ऊपर वाले की न्याय व्यवस्था पर यकीन करने वाली संस्कृति मानने वालों ने भारतीय न्याय संहिता बीएनएस के नाम से जो नए कानून बनाए हैं उन में नया कुछ नहीं है.एक जुलाई से 3 आपराधिक कानून भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य संहिता लागू हो गए हैं.

इंडियन पैनल कोड आईपीसी यानि भारतीय दंड संहिता की जगह पर बीएनएस भारतीय न्याय संहिता नाम दिया गया है. यह कानून धार्मिक तानाशाही वाले दिखते हैं इन में तर्क नहीं है. इसलिए जनता को नए कानूनों में कोई बदलाव नहीं दिखता है. भाजपा केवल नए कानूनों को लागू कर के अपने गाल बजाने का काम कर रही है.
भारतीय जनता पार्टी की पिछली सरकार हर जगह पर भारतीयता दिखाने की होड़ में गड़बड़ कर बैठी है. जब कांग्रेस ने इंडिया ब्लौक बनाया तो भाजपा को ‘इंडिया’ शब्द से ही चिढ़ हो गई. यह चिढ़ इतनी बढ़ गई कि भाजपा की केंद्र सरकार ने देश का नाम ‘इंडिया’ बदल कर भारत रखने को आदेश जारी कर दिया. ऐसा लगा कि नोट अब फिर से छापने पड़ेंगे. रिजर्व बैंक औफ इंडिया की जगह पर रिजर्व बैंक औफ भारत लिखना होगा. कुछ दिन में यह मुद्दा ठंडा पड गया.

पौराणिक कथाओं जैसे हैं कानून ?
भाजपा पौराणिक कथाओं के सिद्वांतों पर चलती है. जहां हर अपराध के पीछे पिछले जन्म का राज जुड़ा होता है. राजा दशरथ ने जब श्रवण कुमार की हत्या की तो राजा दशरथ को सजा नहीं मिली. श्रवण कुमार की हत्या की वजह उन के मातापिता के कर्मो को माना गया.
त्रेता युग में शांतनु नाम के एक ऋषि थे. उन की पत्नी का नाम ज्ञानवंती था. उन दोनों के कोई संतान नहीं थी. एक दिन ऋषि और उन की पत्नी घर के आंगन में बैठे थे तभी वहां नारद प्रकट हुए. दोनों पति पत्नी ने नारद की खूब आवभगत और सेवा की. उन की सेवा से प्रसन्न हो कर नारद ने ज्ञानवंती को आशीर्वाद दिए पुत्रवती भव. यह सुन कर ज्ञानवंती ने पूछा की ‘ऋषि क्या तुम्हारा तीसरा आशीर्वाद भी सफल होगा?’
इस पर नारदजी ने कहा की है ज्ञानवती ऋषि के कहे हुए शब्द कभी मिथ्या नहीं होते लेकिन मेरी एक शर्त है तुम्हें पुत्र प्राप्त करने के लिए दोनों को नैमिषारण्य वन में वर्ष तक ब्रह्मा की कठोर तपस्या करनी पड़ेगी. तब ऋषि और उन की पत्नी ने नारद के बताए अनुसार नैमिषारण्य वन में जा कर ब्रह्मा की कठोर तपस्या की. उन की तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उन्हें दर्शन दिए और वर मांगने को कहा.
शांतनु बोले ‘मुझे पुत्रवान होने का वर दो.’ तब ब्रह्मा ने उन्हें कहा कि ‘पुत्र अवश्य प्राप्त होगा लेकिन मेरी एक शर्त है कि तुम्हारे घर में पुत्र होने पर तुम दोनों की नेत्र ज्योति चली जाएगी’. इस पर शांतनु ने कहा कि ‘क्या हुआ कि यदि मेरी नेत्र ज्योति चली जाएगी. मैं पुत्रवान तो कहलाऊंगा लोग मुझे नपुंसक तो नहीं कहेंगे. मुझे आप की सभी शर्तें मंजूर है. इस पर ब्रह्मा ने कहा कि ‘मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि तुम्हें पुत्र प्राप्ति होगी और यह भी आशीर्वाद देता हूं कि तुम्हारे इस पुत्र का नाम संसार में युगोंयुगों तक याद किया जाएगा.’
बाद में शांतनु के पुत्र होने पर दोनों मातापिता की नेत्र ज्योति चली गई और वो अंधे हो गए. उस बालक का नाम श्रवण कुमार रखा गया. श्रवण कुमार अपने मातापिता को कंधे पर ढो कर ले जा रहा था. उसी समय उन को प्यास लगी. श्रवण कुमार नदी में पानी लेने चला गया. गढे को नदी में डुबाया तो उस से निकली आवाज को सुन कर शिकार करने निकले दशरथ को लगा कि कोई जानवर पानी पी रहा है. उस को मारने के लिए शब्दवेदी बाण चलाया, जो श्रवण को लगा और वह मर गया.
