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रिलायंस ने बेचा पावर ट्रांसमिशन प्रॉजेक्ट्स

रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर ने पावर ट्रांसमिशन ऐसेट्स को अरबपति गौतम अडानी की कंपनी अडानी ट्रांसमिशन को बेचने का अग्रीमेंट किया है. रिलायंस इन्फ्रा इससे मिलने वाली रकम से कर्ज चुकाएगा. दोनों कंपनियों ने यह नहीं बताया कि सौदा कितने में हुआ है, लेकिन करीबी सूत्रों का कहना है कि इसमें रिलायंस इन्फ्रा के तीन ट्रांसमिशन ऐसेट्स की एंटरप्राइज वैल्यू 2,000 करोड़ रुपये लगाई गई है.

सौदे के बारे में रिलायंस इन्फ्रा के सीईओ ललित जालान ने कहा, ‘हमने तीन ऐसेट्स बेच दी हैं और मुंबई के ट्रांसमिशन प्रॉजेक्ट्स अपने पास रखे हैं. नए ओनरशिप मॉडल के तहत हम नए प्रॉजेक्ट्स के लिए बोली नहीं लगाएंगे. कंपनी इंजिनियरिंग और कंस्ट्रक्शन सेगमेंट पर ध्यान देगी.’ उन्होंने कहा, ‘अब हम कंस्ट्रक्शन, पावर, डिफेंस और ओएंडएम बिजनस पर ध्यान देंगे.’

रिलायंस इन्फ्रास्ट्रक्चर कर्ज चुकाने के लिए नॉन-कोर ऐसेट्स बेच रही है. वह रोड और मुंबई पावर बिजनस से भी फंड जुटाने की कोशिश में जुटी है. हाल ही में उसने अपनी सीमेंट सब्सिडियरी बिड़ला कॉर्प को 4,800 करोड़ में बेचने का सौदा पूरा किया था.

अडानी ग्रुप के चेयरमैन गौतम अडानी ने कहा, ‘इस डील से अडानी ट्रांसमिशन का स्केल बढ़ेगा. यह कंपनी की ऑर्गेनिक और इन-ऑर्गेनिक जरियों से शेयरहोल्डर्स की वैल्यू बढ़ाने के इरादे से भी मेल खाती है.’

अडानी ट्रांसमिशन देश में प्राइवेट सेक्टर की सबसे बड़ी पावर ट्रांसमिशन प्रॉजेक्ट डिवेलपर है. सौदा पूरा होने के बाद उसके पास 10,000 सर्किट किलोमीटर के पावर ट्रांसमिशन प्रॉजेक्ट्स हो जाएंगे. इस डील में तीन ऑपरेशनल प्रॉजेक्ट्स, वेस्टर्न रीजन सिस्टम स्ट्रेंथनिंग स्कीम के तहत आने वाले दो प्रॉजेक्ट्स और एक पावर ग्रिड कॉर्पोरेशन के साथ जॉइंट वेंचर शामिल है. दोनों कंपनियों ने कहा कि रेग्युलेटरी अप्रूवल के बाद ही सौदा पूरा होगा.

सौदे की खबर आने के बाद रिलायंस इन्फ्रा का शेयर 0.2 पर्सेंट चढ़कर 591.05 रुपये पर बंद हुआ. वहीं, अडानी ट्रांसमिशन 7.4 पर्सेंट की बढ़त के साथ 43.05 रुपये पर रहा. अडानी ग्रुप पावर ट्रांसमिशन बिजनस को तेजी से बढ़ाने की कोशिश कर रहा है.

इससे पहले कंपनी ने जीएमआर एनर्जी से मारू ट्रांसमिशन सर्विस कंपनी में 74 पर्सेंट हिस्सेदारी और अरावली ट्रांसमिशन सर्विस कंपनी से 49 पर्सेंट हिस्सेदारी खरीदने का सौदा किया था. इसमें उसने आगे चलकर 100 पर्सेंट स्टेक लेने का भी ऑप्शन रखा है.

ब्लॉक वेबसाइट को ऐसे करें अनब्‍लॉक

अगर आपके वर्कप्‍लेस पर कोई ऐसी वेबसाइट ब्‍लॉक कर दी जाती है जिसे आप सबसे ज्‍यादा इस्‍तेमाल करते हों या उसकी जरूरत आपको बहुत पड़ती है तो उलझन होने लगती है कि क्‍या किया जाए.

अगर एडमिनिस्ट्रिेशन को बताया जाये तो वो उसे कभी अनब्‍लॉक नहीं करेंगे और आप कहीं और उसे इस्‍तेमाल कर नहीं सकते हैं. हम आपको बता रहे हैं कि अपने वर्कप्‍लेस पर किसी ब्‍लॉक वेबसाइट को कैसे अनब्‍लॉक करें.

इंटरनेट ऑप्‍शन को बदल दें

अगर आपको किसी वेबसाइट को अनब्‍लॉक करना है तो सबसे पहले इंटरनेट ऑप्‍शन को बदल दें. अगर आपके पैनल पर "Due to Restrictions On This Account," मैसेज लिखकर नहीं आता है तो आप आसानी से वेबसाइट को अनब्‍लॉक कर सकते हैं. इसके लिए, Control Panel > Security > Restricted Sites पर जाएं और जिस साइट को एक्टिव करना चाहते हैं तो एक्टिव कर दें. आपका काम हो जाएगा.

