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हाईवे

‘हाईवे’ फिल्म देख कर लगा कि यह फिल्म उन इम्तियाज अली की तो नहीं लगती जिन्होंने ‘लव आजकल’ और ‘रौकस्टार’ जैसी रोमांटिक फिल्में बनाई थीं. दर्शकों में इम्तियाज अली की जो छवि बनी थी इस फिल्म से वह खराब ही होगी.

‘हाईवे’ किडनैपिंग पर बनी फिल्म है. एक लड़की, जिसे किडनैप कर लिया जाता है, किडनैपर से प्यार कर बैठती है, मगर किडनैपर उसे एक ट्रक के अंदर छिपा कर कई रातों तक अंधेरी सड़कों पर घूमता रहता है. यह भी बौलीवुड का एक सैट फार्मूला है जिसे अंगरेजी फिल्मों से काफी पहले उड़ाया गया था. इसी फार्मूले पर यह फिल्म बनी है.

‘हाईवे’ में जो रफ्तार होनी चाहिए थी वह नदारद है. आलिया भट्ट की यह दूसरी फिल्म है. पहली फिल्म ‘स्टूडैंट औफ द ईयर’ में तो वह ग्लैमरस लगी थी मगर इस फिल्म में उस का ग्लैमर गायब है.

इम्तियाज अली ने इस फिल्म को खूबसूरत बनाने के लिए हालांकि दिल्ली, हरियाणा, गुजरात और हिमाचल की खूबसूरत लोकेशनों का सहारा लिया है मगर उन्होंने पटकथा पर जरा सी भी मेहनत नहीं की है.

वीरा (आलिया भट्ट) की शादी की तैयारियां चल रही हैं. वह फोन कर के अपने मंगेतर को बुलाती है और उस से लौंग ड्राइव पर चलने को कहती है. रास्ते में एक पैट्रोल पंप पर एक अपराधी महावीर (रणदीप हुड्डा) उस का अपहरण कर लेता है. वह वीरा को ले कर अनजान सफर पर निकल पड़ता है.

इस सफर में वीरा, महावीर को चाहने लगती है. महावीर की कैद में रह कर भी वह खुद को आजाद महसूस करती है. एक मुकाम पर पहुंचने के बाद महावीर, वीरा से पिंड छुड़ाना चाहता है. तभी वीरा का पिता पुलिस के साथ आ धमकता है. पुलिस की गोली से महावीर मारा जाता है. वीरा की मानसिक हालत खराब हो जाती है. उसे लगता है कि अपने पिता के घर में भी वह असुरक्षित है. यहां वीरा के साथ बचपन में उस के अंकल द्वारा किए गए यौन शोषण का जिक्र किया गया है. वीरा घर छोड़ कर पहाड़ों पर उसी घर में चली जाती है जहां वह महावीर के साथ रही थी.

फिल्म की यह कहानी कछुआ चाल से चलती है. वीरा बजाय किडनैपर से डरने के उस से ऐसे बात करती है मानो वह उस के स्कूल का साथी हो.

फिल्म का निर्देशन सुस्त है. आलिया भट्ट के किरदार को विकसित होने का मौका नहीं मिला है. रणदीप हुड्डा का अभिनय भी रूखा सा है. ए आर रहमान का संगीत कुछ अच्छा है. छायांकन ठीक है. मगर शुरुआत की 1 घंटे की फिल्म रात के अंधेरे में शूट की गई है, इसलिए दर्शकों की आंखों को नहीं सुहाती. हमारी तो यही सलाह है कि इस हाईवे पर जाने से बचें.

 

 

हार्टलैस

अभिनेता से निर्देशक बने शेखर सुमन की फिल्म ‘हार्टलैस’ हौलीवुड की फिल्म ‘अवेक’ से प्रेरित है. शेखर सुमन ने अपने बेटे अध्ययन सुमन को हीरो बनाने के मकसद से इस फिल्म को बनाया है. लेकिन जब अपना सिक्का ही खोटा हो तो कोई क्या कर सकता है.

अध्ययन सुमन पिछले 5-6 वर्षों से फिल्मों में हाथपैर मार रहा है. लगभग 5 साल पहले उस की पहली फिल्म ‘हाले दिल’ का बुरा हश्र हुआ था. अभी लगभग 1 साल पहले साजिद खान ने उसे ‘हिम्मतवाला’ में खलनायक का रोल दिया था परंतु वह फिर भी नहीं चल पाया.

