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हाथों के दर्द से छुटकारा दिलाएगा ये सॉफ्ट कीबोर्ड

प्लास्टिक के सख्त की-बोर्ड पर काम करने से अक्सर हाथों में दर्द होने लगता है. हर दिन कंप्यूटर पर घंटों काम करने वालों के लिए यह एक बढ़ी समस्या होती है, लेकिन इस समस्या से अब जल्द छुटकारा मिल सकता है. ऑकलैंड युनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने एक विशेष प्रकार की रबर से बेहद लचीले और मुलायम की-बोर्ड का निर्माण किया है. इस सॉफ्ट व फ्लेक्सिबल कीबोर्ड पर काम करने में आसानी होगी और न ही कोई दर्द होगा.

इस शोध के सह-लेखक डेनियल जू के अनुसार, "यह की-बोर्ड एक विशेष रबर (डाईइलेक्ट्रिक इलास्टोमर) की पतली शीट (चादर) है." यह की-बोर्ड, एक सिंगल परतदार संरचना के साथ 90 डिग्री के कोण पर उन्मुख दो संवेदन परतों से बना है. यह विद्युत सेपरेशन से यांत्रिक युग्मन प्रणाली का शीघ्र ही फायदा उठाने में सक्षम है.

इस सेंसर की-बोर्ड की सतह 9 अलग-अलग संवेदन क्षेत्रों में विभाजित है. शोधकर्ताओें ने इस रबर की कार्यक्षमता के परीक्षण के लिए वीडियो गेम्स में इसका इस्तेमाल किया है और एक अलग परियोजना के रूप में संवेदन दास्ताने को भी बनाया गया है जिसका भविष्य में शूटिंग गेम्स में प्रयोग किया जाएगा.  'सट्रेचसेंस' नामक कंपनी में सेंस स्ट्रेचिंग तकनीक से कई पहनने वाली वस्तुओं का निर्माण किया जा रहा है. यह अध्ययन 'स्मार्ट मैटेरियल्स एंड स्ट्रक्चर्स' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ है.

7 उपाय, जो घरेलू प्रदूषण से छुटकारा दिलाएं

घर हो या बाहर प्रदूषण आज हर जगह है. बाहर के प्रदूषण पर तो हमारा उतना बस नहीं है, लेकिन घर के प्रदूषण को हम अपनी थोड़ी सी कोशिश और सजगता से जरूर कम कर सकते हैं. ठंड में तो हमें और भी सचेत हो जाना चाहिए. इस की वजह यह है कि ठंड के मौसम में धूलधुआं ऊपर नहीं उठ पाता और सारा प्रदूषण हमारे इर्दगिर्द जमा होता रहता है. ठंड के मौसम में कुहरा होने के कारण कार्बन डाईऔक्साइड, मिथेन और नाइट्रस औक्साइड जैसी खतरनाक गैसों का प्रकोप और अधिक बढ़ जाता है.

वैसे कुहरा नुकसानदेह नहीं होता है, लेकिन जब इस में धूल, धुआं मिलता है तो यह खतरनाक हो जाता है. इसलिए ठंड के मौसम में प्रदूषण और बढ़ जाता है. तभी तो इस मौसम में आंखों में जलन, नाक में खुजली, गले में खराश, खांसी जैसी परेशानियां होती हैं. इन के अलावा फेफड़ों में संक्रमण की भी शिकायत हो जाती है. कारण, इस मौसम में वातावरण में तरहतरह के वायरस सक्रिय हो जाते हैं.

आंकड़े बताते हैं कि हर साल 43 लाख लोग घर के प्रदूषण के शिकार हो रहे हैं. अत: घर के प्रदूषण से बचना भी चुनौती ही है. फिर भी थोड़ी सी जागरूकता बरत कर घर को प्रदूषण से बचाया जा सकता है. आइए, जानते हैं कैसे:

– धूम्रपान सेहत के लिए खतरनाक है, फिर भी लोग धूम्रपान करते हैं. जो इस के आदी हैं, उन के लिए तो यह जानलेवा है ही, उन के लिए भी खतरनाक है, जो धूम्रपान नहीं करते. ऐक्टिव स्मोकिंग से ज्यादा खतरनाक पैसिव स्मोकिंग होती है. इसीलिए सब से पहले तो परिवार के जो सदस्य धूम्रपान के आदी हैं वे घर में इस का धुआं न फैलाएं. धूम्रपान का सब से बुरा असर बच्चों और बुजुर्गों पर पड़ता है. इस के अलावा अगर घर का कोई सदस्य दिल की बीमारी या फेफड़ों के संक्रमण से ग्रस्त है, तो उस के लिए पैसिव स्मोकिंग जानलेवा हो सकती है.

– कीटनाशक के प्रयोग में सावधानी बरतें. घर की मक्खियों, मच्छरों, तिलचट्टों आदि से छुटकारा पाने के लिए बाजार में तरहतरह के रिपेलैंट अगरबत्ती या लिक्विड दोनों ही रूपों में उपलब्ध हैं. ये तमाम तरह के रिपेलैंट कीड़ेमकोड़ों को भगाने के साथसाथ घर में प्रदूषण फैलाने का भी काम करते हैं. दोनों ही तरह के रिपेलैंट से हानिकारक रसायन और जहरीले धुएं से सेहत को नुकसान पहुंचता है. बच्चों और बुजुर्गों को सांस की परेशानी, खांसी और ऐलर्जी की शिकायत हो जाती है.