HTTP से HTTPS

जिस वेबसाइट को चलाना चाहते हैं या अनब्‍लॉक करना चाहते हैं उसके यूआरएल को HTTP से HTTPS कर दें और रिफ्रेश कराकर चलाएं. आपकी वेबसाइट चल जाएगी.

पोर्टेबल प्रॉक्‍सी सर्वर का इस्‍तेमाल

किसी वेबसाइट को अनब्‍लॉक करने के लिए आप पोर्टबल प्रॉक्‍सी सर्वर कर इस्‍तेमाल भी कर सकते हैं.

गूगल ट्रांसलेट का इस्‍तेमाल

आप जिस यूआरएल को खोलना चाहते हैं उसे गूगल ट्रांसलेट पर डालें और फिर आपके सामने किसी और तरीके से वो लिंक आ जाएगा. आप उससे ट्राई करके खोल सकते हैं. इस तरीके से वेबसाइट को अनब्‍लॉक नहीं किया जा सकता है लेकिन आप यूज कर सकते हैं.

RBI का दिवाली गिफ्ट, सस्ते होंगे दुकान और मकान

मकान, वाहन और दूसरे कार्यों के लिये कर्ज लेने वालों को रिजर्व बैंक ने दिवाली का तोहफा दिया है. रिजर्व बैंक के नये गवर्नर उर्जित पटेल के नेतृत्व में हुई पहली मौद्रिक समीक्षा में कर्ज सस्ता करने की दिशा में पहल की गई.

केन्द्रीय बैंक ने मुख्य नीतिगत दर में 0.25 प्रतिशत कटौती की है. इस कटौती से रेपो दर पिछले छह साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गई. गवर्नर उर्जित पटेल के नेतृत्व में यह पहली द्विमासिक मौद्रिक समीक्षा है जिसमें स्वतंत्र भारत के इतिहास में पहली बार गठित छह सदस्यीय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) ने ब्याज दरों के बारे में विचार विमर्श कर निर्णय लिया है.

समिति में तीन सदस्य सरकार की तरफ से नामित किये गये हैं जबकि बाकी तीन सदस्य रिजर्व बैंक से हैं. एमपीसी की बैठक के बाद रिजर्व बैंक ने रेपो दर को 0.25 प्रतिशत घटाकर 6.25 प्रतिशत कर दिया गया. रेपो दर में ताजा कटौती से बैंकों को कर्ज सस्ता करने में मदद मिलेगी और मकान, वाहन तथा कंपनियों के लिये कर्ज सस्ता होगा.

नीतिगत दर में कटौती से उत्साहित वित्त मंत्रालय ने कहा कि इससे सकल घरेलू उत्पाद में आठ प्रतिशत वृद्धि हासिल करने में मदद मिलेगी. मंत्रालय ने उम्मीद जताई कि बैंक इस कटौती का लाभ प्रभावी ढंग से ग्राहकों तक पहुंचायेंगे.

बैंकों ने भी मौद्रिक नीति के कदमों का लाभ आगे पहुंचाने का वादा किया. बैंक यदि ब्याज दरों में कटौती करते हैं तो उसका लाभ उसके मौजूदा और संभावित कर्ज लेनदारों को उपलब्ध होगा.

चालू वित्त वर्ष में अप्रैल के बाद रेपो दर में यह पहली कटौती है. रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन के जाने के बाद दरों में नरमी की काफी उम्मीद की जा रही थी, उसी उम्मीद के बीच रेपो दर में यह कटौती हुई है.

रघुराम राजन पर अक्सर दरों को उंचा रखकर आर्थिक वृद्धि का गला घोंटने के आरोप लगते रहे हैं. यहां तक कि सत्ताधारी भाजपा के भी कुछ लोग उनपर ऐसा आरोप लगाते रहे हैं.

फेसबुक जल्द ला सकता है ये फीचर्स

मार्क जुकरबर्ग का सपना है कि फेसबुक को दुनिया के हर कोने में सभी लोगों के बीच अच्‍छी और बेहतरीन नेटवर्क सुविधा के साथ पहुंचाया जाए ताकि संचार क्रांति सफल हो सके.

इसके लिए मार्क के नेतृत्‍व में फेसबुक ने अब तक कई सारे प्रयास किए हैं और उनमें सफल भी रहा. जिनमें से फेसबुक लाइट एक उत्‍कृष्‍ट उदाहरण है जो कि कम से कम स्‍पीड में भी चलता है.

अगर अफवाहों पर गौर करें तो जल्‍द ही फेसबुक में नए फीचर्स आने वाले हैं जो ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों के बीच अपनी पहुंच बनाने में कामयाब रहेगा. आइए जानते हैं इन फीचर्स के बारे में.

मैसेंजर लाइट

जिन लोगों के फोन में 2जी नेटवर्क है और उनके पास हाई स्‍मार्टफोन नहीं हैं उनके लिए मैसेंजर लाइट आ रहा है जो कम से कम नेटवर्क में भी बात करवाने में सफल रहेगा. यूजर्स इसे मैसेंजर की तरह ही इस्‍तेमाल कर सकते हैं कोई फर्क नहीं होगा.

