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Hindi Stories Love : अभिलाषा – क्या मजबूरी थी देव की

Hindi Stories Love : अचला ससुराल आते ही 2 बच्चों की सौतेली मां बन गई, खुद मां बनने की इच्छा रहरह कर उस के मन में उठने लगी थी. लेकिन पति चाह कर भी उस की इच्छा पूरी नहीं कर सकता था.

स्कूल जाती हुई गीतू को अचला बहुत देर तक अपलक निहारती रही. फाटक के पास पहुंचते ही गीतू मां को टाटा करने लगी. मां के होंठों पर हलकी सी मुसकराहट आ गई और वह भी प्रत्युत्तर में टाटा करने लगी.
गीतू के जाते ही वह वहीं बरामदे में पड़ी कुरसी पर बैठ गई और पास रखे हुए गमलों को देखने लगी. एक गमले में बेला का फूल था, दूसरे में गुलाब का. वह सोचने लगी, ‘दोनों पौधों के गमले अलगअलग हैं, लेकिन मैं…’
तभी उसे पैरों की आहट सुनाई दी. उस ने पलट कर देखा तो देव को समीप खड़े पाया. उस ने एक बार देव की ओर, फिर गमलों की ओर देखा और फिर वह तुरंत ही देव की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगी.
देव ने पीछे से उस के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘अचला, क्या बात है, तुम इतनी गंभीर हो कर क्या सोच रही हो?’’
‘‘कुछ नहीं, यों ही इन दोनों गमलों की ओर देख रही थी.’’
‘‘क्या खास बात है इन गमलों में? फूल दोनों ही गमलों में अच्छे निकले हैं.’’
अचला ने एक जोरदार ठंडी सांस ली और बोली, ‘‘हां, फूल दोनों गमलों में अच्छे निकले हैं.’’
‘‘इतनी साधारण बात को तुम इतने गंभीर ढंग से क्यों कह रही हो?’’
‘‘यह साधारण बात नहीं है. तुम देख रहे हो न, दोनों गमलों के फूल अलगअलग हैं.’’
‘‘वह तो होंगे ही.’’
‘‘बस, समझ लें, मेरे प्रश्न का उत्तर भी यही है.’’
‘‘मैं तुम्हारे प्रश्न का अर्थ नहीं समझ,’’ वह अचला के समीप वाली कुरसी पर बैठते हुए बोला.
‘‘विवाह हुए 6 वर्ष हो गए.’’
‘‘तो इस में क्या खास बात है, समय तो आगे ही बढ़ेगा, पीछे थोड़े ही लौटेगा.’’
‘‘लेकिन 6 साल में मैं ने एक बार भी मातृत्व सुख का अनुभव नहीं किया.’’
‘‘क्या गीतू को तुम अपनी बेटी नहीं समझतीं?’’
‘‘कुछ समझती हूं और कुछ समझना पड़ता है.’’
‘‘मुझे अब और बच्चे नहीं चाहिए,’’ कहते हुए वह अंदर चला गया.
अचला ने सोचसमझ कर तलाकशुदा 2 बच्चियों के पिता के साथ शादी की थी क्योंकि देव से उस का औफिस के सिलसिले में मिलनाजुलना हुआ जो प्रेम में बदल गया. देव ने दोनों बच्चियों से मिला दिया था और अचला की दोनों से पटरी भी बैठ गई थी.
अचला के मस्तिष्क में शहनाई गूंजने लगी. उसे विवाह का दिन याद आ गया. ससुराल आते ही देव की मां ने 3 वर्ष की गीतू और 4 वर्ष के सोमू, दोनों को उसे सौंप कर कहा था, ‘‘अचला, ले ये अपने बच्चे संभाल.’’ कुछ दिनों बाद सोमू को तो उस के नाना लिवा ले गए और गीतू उस की गोद में पलने लगी. अचला ने सोचा था कि उसे कभी अपने खुद के बच्चे की जरूरत नहीं होगी पर अब कुछ खटकने लगा था.
वह सोच ही रही थी कि देव फिर आ गया और उसे झकझोरते हुए बोला, ‘‘अरे, तुम भी क्या मूर्खतापूर्ण बातों में उलझ हो. चलो, दोनों खाना बनाते हैं. फिर दोनों को औफिस जाना है, देर हो रही है.’’
वह उठ कर देव के साथ अंदर चली गई. थोड़ी ही देर में तैयार हो कर दोनों औफिस चले गए. कंप्यूटर पर वह एक इलस्ट्रेशन बना रही थी. वह कंपनी की आर्टिस्ट और ग्राफिक डिजाइनर थी. उंगलियां चलातेचलाते सोचती जाती, ‘काश, मैं जिस तरह इस कैरेक्टर को बना रही हूं, उसी तरह अपने बच्चे का भी बना सकती.’
शाम को क्रैच से गीतू को क्रैच की मेड छोड़ जाती थी.
घर लौटने के आधे घंटे बाद फाटक खुलने की आवाज के साथ उस ने मुड़ कर देखा तो गीतू उसे आती हुई दिखाई दी.
गीतू आ कर उस से लिपट गई. वह उसे प्यार करने लगी.
‘‘मौम, मुझे भूख लगी है.’’
‘‘चल, खाने को कुछ देती हूं.’’
वह उठ कर अंदर चल दी. उस ने फ्रिज में से टोस्ट निकाला और प्याले में दूध डाल कर उसे दे दिया.
तो तुनक कर वह बोली, ‘‘मम्मी, मैं पिज्जा खाऊंगी.’’
‘‘बेटी, अभी नहीं है. अभी टोस्ट खा ले, शाम को पिज्जा मंगा दूंगी.’’
‘‘नहीं मम्मी. मैं अभी खाऊंगी.’’
‘‘मैं ने कहा न कि अभी नहीं मंगा सकती. अभी केला खा ले, शाम को टोस्ट दूंगी.’’
‘‘नहीं मम्मी. मैं अभी खाऊंगी.’’
‘‘मैं ने कहा न कि डबलरोटी नहीं है.’’
गीतू पैर फैला कर वहीं फर्श पर बैठ गई और रोने लगी. अचला को क्रोध आ गया. उस ने 2-3 चांटे जड़ दिए और बोली, ‘‘बहुत जिद करने लगी है तू. कह दिया न कि अभी नहीं मंगा सकती. कहां से लाऊं.’’

गीतू का स्वर अधिक तीव्र हो गया. थोड़ी देर तक वह रोती रही, फिर चुप हो गई. अचला ने गैस के चूल्हे पर चाय का पानी चढ़ा दिया. चाय पी कर वह अपने कमरे में चली गई और पैर फैला कर बिस्तर पर लेट गई, सोचने लगी, ससुराल आते ही एक बोझ ढोने को मिला, जिसे वह प्यार से सींचना चाह रही थी पर वह तो पति और बच्चे के बीच में बंधी रबड़ की तरह खिंचती रही.
शाम को जब देव औफिस से आया तो गीतू ने उस से शिकायत की, ‘‘पापा, आज मम्मी ने मुझे मारा था.’’
देव ने कपड़े बाद में बदले, पहले अचला को आवाज दे कर बुलाया और कहा, ‘‘अचला, गीतू कह रही है कि तुम ने उसे मारा था.’’
‘‘तो क्या हुआ, जिद कर रही थी.’’
‘‘लगता है, तुम अब उसे प्यार नहीं करतीं. शादी से पहले तो तुम बहुत लाड़ जताती थीं.’’
‘‘तुम्हें कैसे मालूम हुआ कि मैं उसे प्यार नहीं करती?’’
‘‘सुबह की तुम्हारी बातों से मुझे कुछ ऐसा ही आभास हुआ था.’’
‘‘गलत कह रहे हो तुम. मैं उसे बहुत प्यार करती हूं.’’
‘‘इसलिए कि तुम्हें प्यार करना है.’’
‘‘कुछ भी समझ लेकिन मैं उसे चाहती हूं, तभी मैं ने उसे मारा था. अगर गीतू की जगह मेरा बच्चा होता और वह तुम से शिकायत करता तो तुम यह अर्थ न लेते. बच्चे की बातों को गंभीरता नहीं देनी चाहिए. चलो, चाय तैयार है.’’
देव जूतेमोजे उतार कर, तौलिया हाथ में ले कर बाथरूम में चला गया. अचला खाने का प्रबंध करने लगी. कड़ाही में पड़ी आलूप्याज की पकौडि़यां वह करछुल से चलाने लगी. ‘खनखन’ की आवाज के साथ उस के मस्तिष्क में हजारों करछुलें एकसाथ चलने लगीं. सामान मेज पर लगा कर वह देव का रास्ता देखने लगी. उधर उस ने पिज्जा भी और्डर कर दिया. थोड़ी ही देर में देव आ गया और बिना कुछ बोले कुरसी पर बैठ गया. गीतू भी जाने कहां से दौड़ती हुई आ गई और अचला की गोद में हाथ रखते हुए बोली, ‘‘मम्मी, मुझे भी पकौड़ी दो न.’’
‘‘पापा, से ले लो और तुम्हारा पिज्जा आने वाला है.’’
‘‘नहीं, तुम दो. पापा मारेंगे.’’
अचला ने देव की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा.

नाश्ता करने के बाद देव उठ कर अचला के पास आया और उस की कमर में पीछे से दोनों हाथ डालते हुए बोला, ‘‘अरे, तुम भी जराजरा सी बात से नाराज हो जाती हो.’’ अचला की आंखों से आंसुओं की धार बह निकली. देव को प्रसन्न देख कर उस ने कहा, ‘‘एक बात कहूं?’’
‘‘कहो, कहो.’’
लेकिन अचला कुछ संकोच में पड़ गई और कुछ न कह सकी. वह मेज पर से सामान उठा कर रसोई में चली गई.
देव उस के पीछेपीछे रसोई में चला गया और उस के सामने खड़े हो कर बोला, ‘‘अचला, तुम ने बताया नहीं कि क्या बात है.’’
‘‘कुछ नहीं. मैं ऐसे ही.’’
‘‘नहीं, तुम्हारे मन में अवश्य कुछ है.’’
‘‘अब कुछ नहीं है. मन में आई बात चली गई.’’
‘‘मैं नहीं मानता. तुम्हें बताना ही पड़ेगा. क्या औफिस में कुछ हुआ था?’’
‘‘अरे, भई, कुछ बात नहीं है,’’ वह झुंझला कर बोली.
‘‘नहीं, तुम्हें मन की बात बतानी ही पड़ेगी.’’
अचला ऊहापोह में पड़ गई. उस ने धीरेधीरे मुंह से शब्द निकाले, ‘‘मैं आज लेडी डाक्टर के यहां गई थी.’’
‘‘अच्छा, तो अभी तुम्हारी सनक गई नहीं. मैं ने एक बार नहीं, कितनी ही बार तुम से कहा है कि मुझे 2 बच्चों के अतिरिक्त और संतान नहीं चाहिए.’’
‘‘तुम समझते क्यों नहीं हो?’’
‘‘मैं सब समझता हूं और मुझे फिर वही प्रश्न दोहराना पड़ेगा कि क्या गीतू को तुम अपनी संतान नहीं समझती?’’
‘‘लेकिन मैं केवल एक बार अपनी कोख से बच्चे को जन्म दे कर मातृत्व सुख पाना चाहती हूं.’’
‘‘असंभव,’’ कहता हुआ देव झटके के साथ बाहर चला गया.
अचला पौधों में पानी देने लगी. तभी उसे गीतू के रोने की आवाज सुनाई दी. वह टोह लेने लगी कि गीतू कहां है. गीतू की आवाज पास आती गई. वह फाटक से दौड़ती हुई आई और अचला से लिपट गई. अचला बोली, ‘‘क्यों, गीतू, किस ने मारा तुझे ?’’
‘‘मम्मी, तुम मुझे एक छोटा सा भैया ला दो न.’’
‘‘क्यों, यह बात तेरे मस्तिष्क में कैसे आई?’’
‘‘मम्मी, मोहिनी अपने छोटे भैया को मुझे नहीं खिलाने देती.’’
‘‘अच्छा, पापा से कहना, वे ला देंगे,’’ उस ने गीतू को बहला कर फिर खेलने भेज दिया.
जब देव घूम कर वापस आया तो गीतू ने कहा, ‘‘पापा, मेरे लिए भी एक छोटा सा भैया ला दो न. मोहिनी अपने छोटे भैया को मुझे खिलाने नहीं देती.’’
देव ने गीतू की बात सुनी तो कड़क कर अचला को आवाज दी. अचला आई तो वह क्रोध में बोला, ‘‘अच्छा, तो अब गीतू को सिखाया जा रहा है.’’
‘‘मैं ने कुछ नहीं सिखाया.’’
‘‘तब इस के मस्तिष्क में यह बात कैसे आई?’’
‘‘मुझे नहीं मालूम, लेकिन तुम संतान के नाम से चिढ़ते क्यों हों? इतनी अधिक संतान तो है नहीं जिन से ऊबे हो.’’
‘‘संतान, संतान और अब यह गीतू की बच्ची भी.’’

खाना खा कर देव अपने पलंग पर आ कर लेट गया. मन बहलाने के लिए वह मोबाइल के मैसेज चैक करने लगा. डबलबैड के बिस्तर में गीतू बीच में सो रही थी. उस की बगल में अचला आ कर लेट गई. दोनों व्याकुल थे. दोनों की अपनीअपनी अलगअलग इच्छाएं थीं.
वह सोचने लगा, ‘न मैं गीतू की मांग पूरी कर सकता हूं, न अचला की इच्छा.’
व्याकुलता में उस ने करवट बदली. अचला उठी. उस ने बत्ती बुझा दी.
अंधकार के परदे पर देव को बीते दिनों की एकएक छाया उभरती दिखाई दी और वह उन छायाओं के साथ स्वयं भी घुलमिल गया.
जब शीला जिंदा थी तब के लमहे याद आने लगे.
एक दिन जब वह औफिस से कुछ देर से लौटा था तो शीला मुंह फुलाए बाहर बरामदे में कुरसी डाले बैठी थी. देखते ही वह बोली थी, ‘‘देखो जी, मुझे अकेले डर लगता है. तुम जल्दी आया करो. बाहर कुछ लफंगे टाइप लड़के खड़े रहते हैं.’
‘औफिस में कुछ काम अधिक था, इसलिए देर हो गई, मैडम.’
‘लेकिन मेरा तो दिल निकला जा रहा था.’
‘अब तो दिल बच गया न और ये लफंगे तो हर शहर में मिलेंगे. भगवा दुपट्टा लटका कर हरकोई मोरल पुलिसमैन बन गया है और ये भगवाधारी ही लड़कियों/महिलाओं को सब से ज्यादा छेड़ते हैं.’ थोड़ी ही देर बाद शीला ने खाना मेज पर लगा दिया था. तब उस ने कहा था, ‘आओ खाना खाएंगे. बच्चे कहां हैं?’
‘सो गए हैं.’
खाना खातेखाते वह अचानक कहने लगी थी, ‘अब मैं औपरेशन करवा लूंगी.’
‘नहीं, मैं तुम्हें औपरेशन नहीं करवाने दूंगा. मुझे डर लगता है.’
‘तीसरा है, क्या मैं यही करती रहूंगी.’
‘ठीक है. यदि ऐसी बात है तो तुम नहीं, मैं औपरेशन करवा लूंगा,’ उस ने उसे समझते हुए कहा था.
उस ने करवट बदली और वह सोने का प्रयत्न करने लगा. तभी उसे शीला का दूसरा रूप दिखाई दिया.

अस्पताल के कमरा नं. 12 में बिस्तर नंबर 10 पर पड़ी शीला तड़प रही थी. उस की नाक में नली पड़ी थी, आंखों के नीचे गहरी काली छाया थी. चेहरा निचुड़े हुए कपड़े की तरह हो गया था.
उस दिन जैसे ही वह अस्पताल पहुंचा था तो शीला ने हलके से उस की ओर गरदन घुमाई थी. उस की गोद में गीतू थी. शीला ने गीतू को प्यार किया था और पूछा था, ‘सोमू और नंदू कहां हैं?’
देव ने गीतू को नीचे उतारते हुए कहा था, ‘सोमू नानी के पास है और नंदू दादी के पास.’
‘अच्छी तरह हैं न मेरे बच्चे?’ उस ने कराहते हुए पूछा था.
‘हां, हां, बिलकुल ठीक हैं. तुम चिंता मत करो.’
‘मेरी मृत्यु के बाद तुम विवाह कर लेना.’
‘ऐसा क्यों कहती हो, शीलू, तुम ठीक हो जाओगी.’
‘नहीं, ऐसा अब नहीं लगता.’ भयानक दर्द उस के पेट में उठा था. वह दर्द उसे ले कर ही गया.
उस समय शीला की आयु 26 वर्ष और देव की 30 वर्ष थी. शीला की मृत्यु के 4-5 महीने बाद नंदू भी चल बसा.

वह ये बातें सोच ही रहा था कि उसे अचला की चीख सुनाई दी. वह अचला के पास चला गया. तनाव समाप्त हो चुका था. उस ने उस के माथे पर हाथ रखा और बड़ी देर तक वह उस के बालों को सुलझता रहा. अचला चीखने के बाद फिर घोर निद्रा में सो गई.
सुबह उठते ही उस ने अचला से पूछा, ‘‘क्या तुम ने रात में स्वप्न देखा था? तुम बड़ी जोर से चीखी थीं?’’
‘‘मैं ने देखा था कि तुम ने गीतू को एक बड़ा सुंदर गुड्डा ला कर दिया था. गीतू उस से बड़े प्यार से खेल रही थी कि अचानक वह गुड्डा हवा के साथ आकाश में उड़ कर विलीन हो गया था. मैं डर गई थी और उसे पकड़ने के लिए लपकी थी. लेकिन वह हाथ न लगा था और मैं चीख कर रह गई थी.’’
‘‘शाम को गीतू ने जो कहा था, वही तुम्हारे मन में होगा,’’ कह कर वह उदास हो गया.
‘‘मैं तुम से प्रार्थना करती हूं कि तुम डाक्टर के यहां जा कर चैकअप…’’
‘‘तुम हर समय यही रट क्यों लगाए रहती हो.’’
‘‘इस में हर्ज ही क्या है?’’
‘‘मैं फिर कह रहा हूं कि भविष्य में अब कभी इस विषय पर चर्चा मत करना.’’
अचला उसे क्रोधित देख कर वहां से उठ कर चली गई. वह सोचने लगी कि उस की अभिलाषा कभी पूरी न होगी.
उधर देव सोचने लगा कि वह अचला को सुखी न रख सकेगा.
सारा दिन दोनों अनमने से रहे. काम सब होता रहा लेकिन दोनों के बीच तनाव ने फिर उग्र रूप धारण कर लिया.

अंधेरी गहरी रात का सन्नाटा चारों ओर फैल गया था. जाड़े की कंपकंपाहट शरीर को बिजली का सा झटका दे जाती थी. देव व गीतू बिस्तर पर लेटे हुए थे. अचला ड्राइंगरूम में बैठी गीतू की फ्रौक में बटन लगा रही थी और देव के विषय में सोचे जा रही थी कि जाने क्यों वह उस की बात स्वीकार नहीं कर रहा.

