हमारा गांव पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है. वहां रिवाज है, जब लड़के की बरात वापस घर आती है तो अगले दिन वरवधू को आंगन में मंडप के नीचे बैठा कर पानी में रंग घोल कर उन पर कुछ पानी के छींटे डाले जाते हैं व मिठाई खिलाई जाती है. इसे ‘मंडप सेराना’ कहते हैं.
हमारे मौसेरे भाई का विवाह था. बारीबारी से सभी रिश्तेदार महिलाएं वरवधू पर रंगघुले पानी के छींटे डालती जा रही थीं. कुछ महिलाएं अति उत्साह में दुलहन के ऊपर बालटियों व अन्य बरतनों में पानी भर कर उड़ेल रही थीं. वधू संकोचवश धीमे स्वर में बारबार मना कर रही थी, ‘सर्दी लग रही है, इतना रंग मत डालिए.’
उसी शाम वधू को बहुत तेज बुखार हो गया. वह अचेत हो गई. डाक्टर ने उसे तुरंत अस्पताल में भरती करने को कहा.
ऐसा भी क्या रिवाज कि नौबत अस्पताल पहुंचने की आ जाए.
तन्मय कटियार, कानपुर (उ.प्र.)
बात कई साल पहले की है. उन दिनों गांव में बच्चों का जन्म घर में ही किसी नर्स या दाई के द्वारा होता था.
मेरी एक सहेली के 3 बेटियों के बाद, फिर कोई बच्चा होने वाला था. उस समय समय के हिसाब से घर में ही प्रसूति हुई और बेटा हुआ. बेटे की खबर से बेटे की दादी इतनी खुश हुईं कि नवजात शिशु को कौर्ड (गर्भ नाल) सहित तराजू में तौलने भागीं ताकि वे बच्चे का 3 बेटियों के बाद होने का अपशगुन मिटा लें. उन की इस जल्दबाजी से दाई भी घबरा गई और कांपते हाथों से सब काम निबटा कर चली गई.
जब मेरी सहेली को अपना बेटा देखने की चाह हुई तो उस ने देखा कि बच्चे की कौर्ड में से खून आ रहा है. उस ने सब को यह बात बताई और किसी डाक्टर को बुलाने को कहा.
डाक्टर ने बच्चे को देखा और कौर्ड ठीक से बांधी व बच्चे को एक इंजैक्शन लगाया.
इस तरह एक अनहोनी होतेहोते बच गई.
सुनीता शर्मा, कानपुर (उ.प्र.)
सुनीता शर्मा, कानपुर (उ.प्र.)
हमारे यहां हरितालिका (तीज) पर निर्जला व्रत रख कर पंडितों को बुला कर पूजा कर के ही पानी पीने की प्रथा है. हमारे पड़ोस की बहू, जो पहले से ही कुछ बीमार व गर्भवती थी, को दिनभर बिना अन्नजल व दवा के शाम होतेहोते चक्कर के साथ उल्टी होने लगी. उस की सास ने यह कह कर कि व्रत के दिन पानी पीने से अगले जन्म में सांप व अन्न खाने से सूअर के रूप में जन्म होता है, उसे कुछ भी खानेपीने नहीं दिया. देर रात उस की तबीयत इतनी ज्यादा खराब हो गई कि उसे अस्पताल में भरती कराना पड़ा.
उस की तबीयत दोचार दिनों में ठीक हो गई पर उस के गर्भ में पल रहे बच्चे को नहीं बचाया जा सका.
अंजुला अग्रवाल, मीरजापुर (उ.प्र.)
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