''मैसेंजर डे'' में फेसबुक मिमिक्‍स स्‍पैनचैट स्‍टोरी फीचर्स

 यह फेसबुक के लिए नया नहीं है कि वो स्‍नैपचैट के फीचर्स को कॉपी करें. लेकिन फेसबुक इस बार मैसेंजर डे फीचर्स को लांच करेगा, जो स्‍नैपचैट स्‍टोरी फीचर की प्रतिकृति है. इस एप का इस्‍तेमाल करते हुए, यूजर्स अपनी फोटो और वीडियो को भी शेयर कर सकते हैं. लेकिन इसका कैच प्‍वाइंट ये रहेगा कि आप इसमें पब्लिश करने के 24 घंटे बाद ही उसे हटाया जा सकेगा.

पोल फीचर

फेसबुक मैसेंजर में पोल फीचर आएगा. यह फीचर, आईओएस और एंड्रायड दोनों में ही उपलब्‍ध होगा. इसमें पोल आईकॉन दिखेगा जिसमें पोल को डाला जा सकता है और उस ग्रुप में एड लोग उस पर वोट कर सकते हैं. बूस्‍ट कर्न्‍वसेशन ट्वीटर में यह फीचर सबसे पहले आया था, उसी की तरह अब फेसबुक भी बातचीत को ज्‍यादा इंटरेक्टिव बनाने के लिए बूस्‍ट कर्न्‍वसेशन का फीचर लाने वाला है. इससे यूजर्स का इंगेजमेंट, उनके दोस्‍तों के अपडेट पर

चैट एसिस्‍ट

फीचर इस फंक्‍शन के माध्‍यम से यूजर्स मैसेंजर के माध्‍यम से किसी भी समय पेमेंट का भुगतान कर सकता है. इस फीचर को इस्‍तेमाल करके यूजर्स, डेबिट या क्रेटिड कार्ड या नेटबैकिंग के माध्‍यम से आसानी से भुगतान कर सकते हैं. साथ ही यूजर्स को किसी अन्‍य थर्ड पार्टी एप को जोड़ने की जरूरत नहीं रह जाती है. देखना ये हैं कि ये फीचर आता भी है या नहीं.

बैड लोन की रिकवरी पर केंद्र का रुख नरम

सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से कहा है कि वे टॉप बॉरोअर्स की पहचान करें और अगर उन्हें कर्ज चुकाने में दिक्कत हो रही हो तो इसमें उनसे बातचीत कर उनकी मदद का रास्ता निकालें. सरकार का यह कदम फंसे हुए कर्ज के मामले में उसके रुख में नरमी का संकेत दे रहा है.

अधिकारियों ने कहा कि यह माना जा रहा है कि नॉन-परफॉर्मिंग ऐसेट्स के मामले में सख्ती से निवेश प्रभावित हो रहा है. उन्होंने कहा कि नए कदम का मकसद क्रेडिट ग्रोथ और इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा देना है. फाइनैंस मिनिस्ट्री के एक सीनियर अधिकारी ने ईटी को बताया कि जिन प्रमोटरों के प्रॉजेक्ट चलने लायक होंगे, उन्हें उनके मौजूदा और नए, दोनों तरह के प्रॉजेक्ट्स के मामले में मदद दी जाएगी. अधिकारी ने कहा, 'पहले चरण में बैंक 50-100 टॉप बॉरोअर्स की पहचान करेंगे और देखेंगे उन्हें कितना कर्ज दिया गया है और अदायगी का मामला किस हालत में है.'

अधिकारी ने कहा कि वाजिब मामलों में बैंक ऐसे बॉरोअर्स की कैश क्रेडिट लिमिट बढ़ाने जैसे उपायों से मदद करेंगे. उन्होंने कहा, 'इस संबंध में बैंकिंग रेग्युलेटर आरबीआई की भी सहमति ली गई है.' अधिकारी ने कहा कि सरकारी बैंकों के तिमाही प्रदर्शन की समीक्षा पिछले महीने की गई थी और उसी दौरान इस मुद्दे पर चर्चा हुई थी.

आरबीआई गवर्नर ऊर्जित पटेल ने भी अपने पहले मॉनिटरी पॉलिसी रिव्यू में मंगलवार को संकेत दिया था कि बैड लोन से निपटने में नरमी दिखाई जाएगी. पटेल ने कहा था, 'हमें एनपीए के मसले से कड़ाई से निपटना होगा, लेकिन इसके साथ व्यावहारिक रुख भी अपनाना होगा ताकि इकॉनमी में क्रेडिट की कमी का अहसास न हो.' उन्होंने कहा था कि आरबीआई इस स्थिति से निपटने के लिए कई स्तरों पर कदम उठाएगा. उन्होंने कहा था कि आरबीआई बैंकों और सरकार के साथ मिलकर काम करेगा. एक अन्य सरकारी अधिकारी ने कहा कि इस वक्त क्रेडिट ग्रोथ में कमजोरी की सबसे बड़ी वजह इन्वेस्टमेंट में सुस्ती को माना जा रहा है, ऐसे में इस तरह के कदमों से इंडिया इंक का हौसला बढ़ेगा.