– घर में कीड़ेमकोड़े होने से भी घर का प्रदूषण बढ़ता है. घर में चींटियां, मकडि़यां गंदगी फैलाती हैं. इन के अलावा चूहों, तिलचट्टों और छिपकलियों की बीट से भी प्रदूषण फैलता है. अत: घर की नियमित साफसफाई बेहद जरूरी है. परदों और गलीचों में खूब धूल जम जाती है, इसलिए इन की भी समयसमय पर सफाई करते रहें. रसोई और बाथरूम की नालियों की सफाई का भी खासतौर पर ध्यान रखें. कई बार नाली या पानी का पाइप फट जाता है. पर चूंकि नालियां और पानी के पाइप लाइन दीवार में काउंसलिंग सिस्टम से लगाए जाते हैं, इसलिए इन में आई खराबी का तब तक पता नहीं चलता जब तक दीवार में सीलन नजर नहीं आती. इस से रसोई और बाथरूम में तिलचट्टों और सीलन की समस्या बढ़ती है. अत: नाली या पानी के पाइप में कहीं कोई गड़बड़ी आती है, तो उस की तुरंत मरम्मत करवाएं.

– घर की दीवारों में इस्तेमाल होने वाले रंग में कम से कम मात्रा में सीसा और वीओसी (वाष्पशील कार्बनिक यौगिक) हो, इस का ध्यान रखें. ऐसी कंपनी के रंग का चुनाव करें, जिस में सीसा और वीओसी हो ही न. इस का कारण यह है कि वीओसी में फौर्मैलडिहाइड और ऐसिटैलडिहाइड जैसे खतरनाक रसायन होते हैं, जो स्नायुतंत्र को प्रभावित करते हैं. बच्चों पर इन का असर और भी खतरनाक होता है. सीसा बच्चों के दिमागी विकास में रुकावट डालता है, इसलिए ऐसे रंगों का चुनाव करें, जिन में कम से कम मात्रा में सीसा और वीओसी हो.

– घर के प्रदूषण से छुटकारा पाने के लिए ऐरोगार्ड या एअरप्यूरिफायर का इस्तेमाल करें.

– घर के प्रदूषण में सब से बड़ी भूमिका रसोई की होती है. खाना बनाते वक्त निकलने वाला धुआं प्रदूषण फैलाता है. यह धुआं दमे के मरीज के लिए बहुत ही तकलीफदायक होता है. स्वस्थ व्यक्ति को भी छींक और खांसी की तकलीफ होती है. इसलिए रसोई के प्रदूषण से निबटने के लिए चिमनी या ऐग्जौस्ट फैन का इस्तेमाल करें. ये धुएं को घर में फैलने से रोकते हैं. कुछ होम ऐप्लायंस भी प्रदूषण फैलाते हैं खासतौर पर एअरकंडीशनर. इसलिए समयसमय पर भी इन की भी साफसफाई करती रहें. अगर एअरकंडीशनर के फिल्टर को नियमित रूप से साफ न किया जाए, तो यह सेहत के लिए नुकसानदेह होता है. इस के फिल्टर पर जमने वाली धूल की परत सांस की तकलीफ बढ़ाती है. इतना ही नहीं यह ऐलर्जी का भी कारण बनती है. इस से फेफड़ों में संक्रमण से खांसी की शिकायत भी हो सकती है.

– घर की दीवार में दरार भी प्रदूषण के लिहाज से नुकसानदेह हो सकती है. छत या दीवार में दरार से कमरों में सीलन आती है. सीलन से सर्दी, खांसी ओर सांस से संबंधित तमाम बीमारियां परिवार के सदस्यों को हो सकती हैं. इसलिए घर की दीवार या छत में कहीं कोई दरार दिखाई दे तो उस की तुरंत मरम्मत करा लें.

– घर में वैंटिलेशन का पूरा इंतजाम हो. सुबह के समय घर की सभी खिड़कियां और दरवाजे खोल दें. परदों को भी हटा दें ताकि घर में ताजा हवा आ सके. ताजा हवा घर के भीतर की प्रदूषित हवा का असर कम कर देती है

किसानों को चाहिए उम्दा, कारगर और सस्ती मशीनें

‘मशीनें काम को आसान बना देती हैं, मशीनें आगाज को अंजाम बना देती हैं. यदि सलीके से इन का इस्तेमाल करें तो मशीनें किसानों को धनवान बना देती हैं.’

आज के माहौल में ये लाइनें बेहद मौजूं लगती हैं, क्योंकि मशीनों से काम जल्दी, बेहतर व कई गुना ज्यादा होता है. यह बात अलग है कि ज्यादातर मशीनें महंगी होने की वजह से आम किसानों की पहुंच से बाहर हैं. वैसे सरकार खेती की मशीनों की खरीद पर कर्ज व छूट भी देती है, मगर इस के बावजूद ज्यादातर छोटे किसान मशीन खरीदने की कूवत नहीं रखते. ऐसे में खेती के लिए किफायती मशीनों की बहुत जरूरत है.

