समाजवादी पार्टी में परिवार का विवाद पार्टी के लिये संकट का विषय है. यह सच है कि सपा परिवार के सदस्यों मुलायम सिंह यादव, शिवपाल यादव, अखिलेश यादव और रामगोपाल यादव का लक्ष्य एक ही है. वह सभी 2017 के विधानसभा चुनावों में समाजवादी पार्टी को सत्ता में लाना चाहते है.

परेशानी की बात यह है कि एक लक्ष्य तो सबका है पर रास्ते अलग-अलग चुन रखे है. पार्टी पर अपनी पकड़ दिखाने की आपस में एक होड़ लगी है. जो इस बीमारी का कारण है. सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव अब इस बीमारी की पूरी ‘सर्जरी’ करने के मूड में दिख रहे है. वह चुनाव में जाने से पहले यह जताना चाहते हैं कि पार्टी में अखिलेश और शिवपाल का बराबर वजन है. जिससे शिवपाल के करीबी कार्यकर्ता भरोसे में रहे और पार्टी को चुनाव जितवाने में पूरी मेहनत करें.

अखिलेश यादव यह दिखाना चाहते हैं कि वह सबसे मजबूत मुख्यमंत्री है तो मुलायम यह साबित करने में लगे रहते हैं कि वे परिवार के मुखिया है. पार्टी में उनका फैसला अंतिम होगा फैसला. शिवपाल हर बात में बड़े भाई मुलायम का सहारा लेते हैं तो मुलायम भावुक हो जाते हैं. वह शिवपाल का पक्ष लेने के लिए उनके साथ खड़े नजर आने लगते हैं. सपा का यह पारिवारिक विवाद है.

जिन दलों में परिवारवाद होता है वहां ऐसे हालात कोई नई बात नहीं है. मुलायम इस बीमारी से पार्टी का इलाज करना चाहते हैं जिससे चुनाव में उतरने के समय कोई उहापोह न रहे.

राजनीति में हर फैसला पूरी क्रूरता के साथ लिया जाता है. राजनीति में संबंधो का मतलब खत्म हो जाता है. जिन दलों में परिवारवाद होता है वहां क्रूरता की जगह भावुकता से फैसले लिये जाने लगते हैं जो पार्टी में विघटन का कारण बनते हैं. परिवारवाद पर कायम दलों में पहले भी ऐसे उदाहरण मिलते हैं. शिवसेना, अकाली और द्रमुक जैसी पार्टियां इसका बेहतर उदाहरण है.

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