है. यहां का नैसर्गिक वातावरण पर्यटकों को खूब आकर्षित करता है.
यहां पिरामिड की शक्ल में ईंटों से बना एक बहुत पुराना मंदिर है, जो रासमंच के नाम से जाना जाता है. यह भी टेराकोटा शैली का मंदिर है.
16वीं सदी में मल्ल राजा हंबीरा ने रास उत्सव के इस मंदिर का निर्माण विशेष रूप से कराया था. इस के अलावा 17वीं सदी में जोरबंगला नामक एक और टेराकोटा मंदिर है. दरअसल, पुराने बांकुड़ा जिले में टेराकोटा के कई मंदिर हैं और इसीलिए इसे मंदिरों का शहर भी कहा जाता है.
सुंदरवन
दुनिया के सब से बड़े डेल्टा के रूप में जाना जाता है सुंदरवन. पूरा सुंदरवन न केवल बंगाल के 2 जिलों उत्तर 24 परगना और दक्षिण 24 परगना में, बल्कि बंगलादेश तक फैला हुआ है. सुंदरवन के भारतीय इलाकों में लगभग 54 द्वीप हैं, जो इस क्षेत्र का केवल 40 प्रतिशत है, शेष 60 प्रतिशत बंगलादेश के अंतर्गत आता है. यहां अकसर समुद्री चक्रवाती तूफान आते हैं. विशेष रूप से मार्च महीने से चक्रवाती तूफान का आना शुरू होता है. चक्रवाती तूफानों की वजह से गरमी के दिनों में यहां पर्यटकों को आने की अनुमति नहीं दी जाती है. यहां पर्यटन के लिए सब से अच्छा समय सितंबर से फरवरी तक का माना जाता है.
सुंदरवन रौयल बंगाल टाइगर, मैनग्रोव के जंगल और यहां पाए जाने वाले विशेष तरह के सुंदरी नामक पेड़ के लिए जाना जाता है. यहां के मैनग्रोव 10-12 फुट ऊंचे होते हैं और रौयल बंगाल टाइगर का यही निवासस्थल है. दरअसल, मैनग्रोव की पत्तियां पीलीहरीचितकबरी होती हैं और इसी की वजह से बाघ इन पत्तियों के बीच आसानी से छिप जाते हैं. इस के अलावा सुंदरवन लाल केंकड़े, कछुए, मगरमच्छ, हिरन, रंगबिरंगे पक्षियों, शिकारी बिल्लियों, प्रवासी पक्षियों तथा विभिन्न प्रजाति के विषैले सांपों व शहद के लिए भी जाना
जाता है.
कोलकाता से यहां पहुंचने के लिए नियमित बस सेवाएं हैं. कैनिंग ‘गेटवे औफ सुंदरवन’ कहलाता है. सड़क के रास्ते 6 जगहों– कैनिंग, सोनाखाली, नामखाना, रायदीघी, जामतला और थामाखाली हो कर पहुंचा जा सकता है. कैनिंग तक पहुंचने के लिए सियालदह से टे्रन उपलब्ध है.
दीघा
कोलकाता से 187 किलोमीटर की दूरी पर दीघा नाम का समुद्रतट है. धर्मतल्ला और उल्टाडांगा से बसें जाती हैं. आजकल टे्रन भी उपलब्ध है. हावड़ा से ट्रेन के जरिए महज 2 घंटे में दीघा पहुंचा जा सकता है. नवंबर से मार्च तक का समय दीघा पर्यटन के अनुकूल होता है. पहले यह बारीकूल के नाम से जाना जाता था लेकिन अब दीघा के नाम से विश्वप्रसिद्ध है.
दीघा के करीब न्यू दीघा को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है. यहां समुद्र तट के अलावा झील और पार्क हैं. झील में बोटिंग का मजा लिया जा सकता है. यहां पैडल बोट से ले कर मोटर बोट तक उपलब्ध हैं. दीघा से लगभग 14 किलोमीटर की दूरी पर शंकरपुर नाम का एक और पर्यटन स्थल है. इसे फिशिंग प्रोजैक्ट के लिए जाना जाता है.
यहां से सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों का नजारा मनमोहक होता है. दीघा के समुद्र तट के किनारेकिनारे चल कर ओडिशा तक पहुंचा जा सकता है. यहां के लाल केंकड़े विश्वप्रसिद्ध हैं. इन केकड़ों के दर्शन पर्यटकों के लिए बहुत ही खुशी की बात है क्योंकि पर्यटन के मौसम में ये केंकड़े कम ही दिखाई देते हैं.
दार्जिलिंग
पहाड़ों की सैर के लिए दार्जिलिंग अच्छा विकल्प है. बंगाल का पहाड़ी इलाका दार्जिलिंग कभी सिक्किम का हिस्सा हुआ करता था.
दार्जिलिंग अपनी चाय और टौय ट्रेन के लिए सब से अधिक जाना जाता है. यहां की चाय दुनिया की सब से बढि़या चाय में शुमार की जाती है. यहां की उम्दा चाय 3 हजार रुपए प्रति किलोग्राम तक बिकती है. टौय ट्रेन का स्थानीय नाम हिमालयन रेलवे है. 1878 में इस की स्थापना हुई. मुख्य शहर दार्जिलिंग से 80 किलोमीटर दूर घूम कर टौय ट्रेन की सवारी की जा सकती है. यहां की टौय ट्रेन विश्व विरासत का हिस्सा बन चुकी है.
दार्जिलिंग से बौद्धों के मठ और पहाड़ों के खूबसूरत नजारे नजर आते हैं. दार्जिलिंग में एक टाइगर हिल है. वहां से सुबहसुबह विश्व की सब से ऊंची चोटी एवरेस्ट और विश्व की तीसरी सब से ऊंची चोटी कंचनजंगा का नजारा देखने के लिए खासी भीड़ उमड़ती है.
मठों के लिए प्रसिद्ध दार्जिलिंग का सब से प्रसिद्ध मठ घूम मठ है. यह टाइगर हिल के करीब है. इस मठ में बुद्ध की 15 फुट की प्रतिमा है. कीमती पत्थर से बनी मूर्ति में सोने की परत चढ़ी है. यहां से थोड़ी दूर पर एक और मठ है, जिसे जेलूग्पा के नाम से जाना जाता है. दार्जिलिंग औब्जर्वेटरी हिल के पास भूटिया बस्ती मठ है.
कहते हैं, इस मठ में 1815 में नेपालियों ने लूटपाट की थी. 1879 में इस मठ को फिर से बनाया गया, जो नेपालीतिब्बती शैली का है. इस के अलावा माकडोग मठ, दू्रकचन चोलिंग मठ और शाक्या मठ भी हैं. माकडोग मठ का निर्माण 1914 में हुआ था. यह योलमोवा संप्रदाय का है. ये लोग नेपाल से यहां आ कर बस गए थे. दू्रकचन चोलिंग मठ तिब्बती शैली का मठ है. शाक्या मठ शाक्य संप्रदाय का है.
जापानी पैगोडा का निर्माण 1972 में शुरू किया गया, जिसे 1992 में आम लोगों के लिए खोल दिया गया. यहां लाल पांडा और स्नो लैपर्ड के लिए कृत्रिम प्रजनन केंद्र है, जो पद्मजा नायडू हिमालयन जैविक उद्यान के नाम से जाना जाता है. इस उद्यान में 50 से भी अधिक प्रजाति के और्किड का एक संग्रहालय है. यहां से करीब ही नैचुरल
हिस्ट्री म्यूजियम भी है जहां विभिन्न प्रकार के पक्षियों, सरीसृपों, कीटपतंगों को संरक्षित रखा गया है.
दार्जिलिंग का पर्वतारोहण संग्रहालय भी दर्शनीय है. यहां एवरेस्ट के तमाम ऐतिहासिक अभियानों से जुड़ी वस्तुओं को रखा गया है. 1953 में एवरेस्ट पर पहली बार भारत का झंडा फहराने वाले शेरपा तेनजिंग के अभियान से संबंधित वस्तुएं देखी जा सकती हैं.
संग्रहालय के अलावा यहां पर्वतारोहण का प्रशिक्षण भी दिया जाता है. इन के अलावा दार्जिलिंग के अन्य पर्यटक स्थल हैं : गंबू चट्टान, गंगामाया पार्क, रौक गार्डन, श्रवरी पार्क और राज भवन. दार्जिलिंग से मानेभंज्जयांग हो कर संदाकफू की यात्रा पर्यटकों के लिए एक बहुत अच्छा अनुभव है. पैदल यात्रा से ही उन का लुत्फ उठाया जा सकता है.

झारखंड – कणकण में प्रकृति का अद्भुत नजारा

झारखंड पर प्रकृति ने अपने सौंदर्य का खजाना जम कर बरसाया है. घने जंगल, खूबसूरत वादियां, जलप्रपात, वन्य प्राणी, खनिज संपदाओं से भरपूर और संस्कृति के धनी इस राज्य में सैलानियों के लिए देखने को बहुत कुछ है.
रांची
झारखंड की राजधानी रांची समुद्र तल से 2064 फुट की ऊंचाई पर बसा है. यह चारों तरफ से जंगलों और पहाड़ों से घिरा है. इस के आसपास गुंबद के आकार के कई पहाड़ हैं जो शहर की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. इस जिले में हिंदी, नागपुरी, भोजपुरी, मगही, खोरठा, मैथिली, बंगला, मुंडारी, उरांव, पंचपरगनिया, कुडुख और अंगरेजी बोलने वाले आसानी से मिल जाते हैं. यहां के कई जलप्रपात और गार्डन पर्यटकों को रांची की ओर बरबस खींचते रहे हैं.
हुंडरू फौल : रांची शहर से 40 किलोमीटर दूर स्थित इस फौल की खासीयत यह है कि इस में नदी का पानी 320 फुट की ऊंचाई से गिर कर मनोहारी दृश्य पेश करता है. रांचीपुरुलिया मार्ग पर अनगड़ा के पास स्थित इस फौल तक कार, मोटरसाइकिल, बस, ट्रैकर (छोटी गाड़ी जिस में 10-12 लोग बैठ सकते हैं) के जरिए पहुंचा जा सकता है.
जोन्हा फौल (गौतम धारा) : यहां राढ़ू नदी 140 फुट ऊंचे पहाड़ से गिर कर फौल बनाती है. इस की खूबी यह है कि फौल और धारा के निकट पहुंचने के लिए 489 सीढि़यां बनी हुई हैं. सीढि़यों पर चढ़ते और उतरते समय सावधानी रखने की जरूरत होती है क्योंकि पानी से भीगे रहने की वजह से सीढि़यों
पर फिसलन होती है. रांचीपुरुलिया मार्ग पर स्थित यह फौल रांची शहर से 49 किलोमीटर दूर है और यहां तक कार, मोटरसाइकिल, बस, ट्रैकर के जरिए पहुंचा जा सकता है.
दशम फौल : शहर से 46 किलोमीटर दूर स्थित यह फौल कांची नदी की कलकल करती धाराओं से बना है. यहां पर कांची नदी 144 फुट ऊंची पहाड़ी से गिर कर दिलकश नजारा प्रस्तुत करती है. प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर इस फौल के पानी में कभी भी उतरने की कोशिश नहीं करनी चाहिए क्योंकि पानी के नीचे खतरनाक नुकीली चट्टानें हैं. फौल के पास के पत्थर भी काफी चिकने हैं, इसलिए उन पर खास ध्यान दे कर चलने की जरूरत है. फौल तक कार, मोटरसाइकिल, बस या फिर यहां चलने वाली छोटी गाडि़यों के जरिए पहुंचा जा सकता है.
