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जब पति को बांटना पड़े, तो पत्नी कैसे रहे खुश?

हाल ही में बिग बौस ओटीटी शुरू हुआ है जिस में अरमान मालिक नाम के यूटूबर अपनी दो पत्नियों के साथ घर के सदस्य बने हैं. इन तीनों के बीच गजब का बौन्ड देखने को मिला है. अरमान अपनी दोनों पत्नियों के साथ तालमेल मिलाते दिखे हैं. अपनी सामान्य जिंदगी में भी तीनों साथ रहते हैं और दोनों बीवियां बहनों की तरह एक ही घर में रहती हैं. अरमान ने जब कृतिका से 2018 में शादी की थी तो वह पहले से ही शादीशुदा थे. अरमान की पहली पत्नी पायल है.

इन तीनों के मिलने की कहानी काफी रोचक है. पायल ने अरमान से 2011 में लव मैरिज की थी. अरमान मलिक और पायल की जिंदगी अच्छी खास चल रही थी तभी कृतिका की एंट्री हुई और सब कुछ बदल गया था. कृतिका और पायल दोनों बेस्ट फ्रेंड थीं. ऐसे में कृतिका अरमान से पहली बार उनके ही घर पर मिली थीं. पायल ने अपनी बेस्ट फ्रेंड को बेटे के बर्थडे पर बुलाया था और इसी बीच फोटोज को शेयर करने को लेकर अरमान के साथ कृतिका का नंबर एक्सचेंज हुआ था. यहां से दोनों के बीच बातें होने लगीं. फिर एक बार hu पायल ने कृतिका को सहेली की हैसियत से 6 दिनों के लिए अपने घर रोक लिया था. उस के बाद कृतिका हमेशा के लिए उसी के घर में रुक गई. अरमान ने उस से शादी कर ली थी.

शादी के बाद जब अरमान ने पहली पत्नी पायल को इस शादी की बात बताई तो वो काफी शाक्ड हो गईं. वह पति के इस कदम से काफी नाराज थीं. उन्होंने उनकी दूसरी शादी को स्वीकार तो कर लिया था मगर अरमान के साथ दूरी बना ली थी. करीब एक साल उन के बीच कुछ भी ठीक नहीं रहा मगर फिर उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि वे एक दूसरे के बिना नहीं रह सकते. अब पायल और कृतिका दोनों ही अरमान के साथ रहती हैं और कमाल का बौन्ड शेयर करती हैं.

रिश्तों में जुड़ाव जरूरी

रिश्ता कोई भी हो जब वह बंधन लगने लगे तो दम घुटता है और जब उस में स्पार्क न रहे तो बोरियत होने लगती है. अरमान जैसे लोग अगर दो पार्टनर के साथ भी खुशहाल जिंदगी जी रहे हैं और रिश्तों में दोस्ताना जुड़ाव है तो फिर यह बात समस्या नहीं बन सकती कि घर में सौतन के साथ कैसे रहा जाए. पायल और कृतिका आज बहनों की तरह साथ रह रही हैं और अपने बच्चों के साथ व्यस्त हैं. ऐसे में दोनों पत्नियों में किसी को फर्क नहीं पड़ता किउन्हें अपने पति को आपस में बांटना पड़ रहा है.

पहले के समय में रिश्तों में उतना ज्यादा खुलापन नहीं था. घर में कई भाई होते थे और सब अपनीअपनी पत्नी के साथ बस रात में ही थोड़ा समय बिता पाते थे. वरना पूरा परिवार हमेशा साथ ही होता था. मगर आजकल हालात बदल रहे हैं. अब संयुक्त परिवार का जमाना नहीं रहा. ऐसे में घरों में लोग कम हैं. अक्सर देखा जाता है कि लड़के लड़कियां घर से दूर शहरों में अकेले अपने पार्टनर के साथ रहते हैं. ऐसे में उन के पास जो थोड़े बहुत रिश्ते होते हैं उसी में स्पार्क ढूंढते हैं. अगर पार्टनर के अलावा कोई पसंद आ जाए और वह पार्टनर का भी करीबी हो तो रिश्ते गहरे होते देर नहीं लगती. यही अरमान वाले केस में भी हुआ. कृतिका अरमान की पत्नी पायल की सहेली थी और दोनों में गहरी दोस्ती थी. इसी क्रम में कृतिका और अरमान आपस में मिले और करीब आए. जब दोनों ने एकदूसरे के लिए फील करना शुरू किया तो उन्होंने शादी कर ली. पायल उन दोनों के बढ़ते रिश्ते से अनजान नहीं थी मगर फिर भी शादी की खबर से वह पहले तो शौक्ड रह गई. बाद में घरवालों की सलाह पर वह अरमान से दूर भी हो गई. मगर अरमान और उन का प्यार कम नहीं हुआ था. दोनों एकदूसरे के बिना अधूरा महसूस कर रहे थे सो पायल लौट आई.

इस तरह पायल ने जब कृतिका और अरमान के संबंधों को सहमति दे दी और उस की जिंदगी में वापस लौट आई तो तीनों की ही जिंदगी बदल गई. अब तीनों एक साथ खुशी से रह रहे हैं और सोशल मीडिया पर अपने ब्लौग्स डाल कर खूब पैसे भी कमा रहे हैं. तीनों के आपस में मिल जाने से उन को सफलता के नए मुकाम मिलने लगे हैं. फिलहाल अरमान मलिक देश के सबसे रईस यूट्यूबर्स में से भी एक हैं. यूट्यूब के दम पर सिर्फ ढाई सालों में ही अरमान और उनकी फैमिली ने बेहिसाब कमाई कर ली है. सोशल मीडिया पर उनके लाखों फौलोअर्स हैं. एक इंटरव्यू में अरमान ने बताया था कि कभी एक मैकेनिक के तौर पर काम करने करते थे लेकिन आज वह 10 फ्लैट्स के मालिक बन चुके हैं.

यहां पर अगर पायल जिद कर जाती और कृतिका से शादी नहीं होने देती या उन दोनों की शादी के बाद खुद मुंह बनाए रहती और लड़झगड़ कर तलाक ले कर अलग हो जाती तो मामला पेंचीदा हो जाता. तलाक मिलने में सालों लगते हैं और पैसा एवं समय लगाने के साथ परेशानियां भी बहुत उठानी पड़ती हैं. नया पार्टनर मिलना भी आसान नहीं होता. तब ये तीन इतने सफल भी नहीं हो पाते. बच्चों की जिंदगी भी प्रभावित होती. इसलिए ऐसे मामलों में थोड़ी समझदारी और धैर्य से काम लेना जरूरी हो जाता है.

अगर आपका पार्टनर किसी और के साथ इन्वाल्व हो जाता है और उसे घर भी ले आता है तो आप का परेशान होना जायज है. मगर आप जब समझ रहे हैं कि जो हो गया उसे बदला नहीं जा सकता तो रोने धोने, लड़ने झगड़ने या तलाक ले कर अलग होने से आप की समस्या हल नहीं होगी. फिर क्यों न जो हो चुका है उसी में खुश रहा जाए और उस के साथ निभाने की एक भरपूर कोशिश की जाए. क्या पता जिंदगी का ये नया मंजर आप को भी रास आने लगे.

अवधेश पासी दलित हैं, तो क्या इसलिए नहीं बन रहे डिप्टी स्पीकर?

मोदी भक्ति की आदत कुछ इस कदर मीडिया को पड़ गई है कि उसकी हर मुमकिन कोशिश यह जताने की रहती है कि इंडिया गठबंधन में सब कुछ ठीकठाक नहीं है . अब उसका नया पूर्वाग्रह और बचपना यह हल्ला मचाना है कि टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने लोकसभा के डिप्टी स्पीकर पद के लिए अयोध्या से सपा सांसद अवधेश पासी का नाम प्रस्तावित कर इंडिया ब्लाक को धर्म संकट में डाल दिया है और ममता बनर्जी की राह उससे अलग सी है .

उलट इसके हकीकत यह है कि अवधेश पासी का नाम इस पद के लिए आगे कर ममता बनर्जी ने गठबंधन की तो राह आसान की है लेकिन  एनडीए को कटघरे में खड़ा कर दिया है कि अगर वाकई वह वर्ण व्यवस्था से परे हो और विपक्ष का सहयोग चाहता हो तो इस लोकप्रिय और अनुभवी दलित सांसद को डिप्टी स्पीकर बनाए . यह प्रस्ताव ममता बनर्जी ने फोन पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को दिया है जिन्हें भाजपा ने स्पीकर पद मेनेज करने की जिम्मेदारी दी थी अब देखना दिलचस्प होगा कि राजनाथ सिंह क्या एक्शन लेते हैं ?

अव्वल तो 4 जून की दुर्गति के बाद भी भाजपा अपनी मनमानी से बाज नहीं आ रही है जिस पर यह कहावत लागू होती है कि रस्सी जल गई लेकिन बल नहीं गये . डिप्टी स्पीकर पद के लिए कहावत तो यह भी लागू होती है कि सूत न कपास जुलाहों में लट्ठमलट्ठा क्योंकि भाजपा चाहती ही नहीं कि इस अहम पद पर किसी को बैठाया जाए और अगर बैठाया भी जाए तो कम से कम वह अवधेश पासी न हों

अवधेश पासी क्यों न हों इसकी बड़ी वजह यह है कि अयोध्या जीत कर उन्होंने भाजपा की यादगार किरकिरी कर दी है . फैजाबाद लोकसभा सीट से उन्होंने भाजपा के ठाकुर लल्लू सिंह को शिकस्त देकर एक झटके में कई मिथक तोड़ते कई गलतफहमिया भी दूर कर दी हैं . हाल तो यह है कि उत्तरप्रदेश की 79 लोकसभा सीटें एक तरफ और एक यह एक तरफ की तर्ज पर अयोध्या कसक रही है . चुनाव प्रचार के दौरान यह नारा खूब चला था कि न मथुरा न काशी अबकी बारी अवधेश पासी. ठीक इसी तर्ज पर जब अवधेश लोकसभा में शपथ ले रहे थे तब भी जय अवधेश और जय संविधान के नारे जमकर लगे थे .

लोकसभा चुनाव नतीजे आए एक महीना पूरा होने को है लेकिन भाजपा यह नहीं स्वीकार पा रही कि उसका दलित और मुस्लिम विरोधी चाल चरित्र और चेहरा बेनकाब हो चुका है . इंडिया ब्लाक और उसमें भी खासतौर से राहुल गांधी ने लड़ाई मनु स्मृति बनाम संविधान बना दी थी आज भी यह लड़ाई जारी है ममता बनर्जी का अवधेश पासी का नाम आगे बढ़ाना उसी मुहिम का हिस्सा है . कांग्रेस अगर खुद का कोई उम्मीदवार आगे बढ़ाती तो बात टाय टांय फिस्स होकर रह जाती क्योंकि लोकसभा स्पीकर पद के लिए उसके उम्मीदवार के सुरेश को उम्मीद के मुताबिक तबज्जो नही मिली थी .

के सुरेश भी दलित समुदाय से हैं पर कांग्रेस का यह दलित कार्ड चल नहीं पाया था. क्योंकि जनता दल यू और टीडीपी ने पहले ही भाजपा को क्लीन चिट और फ्री हेंड दे दिए थे . जाहिर है यह सौदा 4 और 5 जून के दरमियां ही तय हो चुका था कि लोकसभा स्पीकर भाजपा के ओम बिरला ही होंगे . लेकिन डिप्टी स्पीकर को लेकर स्थिति साफ़ नहीं है कि वह भाजपा का होगा या उसके सहयोगी दलों में से किसी का होगा . वैसे अभी तक का घटनाक्रम देख तो लगता है कि यह पद किसी का ही नही हो यही मुनाफे का सौदा भाजपा के लिए होगा. पिछली लोकसभा में भी उसने यह पद खाली रखा था .

अगर दबाब बढ़ता है तो दिख यह भी रहा है कि भाजपा किसी दलित को ही आगे लाना फायदे का सौदा समझेगी . क्योंकि राहुल गांधी उसके मनुवाद पर लगातार हमलावर हैं . 1 जुलाई को संसद में उनका यह कहना बेहद पूर्व नियोजित था कि भाजपा के हिन्दू , हिन्दू ही नहीं हैं क्योंकि वे हिंसा और नफरत फैलाते हैं . उम्मीद के मुताबिक भाजपा ने हल्ला मचाया कि यह हिन्दू समाज का अपमान है और उन्हें इस बाबत माफ़ी मांगना चाहिए .

इस बयान का कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड्गे के उन बयानों से गहरा ताल्लुक है जिनमे वे कहते रहे हैं कि भाजपा हर कभी दलितों को अपमानित करती है और मैं 22 जनबरी के प्राण प्रतिष्टा समारोह में अयोध्या इसलिए नहीं गया था कि मुझे अपमानित होने की आशंका थी . निष्कर्ष यह कि भाजपा अगर अपना ब्राह्मणवाद नहीं छोड़ पा रही तो कांग्रेस भी अपना दलित प्रेम उजागर करने से चूकती नहीं .

कांग्रेस और इंडिया गठबंधन आखिर क्यों संविधान को सीने से लगाए शान से घूम रहे हैं , इस सवाल का जवाव बेहद साफ है कि भाजपा अभी गफलत में है कि वह संविधान और मनु स्मृति में से किसे चुने .दो नावों की सवारी अब पहले की तरह संभव नहीं दिख रही . शपथ बाले दिन नरेन्द्र मोदी संविधान को माथे से लगाते हैं तो दस दिन बाद ही फिर काशी जाकर गंगा मैया और भगवान का राग अलापने लगते हैं .

तस्वीर अब धुंधली नहीं रह गई है कि वे या कोई और नेता या तो संविधान के बताए रास्ते पर चलें जो भीमराव आम्बेडकर का दिया हुआ है या फिर ब्राह्मणवाद को फालो करते रहें जो तुलसियों और मनुओ ने दिया है . यानी नफरत और हिंसा को चुन लें या फिर बराबरी की बात करें जो भाजपा और नरेंद्र मोदी के बस की बात नहीं क्योंकि उनकी डोर आरएसएस की अंगुलियों में बंधी है .

ममता बनर्जी से अवधेश पासी का नाम प्रस्तावित करवाकर इंडिया गठबंधन ने 4 जून की तरह ही एडवांस में बाजी मार ली है फिर भले ही भाजपा डिप्टी स्पीकर के लिए चुनाव करवाए या न करवाए और करवाए तो फिर पासी जीते या न जीते इससे उसकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला . इस मांग का मकसद भाजपा का दलित विरोधी चेहरा एक बार और उजागर करना है. बिलाशक अवधेश पासी इस लोकसभा का एक अतिरिक्त आकर्षण हैं क्योंकि वे रामनगरी से रामभक्तों को शिकस्त देकर दिल्ली पहुंचे हैं.