‘हार्टलैस’ शेखर सुमन के दिल के बहुत करीब है. उस के बड़े बेटे की करीब12 साल की उम्र में दिल की बीमारी की वजह से मौत हो गई थी. अपनी इस फिल्म में शेखर सुमन ने अपने दिल के दर्द को बयां करने की कोशिश की है. लेकिन फिल्म देख कर लगा कि निर्देशन के मामले में अभी उसे बहुतकुछ सीखना बाकी है.

फिल्म की कहानी एक बिजनैसमैन आदित्य (अध्ययन सुमन) की है. उसे दिल की बीमारी है और उस के दिल का प्रत्यारोपण होना है. अपनी इस बीमारी की वजह से आदित्य जीना नहीं चाहता. उस की मुलाकात दुबई के एक होटल में रिसैप्शनिस्ट रिया (एरियाना) से होती है. उस से मिलने के बाद आदित्य में जीने की चाह पैदा होती है. तभी अचानक आदित्य की तबीयत बिगड़ने लगती है. तुरंत हार्ट ट्रांसप्लांट कराने के लिए वह अपने एक सर्जन दोस्त (शेखर सुमन) की मदद लेता है. औपरेशन टेबल पर आदित्य को एनेस्थीसिया दिया जाता है और वह बेहोश भी हो जाता है परंतु उसे औपरेशन थिएटर की सारी आवाजें सुनाई पड़ती हैं और दर्द भी महसूस होता है.

तभी उस की जिंदगी में एक भूचाल सा आ जाता है. बेहोशी की हालत में उसे सुनाई पड़ता है कि उसे एक षड्यंत्र के तहत मारा जा रहा है. वह मर भी जाता है परंतु उस की मां आत्महत्या कर उसे अपना दिल दे जाती है. उस का दिल ट्रांसप्लांट होता है और वह बच जाता है. षड्यंत्र करने वाले पकड़े जाते हैं.

फिल्म की इस कहानी में बिलकुल दम नहीं है. नीना अरोड़ा की लिखी पटकथा कमजोर है. अध्ययन सुमन के चेहरे पर भाव नहीं आ पाते. फिल्म की यह कहानी एनेस्थीसिया अवेयरनैस का संदेश तो देती है लेकिन दर्शकों को अवेयर नहीं कर पाती. फिल्म का निर्देशन कमजोर है.

आदित्य और रिया के बीच दुबई की लोकेशनों पर 3 गाने भी फिल्माए गए हैं. ये गाने कहानी के प्रवाह में बाधा ही डालते हैं. ओमपुरी और दीप्ती नवल का काम कुछ अच्छा है. नई नायिका एरियाना ने निराश किया है. फिल्म का छायांकन अच्छा है.

गुंडे

आजकल जितनी भी फिल्में बन रही हैं, युवाओं को ध्यान में रख कर बनाई जा रही हैं. नएनए हीरो, हीरोइनें आएदिन परदे पर नजर आते हैं. रणवीर सिंह और अर्जुन कपूर भी ज्यादा पुराने नहीं हैं, मगर इन दोनों ने अपनी इमेज बना ली है. हाल ही में प्रदर्शित ‘…राम-लीला’ में रणवीर सिंह युवाओं की कसौटी पर खरा उतरा है. अर्जुन कपूर ने भी ‘इशकजादे’ में बेहतरीन परफौर्मेंस दे कर युवाओं में अपनी पैठ बना ली है.

‘गुंडे’ में अब इन दोनों युवा हीरो ने अपना जलवा दिखाया है. इन दोनों ने एंग्री यंगमैन का रोल कर युवाओं को आकर्षित करने की कोशिश की है. ‘गुंडे’ दोस्ती पर बनी फिल्म है. दोस्ती भी ऐसीवैसी नहीं, ‘यह दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे’ वाली. मगर जब इन दोस्तों के बीच एक खूबसूरत लड़की आ जाती है तो दोस्ती की सारी कसमें धरी की धरी रह जाती हैं और दोनों एकदूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं. यही है फिल्म का मूल विषय यानी कि लव ट्राएंगल.

