मोदी भक्ति की आदत कुछ इस कदर मीडिया को पड़ गई है कि उसकी हर मुमकिन कोशिश यह जताने की रहती है कि इंडिया गठबंधन में सब कुछ ठीकठाक नहीं है . अब उसका नया पूर्वाग्रह और बचपना यह हल्ला मचाना है कि टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने लोकसभा के डिप्टी स्पीकर पद के लिए अयोध्या से सपा सांसद अवधेश पासी का नाम प्रस्तावित कर इंडिया ब्लाक को धर्म संकट में डाल दिया है और ममता बनर्जी की राह उससे अलग सी है .

उलट इसके हकीकत यह है कि अवधेश पासी का नाम इस पद के लिए आगे कर ममता बनर्जी ने गठबंधन की तो राह आसान की है लेकिन  एनडीए को कटघरे में खड़ा कर दिया है कि अगर वाकई वह वर्ण व्यवस्था से परे हो और विपक्ष का सहयोग चाहता हो तो इस लोकप्रिय और अनुभवी दलित सांसद को डिप्टी स्पीकर बनाए . यह प्रस्ताव ममता बनर्जी ने फोन पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह को दिया है जिन्हें भाजपा ने स्पीकर पद मेनेज करने की जिम्मेदारी दी थी अब देखना दिलचस्प होगा कि राजनाथ सिंह क्या एक्शन लेते हैं ?

अव्वल तो 4 जून की दुर्गति के बाद भी भाजपा अपनी मनमानी से बाज नहीं आ रही है जिस पर यह कहावत लागू होती है कि रस्सी जल गई लेकिन बल नहीं गये . डिप्टी स्पीकर पद के लिए कहावत तो यह भी लागू होती है कि सूत न कपास जुलाहों में लट्ठमलट्ठा क्योंकि भाजपा चाहती ही नहीं कि इस अहम पद पर किसी को बैठाया जाए और अगर बैठाया भी जाए तो कम से कम वह अवधेश पासी न हों

अवधेश पासी क्यों न हों इसकी बड़ी वजह यह है कि अयोध्या जीत कर उन्होंने भाजपा की यादगार किरकिरी कर दी है . फैजाबाद लोकसभा सीट से उन्होंने भाजपा के ठाकुर लल्लू सिंह को शिकस्त देकर एक झटके में कई मिथक तोड़ते कई गलतफहमिया भी दूर कर दी हैं . हाल तो यह है कि उत्तरप्रदेश की 79 लोकसभा सीटें एक तरफ और एक यह एक तरफ की तर्ज पर अयोध्या कसक रही है . चुनाव प्रचार के दौरान यह नारा खूब चला था कि न मथुरा न काशी अबकी बारी अवधेश पासी. ठीक इसी तर्ज पर जब अवधेश लोकसभा में शपथ ले रहे थे तब भी जय अवधेश और जय संविधान के नारे जमकर लगे थे .

लोकसभा चुनाव नतीजे आए एक महीना पूरा होने को है लेकिन भाजपा यह नहीं स्वीकार पा रही कि उसका दलित और मुस्लिम विरोधी चाल चरित्र और चेहरा बेनकाब हो चुका है . इंडिया ब्लाक और उसमें भी खासतौर से राहुल गांधी ने लड़ाई मनु स्मृति बनाम संविधान बना दी थी आज भी यह लड़ाई जारी है ममता बनर्जी का अवधेश पासी का नाम आगे बढ़ाना उसी मुहिम का हिस्सा है . कांग्रेस अगर खुद का कोई उम्मीदवार आगे बढ़ाती तो बात टाय टांय फिस्स होकर रह जाती क्योंकि लोकसभा स्पीकर पद के लिए उसके उम्मीदवार के सुरेश को उम्मीद के मुताबिक तबज्जो नही मिली थी .

के सुरेश भी दलित समुदाय से हैं पर कांग्रेस का यह दलित कार्ड चल नहीं पाया था. क्योंकि जनता दल यू और टीडीपी ने पहले ही भाजपा को क्लीन चिट और फ्री हेंड दे दिए थे . जाहिर है यह सौदा 4 और 5 जून के दरमियां ही तय हो चुका था कि लोकसभा स्पीकर भाजपा के ओम बिरला ही होंगे . लेकिन डिप्टी स्पीकर को लेकर स्थिति साफ़ नहीं है कि वह भाजपा का होगा या उसके सहयोगी दलों में से किसी का होगा . वैसे अभी तक का घटनाक्रम देख तो लगता है कि यह पद किसी का ही नही हो यही मुनाफे का सौदा भाजपा के लिए होगा. पिछली लोकसभा में भी उसने यह पद खाली रखा था .

अगर दबाब बढ़ता है तो दिख यह भी रहा है कि भाजपा किसी दलित को ही आगे लाना फायदे का सौदा समझेगी . क्योंकि राहुल गांधी उसके मनुवाद पर लगातार हमलावर हैं . 1 जुलाई को संसद में उनका यह कहना बेहद पूर्व नियोजित था कि भाजपा के हिन्दू , हिन्दू ही नहीं हैं क्योंकि वे हिंसा और नफरत फैलाते हैं . उम्मीद के मुताबिक भाजपा ने हल्ला मचाया कि यह हिन्दू समाज का अपमान है और उन्हें इस बाबत माफ़ी मांगना चाहिए .

