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दूत या स्वामी

देश की सरकार आरएसएस चला रहा है या भाजपा, इस बात को ले कर अधिकांश लोगों में भ्रम की स्थिति है और इस पर लोग दोफाड़ भी हैं. कुछ मानते हैं कि सरकार पर आरएसएस का दबदबा साफ दिखता है तो कइयों का कहना है कि नरेंद्र मोदी संघ के दबाव में पूरी तरह नहीं हैं. पर समझदार लोग वे हैं जिन्होंने यह निष्कर्ष निकाल लिया है कि देश इन दोनों के सहकारिता और सहभागिता के समझौते व अनुबंध पर चल रहा है. बस, इन्होंने मुद्दे बांट रखे हैं. यही बात आगरा के एक शैक्षणिक कार्यक्रम में एक शिक्षक ने मोहन भागवत से पूछ ली तो वे भड़क कर विश्वामित्र की भूमिका से सीधे दुर्वासा की मुद्रा में आ कर बोले, ‘मैं कोई भाजपा सरकार का दूत नहीं हूं जैसा कि आप लोग समझते हैं.’ हालांकि वह नादान शिक्षक भागवत से सिर्फ यह जानना चाह रहा था कि सरकार शिक्षा के लिए क्या कदम उठाने वाली है.

विकास का जेटली मौडल

वित्त मंत्री अरुण जेटली अर्थशास्त्र के विद्वान या भारी ज्ञाता नहीं हैं, इसलिए खुद को ऐसे पेश करते रहते हैं मानो नई आर्थिक क्रांति वही लाएंगे. जेटली का नया बयान यह है कि आर्थिक बदहाली के लिए नेहरू मौडल जिम्मेदार है और पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव आर्थिक सुधारों के मसीहा नहीं थे. अरुण जेटली वर्तमान की बात जाने क्यों कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते कि 2 साल में पैसा पैसेवालों के पास ही जा रहा है और किसान व मजदूर और गरीब होते जा रहे हैं. यह हालत हमेशा से ही रही है कि भारत को सोने की चिडि़या कह कह कर मुगलों और अंगरेजों को कोसा जाता रहा है, पर उन पंडेपुजारियों को कोसने की हिम्मत किसी की नहीं जिन्होंने अपने स्वार्थ के लिए विदेशी आक्रांताओं को शह दी.

बूआ मत कहो

बसपा प्रमुख मायावती ने अपने मिजाज और जरूरत के मुताबिक चुनावी तेवर इख्तियार कर लिए हैं. हालांकि एक अकेली महिला को एकसाथ कई मोरचों पर जूझना पड़ रहा है. पर बसपा का बुरा वक्त भी है क्योंकि एकएक कर नेता खासतौर से सवर्ण पार्टी छोड़ कर जा रहे हैं. मायावती जानती है कि उन का मुकाबला सपा से है, इसलिए भाजपा से ज्यादा उसे घेर कर ही सत्ता हासिल की जा सकती है. एक ताजे बयान में मायावती का यह कहना वाकई दिलचस्प और अहम था कि अखिलेश को उन्हें बूआ कहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं क्योंकि 2 जून, 1995 को उन के पिता मुलायम सिंह ने उन पर जो हमला करवाया था उसे लोग भूले नहीं है और सपा महिलाओं की हिफाजत नहीं कर पा रही. अब उन्हें कौन याद दिलाए कि एक वक्त में सियासी रिश्तेनातों के जाल में आ कर वे खुद भी तो फंसी थीं.

जिग्नेश एक जरूरत

कंप्यूटर, इंटरनैट के इस दौर में भी दलित सिर पर लाद कर मैला ढोएं, सीवेज लाइनों में घुस कर सफाई करें और मरे मवेशियों की चमड़ी उतारें, यह कतई सभ्य समाज की पहचान नहीं है. लेकिन चूंकि यह सब भगवान और धर्म की आड़ में होता आया है, इसलिए कई ऐतिहासिक आंदोलनों के बाद भी दलितों के हालात में अपेक्षित सुधार नहीं हुआ है.

इकलौती अच्छी बात यह है कि अब युवा दलित नेतृत्व उभर रहा है जो राजनीति की हकीकत समझता है. गुजरात के जिग्नेश मेवानी अंगरेजी से एमए हैं, अधिवक्ता और पत्रकार भी हैं. दलितों को दबाए रखना धार्मिक षड्यंत्र है, यह समझ उन में है. आम आदमी पार्टी से इस्तीफा दे चुके इस युवा ने ऊना के दलितों की अगुआई की थी और अभी भी कर रहे हैं. दलितों को उन से उम्मीदें हैं जिन पर खरा उतरने के लिए जिस इच्छाशक्ति और समझ की जरूरत होती है, वह उन में हालफिलहाल दिख तो रही है.