निर्देशक अली अब्बास जफर ने दोस्ती के इस आइडिया को फिल्म ‘शोले’ से उड़ाया है. ‘शोले’ के जय और वीरू की ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे’ दर्शक आज भी नहीं भूले हैं. निर्देशक ने फिल्म को दोस्ती के नाम पर बजाय कुछ नया कहने के इमोशंस, ऐक्शन और ड्रामा डाल कर एक चटपटी चाट की तरह बना डाला है.

फिल्म की कहानी 1971 की है. उस दौरान पाकिस्तान का विभाजन हुआ था और एक नए देश बंगलादेश का उदय हुआ था. हजारों शरणार्थी ढाका से भाग कर कोलकाता आए थे. इन शरणार्थियों में 2 किशोर विक्रम (रणवीर सिंह) और बाला (अर्जुन कपूर) भी थे. कोलकाता आ कर दोनों कोयले की चोरी करने लगते हैं. वे चलती ट्रेन से कोयला लूटते हैं.

कोलकाता में आए उन्हें कई साल हो चुके हैं. अब वे नामी गुंडे बन चुके हैं. शहर में उन के कई बिजनैस चलते हैं. इस मोड़ पर फिल्म में एंट्री होती है एसीपी सत्यजीत सरकार (इरफान खान) की. उसे गैरकानूनी कामों को खत्म करने का जिम्मा सौंपा गया है. वह विक्रम और बाला के पीछे पड़ जाता है. तभी विक्रम और बाला की मुलाकात एक कैबरे डांसर नंदिता (प्रियंका चोपड़ा) से होती है. दोनों गुंडे नंदिता से प्यार करने लगते हैं. मगर नंदिता सिर्फ विक्रम को पसंद करती है. इधर, सत्यजीत सरकार एक प्लान बना कर विक्रम और बाला के बीच दरार पैदा कराता है. विक्रम और बाला नंदिता को ले कर एकदूसरे के दुश्मन बन जाते हैं. तभी उन दोनों के सामने रहस्य खुलता है कि नंदिता तो पुलिस अफसर है और उन्हें फंसाने के लिए सत्यजीत सरकार ने नंदिता का इस्तेमाल किया है. वे दोनों नंदिता और सरकार को चकमा दे कर भाग निकलते हैं.

फिल्म की यह कहानी बंगलादेश से भाग कर कोलकाता आए शरणार्थियों से शुरू होती है. कहानी की शुरुआत में विक्रम और बाला के बचपन का किरदार कर रहे 2 किशोरों ने बहुत बढि़या काम किया है. बड़े होने पर ये दोनों किरदार ‘दो जिस्म एक जान’ बने रहते हैं.

निर्देशक ने विक्रम और बाला के किरदारों को इस तरह गढ़ा है कि साफ लगता है, विक्रम समझदार है और कोई भी काम बिना सोचेसमझे हाथ में नहीं लेता जबकि उस ने बाला को एकदम गुस्सैल दिखाया है.

फिल्म की शुरुआत तो काफी तेज है, मगर शीघ्र ही कहानी में ठहराव सा आ जाता है. मध्यांतर के बाद फिल्म की गति फिर से तेज हो जाती है. क्लाइमैक्स काफी लंबा है. निर्देशक विक्रम और बाला की दोस्ती में दरार को दमदार ढंग से पेश नहीं कर पाया.

इस फिल्म में बरसों पहले रिलीज हुई ‘कोयला’ और ‘काला पत्थर’ फिल्मों की झलक मिल जाती है. इस फिल्म के कई दृश्यों की शूटिंग असली कोयला खदानों में की गई है. अर्जुन कपूर का रणवीर सिंह के गोदामों को बारूद से उड़ाना बचकाना लगता है. रणवीर सिंह ने अच्छा काम किया है. अर्जुन कपूर का काम भी अच्छा है परंतु उस की संवाद अदायगी कमजोर है. प्रियंका चोपड़ा कमजोर रही. इरफान खान के किरदार को निर्देशक सही दिशा नहीं दे सका है.

