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विन राणा लाएंगे इंडोनेशियन दुल्हन

सीरियल ‘‘महाभारत’’ में नकुल का किरदार निभा चुके अभिनेता विन राणा 22 फरवरी को इंडोनेशियन मॉडल, अभिनेत्री और ‘‘इंडोनेशियन ब्यूटी पीजेंट’’ विजेता नीता सोफियानी संग विवाह करने वाले हैं. सूत्रों की माने तो एक सीरियल की शूटिंग के सिलसिले में छह माह तक इंडोनेशिया में रहने के दौरान ही विन राणा और नीता सोफियानी एक दूसरे के करीब आ गए थे.

सूत्रों के अनुसार इंडोनेशिया में एक सीरियल की शूटिंग एक साथ करते करते दोनों के बीच प्यार हो गया. और फिर दोनों ने शादी करने का निर्णय ले लिया. लेकिन नीता सोफियानी के माता पिता उसकी शादी एक दूसरे देश और दूसरी संस्कृति से संबंध रखने वाले युवक विन राणा के साथ करने को हिचकिचा रहे थे. मगर अंततः विन राणा के प्यार की जीत हुई.

सूत्रों की माने तो विन राणा तथा नीता सोफियानी के परिवार के लोगों ने आपस में विचार विमर्श करके 22 फरवरी को दिल्ली में बाकायदा हिंदू रीति रिवाज से शादी को संपन्न करने का निर्णय लिया है. यूं तो विन राणा अभी भी इंडोनेशिया में है. मगर विन राणा के नजदीक लोगों की माने तो इस शादी में विन राणा और नीता सोफियानी के पारिवारिक सदस्य व कुछ खास दोस्त ही मौजूद रहेंगे.

सैन फ्रांसिस्को की तैयारी में गौतम गुलाटी

‘‘बिग बास’’ सीजन आठ के विजेता रहे गौतम गुलाटी छोटे परदे के साथ साथ बड़े परदे पर भी व्यस्त है. यूं तो गौतम गुलाटी ने अपने करयिर की शुरूआत छोटे परदे पर एकता कपूर के सीरियल ‘‘कहानी हमारे महाभारत की’’ में दुर्योधन का किरदार निभाकर की थी. पर उन्हें पहचान मिली सीरियल ‘‘दिया और बाती हम’’ में अभिनय करने से. उसके बाद वह ‘बिग बास सीजन 8’ के विजेता बने. इन दिनों वह एमटीवी के शो ‘बिग एफ’ के संचालक के तौर पर भी काफी शोहरत बटोर रहे हैं तो दूसरी तरफ हाल ही में उन्होने फिल्म ‘अजहर’ में क्रिकेटर रवि शास्त्री का किरदार निभाया है. पर इन सबसे परे वह एक लघु फिल्म ‘‘डरपोक’’ का निर्माण व इसमें अभिनय कर अंतरराष्ट्रीय ख्याति बटोर रहे हैं.

गौतम गुलाटी की लघु फिल्म ‘‘डरपोक’’ को ‘‘कान इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल’’ सहित कई अंतरराष्ट्री फिल्म समारोहों में  काफी सराहा जा चुका है. अब खबर है  कि उनकी लघु फिल्म को जुलाई माह में सैन फ्रांसिस्को में संपन्न होने वाले विश्व फिल्म समारोह में प्रदर्शित की जाने वाली है. इस फिल्म समारोह में अपनी फिल्म ‘‘डरपोक’’ के साथ हिस्सा बनने के लिए गौतम गुलाटी अब सैन फ्रांसिस्को जाने की तैयारी कर रहे हैं.

हिंदू राष्ट्र की कल्पना

सत्ता में आने के बाद से ही नहीं, सत्ता में आने से बहुत पहले से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विभिन्न घटकों के नेता एक ऐसे राष्ट्र की कल्पना करते रहते थे जहां सुख, चैन, अमन, शांति, प्रगति हो. यह सपना लगभग हर देश के राजनीतिक विचारकों का रहा है और इस के ग्राहक भी बहुत रहे हैं जो कल की पीढि़यों को सपनों का संसार देने के लिए वर्तमान को न्यौछावर करने को तैयार थे और अंतिम बलिदान, मृत्यु को भी गले लगाने को तैयार थे. जो पूरी तरह व्यावहारिक राजनीति से परिचित नहीं थे उन की तो छोडि़ए जो जानते हैं और समझते हैं कि आज तक इस प्रकार का यूरोपियन, काल्पनिक, समाज या राष्ट्र नहीं बन पाया है, संघ के लिए बहुत कुछ दांव पर लगाने को तैयार रहे हैं और जब उन के पास सत्ता है, मजबूती है, फैसले लेने की शक्ति है, इस प्रयोग को करने में आमादा हैं.

संघ जिस वाद की वकालत करता है उसे वह राष्ट्रवाद के चोले में छिपा कर रखता है क्योंकि वह असल में हिंदू राष्ट्र है जिस पर भारतीय राष्ट्रवाद का लेप लगा है. यह हिंदू राष्ट्रवाद भी 80 प्रतिशत जनता का अपना नहीं है भले ही 80 प्रतिशत जनता अपने को हिंदू मानती हो. यह पौराणिक हिंदूवाद है जिस में असली शक्ति स्मृतियों के अनुसार ऋषिमुनियों, राजपुरोहितों के पास हो, जो शास्त्रों का मनन मात्र करते हों और उन का कल्याण से अर्थ भजनवाद या तपस्या करना भर हो. ये वे लोग थे जो आमतौर पर हथियार नहीं उठाते थे, व्यापार नहीं करते थे, खेती नहीं करते थे. इन की चाह थी कि राजा या शासक कैसे भी इन्हें आश्रमों में मुफ्त बिना काम किए रहने की इजाजत व सुविधा दे और जनता को दान सहित आदर देने को मजबूर करे.