हिरणी फौल : यह फौल रांचीचाईबासा मार्ग पर है और रांची से करीब 70 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. यहां तक कार, मोटरसाइकिल, बस, ट्रैकर के जरिए पहुंचा जा सकता है. 120 फुट ऊंचे पहाड़ से गिरते पानी का संगीत पर्यटकों के दिलों के तारों को झंकृत कर देता है.
सीता फौल : यहां 280 फुट की ऊंचाई से गिरते पानी को देखने और कैमरे में कैद करने का अलग ही मजा है. यह फौल शहर से 44 किलोमीटर दूर रांचीपुरुलिया रोड पर स्थित है. यहां कार, मोटरसाइकिल, बस, ट्रैकर के जरिए पहुंच सकते हैं. फौल के पानी में ज्यादा दूर तक जाना खतरे को न्यौता देना हो सकता है.
पंचघाघ : यहां पर एकसाथ और एक कतार में पहाड़ों से गिरते 5 फौल प्राकृतिक सुंदरता का अनोखा नजारा पेश करते हैं. रांची से 40 किलोमीटर और खूंटी से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस फौल के पास हराभरा घना जंगल और बालू से भरा तट है जो पर्यटकों को दोहरा आनंद देता है. इस फौल तक पहुंचने के लिए कार, मोटरसाइकिल, बस, ट्रैकर आदि का सहारा लिया जा सकता है.
बिरसा मुंडा जैविक उद्यान : यह उद्यान रांची से 16 किलोमीटर पूर्व में रांचीपटना मार्ग पर ओरमांझी के पास स्थित है. इस से 8 किलोमीटर की दूरी पर मूटा मगरमच्छ प्रजनन केंद्र भी है.
रौक गार्डन : कांके के रौक गार्डन में प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाया जा सकता है. गार्डन का भूतबंगला बच्चों के बीच खूब लोकप्रिय है. यहां से कांके डैम का भी नजारा लिया जा सकता है.
टैगोर हिल : शहर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मोराबादी हिल, टैगोर हिल के नाम से मशहूर है. यह कवि रवींद्र नाथ टैगोर के बड़े भाई ज्योतिंद्रनाथ टैगोर के जीवन से जुड़ी हुई है. रवींद्रनाथ को भी यहां की प्राकृतिक सुंदरता काफी लुभाती थी. सूर्योदय और सूर्यास्त का नजारा लेने के लिए पर्यटक यहां घंटों बिताते हैं.
इस के अलावा बिरसा मृग विहार, नक्षत्र वन, कांके डैम, सिद्धूकान्हू पार्क, रांची झील, रातूगढ़ आदि भी रांची के मशहूर पर्यटन स्थल हैं.
एअरपोर्ट : रांची एअरपोर्ट.
रेलवे स्टेशन : रांची रेलवे स्टेशन.
बस अड्डा : रांची बस अड्डा (रेलवे स्टेशन के पास).
कहां ठहरें : मेन रोड पर कई होटल 500 से ले कर 3 हजार रुपए किराए पर मौजूद हैं.
जमशेदपुर
टाटा स्टील की नगरी जमशेदपुर या टाटा नगर पूरी तरह से इंडस्ट्रियल टाउन है, पर यहां के कई पार्क, अभयारण्य और लेक पर्यटकों को अपनी ओर खींचते रहे हैं.
जुबली पार्क : 238 एकड़ में फैले जुबली पार्क को टाटा स्टील के 50वें सालगिरह के मौके पर बनाया गया था. साल 1958 में बने इस पार्क को मशहूर वृंदावन पार्क की तरह डैवलप किया गया है. इस की सब से बड़ी खासीयत यह है कि इस में गुलाब के 1 हजार से ज्यादा किस्मों के पौधे लगाए गए हैं, जो पार्क को दिलकश बनाने के साथसाथ खुशबुओं से सराबोर रखते हैं. इस में चिल्डे्रन पार्क और झूला पार्क भी बनाया गया है. झूला पार्क में तरहतरह के झूलों का आनंद लिया जा सकता है. रात में रंगबिरंगे पानी के फौआरे जुबली पार्क की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं.
दलमा वन्य अभयारण्य : दलमा वन्य अभयारण्य जमशेदपुर का खास प्राकृतिक पर्यटन स्थल है. शहर से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह अभयारण्य 193 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. इस में जंगली जानवरों को काफी नजदीक से देखने का खास इंतजाम किया गया है. हाथी, तेंदुआ, बाघ, हिरन से भरे इस अभयारण्य में दुर्लभ वन संपदा भरी पड़ी है. यह हाथियों की प्राकृतिक आश्रयस्थली है. झारखंड के पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला, खरसावां से ले कर पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले की बेल पहाड़ी तक इस का दायरा फैला हुआ है.
डिमना लेक : जमशेदपुर शहर से 13 किलोमीटर की दूरी पर स्थित डिमना लेक के शांत और प्राकृतिक सौंदर्य का लुत्फ लिया जा सकता है. दलमा पहाड़ी की तलहटी में बसी इस लेक को देखने के लिए सब से ज्यादा पर्यटक दिसंबर और जनवरी के महीने में आते हैं.  इस के अलावा हुडको झील, दोराबजी टाटा पार्क, भाटिया पार्क, जेआरडी कौंप्लैक्स, कीनन स्टेडियम, चांडिल डैम आदि भी जमशेदपुर के प्रमुख पर्यटन स्थल हैं.
नजदीकी एअरपोर्ट : टाटा एअरपोर्ट.
रेलवे स्टेशन : टाटानगर रेलवे स्टेशन.
हजारीबाग
झारखंड के सब से खूबसूरत शहर हजारीबाग को ‘हजार बागों का शहर’ कहा जाता है. कहा जाता है कि कभी यहां 1 हजार बाग हुआ करते थे. झीलों और पहाडि़यों से घिरा यह खूबसूरत शहर समुद्र तल से 2019 फुट की ऊंचाई पर बसा हुआ है. रांची से 91 किलोमीटर की दूरी पर हजारीबाग नैशनल हाईवे-33 पर बसा हुआ है.
बेतला नैशनल पार्क : साल 1976 में बना यह नैशनल पार्क 183.89 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. इस नैशनल पार्क में जंगली सूअर, बाघ, तेंदुआ, भालू, चीतल, सांभर, कक्कड़, नीलगाय आदि जानवर भरे पड़े हैं. पार्क में घूमने और जंगली जानवरों को नजदीक से देखने के लिए वाच
टावर और गाडि़यों की व्यवस्था है. हजारीबाग शहर से 16 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस पार्क की रांची शहर से दूरी 135 किलोमीटर है.
कनेरी हिल : यह वाच टावर हजारीबाग का मुख्य आकर्षण है. शहर से 5 किलोमीटर दूरी पर स्थित कनेरी हिल से हजारीबाग का विहंगम नजारा लिया जा सकता है. सूर्यास्त और सूर्योदय के समय पर्यटक इस जगह से शहर की खूबसूरती को देखने आते हैं. इस वाच टावर के ऊपर पहुंचने के लिए 600 सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं.
इस के अलावा रजरप्पा, सूरजकुंड, हजारीबाग सैंट्रल जेल, हजारीबाग लेक आदि कई दर्शनीय स्थल भी हैं.
नजदीकी एअरपोर्ट : रांची एअरपोर्ट (91 किलोमीटर).
रेलवे स्टेशन : कोडरमा रेलवे स्टेशन (56 किलोमीटर).
बस अड्डा : हजारीबाग बस अड्डा.
नेतरहाट : छोटा नागपुर की रानी के नाम से मशहूर नेतरहाट से सूर्योदय और सूर्यास्त का अद्भुत नजारा देखा जा सकता है
6.4 किलोमीटर लंबे और
2.5 किलोमीटर चौड़ाई में फैले नेतरहाट पठार में क्रिस्टलीय चट्टानें हैं. समुद्र तल से 3514 फुट की ऊंचाई पर स्थित नेतरहाट के पठार रांची शहर से 160 किलोमीटर की दूरी पर हैं. झारखंड के लातेहार जिले में स्थित नेतरहाट में घाघर और छोटा घाघरी फौल भी पर्यटकों को लुभाते हैं.
नजदीकी एअरपोर्ट : रांची एअरपोर्ट.
नजदीकी रेलवे स्टेशन : रांची रेलवे स्टेशन.

प्राकृतिक सौंदर्य की अनमोल धरोहर ओडिशा

पर्यटन में रोमांच के साथ अगर आप चाहते हैं प्राकृतिक नजारों और वाइल्डलाइफ पर्यटन का आनंद तो चले आइए प्रकृति की अनमोल धरोहर ओडिशा.
भारत में कुछ पर्यटन स्थल  ऐसे हैं जो अपनी संस्कृति और विरासत के मामले में अद्वितीय हैं. ओडिशा राज्य उन्हीं में से एक है. अपनी समृद्ध परंपरा एवं अपार प्राकृतिक संपदा से युक्त ओडिशा पर्यटन के लिहाज से महत्त्वपूर्ण प्रदेश है. इस राज्य में अनगिनत खूबसूरत नजारे व अनुभव सिमटे हुए हैं.
चिल्का झील
जगन्नाथपुरी से 165 किलो- मीटर दूर स्थित चिल्का झील का सौंदर्य पर्यटकों को अपनी ओर खूब आकर्षित करता है. खारे पानी की सब से बड़ी यह झील बंगाल की खाड़ी में जा कर मिलती है. राज्य के समुद्रतटीय हिस्से में फैली यह झील अपनी अवर्णनीय खूबसूरती एवं पक्षी जीवन के लिए विश्वप्रसिद्ध है. झील में कैस्पियन सागर, बैकल झील व अरब सागर से ले कर रूस, मंगोलिया व दक्षिणपूर्व एशिया, लद्दाख व हिमालय से पक्षी आते हैं. ये पक्षी 12 हजार किलोमीटर से भी अधिक का सफर तय कर चिल्का झील तक पहुंचते हैं. झील के एक ओर संकरा सा मुखद्वार है जहां से ज्वार के समय समुद्री जल इस में आ समाता है और तब सुंदर लैगून की रचना होती है.
चिल्का झील में महानदी की भार्गवी, दया कुसुमी, सालिया, कुशभद्रा जैसी धाराएं भी समाहित होती हैं. इन के चलते इस में मीठे जल का संगम होता है. इस मिश्रित जल में ऐसे कई गुण हैं जो यहां के जलीय पौधों व जीवजंतुओं को जीवनदान देते हैं. यहां पक्षियों की लगभग 158 प्रजातियां देखी जाती हैं. इन में 95 प्रकार के प्रवासी होते हैं जो यहां आ कर डेरा डालते हैं.
बत्तख, नन्हे, स्टिनर, सेंडरलिंग, के्रन, गोल्डन, प्लोवर, फ्लेमिंगो, स्टोर्क गल्स और ग्रे पेलिकन यहां पाए जाने वाले प्रमुख पक्षी हें. अक्तूबर- नवंबर माह से आने वाले पक्षी दिसंबरजनवरी में ऐसे दिखते हैं मानो पक्षियों की अलगअलग कालोनियां बसी हों.