इस बयान का कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड्गे के उन बयानों से गहरा ताल्लुक है जिनमे वे कहते रहे हैं कि भाजपा हर कभी दलितों को अपमानित करती है और मैं 22 जनबरी के प्राण प्रतिष्टा समारोह में अयोध्या इसलिए नहीं गया था कि मुझे अपमानित होने की आशंका थी . निष्कर्ष यह कि भाजपा अगर अपना ब्राह्मणवाद नहीं छोड़ पा रही तो कांग्रेस भी अपना दलित प्रेम उजागर करने से चूकती नहीं .

कांग्रेस और इंडिया गठबंधन आखिर क्यों संविधान को सीने से लगाए शान से घूम रहे हैं , इस सवाल का जवाव बेहद साफ है कि भाजपा अभी गफलत में है कि वह संविधान और मनु स्मृति में से किसे चुने .दो नावों की सवारी अब पहले की तरह संभव नहीं दिख रही . शपथ बाले दिन नरेन्द्र मोदी संविधान को माथे से लगाते हैं तो दस दिन बाद ही फिर काशी जाकर गंगा मैया और भगवान का राग अलापने लगते हैं .

तस्वीर अब धुंधली नहीं रह गई है कि वे या कोई और नेता या तो संविधान के बताए रास्ते पर चलें जो भीमराव आम्बेडकर का दिया हुआ है या फिर ब्राह्मणवाद को फालो करते रहें जो तुलसियों और मनुओ ने दिया है . यानी नफरत और हिंसा को चुन लें या फिर बराबरी की बात करें जो भाजपा और नरेंद्र मोदी के बस की बात नहीं क्योंकि उनकी डोर आरएसएस की अंगुलियों में बंधी है .

ममता बनर्जी से अवधेश पासी का नाम प्रस्तावित करवाकर इंडिया गठबंधन ने 4 जून की तरह ही एडवांस में बाजी मार ली है फिर भले ही भाजपा डिप्टी स्पीकर के लिए चुनाव करवाए या न करवाए और करवाए तो फिर पासी जीते या न जीते इससे उसकी सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला . इस मांग का मकसद भाजपा का दलित विरोधी चेहरा एक बार और उजागर करना है. बिलाशक अवधेश पासी इस लोकसभा का एक अतिरिक्त आकर्षण हैं क्योंकि वे रामनगरी से रामभक्तों को शिकस्त देकर दिल्ली पहुंचे हैं.

अब अगर नीतिश कुमार और चंद्रबाबू नायडू वोटिंग होने की स्थिति में अवधेश पासी के खिलाफ जाते हैं तो जनता और खुद उनका वोटर उनकी गिनती दक्षिणापंथियों और तिलकधारियों में करने यह कहते  मजबूर होगा कि आपने तो सत्ता की खातिर अपने उसूल ताक में रख दिए . इससे तो बेहतर है कि जनता दल यू और टीडीपी अपना विलय ही भाजपा में कर लें और गंगा जी में डुबकी लगाकर शुद्ध हो जाएं .

ऐसा होना संभव है इसलिए एनडीए को अब हर छोटी बड़ी बात पर दलितों का ध्यान रखने मजबूर किया जा रहा है और जाहिर है इंडिया ब्लाक की तरफ से कभी यह बात टीएमसी कहेगी कभी कांग्रेस कहेगी और कभी सपा तो कभी डीएमके कहेगी तो कभी कोई और सहयोगी कहेगा . लेकिन एनडीए में ऐसा होना मुमकिन नही कि सभी छोटे बड़े दल पूजापाठ करने में लग जाएं .

यह शुरुआत है आगे आगे यह लड़ाई और दिलचस्प होगी क्योंकि यह वाकई में 2 विचारधाराओ की लड़ाई है इसी कड़ी में. राहुल गांधी का एक जुलाई वाला कथित हिन्दू विरोधी बयान दरसल में हिन्दू विरोधी नहीं है बल्कि हिन्दू धर्म की एक खूबी उजागर करता हुआ है कि चूंकि हिन्दू हिंसक है इसलिए अभी तक उसका अस्तित्व है. नहीं तो वह कब का मिट खप गया होता और यह बात हिन्दुओं के लिए शर्म या मुंह छिपाने की नही बल्कि गर्व की होनी चाहिए .

इन और ऐसे मुद्दों या बयानों पर इंडिया ब्लाक में कोई मतभेद नहीं हैं . होते तो अवधेश पासी के नाम की पेशकश अयोध्या से 907 किलोमीटर दूर बैठी ममता बनर्जी न करतीं जिन्हें पश्चिम बंगाल के दलितों ने भरपूर समर्थन दिया है. ठीक वैसा ही जैसा उत्तरप्रदेश में सपा और कांग्रेस को दिया है . ऐसे में इन शीर्षकों वाली ब्रेकिंग न्यूज के कोई माने नहीं रह जाते कि ममता की गुगली में फिर फंसा इंडिया ब्लाक.. या गठबंधन में रार और तकरार …हकीकत में तो फंस एनडीए रहा है .

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