अब गांवों के ज्यादातर मजदूर बेहतर रोजगार व ज्यादा कमाई के लिए शहरों की ओर निकल जाते हैं, लिहाजा खेती के लिए अब आसानी से मजदूर मयस्सर नहीं होते. नतीजा यह है कि खेती के ज्यादातर काम अब मशीनों से करना एक मजबूरी हो गई है. कारगर मशीनों से काम करना अच्छा व आसान लगता है, क्योंकि उन से वक्त कम लगता है और मेहनत बचती है.

किफायती काम

हमारे देश में ऐसे बहुत से लोग हैं, जो खुद बड़े वैज्ञानिक या इंजीनियर नहीं हैं, लेकिन फिर भी उन्होंने अपने तजुरबे व जुगत से कामयाब व किफायती मशीनें बनाई हैं. मसलन कर्नाटक में मुदिगिरी तालूका के डाराडहली गांव के एक पशु चिकित्सक डॉ. श्रीकृष्ण राजू ने बेहद सस्ता व छोटा गोबरगैस प्लांट बनाया है.

बड़े गोबरगैस प्लांट में करीब 20-25 हजार रुपए खर्च होतेहैं. उस से गैस हासिल करने के लिए रोज बहुत सारा गोबर भी जरूरी होता है, जो सब के बस की बात नहीं है, क्योंकि आम किसानों के पास जानवर कम होते हैं. लेकिन यदि सिर्फ 1 बाल्टी गोबर भी रोज जमा हो जाए तो सिर्फ 3 हजार रुपए में भी एक मिनी गोबरगैस प्लांट लगाया जा सकता है.

इस मिनी प्लांट की मदद से रोज 4-5 घंटे तक रसोई गैस व काफी गाद यानी खेती के लिए उम्दा खाद मुफ्त में मिल जाती है. इस से घर की ईंधनगैस व खेत में महंगी खाद का खर्च घटाया जा सकता है. यह प्लांट 11 फुट लंबी, 7 फुट चौड़ी व 250 मिलीमीटर मोटी प्लास्टिक शीट व 2 पीवीसी पाइपों की मदद से बनाया जा सकता है.

देशी मशीनें

खासतौर पर ग्रामीण इलाकों व खेती के तौर-तरीके सुधारने के मकसद से केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी महकमे ने एक बेहतर पहल की है. हनीबी नेटवर्क के साथ मिल कर सरकार ने खोजबीन में लगे उन देसी वैज्ञानिकों को बढ़ावा देने की स्कीम चला रखी है, जो मशीनों के जरीए खेती के मसले हल करने के कामयाब तरीके निकाल सकते हैं.

किसान खुद अपने तजरबे व सूझबूझ से खेती में काम आने वाले नए औजार व मशीनें बना सकते हैं या पुराने औजारों व मशीनों में सुधार कर सकते हैं. देश के बहुत से इलाकों में हंसिया, खुरपी, फावड़े, हल व पाटे तक के डिजाइन सदियों पुराने हैं. यदि वे बेहतर, हलके व मजबूत हों तो उन से काम करने में आसानी होगी और उन में टूटफूट कम होगी.

सहूलियत मौजूद

खेती के उन्नत औजार व सुधरी मशीनें बनाने में लगा एग्रीकल्चरल इंजीनियरिंग का सब से बड़ा केंद्रीय संस्थान भोपाल में है और कटाई के बाद की तकनीक पर खोजबीन करने वाला संस्थान लुधियाना मेंहै. इन के वैज्ञानिकों ने किसानों के काम लायक बहुत सी छोटीबड़ी मशीनें बनाई हैं. यह बात अलग है कि उन की जानकारी ज्यादा किसानों को नहीं है.

इसी तरह ग्रामीण इलाकों में काम आने वाली बहुत सी मशीनों को खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग भी बढ़ावा दे रहा है. अहमदाबाद के हनीबी नेटवर्क नामक संगठन ने खेती के कामों को बेहतर व आसान बनाने वाली मशीनों को जमा करने का काबिलेतारीफ काम किया है, लिहाजा किसानों को इस संस्था से जुड़ना चाहिए.

सहायक रोजगार

मोटरचालित चारा काटने की मशीन, मोटरचालित चाक आदि से काम आसान हो जाते हैं. इस के अलावा खेती से ज्यादा कमाई करने के लिए उपज की प्रोसेसिंग करना भी जरूरी है, लिहाजा मसाले व अनाज पीसने, दाल दलने, तेल निकालने, दूध की क्रीम निकालने, चिप्स बनाने, बिस्कुट बनाने, बड़ी व पापड़ बनाने, नमकीन तलने आदि की मशीनें काफी फायदेमंद साबित हो सकती हैं. किसान इन्हें खरीद कर गांव में ही लगा कर डीजल इंजन से चला सकते हैं.

नई मशीनों से देश के बहुत से इलाकों में छोटे-बड़े उद्योग-धंधों की हालत लगातार सुधर रही है. यह बात अलग है कि ज्यादातर कारखाने नगरों के आसपास के औद्योगिक इलाकों में चल रहे हैं. उत्तराखंड व हिमाचल प्रदेश आदि कई राज्य खास जिलों में यूनिट लगाने पर करों में छूट व सस्ती जमीन देने जैसी सहूलियतें देते हैं, लिहाजा, कारोबारी दूर-दूर से वहां खिंचे चले जाते हैं. ऐसी सहूलियतें सभी राज्यों के किसानों को मिलनी चाहिए.

