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आरजू

कुछ इस तरह से पूरी
मेरी जुस्तजू हुई
चाह जिस की छोड़ी
उस को मेरी आरजू हुई
कर न सके इनकार
किसी बात को भी उस की
कुछ इस तरह से
कल वो मेरे रूबरू हुई
फिर न मिलेंगे कहते थे
बड़ी आनबान से
मगर जब मिले तो
अना बड़ी बेआबरू हुई
उस ने जो मांगा था वो
उसे मिल भी गया था
उस खुशनसीब को मेरी
फिर कमी क्यों हुई
जो होना था उन पर
मेरी बातों का असर यों
तो कहो क्यों कभी न
पहले यों गूफ्तगू हुई
इश्क हो सच्चा तो
‘आलोक’ मिलता जरूर है
समंदर को रवाना
आखिर को आबजू (नदी) हुई.
आलोक यादव

दुनिया का सिरमौर बनने की राह पर विमानन उद्योग

देश में हवाई यातायात को कम दर पर उपलब्ध कराने के लिए इस क्षेत्र को लोकप्रियता मिल रही है. उच्च वर्ग का यह हवाई सफर अब धीरेधीरे आम आदमी की पहुंच के करीब आ रहा है. इस के बावजूद यह सफर हमारी 99.5 फीसदी आबादी के लिए अब भी सपना बना हुआ है. बहरहाल धीरेधीरे आम आदमी का हवाई यात्रा करने का सपना पूरा हो रहा है और हवाई सेवा का लाभ लेने के लोगों के इसी उत्साह के कारण सर्वेक्षण बता रहे हैं कि एक डेढ़ दशक में हमारी विमानन सेवा दुनिया में शीर्ष स्थान पर होगी.
भारतीय वाणिज्य उद्योग मंडल यानी फिक्की और वैश्विक स्तर की कंसलटेंसी कंपनी केपीएमजी की हाल में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 2030 तक भारतीय विमान क्षेत्र दुनिया में पहले नंबर पर होगा. रिपोर्ट के अनुसार, 2020 तक हमारा यह क्षेत्र दुनिया में तीसरे स्थान पर होगा. वर्तमान में करीब 1 लाख करोड़ रुपए के कारोबार के साथ भारतीय विमानन उद्योग दुनिया के शीर्ष 10 विमानन क्षेत्रों में शामिल है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में अगली पीढ़ी का विमानन उद्योग घरेलू स्तर पर क्षेत्रीय सेवाओं को मजबूत बनाने के लिए काम कर रहा है. इस के लिए क्षेत्रीय हवाई अड्डों को सुदृढ़ बनाया जा रहा है. फिलहाल हमारे पास 450 हवाई अड्डे हैं. इन में कुछ संचालन में हैं, कुछ उपयोग में नहीं हैं और कुछ परित्यक्त भी हैं.
विमान उद्योग के बढ़ते दबाव को देखते हुए विमान प्राधिकरण बेकार पड़े विमानन अड्डों को प्रयोग में लाने की दिशा में काम कर सकता है. हवाई यातायात में बढ़ोतरी समय की मांग बन गई है और आज की भागमभाग जिंदगी में लोगों के पास समय नहीं है. नए समीकरणों को देखते हुए उम्मीद की जा सकती है कि एक विकासशील देश जल्द ही इस दिशा में न सिर्फ दुनिया का सिरमौर बनेगा बल्कि अपने नागरिकों के सपने भी पूरे करेगा.