ऐसा नहीं कि इस प्रकार का वर्ग दूसरे समाजों में नहीं रहा. लगभग सभी समाजों का गठन ऐसा ही रहा है और आज के आधुनिक औद्योगिक तार्किक समाज में यह वर्ग अब लैपटौपों के पीछे जमा हो गया है. यह केवल पुस्तकें पढ़ कर, सौफ्टवेयर प्रोग्राम बना कर, शासन चलाने के कानून बना कर, कानूनों की व्याख्या कर के, अपने विचारों को प्रकट कर के और पुस्तकें लिख कर या पावर पौइंट प्रैजेंटेशन दे कर समाज को हाथों पर रखता है और अफसोस यह है कि आम जनता हर देश में अपने को इन्हीं के हाथों सुरक्षित समझती है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यूरोप के देशों के चर्चों, चीन की कम्युनिस्ट पार्टी, इसलामी देशों के इमामों की तरह संकीर्ण राष्ट्रवाद को आगे रखता है ताकि देशभक्ति के नाम पर धर्मभक्ति, पार्टीभक्ति या विचारभक्ति को जबरन गले उतारा जा सके.

आम नागरिक जो कर रहा है या जो उस से करवाया जा रहा है या उस से जो छीना जा रहा है या उस पर जो नियंत्रण लगाए जा रहे हैं वे राष्ट्रहित के लिए हैं, यह कह कर उस के प्राकृतिक नैसर्गिक विरोध को दबा दिया जाता है और उसे राष्ट्र के लिए त्याग कर लिया जाता है.

आज देश में संघ छोटेछोटे प्रयोग कर के इस राष्ट्रवाद की नई परिभाषा लिखने की कोशिश कर रहा है. जैनियों के पर्व के दिनों मांस न खाना, फिल्म संस्थान में संघ विचारधारा के लोगों को लायक, स्वच्छ भारत का आंदोलन चलाना, योग को राष्ट्रीय पर्व सा मानना उस वृहत राष्ट्रवाद को थोपना है जो आमतौर पर जनता के गले नहीं उतरता पर कल अच्छा होगा, भारत दुनिया का सब से समृद्ध देश होगा, हिंदू का सम्मान होगा आदि का सपना दिखा कर उसे पटरी पर लाया जा रहा है.

किसी भी तरह के राष्ट्रवाद को थोपने के लिए छोटेछोटे कदम उठाने पड़ते हैं. प्रवर्तक की किताब के प्रति अंधश्रद्धा, एक प्रतीक का गले पर पहनना, एक झंडा अपनाना, खास तरह का पहरावा, किसी विशेष दिन को पर्व की तरह अपनाना राष्ट्रवाद को हरदम मस्तिष्क में रखने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं. राष्ट्रवाद के विरोधियों को छांटने के लिए भी प्रतीकों का इस्तेमाल करना होता है. जरमनी ने यहूदियों को स्टार औफ डेविड कपड़ों पर लगाने का हुक्म दिया. भारत में दलितों को झाड़ू बांध कर चलने का हुक्म था. आजकल मांस पर प्रतिबंध लगवाया जा रहा है. यह हिंदू शासक द्वारा अल्पसंख्यक जैनियों के कहने पर करा गया पर असली निशाना मुसलमान हैं.

भारत में अब धार्मिक पर्व जोरशोर से मनवाए जा रहे हैं. गणेश, दुर्गा, छठ, दशहरा, दीवाली को प्रतीक का रूप दे दिया गया है ताकि दूसरे धर्मों से अपनों को अलगथलग करा जा सके. संस्कृत का किसी भी सभा के प्रारंभ में पाठ करा कर बारबार श्रेष्ठता की गुणवत्ता थोपी जा रही है. चीन ने इस बार कम्युनिस्ट धर्म छोड़ने के लिए 1 अक्तूबर की जगह 3 सितंबर को सैनिक परेड की जो चीन की जापान पर विजय का दिवस है.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू राष्ट्रवाद को सर्वग्रहित नहीं बना पा रहा. उस ने हर जाति को अपनेअपने देवता पकड़ा दिए हैं. संघ के नेता हर जाति के त्यौहारों में उपस्थित रहते हैं पर खुद नहीं मनाते. उन के लिए जाति व वर्णवाद राष्ट्रवाद का हिस्सा हैं और यह अभी तो जातियों और वर्णों को खल नहीं रहा पर फिर इन्हें ही संघ के अपने राष्ट्रवाद के लिए इस्तेमाल करेंगे.

कठिनाई यह है कि दुनिया भर में जब भी ऐसा राष्ट्रवाद थोपा गया है, विध्वंस हुआ है. सपनों के संसार से पहले वास्तविक संसार टूट कर बिखर गया. नाजी जरमनी के जमाने में यहूदियों या अल्पसंख्यकों ने ही कहर नहीं झेला, वे जरमन भी जो हिटलर की नहीं मानते थे, राष्ट्रद्रोही करार कर मार दिए गए, तड़पातड़पा कर. लेनिन और स्टालिन ने यही किया. चीन में माओ ने यही किया. क्यूबा के फीडेल कास्त्रो ने ऐसा ही किया. इसलामिक देशों में यही हुआ. तालिबानी, अलकायदाई और अब इसलामिक स्टेट सब एक राष्ट्रवाद का सपना देख रहे हैं जिस से स्वर्ग का रास्ता मिलेगा और इन सब की वजह से लाखों नहीं करोड़ों की जानें गईं या करोड़ों को घर छोड़ना पड़ा.

हिंदू राष्ट्रवाद का सपना देखते हुए संघ के प्रवर्तक देशहित की सोच रहे हैं. वे व्यावहारिक नहीं हैं, वे यह सोच ही नहीं सकते. वे जिस हिंदू प्रणाली में विश्वास रखते हैं, वह घुन खाई है जिस ने समाज को सैकड़ों टुकड़ों में बांट रखा है और आज हर टुकड़ा अपनी स्वतंत्रता फिर मांग रहा है, यह संघ के विचारक नहीं सोच पा रहे हैं.