देव को नींद नहीं आ रही थी. कमरे में अचला के न होने से उसे सूनापन लग रहा था. अचला के शब्द उस के कानों में बराबर गूंज रहे थे, ‘तुम डाक्टर से चैकअप…’ लेकिन यह बात वह उस से कैसे कहे कि वह औपरेशन करवा चुका है, अब कुछ नहीं हो सकता. शीला की इच्छा बच्चों से भर गई थी और अचला मातृत्व सुख पाना चाहती है. उस के मन में अचला के प्रति सहानुभूति व स्नेह की भावना पैदा हुई. उस ने झटके से रजाई उतार फेंकी और ड्राइंगरूम में पहुंच गया. वह अचला के सामने दयनीय मुद्रा में खड़ा हो गया. अचला ने उस की ओर ध्यान नहीं दिया. वह पहले की तरह काम में लगी रही. देव से रहा नहीं गया तो वह बोला, ‘‘अचला, क्या तुम मुझ से प्रेम नहीं करतीं?’’
‘‘ऐसा मैं ने तो तुम से कभी नहीं कहा.’’
‘‘लेकिन मुझे लगता है.’’
‘‘अपने को भ्रम में मत रखो,’’ उस ने सूई में धागा डालते हुए कहा.
‘‘अचला, मेरी अचला, मुझे कभी घृणा की दृष्टि से मत देखना,’’ वह सोफे पर बैठते हुए बोला.
‘‘अरे, यह तुम क्या कह रहे हो?’’ उस ने देव की बड़ीबड़ी आंखों की ओर देखते हुए कहा.
‘‘मुझे डर लगता है, कहीं तुम मुझ से दूर न हो जाओ,’’ वह बोला.
‘‘अभी तुम जा कर सो जाओ,’’ अचला ने धागा मुंह से काटते हुए कहा.
आज्ञाकारी बच्चे की तरह देव कमरे में जा कर पलंग पर लेट गया. उसे नींद नहीं आ रही थी. थोड़ी देर में अचला सिलाई समाप्त कर के कमरे में पहुंची तो देव को जागता देख कर बोली, ‘‘अरे, अभी तुम सोए नहीं?’’
‘‘नींद नहीं आ रही.’’

अचला पलंग पर लेट गई. देव ने गीतू को अपनी बगल में किनारे पर लिटा दिया और स्वयं उस के समीप आ गया. उस ने अचला के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा, ‘‘अचला, क्या तुम मां बनने के लिए वास्तव में बहुत उत्सुक हो?’’
‘‘तुम ने कहा था न कि इस विषय में अब चर्चा न करना. फिर क्यों इस विषय को छेड़ते हो?’’
‘‘आज मैं कुछ कहना चाहता हूं.’’
‘‘कहो.’’
‘‘तो मैं ने जो पूछा है, उस का उत्तर दो.’’
‘‘मेरा उत्तर तो यही है कि हर स्त्री मातृत्व सुख पाना चाहती है.’’
देव की आंखें गीली हो गईं. उस ने करवट बदल ली तो अचला ने उसे अपनी ओर करते हुए कहा, ‘‘अरे, तुम्हारी आंखों में आंसू? ऐसी क्या बात है कि जबजब इस विषय में चर्चा होती है, तुम गंभीर हो जाते हो?’’
‘‘अचला, तुम कभी मां नहीं बन सकतीं.’’
‘‘क्यों?’’ उस ने आश्चर्यमिश्रित स्वर में कहा.
‘‘मैं सोचता था कि तुम ये बच्चे पा कर कभी संतान की कमी महसूस न करोगी और मुझे कभी इस विषय में सोचना न पड़ेगा, लेकिन अब…’’
‘‘अब क्या?’’
‘‘अब मैं बिना कहे नहीं रह सकता, मैं तुम्हें धोखे में नहीं रख सकता. मैं बहुत पहले ही औपरेशन करवा चुका हूं.’’
अचला जड़ हो गई. उस की दोनों आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी और वह सोचने लगी, ‘मुझे दूसरे के ही पौधे को सींचना है.’
‘‘मैं इसलिए तुम से कहने में संकोच करता था कि तुम दुखी होगी.’’ अचला एक लंबी सिसकी के साथ बोली, ‘‘यह बात तुम ने मुझे पहले क्यों नहीं बताई? मैं मन में यह इच्छा पनपने ही न देती.’’

यह कह कर वह उठी और उस ने गीतू को अपने पास बगल में लिटा लिया और उसे अपने सीने से लगा कर स्नेह करने लगी. Hindi Stories Love

लेखिका : रमा अग्निहोत्री

Family Story Hindi : वसीयत – प्रेम के उफान में कैसे बह निकलती है युवा पीढ़ी?

Family Story Hindi : सामने दीवार पर टंगी घड़ी शाम के 7 बजा रही थी. पूरे घर में अंधेरा पसरा हुआ था. मेरे शरीर में इतनी ताकत भी नहीं थी कि उठ कर लाइट जला सकूं. सुजाता, उस की बेटी, मैं और मेरी बेटी, इन्हीं चारों के बीच अनवरत चलता हुआ मेरा अंतर्द्वंद्व.

आज दोपहर, मैं अपनी सहेली के घर जा कर उस को बहुत अच्छी तरह समझा आई थी कि कोई बात नहीं सुजाता, अगर आज बेटी किसी के साथ रिलेशनशिप में रह रही है तो उसे स्वीकार करना ही हमारे हित में है. अब तो जो परिस्थिति सामने है, हमें उस के बीच का रास्ता खोजना ही पड़ेगा और अब अपनी बेटी का आगे का रास्ता साफ करो.

तो, तो क्या मेरी बेटी अपरा भी. नहीं, नहीं. लगा, मैं और सुजाता एक ही नाव में सवार हैं…नहीं, नहीं. मुझे कुछ तो करना पड़ेगा. फिर किसी तरह अपने को संभाल कर अजीत के आने का समय देख चाय बनाने किचन में चल दी.

उलझते, सोचते, समझते दिल्ली में इंजीनियरिंग कर रही अपनी बेटी अपरा के आने का इंतजार करने लगी. उस ने आज घर आने की बात कही थी.

वह सही वक्त पर घर पहुंच गई. उस के आने पर वही उछलकूद, खाने से ले कर कपड़ों तक की फरमाइशें मानो घरआंगन में छोटी चिडि़या चहचहा रही हो. डिनरटाइम पर सही समय देख सुजाता की बेटी का जिक्र छेड़ा तो वह बोली, ‘अरे छोड़ो भी मां, हमें किसी से क्या लेनादेना.’’

‘‘अच्छा चल, छोड़ भी दूं, पर कैसे बेटा? कैसे इस जहर से अपने गंदे होते समाज को बचाऊं?’’

‘‘मां, सब की अपनीअपनी जिंदगी है, जो जिस का मन चाहे, सो करे,’’ वह बोली.

मैं ने लंबी सांस ली और कहा, ‘‘अच्छा बेटा, मैं सोच रही हूं कि इस कमरे का परदा हटा दूं.’’

‘‘अरे, क्यों मां, कुछ भी बोलती हो. यह क्या हो गया है तुम्हें, बिना परदे के घर में कैसे रहेंगे,’’ वह झुंझलाई.

‘‘क्यों मेरी भी तो अपनी जिंदगी है, जो चाहे मैं करूं,’’ मेरा लहजा थोड़ा तल्ख था. मैं आगे बोली, ‘‘आज आधुनिकता के नाम पर हम ने अपनी संस्कृति, सभ्यता, लोकलिहाज, मानमर्यादा के सारे परदे भी तो उतार फेंके हैं. अपने वेग और उफान में सीमा से आगे बढ़ती नदी भी सदा हाहाकार मचाती है और आज की पीढ़ी भी क्या अपने घरपरिवार, समाज, रिश्तों को दरकिनार कर अपनी सीमा से आगे नहीं बढ़ रही है.

‘‘मैं मानती हूं कि हमारे बच्चे उच्च शिक्षित, समझदार और परिपक्व हैं किंतु फिर भी जीवन की समझ अनुभव से आती है और अनुभव उम्र के साथ. हम सब उम्र की इस प्रौढ़ता पर पहुंच कर भी जीवन के कुछ निर्णयों के लिए तुम्हारे बाबा, दादी, नानू, नानी पर निर्भर हैं.’’ अपरा चुपचाप सुनती जा रही थी.

थोड़ी देर रुक कर मैं फिर बोली, ‘‘प्रेम तो दिल से जुड़ी एक भावना है और विवाह एक अटूट बंधन, जो हमारे सामाजिक ढांचे का आधार स्तंभ है. और यह लिवइन रिलेशनशिप क्या है? बेटा, चढ़ती हुई बेल भी तभी आगे बढ़ती है जब उसे बांध कर रखा जाए, सो बिना बंधे रिश्तों को क्या भविष्य? क्यों आंख बंद कर अपने भविष्य को गर्त में ढकेल रहे हो? हमारी संस्कृति में आश्रम व्यवस्था के नियम भी इसीलिए बने थे, किंतु अब तो ये सब दकियानूसी बातें हो कर रह गई हैं.

‘‘माना कि आज समय बहुत बदल गया है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हम बड़े लोगों ने अपने को नहीं बदला.

बड़ों की स्वीकृति है तभी ज्यादातर शादियां लवमैरिज होती हैं. किंतु आज आधुनिकता के नाम पर अपनी संस्कृति को त्याग, पश्चिम की आयातित

संस्कृति की नकल करना बंद करो. सोचो और समझो कि तुहारे लव, ब्रेकअप, टाइमपास लव और टाइमपास रिलेशनशिप के क्या भयावह परिणाम होंगे. असमय बनाए संबंधों के अनचाहे परिणाम तुम्हारे कमजोर कंधे क्या…? बेटा, हर चीज का कुछ नियम होता है, बिना समय के तो पुष्प भी नहीं पल्लवित होते. इस तरह तो सारी सामाजिक व्यवस्था ही चरमरा जाएगी.

‘‘हमेशा याद रखना कि मांबाप कभी बच्चों का अहित नहीं सोचते. इसलिए अपने जीवन के अहम फैसले तुम खुद लो. किंतु उन से छिप कर नहीं, बल्कि उन्हें अपने फैसलों में शामिल कर के. बचपन तो जीवन के भोर के मानिंद रमणीय होता है किंतु जीवन का अपराह्न आतेआते तपती धूप में मांबाप ही तुम्हारे वटवृक्ष हैं, उन से जुड़े रहो, अलग मत हो.’’

तभी अजीत, थोड़ा माहौल को संभालते हुए, ताली बजाते हुए अपरा

से बोले, ‘‘अरे भई, इतनी नसीहत, तुम्हारी मां तो बहुत अच्छा भाषण देने लगी हैं, लगता है अगले चुनाव की तैयारी है.’’

मैं मन ही मन बोली, ‘नसीहत नहीं, वसीयत.’

पूरी तरह सहज अपरा 2 दिन रह कर फिर दिल्ली जाने के लिए तैयार होने लगी. बुझे मन और आंखों में आंसू लिए, जब उसे छोड़ मैं अपने कमरे में वापस आई तो मेरा मन सामने टेबल

पर रखे कार्ड को देख खुशी से नाच उठा जिस पर उस ने लिखा था, ‘यू आर ग्रेट, मौम.’

Stories in Hindi Love : और राज खुला – जब राजू के सामने खुल गया उस का राज

Stories in Hindi Love : ‘‘राजू मेरा नाम है. अक्ल एमए पास  है और शक्ल पीएचडी करने के काबिल है,’’ अपने आटोरिकशा की रफ्तार को और तेज करते हुए राजू ने अपना परिचय फिल्मी अंदाज में दिया.

यूनिवर्सिटी के सामने से राजू ने एक खूबसूरत सवारी अपने आटोरिकशा में बैठाई थी. मशरूम कट बाल, आंखों पर नीला चश्मा, गुलाबी टीशर्ट और काली जींस पहने उस सवारी ने उस से यों ही नाम पूछ लिया था.

उस के जवाब में राजू ने अपना दिलचस्प परिचय दिया था.

राजू के जवाब पर वह सवारी मुसकरा दी, ‘‘बड़े दिलचस्प आदमी हो. कितने पढ़ेलिखे हो?’’

‘‘मैं ने इतिहास में एमए किया है. आगे पढ़ने का इरादा है, लेकिन पिताजी की अचानक मौत हो जाने की वजह से घर की गाड़ी में ब्रेक लग गया है. बैंक से कर्ज ले कर यह आटोरिकशा खरीदा है. दिनभर कमाई और रातभर पढ़ाई. बात समझ में आई…’’

‘‘वैरी गुड, कीप इट अप. तुम बहुत होशियार और मेहनती हो. मेरा नाम किरन है,’’ उस सवारी ने राजू की बात से खुश होते हुए कहा.

किरन को साइड मिरर में देख कर राजू ने सोचा, ‘यह जरूर किसी बड़े बाप की औलाद है. एसी में बैठ कर चेहरा गुलाबी हो गया है.’

आटोरिकशा आंचल सिनेमा के पास से गुजरा. उस में एक पुरानी फिल्म ‘मुझ से दोस्ती करोगे’ चल रही थी. किरन ने फिल्म का पोस्टर देख कर कहा, ‘‘मुझ से दोस्ती करोगे?’’

‘‘क्यों नहीं करूंगा. इतिहास गवाह है कि मर्द को अपने दोस्त और अपनी औरत से ज्यादा अजीज कुछ नहीं होता,’’ राजू ने जोश में आ कर कहा.

राजू की बात सुन कर किरन के होंठों पर मुसकराहट तैरने लगी. उस ने तो फिल्म का बस नाम पढ़ा था और राजू ने उस का और ही मतलब निकाल लिया था, पर उस के चेहरे से जाहिर हो रहा था कि उसे इस पढ़ेलिखे आटोरिकशा वाले से दोस्ती करने में कोई एतराज नहीं है.

राजू खुश था. खुशी से उस का चेहरा दमक उठा था. पिछले 6 महीने से वह इस रूट से सवारियां उठाता रहा था, मगर हर कोई उस से तूतड़ाक में ही बात करता था. पहली बार उस के आटोरिकशा में ऐसी सवारी बैठी थी, जिस का दिल भी उसे उतना ही खूबसूरत लगा, जितना कि बदन.

‘‘आप को कहां जाना है, यह तो आप ने बताया ही नहीं?’’ राजू ने पीछे मुड़ कर पूछा.

‘‘पांचबत्ती चौराहा…’’ छोटा सा जवाब देने के बाद किरन ने गला साफ करते हुए पूछा, ‘‘फिल्में देखते हो?’’

‘‘बचपन में खूब देखता था, इसलिए फिल्मों का मुझ पर बहुत ज्यादा असर पड़ा है.’’

तभी आटोरिकशा एक झटके से रुक गया और राजू बोला, ‘‘आप की मंजिल आ गई.’’

‘‘बातोंबातों में समय का पता ही नहीं चला,’’ कह कर किरन ने 20 रुपए का नोट निकाल कर राजू की ओर बढ़ाया.

राजू नोट लेने से इनकार करते हुए बोला, ‘‘दोस्ती इस मुलाकात तक ही थी तो बेशक मैं पैसे ले लूंगा, वरना आप यह नोट वापस अपनी जेब के हवाले कर लें.’’

किरन ने मुसकरा कर राजू को घूरती निगाहों से देखा, जैसे उस की निगाहें यह परख रही हों कि उस ने किसी गलत आदमी को तो अपना दोस्त नहीं बनाया है.

किरन ने नोट वापस जेब में रख लिया और फिर अपना हाथ राजू की तरफ बढ़ाया. राजू ने दोस्त के रूप में किरन का हाथ थाम लिया.

राजू ने महसूस किया कि किरन का हाथ छूते ही उस के दिमाग में अजीब सी तरंगें उठीं. किरन के जाने के 10 मिनट बाद तक राजू वहीं खड़ा रहा.

दूसरे दिन राजू को यूनिवर्सिटी के बाहर किरन के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा.

आटोरिकशा में बैठते ही किरन ने कहा, ‘‘राजू, तुम्हें एमए में कितने फीसदी नंबर मिले थे?’’

‘‘64 फीसदी,’’ कहते हुए राजू ने आटोरिकशा स्टार्ट कर साइड मिरर में किरन के चेहरे को देखा.

किरन ने राजू का जोश बढ़ाते हुए कहा, ‘‘फिर तो तुम प्रतियोगी इम्तिहान पास कर के किसी भी कालेज में लैक्चरर बन सकते हो.’’

‘‘दोस्त, अपनी तकदीर खराब है. मेरी तकदीर में तो यह आटोरिकशा चलाना ही लिखा है.’’

‘‘तकदीर, माई फुट… मुझे इन चीजों पर यकीन नहीं है. आदमी अगर पूरी लगन से काम करे तो वह जो चाहता है, पा सकता है,’’ किरन ने राजू को डांट दिया.

राजू और किरन की दोस्ती पक्की हो गई थी. दोनों राजनीति, पढ़ाईलिखाई, फिल्म, दूसरी घटनाओं वगैरह पर खुल कर बातचीत करने लगे थे.

उस दिन रविवार था. राजू सुबहसुबह पांचबत्ती चौराहा पहुंच गया. आज उस की सालगिरह थी और वह उसे किरन के साथ मनाना चाहता था.

चौराहे के दाईं ओर किरन का बंगला था. बेबाक बातें करने में माहिर किरन ने राजू को अपने नाम के अलावा अपनी निजी जिंदगी और परिवार के बारे में कुछ नहीं बताया था.

किरन को बंगले से निकल कर आते देख राजू का चेहरा खिल गया. राजू को खुश देख कर किरन के होंठों पर भी मुसकान उभरी.

किरन के आटोरिकशा में बैठते ही राजू ने म्यूजिक सिस्टम चला दिया. ‘जिंदगी एक सफर है सुहाना…’ गीत ने किरन के चेहरे पर ताजगी ला दी. उस ने राजू से पूछा, ‘‘क्या प्रोग्राम है?’’

‘‘तुम बोलो. जहां चाहो, वहां घुमा दूंगा. अच्छे होटल में खाना खिला दूंगा,’’ राजू ने कहा.

‘‘चलो, शहर में घूमते हैं. फिर दिल ने जो चाहा वही करेंगे. बोलो, मंजूर है?’’ किरन ने कहा.

‘‘आज का पूरा दिन तुम्हारे नाम. जो चाहोगे वही होगा,’’ कह कर राजू ने आटोरिकशा शहर के बाजार के भीड़भाड़ वाले इलाके की ओर मोड़ दिया.

थोड़ी दूर जाने के बाद किरन ने राजू को आटोरिकशा रोकने के लिए कहा. राजू ने आटोरिकशा रोक दिया.

‘‘आज मेरा मूड बहुत खराब है. मुझे तुम्हें कुछ बताना है. एक ऐसा सरप्राइज, जो तुम्हें चौंका देगा,’’ किरन ने आटोरिकशा रुकने के बाद कहा.

‘‘तो बताओ, क्या है सरप्राइज?’’

‘‘ऐसे नहीं, पहले तुम मुझे कुछ खिलाओपिलाओ.’’

‘‘क्या पीना है, कोल्ड डिंक या जूस?’’ राजू ने पूछा.

‘‘शराब पीनी है.’’

‘‘शराब, वह भी दिन में… मैं ने तो कभी शराब को छुआ तक नहीं,’’ राजू ने हैरानी से कहा.

‘‘अभी तो तुम ने मेरी मरजी के मुताबिक दिन बिताने का वादा किया था और फौरन भूल गए,’’ किरन ने कहा.

‘‘ठीक है, चलो,’’ कह कर राजू ने बेमन से आटोरिकशा बाजार की ओर बढ़ा दिया.

शराब का ठेका पास ही था. राजू शराब की बोतल ले आया. साथ में 2 कोल्ड ड्रिंक की बोतलें भी थीं. फिर दोनों सुनसान जगह पर जा पहुंचे. राजू ने वहां आटोरिकशा खड़ा कर दिया.