अधिकारी ने कहा, 'बैड लोन से निपटने पर बढ़े फोकस के कारण कुछ बैंक कर्ज देने में हिचकने लगे थे. सरकार ने बैंकों को भरोसा दिया है कि लोन देने के निर्णय के बारे में बाद में उन्हें निशाना नहीं बनाया जाएगा और बैंकों के बोर्ड की मंजूरी वाले प्रस्तावों की बेवजह जांच नहीं की जाएगी.' आरबीआई ने अपनी अक्टूबर मॉनिटरी पॉलिसी रिपोर्ट में कहा कि बड़े और पुराने प्रॉजेक्ट्स के मामले में फाइनैंशल दिक्कतें काफी ज्यादा हैं और ऐसी स्थिति खासतौर से आयरन, स्टील, कंस्ट्रक्शन, टेक्सटाइल्स और पावर सेक्टरों में है, जिन्हें बैंक से कर्ज मिलने में दिक्कत हो रही है. बैंकों के बोर्ड अपने टॉप बॉरोअर्स के नए प्रस्तावों पर भी चर्चा करेंगे और अगर जानबूझकर डिफॉल्ट करने या पैसा इधर-उधर करने का मामला न हो तो बैंक इन नए प्रॉजेक्ट्स को सपॉर्ट देने पर गौर करेंगे.

आरबीआई का नेतृत्व बदलने पर रुख में बदलाव अच्छी बात नहीं है. कंपनियों की दिक्कतें जल्द सुलझाने का लीगल फ्रेमवर्क पहले से है. यह बात सही है कि बैंकरप्सी कोड में यूएस चैप्टर 11 जैसे प्रावधान नहीं हैं, जिनके तहत कंपनी को ऐसेट्स होल्ड करने का ऑटोमैटिक स्टे मिल जाता है, लेकिन जोर कंपनियों को रिकवर करने का एक निश्चित समय देने पर होना चाहिए और ऐसा न होने पर कंपनी को तत्काल बेचा जाना चाहिए. क्या बैंकरप्सी कोड में बदलाव होना चाहिए? इस पर बहस की जरूरत है.

LA LIGA में खेलने वाले पहले भारतीय बने ईशान

तीन साल पहले वो दिन था जब ईशान पंडिता ने अपने जीवन का सबसे बड़ा फैसला लिया था. उन्होंने अपनी माता-पिता को कहा था कि फिलहाल पढ़ाई से ब्रेक लेना चाहते हैं ताकि वो यूरोप के फुटबॉलर बनने के अपने सपने को पूरा कर सकें.

और आज 18 साल के ईशान पंडिता ने इतिहास रच दिया है. ईशान ला लीगा फुटबॉल क्लब के साथ करार करने वाले पहले भारतीय बन गए हैं.

जब ईशान ने पढ़ाई छोड़ अपने सपने को पूरा करने का फैसला लिया तो कई लोगों ने इस फैसले पर आपत्ति जताई और मजाक भी उड़ाया. लेकिन वो ईशान का दृढ़ संकल्प था जो इस सब के बावजूद हिला नहीं. उनका फुटबॉल का पैशन आखिरकार रंग लाया और वो ला लीगा क्लब से जुड़ने वाले पहले भारतीय बन गए.

बंगलुरु के इस युवा प्रतिभा ने स्पैनिश क्लब के साथ एक साल का करार किया है. हालांकि, ईशान को मुख्य टीम के लिए साइन किया गया है, लेकिन वह अपनी शुरुआत अंडर-19 टीम के साथ करेंगे.

बंगलुरु के ईशान को क्लब के उपाध्यक्ष और मालिक फिलिप मोरिनो ने 50 नंबर की जर्सी भेंट करके अपनी लीग में शामिल किया है.

ईशान बार्सिलोना और रियाल मैड्रिड के खिलाफ भी खेलते हुए नजर आएंगे. लेगानास क्लब ला लीगा में तीन जीत और तीन हार के साथ 11वें स्थान पर चल रही है. लेगानास मैड्रिड के बाहरी इलाके में स्थित है.

लीग से जुड़ने के बाद ईशान ने कहा कि स्पेन में तीन साल का यह समय बहुत कठिन था, लेकिन अब उसका फल मिला है. लीग से जुड़ने वाले पहले भारतीय होने पर मैं बहुत सम्मानित महसूस कर रहा हूं.

अब बारिश में नहीं भीगेगा क्रिकेट मैदान!

क्रिकेट का कोई मैच अपने रोमांच के चरम पर हो और बारिश आ जाए, तो सारा मजा किरकिरा हो जाता है. आप अगर अपने दिमाग पर जोर दें, तो आपको कितने ही ऐसे मैच याद आ जाएंगे, जिन्हें बारिश ने धो दिया.

ज्यादा दूर ही क्यों जाएं वर्तमान में न्यूजीलैंड के साथ खेली जा रही टेस्ट सीरीज के पहले दो मैचों में ही बारिश बाधा बनी थी. कुछ देर की बारिश ने मैदान को इतना गीला कर दिया कि मैदान से पानी हटाने के लिए सुपर सोपर्स का इस्तेमाल करना पड़ा.

ऑस्ट्रेलिया में तो ग्राउंड सुखाने के लिए हेलीकॉप्टर तक की मदद ली जाती है. लेकिन बारिश के बाद अब मैदान को सुखाने की जरुरत नहीं पड़ेगी. हैदराबाद में इंजिनियरिंग के एक छात्र यामालैया ने एक ऐसा कवर डिजाइन करने में जुटे हैं, जो क्रिकेट मैदान को तेज बारिश में भी भीगने नहीं देगा.