इसलामी शासकों के दौरान जब धर्म परिवर्तन का मौका मिला तो यही टुकड़े अलग हो गए. आज ये टुकड़े फिर बेचैन हैं क्योंकि संघ के राष्ट्रवाद को 20 साल हांकने के बाद भी उन्हें लग रहा है कि उन्हें रथ पर बैठने नहीं दिया जा रहा. हार्दिक पटेल इसी का नमूना है. संघ हार्दिक पटेल को इसी तरह निष्क्रिय कर देगा जैसे उस ने रामविलास पासवान, उदित राज या जीतन राम मांझी को किया है पर नीतीश कुमार जैसे विद्रोही स्वर फिर उठते रहेंगे और वर्णीय संघर्ष वर्णों के आपसी समागम में राष्ट्रवाद की चाशनी में विलय हो कर समाप्त होने के बजाय इस सड़ी चाशनी, मोलासिस, में मोटी गांठें बन कर उसे प्रोसेस होने से भी रोक देगा.

आज जरूरत संकीर्ण राष्ट्रवाद की नहीं है. चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग चीन कम्युनिज्म की जगह चीनी राष्ट्रवाद के सहारे असंतोष पर काबू पाने की कोशिश कर रहे हैं. पुतिन रूस में सोवियती सपना साकार करने के लिए यूक्रेन में फौजों का परीक्षण कर रहे हैं. यूरोप के देश यूरोपियन यूनियन को तोड़ कर छोटे देशों के राष्ट्रवाद को फिर पनपाना चाह रहे हैं. अमेरिका में गोरे, प्रोटैस्टैंट कालों, लेटिनों से ऊपर सामाजिक गठन की पुनर्कल्पना कर रहे हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिंदू पर्वों के सहारे राष्ट्रवाद का नया संस्करण देश को स्वीकार कराने के चक्कर में है.

ये सब प्रयोग भयंकर सामाजिक संघर्ष पैदा करेंगे. शुरुआत हो चुकी है, बहुमतीय, बहुदलीय, बहुविचारणीय लोकतंत्र, स्वतंत्र मीडिया, पहले से ज्यादा जागरूक जनता, आधुनिक तकलीफ इस संकीर्ण राष्ट्रवाद के इबोला और डेंगू जैसे वायरस से बचा पाएगी या नहीं या विश्वयुद्धों की तरह महायुद्धों, जिन में गृहयुद्ध शामिल होंगे, में दुनिया को धकेलेगी यह आज नहीं कहा जा सकता पर आज तो आसार आंधी के आने के हैं, सपनों के काल्पनिक संसार के आने के नहीं.

इलाहाबाद: शिक्षा और साहित्य की राजधानी

ऐतिहासिक शहर इलाहाबाद को शिक्षा और साहित्य की राजधानी कहें तो यह अतिशयोक्ति न होगा. इस शहर से नेहरू खानदान का नाम जुड़ा है जिस ने देश को 3 प्रधानमंत्री दिए हैं.

इलाहाबाद शहर का मशहूर चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा वृत्तांत में जिक्र किया है. इसे पहले प्रयाग नाम से जाना जाता था. समूचे उत्तर प्रदेश से ही नहीं बल्कि देशभर से छात्र पढ़ने के लिए यहां आते हैं. यहां इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अलावा मोतीलाल नेहरू रीजनल इंजीनियरिंग कालिज, इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रूरल टैक्नोलाजी और राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन मुक्त विश्वविद्यालय शिक्षा के बड़े संस्थान हैं. शाह आलम और क्लाइव लायड के बीच हुई ऐतिहासिक संधि के लिए भी यह शहर जाना जाता है. संगम इलाहाबाद के आकर्षण का एक प्रमुख केंद्र है.

दर्शनीय स्थल

इलाहाबाद का किला : इस का निर्माण अकबर ने 1583 में यमुना के तट पर करवाया था. इस किले की खासियत इस की संरचना और शिल्पकारी है. इस विशाल और भव्य किले में 3 गैलरियां हैं जो ऊंची मीनारों के सहारे टिकी हैं. यहां पर सरस्वती कूप, अशोक स्तंभ और जोधाबाई का रंगमहल भी देखा जा सकता है. किले के सामने जो अशोक स्तंभ बना है उस के बारे में कहा जाता है कि लार्ड कर्जन द्वारा कहीं और से ला कर इस को यहां पर स्थापित किया गया था.

खुसरो बाग : इलाहाबाद रेलवे स्टेशन से कुछ कदमों की दूरी पर यह बाग स्थित है. इस को जहांगीर के पुत्र अमीर खुसरो ने बनवाया था. लकड़ी के विशाल दरवाजों वाला खुसरो बाग पत्थरों की दीवारों से घिरा है. यह मुगलकालीन कला का एक जीवंत उदाहरण है. इस बाग में अमीर खुसरो व उस की बहन सुलतानुन्निसा की कब्रों पर बना एक मकबरा भी है.

इलाहाबाद संग्रहालय : यह संग्रहालय कमला नेहरू रोड पर चंद्रशेखर आजाद पार्क के पास स्थित है. यहां कच्ची मिट्टी की अद्भुत मूर्तियों और शिल्प के विविध नमूनों, निकोलस रोरिच की पेंटिंग्स, राजस्थानी लघुचित्रों की वजह से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. कौशांबी की खुदाई में मिली ऐतिहासिक वस्तुओं को भी यहीं रखा गया है. ऐतिहासिक जानकारी हासिल करने के लिए छात्र इस संग्रहालय में आते हैं. इस संग्रहालय में 8 गैलरियां हैं. यह रविवार को छोड़ कर हर दिन सुबह 10 से शाम 5 बजे तक खुला रहता है.

जवाहर प्लेनिटोरियम : विज्ञान से संबंधित रहस्यमय संसार को जानने के लिए यह उपयुक्त स्थान है. यहां आप ग्रहों व नक्षत्रों से संबंधित अद्भुत खगोलीय जानकारियों से रूबरू होंगे.