कंपनियों का लोकतंत्र को मजबूत बनाने का दायित्व

निजी कंपनियां लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए अपने स्तर पर लगातार अनूठा प्रयास कर रही हैं. दिल्ली सहित 5 राज्यों के हाल में हुए विधानसभा चुनाव में इन कंपनियों ने इसी तरह की पहल की थी और अब आम चुनाव में दुनिया के सब से बड़े लोकतंत्र में वे फिर वही भूमिका निभा रही हैं. कंपनियां जानती हैं कि लोकतंत्र को मजबूत बनाने की सभी की जिम्मेदारी है, अपने इसी फर्ज को समझते हुए देश की महत्त्वपूर्ण कंपनियां अपने कर्मचारियों को मतदान करने के लिए न सिर्फ प्रोत्साहित कर रही हैं बल्कि कई कंपनियों ने मतदान के दिन बाकायदा छुट्टी की घोषणा कर दी है.
टाटा, आरपीजी ने कर्मचारियों को उस दिन मतदान कर के देर से कार्यालय आने की छूट दी है जबकि डाबर, इन्फोसिस और विप्रो जैसी कंपनियों ने वोट के दिन छुट्टी घोषित कर दी है. कुछ कंपनियां मतदाताओं को मतदान करने के लिए जागरूक बनाने का अभियान छेडे़ हुए हैं और इस के लिए कई जगह कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. रिलायंस ने तो अपने स्टाफ के पंजीकरण के लिए एक स्वयंसेवी संगठन के साथ गठजोड़ भी किया है.
स्टाफ के सभी सदस्यों को मतदान करने के लिए प्रेरित करने के लिए कंपनियों के कार्यालयों में जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. देश की सभी बड़ी कंपनियों की यह पहल स्वागतयोग्य है और इस के लिए उन्हें सराहा भी जा रहा है. कंपनियां तो अपना योगदान दे रही हैं, कर्मचारियों को अपना फर्ज निभाना है. उन्हें यह सुनिश्चित करना है कि वे छुट्टी का उपयोग मतदान के लिए जरूर करें.
लोकतंत्र के इस महापर्व में हर वोट कीमती है. यह सोचना हमारी भूल होगी कि मेरे मतदान नहीं करने से कुछ फर्क नहीं पड़ता. देश के प्रत्येक वोटर की जिम्मेदारी है कि वह मतदान में हिस्सा ले और अपने महान लोकतंत्र को प्रभावी बनाने के लिए मतदान केंद्र पर जा कर वोट डाले.

 

लघु और मध्यम उद्योगों को ले कर बैंकों की दुविधा

लघु और मध्यम उद्योग यानी एसएमई को रोजगार का ऐसा साधन माना जाता है जिस के दायरे में बड़ी तादाद में लोगों को रोजगार के अवसर मिलते हैं. केंद्रीय वित्त मंत्रालय इस क्षेत्र की उपयोगिता को समझता है और इसी महत्त्व को देखते हुए उस ने बैंकों पर इस क्षेत्र को ऋण उपलब्ध कराने पर जोर दिया है. इस के ठीक उलट, इस क्षेत्र पर पहले ही बैंकों का भारी ऋण डूबने के कगार पर है.
बैंकों के सामने सरकार के आदेश को मानने और इस उद्योग पर लगाए गए पैसे के डूबने की दुविधा है. इस के बावजूद बैंकों की योजना उस उद्योग को बढ़ावा देने की है. इस के लिए 11वीं पंचवर्षीय योजना की तुलना में 12वीं पंचवर्षीय योजना में इस उद्योग के लिए ऋण की मात्रा दोगुनी से अधिक कर 24 हजार करोड़ रुपए करने की है.
बैंक जानते हैं कि इस क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 8 फीसदी योगदान है और इस भागीदारी को बढ़ाने के लिए इस उद्योग को बढ़ावा देने की जरूरत है. यह जरूरत तब ही ज्यादा प्रभावी साबित होगी जब बैंकों का पैसा वापस मिलेगा.
सरकारी बैंकों ने कर्ज वापसी का रास्ता तलाशने के लिए समितियां बना दी हैं. समितियां कह चुकी हैं कि इस क्षेत्र की उपलब्धि बहुत कम है लेकिन सभी के लिए रोजगार के अवसर इस उद्योग में हैं, इसलिए इसे चालू रखते हुए इस में और पैसा लगाने की जरूरत है. लेकिन पैसा लौटेगा नहीं तो बैंकों को एसएमई को ऋण देने पर फिर से विचार करना पड़ सकता है.
वित्त मंत्रालय के दबाव में बैंक अपना पैसा जोखिम में डाल भी देते हैं तो क्या यह देखने की जरूरत नहीं है कि कहीं सरकार की उदारता का कुछ लोग गलत फायदा तो नहीं उठा रहे? हो सकता है कि कुछ लोग एसएमई के नाम पर ऋण ले कर उस का दुरुपयोग कर रहे हों. इस बिंदु पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.