बोमन ईरानी ने ली हर घर को महकाने की शपथ

अच्छी खुशबू का हमारे जीवन में बहुत महत्व है. सुगंध आप को अच्छा रिफ्रेश फिल करवाती है और आपके मूड को भी बदल देती हैं. ‘एमबी प्योर’ के ‘स्मेली टू स्माइली’ इवेंट पर ब्रांड एम्बेसेडर बोमन इरानी ने कहा, ‘घर में खाना बनाने, गार्बेज, गीले कपड़ों आदि की वजह से ‘स्मेल्स’ होते हैं. आपका घर कितना भी आलीशान हो, अगर उसकी महक अच्छी न हो, तो घर में आने वाले ‘गेस्ट’ की धारणा आपके प्रति नकारात्मक हो जाती है. उन्हें लगता है कि आप घर का ध्यान नहीं रखते. यह जरुरी है कि आपके घर से खुशबू आती रहे, खासकर बंद कमरों, रसोईघर और वाशरूम में हमेशा अच्छी महक आवश्यक है.’

उन्होंने आगे बताया, ‘मुझे खराब स्मेल पसंद नहीं. मैं उससे परेशान हो जाता हूं. मैं यह मानता हूं कि साफ सफाई ही स्वस्थ शरीर का राज है. मैं एक खुशमिजाज इंसान हूं अगर उसमें ‘ह्यूमर’ नहीं तो मैं खुश नहीं.’ निर्माता, निर्देशक फरहा खान कहती है, ‘मेरा घर हमेशा साफ और सुगन्धित होना चाहिए, क्योंकि इससे मेरे बच्चे प्रभावित होते हैं.

इस अवसर पर एक्सपर्ट मैक्सिम दालेड बताते है कि हर दिन हम 23040 बार सांस लेते है और यह 438 घन फीट एरिया में घूमता है ऐसा करने में 5 सेकेण्ड लगते हैं. 2 सेकेण्ड सांस लेने में और 3 सेकेण्ड सांस छोड़ने में. उस समय अगर कोई गंध आसपास होती है तो उसके अणु हमारे इस प्रक्रिया में शामिल हो जाते हैं. जिससे हमें अच्छी और खराब महक का एहसास होता है. इसका हमारे मस्तिष्क पर सीधा पड़ता है. यही वजह है कि हमारे मूड में परिवर्तन दिखाई पड़ता है.

खरीदए आईफोन सिर्फ 1700 रुपए में…!

आईफोन-7 भारत में बिक्री के लिए 7 अक्टूबर से उपलब्ध होगा. इस फोन की कीमत 60 हजार रुपए बताई जा रही है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक यह कहा जा रहा है कि अगर आपके पास आधार कार्ड है तो आप इस फोन को सिर्फ 1700 रुपए में ही हासिल कर सकते हैं. दरअसल यह डाउनपेमेंट राशि होगी और बाकी की रकम आपको किस्तों में चुकानी होगी.

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अगर आपके पास आधार कार्ड है तो आपको आईफोन सिर्फ 1700 रुपए की डाउन पेमेंट में मिल सकता है. खबरों के अनुसार एप्पल भारतीय बैंक से एक अनुबंध कर रहा है अगर यह सफल हो जाता है तो नया iPhone 7 1700 रुपए की मासिक किस्तों में भारत में मिल पायेगा और इसके लिए आधार कार्ड दिखाना होगा लेकिन इस अनुबंध को लेकर कोई बात अभी तक मीडिया में नहीं आई है.

खबरों की माने तो एप्पल भारतीय बैंकों से इसके लिए बात कर रहा है जिसका जल्द ही कोई परिणाम आ सकता है. अगर ऐसा हुआ तो यकीकन वैसे लोगों के लिए यह बड़ी खुशखबरी होगी जो 60 हजार की एकमुश्त रकम देकर आईफोन 7 को खरीद पाने में असर्मथ है. अगर ऐसा कोई करार होता है तो फिर भारत में इससे आईफोन 7 की बिक्री में इजाफा हो सकता है.

अमेरिकी बाजार में आईफोन 7 की कीमत 649 डॉलर (करीब 43,100 रुपये) से शुरू होगी. यह कीमत 32 जीबी वेरिएंट की है. वहीं, आईफोन 7 प्लस स्मार्टफोन का 32 जीबी वेरिएंट घरेलू मार्केट में 749 डॉलर (करीब 49,700 रुपये) में मिलेगा. भारत में आईफोन 7 की कीमत करीब 60,000 रुपये होगी.