संगम : 3 नदियों के संगम तट पर ज्यादातर लोग स्नान करने आते हैं. इस स्नान को धर्म की मान्यता मिलने के कारण यहां भिखारियों से अधिक पंडों की भीड़ है जो सैलानियों को तरहतरह से ठगने की कोशिश करते हैं. यहां आने वालों को चाहिए कि वे पंडों के बहकावे में न आएं और पूजापाठ करवाने से बचें.

‘सिंगल हैं पर कमजोर नहीं’

दुनिया में अकेली औरतों की संख्या बढती ही जा रही है. घरेलू हिंसा की बढती घटनाओं और आत्मनिर्भर बनने की चाह में आंकडे बताते है कि करीब 7 करोड महिलायें अकेली रहती हैं. बीते 10 सालों में यह आंकडे 39 फीसदी तक बढ गये है. 2001 में यह संख्या 5 करोड के आसपास थी. 1990 में लडकियो की शादी की औसत उम्र 19 साल थी जो 2011 में बढ कर 21 साल हो गई है. अकेली रहने वाली ज्यादातर लडकियां 25 से 29 आयु वर्ग की है. देश के भीतर के आंकडों को देखे तो उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक महिलाये अकेली रह रही है. इनकी संख्या करीब 1 करोड 20 लाख है. 62 लाख महिलायें महाराष्ट्र में और 47 लाख आंध्र प्रदेश में है. अकेली महिलाओं की बढती संख्या से अब इनको सामाजिक सुरक्षा और मान्यता भी मिलने लगी है. इनके मान सम्मान और अधिकार के लिये लोग जागरूक हो रहे है.

24 जनवरी को राष्ट्रीय बालिका दिवस के मौके पर उत्तर प्रदेश की राजधनी लखनऊ में उत्तर प्रदेश महिला सम्मान प्रकोष्ठ के कार्यालय से एक मार्चपास्ट निकाला गया. जिसकी अगुवाई महिला सम्मान प्रकोष्ठ की प्रमुख एडीजी पुलिस सुतापा सन्याल ने किया. अंश वेलफेयर फांउडेशन द्वारा आयोजित रैली में महिलायें ‘सिंगल है कमजोर नहीं’ का नारा लगाते चल रही थी. मार्चपास्ट में महिला आयोग की सदस्य श्वेता सिंह, महिला सम्मान प्रकोष्ठ की साध्ना सिंह और सत्या सिंह, अंश वेलपफेयर की श्रद्वा सक्सेना, ममता सिंह, रीता सिंह और अनूप घोष इनरव्हील क्लब गोमती की अपर्णा मिश्रा सहित बहुत सारी महिलाओं ने हिस्सा लिया. इस मौके पर अकेली महिलाओं के लिये काम करने वाली महिलाओं को सम्मानित भी किया गया.

मार्चपास्ट के उद्देश्य पर बात करते अंश वेलपफेयर फांउडेशन की श्रद्वा सक्सेना ने कहा ‘समाज में अकेली औरतों की संख्या बढती जा रही है. कई बार इस तरह की महिलाओं को कमजोर मानकर उनका हक मारा जाता है. हम चाहते है कि यह महिलायें खुद में कमजोर न रहे.यह खुद में आत्मनिर्भर बनी रहेगी तो समाज भी इनका साथ देगा. हम समाज के लडने की नहीं उसके साथ अच्छे से रहने और एक दूसरे की भावनाओं को समझने पर जोर दे रहे है.जिससे अकेली रहने वाली महिला को कमजोर न समझा जाये.कई बार कमजोर समझ कर समाज ऐसी महिलाओं की उपेक्षा करता है.समाज की उपेक्षा से अकेली रहने वाली महिलायें कमजोर न हो ऐसा हमारा प्रयास होगा.समाज को भी इस तरह अकेली महिलाओं की मदद करनी चाहिये.’

अच्छे हैं भैया, करीबी डुबा रहे नैया

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को प्रदेश के लोग प्यार से भैया कहते है. मुख्यमंत्री के समर्थक ही नहीं विरोधी तक उनके अच्छे स्वभाव की तारीफ दिल खोलकर करते है. इसके बाद भी सरकार की छवि जनता के बीच अच्छी नहीं बन पा रही है. प्रदेश में रहने वाले ज्यादातर लोग मानते है कि अखिलेश यादव अच्छे आदमी है पर उनके करीबी नेता, अफसर उनको सही बात सुनने और समझने का मौका नहीं देते है. ऐसे नेता और अफसर मुख्यमंत्री को यह समझाने में सफल हो रहे है कि पूरे प्रदेश में चारो तरफ उनकी जय जयकार हो रही है. मुख्यमंत्री के करीबी लोगों के ऐसे व्यवहार से प्रदेश की जनता ही नहीं खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पिता और समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अघ्यक्ष मुलायम सिंह यादव भी परेशान दिखते है.

मुलायम सिंह यादव कई बार मंच से खुलेआम ऐसी बातें कह चुके है. अखिलेश यादव कहते है नेता जी पार्टी के संरक्षक है उनको आलोचना का पूरा हक है. मुख्यमंत्री अगर एक बार अपने करीबी अपफसरों और नेताओं से हकीकत समझ लेते तो पता चलता कि जनता में उनके स्वभाव की छवि भले ही अच्छी हो पर उनके कामकाज से कोई खुश नहीं है. इसका बडा कारण मुख्यमंत्री अखिलेश यादव नहीं उनके करीबी नेता और अपफसर है.

लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग स्थित समाजवादी पार्टी ने कार्यालय समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर की जयंती समारोह में बोलते हुये मुलायम सिंह यादव ने कहा कि कुछ मंत्री सिर्फ पैसा कमा रहे है. कई मंत्री तो सुधर गये हैं पर कई अभी बाकी हैं. मुलायम सिह यादव ने यह भी कहा कि मुख्यमंत्री को चुगलखोरों से होशियार रहना चाहिये. राजनीति में सुननी सबकी चाहिये पर  सबकी सुनकर जो सही हो वही करना चाहिये. मुलायम सिंह यादव सरकार बनने के समय से यह कह रहे है कि महिला नेताओं को पार्टी में आगे लाना चाहिये. वह सभी स्थल पर पीछे बैठी महिलाओं को देखकर नाराजगी जताते हुये बोले इनको पीछे क्यों बैठाया? अखिलेश मंत्रीमंडल में केवल 2 ही महिलायें मंत्री है. मुलायम पार्टी के कार्यकर्ताओं से मिलते हैं और उनसे सच बात कहने को कहते है. ऐसे में कार्यकर्ता जो बताते हैं उससे मुलायम को निराशा और दुख होता है. यह पीडा वह कई बार व्यक्त कर चुके है.

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव पिता मुलायम की बात से इत्तेफाक तो रखते हैं पर उस पर अमल नहीं करते. मुख्यमंत्री तक जनता की कोई पहुंच नहीं है. जो लोग उन तक पहुंचते हैं वह मुख्यमंत्री को सच्चाई बताने की जगह पर तारीफ करते है. पार्टी और सरकार दोनो ही स्तर पर मुख्यमंत्री तक पहुंच रखने वाले लोग जनता के स्वर को मुख्यमंत्री तक पहुचने नहीं देना चाहते. मुख्यमंत्री से मिलना उनसे अपनी परेशानी कहना सरल नहीं रह गया है.

लखीमपुर खीरी जिले में 3 लडकियों का अपहरण होता है. फिरौती में 50 लाख रूपये मांगे जाते है. पीडित परिवार 5 लाख की फिरौती देकर अपनी लडकियों को छुडाता है. पुलिस तब सक्रिय होती है जब मुख्यमंत्री को इस घटना की जानकारी होती है. अफसर और मंत्री मोबाइल के अपने सीयूजी फोन खुद नहीं उठाते. ऐसे में कैसे जनता परेशानी कहेगी यह सोचने वाली बात है.

छुक छुक चलती रेलगाड़ियों में छेड़खानी

17 जनवरी की सर्द रात में कटिहार रेलवे स्टेशन से डिब्रूगढ-नई दिल्ली राजधनी एक्सप्रेस खुली तो ट्रेन के अंदर का महौल काफी गर्म हो गया. जोकीहाट के जदयू विधायक सरफराज आलम बगैर टिकट के ट्रेन में सवार हो गए और एक महिला मुसाफिर के साथ छेड़खानी करने लगे. ट्रेन जब पटना जंक्शन पर पहुंची तो दिल्ली के वीरेंद्र नगर के रहने वाले इंद्रपाल सिंह बेदी ने रेलवे थाने में शिकायत दर्ज कराई कि विधायक ने उनके और उनकी बीबी रूपसी बेदी के साथ बदसलूकी की.

एफआईआर में कहा गया है कि कटिहार स्टेशन पर बोगी नंबर एसी-4 में विधायक और उनके साथ 2 लोग सवार हुए और हंगामा शुरू कर दिया. नशे की हालत में हंगामा करते हुए वह फर्स्ट एसी के कूपे में चले गए और वहां से लौटने के बाद उनकी बीबी के साथ बदसलूकी करने लगे. छेड़खानी मामले के तूल पकड़ने के बाद विधायक के होश उड़ गए और उन्होंने राजधानी एक्सप्रेस से सफर करने की बात से ही इंकार कर दिया.

कटिहार और पटना जंक्शन के सीसीटीवी फुटेज की जांच के बाद साफ हो गया कि विधायक उस दिन ट्रेन में सवार हुए थे. वहीं रेलवे के मुताबिक 17 जनवरी के रिजर्वेशन चार्ट में भी सरफराज आलम नाम के किसी मुसाफिर का नाम नहीं था. जांच में खुलासा हुआ है कि विधायक के पिता अररिया के राजद सांसद मोहम्मद तसलीमुद्दीन की ओर से एक पीएनआर वीवीआईपी कोटा से कंफर्म कराने के लिए भेजा गया था. उसमें कामरान आदिम, वी मैहर और एस अंजुम का नाम था. इसमें कामरान का कोच नंबर ए3/ 32 पहले से ही कंफर्म था और अंजुम को ए3 को बर्थ नंबर 43 कंफर्म हुआ था. मैहर का टिकट कंफर्म नहीं हो सका था.

6 दिनों तक चले हाइ वोल्टेज ड्रामा के बाद आखिरकार 24 जनवरी को सरफराज को गिरफ्तार कर लिया गया. उनके साथ सफर कर रहे बौडीगार्ड इंजमामुल हक और कमर सईद को भी गिरफ्तार किया गया. पटना के रेल थाना में 7 घंटे की पूछताछ के बाद तीनों को जमानत दे दी गई. विधायक का कहना है कि वह बेकसूर हैं. वहीं रेल एसपी पीएन मिश्रा ने बताया कि विधायक का पासपोर्ट जब्त कर लिया है और कुछ शर्तों के साथ विधायक को जमानत दी गई है. विधायक की छेड़खानी को लेकर फजीहत झेलने के बाद जदयू ने उन्हें पार्टी से सस्पेंड भी कर दिया है. 

यह तो था हाई प्रोफाइल छेड़खानी का मामला, लेकिन चलती रेलगाडि़यों में महिलाओं और लड़कियों के साथ छेड़खानी करने के मामले में काफी तेजी से इजाफा होता जा रहा है. रेलगाडि़यों में साथ सफर करने वाली महिलाओं के जरिए सेक्स की कुंठा शांत करने की ओछी कोशिश करने वालों की कतार लंबी होती जा रही है. पिछले साल 23 मार्च को डिब्रूगढ़-दिल्ली राजधनी एक्सप्रेस में पैंट्रीकर्मी ने 9 साल की बच्ची के साथ छेड़खानी कर छुकछुक करती चलती रेलगाड़ी पर एक और बदनुमा दाग लगा दिया. 9 साल की लड़की अपने भाई के साथ गुवाहाटी में सवार हुई थी और दिल्ली जा रही थी. रेल पुलिस में दर्ज रिपोर्ट में कहा गया है कि बरौनी रेलवे स्टेशन से जब ट्रेन खुली तो लड़की बाथरूम गई. जब वह बाथरूम से बाहर निकली तो पैंट्रीकर्मी जितेंद्र पांडे ने उसे गोद में उठा लिया और उसके साथ छेड़खानी करने लगा. बच्ची जब शोर मचाने लगी तो पैंसेजर उसकी ओर दौड़े. पैंसेंजर ने जितेंद्र की जम कर पिटाई कर डाली. वहीं जितेंद्र का कहना है कि लड़की जब बाथरूम से निकली तो ट्रेन की स्पीड अचानक कम होने की वजह से लड़खड़ा कर गिर गई थी इसलिए उसने उसे उठाकर उसकी सीट की ओर ले जा रहा था.