 

नए वित्तवर्ष पर चमका बाजार

वैश्विक स्तर पर सकारात्मक रुख के बीच शेयर बाजार में उत्सव का माहौल बना हुआ है. शेयर सूचकांक 26 मार्च को रिकौर्ड 22096 अंक पर बंद हुआ और रुपया भी मजबूती की तरफ छलांग लगाते हुए 8 माह के उच्च स्तर पर पहुंचने के 2 दिन पहले 22055 अंक पर पहुंचा था. इस की वजहें महंगाई के आंकड़े में गिरावट, रुपए की स्थिति में लगातार सुधार की प्रक्रिया, निर्यात के आंकड़े में बढ़ोतरी, चालू खाता घाटा कम होने के साथ ही आने वाले दिनों में स्थायी सरकार की उम्मीद बताई जा रही हैं.
चुनावी शोरशराबे के बीच शेयर बाजार सूचकांक ने 28 मार्च को फिर लगातार 5वें दिन ऊंचाई की तरफ छलांग लगाई और सूचकांक 125 अंक उछल कर 22340 अंक के नए स्तर पर पहुंच गया. निफ्टी भी पहली बार 6696 अंक के स्तर पर बंद हुआ. यह कमाल रुपए की स्थिति में हुए सुधार की वजह से हुआ. रुपया 8 माह में पहली बार 60 रुपए प्रति डौलर के स्तर से नीचे उतरा और 60 रुपए प्रति डौलर की दर से कम पर बंद हुआ.
वित्त वर्ष की समाप्ति के सत्र पर बाजार 47 अंक उछाल के साथ रिकौर्ड 22386 अंक तक पहुंचा और नए वित्त वर्ष 2014-15 की शुरुआत भी लंबी छलांग के साथ लगाई व बाजार सर्वाधिक 22447 अंक पर जा कर टिक गया. बाजार नए वित्त वर्ष के दूसरे सत्र में भी नहीं रुका और 150 अंक उछल कर इतिहास में सर्वाधिक स्तर पर बंद हुआ.
नए वित्त वर्ष के तीसरे कारोबारी दिन बाजार को विदेशों से मिले हलके संकेत के कारण बाजार को धक्का लगा और 10 दिन की लगातार तेजी के बाद बाजार की तेजी थम गई. आखिर नए वित्त वर्ष का पहला सप्ताह रिकौर्ड तेजी के बाद हलके झटके के साथ बंद हो गया.

ऐसा भी होता है

 
हमारे मित्र जबलपुर में रहते हैं. उन की बेटी अपने पति व 2 बच्चों के साथ नागपुर में रहती है. दामाद आर्मी में हैं और हमेशा दौरे पर रहते हैं. सो, बेटी ने अपनी मम्मी को कुछ समय के लिए अपने पास नागपुर बुला लिया था.
मित्र औफिस में मीटिंग में थे कि उन्हें हार्ट अटैक पड़ा और मृत्यु हो गई. मित्र के दोस्त ने दामाद को समाचार भेजा. वह तुरंत नागपुर गए और टैक्सी से अपनी पत्नी, दोनों बच्चों व सास को ले कर जबलपुर के लिए चल दिए.
टैक्सी जबलपुर से लगभग 50-55 कि.मी. की दूरी पर थी कि तेज गति के कारण वह एक खाई में गिर गई.
मित्र की पत्नी को काफी गंभीर चोटें आईं और उन्हें आईसीयू में भरती कराना पड़ा जबकि बेटी की मृत्यु हो गई. इस तरह पिता व बेटी की अरथी एकसाथ उठी.
कांति जैन, कानपुर (उ.प्र.)
 
