Family Story : एक स्त्री को पूरी तरह समझना आसान नहीं है. पवन ने समझा था कि वह रूबी की दबी भावनाएं जान गया है लेकिन नहीं, अभी तो वह बहुत चीजों से अनजान था.
‘‘ठंड काफी बढ़ गई है, बेहतर होगा एकएक पैग और ले लिया जाए,’’ पवन ने अनिकेत से कहा और अपनी रजाई फेंक कर बिस्तर से उठ बैठा. अनिकेत की इच्छा तो थी, फिर भी बिन पत्नी इस टाटा मिलिट्री ट्रेनिंग सैंटर में कहीं ज्यादा पी कर तबीयत पर लगाम न रहे, इसलिए वह कुछ कुनमुनाया.
पवन ने खुद ही 2 पैग बना कर एक गिलास अनिकेत की ओर बढ़ा दिया.
‘‘आज कुछ ज्यादा नहीं पी गए? अब, बस, कर न पवन,’’
52 साल के पवन और 49 साल के अनिकेत एक ही कमरा साझा कर रहे थे और दोनों के सिंगल बैड पासपास थे. पवन अनिकेत को देखता हुआ अपने बैड पर पैर लटका कर बैठ गया. अनिकेत पैग पकड़े हुए पलंग पर आसन जमा कर बैठ गया, लेकिन जरा मुंह लटका कर.
‘‘यार, यह बताओ यह क्या बात हुई, पति घर से 1,200 किलोमीटर दूर ट्रेनिंग में सड़ रहा है और पत्नी उसे बिना बताए किसी भी मर्द को घर में ठहरा ले?’’ अनिकेत बोला तो पवन ने पूछा, ‘‘क्यों क्या हो गया? रूबी भाभी ने किसी को घर में ठहरा लिया क्या?’’
‘‘यार, कल सुबह मुझे ऐक्सरसाइज के लिए मत उठाना, सीधे 9.30 बजे कैंटीन से नाश्ता निबटा कर क्लास जाऊंगा,’’ अनिकेत ने बात को मोड़ते हुए कहा.
‘‘लगता है मूड ज्यादा खराब हो रहा है भाई का. ठीक है जनाब. लेकिन अभी तो उठना होगा रात के डिनर के लिए.’’ पवन ने कहा.
‘‘सुनो न पवन, आज मन नहीं हो रहा बिस्तर छोड़ने का, तुम ही हो आओ,’’ अनिकेत बोला.
‘‘चलो ठीक है, देखता हूं. गुलाब राय से कह दूंगा रोटीसब्जी एक थाली में रख दें तुम्हारे लिए,’’ पवन ने कहा.
‘‘शुक्रिया दोस्त,’’ पास के टेबल पर शराब का खाली गिलास रख अनिकेत रजाई में घुस गया.
टाटा के इस ट्रेनिंग सैंटर में रेलवे कर्मचारियों के लिए 40 दिनों की मिलिटरी ट्रेनिंग रखी जाती है. मिलिटरी अफसर यहां ट्रेनर होते थे और बुरे वक्त या इमरजैंसी में रेलवे कर्मचारियों पर देश की सेवा का भार दिया जा सके, इसलिए उन्हें सामान्य नौकरी से इतर साल में एक बार ट्रेनिंग लेने आना पड़ता था.
पवन और अनिकेत रायपुर रेलवे विभाग में थे, साथ ही, उन की दोस्ती भी कुछ सालों से काफी बढि़या थी. दोनों ने ट्रेनिंग में साथ आने का फैसला किया था ताकि 40 दिनों की लंबी कष्टदायी ट्रेनिंग में मन लगा रहे. अनिकेत का अनसुलझे सवाल अब भी पवन को परेशान किए था.
वापस आ कर अनिकेत को खाने की थाली पकड़ाई और पास बैठ गया उस के.
‘‘भाई, तुम्हें शक कैसे हो रहा है?’’ पवन उत्सुक हो रहा था, लेकिन अनिकेत को जताया जैसे कि वह बहुत चिंतित हो.
‘‘मेरे फोन से रूबी को कौल लग नहीं रही थी, मैं पास की दुकान में चला गया था और वहीं से कौल लगाई रूबी को. उस का फोन शेखर ने उठाया था. रात के 10 बजे घर में गैरमर्द?’’
‘‘शेखर कौन? अच्छा वह भिलाई वाला डीटीआई? उस से तो तेरी पहचान थी न?’’ पवन को याद आया.