इसी तरह पिछले साल दिसंबर महीने में भी डिब्रूगढ़-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस में टीटीआई ने एक महिला से छेड़खानी की थी. वह महिला अपने बच्चे के साथ सपफर कर रही थी. पटना जंक्शन पर ट्रेन के रूकते ही मुसाफिरों ने हंगामा मचा दिया और टीटीआई को गिरफ्तार करने की मांग करने लगे. आरपीएपफ थाने में टीटीआई के खिलाफ केस दर्ज कराया गया. रेलवे पुलिस ने टीटीआई की खोजबीन की तो पता चला कि टीटीआई समेत ट्रेन की पूरी स्कार्ट पार्टी ही फरार हो चुकी थी.

छेड़खानी की शिकार महिला चारू ने पुलिस में दर्ज रिपोर्ट में कहा था कि वह अपने 3 साल के बच्चे के साथ कानपुर जा रही थी. ट्रेन के बोगी नंबर-बी-10 में 31 नंबर सीट पर चारू को अकेली बैठी देख टीटीआई भरत कुमार शर्मा के अंदर का हैवान जाग गया और उसने उसके साथ बदतमीजी शुरू कर दी. वह महिला की सुरक्षा का हवाला देकर महिला की सीट पर बैठ गया और ओछी हरकतें करने लगा. मौका मिलते ही महिला ने अपने पति और पटना में रहने वाले अपने रिश्तेदार को मोबाइल फोन पर मामले की जानकारी दी थी.

इससे पहले नबंबर महीने में गुवहाटी-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस में ही नशे की हालत में सेना के 2 जवानों ने जम कर उत्पात मचाया और महिला मुसाफिरों के सामने गंदी हरकतें की. कोच नंबर बी-9 में सफर कर रहे जवानों ने पहले तो जम कर दारू पिया और उसके बाद मुसाफिरों के साथ बदसलूकी करने लगे. महिलाओं के सामने ही नशे में धुत्त जवानों ने अपने कपड़े उतार डाले और मना करने पर गाली-गलौज करने लगे. ट्रेन के पटना जंक्शन पहुंचते ही दोनों जवानों को गिरफ्तार कर लिया.

पिछले कुछेक सालों में चलती ट्रेनों में महिला मुसाफिरों के साथ छेड़खानी की वारदातों में तेजी से इजाफा हुआ है. अकसर ही इस तरह की वारदातें होती रहती हैं और रेल पुलिस और रेलवे महकमा आरोपियों को पकड़ने और मामले की जांच की बात कह कर पल्ला झाड़ लेता है. ज्यादातर मामलों में देखा गया है कि रेलवे ऐसे मामलों में आरोपियों को सजा देने या दिलाने के बजाए मामले को दबाने में ज्यादा दिलचस्पी लेता है. रेल पुलिस फोर्स के एक रिटायर्ड अपफसर अंजनी सिन्हा कहते हैं कि ट्रेनों में औरतों के साथ छेड़खानी, भद्दे इशारे या गप्पबाजी करना आम बात हो गई है, अपने सामने या आजू-बाजू की सीट या बर्थ पर बैठी महिला या लड़कियों को देखकर गलत हरकतें ओछी मानसिकता वाले लोग ही करते हैं. इसमें मुसाफिर, ट्रेन के स्टाफ, आरपीएफ और सेना के जवान समेत हर तरह के लोग शामिल होते हैं, जिससे छेड़खानी के ज्यदातर मामलों को आसानी से दबा दिया जाता है.

ट्रेनों में महिलाओं के साथ छेड़खानी करने वाले मनचलों के बारे में मनोविज्ञानी अजय मिश्र कहते हैं कि खुराफाती मानसिकता वाले और साथ में औरतों को बैठा देख सेक्स की भावना जगने वालों की कमी नहीं है. कुछ लोग खुद पर काबू रख कर खामोश रह जाते हैं और कुछ लोगों की सेक्स कुंठा पास बैठी लड़कियों और औरतों को देख कर ज्यादा ही मचलने लगती हैं. जिससे वह औरतों के साथ गलत हरकत कर बैठते हैं. यह सब तो दिमागी रोग की तरह है और ऐसे लोगों पर कानून के डंडे से रोक नहीं लगाई जा सकती है.

समाजवादी पार्टी के अधेड़ उमर के बडे़ नेता भी ट्रेन में छेड़खानी कर अपने चेहरे वा कालिख पोत चुके हैं. 18 मार्च 2013 को समाजवादी पार्टी के पूर्व सांसद चंद्रनाथ सिह भी ट्रेन में महिला के साथ छेड़खानी के आरोप में गिरफ्तार हो चुके हैं. 62 साल के सिंह पद्मावत एक्सप्रेस में साथ में सपफर कर रही एक औरत के साथ गलत व्यवहार कर रहे थे. पीडि़त महिला ने नेता पर आरोप लगाया था कि वह नशे की हालत में थे और कई बार समझाने के बाद भी अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे थे.