इस कवर की बदौलत अब मैदान पर सुपर सोपर्स या हेलीकॉप्टर आदि की जरुरत नहीं पडे़गी. यामालैया ने अपने इस खास डिजाइन का पेटेंट हासिल करने के लिए आवेदन दर्ज किया है.

यामालैया के मुताबिक उनका यह कवर किसी भी आकार के ग्राउंड को कवर करने में सक्षम होगा. यह एक ही कवर पूरे ग्राउंड को ढक लेगा. ग्राउंड्स को बारिश से बचाने के लिए अभी कई कवर्स इस्तेमाल में लाए जाते हैं, जिन्हें एक के ऊपर एक रख कर मैदान पर बिछाया जाता है. इसके बावजूद यह कवर पूरे ग्राउंड को गीला होने से बचा नहीं पाते और बारिश रुकने के बाद मैदान को सुखाने के लिए सुपर सोपर्स या हेलीकॉप्टर आदि का सहारा लिया जाता है.

कवर के ऊपर कवर होने से पानी का रिसाव होता है, जिस कारण मैदान भीग जाते हैं. इसके बावजूद मैदान पूरी तरह से नहीं सूख पाते और गीले मैदान की वजह से गेम की कंडीशन प्रभावित होती हैं. फील्डर्स तेज दौड़ नहीं पाते क्योंकि उन्हें चोट लगने का खतरा रहता है और गीले मैदान पर गेंद जाने से वह भारी हो जाती है, जिससे बॉल का स्विंग होना भी बंद हो जाता है. इसके अलावा आउटफील्ड भी स्लो हो जाता है.

यामालैया के अनुसार उनका यह विशाल कवर इस मामले में बेजोड़ है. यामालैया का यह एक ही कवर किसी भी आकार के पूरे मैदान को ढक लेगा और मैदान पर पड़ने वाले पानी को बाउंड्री के बाहर लगे सीवेज सिस्टम में गिराएगा.

मैदान से पानी निकालने के लिए सभी मैदानों में सीवेज सिस्टम की सुविधा रहती है. यह कवर इलेक्ट्रिक मोटरों के जरिए चलेगा, जो एक क्षैतिज रॉड पर बंधा होगा. बारिश के दौरान यह जल्दी ही खुल जाएगा और पूरे मैदान को ढककर उसे भीगने से बचा लेगा.

इस कवर की मदद से बारिश रुकने के बाद उसे सुखाने में जाया होने वाला वक्त भी बचेगा. अगर उनकी यह खोज उनके दावे पर खरी उतरी तो यह क्रिकेट को एक नया आयाम देगी.

साइंस में ग्रेजुएशन कर रहे यामालैया ने अपने इस अनूठे रिसर्च के लिए यामालैया ने अपने कॉलेज से मिल रही टेक्नीकल सपोर्ट के लिए धन्यवाद दिया. साइंस में ग्रेजुएशन कर रहे यामालैया इंग्लिश लिट्रेचर में मास्टर डिग्री हैं.

खाट की राजनीति

राहुल गांधी ने हरियाणा की खाप सभाओं की जगह उत्तर प्रदेश के चुनावों के लिए खाट सभाएं शुरू की हैं. अपनी 2500 किलोमीटर की बस व पैदल यात्रा में राहुल गांधी बीसियों खाट सभाओं में बोलेंगे. पहली खाट सभा के बाद सुनने वाले उठने के बाद खाटें ही ले भागे, तो खूब मजाक उड़ाया गया. सोशल मीडिया और टीवी मीडिया के लोग, जो गद्देदार पलंगों पर सोते हैं, नहीं जानते हैं कि देश की आम जनता के लिए खाट आज भी कितना कीमती है और किस तरह एकएक खाट पर 2-2, 3-3 लोग सोते हैं.

देश के अमीरों के साथ यही दिक्कत है कि वे गरीबी के बारे में जानना ही नहीं चाहते. वे गरीबों से काम लेना चाहते हैं, उन से कर्ज पर ब्याज वसूलते हैं, सस्ते में अनाज खरीदते हैं, उन की जमीनों पर महल, मकान, मौल, मोटर कारखाने बनाना चाहते हैं, पर वे खाट ले जाएं, इस पर उन्हें हंसी आती है. वे राहुल गांधी को ‘खाट बाबा’ कहने लगें, तो आश्चर्य नहीं.

खाट आज भी गरीब घरों में अकेला फर्नीचर होता है. यह अगर चुनावों की खातिर मुफ्त में मिल रहा हो, तो गरीबों पर दया आनी चाहिए. शर्म आनी चाहिए कि पढ़ेलिखों ने इस देश को इस लायक क्यों नहीं बनाया कि शहर का स्लम हो या गांव का झोंपड़ा, खाट की कमी नहीं रहेगी?

देशभर में गरीबों का यही हाल है. तमिलनाडु में जयललिता साडि़यां और टीवी बांट कर जीतती हैं. कहीं मोबाइल दिए जाते हैं, कही लैपटौप देने का वादा होता है. बिहार में साइकिलें दी गईं.

देश के लिए सरकार चुनने के लिए हमारा वोट इतना सस्ता हो चुका है कि कोई भी मोटा पैसा दे कर जीत सकता है. नरेंद्र मोदी ने काले पैसे से 15 लाख हर खाते में जमा करा कर खूब वादा कर के चुनाव जीत लिया. राहुल गांधी ने तो असल खाट दे दी.