अफ्रीका की विक्टोरिया झील के बाद यह दूसरी झील है, जहां पक्षियों का इतना बड़ा जमघट लगता है. 1973 में इस झील को वाइल्ड लाइफ सैंक्चुरी घोषित किया गया था. फिशिंग के शौकीन लोगों के लिए चिल्का झील एक फेवरेट स्पौट है. इस के पानी में मछलियों की 150 से अधिक प्रजातियां पाई जाती हैं. हो सकता है आप को इस के मुखद्वार पर डौल्फिन के दर्शन भी हो जाएं.
चिल्का झील ओडिशा की एक ऐसी सैरगाह है जिसे देखे बिना ओडिशा की यात्रा पूरी नहीं हो सकती. सूर्य की स्थिति एवं झील के ऊपर मंडराते बादलों में परिवर्तन के साथ यह नयनाभिराम झील दिन के हर पहर में अलग रंग व रूप में नजर आती है.
झील की सैर
चिल्का झील की प्रचुर जलराशि के सौंदर्य को एक जगह से देखना संभव नहीं है क्योंकि नाशपाती के आकार की लगभग 1100 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैली यह झील लगभग 70 किलोमीटर लंबी व 15 किलोमीटर चौड़ी है. इस की औसत गहराई 3 मीटर है. जहां झील के एक ओर नीला सागर है वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय राजमार्ग व रेलवे लाइन से आगे हरीभरी पहाडि़यां हैं.
चिल्का भ्रमण के लिए पुरी व भुवनेश्वर से कंडक्टेड टूर भी चलते हैं. कटक, भुवनेश्वर, पुरी व बेरहमपुर से बस या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है. पर्यटकों के ठहरने के लिए रंभा व बरकुल में ओडिशा पर्यटन विभाग के निवास होटल हैं.
हनीमूनर्स पैराडाइज
प्रकृति के वरदान को अपने में समेटे चिल्का झील को हनीमूनर्स पैराडाइज के नाम से भी जाना जाता है. चिल्का झील की सैंक्चुरी में लाखों अद्भुत पक्षियों को देखना हनीमून पर आए जोड़ों को लुभाता है. यहां नवविवाहित जोड़े नौका विहार के साथ फिशिंग का भी आनंद ले सकते हैं. चिल्का झील पर जलीय वनस्पतियों से बने छोटेछोटे द्वीपखंड चिल्का के सौंदर्य में चार चांद लगाते हैं. इन द्वीपों में कालीजय द्वीप, बर्ड आइलैंड, बे्रकफास्ट आइलैंड, हनीमून आइलैंड, परीकुंड तथा नालाबन
प्रमुख हैं.
झील के तट पर हर वर्ष लगने वाला तारतारिणी मेला व बोट रेस भी पयर्टकों को खासी आकर्षित करती है. झील के चारों ओर स्थित पहाड़ों पर झुके बादलों का अभिनव रूप टापू पर स्थित पक्षियों के साथसाथ पर्यटकों का भी मन मोह लेता है.
नंदनकानन वन
पर्यटन के नजरिए से समृद्ध इस प्रदेश का नंदनकानन वन अपने प्राकृतिक सौंदर्य, लहलहाते हरित वन आवरण, फलफूलों तथा पशुपक्षियों की व्यापक किस्मों के लिए मेजबान का काम करता है. भुवनेश्वर से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर लगभग 400 हैक्टेअर में फैले इस पार्क को ‘गार्डन औफ प्लेजर’ भी कहते हैं. इस वन में वनस्पतियों और जीवजंतुओं को कुदरती वातावरण में फलनेफूलने का मौका मिलता है.
अगर आप ज्यादा चलनाफिरना नहीं चाहते तो एरियल रोपवे और केबल कार द्वारा इस वन में घूमने का आनंद उठा सकते हैं. सफेद बाघों के अलावा शेर, तेंदुए, घडि़याल, काले चीते, रोजी पेलिकन, ग्रेपेलिकन, पाइपन, किंगकोबरा आदि जीवजंतु यहां के मुख्य आकर्षण हैं जो प्रकृति व वाइल्डलाइफ प्रेमियों को ताजगी व सुकून का एहसास देते हैं. किस्मकिस्म के स्वदेशी पौधों से भरा बोटैनिकल गार्डन भी नंदनकानन वन का एक अन्य मुख्य आकर्षण है.
नंदनकानन पहुंचने के लिए नजदीकी रेलवे स्टेशन व एअरपोर्ट भुवनेश्वर है. यहां से आप बस या टैक्सी की सुविधा ले सकते हैं. सड़क मार्ग द्वारा नंदनकानन वन ओडिशा के प्रमुख शहरों जैसे भुवनेश्वर, भवानीपटना, नवरंगपुर आदि से जुड़ा हुआ है.
नए आयाम देते तट
बालेश्वर तट : बालेश्वर का शांत समुद्र तट निश्चित रूप से देश के अनेक अति सुंदर समुद्र तटों में से एक है. विसर्पी लताओं तथा हवा से गूंजती आकाश बेलों से मुक्त रेतीले टीलों की हरियाली लहरों के खेल का अवलोकन करने में मग्न पर्यटकों के लिए एक अद्भुत क्षण का सृजन
करती हैं.
चांदीपुर तट : चांदीपुर आकाश बेल के वृक्षों की संगीतमय गूंज तथा विसर्पी रेतीले टीलों से ढका हुआ है. यह एक शांत समुद्री तट है. निम्न ज्वार के समय समुद्र का जल लगभग 5 किलोमीटर पीछे हट जाता है तथा ऊंचे ज्वार के समय फिर तट रेखा तक पहुंच जाता है. यह समुद्री तट इस की उथली गहराइयों में चलने का अवसर देता है.
पुरी बीच : पुरी का बीच यानी समुद्र तट सैलानियों में अत्यंत लोकप्रिय है. सब से ज्यादा सैलानी इसी बीच पर आ कर मौजमस्ती करते हैं. उत्तर भारतीय निवासियों के लिए यहां यह एक नया अनुभव होता है क्योंकि बहुत से लोगों ने समुद्र तट पहली बार देखा होता है. तेज लहरों के बीच अगर आप तैराकी नहीं कर सकते तो तट के किनारे बैठ कर आती लहरों में भीगने का मजा ले सकते हैं.

गंगाजमुनी संस्कृति का परिवेश उत्तर प्रदेश

पर्यटन के हर रंग को अपने में समेटे उत्तर प्रदेश में जहां गुलाबी पत्थरों से सजा लखनऊ है, पश्चिमी खानपान से ले कर देशी खाने का निराला स्वाद है वहीं घाटों का शहर वाराणसी, शिक्षा व साहित्य की राजधानी इलाहाबाद और आगरे का मशहूर ताजमहल भी दर्शनीय हैं. यानी पर्यटन का हर नजारा यहां मौजूद है.
पर्यटन के लिहाज से उत्तर प्रदेश में बहुत सारी जगहें हैं. यहां के लखीमपुरखीरी जिले में बना दुधवा नैशनल पार्क वन्यजीव पर्यटन के लिए सब से खास जगह बन गई है. यह भारत और नेपाल की सीमा क्षेत्र में फैला वन है. 1977 में इस को दुधवा के जंगलों में बनाया गया था. 1987 में किशनपुर वन्यजीव, विहार को इस में शामिल कर दिया गया. 884 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला यह बाघ संरक्षित वन है. यहां पर हाथी, गैंडा, बारहसिंगा और हिरन जैसे तमाम जीव भी हैं. मगरमच्छ व घडि़याल भी यहां पर देखे जाते हैं. साल, असना, बहेड़ा, जामुन और बेर के तमाम पेड़ यहां पर हैं. बाघ और गैंडों को बचाने के लिए कई योजनाएं भी यहां चल रही हैं.
पर्यटकों के रुकने के लिए आधुनिक शैली में बनी थारू हट और रेस्ट हाउस उपलब्ध हैं.  यहां लकड़ी के मचान बने हैं जिन से पूरे क्षेत्र को देखा जा सकता है. यह पार्क दिल्ली से 430 किलोमीटर और लखनऊ से 230 किलोमीटर दूर है. करीबी रेलवे स्टेशन पलिया है. यहां से 10 किलोमीटर दूर दुधवा पार्क है. यहां रुकने के लिए ट्री हाउस भी बना है. यह विशालकाय साखू के पेड़ पर 50 फुट ऊपर बना है. डबल बैडरूम वाला यह ट्री हाउस सभी सुविधाओं से लैस है. यहां रुकने के लिए पहले से बुकिंग करानी होती है. ज्यादातर लोग इसे देख कर ही मजा लेते हैं.
नवंबर से मार्च तक का सीजन घूमने के लिए सब से अच्छा होता है. 15 नवंबर के बाद इसे पर्यटकों के लिए खोल दिया जाता है. यहां का प्रवेश शुल्क 100 रुपए प्रति व्यक्ति, गाइड का 200 रुपए प्रति शिफ्ट, हाथी की सवारी के लिए 600 रुपए 4 आदमियों के लिए, जिप्सी का 1 हजार रुपए प्रति शिफ्ट और बस का 200 रुपए प्रति सीट पड़ता है. सामान्य हट के लिए 300 रुपए, वीआईपी 500 रुपए, डौरमैट्री 75 रुपए प्रति बैड देना पड़ता है. अगर उत्तर प्रदेश घूमने की शुरुआत दुधवा नैशनल पार्क से करें तो बेहतर हो सकता है. इस के बाद उत्तर प्रदेश के बाकी शहरों को घूमा जा सकता है.
लखनऊ  
राज्य की राजधानी लखनऊ बहुत ही साफसुथरी और ऐतिहासिक जगह है. अगर आप हैरिटेज टूरिज्म के शौकीन हैं तो लखनऊ की इमारतें वास्तुकला का बेजोड़ नमूना साबित होंगी. अब  यहां गुलाबी पत्थरों का प्रयोग कर नए पार्क और स्मारक बन गए हैं जो खास आकर्षण का केंद्र हैं.
1775 से 1856 तक लखनऊ अवध राज्य की राजधानी था. नवाबी काल में यहां अदब और तहजीब का विकास हुआ. लखनऊ का इतिहास बहुत पुराना है. समय के साथसाथ इस का नाम और पहचान बदलती रही है.     लखनऊ में पश्चिमी व्यंजनों से ले कर देशी व्यंजनों तक का निराला स्वाद लिया जा सकता है. यहां पर बहुत तेजी के साथ बडे़ रैस्तरां खुले हैं. मौजमस्ती के लिए आनंदी वाटर पार्क, ड्रीमवैली, दयाल पैराडाइज और स्कौर्पियो क्लब जैसी जगहें हैं. लखनऊ में  खाने के लिए छप्पनभोग की चाट, समोसे और कुल्फी के साथ टुंडे के कबाब और बिरयानी का स्वाद लिया जा सकता है.
लखनऊ फलों में दशहरी आम और मिठाई में गुलाब रेवड़ी के लिए मशहूर है. हजरतगंज, अमीनाबाद और चौक जैसे बाजार बहुत ही मशहूर हैं.  अब शौपिंग मौल और मल्टीप्लैक्स सिनेमा लखनऊ की नई पहचान बन गए हैं.
अंबेडकर स्मारक गोमती नगर और कांशीराम ईको गार्डन वीवीआईपी रोड भी लखनऊ के पर्यटन की नई पहचान बन गए हैं. यहां देखने और घूमने के लिए बहुत सारी चीजें हैं. खासतौर पर रात में यहां की लाइटिंग किसी का भी मन मोह लेती है. बड़ा इमामबाडा (भूलभुलैया) लखनऊ की सब से खास हैरिटेज इमारत है.  हर पर्यटक इस को जरूर देखना चाहता है. चारबाग रेलवे स्टेशन से लगभग 6 किलोमीटर दूर बना इमामबाड़ा वास्तुकला का अद्भुत नमूना है. 1784 में इस को नवाब आसिफउद्दौला ने बनवाया था.  इस इमारत का पहला अजूबा 49.4 मीटर लंबा और 16.2 मीटर चौड़ा एक हौल है. इस में किसी तरह का कोई खंभा नहीं है.
