महाराष्ट्र के लोनावाला में भुशी बांध के पास पिकनिक मनाने गए एक ही परिवार के 17 लोग अचानक आई बाढ़ में बह गए. यह परिवार अपने घर पर हुए शादी समारोह के बाद एक निजी बस किराए पर लेकर यहां घूमने के इरादे से आया था. इसमें कई लोग अन्य शहरों से शादी में शिरकत करने आये हुए थे. यह पूरा ग्रुप बाँध के पास मौजमस्ती में व्यस्त था कि तभी पानी का तेज बहाव आया और पूरे समूह को बहा ले गया. इसमें कई बच्चे थे जिनका कोई पता नहीं चल रहा है. निश्चित ही वे तेज धार के साथ बहुत दूर तक बह गए हैं. पांच लोगों के शव ही गोताखोरों ने अब तक बरामद किये हैं.

जिस परिवार के साथ यह हादसा हुआ उसके एक परिजन ने बताया कि वे यहाँ एक रिश्तेदार की शादी के लिए मुंबई से आए थे. रविवार को पिकनिक के लिए लोनावाला जाने के लिए उन्होंने एक बस किराए पर ली थी. बच्चे बहुत उत्साहित थे. वे भुशी बाँध के पास झरने के पास घूम रहे थे कि अचानक कहीं से बहुत सारा पानी अचानक छोड़ा गया. उन लोगों को सँभालने तक का मौक़ा नहीं मिला और सभी 17 लोग उस तेज बहाव में बह गए. तीन बच्चों के शव काफी दूर एक जलाशय में मिले. दो अन्य लोगों की लाशें भी मिल गयी हैं लेकिन बाकी लोगों का कुछ पता नहीं चल रहा है. शादी का घर मातम का घर बन गया है.

गौरतलब है कि मानसून शुरू होने पर हजारों पर्यटक भुशी और पावना बांध क्षेत्रों में घूमने आते हैं. इस दौरान पर्यटक अनजाने में अज्ञात क्षेत्रों में भी चले जाते हैं क्योंकि वहाँ उन्हें खतरे से आगाह करने, उन्हें रोकने या उनका मार्गदर्शन करने के लिए जिन सरकारी कर्मचारियों की नियुक्ति है, वे कभी वहाँ होते ही नहीं हैं. भुशी बांध के पास जहां यह घटना हुई है उसके आसपास का क्षेत्र भारतीय रेलवे और वन विभाग के अधिकार क्षेत्र में आता है. लोनावला में इससे पहले भी जनवरी 2024 में पावना बांध में चार लोग डूब गए थे. बचाव संगठन वन्यजीव रक्षक के एक अधिकारी के अनुसार इस साल मार्च और मई के बीच मावल तहसील में अलग-अलग जल निकायों से कोई 27 शव बरामद किए जा चुके हैं. बावजूद इसके वहाँ लोगों को खतरे से आगाह करने के लिए कोई सरकारी नुमाइंदा मौजूद नहीं होता है. जिस दिन इस परिवार के साथ यह दर्दनाक हादसा हुआ उस दिन 50 हजार से ज्यादा पर्यटक लोनावला के इस पर्यटक स्थल पर पहुंचे हुए थे.

अभी दो महीने पहले 13 मई, 2024 को मुंबई के घाटकोपर इलाके में तेज आंधी-तूफ़ान और बारिश की वजह से एक विशालकाय होर्डिंग गिरने से 14 लोगों की मौत हो गई थी और करीब 74 लोग घायल हुए थे. यह होर्डिंग 100 फीट ऊंचा और 250 टन वज़नी था और एक पेट्रोल पंप पर जा गिरा था. इसके पांच टन लोहे के मलबे के नीचे कई गाड़ियां भी दब गई थीं. इस हादसे को जिसने देखा दहल उठा. भारी बारिश के बीच घायलों की चीखें कान के परदे फाड़ रही थीं. रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान पुलिस और फायर ब्रिगेड को काफी दिक्कतें आई, क्योंकि मलबे में दबी गाड़ियों में कितना ईंधन है, इसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल था. इस वजह से गैस कटर जैसे उपकरणों का इस्तेमाल भी नहीं किया जा सका था.

बीते 10 दिनों में बिहार में पांच पुल ढह चुके हैं. इसमें कई जानें भी गयी हैं. कौन है इन हादसों का जिम्मेदार? क्या कांग्रेस और नेहरू?

कल मथुरा में तीन साल पहले बनाई गयी पानी की टंकी रिमझिम बारिश में ही भरभरा कर गिर गयी. इसमें 11 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं और तीन औरतों की मृत्यु हो गयी है. मथुरा की कृष्ण विहार कॉलोनी में यह ओवरहेड पानी की टंकी तीन साल पहले डेढ़ करोड़ रूपए की लागत से बनाई गयी थी. इस टंकी की क्षमता ढाई लाख लीटर पानी स्टोर करने की थी. इसके गिरने से क्षेत्र के कोई एक दर्जन मकान क्षतिग्रस्त हुए हैं.

कौन जिम्मेदार है इतने घटिया कंस्ट्रक्शन के लिए? क्या कांग्रेस? क्या नेहरू? हर विफलता का ठीकरा कांग्रेस और नेहरू के सिर फोड़ने वाली भारतीय जनता पार्टी और उसके शीर्ष पर बैठे नेता बताएं कि जब देश में पिछले दस साल से उनकी सरकार है तो जनता की जानमाल के नुकसान की जिम्मेदारी किसकी है?