दशरथ ने यह उस के मातापिता को बताई तो उन्होने श्राप दे दिया कि इसी तरह से तुम को भी पुत्र विछोह में प्राण त्यागने होंगे. भाजपा जिन पौराणिक कथाओं को मानती है वहां न्याय इसी तरह का होता था. इसी तरह जब सूर्पणखां ने राम के साथ प्रणय निवेदन किया तो गुस्से में लक्ष्मण ने उस की नाक काट कर उसे कुरूप बना दिया. उन को कोई दंड नहीं दिया गया. इंद्र ने गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या के साथ छल किया तो दंड इंद्र की जगह अहिल्या को पत्थर बना कर दिया गया. सालोंसाल उस ने इंद्र के गुनाहों का दंड भुगता. विचाराधीन कैदी भी अहिल्या की तरह सालों से रिहा होने की उम्मीद में सजा भुगत रहे हैं.

खत्म हो रिमांड और विचाराधीन मुकदमें
आज भी जेल में विचाराधीन कैदी पुलिस के किए की सजा भुगत रहे हैं. भारत में विचाराधीन कैदियों की संख्या 2 लाख 78 हजार है. 5 करोड़ से अधिक मुकदमे सुनवाई की राह देख रहे हैं. ऐसे में कानून ऐसा बने कि जेल में तभी किसी को भेजा जाए जब वह जमानत की राशि न जमा कर सके या फिर कोर्ट उस को सजा सुना दे. केवल आरोपी बना कर जेल में न रखा जाए. नए कानून इस तरह के सुधारों का पूरी तरह से अभाव है.2019 से 2024 की भाजपा सरकार अपने बहुमत में थी. उसे हर काम में भारतीयता को दिखाने की होड़ लगी थी. इसी होड़ में आईपीसी को बदल कर बीएनएस कर दिया गया. नए कानूनों में नया कुछ भी नहीं है जिस से लोगों को राहत मिल सके. आमतौर पर लोगों की सब से बड़ी दिक्कत यह होती है कि पुलिस आरोपी किसी को रिमांड पर ले सकती है. इस के बाद उसे विचाराधीन कैदी के रूप में सालोंसाल जेल में रख सकती है. आसानी से जमानत नहीं मिलती है. नए कानून में इस को ले कर कोई सुधार नहीं किया गया है.
पहले केवल पुलिस को केवल 15 दिन की पुलिस रिमांड दी जा सकती थी. लेकिन अब 60 या 90 दिन तक दी जा सकती है. केस का ट्रायल शुरू होने से पहले इतनी लंबी पुलिस रिमांड सही नहीं है. नए कानून में पुलिस 90 दिन में 15 दिन की रिमांड ले सकती है.
असल में पुलिस को रिमांड में लेने की जरूरत ही नहीं होनी चाहिए. हर किसी को जमानत का अधिकार होना चाहिए. कोई भी धारा गैर जमानतीय नहीं होनी चाहिए. जब तक अदालत अपराध सिद्व न कर दे तब तक उसे जेल नहीं भेजना चाहिए. जमानत देते समय जमानत राशि अपराध की प्रवत्ति के हिसाब से कम ज्यादा हो सकती है.
जो जमानत न भर सके उसे जेल भेज देना चाहिए. जमानत की अधिकतम 5 करोड़ तक कर देनी चाहिए. जब तक किसी पर आरोप सिद्व नहीं हो जाता तब तक उसे अपराधी समझ कर जेल नहीं भेजा जाना चाहिए. जनता को लग रहा था कि नए कानून में कुछ ऐसे सुधार होंगे जिस से विचाराधीन कैदियों की संख्या कम हो सकेगी. अदालतों में मुकदमों का बोझ कम हो सकेगा.
कानून में है खांमियां
नए कानून बनाने वाला यह विधेयक पिछले साल संसद के दोनों सदनों में ध्वनिमत से पारित किया गया था. इस पर बहस भी नहीं हो पाई थी. यह कानून बहुत जल्दी में तैयार किए गए थे, जिस की वजह से इन के औचित्य पर सवाल उठ रहे हैं. इस विधेयक को दोनों सदनों से पास करते समय सिर्फ 5 घंटे की बहस की गई थी और ये वो समय था जब संसद से विपक्ष के 140 से अधिक सांसद निलंबित कर दिए गए थे. कानून तब सही बनते जब उस पर संसद में मुकम्मल बहस होती. 1 जुलाई 2024 से नए कानून देश में लागू हो गए हैं जबकि कई गैर बीजेपी शासित राज्यों ने इस कानून का विरोध किया है. केंद्र सरकार के अधिकारियों ने कहा कि राज्य सरकारें भारतीय सुरक्षा संहिता में अपनी ओर से संशोधन करने को स्वतंत्र हैं.
भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, भारतीय दंड संहिता 1860, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 और भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1872 की जगह ले चुके हैं. नए भारतीय न्याय संहिता में नए अपराधों को शामिल गया है. इन में शादी का वादा कर धोखा देने के मामले में 10 साल तक की जेल. नस्ल, जाति समुदाय, लिंग के आधार पर मौब लिंचिंग के मामले में आजीवन कारावास की सजा, छिनैती के लिए 3 साल तक की जेल का प्रावधान है. यूएपीए जैसे आतंकवाद-रोधी कानूनों को भी इस में शामिल किया गया है.
व्याभिचार और धारा 377, जिस का इस्तेमाल समलैंगिक यौन संबंधों पर मुकदमा चलाने के लिए किया जाता था, इसे अब हटा दिया गया है. कर्नाटक सरकार ने इस पर आपत्ति जताई है, उन का कहना है कि 377 को पूरी तरह हटाना सही नहीं है, क्योंकि इस का इस्तेमाल अप्राकृतिक सैक्स के अपराधों में किया जाता रहा है.
आपत्तियों को नहीं सुना गया
अब सिर्फ मौत की सजा पाए दोषी ही दया याचिका दाखिल कर सकते हैं. पहले एनजीओ या सिविल सोसाइटी ग्रुप भी दोषियों की ओर से दया याचिका दायर कर देते थे. विपक्ष शासित राज्यों के 2 मुख्यमंत्रियों पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु के एम के स्टालिन ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को पत्र लिख कर कानूनों को लागू न करने की मांग की थी. तमिलनाडु और कर्नाटक ने इस कानून के नाम पर भी आपत्ति जताई थी कि कर्नाटक और तमिलनाडु का कहना था कि संविधान के अनुच्छेद 348 में कहा गया है कि संसद में पेश किए जाने वाले कानून अंगरेजी में होने चाहिए.
कानून का विरोध करने वालों की राय यह है कि जब तक कानून मंत्री के साथसाथ देश के सभी प्रमुख विपक्षी नेताओं के साथ इन कानूनों पर विस्तार से चर्चा नहीं हो जाती. इन को लागू नहीं होना चाहिए. जिस समय यह कानून बने थे उस समय विपक्ष कमजोर था. उस के सांसदों को निलंबित कर दिया गया था. आज विपक्ष की ताकत बढ़ गई है. बिना उन को सुने कानून लागू नहीं होना चाहिए. एक बार फिर से बारीकी से विचार किया जाए. उस के बाद यह लागू हो.
कानून का मूलभूत तत्व होता है कि कोई भी तब तक सजा का पात्र नहीं है, जब तक उस ने वो काम तब न किया हो, जब वैसा करना अपराध था. इसे कानून की भाषा में सब्सटेंसिव ला यानी मूल कानून कहते हैं. अब जो पहले अपराध नहीं था, आज अपराध बन गया है. ऐसे में ये कानून तभी लागू होगा, जब आपने वो अपराध इस कानून के लागू होने के बाद किया है. दंड प्रक्रिया संहिता के नाम से जो कानून लागू किया गया है वो ऐसे काम नहीं करते हैं.
भारतीय दंड संहिता डेढ़ सदी से भी ज्यादा पुरानी है. दंड प्रक्रिया संहिता को भी 1973 में संशोधित किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस की न्यायिक व्याख्या की है और इसलिए भारतीय दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता के बारे में निश्चितता है. नए कानून के लिए उस स्तर की निश्चितता हासिल करने में 50 साल और लगेंगे. इस का सब से बड़ा प्रभाव उस पर पड़ेगा जो इस तरह के अपराध में फंसेगा.
जमानत और रिमांड को ले कर यह कानून उदार नहीं है. जबकि संविधान के अनुच्छेद 21 में स्पष्ट है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अलावा जीवन और स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता. इन कानूनों को पारित करने से पहले विस्तृत चर्चा की जरूरत थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. कानून लोकतंत्र और लोकतांत्रिक तानेबाने के खिलाफ हैं. यह कानून उसी तरह के है जैसे पौराणिक काल में थे. सब ऊपर वाले के ऊपर है कि वह किस तरह की सजा देता है. इन कानूनों से न्याय मिलने की गुंजाइश कम हुई है. यह कानून हिंदू राष्ट्र की तरफ ले जाते लगते हैं.