किरन ने कोल्ड ड्रिंक की दोनों बोतलों को आधा खाली कर के उन में शराब डाल दी. राजू का मन थोड़ा बेचैन सा हो गया, लेकिन वह अपने नए दोस्त को नाराज नहीं करना चाहता था. दोनों शराब पीने लगे.

जैसा कि शराब पीने के बाद पीने वाले का हाल होता है, वही उन दोनों का भी हुआ. किरन को कम, मगर राजू को बहुत नशा चढ़ गया. वह निढाल सा हो कर आटोरिकशा की पिछली सीट पर बैठ गया.

‘‘चलो, अब शहर घूमते हैं. अब आटोरिकशा चलाने का जिम्मा मेरा,’’ कह कर किरन ने आटोरिकशा स्टार्ट कर दिया.

किरन को कार चलानी आती थी, इसलिए आटोरिकशा चलाना उसे बाएं हाथ का खेल लगा. उस ने आटोरिकशा का हैंडिल थाम लिया और भीड़भाड़ वाली सड़क की ओर मोड़ दिया.

नशे के सुरूर में किरन से आटोरिकशा संभल नहीं रहा था, फिर भी उसे चलाने में मजा आने लगा.

बाजार में घुसते ही आटोरिकशा सब्जी के एक ठेले से टकरा गया, फिर आगे बढ़ कर एक साइकिल सवार को ऐसी टक्कर मारी कि वह बेचारा सड़क पर मुंह के बल गिर पड़ा. उस के होंठ व नाक से खून बहने लगा.

वह साइकिल सवार आटोरिकशा चलाने वाले को भलाबुरा कहता, उस से पहले ही सड़क के किनारे एक शोरूम के सामने खड़ी कार से आटोरिकशा टकरा कर बंद हो गया.

नशे की वजह से राजू को कुछ भी पता नहीं लगा. देखते ही देखते वहां लोगों की अच्छीखासी भीड़ जमा हो गई.

‘‘2 थप्पड़ मारो इस को, अभी नशा उतर जाएगा. दूध के दांत भी नहीं टूटे कि शराब पीना शुरू कर दिया,‘‘ भीड़ में से किसी ने कहा.

एक लड़के ने किरन को खींच कर आटोरिकशा से बाहर निकाला और पीटना शुरू किया.

‘‘मुझे मत मारो, मैं…’’ किरन ने डरते हुए कहा. मगर उस की बात किसी ने नहीं सुनी.

तभी 2 पुलिस वाले वहां आ गए. उन्होंने भी लगे हाथ किरन के गालों पर 2 थप्पड़ रसीद कर दिए.

शोरगुल सुन कर नशे में धुत्त राजू उठ खड़ा हुआ. मारपीट देख कर वह घबरा गया. वह किरन को बचाने के लिए भीड़ में घुस गया, मगर भीड़ तो मरनेमारने पर उतारू हो चुकी थी.

‘‘मैं लड़की हूं. मुझ पर हाथ मत उठाओ,’’ किरन ने चीखते हुए कहा.

‘‘अच्छा, खुद को लड़की बताकर पिटने से बचना चाहता है…’’ एक आदमी ने उसे घूंसा मारते हुए कहा.

किरन चेहरेमोहरे और कपड़ों से लड़की नहीं लगती थी. लोगों ने उसे पीटना जारी रखा. राजू भी बीचबचाव में किरन के साथ पिटने लगा.

‘‘मैं लड़की हूं… मुझे छोड़ दो,’’ किरन ने जोर से चिल्लाते हुए अपनी टीशर्ट उतार दी.

किरन के टीशर्ट उतारते ही लोग सकते में आ गए. वे दूर हट कर खड़े हो गए. किरन के कसे हुए ब्लाउज में छाती के उभार उस के लड़की होने का सुबूत दे रहे थे.

यह देख कर राजू का नशा काफूर हो गया. जिसे वह लड़का समझ कर दोस्ती निभा रहा था, वह एक लड़की थी.

यह राज खुलना लोगों के लिए ही नहीं, बल्कि राजू के लिए भी अचरज की बात थी.

Love Story : मजनू की मलामत – सरिता की खूबसूरती का कायल अनिमेष

Love Story : उन दिनों मैं इंटर में पढ़ता था. कालेज में सहशिक्षा थी, लेकिन भारतीय खासतौर पर कसबाई समाज आज की तरह खुला हुआ नहीं था. लड़के लड़की के बीच सामान्य बातचीत को भी संदेह की नजरों से देखा जाता था. प्यारमुहब्बत होते तो थे पर बहुत ही गोपनीयता के साथ. बात का बतंगड़ बनते देर नहीं लगती थी.

हमारे कालेज में लड़कियां पढ़ती थीं लेकिन खामोशी के साथ सिर झुकाए आतीजाती थीं. वे कालेज परिसर में बिना कारण घूमतीफिरती भी नहीं थीं. ज्यादातर कौमन रूम में रहती थीं. क्लास शुरू होने के कुछ मिनट पहले आतीं और लड़कों से अलग एक ओर खड़ी रहतीं. शिक्षक के आने के बाद ही क्लास में प्रवेश करतीं और अगली बैंचों पर बैठ जातीं फिर शिक्षक के साथ ही निकलतीं.

उन्हीं दिनों मेरी क्लास में सरिता नामक एक अत्याधुनिक लड़की ने दाखिला लिया. वह बहुत ही खूबसूरत थी और लाल, पीले, नीले जैसे चटकदार रंगों की ड्रैसें पहन कर आती, जो उस पर खूब फबती भी थीं. कालेज के शिक्षकों से ले कर छात्रों तक में उसे ले कर उत्सुकता थी. कई लड़के तो उस का पीछा करते हुए उस का घर तक देख आए थे, लेकिन उस जमाने में छिछोरापन कम था इसलिए उस के साथ कोई छेड़खानी या अभद्रता नहीं हुई.

उन दिनों मेरा एक मित्र था जो पढ़ता तो दूसरे सैक्शन में था, लेकिन अकसर मुझ से मिलताजुलता रहता था. सरिता के कालेज में दाखिले के बाद मुझ से उस की मित्रता कुछ ज्यादा ही प्रगाढ़ होती जा रही थी. वह प्राय: हमारी क्लास शुरू होने के वक्त हमारे पास आ जाता और गप्पें मारने लगता. मैं ने कई दिन तक नोटिस करने के बाद महसूस किया कि वह बात तो हम लोगों से करता था, लेकिन उस की नजर सरिता पर टिकी रहती थी. एकाध बार उसे सरिता का पीछा करते हुए भी देखा गया. उस की कदकाठी अच्छी थी, लेकिन देखने में कुरूप था. मुझे लगा कि इसे सबक सिखाना चाहिए.

अगले दिन जब वह मेरे होस्टल में आया तो मैं ने कहा कि भाई अनिमेष, सरिता पूछ रही थी कि आप के साथ जो सांवले से, लंबे, स्मार्ट नौजवान रहते हैं वे कौन हैं व कहां रहते हैं?

अनिमेष का चेहरा खिल उठा, ‘‘अच्छा, वाकई में… कब पूछा उस ने?’’

‘‘प्रैक्टिकल रूम में 2-3 बार पूछ चुकी है. तुम उस से दोस्ती क्यों नहीं कर लेते,’’ मैं ने कहा.

’’ लेकिन कैसे?’’

‘‘तुम ऐसा करो कि शाम को 5 बजे मेरे पास आओ. फिर बताता हूं.’’

कालेज से लौट कर शाम के वक्त वह मेरे कमरे में आया. इस बीच मैं ने अपने कुछ मित्रों को अपनी योजना बता दी थी और उन्हें अभियान में शामिल कर लिया था. हम सब ने उस की प्रशंसा कर उसे फुला दिया.

‘‘करना क्या है?’’ उस ने मासूमियत से पूछा.

‘‘सब से पहले तो तुम्हारा हुलिया बदलना पड़ेगा, चलो.’’

हम ने पूरे होस्टल में घूम कर किसी का सूट, किसी का हैट, किसी का जूता इकट्ठा किया और उसे एक कार्टून की तरह मेकअप कर के तैयार कर दिया. इस के बाद उसे सरिता के घर की तरफ ले कर चले .

हम ने रास्ते में उसे समझाया कि तुम्हें उसे बुलवाना है और उस से फिजिक्स की कौपी यह कह कर मांगनी है कि तुम नोट कर के लौटा दोगे. इस तरह आपस में बातचीत की शुरुआत होगी. साथ ही हड़काया भी कि अगर तुम ने कहे मुताबिक नहीं किया तो हम सब तुम्हारी पिटाई कर देंगे.

सरिता के घर के पास पहुंच कर हम सभी ऐसी जगह छिप गए जहां से उन की गतिविधियां देख सकते थे, बातें सुन सकते थे लेकिन उन की नजर में नहीं आ सकते थे.

वह सहमता, सकुचाता हुआ सरिता के घर के दरवाजे पर पहुंचा, दस्तक दी. सरिता की मौसी बाहर निकलीं और बोलीं, ’’क्या बात है, किस से मिलना है?’’

’’जी…जी…जी… सरिता से काम है… मैं उस की क्लास में पढ़ता हूं.’’

मौसी ने सरिता को आवाज दी और खुद अंदर चली गईं.

’’यस, क्या बात है. आप कौन हैं? मुझ से क्या काम है?’’ सरिता ने आते ही पूछा.

’’जी…जी… 2-3 दिन के लिए… आ… आ… आप की फिजिक्स की कौपी चाहिए, फिर लौटा दूंगा.’’

’’तुम तो मेरी क्लास में नहीं पढ़ते. मेरी कौपी क्यों चाहिए. खूब समझती हूं, तुम जैसे लड़कों को. चुपचाप चलते बनो, नहीं तो चप्पल से पिटाई कर दूंगी. भागो यहां से.’’

’’जी…जी… आप गलत समझ रही हैं…’’

’’तुम जाते हो कि सब को बुलाऊं…’’ सरिता ने चिल्ला कर कहा.

’’ज…ज…जाता हूं… जाता हूं,’’ और वह चुपचाप वापस लौट आया.

हम ने इशारे से आगे आने को कहा. उस के घर से कुछ दूर पहुंचने के बाद पूछा, ’’अब बताओ कैसी रही?’’

’’बहुत बढि़या… उस ने कहा कि कौपी एकदो रोज बाद ले लीजिएगा… फिर चाय पीने के लिए अंदर आने को कहा लेकिन मैं ने क्षमा मांग ली कि फिर कभी.’’

हम एकदूसरे को देख मुसकराए, फिर उस की पीठ ठोंकते हुए कहा, ’’चलो, इसी बात पर पार्टी हो जाए.’’

उसे मजबूरन पार्टी देनी पड़ी. इस के बाद वह हम से कतराने लगा. हम में से किसी को देखता तो तुरंत बहाना बना कर दूसरी ओर निकल जाता.

3-4 दिन बाद वह पकड़ में आया तो हम ने पूछा, ’’कहो, भाई अनिमेष, सरिता से मिलने के बाद हमें भूल गए क्या, मत भूलो कि तुम्हारे काम हम ही आएंगे.’’

वह खिसियानी हंसी हंस कर रह गया. हम उसे पकड़ कर होस्टल ले आए और कहा कि आज तुम्हें फिर से सरिता के घर चलना है.

वह आनाकानी करता रहा लेकिन खुल कर बोल नहीं पाया कि उस दिन क्या हुआ था. हम ने फिर उसे धमका कर तैयार किया और उसे मजबूरन सरिता के घर जाना पड़ा.

इस बार सरिता ने दरवाजा खोलते ही उसे फटकार लगाई, ’’तुम फिर आ गए. लगता है, तुम बातों के देवता नहीं हो. बिना लात खाए नहीं मानोगे.’’

म…म…माफ कर दीजिए. कुछ मजबूरी थी, आना पड़ा. जा रहा हूं,’’ और वह पलट कर भागा.

हम ने थोड़ी दूर पर उसे लपक कर पकड़ा और पूछा, ’’क्या हुआ… बहुत जल्दी लौट आए?’’

’’हां… उस के घर वालों को शक हो गया है. अब वह मुझ से नहीं मिल सकेगी.’’

’’यह क्या बात हुई… शुरू होने के पहले ही खत्म हो गया अफसाना,’’ मैं ने कहा.

’’जाने दो भाई. कुछ मजबूरी होगी.. इस किस्से को अब खत्म करो…’’ उस ने पीछा छुड़ाने हेतु मासूमियत से कहा,

’’चलो, ठीक है. कल क्लास में मिलोगे न?’’

’’देखेंगे…’’

इस के बाद अनिमेष हमें पूरब में देखता तो पश्चिम की ओर रुख कर लेता. मेरी क्लास के वक्त आना भी उस ने छोड़ दिया था.  हमारी योजना सफल रही.

Samajik Kahani : वास्तुदोष कहां है – भानु प्रकाश क्यों चिंतित रहता था ?

Samajik Kahani : सुबहसुबह तैयार हो कर जब भानुप्रकाश ने गैराज का ताला खोल कार को स्टार्ट करने लगे, तो वह घर्रघर्र कर के रह गई. वह एकदम से झल्ला कर के चिल्लाए, “सुधा… ओ सुधा, जरा बाहर तो आना.”

वह हड़बड़ाती हुई आई, तो भानुप्रकाश बोले- “देखो, आज फिर कार स्टार्ट नहीं हो रही है.”

“ओह… पिछले दिनों ही इसे रिपेयरिंग कराए थे ना. रोजरोज यह क्या हो जाता है?”

“मैं कहता था ना कि हमारा गैराज सही दिशा में नहीं है,” वह बोले, “पिछले सप्ताह इस में सांप निकला था, जिस से मैं बालबाल बचा था. यहां आए हमें 6 महीने भी नहीं हुए कि कार दो बार दुर्घटनाग्रस्त हुई है.”

“आप कहना क्या चाह रहे हैं?”

“यही कि गैराज में वास्तुदोष है. यही कारण है कि कार के साथ कुछ न कुछ परेशानी आ रही है और यह बीचबीच में खराब भी हो जा रही है. यह गैराज दक्षिणपश्चिम में है, जबकि इसे उत्तरपश्चिम यानी वायव्य कोण में होना चाहिए.”

“अरे, ऐसा कुछ नहीं है,” वह जानते हुए भी बोली कि भानु प्रकाश प्रारब्ध, ज्योतिष आदि पर आंख मूंद कर विश्वास करते हैं, उन की शंका का निवारण करना चाहा, “यह संयोग भी तो हो सकता है.”

“क्या बात करती हो, 18 लाख की नई गाड़ी है. और यह बारबार खराब हो जाती है. फिर यहां के गैराज में भी कोई न कोई हादसा हो जा रहा है. मुझे लगता है कि यह गैराज के सही दिशा में न होने के कारण है. मुझे अब किसी दूसरी जगह पर गैराज बनाना होगा.”

“कितनी मुश्किल से तो यह घर मिला है… इतने बड़े शहर में जगह कहां है, जो कोई अलग से गैराज बनवाए. फिर सरकार तो बनवाने से रही. और हम बनाएंगे तो हजारों रुपए का खर्च आएगा.”

“तो क्या करें…? रोजरोज की परेशानी तो नहीं देखी जा सकती?”

“लेकिन, गैराज बनाने के लिए जगह तो चाहिए?”

“जगह का क्या है… हम बंगले के सामने ही क्यों न गैराज बना लें?”

“अरे, इतनी अच्छी फुलवारी है. उसे तहसनहस कर दें.”

“और कोई उपाय भी तो नहीं है. मैं कल ही यहां काम लगा दूंगा.”

भानु प्रकाश सरकारी महकमे में कनिष्ठ सचिव ठहरे. बस ठेकेदार को बताना भर था. आननफानन काम लग गया. जहां कभी खूबसूरत फूलपत्तों के पौधे शोभायमान थे, उसे उजाड़ कर वहां सीमेंट की फर्श बन चुकी थी. लोहे की चादरों की दीवार और ऊपर एसबेस्टस की छत डाली जा चुकी थी. और पुराने गैराज का फाटक उखाड़ कर वहीं लगा दिया गया था. उन के कहेअनुसार अब गैराज वायव्य कोण अर्थात उत्तरपश्चिम में बन चुका था. और इसी चक्कर में बीसेक हजार रुपए खर्च हो गए थे.

“अब यहां कोई परेशानी नहीं होगी,” खुश होते हुए वह बोले.

“मगर, यह अब बंगले की चारदीवारी के बाहर है,” वह चिंतित स्वरों में बोली, “और, मैं ने सुना है, इधर चोरियां बहुत होती हैं.”

“अरे, ऐसा कुछ नहीं,” भानु प्रकाश निश्चिंत भाव से बोले, “बंगले के सामने ही तो है. फिर फाटक में मजबूत ताला लगाऊंगा.”

सुधा को इस बात का मलाल था कि एक खूबसूरत फुलवारी उजड़ गई थी और उस की जगह बंगले के ठीक सामने गैराज था. पहले बंगले के परिसर में ही चारदीवारी के भीतर गैराज था. अब गैराज के बाहर होने से उस के लिए अलग से ताले की व्यवस्था करनी पड़ी थी.

कुछ दिन तो ठीकठाक बीते. मगर, फिर भी एक हादसा हो ही गया.
वह 3 दिनों के लिए राजधानी में दौरे पर गए थे. वहीं उन्हें फोन आया कि गांव में मां की तबीयत ठीक नहीं है. उन्होंने तुरंत सुधा को फोन किया कि वह अविलंब गांव चली जाए. शाम की ट्रेन पकड़ कर वह गांव चली आई थी.

अगले दिन ही वह भी राजधानी से सीधे गांव चले आए.

उस के अगले दिन वह दोनों वापस लौटे. कार गैराज में नहीं थी. किसी ने ताला तोड़ कर दिनदहाड़े कार चोरी कर ली थी.

और वह थाने में कार चोरी की रपट लिखा रहे थे.

Story in Hindi Moral : आक्रोश – बच्ची के मनोवेगों को सोचने पर मजबूर करती कहानी

Story in Hindi Moral : ‘‘माया, मैं मिसेज माथुर के घर किटी पार्टी में जा रही हूं. तुम पिंकी का खयाल रखना. सुनो, 5 बजे उसे दूध जरूर दे देना और फिर कुछ देर बाग में ले जाना ताकि वह अपने दोस्तों के साथ खेल कर फ्रेश हो सके. मैं 7 बजे तक आ जाऊंगी, और हां, कोई जरूरी काम हो तो मेरे मोबाइल पर फोन कर देना,’’ रंजू ने आया को हिदायतें देते हुए कहा.

पास में खड़ी 8 साल की पिंकी ने आग्रह के स्वर में कहा, ‘‘मम्मा, मुझे भी अपने साथ ले चलो न.’’

‘‘नो बेबी, वहां बच्चों का काम नहीं. तुम बाग में अपने दोस्तों के साथ खेलो. ओके…’’ इतना कहती हुई रंजू गाड़ी की ओर चली तो दोनों विदेशी कुत्ते जिनी तथा टोनी दौड़ते हुए उस के इर्दगिर्द घूमने लगे.

रंजू ने बड़े प्यार से उन दोनों को उठा कर बांहों के घेरे में लिया और कार में बैठने से पहले पीछे मुड़ कर बेटी से ‘बाय’ कहा तो पिंकी की आंखें भर आईं.

दोनों कुत्तों को गोद में बैठा कर रंजू ने ड्राइवर से कहा, ‘‘मिसेज माथुर के घर चलो.’’