एग्रोप्रोसेसिंग किसानों की मालीबदहाली दूर करने का आसान व कारगर उपाय है, लेकिन इस के बावजूद खेती से जुड़े कामधंधों की पूरी पहुंच बहुत से गांवों तक नहीं हो सकी है. यदि केंद्र व राज्यों की सरकारें किसानों को आसान कर्ज, छूट, ट्रेनिंग व सहूलियतें दें तो किसान गांव में अपनी जमीन पर उपज का प्रसंस्करण करने की इकाई लगा सकते हैं.

जागरूकता जरूरी

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग बहुत तेजी से उभर रहा है. इस के लिए किसानों में जागरूकता जरूरी है. चौतरफा तरक्की होने से खानेपीने की नईनई चीजें बनाने की बहुत सी मशीनें व तकनीक देश में ही मिलने लगी है, लेकिन ज्यादातर किसानों को उन की जानकारी नहीं है. बहुत से किसान गांव में रह कर खेती से जुड़ा सहायक कामधंधा करना चाहते हैं, लेकिन वे अपने सपने पूरे नहीं कर पाते. तमाम विदेशी कंपनियां मुनाफा कमा कर बाहर ले जा रही हैं.

किसानों व छोटे कारोबारियों को मशीनों व तकनीकों की जानकारी एक छत के नीचे आसानी से मिलनी चाहिए, ताकि वे खुद अपनी इकाई लगा सकें. इस काम में मदद करने व नई मशीनों आदि की जानकारी मुहैया कराने के लिए सरकार को बेहतर इंतजाम करना चाहिए. यह बात अलग है कि इस मुद्दे पर हमारे ओहदेदारों का खास ध्यान नहीं है.

आजकल उद्योगों के लिए कर्ज देने वाली एजेंसियां तो कई हैं, लेकिन नई मशीनों के इस्तेमाल से खेती की उपज की कीमत बढ़ाने के बारे में किसानों को सही जानकारी देने का इंतजाम होना भी जरूरी है, जिस से किसान अछूते व नए कामधंधों के मैदान में भी उतर सकें.

बारिश का पानी जमा कर के बचेगी खेती

बारिश के भरोसे खेती करने के दिन अब लद गए हैं. बारिश के पानी के इंतजार में हाथ पर हाथ धरे बैठे किसानों को अपनी फसलों की सिंचाई के लिए खुद ही इंतजाम करने की जरूरत है. इस के लिए कुछ खास मेहनत और खर्च करने की जरूरत नहीं है, बल्कि बारिश के पानी को बचा कर रखने से ही सिंचाई की सारी मुश्किलों से छुटकारा मिल सकता है. बरसात के पानी के भरोसे खेती करने के बजाय सिंचाई के पुराने तरीके अपना कर उम्दा खेती की जा सकती है.

बिहार के नालंदा जिले के नूरसराय प्रखंड के कथौली गांव के किसान बृजनंदन प्रसाद ने अपने गांव में 10 एकड़ जमीन में तालाब बनाए हैं, जिस से करीब 200 एकड़ खेत में लगी फसलों को पानी मिलता है. उन्होंने सिंचाई की आस में हाथ पर हाथ धर कर सरकार और किस्मत को कोसने वाले किसानों को नया रास्ता दिखाया है. बृजनंदन कहते हैं कि खुद को और खेती को बरबाद होते देखने से बेहतर है कि अपने आसपास के पुराने और बेकार पड़े तालाबों और पोखरों को दुरुस्त कर के खेती और सिंचाई की जाए.

कुछ इसी तरह के जज्बे और हौसले की कहानी बांका जिले के बाबूमहल गांव के किसान नुनेश्वर मरांडी की भी है. 32 एकड़ में फैले लहलहाते  बाग मरांडी की मेहनत और लगन की मिसाल हैं. उन्होंने अपने गांव में छोटेछोटे तालाब बना कर बरसात का पानी जमा किया और अपने गांव की बंजर जमीन में जान फूंक दी. उन्होंने पुराने और छोटे तालाबों को धीरेधीरे बड़ा किया और नए तालाब भी खुदवाए. तालाबों के पानी से सिंचाई कर के उन्होंने अपनी 32 एकड़ जमीन में पपीता और अमरूद के बाग का लहलहा दिए. तालाब  के पानी से खेतों की सिंचाई करने के साथसाथ वे उस में मछलीपालन भी कर रहे हैं और अपनी आमदनी बढ़ा रहे हैं.

कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि बिहार में सिंचित क्षेत्र ज्यादा होने के बाद भी किसान समय पर फसलों की सिंचाई नहीं कर पाते हैं. पिछले 6 सालों में सिंचित क्षेत्रों में करीब 2 लाख हेक्टेयर की कमी आई है. अभी कुल सिंचित क्षेत्र 35 लाख 20 हजार हेक्टेयर है. इस में 10 लाख 11 हजार हेक्टेयर क्षेत्र की नहरों से, 1 लाख 17 हजार हेक्टेयर क्षेत्र की तालाबों से और 23 हजार हेक्टेयर क्षेत्र की कुओं से सिंचाई हो पाती है. कुओं और तालाबों जैसे सिंचाई के परंपरागत तरीकों की अनदेखी करने की वजह से यह गिरावट आई है.