फिल्म का गीतसंगीत साधारण है. एक गीत ‘तुम ने मारी एंट्रियां तो बजने लगी घंटियां…’ अच्छा बन पड़ा है. इस गाने में रणवीर सिंह और अर्जुन कपूर दोनों खूब नाचे हैं और मस्ती की है. एक और इंगलिश कैबरे ‘सलामे इश्क ओ यारा…’ पर प्रियंका चोपड़ा खूब थिरकी है. यह गीत भी कुछ अच्छा बन पड़ा है. फिल्म का छायांकन ठीक है.

बिकनी पहनने से फिल्में हिट नहीं होतीं – राइमा सेन

मशहूर अदाकारा सुचित्रा सेन इन की नानी हैं और मुनमुन सेन मां, इस के बावजूद हिंदी और बांग्ला फिल्मों में अपने अलग अभिनय की बदौलत राइमा सेन ने अलग पहचान बनाई है. जिस्म दिखाऊ किरदारों के बजाय मजबूत व गंभीर फिल्मों को तरजीह देने वाली राइमा सेन से सोमा घोष ने बातचीत की. पेश हैं मुख्य अंश :
 
बांग्ला फिल्मों से अभिनय कैरियर शुरू करने वाली अभिनेत्री राइमा सेन को पहली कामयाबी निर्देशक रितुपर्णो घोष की बांग्ला फिल्म ‘चोखेर बाली’ से मिली. उन की पहली हिंदी फिल्म ‘गौडमदर’ थी. उन्होंने ‘दमन’ फिल्म में भी काम किया. इस में छोटी भूमिका होने के बावजूद उन के अभिनय को सराहना मिली. राइमा ने ‘परिणीता’, ‘हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड’, ‘दस’, ‘मनोरमा सिक्स फीट अंडर’, ‘तीन पत्ती’, ‘आई, मी और मैं’ आदि फिल्मों में अभिनय किया. वे तमिल व तेलुगू फिल्मों में भी अभिनय कर चुकी हैं.
राइमा अपनी मां मुनमुन सेन और दादी सुचित्रा सेन की तरह खूबसूरत हैं. राइमा बताती हैं कि स्टारडम हासिल करने में वक्त लगता है. वे अपने उसूलों से समझौता किए बिना आगे बढ़ रही हैं और अपनी सफलता से खुश हैं. वे मानती हैं कि बिकनी पहनने से कोई फिल्म हिट नहीं हो सकती. आज बौलीवुड की हीरोइनें एक हिट फिल्म के लिए किसी भी तरह के ऐक्सपोजर के लिए तैयार हो जाती हैं.राइमा की यह सोच उन्हें भीड़ से अलग करती है. राइमा की छोटी बहन रिया सेन भी फिल्मों में अभिनय करती हैं. बचपन से ही अभिनय करने का शौक रखने वाली राइमा अपनी हर बात मां मुनमुन सेन से शेयर करती हैं.
राइमा की अगली हिंदी फिल्म ‘द बास्टर्ड चाइल्ड’ प्रदर्शित होने वाली है. बंगलादेश की सत्य घटना पर आधारित इस फिल्म में वे ‘फिदा’ की भूमिका निभा रही हैं. महिला सशक्तीकरण को उजागर करती इस फिल्म में उन्होंने एक मजबूत भूमिका निभाई है. वे कहती हैं कि अगर कहानी नई हो और उस की पकड़ अच्छी हो तो मैं उस पर बनने वाली फिल्म में अभिनय करने के लिए हां कर देती हूं.
वे बताती हैं कि यह कहानी उन के दिल को छू गई. बंगलादेश में 1970 के युद्ध के दौरान महिलाओं के साथ काफी जुल्म हुए, जिसे आज तक किसी फिल्म में नहीं दिखाया गया है. इस लिहाज से यह कहानी एकदम अलग है.
दैनिक जीवन में राइमा बहुत शांत स्वभाव की हैं. वे बताती हैं, ‘‘मैं मुंहफट हूं. जो बात मुझे अच्छी नहीं लगती, मैं सामने कह देती हूं. हां, मानसिक रूप से मैं मजबूत हूं. अपने काम पर पूरा ध्यान देती हूं. मैं हमेशा ग्लैमरस रहना पसंद करती हूं. पर दर्शक मुझे किस चरित्र में देखना चाहते हैं, उस पर ज्यादा ध्यान देती हूं.’’
राइमा सेन का चेहरा उन की नानी सुचित्रा सेन से मिलता है. ‘नौकाडूबी’ फिल्म में उन के अभिनय को देखने के बाद लोगों ने कहा था कि राइमा का यह अभिनय उन की नानी के अभिनय की याद दिलाता है. राइमा को जब भी समय मिलता वे अपनी नानी से मिलने कोलकाता जाती थीं. नानी की मृत्यु को वे अपने लिए गहरा आघात मानती हैं.
वे कहती हैं, ‘‘मैं उन की अभिनय कला से बहुत प्रेरित हूं. उन के अभिनय में जो ‘ओरिजिनैलिटी’ थी वह मेरे अभिनय में नहीं है.’’
खाली समय में राइमा किताबें पढ़ती और फिल्में व टीवी देखती हैं. उन्हें फैशन पसंद है लेकिन कंफर्टेबल पोशाक पहनना पसंद करती हैं. वे अधिक फूडी नहीं, घर का बना खाना पसंद करती हैं. राइमा अपनी मां, पिता और बहन के बहुत करीब हैं. कौमेडी फिल्मों में काम करना उन्हें अधिक अच्छा लगता है. वे कहती हैं कि महिलाओं के प्रति लोगों के विचार तब बदलेंगे जब वे शिक्षित हों. इस में फिल्मों का भी दायित्व होता है. मनोरंजन के साथसाथ फिल्मों में सकारात्मक संदेश अवश्य होने चाहिए.
गौरतलब है कि राइमा को सैक्सी यानी हौट टैग हमेशा से दिया जाता रहा है जिसे वे गलत नहीं मानतीं. उन का मानना है कि ग्लैमर वर्ल्ड में रहने के लिए ग्लैमरस होना आवश्यक है. वे अपनी मां की फिल्मों से बहुत प्रभावित हैं.
मुनमुन सेन की ‘100 डेज’ और ‘अंदर बाहर’ फिल्में उन्हें बहुत पसंद हैं. अभी तक कम ही हिंदी फिल्मों में आने की वजह वे सही स्क्रिप्ट और अच्छी कहानी न मिलने को मानती हैं. वे कहती हैं कि अगर उन के पास किसी कमर्शियल फिल्म का प्रस्ताव आएगा तो वे उस में अवश्य काम करेंगी. वे कमर्शियल और आर्ट, दोनों तरह की फिल्मों में काम करना चाहती हैं.
वे कहती हैं कि उन्हें हमेशा अच्छी पटकथा, अच्छे बैनर और अच्छे निर्देशक की तलाश रहती है.