कार के आंखों से ओझल होने के बाद एकाएक पिंकी जोर से चीख पड़ी, ‘‘मम्मा गंदी है, मुझे घर छोड़ जाती है और जिनीटोनी को साथ ले जाती है.’’

मिसेज माथुर के घर पहुंच कर रंजू ने बड़ी अदा से दोनों कुत्तों को गोद में उठाया और भीतर प्रवेश किया.

‘‘हाय, रंजू, इतने प्यारे पप्पी कहां से ले आई?’’ एक ने अपनी बात कही ही थी कि दूसरी पूछ बैठी, ‘‘क्या नस्ल है, भई, मान गए, बहुत यूनिक च्वाइस है तुम्हारी.’’

रंजू आत्मप्रशंसा सुन कर गदगद हो उठी, ‘‘ये दोनों आस्ट्रेलिया से मंगाए हैं. हमारे साहब के एक दोस्त लाए हैं. 50 हजार एक की कीमत है.’’

‘‘इतने महंगे इन विदेशी नस्ल के कुत्तों को संभालने में भी दिक्कतें आती होंगी?’’ एक महिला ने पूछा तो रंजू चहकी, ‘‘हां, वो तो है ही. मेरा तो सारा दिन इन्हीं के खानेपीने, देखरेख में निकल जाता है. अपना यह जिनी तो बेहद चूजी है पर टोनी फिर भी सिंपल है. दूधरोटी, बिसकुट सब खा लेता है ज्यादा नखरे नहीं करता है…’’ इस कुत्ता पुराण से ऊब रही 2-3 महिलाएं बात को बीच में काटते हुए एक स्वर में बोलीं, ‘‘समय हो रहा है, चलो, अब तंबोला शुरू करें.’’

रंजू ने ड्राइवर को आवाज लगा कर जिनी और टोनी को उस के साथ यह कहते हुए भेज दिया कि इन दोनों को पिछली सीट पर बैठा दो और दरवाजे बंद रखना.

पहले तंबोला हुआ, फिर खेल और अंत में अश्लील लतीफों का दौर. ऐसा लग रहा था मानो सभी संभ्रांत महिलाओं में अपनी कुंठा निकालने की होड़ लगी हो. बीचबीच में टीवी धारावाहिकों की चर्चा भी चल रही थी.

‘‘तुम ने वह सीरियल देखा? कल की कड़ी कितनी पावरफुल थी. नायिका अपने सासससुर, ननद को साथ रखने से साफ इनकार कर देती है. पति को भी पत्नी की बात माननी पड़ती है.’’

‘‘भई, सच है. अब 20वीं शताब्दी तो है नहीं जब घर में 8-10 बच्चे होते थे और बहू बेचारी सिर ढक कर सब की सेवा में लगी रहती थी. अब 21वीं सदी है, आज की नारी अपने अधिकार, प्रतिभा और योग्यता को जानती है. अपना जीवन वह अपने ढंग से जीना चाहती है तो इस में गलत क्या है? अब तो जमाना मैं, मेरा पति और मेरे बच्चे का है,’’ जूही चहकी.

‘‘तुम ठीक कह रही हो. देखो न, पिछले महीने मेरे सासससुर महीना भर मेरे साथ रह कर गए हैं. घर का सारा बजट गड़बड़ा गया है. बच्चे अलग डिस्टर्ब होते रहे. कभी उन के पहनावे पर वे लोग टोकते थे तो कभी उन के अंगरेजी गानों के थिरकने पर,’’ निम्मी बोली.

रंजू की बारी आई तो वह बोली, ‘‘भई, मैं तो अपने ढंग से, अपनी पसंद से जीवन जी रही हूं. वैसे मैं लकी हूं, मेरे पति शादी से पहले ही मांबाप से अलग दूसरे शहर में व्यवसाय करते थे. शादी के बाद मुझ पर कोई बंधन नहीं लगा. यू नो, शुरू में समय काटने के लिए मैं ने खरगोश, तोते और पप्पी पाले थे. सभी के साथ बड़ा अच्छा समय पास हो जाता था पर पिंकी के आने के बाद सिर्फ पप्पी रखे हैं, बाकी अपने दोस्तों में बांट दिए.’’

‘‘रंजू, तुम्हारी पिंकी भी अब 8 साल की हो गई है, उस का साथी कब ला रही हो? भई 2 बच्चे तो होने ही चाहिए,’’ जूही ने कहा तो रंजू के तेवर तन गए, ‘‘नानसेंस, मैं उन में से नहीं हूं जो बच्चे पैदा कर के अपने शरीर का सत्यानाश कर लेती हैं. पिंकी के बाद अपने बिगड़े फिगर को ठीक करने में ही मुझे कितनी मेहनत करनी पड़ी थी. अब दोबारा वह बेवकूफी क्यों करूंगी.’’

अगले माह अंजू के घर किटी पार्टी में मिलने का वादा कर सब ने एकदूसरे से विदा ली.

घर पहुंच कर रंजू को पता चला कि पिंकी को पढ़ाने वाले अध्यापक नहीं आए हैं तो उस का पारा यह सोच कर एकदम से चढ़ गया कि अगर होमवर्क नहीं हो पाया तो कल पिंकी को बेवजह सजा मिलेगी.

उस ने अध्यापक के घर फोन लगाया तो उन्होंने बताया कि तबीयत खराब होने के कारण वह 2-3 दिन और नहीं आ सकेंगे.

सुनते ही रंजू तैश में बोली, ‘‘आप नहीं आएंगे तो पिंकी को होमवर्क कौन कराएगा? आप को कुछ इंतजाम करना चाहिए था.’’

‘‘2-3 दिन तो आप भी बेटी का होमवर्क करवा सकती हैं,’’ अध्यापक भी गुस्से में बोले, ‘‘तीसरी कक्षा कोई बड़ी क्लास तो नहीं.’’

‘‘अब आप मुझे सिखाएंगे कि मुझे क्या करना है? ऐसा कीजिए, आराम से घर बैठिए, अब यहां आने की जरूरत नहीं है. आप जैसे बहुत ट्यूटर मिलते हैं,’’ रंजू ने क्रोध में फोन काट दिया.

गुस्सा उतरने पर रंजू को चिंता होने लगी. पिंकी को पिछले 5 सालों में उस ने कभी नहीं पढ़ाया था. शुरू से ही उस के लिए ट्यूटर रखा गया. उसे तो किटी पार्टियों, जलसे, ब्यूटी पार्लर, टेलीविजन तथा अपने दोनों कुत्तों की देखभाल से ही फुरसत नहीं मिलती थी.

अब रंजू को पिंकी का होमवर्क कराने खुद बैठना पड़ा. एक विषय का आधाअधूरा होमवर्क करा कर ही रंजू ऊब गई. उस के मुंह से अनायास निकल पड़ा, ‘‘बाप रे, कितनी सिरदर्दी है बच्चों को पढ़ाना और उन का होमवर्क कराना. मेरे बस की बात नहीं.’’ वह उठी और कुत्तों को खाना खिलाने चल दी. उन्हें खिला कर वह बेटी की ओर मुड़ी, ‘‘चलो पिंकी, तुम भी खाना खा लो. मैं ने तो किटी पार्टी में कुछ ज्यादा खा लिया, अब रात का खाना नहीं खाऊंगी.’’

पिंकी ने कातर नजरों से मां की ओर देखा कि न तो मम्मी ने पूरा होमवर्क कराया न मेरी पसंद का खाना बनाया.

पिंकी का नन्हा मन आक्रोश से भर उठा, ‘‘मुझे नहीं खानी यह गंदी खिचड़ी.’’

रंजू बौखला गई, ‘‘नहीं खानी है तो मत खा. तुझ से तो अच्छे जिनीटोनी हैं, जो भी बना कर दो चुपचाप खा लेते हैं.’’

रंजू की घुड़की सुन कर माया पिंकी का हाथ पकड़ कर उस के कमरे में ले गई. उस रात पिंकी ने ठीक से खाना नहीं खाया था. उस का होमवर्क भी पूरा नहीं हुआ था, उस पर मम्मी की डांट ने उस के मन में तनाव और डर पैदा कर दिया.  सुबह होतेहोते उसे बुखार चढ़ आया.

अचानक रंजू को तरकीब सूझी, क्यों न 2-3 दिन की छुट्टी का मेडिकल बनवा लिया जाए. रोजरोज होमवर्क की सिरदर्दी भी खत्म. उस ने फौरन अपने परिवारिक डाक्टर को फोन लगाया.

डाक्टर घर आ कर पिंकी की जांच कर दवा दे गया और 3 दिन के  आराम का सर्टिफिकेट भी.

रात को पिंकी ने मां से अनुरोध किया, ‘‘मम्मा, आज मैं आप के पास सो जाऊं. मुझे नींद नहीं आ रही है.’’

‘‘नो बेबी, आज मैं बहुत थक गई हूं. माया आंटी तुम्हारे साथ सो जाएंगी,’’ इतना कह कर रंजू अपने कमरे की ओर मुड़ गई.

डबडबाई आंखों से पिंकी ने माया को देखा, ‘‘मम्मा मुझ को प्यार नहीं करतीं.’’

माया नन्ही बच्ची के अंतर में उठते संवेगों को महसूस कर रही थी. उस के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली, ‘‘ऐसा नहीं कहते, बेटा, चलो मैं तुम्हें सुला देती हूं.’’

रात को पिंकी को प्यास लगी. माया सोई हुई थी. वह उठ कर रंजू के कमरे में चली गई, ‘‘मम्मा, प्यास लगी है, पानी चाहिए.’’

रंजू ने बत्ती जलाई. पिंकी की नजर मम्मी के पलंग के करीब सोए जिनी और टोनी पर पड़ी. पानी पी कर वह वापस अपने कमरे में आ गई. उस का दिमाग क्रोध और आवेश से कांप रहा था कि मम्मी ने मुझे अपने पास नहीं सुलाया और कुत्तों को अपने कमरे में सुलाया. मुझ से ज्यादा प्यार तो मम्मी कुत्तों को करती हैं.

बगीचे की साफसफाई, कटाई- छंटाई करने के लिए माली आया तो पिंकी भी उस के साथसाथ घूमने लगी. बीचबीच में वह प्रश्न भी कर लेती थी. माली ने कीटनाशक पाउडर को पानी में घोला फिर सभी पौधों पर पंप से छिड़काव करने लगा. पिंकी ने उत्सुकता से पूछा, ‘‘बाबा, यह क्या कर रहे हो?’’

‘‘बिटिया, पौधों को कीड़े लग जाते हैं न, उन्हें मारने के लिए दवा का छिड़काव कर रहे हैं,’’ माली ने समझाया.

‘‘क्या इस से सारे कीड़े मर जाते हैं?’’

‘‘हां, कीड़े क्या इस से तो जानवर और आदमी भी मर सकते हैं. बहुत तेज जहर होता है, इसे हाथ नहीं लगाना,’’ माली ने समझाते हुए कहा.

अपना काम पूरा करने के बाद कीटनाशक का डब्बा उस ने बरामदे की अलमारी में रखा और हाथमुंह धो कर चला गया.

अगले दिन दोपहर में रंजू ब्यूटी पार्लर चली गई. वहीं से उसे क्लब भी जाना था अत: प्रभाव दिखाने के लिए जिनी और टोनी को भी साथ ले गई.

स्कूल से घर लौट कर पिंकी ने खाना खाया और माया के साथ खेलने लगी.

शाम को माया ने कहा, ‘‘पिंकी, मैं जिनी और टोनी का दूध तैयार करती हूं, तब तक तुम जूते पहनो, फिर हम बाग में घूमने चलेंगे.’’

पिंकी का खून खौल उठा कि मम्मी जिनी और टोनी को घुमाने ले गई हैं पर मेरे लिए उन के पास समय ही नहीं है.

वह क्रोध से बोली, ‘‘आंटी, मुझे कहीं नहीं जाना. मैं घर में ही अच्छी हूं.’’

उसे मनाने के लिए माया ने कहा, ‘‘ठीक है, यहीं घर में ही खेलो. तब तक मैं खाना बनाती हूं. आज तुम्हारी पसंद की डिश बनाऊंगी. बोलो, तुम्हें क्या खाना है?’’

पिंकी के चेहरे पर मुसकान आ गई, ‘‘मुझे गाजर का हलवा खाना है.’’

‘‘ठीक है, मैं अभी बनाती हूं, तब तक तुम यहीं बगीचे में खेलो.’’

माया रसोई में चली गई. फिर जिनी व टोनी के कटोरों में दूधबिसकुट डाल कर बरामदे में रख गई ताकि आते ही वे पी सकें, क्योंकि रंजू जरा भी देर बरदाश्त नहीं करती थी.

खेलतेखेलते अचानक पिंकी को कुछ सूझा तो वह बरामदे में आई. अलमारी से कीटनाशक का डब्बा बाहर निकाला और दोनों कटोरों में पाउडर डाल डब्बा बंद कर के वहीं रख दिया जहां से उठाया था. कुछ ही देर में उस के ट्यूटर आ गए और वह पढ़ने बैठ गई.

शाम ढलने के बाद रंजू घर लौटी. जिनी व टोनी ने लपक कर दूध पिया और बरामदे में बैठ गए. रंजू आज बेहद खुश थी कि क्लब में उस ने अपने विदेशी कुत्तों का खूब रौब गांठा था.

‘‘अरे वाह, आज गाजर का हलवा बना है,’’ पिंकी की प्लेट में हलवा देख रंजू ने कहा. फिर थोड़ा सा चख कर बोलीं, ‘‘बड़ा टेस्टी बना है, जिनी और टोनी को भी बहुत पसंद है. माया, उन्हें ले आओ.’’

माया चीखती हुई वापस लौटी, ‘‘मेम साब, जिनी और टोनी तो…’’

‘‘क्या हुआ उन्हें…’’ रंजू खाने की मेज से उठ कर बरामदे की ओर दौड़ी. देखा तो दोेनों अचेत पड़े हैं. वह उन्हें हिलाते हुए बोली, ‘‘जिनी, टोनी कम आन…’’

रंजू ने फौरन डाक्टर को फोन किया. डाक्टर ने जांच के बाद कहा, ‘‘इन के दूध में जहर था, उसी से इन की मौत हुई है. रंजू का दिमाग सुन्न हो गया कि इन के दूध में जहर किस ने और क्यों मिलाया होगा? इन से किसी को क्या दुश्मनी हो सकती है?’’

गाजर का हलवा खाते हुए पिंकी बड़ी संतुष्ट थी. अब मम्मी पूरा समय मेरे साथ रहेंगी, बाहर घुमाने भी ले जाएंगी, अपने पास भी सुलाएंगी, बातबात पर डांटेगी भी नहीं और जिनीटोनी को मुझ से अच्छा भी नहीं कहेंगी क्योंकि अब तो वे दोनों नहीं हैं.

Stories in Hindi : शक्ति प्रदर्शन – विजयकांत अपनी पत्नी को देख क्यों हैरान रह गया था?

Stories in Hindi : विजयकांत जब अपने बैडरूम में घुसा, तो रात के 10 बज रहे थे. उस की पत्नी सीमा बिस्तर पर बैठी टैलीविजन पर एक सीरियल देख

विजयकांत को देखते ही सीमा ने टैलीविजन की आवाज कम करते हुए कहा, ‘‘आप खाना खा लीजिए.’’

‘‘मैं खाना खा कर आ रहा हूं. मीटिंग के बाद कुछ दोस्त होटल में चले गए थे. कल गांधी पार्क में शक्ति प्रदर्शन का प्रोग्राम होगा. उसी के बारे में मीटिंग थी. कल देखना कितना जबरदस्त कार्यक्रम होगा. पूरे जिले से पार्टी के पांचों विधायक अपने दलबल के साथ यहां गांधी पार्क में पहुंचेंगे.’’

‘‘चुनाव आने वाले हैं, इसीलिए प्रदेश सरकार ने प्रदेश में शक्ति प्रदर्शन का कार्यक्रम शुरू कराया है, ताकि इतने जनसमूह को देख कर विरोधी दलों के हौसले पस्त हो जाएं. जनता हमारी ताकत देख कर अगली बार भी हमारी सरकार बनवाए,’’ विजयकांत ने बिस्तर पर बैठते हुए कहा.

सीमा ने चैनल बदल कर खबरें लगाते हुए कहा, ‘‘आप का कार्यक्रम कितने घंटे का रहेगा?’’

‘‘11 बजे से 3 बजे तक,’’ विजयकांत ने टैलीविजन की ओर देखते हुए कहा. सीमा चुप रही. विजयकांत ने सीमा के बढ़े हुए पेट की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘कब तक सुना रही हो खुशखबरी? डाक्टर ने कब की तारीख दे रखी है?’’

‘‘बस, 5-7 दिन ही बाकी हैं,’’ सीमा बोली.

‘‘हमें यह खुशी कई साल बाद मिल रही है. बेटा ही होगा, क्योंकि डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना ने जांच कर के बता दिया था कि पेट में बेटा है. मैं ने तो उस का नाम भी पहले ही सोच लिया, ‘कमलकांत’,’’ विजयकांत खुश हो कर कह रहा था. तभी मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी. उस ने स्क्रीन पर नाम पढ़ा, माधुरी वर्मा. वह बोल उठा, ‘‘कहिए मैडम, कैसी हो? मातृ शक्ति से बढ़ कर कोई शक्ति नहीं है, इसलिए आप को भी अपने महिला मोरचा की ओर से भरपूर शक्ति प्रदर्शन करना है, क्योंकि आप पार्टी की महिला मोरचा की नगर अध्यक्ष हैं. आप के कंधों पर बहुत बड़ी जिम्मेदारी है.’’

‘सो तो है. एक बात है, जिस के लिए फोन किया है,’ उधर से आवाज आई.

‘‘कहिए?’’ विजयकांत बोला.

‘आज शाम हमारी पार्टी की एक सदस्या के साथ एक सिपाही ने बेहूदा हरकत कर दी. उस ने मुझे मोबाइल पर सूचना दी, तो मैं ने थाना चंदनपुर के इंस्पैक्टर को बताया, लेकिन उस ने ढंग से बात ही नहीं की.’ ‘‘मैडम, इस इंस्पैक्टर का बुरा समय आ गया है. अरे, वह तो पुलिस इंस्पैक्टर ही है, हम तो एसपी और डीएम की भी परवाह नहीं करते. आज हमारी सरकार है, हमारे हाथ में शक्ति है. हम जिस अफसर को जहां चाहें फिंकवा सकते हैं. ‘‘कमाल है मैडम, आप सत्तारूढ़ पार्टी में होते हुए भी हमारे इन नौकरों से परेशान हुई हो. आप कहिए, तो मैं अभी आप के साथ चल कर उस इंस्पैक्टर को लाइन हाजिर और सिपाही को संस्पैंड करा दूं?’’ ‘कल का प्रोग्राम हो जाने दो, परसों इन दोनों का दिमाग ठीक कर देंगे,’ उधर से आवाज आई. ‘‘मैडम, आप जरा भी चिंता न करें. अभी तो आप को भी राजनीति की बहुत ऊंचाई तक जाना है. अब आप आराम करें, गुडनाइट,’’ विजयकांत ने कहा और मोबाइल बंद कर के सीमा की ओर देखा. वह सो चुकी थी.