‘‘वह पहले कई बार मेरे घर आ चुका था, खैर, मैं ने उस से रूबी को फोन देने को कहा. अचानक फोन पर मुझे पा कर रूबी शेखर की उपस्थिति से इनकार नहीं कर पाई, कहा, डिनर के बाद रवाना कर देगी उसे, मगर मुझे शक है शायद ही उस ने ऐसा किया हो.’’
‘‘अरे, बीवी पर भरोसा रखो. तुम दोनों की तो लवमैरिज है. चल, छोड़ भाई, अपन आओ मजा करते हैं. मुझे देखो, बीवी का ठेका उठाए नहीं घूमता. अपनी जिंदगी जियो, यार.’’
‘‘वही तो है मेरी जिंदगी, कैसे छोड़ दूं?’’
‘‘सच कहूं तो भाभी के पीछे बहुत पड़े रहते हो यार. अभी कुछ महीने पहले तुम अस्पताल में एडमिट हुए, छूटते ही भाभी को शौपिंग कराना, घुमाना. क्या जरूरत थी, यार? पवन लापरवाही से बोला.
‘‘भाई वह दिन नहीं भूलते जब वह मुझे मिली थी. मैं उस के भाई के साथ रेलवे के एक ही स्टेशन में पोस्टेड था. मैं बैचलर और मेरा दोस्त यानी रूबी का भाई भी. उस की मां थी, पिता नहीं थे. उस के घर आनाजाना लगा रहता. मां उस के साथ मु?ो भी बिठा कर खिलाती. फिर कुछ दिनों बाद रूबी दिखी.’’
मैं अवाक. अब तक तो नहीं दिखी थी, कौन है. दोस्त कहता है, वह उस की बहन है, मामा के घर गई थी, 2 महीने रह कर लौटी है. फिर क्या था, दोस्त का घर दुनिया का सब से हसीन पर्यटन बन गया मेरे लिए.
‘‘रूबी का और मेरा मन जल्द ही एकदूसरे से बंध गए. बात शादी की हुई और हो गई. मेरा लगाव कभी घटा नहीं उस के लिए, भले ही उन्नीस साल हो गए हमारी शादी को.’’
‘‘इतनी ही शिद्दत रूबी भाभी में है तेरे लिए?’’
पवन के लिए जरा वाहियात सी थी लगाव की बातें.
‘‘मैं ने इतना जांचा नहीं. रोज जिंदगी चल ही रही है. मेरे साथ है वह, मै खुश हूं. मेरे लिए यह काफी है.’’
‘‘तेरे लिए तो काफी है, मगर रूबी भाभी के लिए तू काफी है कि नहीं, यह कभी सम?ा क्या?’’
‘‘छोड़ यार, मेरे पास अब इतना दिमाग नहीं बचा. एक तो इतनी ठंड मु?ो सहन नहीं होती, ऊपर से शेखर की टैंशन अलग.’’
‘‘चल, बाहर से कुछ और्डर कर लेता हूं. मैं गेट से ले लूंगा जा कर. आज कैंटीन की दाल, रोटी, सब्जी छोड़. क्या कहता है? कह दूंगा डिनर का मन नहीं है.’’
‘‘देख ले,’’ पवन के मन बहलाने की कोशिश का अनिकेत पर खास असर तो हुआ नहीं, बस, वह शांत हो कर रजाई में चला गया.
रूबी की जितनी तारीफ की जाए कम होगी, ऐसा अगर अनिकेत की नजर से देखा जाए तो कहने में कोई बुराई नहीं. लेकिन इस समाज के संस्कारी नजरों के पैमाने पर बैठने वाली स्त्री वह नहीं है.
45 साल की रूबी अपने शारीरिक सौष्ठव, लचीली काया और कोमल आकर्षक स्किन के कारण 35 की मुश्किल से लगती थी. वह यह बात बखूबी सम?ाती थी और इस वजह उसे कुछ गरूर भी था.
वह अपने दिन का 80 प्रतिशत हिस्सा खुद पर ही व्यय करती थी. तब भी उसे लगता था कि बेटी के कुछ झमेले सिर पर न आते तो उस के पेट में चरबी की एक टायर जो फिर से दिखने लगी थी, वह न रहती.
रात को जिम, शौपिंग और पार्टी की वजह से घर में मैडिकल एग्जाम की तैयारी कर रही बेटी के लिए लगभग रोज बाहर से पिज्जा, बर्गर, डबल चीज पास्ता आदि मंगवा दिया जाता था.
अनिकेत को हमेशा यह अच्छा नहीं लगता लेकिन रूबी की परेशानी के आगे वह आंखें मूंद लेता. इन्हीं रूटीन के साथ जिंदगी चलती जाती यदि बेटी को किडनी और पैंक्रियाज में तकलीफें न आ जातीं.