बडे़ इमामबाड़े से 1 किलोमीटर आगे बना छोटा इमामबाड़ा लखनऊ की दूसरी बड़ी हैरिटेज इमारत है.  मुगलस्थापत्य कला के इस बेजोड़ नमूने का निर्माण अवध के तीसरे नवाब मोहम्मद अली शाह के द्वारा 1840 में कराया गया था. यहां नहाने के लिए एक खास किस्म का हौज बनाया गया था जिस में गरम और ठंडा पानी एकसाथ आता था. इस इमारत में शीशे के लगे हुए झाड़फानूस बहुत ही खूबसूरत हैं.
बड़े इमामबाड़े और छोटे इमामबाड़े के बीच के रास्ते में कई ऐतिहासिक इमारतें हैं. इन को पिक्चर गैलरी, घड़ी मीनार और रूमी दरवाजा के नाम से जाना जाता है. इन सब जगहों पर जाने के लिए टिकट इमामबाड़े से ही एकसाथ मिल जाता है.  इमामबाड़े के बाहर बने 60 फुट ऊंचे दरवाजे को रूमी दरवाजा कहा जाता है. इस के नीचे से सड़क निकलती है.  इस दरवाजे के निर्माण की खास बात यह है कि इस को बनाने में किसी तरह के लोहे या लकड़ी का प्रयोग नहीं किया गया है. रूमी दरवाजे से थोड़ा आगे चलने पर घड़ी मीनार बनी है. 221 फुट ऊंची इस मीनार का निर्माण 1881 में हुआ था. इस में लगी घड़ी का पैंडुलम 14 फुट लंबा है. इस का 12 पंखडि़यों वाला डायल खिले फूल की तरह का दिखता है.
लखनऊ का ला मार्टिनियर भवन यूरोपीय स्थापत्यकला का बेजोड़ नमूना है. यहां पर ला मार्टिनियर स्कूल चलता है.  महलनुमा बनी इस इमारत में एक झील बनी हुई है.
रेजीडेंसी का निर्माण अवध के नवाब आसिफउद्दौला ने 1780 में शुरू कराया था. यह इमारत 20 साल में बन कर तैयार हुई थी.  यह इमारत हजरतगंज बाजार से 3 किलोमीटर दूर है. 1857 की लड़ाई में अगरेजों ने इस पर कब्जा कर के इस को अपना निवासस्थल बना लिया. इस कारण इस का नाम रेजीडेंसी पड़ गया. इस की दीवारों पर आज भी आजादी की लड़ाई के चिह्न मौजूद हैं.  यहां बना खूबसूरत लौन इस की खूबसूरती में चार चांद लगाता है.
रेजीडेंसी के करीब ही शहीद स्मारक बना हुआ है. 1857 में शहीद हुए वीरों की याद में इस को गोमती नदी के किनारे बनवाया गया था. यहां नौका विहार का मजा भी लिया जा सकता है.
वाराणसी 
वाराणसी शहर गंगा नदी के किनारे बसा हुआ है. यह उत्तर प्रदेश का सब से पुराना शहर है. वाराणसी शहर में नदी के किनारे इतने घाट बने हुए हैं कि इस को घाटों का शहर भी कहा जाता है. सुबह के समय सूर्य की किरणें जब नदी के जल पर पड़ती हैं इन घाटों की शोभा देखते ही बनती है.  वाराणसी में अर्द्धचंद्राकार गंगा के किनारे लगभग 80 घाट बने हुए हैं.
वाराणसी में तैयार होने वाली साडि़यां अच्छी होती हैं.  इन को बनारसी साड़ी के नाम से जाना जाता है.  वाराणसी के पास बसा भदोई शहर का कालीन उद्योग भी बहुत खास है. धार्मिक खासीयत वाले वाराणसी शहर में पंडों और पुजारियों की अराजकता भी बहुत होती है.  ये लोग यहां घूमने आने वाले लोगों को धार्मिक अनुष्ठान में फंसाने की कोशिश करते हैं. पंडित मदनमोहन मालवीय द्वारा स्थापित काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हर विषय की उच्च स्तरीय पढ़ाई होती है.  यह एशिया का सब से बड़ा आवासीय विश्वविद्यालय है.  ‘भारत कला भवन’ इस विश्वविद्यालय की शोभा है.  इस की कला वीथिका में अप्रतिम कलाकृतियां रखी हैं.  इस का नया विश्वनाथ मंदिर आधुनिक तरह से बना हुआ है. घूमने वाले यहां पर जरूर आते हैं.
काशी नरेश शिवोदास द्वारा बनवाया गया काशी विश्वनाथ मंदिर दशाश्वमेध घाट के पास बना हुआ है. यहां तक पहुंचने के लिए संकरी गलियों से हो कर गुजरना पड़ता है. इस मंदिर में दर्शकों की भीड़ अधिक होने के कारण यहां पर गंदगी बहुत रहती है. संकरी गलियों का लाभ उठा कर चोरउचक्के लोगों के सामान पर हाथ साफ कर देते हैं. घूमने वालों को इस बात से सावधान रहना चाहिए. वाराणसी का भारत माता मंदिर भी उत्कृष्ट कला का एक नमूना है. इस को राष्ट्रभक्त बाबू शिवप्रसाद गुप्त द्वारा बनवाया गया था. यह भी देखने लायक है. यह मंदिर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के परिसर में बना हुआ है.  इस मंदिर में संगमरमर से तराश कर अनेकता में एकता के प्रतीक अखंड भारत का मानचित्र बनाया गया है.  घूमने वाले इस को जरूर देखते हैं.
काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 2 किलोमीटर दूर गंगा नदी के उस पार स्थित रामनगर किला काशी नरेश का पैतृक निवास है.  इस किले में एक संग्रहालय भी है जहां पर राजसी ठाटबाट के प्रतीक तीर, तलवार, बंदूकें और कपडे़ रखे हैं. रामनगर किला अपनी वास्तुकला के लिए बहुत ही मशहूर जगह है. आज भले ही इस का रखरखाव सही ढंग से नहीं हो रहा पर इस को देख कर उस समय की कला का पता चल जाता है.
वाराणसी से 10 किलोमीटर दूर बसा हुआ सारनाथ सम्राट अशोक के स्तूपों वाला शहर है. इसी स्तूप पर बने शेरों को भारत सरकार के राष्ट्रीय प्रतीक चिह्न के रूप में लिया गया है. यहां का हराभरा बाग और फूलों का बगीचा घूमने वालों का मन मोह लेता है. यहां पर मूलगंध कुटी भी देखने वाली जगह है. यहां के पुरातात्विक संग्रहालय में बौद्ध प्रतिमाओं व शिलालेखों को भी देखा जा सकता है.
आगरा
ताजनगरी आगरा उत्तर प्रदेश की एक बहुत ही खास घूमने वाली जगह है. यहां जो भी आता है विश्वविख्यात ताजमहल को देखने जरूर जाता है. अगर आप हैरिटेज टूरिज्म के शौकीन हैं तो ताज के साथ फतेहपुरसीकरी और आगरा किला भी जरूर देखिए. ताजमहल का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां ने अपनी बेगम मुमताज महल की याद में कराया था. यह सफेद संगमरमर का बना हुआ है. इस को बनाने में 22 साल लगे. ताजमहल को मुगलशैली के 4 बागों के साथ बनाया गया है. ताजमहल को आगरा के किले से भी देखा जा सकता है. शाहजहां को जब औरंगजेब ने किले में कैद कर दिया था तो उस समय वह वहां से ही ताजमहल को देखा करता था.
नीचे मुमताज महल की कब्र बनी है. ताजमहल को बनाने में बहुमूल्य रत्न और पत्थरों का प्रयोग किया गया था. सफेद संगमरमर से बने ताजमहल के  पास मखमली घास का मैदान है. इस के पिछले किनारे पर यमुना नदी बहती है. ताजमहल अपने अंदर बहुत सारी खूबियां समेटे हुए है. इस का एक हिस्सा गरमियों में भी सर्दियों की डंठक का एहसास कराता है. यहां पर खरीदारी करते समय सावधानी बरतनी चाहिए. ताजमहल हर वर्ग, खासतौर से प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है. ताजमहल के सामने बैठ कर कोई भी फोटो खिंचवाना नहीं भूलता.
आगरा का किला, ताजमहल की ही तरह अपने इतिहास के लिए जानापहचाना जाता है. आगरा का किला विश्व धरोहर माना जाता है. इस का निर्माण 1565 में मुगल बादशाह अकबर द्वारा कराया गया था. इस के बाद मुगल बादशाह शाहजहां ने इस का पुनर्निर्माण कराया. इस किले में जहांगीर महल, दीवाने ए खास, दीवाने ए आम और शीश महल देखने वाली जगहें हैं. यह किला अर्द्धचंद्राकार आकृति में बना है. इस की दीवार सीधे यमुना नदी तक जाती है. आगरा का किला 2.4 किलोेमीटर परिधि में फैला हुआ है. सुरक्षा के लिहाज से किले की दीवारों को काफी मजबूत बनाया गया है.
फतेहपुरसीकरी आगरा से 35 किलोमीटर दूर बसा है. इस का निर्माण अकबर ने कराया था. यहां पर शेख सलीम चिश्ती की दरगाह थी. इस कारण अकबर ने अपनी राजधानी आगरा से हटा कर फतेहपुरसीकरी कर ली थी. यहां पर कई इमारतें बनी हैं जो मुगलकाल की वास्तुकला
का बेजोड़ नमूना हैं. फतेहपुरसीकरी में पानी की कमी के कारण अकबर को अपनी राजधानी वापस आगरा लानी पड़ी थी. फतेहपुर सीकरी के गेट को बुलंद दरवाजा कहते हैं. कहा जाता है कि बुलंद दरवाजा बिना नींव के बनाया गया है.
झांसी
झांसी शहर को आजादी की नायिका रानी लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है. ग्वालियर हवाई अड्डा यहां से 98 किलोमीटर दूर है. यह शहर मुंबईदिल्ली रेलमार्ग पर पड़ता है. यहां के लिए मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, हैदराबाद, तिरुअनंतपुरम, कोलकाता, इलाहाबाद और लखनऊ जैसे तमाम शहरों से रेल सुविधा उपलब्ध है.  नैशनल हाईवे 25 और 26 से जुड़ा हुआ झांसी शहर अपनी ऐतिहासिक पहचान के लिए पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. यहां के लिए खजुराहो, ग्वालियर, छतरपुर, महोबा, देवगढ़, ओरछा, लखनऊ, कानपुर, दतिया, शिवपुरी, फतेहपुर, चित्रकूट, जबलपुर से बस सेवा भी उपलब्ध है.
रानी लक्ष्मीबाई का किला इस शहर की सब से खास घूमने वाली जगह है. वर्ष 1857 में आजादी की लड़ाई में अंगरेजों ने जिस किले पर गोले बरसाए थे वह आज भी वैसा का वैसा खड़ा हुआ है.  बंगरा की पहाडि़यों पर बना यह किला 1610 में राजा वीर सिंह जूदेव द्वारा बनवाया गया था. 18वीं शताब्दी में झांसी और उस के किले पर मराठों का अधिकार हो गया था.  मराठों के अंतिम शासक गंगाधर राव थे जिन की मृत्यु 1853 में हो गई थी. उस के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने शासन की बागडोर संभाल ली थी.  किले में अष्टधातु की बनी ‘कड़क बिजली’ और ‘भवानी शंकर’ नामक 2 तोपें आज भी रखी हैं.