विजयकांत की उम्र 40 साल थी. वह सत्तारूढ़ पार्टी का नगर अध्यक्ष था. रुपए पैसे की उसे चिंता न थी. उसी के दम पर ही वह नगर अध्यक्ष बना था. 2 मंत्री उस के रिश्तेदार थे. विजय ऐंड कंपनी के नाम से शहर में उस का एक बड़ा सा दफ्तर था, जहां फाइनैंस व जमीनजायदाद की खरीदबिक्री का काम होता था. उस ने एक गैरकानूनी कालोनी तैयार कर करोड़ों रुपए बना लिए थे. विजयकांत की पत्नी सीमा खूबसूरत और कुशल गृहिणी थी. उसे राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अजयकांत उस का छोटा भाई था, जिस ने पिछले साल एमबीए किया था. वह कुंआरा था. उस के रिश्ते आ रहे थे, पर वह अभी शादी नहीं करना चाहता था. उस का कहना था कि पहले कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाए, बाद में शादी कर लेगा. वह विजय ऐंड कंपनी में मैनेजर के पद पर बैठ कर सारा कामकाज देख रहा था.

विजयकांत की अम्मांजी की उम्र 65 साल थी. इतनी उम्र में भी वे बहुत चुस्त थीं. वे भी एक कुशल गृहिणी थीं. उन्हें अपना खाली समय समाजसेवा में बिताना पसंद था. तकरीबन 7 साल पहले विजयकांत, उस के पिता महेशकांत, अम्मांजी अपने 5 साला पोते राजू के साथ कार में जा रहे थे. कार विजयकांत ही चला रहा था. एक साइकिल सवार को बचाने के चक्कर में कार एक पेड़ से टकरा गई थी. इस हादसे में पिता महेशकांत व बेटे राजू की मौके पर ही मौत हो गई थी. इस हादसे से उबरने में उन सभी को काफी समय लग गया था.

2 साल पहले विजयकांत को जब पता चला कि सीमा मां बनने वाली है, तो उस ने डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना के यहां जा कर जांच कराई. पता चला कि पेट में बेटी है, तब उस ने सीमा को साफ शब्दों में कह दिया था, ‘मुझे बेटी नहीं, बेटा चाहिए.’ उस के सामने सीमा व अम्मांजी की बिलकुल नहीं चली थी. सीमा को मजबूर हो कर बच्चा गिराना पड़ा था. अब फिर सीमा पेट से हुई थी.

पहले ही जांच करा कर पता कर लिया था कि पेट में पलने वाला बच्चा बेटा ही है. अगले दिन नाश्ता करने के बाद विजयकांत ने अजयकांत से कहा, ‘‘मैं नगर विधायक राजेश्वर प्रसाद के यहां पहुंच रहा हूं. वहीं से हमें इकट्ठा हो कर जुलूस के रूप में गांधी पार्क पहुंचना है. तुम समय पर दफ्तर पहुंच जाना. आज शक्ति प्रदर्शन का यह बहुत बड़ा कार्यक्रम है. इस से विरोधी दलों की भी आंखें फटी की फटी रह जाएंगी.’’

अजयकांत ने खुश हो कर कहा, ‘‘मैं भी थोड़ी देर बाद गांधी पार्क में पहुंच जाऊंगा.’’

‘‘ठीक है, आ जाना. मैं मंच पर ही मिलूंगा,’’ विजयकांत ने कहा और कमरे से बाहर निकल गया. कुछ देर बाद अजयकांत भी दफ्तर पहुंच गया. तकरीबन एक घंटे बाद कमरे में बैठी सीमा को प्रसव का दर्द होने लगा. उस ने अम्मांजी को पुकारा.

आते ही अम्मांजी ने सीमा का चेहरा देखते हुए कहा, ‘‘लगता है, अभी नर्सिंग होम जाना पड़ेगा. तुम बैठो, मैं जाने की तैयारी करती हूं. तुम ऐसा करो कि विजय को फोन कर दो, आ जाएगा,’’ कह कर अम्मांजी कमरे से चली गईं. सीमा ने विजयकांत को मोबाइल पर सूचना देनी चाही. घंटी जाने की आवाज सुनाई देती रही, पर जवाब नहीं मिला. उस ने कई बार फोन मिलाया, पर कोई जवाब नहीं मिला. अम्मांजी ने कमरे में घुसते ही पूछा, ‘‘विजय से बात हुई क्या? क्या कहा उस ने? कितनी देर में आ रहा है?’’

‘‘अम्मांजी, घंटी तो जा रही है, लेकिन वे मोबाइल नहीं उठा रहे हैं. जुलूस के शोर में उन को पता नहीं चल पा रहा होगा.’’

‘‘अजय को फोन मिला दो. वह दफ्तर से गाड़ी ले कर आ जाएगा,’’ अम्मांजी ने कहा.

सीमा ने तुरंत अजयकांत को फोन मिला दिया. उधर से आवाज आई, ‘हां भाभीजी, कहिए?’ ‘‘तुम गाड़ी ले कर घर आ जाओ. अभी नर्सिंग होम चलना है. तुम्हारे भैया से फोन पर बात नहीं हो पा रही है.’’

‘मैं अभी पहुंचता हूं. एक मिठाई का डब्बा लेता आऊंगा. वहां सभी का मुंह मीठा कराया जाएगा.’ ‘‘वह बाद में ले लेना. पहले तुम जल्दी से यहां आ जाओ.’’

‘बस, अभी पहुंच रहा हूं,’ अजयकांत ने कहा.

अम्मांजी ने एक बैग में कुछ जरूरी सामान रख लिया. तभी घरेलू नौकरानी कमला रसोई से निकल कर आई और बोली, ‘‘अम्मांजी, घर की आप जरा भी चिंता न करना. बस, जल्दी से बहूरानी को अस्पताल ले जाओ.’’ ‘‘हां कमला, जरा ध्यान रखना. मैं तुझे खुश कर दूंगी. सोने की चेन, कपड़े, मिठाई सब दूंगी. इतने सालों से हमारी सेवा जो कर रही है,’’ अम्मांजी ने कहा. कुछ ही देर में अजयकांत गाड़ी ले कर घर आ गया.

‘‘अब जल्दी चलो, देर न करो. सीमा, तुम गाड़ी में बैठो,’’ कहते हुए अम्मांजी ने कमला की ओर देखा, ‘‘कमला, ठीक से ध्यान रखना. घर पर कोई नहीं है. पूरा घर तेरे ऊपर छोड़ कर जा रही हूं. कोई बात हो, तो हमारे मोबाइल की घंटी बजा देना.’’

‘‘आप बेफिक्र हो कर जाओ अम्मांजी. बहुत जल्द मुझे भी फोन पर खुशखबरी सुना देना,’’ कमला ने खुशी से कहा.

कार में पीछे की सीट पर अम्मांजी व सीमा बैठ गईं. अजयकांत कार चलाने लगा. बच्चा होने का दर्द सीमा के चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था. कार चलाते हुए अजयकांत देख रहा था कि आज सड़क पर कुछ ज्यादा ही रौनक दिखाई दे रही है. ट्रैक्टरट्रौली, आटोरिकशा सड़कों पर दौड़े जा रहे थे. इन में लदे हुए लोग पार्टी के झंडे हाथों में लिए जोरदार आवाज में नारे लगा रहा थे, ‘जन विकास पार्टी, जिंदाबाद.’ अजयकांत रेलवे का पुल पार कर जैसे ही आगे बढ़ा, तो वहां जाम लगा हुआ था. उसे कार रोकनी पड़ी. सामने पटेल चौक था, जहां से पार्टी के एक विधायक का जुलूस जा रहा था. एक ट्रक पर ऊपर की ओर फूलमालाओं से लदा हुआ विधायक जनता की ओर हाथ हिलाहिला कर अभिवादन स्वीकार कर रहा था और कभी खुद भी हाथ जोड़ रहा था. उस के बराबर में पार्टी के दूसरे पदाधिकारी बैठे और कुछ खड़े थे. कुछ के गले में फूलमालाएं थीं. ट्रक में पीछे लोग लदे हुए थे. ट्रक पटेल चौक में रुक गया. विधायक खड़ा हो कर नमस्कार करने लगा.

कार में पीछे बैठी अम्मांजी ने पूछा, ‘‘यह किस पार्टी का जुलूस है? नगर विधायक राजेश्वर प्रसाद का है क्या?’’

‘‘नहीं अम्मां, यह तो जीवनदास का है, जो रामगढ़ का विधायक है. हो सकता है कि राजेश्वर प्रसाद का जुलूस गांधी पार्क में पहुंच गया हो या किसी दूसरे रास्ते से जा रहा हो. भैया भी तो राजेश्वर प्रसाद के बराबर में बैठे होंगे. भैया से फोन पर बात नहीं हो सकती. जुलूस में शोर ही इतना है,’’ अजयकांत ने जवाब दिया. कुछ ही देर में अजयकांत की कार के बहुत पीछे तक जाम लग चुका था. पैदल निकलने का रास्ता भी न बचा था. कोई अपनी जगह से हिल भी न सकता था. सभी को लग रहा था, मानो किसी चक्रव्यूह में फंस गए हों. कोई मन ही मन नेताओं को कोस रहा था, कोई जोरदार आवाज में गालियां दे रहा था. सीमा दर्द को सहन करने की भरसक कोशिश कर रही थी. अम्मांजी ने सीमा के चेहरे की ओर देखा, तो मन ही मन तड़प उठीं. उन्होंने अजयकांत से कहा, ‘‘ओह, बहुत देर लगा दी इस जुलूस ने. पता नहीं, कितनी देर और लगाए?’’

‘‘लगता है, 10-15 मिनट और लग जाएंगे. अगर मुझे पता होता कि यहां ऐसा जाम लग जाएगा, तो मैं इस तरफ गाड़ी ले कर ही न आता,’’ अजयकांत ने दुखी मन से कहा.

‘‘अजय, तू यहां से जल्दी कार निकालने की कोशिश कर.’’

‘‘कैसे निकलें अम्मां? सभी तो फंसे खड़े हैं. सभी परेशान हैं, पर कोई कुछ नहीं कर सकता?’’ ‘‘सब की बात अलग है. तेरी भाभी की हालत ठीक नहीं है. किसी पुलिस वाले से बात कर. हो सकता है कि वह हमारी गाड़ी निकलवा दे.’’ अजयकांत ने देखा कि हर ओर भीड़ ही भीड़, मानो पूरे शहर का जनसमूह यहां आ कर इकट्ठा हो गया हो. वह बोल उठा, ‘‘वहां पटेल चौक में खड़े हैं पुलिस वाले. वहां तक पैदल जाना क्या आसान है? और फिर वे हमारी गाड़ी कैसे निकालेगी? आसमान में तो कार उड़ नहीं सकती.’’

‘‘तो अब क्या होगा?’’ अम्मांजी ने घबराई आवाज में कहा.

अजयकांत चुप रहा. उस के पास कोई जवाब न था, जबकि वह जानता था कि देर होने से गड़बड़ भी हो सकती है. उस ने तो सपने में भी न सोचा था कि वह आज इस तरह जाम में फंस जाएगा. अजयकांत की कार के पीछे खड़ा एक रिकशे वाला बराबर में खड़े टैंपो ड्राइवर से कह रहा था, ‘‘इन नेताओं ने हमारे देश का बेड़ा गर्क कर दिया है. जब देखो शहर में जुलूस निकाल कर जाम लगा देते हैं. हम गरीबों को मजदूरी भी नहीं करने देते. एक सवारी मिली थी, जाम के चलते वह भी बिना पैसे दिए चली गई.’’ ‘‘अरे यार, इन नेताओं के पास तो हराम की कमाई आती है. इन्हें कौन सी मेहनतमजदूरी कर के बच्चे पालने हैं. आजकल तो जिसे देखो, खद्दर का लंबा कुरतापाजामा पहन कर हाथ में मोबाइल ले कर बहुत बड़ा नेता बना फिरता है. मेरे टैंपो में भी 4-5 ऐसे ही उठाईगीर नेता बैठे थे. वे भी ऐसे ही उतर कर चले गए, मानो उन के बाप का टैंपो हो,’’ टैंपो ड्राइवर ने बुरा सा मुंह बना कर कहा. अजयकांत पिंजरे में फंसे किसी पंछी की तरह मन ही मन तड़प उठा.

जाम खुलने में एक घंटा लग गया. अजयकांत ने डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना को मोबाइल पर सूचना दे दी थी कि वे जल्दी ही पहुंच रहे हैं. नर्सिंग होम में कार रोक कर अजयकांत तेजी से डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना के पास पहुंचा. वे उस के साथ बाहर आईं. कार में सीमा निढाल सी हो चुकी थी. अजयकांत ने कहा, ‘‘पटेल चौक पर जाम में फंसने के चलते हमें इतनी देर हो गई.’’ ‘‘यह जाम आप की पार्टी के शक्ति प्रदर्शन की वजह से लगा था. इस जाम से पता नहीं कितने लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ा होगा. खैर, आप चिंता न करें, मैं देखती हूं,’’ डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना ने कहा. सीमा को स्ट्रैचर पर लिटा कर औपरेशन थिएटर में ले जाया गया. कुछ देर बाद डाक्टर मीनाक्षी सक्सेना बाहर निकलीं और दुख भरी आवाज में बोलीं, ‘‘आप लोगों के आने में देर हो गई. अम्मांजी, आप की बहू सीमा और पोता बच नहीं सके.’’ अम्मांजी के मुंह से दुखभरी चीख निकली. अजयकांत फूटफूट कर रोने लगा. तकरीबन 3 बजे अजयकांत के मोबाइल की घंटी बजी. उस ने मोबाइल में नाम देखा, विजयकांत. अजयकांत के मुंह से आवाज नहीं निकली. ‘‘हैलो अजय, अभीअभी कार्यक्रम खत्म हुआ है. मैं ने मोबाइल चैक किया, तो सीमा और तुम्हारी बहुत मिस काल थीं. मुझे पता नहीं लग पाया. कोई बहुत जरूरी बात थी क्या?’’ उधर से विजयकांत की आवाज सुनाई दी. अजयकांत कुछ कह नहीं पाया और रोने लगा.

‘‘अजय… क्या हुआ?’’ उधर से विजयकांत की आवाज में चिंता का भाव था.

अम्मांजी ने अजय से मोबाइल ले कर दुखी लहजे में कहा, ‘‘विजय, सब बरबाद हो गया. सीमा और मेरा पोता बच नहीं पाए, तुम्हारे शक्ति प्रदर्शन की बलि चढ़ गए.’’

‘‘ओह नहीं… यह क्या कह रही हो अम्मां? मैं अभी पहुंच रहा हूं नर्सिंग होम,’’ विजयकांत बोला. कुछ ही देर बाद 2 कारें नर्सिंग होम के बाहर रुकीं. कार से विधायक राजेश्वर प्रसाद, विजयकांत और 5-6 नेता बाहर निकले.

सभी उस कमरे में पहुंचे, जहां सीमा व नवजात बेटे की लाश थी. विजयकांत को अब भी विश्वास नहीं हो रहा था कि सीमा उसे हमेशा के लिए छोड़ कर जा चुकी है. उस ने सीमा का हाथ अपने हाथ में लिया और सीमा को देखता रहा. जिस शक्ति प्रदर्शन को वह एक यादगार मान कर खुश हो रहा था, वहीं उस के लिए दुखद यादगार बन गया. उस की अपनी सरकार है. हजारों लोग उस के साथ हैं. उस के पास इतनी ताकत होते हुए भी वह आज बुरी तरह टूट चुका था. आज के प्रदर्शन ने न जाने कितने लोगों को नुकसान पहुंचाया होगा? हो सकता है कि किसी दूसरे के साथ भी ऐसी ही दुखद घटना हुई हो.

Hindi Kahani : सुधा का सत्य – धीरेंद्र सच क्यों नहीं पचा पा रहा था

Hindi Kahani : ‘‘यह किस का प्रेमपत्र है?’’ सुधा ने धीरेंद्र के सामने गुलाबी रंग का लिफाफा रखते हुए कहा.

‘‘यह प्रेमपत्र है, तो जाहिर है कि किसी प्रेमिका का ही होगा,’’ सुधा ने जितना चिढ़ कर प्रश्न किया था धीरेंद्र ने उतनी ही लापरवाही से उत्तर दिया तो वह बुरी तरह बिफर गई.

‘‘कितने बेशर्म इनसान हो तुम. तुम ने अपने चेहरे पर इतने मुखौटे लगाए हुए हैं कि मैं आज तक तुम्हारे असली रूप को समझ नहीं सकी हूं. क्या मैं जान सकती हूं कि तुम्हारे जीवन में आने वाली प्रेमिकाओं में इस का क्रमांक क्या है?’’

सुधा ने आज जैसे लड़ने के लिए कमर कस ली थी, लेकिन धीरेंद्र ने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया. दफ्तर से लौट कर वह फिर से बाहर निकल जाने को तैयार हो रहा था.

कमीज पहनता हुआ बोला, ‘‘सुधा, तुम्हें मेरी ओर देखने की फुरसत ही कहां रहती है? तुम्हारे बच्चे, तुम्हारी पढ़ाई, तुम्हारी सहेलियां, रिश्तेदार इन सब की देखभाल और आवभगत के बाद अपने इस पति नाम के प्राणी के लिए तुम्हारे पास न तो समय बचता है और न ही शक्ति.

‘‘आखिर मैं भी इनसान हूं्. मेरी भी इच्छाएं हैं. मुझे भी लगता है कि कोई ऐसा हो जो मेरी, केवल मेरी बात सुने और माने, मेरी आवश्यकताएं समझे. अगर मुझे यह सब करने वाली कोई मिल गई है तो तुम्हें चिढ़ क्यों हो रही है? बल्कि तुम्हें तो खुशी होनी चाहिए कि अब तुम्हें मेरे लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है.’’

धीरेंद्र की बात पर सुधा का खून खौलने लगा, ‘‘क्या कहने आप के, अच्छा, यह बताओ जब बच्चे नहीं थे, मेरी पढ़ाई नहीं चल रही थी, सहेलियां, रिश्तेदार कोई भी नहीं था, मेरा सारा समय जब केवल तुम्हारे लिए ही था, तब इन देखभाल करने वालियों की तुम्हें क्यों जरूरत पड़ गई थी?’’ सुधा का इशारा ललिता वाली घटना की ओर था.

तब उन के विवाह को साल भर ही हुआ था. एक दिन भोलू की मां धुले कपड़े छत पर सुखा कर नीचे आई तो चौके में काम करती सुधा को देख कर चौंक गई, ‘अरे, बहूरानी, तुम यहां चौके में बैठी हो. ऊपर तुम्हारे कमरे में धीरेंद्र बाबू किसी लड़की से बतिया रहे हैं.’

भोलू की मां की बात को समझने में अम्मांजी को जरा भी देर नहीं लगी. वह झट अपने हाथ का काम छोड़ कर उठ खड़ी हुई थीं, ‘देखूं, धीरेंद्र किस से बात कर रहा है?’ कह कर वह छत की ओर जाने वाली सीढि़यों की ओर चल पड़ी थीं.

सुधा कुछ देर तक तो अनिश्चय की हालत में रुकी रही, पर जल्दी ही गैस बंद कर के वह भी उन के पीछे चल पड़ी थी.

ऊपर के दृश्य की शुरुआत तो सुधा नहीं देख सकी लेकिन जो कुछ भी उस ने देखा, उस से स्थिति का अंदाजा लगाने में उसे तनिक भी नहीं सोचना पड़ा. खुले दरवाजे पर अम्मांजी चंडी का रूप धरे खड़ी थीं. अंदर कमरे में सकपकाए से धीरेंद्र के पास ही सफेद फक चेहरे और कांपती काया में पड़ोस की ललिता खड़ी थी.