सालभर इन की जिंदगी थम गई. लंबे इलाज के बाद बेटी ठीक हुई तो घर में ज्यादा से ज्यादा समय रूबी को बेटी की सेवा में लगाना पड़ा और रूबी अपने रूटीन से कुछ पिछड़ गई. खैर, दिन ये भी बीते और बेटी पढ़ने के लिए कोलकाता मैडिकल कालेज चली गई. रूबी अब कुछ ज्यादा आजाद थी. एक दिन अनिकेत को बड़ी जोर से पेटदर्द की शिकायत हुई.
बेटी के औपरेशन से कुछ ही महीने हुए थे उन्हें शांति मिली थी. अनिकेत रूबी को और परेशान करना नहीं चाहते थे. अनिकेत ने आंखें मूंद लेने में ही अपनी भलाई सम?ा. रूबी का अपने मुताबिक अनिकेत को चलाना चलता रहा.
इधर, टाटा ट्रेनिंग सैंटर में कई बार जबरदस्त व्यायाम के दौरान अनिकेत को जोरों का पेटदर्द हुआ, लेकिन बात आईगई हो कर ही रह गई.
‘‘अभी तो 10 दिन बाकी हैं, यार. अभी से इतनी छटपटाहट हो गई है तुझे रूबी भाभी के लिए?’’ सुबह के 6 बज रहे थे इस समय. ट्रेनिंग कैंपस के विशाल हरी व नरम घास के मैदान में आसपास दौड़ते वक्त पवन ने अनिकेत से कहा.
अनिकेत दौड़ता हुआ चुप रहा और पल में खड़ा हो कर सुस्ताते हुए पूछा,
‘‘कैसे समझे?’’
‘‘समझना क्या है, तू बड़ी गहरी चिंता में है, देख कर ही पता चलता है,’’ पवन ने कहा.
‘‘सो तो हूं.’’ वे दोनों अब पैदल ही वापस अपने कमरे में आने लगे थे.
थोड़ी चुप्पी के बाद अनिकेत ने कहा, ‘‘यार, मैं रूबी को ले कर टैंशन ले रहा हूं. बेटी मैडिकल चली गई है, रूबी कुछ बिंदास किस्म की है, जैसे उस ने शेखर को ठहरा लिया. कुछ ठीक नहीं लग रहा. सोचता हूं, ट्रेनिंग जाए भाड़ में, कल ही लौट जाऊं.’’
‘‘अरे, हद है. 2 दिन पहले भी जाएगा तो यहां इतनी मशक्कत के बाद ठेंगा ही मिलेगा. अभी तो 8 दिन बाकी हैं. ट्रेनिंग पूरी होने के बाद अपने को इंक्रीमैंट मिलना है, प्रमोशन का रास्ता खुलेगा. जैसेतैसे काट कुछ दिन भाई मेरे. देख, ऐसे भी रूबी भाभी ने शेखर के साथ कुछ कर लिया होगा.’’
‘‘ए, शट अप. कैसे कुछ कर लेगी?’’
‘‘अरे भाई मेरे, खफा न हो. तू जब इसी लाइन पर सोच रहा है तो बात भी यही करूंगा न. तू क्या टैंशन इस बात की ले रहा है कि रूबी शेखर के साथ भजन गा रही है. सोच तो तू भी वही रहा है जो मैं बोल रहा हूं. तो मैं क्या बोल रहा हूं कि कुछ किया नहीं होगा तब भी सब सही मिलेगा और जो उन की नीयत गलत हुई तो भी लौट कर तुझे कुछ मिलेगा नहीं. क्या शेखर रुक कर तेरा इंतजार करता रहेगा कि कब तू पहुंचेगा और उसे एक झापड़ लगाएगा? क्या है मेरे दोस्त, ऐसे भी किसी की देह में कुछ लगा हुआ नहीं है जो है, सो सोच में है. अब मुझे ही देख ले. मैं अपनी बीवी की माला नहीं जपता. अपनी मरजी और खुशी देखता हूं. वह संत बनी बैठी है, उस की मरजी.
‘‘तू रूबी को किनारे कर और खुद की जिंदगी देख. अपना पैसा और कैरियर देख. अच्छा रुतबा रखेगा, लड़कियां आती रहेंगी. शरीर, पैसा और रुतबा फेंको तो ऐसी लड़कियां भी हैं जिन्हें मर्दों के शादीशुदा होने से कोई फर्क नहीं पड़ता.’’