अब अगर नीतिश कुमार और चंद्रबाबू नायडू वोटिंग होने की स्थिति में अवधेश पासी के खिलाफ जाते हैं तो जनता और खुद उनका वोटर उनकी गिनती दक्षिणापंथियों और तिलकधारियों में करने यह कहते  मजबूर होगा कि आपने तो सत्ता की खातिर अपने उसूल ताक में रख दिए . इससे तो बेहतर है कि जनता दल यू और टीडीपी अपना विलय ही भाजपा में कर लें और गंगा जी में डुबकी लगाकर शुद्ध हो जाएं .

ऐसा होना संभव है इसलिए एनडीए को अब हर छोटी बड़ी बात पर दलितों का ध्यान रखने मजबूर किया जा रहा है और जाहिर है इंडिया ब्लाक की तरफ से कभी यह बात टीएमसी कहेगी कभी कांग्रेस कहेगी और कभी सपा तो कभी डीएमके कहेगी तो कभी कोई और सहयोगी कहेगा . लेकिन एनडीए में ऐसा होना मुमकिन नही कि सभी छोटे बड़े दल पूजापाठ करने में लग जाएं .

यह शुरुआत है आगे आगे यह लड़ाई और दिलचस्प होगी क्योंकि यह वाकई में 2 विचारधाराओ की लड़ाई है इसी कड़ी में. राहुल गांधी का एक जुलाई वाला कथित हिन्दू विरोधी बयान दरसल में हिन्दू विरोधी नहीं है बल्कि हिन्दू धर्म की एक खूबी उजागर करता हुआ है कि चूंकि हिन्दू हिंसक है इसलिए अभी तक उसका अस्तित्व है. नहीं तो वह कब का मिट खप गया होता और यह बात हिन्दुओं के लिए शर्म या मुंह छिपाने की नही बल्कि गर्व की होनी चाहिए .

इन और ऐसे मुद्दों या बयानों पर इंडिया ब्लाक में कोई मतभेद नहीं हैं . होते तो अवधेश पासी के नाम की पेशकश अयोध्या से 907 किलोमीटर दूर बैठी ममता बनर्जी न करतीं जिन्हें पश्चिम बंगाल के दलितों ने भरपूर समर्थन दिया है. ठीक वैसा ही जैसा उत्तरप्रदेश में सपा और कांग्रेस को दिया है . ऐसे में इन शीर्षकों वाली ब्रेकिंग न्यूज के कोई माने नहीं रह जाते कि ममता की गुगली में फिर फंसा इंडिया ब्लाक.. या गठबंधन में रार और तकरार …हकीकत में तो फंस एनडीए रहा है .

Hathras Stampede : मौत का सत्संग, भगदड़ में 121 मौतें, तबाही का जिम्मेदार कौन

उनको यकीन था कि बाबा की एक झलक उन्हें उनके कष्टों से मुक्ति दे देगी. एक बूढ़ी औरत जो महीनों से बीमार थी, बुखार छूट ही नहीं रहा था, वह अपनी 16 साल की पोती के साथ इस यकीन से आयी थी बाबा की चरणरज मिलते ही वह भली चंगी हो जाएगी. एक विधवा का बच्चा बीमार था, वह अपने बच्चे के ठीक होने की उम्मीद लगाकर उसको लेकर बाबा के सत्संग में आयी थी. उस बूढ़े पर लाला का कर्ज था, वह इस आशा से आया था कि बाबा के आशीर्वाद से इस बार फसल अच्छी हो जाएगी तो कर्ज उतर जाएगा. कितनी ही जवान लड़कियां अच्छा घरवर पाने का आशीर्वाद बाबा से प्राप्त करना चाहती थीं. उनसे कहा गया था कि अगर बाबा की चरण धूलि मिल गयी तो हर अरमान पूरा हो जाएगा. कितने लड़के इस आशा में आये थे कि बाबा के आशीर्वाद से नौकरी लग जाएगी तो घर की बदहाली ख़त्म होगी.

 

बाबा के सत्संग में हाथरस जिले से ही नहीं बल्कि कस्बों से, दूरदूर के गांवों से, अन्य जिलों से और हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों से भी कोई दो से ढाई लाख लोग जमा हुए थे. भीड़ का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि वाहनों की संख्या तीन किलोमीटर तक फैली हुई थी. हर श्रद्धालु के मन में कोई इच्छा थी और यकीन था कि वह इच्छा बाबा के आशीर्वाद से पूरी हो जाएगी. बाबा की दिव्य वाणी कानों में पड़ जाएगी तो सारे कष्ट दूर हो जाएंगे. देश की भोली, अनपढ़, धर्मभीरु जनता को यह यकीन बाबा ने दिलाया, बाबा के सैकड़ों सेवादारों ने दिलाया और धर्म का परचम बुलंद करके राजनीति की चाशनी चाटने वाली भारतीय जनता पार्टी ने दिलाया जो इन बाबाओं के प्रति लोगों की उत्सुकता जगाने का काम पिछले दस सालों से निरंतर कर रही है.

भोले ग्रामीण और उससे भी भोली ग्रामीण महिलाएं कितनी आशाएं लेकर बाबा के सत्संग में आयी थी. धर्म का सबसे ज्यादा डर औरतों में ही फैलाया जाता है. धर्म और धर्म के ठेकेदारों की सेवा औरतों से ही करवाई जाती है. उनसे कहा जाता है कि यदि उन्होंने ऐसा नहीं किया तो उनके पूरे परिवार पर प्रलय आ जाएगी. तो ऐसे सत्संगों में औरतों की उपस्थिति सबसे ज्यादा होती है.

बाबा के सत्संग में भी औरतें अपनी पतियों, बच्चों के साथ बड़ी संख्या में आयी थीं. कोई ट्रेक्टर ट्रौली पर लद कर आया था, कोई बस से, कोई टैम्पो पकड़ के, कोई किराए की गाड़ी पर, कोई बस से तो कोई अपने दोपहिया वाहन पर. लेकिन उनकी वापसी चार कन्धों पर हो रही थी. अनेक लोगों को एक ही एम्बुलेंस में एक के ऊपर एक डाल कर ले जाया जा रहा रहा था. अनेक औरतों को बस की सीटों पर लिटा दिया गया था. सीटों पर जगह भर गयी तो बस की जमीन पर लिटाया जाने लगा. जिस बस में ज़िंदा आईं थीं उसी में लाश बन कर जा रही थी. क्योंकि वह मौत का सत्संग था और बाबा ने यमराज बनकर सबकी जान हर ली थी. हाथरस में बाबा के सत्संग में जब भगदड़ मची तो एक दूसरे के पैरों तले कुचल कर मारे जाने वालों में सात नन्हें मासूम बच्चों और दो पुरुषों के अलावा मरने वाली सब औरतें ही हैं.

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले के सिकंदराराऊ में 2 जुलाई मंगलवार की दोपहर नारायण साकार विश्व हरि भोले बाबा नाम के एक बाबा ने सत्संग का आयोजन किया था. ऊंचे मंच पर बाबा अपनी पत्नी के साथ विराजमान था. सामने विशाल मैदान में कोई ढाई लाख लोग जिसमें बड़ी संख्या में महिलायें और बच्चे थे, भीषण गर्मी में बैठे बाबा का प्रवचन सुन रहे थे. अचानक मंच पर बाबा उठ खड़ा हुआ. सेवादारों ने आवाज लगानी शुरू की – बाबा प्रस्थान कर रहे हैं. आप लोग उनकी चरणरज ले लें और अपने कष्टों से मुक्ति पाएं.

भीड़ बिना सोचे समझे उठ कर बाबा की ओर बढ़ने लगी. इससे पहले कि बाबा नजरों से ओझल हो जाएं भीड़ उन तक पहुंच जाना चाहती थी. बाबा की चरणर पाकर अपने कष्टों से मुक्ति पाने के लिए ही तो इतनी दूर आये थे. किसी तरह चरणरज तो मिलनी ही चाहिए. वरना आना ही फिजूल हो जाएगा. भीड़ एक दूसरे पर चढ़ कर बाबा के निकट पहुंच जाना चाहती थी. धक्के पर धक्के लग रहे थे. चीख पुकार मच रही थी. तभी एक औरत धक्का खा कर गिरी. भीड़ उसके जिस्म पर उसके सिर पर चढ़ कर बाबा की ओर लपकी. फिर कई औरतें और बच्चे गिरे. भीड़ उनको भी कुचलती हुई बाबा की ओर बढ़ी जा रही थी. आगे दलदल से भरा खेत था. कइयों का पैर फिसला. वे एक के ऊपर एक गिरने लगे. पीछे से उमड़ रही भीड़ ने कोई परवाह नहीं की. वे तो बस किसी तरह बाबा तक पहुंचने के लिए पूरा जोर लगा रहे थे. और बाबा अपने सेवादारों के बीच अपनी कार की तरफ लपके जा रहे थे. उनके पीछे दलदल में लोग एक के ऊपर एक गिर रहे थे. रौंदे जा रहे थे. उनकी चीख बाबा के कानों को सुनाई नहीं दे रही थी. दलदल में नीचे दबे लोगों के मुंह और नाक में गीली मिट्टी भर चुकी थी. उनकी साँसें टूट रही थीं. एक नहीं दो नहीं कोई डेढ़ सौ से ज़्यादा लोग कष्टों से मुक्ति पाने की आशा में जीवन से मुक्ति पा चुके थे. मगर बाबा ने उनकी ओर एक बार पलट कर भी नहीं देखा. उसके सेवादार पास आने वाले श्रद्धालुओं पर लाठियां भांज रहे थे कि कहीं उनके गंदे हाथ बाबा के उजले कपड़ों से ना छू जाएं. उनकी लाठियां खा कर कितने ही लोग घायल हुए. कितने जमीन पर गिर गए और दूसरों द्वारा रौंद डाले गए. मगर बाबा इन मौतों से बेखबर बढ़ता चला गया और अपनी लखदख कार में सवार होकर निकल गया.

नारायण साकार विश्व हरि भोले बाबा नाम का यह बाबा कौन है? जो हाथरस का यमराज बन कर आया और डेढ़ सौ लोगों की जानें लील कर अंतर्ध्यान हो गया? कब और कैसे उसकी ख्याति इतनी बढ़ गयी कि उसके लाखों अनुयायी बन गए? दरअसल इस बाबा का असली नाम है सूरज पाल सिंह है. 17 साल पहले सूरज पाल सिंह उत्तर प्रदेश पुलिस में एक सब इंस्पेक्टर था. नौकरी से इस्तीफा देकर यह सत्रह साल पहले बाबा बन कर प्रवचन करने लगा. वह अपनी पत्नी के साथ गांव गांव पंडाल लगा कर प्रवचन करता और जल्दी ही उसने अपने सेवादारों की एक फ़ौज बना ली. सेवादार उसकी ख्याति बांटने में लग गए. बाबा ये चमत्कार कर सकते हैं. बाबा कष्टों से मुक्त कर सकते हैं. बाबा की वाणी में परमात्मा का वास है. उनकी दिव्यवाणी कानों में पड़ते ही सारे दुःख दूर हो जाते हैं. ऐसी बातें दूर दूर तक फैलाई गयी. जल्दी ही बाबा मशहूर हो गया और उसके बड़े बड़े कार्यक्रमों का आयोजन होने लगा. जिसमें टिकट लेकर लोग आने लगे. पहले उसने अपनी पैतृक जमीन पर एक आश्रम बनाया फिर गांव-गांव, शहर-शहर बाबा की समितियां बन गयीं. समितियों के माध्यम से सत्संग के आयोजन होने लगे. पूरा खर्चा समितियां उठाती और उसके सदस्य लोगों से चन्दा जुटाते. प्रवचन के बाद भंडारा होता, जिसका प्रसाद पाने के लिए भीड़ टूटी पड़ती.

बाबा महंगे सूटबूट और आंखों पर काला चश्मा चढ़ा कर चांदी के चमकते सिंहासन पर बैठता और प्रवचन करता. उसकी आस्था का साम्राज्य फैलने लगा और जल्दी ही वह लाखोंकरोड़ों में खेलने लगा. सत्ता से नजदीकियां बन गयीं. पुलिस प्रशासन को वह अपनी जेब में रखने लगा. यादव बिरादरी से सम्बन्ध रखने वाला यह बाबा जल्दी ही गरीब, वंचित समाज का परमात्मा बन गया. जहां उसके सत्संग होते, जहां लाखों की भीड़ वह जुटाया, उस ओर से प्रशासन अपनी आंखें मूँद लेता. किसी भी ऐसे आयोजन के लिए जिसमे इतनी बड़ी तादात में लोगों का हुजूम उमड़ना हो तो प्रशासन से उसकी परमिशन लेनी होती है. कार्यक्रम की अनुमति के लिए क्षेत्र के थानाप्रभारी और चौकी इंचार्ज से लेकर बीट के सिपाही तक की रिपोर्ट लगती है. मगर बाबा के कार्यकर्म में इतनी बड़ी तादाद में लोगों के आने के बावजूद कभी किसी ने कोई सवाल नहीं किया और उसको हर सत्संग के लिए चुटकियों में अनुमति मिलती रही.

बाबा प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी की योगी सरकार के लिए बड़ा वोटबैंक खड़ा कर चुका था. बाबा के एक इशारे पर उसके प्रवचन सुनने वाली जनता अपना वोट भाजपा की झोली में डालती थी, तो ऐसे में बाबा के कार्यकर्मों पर कौन ऊँगली उठाता? मजेदार बात यह कि पुलिस में बाबा के कई अनुयायी थे. बाबा के सत्संग आयोजित होते तो ये अनुयायी पुलिस की वर्दी उतार कर बाबा के सेवादार बन जाते और पूरी व्यवस्था देखते. बाबा भारतीय जनता पार्टी और संघ के कार्यक्रम को आगे बढ़ा रहे थे. बाबा देश की गरीब जनता के दिल दिमाग में धर्म का डर बिठाने और साधुसंतों, पंडितपुजारियों की सेवा में ही स्वर्ग की प्राप्ति का मार्ग दिखा रहे थे. बाबा बता रहे थे कि जनता के मूल मुद्दों, गरीबी, बेरोजगारी, बीमारी और तमाम दूसरी समस्याओं का समाधान सरकार के पास नहीं भगवान् के पास है, ऐसा करके बाबा सरकार को बड़ी रहत पहुंचा रहे थे, तो बाबा पर कोई ऊंगली कैसे उठती? बाबा संघ और भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे थे, यही वजह है कि डेढ़ सौ मौतों के बाद जो एफआईआर पुलिस ने दर्ज की उसमें बाबा का कहीं नाम तक नहीं है. सैकड़ों लोग गंभीर घायल अवस्था में अस्पतालों में जिंदगी-मौत की जंग लड़ रहे हैं, डेढ़ सौ लोगों को मार कर बाबा फुर्र हो गया, मगर योगी की पुलिस उसको गिरफ्तार करने की कोशिश भी करती नज़र नहीं आ रही है. उलटे योगी बयान दे रहे हैं कि हम पता करेंगे कि यह हादसा है या किसी की साजिश? लानत है ऐसे शासन-प्रशासन पर.