कृषि वैज्ञानिक बीएन सिंह कहते हैं कि कृषि उत्पादकता बढ़ाने के लिए उन्नत बीज, खाद, मिट्टी, कीटनाशकों के साथ पानी की सब से बड़ी भूमिका होती है और हम पानी को बचाने को ले कर ही सब से ज्यादा लापरवाह बने हुए हैं. बारिश के पानी के भरोसे बैठे रहने वाली किसानों की मानसिकता ने ही खेती और किसानों का बेड़ा गर्क किया है. बारिश के मौसम में कब, कहां और कितनी बारिश होगी? इस का सटीक अंदाजा लगाना आज भी मुश्किल है. फसलों को पानी के अभाव में बरबाद होने से बचाने के लिए बारिश के पानी को बचाने और उस के सही इस्तेमाल के तरीके किसानों को सीखने होंगे. बिहार में 93.29 हजार हेक्टेयर में तालाब और पोखर हैं. इस के अलावा 25 हजार हेक्टेयर में जलाशय और 3.2 हजार हेक्टेयर में सदाबहार नदियां हैं.

देश भर में आमतौर पर 15 जून के बाद से बारिश शुरू होती है और धान की नर्सरी डालने का सही समय 25 मई से 6 जून तक का होता है. मिसाल के तौर पर पटना जिले के पिछले 40 सालों के बारिश के आंकड़ों पर गौर करने से पता चलता है कि वहां जून में 134 मिलीमीटर, जुलाई में 340 मिलीमीटर, अगस्त में 260 मिलीमीटर और सितंबर में 205 मिलीमीटर की औसत बारिश होती है. जून में 6 दिन, जुलाई में 13 दिन, अगस्त में 12 दिन और सितंबर में 10 दिन ही बरसात होती है. बारिश के पानी को बेकार बहने से बचाने को ले कर किसानों को जागरूक होना पड़ेगा और तालाबों व पोखरों वगैरह को बचाना होगा. इस से किसान किसी महीने में कम बारिश होने पर भी अपनी फसलों को सूखने से बचा सकेंगे. इस के साथ ही सिंचाई पर होने वाली लागत में भी कमी आएगी.

किसान सलाहकार रजत यादव बताते हैं कि खेतों की मेंड़ों की ऊंचाई को बढ़ा कर मानसून के दौरान बारिश के पानी को खेतों में रोक कर रखा जा सकता है. मेंड़ की ऊंचाई जितनी ज्यादा होगी, उतने ही बारिश के पानी को बचा कर रखा जा सकेगा. अमूमन मेंड़ों की ऊंचाई 7 सेंटीमीटर से 15 सेंटीमीटर तक होती है. बारिश के पानी को खेतों में महफूज रखने के लिए मेंड़ों की ऊंचाई 20 से 25 सेंटीमीटर और मोटाई 10 से 15 सेंटीमीटर कर लेना जरूरी है. यह ध्यान रखना भी जरूरी है कि खेतों में इतना पानी न जमा हो जाए कि फसलों को नुकसान होने लगे. जरूरत से ज्यादा पानी खेतों में न जमा हो, इस के लिए पानी की निकासी का भी इंतजाम करना चाहिए. ज्यादा समय तक खेतों में पानी भरे रहने से धान के पौधों के गलने का खतरा भी बढ़ सकता है.

बारिश के पानी को खेतों में बचा कर रखने से केवल सिंचाई का ही फायदा नहीं होता है, बल्कि सिंचाई पर होने वाले खर्च में कमी आती है. गौरतलब है कि डीजलपंप से सिंचाई करने पर किसानों को हर घंटे 80-90 रुपए खर्च करने पड़ते हैं. इस से खेती की लागत, पैदावार और किसानों की आमदनी पर बुरा असर पड़ता है. खेत में ज्यादा समय तक बारिश का पानी जमा रहने से जमीन के नीचे के पानी के स्तर को बढ़ावा मिलता है.

पेंच में फंसा वर्षा जल संरक्षण

बारिश का पानी जमा करने के लिए आम लोगों को जागरूक बनाने के लिए सरकार विज्ञापनों पर करोड़ों रुपए खर्च कर रही है, लेकिन बिहार में 2 विभागों के अफसरों के पेंच में यह योजना फंसी हुई है. सूबे के 8 सूखा प्रभावित जिलों में बहुत तामझाम के साथ इस योजना को शुरू करने का ढिंढोरा पीटा गया. मगर यह योजना कृषि विभाग और ग्रामीण विकास मंत्रालय के बीच उलझ कर रह गई है. बिहार कृषि विभाग केंद्रीय कृषि मंत्रालय को योजना का प्रस्ताव भेज चुका है. पर उस के लिए फंड मुहैया कराने का जिम्मा ग्रामीण विकास विभाग के पास है. पैसे की कमी की वजह से सूबे में बारिश के पानी को जमा करने की योजना ठप पड़ी हुई है.

राज्य में जलछाजन के तहत 40 योजनाओं के जरीए 1.92 लाख हेक्टेयर में सिंचाई की सुविधा बहाल करने पर काम शुरू किया गया था. पिछले साल 64 नई योजनाओं को इस में शामिल किया गया है. इस से 3 लाख हेक्टेयर में बारिश के पानी से सिंचाई का इंतजाम किया जाना है. इस योजना के पूरा होने से गया, नवादा, बांका, मुंगेर, जमुई, रोहतास, कैमूर और औरंगाबाद जिलों में सिंचाई का ठोस इंतजाम हो जाएगा.