पवन ने अनिकेत को अपनी तरफ करने का भरसक प्रयास किया, जैसा कि अकसर ऐसे लोग करते हैं. लेकिन अनिकेत पर खास फर्क पड़ता नहीं दिखा.
क्या सच में रूबी ने शेखर को रात अपने घर ठहराया था या अनिकेत यों ही ज्यादा दहशत में था? अनिकेत जानना चाहता है लेकिन क्या रूबी उसे सच बताएगी? रूबी का कहा हुआ सच ही होगा, इस की क्या गारंटी है? अंदर धुंए का सैलाब था, अनिकेत रूबी में ही रोशनी की तलाश करता था.
वह रूबी के पास वापस आ गया था. रोज की जिंदगी और औफिस चल रहे थे. अनिकेत की फिर पत्नी सेवा शुरू हो गई थी. बेटी मैडिकल की पढ़ाई के लिए कोलकाता में थी तो औफिस से आने के बाद रूबी की फरमाइश होती कि अनिकेत उसे बाहर घुमाने ले जाए और अलगअलग रैस्तरां में खाने का आनंद उठा कर वे घर लौटें.
रूबी की फरमाइशों को अनिकेत टाल नहीं पाता और कह भी नहीं पाता कि कुछ महीनों से उसे पेट में अकसर दर्द की शिकायत रहती है और कुछ दिनों से उसे ब्लीडिंग की शिकायत भी दिख रही है.
जब वह अपने लिए घर पर कुछ सादा खाना बनाने लगता तो रूबी उसे ताने देती. ‘‘हो गया फुस्स, ताकत जा रही है मर्द की.’’
अनिकेत को बुरा लगता था, वह छिपा कर मैडिकल शौप से ही कुछ दवा ले लेता ताकि रूबी के सामने फिर बेइज्जत न होना पड़े.
एक रात अनिकेत की तबीयत ठीक नहीं लग रही थी और रूबी के मानसिक सहारे की उसे बहुत जरूरत थी. वह अंदर से शेखर की बात को ले कर बेचैनी महसूस कर रहा था. उस से आखिर रहा नहीं गया और उस ने पूछ लिया, ‘‘रूबी, तुम ने उस रात शेखर को यहां रोका था? मुझ से सच कहना. कभीकभी तुम मिसिंग लगती हो, जैसे कहीं व्यस्त हो.’’
‘‘तुम अपनी चिंता करो, अनु. शेखर को छोड़ो. देखो, तुम्हारी हालत कितनी खराब हो रही है. तुम फालतू बातें क्यों सोचते रहते हो? चलो कल सन्डे है, हम कहीं घूम आते हैं.’’
अनिकेत रूबी के साथ खुश रहना चाहता था, वह जीना चाहता था. समझते हुए भी कि इसी बहाने रूबी बाहर घूमने जाना चाहती है और उसे अनिकेत की नहीं, एक ड्राइवर की जरूरत है फ्री में, वह रूबी की हां में हां मिलाता रहा. अगले दिन शाम के 3 बजे लगभग वे दोनों घूमने निकले.
अनिकेत कार ड्राइव करते हुए खुश होने की कोशिश कर रहा था. अचानक उस के पेट में तेज दर्द उठा, इतना कि उस पर बेहोशी सी छाने लगी. रूबी को कार चलाना आता नहीं था, क्योंकि उसे सीखने में खास रुचि कभी नहीं रही. जैसेतैसे अनिकेत ने अस्पताल तक कार ड्राइव की.
चैकअप होते ही डाक्टर ने अनिकेत को तुरंत अस्पताल में एडमिट कर लिया. कई सारे टैस्ट भी तुरंत ही किए गए. 5 दिनों के अंदर अनिकेत को कैंसर अस्पताल रैफर कर दिया गया.
पवन, रूबी का भाई और रूबी ने मिल कर अनिकेत को कोलकाता के कैंसर अस्पताल में भरती करवाया.
कैंसर अस्पताल में अनिकेत के शिफ्ट होने पर रूबी के सामने अपने पति की तीमारदारी का सवाल खड़ा हो गया. उस की आजादी और खुद के लिए निकलने वाला वक्त अब अगर अनिकेत के पीछे जाया होता रहे तो यह रूबी के लिए कोई कम मुसीबत नहीं थी.
अनिकेत द्वारा खरीदा और बनवाया गया रायपुर का आलीशान फ्लैट रूबी का पसंदीदा था और वह वहीं रहना चाहती थी. वह बेहद परेशान सी होने लगी. बीमारी उसे ऐसे भी अच्छी नहीं लगती थी. उलटी करता, खून बहाता, खांसता, दर्द से कराहता अनिकेत रूबी को डराने लगा था.