राहुल गांधी इन चुनावों में काफी सख्त पैतरे दिखा रहे हैं. 1947 से राज करने वाला परिवार आसानी से अंधेरे की गुमनामी में नहीं खोने वाला, यह अविवाहित बिना बेटेबेटियों वाले राहुल गांधी दिखा रहे हैं. उन का यह काम दिखा रहा है कि अपनी बीमार मां की चिंता एक तरफ करते हुए वे उत्तर प्रदेश के बहुत जरूरी चुनावों के लिए हड्डीपसली एक कर रहे हैं, जबकि चुनावों के बारे में पहले से अंदाजा लगाने वाले उन्हें 20-25 सीटें मिल जाने से ज्यादा का भाव नहीं दे रहे.

राजगद्दी पर बैठने वालों को इस तरह से फिर से शुरुआत करने की आदत रहनी चाहिए. ऐसे कितने ही परिवार हैं, जिन के बच्चों ने राजनीति को दलदल मान कर छोड़ दिया और दादापिता की कमाई पर मौज कर रहे हैं. सोनिया गांधी का 1998 में और अब 2016 में राहुल गांधी का उत्तर प्रदेश के मैदानों में लड़ाई में उतरना कम से कम हिम्मत का काम तो है. कांग्रेस राज किसी और राज से बेहतर होगा, इस की कोई उम्मीद नहीं है, पर लोकतंत्र में वोट की कीमत में खाट की कीमत भी जुड़ी है, यह पक्का है.

सफलता के लिए टाइम मैनेजमैंट जरूरी: सुकृति गुप्ता

‘एक दिन में कोई टौपर नहीं बनता. इस के पीछे छिपी होती है मेहनत, आत्मविश्वास और अपनों का सपोर्ट,‘ ऐसा कहना है दिल्ली की सुकृति गुप्ता का, जिस ने दिल्ली में ही नहीं भारत में 12वीं में टौप किया है. सीबीएसई 2016 की टौपर सुकृति को 500 में से 497 अंक मिले. सफलता की पूरी कहानी सिर्फ किताबी कीड़े से होते हुए नहीं गुजरी. इस में शामिल है सालभर की मेहनत, टाइम मैनेजमैंट, अपनों का सपोर्ट और थोड़ी मौजमस्ती. आइए, जानते हैं उस की सफलता का राज उन्हीं की जबानी.

किसी भी परीक्षा में टौप करना आसान नहीं होता. आप ने यह कर दिखाया है. क्या आप ने ऐग्जाम में टौप करने के लिए कोई खास तैयारी की थी?

मैं ने कोई प्लानिंग नहीं की थी, लेकिन अपना सर्वश्रेष्ठ देने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी और इसी के बल पर मैं ने 12वीं में टौप किया.

जब यह खबर मिली कि आप ने टौप किया है, तो आप को कैसा महसूस हुआ?

मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, क्योंकि मुझे टौप करने की बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी. सच कहूं तो मैं आप से शब्दों में बयां नहीं कर सकती कि मुझे कितनी खुशी महसूस हुई. स्कूल में स्वस्थ प्रतियोगी माहौल मिला, जिस का खूब फायदा हुआ.

अब आगे का गोल क्या है यानी भविष्य की प्लानिंग क्या है?

मैं ने पहले ही तय कर रखा था कि 12वीं के बाद मैं इंजीनियर बनूंगी. अपनी सोच पर कायम हूं. अच्छे संस्थान में ऐडमिशन पाने के लिए ऐंट्रैंस ऐग्जाम की तैयारी कर रही हूं.

हर सफलता के पीछे किसी न किसी का हाथ होता है. आप को पेरैंट्स का कितना सपोर्ट मिला?

मेरे पिता राकेश गुप्ता और मां रेणुका जैन गुप्ता दोनों ने मुझे बहुत सपोर्ट किया. हमारे घर में हमेशा हैल्दी ऐन्वायरमैंट रहा है. जब कभी भी मैं टैंशन में होती तो मुझे उस से मांपापा ही बाहर निकालते. सब से बड़ी बात कि उन्होंने मुझ पर अच्छे नंबर लाने के लिए कभी दबाव नहीं डाला. यही वजह है कि मैं ने पौजिटिव तरीके से सारे पेपर्स दिए.

अपनी सफलता का श्रेय किसे देना चाहती हैं?

मेरी सफलता के पीछे सब से बड़ा हाथ मेरे टीचर्स का है, क्योंकि मुझे स्कूल व कोचिंग दोनों ही जगह टीचर्स का पूरा सहयोग मिला.

हर साल बोर्ड की परीक्षा में लाखों छात्र बैठते हैं. उन से आप क्या कहेंगी?

मैं छात्रों से यही कहूंगी कि दिमाग ठंडा रखें, अपनी तरफ से मेहनत में कसर न छोड़ें. रिजल्ट अपनेआप अच्छा आएगा.

क्या पढ़ाई के दौरान आप को कभी तनाव महसूस हुआ?

नहीं, मैं ने कभी भी तनाव महसूस नहीं किया, क्योंकि मैं कभी 100 अंक लाने के बारे में नहीं सोचती थी. मैं केवल अपनी तरफ से सब से अच्छा करने के बारे में सोचती थी.