हत्यारा सिर्फ बाबा नहीं सरकार भी है

देश में आये दिन धार्मिक स्थलों पर भारी भीड़ जुटने लगी है. आये दिन इन स्थलों पर भगदड़ मचती है. एक्सीडेंट होते हैं और वे श्रद्धालु जो बड़ी आस्था लेकर आते हैं, हादसों का शिकार हो रहे हैं. मारे जा रहे है. घायल हो रहे हैं. उनका अंगभंग हो रहा है. जीवन भर के लिए अपंगता का शिकार हो रहे हैं. मगर इससे सरकार की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ता. 140 करोड़ में से कुछ हजार या कुछ लाख कम हो जाएं तो क्या गम?

लेकिन उस मासूम बच्चे की हालत देखो जो हाथ में दूध की बोतल लिए दलदल में अपनी मां की लाश से चिपका बैठा है? उसका पूरा बचपन और किशोरावस्था जो उसकी मां की छत्रछाया और सुरक्षा में बीतना था वह सहारा इस सरकार और उसके पाले हुए बाबाओं ने छीन लिया.

उस बूढ़ी दादी से पूछो उसके दिल पर क्या गुजर रही है जो अपनी सोलह साल की पोती की लाश के पास बैठी यह सोच रही है कि बेटाबहू पूछेंगे कि उनकी इकलौती बेटी कैसे मर गयी तो वह क्या जवाब देगी?

उस आदमी से पूछो जो दोनों हाथ में एक एक बच्चा उठाये अपनी बीवी की लाश को टुकुर टुकुर देख रहा है जैसे वह अभी उठ खड़ी होगी और कहेगे लाओ मुन्ने को मुझे दे दो. तुम कहां दोनों को उठा कर चलोगे?

एक एक आदमी की पीड़ा अगर पूछी जाए तो हृदय फट जाए. मगर सरकार की सेहत पर उनके दुःख का कोई असर नहीं होता. वह मरने वाले के परिजन को दो दो लाख और घायलों को पचास हजार की रकम देकर अपने फर्ज से मुक्त हो जाती है. हर बार हर हादसे के बाद ऐसा ही होता है और जब तक हम धार्मिक चक्रव्यूह से बाहर नहीं निकलेंगे तब तक ऐसा ही होता रहेगा.

एक जनवरी 2022 – जम्मू कश्मीर स्थित प्रसिद्ध माता वैष्णव देवी मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ के कारण भगदड़ मची और 12 लोगों की वहाँ कुचल कर मौत हो गयी. करीब एक दर्जन लोग बुरी तरह घायल हुए.

25 जनवरी 2005 – महाराष्ट्र के सतारा जिले में मानधारदेवी मंदिर में वार्षिक तीर्थयात्रा के दौरान 350 से ज्यादा श्रद्धालुओं की कुचलकर मौत हुई.

13 अक्टूबर 2013 – मध्य प्रदेश के दतिया जिले में रतनगढ़ मंदिर के पास नवरात्रि उत्सव के दौरान मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हुई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए.

3 अक्टूबर 2014 – दशहरा समारोह समाप्त होने के तुरंत बाद पटना के गांधी मैदान में भगदड़ मचने से 32 लोगों की मौत हुए और 26 लोग घायल हुए.

19 नवम्बर 2012 – पटना में गंगा नदी के तट पर छठ पूजा के दौरान एक अस्थाई पल ढहने से भगदड़ में 20 लोगों की मौत हुई.

8 नवम्बर 2011 – हरिद्वार में गंगा नहीं के तट पर हरकी पौड़ी घाट पर मची भगदड़ में 20 लोग मारे गए.

14 जनवरी 2011 – केरल के इडुक्की जिले में एक जीप के सबरीमाला मंदिर के दर्शन कर लौट रहे तीर्थयात्रियों से टकरा जाने के कारण मची भगदड़ में 104 श्रद्धालुओं की मौत हुई और 50 से ज़्यादा घायल हुए थे.

2008 में राजस्थान के जयपुर में स्थित चामुंडा मंदिर में बम की अफवाह से भगदड़ मची जिसमे 250 लोग मारे गए.

इंदौर में रामनवमी के मौके पर एक मंदिर में हो रहे हवन कार्यक्रम में पुरानी बावड़ी पर बना स्लैब टूटा तो कुएं में गिर कर 36 लोगों की मौत हुई जिसमें जयादातर औरतें थी.

2003 में महाराष्ट्र के नासिक में कुम्भ के मेले में मची भगदड़ में 39 लोग मरे.

2008 में हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में नैना देवी मंदिर में अफवाह के कारण भगदड़ मची और 146 लोग मारे गए.

2015 में आंध्र प्रदेश के राजमुंद्री में गोदावरी नदी के घाट पर भगदड़ मची और 27 तीर्थयात्री मारे गए.

2010 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में स्थित कृपालु महाराज के राम जानकी मंदिर में भगदड़ मचने से 63 लोगों की मौत हुई.

मेरी फ्रेंड का मेरे पति से अफेयर है, मैं अंदर ही अंदर घुट रही हूं, मैं क्या करूं ?

सवाल
मेरी शादी को 3 साल हो गए हैं लेकिन मुझे पिछले दिनों पता चला है कि मेरी फ्रैंड, जिस का मेरे घर में खूब आनाजाना है, का मेरे पति से अफेयर है. मेरी 1 साल की बच्ची भी है. ऐसे में मैं अंदर ही अंदर घुट रही हूं. क्या करूं?

जवाब
आप के पति का शादीशुदा होने के बावजूद इस तरह से आप की फ्रैंड से संबंध रखना सही नहीं है. ऐसे में आप ठोस सुबूतों के साथ पति से खुल कर बात करें. इस से उन के मन में डर रहेगा कि आप सबकुछ जान गई हैं और साथ ही, अपनी फ्रैंड का घर में आनाजाना बंद करें.

पति से स्पष्ट कह दें कि अगर यह सब खत्म नहीं हुआ, तो मैं तुम्हारे साथ नहीं रह पाऊंगी. इस बीच, अपने पति को खूब प्यार दीजिए, सजिएसंवरिए ताकि वे आप की फ्रैंड के पास जाने के बारे में सोचें ही नहीं. आप को उन्हें सुधरने का एक मौका जरूर देना चाहिए.

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आखिर कब पड़ती है किसी और की जरूरत

वैवाहिक जीवन में सैक्स की अहम भूमिका होती है. लेकिन यदि पति किसी ऐबनौर्मल सैक्सुअल डिसऔर्डर से ग्रस्त हो, तो पत्नी की जिंदगी उम्र भर के लिए कष्टमय हो जाती है. सैक्सोलौजिस्ट डा. सी.के. कुंदरा ऐबनौर्मल सैक्सुअल डिसऔर्डर के बारे में बताते हुए कहते हैं कि उन की क्लीनिक में शादी के बाद कृष्णानगर की मृदुला अपनी मां के साथ आई. हुआ यह था कि शादी के बाद मृदुला एकदम बुझीबुझी सी मायके आई, तो उस की मां उसे देख कर परेशान हो गईं. लेकिन मां के लाख पूछने पर भी उस ने कोई वजह नहीं बताई.

उस ने अपनी सहेली आशा को बताया कि वह अब ससुराल नहीं जाना चाहती, क्योंकि उस के पति महेश उस से संबंध बनाने के दौरान उस के यौनांग में बुरी तरह से चिकोटी काटते हैं और पूरे शरीर को हाथ फेरने के बजाय नाखूनों से खरोंचते हैं. जिस से घाव बन जाते हैं, हलका खून निकलता है. उसे देख कर महेश खुश होते हैं. फिर संबंध बनाते हैं. यह कह कर मृदुला रोने लगी. डा. कुंदरा ने आगे बताया कि आशा ने जब उस की मां को यह बात ताई तो वे मृदुला को ले कर मेरे पास आईं.

मृदुला की तरह कई महिलाएं अपनी पीड़ा को व्यक्त नहीं कर पाती हैं. मृदुला का पति ऐबनौर्मल सैक्सुअल डिसऔर्डर से ही पीड़ित था. इस स्थिति में स्त्री के लिए पूरी जिंदगी ऐसे पुरुष के साथ बिताना असंभव हो जाता है. उसे ऐसे किसी व्यक्ति की जरूरत महसूस होने लगती है, जो उस के मन की बात को समझे और उसे क्या करना चाहिए, इस के बारे में बताए.

कारण

सैक्सोलौजिस्ट डा. रामप्रसाद शाह के मुताबिक, ऐबनौर्मल सैक्सुअल डिसऔर्डर से व्यक्ति कई कारणों से ग्रसित होता है:

सैक्सफेरामौन: यानी गंध के प्रति कामुकता. ऐेसे पुरुष स्त्री देह की गंध से उत्तेजित हो कर सैक्स करते हैं. ऐसे में कोई भी स्त्री, जिस की देह गंध से ऐसा व्यक्ति उत्तेजित हुआ हो, उसे हासिल करने के लिए वह किसी भी हद तक जा सकता है.

ऐक्सेसिव डिजायर: दीपक की उम्र 60 साल से ऊपर है. इस के बावजूद भी वह घर से बाहर सब्जी बेचने वाली, घरों में काम करने वाली और सस्ती कालगर्ल से कभीकभी सुबह तो कभी रात भर रख कर संबंध बनाता है. संबंध बनाने के लिए वह शराब का भी सहारा लेता है. घर वाले उस से परेशान रहते हैं, इसलिए उस से अलग और दूर रहते हैं. ऐसे शारीरिक संबंध बनाने वाला व्यक्ति ऐक्सेसिव डिजायर  पीडि़त होता है.

फेटिशिज्म: इस में व्यक्ति उन चीजों के प्रति आकर्षित रहता है, जो उस की सैक्स इच्छाओं को पूरा करने में सहायक होती हैं. जैसे सैक्सी किताबें, महिलाओं के अंडरगारमैंट्स और दोस्तों से सैक्स की बातें करना.

लक्ष्मी नगर की निशा का कहना है कि उस के पति दिनेश हमेशा दोस्तों के साथ किनकिन महिलाओं के साथ सहवास कबकब और कैसेकैसे किया जैसी बातें हमेशा करते हैं. उस के बाद वह निशा से संबंध बनाने की कोशिश करते हैं. ऐसे व्यक्ति महिलाओं को छिप कर देखने के साथ उन के साथ संबंध बनाने के लिए आतुर भी रहते हैं.

बस्टियैलिटी: ऐसे पुरुष पर सैक्स इतना हावी हो जाता है कि वह किसी से भी सहवास करने में नहीं झिझकता. जयपुर का रमेश अपनी इसी आदत की वजह से अपनी साली की 14 साल की लड़की से शारीरिक संबंध बना बैठा. ऐसे पुरुषों द्वारा अकसर रिश्तों की मर्यादा को ताक पर रख कर ऐसे संबंध बनाए जाते हैं. ऐसे में असहाय महिलाएं, लड़कियां, यहां तक कि पशु भी गिरफ्त में आ जाते हैं.

ऐग्जिबिशनिज्म: इस से ग्रस्त व्यक्ति अपने गुप्तांग को महिला या छोटेछोटे बच्चेबच्चियों को जबरदस्ती दिखाता है. इस से उसे खुशी के साथ संतुष्टि भी मिलती है. लेकिन इस से अप्रत्यक्ष रूप से ही सही हानि होती है इसलिए इसे अब गैरकानूनी की धारा में रखा जाता है. इस में जुर्माना और कैद भी है.

पीडोफीलिया: इस सैक्सुअल डिसऔर्डर से पीडि़त पुरुष अकसर छोटी उम्र की लड़कियों व लड़कों से संबंध बना कर अपनी कामवासना को संतुष्ट करता है. नरेंद्र की उम्र 50 के ऊपर हो चुकी थी पर वह बारबार 14 से 15 साल की नाबालिग लड़की से शारीरिक संबंध बनाने की लालसा रखता था. आखिर उस ने नाबालिग से संबंध बना ही डाला और कई दिनों तक सहवास करता रहा. अंत में पकड़े जाने पर नेपाल की जेल में 14 साल की सजा काट रहा है.

वैवाहिक रेप

हालांकि यह अजीब सा लगता है कि विवाह के बाद पति द्वारा पत्नी का रेप. लेकिन इस में कोई दोराय नहीं कि आज भी कई विवाहित महिलाओं को इस त्रासदी से गुजरना पड़ता है, क्योंकि अकसर पति अपनी पत्नी की इच्छाओं, भावनाओं को भूल कर जबरन यौन संबंध बनाता है. यह यौन शोषण और बलात्कार की श्रेणी में आता है. हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 375 और 379 के तहत पत्नी को अधिकार है कि वह ऐसा होने पर कानूनी तौर पर तलाक ले सकती है.

समाधान

सैक्सोलौजिस्ट डा. रामप्रसाद शाह का कहना है कि ऐसी स्थिति में नईनवेली दुलहन को संयम से काम लेना चाहिए. वह पति की उपेक्षा न कर के व ताना न दे कर प्यार से उसे समझाए.

सामान्य सहवास के लिए प्रेरित करे. ऐसे लोगों का मनोचिकित्सक द्वारा इलाज किया जा सकता है. ऐसे मरीज की काउंसलिंग की जाती है और बीमारी किस हद तक है पता चलने पर सलाह दी जाती है. अगर पति तब भी ठीक न हो और मानसिक व शारीरिक पीड़ा पहुंचाए, तो पत्नी तलाक ले कर अपनी जिंदगी को नई दिशा दे सकती है.

वैज्ञानिकों का मानना है कि मस्तिष्क में स्थित न्यूरो ट्रांसमीटर में किसी प्रकार की खराबी, मस्तिष्क में रासायनिक कोशिकाओं में कमी, जींस की विकृति आदि इस समस्या की वजहें होती हैं और अकसर 60 साल से ज्यादा उम्र के व्यक्ति इस के शिकार होते हैं. गलत संगत, अश्लील किताबें पढ़ना, ब्लू फिल्में देखना आदि भी इस में सहायक होते हैं.

पराया कांच: विभा और विपिन नन्ही को लेकर क्या सोच रहे थे

‘‘कल देर से आऊंगा, विभा. 3 साल पहले चंडीगढ़ से अवस्थीजी आए थे, वे वापस जा रहे हैं ब्रांच मैनेजर बन कर. उन का विदाई समारोह है,’’ विपिन ने सोने से पहले बताया.

‘‘यह तो बड़ी खुशी की बात है. बहुत खुश होंगे अवस्थीजी.’’

‘‘हां, खुश भी और परेशान भी.’’ विभा ने भवें चढ़ाईं, ‘‘परेशान क्यों?’’

‘‘क्योंकि उन की बिटिया नन्ही का यह एमबीए का अंतिम वर्ष है. कैंपस सिलैक्शन में उस का चयन भी यहीं विजन इंफोटैक में हो चुका है. ऐसे में न तो नन्ही की पढ़ाई छुड़ा सकते हैं और न ही उसे यहां अकेले छोड़ कर जा सकते हैं. बीच सत्र के कारण न तो होस्टल में जगह मिल रही है और न ही पेइंग गैस्ट रखने वालों के यहां.’’