कोलकाता और अनिकेत यानी एक और बीमारी से सामना. अनिकेत की मां भी कोलकाता में अपने घर में रहती थी. अनिकेत के बाद उन का एक और बेटा था जो विदेश में रहता था. मां यहां अकेली थी. अब पतिविहीन अनिकेत की मां कोलकाता आई हुई इकलौती बहू से कुछ तो उम्मीद लगाएगी. हुआ न, बीमारी से सामना.
मसलन, रूबी की बदनउघाड़ू ड्रैसें सास को सताएंगी. दिनरात पति की ही सेवा करेगी और सास के कहने पर उठेगीबैठेगी. इन उम्मीदों पर खरा न उतरने पर दिनरात ताने सुनेगी.
रूबी यानी आंखों में मदहोशी, गालों में करंट सी चटक लाली, होंठ कटार और आंखों में धनुष की टंकार. वह बनी ही पुरुषों को चित करने के लिए है. क्यों लोग उसे समाज के बड़ेबड़े धार्मिक कानूनों के पिंजरे में डालने की चाहत रखते हैं.
एक अनिकेत का दोस्त पवन ही उसे खूब पसंद करता है. वह पवन की आंखों में ऐसा कुछ देखती है जो पवन अनिकेत को दिखाना नहीं चाहता. शायद पवन रूबी जैसी स्त्रियों को पसंद करता है जो बिंदास हों. पवन को उन से खुलने में कोई अपराधबोध नहीं होता. वरना कई ऐसी स्त्रियों से भी वह घुलमिल चुका है जो जीना तो अपनी मरजी से चाहती हैं, पराए मर्दों से करीबी भी चाहती हैं लेकिन बड़ा सा तोप नाक पर चढ़ाए घूमती हैं कि कोई मर्द खुद से खुल गया तो वह चला देंगी तोप.
शराब में क्या है मदहोशी, कबाब में क्या है मजा तो शबाब यानी औरत की खूबसूरती तो दोनों का कौकटेल है- मदहोशी और मजा का कौकटेल. और पवन के लिए स्त्री का मतलब बस इतना ही है. रूबी को भी ऐसे ही मर्द दिल से पसंद हैं जो पलपल उस के शरीर और वासनाओं की कद्र करें. अनिकेत क्या है, सिर्फ रूबी की ख्वाहिशों की खाली गगरी लगातार भरने वाला एक लोटा.
उधर, पवन भी अपनी सलीकेदार, सभ्य, सुसंस्कृत पत्नी से आजिज आ चुका है. उसे रूबी में अपनी चाहत दिखती है, इसलिए अनिकेत को कैंसर अस्पताल में भरती करवाने के बाद से वह रूबी के आसपास मक्खी की तरह मंडरा रहा है.
बैड पर पीला सा पड़ा था अनिकेत. बीमारी को रूबी के तानों से डर कर दबाते हुए वह अब चौथे स्टेज इंटेस्टाइन कैंसर में पहुंच चुका है.
अनिकेत में मगर तब भी जीने की ललक इस जानकारी और स्वीकृति से ज्यादा थी कि वह शायद अब मरने वाला है. उम्मीदों का बुझता दीपक जब मद्धम हो आता है, सात सूरज की रोशनी जैसे एकसाथ उस की बुझती लौ में जल उठती है.
पवन आ कर उस के बैड पर बैठा, समझ गया कि अनिकेत ज्यादा दिन का नहीं है. छोटा सा गीत उस के अंदर कहीं से गुनगुना उठा. उस ने रूबी को देखा. पास बैठी रूबी ने भी उस की ओर देखा. यह दृष्टि पति के अभाव की नहीं, किसी नए भाव की थी.
अनिकेत को ढाढ़स बंधा कर पवन ने रूबी से कहा, ‘‘चलो चल कर पूछ आते हैं कि अनिकेत को मुंबई रैफर करेंगे क्या. यहां पता नहीं क्या ट्रीटमैंट हो रहा है.’’
अनिकेत गिड़गिड़ा उठा, ‘‘न मेरे दोस्त. यहां से कहीं नहीं जाना मुझे. मां को देख पाता हूं, बेटी को देख लेता हूं, रूबी भी है. मुंबई जा कर अंत समय किसी को भी नहीं देख पाऊंगा.’’
निर्दयी लोगों के सामने कितना ही मजबूर और सरल इंसान विपत्ति में पड़ा खड़ा हो जाए, वे अपने स्वार्थ से विचलित नहीं होते.