गौरतलब है कि राज्य सरकार ने अगले 15 सालों में सिंचाई का इंतजाम न होने वाले 28 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिंचाई का पानी पहुंचाने की योजना बनाई है, लेकिन 2 विभागों के चक्कर में उलझ कर यह योजना दम तोड़ रही है.                                                  

एवलीन के पास साउथ फिल्म इंडस्ट्री से ऑफर्स की बाढ़

अभिनेत्री एवलीन शर्मा ने अधिकतर फिल्मो में गर्ल नेक्स्ट डोर तथा बबली लड़की के किरदार निभाए है. अब वे बतौर सक्षम अभनेत्री दूसरे प्रदेशों  के लिए तैयार है. 

एवलीन को फिल्मो के अलावा उनके सामाजिक कार्यो के लिए भी पहचाना जाता है. वे बॉलीवुड का एक बहुत ही चर्चित और फेमस चेहरों में से एक है , इसी के चलते ​इस सुन्दर अभिनेत्री को साउथ के और से कई फिल्मो के ऑफर आ रहे है. 

एवलीन कहती हैं, जी हाँ साउथ के कई फिल्म मेकर्स से मेरी चर्चा हुई है, फ़िलहाल हम शुरुआती दौर में है और मीटिंग्स चल रही है पर फ़िलहाल कुछ फाइनल नहीं हुआ है. मैने कई स्क्रिप्ट्स पढ़ी है उनमें से कोई स्क्रिप्ट सेलेक्ट करुँगी, जल्द ही में फिल्म के बारे में आधिकारिक तौर पर घोषणा करुँगी. 

डिग्लैमरस अवतार में नजर आएंगी तमन्ना भाटिया

हिंदी के साथ साथ दक्षिण भारतीय फिल्मों की चर्चित अदाकारा तमन्ना भाटिया की जब से हिंदी फिल्म ‘‘इंटरटेनमेंट’’ ने बाक्स आफिस पर दम तोड़ा है, तब से वह दक्षिण भारतीय फिल्मों में ही ज्यादा व्यस्त नजर आ रही हैं. गत वर्ष एस एस राजामौली निर्देशित हिंदी व तमिल दोनों भाषाओं की फिल्म ‘‘बाहुबलीःद बिगनिंग’’ में तमन्ना भाटिया को काफी पसंद किया गया था. इतना ही नहीं 2016 में उनकी चार दक्षिण भारतीय फिल्में रिलीज होने वाली हैं.

सूत्रों के अनुसार पहली बार तमन्ना भाटिया एक तमिल फिल्म में डिग्लैमरस किरदार निभा रही हैं. जी हां! राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित निर्देशक सीनू रामास्वामी की फिल्म ‘‘धर्मा दुराई’’ में तमन्ना भाटिया एक गांव की लड़की का किरदार निभा रही हैं, जिसमें उनके हीरो विजय सेतुपथी हैं. यह एक रियालिस्टिक फिल्म है. जिसमें तमन्ना भाटिया साधारण कपड़ों में बिना मेकअप के नजर आएंगी. मजेदार बात यह है कि इस फिल्म को लेकर तमन्ना भाटिया ने फिलहाल चुप्पी साध रखी है.

दिव्यंका त्रिपाठी ने की विवेक दाहिया संग सगाई

छोटे परदे की चर्चित अदाकारा दिव्यंका त्रिपाठी को अंततः सच्चा प्यार मिल गया. दिव्यंका त्रिपाठी ने अपने अभिनय करियर की शुरूआत टीवी सीरियल ‘‘बनूं मैं तेरी दुल्हन’’ से की थी. इस सीरियल में अभिनय करने के दौरान ही वह इसी सीरियल के अपने सह कलाकार शरद मल्होत्रा को अपना दिल दे बैठी थीं.

सूत्रों के अनुसार दिव्यंका त्रिपाठी और शरद मल्होत्रा कुछ समय तक एक साथ ‘लिव इन रिलेषनशिप’ में भी रहे. पर फिर दोनों अलग हो गए थे. शरद मल्होत्रा से अलगाव के बाद दिव्यंका काफी दुःखी रहा करती थी, तभी उनकी मुलाकात विवेक दहिया से हुई.र और दिव्यंका को अपना सच्चा प्यार फिर से मिल गया.

विवेक दहिया और दिव्यंका त्रिपाठी सह कलाकार के रूप में सीरियल ‘‘ये है मोहब्बतें’’ में एकसाथ अभिनय कर रहे हैं. सीरियल ‘‘ये है मोहब्बते’’ में दिव्यंका त्रिपाठी इशिता भल्ला का किरदार निभा रही हैं, जबकि विवेक दहिया इसी सीरियल में एसीपी अभिषेक के किरदार में नजर आ रहे हैं, जो कि बार बार इशिता की मदद करते रहते हैं.