‘‘यह तो वाकई परेशानी की बात है. पत्नी को भी तो यहां छोड़ कर नहीं जा सकते क्योंकि अवस्थीजी का परहेजी खाना तो वही बना सकती हैं, दांतों की तकलीफ की वजह से कुछ ज्यादा खा ही नहीं सकते. यहां किसी से ज्यादा मिलनाजुलना भी तो नहीं बढ़ाया उन लोगों ने…’’

‘‘सिवा कभीकभार हमारे यहां आने के,’’ विपिन ने बात काटी, ‘‘हम क्यों न उन की मदद कर दें विभा, नन्ही को अपने पास रख कर? चंद महीनों की तो बात है, नौकरी मिलने पर तो वह कंपनी के ट्रेनीज होस्टल में रहने चली जाएगी. बच्चे तो यहां हैं नहीं, सो दोनों के कमरे भी खाली हैं, घर में रौनक भी हो जाएगी.’

‘‘वह सब तो ठीक है लेकिन जवान लड़की की हिफाजत कांच की तरह करनी होती है. जरा सी लापरवाही से पराया कांच तड़क गया तो खरोंचें तो हमें ही लगेंगी न? न बाबा न, मैं बेकार में लहूलुहान नहीं होने वाली,’’ विभा ने सपाट स्वर में कहा. विपिन चुप हो गया लेकिन विभा सोचने लगी कि बात तो विपिन ने सही कही थी. निखिल रहता तो उन के साथ ही था मगर फिलहाल किसी ट्रेनिंग पर सालभर के लिए विदेश गया हुआ था. नेहा को ग्रेजुएशन के बाद वह मामामामी के पास दिल्ली घुमाने ले गई थी लेकिन नेहा को दिल्ली इतनी पसंद आई कि उस ने वहीं मार्केटिंग का कोर्स जौइन कर लिया फिर वहीं नौकरी भी करने लगी. पहले तो मामामामी ने उस की बहुत तरफदारी की थी लेकिन कुछ महीने पहले लगा कि वे लोग नेहा के वहां रहने से खुश नहीं हैं, फिर अचानक सब ठीक हो गया और फिलहाल तो नेहा के वापस आने के आसार नहीं थे. ऐसे में नन्ही के आने से सूने घर में रौनक तो जरूर हो जाएगी लेकिन बेकार में जिम्मेदारी की टैंशन बढ़ेगी.

‘‘तुम एक रोज नन्ही की तारीफ कर रही थीं न विभा कि वह सिवा अपनी पढ़ाई के कुछ और सोचती ही नहीं है तो फिर ऐसी बच्ची को कुछ अरसे के लिए अपने यहां आश्रय देने में तुम हिचक क्यों रही हो? उसे इंस्टिट्यूट ले जाने और वहां से लाने का इंतजाम अवस्थी कर देगा, तुम्हें बस उस के रहनेखाने का खयाल रखना है, बाहर वह क्या करती है, यह हमारी जिम्मेदारी नहीं होगी, यह मैं ने अवस्थी से साफ कह दिया है,’’ विपिन ने अगले रोज फिर बात छेड़ी, ‘‘मुझ से अवस्थी की परेशानी देखी नहीं गई.’’

‘‘अब जब आप ने कह ही दिया है तो मेरे कहने के लिए रह ही क्या गया?’’ विभा हंसी, ‘‘कल नेहा की एक अलमारी खाली कर दूंगी नन्ही के लिए.’’ विपिन को डर था कि नन्ही के आने पर घर का वातावरण असहज हो जाएगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. पहले रोज से ही नन्ही और विभा में अच्छा तालमेल हो गया. मना करने पर भी नन्ही रसोई में हाथ बंटाती थी, कुछ देर उन के साथ टीवी भी देखती थी. छुट्टी के रोज उन के साथ घूमने भी चली जाती थी लेकिन न तो कोई उस से मिलने आता था और न ही वह कहीं जाती थी. उस का मोबाइल जरूर जबतब बजता रहता था लेकिन नन्ही ज्यादा देर बात नहीं करती थी जिस से विभा को चिंता करनी पड़े. सब ठीक ही चल रहा था कि नन्ही की परीक्षा शुरू होने से कुछ रोज पहले अचानक नेहा आ गई.

‘‘मैं ने यहां अपना ट्रांसफर करवा लिया है,’’ नेहा ने उत्साह से बताया. ‘‘दिल भर गया दिल्ली से, अब यहीं रहूंगी आप के साथ. मगर आप खुश होने के बजाय इतनी सकपकाई सी क्यों लग रही हैं, मम्मी?’’

विभा ने धीरे से नन्ही के बारे में बताया. ‘‘उस का सामान निखिल के कमरे में रखवा कर तेरा कमरा खाली करवा देती हूं.’’

‘‘वह अब तक मेरे कमरे में ऐडजस्ट कर चुकी होगी मम्मी, उसे कमरा बदलवा कर डिस्टर्ब मत करो. मैं निखिल के कमरे में रह लूंगी, रात को आ कर सोना ही तो है.’’

‘‘रात को ही क्यों?’’ विभा ने चौंक कर पूछा. ‘‘क्योंकि मैं देर तक और छुट्टी के रोज भी काम करती हूं. अभी भी औफिस जाना है, शाम को कब तक लौटूंगी, कह नहीं सकती,’’ कह कर नेहा चली गई.

विभा को नेहा कुछ बदली सी तो लगी पर उस ने इसे नौकरी से जुड़ी व्यस्तता समझ कर टाल दिया. शाम को नेहा जल्दी ही लौट आई. तब तक नन्ही उस का कमरा खाली कर चुकी थी. ‘‘वह कहने लगी कि मुझे तो कुछ कपड़े और किताबें ही उठानी हैं, दीदी का तो पूरा सामान उन के कमरे में है, सो मैं ही दूसरे कमरे में चली जाती हूं,’’ विभा ने सफाई दी. परिचय के बाद कुछ बात तो करनी ही थी, सो नेहा ने नन्ही से उस की पढ़ाई के बारे में पूछा. यह सुन कर कि उस ने एमकौम तक की पढ़ाई चंडीगढ़ में की थी, नेहा चहकी, ‘‘तब तो तुम जगत सिंह चौधरी को जानती होगी?’’

‘‘ओह, जग्गी सिंह? बड़ी अच्छी तरह जानती हूं.’’

‘‘तुम्हारे क्लासफैलो थे?’’

‘‘हां, क्लासफैलो भी, सीनियर भी और फिर जूनियर भी,’’ नन्ही खिलखिला कर हंसी, ‘‘असल में उस ने बीकौम सेकंड ईयर में 3 साल लगाए थे.’’

‘‘लेकिन फिर फाइनल और मार्केटिंग डिप्लोमा में फर्स्ट क्लास ला कर पूरी कसर निकाल दी.’’

‘‘हां, सुना तो था. आप कैसे जानती हैं जग्गी को?’’ नन्ही ने पूछा.

‘‘जेएस चौधरी हमारी कंपनी में डिप्टी सेल्स मैनेजर हैं, मैनेजमैंट के ब्लू आईड बौय. जिस इलाके में बिक्री कम होती है, चौधरी साहब को भेज दिया जाता है. यहां की ब्रांच तो बंद ही होने वाली थी लेकिन चौधरी साहब की जिद पर उन्हें यहां भेजा गया और वे आज बड़ौदा में नया शोरूम खुलवाने गए हुए हैं,’’ नेहा के स्वर में गर्व था.

‘‘मार्केटिंग में लच्छेदार बातों वाला आदमी चाहिए और बातों की जलेबियां तलने में तो जग्गी लाजवाब है.’’

‘‘तुम इतनी अच्छी तरह कैसे जानती हो उन्हें?’’

‘‘चंडीगढ़ में हमारी और उस की कोठी एक ही सैक्टर में है, दोनों के परिवारों में तो मिलनाजुलना है लेकिन मम्मीपापा को हम भाईबहन का जग्गी से मेलजोल पसंद नहीं था.’’ ‘‘लेकिन अब तो तुम्हें उन से मिलना ही होगा, मेरी खातिर. मैं दिल्ली से आई ही उन के लिए हूं और सच बताऊं तो वे भी मेरे लिए ही यहां आए हैं क्योंकि दिल्ली में मामी को हमारा मिलनाजुलना खटकने लगा था, सो हम ने वहां से हटना ही बेहतर समझा,’’ कह कर नेहा ने विभा को पुकारा, ‘‘मम्मी, नन्ही मेरे बौस के परिवार को जानती है. सो, मैं सोच रही हूं कि इस से मिलने के बहाने चौधरी साहब को एक रोज घर बुला लूं. बौस से अच्छे ताल्लुकात बहुत काम आते हैं.’’

‘‘ठीक है, पापा से पूछ कर किसी छुट्टी के दिन बुला लेना,’’ विभा बोली. नेहा की नन्ही से खूब पटने लगी. एक रोज नेहा का फोन आया कि अधिक काम होने के कारण वह देर से आएगी, खाने पर उस का इंतजार न करें, न ही फिक्र. वह औफिस की गाड़ी में आ जाएगी.

नेहा 10 बजे के बाद आई.

‘‘चौधरी साहब ने कहा कि उन्हें नन्ही से मिलने तो आना ही है सो वे अपनी गाड़ी में मुझे छोड़ने आ गए,’’ नेहा ने विभा व विपिन के कमरे में आ कर कहा.

विपिन ने अपने कपड़े देखे.

‘‘ठीक हैं, या बदलूं?’’

‘‘आप लोगों को बाहर आने की जरूरत नहीं है, अभी तो वे नन्ही का हालचाल पूछ कर चले जाएंगे.’’ और फिर अकसर चौधरी साहब नेहा को छोड़ने और नन्ही को हैलो कहने आने लगे. विभा को यह सब ठीक तो नहीं लगा लेकिन नेहा ने उसे यह कह कर चुप कर दिया कि नन्ही के पड़ोसी हैं और उन के पापा चंडीगढ़ में अवस्थी अंकल की गैरहाजिरी में उन की कोठी और माली वगैरह पर नजर रखते हैं, हालांकि नन्ही ने उस से ऐसा कुछ नहीं कहा था. विभा ने नन्ही को कुछ दिन पहले फोन पर कहते सुना था कि उसे किसी चंडीगढ़ वाले से मिलने की फुरसत नहीं है. नन्ही आजकल पढ़ाई में बहुत व्यस्त रहती थी. सो, विभा ने उस से इस विषय में कुछ नहीं पूछा. वैसे भी चौधरी कुछ मिनट ही रुकता था. परीक्षा के दौरान नन्ही ने कहा कि वह रात का खाना 7 बजे खा कर कुछ घंटे लगातार पढ़ाई करेगी.

‘‘खाना तो 7 बजे ही खा लोगी लेकिन चौधरी जो ‘हैलो’ करने के बहाने खलल डालेगा उस का क्या करोगी?’’ विभा हंसी.

‘‘मैं कहना तो नहीं चाहती थी आंटी लेकिन चौधरी मुझे हैलो कहने के बहाने नेहा दीदी को छोड़ने आता है. मेरे कमरे में तो उस ने पहले दिन के बाद झांका भी नहीं. पहले रोज जब दीदी आप के कमरे में गई थीं तो मैं ने उस से कहा था कि तुम ही होने वाले सासससुर के कमरे में जा कर उन के पैर छू आओ तो उस ने बताया कि सासससुर तो मम्मी ही पसंद करेंगी, शादी तो उन की सुझाई लड़की से ही करनी है, यहां तो वह महज टाइमपास कर रहा है. मैं ने कहा कि अगर उस ने नेहा दीदी के साथ कुछ गलत किया तो मैं उस की मम्मी को ही नहीं, चंडीगढ़ में सारे पड़ोस को उस की करतूत बता दूंगी.

‘‘चौधरी ने कहा कि ऐसा कुछ नहीं होगा और वैसे भी नेहा की शर्त है कि जब तक मैं उस के पापा से शादी की बात नहीं करूंगा वह मुझे हाथ भी नहीं लगाने देगी. शाम गुजारने के लिए उस के साथ कहीं बैठ कर गपशप कर लेता हूं और कुछ नहीं…’’

‘‘और तुम ने उस की बात मान ली?’’ विभा ने बात काटी, ‘‘तुम्हारा फर्ज नहीं बनता था कि तुम मुझे बतातीं यह सब?’’

‘‘नेहा दीदी ने पहले दिन ही यह शर्त रख दी थी कि अगर घर में रहना है तो जैसा वे कहेंगी वैसा ही करना होगा, उन में और चौधरी में फिलहाल रिश्ता घूमनेफिरने तक ही सीमित है, सो मैं चुप ही रही,’’ नन्ही ने सिर झुका कर कहा, ‘‘मैं यह सोच कर चुप रह गई थी कि कुछ दिनों की ही तो बात है, जाने से पहले चौधरी की असलियत दीदी को जरूर बता दूंगी.’’

‘‘मगर तब तक बहुत देर हो जाएगी. विपिन के एक दोस्त का लड़का लंदन से आया हुआ है. उस ने नेहा का रिश्ता मांगा है लेकिन नेहा उस लड़के से मिलने को तैयार ही नहीं हो रही और वह तो कुछ रोज में वापस चला जाएगा,’’ विभा ने हताश स्वर में कहा.

‘‘ऐसी बात है आंटी तो मैं कल जग्गी से मिल कर कहूंगी कि वह फौरन नेहा दीदी को अपनी असलियत बता दे.’’

‘‘जैसे वह तेरी बात मान लेगा,’’ विभा के स्वर में व्यंग्य था.

‘‘माननी पड़ेगी, आंटी. जग्गी की शादी चंडीगढ़ के एक उद्योगपति की बेटी पिंकी से लगभग तय हो गई है, तगड़े दहेज के अलावा जग्गी को उन के बिजनैस में भागीदारी भी मिलेगी. पिंकी मेरी सहेली है, उसी ने मुझे फोन पर बताया यह सब. अब मैं जग्गी को धमकी दे सकती हूं कि तुरंत दीदी की जिंदगी से बाहर निकले वरना मैं पिंकी को बता दूंगी कि वह यहां क्या कर रहा है.’’

‘‘इस सब में तेरी पढ़ाई का हर्ज होगा, नन्ही.’’ ‘‘पढ़ाई तो जितनी हो सकती थी, हो चुकी है, आंटी. फिर इस सब में ज्यादा समय नहीं लगेगा. आप बेफिक्र रहिए, मैं सब संभाल लूंगी,’’ नन्ही ने आश्वासन दिया. नन्ही रोज दोपहर को घर आ जाती थी लेकिन उस दिन वह देर शाम तक नहीं लौटी. विभा ने उस के मोबाइल पर फोन किया.

‘‘मैं ठीक हूं, आंटी, आने में हो सकता है कुछ देर और हो जाए,’’ नन्ही ने थके स्वर में कहा.

‘‘तू है कहां?’’

‘‘मैं जग्गी यानी चौधरी के फ्लैट के बाहर बैठ कर उस का इंतजार कर रही हूं. वह बड़ी देर से ‘बस, अभी आया’ कह रहा है, अब मैं ने उस से कहा है कि आधे घंटे में नहीं आया तो मैं पिंकी को फोन पर जो जी चाहेगा, बता दूंगी.’’