रूबी समझ रही थी पवन की मंशा. चाहे रूबी हो या पवन, दोनों को अनिकेत के लिए पीड़ा उठाने की कोई जल्दी नहीं थी. वे तो दोनों अनिकेत को मूर्ख बना कर यहां से साथ उठना चाह रहे थे.
अनिकेत को ढाढ़स बंधा कर पवन ने रूबी को संग कर लिया, ‘‘चलिए भाभी, डाक्टर से मिल कर आगे क्या करना है, पूछ लेते हैं.’’ दोनों अनिकेत से नजरें मिलाए बिना ही साथ उठ गए.
यहां भी रूबी ने अपनी ड्रैस और सजने का पुराना अंदाज नहीं छोड़ा था. वही स्लीवलैस क्रौप टौप और नी लैंथ की साइड कट टू पीस. कोई भी ड्रैस वैसे बुरी नहीं होती अगर समय और स्थिति के अनुरूप पहनी जाए. खैर.
अस्पताल के कौरिडोर में पवन और अनिकेत साथसाथ चल रहे थे और दोनों ही जानते थे कि वे अनिकेत के लिए डाक्टर से मिलने नहीं जा रहे थे. पवन आतेआते रूबी के इतने करीब आ चुका था कि रूबी के हाथ से उस का हाथ छू जाए. हाथ छूते हुए पवन ने उसे पीछे से जकड़ कर कहा, ‘‘अनिकेत और तुम्हारे लिए मैं बहुत बुरा महसूस कर रहा हूं, लेकिन कर तो मैं बस इतना ही सकता हूं कि तुम्हारे अकेलेपन और मुश्किलों में मैं तुम्हारा साथ दूं.’’
इस अच्छाई की महिमा रूबी खूब समझती थी. रूबी भी खुल कर इस अच्छाई का लाभ लेना जानती थी.
ज्यादा दिन नहीं लगे. अनिकेत चल बसा.
पवन अब शिरोमणि था. दोस्त के काम पूरे होने और अंतिम क्रियाकर्म के बाद बचेखुचे रिश्तेदारों के रवाना हो जाने तक पवन अनिकेत के परिवार के साथ लगा रहा. पहचान वालों ने पवन की भूरिभूरि प्रशंसा की. पवन को मालूम था आम के आम गुठलियों के दाम कैसे वसूलते हैं.
पवन की 48 वर्षीया पत्नी अनीशा एक टीचर थी और स्कूल से फुरसत मिलते ही वह घर और परिवार के लोगों के कामों में जुट जाती. 18 साल का बेटा और 15 साल की बेटी हमेशा मां की रट लगाए रहते. बूढ़े सासससुर भी अनीशा की जिम्मेदारी में थे. घर की साजसज्जा तो थी ही.
पतिव्रता नारियां जरूरी नहीं कि पति की प्यारी हों ही और यह सच अनीशा भी जानती थी कि पति के मनमुताबिक हर काम करने की कोशिश से भी वह पति का मन मोह नहीं रही, तब भी कर्तव्य के खूंटे से बंधी जीवनभर एक ही पतीले में मुंह फेरते रहने की संकल्पना है उस में. इस से पवन का क्या जाता है. कुछ भी नहीं. उलटा, आजकल वह ज्यादा ही अनीशा पर चिल्लाता है, खफा होता है.
रूबी का स्वाद मिल रहा था तो अनीशा को नकारा साबित करना ही था. आनंद चाहिए मगर अपराधभावना का बोझ नहीं चाहिए. जिन का अंतर्मन शक्तिशाली नहीं होता, वे ऐसे बाहरी उपायों से खुद को शांत कर लेते हैं.
अनीशा को इतना बोध तो था ही कि पवन के किस फोन का क्या मतलब था. ऐसे भी उस के पवन को ले कर बीसियों दुखदायी अनुभव थे. फोन बजते ही जब पवन सड़क पर निकल जाए या व्हाट्सऐप पर जल्द टाइप करने लगे या फोन काट दे और संदेश टाइप करने लगे तो अनीशा समझते हुए भी खुद को ढाढ़स देती कि यह सब औफिस का मामला होगा.
लेकिन, बात यह थी कि वह सब जानते हुए भी खुद को चुप करा देती थी तो जाहिर था खुद के लिए उस की अंदरूनी उमंग खत्म ही हो गई थी. बस, खींच रही थी वह जिंदगी की गाड़ी.