आप ने रोजाना कितनी देर पढ़ाई की? आप लड़कियों को पढ़ाई के लिए प्रेरित करने के लिए क्या संदेश देना चाहेंगी?

कड़ी मेहनत करें और खुद को किसी से कम न समझें.

पढ़ाई के साथ आप की दूसरी हौबी क्या है?

मुझे घूमना पसंद है. मैं पूरी दुनिया घूमना चाहती हूं.

बचपन तो गया…

कभी किताबों में, कभी ऐक्स्ट्रा क्लासेज में, तो कभी हुनर सिखाने वाली गलियों में, बस, एक ही धुन है आगे निकल जाने की. सहनशीलता और धैर्य का पाठ इन्होंने सीखा ही नहीं, गोया इस की प्रतियोगिता अभी शुरू ही नहीं हुई है. धैर्य, सहनशीलता, सरलता, समझदारी इन में से कोई भी संस्कार किसी टीवी चैनल पर नहीं मिलता. ये संस्कार तो घर पर ही बच्चे सीखते थे. संयुक्त परिवार में जानेअनजाने ही बहुत सी बातें बच्चे सीख जाते थे.

दादीनानी की कहानियां जिंदगी के सबक सिखा देती थीं, लेकिन आज बच्चों के पास इतने रिश्ते ही नहीं रह गए. बच्चे इतने व्यस्त हैं कि उन के पास समय ही नहीं है. पेरैंट्स भी नहीं चाहते कि वे फालतू घर में बैठे रहें.

छुट्टियां हैं, तो कुछ नया सीखें

रिएलिटी शो में भाग लेना  आज प्रतिष्ठासूचक बन गया है. अभिभावकों के रुझान को देखते हुए आज ऐसे प्रोग्राम्स की भरमार है. टीवी चैनलों पर नित नए डांस व रिएलिटी शो शुरू हो रहे हैं.

ऐसे ही एक रिएलिटी डांस शो ने पिछले साल मुंबई की 11 साल की नेहा सावंत की जिंदगी छीन ली थी. नेहा ने कई रिएलिटी शोज में भाग लिया. नेहा को लग रहा था कि डांस उस की पढ़ाई पर असर डाल रहा है. उस ने डांस क्लास से बे्रक लेने के बारे में पेरैंट्स से बात की. तनाव इस कदर बढ़ चुका था कि पेरैंट्स के औफिस जाने के बाद उस ने परदे की रौड से लटक कर जान दे दी.

आगे निकलना है, सब से आगे

पिछले कुछ महीनों में किशोरों के आत्महत्या के मामले आश्चर्यजनक रूप से बढ़े हैं. एकैडमिक और पेरैंटल प्रैशर इन मामलों में सब से अहम और पहली वजह रहा है. बच्चे जराजरा सी बात पर परेशान हो कर अपना संतुलन खो बैठते हैं.

जयपुर में कुछ महीने पहले ही बनीपार्क में रहने वाली 15 साल की गरिमा ने महज इसलिए फंदा लगा कर खुदकुशी कर ली कि कंप्यूटर को ले कर उस की छोटे भाई से अनबन हो गई थी.

जयपुर के ही सोडाला इलाके में एक छात्र ने पढ़ाई के तनाव से मुक्ति पाने के लिए जिंदगी से मुक्ति पाना ठीक समझा. कमोबेश यही हाल सभी शहरों के हैं. मुंबई की लिलि, ठाणे की रूपल, अहमदाबाद की रश्मि शर्मा, विजयवाड़ा की स्नेहा, नासिक की रक्षा दिनकर, चंडीगढ़ की साक्षी.

सोचा समझा नहीं

इन बच्चों को संशय था कि वे पेरैंट्स और टीचर्स की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर पाएंगे. मनोचिकित्सकों, समाजशास्त्रियों और सलाहकारों का मत है कि इसी दबाव को बच्चे अन्यथा ले कर परेशान होते रहते हैं और आत्महत्या जैसा कदम उठा लेते हैं.

कहीं हम इन बच्चों को आत्महत्या की तरफ तो नहीं धकेल रहे? मनोचिकित्सकों का कहना है, अकसर पढ़ाई के लिए मांबाप की डांट, गुस्सा और बहिष्कार का डर बच्चे के कोमल मन पर हावी हो जाता है, यही वजह है कि वे खुद को खत्म करने की ठान लेते हैं.

छुट्टियों में भी राहत नहीं

मीतू स्कूल से एक फौर्म ले कर आई और मां से बोली, ‘‘वोकेशनल कोर्सेज शुरू होने को हैं, मम्मी, मुझे भी कुछ सीखने जाना है, मेरी सभी फ्रैंड्स कुछ न कुछ कर रही हैं, मैं पीछे रह गई तो?’’

मम्मी भी इसी उधेड़बुन में लगी हैं कि इन छुट्टियों में बिटिया को कौनकौन से कोर्स करवाने हैं. नया सैशन पहले ही शुरू हो गया. उस पर भी थोड़ा ध्यान देना है. इस बार स्कूल मैगजीन में बिटिया छाई रहे, इस के प्रयास जोरों पर हैं. डांस के साथ ड्रामा क्लासेज भी जौइन करवानी होंगी.