खेल खिलाड़ी

हार का सरताज या बहानेबाजों का बादशाह 
भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धौनी के साथ सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. धौनी एशिया कप के लिए बाहर हो गए और कारण यह बताया गया कि उन्हें चोट लगी है. अकसर जब किसी क्रिकेटर का परफौर्मेंस ठीक नहीं रहता तो उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है और यही बहाना बनाया जाता है कि उसे चोट के कारण विश्राम करने के लिए कहा गया है. हालांकि कहा यह भी जा रहा है कि धौनी जब एशिया कप नहीं खेल रहे होंगे तो वे कल एशिया में विज्ञापनों की शूटिंग में व्यस्त होंगे. वैसे भी खिलाड़ी आजकल खेल को कम और पैसों को अधिक महत्त्व देने लगे हैं. ऐसे में जाहिर है धौनी खेल के पीछे नहीं पैसों के पीछे भाग रहे हैं.
धौनी की दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड के दौरे में खूब आलोचना हुई क्योंकि वे टीम को जीत नहीं दिला सके. अब तक के कैरियर में धौनी की इतनी आलोचना नहीं हुई जितनी कि अब हो रही है. अकसर कूल रहने वाले धौनी अब दबाव में नजर आ रहे हैं. इधर विराट कोहली को एशिया कप में कप्तान बनाया गया और विराट ने बंग्लादेश के खिलाफ एकदिवसीय मैच में कप्तानी पारी खेल कर जता दिया है कि वे कप्तान की भूमिका अच्छी तरह निभा सकते हैं. फिलहाल धौनी के लिए विराट सब से बड़ा रोड़ा बन सकते हैं.
पिछले दिनों आस्ट्रेलिया के पूर्व कप्तान इयान चैपल ने भी कह दिया कि जब कप्तान अपनी टीम को बाधा पहुंचाना शुरू कर दे ?तो उसे बदल देना चाहिए. जाहिर है धौनी के लिए यह वक्त ठीक नहीं है.
 