‘‘तुझे उस के फ्लैट पर अकेले नहीं जाना चाहिए, नन्ही.’’

‘‘किसी कौफी शौप में मिलने से घर पर मिलना बेहतर है, आंटी. औफिस में मिलने पर नेहा दीदी को पता चल जाता. आप बेफिक्र रहिए, जग्गी मुझ से बदतमीजी करने की हिम्मत नहीं करेगा.’’

‘‘लेकिन तेरी पढ़ाई कितनी खराब हो रही है, नन्ही?’’

‘‘दीदी की जिंदगी खराब होने देने से थोड़ी पढ़ाई खराब करना बेहतर है, आंटी. रखती हूं, जग्गी आ रहा है शायद.’’ नन्ही नेहा के आने के बाद आई. सो, विभा उस से कुछ पूछ नहीं सकी. अगली सुबह उस का पेपर था, वह जल्दी चली गई. दोपहर को नन्ही के लौटने से पहले विपिन अचानक घर आ गया.

‘‘तुम्हारे लिए एक खुशखबरी है, विभा. नेहा अश्विन के बेटे से मिलने को तैयार हो गई है. उस ने मुझे औफिस में अभी फोन कर के यह बताया. तुम बताओ, कब बुलाऊं उन लोगों को?’’

‘‘कभी भी बुला लो, इस में पूछने की क्या बात है.’’

‘‘बहुत सहज और खुश लग रही हो, विभा,’’ विपिन ने हैरानी से उस की ओर देखा, ‘‘क्या इसलिए कि पराया कांच सही- सलामत लौटाने का समय आ गया है?’’

‘‘नन्ही को पराया कांच मत कहो, विपिन,’’ विभा ने विह्वल स्वर में कहा, ‘‘वह तो हीरा है, अनमोल हीरा, जिस ने हमारे अपने कांच को तड़कने से बचाया है और नन्ही अब पराई नहीं हमारी अपनी है. निखिल मुझे अपने लिए लड़की पसंद करने को कह ही चुका है, सो, मैं ने नन्ही को पसंद कर लिया है.’’ विपिन उसे क्या बताता कि वह और निखिल तो कब से नन्ही को पसंद कर चुके हैं, निखिल के कहने पर ही उस ने नन्ही को घर में रहने को बुलाया था.

अपने रिस्क पर घर से निकलें क्योंकि मोदी नहीं देंगे जान की गारंटी

महाराष्ट्र के लोनावाला में भुशी बांध के पास पिकनिक मनाने गए एक ही परिवार के 17 लोग अचानक आई बाढ़ में बह गए. यह परिवार अपने घर पर हुए शादी समारोह के बाद एक निजी बस किराए पर लेकर यहां घूमने के इरादे से आया था. इसमें कई लोग अन्य शहरों से शादी में शिरकत करने आये हुए थे. यह पूरा ग्रुप बाँध के पास मौजमस्ती में व्यस्त था कि तभी पानी का तेज बहाव आया और पूरे समूह को बहा ले गया. इसमें कई बच्चे थे जिनका कोई पता नहीं चल रहा है. निश्चित ही वे तेज धार के साथ बहुत दूर तक बह गए हैं. पांच लोगों के शव ही गोताखोरों ने अब तक बरामद किये हैं.

जिस परिवार के साथ यह हादसा हुआ उसके एक परिजन ने बताया कि वे यहाँ एक रिश्तेदार की शादी के लिए मुंबई से आए थे. रविवार को पिकनिक के लिए लोनावाला जाने के लिए उन्होंने एक बस किराए पर ली थी. बच्चे बहुत उत्साहित थे. वे भुशी बाँध के पास झरने के पास घूम रहे थे कि अचानक कहीं से बहुत सारा पानी अचानक छोड़ा गया. उन लोगों को सँभालने तक का मौक़ा नहीं मिला और सभी 17 लोग उस तेज बहाव में बह गए. तीन बच्चों के शव काफी दूर एक जलाशय में मिले. दो अन्य लोगों की लाशें भी मिल गयी हैं लेकिन बाकी लोगों का कुछ पता नहीं चल रहा है. शादी का घर मातम का घर बन गया है.

गौरतलब है कि मानसून शुरू होने पर हजारों पर्यटक भुशी और पावना बांध क्षेत्रों में घूमने आते हैं. इस दौरान पर्यटक अनजाने में अज्ञात क्षेत्रों में भी चले जाते हैं क्योंकि वहाँ उन्हें खतरे से आगाह करने, उन्हें रोकने या उनका मार्गदर्शन करने के लिए जिन सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति है, वे कभी वहाँ होते ही नहीं हैं. भुशी बांध के पास जहां यह घटना हुई है उसके आसपास का क्षेत्र भारतीय रेलवे और वन विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है. लोनावला में इससे पहले भी जनवरी 2024 में पावना बांध में चार लोग डूब गए थे. बचाव संगठन वन्यजीव रक्षक के एक अधिकारी के अनुसार इस साल मार्च और मई के बीच मावल तहसील में अलग-अलग जल निकायों से कोई 27 शव बरामद किए जा चुके हैं. बावजूद इसके वहाँ लोगों को खतरे से आगाह करने के लिए कोई सरकारी नुमाइंदा मौजूद नहीं होता है. जिस दिन इस परिवार के साथ यह दर्दनाक हादसा हुआ उस दिन 50 हजार से ज्यादा पर्यटक लोनावला के इस पर्यटक स्थल पर पहुंचे हुए थे.

अभी दो महीने पहले 13 मई, 2024 को मुंबई के घाटकोपर इलाके में तेज आंधी-तूफ़ान और बारिश की वजह से एक विशालकाय होर्डिंग गिरने से 14 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 74 लोग घायल हुए थे. यह होर्डिंग 100 फीट ऊंचा और 250 टन वज़नी था और एक पेट्रोल पंप पर जा गिरा था. इसके पांच टन लोहे के मलबे के नीचे कई गाड़ियां भी दब गई थीं. इस हादसे को जिसने देखा दहल उठा. भारी बारिश के बीच घायलों की चीखें कान के परदे फाड़ रही थीं. रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान पुलिस और फायर ब्रिगेड को काफी दिक्कतें आई, क्योंकि मलबे में दबी गाड़ियों में कितना ईंधन है, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल था. इस वजह से गैस कटर जैसे उपकरणों का इस्तेमाल भी नहीं किया जा सका था.

बीते 10 दिनों में बिहार में पांच पुल ढह चुके हैं. इसमें कई जानें भी गयी हैं. कौन है इन हादसों का जिम्मेदार? क्या कांग्रेस और नेहरू?

कल मथुरा में तीन साल पहले बनाई गयी पानी की टंकी रिमझिम बारिश में ही भरभरा कर गिर गयी. इसमें 11 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं और तीन औरतों की मृत्यु हो गयी है. मथुरा की कृष्ण विहार कॉलोनी में यह ओवरहेड पानी की टंकी तीन साल पहले डेढ़ करोड़ रूपए की लागत से बनाई गयी थी. इस टंकी की क्षमता ढाई लाख लीटर पानी स्टोर करने की थी. इसके गिरने से क्षेत्र के कोई एक दर्जन मकान क्षतिग्रस्त हुए हैं.

कौन जिम्मेदार है इतने घटिया कंस्ट्रक्शन के लिए? क्या कांग्रेस? क्या नेहरू? हर विफलता का ठीकरा कांग्रेस और नेहरू के सिर फोड़ने वाली भारतीय जनता पार्टी और उसके शीर्ष पर बैठे नेता बताएं कि जब देश में पिछले दस साल से उनकी सरकार है तो जनता की जानमाल के नुकसान की जिम्मेदारी किसकी है?

जनता के खून पसीने की कमाई का बड़ा हिस्सा जो इन निर्माण कार्यों के लिए खर्च होता दिखाया जा रहा है, दरअसल उसका बहुत बड़ा हिस्सा भ्रष्ट नेताओं, भ्रष्ट अधिकारियों, भ्रष्ट इंजीनियरों और भ्रष्ट ठेकेदारों के कॉकस के बीच बंट जाता है और जो थोड़ा पैसा बचता है उससे ही ठेकेदार घटिया मैटीरियल जिसमें रेत ज्यादा होती है, से सारे निर्माण कार्य करवा रहे हैं. जिम्मेदार कौन है?

‘ना खाऊंगा ना खाने दूंगा’ का नारा छाती ठोंक ठोंक कर देने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने तीन महीने पहले दिल्ली एयरपोर्ट का टर्मिनल 1 की नयी बिल्डिंग का उदघाटन किया था और दिल्ली में प्री मानसून की पहली ही बारिश में ही इसकी छत का बड़ा हिस्सा ढह गया. जिसके नीचे दब कर एक कैब ड्राइवर की मौत हो गयी और अनेक गाड़ियां बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुईं.

मोदी पर उंगलियां उठीं तो भाजपा वाले टीवी चैनलों पर कहते नजर आये कि यह नहीं बल्कि इसके पीछे वाली बिल्डिंग थी जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी ने किया था. जिसकी छत गिरी वह तो कांग्रेस ने बनाई थी. तो सवाल उठता है कि पिछले दस सालों में अगर इसकी मेंटेनेंस नहीं हुई तो उसका जिम्मेदार कौन है? क्या उसकी जिम्मेदार भी कांग्रेस है?

10 मार्च 2024 को मोदी ने जबलपुर एयरपोर्ट की टर्मिनल बिल्डिंग का वर्चुअल इनोग्रेशन किया था. कुछ ही महीने बाद 27 जून 2024 को इस टर्मिनल की भी छत ढह गयी.

8 सितम्बर 2022 को मोदी ने इंडिया गेट के सामने कर्तव्य पथ का उद्घाटन किया था. 28 जून 2024 को पहली बारिश में पूरा कर्तव्य पथ पानी में डूबा हुआ था.

घटिया इन्फ्रस्त्रुक्टुए के यह एक दो मामले नहीं हैं. 19 जून 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के प्रगति मैदान की टनल का उद्घाटन किया था. 700 करोड़ की लागत से इस टनल को बनाया गया था, मगर एक साल के अंदर ही इसमें भारी सीपेज और वाटर लॉगिंग देखने को मिली. लोग घुटने घुटने पानी में टनल पार करते नजर आये. जब फरवरी 2024 में पीडब्ल्यूडी के एक अधिकारी से इस टनल को रिपेयर करने की बाबत पूछा गया तो उसका कहना था कि इस टनल को रिपेयर नहीं किया जा सकता है, इसे पूरी तरह से ओवरऑल करना पडेगा. यानी हमारे इंजीनियर इतने बेकार हैं कि कोई इमारत या सुरंग यदि क्षतिग्रस्त हो जाए तो वे इसको रिपेयर तक नहीं कर सकते हैं.

मुगलकालीन मजबूत इमारतों को नफरत की निगाह से देखने वाली भाजपा सरकार आखिर जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से यह किस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर देश में खड़ा कर रही है, जो जनता की जान के लिए ही ख़तरा बन रहा है?

22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर का उद्घाटन किया. दुनियाभर में इसकी भव्यता का शोर मचाया गया. 23 जून 2024 को राम मंदिर के वरिष्ठ पुजारी सत्येंद्र दास ने कहा कि मंदिर की छत में ऊपर से पानी लीक कर रहा है. रामलला के सिर पर बारिश का पानी गिर रहा है. बजाय इसके कि अपनी गलती सुधारी जाए, सच सामने लाने के जुर्म में वरिष्ठ पुजारी सत्येंद्र दास को ही वहां से हटा दिया गया.

अयोध्या के सुंदरीकरण की माला जप कर सत्ता की चाशनी चाटने वालों ने अयोध्या को संवारने के नाम पर जो घटिया सामग्री लगा कर सड़कें और इमारतें बनायीं हैं, वह आज आम आदमी की जान के लिए मुसीबत का सबब बन गयी हैं. मानसून की पहली बारिश में ही अयोध्या में जगह जगह सड़कों पर पानी भर गया है. मंदिर तक जाने वाला रामपथ जगह जगह पर धंस चुका है और वहां बड़े बड़े गड्ढे हो गए हैं, जिसमें बारिश का पानी भर गया है. इस मार्ग से होकर निकलना अपनी मौत को दावत देना है. अयोध्या के स्टेशन की भव्य बाउंड्रीवाल जिसका निर्माण अभी कुछ समय पहले हुआ था वह भी पहली बारिश में ढह गयी और पूरे स्टेशन में पानी भर गया.

देश भर में कहीं पानी लीक हो रहा है तो कहीं पेपर लीक हो रहा है. इतनी खोखली इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट भारत के इतिहास में शायद ही कभी किसी सरकार में देखी गयी होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आये दिन कुछ ना कुछ उद्घाटन करते रहते हैं. हर छोटी से छोटी चीज पर उनको अपनी फोटो देखनी होती है. हर बात का उनको क्रेडिट चाहिए होता है लेकिन क्या वो इन सारी विफलताओं की जिम्मेदारी भी लेने को तैयार हैं?

लोकसभा में दो लड़कों की ललकार से घबरा उठे हैं मोदी

लोकसभा में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा करते हुए राहुल गांधी और पहली बार लोकसभा पहुंचे समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने देश के जनमानस की समस्याओं को सदन में उठाते हुए मोदी सरकार के दस साल के कामकाज की बखिया उधेड़ी है उससे प्रधानमंत्री मोदी घबरा उठे हैं.

18वीं लोकसभा में राहुल-अखिलेश, मोदी की भाषा में कहें तो दो लड़कों की जोड़ी के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन और एनडीए सरकार के बीच घमासान शुरू हो चुका है, और यह घमासान अब पांच साल थमने वाला नहीं है. पहली बार मोदी सरकार का सामना एक ऐसे मजबूत विपक्ष से हो रहा है जिसके तीरों की तिलमिलाहट प्रधानमंत्री सहित तमाम भाजपाइयों के चेहरे पर साफ़ देखी जा सकती है.

 

नेता प्रतिपक्ष के रूप में अपने पहले ही भाषण में राहुल गाँधी ने ऐसा गर्दा उड़ाया कि सरकार बौखला गई है. अपने 90 मिनट के भाषण में राहुल पूरी तरह से नियंत्रण में नज़र आए, कहीं भी उन की जबान फिसली नहीं, मोदी सरकार को ठोस सवालों से आहत करने के चलते उन के भाषण के बीच सत्ता पक्ष के सदस्यों को बार-बार खड़े होना पड़ा. राहुल को चेतावनी देने के लिए कई तरह के नियमों का हवाला दिया गया लेकिन मगर उन की बातों की काट किसी के पास नहीं थी. राहुल सदन का सच से सामना करा रहे थे.