रानी महल : इस इमारत को बाई साहब की हवेली के नाम से जाना जाता था.  यह महल शहर के बीच में बना हुआ है. इस का निर्माण रघुनाथ राव और महारानी लक्ष्मीबाई के समय में हुआ था. इसी वजह से इस को बाद में रानी महल कहा जाने लगा.  इस महल में रंगबिरंगी चित्रकारी देखने को मिलती है.  इसे देख कर पहले की शिल्पकला के बारे में पता चलता है.  किले में बड़ीबड़ी दालानें बनी हैं. उन में पत्थर की कारीगरी की गई है.  दीवारों पर बनी मेहराबों में भी प्राचीन कला का नमूना देखने को मिलता है.
इतना पुराना होने के बाद भी यह महल पहले जैसा ही दिखता है. इस महल का भी आजादी की लड़ाई से पुराना रिश्ता है.  इसी महल में रह कर महारानी लक्ष्मीबाई ने अंगरेजों के खिलाफ लोहा लेने की योजना बनाई थी. अंगरेजों के साथ लड़ाई कैसे लड़नी है, इस बात का प्रशिक्षण यहीं दिया गया था.  अब इस रानी महल में पुरातात्विक विभाग का संग्रहालय है.
इलाहाबाद
इलाहाबाद उत्तर प्रदेश का ऐतिहासिक नगर है. यह राजनीति, शिक्षा और फिल्म सभी के लिए बराबर मशहूर रहा है. इलाहाबाद गंगा,
यमुना और न लुप्त हो चली सरस्वती नदी के किनारे पर बसा हुआ है.  इलाहाबाद से देश को 3 प्रधानमंत्री देने वाले नेहरू परिवार का करीबी रिश्ता रहा है.
यहां गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों का संगम है.  यहां एक रेतीला मैदान है जहां पर हर साल दिसंबर से फरवरी के बीच माघ मेले का आयोजन होता है. इस को कुंभनगरी के रूप में भी जाना जाता है.
संगम तट पर बना अकबर का किला ऐतिहासिक इमारत है. किले के सामने एक अशोक स्तंभ भी बना है.  किले में जोधाबाई का रंगमहल भी बना हुआ है. बड़ेबडे़ पत्थरों की चारदीवारी से घिरा खुसरो बाग मुगलकाल की अद्भुत कला का नमूना है. लकड़ी के विशाल दरवाजे वाला खुसरो बाग जहांगीर के पुत्र खुसरो द्वारा बनवाया गया था. इस में अमरूद और आंवले के पेड़ों का बगीचा है. खुसरो और उस की बहन सुलतानुन्निसा की कब्रों पर बना ऊंचा मकबरा भी मुगलकालीन स्थापत्यकला का अद्भुत नमूना है.
आजाद पार्क : इस पार्क को कंपनी बाग के नाम से भी जाना जाता है. फूलों से सजा यह पार्क देखने लायक है.  यहां जाडे़ के दिनों में कुनकुनी धूप और गरमियों में शाम का मजा भी लिया जा सकता है. पार्क में लगी मखमली घास बैठने वालों को आरामदायक लगती है. इस पार्क का ऐतिहासिक महत्त्व है. आजादी की लड़ाई के नायक शहीद चंद्रशेखर आजाद जब अंगरेजों से घिर गए थे तब उन्होंने इसी पार्क में अपने को गोली मार ली थी.
आनंद भवन : यह इलाहाबाद की जानीमानी इमारत है.  यह भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का पैतृक आवास था.  इस को अब एक संग्रहालय का रूप दे दिया गया है.  इस में एक भव्य तारामंडल बना हुआ है.  इस इमारत को गांधीनेहरू परिवार की स्मृतियों की धरोहर के रूप में देखा जाता है.

खूबसूरत वादियों और वाइल्डलाइफ का अद्भुत मेल उत्तराखंड

विविध वन्यजीव और प्राकृतिक सौंदर्य के आंचल में बसे उत्तराखंड की बात ही निराली है. यहां खूबसूरत वादियों में सैलानियों को रोमांचक अनुभव के साथसाथ विविध संस्कृति का संगम भी मिलता है तो फिर क्यों न निहारा जाए यहां की खूबसूरती को.
उत्तराखंड में घूमने लायक बहुत जगहें हैं. जो वाइल्डलाइफ पर्यटन का शौक रखते हैं वे यहां के जिम कौर्बेट नैशनल पार्क का दीदार कर सकते हैं. नैनीताल जिले में स्थित यह पार्क 1,318 वर्ग किलोमीटर में फैला है. इस के 821 वर्ग किलोमीटर में बाघ संरक्षण का काम होता है. दिल्ली से यह पार्क 290 किलोमीटर दूर है.  मुरादाबाद से काशीपुर और रामनगर होते हुए यहां तक पहुंचा जा सकता है. यहां पर तमाम तरह के पशु मिलते हैं. इन में शेर, भालू, हाथी, हिरन, चीतल, नीलगाय और चीता प्रमुख हैं.
यहां 200 लोगों के ठहरने की व्यवस्था है. यहां अतिथि गृह, केबिन और टैंट उपलब्ध हैं. रामनगर रेलवे स्टेशन से 12 किलोमीटर की दूरी पर पार्क का गेट है. रामनगर रेलवे स्टेशन से पार्क के लिए छोटीबड़ी हर तरह की गाडि़यां मिलती हैं. यहां कई तरह के रिजोर्ट हैं. यहां से जिप्सी के जरिए पार्क में घूमने की व्यवस्था रहती है.
यहां हाथी भी बहुत उपलब्ध हैं. जो जंगल के बीच ऊंचाई तक सैर कराने ले जाते हैं. हाईवे पर ही हाथी स्टैंड बने हैं. हाथी की सैर चाहे महंगी हो पर यह पर्यटन का मजा दोगुना कर देती है.
सुबह 6 बजे से शाम 4 बजे के बीच नेचर वाक का आयोजन किया जाता है. जिम कौर्बेट नैशनल पार्क के अलावा उत्तराखंड में कई खूबसूरत स्थल हैं जिन का मजा पर्यटकों को लेना चाहिए.
कौर्बेट पार्क और रामनगर के रास्ते में नदी के किनारे बने रिजोर्ट महंगे हैं पर लगभग हर रिजोर्ट से नदी का और सामने पेड़ों से ढकी पहाडि़यों के सुरम्य दर्शन होते हैं. इन रिजोर्टों में नम: रिजोर्ट बहुत आधुनिक है पर काफी महंगा है. कौर्बेट पार्क के पास नदी के बीच एक चट्टान पर एक मंदिर भी है. जहां आप चढ़ावे के लिए या पाखंड के लिए न जाएं पर वहां नदी किनारे बैठ कर सुस्ताने जरूर जाएं. यह इलाका बहुत शांत और प्रदूषण रहित है.  यहां बने छोटे बाजार में छोटीमोटी आकर्षक चीजें मिलती हैं.
नैनीताल   
उत्तराखंड प्रदेश की सब से अच्छी घूमने वाली जगह है नैनीताल. इस की खासीयत यहां के ताल हैं. यहां पर कम खर्च में हिल टूरिज्म का भरपूर मजा लिया जा सकता है. काठगोदाम, हल्द्वानी और लालकुआं नैनीताल के करीबी रेलवे स्टेशन हैं जहां से पर्यटक बस या टैक्सी के द्वारा आसानी से नैनीताल पहुंच सकते हैं. हनीमून कपल की यह सब से पसंदीदा जगह है. नैनीताल को अंगरेजों ने हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया था. यहां की इमारतों को देख कर अंगरेजी काल की वास्तुकला दिखाई देती है.  नैनीताल शहर के बीचोबीच एक झील है, इस को नैनी झील कहते हैं. इस झील की बनावट आंखों की तरह की है. इसी कारण इस को नैनी और शहर को नैनीताल कहा जाता है.
काठगोदाम नैनीताल का सब से करीबी रेलवे स्टेशन है. इस को कुमाऊं का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है. गौला नदी इस के दाएं ओर से हो कर हल्द्वानी की ओर बहती है. हल्द्वानी व काठगोदाम से नैनीताल, अल्मोड़ा, रानीखेत और पिथौरागढ़ के लिए बसें चलती हैं. काठगोदाम से नैनीताल के लिए जब आगे बढ़ते हैं तो ज्योलिकोट में चीड़ के घने वन दिखाई पड़ते हैं. यहां से कुछ दूरी पर कौसानी, रानीखेत और जिम कौर्बेट नैशनल पार्क भी पड़ता है.
भीमताल नैनीताल का सब से बड़ा ताल है. इस की लंबाई 448 मीटर और चौड़ाई 175 मीटर है. भीमताल की गहराई 15 से 50 मीटर तक है. भीमताल के 2 कोने हैं. इन को तल्ली ताल और मल्ली ताल के नाम से जाना जाता है. ये दोनों कोने सड़क से जुडे़ हैं. नैनीताल से भीमताल की दूरी 22.5 किलोमीटर है.  भीमताल से 3 किलोमीटर दूर उत्तरपूर्व की ओर 9 कोनों वाला ताल है जो नौ कुचियाताल कहलाता है. सातताल कुमाऊं इलाके का सब से खूबसूरत ताल है. इतना सुंदर कोई दूसरा ताल नहीं है. इस ताल तक पहुंचने के लिए भीमताल से हो कर रास्ता जाता है. भीमताल से इस की दूरी 4 किलोमीटर है.
नैनीताल से यह 21 किलोमीटर दूर स्थित है.  साततालों में नलदमयंती ताल सब से अलग है. इस का आकार समकोण वाला है.  नैनीताल से 6 किलोमीटर दूर खुर्पाताल है. इस ताल का गहरा पानी इस की सब से बड़ी सुंदरता है. यहां पर पानी के अंदर छोटीछोटी मछलियों को तैरते हुए देखा जा सकता है. इन को रूमाल के सहारे पकड़ा भी जा सकता है.
रोपवे नैनीताल का सब से प्रमुख आकर्षण है. यह स्नोव्यू पौइंट और नैनीताल को जोड़ता है. यह मल्लीताल से शुरू होता है. यहां पर 2 ट्रोलियां हैं जो सवारियों को ले कर एक तरफ से दूसरी तरफ जाती हैं.   रोपवे से पूरे नैनीताल की खूबसूरती को देखा जा सकता है. मालरोड यहां का सब से आधुनिक बाजार है. यहीं पास में नैनी झील है. यहां पर बोटिंग का मजा लिया जा सकता है. मालरोड पर बहुत सारे होटल, रेस्तरां, दुकानें और बैंक हैं. यह रोड मल्लीताल और तल्लीताल को जोड़ने का काम भी करता है. यहां भीड़भाड़ और शांत दोनों तरह की जगहें हैं. नैनीताल में ही टैक्सी स्टैंड के पास 5 केव बनी हैं. इन के अंदर घुसने में रोमांचक अनुभव किया जा सकता है. यह जगह बहुत ठंडी और एकांत वाली है. हनीमून कपल को ऐसी जगहें खासतौर पर लुभाती हैं.