एक बड़ी प्राइवेट कंपनी में काम करने वाले राजेश कुमार राज बताते हैं कि मार्केटिंग के काम के सिलसिले में वह हर महीने करीब 15-20 दिन ट्रेनों में ही गुजारते हैं. चलती ट्रेन में लड़कियों और औरतों को देखकर छेड़खानी करने या गंदी फब्तियां कसने वालों की अलग ही सोच होती है. वह लड़कियों को छूने, उनके बदन से सटने और चिपकने के मौके ढ़ूंढ़ते रहते हैं और कोई मौका न मिले तो खुद मौका पैदा कर लेते हैं. मसलन इधर-उधर आती जाती लड़कियों के शरीर से सटने के लिए वैसे लोग रास्ते पर खड़े हो जाते हैं, नीचे झुक कर कोई सामान निकालने का स्वांग करने लगते हैं. ऐसे ज्यादातर मामले में महिलाएं खामोश रह जाती हैं. कोई हंगामा न हो या फिर लोक-लाज के डर से औरतों के चुप रहने की वजह से ही लफंगों का मन बढ़ जाता है. अगर पीडि़त महिला हल्ला मचाए तो ट्रेन की बोगी में सवार बाकी मुसाफिर लफंगे को सबक सीखा सकते हैं.

महिला बिग्रेड के जरिए बिहार में औरतों को उनके हकों को लेकर जागरूक करने की मुहिम चलाने वाली अनीता सिन्हा कहती हैं कि औरतों को अपनी रक्षा और सुरक्षा को लेकर खुद ही सतर्क और जागरूक होना होगा, केवल कानून और पुलिस के भरोसे महिलाओं को सुरक्षा हासिल नहीं हो सकती है. आज काफी पढ़ने लिखने के बाद भी ज्यादातार महिलाएं छेड़खानी और शारीरिक उत्पीड़न को लेकर चुप्पी साधे रह जाती हैं, इसके पीछे बस एक ही वजह होती है, लोक-लाज के डर, लोग क्या कहेंगे, बेकार का फसाद खड़ा होगा. कई मामलों में देखा गया है कि छेड़खानी के खिलाफ हो-हल्ला मचाने या आवाज उठाने वाली महिला को ही समाज बदचलन करार दे देता है. इस वजह से भी कई महिलाएं लफंगों की बेजा हरकतों को चुपचाप सह लेती हैं. ऐसी औरतों को यह समझना पड़ेगा की खामोश रह कर वह लफंगों के मनोबल को बढ़ाने की ही काम करती हैं.

पटना में रेल एसपी प्रकाश नाथ मिश्रा का दावा है कि रेलगाडि़यों में छेड़खानी करने वालों के साथ कड़ी कानूनी कारवाई की जाती है. वह कहते हैं कि ट्रेनों में अगर कोई लफंगा किसी महिला के साथ छेड़खानी करता है या गंदी बातें करता है तो ऐसे में बोगी में मौजूद बाकी सवारियों को इसका विरोध करना चाहिए. इसकी जानकारी ट्रेन में मौजूद रेल पुलिस के जवानों को देनी चाहिए. कोई लफंगा बोगी में गलत हरकत करता है तो बाकी मुसफिरों के चुपचाप रहने से ही बदमाशों का हौसला बढ़ता है, अगर उसे सही समय पर सही सबक दे दिया जाए तो आगे वह ऐसी हरकतें करने से पहले कोई भी लफंगा सौ बार सोचेगा.

रेलगाडि़यों में जब कोई करे छेड़खानी

– अगर कोई रेलकर्मी ही छेड़खानी कर रहा हो तो अपने बोगी या कूपे के बाकी मुसपिफरों की मदद लें.

– कोई लफंगा जब छेड़छाड़ करने की कोशिश करे तो चुप्पी नहीं साधें.

– अगर आपके साथ कोई अपना सपफर कर रहा हो तो उसे बताएं, नहीं तो बाकी मुसाफिरों या फिर रेल पुलिस को तुरंत सूचना दें.

– अपने मोबाइल फोन के जरिए किसी रिश्तेदार या दोस्त को एसएमएस के जरिए पूरी जानकारी दें.

– रेल पुलिस की महिला हेल्पलाइन नंबर अपने पास जरूर रखें. हेल्प लाइन नंबर-1800-111322

अब रवीना टंडन बनीं वेडिंग प्लानर

अभिनेत्री रवीना टंडन अब नए रूप में हमें दिखाई देगी. जी नहीं वह किसी फिल्म के किरदार के लिए नहीं. रवीना अपनी सबसे छोटी बेटी (अडॉप्टेड) छाया की शादी के लिए वेडिंग प्लानर बनने को तैयार हुई हैं. सूत्रों की माने तो रवीना को यह विचार अपने परदे पर निभाए गए शादियों द्वारा प्रेरित किरदार से आया है।

छाया की शादी हिंदू और ईसाई रीती-रिवाज़ों के अनुसार होगी. उनके होने वाले पति मूल रूप से गोवा के हैं. 

रवीना द्वारा आयोजित संगीत समारोह में बहुत ही करीबी रिश्तेदारों और मित्रों को आमंत्रित किया गया है,  तथा चूड़ा और घरा घरोली के अलावा एक मेंहदी समारोह का भी आयोजन किया गया हैं, रवीना ने व्यक्तिगत रूप से प्रत्येक समारोह को डिजाइन किया है. 

हाउ टू डील: टेढे़ लोगों से कैसे निबटें

जीवन की राह में हमेशा स्ट्रेट फौरवर्ड चलने वाले लोगों से ही वास्ता पड़े ऐसा संभव नहीं, क्योंकि सब का व्यवहार एकजैसा नहीं होता. कोई हर परिस्थिति में खुश रहने वाला होता है तो कोई गुस्सेबाज व स्वभाव से चिड़चिड़ा. जब तक हमारा वास्ता सीधेसादे लोगों से पड़ता है, सब सही चलता रहता है लेकिन जब टेढ़े लोगों से पाला पड़ता है तो उलझनें व परेशानियां खड़ी हो जाती हैं. ऐसे उलझे मिजाज के लोगों से परेशान होने के बजाय जरूरत है डट कर मुकाबला करने की.