आईपीएल की तर्ज पर आईटीपीएल
फटाफट क्रिकेट यानी इंडियन प्रीमियर लीग यानी आईपीएल की तर्ज पर अब इंटरनैशनल टेनिस प्रीमियर लीग यानी आईटीपीए की तैयारी है. यहां अब रुपयों में नहीं डौलरों में पैसा बरसेगा. इस के लिए खिलाडि़यों की नीलामी दुबई में होनी है. माना जाता है कि यह टूर्नामैंट भारत के मशहूर टेनिस खिलाड़ी महेश भूपति की दिमाग की उपज है जिस में विश्व के टेनिस के दिग्गजों ने खेलने के लिए अपनी हामी भर दी है. इस टूर्नामैंट में राफेल नडाल के अलावा रिचर्ड गस्केट, टौमस वर्डिक, आस्ट्रेलियन ओपेन विजेता स्टेनिस लास वावरिंका जैसे खिलाड़ी खेल सकते हैं.
यह टूर्नामैंट नवंबर और दिसंबर में मुंबई, बैंकौक, सिंगापुर, कुआलालंपुर और हौंगकौंग में होने की उम्मीद है.
लगता है अब हर खेल को कारोबार के लिहाज से देखा जा रहा है जहां बड़ेबड़े कारोबारी खिलाडि़यों पर पैसा निवेश करते हैं और भरपूर मनोरंजन के साथ दर्शकों के लिए टूर्नामैंट आयोजित कराते हैं जिस में बड़ेबड़े विज्ञापनदाताओं को ढूंढ़ा जाता है ताकि करोड़ों लगा कर अरबों कमाए जा सकें. खिलाड़ी भी इस में बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं जबकि देखा जाए तो बहुत से खिलाड़ी ऐसे हैं जिन के पास पैसों की कोई कमी नहीं है. अब नडाल की बात करें तो भला नडाल जैसे खिलाड़ी के पास क्या कमी है जबकि माना जा रहा है कि नडाल इस टूर्नामैंट में मार्की प्लेयर के रूप में खेलेंगे और एक दिन में लाखों डौलर अपनी झोली में डाल सकते हैं.

स्कोडा सुपर्ब का मेकओवर

स्कोडा ने अपनी ही कार का जबरदस्त और हाईटैक मेकओवर करते हुए कार के शौकीनों के लिए सुपर्ब मौडल पेश किया है. जानिए क्या हैं इस मौडल की खूबियां और फीचर्स.
 