पर सच पूछा जाए तो यह मैंटल टौर्चर किस का है? आप का या बच्चों का? जब ये बच्चे बड़े होंगे तो इन का दिमाग कलपुरजों की तरह काम करने लगेगा. नानी के घर की धमाचौकड़ी और दादी की कहानियों से महरूम ये बच्चे न जाने कौन सी दिशा में बहते जा रहे हैं? ऐसे में छोटी सी असफलता उन्हें नाउम्मीदी के अंधेरे कुएं में धकेल देती है.

पूरे साल किताबें घोटघोट कर पीने के बाद छुट्टियों के दिनों की बेफिक्री भी उन्हें नहीं मिल पाती. 12 महीने अनवरत दौड़, छुट्टियों में और भी तेज भागो. ऐसे में लड़खड़ाने और गिरने की आशंका नहीं बढ़ जाएगी क्या?

बच्चों को मजबूत बनाएं

बच्चे 3 साल के हुए नहीं कि एक दबाव निरंतर उन के साथ चलने लगता है. कुछ है जो अंदर ही अंदर पनपता रहता है, किशोर उम्र तक आतेआते नतीजे विस्फोटक भी हो सकते हैं. मनोचिकित्सक कहते हैं, बड़ों के मुकाबले बच्चों में समायोजन की क्षमता काफी कम होती है. मुश्किल समय में जैसे, बोर्ड ऐग्जाम के दौरान बच्चों में अच्छा परफौर्म करने का दबाव रहता है.

किशोरावस्था और वयस्क होने के इस संक्रमणकाल में उन पर अच्छे परीक्षा परिणामों, रोजगार, रिश्तों में समायोजन, जिंदगी में काबिल बनने और सैटल होने जैसे कई तरह के दबाव होते हैं. पेरैंट्स के सपोर्ट की उन्हें इस समय सब से ज्यादा जरूरत होती है.

मातापिता का सब से बड़ा दायित्व है कि वे बच्चों को इन दबावों को झेलना सिखाएं और हिम्मत दें, ताकि वे जिंदगी को हंस कर जीने का उत्साह बनाए रखें.

डा. शैलजा बताती हैं, ‘‘मैं अपने परिचित के घर पर थी. टीवी पर बच्चे की आत्महत्या से जुड़ी खबर आते ही मेरी परिचित ने टीवी का स्विच औफ कर दिया. कारण बताया कि ऐसी खबरें मेरी बेटी के दिमाग पर उलटा असर डालेंगी. मैं दंग रह गई. बच्चों को इस तरह की खबरों से बचाने की कोशिश कहां तक ठीक है? आप तो टीवी बंद कर देंगे, लेकिन जब इस तरह की बातें वे दोस्तों से सुन कर आते हैं, उस का क्या?’’

अपनी निराशा से बच्चों को बचाएं

बाल मनोव्यवहार विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में बच्चों पर 3 साल की उम्र से ही दबाव बनने की शुरुआत हो जाती है. जब उन्हें पढ़ाई में अच्छे प्रदर्शन हेतु ट्यूशन के लिए भेजना शुरू कर दिया जाता है. फिर भी वे अगर दूसरे बच्चों से पीछे हैं, तो पेरैंट्स कुंठित होने लगते हैं. ऐसे में वे आखिर कितना दबाव सहन कर पाएंगे.

उन की भी सुनें

विशेषज्ञों का कहना है कि पेरैंट्स, टीचर्स और बच्चों के बीच लगातार संवाद बना रहना जरूरी है. इस के लिए 24 घंटे उन पर नजर नहीं रखनी चाहिए बल्कि उन की भावनाओं को समझना है. किशोरावस्था में वे कई तरह के बदलावों से गुजर रहे होते हैं और इस समय उन्हें पेरैंट्स की ज्यादा जरूरत होती है कि वे उन्हें समझें, प्यार और भावनात्मक सहारा दें.

पेरैंट्स कामकाजी हैं, तो यह जरूरत और ज्यादा बढ़ जाती है. ऐसे पेरैंट्स की बेटियों पर दबाव और ज्यादा होता है. लड़कियों को यह छूट नहीं होती कि वे किसी से मन की बात कह पाएं, उन पर सामाजिक जिम्मेदारियां भी ज्यादा होती हैं.

सलाह लेने से कतराएं नहीं

बदलती लाइफस्टाइल भी इन मामलों की अधिकता के लिए एक हद तक जिम्मेदार है. एकल परिवारों में बच्चों को दादादादी, चाचाचाची, भाईबहनों और ऐसे ही दूसरे रिश्तों की कमी होती है, जो पेरैंट्स की गैरमौजूदगी में उन का खयाल रखें. समय की कमी के कारण पेरैंट्स से भी बात नहीं हो पाती.

ऐसे में पेरैंट्स और टीचर्स को चाहिए कि वे इन स्थितियों में बच्चों को जूझना सिखाएं. ज्यादा परेशानी है, तो काउंसलिंग करवाई जा सकती है.

बच्चों पर पढ़ाई का अतिरिक्त दबाव बनाने के बजाय उन्हें खुला छोड़ दें, खिलने के लिए. उन्हें चहकने दें. आखिर आप अपने एक बच्चे को कितने रूपों में बांटना चाहते हैं, डांसर, ऐक्टर, पेंटर. इन सारे झूठे फ्रेमों से बाहर निकलें. इस भूलभुलैया में बच्चे खुद को भुला बैठेंगे. उन्हें भी वही बचपन जीने दें, जो कभी आप ने जीया है.                      

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