मैं बाजार गई थी और एक दुकान में शौपिंग कर रही थी. एक बुढि़या आ कर भीख मांगने लगी. मैं उसे 10 रुपए देने लगी, तभी दुकानदार ने उसे भगा दिया. मुझे बहुत खराब लगा. 
मैं ने कहा, ‘‘भैया, ऐसे इस बुढि़या को क्यों भगा दिया? इस की औलादें कितनी खराब हैं जो इस बुजुर्ग को रख नहीं सकतीं?’’
दुकानदार ने कहा, ‘‘बहनजी, आप को कुछ नहीं पता. यह संपन्न घर की है. 
4-4 बेटे हैं जो इसे रखने को तैयार हैं पर बुढि़या की आदत खराब है. दिनभर भीख मांग कर पैसा इकट्ठा करती है और पास में दारू की दुकान है, वहां शाम को दारू पी कर इधरउधर पड़ी रहती है.’’
ये बातें सुन मैं सोचने पर विवश हो गई कि ऐसा भी होता है.
स्मृति मित्तल, भोपाल (म.प्र.)
 
बात उन दिनों की है जब मैं स्थानीय डिगरी कालेज में प्रैप (प्री यूनिवर्सिटी क्लासेज) का छात्र था. किसी ने मुझे बताया था कि परीक्षा देने के बाद जब परिणाम घोषित होता है तो अखबार में जिन छात्रों के रोल नंबर प्रकाशित होते हैं वे फेल समझे जाते हैं और जिन के रोल नंबर उस में नहीं होते वे पास समझे जाते हैं.
मेरा रिजल्ट भी निकल आया था. अखबार में अपना रोल नंबर देख कर मैं रो पड़ा, क्योंकि मैं फेल हो गया था.
परंतु शाम को मेरा एक दोस्त मेरे घर पर मुझ से मिलने आया. उस ने कहा कि वह रिजल्ट देख कर आया है और मैं पास हो गया हूं.
तब मैं खुशी से?झूम उठा था. मजाक में बताई गई बात से कुछ घंटों तक मैं कितना ‘अपसैट’ रहा था.
प्रदीप गुप्ता, बिलासपुर (हि.प्र.) 
 

सबर आता है

 
तुम जो नजर भर के 
जब भी देखते हो मुझ को
सितारों से आगे जहां
अपना नजर आता है
 
जर्रा नाचीज था जो कल तक
मैं वो शख्स
तुम्हारे आने से अब
उस पे फकर आता है
 
रूह से अपनी इबादत की
जिस खुदा की हम ने
तुम्हारे हुस्न में वो
रूबरू नजर आता है
 
तुम को बांध लिया है
जिंदगी के दामन में
बेसबर दिल को अब 
भरपूर सबर आता है.
डा. नीरजा श्रीवास्तव ‘नीरू’
 

सूक्तियां

गुण
अगर किसी में गुण होंगे तो वे अपनेआप सामने आ जाएंगे. कस्तूरी को अपनी उपस्थिति कसम खा कर नहीं साबित करनी पड़ती.
प्रेम
यह कहना कि तुम एक व्यक्ति को आजीवन प्रेम करते रहोगे, यह कहने के समान है कि एक मोमबत्ती जब तक तुम चाहोगे, जलती रहेगी.
धन
धन ऐसा अथाह समुद्र है जिस में सम्मान और सत्य सभी डुबोए जा सकते हैं.
तलाक
तलाक के माने सिर्फ यही हैं कि लोकतंत्र दो व्यक्तियों के बीच में सफल नहीं हो सका.
चिंता
अतीत की चिंता मत करो, उसे भूल जाओ. बीती हुई बात में चिंता से सुधार नहीं हो सकता.
भलाई
जो व्यक्ति दूसरे की भलाई चाहता है उस ने अपना भला पहले ही कर लिया.
गलती
खुद को जाने बगैर दुनिया को जानने का दावा करना सब से बड़ी भूल है.