सुबह 5 बजे से घड़ी का कांटा उस के ललाट पर चढ़ा बैठा ऐसा तांडव करता है कि जब रात के 11 बजते हैं और रसोई का दरवाजा बंद कर बिस्तर की ओर देखती है, शरीर और मन कटे पेड़ की तरह बिस्तर पर धराशायी होने को दौड़ते हैं. फिर तो पवन रौंदे या छोड़े, वह नियति की नाव पर खुद को विसर्जित कर एक मशीन के बंद हो जाने की तरह सो जाती है.
पवन की जिंदगी में क्या चलता है, अनीशा को इस की जानकारी की कोई इजाजत कभी नहीं रही. बस, एक ही आजादी है उसे- उस की खुद की नौकरी और उस के अपने कमाए पैसे.
रूबी इस वक्त पति की नौकरी हासिल करने में अपनी एड़ीचोटी का जोर लगाने को तैयार थी. उसे लोगों का यह मशविरा पसंद नहीं आ रहा था कि पति की फैमिली पैंशन ले कर वह मात्र अनिकेत की विधवा बन कर रहे और अपनी सोची हुई जिंदगी से हाथ धो बैठे. निश्चित ही अनिकेत के बाद वह अपनी जिंदगी भजनमालिनी की तरह नहीं बिताने वाली थी.
सरकारी नियम उस ने पता कर लिए थे कि विधवा पैंशन की हकदार वह तभी तक है जब तक वह दूसरे किसी मर्द को अपनी जिंदगी में न लाए या दूसरी शादी न करे. अभी रूबी को एक ऐसे आदमी की तलाश थी जो रेलवे में अनुकंपा नियुक्ति दिलवाने में उस की मदद करे.
पवन रोज ही रूबी से फोन पर बात करता और फ्लैट के लोगों की नजर में अभिभावक की हैसियत का दिखावा करते हुए रूबी से उस के घर मिलने जाया करता. इस की भनक अनीशा को भी थी क्योंकि शुरू में पति के औफिस से घर लौटने में देर होने पर वह चिंतित हो कर फोन करती लेकिन 3-4 घंटे स्विचऔफ आता और रात के 12 बजे लौट कर पवन अनीशा से काफी क्रूर व्यवहार करता. इन लक्षणों के अतिरिक्त पवन के औफिस के कुछ कुलीगों की पत्नियां भी थीं जिन्हें अच्छी तरह खबर थी कि रूबी के साथ पवन के क्या गुलछर्रे चल रहे हैं और उन्होंने प्रमाण के साथ अनीशा को पवन की खबर दे रखी थी.
अनीशा जैसी शांतिप्रिय मृदुभाषी स्त्री ऐसे बददिमाग पति से लड़ कर कुछ भी हासिल नहीं कर सकती थी, सिवा गाली और मार के. उसे घर का माहौल बिगाड़ने में कोई रुचि नहीं थी. अपने बच्चों की शांति उसे प्रिय थी अपने अधिकारों और खुशी से ज्यादा. वह पति से मन ही मन कटती रही, जैसे मिट्टी कट कर बहती रहती है धीरेधीरे, अपनी वाली जमीन से.
रूबी पति के बदले नौकरी हासिल करने के लिए पवन को शारीरिक तौर पर मालामाल कर ही रही थी तो अंदरूनी मदद से दोनों विभागीय परीक्षाएं उस ने पास कर लीं.
पति के जीवित रहते एक घरेलू औरत की तरह उस ने जिंदगी जी थी, अब कमाऊ थी और महीने के 50 हजार रुपए वह खुद कमा रही थी. जिंदगी सैट हो गई थी. उस ने अपने पुर्जेपुर्जे पर पवन को हक दे कर उस का बना हिसाब लगभग चुकता कर दिया था.
आज पवन ने बड़ी देर तक रूबी के फ्लैट की घंटी बजाई मगर दरवाजा न खुला. झल्ला कर उस ने रूबी को फोन लगाया ही था कि दरवाजा खुल गया.
‘‘अरे,’’ दोनों ही एकदूसरे को देख चौंक पड़े.
‘‘आप कैसे?’’
‘‘तुम कैसे यहां?’’
शेखर ने तौहीन से पूछा तो पवन ने भौचक हो कर प्रतिप्रश्न किया.
‘‘मुझे तो रूबी ने बुलाया है. ऐसे भी, मैं तो तब से हूं जब अनिकेत भी थे पर आप का तो हो गया न, फिर आप कैसे?’’