रिलायंस जियो के आगे झुका एयरटेल

आइडिया के बाद भारती एयरटेल ने भी रिलायंस जियो को अतिरिक्त इंटरकनेक्ट पॉइंट्स उपलब्ध कराने की सहमति दी है. एयरटेल ने कहा है कि ये पोर्ट नए ऑपरेटर के 1.5 उपभोक्ताओं को समर्थन देने के लिए पर्याप्त होंगे. एयरटेल ने बयान में कहा, हम जियो को उसकी व्यावसायिक पेशकश शुरू होने से कहीं पहले पॉइंट ऑफ इंटरकनेक्ट उपलब्ध करा रहे हैं. इसके साथ ही पीओआई की कुल संख्या मौजूदा पीओआई की संख्या से तिगुना हो जाएगीं.

रिलायंस जियो ने अपनी व्यावसायिक सेवाएं 5 सितंबर को शुरू की थी. उसने मौजूदा ऑपरेटरों पर पर्याप्त इंटरकनेक्शन पोर्ट उपलब्ध न कराने का आरोप लगाते हुए उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की मांग की है. रिलायंस इंडस्ट्रीज के चेयरमैन मुकेश अंबानी ने एक सितंबर को आरोप लगाया था कि इंटर कनेक्टिविटी के मुद्दे की वजह से जियो के नेटवर्क पर 5 करोड़ कॉल ड्रॉप हुईं. भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने इस मामले को निपटाने के लिए हस्तक्षेप किया था. एक दिन पहले ही आइडिया सेल्युलर ने जियो को अधिक पीओआई उपलब्ध कराने की पेशकश की थी.

सपा की ‘सर्जरी’ में जुटे मुलायम

समाजवादी पार्टी में परिवार का विवाद पार्टी के लिये संकट का विषय है. यह सच है कि सपा परिवार के सदस्यों मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव, अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव का लक्ष्य एक ही है. वह सभी 2017 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को सत्ता में लाना चाहते है.

परेशानी की बात यह है कि एक लक्ष्य तो सबका है पर रास्ते अलग-अलग चुन रखे है. पार्टी पर अपनी पकड़ दिखाने की आपस में एक होड़ लगी है. जो इस बीमारी का कारण है. सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव अब इस बीमारी की पूरी ‘सर्जरी’ करने के मूड में दिख रहे है. वह चुनाव में जाने से पहले यह जताना चाहते हैं कि पार्टी में अखिलेश और शिवपाल का बराबर वजन है. जिससे शिवपाल के करीबी कार्यकर्ता भरोसे में रहे और पार्टी को चुनाव जितवाने में पूरी मेहनत करें.

अखिलेश यादव यह दिखाना चाहते हैं कि वह सबसे मजबूत मुख्यमंत्री है तो मुलायम यह साबित करने में लगे रहते हैं कि वे परिवार के मुखिया है. पार्टी में उनका फैसला अंतिम होगा फैसला. शिवपाल हर बात में बड़े भाई मुलायम का सहारा लेते हैं तो मुलायम भावुक हो जाते हैं. वह शिवपाल का पक्ष लेने के लिए उनके साथ खड़े नजर आने लगते हैं. सपा का यह पारिवारिक विवाद है.

जिन दलों में परिवारवाद होता है वहां ऐसे हालात कोई नई बात नहीं है. मुलायम इस बीमारी से पार्टी का इलाज करना चाहते हैं जिससे चुनाव में उतरने के समय कोई उहापोह न रहे.

राजनीति में हर फैसला पूरी क्रूरता के साथ लिया जाता है. राजनीति में संबंधो का मतलब खत्म हो जाता है. जिन दलों में परिवारवाद होता है वहां क्रूरता की जगह भावुकता से फैसले लिये जाने लगते हैं जो पार्टी में विघटन का कारण बनते हैं. परिवारवाद पर कायम दलों में पहले भी ऐसे उदाहरण मिलते हैं. शिवसेना, अकाली और द्रमुक जैसी पार्टियां इसका बेहतर उदाहरण है.

समाजवादी पार्टी में मुलायम के हस्तक्षेप से सब कुछ अच्छा नहीं होगा तो एक सम्मान जनक जगह पर आकर सुलझ जरूर जायेगा. यह बात जरूर है कि इस कलह से पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचा है. जिस तरह से अखिलेश यादव एक सर्वमान्य मुख्यमंत्री के प्रत्याशी के रूप में उत्तर प्रदेश के वोटरों के सामने खड़े थे वह छवि धूमिल हुई है. यह बात सच है कि चुनाव सरकार नहीं पार्टी का संगठन लड़ता है. ऐसे में सरकार और संगठन के बीच खींचतान अच्छी बात नहीं है.