हम फिर मिलेंगे

 
आप से हम फिर मिलेंगे, देख लेना
और हम मिलते रहेंगे, देख लेना
 
कोई हम को छले, कह नहीं सकते
हम किसी को न छलेंगे, देख लेना
 
दुख, पीड़ा, विरह, संताप, विप्लव
दुर्ग ये सारे ढहेंगे, देख लेना
 
लोग जलते हैं तो जलने दीजिएगा
हाथ जलजल कर मलेंगे, देख लेना
 
ओसकण भी मोतियों से जगमगा कर
फुनगियों तक पर हिलेंगे, देख लेना
 
आप खुद लग जाओगे भजने को हम को
हम तुम्हें ऐसा भजेंगे, देख लेना
 
आप कह लेना जो कहना चाहते हो
और फिर हम क्या कहेंगे, देख लेना.
हेमंत नायक

हमारी बेडि़यां

हमारा गांव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है. वहां रिवाज है, जब लड़के की बरात वापस घर आती है तो अगले दिन वरवधू को आंगन में मंडप के नीचे बैठा कर पानी में रंग घोल कर उन पर कुछ पानी के छींटे डाले जाते हैं व मिठाई खिलाई जाती है. इसे ‘मंडप सेराना’ कहते हैं.
हमारे मौसेरे भाई का विवाह था. बारीबारी से सभी रिश्तेदार महिलाएं वरवधू पर रंगघुले पानी के छींटे डालती जा रही थीं. कुछ महिलाएं अति उत्साह में दुलहन के ऊपर बालटियों व अन्य बरतनों में पानी भर कर उड़ेल रही थीं. वधू संकोचवश धीमे स्वर में बारबार मना कर रही थी, ‘सर्दी लग रही है, इतना रंग मत डालिए.’
उसी शाम वधू को बहुत तेज बुखार हो गया. वह अचेत हो गई. डाक्टर ने उसे तुरंत अस्पताल में भरती करने को कहा.
ऐसा भी क्या रिवाज कि नौबत अस्पताल पहुंचने की आ जाए.
तन्मय कटियार, कानपुर (उ.प्र.)
बात कई साल पहले की है. उन दिनों गांव में बच्चों का जन्म घर में ही किसी नर्स या दाई के द्वारा होता था.
मेरी एक सहेली के 3 बेटियों के बाद, फिर कोई बच्चा होने वाला था. उस समय समय के हिसाब से घर में ही प्रसूति हुई और बेटा हुआ. बेटे की खबर से बेटे की दादी इतनी खुश हुईं कि नवजात शिशु को कौर्ड (गर्भ नाल) सहित तराजू में तौलने भागीं ताकि वे बच्चे का 3 बेटियों के बाद होने का अपशगुन मिटा लें. उन की इस जल्दबाजी से दाई भी घबरा गई और कांपते हाथों से सब काम निबटा कर चली गई.
जब मेरी सहेली को अपना बेटा देखने की चाह हुई तो उस ने देखा कि बच्चे की कौर्ड में से खून आ रहा है. उस ने सब को यह बात बताई और किसी डाक्टर को बुलाने को कहा.
डाक्टर ने बच्चे को देखा और कौर्ड ठीक से बांधी व बच्चे को एक इंजैक्शन लगाया.
इस तरह एक अनहोनी होतेहोते बच गई.
सुनीता शर्मा, कानपुर (उ.प्र.)
हमारे यहां हरितालिका (तीज) पर निर्जला व्रत रख कर पंडितों को बुला कर पूजा कर के ही पानी पीने की प्रथा है. हमारे पड़ोस की बहू, जो पहले से ही कुछ बीमार व गर्भवती थी, को दिनभर बिना अन्नजल व दवा के शाम होतेहोते चक्कर के साथ उल्टी होने लगी. उस की सास ने यह कह कर कि व्रत के दिन पानी पीने से अगले जन्म में सांप व अन्न खाने से सूअर के रूप में जन्म होता है, उसे कुछ भी खानेपीने नहीं दिया. देर रात उस की तबीयत इतनी ज्यादा खराब हो गई कि उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा.
उस की तबीयत दोचार दिनों में ठीक हो गई पर उस के गर्भ में पल रहे बच्चे को नहीं बचाया जा सका.
अंजुला अग्रवाल, मीरजापुर (उ.प्र.) 
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