इस घटना का पता तो गिनेचुने लोगों के बीच ही सीमित रहा, लेकिन इस के परिणाम सभी की समझ में आए थे. पड़ोसिन सुमित्रा भाभी ने अपनी छोटी बहन ललिता को एक ही हफ्ते में पढ़ाई छुड़वा कर वापस भिजवा दिया था. उस के बाद दोनों घरों के बीच जो गहरे स्नेहिल संबंध थे, वे भी बिखर गए थे.

अभी सुधा ने उसी घटना को ले कर व्यंग्य किया था. धीरेंद्र इस पर खीज गया. बोला, ‘‘पुरानी बातें क्यों उखाड़ती हो? उस बात का इस से क्या संबंध है?’’

‘‘है क्यों नहीं? खूब संबंध है. वह भी तुम्हारी प्रेमिका थी और यह भी जैसा तुम कह रहे हो, तुम्हारी प्रेमिका है. बस, फर्क यही है कि वह तीसरी या चौथी प्रेमिका रही होगी और यह 5वीं या छठी प्रेमिका है,’’ सुधा चिल्लाई.

‘‘चुप करो, सुधा, तुम एक बार बोलना शुरू करती हो तो बोलती चली जाती हो. पल्लवी को तुम इस श्रेणी में नहीं रख सकतीं. तुम क्या जानो, वह मेरा कितना ध्यान रखती है.’’

‘‘सब जानती हूं. और यह भी जानती हूं कि अगर ये ध्यान रखने वालियां तुम्हारे जीवन में न आतीं तो भी तुम अच्छी तरह जिंदा रहते. तब कम से कम दुनिया के सामने दोहरी जिंदगी जीने की मजबूरी तो न होती.’’

सुधा को लगा कि वह अगर कुछ क्षण और वहां रुकी तो रो पड़ेगी. धीरेंद्र के सामने वह अब कमजोर नहीं पड़ना चाहती थी. पहले भी जब कभी धीरेंद्र के प्रेमप्रसंग के भेद खुले थे, वह खूब रोईधोई थी, लेकिन धीरेंद्र पर इस का कोई विशेष असर कभी नहीं पड़ा था.

धीरेंद्र तो अपनी टाई ठीक कर के, जूतों को एक बार फिर ब्रश से चमका कर घर से निकल गया, लेकिन सुधा के मन में तूफान पैदा कर गया. अंदर कमरे में जा कर सुधा ने सारे ऊनी कपड़े और स्वेटर आदि फिर से अलमारी में भर दिए.

सर्दियां बीत चुकी थीं. अब गरमियों के दिनों की हलकीहलकी खुनक दोपहर की धूप में चढ़नी शुरू हो गई थी. आज सुधा ने सोचा था कि वह घर भर के सारे ऊनी कपड़े निकाल कर बाहर धूप में डाल देगी. 2 दिन अच्छी धूप दिखा कर ऊनी कपड़ों में नेप्थलीन की गोलियां डाल कर उन्हें बक्सों में वह हर साल बंद कर दिया करती थी.

आज भी धूप में डालने से पहले वह हर कपड़े की जेब टटोल कर खाली करती जा रही थी. तभी धीरेंद्र के स्लेटी रंग के सूट के कोट की अंदर की जेब में उसे यह गुलाबी लिफाफा मिला था.

बहुत साल पहले स्कूल के दिनों में सुधा ने एक प्रेमपत्र पढ़ा था, जो उस के बगल की सीट पर बैठने वाली लड़की ने उसे दिखाया था. यह पत्र उस लड़की को रोज स्कूल के फाटक पर मिलने वाले एक लड़के ने दिया था. उस पत्र की पहली पंक्ति सुधा को आज भी अच्छी तरह याद थी, ‘सेवा में निवेदन है कि आप मेरे दिल में बैठ चुकी हैं…’

धीरेंद्र के कोट की जेब से मिला पत्र भी कुछ इसी प्रकार से अंगरेजी में लिखा गया प्रेमपत्र था. बेहद बचकानी भावुकता में किसी लड़की ने धीरेंद्र को यह पत्र लिखा था. पत्र पढ़ कर सुधा के तनमन में आग सी लग गई थी.

पता नहीं ऐसा क्यों होता था. सुधा जब भी परेशान होती थी, उस के सिर में दर्द शुरू हो जाता था. इस समय भी वह हलकाहलका सिरदर्द महसूस कर रही थी. अभी वह अलमारी में कपड़े जैसेतैसे भर कर कमरे से बाहर ही आई थी कि पीछे से विनीत आ गया.

‘‘मां, मैं सारंग के घर खेलने जाऊं?’’ उस ने पूछा.

‘‘नहीं, तुम कहीं नहीं जाओगे. बैठ कर पढ़ो,’’ सुधा ने रूखेपन से कहा.

‘‘लेकिन मां, मैं अभी तो स्कूल से आया हूं. इस समय तो मैं रोज ही खेलने जाता हूं,’’ उस ने अपने पक्ष में दलील दी.

‘‘तो ठीक है, बाहर जा कर खेलो,’’ सुधा ने उसे टालना चाहा. वह इस समय कुछ देर अकेली रहना चाहती थी.

‘‘पर मां, मैं उसे कह चुका हूं कि आज मैं उस के घर आऊंगा,’’ विनीत अपनी बात पर अड़ गया.

‘‘मैं ने कहा न कि कहीं भी नहीं जाना है. अब मेरा सिर मत खाओ. जाओ यहां से,’’ सुधा झल्ला गई.

‘‘मां, बस एक बार, आज उस के घर चले जाने दो. उस के चाचाजी अमेरिका से बहुत अच्छे खिलौने लाए हैं. मैं ने उस से कहा है कि मैं आज देखने आऊंगा. मां, आज मुझे जाने दो न,’’ विनीत अनुनय पर उतर आया.

पर सुधा आज दूसरे ही मूड में थी. उस का गुस्सा एकदम भड़क उठा, ‘‘बेवकूफ, मैं इतनी देर से मना कर रही हूं, बात समझना ही नहीं चाहता. पीछे ही पड़ गया है. ठीक है, कहने से बात समझ में नहीं आ रही है न तो ले, तुझे दूसरे तरीके से समझाती हूं…’’

सुधा ने अपनी बात खत्म करने से पहले ही विनीत के गाल पर चटचट कई चांटे जड़ दिए. मां के इस रूप से अचंभित विनीत न तो कुछ बोला और न ही रोया, बस चुपचाप आंखें फाड़े मां को ताकता रहा.

चांटों से लाल पड़े गाल और विस्मय से फैली आंखों वाले विनीत को देख कर सुधा अपने होश में लौट आई. विनीत यदाकदा ही उस से पूछ कर सारंग के घर चला जाता था. आज सुधा को क्या हो गया था, जो उस ने अकारण ही अपने मासूम बेटे को पीट डाला था. सारा क्रोध धीरेंद्र के कारण था, पर उस पर तो बस चला नहीं, गुस्सा उतरा निर्दोष विनीत पर.

उस का सारा रोष निरीहता में बदल गया. वह दरवाजे की चौखट से माथा टिका कर रो दी.सुधा की यह व्यथा कोई आज की नई व्यथा नहीं थी. धीरेंद्र के शादी से पहले के प्रेमप्रसंगों को भी उस के साथियों ने मजाकमजाक में सुना डाला था. पर वे सब उस समय तक बीती बातें हो गई थीं, लेकिन ललिता वाली घटना ने तो सुधा को झकझोर कर रख दिया था. बाद में भी जब कभी धीरेंद्र के किसी प्रेमप्रसंग की चर्चा उस तक पहुंचती तो वह बिखर जाती थी. लेकिन ललिता वाली घटना से तो वह बहुत समय तक उबर नहीं पाई थी.

तब धीरेंद्र ने भी सुधा को मनाने के लिए क्या कुछ नहीं किया था, ‘बीती ताहि बिसार दे’ कह कर उस ने कान पकड़ कर कसमें तक खा डाली थीं, पर सुधा को अब धीरेंद्र की हर बात जहर सी लगती थी.

तभी एक दिन सुबहसुबह मनीष ने नाचनाच कर सारा घर सिर पर उठा लिया था, ‘‘भैया पास हो गए हैं. देखो, इस अखबार में उन का नाम छपा है.’’

धीरेंद्र ने एक प्रतियोगी परीक्षा दी थी. उस का परिणाम आ गया था. धीरेंद्र की इस सफलता ने सारे बिखराव को पल भर में समेट दिया था. अब तो धीरेंद्र का भविष्य ही बदल जाने वाला था. सारे घर के साथ सुधा भी धीरेंद्र की इस सफलता से उस के प्रति अपनी सारी कड़वाहट को भूल गई. उसे लगा कि यह उस के नए सुखी जीवन की शुरुआत की सूचना है, जो धीरेंद्र के परीक्षा परिणाम के रूप में आई है.

इस के बाद काफी समय व्यस्तता में ही निकल गया था. धीरेंद्र ने अपनी नई नौकरी का कार्यभार संभाल लिया था. नई जगह और नए सम्मान ने सुधा के जीवन में भी उमंग भर दी थी. उस के मन में धीरेंद्र के प्रति एक नए विश्वास और प्रेम ने जन्म ले लिया था. तभी उस ने निर्णय लिया था. वह धीरेंद्र के इस नए पद के अनुरूप ही अपनेआप को बना लेगी. वह अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करेगी.

सुधा के इस निर्णय पर धीरेंद्र ने अपनी सहमति ही जताई थी. अब घर के कामों के लिए उन्हें नौकर रखने की सुविधा हो गई थी. इसलिए सुधा की पढ़ाई शुरू करने की सुविधा जुटते देर नहीं लगी. वह बेफिक्र हो कर प्राइवेट बी.ए. करने की तैयारी में जुट गई.

कभी ऐसा भी होता है कि मन का सोचा आसानी से पूरा नहीं होता. सुधा के साथ यही हुआ. उस की सारी मेहनत, सुविधा एक ओर रखी रह गई. सुधा परीक्षा ही नहीं दे सकी. पर इस बाधा का बुरा मानने का न तो उस के पास समय था और न इच्छा ही थी. एक खूबसूरत स्वस्थ बेटे की मां बन कर एक तो क्या, वह कई बी.ए. की डिगरियों का मोह छोड़ने को तैयार थी.

विनीत 2 साल का ही हुआ था कि उस की बहन निधि आ गई और इन दोनों के बीच सुधा धीरेंद्र तक को भूल गई. उन के साथ वह ऐसी बंधी कि बाहर की दुनिया के उस के सारे संपर्क ही खत्म से हो गए.

घर और बच्चों के बीच उलझी सुधा तक धीरेंद्र की गतिविधियों की उड़ती खबर कभीकभी पहुंच जाती थी कि वह अपने दफ्तर की कुछ महिला कर्मचारियों पर अधिक ही मेहरबान रहता है. पिछले कुछ सालों के धीरेंद्र के व्यवहार से सुधा समझ बैठी थी कि अब उस में उम्र की गंभीरता आ गई है और वह पुराने वाला दिलफेंक धीरेंद्र नहीं रहा है. इसलिए उस ने इन अफवाहों को अधिक महत्त्व नहीं दिया.

एक दिन सुहास आया, तब धीरेंद्र घर पर नहीं था. उस ने सुधा को घंटे भर में ही सारी सूचनाएं दे डालीं और जातेजाते बोल गया, ‘‘दोस्त के साथ गद्दारी तो कर रहा हूं, लेकिन उस की भलाई के लिए कर रहा हूं. इसलिए मन में कोई मलाल तो नहीं है. बस, थोड़ा सा डर है कि यह बात पता लगने पर धीरेंद्र मुझे छोड़ेगा तो नहीं. शायद लड़ाई ही कर बैठे. लेकिन वह तो मैं भुगत लूंगा. अब भाभीजी, आगे आप उसे ठीक करने का उपाय करें.’’

उस दिन सुधा मन ही मन योजनाएं बनाती रही कि किस तरह वह धीरेंद्र को लाजवाब कर के माफी मंगवा कर रहेगी. लेकिन जब उस का धीरेंद्र से सामना हुआ तो शुरुआत ही गलत हो गई. धीरेंद्र ने उस के सभी आक्रमणों को काट कर बेकार करना शुरू कर दिया. अंत में जब कुछ नहीं सूझा तो सुधा का रोनाधोना शुरू हो गया. बात वहीं खत्म हो गई, लेकिन सुधा के मन में उन लड़कियों के नाम कांटे की तरह चुभते रहे थे. तब उन नामोें में पल्लवी का नाम नहीं था.

समय बीत रहा था, विनीत के साथ निधि ने भी स्कूल जाना शुरू कर दिया तो एक बार फिर सुधा को अपनी छूटी  हुई पढ़ाई का ध्यान आया. इस बार वह सबकुछ भूल कर अपनी पढ़ाई में जुट गई. धीरेंद्र के साथ उस के संबंध फिर से सामान्य हो चले थे. अब की बार सुधा ने पूरी तैयारी के साथ परीक्षा दी और पास हो गई. सुधा को धीरेंद्र ने भी खुले दिल से बधाई दी.

सुधा और धीरेंद्र के सामान्य गति से चलते जीवन में पल्लवी के पत्र से एक नया तूफान उठ खड़ा हुआ. एक दिन दुखी हो कर उस ने धीरेंद्र से पूछ ही लिया, ‘‘तुम कितनी बार मेरे धीरज की परीक्षा लोगे? क्यों बारबार मुझे इस तरह सलीब पर चढ़ाते हो? आखिर यह किस दोष के लिए सजा देते हो, मुझे पता तो चले…’’

‘‘क्या बेकार की बकवास करती हो. तुम्हें कौन फांसी पर चढ़ाए दे रहा है? मैं क्या करता हूं, क्या नहीं करता, इस से तुम्हारे घर में तो कोई कमी नहीं आ रही है. फिर क्यों हर समय अपना दुखड़ा रोती रहती हो? मैं तो तुम से कोई शिकायत नहीं करता, न तुम से कुछ चाहता ही हूं.’’

धीरेंद्र की यह बात सुधा समझ नहीं पाती थी. बोली, ‘‘मेरा रोनाधोना कुछ नहीं है. मैं तो बस, यही जानना चाहती हूं कि आखिर ऐसा क्या है जो तुम्हें घर में नहीं मिलता और उस के लिए तुम्हें बाहर भागना पड़ता है. आखिर मुझ में क्या कमी है? क्या मैं बदसूरत हूं, अनपढ़ हूं. बेशऊर हूं, जो तुम्हारे लायक नहीं हूं और इसलिए तुम्हें बाहर भागना पड़ता है. बताओ, आखिर कब तक यह बरदाश्त करती रहूंगी कि बाहर तुम से पहली बार मिलने वाला किसी सोना को, या रीना को, या पल्लवी को तुम्हारी पत्नी समझता रहे.’’

धीरेंद्र ने सुधा की इस बात का उत्तर नहीं दिया. इन दिनों धीरेंद्र के पास घर के लिए  कम ही समय होता था. उतने कम समय में भी उन के और सुधा के बीच बहुत ही सीमित बातों का आदानप्रदान होता था.

एक दिन धीरेंद्र जल्दी ही दफ्तर से घर आ गया. लेकिन जब वह अपनी अटैची में कुछ कपड़े भर कर बाहर जाने लगा तो सूचना देने भर को सुधा को बोलता गया था, ‘‘बाहर जा रहा हूं. एक हफ्ते में लौट आऊंगा.’’

लेकिन वह तीसरे दिन ही लौट आया. 2 दिन से वह गुमसुम बना घर में ही रह रहा था. सुधा ने धीरेंद्र को ऐसा तो कभी नहीं देखा था. उसे कारण जानने की उत्सुकता तो जरूर थी, लेकिन खुद बोल कर वह धीरेंद्र से कुछ पूछने में हिचकिचा रही थी.

उस दिन रात को खाना खा कर बच्चे सोने के लिए अपने कमरे में चले गए थे. धीरेंद्र सोफे पर बैठा कोई किताब पढ़ रहा था और सुधा क्रोशिया धागे में उलझी उंगलियां चलाती पता नहीं किस सोच में डूबी थी.

टनटन कर के घड़ी ने 10 बजाए तो धीरेंद्र ने अपने हाथ की किताब बंद कर के एक ओर रख दी. सुधा भी अपने हाथ के क्रोशिए और धागे को लपेट कर उठ खड़ी हुई. धीरेंद्र काफी समय से अपनी बात करने के लिए उपयुक्त अवसर का इंतजार कर रहा था. अभी जैसे उसे वह समय मिल गया. अपनी जगह से उठ कर जाने को तैयार सुधा को संबोधित कर के वह बोला, ‘‘तुम्हें जान कर खुशी होगी कि पल्लवी ने शादी कर ली है.’’

‘‘क्या…’’ आश्चर्य से सुधा जहां खड़ी थी वहीं रुक गई.

‘‘पल्लवी को अपना समझ कर मैं ने उस के लिए क्या कुछ नहीं किया था. उस की तरक्की के लिए कितनी कोशिश मैं ने की है, यह मैं ही जानता हूं. जैसे ही तरक्की पर तबादला हो कर वह यहां से गई, उस ने मुझ से संबंध ही तोड़ लिए. अब उस ने शादी भी कर ली है.

‘‘उसी से मिलने गया था. मुझे देख कर वह ऐसा नाटक करने लगी जैसे वह मुझे ठीक से जानती तक नहीं है. नाशुकरेपन की कहीं तो कोई हद होती है. लेकिन तुम्हें इन बातों से क्या मतलब? तुम तो सुन कर खुश ही होगी,’’ धीरेंद्र स्वगत भाषण सा कर रहा था.

जब वह अपना बोलना खत्म कर चुका तब सुधा बोली, ‘‘यह पल्लवी की कहानी बंद होना मेरे लिए कोई नई बात नहीं रह गई है. पहले भी कितनी ही ऐसी कहानियां बंद हो चुकी हैं और आगे भी न जाने कितनी ऐसी कहानियां शुरू होंगी और बंद होंगी. अब तो इन बातों से खुश या दुखी होने की स्थितियों से मैं काफी आगे आ चुकी हूं.

‘‘इस समय तो मैं एक ही बात सोच रही हूं, तुम्हारी ललिता, सोना, रीना, पल्लवी की तरह मैं भी स्त्री हूं. देखने- भालने में मैं उन से कम सुंदर नहीं रही हूं. पढ़ाई में भी अब मुझे शर्मिंदा हो कर मुंह छिपाने की जरूरत नहीं है. फिर क्या कारण है कि ये सब तो तुम्हारे प्यार के योग्य साबित हुईं और खूब सुखी रहीं, जबकि अपनी सारी एकनिष्ठता और अपने इस घर को बनाए रखने के सारे प्रयत्नों के बाद भी मुझे सिवा कुढ़न और जलन के कुछ नहीं मिला.

‘‘मैं तुम्हारी पत्नी हूं, लेकिन तुम्हारा कुछ भी मेरे लिए कभी नहीं रहा. वे तुम्हारी कुछ भी नहीं थीं, फिर भी तुम्हारा सबकुछ उन का था. सारी जिंदगी मैं तुम्हारी ओर इस आशा में ताकती रही कि कभी कुछ समय को ही सही तुम केवल मेरे ही बन कर रहोगे. लेकिन यह मेरी मृगतृष्णा है. जानती हूं, यह इच्छा इस जीवन में तो शायद कभी पूरी नहीं होगी.