कार के शौकीनों के लिए स्कोडा हमेशा अपनी गाडि़यों के लिए एडवांस वर्जन पेश करती रहती है. स्कोडा सुपर्ब अब एक नए अंदाज में आ गई है. अपनी रेंज की कार में सब को जबरदस्त टक्कर देते हुए स्कोडा का यह सुपर्ब मौडल अपने मेकओवर के साथ और भी एडवांस और हाईटैक हो गया है. इस नई  सुपर्ब में कंफर्ट का खास ध्यान रखा गया है. 
पुरानी सुपर्ब के मुकाबले नई सुपर्ब के लुक्स में बदलाव देखते ही नजर आ जाते हैं.
स्कोडा सुपर्ब का फेसलिफ्ट वर्जन बाहरी डिजाइन और कुछ नए बदलावों के साथ बेहद स्टाइलिश बन कर सामने आया है. अगर बात मौडिफिकेशन की करें तो सुपर्ब में बहुतकुछ नया है. मसलन, इस बार कार की हैडलाइट्स एलईडी डीआरएल के साथ पेश की गई हैं जिस से इसे एक ऐक्स्ट्रा लुक मिलता है. इस के अलावा फ्रंट ग्रिल में भी बदलाव किया गया है. नई लोअर ग्रिल के साथ फौग लैंप का कौंबिनेशन भी कम खूबसूरत नहीं है. सुरक्षा के लिहाज से भी स्कोडा सुपर्ब में खास ध्यान दिया गया है.
सुपर्ब के पिछले हिस्से में भी कई जरूरी चेंज किए गए हैं. इन में नया बंपर, नया बूट लिड और एलईडी टेल लाइट्स शामिल हैं. पिछले मौडल की तुलना में टेल लैंप्स कार को शार्प लुक देते हैं. इस के अलावा नए फौंट में पेश किया गया स्कोडा और सुपर्ब का लोगो भी इस का शानदार फीचर है. कार के व्हील्स अब शानदार एलौय व्हील्स के साथ पेश किए गए हैं. नंबर प्लेट अब पिछले बंपर की जगह कार की डिक्की के कवर पर पोजीशन की गई है.
अब बात जरा कार के इंटीरियर की करें. पिछले सुपर्ब की तुलना में इस मौडल का इंटीरियर काफी स्पेशियस, कंफर्टेबल और स्टाइलिश है.
राइडिंग के मामले में सुपर्ब इसी सैगमैंट की दूसरी कारों से काफी जुदा और उन्नत है. यह कार 2 संस्करणों 1.8 लिटर की पैट्रोल इंजन और 2.0 लिटर की डीजल इंजन में उपलब्ध है. इस में 1.8 लिटर का पैट्रोल इंजन लगा है जो 158 बीएचपी की पावर देता है. वहीं अगर 2 लिटर के डीजल इंजन की बात करें तो यह 140 बीएचपी की पावर देता है. यह कार 6 स्पीड मैन्युअल गियरबौक्स और 7 स्पीड ड्यूअल क्लचर औटोमैटिक गियर के साथ आई है.
इस तरह यह कहना ही उचित होगा कि इस सुपर्ब मौडल का मेकओवर वाकई बेहतरीन है. कई जरूरी सुधारों और मौडिफिकेशन के बाद यह मौडल अपनी रेंज की कारों को जोरदार टक्कर देने के लिए काफी है. अगर आप भी कार की बेहतरीन तकनीक का लुत्फ उठाना चाहते हैं तो हाजिर है आप के लिए नई स्कोडा सुपर्ब.
-दिल्ली प्रैस की अंगरेजी पत्रिका मोटरिंग वर्ल्ड से

खामोशी को कहने दो

आंखों ही आंखों में कुछ
इशारेइशारे होने दो
मौन शब्द होंठों में
जो बात है दिल में
एहसास प्यार का होने दो
 
चांदनी रात सुहानी
मदभरी हवा को गाने दो
दो दिल मिल रहे हैं
सांसों में सांसें घुल रही हैं
पल सा इन्हें थमने दो
 
होंठों को छू के हलके से
प्यार की प्यास बुझने दो
हाथों में हाथ रेशम सा
स्पर्श मदिर मधुर सा
एकदूजे में खो जाने दो
 
कुछ न कहो आज
खामोशी को कहने दो.
मीना खोंड

इन्हें भी आजमाइए

  1. एकदूसरे से बातचीत कर के, रुचिपूर्वक सुन कर, प्रश्न पूछ कर बहुत कुछ सीखा जा सकता है. बातचीत जितने विविध विषयों पर होगी उतनी ही रोचक होगी. हम अपने आसपास के माहौल व समाचारों के प्रति जितने ज्यादा सजग होंगे हमें वार्त्तालाप में हिस्सा ले कर उतना ही आनंद आएगा.
  2. यदि आप के बच्चे की उम्र काफी कम हो तो बच्चों की किसी पार्टी में जाने पर पूरे समय उस के साथ रहें, अन्यथा बच्चे को मेजबान के घर अन्य बच्चों के साथ छोड़ दें और वहां से थोड़ी देर बाद, जब बच्चा सब के बीच घुलमिल जाए तो वापस आ जाएं.
  3. अस्पताल में रोगी के स्वास्थ्य के विषय में पूछते समय उस
  4. का मनोबल बढ़ाएं. हलकीफुलकी बातचीत से रोगी का चित्त प्रसन्न करने का प्रयास करें. लेकिन अपने इस प्रयास की अति भी न करें.
  5. पड़ोसियों को बिना पूछे और हर बात में उन्हें ‘नेक सलाह’ न देने लगें. शिष्टाचार यही है कि अपने कान और आंखें तो खुली रखें पर मुंह तभी खोलें जब आप से सलाह मांगी जाए.
  6. होली खेलने से पूर्व नाश्ता प्लेटों में लगा कर रख लें ताकि आने वाले मेहमानों को शीघ्र ही खिलाया जा सके.
  7. अगर आप बात करने वाले से महज कुछ ही कदमों की दूरी पर हों तो मोबाइल के इस्तेमाल से बचें.