कम बात करने में ही भलाई

कुछ लोगों का स्वभाव ही ऐसा होता है कि वे सीधी बात का भी टेढ़ा ही जवाब देते हैं. ऐसे में जब सामने वाला आप को कुछ गलत जवाब देगा तो आप भी रिप्लाई में जरूर कुछ बोलेंगे, जिस से बात बिगड़ेगी ही. इस से अच्छा है कि ऐसे व्यक्ति से दूरी बना कर रखें, जिस से उसे कुछ कहने का मौका ही न मिले.

दिमाग ठंडा रख कर बात करें

जब कभी भी आप को उलझे मिजाज वाले व्यक्ति से काम पड़े तो आप उस के सामने कूल डाउन हो कर जाएं. यह बात भी मन में ठान लें कि चाहे वह कितने भी गुस्से में व गलत अंदाज में जवाब दे लेकिन फिर भी आप अपना नियंत्रण नहीं खोएंगे. हो सकता है आप के ऐसे व्यवहार से वह खुद को बदलने पर मजबूर हो जाए.

प्रयासों से उसे बदलने की कोशिश करें

यह कहना भी सही नहीं होगा कि सारे टेढ़े मिजाज के लोगों को बदला नहीं जा सकता. जिन लोगों में खुद को बदलने की इच्छा होती है उन्हें प्रयास कर के बदला जा सकता है. आप उन्हें प्यार से समझाएं कि आप के ऐसे व्यवहार से कोई आप का दोस्त तो क्या आप के पास बैठना भी पसंद नहीं करेगा इसलिए अपने व्यवहार में परिवर्तन लाएं. कोशिश करें कि जब कभी भी कोई आप से बात करे तो आप अपनी बातों से उस के चेहरे पर मुसकान लाने की कोशिश करें न कि उसे परेशान करें.

स्थितियों के अनुसार खुद को ढालें

लाख प्रयासों के बावजूद अगर वह खुद को न बदले तो स्थितियों के अनुसार खुद को ढालना सीखें. जब कभी भी वह रूखे लहजे में बात करे तो उसे हंस कर टाल दें या फिर बात के सब्जेक्ट को ही बदल दें. हो सके तो किसी जरूरी काम का बहाना बना कर वहां से चले जाएं. ध्यान रखें, ऐसे लोगों के व्यवहार का खुद की पर्सनैलिटी पर जरा भी असर न पड़ने दें, न ही उन के कारण खुद को तनाव में रखें.                     

 

समाज की विकृति झेलती युवतियां

प्रेममें सबकुछ जायज हो सकता है पर प्रेम से पहले युवती को फुसलाने के लिए जोरजबरदस्ती, धमकी, छींटाकशी, मारपीट, तेजाब फेंकना, बदनामी करना, वीडियो बनाना न प्रेम है न सफल प्रेम की शुरुआत, पर कम से कम हमारे देश में यह उत्तर से दक्षिण तक कौमन है. हमारे यहां सहमी, डरी, दुबकी युवतियों को बात करने और दोस्ती करने के लिए राजी करने के लिए सबकुछ जायज मान लिया जाता है.

जब कोई अनजान, अनचाहा युवक पीछा करने लगे और दोस्त बनाने की पेशकश करने लगे तो युवती को जिस तनाव से गुजरना पड़ता है, यह बयान करना आसान नहीं है. चलतेफिरते दोस्ती हो जाए, पड़ोसी हो, सहकर्मी हो, सहपाठी हो तो दोस्ती करने में आनंद आता है, चाहे वह प्रेम में बदले या न बदले पर जब युवक पीछा करते, सीटियां बजाते, घर के आगे लटक कर दोस्ती पर जोर डाले तो दहशत हो जाती है.

दिल्ली के एक स्कूल की 12वीं कक्षा की छात्रा को दोस्ती करने के लिए मजबूर करने वाला एक युवक पुलिस से शिकायत करने पर गिरफ्तार किया गया पर इस से होगा क्या? ज्यादा से ज्यादा मारपीट कर उसे दोचार रोज जेल में बंद कर के छोड़ दिया जाएगा. अगर वह आसपास कहीं रहता होगा तो सदा ही संकट बना रहेगा.

हमारे यहां युवतियों के प्रति इतनी अधिक कुंठा और सैक्स फ्रस्ट्रेशन है कि हर लड़का मानो पगलाया हो. समाज एक तरफ तो युवतियों को ताले में बंद कर रखता है और दूसरी ओर युवक को मर्दानगी दर्शाने के लिए उकसाता है. चालू जबान में सैक्स भरे वाक्य ऐसे उछाले जाते हैं मानो वे गांधी या लेनिन के विचार हों.

समाज इतना दोगला है कि अपने घर की युवतियों को तो ले कर तो वह बेहद संकुचित है पर युवकों को छुट्टे सांड़ की तरह छोड़ देता है. उसी घर में दोहरा मानदंड चलता है. दोगलापन असल में सोच के अभाव का परिणाम है. हमारे यहां बंधीबंधाई लीक पर चलने की इतनी आदत है कि हम तर्क और व्यावहारिकता के बारे में सोच ही नहीं सकते. पंडों, पादरियों और मुल्लाओं के चक्कर में पड़ कर अपने को शुद्ध समझने वाले हमारे समाज में असल में विकृति ही भरी है जो हर कोने पर दिखती है. युवतियों पर खुद को थोपने की वजह भी यही है.

इस का इलाज पुलिस का डंडा नहीं क्योंकि पुलिस वाले तो हर युवती को वेश्या मान कर चलते हैं जो उन्हें बिना पैसा लिए सुख दे. इस का इलाज तो घरों में है पर घरों में न पहले और न अब यह पाठ पढ़ाया जा रहा है कि लड़कियों से छेड़खानी मंहगी पड़ती है और कब यह मारपीट में बदल जाए, कहा नहीं जा सकता. घरों को शराफत सीखनी होगी वरना प्रेम भी समाप्त होगा और आजादी भी.

 

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