रानीखेत 
अगर आप पहाड़, सुंदर घाटियां, चीड़ व देवदार के ऊंचेऊंचे पेड़, संकरे रास्ते और पक्षियों का कलरव सुनना चाहते हैं तो आप के लिए रानीखेत से बेहतर कोई दूसरी जगह नहीं हो सकती. यहां शहर के कोलाहल से दूर ग्रामीण परिवेश का अद्भुत सौंदर्य देखने को मिलेगा.
25 वर्ग किलोमीटर में फैले रानीखेत को फूलों की घाटी कहा जाता है. यहां से दिखने वाले पहाड़ों पर सुबह, दोपहर और शाम का अलगअलग रंग साफ दिखता है. इस इलाके में छोटेछोटे खेत हुआ करते थे, इसी कारण इस का नाम रानीखेत पड़ गया. इस शहर का बाजार पहाड़ों की उतार पर बसा है इसी कारण इस को खड़ा बाजार भी कहा जाता है. रानीखेत घूमने के लिए सब से बेहतर समय अप्रैल से सितंबर मध्य तक रहता है. यहां का सब से करीबी हवाईअड्डा पंतनगर है. यहां से 119 किलोमीटर टैक्सी से सफर कर रानीखेत पहुंचना होगा. रेलगाड़ी से पहुंचने के लिए काठगोदाम सब से करीबी रेलवे स्टेशन है. यहां से रानीखेत 84 किलोमीटर दूर है. यहां से बस और टैक्सी दोनों की सुविधाएं उपलब्ध हैं.
रानीखेत में देखने वाली तमाम जगहें हैं. इन में सब से प्रसिद्ध उपत नामक जगह है. यह रानीखेत शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर अल्मोड़ा जाने वाले रास्ते में है. चीड़ के घने जंगल के बीच यहां दुनिया का सब से मशहूर गोल्फ मैदान भी है. यहां कई फिल्मों की शूटिंग भी हुई है. कोमल हरी घास वाला यह मैदान 9 छेदों वाला है. ऐसा मैदान बहुत कम देखने को मिलता है. यहां खिलाडि़यों के रहने के लिए सुंदर बंगला भी बना है. रानीखेत शहर से
6 किलोमीटर दूर स्थित चिलियानौला नामक जगह है. घूमने और ट्रैकिंग के शौकीनों के लिए यह एक अच्छी जगह है. यहां फूलों के सुंदर बाग हैं जिन की सुंदरता देखते ही बनती है.
रानीखेत से 10 किलोमीटर दूर चौबटिया जगह है. यहां फलों का सब से बड़ा बगीचा है. यहां आसपास पानी के 3 झरने हैं जो देखने वालों को बहुत लुभाते हैं. रानीखेत से 35 किलोमीटर दूर शीतलखेत है. यहां से बर्फ से ढकी पहाडि़यां देखने में बहुत अच्छा महसूस होता है. ऊंचाई पर स्थित होने के कारण यहां से पूरा रानीखेत दिखता है. रानीखेत से
40 किलोमीटर दूर द्वाराहाट है. ऐतिहासिक खासीयत वाली जगहों को देखने के लिए लोग यहां आते हैं.
पर्वतों की रानी मसूरी
देहरादून जाने वाला हर पर्यटक मसूरी जरूर जाना पसंद करता है. मसूरी दुनिया की उन जगहों में गिनी जाती है जहां पर लोग बारबार जाना चाहते हैं. इसे पर्वतों की रानी भी कहा
जाता है. यह  देहरादून से 35 किलोमीटर दूर स्थित है. देहरादून तक आने के लिए देश के हर हिस्से से रेल, बस और हवाई जहाज की सुविधा उपलब्ध है. इस के उत्तर में बर्फ से ढके पर्वत दिखते हैं और दक्षिण में खूबसूरत दून घाटी दिखती है. इस सौंदर्य के कारण देखने वालों को मसूरी परी महल सी प्रतीत होती है. यहां पर देखने और घूमने वाली बहुत सारी जगहें हैं.
मुख्य आकर्षण 
मसूरी के करीब दूसरी ऊंची चोटी पर जाने के लिए रोपवे का मजा घूमने वाले लेते हैं.  यहां पैदल रास्ते से भी पहुंचा जा सकता है. यह रास्ता माल रोड पर कचहरी के निकट से जाता है. यहां पहुंचने में लगभग 20 मिनट का समय लगता है. रोपवे की लंबाई केवल 400 मीटर है. गन हिल से हिमालय पर्वत शृंखला बंदरपच, पिठवाड़ा और गंगोत्तरी को देखा जा सकता है. मसूरी और दून घाटी के सुंदर दृश्यों को यहां से देखा जा सकता है. आजादी से पहले इस पहाड़ी के ऊपर रखी तोप प्रतिदिन दोपहर में चलाई जाती थी. इस से लोग अपनी घडि़यों में समय मिलाते थे.
मसूरी का कंपनी गार्डन सुंदर उद्यान है. चाइल्डर्स लौज लाल टिब्बा के निकट स्थित मसूरी की सब से ऊंची चोटी है. मसूरी के पर्यटन कार्यालय से यह केवल 5 किलोमीटर दूर है. यहां तक घोडे़ पर या पैदल पहुंचा जा सकता है. यहां से बर्फ के दृश्य देखना बहुत रोमांचक लगता है.
झड़ीपानी फौल मसूरी से 8 किलोमीटर दूर स्थित है. घूमने वाले यहां तक 7 किलोमीटर तक की दूरी बस या कार से तय कर सकते हैं. इस के बाद पैदल 1 किलोमीटर चल कर झरने तक पहुंच सकते हैं. मसूरी से 7 किलोमीटर दूर मसूरी देहरादून रोड पर भट्टा फौल स्थित है. यमुनोत्तरी रोड पर मसूरी से 15 किलोमीटर दूर 4500 फुट की ऊंचाई पर स्थित कैंपटी फौल मसूरी की सब से सुंदर जगह है. कैंपटी फौल मसूरी का सब से बड़ा और खूबसूरत झरना है. यह चारों ओर से ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ है. मसूरीयमुनोत्तरी मार्ग पर लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित यह झरना 5 अलगअलग धाराओं में बहता है. यह पर्यटकों की सब से पसंदीदा जगह है.
मसूरीदेहरादून रोड पर मूसरी झील के नाम से नया पर्यटन स्थल बनाया गया है. यह मसूरी से 6 किलोमीटर दूर है. यहां पर पैडल बोट से झील में घूमने का आनंद लिया जा सकता है. यहां से घाटी के सुंदर गांवों को भी देखा जा सकता है. टिहरी बाईपास रोड पर लगभग 2 किलोमीटर दूर एक नया पिकनिक स्पौट बनाया गया है. इस के आसपास पार्क बने हैं. यह जगह देवदार के जंगलों और फूल की झाडि़यों से घिरी है. यहां तक पैदल या टैक्सी से पहुंचा जा सकता है. इस पार्क में वन्यजीव, जैसे घुरार, कंणकर, हिमालयी मोर और मोनल आदि पाए जाते हैं.
मसूरी से 27 किलोमीटर चकराताबारकोट रोड पर यमुना ब्रिज है. यह फिशिंग के लिए सब से अच्छी जगह है. यहां परमिट ले कर फिश्ंिग की जा सकती है. मसूरी से लगभग 25 किलोमीटर दूर मसूरीटिहरी रोड पर धनोल्टी स्थित है. इस मार्ग में चीड़ और देवदार के जंगलों के बीच बुरानखांडा का शानदार दृश्य देखा जा सकता है. वीकएंड मनाने के लिए बहुत सारे परिवार धनोल्टी आते हैं. यहां रुकने के लिए टूरिस्ट बंगले भी उपलब्ध हैं.
धनोल्टी से लगभग 31 किलोेमीटर दूर चंबा जगह है. इस को टिहरी भी कहते हैं. यहां पहुंचने के लिए लोगों को जिस सड़क से हो कर गुजरना पड़ता है वह फलों के बागानों से घिरी है. सीजन के दौरान पूरे मार्ग पर सेब बहुत मिलते हैं. बसंत के मौसम में फलों से लदे वृक्ष देखते ही बनते हैं. इन को देखना आंखों को बहुत सुखद लगता है.
देहरादून        
उत्तराखंड की राजधानी देहरादून शिवालिक पहाडि़यों में बसा एक बहुत खूबसूरत शहर है. घाटी में बसे होने के कारण इस को दून घाटी भी कहा जाता है. देहरादून में दिन का तापमान मैदानी इलाके सा होता है पर शाम ढलते ही यहां का तापमान बदल कर पहाड़ों जैसा हो जाता है. देहरादून के तापमान में पहाड़ी और मैदानी दोनों इलाकों का मजा मिलता है.देहरादून के पूर्व और पश्चिम में गंगा व यमुना नदियां बहती हैं. इस के उत्तर में हिमालय और दक्षिण में शिवालिक पहाडि़यां हैं. शहर को छोड़ते ही जंगल का हिस्सा शुरू हो जाता है. यहां पर वन्य प्राणियों को भी देखा जा सकता है.
देहरादून प्राकृतिक सौंदर्य के अलावा शिक्षा संस्थानों के लिए भी प्रसिद्ध है. देहरादून 2110 फुट की ऊंचाई पर स्थित है. पर्वतों की रानी मसूरी के नीचे स्थित होने के कारण देहरादून में गरमी का मौसम भी सुहावना रहता है.
दर्शनीय स्थल
देहरादून में घूमने लायक सब से अच्छी जगह सहस्रधारा है.  देहरादून के करीब ही मसूरी है. यहां लोग जरूर घूमने जाते हैं. सहस्रधारा देहरादून से सब से करीब है. सहस्रधारा गंधक के पानी का प्राकृतिक स्रोत है. देहरादून से इस की दूरी करीब 14 किलोमीटर है. जंगल से घिरे इस इलाके में बालदी नदी में गंधक का स्रोत है. गंधक का पानी स्किन की बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है. बालदी नदी में पडे़ पत्थरों पर बैठ कर लोग नहाते हैं. सहस्रधारा जाने के लिए बस और टैक्सी दोनों की सुविधा उपलब्ध है. बस का किराया 20-22 रुपए के आसपास है. आटो टैक्सी आनेजाने का 200 रुपए ले लेती है.
सहस्रधारा के बाद ‘गुच्चू पानी’ नामक जगह भी देखने वाली है. यह शहर से 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. गुच्चू पानी जलधारा है. इस का पानी गरमियों में ठंडा और जाड़ों में गरम रहता है. गरमियों में घूमने वाले यहां जरूर आते हैं. गुच्चू पानी आने वाले लोग अनारावाला गांव तक कार या बस से आते हैं. यहीं पर घूमने वाली एक जगह और है जिस को रौबर्स केव के नाम से जाना जाता है. देहरादून से सहस्रधारा जाने वाले रास्ते के बीच ही खलंग स्मारक बना हुआ है. यह अंगरेजों और गोरखा सिपाहियों के बीच हुए युद्ध का गवाह है. 1 हजार फुट की ऊंचाई पर यह स्मारक रिसपिना नदी के किनारे स्थित है.
देहरादूनदिल्ली मार्ग पर बना चंद्रबदनी एक बहुत ही सुंदर स्थान है. देहरादून से इस की दूरी 7 किलोमीटर है. यह जगह चारों ओर पहाडि़यों से घिरी हुई है. यहां आने वाले लोग इस का प्रयोग सैरगाह के रूप में करते हैं. यहां पर एक पानी का कुंड भी है. अपने सौंदर्य के लिए ही इस का नाम चंद्रबदनी पड़ गया है.  देहरादून से 15 किलोमीटर दूर जंगलों के बीच बहुत ही खूबसूरत जगह को लच्छीवाला के नाम से जाना जाता है. जंगल में बहती नदी के किनारे होने के कारण लोग घूमने आते हैं. जंगल में होने के कारण यहां पर जंगली पशुपक्षी भी यहां पर देखने को मिल जाते हैं.
