बात मेरे बचपन की है जब हम एक छोटे से गांव में रहते थे और रोजमर्रा का सामान लेने के लिए शहर जाना पड़ता था. एक दिन मैं और मां सामान खरीदने के लिए शहर गए. सामान पैक करते समय काउंटर पर पड़ा एक टूथपेस्ट मैं ने अपना सामान समझ कर जेब में डाल लिया. दुकानदार इस बात से अनजान था.
लौटते समय जब मैं ने मां को इस बारे में बताया तो वे तुरंत 1 किलोमीटर पैदल चल कर टूथपेस्ट वापस देने गईं. मुझे भी यह सीख मिली कि किसी भी चीज को बिना पूछे छूना नहीं चाहिए. उन की बात मेरे दिल को छू गई. यह उन की ही सीख का परिणाम है कि इन तमाम सालों में मैं सत्य व ईमानदारी के पथ पर चल कर कामयाबी की नई मंजिलें पाने में सफल रहा हूं.
मनोज जैन, चेन्नई (तमिलनाडु)
 
हम लोग नानकपुरा में रहते थे. मैं और मेरी बेटी सामने वाले ब्लौक में किसी से मिलने चले गए. लगभग 1 घंटे के बाद हम दोनों वापस आए और मेरी बेटी ने जैसे ही ताला खोलने के लिए चाबी लगाई, उस ने देखा ताला टूटा हुआ है. हम घबरा गए. घर खोलने पर देखा तो घर का बुरा हाल था. अलमारियों का सब सामान बाहर था, तख्त खुला पड़ा था.
सिर्फ 2 दिन पहले ही मेरे पति ने मेरे गहनों का डब्बा अलमारी से निकाल कर सितार के बक्से में रख दिया था जो रसोई के साथ लगे स्टोर में रखा था. चोर ने कमरों की तो सफाई कर दी थी पर उस का ध्यान स्टोर की तरफ नहीं गया. पति यदि गहनों के डब्बे की जगह नहीं बदलते तो मेरे गहनों के साथसाथ मेरी जेठानी के भी गहने चले जाते.
आशा भटनागर, जनपथ (न.दि.)
 
एक बार आटो से मैं मम्मी के घर जा  रही थी. मेरा बेटा छोटा था. सर्दी का वक्त था. मेरे पास पर्स के अलावा एक बैग था जिसे मैं आटो में ही भूल गई.
मम्मी के घर जा कर थोड़ी देर बाद बेटे को जब भूख लगी तो दूध की बोतल के लिए बैग ढूंढ़ने लगी तो याद आया बैग तो मैं ने आटो में से उतारा ही नहीं. उस में मिठाई, बेटे के कपड़े, छोटा कंबल, चादर आदि सामान थे. मुझे घबराहट होने लगी.
करीब 3 घंटे बाद दरवाजे की घंटी बजी. मम्मी ने जा कर देखा, लौटीं तो उन के हाथ में मेरा बैग था. वे बोलीं, बाहर आटो वाला खड़ा है. मैं बाहर गई. आटो वाले को धन्यवाद दिया.
वह बोला कि जाते समय उसे वही  सवारियां मिल गई थीं जिन्हें स्टेशन जाना था. उन के उतरते समय मैं ने बैग देखा. उन से लेने के लिए कहा, वे बोले, ‘यह हमारा नहीं है.’ तब मुझे आप का ध्यान आया. इसीलिए बैग लौटाने में इतना वक्त लगा. मुझे खुशी हुई कि आज भी ईमानदार लोगों की कमी नहीं है.
शशि पंचोली, जयपुर (राज.)

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