राहुल गांधी ने अपने भाषण की शुरुआत हाथ में संविधान की कौपी ले कर की. बीच भाषण में ही उन्होंने भगवान शिव की तस्वीर दिखाते हुए जो टिप्पणी की उस पर सदन में हंगामा हो गया. राहुल ने भगवान शिव की तस्वीर दिखाते हुए कहा कि देश का हिंदू अहिंसा को मानने वाला है, मगर ये जो खुद को हिन्दू कहते हैं वे हर वक्त हिंसा हिंसा और नफरत नफरत फैलाने का काम कर रहे हैं. इस पर मोदी अपनी सीट से उठे और बड़ी चालाकी से राहुल की बात पकड़ते हुए बोले – राहुल जी का ‘पूरे हिंदू समाज को हिंसक कहना ठीक नहीं है. सत्ता पक्ष के लोग भी मोदी के सुर में सुर मिलाने लगे तो इस पर राहुल ने साफ़ किया कि नरेंद्र मोदी पूरा हिन्दू समाज नहीं है, भाजपा पूरा हिंदू समाज नहीं है, आरएसएस पूरा हिंदू समाज नहीं है.

मोदी सरकार और संघ जिस तरह पूरे दस साल देश में हिंदूमुस्लिम के बीच नफरत बढ़ाने के लिए हिंसा और नफरत की राजनीति करते रहे, उस का खुलासा राहुल ने सदन के भीतर पूरी ताकत से किया. उन की तमाम बातें सत्ता पक्ष के सीने में तीर सी चुभी. राहुल गांधी यहीं नहीं रुके उन्होंने मोदी सरकार की तमाम योजनाओं और नीतियों की भी बखिया उधेड़ कर रख दी. सेना की अग्निवीर योजना पर उन्होंने हमला बोला और कहा कि अग्निवीर सैनिक ‘यूज एंड थ्रो’ मजदूर बन गए हैं. इस पर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को उठ कर सरकार का बचाव करना पड़ा.

 

राहुल गांधी ने बताया – एक बारूदी सुरंग से एक अग्निवीर शहीद हुआ. मैं उसे शहीद कह रहा हूं लेकिन भारत सरकार और नरेंद्र मोदी उसे शहीद नहीं कहते, उसे अग्निवीर कहते हैं, उसे पेंशन नहीं मिलेगी. उस घर को मुआवजा नहीं मिलेगा. शहीद का दर्जा नहीं मिलेगा.

उन्होंने कहा – भारत के एक आम जवान को पेंशन मिलेगी लेकिन एक अग्निवीर को जवान नहीं कहा जा सकता. अग्निवीर यूज़ एंड थ्रो मज़दूर हैं. उसे आप छह महीने की ट्रेनिंग देते हैं जिसे दूसरी तरफ़ पांच साल की ट्रेनिंग पाए चीन के जवान के सामने खड़ा कर दिया जाता है.

राहुल ने सरकार पर आरोप लगाया – एक जवान और दूसरे जवान के बीच फूट डाल देते हो. एक को पेंशन मिलेगी, शहीद का दर्जा मिलेगा और दूसरे को न तो पेंशन मिलेगी न ही शहीद का दर्जा मिलेगा. और फिर अपने आप को देश भक्त कहते हो. ये कैसे देश भक्त हैं?

 

राहुल गांधी ने कहा – देश की सेना जानती है, पूरा देश जानता है. अग्निवीर स्कीम, सेना की नहीं पीएमओ की स्कीम है. पूरी सेना जानती है कि स्कीम प्राइम मिनिस्टर का ब्रेन चाइल्ड थी, स्कीम सेना का ब्रेन चाइल्ड नहीं था.

राहुल गांधी ने लोकसभा में नीट केपेपर लीक और मणिपुर का भी सवाल उठाया. मणिपुर हिंसा पर सरकार को घेरते हुए राहुल गांधी ने कहा कि सरकार इस राज्य को भारत का हिस्सा नहीं मानती. प्रधानमंत्री और गृह मंत्री इस पर एक शब्द नहीं कहते जैसे मणिपुर इस देश का अंग ही नहीं है. भाजपा ने मणिपुर को आग में झोंक दिया है. उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी जैसे सरकार के पुराने फैसलों को लेकर भी भाजपा को घेरा.

राहुल गांधी ने किसानों के आंदोलन का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने कहा – सरकार को इतना अहंकार हो गया कि किसानों को आतंकवादी कह दिया. हम किसान आंदोलन में शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए एक मिनट का मौन रखना चाहते थे लेकिन आप ने ये कहते हुए इनकार कर दिया के वे आतंकवादी हैं. सरकार अभी भी उन्हें एमएसपी की कानूनी गारंटी नहीं दे पाई है.

राहुल के तीरों से घायल मोदी सरकार अभी अपने बचाव का मरहम तलाश रही थी कि दूसरे दिन सदन में अखिलेश यादव ने अपने भाषण से रही सही कसर भी पूरी कर दी. उन्होंने तो बातों ही बातों में स्पीकर साहब को भी यह नसीहत दे डाली कि वे सिर्फ सत्ता पक्ष की नहीं बल्कि अपनी बात रखने के लिए विपक्ष को भी पूरा वक़्त देंगे, उस की बातों पर ध्यान देंगे और सदस्यों के निलंबन जैसे काण्ड अब नहीं दोहराए जाएंगे.

अखिलेश ने स्पीकर को सब के साथ बराबरी और निष्पक्ष रहने का संदेश देते हुए यह भी कह दिया कि आप का अंकुश विपक्ष पर तो रहता ही है, हम उम्मीद करेंगे की यह अंकुश सत्ता पक्ष पर भी रहे. उन्होंने मोदी को टारगेट करते हुए व्यंगपूर्ण लहजे में स्पीकर से कहा – अध्यक्ष महोदय आपके इशारे पर सदन चले, इसका उलटा न हो, हम आपके हर न्यायसंगत फैसले के साथ खड़े हैं.

लोकसभा में चर्चा में भाग लेते हुए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर बड़ा सवाल उठाया. वे बोले – कहने को सरकार यह कहती है की यह पांचवी सब से बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई है और जीडीपी के मामले में दुनिया की पांचवी इकोनौमी बन गई है. लेकिन अध्यक्ष महोदय यह सरकार क्यों छुपाती है की हमारी प्रति व्यक्ति आय किस स्थान पर पहुंची है? हम हेंगर इंडेक्स पर कहां खड़े हैं? हैप्पी नेस इंडेक्स पर कहां खड़े हैं? भाजपा सरकार में युवाओं के पास नौकरी नहीं है. क्योंकि सरकार नौकरी देना नहीं चाहती है. इसीलिए लगातार पेपर लीक हो रहे हैं. अखिलेश बोले – यूपी में सभी पेपर लीक हुए हैं. कई ऐसे राज्य जहां कि बच्चे पेपर तो देने गए, लेकिन पेपर लीक हो गया. नीट का पेपर भी लीक हो गया. सरकार पेपर लीक इसलिए करा रही क्योंकि वो नौकरी नहीं देना चाहती. नौकरी देगी तो फिर आरक्षण भी देना पड़ेगा. तो मोदी सरकार न तो देश के नौजवानों को नौकरी देना चाहती है और ना पिछड़े और दलित को आरक्षण.

 

अखिलेश ने ईवीएम पर भी भरोसा ना होने की बात सदन में रखी. वे बोले – मुझे ईवीएम पर भरोसा नहीं है. मैं उत्तर प्रदेश की 80 की 80 सीटों पर भी जीत हासिल कर लूं तब भी ईवीएम पर भरोसा नहीं होगा. हम ईवीएम से जीत कर ईवीएम हटाने का काम करेंगे. ईवीएम का मुद्दा न मरा है न खतम हुआ है. जब तक ईवीएम नहीं हटेगी हम समाजवादी लोग इस के लिए लड़ते रहेंगे. जब भी इंडिया गठबंधन की सरकार सत्ता में आएगी हम अग्निवीर जैसी योजना को भी हटाएंगे.

अखिलेश यादव ने भाजपा पर तंज कस्ते हुए कहा – ऐसा कहा गया कि 400 पार. मैं देश की समझदार जनता को धन्यवाद दूंगा. अवाम ने तोड़ दिया हुकूमत का गुरूर. दरबार तो लगा है पर बड़ा गमगीन बड़ा बेनूर. पहली बार ऐसा लग रहा है कि हारी हुई सरकार सदन में विराजमान है. जनता कह रही है चलने वाली नहीं है सरकार. अब यहां मनमर्जी नहीं, जनमर्जी चलेगी. संसद में अखिलेश का शायराना अंदाज दिखा. अखिलेश ने अपने जुदा अंदाज में कहा कि कुछ बातें काल और समय से परे होती हैं इसलिए एक शेर याद आ गया जो तब सही था और अब और सही साबित हो रहा है –
हजूर ए आला आज खामोश बैठे हैं इसी गम में
महफिल लूट ले गया कोई और जबकि सजाई हम ने

अखिलेश ने अयोध्या में समाजवादी पार्टी की जीत का मुद्दा भी उठाया. उन्होंने कहा- हम बचपन से सुनते आए हैं – होइहि सोइ जो राम रचि राखा. अयोध्या की जीत ने इसे साबित कर दिया. जो कहते थे हम उन को लाए हैं, उन्होंने उन्हें हरा दिया.

अखिलेश के पूरे भाषण के दौरान अध्यक्ष महोदय ओम बिरला का चेहरा लटका रहा. जैसे उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि जो सच अखिलेश के मुंह से निकल रहा है उसे कैसे रोकें, कैसे टोकें और कैसे मोदी की इज्जत बचाएं.

 

उधर अखिलेश एक के बाद एक तीर छोड़ रहे थे. वे बोले रहे थे – पूरा इंडिया समझ गया है कि इस चुनाव में इंडिया गठबंधन की नैतिक जीत हुई है. 2024 का परिणाम हम इंडिया वालों के लिए जिम्मेदारी से भरा पैगाम है. अगर 15 अगस्त 1947 उपनिवेश राजनीति से आजादी का दिन था तो 4 जून 2024 का दिन देश के लिए साम्प्रदायिक राजनीति से आजादी का दिन रहा. ये सांप्रदायिक राजनीति का अंत और सामुदायिक राजनीति की शुरुआत है.

अखिलेश ने लोकसभा में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का पीछा भी नहीं छोड़ा और मोदी के साथ योगी को भी खूब लपेटा. अखिलेश ने कहा – उत्तर प्रदेश की जनता ने दो बार भाजपा की सरकार बनाई मगर उसी उत्तर प्रदेश के साथ कितना बड़ा भेदभाव हुआ. जब प्रधानमंत्री एयरफोर्स के सब से भारी भरकम हवाई जहाज से उतरे थे सड़क पर, वो अलग बात है की उस प्रदेश के मुख्यमंत्री उनके साथ नहीं बैठ पाए थे. लेकिन वो एक्सप्रेस वे जो बना था और आज भी जो उत्तर प्रदेश में बन रहे हैं वो उत्तर प्रदेश के बजट से बन रहे हैं, दिल्ली की तरफ से कोई एक्सप्रेस वे अभी नहीं दिया गया है.

उन्होंने न सिर्फ इंफ्रास्ट्रक्चर में भेदभाव पर सवाल उठाया बल्कि यह भी कहने से नहीं चुके कि प्रधानमंत्री मोदी ने जो बड़े पैमाने पर गाँव गोद लिए थे उन की हालत आज भी ज्यों की त्यों है. अखिलेश बोले – सोचिये अगर देश के सब से बड़ा सांसद कोई गांव गोद ले और उस गांव की तस्वीर दस साल में भी ना बदले तो कितने शर्म की बात है. अखिलेश ने गांव और गाँव के लोगों के कष्टों का जिक्र करते हुए जो बातें कहीं वे वाकई बहुत गंभीर हैं, उन्होंने बहुत भावुक लहजे में कहा कि टूटी सड़कें, कच्ची पगडंडियां, टूटे हुए ईंट के खड़ंजे, बदहाल हैंडपंप, खाली पड़े रसोई गैस के सिलिंडर, अंधाधुंध बिजली कटौती जिसके कारण सूखे खेत और मजदूरी की कभी ना ख़त्म होने वाली तलाश आखिर कब ख़त्म होगी. इन्होंने कहा कि हम किसानों की आय दोगुनी कर देंगे, आज पूरे देश का किसान खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है.

भाजपा के स्मार्ट सिटी के झूठे सपने की याद दिलाते हुए अखिलेश ने मोदी को निशाने पर लेते हुए पूछा – जिस गांव को गोद लिया था उसका नाम भी किसी को याद है कि नहीं?

फिर खुद ही जवाब देते हुए बोले – मैं नाम पूछ कर किसी को शर्मिन्दा नहीं करूंगा. क्योंकि अगर नाम याद है तो यह और बुरी बात है कि आपने नाम याद होने के बावजूद भी कुछ नहीं किया. जिसे गोद लिया जाता है उसे अनाथ बना कर छोड़ देना अच्छी बात नहीं है.

अखिलेश की इन बातों पर सदन में मोदी सरकार शेम शेम के स्वर उभरे और भाजपाइयों के चेहरे सिकुड़ गए. दो लड़कों की जोड़ी ने जिस तरह दो दिन सदन के भीतर मोदी सरकार की बखिया उधेड़ी इससे मोदी तिलमिलाए तो बहुत मगर कहते हैं कि रस्सी जल गयी मगर बल नहीं गया. कुछ इसी अंदाज में जब मंगलवार को प्रधानमंत्री मोदी सभा को सम्बोधित करने के लिए खड़े हुए तो उन्होंने एक बार फिर राहुल और अखिलेश को बच्चा और उनकी बातों को बाल-बुद्धि की बातें कह कर देश की मूल समस्याओं से जनता का ध्यान हटाने और सदन के अंदर साम्प्रदायिक बातें कर नफरती बीज रोपने की कोशिश की.

लेकिन जैसे ही मोदी ने राहुल और कांग्रेस पर छींटाकशी शुरू की विपक्षी सांसदों ने जोरदार हंगामा कर दिया. कुछ देर तो मोदी ने अपनी बात रखी, लेकिन विपक्ष की जबरदस्त नारेबाजी के चले अपना भाषण रोक कर सीट पर बैठ गए. हालांकि स्पीकर ने विपक्ष को शांत रहने और मोदी को भाषण शुरू करने को कहा तो मोदी फिर उसी टपोरीगिरी के साथ राहुल गांधी और कांग्रेस पर निशाना साधते रहे. मोदी ने कहा -1984 के चुनावों को याद कीजिए. तब से 10 लोकसभा चुनाव हो चुके हैं. तब से कांग्रेस 250 के आंकड़े को छू नहीं पाई है. इस बार 99 के चक्कर में फंस गए हैं. मुझे एक किस्सा याद आता है. एक बच्चा 99% मार्क्स ले कर घूम रहा था. लोगों की वाहवाही ले रहा था. टीचर ने कहा कि ये 100 से 99 नंबर नहीं लाया, 543 में से लाया है.