बहरहाल, पिछले छह माह से दोनो के बीच रोमांस की खबरें गर्म थी. अब 16 जनवरी को दोनों ने सगाई कर अपने रोमांस की खबरों का पटाक्षेप करते हुए एक रिश्ते में बंधने का निर्णय सुना दिया है. अपनी सगाई को लेकर दिव्यंका त्रिपाठी ने चुप्पी साध रखी है. मगर विवेक दहिया कहते हैं-‘‘हम खुश हैं. हमने अपने परिवार के सदस्यों के बीच सगाई की रस्म पूरी की. यह रस्म मेरे चंडीगढ़ के घर में संपन्न हुई. हम इसी साल शादी करेंगे. मगर शादी की तारीख हमारे परिवार के सदस्य आपसी रजामंदी से तय करने वाले हैं.

करिश्मा कोटक के नए प्रेमी हैं करण वाही

वक्त ऐसा बदला है कि अब बालीवुड से कहीं ज्यादा टीवी इंडस्ट्री के लोगों की प्रेम कहानियां चर्चा में रहती हैं. सूत्रों के अनुसार टीवी कलाकार करण वाही को लंबे समय से सच्चे प्यार की तलाश थी. उनकी यह तलाश टीवी अदाकारा करिश्मा कोटक से मिलते ही पूरी हो गयी. सूत्रों की माने तो करण वाही और करिश्मा कोटक के बीच गर्मा गर्म रोमांस की खिचड़ी पक रही है.

सूत्रों अनुसार पिछले कुछ माह से दोनों एक दूसरे के संग डेटिंग करते हुए अपनी जिंदगी के इस अहम पड़ाव का हर संभव लुत्फ उठा रहे हैं. सूत्रों के अनुसार अपने रोमांस को और अधिक बेहतर तरीके से इंज्वाय करने के लिए करण वाही और करिश्मा कोटक न्यू ईअर का जश्न मनाने के लिए गोवा भी गए थे. मगर इस सच को स्वीकार करने के लिए करण वाही या करिश्मा कोटक बिलकुल तैयार नहीं है. दोनों एक दूसरे को अपना खास दोस्त ही बताते हैं.

वैसे यह जायज भी है. आखिर दूध का जला छांछ भी फॅूक फॅूक कर पीता है. सूत्रों के अनुसार करण वाही संग प्यार की पींगे बढ़ाने से पहले करिश्मा कोटक के निकेतन मधोक और विकास करवाल के साथ भी असफल रिश्ते रह चुके हैं. इसलिए इस बार वह करण वाही के संग अपने रिश्ते को बहुत अच्छी तरह से परख लेना चाहती हैं.

 

फेसबुक से मिला फिरोजा खान को नया प्रेमी

धारावाहिक ‘‘साथ निभाना साथिया’’ में किंजल का किरदार निभा रही अभिनेत्री फिरोजा खान अब तक प्यार में कई धोखे खा चुकी हैं. सूत्रों के अनुसार लगभग दो साल तक दोस्त बने रहने के बाद जब फरवरी 2015 में दिल्ली निवासी शाकिर चौधरी के साथ हिमाचल प्रदेश की यात्रा करने के बाद फिरोजा खान को शाकिर चौधरी में अपना प्रेमी नजर आया था और दोनो ने फरवरी 2015 में शाकिर चौधरी की मां की उपस्थिति में सगाई कर ली थी. उस वक्त दोनो ने नवंबर 2015 में शादी करने की बात कही थी. लेकिन छह माह में ही दोनों के बीच अलगाव हो गया था.

पर अब फिर से फिरोजा खान ने नया प्रेमी ढूढ़ लिया है. सूत्रों के अनुसार यह नया प्रेमी दिल्ली का एक डॉक्टर है, जिससे फिरोजा की मुलाकात फेसबुक पर हुई है. सूत्रों की माने तो शाकिर चौधरी से संबंध खत्म होने का गम मनाने के दौरान ही फेसबुक पर फिरोजा खान की दोस्ती डॉक्टर जीशान अली से हुई. दो माह की दोस्ती के बाद एक दिन डॉक्टर जीशान अली खुद फिरोजा खान से मिलने ‘‘साथ निभाना साथिया’’के सेट पर पहुंचे, तो उनके सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया, जिसे फिरोजा खान ने स्वीकार कर लिया.

इस सच को स्वीकार करते हुए फिरोजा खान कहती हैं- ‘‘मुझे खुद नहीं पता कब प्यार हो गया. हम यूं ही फेसबुक पर कभी कभार एक दूसरे को संदेश भेजते रहते थे. पर जब 24 नवंबर 2015 को आमने सामने मुलाकात हुई, तो जादू हो गया. उन्होंने मेरे सामने शादी का प्रस्ताव रखा, जिसे मैंने स्वीकार किया. पर अभी शादी की तारीख तय नही है.’’

अब लद रहे हैं अजीत जोगी के दिन

बीती 14 जनवरी को छत्तीगढ़ के पूर्व मुख्य मंत्री अजीत जोगी जब ट्रेन द्वारा रायपुर से बिलासपुर पहुंचे तो बेहद तमतमाए हुये थे. आक्रोश, ग्लानि, प्रतिशोध, क्षोभ और बेबसी जैसे दर्जनों साहित्यिक शब्द मनोभाव बनकर उनके चेहरे पर साफ पढ़े जा सकते थे, लेकिन उन्हे देख स्टेशन आए उनके समर्थकों ने अंदाजा लगा लिया कि इस बार दिल्ली मे बात नहीं बनी। वैसे भी सभी को मालूम था कि राहुल –सोनिया गांधी ने जोगी समर्थकों को खाली हाथ टरका दिया है ऐसे में जोगी के मुंह से कोई शुभ समाचार सुनने की उनकी ख़्वाहिश अधूरी रह गई.