देहरादूनचकराता रोड पर 50 किलोमीटर की दूरी पर कालसी जगह है जहां पर सम्राट अशोक के प्राचीन शिलालेख देखने को मिल जाते हैं. यह लेख पत्थर की बड़ी शिला पर पाली भाषा में लिखा है. पत्थर की शिला पर जब पानी डाला जाता है तभी यह दिखाई देता है.
देहरादूनचकराता मार्ग पर 7 किलोमीटर दूर वन अनुसंधानशाला की सुंदर सी इमारत बनी है. यह इमारत ब्रिटिशकाल में बनी थी. यहां पर एक वनस्पति संग्रहालय बना है जिस में पेड़पौधों की बहुत सारी प्रजातियां रखी हैं.
गंगा नदी के पूर्वी किनारे पर वन्यजीवों के संरक्षण के लिए 1977 में चीला वन्य संरक्षण उद्यान को बनाया गया था. यहां पर हाथी, टाइगर और भालू जैसे तमाम वन्यजीव पाए जाते हैं. नवंबर से जून का समय यहां घूमने के लिए सब से उचित रहता है. शिवालिक पहाडि़यों में 820 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में राजाजी नैशनल पार्क बनाया गया है. इस पार्क में स्तनपायी और दूसरी तरह के तमाम जीवजंतु पाए जाते हैं. सर्दी के मौसम में आप्रवासी पक्षी भी यहां पर खूब आते हैं.
कौसानी 
कौसानी को भारत की सब से खूबसूरत जगह माना जाता है. शायद इसी वजह से इस को भारत का स्विट्जरलैंड कहते हैं. कौसानी उत्तराखंड के अल्मोडा शहर से 53 किलोमीटर उत्तर में बसा है. यह बागेश्वर जिले में आता है. यहां से हिमालय की सुंदर वादियों को देखा जा सकता है. कौसानी पिंगनाथ चोटी पर बसा है. यहां पहुंचने के लिए रेलमार्ग से पहले काठगोदाम आना पड़ता है. यहां से बस या टैक्सी के द्वारा कौसानी पहुंचा जा सकता है. दिल्ली के आनंद विहार बस अड्डे से कौसानी के लिए बस सेवा मौजूद है.
कौसानी में सब से अच्छी घूमने वाली जगह यहां के चाय बागान हैं. ये कौसानी के पास स्थित हैं. यहां चाय की खेती को देखा जा सकता है. घूमने वाले यहां की चाय की खरीदारी करना नहीं भूलते. यहां की चाय का स्वाद जरमनी, आस्टे्रलिया, कोरिया और अमेरिका तक के लोग लेते हैं. भारी मात्रा में यहां की चाय इन देशों को निर्यात की जाती है.
कौसानी के आसपास भी घूमने वाली जगहें हैं. इन में कोट ब्रह्मारी 21 किलोमीटर दूर है. अगस्त माह में यहां मेला लगता है. 42 किलोमीटर दूर बागेश्वर में जनवरी माह में उत्तरायणी मेला लगता है. यहां से कुछ दूरी पर ही नीलेश्वर और भीलेश्वर की पहाडि़यां हैं जो देखने में बहुत सुंदर लगती हैं.

कश्मीर खूबसूरती बेमिसाल

कश्मीर की शीतल आबोहवा, हरेभरे मैदान और खूबसूरत पहाडि़यों की हसीन वादियों में प्रकृति की अद्भुत चित्रकारी अनुपम सौंदर्य की छटा बिखेरती है. यही वजह है कि कश्मीर हर दिल में बसता है और सैलानियों को बारबार बुलाता है.
 
धरती पर अगर कहीं स्वर्ग है तो वह कश्मीर है. यहां की खूबसूरत वादियां, ऊंचीऊंची पहाडि़यां, घाटियों के बीच में बहती झीलें, झाडि़यों से भरे जंगल, फूलों से घिरी पगडंडियां, ऐसा प्रतीत कराती हैं जैसे यह स्वप्निल स्थल हो. भारत के नक्शे में यह एक मुकुट के समान है जो हर मौसम में अपना रंग बदलता है. यहां पर खूबसूरत वादियां पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं. 
यहां पूरे साल लाखों पर्यटक घूमने और अपनी छुट्टियां बिताने आते हैं यह अपनी प्राकृतिक खूबसूरतीके साथसाथ साहसिक गतिविधियों के लिए भी प्रसिद्ध है, जैसे ट्रैकिंग, राफ्ंिटग, स्कीइंग और पैराग्लाइडिंग. जम्मूकश्मीर में यों तो कई पर्यटन स्थल हैं लेकिन दुनियाभर में मशहूर पहलगाम, सोनमर्ग, पटनीटौप, गुलमर्ग, लद्दाख और कारगिल जैसी जगहें अपने प्राकृतिक सौंदर्य के लिए दुनियाभर में मशहूर हैं. डल झील और नागिन झील यहां की प्रसिद्ध झीलें हैं. साथ ही राष्ट्रीय पार्क और द्राचिगम वन्यजीव अभयारण्य भी यहां खास हैं.
जम्मूकश्मीर में पर्यटन
जम्मूकश्मीर भारत का एक प्रमुख पर्यटन राज्य है. कश्मीर का श्रीनगर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी और जम्मू शीतकालीन राजधानी है. जम्मू में पर्यटन के लिए अमर महल पैलेस संग्रहालय और डोगरा कला खास हैं जो कलाप्रेमियों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.  मुबारक मंडी पैलेस, बाहु किला और रणबीर नहर खास दर्शनीय स्थल हैं. 
कश्मीर के पहाड़, झील, साफ नीला पानी और सुखद जलवायु इस की प्रमुख विशेषताएं हैं. सेब और चैरी के बागान, हाउसबोट और कश्मीरी हस्तशिल्प कश्मीर घाटी की खूबसूरती को चार चांद लगाते हैं. यहां पर्यटन के कई स्थान हैं :
गुलमर्ग
यह हिमालय पर्वतशृंखला में सब से खूबसूरत स्थान है. इस की ऊंचाई 2730 मीटर है और यह ऊंचेऊंचे कोनिफर वृक्षों से ढका हुआ है. यह गोल्फ की पहाडि़यों और गोल्फ कोर्स के साथ सुंदर नावों के लिए मशहूर है. यह श्रीनगर से 57 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. सैलानी श्रीनगर से गुलमर्ग 2 घंटे में आसानी से पहुंच जाते हैं. यह देश में शीतकालीन खेलों का एक प्रमुख स्थान है. गुलमर्ग जाएं तो स्कीइंग का मजा जरूर लें.
सोनमर्ग
सोनमर्ग जम्मूकश्मीर का सब से प्रसिद्ध हिल रिजोर्ट है. इसे जम्मूकश्मीर का दिल कहा जाता है. समुद्र तल से लगभग 2,730 मीटर की ऊंचाई पर स्थित सोनमर्ग काफी सुंदर है. यह पाइन पेड़ों से घिरा हुआ है. श्रीनगर से निजी वाहन से सोनमर्ग के लिए 2,500 रुपए लगते हैं, लेकिन वहां जाने से पहले श्रीनगर पर्यटन अधिकारी से वहां के मौसम की जानकारी जरूर हासिल कर लें.
पहलगाम
श्रीनगर से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पहलगाम को बौलीवुड के कारण पहचान मिली है. इस के आसपास स्थित आरू घाटी तथा बेताब घाटी में कई फिल्मों की शूटिंग हुई है. यह घने देवदार और चीड़ के वृक्षों से घिरा हुआ है. यहां घुड़सवारी, ट्रैकिंग, फिश्ंिग की पूरी सुविधा है. पहलगाम जाएं तो ट्रैकिंग का मजा अवश्य लें. यह अनुभव आप के लिए एकदम
अलग होगा.
श्रीनगर
श्रीनगर जम्मूकश्मीर राज्य की ग्रीष्मकालीन राजधानी है. श्रीनगर में सुंदर झीलें और उन पर तैरती हाउसबोट का नजारा मन मोह लेता है. सूखे मेवे और पारंपरिक कश्मीरी हस्तशिल्प यहां के कुछ अन्य प्रमुख आकर्षण हैं. श्रीनगर में सब से खास जगह डल झील है. जहां जाने के बाद इंसान हर चिंता भूल जाता है. वहां हाउसबोट में रहने का मजा ही कुछ और है. पानी के बीचोंबीच वहां एक छोटा सा गांव बसा हुआ है, जहां जरूरत की सारी चीजें उपलब्ध हैं. झील का मजा लेने के लिए सब से अच्छा है कि आप शिकारा बोट में बैठ कर घूमें.
पटनीटौप
यह एक हिल स्टेशन है.  प्रकृति का आनंद उठाने के लिए यह एक सुंदर स्थान है. यह घास के मैदान, पाइन के घने और हरेभरे पेड़ों से घिरा है. ऊंचाई पर स्थित होने के साथ यह अपनी सुंदर पगडंडियों के चलते एक लोकप्रिय स्थल है. यहां से पहाड़ों के मनोहारी दृश्य दिखाई देते हैं. ठंड के मौसम में यहां आमतौर पर बर्फ की मोटी परत जमा हो जाती है. और तब वहां स्कीइंग सहित कई प्रकार के बर्फ के खेल खेलने का मजा ही कुछ और होता है.
लद्दाख
यह दुनिया की सब से ऊंची पर्वत शृंखलाओं से घिरा हुआ है. इस के उत्तर में काराकोरम और दक्षिण में हिमालय पर्वत है. लद्दाख में कई प्राचीन मठ, महल और ट्रैकिंग की जगहें हैं. वहां आप ट्रैकिंग का खास मजा ले सकते हैं. लद्दाख रिवर राफ्ंिटग, पहाड़ों पर चढ़ाई और ट्रेकिंग के लिए प्रसिद्ध है. यहां बहुत ज्यादा ठंड पड़ती है, इसलिए यहां यात्रा करने के लिए हमेशा गरमी के मौसम में ही जाएं. लद्दाख जाने का सब से अच्छा समय जून से अगस्त के बीच का होता है.
लेह
यह एक बहुत सुंदर एवं मनोरम पर्यटन स्थल है. लद्दाख की राजधानी होने के कारण यहां लंबे समय से तिब्बती और बौद्ध संस्कृति का असर रहा है. यहां के मनोरम दृश्य और लेह के ऊंचे पहाड़ पर्यटकों के साथसाथ रोमांच पसंद करने वाले लोगों को भी आकर्षित करते हैं. ठंड के मौसम में यहां तापमान शून्य डिगरी से नीचे चला जाता है. इसलिए जब भी जाएं तो अपने साथ खूब सारे गरम कपड़े ले जाना न भूलें.
भद्रवाह
भद्रवाह को मिनी कश्मीर के रूप में जाना जाता है. यह देवदार वृक्षों से घिरा हुआ है. यहां कैलाश कुंड, जय घाटी, चिंता घाटी, पादरी घाटी देखने की खास जगहें हैं. भद्रवाह पहुंचने के लिए मुख्य केंद्र जम्मू है. जम्मू से भद्रवाह सड़क के रास्ते से पहुंचा जा सकता है.