‘‘पल्लवी ने शादी कर ली, तुम कहते हो कि मुझे खुशी होगी. लेकिन तुम्हारी इस पल्लवी की शादी ने मेरे सामने एक और ही सत्य उजागर किया है. मैं अभी यह सोच रही थी कि अपने जीवन के उन सालों में जब छोटेछोटे दुखसुख भी बहुत महसूस होते हैं तब मैं, बस तुम्हारी ही ओर आशा भरी निगाहों से क्यों ताकती रही? तुम्हारी तरह मैं ने भी अपने विवाह और अपने सुख को अलगअलग कर के क्यों नहीं देखा?

‘‘अगर पति जीवन में सुख और संतोष नहीं भर पा रहा तो खाली जीवन जीना कोई मजबूरी तो नहीं थी. जैसे तुम ललिता, सोना, रीना या पल्लवी में सुखसंतोष पाते रहे, वैसे मैं भी किसी अन्य व्यक्ति का सहारा ले कर क्यों नहीं सुखी बन गई? क्यों आदर्शों की वेदी पर अपनी बलि चढ़ाती रही?’’

सुधा की बातों को सुन कर धीरेंद्र का चेहरा सफेद पड़ गया. अचानक वह आगे बढ़ आया. सुधा को कंधों से पकड़ कर बोला, ‘‘क्या बकवास कर रही हो? तुम होश में तो हो कि तुम क्या कह रही हो?’’

‘‘मुझे मालूम है कि मैं क्या कह रही हूं. मैं पूरे होश में तो अब आई हूं. जीवन भर तुम मेरे सामने जो कुछ करते रहे, उस से सीख लेने की अक्ल मुझे पहले कभी क्यों नहीं आई. अब मैं यही सोच कर तो परेशान हो रही हूं.

‘‘पहले मेरी व्यथा का कारण तुम्हारे प्रेम प्रसंग ही थे. जब भी तुम्हारे साथ किसी का नाम सुनती थी, मेरे अंतर में कहीं कुछ टूटता सा चला जाता था. हर नए प्रसंग के साथ यह टूटना बढ़ता जाता था और उस टूटन को मेरे साथ मेरे बच्चे भी भुगतते थे.

‘‘अब तो मेरी व्यथा दोगुनी हो गई है. तुम्हीं बताओ, अगर मैं ने तुम्हारे जैसे रास्ते को पकड़ लिया होता तो क्या मैं भी पल्लवी की तरह सुखी न रहती? जब वह तुम्हारे साथ थी, तब तुम्हारा सबकुछ पल्लवी का था अब शादी कर के वह अपने घर में पहुंच गई है तो वहां भी सबकुछ उस का है. पल्लवी को प्रेमी भी मिला था और फिर अब पति भी मिल गया है, और मुझे क्या मिला? मुझे कुछ भी नहीं मिला…’’

सुधा इतनी बिलख कर पहले कभी नहीं रोई थी जितनी अपनी बात खत्म करने से पहले ही वह इस समय रो दी थी. Hindi Kahani

लेखिक : रमा प्रभाकर   

Bollywood : ‘‘अब मेकअप आर्टिस्ट की इज्जत पहले जैसी नहीं रही’’ – सय्यद मुसर्रत

Bollywood : फिल्म इंडस्ट्री में कुछ ऐसे नाम हैं जिन का चेहरा भले ही सक्रीन पर न दिखता हो मगर स्क्रीन पर दिखने वालों का चेहरा चमकाने में उन का हाथ होता है. ऐसे ही एक हैं सय्यद मुसर्रत, जिन्होंने बड़ेबड़े स्टार्स का मेकअप किया और उन के किरदारों को जीवंत बना दिया.

फिल्में देखते हुए लोग कलाकार की सुंदरता की तारीफ करते नहीं थकते. फिल्म में किसी भी किरदार में कलाकार को देख कर लोग उस के फैन बन जाते हैं पर लोगों का ध्यान इस बात पर नहीं जाता कि फिल्मी परदे पर वे जो कुछ देख रहे हैं, वह नकली है. कलाकार को सिनेमा के परदे पर सुंदर बनाने के पीछे सारा कमाल मेकअप आर्टिस्ट का होता है, जोकि इन का मेकअप करता है, इन के किरदार की मांग के अनुसार दाढ़ी, मूंछ व गेटअप बना कर इन्हें सजाता है.

ऐसे ही एक मेकअप आर्टिस्ट हैं सय्यद मुसर्रत, जिन्हें बौलीवुड में काम करते हुए 50 वर्ष पूरे हो गए हैं. मेकअप आर्टिस्ट के तौर पर काम करते हुए सय्यद मुसर्रत अब तक संजीव कुमार, रेखा, अमिताभ बच्चन, अक्षय कुमार, नीतू सिंह, प्राण, के एन सिंह सहित कई दिग्गज कलाकारों को सजासंवार चुके हैं. उन से बातचीत करना बेहद दिलचस्प रहा.

सब से पहले उन से पूछा कि आप क्या मेकअप आर्टिस्ट बनने के लिए मुंबई आए थे तो उन्होंने जवाब दिया कि वे दूसरे युवाओं की तरह राजस्थान के कोटा शहर से फिल्म में हीरो बनने के लिए ही मुंबई आए थे.

स्वतंत्र रूप से बतौर मेकअप मैन आप के कैरियर की शुरुआत कब व कैसे हुई थी? इस सवाल के जवाब में सय्यद मुसर्रत ने बताया, ‘‘मैं ने शुरुआत में बतौर मेकअप आर्टिस्ट ‘बग्गा डाकू’, ‘संतो बंतो’ सहित दर्जनों बड़ीबड़ी पंजाबी फिल्में कीं. उस के बाद मुझे निर्देशक जे एस गौतम की हिंदी फिल्म ‘बेटी’ मिली, जिस में संगीता नायर के अलावा सुधीर पांडे थे.

‘‘हिंदी में यह मेरी पहली फिल्म थी. फिर मुझे फिल्में मिलती गईं. उस के बाद मैं निर्माता व निर्देशक मुजफ्फर अली के साथ जुड़ गया. उन के साथ मैं ने ‘दमन’, ‘आगमन’, ‘अंजुमन’, ‘उमराव जान’ सहित सभी फिल्में और करीबन 15 टीवी सीरियल किए.

‘‘उस के बाद हम ने नीतू सिंह के साथ 6 साल तक उन के निजी मेकअप मैन के रूप में काम किया. उन के साथ मैं ने ‘काला पत्थर’, ‘चोरनी’, ‘चोरों की बरात’, ‘याराना’, ‘युवराज’ सहित करीब 50 फिल्में कीं.’’

मैं ने जब उन से सवाल किया कि मुजफ्फर अली के साथ आप का संबंध इतना अच्छा क्यों था तो उन्होंने कुछ यों बताया, ‘‘जब हम ने उन के साथ पहली फिल्म ‘दमन’ की, तभी से उन के साथ हमारे अच्छे ताल्लुकात बन गए थे. उन्होंने देखा कि मैं अपने काम में परफैक्ट था. मुझ में कोई ऐब नहीं था. आज भी अगर वे कुछ भी काम करते हैं तो मुझे ही बुलाते हैं.’’

पहली बार मुजफ्फर अली के साथ काम करते हुए सैट पर ऐसी कोई घटना घटी थी जिस ने उन महान निर्देशक को प्रभावित किया? इस के प्रत्युत्तर में सय्यद मुसर्रत कहते हैं, ‘‘जी हां, सैट पर अचानक उन्हें एक कलाकार को मौलवी बनाना था. उन्होंने मुझ से पूछा, ‘दाढ़ी है क्या?’ उन्होंने पहले से मुझे बताया नहीं था. मैं ने कहा कि, ‘सर, आप ने बताया नहीं था.’ उन्होंने कहा कि पहले ऐसी जरूरत महसूस नहीं हुई थी. हम मेकअप मैन लोग अपने पास हमेशा बड़ेबड़े बाल रखते हैं.

‘‘मैं ने वही बड़ेबड़े बाल निकाल कर दाढ़ी बनाई. इस से वे प्रभावित हो गए थे. उन्होंने मुझ से कहा, ‘तुम तो हर काम में माहिर हो.’ इसी वजह से हमारे बीच आज भी अच्छे ताल्लुकात हैं.’’

आप ने मुजफ्फर अली के साथ 2 ऐतिहासिक सीरियल भी किए. एक ऐतिहासिक किरदार मसलन वाजिद अली शाह. ऐसे किरदार के मेकअप के लिए तो रिसर्च करना पड़ता होगा? इस सवाल पर मुसर्रत ने बताया, ‘‘मुझे रिसर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती थी. मुजफ्फर अली स्वयं हमें हर किरदार का स्कैच बना कर देते थे कि किरदार के लिए किस तरह का गेटअप चाहिए. फिर हम उसी अनुरूप तैयारी करते थे.’’

आप ने संजीव कुमार का भी मेकअप किया था. उन से जुड़ी कोई घटना याद है? इस सवाल पर सय्यद मुसर्रत ने बताया, ‘‘1980 का एक मजेदार किस्सा सुनाता हूं. यह किस्सा निर्देशक रघुनाथ झलानी की फिल्म ‘बेरहम’ के सैट का है. उस फिल्म में संजीव कुमार और माला सिन्हा की जोड़ी थी. संजीव कुमार बड़े नेकदिल के, बहुते अच्छे इंसान थे. उन की बड़ी पतली मूंछें हुआ करती थीं. सैट पर उन की मूंछों को मैं ही संभालता था.

‘‘जब वे मूंछ लगाने के लिए कहते, तब मैं उन की मूंछ में गम लगा कर पकड़ाता था. वे मेरे हाथ से मूंछ ले कर खुद अपने चेहरे पर लगाया करते. फिर मुझ से कहते कि देखो ठीक है. एक दिन एक बंगले में शूटिंग हो रही थी. वहां अंधेरा काफी था. मैं ने उन की मूंछ पर उल्टी साइड यानी कि मूंछ के बालों में गम लगा दिया. जब संजीवजी ने कहा, ‘मूंछें दीजिए’ तो उन को दे दीं.

‘‘जैसे ही उन्होंने चेहरे पर मूंछ लगाने का प्रयास किया, उन्हें समझ में आ गया कि मैं ने बहुत बड़ी गलती कर दी है. वे बोले, ‘अरे बेटा, तुम ने तो उलटी मूंछ पर गम लगा दिया.’ मैं डर सा गया. फिर संजीव कुमार ने कहा, ‘कोई बात नहीं, कोई बात नहीं. एक काम करो, इस को जल्दी से धो कर गम साफ करो.’ मैं ने वैसा ही किया. फिर उसे पंखे में सुखाने की कोशिश कर सही ढंग से गम लगा कर उन्हें दी, तो उन्होंने मूंछ लगाई.

‘‘अगर आजकल का कोई आर्टिस्ट होता तो वह हंगामा कर डालता. फिर शायद मेरी छुट्टी कर दी जाती.

‘‘आज भी कुछ कलाकार ऐसे हैं जो प्यार रखते हैं. संजीव कुमार उन कलाकारों में से नहीं थे जोकि चिल्लपों करें. आजकल के आर्टिस्ट ऐसे हैं कि अगर गलती हम से हो जाए तो तूफान खड़ा कर देंगे. मेकअप मैन ने ऐसा कर दिया, आप ने ऐसा क्यों कर दिया? यह मेकअप खराब कर दिया वगैरहवगैरह जबकि संजीव कुमारजी ऐसे नहीं थे.’’

आप ने मुजफ्फर अली की फिल्म ‘उमराव जान’ में रेखा का मेकअप किया था? इस के बारे में सय्यद मुसर्रत बताते हैं, ‘‘मैं तो रेखाजी का पर्सनल मेकअप आर्टिस्ट हुआ करता था. सैट पर उन से हमारी काफी बातचीत होती थी. मुझे एक घटना याद है. मुजफ्फर अली साहब ने कहा था कि वे रेखाजी यानी नूरजहां को नकली गहने नहीं पहनाएंगे तो रेखा के जो गहने थे, वे सारे ओरिजिनल थे. मुजफ्फर अली साहब उन के लिए अपने खानदानी जेवर ले कर आए थे.

‘‘हीरेजवाहरात अंगूठी वगैरह सबकुछ उन्होंने ओरिजिनल पहनाई थी. जब रेखाजी ये ओरिजिनल जेवरात आदि पहनने के बाद उतारती थीं तो मेरे हाथ में ही देती थीं, कीमती जो थे ये. मुजफ्फर अली ने ये सारे महंगे हीरेजवाहरात के गहने सैट पर पहले दिन मेरे हाथ में देते हुए कहा था कि अब आप संभालें. उस के बाद कभी भी उन्होंने यह नहीं देखा सही से कि मैं ने उन को वापस किया भी या नहीं.’’

रेखाजी ने आप से कभी कुछ कहा? इस सवाल पर उन्होंने कहा, ‘‘रेखाजी एक ही बात कहती थीं कि फिल्म बहुत अच्छी बन रही है. इस से उन्हें भी बहुत बड़ी कामयाबी मिलेगी और वह फिल्म अच्छी बनी भी. फिल्म ‘उमराव जान’ तो सही माने में अमर रही. मुजफ्फर साहब की पहचान है. यों तो मुजफ्फर अली ने ‘दमन’ व ‘आगमन’ सहित 2 दर्जन फिल्में बनाईं लेकिन ‘उमराव जान’ उन की पहचान है. वे बहुत अच्छे और क्रिएटिव इंसान हैं. उन से बेहतरीन ऐतिहासिक फिल्में कोई दूसरा नहीं बना सकता. वे बड़े शांत आदमी हैं. मैं तो पिछले 45 वर्षों से उन के साथ जुड़ा हुआ हूं पर मैं ने उन को गुस्सा होते हुए नहीं देखा और न कभी हायहाय करते देखा.’’

अमिताभ बच्चन के साथ आप ने कौनकौन सी फिल्में कीं? ‘‘उन के साथ मैं ने ‘कसमे वादे’, ‘याराना’, ‘काला पत्थर’ सहित कई फिल्में कीं. अमिताभ बच्चन बहुत ही अच्छे इंसान थे. वक्त के पाबंद वे तब भी थे, अब भी हैं. हम से पहले वे सैट पर पहुंच जाया करते थे. अपने काम से मतलब रखते थे. सच तो यही है कि पुराने सभी आर्टिस्ट काम और समय को बहुत महत्त्व देते थे. अब तो समय की कोई कीमत ही नहीं है. जितने भी पुराने आर्टिस्ट थे, वे टाइम पर आ जाते थे और टाइम से जाते थे.’’

कभी सैट पर अमिताभ बच्चन के साथ आप की बातचीत हुई? इस पर मुसर्रत कहते हैं, ‘‘बातचीत तो काफी हुई है. फिल्म ‘याराना’ की शूटिंग के लिए हम लोग कोलकाता गए थे. वहां हमारी अकसर बातचीत हुआ करती थी. तब वे अपने परिवार के बारे में बताते थे. वे कोलकता में रहे भी हैं तो उस वक्त की यादें बयां करते थे.

‘‘वह कभी अपनी तारीफ नहीं करते. वरना आजकल तो ऐसे कलाकारों की भरमार हो गई है, जिन की आप ने तारीफ नहीं की तो वे नाराज हो जाते हैं. कुछ तो खुल कर कहते हैं, ‘हमारी तारीफ नहीं की. हम तो इतने बड़े आर्टिस्ट हैं.’’

आप ने पर्सनल मेकअप मैन के रूप में काम करना कब से शुरू किया था? इस पर सय्यद मुसर्रत कहते हैं, ‘‘इत्तफाक से मेरी मुलाकात अभिनेत्री नीतू सिंहजी से हुई और मैं उन का पर्सनल मेकअप मैन बना. वे बहुत अच्छी औरत हैं. उन के साथ काम करने के दिन इतने अच्छे गुजरे कि वे मुझे आज भी याद आते हैं. उन के साथ मैं ने कई फिल्में कीं. उन के साथ बहुत आउटडोर घूमा.

‘‘उन्होंने कभी भी मेरे साथ बदतमीजी से बात नहीं की. वे मेरे साथ भाई जैसा व्यवहार करती थीं साथ में खाना खाना. मुझे हमेशा अपने साथ गाड़ी में लाना ले जाना, घर छोड़ना आदि. मैं ने उन के साथ जो इज्जत और मोहब्बत पाई है, वह और किसी के साथ नहीं मिली. आज भी हमारी बातचीत होती है.’’

कमाल अमरोही के साथ काम करने के आप के अनुभव क्या थे? इस सवाल पर मुसर्रत कहते हैं, ‘‘कमाल अमरोही अच्छे व बड़े सुकून वाले इंसान थे. वे सैट पर बड़े आराम व सुकून से शूटिंग करने में यकीन रखते थे. दिनभर में 2 सीन फिल्माए गए तो बहुत बड़ी बात होती थी. उन को परफैक्शन चाहिए होता था. वे हर कलाकार के कौस्ट्यूम, कौस्ट्यूम की सिलाई से ले कर मेकअप आदि खुद चैक करते थे. सब से बड़ी बात तो यह कि सैट पर पहुंचते ही दिलीप कुमार से कहते थे, ‘यूसुफ भाई, मेकअप हो गया?’ फिर चैक करते थे. एक बार मैं तिल लगाना भूल गया था. उन्होंने पकड़ लिया और कहा कि अरे भाई, तिल कहां चला गया. मैं ने कहा कि सर, वह सैट पर लगाऊंगा तो कहा कि नहीं, अभी लगाओ वरना आप भूल जाओगे.

‘‘कमाल अमरोही की आंखें कमाल की थीं. वे कलाकार का मेकअप देखते ही समझ जाते थे कि कल और आज के मेकअप में कितना फर्क है. एक दिन एक कलाकार की दाढ़ी का पौइंट थोड़ा हट गया था. बीच का जो पौइंट होता है, वह थोड़ा सा हिल गया था. कमाल साहब आए, उसे देखा और तुरंत बोले, ‘अरे भाई, आज इन का मेकअप किस ने किया है?’ मैं तो उन के साथ खड़ा था. मैं ने कहा, ‘सर, क्या समस्या हो गई?’ तो वे बोले, ‘देखा करो, आज दाढ़ी गड़बड़ लगी है.’ फिर उसे ठीक करवाने के बाद ही वे वहां से हटे.’’

और किनकिन कलाकारों के साथ आप ने काम किया? इस सवाल पर वे बताते हां, ‘‘हम ने तो अक्षय कुमार के साथ भी काम किया. अक्षय कुमार पहले डांसर और बौक्सर था. तब वह मुझ से पूछता था, ‘मैं आर्टिस्ट बन पाऊंगा या नहीं,’ एक दिन उस ने मेरी बीवी से पूछ लिया तो मेरी बीवी ने अक्षय कुमार से कहा था, ‘तुम तो ऐसे ही बहुत बड़े आर्टिस्ट हो. एक दिन और बड़े आर्टिस्ट बन जाओगे’.’’

स्टार बनते ही अक्षय कुमार का बिहेवियर बदल गया? इस पर वे कहते हैं, ‘‘वक्त के साथसाथ हर चीज बदलती है. हर सदी के अंदर बदलाव होता है. कलाकार जब इंडस्ट्री में आता है तो खुद को खड़ा करने के लिए हर किसी की मदद लेने के लिए बड़ी विनम्रता से पेश आता है. उन्हें खड़ा करने के लिए हम ने अपना काम किया. वे अपने स्वभाव के अनुरूप काम कर रहे हैं. सफलता के साथ हर इंसान का स्वभाव, व्यवहार, चालढाल, एटीट्यूड बदलता ही है. यह सिर्फ अक्षय कुमार के साथ ही नहीं है, सभी के साथ ऐसा है. वक्त के साथसाथ हर इंसान बदलता है.’’