छग कांग्रेस मे घमासान तो जनवरी के पहले हफ्ते मे ही शुरू हो गया था जब प्रदेश इकाई ने मारवाही से विधायक अमित जोगी को एक प्रस्ताव पारित करते बाहर का रास्ता दिखा दिया था. अमित पर आरोप है  कि उन्होने 2014 के अंतरगढ़ विधान सभा उप चुनाव मे मुख्यमंत्री रमन सिंह के दामाद पुनीत गुप्ता से सौदेबाजी की थी जिसके तहत कांग्रेस प्रत्याशी मंतू राम ने एन वक्त पर अपना नाम वापस ले लिया था और भाजपा बगेर किसी जद्दोजहाद के जीत गई थी.

जैसे ही नए साल की शुरुआत मे अमित-पुनीत की बात चीत का आडियो टेप जारी हुआ तो प्रदेश कांग्रेस ने हरकत मे आते न केवल अमित को निष्काषित कर दिया बल्कि अजीत जोगी के निष्काशन की भी सिफ़ारिश आलाकमान से कर डाली. इसके बाद जोगी समर्थकों और विरोधियों की जो दिल्ली दौड़ शुरू हुई तो अभी तक थमी नहीं है. अजीत जोगी के धुर विरोधी भूपेश बघेल से तो राहुल गांधी मिल लिए और मामले की सारी जानकारी ली, लेकिन जोगी समर्थको को कोई भाव नहीं दिया, यहाँ तक कि अजीत जोगी की विधायक पत्नी रेणु जोगी को भी सोनिया गांधी ने मिलने समय नहीं दिया. 15 जनवरी को जब यह स्पष्ट हो गया कि जोगी परिवार की नहीं सुनी जा रही है और अमित का मामला हाल फिल-हाल अधर मे ही रहेगा, तो लगने वालों को गलत नहीं लगा कि जोगी जी के दिन अब लद रहे हैं.

ट्रेन से उतर कर अजीत जोगी सीधे अमित के वेयर हाउस रोड स्थित निवास पर पहुंचे और पत्रकारों से कहा कि प्रदेश कांग्रेस मे रोज नया टेप आ रहा है और प्रदेश कांग्रेस चलाने बाले नेता ( जाहिर है प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ) अपने तरह की संस्कृति ला रहे हैं पर अब षड्यंत्र का पर्दाफाश हो गया है सच सबके सामने है , 2 करोड़ मे प्रदेश कांग्रेस मे महामंत्री बनाया जा रहा है. जोगी के अतीत को देखें तो लगता नहीं कि वे आसानी से हथियार डालेंगे, उनकी राजनीति मे एंट्री बड़े नाटकीय अंदाज मे हुई थी इंदौर कलेक्टर रहते उन्हे फोन पर तत्कालीन प्रधान मंत्री  राजीव गांधी ने कहा था कि इस्तीफा दो और राज्यसभा का नामांकन भर दो.

इसके बाद जोगी ने कभी मुड़ कर नहीं देखा. अर्जुन सिंह के बाद उन्होने दिग्विजय सिंह को अपना गुरु बनाया और ठाकुर लाबी के इशारे पर नाचने लगे. उन्हे छग का पहला मुख्यमंत्री बनवाने बाले अर्जुन सिंह ने इस राज्य से शुक्ला बंधुओं की राजनीति समेट कर रख दी थी. अव्वल दर्जे के जुगाडु नेता अजीत जोगी ने एक वक्त मे भाजपा के दर्जन भर विधायक फोड़कर सनसनी मचा दी थी तो छग विधान सभा चुनाव मे कांग्रेस को मिली पहली हार के बाद ही एक साल के लिए राजनीति से सन्यास ले लिया था पर विवाद हमेशा उनके साथ लगे रहे.

मूलतः खुद को आदिवासी बताने बाले जोगी पर आरोप यह भी है कि वे आदिवासी समुदाय के हैं ही नहीं. फर्जी जाति का यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट मे चल रहा है . अपनी बेटी की ख़ुदकुशी का सदमा झेल चुके अजीत जोगी को  दूसरा बड़ा झटका तब लगा था जब उनका बेटा अमित प्रदेश कांग्रेस कोषाध्यक्ष जग्गी हत्याकांड मे गिरफ्तार हुआ था, यानि अमित की उद्दंडताएं नई नहीं हैं लेकिन इस दफा दिक्कत गांधी –नेहरू परिवार की तरफ से अनदेखी की है, वरना तो छग कांग्रेस से निबटने और उसे मेनेज करने के कई टोटके वे जानते हैं. इधर भूपेश बघेल गुट आलाकमान को यह समझा पाने मे कामयाब रहा है सूबे के स्थानीय निकाय चुनावों मे पार्टी को मिली भारी सफलता से सत्ता तक पहुँचने का रास्ता खुला है. ऐसे मे इस तरह की सौदेबाजी उजागर होने से पार्टी की छवि बिगड़ती है.

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