‘‘पूछो रूबी से. जिस नौकरी पर आजकल तुम्हारे जैसे मच्छर भिनभिना रहे हैं वह नौकरी किस ने लगवा दी, पूछो तो जरा? बुलाओ रूबी को,’’ तिलमिलाया पवन जबरदस्ती घर में घुस गया.
रूबी आराम से सोफे पर बैठी थी. पवन उस के नजदीक आ कर बैठ गया लेकिन तुरंत रूबी सामने वाले सोफे पर चली गई.
‘‘आप का चुकता हो गया, पवनजी. पिछले 6 महीने से शेखर को रोके थी मैं और आप मुझे निचोड़ रहे थे. मैं ने यह होने दिया क्योंकि मुझे भी हिसाब आता है. लेकिन शेखर अलग है, उसे मुझ से भी मतलब है सिर्फ अपने हिसाब देखनेभर से नहीं. मैं ने उसे जब तक रोके रखा, वह रुका रहा. अब आप को अपनी बीवी के पास वापस जाना चाहिए, पवनजी.’’
‘‘क्यों, शेखर को अपनी बीवी और 10 साल की बेटी के पास वापस नहीं जाना चाहिए?’’ पवन के आवेश का ठिकाना न था.
‘‘नहीं, मैं ने 2 साल पहले ही अपनी बीवी से तलाक की घोषणा कर दी है और इस के लिए अपनी बीवी को मोटी रकम भी चुकाई है ताकि रूबी को अपना सकूं. ऐसे भी एकदो महीने में तलाक के आदेश भी फाइनल हो जाएंगे,’’ शेखर ने गर्व से कहा.
‘‘क्या आप देंगे अपनी पत्नी को तलाक? बहुत रुपए लगेंगे पवनजी. फ्री में नहीं मिलती फ्रीडम,’’ रूबी भी आमादा थी पवन पर धुंआधार बरसने को.
‘‘अभी जाओ न पवनजी अपने दरबे में, आप की बीवी इंतजार कर रही होगी,’’ रूबी ने ठसक से कहा तो पवन चिढ़ गया.
छूटते ही उस ने रूबी पर तंज कसा, ‘‘आखिर एक मिला तो वह भी खुद से 4 साल छोटा. अपने से छोटे उम्र के आदमी के साथ तुम्हें शर्म नहीं आती, बेटी का भी लिहाज नहीं?’’
‘‘लिहाज की बात तो आप रहने ही दो, पवनजी. इतने तो गिरे हो कि दोस्त गया नहीं कि उस की बीवी को खा गए वह भी इसलिए कि एक मजबूर औरत को मदद की जरूरत थी. शेखर तो प्यार करता है मुझ से, इसलिए लगा पड़ा है मेरे साथ. ऐसे भी अभी आप की उम्र 52 पार है. शेखर के सामने आप कुछ लगते भी हो? ये 42 साल का और आप बूढ़े हो चले. कितने भी बाल रंगो, एकदो सालों में आप की तो नैया डूबी. औफिस के बैग में जवानी की दवा लिए घूमते हो और खुद की जवानी को ले कर न जाने किस वहम में जी रहे हो. जाओ पवनजी जाओ, हमें अपने अरमानों के सातवें आसमान पर जाने दो.
‘‘परसों हम इंडिया टूर पर जा रहे हैं. पहले साउथ जाएंगे, कुछ दिन बेटी भी हमारे साथ रहेगी. शेखर के साथ उस की भी पहचान हो जानी चाहिए जब वह शेखर के साथ मेरे रिश्ते को खुशी से मान ही गई है.
‘‘आप न, अपनी बीवी के पास ही जाओ जब तक कोई नया शिकार न मिले. आप को जानती नहीं क्या मैं?’’
गजब का शून्य सा रह गया था पवन. वापसी पर उसे एहसास होने लगा कि कितना ही स्त्रियों का मैसूरपाक बना ले वह, कभी भी स्त्रियों को पूरी तरह समझ नहीं पाएगा.
खुद की बीवी अनीशा को ही देखो, मशीन की तरह चलती ही रहती है, ड्यूटी करती रहती है. कितना ही वह चीखेचिल्लाए मगर वह बिलकुल निर्वापित दीये की तरह निर्लिप्त. कितना भी फूंक मारो- जलती रहती, रोशनी देती ही रहती. क्या अनीशा भी समझ से परे नहीं?
पवन और शेखर के बीच झेलती रूबी पति अनिकेत की मौत के बाद अपनी हृदयविदारक दहाड़ों से सभी रिश्तेदारों को विचलित कर गई थी. क्या एक स्त्री पुरुषों के लिए अपठित गद्यांश ही रह जाएगी? नहीं, तो क्यों नहीं?