बात ऐसे बनी

हम कुछ सामान लेने सुनार की दुकान गए थे. सामान खरीदने के बाद हम ने उसे रुपए दिए. उस ने रुपए गिनने शुरू किए. हम सब उसे ही देख रहे थे कि रुपए पूरे हैं या नहीं. दुकानदार ने गिनती पूरी की और गिनती खत्म होते ही पास रखे पैन को उठा कर सब से ऊपर के नोट पर वह संख्या लिखने ही वाला था कि मेरे मुंह से निकला, ‘‘रुकिए, कृपया नोट पर संख्या न लिखें.’’
दुकानदार को मेरे टोकने पर बुरा लगा. वह बोला, ‘‘क्यों?’’
मैं ने उसे बताया, ‘‘यह हमारी राष्ट्रीय मुद्रा है और इस पर हमें कुछ लिखना नहीं चाहिए.
वह कहने लगा, ‘‘बैंक वाले भी तो नोटों की गड्डी बना कर उस पर लिखते हैं.’’
मैं ने कहा, ‘‘अगर ऐसा है तो वे भी गलत करते हैं, आप भी उन्हें टोक दीजिए.’’ दुकानदार मेरी बात समझ गया और उस ने कहा कि आगे से वह ऐसा नहीं करेगा.
मैं ऐसे सभी लोगों से कहना चाहती हूं कि कृपया ऐसा न करें और राष्ट्रीय मुद्रा का सम्मान करें. रुपयों के बराबर के कागज काट कर साथ रखें और उन्हें गड्डी के सब से ऊपर लगा कर रबड़ बैंड से बांध दें.
वंदना मानवटकर, सिवनी (म.प्र.)
बचपन से मन में शिक्षक बनने की तमन्ना थी. मैं मेहनत और लगन से पढ़ाई करता रहा. जब मैं बीएससी में था तो टीचर्स टे्रनिंग के लिए टे्रनिंग कालेज में फौर्म भरा. मेरा टे्रनिंग कालेज में नामांकन करने का फौर्म, नामांकन तिथि समाप्त हो जाने के बाद मिला. मैं बहुत निराश हो गया.
मैं ने यह बात पिताजी से बताई. पिताजी ने कहा, ‘‘ठहरो, मैं अपने दोस्त गोपाल बाबू से मिलता हूं.’’ संयोग से वे पटना से छुट्टी ले कर आए हुए थे. जैसे ही पिताजी ने मेरी समस्या बताई तो उन्होंने कहा, ‘‘चलिए, कल जिला शिक्षा पदाधिकारी से मिलते हैं.’’
उन्होंने मुझे जिला शिक्षा पदाधिकारी से मिलवाया. जिला शिक्षा पदाधिकारी ने मुझे एक बार गौर से देखा. मुझ से बिना कुछ पूछे ही मुझे नामांकन फौर्म भरने का आदेश दे दिया. आज मैं एक कुशल शिक्षक के रूप में कार्यरत हूं.
अशोक कुमार महतो, रांची (झारखंड)
मैंअपने परिवार में पापा की सब से लाड़ली बेटी थी. लेकिन प्रेम विवाह करने के कारण पापा का मेरे से लगाव कम हो गया. लेकिन आज 4 साल बाद जब मैं ने एक बेटी को जन्म दिया तो पापा का वही पुराना प्यार मुझे फिर से मिलने लगा है. दरअसल मेरा ससुराल मायके से बहुत दूर है तो मैं ने अपने पति से कहा कि पापा के घर के पास ही अपना घर ले लेंगे तो मेरे पति बोले कि रिश्तों में मिठास थोड़ी दूरियों से ही बनती है. बाकी जब तुम्हारा दिल हो मिल आया करो. बात मेरे दिल को भा गई.
एक पाठिका 
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