फिर प्रधानमंत्री बीच में ही फिल्म शोले की मौसी का किरदार भी ले आये. वे कांग्रेस को नीचा दिखाने के लिए मौसी और जय (अमिताभ बच्चन) के बीच के संवाद बोलने लगे. बोले – तीसरी बार ही तो हारे हैं मौसी…लेकिन मौसी यह मारेल विक्ट्री तो है न.
उन्होंने कहा कि 13 राज्यों में शून्य सीटें आई हैं, लेकिन हीरो तो हैं न. अरे पार्टी की लुटिया तो डुबोई है….अरे मौसी पार्टी अभी सांसें तो ले रही है न.

इस तरह की बेहूदा बातें इतने बड़े देश के प्रधानमंत्री पद पर बैठने वाले व्यक्ति को शोभा नहीं देतीं. शायद प्रधानमंत्री मोदी के पास अपने दस सालों की उपलब्धि के नाम पर बताने को शायद कुछ ख़ास था ही नहीं इसीलिए उनके भाषण का अधिकाँश हिस्सा बस राहुल गांधी के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा. काउंटर करने की कोशिश में बड़ी ओछी और घटिया बातें प्रधानमंत्री के मुंह से निकलती रही. ऐसी बातें जो एक महादेश के प्रधानमंत्री पद की गरिमा को मिट्टी में मिला रही थीं. उन्होंने कांग्रेस के लिए कहा – लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के लिए इस देश की जनता ने जनादेश दिया है. ये जनादेश है – वहीं बैठो. विपक्ष में ही बैठो और तर्क खत्म हो जाए तो चीखते रहो चिल्लाते रहो. उन्होंने राहुल पर तंज कसते हुए कहा – आजकल बच्चे का मन बहलाने का काम चल रहा है और कांग्रेस के लोग, उनका इकोसिस्टम ये मन बहलाने का काम कर रहा है. उन्होंने कांग्रेस को परजीवी की संज्ञा भी दी. बोले – अब कांग्रेस पार्टी 2024 से एक परजीवी कांग्रेस के रूप में जानी जाएगी. 2024 से जो कांग्रेस है, वो परजीवी कांग्रेस है और परजीवी वो होता है जो जिस शरीर के साथ रहता है, उसी को ही खाता है. कांग्रेस भी जिस पार्टी के साथ गठबंधन करती है, उसी के वोट खा जाती है और अपनी सहयोगी पार्टी की कीमत पर वो फलती-फूलती है और इसीलिए कांग्रेस, परजीवी कांग्रेस बन चुकी है.

साफ़ था मोदी राहुल गांधी के बढ़ते कद से इसकदर डरे हुए हैं कि सदन के भीतर वे प्रधानमंत्री पद की गरिमा तक नहीं रख पाए. उनके पूरे भाषण के दौरान सदन में हंगामा मचता रहा. शेम शेम और प्रधानमंत्री शर्म करो… झूठ बोले कौवा काटे… चोर चोर….. जैसे नारों से पूरा सदन गूंजता रहा. हाँ, स्पीकर साहब जरूर पूरे भाषण के दौरान होंठों पर मुस्कान चिपकाये प्रधानमंत्री के सपोर्ट में नजर आये, यही नहीं उन्होंने समय खत्म होने के बाद भी उनको एक्सट्रा समय बोलने के लिए दिया. लेकिन मोदी की वही घिसे पिटे जुमले जो वे पिछले दस साल से जनता को गुमराह करने के लिए बोलते आये हैं, उस के अलावा कोई अन्य ठोस बात सदन के पटल पर नहीं रख पाए.

हिंदुत्व हो या दूसरे मुद्दे , नरेंद्र मोदी पर भारी पड़ते राहुल गांधी

यह चमत्कार कोई रातोंरात नहीं हुआ है , बल्कि 4 जून के जनता के फैसले की देन है कि संसद में अब प्रवचन नहीं काम की बातें और बहसें होनी चाहिए . पिछले दो दिन जनता की यह इच्छा पूरी होती दिखाई भी दी . कल जब राहुल गांधी ने पहली बार व हैसियत नेता प्रतिपक्ष सत्ता पक्ष की क्लास ली तो हर किसी ने दिलचस्पी से उन्हें सुना.

 

चुनाव प्रचार के दौरान धर्म और हिंदुत्व पर सीधे बोलने से बचते रहे राहुल गांधी ने अपने पहले ही भाषण में इन संवेदनशील मुद्दों को उठाते जनता के फैसले को विस्तार देते जो कहा वह हैरत में डाल देने वाला है . हिंदुत्व पर उन्होंने जो कहा पहले उस पर गौर करें –
भाजपा नेता हिंदू नहीं हैं क्योंकि वे चौबीसों घंटे हिंसा और नफरत फैलाने में लगे हुए हैं . हिंदू कभी हिंसा नहीं कर सकता कभी नफरत डर नहीं फैला सकता .
– सत्तारूढ़ पार्टी पूरी तरह हिंदुत्व का प्रतिनिधितित्व नहीं करती है . मोदी जी सत्तारूढ़ दल या आरएसएस पूरे हिंदू समाज का प्रतिनिधित्व नहीं करते .

राहुल गांधी ने दरअसल में भाजपा की दुखती रग पर हाथ रखा क्योंकि यह सच भी है कि सभी हिंदू उसे वोट करते तो कोई वजह नहीं है कि वह नारे के मुताबिक 370 और एनडीए 400 पार न होता . दलितों पिछड़ों और आदिवासियों ने भाजपा से दूरी बनाए रखी जबकि सवर्णों यानी भाजपा के कोर वोटर ने उसे वोट किया .ये बातें 4 जून के बाद से लगातार विश्लेषण में होती भी रहीं थीं कि अल्पसंख्यकों खासतौर से मुसलमानों ने तो भाजपा को वोट दिया ही नहीं लेकिन दूसरे हिंदू तबकों ने भी उस से परहेज किया जिस के चलते भाजपा एतिहासिक और उल्लेखनीय दुर्गति का शिकार हुई .

इस नतीजे और विश्लेषण को संसद में दोहरा कर राहुल ने भाजपा को उस की हैसियत याद दिला दी है . हालांकि हिन्दू हिंसक नहीं है इन शब्दों पर नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के तमाम छोटेबड़े नेताओं सहित भगवा गमछाधारियों ने भी बात का बतंगड बनाने की गरज से इसे हिंदू समाज का अपमान बताते उन से माफी की मांग करते रहे लेकिन चूंकि बात में दम नहीं था इसलिए हिंदूवादियों की यह मुहिम फुस्स हो कर रह गई .आम लोगों ने इस कथित संवेदनशील और बकौल मोदी जी गंभीर विषय पर कान नहीं दिए अब भला कौन हिंदू यह कहता कि नहीं हम तो हिंसक हैं . .

 

इस बयान की प्रतिक्रिया में गौर करने वाली और भी बातें दिलचस्प हैं जिन में से प्रमुख ये हैं कि किसी भाजपा नेता ने यह नहीं कहा कि हम नफरत डर और हिंसा नहीं फैलाते . दूसरे एनडीए के भी किसी घटक दल को यह हिंदू समाज का अपमान नहीं लगा.

हिंदू कौन और हिंदुत्व क्या की बहस कोई नई नहीं है जिस में आज तक कुछ तय नहीं हो पाया . हर बार हिंदू का मतलब ब्राह्मणत्व में सिमट कर रह जाता है . इसे समझने के लिए बहुत ज्यादा पीछे जाने की जरूरत भी नहीं 4 जून के नतीजों के बाद कुछ हिंदुओं ने जम कर कुछ उन हिंदुओं को कोसा था जिन्होंने भाजपा के बजाय इंडिया गठबंधन को वोट किया था . अयोध्यावासियों का तो जीना मुहाल कर दिया गया था जहां से सपा के दलित अवधेश पासी ने भाजपा के ठाकुर लल्लू सिंह को शिकस्त दे दी थी.

मुट्ठी भर सवर्ण हिंदुओं को यह हक किस ने दिया कि वे 85 फीसदी उन हिंदुओं को गालियां दें गद्दार कहें जिन्होंने भाजपा के धर्म और मंदिर नीति को नकार दिया . यही बात संसद में राहुल गांधी ने भाजपा को याद दिला दी तो पूरे दक्षिणापंथी सिरे से तिलमिला उठे लेकिन अब राहुल को सुनना उन की मजबूरी है . इधर राहुल भी पूरी तयारी से हमलावर होते हैं .
एक जुलाई को जब वे हिंदुत्व और हिंदू के अहिंसक होने पर बोल रहे थे तब उन के हाथ में शिव, ईसा मसीह और गुरुनानक की भी तस्वीरें थीं . बकौल राहुल गांधी इन तीनों का भी संदेश यह है कि डरो मत और डराओ भी मत. सभी धर्म और हमारे महापुरुष अहिंसा और अभय मुद्रा बात करते हैं .लेकिन जो खुद को हिंदू कहते हैं वे चौबीसों घंटे हिंसाहिंसा नफरतनफरत करते हैं .

 

हिंदू धर्म में ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता विष्णु को पालक और शंकर को संहारक माना गया है . इस लिहाज से तो राहुल के हाथ में तस्वीर विष्णु की होनी चाहिए थी लेकिन उन्होंने अद्भुत तरीके से शिव को शांति का प्रतीक बताया तो अच्छे धर्माचार्यों को भी नहीं सूझ रहा कि इस बात को कैसे गलत साबित करें . असल में 22 जनवरी को अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के वक्त शैवों और वैष्णवों के जो मतभेद उजागर हुए थे वे अभी खत्म नहीं हुए हैं . क्योंकि वे पहले भी कभी खत्म नहीं हुए थे . फौरी तौर पर विष्णु को सवर्णों का और शिव को सभी को भगवान या आराध्य माना जाता है . दलित झुग्गी बस्तियों में राम या कृष्ण का मंदिर कहीं नहीं मिलता . लेकिन शंकर मंदिर हर कहीं मिल जाते हैं और अछूत कहे जाने वाले कल के शूद्र और आज के दलित शंकर मंदिरों में जाने से डरते सकुचाते नहीं लेकिन विष्णु अवतार राम और कृष्ण के मंदिरों में जाने से उन्हें हिचक होती है .

ये कुछ हिंदू जो नफरत और हिंसा के हिमायती राहुल की नजर में हैं वे बेचारे सकते में हैं कि अब क्या करें बंदा तो अष्टावक्र और नचिकेता की तरह कान काटे डाल रहा है . कुछ बोलो तो दिक्कत और न बोलो तो उस से भी बड़ी दिक्कत अगर राहुल गांधी ने खड़ी कर दी है वह भी संसद में तो अब क्या करें यह सवाल भगवा गेंग के सामने मुंह बाए खड़ा है . उन का धार्मिक ज्ञान कथाओं कीर्तनो और दान दक्षिणा तक ही सीमित रहा है .धार्मिक कार्यों के लिए चंदा जमा करना तो उनका सबसे प्रिय काम रहा है . हिंदुत्व का मतलब उन्हें ब्राह्मण और पंडित ही समझाया जाता रहा है .

राहुल सीधे इस धंधे पर बोलते तो जरूर बवाल खड़ा हो जाता लेकिन इस बार उन्होंने अक्ल और चतुराई से काम लिया तर्क भी किए और अपनी बात पूरे आत्मविश्वास से कही . उलट इसके नरेंद्र मोदी का कौन्फिडेंस साफसाफ लड़खड़ाया हुआ दिख रहा है . क्योंकि संसद अब पहले की तरह भगवा सांसदों से भरी नहीं पड़ी है . बल्कि उस में सफेद , नीला , हरा और लाल रंग भी शामिल है . और यही लोकतंत्र की खूबी और खूबसूरती भी है कि कोई एक न रहे और कोई एक ही न दिखे बल्कि सभी दिखे और सभी रहें . चूंकि यह फैसला जनता का है तो कोई क्या कर लेगा .

Dating में ‘Cookie-Jarring’ से तभी बचेंगे जब इसके बारे में जानेंगे

डेटिंग कई टाइप्स की होती है, इनमे से एक है कुकी जारिंग। इसका मतलब है कि आपका अपना एक पार्टनर होते हुए भी कई अन्य पार्टनर के साथ डेटिंग करके टाइम स्पेंड करना। ऐसे लोग अपने पहले पार्टनर को यही कहते हैं कि वही उनकी पहली और आखिरी पसंद है. ऐसे लोग अपने रिलेशनशिप को आगे तक ले जाने की बातें तो बहुत करते है. लेकिन सच्चाई यह है कि वह एक ही टाइम में कई लोगों को डेट कर रहे होते है और उनके साथ खुद को भी धोखा देते रहते है.

आशा शर्मा का इस बारें में कहना है दरअसल, जिस तरह एक जार में बहुत सारी कुकीज़ एक साथ रख देने पर वो आपस में एक दूसरे के साथ फंस जाती है उसी तरह एक ही टाइम पर कई लोगों के साथ रिलेशन रखने पर बहुत से लोग एक साथ फंस जाते हैं जिसका नुक्सान सिर्फ फंसे हुए लोगों को ही नहीं होता बल्कि फंसाने वाले को भी होता है आइये जाने कैसे-

टाइम वेस्ट है कुकी जारिंग

अगर आप एक ही समय में कई पार्टनर यानि 4 लड़कियों के साथ डेटिंग कर रहे हैं तो यह समय की बर्बादी ही है क्यूंकि जिस समय आप फोन पर एक से बात कर रहे है और दूसरी का फोन आ गया. बार बार मिलाने पर भी फोन का बिजी जाना उनके मन में शक पैदा करेगा फिर सिचुएशन को संभालना मुश्किल हो जायेगा.

पैसा वेस्ट है कुकी जारिंग

आजकल किसी के साथ डेटिंग करना भी सस्ता सौदा नहीं है. एक बार की डेट में ही 1000 – 500 खर्च हो जाना आम बात है. अगर आप हिसाब लगाने बैठेंगे तो पता चलेगा की महीनें में कितना पैसा आपने इस चीज पर खर्च कर दिया है. लेकिन रोना तो इस बात का है की खर्च करने के बाद भी ना आप खुश है न आपका कोई पार्टनर.

आ बैल मुझे मार

जैसे ही पार्टनर को शक होगा की इस रिलेशन में कुछ गड़बड़ है वह आपके पीछे पड़ जाएगी। आप सच में कहीं किसी जरुरी काम से भी गए होंगे तो उसे लगेगा की आप झूठ बोल रहे हैं. हर वक्त के सवाल जवाब से आप खुद ही थक जायेंगे और अगर किसी ने आपके पेरेंट्स से शिकायत कर दी तो वह प्रेशर भी झेलो या फिर वह आपको ब्लैकमेल भी कर सकती है इसलिए ऐसे चक्कर में पढ़ना ही क्यों।

लास्ट में दोनों हाथ खाली

अपना इतना ऐसा और समय लगाने के बाद भी आप अपने इतने अफेयर की बात छुपा नहीं पाएंगे और जब राज खुलेगा तो एक एक करके सभी पार्टनर छोड़ जायेंगे। ऐसे में आपके हाथ निराशा के आलावा कुछ नहीं बचेगा.

इमेज ख़राब

कुकी जारिंग करके आप पर यही बात लागू होती है की खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोडा बारहा आने. यानि कि अंत में हाथ में एक भी रीलेशन नहीं बचा और सब दोस्तों और कॉलेज में इमेज ख़राब हो गए सो अलग. अब शायद ही कोई लड़की आप पर विश्वास करने की गलती करें.