मौसम
जम्मूकश्मीर में घूमने के लिए कभी भी जाया जा सकता है. फिर भी वहां की यात्रा के लिए सब से अच्छा समय मार्च से अक्तूबर के बीच का है. इस दौरान वहां का मौसम काफी अच्छा रहता है. तब वहां की खूबसूरती ज्यादा निखर कर सामने आती है.
कहां ठहरें : यहां ठहरने के लिए कई जगहें हैं. आसपास के इलाकों में कई होटल, गैस्ट हाउस, हाउसबोट हैं. जम्मूकश्मीर नगर निगम द्वारा भी यहां कई कौटेज व बंगले बनाए गए हैं, जहां ठहरा जा सकता है. इस के अलावा कई लोगों ने अपनेअपने घरों में भी सैलानियों के ठहरने की व्यवस्थाएं कर रखी हैं.
खरीदारी : कश्मीर में पारंपरिक कपड़े यात्रियों के बीच काफी लोकप्रिय हैं. कश्मीर में शौल, वुलेन कपड़े अच्छे मिलते हैं. यहां की सिल्क की साड़ी, स्टोन बौक्स, टोकरी बुनाई, लकड़ी के समान भी काफी मशहूर हैं.
कैसे पहुंचे
हवाई मार्ग : श्रीनगर, जम्मू और लेह इन तीनों जगहों में हवाई अड्डे हैं. अर्थात प्रमुख एअरलाइंस इन हवाई अड्डों के लिए नियमित उड़ानें संचालित करती हैं.
सड़क मार्ग : दिल्ली, अमृतसर, अंबाला, चंडीगढ़, लुधियाना, जालंधर, पठानकोट, शिमला और मनाली से सड़क मार्ग द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है.    
  

रंग शरीर को कहीं न कर दें बदरंग

होली यों तो मौजमस्ती और रंगों का उत्सव है लेकिन कैमिकल और मिलावटी रंगों के प्रयोग से होली का रंग बदरंग हो जाता है. नतीजतन कई तरह की हैल्थ प्रौब्लम त्योहार को कड़वा अनुभव बना डालती है. इस होली आप के रंग में भंग न पड़े, इस के लिए किन जरूरी बातों का ध्यान रखें, जानिए इस लेख में.
फागुन का महीना यानी मस्ती का आलम और होली के दिन तो क्या बच्चे क्या बूढ़े और क्या जवान, सभी मस्ती में डूब जाते हैं. मस्तानों की टोली एकदूसरे को रंग और गुलाल से सराबोर कर देती है. चुहलबाजी और छेड़छाड़ इस दिन जम कर होती है. इस रंगीले त्योहार में लोग गम को भूल कर खुशियों के रंग में डूब जाते हैं.
वक्त बदलने के साथसाथ लोग भी बदल गए हैं. उन के पास रंगों के चुनाव के लिए समय नहीं है. बदले जमाने में लोगों के पास अब बुरांस या टेसू के फूलों का रंग बनाने का समय नहीं है, इसलिए बिना वक्त गंवाए लोग बाजार से रंग खरीद लेते हैं क्योंकि तरहतरह के रंगों से बाजार अटा पड़ा होता है. इस दौरान वे यह भी नहीं देखते कि वे जो रंग खरीद रहे हैं वे असली हैं या नकली. यह जरूर देखते हैं कि वे चटख व असरदार हैं पर इन रंगों में तरहतरह के कैमिकल व शीशाचूर्ण इतना होता है कि उन का सीधासीधा असर आप के शरीर पर
पड़ता है.
हर्बल रंगों का करें इस्तेमाल
सीनियर फिजीशियन डा. कृष्ण कुमार अग्रवाल का कहना है कि जो रंग या गुलाल ज्यादा चमकदार होगा, समझिए कि उस में ज्यादा मात्रा में कैमिकल मौजूद हैं. असली रंगों की मात्रा को कम करने के लिए ऐसा किया जाता है. एक समय सिंघाड़े के आटे से गुलाल बनाया जाता था. पर महंगाई इतनी है कि अब यह दूर की कौड़ी है. अब तो घटिया अरारोट के अलावा अबरक पीस कर मिला दिया जाता है, ताकि वह चमकीला लगे. इस के अलावा कई तरह के कैमिकल मिला कर गुलाल बनाए जाते हैं.
आप की होली खुशनुमा हो इस के लिए होली की मस्ती में यथासंभव हर्बल रंगों का इस्तेमाल करें. हर्बल रंग से आप की त्वचा खराब नहीं होगी. लेकिन ज्यादातर लोग नौनहर्बल रंगों का इस्तेमाल करते हैं. नौनहर्बल रंगों में कैमिकल के अलावा पेंट व शीशा मिला हुआ होता है, इस से शरीर की चमड़ी पर बुरा असर पड़ता है.
ग्रीन कलर यानी हरा रंग आंखों के लिए खतरनाक है, क्योंकि हरे रंग में शीशा मिलाया जाता है. वहीं लाल रंगों में लेड मिलाया जाता है जो सेहत के लिए खतरनाक है क्योंकि अगर यह रंग पेट के अंदर चला जाए तो चिड़चिड़ापन होने लगता है.
होली पर बाजार में बेचे जाने वाले ज्यादातर रंग औक्सीडाइज्ड मैटल होते हैं या इंजन औयल के साथ इंडस्ट्रियल ड्राई को मिक्स कर के तैयार किए जाते हैं. हरा रंग कौपर सल्फेट से, बैगनी क्रोमियम आयोडाइज्ड से, सिल्वर एल्युमिनियम ब्रोमाइड और काला रंग लेड औक्साइड से तैयार किया जाता है. रंग को चमकदार बनाने के लिए अकसर रंग में कांच का बुरादा मिलाया जाता है. ये सभी रंग विषैले होते हैं. इन से त्वचा में एलर्जी, आंखों में जलन और यहां तक कि अंधेपन जैसी परेशानी भी हो सकती है. धोने पर जब वे पानी या मिट्टी में मिल जाते हैं तो प्रदूषण का कारण बनते हैं. इसीलिए सभी को सुरक्षित रंगों से ही होली खेलनी चाहिए.
लेड औक्साइड (काला) से गुरदे खराब हो सकते हैं. यह व्यक्ति की सीखने की क्षमता को भी समाप्त कर सकता है. कौपर सल्फेट (हरा) आंखों में एलर्जी और अस्थायी अंधेपन का कारण बन सकता है. क्रोमियम आयोडाइड (परपल) ब्रोंकियल अस्थमा और एलर्जी पैदा कर सकता है. एल्युमिनियम ब्रोमाइड (सिल्वर) से कैंसर तक की बीमारी हो सकती है. बेहतर यही होगा कि आप प्राकृतिक रंगों का इस्तेमाल करें. इन रंगों को प्राकृतिक पदार्थों से बनाया जाता है.
त्वचा की एलर्जी
नई दिल्ली स्थित सर गंगाराम अस्पताल के सीनियर त्वचा विशेषज्ञ डा. रोहित बत्रा ने पाउडर एवं तरल रंगों से होने वाली परेशानियों के बारे में बताया कि इन रंगों को अत्यधिक सक्रिय रासायनिक पदार्थों से बनाया जाता है जो त्वचा की गंभीर बीमारियों को जन्म देती है. जैसे :
एक्जिमा : यह कृत्रिम रंगों के कारण होने वाली त्वचा की आम बीमारियों में से एक है. इस एलर्जिक अवस्था में त्वचा की परतें उतरने लगती हैं, परतें उतरने के कारण बहुत ज्यादा खुजली होती है. त्वचा पर सूजन आ जाती है. इस के अलावा त्वचा पर फफोले पड़ जाते हैं.
डर्मेटाइटिस : एटोपिक डर्मेटाइटिस रंगों की रासायनिक प्रतिक्रिया के परिणामस्वरूप होने वाली एक अन्य प्रकार की एलर्जी है. इस में रोगी को बहुत तेज खुजली व दर्द होता है और त्वचा पर फफोले पड़ जाते हैं.
रासायनिक रंगों से नाक की झिल्ली में सूजन आ जाती है. नाक में कंजेशन, डिस्चार्ज, खुजली और बारबार छींक जैसी समस्या अकसर हो जाती है.
अस्थमा : कृत्रिम रंगों के इस्तेमाल से वायु मार्गों को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है. यह अस्थमा का कारण बन सकता है. एलर्जिक स्थिति में व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी होने लगती है.
न्यूमोनाइटिस यानी न्यूमोनिया : रासायनिक रंगों के इस्तेमाल से व्यक्ति न्यूमोनिया का शिकार भी हो सकता है, इस में रोगी को बुखार, छाती में अकड़न, थकान और सांस लेने में परेशानी होती है.
त्वचा की देखभाल
रंग खेलने जाने से कम से कम 10 मिनट पहले चेहरे पर सनस्क्रीन और मौश्चराइजर लगाएं. होंठों को हानिकारक रंगों से बचाने के लिए होंठों पर लिप बाम की मोटी परत लगाएं. नाखूनों पर ट्रांसपैरेंट नेलपौलिश लगाएं. त्वचा पर नारियल, बादाम, औलिव या सरसों का तेल लगाएं. कानों के पीछे तेल लगाना न भूलें.
इस दौरान किसी भी तरह के फेशियल ट्रीटमैंट से बचें. अगर आप को किसी तरह की एलर्जी की समस्या है तो किसी त्वचा रोग विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें और विशेषज्ञों की सलाह लिए बिना किसी प्रकार की दवाई न लें.
बालों को हानिकारक रंगों से बचाने के लिए बालों में खूब सारा तेल लगा लें ताकि डाई और रंगों में मौजूद हानिकारक पदार्थ आप के बालों और सिर की त्वचा से न चिपकें. होली खेलने के दौरान पूरी आस्तीन के कपड़े पहनें. शौट्स के बजाय पूरी लंबाई की पैंट पहनें जिस से आप की त्वचा ढकी रहे.
अपने नाखूनों से रगड़ कर रंग निकालने की कोशिश न करें. शरीर और चेहरे की त्वचा के लिए गे्रन्यूलर स्क्रब का इस्तेमाल करें. रंग निकालने के लिए बालों को2-3 बार शैंपू से अच्छी तरह धोएं. बालों को रूखा होने से बचाने के लिए कंडीशनर लगाना न भूलें. नहाने के बाद शरीर और चेहरे पर बहुत सारा मौश्चराइजर भी लगा लें.
अगर आंखों में रंग चला जाए तो उन्हें रगड़ने के बजाय साफ पानी से छींटे मार कर धोएं.
कैमिकल रंगों से करें परहेज
होली के रंग की मस्ती में भंग न हो जाए इसलिए फल, सब्जी व अनाज से बनने वाले पीला, केसरिया व बैगनी रंगों का इस्तेमाल करें. आंवला से बनने वाले केसरिया रंग व बुरांस के पेड़ से बनने वाले लाल रंग के अलावा चंदन से बनने वाले गुलाल से ही होली खेलें.  कैमिकल से बने रंगों के इस्तेमाल से परहेज करें. शराब पी कर हुल्लड़बाजी
से बचें. बेहूदा हरकत न करें और न ही दूसरे को यह हरकत करने दें. नहीं तो कहीं रंग में भंग न पड़ जाए और रंग शरीर को कहीं बदरंग न कर दे. भई, होली खेलिए, मौजमस्ती कीजिए, पर सलीके से. तभी आप होली का सही माने में मजा ले पाएंगे.
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