आप के 50 साल के मेकअप आर्टिस्ट के कैरियर में कभी पछतावा भी हुआ होगा कि आप ने किसी कलाकार के बारे में क्या सोचा था और वह क्या निकला? इस सवाल पर मुसर्रत ने कहा, ‘‘ऐसा कभी नहीं हुआ. मैं ने धर्मेंद्रजी के साथ भी काम किया. लोग कहते थे कि धर्मेंद्रजी बहुत गुस्सैल कलाकार हैं. मैं ने धर्मेंद्र के साथ 2-3 फिल्में कीं. वे मुझ पर कभी गुस्सा नहीं हुए. वे बहुत बड़े प्यारे व हंसमुख इंसान हैं. मेरा मानना है कि अगर आप अच्छे हैं, आप का काम अच्छा है तो सभी अच्छे हैं. अगर आप अच्छे नहीं हैं, आप का काम अच्छा नहीं है तो कुछ नहीं हो सकता.’’

आप को नहीं लगता कि पहले कलाकार कला को महत्त्व दिया करते थे लेकिन अब धन को? इस पर उन्होंने कहा, ‘‘आप ने एकदम सही फरमाया. अब हर कलाकार का स्वभाव व व्यवहार दोनों बहुत बदल गए हैं. पहले कलाकार कला को महत्त्व देते थे. अपने काम को एक तरह से वे आदर्श मानते थे. तब कलाकार सैट पर लगन के साथ तब तक काम करते थे जब तक सारा काम खत्म न हो जाए पर आजकल तो फटाफट भागने वाली बात है.

हम ने तो बड़ेबड़े आर्टिस्टों के साथ काम किया है. प्रेम चोपड़ा, के एन सिंह, अमिताभ बच्चन, विनोद खन्ना, संजीव कुमार. इन्हें शूटिंग करते देख ऐसा लगता था कि जैसे वे बहुत ही महत्त्वपूर्ण काम कर रहे हों. उस वक्त कलाकार, निर्देशक से कोई बहस नहीं करता था, कोई चिकचिक नहीं, कोई शिकायत नहीं. उस वक्त के कलाकार ईमानदार, मेहनती व प्यार से काम करने वाले हुआ करते थे. अभी भी कुछ आर्टिस्ट अच्छे, दिल के अच्छे हैं. इस में कोई शक नहीं है.’’

50 वर्ष के मेकअप आर्टिस्ट के आप के कैरियर में आप को प्रशंसा मिली होगी. अवार्ड मिले होंगे? इस पर वे कहते हैं, ‘‘मेरे काम की तारीफ तो बहुत होती रही है. मुझे लाइफटाइम अचीवमैंट अवार्ड मिला है.’’

आजकल आप क्या कर रहे हैं? इस सवाल के जवाब में वे कहते हैं, ‘‘डाकू मलखान सिंह की बायोपिक फिल्म करने वाला हूं. इस फिल्म की तैयारी चल रही है.’’

50 साल में मेकअप मैन इंडस्ट्री के अंदर आए बदलावों को ले कर उन का मानना है कि पहले जो मोहब्बत थी, प्यार था, वह अब कम हो गया है. पहले मेकअप मैन की बहुत इज्जत होती थी. अब नहीं रही.

हर कलाकार को पता होता है कि उस के चेहरे का कौन सा भाग खराब है. ऐसे में यह बात कलाकार खुद ही आप को बताता होगा कि क्या करना है? इस सवाल पर वे थोड़ा हंसे, फिर बोले, ‘‘यों तो कलाकार को देखते ही हम खुद समझ जाते हैं. लेकिन कई बार कलाकार भी बता देता है कि देखो, मेरी नाक इस जगह से मोटी है तो उस को सही कर देना. इस जगह से मेरे कान ऐसे हैं तो उस को ठीक कर देना. वैसे, हर मेकअप आर्टिस्ट समझ जाता है कि उस को कहां क्याक्या ठीक करना है. कई बार लोग कहते हैं कि मेरी आंख बहुत छोटी है तो हम क्या करते हैं कि उस की आंखों को बड़ा करने के लिए थोड़ा काजल अच्छे से लगा देते हैं.’’

आजकल कलाकार प्लास्टिक सर्जरी करवाते हैं. ऐसे में चेहरा कितना बदलता है. मेकअप के समय कितनी समस्याएं आती हैं? इस पर वे कहते हैं, ‘‘यह तो मैं नहीं समझ पाता हूं कि चेहरा कितना बदलता है लेकिन अब लोग प्लास्टिक सर्जरी काफी करवा रहे हैं. मेरे सामने आज तक तो मैं ने ऐसा कोई देखा नहीं जो ऐसा आया हो. हां, मुझे पता है बड़ेबड़े लोग करवा लेते हैं पर यह भी सच है कि प्लास्टिक सर्जरी करने के बाद भी उन का मेकअप तो करना ही पड़ता है.

‘‘अगर प्लास्टिक सर्जरी करवा ली है तो इस का मतलब यह नहीं है कि उन्हें मेकअप करने की जरूरत नहीं है. फिर भी उन्हें मेकअप तो करवाना ही पड़ेगा. कैमरे के सामने आने के पहले आप को मेकअप तो करवाना ही पड़ेगा. जो आप के अंदर खामियां हैं, कमियां हैं उन को छिपाना तो पड़ेगा.

‘‘मेकअप का मतलब है पौलिश. अगर आप किसी चीज को चमकाओगे नहीं तो वह आप को खुदराखुदरा लगेगा. खराब लगेगा. लोग पसंद नहीं करेंगे पर वहीं अगर आप किसी चीज को चमका कर व सजा कर पेश करोगे तो लोग बोलेंगे अरे वाह, क्या बात है. लोग उस की तारीफ करेंगे.’’

आप एक मेकअप मैन को क्या संदेश देंगे? इस पर वे अपनी राय देते हुए कहते हैं, ‘‘मैं सभी से एक ही बात कहता हूं कि आप समय के पाबंद रहें. अपने काम को सही समय पर पूरा करें. सभी के साथ प्यारमोहब्बत से रहें. प्यारमोहब्बत ऐसी चीज है जो इंसान को आगे बढ़ाने में

मदद करती है. अगर आप के अंदर प्यारमोहब्बत नहीं है, अपनापन नहीं है तो लोग आप को पसंद नहीं करेंगे. समय पर काम करने की आदत के साथ अपने काम में परफैक्ट भी होना चाहिए.’’

आप के परिवार में कौनकौन हैं? इस निजी सवाल पर वे थोड़ा मुसकराए, बोले, ‘‘मेरे 2 बेटे हैं. दोनों बाहर काम करते हैं. 2 बहुएं हैं. मेरा एक पोता है. दोनों बेटे बहुत बड़ी कंपनी के अंदर बड़ेबड़े पदों पर हैं. एक बेटा एक कंपनी में सीईओ है. बड़ा बेटा मुजफ्फर बहुत अच्छा गाना गाता था. उस ने 1-2 फिल्मों में गाना भी गाया. लेकिन उस ने इंजीनियरिंग की है और उसे उस में अच्छी नौकरी मिली है. दोनों बेटे अच्छा कमा रहे हैं. बहुत खुश हैं.

‘‘मैं 50 साल बाद भी काम कर रहा हूं. 2 दिन पहले ही एक फिल्म की शूटिंग कर के आया हूं. हम मानते हैं कि काम छोटा या बड़ा नहीं होता. काम तो काम ही होता है. आखिर में बस, इतना ही कहूंगा कि इंडस्ट्री बहुत अच्छी है अगर आप अच्छे हैं तो.’’

Travelogue : कनाडा भ्रमण के दौरान व्हेलों से मुलाकात

Travelogue : बचपन में सब ने पढ़ा होगा कि व्हेल बड़े विचित्र जीव होते हैं, उन का मल अत्यंत सुगंधित होता है. व्हेल के बारे में और भी ऐसी जानकारियों के लिए दिल मचल रहा था. इसलिए निकल पड़े ऐसी यात्रा पर जहां बहुत सारे व्हेलों से रूबरू होने का मौका मिला.

व्हेल दुनिया का सब से बड़ा जीव माना जाता है. ये दुनिया के सभी महासागरों में घूमते हैं. इन का विशाल आकार हमें आश्चर्यचकित करता है. पूर्ण वयस्क ब्लू व्हेल की लंबाई लगभग 100 फुट और वजन लगभग 200 टन होता है, जो लगभग 33 हाथियों के बराबर होता है. पानी में रहने के बावजूद व्हेल मछली नहीं है. यह मनुष्य की तरह गरम खून वाला स्तनधारी जीव है, जो पानी की सतह पर आ कर हवा में सांस लेता है. इन की त्वचा पर ब्लबर नामक वसा की एक मोटी परत इन्हें ठंडे समुद्री पानी से बचाती है.

बचपन में मैं ने पढ़ा था कि व्हेल बड़ा विचित्र जीव है. इन का मल (पौटी) अत्यंत सुगंधित होता है. फ्रांस में बने बेशकीमती सैंट में व्हेलों के मल का उपयोग किया जाता है, सो व्हेल के मल का मूल्य लाखों में होता है. मुझे एक मित्र ने बताया था कि अंडमान प्रवास के दौरान उसे पता चला था कि समुद्र में मछुआरे बड़ी तत्परता से व्हेल की उलटी (एम्बरग्रीस) खोजते हैं.

अगर किसी मछुआरे को समुद्र में तैरती हुई व्हेल की उलटी मिल गई तो वह मालामाल हो जाता है, क्योंकि व्हेलों की उलटी सुगंध और औषधि बनाने के काम में आती है और बेशकीमती होती है. सो, बचपन से ही मुझे इस विशालकाय जीव के बारे में और ज्यादा जानने की जिज्ञासा थी.

पुराने जमाने से ही मनुष्य इन के स्वादिष्ठ मांस और त्वचा पर वर्तमान ब्लबर (जिस से औद्योगिक तेल बनाया जाता है) के लिए सारे विश्व में हारपून द्वारा व्हेलों का शिकार करते हैं जिसे व्हेलिंग कहते हैं. भारी संख्या में व्हेलिंग के कारण व्हेलों की कुछ प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर पहुंच गई थीं, इसलिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 1980 से व्हेलिंग पर पाबंदी लगा दी गई है.

व्हेल की आयु 70 से 100 साल तक होती है. व्हेल बड़ा विचित्र जीव है. कहते हैं कि स्वाभाविक मृत्यु से पहले व्हेल को उस की मृत्यु का आभास हो जाता है. वे समुद्र के बिलकुल नीचे चले जाते हैं, जहां सांस रुकने से उन की मृत्यु हो जाती है. उन के विशालकाय शरीर के मांस और अन्य अवशेष को समुद्री जीव वर्षों तक खा कर जिंदा रहते हैं.

मैं ने देशविदेश में कई समुद्र देखे हैं. समुद्र में 24-24 घंटे यात्रा भी की है. समुद्री क्रूज में रात भी बिताई है परंतु कभी इस विशालकाय जीव का दर्शन नहीं हुआ था. अभी हाल में मैं कनाडा गया था. वहां मुझे यह जान कर खुशी हुई कि गरम मौसम में क्यूबेक प्रांत के सैंट लौरेंस नदी के मुहाने में लोगों को व्हेलों के दर्शन करवाए जाते हैं और यह जगह विश्व के व्हेल दर्शन के सर्वश्रेष्ठ जगहों में से एक है.

अद्भुत सफर

वर्ष 2024 के अगस्त महीने में मैं सपरिवार व्हेलों के दर्शनार्थ क्यूबेक शहर से लगभग 200 किलोमीटर दूर टेडूसेक नामक स्थान पर सैंट लौरेंस मैरिन पार्क में दिन के लगभग 12 बजे पहुंच गया. यहां क्रोईसिरस नामक कंपनी अपनी जोडिएक (मोटरबोट) द्वारा दर्शकों को व्हेलों के दर्शनार्थ सैंट लौरेंस नदी के मुहाने पर ले जाती है. हम लोगों ने अपनी यात्रा के टिकट प्रति व्यक्ति कनाडाई डौलर 350 पहले से ही औनलाइन बुक करवा लिए थे.

क्रोईसिरस कंपनी के स्टाफ ने हमारा स्वागत किया. एक जोखिम फौर्म भरवाया. सभी लोगों को लाल रंग का एक पौलिथीन का पतलून, जैकेट और टोपी दी जिन्हें हम ने अपने कपड़ों के ऊपर पहन लिया ताकि यात्रा के दौरान हमारे कपड़े गीले न हों. क्रोईसिरस कंपनी के पीले रंग के जोडिएक में हम लोग लगभग 50 दर्शक सवार हो कर बैठ गए.

लाल परिधान में जोडिएक के कप्तान (पायलट) और फ्रैंच वयस्क महिला गाइड ने हमारा अभिवादन किया. सैंट लौरेंस नदी के तट से हमारी यात्रा लगभग 1 बजे दिन को शुरू हुई.

कनाडा के क्यूबेक प्रांत के अधिकतर निवासी फ्रैंच हैं. यह फ्रैंच प्रभुत्व वाला प्रांत है. यहां अधिकतर लोग फ्रैंच भाषा में बात करते हैं, इंग्लिश नहीं समझते हैं. जोडिएक में सवार अधिकतर दर्शनार्थी फ्रैंच थे. हमारी तरह कुछ लोग इंग्लिश समझने वाले थे. हमारी हंसमुख महिला गाइड दुभाषीय थी. उस ने पहले हमें फ्रैंच में, फिर इंग्लिश में संबोधित किया.

सैंट लौरेंस नदी के तट से काफी दूर मुहाने की ओर जाते हुए हमारे गाइड ने बताया कि व्हेल का दर्शन रोमांच की बात है. हमें 1 या 2 या 4 या 10 व्हेल दिख सकते हैं या व्हेल के दर्शन नहीं भी हो सकते हैं. उन्होंने हमें बताया कि एक व्हेल दिन में लगभग 500 किलो खाना (छोटी मछली, समुद्री जीव इत्यादि) खाती है और सैंट लौरेंस के मुहाने पर भोजन की कमी नहीं है, इसलिए गरम मौसम में व्हेलों के समूह हजारों किलोमीटर दूर समुद्र से माइग्रैट कर इस मुहाने में आते हैं और प्रजनन कर के अपने बच्चों के साथ सर्दी में वापस चले जाते हैं.

सैंट लौरेंस नदी के मीठे पानी का संगम यहां से लगभग 1,000 किलोमीटर दूर अटलांटिक महासागर के खारे पानी के साथ होता है. इसलिए सैंट लौरेंस के मुहाने का पानी हलका खारा है, परंतु मुहाना नदी के जैसा है, समुद्री लहरें नहीं हैं. लगभग 1 घंटे की यात्रा के बाद हम लोगों को पहला व्हेल का दर्शन हुआ. पहले उस का सिर (सांस लेने के लिए व्हेल पानी की सतह पर आया), फिर उस का विशाल काला शरीर, फिर पूंछ दिखाई पड़ी.

दर्शकों का मन आनंद से प्रफुल्लित हो उठा. सारे दर्शक व्हेल को देखने के लिए खड़े हो गए और हाथ हिला कर, सीटी बजा कर उसे प्रोत्साहित करने लगे. थोड़ी देर बाद 2 व्हेल तैरते हुए हमारे जोडिएक के बाईं तरफ बिलकुल करीब आ गए. गाइड ने हमें बताया कि ये मध्यम आकार वाले लगभग 15 फुट लंबे बेलुगा व्हेल हैं. अगर ये दोनों व्हेल हमारे जोडिएक को जोर से धक्का मार देते तो हमारा जोडिएक उलट जाता.

मेरे पूछने पर गाइड ने मुसकराते हुए बताया कि सैंट लौरेंस मुहाने के व्हेल बड़े शांत प्रकृति के होते हैं. वह 30 वर्षों से इस मुहाने में काम कर रही है, कभी किसी व्हेल ने किसी मनुष्य को या किसी नाव को नुकसान नहीं पहुंचाया. थोड़ी देर के बाद ये दोनों व्हेल हमारे जोडिएक के सामने दिखाई पड़े. कंपनी के यात्रियों से भरे हुए अन्य 5 जोडिएक भी हमारे जोडिएक के नजदीक आ कर व्हेलों को आनंद से देखने लगे.

कुछ दूरी पर एक तीनमंजिले क्रूज में सवार यात्रियों ने भी व्हेलों के दर्शन किए. गाइड ने हमें बताया कि सैंट लौरेंस का मुहाना इन बेलुगा व्हेलों को इतना पसंद है कि बहुत सारे बेलुगा व्हेल यहां स्थायी रूप से रहने लगे हैं. लगभग आधे घंटे की यात्रा के बाद हमें 2 मध्यम आकार के भूरे रंग के मिन्क व्हेल दिखाई पड़े. ये दोनों व्हेल सांस ले कर शोर करते हुए अपने नथुनों से पानी का लगभग 10 फुट ऊंचा फौआरा छोड़ रहे थे. यह देख कर हमें मजा आ गया.

थोड़ी देर बाद ये दोनों मिन्क व्हेल शोर कर के पानी का फौआरा छोड़ते हुए दोबारा दिखाई पड़े. मुझे ऐसा लगा कि हमें देख कर व्हेल भी खुश हुए हैं और हमारा स्वागत कर रहे हैं. गाइड ने बताया कि मुहाने में, जहां व्हेल साधारणतया रहते हैं और सांस लेने के लिए सतह पर आते हैं, वहां की गहराई लगभग 170 मीटर और पानी का तापमान लगभग 4 डिग्री है. वहां पानी काफी ठंडा है जबकि सैंट लौरेंस नदी के तट पर पानी गरम है, वहां का तापमान 20 डिग्री है.

हमारी वापसी की यात्रा लगभग 4 बजे शुरू हुई. वापसी के दौरान जोडिएक बहुत तेजी से चल रहा था. ठंडी हवा के साथसाथ मुहाने के हलके नमकीन पानी के झोंकों ने हमें भिगो दिया. वापसी के दौरान हमें एक काले रंग का हम्पबेक व्हेल दिखाई पड़ा जिस की काली पूंछ पर सफेद सुंदर चिह्न थे.

गाइड ने हमें बताया कि जो व्हेल हमें आज दिखाई पड़े उन को क्रोईसिरस कंपनी के स्टाफ पहचानते हैं क्योंकि वे हर साल यहां आते हैं और क्रोईसिरस कंपनी के स्टाफ ने प्यार से उन का अलगअलग नाम दे रखा है. तट के करीब आने पर पत्थरों के बीच हमें बहुत से छोटेछोटे भूरेसफेद रंग के समद्र्री सील धूप सेंकते हुए दिखाई पड़े.

पूरी यात्रा के दौरान आकाश में सूर्य चमक रहा था जो व्हेल के दर्शन में सहायक हुआ. हमारी गाइड ने बताया कि हम लोगों के लिए यह खुशी का समय है क्योंकि इस मौसम में पहली बार इतने सारे व्हेल एकसाथ दिखाई पड़े. लगभग 5 बजे शाम को तट पर आ कर हम लोगों ने जोडिएक के कप्तान और गाइड को धन्यवाद दिया और जोडिएक से उतर कर भीगे हुए पौलिथीन के कपड़ों को यथास्थान रख वापस चले आए. इस प्रकार हमारी व्हेल दर्शन की अभिलाषा बहुत आनंद और संतोषपूर्वक पूर्ण हुई.

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