कैसे पहचाने आपका पार्टनर कर रहा है कुकी जारिंग‘

  • पार्टनर आपसे कटा कटा रहता है मिलने के लिए समय न होने के बहाने बनाने लगे.
  • कोई भी वादा करने या कमेटेड होने से कतराने लगे तो समझ जाये दाल में कुछ काला है.
  • इस रिलेशनशिप को आगे ले जाने के लिए अगर प्रयास एकतरफा हैं तो समझ लीजिये प्यार भी एकतरफा होगा.अगर
  • पार्टनर हमेशा गुड़ी गुडी इमेज बनाकर रखता है और कभी किसी बात पर पर अनबन नहीं करता आपको पाटकर रखता है तो इतनी मिठास कहीं डायबिटीज ही न कर दे.
  • आपके फोन या मेसेजेस को अक्सर इग्नोर करने लगे तो यह खतरे की घंटी भी हो सकती है.
    अगर आपके स्पेशल डे को स्पेशल बनाने के लिए भी वह कुछ प्लान न कर करें, तो इसका मतलब साफ़ है के उसके लिए आपसे भी ज्यादा कोई और स्पेशल हो चुका है.

 

IPC की जगह BNS , हिंदू राष्ट्र की थी तैयारी, कानून लागू करने में दिख रही लाचारी

ऊपर वाले की न्याय व्यवस्था पर यकीन करने वाली संस्कृति मानने वालों ने भारतीय न्याय संहिता बीएनएस के नाम से जो नए कानून बनाए हैं उन में नया कुछ नहीं है.एक जुलाई से 3 आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता लागू हो गए हैं.

 

Gavel And Scales Of Justice and National flag of India

इंडियन पैनल कोड आईपीसी यानि भारतीय दंड संहिता की जगह पर बीएनएस भारतीय न्याय संहिता नाम दिया गया है. यह कानून धार्मिक तानाशाही वाले दिखते हैं इन में तर्क नहीं है. इसलिए जनता को नए कानूनों में कोई बदलाव नहीं दिखता है. भाजपा केवल नए कानूनों को लागू कर के अपने गाल बजाने का काम कर रही है.
भारतीय जनता पार्टी की पिछली सरकार हर जगह पर भारतीयता दिखाने की होड़ में गड़बड़ कर बैठी है. जब कांग्रेस ने इंडिया ब्लौक बनाया तो भाजपा को ‘इंडिया’ शब्द से ही चिढ़ हो गई. यह चिढ़ इतनी बढ़ गई कि भाजपा की केंद्र सरकार ने देश का नाम ‘इंडिया’ बदल कर भारत रखने को आदेश जारी कर दिया. ऐसा लगा कि नोट अब फिर से छापने पड़ेंगे. रिजर्व बैंक औफ इंडिया की जगह पर रिजर्व बैंक औफ भारत लिखना होगा. कुछ दिन में यह मुद्दा ठंडा पड गया.

With hands in back

 

पौराणिक कथाओं जैसे हैं कानून ?

भाजपा पौराणिक कथाओं के सिद्वांतों पर चलती है. जहां हर अपराध के पीछे पिछले जन्म का राज जुड़ा होता है. राजा दशरथ ने जब श्रवण कुमार की हत्या की तो राजा दशरथ को सजा नहीं मिली. श्रवण कुमार की हत्या की वजह उन के मातापिता के कर्मो को माना गया.
त्रेता युग में शांतनु नाम के एक ऋषि थे. उन की पत्नी का नाम ज्ञानवंती था. उन दोनों के कोई संतान नहीं थी. एक दिन ऋषि और उन की पत्नी घर के आंगन में बैठे थे तभी वहां नारद प्रकट हुए. दोनों पति पत्नी ने नारद की खूब आवभगत और सेवा की. उन की सेवा से प्रसन्न हो कर नारद ने ज्ञानवंती को आशीर्वाद दिए पुत्रवती भव. यह सुन कर ज्ञानवंती ने पूछा की ‘ऋषि क्या तुम्हारा तीसरा आशीर्वाद भी सफल होगा?’
इस पर नारदजी ने कहा की है ज्ञानवती ऋषि के कहे हुए शब्द कभी मिथ्या नहीं होते लेकिन मेरी एक शर्त है तुम्हें पुत्र प्राप्त करने के लिए दोनों को नैमिषारण्य वन में वर्ष तक ब्रह्मा की कठोर तपस्या करनी पड़ेगी. तब ऋषि और उन की पत्नी ने नारद के बताए अनुसार नैमिषारण्य वन में जा कर ब्रह्मा की कठोर तपस्या की. उन की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें दर्शन दिए और वर मांगने को कहा.
शांतनु बोले ‘मुझे पुत्रवान होने का वर दो.’ तब ब्रह्मा ने उन्हें कहा कि ‘पुत्र अवश्य प्राप्त होगा लेकिन मेरी एक शर्त है कि तुम्हारे घर में पुत्र होने पर तुम दोनों की नेत्र ज्योति चली जाएगी’. इस पर शांतनु ने कहा कि ‘क्या हुआ कि यदि मेरी नेत्र ज्योति चली जाएगी. मैं पुत्रवान तो कहलाऊंगा लोग मुझे नपुंसक तो नहीं कहेंगे. मुझे आप की सभी शर्तें मंजूर है. इस पर ब्रह्मा ने कहा कि ‘मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि तुम्हें पुत्र प्राप्ति होगी और यह भी आशीर्वाद देता हूं कि तुम्हारे इस पुत्र का नाम संसार में युगोंयुगों तक याद किया जाएगा.’
बाद में शांतनु के पुत्र होने पर दोनों मातापिता की नेत्र ज्योति चली गई और वो अंधे हो गए. उस बालक का नाम श्रवण कुमार रखा गया. श्रवण कुमार अपने मातापिता को कंधे पर ढो कर ले जा रहा था. उसी समय उन को प्यास लगी. श्रवण कुमार नदी में पानी लेने चला गया. गढे को नदी में डुबाया तो उस से निकली आवाज को सुन कर शिकार करने निकले दशरथ को लगा कि कोई जानवर पानी पी रहा है. उस को मारने के लिए शब्दवेदी बाण चलाया, जो श्रवण को लगा और वह मर गया.
दशरथ ने यह उस के मातापिता को बताई तो उन्होने श्राप दे दिया कि इसी तरह से तुम को भी पुत्र विछोह में प्राण त्यागने होंगे. भाजपा जिन पौराणिक कथाओं को मानती है वहां न्याय इसी तरह का होता था. इसी तरह जब सूर्पणखां ने राम के साथ प्रणय निवेदन किया तो गुस्से में लक्ष्मण ने उस की नाक काट कर उसे कुरूप बना दिया. उन को कोई दंड नहीं दिया गया. इंद्र ने गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या के साथ छल किया तो दंड इंद्र की जगह अहिल्या को पत्थर बना कर दिया गया. सालोंसाल उस ने इंद्र के गुनाहों का दंड भुगता. विचाराधीन कैदी भी अहिल्या की तरह सालों से रिहा होने की उम्मीद में सजा भुगत रहे हैं.

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खत्म हो रिमांड और विचाराधीन मुकदमें

आज भी जेल में विचाराधीन कैदी पुलिस के किए की सजा भुगत रहे हैं. भारत में विचाराधीन कैदियों की संख्या 2 लाख 78 हजार है. 5 करोड़ से अधिक मुकदमे सुनवाई की राह देख रहे हैं. ऐसे में कानून ऐसा बने कि जेल में तभी किसी को भेजा जाए जब वह जमानत की राशि न जमा कर सके या फिर कोर्ट उस को सजा सुना दे. केवल आरोपी बना कर जेल में न रखा जाए. नए कानून इस तरह के सुधारों का पूरी तरह से अभाव है.2019 से 2024 की भाजपा सरकार अपने बहुमत में थी. उसे हर काम में भारतीयता को दिखाने की होड़ लगी थी. इसी होड़ में आईपीसी को बदल कर बीएनएस कर दिया गया. नए कानूनों में नया कुछ भी नहीं है जिस से लोगों को राहत मिल सके. आमतौर पर लोगों की सब से बड़ी दिक्कत यह होती है कि पुलिस आरोपी किसी को रिमांड पर ले सकती है. इस के बाद उसे विचाराधीन कैदी के रूप में सालोंसाल जेल में रख सकती है. आसानी से जमानत नहीं मिलती है. नए कानून में इस को ले कर कोई सुधार नहीं किया गया है.

पहले केवल पुलिस को केवल 15 दिन की पुलिस रिमांड दी जा सकती थी. लेकिन अब 60 या 90 दिन तक दी जा सकती है. केस का ट्रायल शुरू होने से पहले इतनी लंबी पुलिस रिमांड सही नहीं है. नए कानून में पुलिस 90 दिन में 15 दिन की रिमांड ले सकती है.
असल में पुलिस को रिमांड में लेने की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए. हर किसी को जमानत का अधिकार होना चाहिए. कोई भी धारा गैर जमानतीय नहीं होनी चाहिए. जब तक अदालत अपराध सिद्व न कर दे तब तक उसे जेल नहीं भेजना चाहिए. जमानत देते समय जमानत राशि अपराध की प्रवत्ति के हिसाब से कम ज्यादा हो सकती है.
जो जमानत न भर सके उसे जेल भेज देना चाहिए. जमानत की अधिकतम 5 करोड़ तक कर देनी चाहिए. जब तक किसी पर आरोप सिद्व नहीं हो जाता तब तक उसे अपराधी समझ कर जेल नहीं भेजा जाना चाहिए. जनता को लग रहा था कि नए कानून में कुछ ऐसे सुधार होंगे जिस से विचाराधीन कैदियों की संख्या कम हो सकेगी. अदालतों में मुकदमों का बोझ कम हो सकेगा.

कानून में है खांमियां

नए कानून बनाने वाला यह विधेयक पिछले साल संसद के दोनों सदनों में ध्वनिमत से पारित किया गया था. इस पर बहस भी नहीं हो पाई थी. यह कानून बहुत जल्दी में तैयार किए गए थे, जिस की वजह से इन के औचित्य पर सवाल उठ रहे हैं. इस विधेयक को दोनों सदनों से पास करते समय सिर्फ 5 घंटे की बहस की गई थी और ये वो समय था जब संसद से विपक्ष के 140 से अधिक सांसद निलंबित कर दिए गए थे. कानून तब सही बनते जब उस पर संसद में मुकम्मल बहस होती. 1 जुलाई 2024 से नए कानून देश में लागू हो गए हैं जबकि कई गैर बीजेपी शासित राज्यों ने इस कानून का विरोध किया है. केंद्र सरकार के अधिकारियों ने कहा कि राज्य सरकारें भारतीय सुरक्षा संहिता में अपनी ओर से संशोधन करने को स्वतंत्र हैं.
भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की जगह ले चुके हैं. नए भारतीय न्याय संहिता में नए अपराधों को शामिल गया है. इन में शादी का वादा कर धोखा देने के मामले में 10 साल तक की जेल. नस्ल, जाति समुदाय, लिंग के आधार पर मौब लिंचिंग के मामले में आजीवन कारावास की सजा, छिनैती के लिए 3 साल तक की जेल का प्रावधान है. यूएपीए जैसे आतंकवाद-रोधी कानूनों को भी इस में शामिल किया गया है.
व्याभिचार और धारा 377, जिस का इस्तेमाल समलैंगिक यौन संबंधों पर मुकदमा चलाने के लिए किया जाता था, इसे अब हटा दिया गया है. कर्नाटक सरकार ने इस पर आपत्ति जताई है, उन का कहना है कि 377 को पूरी तरह हटाना सही नहीं है, क्योंकि इस का इस्तेमाल अप्राकृतिक सैक्स के अपराधों में किया जाता रहा है.

आपत्तियों को नहीं सुना गया

अब सिर्फ मौत की सजा पाए दोषी ही दया याचिका दाखिल कर सकते हैं. पहले एनजीओ या सिविल सोसाइटी ग्रुप भी दोषियों की ओर से दया याचिका दायर कर देते थे. विपक्ष शासित राज्यों के 2 मुख्यमंत्रियों पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु के एम के स्टालिन ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिख कर कानूनों को लागू न करने की मांग की थी. तमिलनाडु और कर्नाटक ने इस कानून के नाम पर भी आपत्ति जताई थी कि कर्नाटक और तमिलनाडु का कहना था कि संविधान के अनुच्छेद 348 में कहा गया है कि संसद में पेश किए जाने वाले कानून अंगरेजी में होने चाहिए.

कानून का विरोध करने वालों की राय यह है कि जब तक कानून मंत्री के साथसाथ देश के सभी प्रमुख विपक्षी नेताओं के साथ इन कानूनों पर विस्तार से चर्चा नहीं हो जाती. इन को लागू नहीं होना चाहिए. जिस समय यह कानून बने थे उस समय विपक्ष कमजोर था. उस के सांसदों को निलंबित कर दिया गया था. आज विपक्ष की ताकत बढ़ गई है. बिना उन को सुने कानून लागू नहीं होना चाहिए. एक बार फिर से बारीकी से विचार किया जाए. उस के बाद यह लागू हो.

कानून का मूलभूत तत्व होता है कि कोई भी तब तक सजा का पात्र नहीं है, जब तक उस ने वो काम तब न किया हो, जब वैसा करना अपराध था. इसे कानून की भाषा में सब्सटेंसिव ला यानी मूल कानून कहते हैं. अब जो पहले अपराध नहीं था, आज अपराध बन गया है. ऐसे में ये कानून तभी लागू होगा, जब आपने वो अपराध इस कानून के लागू होने के बाद किया है. दंड प्रक्रिया संहिता के नाम से जो कानून लागू किया गया है वो ऐसे काम नहीं करते हैं.

भारतीय दंड संहिता डेढ़ सदी से भी ज्यादा पुरानी है. दंड प्रक्रिया संहिता को भी 1973 में संशोधित किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस की न्यायिक व्याख्या की है और इसलिए भारतीय दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता के बारे में निश्चितता है. नए कानून के लिए उस स्तर की निश्चितता हासिल करने में 50 साल और लगेंगे. इस का सब से बड़ा प्रभाव उस पर पड़ेगा जो इस तरह के अपराध में फंसेगा.

जमानत और रिमांड को ले कर यह कानून उदार नहीं है. जबकि संविधान के अनुच्छेद 21 में स्पष्ट है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा जीवन और स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता. इन कानूनों को पारित करने से पहले विस्तृत चर्चा की जरूरत थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कानून लोकतंत्र और लोकतांत्रिक तानेबाने के खिलाफ हैं. यह कानून उसी तरह के है जैसे पौराणिक काल में थे. सब ऊपर वाले के ऊपर है कि वह किस तरह की सजा देता है. इन कानूनों से न्याय मिलने की गुंजाइश कम हुई है. यह कानून हिंदू राष्ट्र की तरफ ले जाते लगते हैं.

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