Sarita-Election-2024-01 (1)

कभी राजनीति में परिवारवाद का विरोध करने वाली भारतीय जनता पार्टी ने अब परिवारवाद का विरोध छोड़ कर वंशवाद का विरोध करना शुरू कर दिया है. भाजपा का गठन 80 के दशक में हुआ था. 1980 का लोकसभा चुनाव जनवरी माह में हुआ था. भाजपा का गठन अप्रैल में हुआ था. भाजपा ने गठन के बाद पहला चुनाव 1984 का लड़ा था. उस समय पार्टी में कोई प्रमुख नेता नहीं था. अटल बिहारी वाजपेयी का ही नाम चर्चा में रहता था. जब भाजपा में पहचान वाले नेता ही नहीं थे तो उन के परिवार के लोग होने का सवाल ही नहीं था. ऐसे में भाजपा के लिए परिवारवाद का विरोध करने में दिक्कत नहीं थी.

जब भाजपा नेताओं की एक पीढ़ी तैयार हुई, उन के बेटाबेटी राजनीति करने लायक हुए तो उन को पार्टी संगठन से ले कर सांसद, विधायक का चुनाव लड़ने के मौके मिले. आज के समय में ऐसे भाजपा नेताओं की लंबी लिस्ट है जिन के बेटाबेटी चुनाव मैदान में हैं. इस कारण अब भाजपा ने परिवारवाद का विरोध छोड़ कर वंशवाद की बात करनी शुरू कर दी है. जैसे ही भाजपा में दूसरी पीढ़ी के नेताओं के बेटेबेटी चुनाव लड़ने लायक होंगे, वे भी चुनाव लड़ेंगे. तब शायद भाजपा वंशवाद की जगह कोई नया शब्द ले कर आएगी.

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मीनाक्षी लेखी की जगह आई बांसुरी

दिल्ली में लोकसभा की 7 सीटें चांदनी चौक, उत्तरपूर्वी दिल्ली, पूर्वी दिल्ली, नई दिल्ली, उत्तरपश्चिमी दिल्ली, पश्चिमी दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली हैं. भाजपा ने दिल्ली के उम्मीदवारों में एक चर्चित चेहरा पूर्व केंद्रीय मंत्री सुषमा स्वराज की बेटी बांसुरी स्वराज को चुनाव मैदान में उतारा है. भाजपा ने मीनाक्षी लेखी का टिकट काट कर बांसुरी को नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया है. 40 साल की बांसुरी स्वराज भी वकील हैं. इस से पहले यहां से सांसद रही मीनाक्षी लेखी भी वकील थीं.

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