जनता के खून पसीने की कमाई का बड़ा हिस्सा जो इन निर्माण कार्यों के लिए खर्च होता दिखाया जा रहा है, दरअसल उसका बहुत बड़ा हिस्सा भ्रष्ट नेताओं, भ्रष्ट अधिकारियों, भ्रष्ट इंजीनियरों और भ्रष्ट ठेकेदारों के कॉकस के बीच बंट जाता है और जो थोड़ा पैसा बचता है उससे ही ठेकेदार घटिया मैटीरियल जिसमें रेत ज्यादा होती है, से सारे निर्माण कार्य करवा रहे हैं. जिम्मेदार कौन है?

‘ना खाऊंगा ना खाने दूंगा’ का नारा छाती ठोंक ठोंक कर देने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने तीन महीने पहले दिल्ली एयरपोर्ट का टर्मिनल 1 की नयी बिल्डिंग का उदघाटन किया था और दिल्ली में प्री मानसून की पहली ही बारिश में ही इसकी छत का बड़ा हिस्सा ढह गया. जिसके नीचे दब कर एक कैब ड्राइवर की मौत हो गयी और अनेक गाड़ियां बुरी तरह क्षतिग्रस्त हुईं.

मोदी पर उंगलियां उठीं तो भाजपा वाले टीवी चैनलों पर कहते नजर आये कि यह नहीं बल्कि इसके पीछे वाली बिल्डिंग थी जिसका उद्घाटन प्रधानमंत्री मोदी ने किया था. जिसकी छत गिरी वह तो कांग्रेस ने बनाई थी. तो सवाल उठता है कि पिछले दस सालों में अगर इसकी मेंटेनेंस नहीं हुई तो उसका जिम्मेदार कौन है? क्या उसकी जिम्मेदार भी कांग्रेस है?

10 मार्च 2024 को मोदी ने जबलपुर एयरपोर्ट की टर्मिनल बिल्डिंग का वर्चुअल इनोग्रेशन किया था. कुछ ही महीने बाद 27 जून 2024 को इस टर्मिनल की भी छत ढह गयी.

8 सितम्बर 2022 को मोदी ने इंडिया गेट के सामने कर्तव्य पथ का उद्घाटन किया था. 28 जून 2024 को पहली बारिश में पूरा कर्तव्य पथ पानी में डूबा हुआ था.

घटिया इन्फ्रस्त्रुक्टुए के यह एक दो मामले नहीं हैं. 19 जून 2022 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली के प्रगति मैदान की टनल का उद्घाटन किया था. 700 करोड़ की लागत से इस टनल को बनाया गया था, मगर एक साल के अंदर ही इसमें भारी सीपेज और वाटर लॉगिंग देखने को मिली. लोग घुटने घुटने पानी में टनल पार करते नजर आये. जब फरवरी 2024 में पीडब्ल्यूडी के एक अधिकारी से इस टनल को रिपेयर करने की बाबत पूछा गया तो उसका कहना था कि इस टनल को रिपेयर नहीं किया जा सकता है, इसे पूरी तरह से ओवरऑल करना पडेगा. यानी हमारे इंजीनियर इतने बेकार हैं कि कोई इमारत या सुरंग यदि क्षतिग्रस्त हो जाए तो वे इसको रिपेयर तक नहीं कर सकते हैं.

मुगलकालीन मजबूत इमारतों को नफरत की निगाह से देखने वाली भाजपा सरकार आखिर जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से यह किस तरह का इंफ्रास्ट्रक्चर देश में खड़ा कर रही है, जो जनता की जान के लिए ही ख़तरा बन रहा है?

22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर का उद्घाटन किया. दुनियाभर में इसकी भव्यता का शोर मचाया गया. 23 जून 2024 को राम मंदिर के वरिष्ठ पुजारी सत्येंद्र दास ने कहा कि मंदिर की छत में ऊपर से पानी लीक कर रहा है. रामलला के सिर पर बारिश का पानी गिर रहा है. बजाय इसके कि अपनी गलती सुधारी जाए, सच सामने लाने के जुर्म में वरिष्ठ पुजारी सत्येंद्र दास को ही वहां से हटा दिया गया.

अयोध्या के सुंदरीकरण की माला जप कर सत्ता की चाशनी चाटने वालों ने अयोध्या को संवारने के नाम पर जो घटिया सामग्री लगा कर सड़कें और इमारतें बनायीं हैं, वह आज आम आदमी की जान के लिए मुसीबत का सबब बन गयी हैं. मानसून की पहली बारिश में ही अयोध्या में जगह जगह सड़कों पर पानी भर गया है. मंदिर तक जाने वाला रामपथ जगह जगह पर धंस चुका है और वहां बड़े बड़े गड्ढे हो गए हैं, जिसमें बारिश का पानी भर गया है. इस मार्ग से होकर निकलना अपनी मौत को दावत देना है. अयोध्या के स्टेशन की भव्य बाउंड्रीवाल जिसका निर्माण अभी कुछ समय पहले हुआ था वह भी पहली बारिश में ढह गयी और पूरे स्टेशन में पानी भर गया.

देश भर में कहीं पानी लीक हो रहा है तो कहीं पेपर लीक हो रहा है. इतनी खोखली इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट भारत के इतिहास में शायद ही कभी किसी सरकार में देखी गयी होगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आये दिन कुछ ना कुछ उद्घाटन करते रहते हैं. हर छोटी से छोटी चीज पर उनको अपनी फोटो देखनी होती है. हर बात का उनको क्रेडिट चाहिए होता है लेकिन क्या वो इन सारी विफलताओं की जिम्मेदारी भी लेने को तैयार हैं?

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