सपा के यादव परिवार में मची जंग मुलायम सिंह यादव पर भारी पड़ेगी. एक तरफ भाई है तो दूसरी तरफ बेटा. आस-पास परिवार के दूसरे सदस्य भी है जिनमें से ज्यादातर अपने लाभ के हिसाब से सोचते हैं. बीच का रास्ता निकल भी आये तो दिल पर एक बोझ होगा. जो मुलायम पर भारी पड़ेगा. अगले विधानसभा चुनाव में अगर सपा सत्ता में नहीं आई तो पार्टी में विघटन हो सकता है जो दूसरे परिवारवाद वाले दलों में होता रहा है.

यह सच है कि परिवारवाद की लड़ाई को खत्म करने के लिये किसी बाहरी नेता की बलि ली जा सकती है. पर सपा का यह आपरेशन कितना सफल होगा यह वक्त बतायेगा. परिवारवाद में ऐसी जंग नई नहीं है. इसका परिणाम भी अलग नहीं होगा. अभी यह झगड़ा सुलझ जायेगा पर इसका प्रभाव देर में दिखेगा.

ट्रैक एशिया कप से पहले भारत को लगा झटका

दिल्ली में हो रहे भारत ट्रैक एशिया कप के तीसरे चरण से पहले करारा झटका लगा है क्योंकि दुनिया के छठे नंबर के साइक्लिस्ट साहिल कुमार टखने की चोट के कारण इसमें शामिल नहीं हो सकेंगे. साहिल ने इससे पहले बैंकॉक में एशिया ट्रैक कप जीता था. उन्हें ट्रेनिंग शिविर के दौरान चोट लगी थी.

भारतीय कोच आर.के. शर्मा ने कहा, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि हमारा स्टार साइक्लिस्‍ट इस साल की प्रतियोगिता में भाग नहीं ले पायेगा. निश्चित रूप से हमें उसकी कमी खलेगी. लेकिन चोट किसी भी खेल का बहुत बड़ा हिस्सा होती है. हमें उम्मीद है कि साहिल तेजी से उबरें और अगली चैम्पियनशिप में हमसे जुड़ जाएं.'

भारत को मेजबान होने के नाते साइक्लिस्‍ट की एक अतिरिक्त टीम रखने की अनुमति है जिसमें भारतीय खेल प्राधिकरण की राष्ट्रीय साइक्लिंग अकैडमी में ट्रेनिंग कर रहे युवा साइक्लिस्‍ट शामिल हैं.

हालांकि, साहिल इसमें नहीं शामिल होंगे लेकिन भारत इस प्रतियोगिता में सबसे बड़े दल को उतारेगा जो विश्व चैम्पियनशिप के लिए क्‍वॉलिफायर भी है.

सभी की निगाहें देबोरा हेरॉल्‍ड पर होगी जो पिछले साल चोट के बावजूद पांच पदक जीतने में सफल रही थीं. शर्मा ने कहा, 'इसमें कोई शक नहीं कि देबोरा हमारी मुख्य ऐथलीट हैं और हम सबकी उम्मीदें उससे हैं. हालांकि इस बार हमें जूनियर टीम से भी काफी पदकों की उम्मीद है जो इस खेल के प्रति काफी जुनूनी हैं.'

इयरफोन की छुट्टी, अब सिर्फ उंगली से कर पाएंगे फोन पर बात

महानगरों से लेकर छोटे शहरों तक हर उम्र के लोगों को कान में इयरफोन या हेडफोन लगाकर घूमते हुए देखा जा सकता है लेकिन जल्द ही यह बीते दिनों की बात हो सकती है. ऐसा एक नये स्मार्टवॉच स्ट्रैप की मदद से संभव है, जब आप कान में अपनी उंगली लगाकर फोन पर बात कर पाने में सक्षम होंगे. एक कोरियाई कंपनी ने एसजीएनएल स्मार्ट स्ट्रैप का विकास किया है, जिसे मौजूदा स्मार्टवाच के साथ जोड़ा जा सकता है. इसके जरिये उपयोगकर्ता अपने उंगली का इस्तेमाल करके फोन पर बात कर पायेंगे.

उपकरण का विकास करने वाली सोल की एक कंपनी इन्नोमडल लैब के अनुसार, एसजीएनएल की मदद से अपने फोन को पॉकेट में रखकर आप केवल उंगली के इस्तेमाल से फोन पर बात कर पायेंगे. इसके लिए किसी भी तरह के अतिरिक्त हेडसेट और इयरफोन की जरूरत नहीं होगी. कंपनी ने कहा, जब आप अपने कानों पर अपनी अंगुलियां रखते है तो यह ना सिर्फ आप तक आवाज पहुंचाती है बल्कि अनावश्यक शोर को भी आपके कानों में पहुंचने से रोक देती है. ब्लूटूथ के जरिये उपकरण में आवाज संकेत का संचार होता है.

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